51. मेरे रिश्तेदारों ने मुझ पर हमले क्यों किए

मेरे पिता स्कूल में प्रिंसिपल थे, वे स्कूल और घर पर अक्सर भौतिकवाद की बातें करते थे। उन्होंने हमें सिखाया कि हमारी खुशी हमारी कड़ी मेहनत पर निर्भर करती है, हमें खूब मेहनत कर अपने पुरखों का सिर सम्मान से ऊँचा करना है। अपने माँ-बाप की बातों और मिसालों पर चलते हुए हम भाई-बहनों ने हमेशा कड़ी मेहनत की। हमने कारोबार किया, या अधिकारी बने, और थोड़ी कामयाबी भी पाई। 2007 के बसंत में, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों का कार्य स्वीकार लिया। रोज परमेश्वर के वचन पढ़े, नियमित रूप से अपने भाई-बहनों के साथ संगति की, परमेश्वर की संप्रभुता की थोड़ी समझ प्राप्त की। ये वचन विशेष रूप से प्रभावशाली थे : “परमेश्वर ने इस संसार की सृष्टि की, उसने इस मानवजाति को बनाया, और इतना ही नहीं, वह प्राचीन यूनानी संस्कृति और मानव-सभ्यता का वास्तुकार भी था। केवल परमेश्वर ही इस मानवजाति को सांत्वना देता है, और केवल परमेश्वर ही रात-दिन इस मानवजाति का ध्यान रखता है। मानव का विकास और प्रगति परमेश्वर की संप्रभुता से जुड़ी है, मानव का इतिहास और भविष्य परमेश्वर की योजनाओं में निहित है। यदि तुम एक सच्चे ईसाई हो, तो तुम निश्चित ही इस बात पर विश्वास करोगे कि किसी भी देश या राष्ट्र का उत्थान या पतन परमेश्वर की योजनाओं के अनुसार होता है। केवल परमेश्वर ही किसी देश या राष्ट्र के भाग्य को जानता है और केवल परमेश्वर ही इस मानवजाति की दिशा नियंत्रित करता है। यदि मानवजाति अच्छा भाग्य पाना चाहती है, यदि कोई देश अच्छा भाग्य पाना चाहता है, तो मनुष्य को परमेश्वर की आराधना में झुकना होगा, पश्चात्ताप करना होगा और परमेश्वर के सामने अपने पाप स्वीकार करने होंगे, अन्यथा मनुष्य का भाग्य और गंतव्य एक अपरिहार्य विभीषिका बन जाएँगे(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 2: परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियंता है)। परमेश्वर के वचनों ने मेरे दिल को रोशनी दिखा दी। परमेश्वर ने ही यह दुनिया बनाई है, आज तक इंसान को राह दिखाकर कायम रखा है। यही नहीं, वह हमारा भाग्य विधाता भी है। केवल परमेश्वर की आराधना करके, पश्चात्ताप करके और उसके उद्धार को स्वीकार करके हमारा भाग्य अच्छा बन सकता है। मैंने यह भी सीखा कि उद्धारकर्ता, सर्वशक्तिमान परमेश्वर, अंत के दिनों में सत्य व्यक्त करने और न्याय-कार्य करने आया है, ताकि मानव जाति को पूरी तरह शुद्ध करके बचा सके, हमें शैतान के प्रभाव से मुक्त करके उस सुंदर मंजिल की ओर ले जाए जिसे परमेश्वर ने हमारे लिए बनाया है, ताकि हमें अच्छा भाग्य और परिणाम मिल सके। मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार कर बहुत धन्य थी, मैंने कसम खाई कि मैं अपने विश्वास पर टिके रहकर सत्य का अनुसरण करूँगी, परमेश्वर के प्रेम का कर्ज चुकाने के लिए सृजित व्यक्ति का कर्तव्य निभाऊँगी।

लेकिन जब मैं अपने कर्तव्य में जी-जान से जुटी थी, तब मुझे कम्युनिस्ट पार्टी ने गिरफ्तार कर लिया। मार्च 2009 की एक दोपहर में, पुलिस हमारी सभा में आई, मुझे और मेरी तीन बहनों को अवैध हिरासत में लेकर थाने में बंद कर दिया। जन सुरक्षा प्रमुख मुझ पर गुस्से से चीखा : “बताओ क्या जानती हो! तुम्हें किसने विश्वासी बनाया? तुम्हारी कलीसिया का अगुआ कौन है? अगर बता दोगी तो तुम्हें अभी घर जाने दूँगा। नहीं बताओगी, तो तुम्हारे घर में इतनी धार्मिक किताबें मिलीं हैं कि तुम्हें पांच-छह साल तक जेल में डाल सकते हैं!” उसका गुस्सा देखकर मेरे दिल की धड़कनें बढ़ गईं। पता नहीं कि वे मेरे साथ कैसा सलूक करेंगे। मैंने तुरंत प्रार्थना की कि परमेश्वर मेरा ख्याल रखे, मुझे विश्वास और शक्ति दे, मुझे मजबूती से खड़े रहने की हिम्मत दे। प्रार्थना के बाद मैंने परमेश्वर के इन वचनों के बारे में सोचा : “सत्ता में रहने वाले लोग बाहर से दुष्ट लग सकते हैं, लेकिन डरो मत, क्योंकि ऐसा इसलिए है कि तुम लोगों में विश्वास कम है। जब तक तुम लोगों का विश्वास बढ़ता रहेगा, तब तक कुछ भी ज्यादा मुश्किल नहीं होगा(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 75)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे विश्वास और शक्ति दी। सभी चीजें परमेश्वर के हाथों में हैं। जन सुरक्षा प्रमुख डरावना लग रहा था पर वह भी परमेश्वर के हाथों में था। वह भी परमेश्वर की सेवा कर रहा था। मुझे सजा होगी या नहीं, यह उसके हाथ में नहीं था—सिर्फ परमेश्वर के हाथ में था। मैं उसकी धमकियों से दुबकने वाली नहीं थी। मुझे चुप देखकर, उसने हम पर सामाजिक व्यवस्था भंग करने का आरोप लगाया और हम चार बहनों को हिरासत केंद्र में बंद कर दिया।

एक सुबह, अचानक, मैंने किसी को मेरा नाम लेकर चीखते सुना। मेरा दिल सहम गया। क्या वे मुझसे फिर पूछताछ करेंगे? पहले जब मुझसे पूछताछ की थी, तब मैंने कुछ नहीं कहा था। लगा कि अब वे मुझ पर और भी खतरनाक तरीके अपनाएँगे। डरते हुए मैंने चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना की, तब जाकर मैं धीरे-धीरे मैं शांत हो पाई। पुलिस मुझे एक बड़े से कमरे में ले गई अंदर अपने पिता को देखकर मेरा दिल बैठ गया। वे मेरे पिता को क्यों लाए हैं? वह हमेशा मेरे विश्वास के खिलाफ रहे, अब मेरी गिरफ्तारी के बाद न जाने क्या करेंगे? इससे पहले कि मैं कुछ कह पाती, मेरे पिता ने मेरे सिर पर मुझे तीन बार मारा। मुझे चक्कर आने लगे, दिन में तारे दिखने लगे। उन्होंने सख्ती से कहा : “मैंने तुम्हें विश्वास रखने से मना किया था, लेकिन तुम नहीं मानी, तुम्हारी गिरफ्तारी से मेरा नाम मिट्टी में मिल गया है! इन्हें अपने विश्वास के बारे में सब कुछ बता दो। पुलिस कहती है कि कबूल करते ही तुम्हें छोड़ देगी, लेकिन अगर नहीं बताया तो कड़ी सजा मिलेगी!” अपने बूढ़े पिता को देखकर मुझे बहुत दुख हुआ। वह लगभग 80 साल के थे, उन्हें अपनी इज्जत बड़ी प्यारी थी। अगर मुझे सजा हुई तो वह इसे कैसे सह सकेंगे? फिर, अचानक उन्होंने घुटने टेक दिए और नम आँखों से कहा : “तुम्हारी माँ यह सब सुनकर बीमार पड़ गई है। उसे ग्लूकोज चढ़ रहा है। तुम्हें जो कुछ पता है, इन्हें बता दो और मेरे साथ घर चलो!” वह सब देखकर मैं अपने आँसू नहीं रोक पाई। पुराने जमाने से बच्चे ही माँ-बाप के सामने झुकते आए हैं, माँ-बाप नहीं। मुझे पालने में माँ-बाप को हुई तकलीफों के बारे में सोचा, उन्होंने मेरे बच्चों को पालने में भी मदद की थी। बुढ़ापे में भी उन्हें मेरी चिंता करनी पड़ रही है। अगर मैं विश्वासी नहीं होती तो वे यह दुःख-दर्द क्यों झेलते। मैं उनके एहसानों तले दबी थी—मुझे बहुत बुरा लग रहा था। फिर, लगा कि मैं सही स्थिति में नहीं हूँ। मैंने तुरंत प्रार्थना की, “हे परमेश्वर! मेरी स्थिति दर्दनाक है। मैं कमजोर पड़ गई हूँ। माँ-बाप की कर्जदार हूँ। मुझे नहीं पता कि मैं क्या करूँ। मेरा प्रबोधन और मार्गदर्शन करो ताकि मैं तुम्हारी इच्छा को समझ कर मजबूती से खड़ी रह सकूँ।” प्रार्थना के बाद, मैंने तुरंत परमेश्वर के सामने लिए संकल्प के बारे में सोचा—कि मैं विश्वास में अडिग रहूँगी, उसका अनुसरण करूँगी, हमेशा उससे प्रेम करूँगी। उसी पल, मैं होश में आ गई। मैंने परमेश्वर के वचनों के बारे में भी सोचा : “क्या लोग इतने से समय के लिए अपनी देह की इच्छाओं को अलग रखने के काबिल नहीं हैं? कौन सी बातें मनुष्य और परमेश्वर के प्रेम में दरार पैदा कर सकती हैं? कौन है जो मनुष्य और परमेश्वर के बीच के प्रेम को अलग कर सकता है? क्या माता-पिता, पति, बहनें, पत्नियाँ या पीड़ादायक शोधन ऐसा कर सकते हैं? क्या अंतःकरण की भावनाएँ मनुष्य के अंदर से परमेश्वर की छवि को मिटा सकती हैं? क्या एक-दूसरे के प्रति लोगों की कृतज्ञता और क्रियाकलाप उनका स्वयं का किया है? क्या इंसान उनका समाधान कर सकता है? कौन अपनी रक्षा कर सकता है? क्या लोग अपना भरण-पोषण कर सकते हैं? जीवन में बलवान लोग कौन हैं? कौन मुझे छोड़कर अपने दम पर जी सकता है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 24 और अध्याय 25)। परमेश्वर के वचन पढ़कर मुझे बहुत ग्लानि हुई। ये साँसें भी मुझे परमेश्वर ने दी हैं वही मुझे ज़िंदा रहने के लिए सब कुछ देता है। उसने चुपचाप मेरी देखभाल और रक्षा की है, इसी वजह से मैं अब तक ज़िंदा हूँ। उसी ने यह व्यवस्था की कि मैं उसके उद्धार को स्वीकार करने के लिए उसके सामने आऊँ। परमेश्वर का प्रेम ऐसा महान है! मैं अपने माँ-बाप को चोट पहुंचाने के डर से परमेश्वर को धोखा नहीं दे सकती। उनकी सेहत आखिर परमेश्वर के हाथ में है, इसकी चिंता करना बेकार है। कम्युनिस्ट पार्टी के उत्पीड़न की वजह से वे दुख और पीड़ा में थे। अगर वे पार्टी की बुराई देख सकें तो लज्जित महसूस नहीं करेंगे, न ही शैतान उन्हें बेवक़ूफ़ बना पाएगा। यह सोचकर मेरी परेशानी कुछ कम हुई। मैंने कसम खाई कि अपनी बात पर अडिग रहूँगी, चाहे जेल ही क्यों न जाना पड़े। अपने आँसू पोंछकर पिताजी को खड़े होने में मदद की। तभी पांच-छह अफसरों ने आकर मुझे घेर लिया। मैंने उनसे कहा, “मैं कुछ नहीं जानती।” एक ने मेरी तरफ देखकर कहा, “तुम्हारे पास पाँच मिनट हैं।” मेरे पिता बहुत गुस्से में थे। उन्होंने मुझे और मारा, फिर घुटने टेककर कहने लगे, “अगर तुमने कुछ नहीं बताया तो मैं घुटनों पर बैठे-बैठे जान दे दूँगा! पार्टी धार्मिक मान्यताओं की अनुमति नहीं देती—इसके खिलाफ जाने की हिम्मत कैसे हुई? जल्दी से कबूल कर लो! फिर हम घर जा सकते हैं।” तब मुझे एहसास हुआ कि यह पुलिस की एक चाल है। वे चाहते थे कि मेरे पिता मुझे यहूदा बनने पर मजबूर करें और मैं दूसरों के राज खोल दूँ। वे पुलिस वाले बहुत दुष्ट हैं! मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था। मैंने अपने पिता को फिर खड़ा किया तो फिर से पांच-छह अफसरों ने मुझे बोलने पर मजबूर करना चाहा। मैंने शांति से उनकी ओर देख कर कहा : “मुझे कुछ नहीं पता।” तभी पिताजी का फोन बजने लगा, उन्होंने फोन मुझे दे दिया। फोन पर माँ बुरा-भला बोल रही थी, कह रही थी कि, “तुम्हीं मेरी मौत का कारण बनोगी! सरकार विश्वास रखने की अनुमति नहीं देती, फिर भी अड़ी हो। तुम उनसे लड़ नहीं सकती! जो कुछ जानती हो, बता दो और लौट आओ! अगर तुम्हें सजा हो गई तो हम क्या करेंगे? तुम्हारे बेटे की शादी कैसे होगी? हम सबको भी अपमान सहना पड़ेगा। कुछ हमारी भी सोचो!” रोते-रोते मैंने फोन काट दिया और अपने पिता को भारी कदमों से जाते देखा। काल-कोठरी में वापस आकर मुझे बिस्तर पर पड़ी अपनी बीमार माँ का ख्याल आया। अगर उन्हें कुछ हो गया तो यह मेरी गलती होगी। यही सोच-सोच कर मुझे बहुत बुरा लग रहा था। आँसू भी नहीं रुक रहे थे। तब मुझे एहसास हुआ कि मेरा स्नेह मेरी कमजोरी हैं। मैंने खुद को परमेश्वर से प्रार्थना करने में झोंक दिया। उससे अडिग रहने के लिए मार्गदर्शन माँगा ताकि मैं भावनाओं के भरोसे न जीऊँ। मुझे परमेश्वर के वचन याद आए : “लोगों के लिए स्वयं को भावनाओं से पृथक करना इतना कठिन क्यों है? क्या ऐसा करना अंतरात्मा के मानकों के परे जाना है? क्या अंतरात्मा परमेश्वर की इच्छा को पूरा कर सकती है? क्या भावना विपत्ति में लोगों की सहायता कर सकती है? परमेश्वर की नज़रों में, भावना उसका शत्रु है—क्या यह परमेश्वर के वचनों में स्पष्ट रूप से नहीं कहा गया है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 28)। परमेश्वर के वचनों ने मेरी आँखें खोल दीं। भावनाएँ परमेश्वर की दुश्मन हैं और सत्य के अभ्यास में सबसे बड़ी बाधा हैं। जब हम भावनाओं के भरोसे जीते हैं तो परमेश्वर से दूर होकर उसे धोखा देते हैं। माँ-बाप को लेकर मैं भावनाओं में फंस गई थी। मुझे लगा कि बेटी होने का फर्ज न निभाना भयँकर अपराध है, मैं बुरी बेटी बन गई हूँ। मेरी गिरफ्तारी के कारण उन्हें दुःखी और परेशान देखकर लगा मैं उनकी कर्जदार हूँ। मुझे लगा कि उन्होंने मुझे पालने के लिए इतनी मेहनत की, मैंने उनका कर्ज तो नहीं चुकाया पर उन्हें इतना दुःख दे रही हूँ। अपने माँ-बाप के एहसानों के बारे में तो इतना सोचा लेकिन भूल गई कि जिंदगी तो परमेश्वर देता है। परमेश्वर ही मानव जीवन का स्रोत है, उससे मिली साँस के कारण ही मैं अब तक जी पा रही हूँ। मेरे पास जो कुछ है वह परमेश्वर के मार्गदर्शन और प्रावधान की वजह से है। परमेश्वर ने बदले में बिना कुछ माँगे हमें कितना कुछ दिया है। अंत के दिनों में, परमेश्वर ने मानवजाति को बचाने के लिए फिर से देहधारण किया है, बड़े अपमान सहे हैं, कम्युनिस्ट पार्टी के दबाव और उत्पीड़न को भी सहा है। परमेश्वर ने मानवजाति के लिए सब दे दिया—उसका प्रेम इतना महान है! हमें परमेश्वर की पूजा और उसकी आज्ञा का पालन करना चाहिए। माँ-बाप ने परवरिश कर भले ही मेरा भौतिक जीवन सुधारा हो, लेकिन वे मुझे सत्य नहीं दे पाए। वे मुझे शैतान की भ्रष्टता से नहीं बचा सके या एक अच्छी मंजिल और परिणाम नहीं दे सके। अगर मैंने अपने माँ-बाप के लिए परमेश्वर को धोखा देकर, दूसरों को फँसा दिया, तो उनके एहसान तो चुका दूँगी, लेकिन परमेश्वर मुझे ठुकरा देगा, मैं उसके उद्धार को हमेशा के लिए खो दूँगी। उस समय मैंने देखा कि शैतान मुझे लुभाने के लिए माँ-बाप के प्रति मेरे प्यार का इस्तेमाल कर रहा है, ताकि मैं परमेश्वर से दूर हो जाऊँ, उसे धोखा दूँ, उद्धार का मौका खो दूँ नरक जाकर नष्ट हो जाऊँ। मैं शैतान की चाल में नहीं फँस सकती। यह मुझे पतरस की याद दिलाता है, जिसके पास सिद्धांत थे, जिसने अपने माँ-बाप की खिलाफत की थी। उन्होंने चाहे जैसे उसे रोकने की कोशिश की, वह अपने विश्वास में अडिग होकर प्रभु यीशु का अनुसरण करता रहा। आखिरकार, परमेश्वर के लिए उसका प्रेम जीत गया और उसे उसकी स्वीकृति मिली। यह मेरे लिए बहुत प्रेरणादायक है!

पाँचवें दिन, पुलिस तीन चिट्ठियाँ लेकर मेरे पास आई, एक मेरी माँ की थी, दो मेरे बेटे-बेटी की। मेरे बेटे ने लिखा : “माँ, इतने सालों से मैं सेना में था, मैं सारे परिवार से मिलने की राह देख रहा था। तबादला लेकर वापस आना आसान नहीं था लेकिन अब आप जेल में हैं। आपके बिना घर ऐसा लगता है कि जैसे कोई पहाड़ टूट पड़ा हो। माँ, पुलिस को अपनी धार्मिक चीजों के बारे में बता दो! आपको सजा हो गई तो मुझे नौकरी और शादी में बहुत दिक्कत होगी। अपने लिए न सही, कम-से-कम मेरे लिए तो सोचो...।” यह पढ़ते ही मैं रो पड़ी। मुझे सजा हुई तो उसका भविष्य बर्बाद हो जाएगा, फिर क्या मुँह लेकर उसके सामने जाऊँगी। वह मुझसे पक्का नफरत करने लगेगा। मुझे लगा कि विश्वास की राह बाधाओं से भरी है, हर कदम पर मुझे चुनाव करने होंगे। मैंने दिल में प्रार्थना की : “हे परमेश्वर, मैं सच में दुःखी हूँ और कमजोरी महसूस कर रही हूँ। कृपया मेरे दिल की रक्षा करो, मेरे विश्वास को मजबूती दो।” वहाँ जेल में, एक बहन ने मेरी स्थिति देखकर याद दिलाया कि यह शैतान की चाल है, इसमें मत फँसो। यह मेरे लिए एक चेतावनी थी। मैंने सोचा कि कैसे, हर पल, शैतान परमेश्वर को धोखा देने के लिए हमें उकसाने और धोखा देने को सभी तरीके आजमाता है। जैसे ही हम कमजोर पड़ जाते हैं, हम शैतान के जाल में फँस सकते हैं। हमें परमेश्वर के सामने अपने दिलों को शांत रखना होगा और प्रार्थना करके उसका सहारा लेना होगा ताकि हम शैतान की चालों से बचें, परमेश्वर की सुरक्षा पाएँ और मजबूती से खड़े रहें। मैं उस रात सो नहीं सकी, तो मैंने लेटे-लेटे ही मन में प्रार्थना की। मुझे परमेश्वर के वचनों का यह अंश याद आया : “जिस क्षण तुम रोते हुए इस दुनिया में आते हो, उसी पल से तुम अपना कर्तव्य पूरा करना शुरू कर देते हो। परमेश्वर की योजना और उसके विधान के लिए तुम अपनी भूमिका निभाते हो और तुम अपनी जीवन-यात्रा शुरू करते हो। तुम्हारी पृष्ठभूमि जो भी हो और तुम्हारी आगे की यात्रा जैसी भी हो, कोई भी स्वर्ग के आयोजनों और व्यवस्थाओं से बच नहीं सकता, और किसी का भी अपनी नियति पर नियंत्रण नहीं है, क्योंकि केवल वही, जो सभी चीज़ों पर शासन करता है, ऐसा करने में सक्षम है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है)। सही कहा। ज़िंदगी भर, हमारा भाग्य परमेश्वर लिखता है और कोई भी उसे बदल नहीं सकता। भविष्य में मेरे बेटे को कैसी नौकरी और पत्नी मिलेगी, इस पर मेरा कोई वश नहीं है। मैं अपने बच्चों की चाहे जितनी फिक्र करूँ, उनका भाग्य नहीं बदल सकती, मेरा जेल जाना या न जाना भी परमेश्वर के हाथ में है। मैं चाह कर भी उससे नहीं बच सकती। मुझे अब सब कुछ परमेश्वर को सौंप कर उसकी संप्रभुता के सामने समर्पण करना था। फिर, परमेश्वर के वचनों का एक और अंश याद आया। “तुम्हें सत्य के लिए कष्ट उठाने होंगे, तुम्हें सत्य के लिए समर्पित होना होगा, तुम्हें सत्य के लिए अपमान सहना होगा, और अधिक सत्य प्राप्त करने के लिए तुम्हें अधिक कष्ट उठाने होंगे। यही तुम्हें करना चाहिए। एक शांतिपूर्ण पारिवारिक जीवन के लिए तुम्हें सत्य का त्याग नहीं करना चाहिए, और क्षणिक आनन्द के लिए तुम्हें अपने जीवन की गरिमा और सत्यनिष्ठा को नहीं खोना चाहिए। तुम्हें उस सबका अनुसरण करना चाहिए जो खूबसूरत और अच्छा है, और तुम्हें अपने जीवन में एक ऐसे मार्ग का अनुसरण करना चाहिए जो ज्यादा अर्थपूर्ण है। यदि तुम एक गंवारू जीवन जीते हो और किसी भी उद्देश्य को पाने की कोशिश नहीं करते हो तो क्या तुम अपने जीवन को बर्बाद नहीं कर रहे हो? ऐसे जीवन से तुम क्या हासिल कर पाओगे? तुम्हें एक सत्य के लिए देह के सभी सुखों को छोड़ देना चाहिए, और थोड़े-से सुख के लिए सारे सत्यों का त्याग नहीं कर देना चाहिए। ऐसे लोगों में कोई सत्यनिष्ठा या गरिमा नहीं होती; उनके अस्तित्व का कोई अर्थ नहीं होता!(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे विश्वास और शक्ति दी। एक विश्वासी के रूप में, परमेश्वर की स्वीकृति पाने का तरीका यही है कि हम सत्य का अनुसरण करें और सृजित प्राणी होने का कर्तव्य पूरा करें। केवल इसे ही मूल्यवान जीवन माना जा सकता है, सत्य को पाने के लिए हर तरह की पीड़ा स्वीकार्य है। अगर मैं अपने परिवार के खातिर भाई-बहनों और कलीसिया को फँसा देती हूँ, तो मैं भी यहूदा की तरह परमेश्वर को धोखा दे बैठूँगी। इससे शर्मनाक क्या होगा, और इसके लिए परमेश्वर मुझे शाप भी दे सकता है। एक सुखी परिवार और एक सुखद जीवन के साथ भी, एक खालीपन होता, जीवन बेमतलब होता और मैं जिंदा लाश जैसी होती। यह सोचकर, परमेश्वर का अनुसरण करने का मेरा संकल्प और गहरा हो गया। चाहे पुलिस कोई भी तरीका अपनाए, मैं गवाही देकर शैतान को शर्मिंदा करूँगी!

छठे दिन पुलिस ने मुझे मुख्य कमरे में बुलाया, जहां मेरे बेटा-बेटी, पति और चाचा बैठे थे। रोते हुए बच्चों ने मुझे गले लगा कर कहा: “माँ, घर चलो!” पास ही खड़ा मेरा पति भी रो रहा था। फिर चाचा ने रोते-रोते कहा : “लिंगमिन, पुलिस कहती है कि अगर तुम उसे कुछ थोड़ा-बहुत भी बता दोगी तो तुम बच जाओगी। तुम्हें जेल हो गई तो बेटे का भविष्य चौपट हो जाएगा। पूरा परिवार बर्बाद हो जाएगा! मेरी बात मानो और उनसे बात करो!” उस समय, मेरा दिल साफ था। जानती थी कि मेरे परिवार के दबाव डालने के पीछे शैतान की चाल है, कुछ भी बताया तो पुलिस और ज्यादा पूछेगी, कई और लोगों को गिरफ्तार कर लेगी। यह सोचकर मैंने कहा : “एक विश्वासी के रूप में, मैं जीवन के सही रास्ते पर चल रही हूँ। मैंने कुछ भी ग़ैर-क़ानूनी नहीं किया है, इसलिए कबूलने के लिए कुछ नहीं है। आप सब घर जाओ।” वापस कोठरी में जाते समय, मैंने सोचा कि पुलिस बार-बार मेरे प्रियजनों का इस्तेमाल करके मुझे लुभाने की कोशिश कर रही है, ताकि भाई-बहनों को फँसाकर परमेश्वर को धोखा दे दूँ। कम्युनिस्ट पार्टी बेहद नीच है! वे परमेश्वर-विरोधी राक्षस हैं! उसके बाद, एक अफसर ने मुझे ऑफिस में बुलाकर मुस्कराते हुए कहा : “कैसा लगा अपने परिवार से मिलकर?” उसे इस दर्दनाक स्थिति का मजा लेते देखकर, मुझे इतना गुस्सा आया कि मैंने अपनी जेब से तीनों चिट्ठियाँ निकाल कर फाड़ दीं और उन्हें मेज पर फेंक कर कहा : “मैं विश्वासी और ईमानदार इंसान हूँ। मैंने कुछ भी बुरा नहीं किया है। उन्हें यहाँ लाकर मुझ पर दबाव क्यों डाल रहे हो? कौन-सा कानून तोड़ा है मैंने?” फिर मैं तुरंत बाहर निकल आई। परमेश्वर की दी ताकत की वजह से ही मैं शांति से पुलिस की पूछताछ का सामना कर पाई।

14वें दिन की सुबह, जन सुरक्षा ब्यूरो के प्रमुख ने मुझे अपने ऑफ़िस में बुलाया। वह पहले जैसे गुस्से में नहीं था, बल्कि फिक्र जताकर मेरे परिवार के बारे में पूछने लगा। उसने चिकनी-चुपड़ी बातें करके मुझे अपने भाई-बहनों को धोखा देने के लिए ललचाया। मैं लगातार मन में परमेश्वर से प्रार्थना की। उससे कहा कि मुझे शैतान की इस चाल में फँसने से बचा ले। ब्यूरो प्रमुख ने बहुत कुछ कहा। अंत में, यह देखकर कि मैं कुछ नहीं कह रही हूँ, वह गुस्से से चिल्लाने लगा, “मैं साफ कह रहा हूँ, तुम्हारे घर में बहुत सारी धार्मिक किताबें मिलीं हैं, यह शहर का सबसे बड़ा मामला है। अगर तुमने मुँह नहीं खोला तो सजा मिलनी तय है!” उसने कुछ भी कहने पर मैं चुप रही, परमेश्वर से प्रार्थना की और कसम खाई कि दूसरों की जानकारी नहीं बताऊँगी, परमेश्वर को धोखा नहीं दूँगी, चाहे मुझे सजा ही क्यों न हो जाए। पंद्रह दिन बाद, उन्होंने देखा कि मैं कुछ नहीं बोलने वाली, तो मुझे घर भेज दिया। घर लौटने पर भी मेरे परिवार ने मेरे विश्वास का विरोध किया। मुझे पता था कि यह सब कम्युनिस्ट पार्टी के झूठ और उत्पीड़न की वजह से था। मैंने प्रार्थना की और कसम खाई कि चाहे जितनी मुश्किलें हों, अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करूँगी। फिर, अनुभव का एक भजन याद आया : परमेश्वर से प्रेम करने की राह पर आगे बढ़ना।

1  यह परवाह किए बिना कि आस्था का रास्ता कितना कठिन है, मेरा एकमात्र उद्देश्य परमेश्वर की इच्छा को पूरा करना है; मुझे इस बात की भी जरा भी परवाह नहीं है कि भविष्य में मुझे आशीष मिलते हैं या मैं दुख उठाता हूँ। अब जबकि मैंने परमेश्वर से प्रेम करने का संकल्प कर लिया है, मैं अंत तक निष्ठावान रहूँगा। मेरे पीछे चाहे कितने भी खतरे या मुश्किलें घात लगाए बैठी हों, और मेरा अंत चाहे कुछ भी हो, परमेश्वर की महिमा के दिन का स्वागत करने के लिए, मैं परमेश्वर के पदचिह्नों का ध्यान से अनुसरण करते हुए निरंतर आगे बढ़ने का प्रयास करता हूँ।

............

—मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ

उस भजन को बार-बार गाकर मैंने बेहद प्रेरित महसूस किया। मुझे पता था कि विश्वास की राह पर पार्टी के जुल्म सहने होंगे, शायद फिर से मुझे गिरफ्तार किया जाए या भविष्य में सजा भी हो जाए। लेकिन मुझे यकीन था कि यही सच्चा मार्ग है, मैं अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए तैयार थी। कुछ वक्त तक मैं किसी दूसरी कलीसिया के सदस्यों से संपर्क नहीं कर सकी, न कलीसिया का जीवन जी सकी। इसलिए, मैंने घर पर ही परमेश्वर के वचनों को खाया-पिया, खुद को सत्य से लैस किया और परिवार के साथ सुसमाचार साझा किया। मेरी बेटी और पति विश्वासी बन गए। एक परिवार के रूप में इकट्ठे होकर हमने परमेश्वर के वचनों को खाया और पिया। एक साल बाद, मैं भाई-बहनों के संपर्क में वापस आकर अपना कर्तव्य निभाने लगी। मैं परमेश्वर की बेहद आभारी थी।

इस पूरे समय, मुझे हर कदम पर परमेश्वर के वचनों के प्रबोधन और मार्गदर्शन से ही कम्युनिस्ट पार्टी के जुल्म, गिरफ्तारी और अपने परिवार के हमले सहने की शक्ति मिली। मेरा आगे का रास्ता चाहे जितना मुश्किल हो, मैं अंत तक परमेश्वर के साथ चलूँगी।

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