51. मेरे परिवार के हमलों के पीछे क्या है?

लिंगमिन, चीन

मेरे पिता एक स्कूल के प्रिंसिपल थे और अक्सर स्कूल और घर पर भौतिकवाद के बारे में बात करते थे। उन्होंने हमें सिखाया कि खुशियाँ हमारी अपनी मेहनत पर निर्भर होती हैं और हमें खुद को दूसरों से अलग दिखाने और अपने पूर्वजों का नाम रोशन करने के लिए खपना होगा। अपने माता-पिता की बातों और उनके नक्शेकदम पर चलते हुए मैं और मेरे भाई-बहन प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के पीछे पड़े रहे। हम कारोबार करने लगे या अधिकारी बन गए।

2007 के वसंत में संयोग से मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का कार्य स्वीकार लिया। मैंने हर दिन परमेश्वर के वचन पढ़े, अपने भाई-बहनों के साथ नियमित संगति की और परमेश्वर की संप्रभुता के बारे में कुछ समझ हासिल की। खासकर ये वचन प्रभावशाली थे : “परमेश्वर ने इस संसार की सृष्टि की, उसने इस मानवजाति को बनाया, और इतना ही नहीं, वह प्राचीन यूनानी संस्कृति और मानव-सभ्यता का वास्तुकार भी था। केवल परमेश्वर ही इस मानवजाति को सांत्वना देता है, और केवल परमेश्वर ही रात-दिन इस मानवजाति का ध्यान रखता है। मानव का विकास और प्रगति परमेश्वर की संप्रभुता से जुड़ी है, मानव का इतिहास और भविष्य परमेश्वर के हाथों बनी योजनाओं से अलग नहीं किया जा सकता। यदि तुम एक सच्चे ईसाई हो, तो तुम निश्चित ही इस बात पर विश्वास करोगे कि किसी भी देश या राष्ट्र का उत्थान या पतन परमेश्वर की योजनाओं के अनुसार होता है। केवल परमेश्वर ही किसी देश या राष्ट्र के भाग्य को जानता है और केवल परमेश्वर ही इस मानवजाति की दिशा नियंत्रित करता है। यदि मानवजाति अच्छा भाग्य पाना चाहती है, यदि कोई देश अच्छा भाग्य पाना चाहता है, तो मनुष्य को परमेश्वर की आराधना में झुकना होगा, पश्चात्ताप करना होगा और परमेश्वर के सामने अपने पाप स्वीकार करने होंगे, अन्यथा मनुष्य का भाग्य और गंतव्य एक अपरिहार्य विभीषिका बन जाएँगे(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 2: परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियंता है)। परमेश्वर के वचनों ने मेरा दिल रोशन कर दिया। परमेश्वर सृष्टिकर्ता है और उसी ने आज तक मानवजाति का मार्गदर्शन और पोषण किया है। और तो और, वह हमारे भाग्य पर उसी का राज है। सिर्फ परमेश्वर की आराधना करने, उसके सामने पश्चात्ताप करने और उसका उद्धार स्वीकारने से ही हम अच्छा भाग्य पा सकते हैं। मैंने यह भी जाना कि उद्धारकर्ता सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों में सत्य व्यक्त करने और न्याय का कार्य करने, मानवजाति को पूरी तरह से शुद्ध करने और बचाने, हमें शैतान के प्रभाव से बाहर निकालने और परमेश्वर द्वारा हमारे लिए बनाई गई सुंदर मंजिल तक ले जाने के लिए आया है, ताकि हम अच्छा भाग्य और परिणाम पा सकें। मुझे लगा कि मैं कितनी धन्य हूँ कि मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार पाई और मैंने मन ही मन अपनी आस्था का ठीक से अभ्यास करने, सत्य का अनुसरण करने और परमेश्वर के प्रेम का बदला चुकाने के लिए सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाने की कसम खाई।

लेकिन अप्रत्याशित रूप से, जब मैं अपने कर्तव्य में खुद को खपा रही थी तो कम्युनिस्ट पार्टी ने मुझे गिरफ्तार कर लिया। मार्च 2009 में एक दिन दोपहर को पुलिस हमारी सभा में आई और मेरे साथ तीन बहनों को ले गई और हमें अवैध रूप से एक पुलिस स्टेशन में हिरासत में ले लिया। सार्वजनिक सुरक्षा ब्यूरो का प्रमुख मुझ पर बुरी तरह चिल्लाया, “हमें बताओ कि तुम क्या जानती हो! तुम्हें सुसमाचार का उपदेश किसने दिया? तुम्हारी कलीसिया का अगुआ कौन है? अगर तुम बता दोगी तो मैं तुम्हें इसी वक्त घर जाने दूँगा। लेकिन अगर तुम नहीं बताती हो तो हमें तुम्हारे घर पर जितनी भी धार्मिक किताबें मिली हैं, उनके आधार पर हम तुम्हें पाँच या छह साल के लिए जेल में डाल सकते हैं!” उसके चेहरे पर उग्र भाव देखकर मेरा दिल जोर से धड़कने लगा। मुझे नहीं पता था कि वे मेरे साथ कैसा व्यवहार करेंगे। मैंने जल्दी से प्रार्थना की, परमेश्वर से मेरी रक्षा करने, मुझे आस्था और शक्ति देने, और मुझे मजबूत बनाए रखने के लिए कहा। प्रार्थना करने के बाद मैंने परमेश्वर के इन वचनों को याद किया : “सत्ता में रहने वाले लोग बाहर से दुष्ट लग सकते हैं, लेकिन डरो मत, क्योंकि ऐसा इसलिए है कि तुम लोगों में विश्वास कम है। जब तक तुम लोगों का विश्वास बढ़ता रहेगा, तब तक कुछ भी ज्यादा मुश्किल नहीं होगा(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 75)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था और शक्ति दी। बेशक सभी चीजें परमेश्वर के हाथ में हैं। सार्वजनिक सुरक्षा प्रमुख भयानक लग रहा था, लेकिन वह भी परमेश्वर के हाथ में था। मुझे सजा मिलेगी या नहीं, इस पर उसका कोई बस नहीं था—सिर्फ परमेश्वर का अधिकार था। मैं उसके दुर्व्यवहार के सामने नहीं झुक सकती थी। बाद में जब उन्होंने देखा कि मैं कुछ नहीं बताऊँगी तो उन्होंने मुझे और बाकी तीनों को सामाजिक व्यवस्था बिगाड़ने के आरोप में हिरासत केंद्र में बंद कर दिया।

एक दिन सुबह अचानक कोई मेरा नाम चिल्लाने लगा। मेरा कलेजा मुँह को आ गया। क्या वे मुझसे फिर पूछताछ करने वाले थे? उन्होंने पहले भी मुझसे पूछताछ की थी और मैंने कुछ नहीं बताया था। मुझे सोचा कि क्या वे मेरे साथ और भी क्रूर तरीके अपनाएँगे। डरते हुए मैंने मन ही मन परमेश्वर से प्रार्थना की और धीरे-धीरे मेरा मन शांत हो गया। पुलिस मुझे एक बड़े से कमरे में ले गई। जैसे ही मैं अंदर आई, मैंने अपने पिता को देखा और मेरा दिल बैठ गया। वे मेरे पिता को यहाँ क्यों लाए हैं? उन्होंने हमेशा मेरी आस्था का विरोध किया था, इसलिए अब मेरे गिरफ्तार होने पर वह मेरे साथ कैसा व्यवहार करेंगे? इससे पहले कि मैं कुछ कह पाती, मेरे पिता ने अपना हाथ उठाया और मुझे तीन तमाचे जड़ दिए। मुझे चक्कर आने लगा और आँखों के आगे अंधेरा छा गया। उन्होंने सख्ती से कहा : “मैंने तुम्हें आस्था रखने से मना किया था, लेकिन तुम नहीं मानी और अब तुम्हारे गिरफ्तार होने से मेरा नाम मिट्टी में मिल गया है! उन्हें अपने विश्वास के बारे में सब कुछ बता दो! पुलिस ने कहा है कि जैसे ही तुम अपराध कबूल करोगी, वे तुम्हें छोड़ देंगे, लेकिन अगर तुम नहीं मानती हो तो तुम्हें कड़ी सजा मिलेगी!” अपने पिता का बूढ़ा चेहरा देखकर दिल में टीस उठी। वह लगभग 80 वर्ष के थे और हमेशा से उनकी प्रतिष्ठा ही उनके लिए सबकुछ थी। अगर मुझे सजा मिलती है तो वे इसे कैसे सहन कर सकते हैं? फिर वह अचानक घुटनों के बल बैठ गए। रोते हुए उन्होंने कहा : “इसका पता चलते ही तुम्हारी माँ बीमार पड़ गई है। वह घर में बिस्तर पर पड़ी है और आईवी लाइन पर है। जो भी तुम जानती हो, उन्हें बता दो और मेरे साथ घर चलो!” यह सब देखकर मेरे आँसू बह निकले। प्राचीन काल से बच्चे ही अपने माता-पिता के सामने घुटने टेकते रहे हैं, माँ-बाप नहीं। मेरे माता-पिता ने बड़ी मुश्किलों में मुझे पाला था और मेरे बच्चों की परवरिश में भी मदद की थी। अब इतने बुढ़ापे में भी उन्हें मेरी फिक्र करनी पड़ रही थी। अगर मैं विश्वासी न होती तो उन्हें इतने कष्ट और पीड़ा नहीं सहने पड़ते। मुझे लगा कि मैं उनकी ऋणी हूँ—मुझे बहुत बुरा लगा। तभी मुझे एहसास हुआ कि मेरी अवस्था ठीक नहीं है। मैंने तुरंत प्रार्थना की, “हे परमेश्वर! यह स्थिति मेरे लिए दर्दनाक है। मैं कमजोर पड़ रही हूँ। मुझे लगता है कि मैं अपने माता-पिता की ऋणी हूँ। मैं नहीं जानती कि क्या करूँ। मुझे प्रबुद्ध करो और मार्गदर्शन दो ताकि मैं तुम्हारा इरादा समझ सकूँ और मजबूती से खड़ी रह सकूँ।” अपनी प्रार्थना के बाद मैंने तुरंत सोचा कि मैंने परमेश्वर के सामने क्या करने का संकल्प लिया था—अपनी आस्था में मजबूत रहूँगी, परमेश्वर का अनुसरण करूँगी और अडिग हृदय से उसे प्रेम करूँगी। उसी पल मुझे होश आ गया। मैंने परमेश्वर के वचनों के बारे में भी सोचा : “क्या लोग इतने से समय के लिए अपनी देह की इच्छाओं को अलग रखने के काबिल नहीं हैं? कौन सी बातें मनुष्य और परमेश्वर के प्रेम में दरार पैदा कर सकती हैं? कौन है जो मनुष्य और परमेश्वर के बीच के प्रेम को अलग कर सकता है? क्या माता-पिता, पति, बहनें, पत्नियाँ या पीड़ादायक शोधन ऐसा कर सकते हैं? क्या अंतःकरण की भावनाएँ मनुष्य के अंदर से परमेश्वर की छवि को मिटा सकती हैं? क्या एक-दूसरे के प्रति लोगों की कृतज्ञता और क्रियाकलाप उनका स्वयं का किया है? क्या इंसान उनका समाधान कर सकता है? कौन अपनी रक्षा कर सकता है? क्या लोग अपना भरण-पोषण कर सकते हैं? जीवन में बलवान लोग कौन हैं? कौन मुझे छोड़कर अपने दम पर जी सकता है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 24 और अध्याय 25)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आत्मग्लानि से भर दिया। यह प्राण मुझे परमेश्वर ने दिए हैं और परमेश्वर ने मुझे जीवित रहने के लिए जरूरी हर चीज दी है। परमेश्वर चुपचाप मेरी देखभाल और रक्षा करता है, यही एकमात्र वजह है कि मैं आज तक जीवित हूँ। उसने लोगों, घटनाओं और चीजों का आयोजन किया ताकि मैं उसके सामने आऊँ और उसका उद्धार स्वीकारूँ। परमेश्वर का प्रेम बहुत महान है! मैं अपने माता-पिता को चोट पहुँचाने के डर से परमेश्वर को धोखा नहीं दे सकती थी। साथ ही उनकी सेहत परमेश्वर के हाथ में है और मेरा चिंता करना बेकार है। उनके दुख और पीड़ा की वजह कम्युनिस्ट पार्टी का उत्पीड़न है। अगर वे पार्टी की दुष्टता देख पाते तो उन्हें ऐसा नहीं लगता कि उन्होंने अपना सम्मान गँवा दिया है और शैतान उन्हें मूर्ख नहीं बना पाता। इस तरह से सोचने पर मुझे इतना दुख नहीं हुआ। मैंने कसम खाई कि परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग रहूँगी, भले ही मुझे जेल में डाल दिया जाए। मैंने अपने आँसू पोंछे और अपने पिता की खड़े होने में मदद की। फिर पाँच या छह अधिकारियों ने आकर मुझे घेर लिया। मैंने उनसे कहा, “मुझे कुछ भी मालुम नहीं है।” एक ने मुझे घूरते हुए कहा, “तुम्हारे पास पाँच मिनट हैं।” मेरे पिता बहुत गुस्से में थे। उन्होंने मुझे कुछ और बार थप्पड़ मारे और घुटनों के बल बैठकर बोले, “अगर तुम नहीं बताओगी तो मैं तुम्हारे सामने घुटने टेक कर जान दे दूँगा! पार्टी लोगों को परमेश्वर में विश्वास करने की अनुमति नहीं देती—तुम्हारी इसके खिलाफ जाने की हिम्मत कैसे हुई? जल्दी से अपराध कबूल करो! फिर हम घर चलेंगे।” तब मुझे एहसास हुआ कि यह पुलिस की चाल है। उन्होंने मेरे पिता पर दबाव डाला कि वे मुझे मजबूर करें जिससे मैं यहूदा बनकर दूसरों को धोखा दे दूँ। मुझे गुस्सा आया और चिढ़ हुई। वे पुलिसवाले बहुत कपटी हैं! मैंने अपने पिता को उठाया और पाँच या छह अधिकारियों ने मुझे फिर घेर लिया ताकि मैं उन्हें कुछ बता दूँ। मैंने उनकी तरफ देखा और शांति से कहा : “मुझे कुछ भी नहीं पता।” तभी मेरे पिता का फोन बजने लगा और उन्होंने मुझे फोन उठाने के लिए कहा। मेरी माँ फोन पर गालियाँ देते हुए कहने लगी, “तुम मुझे मार डालोगी! सरकार आस्था रखने की अनुमति नहीं देती, लेकिन तुम जिद कर रही हो। तुम उनसे नहीं लड़ सकती! तुम जो भी जानती हो बस उन्हें बता दो और वापस चलो! अगर तुम्हें सजा हो गई तो हमारा क्या होगा? तुम्हारे बेटे की कभी शादी भी हो पाएगी? हम सबको भी अपमान झेलना पड़ेगा। तुम हमारे बारे में भी सोचो!” रोते हुए मैंने फोन काट दिया और मेरे पिता पैर घसीटते हुए बाहर चले गए।

अपनी कोठरी में वापस आकर मैंने फिर से अपनी बीमार माँ के बारे में सोचा, जो बिस्तर पर पड़ी हुई थी। अगर उसे कुछ हो गया तो यह उसे निराश करना होगा। मैंने जितना इस बारे में सोचा, मुझे उतना ही बुरा लगा। मेरे आँसू नहीं रुक रहे थे। तभी मुझे एहसास हुआ कि मेरा स्नेह ही मेरी कमजोरी है। मैंने खुद को परमेश्वर से प्रार्थना करने में झोंक दिया। मैंने उससे मार्गदर्शन माँगा कि मैं अटल रहूँ, स्नेह के आधार पर न जिऊँ। मुझे परमेश्वर द्वारा कुछ कहा याद आया : “लोगों के लिए स्वयं को अपनी भावनाओं से पृथक करना इतना कठिन क्यों है? क्या ऐसा करना अंतरात्मा के मानकों के परे जाना है? क्या अंतरात्मा परमेश्वर की इच्छा पूरी कर सकती है? क्या भावनाएँ विपत्ति में लोगों की सहायता कर सकती हैं? परमेश्वर की नज़रों में, भावनाएँ उसकी दुश्मन हैं—क्या यह परमेश्वर के वचनों में स्पष्ट रूप से नहीं कहा गया है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 28)। परमेश्वर के वचनों ने मेरी आँखें खोल दीं। स्नेह परमेश्वर का शत्रु है और सत्य का अभ्यास करने में सबसे बड़ी बाधा है। जब हम स्नेह के अनुसार जीते हैं तो हम परमेश्वर से दूर हो जाते हैं और उसे धोखा देते हैं। मैं अपने माता-पिता के प्रति स्नेह में फँस गई थी। मुझे लगता था कि उनकी अवज्ञा करना भयानक अपराध है और इससे मैं बुरी बेटी बन गई हूँ। जब मैंने देखा कि मेरी गिरफ्तारी से वे कितने दुखी और परेशान हैं तो मैं उनके प्रति ऋणी महसूस करने लगी। मुझे लगा कि उन्होंने मुझे इतनी मेहनत से पाल-पोस कर बड़ा किया है, लेकिन मैंने उनका बदला नहीं चुकाया और यहाँ तक कि उन्हें मेरे लिए कष्ट भी सहने पड़े। यह संतानोचित नहीं है। मैंने अपने माता-पिता की दयालुता को बहुत महत्व दिया, लेकिन यह भूल गई कि परमेश्वर ही हमें जीवन देता है। परमेश्वर मानव जीवन का स्रोत है और यह जीवन की उसकी श्वास है जिसने मुझे आज तक जीवित रखा है। मेरे पास जो भी है वह परमेश्वर के मार्गदर्शन और प्रावधान की वजह से ही है। बिना किसी अपेक्षा के परमेश्वर ने हमें इतना कुछ दिया है। अंत के दिनों में मानवजाति को बचाने के लिए परमेश्वर फिर से देहधारी हुआ है, वह बहुत अपमान सहता है, साथ ही कम्युनिस्ट पार्टी का उत्पीड़न भी सहता है। परमेश्वर ने मानवजाति के लिए सब कुछ दिया है—उसका प्रेम बहुत महान है! हमें जिसकी आराधना करनी चाहिए और जिसके प्रति समर्पित होना चाहिए, वह परमेश्वर ही है। मेरे माता-पिता ने देखभाल करके मेरा भौतिक जीवन बेहतर बनाया होगा, लेकिन वे मुझे सत्य नहीं दे सके। वे मुझे शैतान की भ्रष्टता से नहीं बचा सके या मुझे एक अच्छा गंतव्य और परिणाम नहीं दे सके। अगर मैंने सिर्फ अपने माता-पिता की इच्छाओं के अनुसार चलने के लिए परमेश्वर को धोखा दिया और दूसरों को फँसाया तो मैं उनकी ऋणी तो नहीं रहूँगी लेकिन मैं परमेश्वर द्वारा ठुकरा दी जाऊँगी और हमेशा के लिए उसका उद्धार गँवा दूँगी। उस समय मैंने देखा कि शैतान मेरे माता-पिता के प्रति मेरे स्नेह का इस्तेमाल करके मुझे प्रलोभन में फंसा रहा था, मुझे परमेश्वर से दूर करने, उसे धोखा देने और उद्धार का अपना मौका गँवाने, नरक में धकेलने और अपने साथ ही नष्ट होने की तरफ ले जा रहा था। मैं शैतान की चाल में नहीं फँस सकती थी। इससे मुझे पतरस की याद आई, जिसके पास सिद्धांत थे और वह अपने माता-पिता के खिलाफ खड़ा हुआ। उसकी आस्था मजबूत रही और उसने प्रभु यीशु का अनुसरण किया, चाहे उसे रोकने की कितनी भी कोशिश की गई हो। अंत में परमेश्वर के प्रति उसके प्रेम ने सब कुछ जीत लिया और उसे परमेश्वर की स्वीकृति मिल गई। इन बातों के बारे में सोचकर मुझे वाकई प्रेरणा मिली।

पांचवें दिन, पुलिस मेरे लिए तीन पत्र लेकर आई, जो मेरी माँ, मेरी बेटी और बेटे ने लिखे थे। मेरे बेटे ने लिखा था, “माँ, सेना में रहते हुए मैं पिछले कुछ सालों से फिर पूरे परिवार के साथ रहने का इंतजार कर रहा था। मेरे लिए तबादला करवाना और वापस आना आसान नहीं था और अब तुम गिरफ्तार हो गई हो। तुम्हारे बिना यह घर मानो मुझे काटने को दौड़ता है। माँ, बस पुलिस को अपने धार्मिक मामलों के बारे में बता दो! अगर तुम जेल गई तो इससे मेरे काम और शादी की संभावनाओं पर असर पड़ेगा। भले ही तुम अपने बारे में न सोचो, तुम्हें मेरे बारे में सोचना चाहिए...।” पत्र पढ़कर मैं खुद को रोक नहीं पाई और रोने लगी। अगर वाकई मेरे जेल जाने से उसका उज्ज्वल भविष्य बर्बाद होने वाला है तो मैं उसका सामना कैसे कर पाऊँगी? वह जरूर मुझसे नफरत करेगा! मुझे लगा कि आस्था की राह में बहुत सी रुकावटें हैं और हर कदम पर चुनाव करना जरूरी है। मैंने अपने दिल में परमेश्वर से प्रार्थना की : “हे परमेश्वर, मैं वाकई दर्द में हूँ और कमजोर पड़ रही हूँ। मेरे दिल पर नजर रखो और मेरी आस्था मजबूत करो।” कोठरी में एक बहन को पता चला कि मैं किन हालात से गुजर रही हूँ और उसने मुझे याद दिलाया कि शैतान की चाल में मत फँसना। यह मेरे लिए एक चेतावनी है। मैंने सोचा कि कैसे हर पल शैतान हमें परमेश्वर को धोखा देने के लिए लुभाने और गुमराह करने के लिए सभी तरह के साधनों का इस्तेमाल करता है। हम अपनी सुरक्षा ढीली करते ही शैतान के जाल में फँस सकते हैं। हमें परमेश्वर के सामने अपना हृदय शांत रखना होगा और शैतान की चालें समझने, परमेश्वर की सुरक्षा पाने और मजबूती से खड़े रहने के लिए प्रार्थना करनी होगी और उस पर निर्भर रहना होगा। उस रात मैं बिस्तर पर करवटें बदलती रहीं पर सो नहीं पाई और चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना करती रही। उसके वचनों से मुझे यह बात याद आई : “जिस क्षण तुम रोते हुए इस दुनिया में आते हो, उसी पल से तुम अपना कर्तव्य पूरा करना शुरू कर देते हो। परमेश्वर की योजना और उसके विधान के लिए तुम अपनी भूमिका निभाते हो और तुम अपनी जीवन-यात्रा शुरू करते हो। तुम्हारी पृष्ठभूमि जो भी हो और तुम्हारी आगे की यात्रा जैसी भी हो, कोई भी स्वर्ग के आयोजनों और व्यवस्थाओं से बच नहीं सकता, और किसी का भी अपनी नियति पर नियंत्रण नहीं है, क्योंकि केवल वही, जो सभी चीज़ों पर शासन करता है, ऐसा करने में सक्षम है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है)। यह सही है। हमारा पूरा जीवन, हमारी नियति परमेश्वर द्वारा निर्धारित होती है और इसे कोई नहीं बदल सकता। यह मेरे बस में नहीं है कि मेरा बेटे की भविष्य में शादी होगी या उसे कैसी नौकरी मिलेगी। चाहे मैं अपने बच्चों के लिए कितना भी सोचूँ या चिंता क्यों न करूँ, मैं उनकी नियति नहीं बदल सकती और मैं जेल जाऊँगी या नहीं, यह भी परमेश्वर द्वारा निर्धारित किया जा चुका है। मैं इससे सिर्फ इसलिए नहीं बच सकती क्योंकि मैं ऐसा चाहती हूँ। मुझे जो करना चाहिए वह सब कुछ परमेश्वर को सौंपना और उनकी संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करना है। फिर मैंने परमेश्वर के वचनों के एक और अंश के बारे में सोचा : “तुम्हें सत्य के लिए कष्ट उठाने होंगे, तुम्हें सत्य के लिए समर्पित होना होगा, तुम्हें सत्य के लिए अपमान सहना होगा, और अधिक सत्य प्राप्त करने के लिए तुम्हें अधिक कष्ट उठाने होंगे। यही तुम्हें करना चाहिए। एक शांतिपूर्ण पारिवारिक जीवन के लिए तुम्हें सत्य का त्याग नहीं करना चाहिए, और क्षणिक आनन्द के लिए तुम्हें जीवन भर की गरिमा और सत्यनिष्ठा को नहीं खोना चाहिए। तुम्हें उस सबका अनुसरण करना चाहिए जो खूबसूरत और अच्छा है, और तुम्हें अपने जीवन में एक ऐसे मार्ग का अनुसरण करना चाहिए जो ज्यादा अर्थपूर्ण है। यदि तुम एक गंवारू जीवन जीते हो और किसी भी उद्देश्य को पाने की कोशिश नहीं करते हो तो क्या तुम अपने जीवन को बर्बाद नहीं कर रहे हो? ऐसे जीवन से तुम क्या हासिल कर पाओगे? तुम्हें एक सत्य के लिए देह के सभी सुखों को छोड़ देना चाहिए, और थोड़े-से सुख के लिए सारे सत्यों का त्याग नहीं कर देना चाहिए। ऐसे लोगों में कोई सत्यनिष्ठा या गरिमा नहीं होती; उनके अस्तित्व का कोई अर्थ नहीं होता!(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था और शक्ति दी। एक विश्वासी के रूप में परमेश्वर की स्वीकृति पाने का एकमात्र तरीका सत्य का अनुसरण करना और सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाना है। सिर्फ इसे ही मूल्यवान जीवन माना जा सकता है और सत्य पाने के लिए किसी भी तरह का कष्ट सहना उचित है। अगर मैंने अपने परिवार को संतुष्ट करने के लिए अपने भाई-बहनों और कलीसिया को फँसा दिया तो मैं परमेश्वर को धोखा देने वाली यहूदा बन जाऊँगी। यह सबसे बड़ा अपमान होगा और इसके लिए मुझे परमेश्वर द्वारा शापित किया जाएगा। एक खुशहाल परिवार और आरामदायक जीवन भी खालीपन वाला और अर्थहीन बन जाएगा और मैं एक जिंदा लाश से ज्यादा कुछ नहीं रहूँगी। यह सोचकर मैंने परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए और भी अधिक दृढ़ संकल्प महसूस किया। चाहे पुलिस वाले कोई भी हथकंडा अपनाएँ, मैं अपनी गवाही में अडिग रहूँगी और शैतान को शर्मिंदा करूँगी!

पुलिस ने मुझे छठे दिन मुख्य हॉल में बुलाया, जहाँ मैंने अपने चाचा, पति, बेटे और बेटी को देखा। मेरे बच्चों ने मुझे गले लगाया और रोते हुए कहा : “माँ, घर चलो!” मेरा पति भी एक तरफ खड़े होकर रो रहा था। फिर मेरे चाचा ने रोते हुए कहा : “लिंगमिन, पुलिस का कहना है कि तुम उन्हें कुछ जानकारी देते ही घर जा सकती हो और तुम्हें जेल भी नहीं जाना पड़ेगा। अगर तुम जेल गई तो तुम्हारे बेटे का भविष्य बर्बाद हो जाएगा। इससे परिवार बर्बाद हो जाएगा! मेरी बात सुनो और उन्हें बता दो!” उस पल मेरा दिल साफ था। मैं जानती थी कि मेरे परिवार के उकसावे के पीछे शैतान की चाल है और अगर मैंने उन्हें थोड़ा भी बताया तो पुलिस मुझसे और बहुत कुछ उगलवा लेगी, और कई अन्य लोगों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा। इस बात को ध्यान में रखते हुए मैंने कहा : “मैं एक विश्वासी के रूप में जीवन में सही मार्ग पर चल रही हूँ। मैंने कुछ भी गैर-कानूनी नहीं किया है, इसलिए मेरे पास कबूलने के लिए कुछ नहीं है। तुम सब घर जाओ।” अपनी कोठरी में वापस जाते समय मैंने सोचा कि पुलिस मेरे प्रियजनों का बार-बार इस्तेमाल करके मुझे लुभाने की कोशिश कर रही है, ताकि मैं अपने भाई-बहनों को फँसाने और परमेश्वर को धोखा देने के लिए मजबूर हो जाऊँ। कम्युनिस्ट पार्टी बहुत घिनौनी है! वे परमेश्वर-विरोधी राक्षस हैं! उसके बाद एक अधिकारी ने मुझे कार्यालय में बुलाया और आत्ममुग्धता में कहा : “अपने परिवार से मुलाकात कैसी रही?” इस भयानक स्थिति में उसे आनन्द लेते देखकर मुझे इतना गुस्सा आया कि मैंने अपनी जेब से वे तीनो पत्र निकालकर फाड़ दिए और उन्हें मेज पर फेंकते हुए कहा : “मैं विश्वासी और ईमानदार इंसान हूँ। मैंने कोई बुरा काम नहीं किया है। तुमने उन्हें मुझे क्यों उपदेश देने के लिए क्यों कहा? मैंने कौन सा कानून तोड़ा है?” फिर मैं सीधे बाहर निकल आई। परमेश्वर द्वारा मुझे दी गई शक्ति की बदौलत ही मैं पुलिस की पूछताछ का शांति से सामना कर पाई।

14वें दिन की सुबह सार्वजनिक सुरक्षा ब्यूरो के प्रमुख ने मुझे कार्यालय में बुलाया। वह पहले की तरह उग्र नहीं था, लेकिन चिंतित लग रहा था और उसने मुझसे मेरे परिवार के बारे में पूछा। उसने मुझे अपने भाई-बहनों को फंसाने के लिए लुभाने को लेकर लच्छेदार बातें कहने की कोशिश की। मैंने अपने दिल में परमेश्वर से लगातार प्रार्थना की, उससे मुझे शैतान की चाल में फँसने से बचाने के लिए कहा। ब्यूरो प्रमुख ने बहुत कुछ कहा। अंत में मुझे कुछ भी नहीं बताते हुए देखकर वह क्रोधित हो गया और बुरी तरह चिल्लाया, “मैं तुमसे सीधी बात करूँगा। हमें तुम्हारे घर में इतनी सारी धार्मिक किताबें मिलीं, यह शहर का सबसे बड़ा मामला है। अगर तुम नहीं बोलोगी तो तुम्हें जेल जाना ही पड़ेगा!” लेकिन चाहे उसने कुछ भी कहा हो, मैंने चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना की और कसम खाई कि मैं दूसरों के बारे में कभी भी जानकारी नहीं दूँगी और कभी भी परमेश्वर को धोखा नहीं दूँगी, भले ही मुझे सजा क्यों न हो जाए। पंद्रह दिनों के बाद उन्होंने देखा कि उन्हें मुझसे कुछ भी नहीं मिलेगा, इसलिए उनके पास मुझे घर जाने देने के अलावा कोई चारा नहीं बचा।

घर पहुँचने के बाद भी मेरे परिवार ने मेरा विरोध किया और मेरी आस्था में बाधा डाली। मुझे पता था कि यह सब कम्युनिस्ट पार्टी के गुमराह करने और उत्पीड़न की नतीजा था। मैंने प्रार्थना की और कसम खाई कि मैं अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करूँगी, चाहे कितनी भी मुश्किल क्यों न आएँ। फिर एक भजन मेरे मन में आया जिसका शीर्षक था “परमेश्वर के प्रेम को कभी निराश मत करो” : “मैं नहीं सोचूँगा कि मसीह का अनुसरण करना कितना कठिन है। मेरा एकमात्र परम कर्तव्य परमेश्वर की इच्छा का पालन करना है। मैं भविष्य के बारे में नहीं सोचूँगा, चाहे मुझे आशीष मिलें या दुर्भाग्य सहना पड़े। मैंने परमेश्वर से प्रेम करना चुना है, इसलिए मैं कभी पीछे नहीं हटूँगा। आगे का रास्ता कितना भी कठिन और खतरनाक क्यों न हो, कितने भी कष्ट मेरा इंतजार कर रहे हों, उस दिन का स्वागत करने के लिए जब परमेश्वर महिमा प्राप्त करेगा, मैं परमेश्वर के पदचिह्नों का करीब से अनुसरण करूँगा और अंत तक वफादार रहूँगा” (मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ)। मैंने उस भजन को बार-बार गाया और मुझे बहुत प्रेरणा मिली। मुझे पता था कि आस्था के मार्ग पर हमेशा पार्टी का उत्पीड़न सहना होगा और शायद मुझे फिर गिरफ्तार किया जाएगा या भविष्य में मुझे सजा भी दी जाएगी। लेकिन मुझे यकीन है कि यही सच्चा मार्ग है और मैं अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए तैयार हूँ। कुछ समय के लिए मैं कलीसिया के अन्य सदस्यों से संपर्क नहीं कर सकी या कलीसियाई जीवन नहीं जी सकी। इसलिए मैंने घर पर ही परमेश्वर के वचनों को खाया और पिया, खुद को सत्य से सुसज्जित किया और अपने परिवार के साथ सुसमाचार साझा किया। मेरा पति और बेटी बाद में विश्वासी बन गए। हमने सभा की और एक परिवार के रूप में परमेश्वर के वचनों को खाया और पिया। एक साल बाद मैं भाई-बहनों के संपर्क में वापस आ गई और कर्तव्य निभाना शुरू कर दिया। मैं वाकई परमेश्वर की आभारी हूँ।

इस पूरे घटनाक्रम के बारे में सोचूँ तो—कम्युनिस्ट पार्टी के उत्पीड़न और गिरफ्तारी और मेरे परिवार के प्रलोभनों और हमलों के दौरान—यह परमेश्वर के वचनों का प्रबोधन और मार्गदर्शन ही था जिसने हर कदम पर मेरा साथ दिया। चाहे मेरे सामने कितना भी कठिन रास्ता क्यों न हो, मैं अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करूँगी।

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झेंगशिन, अमेरिका2016 के अक्टूबर में, जब हम देश से बाहर थे, तब मेरे पति और मैंने अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य को स्वीकार किया था। कुछ...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

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