86. मेरा परिवार किसने उजाड़ा?

मैं टीचर थी और मेरा पति इंजीनियर। हमारी शादी बहुत अच्छी चल रही थी, हमारी बेटी भी बहुत समझदार और सुशील थी। सभी दोस्त और सहकर्मी हमारी खूब प्रशंसा करते थे। फिर दिसंबर 2006 में, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों का कार्य स्वीकारा। परमेश्वर के वचन पढ़कर, मैंने जाना कि हमारे उद्धारक, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मानवजाति को शुद्ध करने और बचाने के लिए बहुत से सत्य व्यक्त किये हैं। आस्था रखकर, परमेश्वर के वचन पढ़कर, सत्य जानकर, पाप और अपने भ्रष्ट स्वभाव से मुक्त होकर ही हमें भीषण आपदाओं में परमेश्वर की सुरक्षा मिल सकती है, और हम उसके राज्य में प्रवेश कर सकते हैं। मैंने यह भी जाना कि हम सबका जीवन परमेश्वर की देन है, हमारा सब कुछ परमेश्वर का दिया हुआ है। सृजित प्राणी होने के नाते, हमें अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। बाद में, मैं सुसमाचार फैलाने और नये सदस्यों का सिंचन करने लगी। मैं अपने काम से संतुष्ट थी। मेरे पति ने देखा कि जब से मैं विश्वासी बनी, तब से बहुत खुश रहने लगी हूँ, उसने मुस्कुराते हुए कहा, “पहले दिन भर काम करके तुम पूरी तरह थक जाती थी, मुझे तुम्हारी चिंता होती थी। विश्वासी बनकर तुम अब भी उतनी ही व्यस्त हो, पर अब बेहतर काम करने लगी हो। आस्था रखना वाकई बहुत अच्छा है!” मगर अच्छी चीजें ज्यादा समय तक नहीं टिकतीं। जल्दी ही, वह मुझ पर दबाव बनाने और मेरी आस्था के मार्ग में आने लगा।

एक दिन मार्च 2007 में, वह काम से घर आया और अंदर आते ही गुस्से से कहा, “आज, हमारे बॉस ने हर विभाग के कैडरों की एक आम बैठक बुलाई और कहा कि पिछले कुछ सालों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विश्वासियों की संख्या बढ़ने के कारण पार्टी में दहशत फैल गयी है। उन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को प्रमुख राष्ट्रीय लक्ष्य बना लिया है, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के सभी विश्वासियों को कम्युनिस्ट पार्टी गिरफ्तार करेगी। सरकारी कर्मचारियों के साथ और भी बुरा होगा : अगर उनमें से कोई विश्वासी हुआ या उनके परिवार में कोई कलीसिया से जुड़ा हुआ, तो उसे निकाल दिया जायेगा! चूंकि तुम्हारे स्कूल में तुम्हारी आस्था के बारे में अब तक कोई नहीं जानता, तो समय रहते इसका त्याग कर दो। अगर तुम्हारे बॉस को पता लगा तो गिरफ्तार कर ली जाओगी!” मैंने सोचा कि आस्था रखना सही मार्ग है और इससे कोई कानून भी नहीं टूट रहा, फिर पार्टी मुझ पर रोक क्यों लगाएगी? तो मैंने उनसे कहा, “जब चीन डब्लूटीओ में शामिल हुआ, तो क्या उसने घोषणा नहीं की थी कि चीन में आस्था रखने की आजादी है? अब किस बात का दबाव? मेरी आस्था में क्या खराबी है?” उसने बहुत गुस्से में जवाब दिया, “मैं जानता हूँ आस्था रखना अच्छा है, पर पार्टी को यह मंजूर नहीं, हम क्या कर सकते हैं? हम उनसे तो नहीं लड़ सकते। अगर तुमने आस्था रखी तो कभी भी गिरफ्तार करके जेल भेज दी जाओगी। अगर तुम गिरफ्तार हुई, तो क्या हमारा परिवार टूट नहीं जाएगा? इस परिवार की खातिर तुम्हें अपनी आस्था छोड़नी होगी!” यह सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आया। मैंने सोचा भी नहीं था कि लोगों को परमेश्वर में विश्वास रखने से रोकने की कोशिश में, पार्टी लोगों के बॉस के जरिये उन पर दबाव बनाएगी, मेरे पति का मन बदलने की वजह यही थी। मैंने विचार किया कि अगर पार्टी को मेरी आस्था का पता चला तो क्या वह मुझे छोड़ेगी। चीन में विश्वासी होना इतना मुश्किल क्यों है? फिर मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया जो मुझे एक बहन ने सुनाया था। “बड़ा लाल अजगर परमेश्वर को सताता है और परमेश्वर का शत्रु है, और इसीलिए, इस देश में, परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोगों को इस प्रकार अपमान और अत्याचार का शिकार बनाया जाता है, और परिणामस्वरूप, ये वचन तुम लोगों में, लोगों के इस समूह में, पूरे किए जाते हैं। चूँकि परमेश्वर का कार्य उस देश में आरंभ किया जाता है जो परमेश्वर का विरोध करता है, इसलिए परमेश्वर के कार्य को भयंकर बाधाओं का सामना करना पड़ता है, और उसके बहुत-से वचनों को संपन्न करने में समय लगता है; इस प्रकार, परमेश्वर के वचनों के परिणामस्वरूप लोग शुद्ध किए जाते हैं, जो कष्ट झेलने का भाग भी है। परमेश्वर के लिए बड़े लाल अजगर के देश में अपना कार्य करना अत्यंत कठिन है—परंतु इसी कठिनाई के माध्यम से परमेश्वर अपने कार्य का एक चरण पूरा करता है, अपनी बुद्धि और अपने अद्भुत कर्म प्रत्यक्ष करता है, और लोगों के इस समूह को पूर्ण बनाने के लिए इस अवसर का उपयोग करता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। उसने मेरे साथ संगति भी की थी, “कम्युनिस्ट पार्टी एक नास्तिक पार्टी है। वह परमेश्वर से नफरत करती है और उसके खिलाफ है। कम्युनिस्ट पार्टी के शासन वाले देश में विश्वासी होकर, हम उत्पीड़न और अपमान सहने को मजबूर हैं। प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, ‘धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण सताए जाते हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है(मत्ती 5:10)। परमेश्वर ऐसे दमनकारी माहौल का इस्तेमाल लोगों की आस्था को पूर्ण करने के लिए करता है। ऐसे दमनकारी, कष्टदायी माहौल में डटकर खड़े रहना ही परमेश्वर को सबसे अधिक स्वीकार्य है!” इससे मुझे आस्था मिली। मैं जानती थी कि पार्टी के दबाव में आकर मैं अपनी आस्था नहीं त्याग सकती। मेरा पति मेरे मार्ग में कैसी भी बाधा डाले, मैंने विश्वास रखने की ठान ली।

कुछ समय तक, उसके दफ्तर में लगभग रोज ही बैठक होती रही, जहाँ इस पर जोर दिया जाता कि कर्मचारियों या उनके परिवार वालों में कोई भी विश्वासी न हो। मेरा पति घर आकर मुझे रोज ही सिद्धांतों पर भाषण देता था। एक शाम जब मैं सभा से वापस आई, तो उसने गंभीरता से कहा, “तुम फिर से सभा में गयी थी? कितनी बार बताऊँ कि तुम सभाओं में नहीं जा सकती—मेरी बात क्यों नहीं मानती? ऐसा तो नहीं है तुम नहीं जानती कि पार्टी धार्मिक होने की अनुमति नहीं देती। हमारे बॉस ने बार-बार हमें बताया है कि पार्टी सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विश्वासियों को आसानी से नहीं छोड़ेगी! ऐसे गंभीर वक्त में आस्था रखकर क्या तुम खुद को खतरे में नहीं डाल रही?” मैंने कहा, “आस्था रखने से कोई कानून नहीं टूटता। पार्टी को हमें धार्मिक होने से रोकने का क्या अधिकार है?” उसने जवाब दिया, “पार्टी को कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुमने कोई कानून तोड़ा है या नहीं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विश्वासियों को राजनीतिक अपराधी माना जाता है। अगर तुम्हारी आस्था के कारण पार्टी तुम्हें गिरफ्तार करती है, तो इससे न सिर्फ तुम्हारी प्रतिष्ठा खत्म होगी, बल्कि तुम्हारा जीवन भी खतरे में पड़ जाएगा, और तुम्हारे परिवार को भी फँसा दिया जाएगा।” मैंने अपने पति से कहा, “तुम अच्छे से जानते हो कि पार्टी परमेश्वर-विरोधी है, फिर भी उसकी तरफदारी कर रहे हो, मेरा रास्ता रोक रहे हो। क्या तुम्हें सजा से डर नहीं लगता?” उसने उपेक्षा से कहा, “दंड मायने नहीं रखता—मायने यह रखता है कि हवा किस दिशा में बह रही है। अभी कम्युनिस्ट पार्टी का शासन है, अगर उसके शासन में जिंदा रहना है, तो उसकी बात माननी ही पड़ेगी न? पार्टी मुझे पैसे देती है, तो मुझे उसकी ओर से बोलना और काम करना ही होगा। तुम भी तो पार्टी के नीचे काम करके ही उससे तनख्वाह लेती हो, अगर तुमने उसके बजाय परमेश्वर का अनुसरण किया तो वे तुम्हें माफ क्यों करेंगे? तुम्हें पता होना चाहिए कि खतरा कहाँ है! तुम पार्टी का साथ दोगी या फिर सर्वशक्तिमान परमेश्वर का? आज तुम्हें फैसला करना ही होगा!” तब मैं बड़ी उलझन में थी। अगर मैंने आस्था जारी रखने की सोची तो मेरे बॉस को कभी भी पता लग जाता। फिर मैं अपना ओहदा खो देती और पुलिस मुझे गिरफ्तार कर लेती। मेरी नौकरी को करीब दस साल हो गए थे। मैं मेहनत करके आगे बढ़ी थी और मुझे तरक्की देकर मध्यम दर्जे की टीचर बनाया गया था। छात्र मेरी प्रशंसा करते, उनके मम्मी-पापा मेरी इज्जत करते, और मेरे सहकर्मी मुझसे जलते थे, मैंने अपने बॉस की मान्यता और स्वीकृति भी पा ली थी। मैं जहाँ भी जाती, रिश्तेदार और दोस्त मुझसे अच्छे से पेश आते थे। अगर मैंने नौकरी गँवा दी, तो मेरा परिवार मुझे ठुकरा देगा, दूसरे मेरा मजाक उड़ाएंगे, और सहकर्मियों से तिरस्कार का सामना करना होगा। अगर ऐसा हुआ तो मेरी प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल जायेगी। फिर मैंने सोचा, “अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर का न्याय कार्य मानवजाति को बचाने के उसके कार्य का आखिरी चरण है। परमेश्वर के न्याय और शुद्धिकरण का सामना करके ही हम भ्रष्टता से मुक्त हो पाएंगे, तभी हम परमेश्वर की सुरक्षा में आपदाओं का सामना करके खूबसूरत मंजिल तक पहुँच पाएंगे। यह मौका गँवा दिया तो जीवन भर पछतावा होगा।” मैंने परमेश्वर की इस बात पर विचार किया। “यदि तुम उच्च पद वाले, सम्मानजनक प्रतिष्ठा वाले, प्रचुर ज्ञान से संपन्न, विपुल संपत्तियों के मालिक हो, और तुम्हें बहुत लोगों का समर्थन प्राप्त है, तो भी ये चीज़ें तुम्हें परमेश्वर के आह्वान और आदेश को स्वीकार करने, और जो कुछ परमेश्वर तुमसे कहता है, उसे करने के लिए उसके सम्मुख आने से नहीं रोकतीं, तो फिर तुम जो कुछ भी करोगे, वह पृथ्वी पर सर्वाधिक महत्वपूर्ण होगा और मनुष्य का सर्वाधिक धर्मी उपक्रम होगा। यदि तुम अपनी हैसियत और लक्ष्यों की खातिर परमेश्वर के आह्वान को अस्वीकार करोगे, तो जो कुछ भी तुम करोगे, वह परमेश्वर द्वारा श्रापित और यहाँ तक कि तिरस्कृत भी किया जाएगा(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 2: परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियंता है)। परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचकर मेरा दिल रोशन हो गया। आस्था रखना, सत्य खोजना और एक सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाना ही सबसे मूल्यवान और सार्थक है। मगर जब आस्था और काम में से किसी एक को चुनने की बारी आई, तो मैं नाम और रुतबे के आगे बेबस हो गयी, इस डर से कि मेरी आस्था के कारण कम्युनिस्ट पार्टी मेरी नौकरी छीन लेगी, जिससे मेरी प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल जायेगी। मेरे लिए अब भी मेरा करियर और नाम ज्यादा मायने रखता था। मगर उनसे मुझे क्या लाभ होता? मेरे अहंकार को बस पल भर की संतुष्टि मिलती; उनसे मुझे सत्य जानने या अपने भ्रष्ट स्वभाव से छुटकारा पाने में कोई मदद नहीं मिलती। और दूसरों की सराहना पाने में रखा क्या है? मैं यह भी जानती थी कि कम्युनिस्ट पार्टी परमेश्वर की दुश्मन है। अपनी नौकरी बचाकर अच्छे रुतबे और प्रतिष्ठा का आनंद उठाने के लिए, अगर मैंने अपनी आस्था त्याग दी, तो पार्टी के शासन में निरर्थक जीवन जीती रहूँगी, क्या यह परमेश्वर को धोखा देना नहीं होगा? मैं ऐसा नहीं कर सकती थी। फिर, मैंने अपने पति को शांति से कहा, “मैं अपनी आस्था कभी नहीं छोडूंगी।” उसने मुझे घूरते हुए कठोरता से कहा, “अगर तुमने आस्था रखी, तो मैं पुलिस को रिपोर्ट करके तुम्हें गिरफ्तार करवा दूँगा।” इतना कहकर वह फोन लगाने लगा। तब मैं एकदम हैरान गयी थी। यह जानते हुए भी कि कम्युनिस्ट पार्टी विश्वासियों को सताती है, वह मुझे उनके हवाले करने को तैयार था। क्या ऐसा करके वह मुझे भेड़ियों के बीच नहीं फेंक रहा था? अपने हितों के लिए, उसने हमारे पति-पत्नी के प्रेम का अपमान किया, और पुलिस को मेरी रिपोर्ट करनी चाही, ताकि मैं अपनी आस्था त्याग दूँ। मैं उससे हार नहीं मान सकती थी। फिर उसने बार-बार मुझसे पूछा, “कर लिया फैसला?” मैंने कहा, “मुझे गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया, तब भी अपनी आस्था नहीं छोडूंगी!” मेरे पति का चेहरा पीला पड़ गया और उसने गुस्से में फोन जमीन पर पटक दिया।

मुझे याद है एक रात, मुझे परमेश्वर के वचन पढ़ते देख उसके हाव-भाव फौरन बदल गये, और उसने कहा, “तुम्हें कितनी बार बताऊँ? चीन में, तुम आस्था के मार्ग पर नहीं चल सकती! केंद्रीय सरकार से लेकर स्थानीय अधिकारियों तक, प्रबंधन से लेकर कर्मचारियों तक, सभी स्तरों पर चीजों की निगरानी की जाती है। अगर तुम परमेश्वर में विश्वास रखती रही तो पार्टी तुम तक पहुँच ही जायेगी!” हर वक्त अपने पति को यह कहते सुनना, और पार्टी के शासन वाले देश में विश्वासी होने के कारण गिरफ्तारी का खतरा बने रहने के बारे में सोचना मेरे लिए डरावना था। मैंने सोचा, अगर मैं कभी गिरफ्तार हो गई तो क्या यातना का सामना कर पाऊँगी। अगर उन्होंने पीट-पीटकर मार डाला या अपाहिज बना दिया तो क्या होगा? अगर मैं पीड़ा नहीं सह पाई और यहूदा बनकर परमेश्वर को धोखा दिया, तो क्या यह मेरे जीवन का अंत नहीं होगा? मैं जानती थी मेरी दशा सही नहीं है, तो मैंने फौरन मन में परमेश्वर से आस्था देने की प्रार्थना की ताकि उत्पीड़न और मुश्किलों के दौरान गवाही देने से पीछे न हटूँ। मैंने परमेश्वर के वचनों में यह पढ़ा : “जब लोग अपने जीवन का त्याग करने के लिए तैयार होते हैं, तो हर चीज तुच्छ हो जाती है, और कोई उन्हें हरा नहीं सकता। जीवन से अधिक महत्वपूर्ण क्या हो सकता है? इस प्रकार, शैतान लोगों में आगे कुछ करने में असमर्थ हो जाता है, वह मनुष्य के साथ कुछ भी नहीं कर सकता(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 36)। परमेश्वर के वचन बिल्कुल स्पष्ट हैं। अगर हम अपना जीवन दांव पर लगाने को तैयार हों और मौत के आगे बेबस न हों, तो शैतान कुछ नहीं कर सकता। मुझे पुलिस द्वारा पीट-पीटकर मार डाले जाने का डर इसलिए था क्योंकि मुझमें आस्था की कमी थी। मुझे अपना जीवन अधिक ही प्यारा था। हमारा जीवन और मौत, सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है। मुझे खुद को परमेश्वर के हाथों में सौंप कर उसके आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होना था। अगर मुझे पीट-पीटकर मार भी दिया गया, तो यह धार्मिकता के लिए होगा, यह सार्थक होगा। परमेश्वर के वचनों से आत्मविश्वास पाकर, मैंने अपने पति को कुछ वचन पढ़कर सुनाये : “हमें विश्वास है कि परमेश्वर जो कुछ प्राप्त करना चाहता है, उसके मार्ग में कोई भी देश या शक्ति ठहर नहीं सकती। जो लोग परमेश्वर के कार्य में बाधा उत्पन्न करते हैं, परमेश्वर के वचन का विरोध करते हैं, और परमेश्वर की योजना में विघ्न डालते और उसे बिगाड़ते हैं, अंततः परमेश्वर द्वारा दंडित किए जाएँगे। जो परमेश्वर के कार्य की अवहेलना करता है, उसे नरक भेजा जाएगा; जो कोई राष्ट्र परमेश्वर के कार्य का विरोध करता है, उसे नष्ट कर दिया जाएगा; जो कोई राष्ट्र परमेश्वर के कार्य को अस्वीकार करने के लिए उठता है, उसे इस पृथ्वी से मिटा दिया जाएगा, और उसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 2: परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियंता है)। मैंने अपने पति को परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव की गवाही दी जो कोई अपराध नहीं सहता। कम्युनिस्ट पार्टी का विश्वासियों को गिरफ्तार करके उन्हें सताना कुकर्म और परमेश्वर का विरोध करना है, परमेश्वर इसे दंडित करेगा। पार्टी के साथ खड़े रहकर और मेरी आस्था के मार्ग में बाधा बनकर, वह उनके साथ मिलकर कुकर्म कर रहा था। मेरी बात सुनकर उसने हताश होकर कहा, “तुम्हें लगता है यह मेरी इच्छा है? सब कम्युनिस्ट पार्टी का किया-धरा है। अगर मैंने तुम्हें परमेश्वर में विश्वास रखने से नहीं रोका, तो मैं अपनी आजीविका भी खो दूँगा। तुम मेरे बारे में क्यों नहीं सोचती? विश्वासी होने के कारण तुम्हें गिरफ्तार कर लिया, तो वे तुम्हारी जान भले न लें, पर तुम्हारी चमड़ी जरूर उधेड़ देंगे। मैं तुम्हें पीड़ा सहते कैसे देखूँगा? मैं ऐसा क्या करूँ जिससे तुम अपनी आस्था त्याग दो?” मैंने कहा, “सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही सच्चा परमेश्वर है, मैं कभी अपनी आस्था नहीं छोडूंगी!” जब उसने देखा मैं हार नहीं मान रही, तो मेरे साथ मारपीट करने लगा। गुस्से में उसने मुझसे कहा, “अगर तुम अपनी आस्था के कारण गिरफ्तार हुई, तो बचोगी नहीं। तुम बस खुद को उनके हवाले करना चाहती हो। मुझे बस इतना बताओ, अगर जिंदा ही नहीं रही तो विश्वास किस पर रखोगी?” इसके बाद उसने पागलों की तरह मुझे बिस्तर पर धक्का दिया, मेरी गर्दन पकड़ी और कहा, “मैं तुम्हारा गला दबा दूँगा, फिर देखते हैं कैसे विश्वासी बनी रहती हो!” वह मेरा गला दबा रहा था, मैं सांस नहीं ले पा रही थी, मैं भरसक संघर्ष कर रही थी, पर कोई फायदा नहीं हुआ। मैं बेहोश हो गयी। फिर धीरे-धीरे होश में आई, तो सोचा जिस पति ने इतने सालों की शादी में कभी मुझ पर हाथ नहीं उठाया, वह अपना रुतबा और नौकरी बचाने के लिए मेरे प्रति इतना दुष्ट कैसे बन गया था, उसने गला दबाकर मुझे मारने की कोशिश की। मैं सदमें में थी। मुझे कम्युनिस्ट पार्टी से और भी ज्यादा नफरत हो गयी। अगर उन्होंने परिवार के सदस्यों की नौकरी और भविष्य की धमकी न दी होती, तो मेरा पति कभी इतना निर्दयी नहीं होता।

जब भी मेरे पति की नौकरी पर ज्यादा दबाव बनता, तो वह मुझ पर अपना अत्याचार बढ़ा देता था। एक दिन जब वह बैठक से घर आया, तो मुझे एक और सैद्धांतिक भाषण सुना दिया, कहा कि चीन में सीसीपी के शासन में, परिवार का एक सदस्य भी विश्वासी हो, तो पूरे परिवार को नतीजा भुगतना पड़ता है, इसलिए मैं अपनी आस्था नहीं रख सकती, वरना हम दोनों ही अपनी नौकरी गँवा देंगे, इसका असर हमारी बेटी की पढ़ाई और करियर पर भी पड़ेगा। उसने कहा अगर मेरी आस्था के कारण मुझे गिरफ्तार कर लिया गया तो हमारी बेटी सिर उठाकर कैसे चल पायेगी, और हमारे बारे में न सही, मुझे उसके बारे में तो सोचना चाहिए। मैं सोच रही थी कि अगर कम्युनिस्ट पार्टी ने मेरे पति की नौकरी छीन ली और मेरी आस्था के कारण मेरी बेटी का भविष्य खराब हो गया, तो क्या वे दोनों मुझसे नफरत नहीं करने लगेंगे? उस वक्त मैं बहुत परेशान थी, तो मन-ही-मन परमेश्वर को पुकारकर उससे मार्गदर्शन करने को कहा। मुझे परमेश्वर के वचनों का यह अंश याद आया : “संसार में घटित होने वाली समस्त चीजों में से ऐसी कोई चीज नहीं है, जिसमें मेरी बात आखिरी न हो। क्या कोई ऐसी चीज है, जो मेरे हाथ में न हो? जो कुछ मैं कहता हूँ, वह किया जाता है, और मनुष्यों के बीच कौन है, जो मेरे मन को बदल सकता है? ... क्या मैंने स्वयं ही व्यक्तिगत रूप से ये व्यवस्थाएँ नहीं की हैं?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 1)। सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है। मेरी और मेरे पति की नौकरी रहेगी या जाएगी, क्या मेरी बेटी की पढ़ाई खराब होगी और क्या उसे नौकरी मिलेगी, सारी व्यवस्था परमेश्वर ने की है। केवल परमेश्वर सभी चीजें तय कर सकता है—कम्युनिस्ट पार्टी नहीं। यह सोचकर, मैंने अपने पति से कहा, “लोगों का भाग्य परमेश्वर के हाथों में है, उसकी सत्ता के अधीन है। तुम्हें लगता है कम्युनिस्ट पार्टी की बात मानकर तुम्हारी नौकरी बची रहेगी? पार्टी अपना भाग्य खुद नहीं तय कर सकती, तो वह दूसरों का भाग्य कैसे तय करेगी?” तब गुस्से में उसने जवाब दिया, “अगर तुम विश्वासी बनी रहने पर अड़ी रही, तो पार्टी तुम्हें गिरफ्तार कर लेगी। वह विश्वासियों को मौत के घात उतार देती है। बेहतर होगा तुम मेरे हाथों मारी जाओ।” मेरे कोई जवाब देने से पहले ही, वह पागलों की तरह रसोई में भागा, चाकू उठाया और मेरे सामने आकर खड़ा हो गया, फिर चाकू तानते हुए कठोरता से कहा, “तुम्हें विश्वासी बनना है या एक अच्छी जिंदगी जीनी है? अगर तुम विश्वासी बनी रहने पर अड़ी रही, तो मैं तुम्हारा गला काट दूंगा!” गुस्से और डर में, मैंने फौरन अपने दिल में परमेश्वर को पुकारा। तभी अचानक हमारी बेटी अपने कमरे से बाहर निकली, और मेरे सामने खड़ी होकर चिल्लाई, “डैड! अगर आप मॉम को मारेंगे, तो आपको पहले मुझे मारना होगा!” उसने जो किया उसे देख मेरा पति अवाक रह गया, और दांत भींचते हुए उसकी ओर एकटक देखता रहा। फिर धीरे-धीरे चाकू वाले हाथ को नीचे किया। लगा जैसे मैंने कुछ खो दिया, दिल में पीड़ा महसूस हुई, आँखों से घृणा और दुःख के आँसू छलक पड़े। मैंने कभी सोचा भी नहीं था, परमेश्वर में आस्था के कारण मेरा पति मेरी जान लेने पर उतारू हो जाएगा। मैंने ऐसे इंसान से शादी नहीं की थी। यह तो राक्षस ही है!

एक दिन अपनी भक्ति में मैंने परमेश्वर के वचनों में यह पढ़ा : “पति अपनी पत्नी से क्यों प्रेम करता है? पत्नी अपने पति से क्यों प्रेम करती है? बच्चे क्यों माता-पिता के प्रति कर्तव्यशील रहते हैं? और माता-पिता क्यों अपने बच्चों से अतिशय स्नेह करते हैं? लोग वास्तव में किस प्रकार की इच्छाएँ पालते हैं? क्या उनकी मंशा उनकी खुद की योजनाओं और स्वार्थी आकांक्षाओं को पूरा करने की नहीं है? क्या उनका इरादा वास्तव में परमेश्वर की प्रबंधन योजना के लिए कार्य करने का है? क्या वे परमेश्वर के कार्य के लिए कार्य कर रहे हैं? क्या उनकी मंशा सृजित प्राणी के कर्तव्य को पूरा करने की है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)। “यदि कोई परमेश्वर को नहीं पहचानता, शत्रु है; यानी कोई भी जो देहधारी परमेश्वर को नहीं पहचानता—चाहे वह इस धारा के भीतर है या बाहर—एक मसीह-विरोधी है! शैतान कौन है, दुष्टात्माएँ कौन हैं और परमेश्वर के शत्रु कौन हैं, क्या ये वे नहीं, जो परमेश्वर का प्रतिरोध करते और परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते? क्या ये वे लोग नहीं, जो परमेश्वर के प्रति अवज्ञाकारी हैं?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)। मैंने परमेश्वर के वचनों पर विचार किया। मेरे पति के उत्पीड़न के दृश्य किसी फिल्म की तरह एक-एक कर मेरे जेहन में आते रहे। मेरा पति जो न तो कभी मुझ पर चिल्लाया, न ही मुझे मारा, मेरे विश्वासी बनने के बाद से ही उसने मुझे सताने में कोई कसर नहीं छोड़ी, क्यों? इतने सालों की शादी निजी फायदे के लिए यूं ही बिखर गई, क्यों? इंसानों के बीच कोई सच्चा प्रेम नहीं होता—हर कोई बस एक दूसरे का इस्तेमाल करता है। मेरा पति पहले मेरे लिए अच्छा था क्योंकि मैं काम करके पैसे कमा सकती थी, उसके बच्चों का बोझ उठा सकती थी। उसकी नज़रों में, मैं उपयोगी थी। लेकिन अब मैंने आस्था का मार्ग चुना, जिससे उसके हितों पर असर पड़ा, तो उसने हमारी भावनाओं की कोई परवाह नहीं की। मुझे परमेश्वर में विश्वास रखने से रोकने के लिए, वह पुलिस को मेरी रिपोर्ट करना चाहता था, उसने मेरे बेहोश होने तक मेरा गला दबाया और चाकू से मारने की धमकी भी दी। उसने जोर देकर कहा, वह मुझे इसलिए आस्था नहीं रखने देना चाहता था क्योंकि उसे मेरी परवाह थी, मेरी गिरफ्तारी का डर था, पर यह सब उसके फायदे के लिए था। उसने अपने करियर और प्रतिष्ठा को इन सबसे ऊपर रखा। अपनी आजीविका बचाने के लिए, वह कम्युनिस्ट पार्टी का पालतू कुत्ता बनना चाहता था, यह तो चाकरी है, वह मुझे एक बंद गली वाले रास्ते पर धकेल रहा था। मुझे परमेश्वर में विश्वास रखने से रोकने के लिए उसने हर तरह का घृणित तरीका अपनाया, दुष्ट तरकीबें आजमाईं। उसका सार परमेश्वर से नफरत और उसका विरोध करने वाले राक्षस का था। फिर मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा। “एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो सामान्य है और जो परमेश्वर के प्रति प्रेम का अनुसरण करता है, परमेश्वर के जन बनने के लिए राज्य में प्रवेश करना ही तुम सबका असली भविष्य है और यह ऐसा जीवन है, जो अत्यंत मूल्यवान और सार्थक है; कोई भी तुम लोगों से अधिक धन्य नहीं है। मैं यह क्यों कहता हूँ? क्योंकि जो लोग परमेश्वर में विश्वास नहीं करते, वो देह के लिए जीते हैं और वो शैतान के लिए जीते हैं, लेकिन आज तुम लोग परमेश्वर के लिए जीते हो और परमेश्वर की इच्छा पर चलने के लिए जीवित हो। यही कारण है कि मैं कहता हूँ कि तुम्हारे जीवन अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। केवल इसी समूह के लोग, जिन्हें परमेश्वर द्वारा चुना गया है, अत्यंत महत्वपूर्ण जीवन जीने में सक्षम हैं : पृथ्वी पर और कोई इतना मूल्यवान और सार्थकजीवन नहीं जी सकता(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के सबसे नए कार्य को जानो और उसके पदचिह्नों का अनुसरण करो)। परमेश्वर के वचन बहुत प्रेरक थे, इनसे मुझे जीवन का अर्थ समझने में मदद मिली। आस्था रखना, सत्य का अनुसरण करना और सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाना ही सार्थक और मूल्यवान जीवन जीने का एकमात्र तरीका है। मैं इस दुनिया में पूरी मेहनत से काम कर रही थी, थोड़ा नाम भी कमाया था, पर अंदर से खाली और दुखी महसूस करती थी। मैं थककर बीमार पड़ गई थी, मेरी अच्छी-खासी आवाज़ ऐसी कर्कश हो गई कि ठीक से बात भी नहीं कर पाती थी। तब जाकर मैंने महसूस किया कि सम्मान के कितने भी प्रमाणपत्र मिलें या मेरी कितनी भी सराहना हो, इससे मेरी बीमारी या आध्यात्मिक खालीपन की समस्या कभी दूर नहीं होगी। मैं इतने साल तक जिस प्रतिष्ठा के पीछे भागी उससे मुझे सत्य हासिल करने में कोई मदद नहीं मिली, न ही उसने शैतान की भ्रष्टता और नुकसान से मेरी रक्षा की। सबसे बड़ी बात, टीचर के रूप में इतने सालों तक मैं छात्रों को वही बातें सिखाती रही थी जो परमेश्वर को नकारती हैं। हर पल कम्युनिस्ट पार्टी की प्रशंसा के गीत गाती थी। यह सिलसिला जारी रहता, तो मुझे कभी अच्छी मंजिल नहीं मिलती। मुझे पार्टी की सेवा छोड़नी ही थी। मैंने अपने दिल में परमेश्वर को पुकारा, मुझे रास्ता दिखाने की विनती की। बाद में, जब मैं स्वास्थ्य जांच के लिए गई, तो डॉक्टर ने कहा, “तुम्हारे गले की हालत बहुत खराब है। सारा रंग बदल गया है, दरअसल पूरे गले में खून भर गया है। यह सूजकर बड़ा हो गया है जिससे तुम्हारे वोकल कॉर्ड पर असर पड़ा है। अपने पेशे को देखते हुए, अगर तुमने अपने गले का इस्तेमाल करना बंद नहीं किया, तो बोलने की क्षमता भी पूरी तरह खो बैठोगी।” फिर उसने मुझे छः महीने की मेडिकल लीव लेने की सलाह दी। मैंने दिल से परमेश्वर को धन्यवाद दिया। मैंने सोचा अब मेरे पास परमेश्वर के वचन पढ़ने और कर्तव्य निभाने के लिए ज्यादा समय होगा, पर मेरा पति मेरे रास्ते की रुकावट बनकर और भी ज्यादा दुष्ट तरकीबें आजमाने लगा।

फरवरी 2009 में एक दिन, उसने मेरे दो सहपाठियों और मेरे छोटे भाई को बुलाया। वे मुझे जबरन कार में डालकर एक मनोरोग अस्पताल ले गये। मगर मुझे कोई समस्या नहीं थी, तो अस्पताल ने मुझे नहीं रखा। मेरे पति ने कहा, “तुम्हें पता है कि पार्टी विश्वासियों को गिरफ्तार करती है, और यह मौत की सजा है, फिर भी तुम विश्वासी बनी रहने पर अड़ी हो। कोई मनोरोगी ही होगा जिसे मौत से डर न लगता हो। इस अस्पताल में ज्यादा जांच नहीं की जाती है। प्रांतीय मनोरोग अस्पताल में बेहतर सुविधाएं और सक्षम डॉक्टर मौजूद हैं। मैंने तुम्हें जांच के लिए वहीं लेकर जाऊंगा कि कहीं तुम मनोरोगी तो नहीं।” मैंने गुस्से से जवाब दिया, “मुझे लगता है मनोरोगी तो तुम हो। ऐसा नहीं कि मैं मरने से नहीं डरती। मैंने मौत के डर के बावजूद विश्वास रखने को चुना, क्योंकि मुझे पता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर उद्धारक बनकर आया है। उसने बहुत से सत्य व्यक्त किये हैं, वह मनुष्य को पाप और आपदाओं से बचा सकता है। जो अविश्वासी परमेश्वर के न्याय और शुद्धिकरण को नहीं स्वीकारते, वे आपदाओं में मारे जाएंगे।” मगर उसने एक न सुनी। अगले ही दिन सबेरे वह मुझे प्रांतीय अस्पताल ले गया। हम दूसरी मंजिल पर गए, तो मैंने देखा हॉल के फर्श पर एक गेंदनुमा पिंजरे में एक पागल महिला को बहुत मोटी जंजीर से बांधकर रखा गया था। एक अधेड़ उम्र का आदमी जंजीर के एक सिरे को पकड़ कर उसे जोर से खींच रहा था, जिससे महिला फर्श पर घिसटती जा रही थी। उसने डर के मारे जंजीर को दोनों तरफ से जकड़ रखा था, हाथ खिंचे हुए थे, वह अपनी पूरी ताकत लगा रही थी और जोर से चिल्ला रही थी। उसके भूसे जैसे बालों और आतंकित हाव-भाव को देखना और हृदय-विदारक चीखें सुनना एक दिल दहला देने वाला अनुभव था। उस पल मैं भयंकर पीड़ा से भर गई और लगा मेरे साथ गलत हो रहा है। ऐसा महसूस हुआ मानो यह मेरी गरिमा का भयंकर अपमान है, मैं फौरन पीछे मुड़कर, सीढ़ियों से उतरकर उस अभिशप्त जगह से निकल जाना चाहती थी, पर ऐसा कर न सकी। मेरा पति मेरे हर कदम पर नज़र रखे हुए था। फिर मैंने परमेश्वर के इन वचनों को याद किया : “मानवजाति के कार्य के लिए परमेश्वर ने कई रातें बिना सोए गुज़ारी हैं। गहन ऊँचाई से लेकर अनंत गहराई तक, जीते-जागते नरक में जहाँ मनुष्य रहता है, वह मनुष्य के साथ अपने दिन गुज़ारने के लिए उतर आया है, फिर भी उसने कभी मनुष्य के बीच अपनी फटेहाली की शिकायत नहीं की है, अपनी अवज्ञा के लिए कभी भी मनुष्य को तिरस्कृत नहीं किया है, बल्कि वह व्यक्तिगत रूप से अपने कार्य को करते हुए सबसे बड़ा अपमान सहन करता है। परमेश्वर नरक का अंग कैसे हो सकता है? वह नरक में अपना जीवन कैसे बिता सकता है? लेकिन समस्त मानवजाति के लिए, ताकि पूरी मानवजाति को जल्द ही आराम मिल सके, उसने अपमान सहा है और पृथ्वी पर आने का अन्याय झेला है, मनुष्य को बचाने की खातिर व्यक्तिगत रूप से ‘नरक’ और ‘अधोलोक’ में, शेर की माँद में, प्रवेश किया है। मनुष्य परमेश्वर का विरोध करने योग्य कैसे हो सकता है? परमेश्वर से शिकायत करने का उसके पास क्या कारण है? वह परमेश्वर की ओर नज़र उठाकर देखने की हिम्मत कैसे कर सकता है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (9))। मानवजाति को बचाने के लिए, परमेश्वर ने अंत के दिनों में नास्तिक शासन वाले चीन में देहधारण किया है, वह इस दुष्ट, घोर परमेश्वर-विरोधी जगह में प्रकट होकर कार्य कर रहा है, कम्युनिस्ट पार्टी और धार्मिक जगत के उत्पीड़न और निंदा झेल रहा है, भयंकर अपमान सहन कर रहा है, मगर इसके खिलाफ कुछ नहीं कहा है। वह सृष्टि का स्वामी है, सर्वोच्च और सम्मान के लायक है, फिर भी भ्रष्ट इंसानों के बीच रहने और भयंकर अपमान सहने आया है, वह इंसानों के बीच सत्य व्यक्त करते हुए चुपचाप मानवजाति को बचाने का कार्य कर रहा है। मगर मैं, एक भ्रष्ट इंसान, यह देखकर कि मुझे मानसिक रोगियों के बीच रखा जाएगा, सोचने लगी मेरी गरिमा खतरे में है और यह मेरा भयंकर अपमान है। मैं भाग जाना चाहती थी। मुझमें सत्य की खातिर कष्ट सहने का ज़रा-सा भी संकल्प नहीं था। यह सोचकर ही मुझे घबराहट होने लगी, मैंने मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना की, कसम खाई कि चाहे जो भी हो, मैं हालात का सामना करूंगी, कितना भी अपमान सहना पड़े, शैतान के आगे हार नहीं मानूँगी। डॉक्टर ने झट से मुझे दवाओं के दो थैले पकड़ाये और घर भेज दिया। बाद में जब मेरे पति ने देखा कि वह मुझे आस्था रखने से नहीं रोक सकता, तो उसने मुझे अनदेखा कर दिया और अपने काम पर चला गया। फिर अक्टूबर 2012 में, जब एक यहूदा ने हमें धोखा दिया, तो पुलिस को लगा शायद मैं कलीसिया अगुआ हूँ, तो सादे कपड़ों में कुछ अधिकारी मेरा पीछा करने भेज दिये। मुझे अपना कर्तव्य निभाने के लिए घर छोड़कर दूसरे इलाके में जाना पड़ा, ताकि गिरफ्तार न हो जाऊं। बाद में पता चला कि मेरे घर छोड़ने के अगले ही दिन पुलिस मुझे गिरफ्तार करने वहां गई थी। उन्होंने तीन अन्य भाई-बहनों को गिरफ्तार कर उनसे मेरा पता-ठिकाना जानने की कोशिश की और मेरी फोटो लेकर मुझे खोजने लगे। दो महीने बाद, राष्ट्रीय सुरक्षा ब्रिगेड ने मेरे घर को छान मारा और परमेश्वर के वचन की कुछ किताबें जब्त कर लीं, और मेरे पति से कहा कि मैं धरती के किसी भी कोने में चली जाऊं, वे मुझे ढूंढ निकालेंगे। शिक्षा ब्यूरो भी लगभग हर दिन मेरे घर पर जाकर मेरे पति पर मुझे ढूँढने के लिए दबाव बनाने लगा। तब मैं कम्युनिस्ट पार्टी की वांछित अपराधियों की सूची में सबसे ऊपर थी।

मुझे घर वापस बुलाने के लिए उन्होंने मेरी बेटी का भी सहारा लिया। दिसंबर 2012 के आखिर में एक दिन, अचानक मेरी बेटी ने मुझे कॉल किया : “मॉम, मैं आपको कॉल करने से डर रही थी। पुलिस हर जगह आपको ढूंढ रही है, उन्होंने हमारे घर को भी छान मारा। मैं बस यह बताने के लिए कॉल कर रही हूँ कि शिक्षा ब्यूरो और आपके स्कूल के लीडर ने डैड और मुझे आपसे यह बताने को कहा है कि अगर आप अपनी आस्था छोड़ दें और घर वापस लौट आयें, तो वे आपको इन सबके लिए जवाबदेह नहीं ठहराएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि घर आने के बाद अगर तुम काम पर नहीं भी जाओगी तो भी वे तुम्हें पूरी तन्ख्वाह देंगे।” यह सुनकर मुझे काफी गुस्सा आया। कम्युनिस्ट पार्टी मेरी आस्था छुड़वाने के लिए रुतबे और पैसे का लालच दिखा रही थी। कितनी नीच है! मुझे सबसे अधिक दुख इस बात से हुआ कि मेरी बेटी को सरकार और स्कूल के लीडरों की बातों पर पूरा भरोसा था। इससे मैंने साफ तौर देखा कि कम्युनिस्ट पार्टी मेरे पति और बेटी, दोनों को मूर्ख बनाकर उनका इस्तेमाल कर रही थी। मैंने दृढ़ता से अपनी बेटी से कहा, “बेटे, तुम इन बातों से बहुत अनजान हो। तुम्हें पता है, मेरे घर वापस आने पर क्या होगा? मैं भेड़ियों के बीच मेमने की तरह फेंक दी जाऊँगी। मैं घर नहीं जा सकती।” उसने चिंतित होकर जवाब दिया, “उन्होंने कहा कि अगर तुम घर नहीं आओगी, तो वे तुम्हारी 20 साल की सारी पेंशन निरस्त कर देंगे। मॉम, वापस आ जाओ। अगर नहीं आई, तो वे डैड से तुम्हें तलाक दिलवा देंगे और तुम्हारे साथ मेरा रिश्ता भी तुड़वा देंगे। अगर तुम घर नहीं आई, तो फिर तुम मेरी मॉम नहीं रहोगी।” मैं तो सन्न रह गई। कम्युनिस्ट पार्टी न सिर्फ मेरी आजीविका पर डाका डाल रही थी, बल्कि मेरे पति पर तलाक डालने और मेरी बेटी पर रिश्ता तोड़ देने का दबाव बना रही थी। यह दुष्टता और नीचता थी! मुझे पार्टी से भयंकर नफरत हो गई। मुझे परमेश्वर के वचन याद आये, “धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप को छिपाने की चालें हैं! किसने परमेश्वर के कार्य को स्वीकार किया है? किसने परमेश्वर के कार्य के लिए अपना जीवन अर्पित किया है या रक्त बहाया है? पीढ़ी-दर-पीढ़ी, माता-पिता से लेकर बच्चों तक, गुलाम बनाए गए मनुष्य ने परमेश्वर को बड़ी बेरुखी से गुलाम बना लिया है—ऐसा कैसे हो सकता है कि यह रोष न भड़काए? दिल में हजारों वर्ष की घृणा भरी हुई है, हजारों साल का पाप दिल पर अंकित है—इससे कैसे न घृणा पैदा होगी? परमेश्वर का बदला लो, उसके शत्रु को पूरी तरह से समाप्त कर दो, उसे अब और बेकाबू न दौड़ने दो, और उसे अत्याचारी के रूप में शासन मत करने दो! यही समय है : मनुष्य अपनी सभी शक्तियाँ लंबे समय से इकट्ठा करता आ रहा है, उसने इसके लिए सभी प्रयास किए हैं, हर कीमत चुकाई है, ताकि वह इस दानव के घृणित चेहरे से नकाब उतार सके और जो लोग अंधे हो गए हैं, जिन्होंने हर प्रकार की पीड़ा और कठिनाई सही है, उन्हें अपने दर्द से उबरने और इस दुष्ट प्राचीन शैतान से मुँह मोड़ने दे। परमेश्वर के कार्य में ऐसी अभेद्य बाधा क्यों खड़ी की जाए? परमेश्वर के लोगों को धोखा देने के लिए विभिन्न चालें क्यों चली जाएँ? वास्तविक स्वतंत्रता और वैध अधिकार एवं हित कहाँ हैं? निष्पक्षता कहाँ है? आराम कहाँ है? गर्मजोशी कहाँ है? परमेश्वर के लोगों को छलने के लिए धोखेभरी योजनाओं का उपयोग क्यों किया जाए? परमेश्वर के आगमन को दबाने के लिए बल का उपयोग क्यों किया जाए?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। कम्युनिस्ट पार्टी धार्मिक आजादी की बातें करती है, पर विश्वासियों को दबाने के लिए गुप्त रूप से सभी तरह की नीच तरकीबें आजमाती है। यह साफ तौर पर सत्य से नफरत और परमेश्वर का विरोध करने वाली इसकी दुष्ट प्रकृति को दिखाता है। पार्टी मुझे आस्था रखने से रोकने के लिए हर तरह के हथकंडे आजमा रही थी, पहले उसने अच्छी तन्ख्वाह का प्रलोभन दिया, घर वापस आने के लिए मुझे पैसों से ललचाया ताकि वे मुझे गिरफ्तार कर सकें। जब मैं इनके झांसे में नहीं आई, तो अब वे मेरी नौकरी और वेतन हड़पने जा रहे थे, मेरी आय के रास्ते बंद करके मुझे घर से दूर खदेड़ देना चाहते थे। इससे साफ पता चल गया, पार्टी बाहर से भले ही नैतिक और न्यायसंगत दिखती हो, पर उसके दिल में क्रूरता और दुष्टता ही है। यह ऐसे राक्षसों का गिरोह है जो हर मोड़ पर परमेश्वर के खिलाफ जाता है। मैंने इससे दिल से नफरत की और इसे ठुकरा दिया, मैंने कसम खाई चाहे जान चली जाये पर इसका साथ नहीं दूंगी! मैं घर वापस नहीं गई। मेरे पति को मुझे तलाक देना पड़ा और बेटी ने मुझसे रिश्ता तोड़ लिया।

पहले जब मैं पार्टी की व्यवस्था में काम करती थी, तो उसका दुष्ट सार नहीं देख पाती थी। हर वक्त उसकी प्रशंसा करती थी, वफादारी से पार्टी की सेवा करती थी। इसके अत्याचार को अनुभव करने के बाद, आखिर मैं सत्य से नफरत और परमेश्वर का विरोध करने वाले इसके दुष्ट सार को देख पाई, इससे पूरी तरह नफरत कर इसका त्याग कर पाई, कभी इसका अनुसरण न करने की कसम खाई। मैंने परमेश्वर का प्रेम भी देखा। परमेश्वर के वचनों ने ही मुझे आस्था और हिम्मत दी, जिससे मैं बार-बार अत्याचार और मुश्किलों का डटकर सामना कर पाई। मैं परमेश्वर की बहुत आभारी हूँ। आगे मेरा रास्ता कितना भी मुश्किल क्यों न हो, मैं अंत तक दृढ़तापूर्वक सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करूंगी!

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