14. एक ऐसा दिन जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता
दिसंबर 2012 में एक दिन लगभग सुबह 9 बजे मैं कुछ भाई-बहनों के साथ सुसमाचार फैला रही थी तभी पुलिस की एक गाड़ी हमारे सामने आकर रुकी। बिना कोई पहचान पत्र दिखाए एक अधिकारी ने मेरी बाँहें मरोड़ दीं और मुझे अपनी कार में ठूँस दिया। एक और भाई-बहन को भी कार में डाल दिया गया। मेरी धड़कन तेज हो गई थी और मैं नहीं जानती थी कि पुलिस मेरे साथ क्या करने वाली है। मैंने मन में सोचा, “क्या होगा अगर मैं यातना नहीं सह पाई और यहूदा बनकर परमेश्वर को धोखा दे दिया?” मैंने तुरंत परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे मेरे दिल की रक्षा करने के लिए कहा और कसम खाई कि मैं मर जाऊँगी लेकिन यहूदा बनकर अपने भाई-बहनों को धोखा नहीं दूँगी। प्रार्थना के बाद मुझे उतनी घबराहट महसूस नहीं हुई।
जब हम पुलिस स्टेशन पहुँचे तो हमें अलग कर दिया गया और एक-एक कर पूछताछ की गई। एक पुलिसवाले ने मुझसे सख्ती से पूछा, “तुम्हारा अगुआ कौन है? तुम कहाँ रहती हो?” मैंने कहा, “मुझे नहीं पता कि अगुआ कौन है। मैंने कोई कानून नहीं तोड़ा है, फिर मुझे क्यों गिरफ्तार किया गया है?” वे जोर से हँसे और बोले, “तुम्हें कानून के बारे में क्या पता है? क्या तुम्हें सुसमाचार फैलाने के लिए केंद्र सरकार से अनुमति मिली थी? क्या धार्मिक मामलों के ब्यूरो ने तुम्हें अनुमति दी थी? तुम अवैध मिशनरी कार्य कर रही थी और सार्वजनिक व्यवस्था बिगाड़ रही थी। हमें तुम्हें धार्मिक मामलों के ब्यूरो में भेज देना चाहिए और उन्हें तुम्हारे साथ निपटने देना चाहिए!” दूसरे अधिकारी ने कहा, “अगर तुम हमारे साथ सहयोग करोगी तो हम तुम्हें जाने देंगे।” मैंने बस उनकी बात अनसुनी कर दी। फिर दरवाजे पर खड़ा एक अधिकारी दौड़ता हुआ कमरे में घुसा और मेरे दाहिने पैर की पिंडली पर जोर से लात मारी। इससे इतना दर्द हुआ कि मुझे लगा कि मेरी पिंडली की हड्डियाँ टूट गई हैं। उसने मुझे इतनी जोर से लात मारी कि वह खुद जमीन पर गिर पड़ा और दूसरे अधिकारी हँसने लगे। वह उठ खड़ा हुआ और मेरे चेहरे पर थप्पड़ मारकर अपना गुस्सा निकाला। उसने मुझे इतनी जोर से मारा कि मुझे तारे दिखने लगे और मुझे इतने चक्कर आने लगे कि मैं लगभग गिर ही पड़ी। इसके तुरंत बाद मेरे चेहरे के दाहिने हिस्से में सूजन आने लगी। फिर उसने मेरे दाहिने पैर पर फिर जोर से लात मारी और मुझे कमरे के एक कोने में धकेल दिया। फिर वह आक्रामक होकर मेरी पीठ के निचले हिस्से पर लात मारने के लिए उठा। मैं बहुत डर गई थी। अगर उसने मुझे लात मारी और मेरी पीठ के निचले हिस्से में चोट आ गई तो क्या होगा? मैं रोने लगी। तभी कुछ अन्य अधिकारियों ने उसे रोक लिया। एक अन्य अधिकारी ने मुझे नरम लहजे में संबोधित करते हुए कहा, “सुनो प्रिय, हम तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहते। तुम हमें बस अपना पता बता दो और हम तुम्हें जाने देंगे।” मैंने मन ही मन सोचा, “मेरे माता-पिता दोनों परमेश्वर में विश्वास करते हैं और कर्तव्य निभा रहे हैं। अगर मैं इन्हें अपना पता बता दूँगी तो मेरे माता-पिता भी पकड़े जाएँगे। अगर भाई-बहन मेरे घर पर सभा कर रहे होंगे तो उन सभी को गिरफ्तार कर लिया जाएगा, ऐसे तो मैं बुराई कर दूँगी।” इसलिए मैंने कुछ नहीं कहा। फिर एक अधिकारी ने बाकी सभी को जाने के लिए कहा क्योंकि वह मुझसे अकेले में बात करना चाहता था। उसने मुझसे पूछा, “क्या तुम यहाँ से जाना चाहती हो? अगर तुम जाना चाहती हो तो बस हमें अपना पता बता दो। या फिर तुम हमारे साथ सहयोग करो और हमारी मुखबिर बन जाओ। हमारे लिए कलीसिया के शीर्ष पदों में घुसपैठ करो और हम साथ मिलकर काम करेंगे। अगर तुम मान गई तो हम तुम्हें जाने देंगे।” जब उसने देखा कि मैं उसे नजरअंदाज कर रही हूँ तो उसे दूसरा विचार सूझा और उसने कहा, “अभी यहाँ सिर्फ हम दोनों ही हैं। मुझे पता है कि तुम शायद दूसरे सदस्यों के सामने उनकी पहचान नहीं बता सकती, इसलिए मैं तुम्हारी पहचान छिपा सकता हूँ। हम अपनी कार से सड़क पर निकलेंगे, तुम कार में ही बैठी रहना और तुम्हें बस अपने किसी भाई-बहन की तरफ अपनी उँगली से इशारा करना है। अगर तुम अपनी जगह किसी दूसरे सदस्य की ओर इशारा कर देती हो हम तुम्हें जाने देंगे। तुम क्या कहती हो?” उस अधिकारी का बदसूरत चेहरा देखकर मुझे घृणा हुई। मैंने मन ही मन सोचा, “यहाँ सिर्फ हम दो हो सकते हैं, लेकिन परमेश्वर का आत्मा सभी चीजों की जाँच-पड़ताल करता है। तुम दूसरे लोगों को मूर्ख बना सकते हो लेकिन परमेश्वर को कभी मूर्ख नहीं बना सकते। अगर तुम्हें लगता है कि मैं मुखबिर बन जाऊँगी, अपने भाई-बहनों को धोखा दूँगी और परमेश्वर को धोखा दूँगी तो तुम गलत सोच रहे हो!” मैंने दृढ़ता से जवाब दिया, “मैं किसी को नहीं जानती!” फिर उसने मुझे धमकाते हुए कहा, “क्या तुम किसी को बचाने की कोशिश कर रही हो? क्या तुम्हारे माता-पिता भी परमेश्वर में विश्वास करते हैं? तुम्हारे साथ गिरफ्तार किए गए लोगों ने हमें तुम्हारे बारे में सब कुछ बता दिया है। हमें तुम्हारे बारे में सब कुछ पता है। मैं तुम्हें यहाँ सब कुछ सच-सच बताने का मौका दे रहा हूँ। अगर तुम हमें कुछ नहीं बताती हो तो जेल में तुम्हारे लिए सब कुछ उतना आसान नहीं होगा। वे तुम्हें तेज मिर्च वाला पानी पीने के लिए मजबूर करेंगे, तुम्हारी उंगलियों को बाँस की छड़ियों से जकड़ेंगे, तुम्हारे नाखूनों के नीचे सुइयाँ डालेंगे, तुम्हारे कानों में बाँस की कटारें डालेंगे और दूसरे कैदियों से कहेंगे कि वे तुम्हें परेशान करें। यह जीते जी नरक भोगने जैसा होगा!” उनके वर्णन ने मेरे जहन में सिहरन पैदा कर दी और मैं बहुत ज्यादा भयभीत हो गई। मैंने मन में सोचा, “क्या उन्होंने वाकई मुझे फँसा दिया है? अगर पुलिस वाकई मेरे कानों में बाँस की कटार डाल दे तो क्या मैं बहरी नहीं हो जाऊँगी? बाँस की छड़ियों से मेरी उंगलियों को दबाना, मेरे नाखूनों के नीचे सुइयाँ चुभाना—उंगलियाँ वाकई संवेदनशील होती हैं, यह बहुत ज्यादा दर्दनाक होगा! अगर उन्होंने मुझे जेल में डाला और प्रताड़ित किया तो क्या मुझ जैसी दुबली-पतली छोटी लड़की वाकई यह सब सह पाएगी? या मैं वहाँ मर जाऊँगी? मैं सिर्फ 20 साल की हूँ और मेरा जीवन अभी शुरू हो ही रहा है। मैं अभी मरना नहीं चाहती! शायद मैं उनकी माँगें पूरी करने के लिए उन्हें कुछ मामूली बात बता सकती हूँ।” इस बिंदु पर मुझे असहज महसूस हुआ और मेरा दिल साफ जानता था, “गिरफ्तार होना और सताया जाना मेरे लिए एक परीक्षा है। अगर मैं उन्हें थोड़ा सा बता दूँ तो वे निश्चित रूप से और भी सवाल पूछेंगे। अगर वे मेरी जैसी छोटी सी लड़की के साथ इतने क्रूर हैं तो न जाने वे मेरे भाई-बहनों के साथ कितने क्रूर होंगे! मैं अपनी अंतरात्मा को धोखा नहीं दे सकती और केवल अपने बारे में नहीं सोच सकती। मैं शैतान की अनुचर बनकर परमेश्वर को धोखा नहीं दे सकती। चाहे अन्य भाई-बहनों ने मुझे धोखा दिया हो या नहीं, मुझे दृढ़ रहना चाहिए। भले ही इसका मतलब जेल जाना और प्रताड़ित होना हो, मैं परमेश्वर को धोखा नहीं दे सकती।”
उसके बाद चाहे उन्होंने मुझसे कैसे भी पूछताछ की हो, मैंने हमेशा यही कहा कि मुझे नहीं पता। एक अधिकारी इतना गुस्सा हो गया कि उसने मेज पटक दी और चिल्लाया, “मुझे लगता है कि हमें इसके लिए कठोर तरीका अपनाना होगा!” फिर दूसरे अधिकारी ने मुझे हथकड़ी पहनाई, मेरे बाल पकड़े और जोर से पीछे खींचा। फिर तीन या चार अन्य अधिकारी मेरे पास आए और मुझे घूँसे और लात मारने लगे। उन्होंने खास तौर पर मेरी पिंडलियों पर लात मारी और मेरे सिर, पेट और पीठ के निचले हिस्से पर घूँसे मारे। एक अधिकारी ने मुझे पेट पर इतनी जोर से घूँसा मारा कि मैं कमरे के कोने में दोहरी होकर गिर गई और रोना शुरू कर दिया। एक अधिकारी ने मुझसे पूछा, “तो क्या तुम अब बोलोगी?” मैंने उसे घूर कर देखा। दूसरे अधिकारी ने मुझे कॉलर से पकड़ा, मेरे सिर को दीवार और धातु की अलमारी पर दे मारा और मेरी गर्दन को जोर से दबाया। यह इतना दर्दनाक था कि मैं साँस भी नहीं ले पा रही थी। जब मुझे लगा कि मैं मरने ही वाली हूँ, तभी बगल में बैठे अधिकारी ने उसे रुकने के लिए कहा। मैं फर्श पर गिर पड़ी और हांफने लगी। मैंने सोचा कि कैसे पुलिस हमारे समाज में बुरे लोगों के पीछे पड़ने की हिम्मत नहीं करती, लेकिन जब हम विश्वासियों की बात आती है तो वे बेशर्मी से हमें प्रताड़ित करते हैं, पीटते हैं और यहाँ तक कि मार भी डालते हैं। मैंने अपने मन में दुहाई दी, “क्या इस दुनिया में कोई न्याय है? वे खुद को ‘लोगों की पुलिस’ कैसे कहते हैं?” तभी, मुझे परमेश्वर के वचनों का एक भजन याद आया जिसका शीर्षक था “अंधेरे में हैं जो उन्हें ऊपर उठना चाहिये” :
1 हजारों सालों से यह मलिनता की भूमि रही है। यह असहनीय रूप से गंदी और असीम दुःखों से भरी हुई है, चालें चलते और धोखा देते हुए, निराधार आरोप लगाते हुए, क्रूर और दुष्ट बनकर इस भुतहा शहर को कुचलते हुए और लाशों से पाटते हुए प्रेत यहाँ हर जगह बेकाबू दौड़ते हैं; सड़ांध ज़मीन पर छाकर हवा में व्याप्त हो गई है, और इस पर जबर्दस्त पहरेदारी है। आसमान से परे की दुनिया कौन देख सकता है? ऐसे भुतहा शहर के लोग परमेश्वर को कैसे देख सके होंगे? क्या उन्होंने कभी परमेश्वर की प्रियता और मनोहरता का आनंद लिया है? उन्हें मानव-जगत के मामलों की क्या कद्र है? उनमें से कौन परमेश्वर के उत्कट इरादों को समझ सकता है?
2 परमेश्वर के कार्य में ऐसी अभेद्य बाधा क्यों खड़ी की जाए? परमेश्वर के लोगों को धोखा देने के लिए विभिन्न चालें क्यों चली जाएँ? वास्तविक स्वतंत्रता और वैध अधिकार एवं हित कहाँ हैं? निष्पक्षता कहाँ है? आराम कहाँ है? गर्मजोशी कहाँ है? परमेश्वर के लोगों को छलने के लिए धोखे भरी योजनाओं का उपयोग क्यों किया जाए? परमेश्वर के कार्य को क्यों दबाना? क्यों परमेश्वर को इस हद तक खदेड़ा जाए कि उसके पास आराम से सिर रखने के लिए जगह भी न रहे? तुम लोग परमेश्वर के आगमन को अस्वीकार क्यों कर देते हो? तुम लोग इतने निर्लज्ज क्यों हो? क्या तुम लोग ऐसे अंधकारपूर्ण समाज में अन्याय सहन करना चाहते हो?
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—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8)
अतीत में मुझे CCP के बारे में कोई समझ नहीं थी। CCP ने अपनी पाठ्यपुस्तकों में धर्म की स्वतंत्रता का समर्थन करने का दावा किया था और इसलिए मैं बिना कोई सवाल उठाए उन पर विश्वास करती थी, यहाँ तक कि उनकी प्रशंसा भी करती थी। CCP द्वारा सताए जाने के बाद ही मैंने देखा कि वे असल में क्या हैं। CCP धार्मिक स्वतंत्रता के समर्थन का दावा करती है, ताकि वे लोगों को धोखा दे सकें, लेकिन वास्तव में वे परमेश्वर का बेतहाशा विरोध कर रहे हैं और ईसाइयों को सता रहे हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर सत्य व्यक्त करने और शैतान की भ्रष्टता और पीड़ा से, शैतान के अंधेरे प्रभाव से मानवजाति को बचाने आया है और हमें जीवन में सही मार्ग पर ले जाने के लिए मार्गदर्शन करता है। यह एक अद्भुत बात है, लेकिन CCP हमें सताती है और अधिकारियों को खासकर परमेश्वर में विश्वास करने वालों को गिरफ्तार करने और उन पर अत्याचार करने का आदेश देती है। CCP वाकई बुरी है! यह परमेश्वर से घृणा करने वाला, परमेश्वर का प्रतिरोध करने वाला राक्षस है!
फिर उन्होंने मुझे आधे घंटे तक हथकड़ी से बाँधे रखा, मेरे दाहिने हाथ को मेरे कंधे पर मोड़ दिया और पीछे से मेरे बाएं हाथ को ऊपर खींचकर या तो मुझे उकडूँ रखा या मुझे घुटनों के बल झुकाया। जब मैंने घुटने नहीं टेके तो दो अधिकारियों ने मेरी बाँहें पकड़ लीं और तीसरे अधिकारी ने अपने घुटने से मेरा पैर मोड़ दिया, जिससे मुझे घुटने टेकने पर मजबूर होना पड़ा। मुझे इतना प्रताड़ित किया गया कि मैं थककर चूर हो गई और दीवार की ओर मुँह करके जमीन पर घुटनों के बल बैठ गई। मैंने सोचा कि अगर उन्हें मुझसे कलीसिया के बारे में कुछ जानकारी नहीं मिली तो वे मुझे आसानी से जाने नहीं देंगे। मुझे यहाँ अभी दो ही घंटे हुए थे और मुझे इस हद तक प्रताड़ित किया जा चुका था कि अब तक मेरा शरीर बुरी तरह थक चुका था और उसमें दर्द था। मैंने सोचा कि मेरे लिए अभी और कितनी यातनाएँ बाकी हैं और क्या मैं इसे सह पाऊँगी। मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मैं एक छोटा सा मेमना हूँ जो अचानक भेड़ियों के झुंड में फँस गया हो और किसी भी समय उसे निगला जा सकता है। मैं बहुत परेशान और भयभीत थी। मैंने लगातार अपने दिल में परमेश्वर से प्रार्थना की, “प्रिय परमेश्वर, मुझे अपने दिल में बहुत कमजोरी महसूस हो रही है। मुझे नहीं पता कि मैं और कितनी देर तक टिक पाऊँगी। हे परमेश्वर, यह स्थिति तुम्हारी अनुमति से आई है, लेकिन मैं समझ नहीं पा रही हूँ कि तुम्हारा इरादा क्या है। मुझे राह दिखाओ।” तभी परमेश्वर के वचनों की एक पंक्ति मेरे मन में आई : “केवल अपनी आस्था के भीतर से ही तुम परमेश्वर को देखने में समर्थ हो पाओगे, और जब तुम्हारे पास आस्था होगी तो परमेश्वर तुम्हें पूर्ण बनाएगा” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा)। अचानक मुझे सब कुछ स्पष्ट हो गया। परमेश्वर को उम्मीद थी कि मैं उत्पीड़न और कठिनाई का सामना करते हुए भी उस पर अपनी आस्था बनाए रखूँगी। मैंने अपने मन में “परीक्षण माँग करते हैं आस्था की” भजन गाया :
1 परीक्षणों से गुजरते समय लोगों का कमजोर होना, या उनके भीतर नकारात्मकता आना, या परमेश्वर के इरादों या अपने अभ्यास के मार्ग के बारे में स्पष्टता का अभाव होना सामान्य है। चाहे जो हो, तुम्हें परमेश्वर के कार्य पर आस्था होनी चाहिए, परमेश्वर को नकारना नहीं चाहिए, बिल्कुल अय्यूब की तरह। यद्यपि अय्यूब कमजोर था और अपने जन्म के दिन को धिक्कारता था, फिर भी उसने इस बात से इनकार नहीं किया कि मनुष्य के जीवन में सभी चीजें यहोवा द्वारा प्रदान की गई हैं, और यहोवा ही उन सबको वापस लेने वाला है। उसे चाहे जिन परीक्षणों से गुजारा गया, उसने यह विश्वास बनाए रखा।
2 अपने अनुभव में, तुम चाहे परमेश्वर के वचनों के द्वारा जिस भी शोधन से गुजरो, परमेश्वर को मानवजाति से जिस चीज की अपेक्षा है, संक्षेप में, वह है परमेश्वर पर उनकी आस्था और उनका परमेश्वर-प्रेमी हृदय। इस तरह से कार्य करके जिस चीज को वह पूर्ण बनाता है, वह है लोगों का विश्वास, प्रेम और अभिलाषाएँ। परमेश्वर लोगों पर पूर्णता का कार्य करता है, और वे इसे देख नहीं सकते, महसूस नहीं कर सकते; इन परिस्थितियों में तुम्हारा विश्वास आवश्यक होता है। लोगों का विश्वास तब आवश्यक होता है, जब कोई चीज खुली आँखों से न देखी जा सकती हो, और तुम्हारा विश्वास तब आवश्यक होता है, जब तुम अपनी धारणाएँ नहीं छोड़ पाते। जब तुम परमेश्वर के कार्य के बारे में स्पष्ट नहीं होते, तो तुमसे यही अपेक्षा की जाती है कि तुम आस्था बनाए रखो, दृढ़ रुख अपनाए रखो और अपनी गवाही में मजबूती से खड़े रहो। जब अय्यूब इस मुकाम पर पहुँचा, तो परमेश्वर उसे दिखाई दिया और उससे बोला। अर्थात्, केवल अपनी आस्था के भीतर से ही तुम परमेश्वर को देखने में समर्थ हो पाओगे, और जब तुम्हारे पास आस्था होगी तो परमेश्वर तुम्हें पूर्ण बनाएगा।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा
चुपचाप मन में भजन गाने के बाद मेरे चेहरे पर आँसू बहने लगे। मैंने सोचा कि कैसे अय्यूब अपने परीक्षण से गुजरा, अपने बच्चे और अपनी सारी संपत्ति गँवा दी और उसकी पूरी देह पर फोड़े निकल आए और उसने बहुत ज्यादा दैहिक और भावनात्मक पीड़ा अनुभव की। इस परीक्षा का सामना करते समय अय्यूब को पहले परमेश्वर के इरादे के बारे में स्पष्टता नहीं थी और वह बहुत ज्यादा व्यथित और परेशान महसूस करता था लेकिन उसका दिल परमेश्वर का भय मानने वाला था। उसने न तो चोरों का पीछा किया और न ही शिकायत की। वह सबसे पहले परमेश्वर के सामने आया, प्रार्थना की और उसे खोजा। आखिरकार उसने कहा : “यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है” (अय्यूब 1:21), उसने शानदार गवाही दी। इसके जरिए मुझे परमेश्वर के इरादे का एहसास हुआ। परमेश्वर इन परिस्थितियों का इस्तेमाल मेरी आस्था पूर्ण बनाने के लिए कर रहा है। मुझे अय्यूब की कहानी से सीखना चाहिए और परमेश्वर पर आस्था रखनी चाहिए, परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए और अपनी गवाही में दृढ़ रहने के लिए उस पर भरोसा करना चाहिए।
मुझे 10 मिनट तक घुटनों के बल बैठाने के बाद पुलिसवाले ने मुझे खड़ा होने का आदेश दिया। एक लंबे अधिकारी ने मेरे बाल पकड़े और मेरा सिर ऊपर खींचा ताकि सिर्फ मेरे पैर की उँगलियाँ जमीन से टिकी रह पाएँ। मुझे इतना दर्द हुआ मानो मेरी खोपड़ी मेरे सिर से उखड़ हो गई हो। फिर उसने अपने जूतों से मेरे बाएँ पैर की उँगलियों को पीसना और कुचलना शुरू कर दिया और अपना सारा वजन मेरे पैरों के तलवों पर डालते हुए खड़ा हो गया। मुझे इतना दर्द हुआ कि मुझे लगा कि मेरे पैरों की हड्डियाँ टूट जाएँगी और मैंने उसे दूर धकेल दिया। उसने देखा कि मुझे कितना दर्द हो रहा है और इसलिए वह फिर मेरे पैरों के तलवों पर खड़ा हो गया। मेरे पैर काँपने लगे और मैं अपने आप नीचे झुक गई, लेकिन उसने मुझे वापस ऊपर खींच लिया, मेरे हाथों को दीवार से सटा दिया और मेरे पैरों पर खड़ा रहा। तब मुझे पहली बार लगा कि मैं इस दर्द को सहने के बजाय मर जाना पसंद करूँगी। जब मेरे बाएँ पैर से एक भंगुर चटकने वाली आवाज आई, तभी वह रुका। मुझे लगा कि मेरे पैर की हड्डियाँ टूट गई हैं, लेकिन असल में सब ठीक था। मुझे पता था कि परमेश्वर मेरी देखभाल और रक्षा कर रहा है। मैंने दिल से परमेश्वर का धन्यवाद किया। फिर लगभग 20 साल का एक अधिकारी अंदर आया और मुझसे मोहक अंदाज से पूछा, “तुम्हारी उम्र कितनी है? क्या तुम्हारा कोई बॉयफ्रेंड है? अगर तुम बात नहीं करना चाहती तो कोई बात नहीं। लेकिन जितनी जल्दी तुम बोलोगी, उतनी जल्दी हम तुम्हें जाने देंगे। और रात को मैं तुमसे मिलने आऊँगा।” फिर वह मेरे पास आया और बोला, “तुम्हें क्या लगता है एक लड़का और लड़की खाली कमरे में अकेले कैसी हरकतें करेंगे?” उसने मुझसे और भी बहुत सारी गंदी और भद्दी बातें कहीं। तभी एक महिला अधिकारी आई और कुटिल मुस्कान के साथ बोली, “अगर वह नहीं बोलती है तो बस उसके सारे कपड़े फाड़ दो और उसे भीड़ भरे चौराहे पर नंगा खड़ा कर दो और उसके गले में एक तख्ती लटका दो ताकि हर कोई उसे देख सके। फिर उसकी नंगी तस्वीरें ऑनलाइन पोस्ट करो और देखो कि क्या फिर कभी बाहर निकलने की हिम्मत करती है। वह जिंदगीभर शर्मिंदा रहेगी!” यह बोलते हुए उसने मेरी हथकड़ी खोल दी और मेरा डाउन कोट उतारना शुरू कर दिया। मैं बहुत डर गई थी। मुझे लगा कि एक महिला होने के नाते शायद उसे मुझसे कुछ सहानुभूति होगी, लेकिन वह पुरुष अधिकारियों की तरह ही बुरी निकली। एक और पुरुष अधिकारी ने मेरी कमर पर अपना हाथ मलना शुरू कर दिया और कहा, “तुम्हारा जिस्म बहुत सुंदर है।” बाकी सभी अधिकारी भद्दे ढंग से हँसने लगे। उनकी हँसी की आवाज ऐसी लग रही थी मानो सीधे नरक से आ रही हो। मैं इतनी डर गई थी कि मैं लगभग रोते हुए सोचने लगी, “ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह अधिकारी नहीं कर सकते। अगर उन्होंने वाकई मेरे सारे कपड़े उतार दिए तो मैं इतनी शर्मिंदगी में कैसे जीऊँगी? इस तरह बेइज्जत होकर जीने से तो मर जाना ही बेहतर है।” मैंने देखा कि मेज के सामने खिड़की पर कोई रेलिंग नहीं है और मैंने उससे कूदने के बारे में सोचा। जब उन्होंने देखा कि मैं बाहर कूदने के बारे में सोच रही हूँ तो उन्होंने खिड़की बंद कर दी और इसलिए मैंने पूरी ताकत से अपना सिर दीवार पर दे मारा। एक अधिकारी ने मुझे दीवार से सटा दिया ताकि मैं हिल न सकूँ। वह गुस्से से चिल्लाया, “तुम मरना चाहती हो? हम तुम्हें इतनी आसानी से नहीं छोड़ सकते! मैं तुम्हारी जिंदगी नरक बना दूँगा!” मैं मरना चाहती थी, लेकिन उन्होंने मुझे मरने नहीं दिया। मैं बहुत पीड़ा में थी। तभी परमेश्वर का एक भजन “तुम्हारी पीड़ा जितनी भी हो ज़्यादा, परमेश्वर को प्रेम करने का करो प्रयास” मेरे मन में आया : “इन अंत के दिनों में तुम लोगों को परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए। चाहे तुम्हारे कष्ट कितने भी बड़े क्यों न हों, तुम्हें बिल्कुल अंत तक चलना चाहिए, यहाँ तक कि अपनी अंतिम साँस पर भी तुम्हें परमेश्वर के प्रति निष्ठावान और उसके आयोजनों के प्रति समर्पित होना चाहिए; केवल यही वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करना है, और केवल यही सशक्त और जोरदार गवाही है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो)। मैं परमेश्वर का इरादा समझ गई। परमेश्वर चाहता था कि मैं उसकी गवाही देने के लिए जीवित रहूँ। थोड़ा सा कष्ट सहते ही मरने की इच्छा रखना परमेश्वर से प्रेम करने वाले व्यक्ति का व्यवहार नहीं है। यह एक कायर, निकम्मे व्यक्ति का व्यवहार है। मुझे जीना था! अगर उन्होंने वाकई मेरे सारे कपड़े उतार दिए और मेरी नुमाइश की तो यह ईसाइयों के उत्पीड़न का सबूत होगा। यह सोचने के बाद मैं अब मरना नहीं चाहती थी। फिर शी उपनाम वाले एक अधिकारी ने मुझे वासना भरी नजरों से देखा और कहा, “तुम देखने में बहुत सुंदर हो। बस 20 साल की हो, है न? तुम्हारा अभी तक कोई बॉयफ्रेंड नहीं है? मैं देखना चाहता हूँ कि क्या तुम अभी तक कुंवारी हो।” यह कहते ही वह मेरे पास आया और मेरे चेहरे और ठोड़ी को छूते हुए मेरे साथ चिपकने लगा। मैं डर गई और उसे दूर धकेल दिया। वह पीछे की ओर लड़खड़ा गया और मेज के कोने से टकराया और फिर गुस्से में मेरी ओर झपटा और मेरे हाथों को दीवार से चिपका दिया। उसने मेरे पूरे चेहरे और गर्दन को चूमा। मैं इतनी परेशान हो गई कि चिल्ला पड़ी। यह देखकर कुछ अधिकारी जोर से हँसने लगे। खुद को अपमानित होने से बचाने के लिए मैंने उसे लात मारी और उसे अपने पास नहीं आने दिया। एक अन्य अधिकारी ने अपने कैमरे से मेरी तस्वीरें लेनी शुरू कर दीं। उसने कहा, “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई एक अधिकारी को मारने की!” उसने मुझे बहुत क्रोधित कर दिया। वे सभी मुझ पर हमला कर रहे थे, लेकिन उन्होंने मुझ पर उन्हें मारने का आरोप लगाने की कोशिश की? क्या वे सत्य पलट नहीं रहे थे? लेकिन मैंने यह भी सोचा, “अगर मैं मुकाबला करती हूँ और वे तस्वीर लेते हैं तो वे तस्वीर को ऑनलाइन पोस्ट कर सकते हैं और इसका इस्तेमाल कलीसिया को बदनाम करने और फँसाने के लिए कर सकते हैं। क्या इससे परमेश्वर का अपमान नहीं होगा?” मैं नहीं चाहती थी कि वे कलीसिया पर कुछ भी करें, इसलिए मैंने आँसू रोक लिए और चुपचाप उनका चिढ़ाना सहती रही। आखिरकार उन्हें वह तस्वीर नहीं मिली जो वे चाहते थे और इसलिए वे चले गए।
अधिकारी शी ने एक अन्य पुरुष अधिकारी से मुझे हथकड़ी पहनाई और मेरी बाँहों को दीवार पर चिपका दिया। उसने मेरे पैरों पर पैर रखा, मेरे डाउन कोट की जिप खोली और मेरी पूरी पीठ और कमर पर हाथ फेरना शुरू कर दिया। मेरे हाथ और पैर पूरी तरह से जकड़े हुए थे, इसलिए मेरे पास मुकाबला करने का कोई रास्ता नहीं था। मैं इतनी परेशान हो गई कि रोने लगी। आखिरकार जब अधिकारी शी की गर्लफ्रेंड आई, तभी उसने मुझे छोड़ा। थोड़ी देर बाद अधिकारी शी वापस आया और मुझ पर इस तरह झपट पड़ा जैसे उस पर भूत सवार हो गया हो। उस समय कमरे में कोई और नहीं था। उसने मेरे पैरों को कसकर एक साथ जकड़ लिया और मुझे अपनी बाँहों में लपेट लिया, मुझे हर जगह छूने लगा। उसने मेरी पैंट भी उतार दी। मैं बहुत डर गई थी और मैंने अपनी कमरबंद को कसकर पकड़ रखा था। उसने मेरे चेहरे पर बेरहमी से थप्पड़ मारे और मैं चिल्ला पड़ी। उसने मेरे मुँह और नाक पर हाथ रख दिया। मैं साँस नहीं ले पा रही थी और जितना अधिक संघर्ष कर रही थी, मैं उतनी ही कमजोर होती जा रही थी। मैंने टीवी पर बलात्कारियों को पीड़ितों के साथ ठीक इसी तरह पेश आते देखा था। मैं बहुत डरी हुई थी और उम्मीद छोड़ दी थी। गुस्से और हताशा में अधिकारी शी चिल्लाया, “चीखो! जितनी जोर से चीख सकती हो! देखते हैं तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें बचाने आता है या नहीं!” उसकी बेशर्मी और बुराई ने मुझे बेहद गुस्सा कर दिया था। मैंने जल्दी से परमेश्वर से प्रार्थना की, “प्रिय परमेश्वर, मैं शैतान द्वारा कुचला जाना नहीं चाहती। मुझे बचा लो, मुझे बचा लो!” जब मैं परमेश्वर से तत्काल विनती कर रही थी, अधिकारी शी ने मेरी नाक और मुँह पर से अपनी पकड़ ढीली कर दी और मैंने एक गहरी साँस ली। मैं तुरंत चीख पड़ी और इसे सुनकर बगल के कमरे में बैठे कई अधिकारी वहाँ आ गए। तभी उसने मुझे छोड़ा। मैं फर्श पर गिर पड़ी, जो कुछ हुआ था उसके बारे में सोचने लगी। अगर परमेश्वर की सुरक्षा न होती तो मेरा बलात्कार हो जाता। मैंने अपने दिल में परमेश्वर का धन्यवाद किया।
उस दिन दोपहर के वक्त सात या आठ अधिकारी आए। जब मैंने उनका सहयोग नहीं किया तो स्टेशन प्रमुख मेरे पास आया और उसने मेरी गर्दन पर चुटकी काटते हुए मेरा कान मरोड़ दिया। इससे बहुत दर्द हुआ और मैं नीचे झुक गई। वह मुझ पर हँसते हुए बोला, “कछुए की तरह अपना सिर अंदर छिपा रही हो, है न?” बाकी लोग भी मेरा मजाक उड़ाने लगे। उन्होंने मुझे घेर लिया और मुझे गेंद की तरह इधर-उधर धकेलने लगे। दो अधिकारियों ने तो मौके का फायदा उठाकर मेरी छाती और कमर पर चुटकी भी काटी। वे बहुत ही बर्बर लोग थे! मैंने गुस्से से अपने दाँत भींच लिए और मुकाबला करना चाहा! अगर मेरे साथ यह सब नहीं हुआ होता मैं कभी विश्वास नहीं करती कि यह वही “लोगों की पुलिस” है जिसके बारे में हमारी पाठ्यपुस्तकों और टेलीविजन शो में दावा किया जाता है कि यह “लोगों की सेवा करती है” और “न्याय के लिए लड़ती है।” मैं और बर्दाश्त नहीं कर पाई और मैंने उन पर चिल्लाते हुए कहा, “क्या असली मर्द एक छोटी सी लड़की को परेशान करते हैं?” मेरे ऐसा कहते ही वे चले गए। थोड़ी देर बाद एक पुलिस अधिकारी ने मेरी कनपटी पर बंदूक तान दी और मुझे धमकाते हुए कहा, “मैं तुम्हें अभी गोली मार सकता हूँ! जब हम तुम विश्वासियों को पकड़ते हैं तो हम तुम्हें बिना फिक्र के मार सकते हैं। हम तुम्हें तुरंत गोली मार सकते हैं। जब तुम मर जाओगी तो हम तुम्हें बाहर ले जाकर दफना देंगे! अगर तुम आखिरी बार कुछ कहना चाहती हो तो अभी बोल दो!” यह कहते-कहते उसने बंदूक में गोली भर दी। जब मैंने देखा कि वह मजाक नहीं कर रहा है तो डर के मारे मेरे पैर जम गए। मैंने मन में सोचा, “क्या मेरी जिंदगी इतनी कम उम्र में खत्म हो रही है? मैं बहुत भाग्यशाली हूँ कि परमेश्वर से मिली हूँ, जो मानवजाति को बचाने आया है लेकिन अब मैं राज्य के सुसमाचार का नजारा पूरे ब्रह्मांड में फैलते हुए देखने से पहले ही मरने जा रही हूँ और अपना भ्रष्ट स्वभाव बदलने से पहले ही मरने वाली हूँ? इसे स्वीकारना मुश्किल है।” तभी मैंने सोचा कि प्रभु यीशु ने क्या कहा था : “जो शरीर को घात करते हैं, पर आत्मा को घात नहीं कर सकते, उनसे मत डरना; पर उसी से डरो, जो आत्मा और शरीर दोनों को नरक में नष्ट कर सकता है” (मत्ती 10:28)। बड़ा लाल अजगर केवल मेरी देह को तबाह और प्रताड़ित कर सकता है, लेकिन यह मेरी आत्मा नष्ट नहीं कर सकता। यह सिर्फ एक कागजी शेर है। ऊपर से देखने पर यह डरावना लगता है, लेकिन चाहे यह कितना भी उन्मादी क्यों न हो जाए, यह हमेशा परमेश्वर के हाथों में है। यह परमेश्वर की अनुमति के बिना मेरे साथ कुछ भी करने की हिम्मत नहीं कर सकता। मैंने सोचा कि कैसे पतरस को परमेश्वर से प्यार करने की चाह में सूली पर उल्टा लटकाया गया था। जब उसे सूली पर चढ़ाया गया तो उसने परमेश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा : “हे परमेश्वर! अब तेरा समय आ गया है, तूने मेरे लिए जो समय तय किया था वह आ गया है। मुझे तेरे लिए क्रूस पर चढ़ना चाहिए, मुझे तेरे लिए यह गवाही देनी चाहिए, मुझे उम्मीद है मेरा प्रेम तेरी अपेक्षाओं को संतुष्ट करेगा, और यह और ज्यादा शुद्ध बन सकेगा। आज, तेरे लिए मरने में सक्षम होने और क्रूस पर चढ़ने से मुझे तसल्ली मिल रही है और मैं आश्वस्त हो रहा हूँ, क्योंकि तेरे लिए क्रूस पर चढ़ने में सक्षम होने और तेरी इच्छाओं को संतुष्ट करने, स्वयं को तुझे सौंपने और अपने जीवन को तेरे लिए अर्पित करने में सक्षम होने से बढ़कर कोई और बात मुझे तृप्त नहीं कर सकती” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान)। पतरस की प्रार्थना मेरे लिए बहुत ही रोशन करने वाली थी। मुझे परमेश्वर बहुत करीब महसूस हुआ और अब मुझे मरने का डर नहीं रहा। मैंने सोचा कि जब से मैं गिरफ्तार हुई हूँ, तब से कैसे परमेश्वर मेरी रक्षा कर रहा है और कैसे जब शैतान मुझे लुभा रहा था तो परमेश्वर के वचनों ने उसकी साजिश की असलियत जानने में मेरी मदद की। जब मैं कमजोर पड़ गई तो उसने मुझे आस्था और शक्ति दी और जब मैं खतरे में थी तो परमेश्वर ने मेरी रक्षा की ताकि मैं शैतान के द्वारा कुचली न जाऊँ। पतरस परमेश्वर के सामने समर्पण कर पाया था और उसे सूली पर उल्टा लटकाया गया था। मेरे पास पतरस जैसा आध्यात्मिक कद नहीं था, लेकिन मैं उसे आदर्श मानने के लिए तैयार थी। आज परमेश्वर के लिए मरना मेरे लिए सम्मान की बात होगी। मैं परमेश्वर के प्रेम से बहुत प्रभावित हुई और मन ही मन परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मैं तुम्हारी बहुत आभारी हूँ। अपने जीवन में मैंने कभी भी ईमानदारी से सत्य का अनुसरण नहीं किया या तुमसे प्रेम करने की कोशिश नहीं की। अगर मुझे कभी अगला जीवन मिला तो भी मैं तुम पर विश्वास करूँगी, तुम्हारा अनुसरण करूँगी और तुम्हारे प्रेम का बदला चुकाऊँगी!” कुछ अधिकारियों ने मुझे रोते हुए देखकर सोचा कि मैं डर गई हूँ, उन्होंने कहा, “तुम्हारे पास यही आखिरी मौका है। अगर तुम्हें कुछ कहना है तो अभी बोल दो!” मैंने कहा, “हर कोई आखिरकार मरता ही है। मैं इसलिए मर रही हूँ क्योंकि मुझे धार्मिकता के लिए सताया जा रहा है, इसलिए मुझे कोई पछतावा नहीं है।” ऐसा कहने के बाद मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं और बंदूक चलने का इंतजार करने लगी। अधिकारी को इतना गुस्सा आया कि उसका हाथ काँपने लगा और उसने कहा, “तुम्हारी इच्छा ही मेरा आदेश है!” उसने मुझे अपना सिर एक तरफ घुमाने को कहा, फिर मेरी कनपटी पर बंदूक तानकर और कुछ गोलियाँ चलाईं, लेकिन किसी तरह मैं नहीं मरी। तब मुझे एहसास हुआ कि उसने गोली निकाल ली थी। एक अन्य अधिकारी ने अपने हाथ मेज पर पटकते हुए कहा, “क्या तुम खुद को हीरो समझती हो? हम तुम्हारे साथ चाहे जो भी करें, तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता!” उन्होंने मेरी कनपटी को पकड़ा और मेरे सिर पर बंदूक से वार करते हुए कहा, “चलो रोओ! तुम रो क्यों नहीं रही हो?” मुझे एक भजन याद आया जिसमें कहा गया है : “यद्यपि हमारे सिर धड़ से अलग हो सकते हैं और हमारा खून बह सकता है, लेकिन परमेश्वर के लोगों की रीढ़ की हड्डी झुक नहीं सकती।” पहले जब मुझे उनकी यातनाओं और धमकियों का सामना करना पड़ता था तो मैं उनकी सहानुभूति पाने के लिए बस रोती रहती थी। मुझे परमेश्वर पर जरा भी आस्था नहीं थी। मैं शैतान के सामने गिड़गिड़ा रही थी और मुझमें दृढ़ संकल्प की कमी थी। मैं अपनी कायरता के साथ परमेश्वर को और अपमानित नहीं कर सकती थी। इसलिए मैंने अपने आँसू पोंछे, अपनी मुट्ठियाँ भींचीं और शैतान से खूनी अंत तक लड़ने का संकल्प लिया! मैंने अपने मन में भजन गाया “परमेश्वर के महिमा दिवस को देखना मेरी अभिलाषा है” : “अपने हृदय में परमेश्वर के उपदेशों के साथ, मैं कभी भी शैतान के सामने घुटने नहीं टेकूंगा। यद्यपि हमारे सिर धड़ से अलग हो सकते हैं और हमारा खून बह सकता है, लेकिन परमेश्वर के लोगों की रीढ़ की हड्डी झुक नहीं सकती। मैं परमेश्वर के लिए शानदार गवाही दूँगा, और राक्षसों और शैतान को अपमानित करूँगा। पीड़ा और कठिनाइयाँ परमेश्वर द्वारा पूर्वनिर्धारित हैं, और मैं मृत्युपर्यंत उसके प्रति वफादार और समर्पित रहूँगा। मैं फिर कभी परमेश्वर के रोने या चिंता करने का कारण नहीं बनूँगा। मैं अपना प्यार और अपनी निष्ठा परमेश्वर को अर्पित कर दूँगा और उसे महिमान्वित करने के अपने लक्ष्य को पूरा करूँगा” (मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ)।
कुछ अधिकारियों ने मुझे अपनी मुट्ठियाँ कसते हुए देखा और वे गुस्से से उबल पड़े, और बोले, “वह खच्चर से भी ज्यादा जिद्दी है!” पुलिस को निराश और विकल्पहीन देखकर मैं जान गई थी कि राक्षसों और शैतानों की यह भीड़ अपमानित और पराजित हो गई है। मैं वाकई समझ गई कि परमेश्वर के कहने का क्या मतलब था : “जब लोग अपने जीवन का त्याग करने के लिए तैयार होते हैं, तो हर चीज तुच्छ हो जाती है, और कोई उन्हें हरा नहीं सकता। जीवन से अधिक महत्वपूर्ण क्या हो सकता है? इस प्रकार, शैतान लोगों में आगे कुछ करने में असमर्थ हो जाता है, वह मनुष्य के साथ कुछ भी नहीं कर सकता” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 36)। मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी उसको मृत्यु का भय होना है। शैतानी राक्षस मेरी कमजोरी जानता था और उसने इसका इस्तेमाल मुझे धमकाने के लिए किया और मुझे परमेश्वर पर विश्वास करने और उसका अनुसरण करने से रोका। लेकिन परमेश्वर की बुद्धि शैतान की साजिशों के आधार पर काम करती है। जब मैंने अपना जीवन परमेश्वर को सौंप दिया, शैतान शक्तिहीन हो गया, वह विफल हो गया और अपमानित हुआ।
दोपहर को कुछ अधिकारी खाना खाने के लिए चले गए और तीन मेरी निगरानी करने के लिए रुके रहे। एक अधिकारी मेरे पास आया और नकली मुस्कान दिखाते हुए मुझसे पूछने लगा, “तुम रोती क्यों नहीं?” मैंने कहा, “मेरे पास रोने के लिए कोई वजह नहीं है।” उसने कहा, “अगर तुम नहीं रोई तो हम तुम्हें रोने की कुछ वजह देंगे!” यह बोलते हुए उसने एक काली बोतल उठाई। उसने जबरन मेरी आँखें खोली और मेरे मुँह और आँखों में रसायन छिड़क दिया, जबकि दूसरे अधिकारी ने मेरी बाँहें और सिर जकड़ लिया। तुरंत मेरी आँखें जलने लगीं और आँसू बहने लगा और मैं उन्हें रोक नहीं पाई। रसायन से मेरे गालों पर बहुत दर्द हुआ और रसायन निगलने से मेरे गले में भी बहुत दर्द हुआ। इससे मुझे इतना दर्द हुआ कि मैं बोल तक नहीं पा रही थी और मुझे बार-बार थूकना पड़ रहा था। उसने मुझे धमकाते हुए कहा कि यह एक तरह का जहर है और मैं आधे घंटे में मर जाऊँगी। तीसरे अधिकारी ने मुझे हथकड़ी लगाई और दूसरे कमरे में ले गया। तब तक मैंने अपनी आँखें थोड़ी सी खोल ली थीं और इसलिए उन्होंने मुझ पर और रसायन छिड़क दिया। फिर उन्होंने मुझे उन दूसरे भाई-बहनों के साथ हथकड़ी लगा दी, जिनके साथ मुझे गिरफ्तार किया गया था, पंखे को पूरी तेजी से चला दिया और और सभी खिड़कियाँ-दरवाजे खोल दिए। उसने एक बड़ा पार्का पहना हुआ था और हीटर से पैर गर्म कर रहा था। वह दिल खोलकर हँसा और बोला, “अच्छा और गर्म है न?” यह सर्दियों का मौसम था और मेरे हाथ-पैर जल्दी ही बर्फ की तरह ठंडे हो गए। तभी मैंने सुना कि एक बहन अपने पैर थपथपा रही है और चुपचाप गाना गा रही है। मैंने ध्यान से सुना और पाया कि वह परमेश्वर की स्तुति में एक भजन गा रही थी। मैंने भी धुन पर अपने पैर थपथपाने शुरू कर दिए। जैसे-जैसे मैं गाती गई, मेरी ताकत वापस आने लगी और मैंने सोचा, “चाहे ये शैतान मुझे कितना भी प्रताड़ित करें, मैं आगे बढ़ती रहूँगी। चाहे मर ही क्यों न जाऊँ, मैं परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए अपनी गवाही में दृढ़ रहूँगी!” मेरे लिए बहुत हैरानी की बात थी कि उन्होंने हमें दोपहर तीन बजे जाने दिया। पता चला कि उस दौरान उन्होंने इतने सारे भाई-बहनों को गिरफ्तार किया था कि हिरासत केंद्र या जेल में जगह ही नहीं बची थी। जब उन्हें पता चला कि उन्हें हमसे कोई अहम जानकारी नहीं मिलने वाली है तो उन्होंने हमें जाने दिया। हालांकि मैं जानती थी कि यह परमेश्वर की दया थी। उसने हमें बाहर निकलने का रास्ता दिया था। मैंने अपने दिल में परमेश्वर को धन्यवाद दिया।
CCP द्वारा मेरी गिरफ्तारी और उत्पीड़न के दौरान मेरे शरीर को थोड़ा कष्ट हुआ और मैंने अपमान झेला, लेकिन मुझे CCP के बुरे सार की वास्तविक पहचान हो गई। मैंने साफ देखा कि CCP सिर्फ परमेश्वर से घृणा करने वाला और परमेश्वर-विरोधी दानव है। जब तक बड़ा लाल अजगर सत्ता में है, शैतान सत्ता में है, सभी लोगों को क्रूर और भ्रष्ट कर रहा है। मैंने अपने दिल में बड़े लाल अजगर का त्याग किया और उसके खिलाफ विद्रोह किया और उस दिन का इंतजार करने लगी जब मसीह और न्याय सत्ता में आएँगे। मुझे उम्मीद है कि मसीह का राज्य जल्द ही साकार होगा और आखिरकार परमेश्वर का अनुसरण करने में मेरी आस्था और भी बढ़ गई!