34. एक परिवार के बिखरने के पीछे की कहानी

शाओक्यू, चीन

मेरे पति और मैंने मई 2012 में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकारा था। हम साथ मिलकर सारे समय परमेश्वर के वचन पढ़ते और परमेश्वर की स्तुति वाले भजन गाते थे और मुझे काफी खुशी और संतोष महसूस होता था। कुछ ही समय में मैंने कलीसिया में एक काम सँभाल लिया और मैं अक्सर सभाओं में हिस्सा लेने और सुसमाचार साझा करने के लिए बाहर जाने लगी। मेरे पति मेरा बहुत साथ देते थे। लेकिन बाद में मेरे परिवार ने कम्युनिस्ट पार्टी के उत्पीड़न के कारण मुझे मेरी आस्था पर अमल करने से दूर रखने की कोशिश शुरू कर दी और तभी से कभी खुशहाल और शांतिपूर्ण रहा हमारा जीवन पूरी तरह बिखर गया।

एक दिन मेरे सबसे बड़े भाई ने मुझे कॉल करके कहा, उसने यह खबर देखी है कि सरकार सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विश्वासियों पर गंभीर रूप से कड़ी कार्रवाई कर रही है, उन्हें गिरफ्तार करके जेलों में डाल रही है। उन्होंने कहा, “अगर कोई विश्वासी है, तो उसकी आने वाली पीढ़ियों पर भी इसका असर होगा। उनके बच्चे यूनिवर्सिटी में दाखिला नहीं ले पाएँगे; फिर नौकरी या अच्छा भविष्य पाने की उनकी संभावनाएँ खत्म हो जाएँगी। तुम इस धर्म का पालन नहीं करते रह सकती।” मेरे पति स्कूल में काम करते थे और जब उन्होंने मेरे भाई की बात सुनी तो फिक्रमंद होकर कहा, “आस्था रखना अच्छी बात है लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी पागलों की तरह विश्वासियों को गिरफ्तार कर रही है। यहाँ तक कि हमारे बच्चों के भविष्य पर भी असर पड़ेगा। अब मैं इस धर्म का पालन नहीं करना चाहता और तुम्हें सभाओं में हिस्सा लेना बंद कर देना चाहिए। अगर तुम परमेश्वर का अनुसरण करना चाहती हो तो चुपचाप घर में रहकर करो।” मैंने जवाब दिया, “अगर मैं सभाओं में नहीं जाऊँगी, तो क्या मुझे विश्वासी कहा भी जाएगा? क्या मैं इस तरह सत्य सीख सकती हूँ? परमेश्वर में विश्वास और सत्य का अनुसरण—यही जीवन का सही मार्ग है। मुझे सभाओं में जाना ही होगा।” यह देखकर कि मैं अपना इरादा नहीं बदलूँगी, उसने एक स्टूल और फ्लैश लाइट उठाई और गुस्से में उन्हें तोड़ डाला। अगले दिन अपने स्कूल से घर आने के बाद बोले, “आज स्कूल में हमारी बैठक हुई। सेंट्रल कमिटी ने इस आशय का एक आधिकारिक दस्तावेज जारी किया है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विश्वासियों को राजनीतिक अपराधी माना जाता है और उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली कड़ी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। शिक्षकों और उनके परिवार वालों को धर्म का पालन करने की अनुमति नहीं है और किसी को धर्म का पालन करते पाया गया तो उसे नौकरी से निकालकर काली सूची में डाल दिया जाएगा। उनके बच्चों को कॉलेज में जाने नहीं दिया जाएगा—कोई भी स्कूल उन्हें स्वीकार नहीं करेगा। तुम अपने धर्म का पालन करना जारी नहीं रख सकती। अगर किसी को पता चला और उसने खबर कर दी तो मेरी नौकरी चली जाएगी और हमारे बच्चों का भविष्य खराब हो जाएगा। इससे हमारा परिवार बर्बाद हो जाएगा।” उसे ऐसा कहते सुनकर मैं सोचने लगी कि हमारे परिवार के खर्चों को पूरा करने के लिए मेरे पति के वेतन की जरूरत होगी। अगर मेरी आस्था की वजह से सचमुच उसे नौकरी से निकाल दिया गया, तो हमारी आजीविका कैसे चलेगी? अगर हमारे बच्चों को यूनिवर्सिटी में दाखिला नहीं मिला या नौकरी नहीं मिली तो क्या वे मुझसे नफरत नहीं करने लगेंगे? इन विचारों ने मुझे काफी परेशान कर दिया, मैंने दिल-ही-दिल में परमेश्वर को पुकारकर उसका इरादा समझने में मार्ग दर्शन करने की विनती की। प्रार्थना के बाद मैंने परमेश्वर की इन बातों को याद किया : “मनुष्य का भाग्य परमेश्वर के हाथों से नियंत्रित होता है। तुम स्वयं को नियंत्रित करने में असमर्थ हो : हमेशा अपनी ओर से भाग-दौड़ करते रहने और व्यस्त रहने के बावजूद मनुष्य स्वयं को नियंत्रित करने में अक्षम रहता है। यदि तुम अपने भविष्य की संभावनाओं को जान सकते, यदि तुम अपने भाग्य को नियंत्रित कर सकते, तो क्या तुम तब भी एक सृजित प्राणी होते?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मनुष्य के सामान्य जीवन को बहाल करना और उसे एक अद्भुत मंज़िल पर ले जाना)। इन बातों पर विचार करने पर मुझे समझ आया कि लोगों की किस्मत पूरी तरह से परमेश्वर के हाथों में है। मेरे पति को कैसी नौकरी मिलेगी और हमारे बच्चों का भविष्य कैसा होगा, यह सब परमेश्वर के नियम और व्यवस्थाओं पर निर्भर है—ये चीजें किसी इंसान पर निर्भर नहीं करती हैं। मैं उसकी नौकरी या भविष्य बचाने के लिए अपनी आस्था नहीं छोड़ सकती थी। मुझे लगा कि मैं अपना भविष्य परमेश्वर के हाथों में छोड़कर उसके आयोजनों के प्रति समर्पित होने को तैयार हूँ। इस तरह से सोचने पर मेरा चिंता काफी कम हो गई और मैं पहले की तरह सभाओं में जाती रही और अपना कर्तव्य करती रही।

फिर जुलाई 2013 में एक दिन जब मैं एक सभा में हिस्सा ले रही थी, मेरे साथ कई अन्य बहनों को गिरफ्तार कर लिया गया। उस शाम पुलिस थाने के कैप्टन झाओ ने मुझसे पूछताछ की, उसने सवाल किया, “तुम्हारा मत परिवर्तन किसने किया? तुम्हारी कलीसिया का अगुआ कौन है?” मैंने कोई जवाब नहीं दिया। फिर उसने आगे कहा, “तुम्हारे पति मेरे शिक्षक थे। मुझे कलीसिया के बारे में सब कुछ बता दो और मैं तुम्हें घर जाने दे सकता हूँ, यह देखते हुए कि वह मेरे शिक्षक थे।” मुझे एहसास हुआ कि यह शैतान की उन चालों में से एक है जिनके जरिए वह मुझे भाई-बहनों से विश्वासघात कराना और परमेश्वर को धोखा दिलाना चाहता है—मैं इस झाँसे में नहीं आ सकती। मैंने मन-ही-मन बार-बार परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे मेरी रक्षा करने और गवाही में अडिग रहने में मेरी मदद करने की विनती की। उसके बाद कैप्टन झाओ ने मुझसे जो कुछ भी पूछा, मैंने उसे अनसुना कर दिया। फिर वह मुझे वापस हिरासत कक्ष में ले गया। अगली सुबह नगर निगम की सार्वजनिक सुरक्षा ब्यूरो का एक अधिकारी मुझसे पूछताछ करने आया। मैं यह देखकर हैरान रह गई कि वह अधिकारी मेरा चचेरा भाई था। मुझे देखकर उसकी आँखें गुस्से से लाल हो गईं और उसने मेरी ओर उंगली उठाते हुए कहा, “कितनी हैरानी की बात है! तुम धार्मिक हो? तुमने कब से विश्वास करना शुरू किया? तुम्हारा मत परिवर्तन किसने किया?” मैंने उसे अनदेखा कर दिया। उसने परमेश्वर की ईशनिंदा करते हुए कई और बातें कहीं और फिर आगे कहा, “राष्ट्रीय सरकार ने बरसों पहले इस आशय के सरकारी दस्तावेज जारी किए थे कि अगर किसी को सर्वशक्तिमान परमेशवर में विश्वास करते पाया गया, तो उसके तीन पीढ़ियों के वंशजों को फँसाया जाएगा। तुम्हारा बड़ा बेटा हाल ही में कॉलेज से ग्रेजुएट हुआ है और नौकरी की तलाश कर रहा है; तुम्हारा छोटा बेटा कॉलेज जाने वाला है। तुम्हें अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचना होगा। कम्युनिस्ट पार्टी बहुत शक्तिशाली है—ऐसे में विश्वास करने पर जोर देना एक अंडे से चट्टान तोड़ने की कोशिश करना है। तुम्हें इसे छोड़ना ही होगा!” यह सब सुनकर मैं सोच रही थी कि अपनी आस्था पर अमल करना जारी रखने से मेरे बेटों के भविष्य पर असर पड़ना तय है। मैंने उनकी पढ़ाई के लिए काफी कीमत चुकाई है—अगर उन्हें अच्छी नौकरी नहीं मिली, तो क्या मेरी इतने बरसों की खून, पसीने और आँसुओं की मेहनत बेकार नहीं चली जाएगी? यह सोचकर मुझे बहुत बुरा लगा। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना करते हुए उससे मेरे दिल की रक्षा करने और उसके इरादे को समझने में मेरा मार्ग दर्शन करने की विनती की ताकि जान सकूँ कि ऐसे में मुझे क्या करना चाहिए। फिर मुझे परमेश्वर के वचनों का यह अंश याद आया : “जिस क्षण तुम रोते हुए इस दुनिया में आते हो, उसी पल से तुम अपना कर्तव्य पूरा करना शुरू कर देते हो। परमेश्वर की योजना और उसके विधान के लिए तुम अपनी भूमिका निभाते हो और तुम अपनी जीवन-यात्रा शुरू करते हो। तुम्हारी पृष्ठभूमि जो भी हो और तुम्हारी आगे की यात्रा जैसी भी हो, कोई भी स्वर्ग के आयोजनों और व्यवस्थाओं से बच नहीं सकता, और किसी का भी अपनी नियति पर नियंत्रण नहीं है, क्योंकि केवल वही, जो सभी चीज़ों पर शासन करता है, ऐसा करने में सक्षम है। ... मनुष्य का हृदय और आत्मा परमेश्वर के हाथ में हैं, उसके जीवन की हर चीज़ परमेश्वर की दृष्टि में रहती है। चाहे तुम यह मानो या न मानो, कोई भी और सभी चीज़ें, चाहे जीवित हों या मृत, परमेश्वर के विचारों के अनुसार ही जगह बदलेंगी, परिवर्तित, नवीनीकृत और गायब होंगी। परमेश्वर सभी चीज़ों को इसी तरीके से संचालित करता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है)। परमेश्वर के वचनों से मुझे समझ आया कि जब सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है, तो क्या उसमें मेरे बेटों का भविष्य और किस्मत शामिल नहीं है? कोई व्यक्ति जीवन में कितनी तकलीफ उठाता है और वह किस तरह का काम करता है, यह सब परमेश्वर ने पहले ही निर्धारित कर दिया है। मैं इन चीजों को लेकर फिक्र नहीं कर सकती। इस दुनिया में किसी की शिक्षा और काम कितना ही बड़ा क्यों न हो, इसका मतलब यह नहीं है कि उसका भविष्य और किस्मत भी अच्छी होगी। परमेश्वर में विश्वास के बिना, परमेश्वर के उद्धार को स्वीकारे बिना, आपदाएँ आने पर वह व्यक्ति बस मारा जाएगा और उसके पास कहने को कोई भविष्य नहीं होगा। परमेश्वर के सामने आना, सत्य को स्वीकार करना और परमेश्वर द्वारा बचाया जाना सचमुच अच्छा भविष्य पाने का एकमात्र रास्ता है। इसलिए मैंने अपने चचेरे भाई से कहा, “मेरे बेटों का भविष्य जैसा भी होगा, यह उनकी किस्मत है—यह किसी इंसान के हाथ में नहीं है। परमेश्वर में मेरा विश्वास और सत्य का अनुसरण ही सही मार्ग है और मैं इस पर पूरी तरह से दृढ़ हूँ। मुझे सलाह देने की कोई जरूरत नहीं!” अपनी आस्था पर अडिग रहने को लेकर मेरा दृढ़ संकल्प देखकर उसने कोई जवाब नहीं दिया। उसने मुझे एक दिन और एक रात के लिए वहाँ रखा, फिर वापस घर भेज दिया।

जैसे ही मैं घर लौटी, मेरे पति ने एक स्टूल उठा लिया और उससे मुझे मारने ही वाला था कि हमारे बड़े बेटे ने उसे पीछे से पकड़ लिया। मुझे कोसते हुए मेरे पति ने कहा, “तुम्हारी आस्था के कारण मैं पूरी तरह बदनाम हो गया हूँ और तुम्हारी वजह से देर-सवेर हमारे बेटों का भविष्य भी खराब होने वाला है। अगर तुम इस आस्था पर कायम रही, तो मैं तुम्हें पीट-पीटकर मार डालूँगा!” उन्हें ऐसी हालत में देखकर मैंने मन-ही-मन सोचा कि एक शादीशुदा जोड़े के रूप में हमारा रिश्ता कितना कमजोर है जो किसी वास्तविक मुश्किल का सामना नहीं कर सकता। मेरी आस्था के कारण जब मुझे गिरफ्तार किया गया और इसका असर उसके हितों और प्रतिष्ठा पर पड़ा, तो वह मुझे मारने की धमकी देने लगा। ये पति-पत्नी के बीच का कैसा प्रेम था? उस वक्त मेरी छोटी बहन हमारे घर पर ही थी और उसने भी सुर में सुर मिलाया, “क्या तुम अपनी आस्था नहीं छोड़ सकती? अगर तुम इसी पर बनी रही तो अपने बेटों का भविष्य बर्बाद कर दोगी!” मैंने उनसे कहा, “मैं सिर्फ सभाओं में हिस्सा लेती हूँ और परमेश्वर के वचन पढ़ती हूँ। यह जीवन का सही मार्ग है—मैंने कुछ भी गलत नहीं किया है। इससे मेरे बच्चों का भविष्य कैसे खराब हो सकता है? यह तो कम्युनिस्ट पार्टी है जो विश्वासियों का उत्पीड़न करती है और उनके परिवारों को भी नहीं छोड़ती। अगर भविष्य में हमारे बच्चों को नौकरी नहीं मिलती तो इसकी वजह कम्युनिस्ट पार्टी होगी। तुम लोग सही-गलत में फर्क क्यों नहीं कर पाते?” फिर मेरे छोटे भाई ने मेरे पति को फोन करके कहा, “अगर मेरी बहन धर्म पर चलना जारी रखती है, तो उसके पैर तोड़ डालो। फिर देखना कि वह उन सभाओं में कैसे हिस्सा लेती है।” उसकी पत्नी ने भी क्रूरता से कहा, “अगर वो अपनी आस्था नहीं छोड़ती है, तो पीट-पीटकर मार डालो। हमारे परिवार की ओर से तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा।” मेरा दिल बैठ गया। मैंने सोचा था मेरा परिवार मेरी हालत को समझेगा। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि वे कम्युनिस्ट पार्टी की बात सुनेंगे और अपने हितों की रक्षा के लिए इतने बेरहम बन जाएँगे और मुझे आस्था से दूर रखने के लिए मेरे जीने या मरने की भी परवाह नहीं करेंगे। उनकी इंसानियत कहाँ चली गई? अगले दिन मेरे बड़े भाई ने मेरे पति को कॉल करके कहा, “अगर मेरी बहन अपने धर्म पर बनी रहती है, तो हम उसके साथ अपने रिश्ते तोड़ लेंगे। अगर तुम तलाक लेना चाहते हो, तो मैं तुम्हारी मदद करूँगा। उसका सब कुछ छीनकर उसे निकाल बाहर करो। फिर देखते हैं वह कैसे जिंदा रहती है।” दोपहर के करीब मेरे चचेरा भाई एक पुलिस कार में आया और मेरे पति से मुझ पर नजर बनाए रखने और मुझे मेरी आस्था पर अमल करने से दूर रखने के लिए कहा, वरना पूरा परिवार फँस जाएगा। मेरे पति ने मुझसे कहा, “हमारे बच्चों और इस परिवार के लिए तुम्हें आज अपने चचेरे भाई की आँखों में देखकर यह बयान देना होगा कि तुम अपनी आस्था छोड़ रही हो।” मैंने उससे कहा, “परमेश्वर का अनुसरण करना सही और उचित है। मैं अपनी आस्था नहीं छोडूँगी।” यह देखकर कि वह मुझे पीछे नहीं हटा सका, उसने गुस्से से कहा, “अगर तुम परमेश्वर में विश्वास करने पर अड़ी रही और तुम्हें हमारे बच्चों का भविष्य खराब किया, तो मैं तुम्हें तलाक दे दूँगा।” फिर वह तलाक का समझौता लेकर आया और मुझे उस पर दस्तखत करने को कहा। उस समझौते में लिखा था कि मैं सब कुछ छोड़कर खाली हाथ जाऊँगी। हमारा घर बसाने के लिए हम दोनों ने कड़ी मेहनत की थी—अगर मैं खाली हाथ चली गई, तो कैसे जीवित रह पाऊँगी? मगर फिर मैंने सोचा कि कैसे परमेश्वर ने यह पहले ही यह तय कर दिया है कि कोई व्यक्ति अपने जीवन में कितना कष्ट सहेगा और चाहे जो भी हो मैं परमेश्वर में विश्वास करना बंद नहीं कर सकूँगी और मुझे अपनी आस्था में बने रहकर सत्य का अनुसरण करते रहना होगा। मैं उस समझौते पर दस्तखत करने ही वाली थी, तभी मेरे पति ने देखा कि अपनी आस्था छोड़ने का मेरा कोई इरादा नहीं है तो उसने कहा, “चलो, फिर तलाक नहीं लेते। अगर तुम विश्वासी बने रहना चाहती हो, तो मैं तुम्हें नहीं रोक सकता। तुम अपनी आस्था पर अमल करती रहो।” सामने से तो उसने यही कहा, लेकिन असल में वह मुझ पर अधिक से अधिक काबू रखने लगा। घर पर वह मुझे “परमेश्वर” शब्द तक नहीं बोलने देता और जब भी मैं ऐसा कुछ कहती जो उसे पसंद नहीं होता था तो वह मुझे मारने लगता। उसने अपनी छुट्टियों में भी कहीं आना-जाना बंद कर दिया बल्कि घर पर ही रहकर मुझ पर कड़ी नजर रखने लगा। जब वह मुझे परमेश्वर के वचन पढ़ते देखता, मेरे हाथ से किताब छीन लेता और कहता, “अगर मैंने परमेश्वर के वचनों की इस किताब को एक बार और यहाँ देख लिया, तो इसे जला डालूँगा!” कुछ वक्त तक मैं सभाओं में हिस्सा लेने नहीं जा सकी, भाई-बहनों से कोई संपर्क नहीं कर पाई या घर पर भी परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ पाई। मुझे कतई कोई आजादी नहीं थी।

एक दिन शाम को मैं परमेश्वर के वचन पढ़ने के लिए दबे पाँव हमारे बेडरूम में गई, तो मेरा पति अचानक सामने से आ गया और बेहद आक्रामक अंदाज में बोला, “तुम अब भी इसे पढ़ने की हिम्मत कर रही हो! अगर तुम्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया, तो मेरी नौकरी और हमारे बच्चों का भविष्य खत्म हो जाएगा! कम्युनिस्ट पार्टी कुछ भी कर सकती है।” मैंने उससे कहा, “मैं सिर्फ परमेश्वर के वचन पढ़ रही हूँ। इसका असर तुम पर और हमारे बच्चों के भविष्य पर कैसे होगा?” हैरानी की बात थी कि वह मुझ पर टूट पड़ा, अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन पर कसकर जकड़ लिया और फंदा कसते हुए कहने लगा, “मैं तुम्हारा गला घोंटकर मार डालूँगा, फिर सारा फसाद ही खत्म हो जाएगा!” मैं उतनी मजबूत नहीं थी कि खुद को उसकी जकड़ से छुड़ा सकूँ, मैं कुछ बोल भी नहीं पाई। उसने मुझे तब तक नहीं छोड़ा जब तक मेरी साँसें थम नहीं गईं और मेरा हिलना-डुलना बंद नहीं हो गया। मैं साँस लेने के लिए हाँफने लगी, मेरी भावनात्मक पीड़ा का कोई ठिकाना नहीं था। ऐसा महसूस हो रहा था मानो चीन में एक विश्वासी होना और सही मार्ग पर चलना बेहद मुश्किल है। कम्युनिस्ट पार्टी ने मुझे गिरफ्तार किया, मेरा परिवार मेरे रास्ते की रुकावट बना, मैं कर्तव्य भी नहीं कर सकती थी और अब तो परमेश्वर के वचन पढ़ने का मेरा अधिकार भी छीन लिया गया। मेरे जीवन का क्या मतलब रह गया? मुझे लगा जैसे अब तो मर जाना ही बेहतर है। मैंने अपने पति का उस्तरा निकाला और अपनी कलाइयाँ काटकर आत्महत्या करने का मन बनाया। तभी परमेश्वर के वचनों का यह अंश अचानक मेरे मन में आया : “आज अधिकतर लोगों के पास यह ज्ञान नहीं है। वे मानते हैं कि कष्टों का कोई मूल्य नहीं है, कष्ट उठाने वाले संसार द्वारा त्याग दिए जाते हैं, उनका पारिवारिक जीवन अशांत रहता है, वे परमेश्वर के प्रिय नहीं होते, और उनकी संभावनाएँ धूमिल होती हैं। कुछ लोगों के कष्ट चरम तक पहुँच जाते हैं, और उनके विचार मृत्यु की ओर मुड़ जाते हैं। यह परमेश्वर के लिए सच्चा प्रेम नहीं है; ऐसे लोग कायर होते हैं, उनमें धीरज नहीं होता, वे कमजोर और शक्तिहीन होते हैं! परमेश्वर उत्सुक है कि मनुष्य उससे प्रेम करे, परंतु मनुष्य जितना अधिक उससे प्रेम करता है, उसके कष्ट उतने अधिक बढ़ते हैं, और जितना अधिक मनुष्य उससे प्रेम करता है, उसके परीक्षण उतने अधिक बढ़ते हैं। ... इस प्रकार, इन अंत के दिनों में तुम लोगों को परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए। चाहे तुम्हारे कष्ट कितने भी बड़े क्यों न हों, तुम्हें बिल्कुल अंत तक चलना चाहिए, यहाँ तक कि अपनी अंतिम साँस पर भी तुम्हें परमेश्वर के प्रति निष्ठावान और उसके आयोजनों के प्रति समर्पित होना चाहिए; केवल यही वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करना है, और केवल यही सशक्त और जोरदार गवाही है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो)। परमेश्वर के वचनों ने बिल्कुल सही वक्त पर मेरी आँखें खोल दीं, मैंने वह मूर्खतापूर्ण कदम नहीं उठाया। मैं खुद की जान लेना चाहती थी क्योंकि मैं बेहद तकलीफ और पीड़ा में थी, उस अपमान को बरदाश्त नहीं कर सकती थी। मैं कितनी कायर थी। मेरी आस्था कितनी कमजोर थी और मेरे पास बिल्कुल कोई गवाही नहीं थी। परमेश्वर लोगों से यह अपेक्षा रखता है कि वे पीड़ा और मुश्किलों का सामना करते हुए उस पर अपनी आस्था न खोएँ ताकि वे उसके लिए मजबूती से गवाही दे सकें। अगर मैं मर गई तो गवाही कैसे दे पाऊँगी? क्या मैं शैतान के हाथों उपहास की पात्र नहीं बन जाऊँगी? यह एहसास होने पर मैंने संकल्प लिया कि अब चाहे मेरे पति और रिश्तेदार मुझे कितना भी क्यों न सताएँ, भविष्य में मुझे मेरी आस्था से दूर रखने की कितनी भी कोशिश क्यों न करें, चाहे मुझे कितनी भी तकलीफ उठानी पड़े, जब तक मेरे शरीर में एक भी साँस बाकी है, मैं अपना जीवन अच्छे से जियूँगी और अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करूँगी। मगर चूँकि मेरी गिरफ्तारी के बाद से ही पुलिस मुझ पर नजर रखे थी और मेरे परिवार ने मुझे बेबस कर रखा था, मैं तीन साल तक कलीसिया का उचित जीवन नहीं जी पाई। परमेश्वर के वचन पढ़ने के लिए मुझे छिप-छिपाकर अपने पिता के घर जाना पड़ता था। फिर 2016 की गर्मियों में मैंने आखिरकार अपने भाई-बहनों से संपर्क किया। मैंने फिर से अपना कलीसिया का जीवन जीना शुरू किया और नए सिरे से अपना कर्तव्य निभाने लगी।

बाद में भी मेरा पति मुझ पर अत्याचार करता रहा। मुझे याद है, एक बार जब मैं सभा से वापस लौटी तो वह मुझे मेरे बड़े भाई के घर लेकर गया, जहाँ मैंने देखा कि मेरे दो और भाई और उनकी पत्नियाँ भी वहीं थीं—वे सभी मुझे गुस्से से घूरे जा रहे थे। मैं जानती थी कि वे फिर से मेरी आस्था छुड़वाने की कोशिश करने वाले हैं, इसलिए मैंने मन-ही-मन प्रार्थना करते हुए परमेश्वर से मुझे राह दिखाने के लिए कहा ताकि वे मेरे साथ चाहे जो भी सुलूक करें, मैं उनके काबू में न आऊँ। मेरे बड़े भाई ने मुझे घूरते हुए कहा, “कम्युनिस्ट पार्टी नास्तिक है। यह इतने बरसों से धार्मिक आस्थाओं का दमन कर रही है और कोई भी इसे बदल नहीं सकता। कम्युनिस्ट पार्टी की सत्ता में रहते हुए परमेश्वर में विश्वास करने से तुम्हारी गिरफ्तारी पक्की है और परिवार के अन्य लोग भी इसमें फँसेंगे। क्या तुम जान-बूझकर मुसीबत मोल नहीं ले रही हो?” मेरे साले ने आगे कहा, “मेरे बेटे ने कॉलेज में दाखिले की परीक्षा दी थी और उसे राजनीतिक पृष्ठभूमि की जाँच वाला फॉर्म भरना पड़ा और उन्होंने परिवार में किसी धार्मिक सदस्य के होने की बात पूछी। पुलिस को तुम्हारे सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने से जुड़े दस्तावेज मिले और उन्होंने उसे पास नहीं होने दिया। तब मुझे अपने संपर्कों का इस्तेमाल करके लोगों को उपहार भेजने पड़े—काफी मशक्कत करने के बाद कहीं जाकर वह मुश्किल से पास हो पाया। चीन में अगर कोई सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करता है, तो उसके पूरे परिवार को इसमें घसीट लिया जाता है। तुम्हें अपनी आस्था छोड़नी होगी!” फिर मेरे छोटे भाई ने कहा, “क्या तुम हमारे परिवार और अपने बच्चों के भविष्य के बारे में कुछ नहीं सोच पाती? परमेश्वर में विश्वास करना बंद कर दो! अगर तुम अपनी आस्था छोड़ दोगी तो क्या हो जाएगा? क्या तुम मर जाओगी?” इस पर मैंने उनसे कहा, “क्या तुम लोगों को पता है कि अच्छा भविष्य क्या है? क्या तुम्हें लगता है कि एक अच्छी नौकरी होना, अच्छा खाना और कपड़ा मिलना एक अच्छा भविष्य है? आपदाएँ लगातार बढ़ती जा रही हैं और जो भी विश्वासी नहीं है वह इनमें बुरी तरह घिर जाएगा। केवल जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं और उसके द्वारा बचाए जाएँगे, वे ही सुरक्षित रहेंगे और केवल उनके पास ही एक अच्छा भविष्य होगा और अच्छी किस्मत होगी।” इस पर मेरे पति ने जवाब दिया, “मैं नहीं जानता कि बाद में क्या होने वाला है—मैं सिर्फ वही देख सकता हूँ जो इस वक्त मेरे सामने है। यह कम्युनिस्ट पार्टी की मौजूदा नीति है—अगर तुम विश्वासी हो तो वे तुम्हें गिरफ्तार कर लेंगे, तुम्हारी नौकरी छीन लेंगे और यह परिवार भी फँसेगा। इतने बरसों में कोई भी उनकी इस नीति को बदल नहीं पाया है और वे हमसे बहुत अधिक ताकतवर हैं! बस अपनी आस्था त्याग दो! यहाँ सबके सामने बोल दो कि तुम ऐसा ही करोगी।” उनकी बात पूरी होते ही बाकी सब ने यही सब कहना शुरू कर दिया और मुझे परमेश्वर में विश्वास न करने के लिए समझाने लगे। हमारा एक बड़ा, खुशहाल परिवार हुआ करता था लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी के उत्पीड़न ने सब गड़बड़ कर दिया। मेरा पति अक्सर मुझे पीटता और मुझ पर चिल्लाता रहता था और हम एक दिन भी सुकून से नहीं रह पाते थे। यह सब कब खत्म होगा? मैं दिनों-दिन और भी ज्यादा परेशान होती जा रही थी, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की और फिर उसके वचनों के इस अंश पर विचार किया : “तुम्हें सत्य के लिए कष्ट उठाने होंगे, तुम्हें सत्य के लिए समर्पित होना होगा, तुम्हें सत्य के लिए अपमान सहना होगा, और अधिक सत्य प्राप्त करने के लिए तुम्हें अधिक कष्ट उठाने होंगे। यही तुम्हें करना चाहिए। एक शांतिपूर्ण पारिवारिक जीवन के लिए तुम्हें सत्य का त्याग नहीं करना चाहिए, और क्षणिक आनन्द के लिए तुम्हें जीवन भर की गरिमा और सत्यनिष्ठा को नहीं खोना चाहिए। तुम्हें उस सबका अनुसरण करना चाहिए जो खूबसूरत और अच्छा है, और तुम्हें अपने जीवन में एक ऐसे मार्ग का अनुसरण करना चाहिए जो ज्यादा अर्थपूर्ण है। यदि तुम एक गंवारू जीवन जीते हो और किसी भी उद्देश्य को पाने की कोशिश नहीं करते हो तो क्या तुम अपने जीवन को बर्बाद नहीं कर रहे हो? ऐसे जीवन से तुम क्या हासिल कर पाओगे? तुम्हें एक सत्य के लिए देह के सभी सुखों को छोड़ देना चाहिए, और थोड़े-से सुख के लिए सारे सत्यों का त्याग नहीं कर देना चाहिए। ऐसे लोगों में कोई सत्यनिष्ठा या गरिमा नहीं होती; उनके अस्तित्व का कोई अर्थ नहीं होता!(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान)। परमेश्वर के वचनों से मुझे उसका इरादा समझने में मदद दी। मैं दृढ़तापूर्वक परमेश्वर का अनुसरण कर रही थी और अपना कर्तव्य कर रही थी—मैं सत्य के अनुसरण के मार्ग पर चल रही थी। मेरे परिवार के सदस्य पैसे और प्रतिष्ठा के पीछे भाग रहे थे। हम अलग-अलग रास्ते पर चल रहे थे और यह पक्का था कि हमारा परिवार बिखर जाएगा। सत्य हासिल करने के लिए मुझे उस तकलीफ को स्वीकारना होगा। इसमें एक अर्थ छिपा था। मैं अपने परिवार के लिए अपनी आस्था नहीं छोड़ सकती थी। इसलिए मैंने उनसे कहा, “मुझे पक्का यकीन है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही सच्चा परमेश्वर है, उद्धारकर्ता मानवजाति को बचाने आया है। मेरी आस्था छोड़ने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता!” जब उन्होंने देखा कि वे किसी भी तरह से मेरा मन नहीं बदल सकते, तो वे सभी वहाँ से चले गए।

एक दिन शाम को जब मैं सभा से घर वापस आई, तो देखा कि मेरा पति शराब पीकर टेबल पर औंधे झुके हुए रो रहा था। उसने कहा, “तुम हर दिन सभाओं में जाती हो। अगर तुम्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया, तो यह कहने की जरूरत नहीं कि कब तुम्हारी वजह से हमारा घर बर्बाद हो जाएगा।” फिर उसने गुस्से में टेबल को पलट दिया, एक हाथ से मेरे कपड़ों को पकड़कर दूसरे हाथ से जोर का चाँटा मारा। मैं सँभल पाती, इससे पहले ही उसने मुझे बड़े हिंसक तरीके से स्नानघर के फर्श पर पटक दिया, फिर मेरे सिर पर जोर से मारा और खौफनाक अंदाज में कहने लगा, “अपनी आस्था छोड़ दो! आज रात मैं कोई भी खतरा उठाने को तैयार हूँ—तुम्हें पीट-पीटकर मार डालूँगा। वैसे भी तुम्हारे अपने घर वालों को तुम्हारे जीने-मरने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।” चोट लगने के कारण मुझे चक्कर आ रहे थे और आँखों के आगे अँधेरा छा गया। वह मुझे खींचते हुए सीढ़ियों के ऊपर ले गया और फिर यह कहते हुए नीचे धकेल दिया, “अगर तुम गिर कर मर गई तो तुम्हारी लाश को जलाने ले जाऊँगा और तुम्हारी राख नदी में फेंक दूँगा।” उसके मुँह से ऐसी बातें सुनकर मुझे काफी डर लगा—मैं बार-बार परमेश्वर से प्रार्थना करती रही। परमेश्वर की सुरक्षा की वजह से ही मैंने बिल्कुल आखिरी पलों में रेलिंग के डंडे को पकड़ लिया, जिससे सीढ़ियों से नीचे फर्श पर गिरने से बच गई। तभी हमारा छोटा बेटा वहाँ आया और उसने मेरे पति से कहा, “शराब पीकर आपका दिमाग खराब हो गया है? आस्था रखकर मम्मी ने कोई गलती नहीं की है। आप उन्हें क्यों मार रहे हैं?” इस पर उसका जवाब था, “मैं उसे मारना नहीं चाहता लेकिन अगर उसे फिर से गिरफ्तार कर लिया गया तो तुम्हारा और तुम्हारे भाई का भविष्य खराब हो जाएगा। मेरे पास कोई रास्ता नहीं बचा है।” मेरे बेटे को मेरा साथ देते देखकर उसने मुझे मारने की हिम्मत नहीं की, बस एक कांच की टेबल उठाई और उसे दीवार पर मारकर तोड़ दिया, पूरा कमरा कांच के टुकड़ों से भर गया।

बाद में परमेश्वर के वचनों में मैंने पढ़ा : “विश्वासी और अविश्वासी आपस में मेल नहीं खाते हैं, बल्कि वे एक दूसरे के विरोधी हैं(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)। मैंने इस पर विचार किया और मैं जानती थी कि भले ही मेरा पति पहले परमेश्वर में विश्वास करता था, मगर वह सिर्फ इसलिए था कि वह आशीष पाना चाहता था। वह एक सच्चा विश्वासी नहीं था। जब उसने सुना कि आस्था रखने से उसके और हमारे बेटों की भविष्य की संभावनाओं पर बुरा असर पड़ सकता है, तो उसका रुख पूरी तरह से बदल गया। उसने सिर्फ अपनी आस्था ही नहीं छोड़ी बल्कि मुझे भी परमेश्वर में विश्वास करने से रोकने की कोशिश में लग गया। जब वह मुझे नहीं रोक पाया तो मेरे साथ हिंसक बर्ताव करने लगा और मुझे अपना दुश्मन मानने लगा क्योंकि मेरी आस्था उसके निजी हितों पर बुरा असर डाल रही थी। मैंने देखा कि अपने सार रूप में मेरा पति सत्य से और परमेश्वर से नफरत करता था। वह अपनी आजीविका बचाने के लिए कम्युनिस्ट पार्टी का अनुसरण कर रहा था; वह सांसारिक भविष्य और फायदों के पीछे भाग रहा था। मैं परमेश्वर में विश्वास करती थी और सत्य का अनुसरण करती थी, जीवन में सही मार्ग पर चल रही थी—हम दोनों दो अलग-अलग मार्गों पर चल रहे थे। मेरा पति और परिवार के बाकी लोग मेरी आस्था के कारण मुझ पर इस तरह अत्याचार कर रहे थे, जिससे यह साफ पता चलता था कि उनका प्रकृति सार बुरा है; वे परमेश्वर के खिलाफ थे। मेरे पति ने सभाओं में हिस्सा लिया था और वह जानता था कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही सच्चा परमेश्वर है। मैंने अपने रिश्तेदारों के साथ सुसमाचार साझा किया था और परमेश्वर के बहुत से वचन पढ़कर सुनाए थे। उनमें से कोई भी विश्वासी नहीं बना और जैसे ही मेरी आस्था उनके हितों से टकराने लगी, वे कम्युनिस्ट पार्टी का साथ देने लगे, मुझ पर अत्याचार करने लगे और मेरे साथ रिश्ते तोड़ लेने की बातें करने लगे। वे कैसे प्रिय जन थे? वे पूरी तरह से शैतान के अनुचर थे, कम्युनिस्ट पार्टी का पक्ष लेकर परमेश्वर का विरोध कर रहे थे। अब परमेश्वर ने देहधारण किया है और सत्य व्यक्त कर रहा है, हर किस्म के इंसान का प्रकृति सार उजागर कर रहा है और मुझे भी दिखाया कि मैं अपने परिवार से अलग मार्ग पर चल रही थी—विश्वासी और अविश्वासी दो अलग-अलग किस्म के लोग होते हैं। इन बातों की समझ होने पर मैंने खुद को बेबस महसूस नहीं किया, बल्कि मुझे सुकून का एहसास हुआ।

बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का यह अंश पढ़ा : “हजारों सालों से यह मलिनता की भूमि रही है। यह असहनीय रूप से गंदी और असीम दुःखों से भरी हुई है, चालें चलते और धोखा देते हुए, निराधार आरोप लगाते हुए, क्रूर और दुष्ट बनकर इस भुतहा शहर को कुचलते हुए और लाशों से पाटते हुए प्रेत यहाँ हर जगह बेकाबू दौड़ते हैं; सड़ांध ज़मीन पर छाकर हवा में व्याप्त हो गई है, और इस पर जबर्दस्त पहरेदारी है। आसमान से परे की दुनिया कौन देख सकता है? शैतान मनुष्य के पूरे शरीर को कसकर बांध देता है, अपनी दोनों आंखों पर पर्दा डालकर, अपने होंठ मजबूती से बंद कर देता है। शैतानों के राजा ने हजारों वर्षों तक उपद्रव किया है, और आज भी वह उपद्रव कर रहा है और इस भुतहा शहर पर बारीकी से नज़र रखे हुए है, मानो यह राक्षसों का एक अभेद्य महल हो; इस बीच रक्षक कुत्ते चमकती हुई आंखों से घूरते हैं, वे इस बात से अत्यंत भयभीत रहते हैं कि कहीं परमेश्वर अचानक उन्हें पकड़कर समाप्त न कर दे, उन्हें सुख-शांति के स्थान से वंचित न कर दे। ऐसे भुतहा शहर के लोग परमेश्वर को कैसे देख सके होंगे? क्या उन्होंने कभी परमेश्वर की प्रियता और मनोहरता का आनंद लिया है? उन्हें मानव-जगत के मामलों की क्या कद्र है? उनमें से कौन परमेश्वर के उत्कट इरादों को समझ सकता है? फिर, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि देहधारी परमेश्वर पूरी तरह से छिपा रहता है : इस तरह के अंधकारपूर्ण समाज में, जहाँ राक्षस बेरहम और अमानवीय हैं, पलक झपकते ही लोगों को मार डालने वाला शैतानों का सरदार, ऐसे मनोहर, दयालु और पवित्र परमेश्वर के अस्तित्व को कैसे सहन कर सकता है? वह परमेश्वर के आगमन की सराहना और जयजयकार कैसे कर सकता है? ये अनुचर! ये दया के बदले घृणा देते हैं, लंबे समय पहले ही वे परमेश्वर से शत्रु की तरह पेश आने लगे थे, ये परमेश्वर को अपशब्द बोलते हैं, ये बेहद बर्बर हैं, इनमें परमेश्वर के प्रति थोड़ा-सा भी सम्मान नहीं है, ये लूटते और डाका डालते हैं, इनका विवेक मर चुका है, ये विवेक के विरुद्ध कार्य करते हैं, और ये लालच देकर निर्दोषों को अचेत कर देते हैं। प्राचीन पूर्वज? प्रिय अगुआ? वे सभी परमेश्वर का विरोध करते हैं! उनके हस्तक्षेप ने स्वर्ग के नीचे की हर चीज को अंधेरे और अराजकता की स्थिति में छोड़ दिया है! धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप को छिपाने की चालें हैं!(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। परमेश्वर के वचन बहुत व्यावहारिक हैं। जब तक कम्युनिस्ट पार्टी की सत्ता है, यह राक्षस की सत्ता है। यह परमेश्वर से नफरत करती है और यह आस्था रखने और परमेश्वर का अनुसरण करने वाले लोगों को बरदाश्त नहीं कर सकती। यह एकमात्र ऐसी चीज बनना चाहती है जिसका लोग अनुसरण और आराधना करें। कम्युनिस्ट पार्टी धर्म की आजादी का झंडा लहराने के बहाने बनाती है, लेकिन छिप-छिपकर अंधाधुंध विश्वासियों का उत्पीड़न करती है, उन्हें गिरफ्तार करती है और उनके परिवारों को फँसाती है। जो लोग सत्य नहीं जानते उन्हें गुमराह करने के लिए वह अफवाहें और झूठ फैलाती है, ताकि चीन के लोग आस्था रखने वालों के खिलाफ आवाज उठाएँ और उनका विरोध करें। कम्युनिस्ट पार्टी ने बहुत से लोगों के साथ खिलवाड़ किया है और उनका फायदा उठाया है और वे परमेश्वर को ठुकराने और उसका विरोध करने के साथ-साथ विश्वासियों का दमन करने में कम्युनिस्ट पार्टी का साथ देते हैं। कम्युनिस्ट पार्टी के साथ ही उन सभी लोगों का पतन हो जाएगा—परमेश्वर उन्हें दंड देकर हमेशा के लिए मिटा देगा। हमारा एक अच्छा-खासा खुशहाल परिवार था लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी के उत्पीड़न और गिरफ्तारियों के कारण उनके मन में मुसीबत में घिर जाने का डर समा गया और वे मेरा भी उत्पीड़न करने लगे और शैतान का औजार बन गए। मुझे कम्युनिस्ट पार्टी के सत्य से और परमेश्वर से नफरत करने वाले बुरे सार का साफ तौर पर पता चल गया। मैंने यह भी देखा कि सिर्फ परमेश्वर ही इंसानों से सच्चा प्रेम करता है। परमेश्वर के वचनों ने ही समय-समय पर मेरा मार्गदर्शन किया, मुझे आस्था दी और मुझे सत्य को और शैतान की चालों को अच्छी तरह समझने दिया। मेरा पति अभी भी मेरी आस्था के मार्ग में रुकावट बनने की कोशिश करता है लेकिन अब मैं उसकी बातों में नहीं आती। मैं निरंतर सभाओं में जाती हूँ और अपना कर्तव्य निभाती हूँ और परमेश्वर का अनुसरण करने का मेरा संकल्प और भी मजबूत हो गया है। मैं तहेदिल से परमेश्वर का धन्यवाद करती हूँ!

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