12. सौहार्दपूर्ण सहयोग के लिए मेरा कठिन मार्ग

जुलाई 2020 में, मुझे कलीसिया अगुआ चुना गया और बहन चेन के साथ कलीसिया के काम का प्रभारी बना दिया गया। शुरू में उस काम को लेकर मुझे कई सिद्धांतों की स्पष्ट समझ नहीं थी और कोई सवाल होता तो मैं बहन चेन से चर्चा कर लेती थी। मैं तुरंत उसकी हर सलाह मान लेती थी। कुछ समय बाद मुझे अपने काम के कुछ परिणाम मिलने लगे और लगने लगा कि अब तो मैं काबिल हूँ और अकेले काम कर सकती हूँ। उसके बाद, जब मैं काम सौंपती, तो बहन चेन के साथ चर्चा किए बिना उसे अकेले ही करती। जिन मामलों में हमें मिलकर निर्णय लेना चाहिए था, उनमें भी मैं खुद ही निर्णय ले लेती। सिद्धांत के अनुसार काम न करते देख, बहन चेन अक्सर मुझे चेताती कि मैं मनमाने निर्णय न लूँ। कभी-कभी तो वह यह बात उपयाजकों के सामने ही कह देती। मुझे लगता जैसे वह मेरे पीछे पड़ी है—उसे न तो मेरी गरिमा की कोई परवाह थी, न अपमान की। तो उसे लेकर मैं थोड़ी विरोधी हो गई। जब भी हम काम पर चर्चा करते, तो वह मेरे अधिकांश विचारों को नकार देती, और मैं यह सोचकर विद्रोही हो जाती : "हम दोनों ही कलीसिया कार्य की प्रभारी हैं, तो तुम्हारा निर्णय ही अंतिम क्यों होना चाहिए? तुम हमेशा मेरे विचारों को खारिज कर देती हो—तो क्या इससे यह नहीं दिखता कि तुम मुझसे बेहतर हो? क्या भाई-बहन मुझे बुरी अगुआ नहीं समझेंगे? मैं सबका सामना कैसे करूंगी?" मेरे अंदर बहन चेन को लेकर एक पूर्वाग्रह पैदा हो गया। उसके बाद, काम पर चर्चा करते समय, अगर वह मेरे विचार को ठुकरा देती, तो मैं चुप हो जाती। हालाँकि कभी-कभी मुझे लगता कि वह सही है, लेकिन उसकी बात मान लेना मुझे असहज कर देता। धीरे-धीरे मैं बहन चेन के प्रति और ज्यादा पूर्वाग्रही हो गई। काम पर चर्चा की तो छोड़ो, उससे बात करने तक का मन न करता। मैं उसके लिए एक बड़ी बाधा बन गई, मैं बहुत संकोची और दबी हुई महसूस करने लगी।

जनवरी 2021 में, स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण, हमारे बीच लंबे समय तक सहयोग के अभाव और मुझसे विवश महसूस करने के कारण, बहन चेन बहुत नकारात्मक हो गई जिससे वह फिर कभी उबर नहीं पाई और आखिर में इस्तीफा दे दिया। अक्टूबर में, कलीसिया में अगुआ के खाली पद के लिए चुनाव था। एक वरिष्ठ अगुआ ने बहन चेन का जिक्र किया और उसकी हालत के बारे में पूछा। सहकर्मी बहन वांग ने कहा : "हाल ही में उसकी हालत में काफी सुधार हुआ है और वह अपने काम का बोझ उठा रही है।" इससे मुझे थोड़ी चिंता हुई : "लगता है बहन चेन के बारे में इसकी अच्छी राय है! यह सुनकर, अगुआ यकीनन बहन चेन को इस पद के उपयुक्त समझेगी। उसके चुने जाने का मतलब है कि हम फिर से साथ काम करेंगे?" उस समय को याद कर, जब हम साथ काम कर रहे थे, मैं थोड़ा डर गई। मैंने सोचा : "पहले, जब काम को आगे बढ़ाने को लेकर हमारी राय अलग-अलग होती थी, तो ज्यादातर सहकर्मी बहन चेन का साथ देते थे—मेरी बात कोई नहीं सुनता था। बहन चेन बहुत इंसाफ-पसंद है। अगर उसे लगता कि मैं सिद्धांत के अनुसार काम नहीं कर रही, तो वह मुझे डांटती और अक्सर शर्मिंदा कर देती। उसके साथ काम करना वाकई बुरा अनुभव था। उसके छोड़कर जाने के बाद से, सभी सहकर्मी मेरी सलाह मानते हैं। अगर वह वापस आई, तो क्या सहकर्मी पहले की तरह उसी की नहीं सुनेंगे? अगर वह मेरी आलोचना करती रही, तो क्या भाई-बहनों के बीच मेरी बनी-बनाई छवि खराब नहीं होगी?" यह सब सोचकर, मैं बहन चेन के साथ काम नहीं करना चाहती थी। मैंने सोचा : "ऐसे तो नहीं चलेगा, मुझे उसकी भ्रष्टता के बारे में सबको बताना होगा, वरना अगर वह चुन ली गई तो यह एक सिरदर्दी हो जाएगी।" यह सब सोचकर, मैंने उसके बुरे बर्तावों का जिक्र कर दिया और यह भी कि उसे सिर्फ रुतबे से मतलब था, वह अपने काम का बोझ नहीं उठाती थी। यह सोचकर कि मैंने कोई स्पष्ट बात नहीं बताई, मैंने अपनी बात साबित करने के लिए कुछ उदाहरण भी दे दिए। अगुआ ने देखा कि मैं बहन चेन के साथ उचित व्यवहार नहीं कर रही, तो उसने लोगों के साथ उचित व्यवहार करने के सिद्धांत पर मेरे साथ संगति की। लेकिन मैं सुनने को तैयार नहीं थी। कुछ दिन बाद, चुनाव शुरू हो गए और बहन ली ने मुझसे बहन चेन की हालत के बारे में पूछा। मैंने सोचा : "वह बहन चेन के करीब नहीं है और उसे अच्छे से जानती भी नहीं, मुझे उसे बता देना चाहिए कि बहन चेन अगुआ बनने लायक नहीं है, इस तरह वह उसे वोट नहीं देगी।" मैंने उसे बहन चेन के बुरे व्यवहारों के बारे में बता दिया और यह भी कि वह अपने काम का बोझ नहीं उठाती। लेकिन तभी बगल में खड़ी बहन ने कहा : "बहन चेन बोझ इसलिए नहीं उठा पाई क्योंकि उसकी हालत खराब थी। चूँकि अब उसकी हालत में सुधार आ गया है, तो वह अपने काम का बोझ उठा रही है। इसके अलावा, वह शांति से उन मुद्दों पर भी संगति कर हमारी मदद करती है जिन्हें हम समझ नहीं पाते।" यह सुनकर मैं बेचैन हो गई : "तुम बहन चेन की तारीफ क्यों करती रहती हो? तुमने पहले ही उसे वोट दे दिया क्या? तुम्हारी बात सुनकर कहीं बहन ली भी उसे ही वोट न दे दे? अगर वह वाकई चुन ली गई, तो हम फिर से साथ काम करेंगे। तब तो मैं खुद को अलग नहीं दिखा पाऊंगी, वह हर समय टोका-टोकी करती रहेगी। अच्छा हो कि कोई नया अगुआ ही चुना जाए। चूंकि मैं काफी समय से अगुआ हूँ, मुझे सिद्धांतों की समझ भी है, तो ज्यादातर समय वह मेरी राय से सहमत होगा अगर मुझसे कुछ गलत हो भी गया, तो उसे पता नहीं चलेगा और सीधे-सीधे मेरी आलोचना नहीं कर पाएगा, इस तरह मेरा रुतबा कायम रहेगा।" सोच-सोचकर मुझे लगने लगा कि मैं बहन चेन का चुनाव नहीं होने दे सकती। तो मैंने तुरंत कहा कि बहन चेन के पास जीवन का अधिक अनुभव नहीं है, वह केवल सैद्धांतिक ज्ञान बघराती है। मेरी इस बात पर बहन ली सिर हिलाने लगी, तो यह सोचकर मुझे थोड़ी तसल्ली हुई कि बहन ली शायद बहन चेन को वोट न करे। ज्यादा वोटों पर बहन चेन और एक अन्य बहन बराबरी पर रहीं। मुझे और भी बेचैनी हो गई कि बहन चेन ही चुनी जाएगी और मुझे फिर से उसके साथ काम करना पड़ेगा।

थोड़ी देर बाद, अगुआ ने मुझसे पूछा : "बहन चेन की काबिलियत के हिसाब से, वही अगुआ बनने योग्य है। अगर वह चुन ली जाती है, तो तुम्हें कैसा लगेगा?" इस सवाल ने मुझे चिंतित कर दिया कि शायद बहन चेन ही चुनी जाएगी, तो मैंने जल्दी से कहा : "बहन चेन के पास जीवन का अधिक अनुभव नहीं है और उसका स्वभाव भी बेहद भ्रष्ट है..." अगुआ को लग गया कि मैं बहन चेन की विरोधी हूँ, उसने यह कहकर मुझे फिर से उजागर कर दिया : "तुम केवल लोगों की कमजोरियों पर ही ध्यान देती हो, उनकी खूबियों पर नहीं, तुम किसी के साथ मिलकर काम नहीं कर पाओगी। तुम बेहद अहंकारी हो..." "तुम किसी के साथ मिलकर काम नहीं कर पाओगी," यह सुनकर मुझे जोर का धक्का लगा। मुझे लगा जैसे अगुआ ने मेरे सारे इरादे उजागर कर दिए, मेरे बारे में उसकी राय अच्छी नहीं बनेगी। भाई-बहन और अगुआ सभी बहन चेन को पसंद करते थे, तो मैं अब काम कैसे कर पाऊंगी? मुझे बहुत बुरा लगा, मैं अब अगुआ नहीं बनी रहना चाहती थी। मैंने सोचा : "अगर बहन चेन इतनी ही अच्छी है, तो उसे ही चुन लो।" तो मैंने अगुआ से कहा : "मुझमें अच्छी मानवता नहीं है, मैं किसी के साथ मिलकर काम नहीं कर सकती। मुझे लगता है, मैं अब यह काम नहीं कर पाऊँगी। आप मेरी जगह किसी और को अगुआ बना दीजिए।" अगुआ ने यह कहते हुए मुझसे संगति की : "तुम बेहद अहंकारी हो, यह मैं तुम्हें सीमाओं में बाँधने के लिए नहीं कह रही, बल्कि इसलिए कह रही हूँ ताकि तुम सत्य खोजकर अपना भ्रष्ट स्वभाव दूर करो..." यह सुनकर, मुझे एहसास हुआ, मैं अपना गुस्सा अपने काम पर निकाल रही हूँ और परमेश्वर विरोधी काम कर रही हूँ। मुझे शर्म आई और मैं बेचैन हो गई। लेकिन जब भी बहन चेन के साथ काम करने के बारे में सोचती, तो मुझे चिढ़ होती। मैं इन हालात का सामना करना नहीं चाहती थी, तो मुझे और भी काम हैं, यह बहाना बनाकर मैं वहाँ से निकल गई। मेरा मन खिन्न था—मुझे एहसास हुआ कि मेरे विद्रोह के कारण परमेश्वर मुझसे विमुख हो गया है। मैं परमेश्वर के बनाए हालात से बच रही थी। अगर मैंने खुद को नहीं बदला, तो परमेश्वर यकीनन मेरा तिरस्कार करेगा और मैं पवित्र आत्मा का कार्य गँवा बैठूँगी। मैं थोड़ी डर गई, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की : "परमेश्वर, तेरे बनाए हालात से आज मुझे सबक मिला है। मेरा इससे बचना और विरोध करना गलत है, लेकिन समझ नहीं आ रहा कि मैं आत्मचिंतन कर खुद को कैसे समझूं। मेरा मार्गदर्शन कर ताकि तेरे इरादे समझकर उनसे सबक सीख सकूँ।" प्रार्थना के बाद मुझे थोड़ी शांति मिली।

अगले ही दिन चुनाव के परिणाम आ गए : बहन चेन को अगुआ चुन लिया गया, पर इस बात का मुझ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। मैंने आत्मचिंतन किया : मैं हमेशा बहन चेन की भ्रष्टता और कमियों की आलोचना करती थी, लेकिन कभी उसकी खूबियों और हुनर का जिक्र नहीं किया। क्या यह उसे दरकिनार करना नहीं था? मैंने परमेश्वर के वचनों के वे अंश देखे जो मसीह-विरोधियों द्वारा अलग मत रखने वालों को दबाने और दरकिनार करने से संबंधित हैं। एक अंश ने तो मुझे बहुत ज्यादा प्रभावित किया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "मसीह-विरोधी सत्य का अनुसरण करने वालों को अलग-थलग कर उन पर हमला कैसे करते हैं? वे अक्सर उन तरीकों का उपयोग करते हैं, जो दूसरों को उचित और उपयुक्त लगते हैं, यहाँ तक कि अन्य लोगों पर हमला करने, उनकी निंदा करने और उन्हें धोखा देने में लाभ उठाने के लिए वे सत्य पर बहस का उपयोग भी करते हैं। उदाहरण के लिए, अगर कोई मसीह-विरोधी सोचता है कि उसके साथी सत्य का अनुसरण करते हैं और उनकी हैसियत को खतरे में डाल सकते हैं, तो वह लोगों को धोखा देने और उनसे अपना आदर करवाने के लिए ऊँचे धर्म-सिद्धांतों और आध्यात्मिक सिद्धांतों की बात करेगा। इस तरह वे अपने साथियों और सहकर्मियों का महत्व घटाकर उन्हें दबा सकते हैं, और लोगों को यह महसूस करा सकते हैं कि, 'हालाँकि हमारे अगुआ के साथी सत्य का अनुसरण करने वाले लोग हैं, लेकिन वे क्षमता और काबिलियत के मामले में हमारे अगुआ के बराबर नहीं हैं। हमारे अगुआ के उपदेश उत्कृष्ट हैं, कोई उनसे तुलना नहीं कर सकता।' किसी मसीह-विरोधी के लिए इस प्रकार की टिप्पणी सुनना अत्यंत संतोषजनक होता है। वह अपने साथियों को देखता और सोचता है, 'क्या तुम सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति नहीं हो? क्या तुममें सत्य की कुछ वास्तविकताएँ नहीं हैं? तुम उसे स्पष्ट रूप से क्यों नहीं समझा पाते? अगर तुममें क्षमता है तो मंच पर आओ और बोलो। अब तुम पूरी तरह से अपमानित हो। तुममें काबिलियत की कमी है, फिर भी मुझसे लड़ने की हिम्मत करते हो?' मसीह-विरोधी यही सोच रहा होता है। मसीह-विरोधी का लक्ष्य क्या होता है? वह दूसरों को दबाने, उन्हें नीचा दिखाने और खुद को उनसे ऊपर रखने का तरीका सोचना चाहता है। मसीह-विरोधी हर उस व्यक्ति के साथ ऐसा ही व्यवहार करता है, जो सत्य का अनुसरण करता है या उसके साथ काम करता है। ... इन बुरे कामों के अलावा, मसीह-विरोधी कुछ और भी करते हैं जो और अधिक घृणित है, वे हमेशा यह पता लगाने की कोशिश में लगे रहते हैं कि सत्य का अनुसरण करने वालों पर हावी कैसे हुआ जाए। उदाहरण के लिए, यदि कुछ लोगों ने व्यभिचार किया है या कोई अन्य अपराध किया है, तो मसीह-विरोधी उन पर हमला करने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं, उनका अपमान करने, उन्हें उजागर और उनकी बदनामी करने के अवसर ढूँढ़ते हैं, उन्हें अपना कर्तव्य निभाने में हतोत्साहित करने के लिए उन पर ठप्पा लगाते हैं ताकि वे नकारात्मक हो जाएँ। मसीह विरोधी परमेश्वर के चुने हुए लोगों को भी मजबूर करते हैं कि वे उनके साथ भेदभाव करें, उनसे किनारा कर लें और उन्हें नकार दें, ताकि सत्य का अनुसरण करने वाले अलग-थलग पड़ जाएं। अंत में, जब सत्य का अनुसरण करने वाले सभी लोग नकारात्मक और कमजोर महसूस करने लगते हैं, सक्रिय रूप से अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर पाते, और सभाओं में भाग लेने के इच्छुक नहीं रह जाते, तब मसीह-विरोधी अपने मकसद में कामयाब हो जाते हैं। जब सत्य का अनुसरण करने वाले उनकी हैसियत और ताकत के लिए खतरा नहीं रह जाते, जब कोई उन्हें रिपोर्ट करने या उन्हें बेनकाब करने का साहस नहीं करता, तो मसीह-विरोधी सुकून महसूस करते हैं। ... संक्षेप में, मसीह-विरोधियों की इन अभिव्यक्तियों के आधार पर, हम यह तय कर सकते हैं कि वे अगुआई का कर्तव्य नहीं निभा रहे, क्योंकि वे परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने और सत्य के बारे में संगति करने में लोगों की अगुआई नहीं कर रहे, और वे उन्हें सत्य प्राप्त करने देकर जीवन प्रदान नहीं करते। इसके बजाय, वे कलीसियाई जीवन को बाधित और अव्यवस्थित करते हैं, कलीसिया के काम को ध्वस्त और नष्ट करते हैं, और लोगों को सत्य के अनुसरण और उद्धार पाने के मार्ग पर चलने से रोकते हैं। वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को पथभ्रष्ट करना चाहते हैं, जिससे वे उद्धार पाने का अवसर गँवा दें। यह अत्यंत पापपूर्ण लक्ष्य है, जिसे मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर के कार्य को बाधित और अव्यवस्थित करके हासिल करना चाहते हैं" (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद तीन : सत्य का अनुसरण करने वालों को वे निकाल देते हैं और उन पर आक्रमण करते हैं)। परमेश्वर के वचनों के इस अंश का मुझ पर बहुत प्रभाव पड़ा। परमेश्वर उजागर करता है कि कैसे मसीह-विरोधी लोगों को दबाते और दरकिनार करते हैं, सत्य खोजने वालों में दोष ढूँढ़कर, उन्हें नीचा दिखाकर अपने रुतबे को मजबूत करते हैं। मैं भी तो बहन चेन के साथ ऐसा ही व्यवहार कर रही थी? चुनाव के दौरान, जब मैंने देखा कि हर कोई बहन चेन के बारे में अच्छी राय रखता है, तो मुझे उसके साथ मिलकर काम करने वाला समय याद आया, कैसे सभी लोग उसकी सलाह मानते थे, वह सबका ध्यान खींचती थी। वह अक्सर मेरी गलतियाँ दिखाकर मेरा अपमान करती थी। मुझे लगा, अगर वह चुन ली गई, तो भाई-बहन बस उसी की बात सुनेंगे और उसकी प्रशंसा करेंगे, मेरी तो कोई सलाह ही नहीं मानेगा। तो मैंने घबराकर उसकी योग्यताओं को नकार दिया और उसकी पिछली भ्रष्टताओं का बतंगड़ बना दिया। मैंने कहा कि उसे जीवन का अधिक अनुभव नहीं है और उसने सत्य भी नहीं खोजा है, मैंने धोखे से लोगों के मन में उसके प्रति पूर्वाग्रह पैदा करने की कोशिश की ताकि वे उसे वोट न दें। जब अगुआ ने मेरी मंशा को भाँपकर मेरे गलत व्यवहार की आलोचना की, जब मेरा मनचाहा कुछ भी नहीं हुआ, तो मैंने विवेकशून्य होकर अपना कर्तव्य छोड़ना चाहा। मेरी हर बात में चालाकी और गुप्त मंशाएं भरी हुई थीं। यह सब मेरी प्रतिष्ठा और रुतबे की रक्षा के लिए था। यह मसीह-विरोधियों द्वारा उन लोगों पर आक्रमण से अलग कैसे हुआ जो रुतबे की मजबूती के लिए सत्य खोजते हैं? कलीसिया के काम के लिए कुशल व्यक्ति की तत्काल आवश्यकता थी, भले ही बहन चेन में भ्रष्टता के लक्षण थे और उसमें कमियां थीं, लेकिन उसमें न्याय-भावना थी और वह अपने कर्तव्य का बोझ उठा रही थी। समस्या होने पर वह सत्य खोजती थी और सत्य का अनुसरण करती थी, उसमें एक अगुआ की सारी योग्यताएँ थीं। लेकिन मुझे चिंता थी कि वह दूसरों की नजरों में मेरा रुतबा गिराएगी, मैंने कलीसिया के काम का जरा भी विचार किए बिना उसे नीचा दिखाने और दरकिनार करने की कोशिश की। मुझे परमेश्वर के इरादों की कोई चिंता नहीं थी और मैं अपना कर्तव्य भी नहीं निभा रही थी। मैं कलीसिया के काम में दखल देकर उसे अस्त-व्यस्त कर रही थी; मैं दुष्टता कर रही थी! इस एहसास के बाद, मुझे लगा कि मेरी हरकतें वाकई घटिया हैं। पहले मुझे लगता था कि लोगों को दरकिनार कर उन्हें दंडित करना एक मसीह-विरोधी का कार्य है, लेकिन अब मेरा स्वभाव भी मसीह-विरोधी बन गया था, मैं मसीह-विरोधी के मार्ग पर ही चल रही थी। अगर मैंने पश्चात्ताप नहीं किया, तो परमेश्वर मुझे उजागर कर त्याग देगा। इस एहसास के बाद, मैं थोड़ी डर गई, लेकिन मैं यह भी समझ गई कि परमेश्वर को उम्मीद है कि निपटारे और खुलासे से मैं चिंतन-मनन कर पश्चात्ताप करूंगी और अपना भ्रष्ट स्वभाव ठीक करने के लिए सत्य खोजूँगी। कलीसिया के काम को अच्छे से करने के लिए मुझे बहन चेन के साथ सचमुच सहयोग करना चाहिए। उसके बाद, मैंने खुलकर भाई-बहनों से अपनी भ्रष्टता पर बात की ताकि वे मेरी पुरानी बातों को समझकर बहन चेन के साथ ठीक से व्यवहार करें। बहन चेन को देखने के बाद, मैंने उसे दरकिनार करना और उसका विरोध करना छोड़ दिया, और सक्रियता से उसकी देखरेख पर ध्यान देने लगी, काम पर चर्चा और उसके साथ सहयोग करने लगी। धीरे-धीरे हम एक-दूसरे के साथ काफी अच्छे से घुल-मिल गए, इससे मुझे बहुत सुकून मिला। खासकर जब एक सभा में जब मैंने बहन चेन को अपने हाल के अनुभव के बारे में बहुत व्यावहारिक रूप से बोलते हुए सुना, तो मैं सोचने लगी कि मैं उसे अगुआ बनने से रोककर दुष्टता कर रही थी, मैं बहुत पछताई और खुद को दोषी महसूस किया।

बाद में, मैं सत्य खोजती और इस समस्या की जड़ पर विचार करती रही। मैंने परमेश्वर के वचनों का यह अंश पढ़ा। "अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा के प्रति मसीह-विरोधियों का चाव सामान्य लोगों से कहीं ज्यादा होता है, और यह एक ऐसी चीज है जो उनके स्वभाव और सार के भीतर होती है; यह कोई अस्थायी रुचि या उनके परिवेश का क्षणिक प्रभाव नहीं होता—यह उनके जीवन, उनकी हड्डियों में समायी हुई चीज है, और इसलिए यह उनका सार है। कहने का तात्पर्य यह है कि मसीह-विरोधी जो कुछ भी करता है, उसमें उनका पहला विचार अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा का होता है, और कुछ नहीं। मसीह-विरोधी के लिए हैसियत और प्रतिष्ठा उनका जीवन और उनके जीवन भर का लक्ष्य होती हैं। वे जो कुछ भी करते हैं, उसमें उनका पहला विचार यही होता है : 'मेरी हैसियत का क्या होगा? और मेरी प्रतिष्ठा का क्या होगा? क्या ऐसा करने से मुझे प्रतिष्ठा मिलेगी? क्या इससे लोगों के मन में मेरी हैसियत बढ़ेगी?' यही वह पहली चीज है जिसके बारे में वे सोचते हैं, जो इस बात का पर्याप्त प्रमाण है कि उनमें मसीह-विरोधियों का स्वभाव और सार है; वे अन्यथा इन समस्याओं पर विचार नहीं करेंगे। ... हालाँकि मसीह-विरोधी भी परमेश्वर में विश्वास करते हैं, लेकिन वे अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा को परमेश्वर में आस्था के बराबर समझते हैं और उसे समान महत्व देते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि जब वे परमेश्वर में विश्वास के मार्ग पर चलते हैं, तो वे अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा का अनुसरण भी करते हैं। कहा जा सकता है कि मसीह-विरोधी अपने दिलों में यह मानते हैं कि परमेश्वर में विश्वास और सत्य की खोज हैसियत और प्रतिष्ठा की खोज है; हैसियत और प्रतिष्ठा की खोज सत्य की खोज भी है, और हैसियत और प्रतिष्ठा प्राप्त करना सत्य और जीवन प्राप्त करना है। अगर उन्हें लगता है कि उनके पास कोई प्रतिष्ठा या हैसियत नहीं है, कि कोई उनकी प्रशंसा या आराधना या उनका अनुसरण नहीं करता, तो वे बहुत निराश हो जाते हैं, वे मानते हैं कि परमेश्वर में विश्वास करने का कोई मतलब नहीं है, इसका कोई मूल्य नहीं है, और वे मन ही मन कहते हैं, 'क्या परमेश्वर में ऐसा विश्वास असफलता है? क्या यह निराशाजनक है?' वे अक्सर अपने दिलों में ऐसी बातों पर सोच-विचार करते हैं, वे सोचते हैं कि कैसे वे परमेश्वर के घर में अपने लिए जगह बना सकते हैं, कैसे वे कलीसिया में उच्च प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकते हैं, ताकि जब वे बात करें तो लोग उन्हें सुनें, और जब वे कार्य करें तो लोग उनका समर्थन करें, और जहाँ कहीं वे जाएँ, लोग उनका अनुसरण करें; ताकि कलीसिया में उनके पास शक्ति हो, प्रतिष्ठा हो, ताकि वे लाभ और हैसियत प्राप्त कर सकें—वे अक्सर ऐसी चीजों पर विचार करते हैं। ऐसे लोग इन्हीं चीजों के पीछे दौड़ते हैं" (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और अपने व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ धोखा तक कर देते हैं (भाग तीन))। परमेश्वर उजागर करता है कि मसीह-विरोधी प्रतिष्ठा और रुतबे के कितने लालची होते हैं, सत्ता के पीछे भागना ही उनके हर काम का लक्ष्य होता है। वे लोगों से अपनी बात मनवाना और उनके दिलों में जगह बनाना चाहते हैं। सच तो यह है कि वे अपना स्वतंत्र राज्य बनाने के लिए ही सब-कुछ करते हैं, वे विश्वासियों को हथियाने और लोगों से अपनी पूजा करवाने के लिए परमेश्वर से होड़ करते हैं। मेरी अभिव्यक्तियाँ भी वैसी ही थीं जिन्हें परमेश्वर ने उजागर कर दिया : मैं हमेशा लोगों की नजरों में अपनी अच्छी छवि बनाने, रुतबे के पीछे भागने, अपनी बात मनवाने और सबका ध्यान खींचने की ताक में रहती थी। अगर कोई मुझसे ज्यादा प्रतिभाशाली सामने आ जाता, तो मैं उसे अपने रुतबे के लिए खतरा मानती और उस पर आक्रमण कर उसे दरकिनार कर देती। मैंने बहन चेन के साथ भी ऐसा ही व्यवहार किया। यह सोचकर कि अगर वह अगुआ चुन ली गई तो मैं खुद को अलग नहीं दिखा पाऊँगी, मैंने उसकी पिछली भ्रष्टता का बतंगड़ बना दिया ताकि लोग उसे वोट न दें। मैंने तो यह उम्मीद लगाई कि कोई नया साथी चुन लिया जाए। इस तरह, यह देखते हुए कि मैं काफी समय से अगुआ हूँ, मेरी कथनी या करनी भले ही सिद्धांतों के अनुरूप न हों, मेरे नए साथी का ध्यान इस तरफ नहीं जाएगा और वह मुझे उजागर नहीं करेगा। मैं कलीसिया की प्रमुख अगुआ बन जाऊँगी, मेरी हर बात मानी जाएगी और मैं मनचाहा कर पाऊँगी। मेरी महत्वाकांक्षाएं और इच्छाएं बेलगाम हो चुकी थीं। मैं अपना खुद का स्वतंत्र राज्य बना रही थी! अपने रुतबे को बचाने के लिए मैंने लोगों को दबाया और दरकिनार किया। क्या यह सीसीपी द्वारा अपने विरोधियों पर हमला कर उन्हें बाहर करने से अलग था? अपने निरंकुश शासन को बनाए रखने, लोगों से अपनी पूजा और अनुसरण करवाने, लोगों को दबाकर उन्हें उखाड़ फेंकने के लिए वे अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हैं ताकि उनके रुतबे और हितों के लिए कोई खतरा पैदा न कर सके। मैं बहन चेन के साथ वैसा ही व्यवहार कर रही थी जैसा सीसीपी अपने पीड़ितों के साथ करती है। मुझे यकीन नहीं हुआ कि मैं रुतबे के चक्कर में इतनी नीचे गिर गई थी। एक कलीसिया अगुआ के रूप में, मुझे कलीसिया का कार्य पूरा करने के लिए सत्य का अनुसरण कर रहे लोगों के साथ मिलकर काम करना चाहिए, और भाई-बहनों को परमेश्वर के सामने लाना चाहिए। लेकिन मैं तो बस प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे पड़ी थी—मेरे दिल में परमेश्वर के आदेश के लिए कोई जगह नहीं थी, न ही मैं परमेश्वर का भय मानती थी। बरसों परमेश्वर की विश्वासी होकर भी, मैंने अपने रुतबे की खातिर पूर्वाग्रही होकर लोगों का दमन, मैंने सचमुच परमेश्वर को निराश किया और बदले में उससे घृणा पाई!

बाद में, मुझे एहसास हुआ कि बहन चेन को दबाने और दरकिनार करने का एक और कारण था : वह मुझे उजागर कर नीचा दिखाती रही। मुझे इस हालत के बारे में परमेश्वर के वचनों का यह अंश मिला : "अगर तुम मसीह-विरोधी के मार्ग से दूर रहना चाहते हो, तो तुम्हें क्या करना चाहिए? तुम्हें सक्रियता से सत्य से प्रेम करने वाले ईमानदार लोगों के करीब जाना चाहिए। तुम्हें उन लोगों के करीब जाना चाहिए, जो तुम्हें सलाह दे सकते हों, और जो किसी समस्या का पता चलने पर सच बता सकते हों और तुम्हारी आलोचना कर सकते हों, और विशेष रूप से ऐसे लोग, जो किसी समस्या का पता चलने पर तुम्हारी काट-छाँट कर तुमसे निपट सकते हों। यह एक ऐसा व्यक्ति है, जो तुम्हारे लिए सबसे ज्यादा लाभदायक हो सकता है, और तुम्हें उसे सँजोना चाहिए। अगर तुम इस प्रकार के अच्छे व्यक्ति को नकारकर नजर से दूर कर देते हो, तो तुम परमेश्वर की सुरक्षा खो दोगे, और दुर्भाग्य धीरे-धीरे तुम्हारे निकट आ जाएगा। अगर तुम अच्छे लोगों और सत्य समझने वालों के करीब आते हो, तो तुम्हें शांति और खुशी मिलेगी, और तुम दुर्भाग्य से दूर रहोगे। अगर तुम ऐसे लोगों के करीब जाते हो, जो नीच, बेशर्म और चापलूस हैं, तो तुम खतरे में हो। तुम्हें न केवल मूर्ख बनाया और ठगा जा सकता है, बल्कि किसी भी समय तुम पर दुर्भाग्य आ सकता है। तुम्हें पता होना चाहिए कि तुम्हारे लिए सबसे ज्यादा लाभदायक कौन है। जब तुम कुछ गलत करते हो, और जब तुम खुद को ऊँचा उठाते हो, अपने बारे में गवाही देते हो और दूसरों को धोखा देने की कोशिश करते हो, तब जो व्यक्ति इस ओर ध्यान दिलाता है, वह उस तरह का व्यक्ति है जो तुम्हें सबसे ज्यादा लाभ पहुँचाता है, और उसके करीब जाना सही रास्ता है। क्या तुम ऐसा कर सकते हो? अगर कोई ऐसा कुछ कहता है जो तुम्हें अपमानित करता है, तो तुम उसके खिलाफ आजीवन द्वेष रखते हो और कहते हो, 'तुमने मुझे उजागर क्यों किया? मैंने तुम्हारे साथ बुरा व्यवहार नहीं किया; फिर तुम हमेशा मेरे लिए समस्या खड़ी क्यों करते हो?' तुम अपने दिल में द्वेष रखते हो, जो एक विभाजन पैदा करता है, और तुम्हें हमेशा लगता है, 'एक अगुआ के नाते मेरे पास तुम्हें ऐसा कहने से मना करने की स्थिति और हैसियत है।' यह किस चीज की अभिव्यक्ति है? यह सत्य स्वीकार न करने और दूसरों के साथ प्रतिस्पर्धा करने की अभिव्यक्ति है, और यह थोड़ी अनुचित है। क्या यह हैसियत की चिंता करना नहीं है? यह एक अत्यंत भ्रष्ट स्वभाव दर्शाता है। जो लोग हमेशा हैसियत के लिए अत्यधिक चिंतित रहते हैं, वे ऐसे लोग होते हैं जिनमें मसीह-विरोधी का स्वभाव गंभीर होता है, और इतना ही नहीं, अगर उन्होंने बुराई की, तो तुरंत प्रकट कर दिए जाएँगे। जो लोग सत्य को नकारते हैं और उसे स्वीकार नहीं पाते, वे बड़े खतरे में हैं। हमेशा हैसियत के लिए लड़ते रहना और हैसियत के लाभों के लिए ललचाना आसन्न खतरे का संकेत है। अगर किसी का दिल हमेशा हैसियत से नियंत्रित होता है, तो क्या वह सत्य का अभ्यास कर सकता है और सिद्धांत के अनुसार कार्य कर सकता है? अगर व्यक्ति सत्य का अभ्यास नहीं कर सकता, और हमेशा प्रसिद्धि और हैसियत प्राप्त करने के लिए, और हमेशा अपनी सत्ता का उपयोग करके कार्य करता है, तो क्या वह स्पष्ट रूप से एक मसीह-विरोधी नहीं है जो अपने असली रंग दिखा रहा है?" (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद चार : वे अपना उन्नयन करते हैं और अपने बारे में गवाही देते हैं)। यह अंश पढ़कर मुझे एहसास हुआ कि भाई-बहन मेरा मजाक उड़ाने, अपमानित या शर्मिंदा करने के लिए मुझे उजागर कर सुधार नहीं रहे थे, बल्कि मेरी मदद कर रहे थे ताकि मैं खुद को जानूँ। यह मेरे जीवन के लिए फायदेमंद था ताकि मैं गलत रास्ते पर न चली जाऊँ। पिछले साल जब मैं बहन चेन के साथ काम कर रही थी, तो मेरे भयंकर अहंकार और मनमाने बर्ताव को देखकर, उसने सीधे ही मुझे उजागर कर दिया था। वह स्नेहपूर्वक मेरा साथ दे रही थी। किसी ऐसे का साथ होना जो मुझ पर नजर रखे, मेरे जीवन प्रवेश के लिए फायदेमंद था। लेकिन उस समय, मैंने इसे परमेश्वर की कृपा नहीं माना और बहन चेन के अच्छे इरादों को भी गलत समझ लिया। मुझे लगा वह सीधे उजागर और सुधार कर मेरा अपमान कर रही है, इसलिए मैंने पूर्वाग्रही होकर उसे दरकिनार कर दिया। ये सभी मेरे मसीह-विरोधी स्वभाव की अभिव्यक्तियाँ थीं। परमेश्वर के वचनों ने मुझे अभ्यास का मार्ग दिया था। मुझे ईमानदार और सत्य का अनुसरण कर रहे स्पष्टवादी लोगों के साथ अधिक समय बिताना चाहिए, और जब मैं कुछ गलत करूँ और सिद्धांत के विरुद्ध जाऊँ, तो मुझे रुतबे और प्रतिष्ठा का त्याग कर उनके विचारों को सुनना चाहिए। इससे यह पक्का होगा कि मैंने कोई बुराई नहीं की है। कलीसिया अगुआ होकर भी ऐसे कई मुद्दे थे जिन्हें मैं समझ नहीं पाई थी। चूँकि हम अपने भ्रष्ट स्वभाव के काबू में होते हैं, हमारे काम में कोई न कोई व्यवधान और रुकावट तो आएगी ही। लोगों के साथ मिल-जुलकर काम करने और एक-दूसरे की मदद करने से ही हम अपने कर्तव्यों का पालन और कलीसिया के काम को अच्छे से कर सकते हैं। परमेश्वर की इच्छा समझ लेने पर, मैंने बहन चेन से खुलकर बात की और उससे माफी मांगी, उसे पूरी कहानी बताई कि कैसे मैंने उस पर हमला किया और उसे दबाया। यह सुनकर, बहन चेन ने न तो मुझे हिकारत से देखा और न ही घृणा की, बल्कि मेरी मदद करने के लिए अपने अनुभव पर संगति की। खुलकर बातचीत और संगति करके हमने अपने पूर्वाग्रह दूर कर लिए।

एक बार, अन्य प्रोजेक्ट में व्यस्तता की वजह से, मैंने कुछ सामान्य मामलों की उपेक्षा कर दी, जब दो महीने बाद सामान्य मामले संभालने वालों के साथ बैठक हुई तब मुझे यह बात याद आई। सामान्य मामलों की प्रभारी बहन यांग ने मेरी कड़ी आलोचना करते हुए कहा : "तुमने हमारे साथ दो महीने से कोई सभा नहीं की है और न ही हमारे काम में आने वाली समस्याएँ हल की हैं, इससे हम सभी का जीवन नकारात्मक रूप से प्रभावित हुआ है। जो अगुआ और कार्यकर्ता कार्य सौंपकर उसका प्रबंधन नहीं करते, परमेश्वर के वचन उन्हें नकली अगुआ कहते हैं।" बहन की यह बात सुनकर मेरे मन में मिली-जुली भावनाएँ पैदा हुईं : "मैंने इन दो महीनों में तुम्हारी हालत के बारे में पूछा तो है, बस उतनी बार नहीं पूछा। फिर, मैं दूसरे कामों में भी तो व्यस्त रही हूँ। सिर्फ इस वजह से तुम मुझे नकली अगुआ नहीं कह सकती! जब तुम ऐसी बातें कहोगी तो मुझसे कैसे उम्मीद कर सकती हो कि मैं तुम्हारे काम की जांच-पड़ताल करूँ? अगर तुम फिर से मुझे कुछ गलत करते हुए पकड़ोगी और वरिष्ठ अगुआओं को मुझे नकली अगुआ बताकर रिपोर्ट करोगी, तो क्या मैं अपना रुतबा नहीं गँवा बैठूँगी? ऐसे नहीं चलेगा, मैं तुम्हें आगे से काम की जाँच नहीं करने दूँगी।" लेकिन फिर सोचा कि मैंने पिछले महीने ही बहन चेन पर हमला कर उसे दरकिनार किया था, और अब मैं फिर से बहन यांग को अपनी राय रखने के कारण काम की जाँच नहीं करने देना चाहती थी। क्या मैं अभी भी अलग विचार रखने वालों पर हमला कर उन्हें दरकिनार नहीं कर रही थी? तभी मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया। "तुम्हें उन लोगों के करीब जाना चाहिए, जो तुम्हें सच बता सकते हैं। इस तरह का व्यक्ति पास होने के बहुत सारे लाभ होते हैं, खासकर उस तरह का व्यक्ति, जिसे पता है कि तुम्हारे साथ कोई समस्या है, जिसमें तुम्हारी आलोचना करने और तुम्हें उजागर करने का साहस है। इस तरह का अच्छा इंसान तुम्हारे पास होना तुम्हें भटकने से बचा सकता है। अगर उसे पता चलता है कि तुमने कुछ ऐसा किया है जो सत्य के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है, तो वह तुम्हारी हैसियत की परवाह न करते हुए जरूरत पड़ने पर तुम्हारी आलोचना करेगा और जरूरत पड़ने पर तुम्हें उजागर करेगा। वह न्याय की भावना रखने वाला एक ईमानदार व्यक्ति है। चाहे वह तुम्हें कैसे भी उजागर करे और कैसे भी तुम्हारी आलोचना करे, यह सब तुम्हारी मदद कर सकता है; यह सब तुम्हारा निरीक्षण और प्रोत्साहन है। तुम्हें इस तरह के व्यक्ति के करीब जाना चाहिए। तुम्हारी मदद करने के लिए इस तरह का व्यक्ति अपने साथ होने पर तुम ज्यादा सुरक्षित रहते हो। यही परमेश्वर की सुरक्षा है" (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद चार : वे अपना उन्नयन करते हैं और अपने बारे में गवाही देते हैं)। परमेश्वर के वचन याद कर, मैं धीरे-धीरे शांत हो गई। बहन यांग थोड़ी कठोर थी, लेकिन वह सच कह रही थी। उस दौरान, मैं उसके हालात को समझकर उसके मुद्दे नहीं सुलझा पाई थी। उसके जीवन पर वाकई प्रतिकूल प्रभाव पड़ा था। एक कलीसिया अगुआ के तौर पर, लोगों के हालात से अवगत रहना और उनकी समस्याएँ हल करना मेरी जिम्मेदारी थी—तमाम व्यस्तता के बावजूद, मैं उस जिम्मेदारी से नहीं बच सकती थी। लेकिन मैंने बहन यांग के प्रति कोई सरोकार नहीं दिखाया और जब उसने मुझे सुझाव दिए, तो मैंने प्रतिशोध के लिए उस पर हमला करना चाहा क्योंकि मुझे लगा मेरा सम्मान चला जाएगा। मैं सच में जहरीली थी! जब बहन यांग ने मेरा निपटारा किया, तो वह मेरे काम की निगरानी और सत्य का अभ्यास कर रही थी। उस पर हमला करके उससे बदला लेने का अर्थ है कि मैं सत्य के विरुद्ध जाकर दुष्टता कर रही थी! इसका एहसास होने पर, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की : "हे परमेश्वर, मैंने जान लिया है कि मैं दुष्ट प्रकृति की हूँ। अपना सम्मान और प्रतिष्ठा बचाने के लिए, मैं बहन यांग पर हमला कर उससे बदला लेना चाहती थी। यह लोगों को सजा देना है। हे परमेश्वर, अब मैं अपने भ्रष्ट स्वभाव के अनुसार कार्य नहीं करना चाहती। मैं सत्य का अभ्यास करने और बहन यांग के सुझाव स्वीकारने को तैयार हूँ।" प्रार्थना के बाद, बहन यांग के साथ किए अपने व्यवहार के लिए खुद को दोषी मानकर, मैं माफी माँगना चाहती थी, पर मुझे हैरानी हुई जब बहन यांग ने यह कहकर मुझसे पहले माफी मांग ली कि उसका व्यवहार ठीक नहीं था और बोलते वक्त उसका स्वभाव भ्रष्ट था। मैंने भी बहन यांग से माफी मांगी, मैंने कहा : "तुम सही हो। मैंने व्यावहारिक काम नहीं किया और मुझे इस पर विचार करना चाहिए।" मुझे लगा कि भाई-बहनों का मुझे उजागर और मेरी मदद करना इसलिए था कि मैं समझ सकूँ कि मैंने व्यावहारिक काम नहीं किया। यह परमेश्वर से आया था और परमेश्वर की सुरक्षा थी, उसका धन्यवाद!

इस अनुभव से, मुझे एहसास हुआ कि शैतान ने मुझे बुरी तरह से भ्रष्ट कर दिया था, मेरे अंदर प्रतिष्ठा और रुतबे का बहुत ज्यादा लालच था। अपनी इज्जत और रुतबे को कायम रखने के लिए, मैंने लोगों को दबाया और दरकिनार किया। यह बेहद घृणित और दुष्ट कार्य था। मुझे यह भी एहसास हुआ कि चाहे कैसे भी हालात हों, हमें चिंतन-मनन कर खुद को जानने का प्रयास करना चाहिए और अपने भ्रष्ट स्वभाव को ठीक करने के लिए सत्य खोजना चाहिए। तभी हम बुराई और परमेश्वर का विरोध करने से बच सकते हैं। परमेश्वर का धन्यवाद!

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