29. परमेश्वर तक पहुँचने के रास्ते में घुमाव और मोड़
मैं वर्ष 2000 में ईसाई बनी थी। दक्षिण कोरियाई पादरी अक्सर हमें उपदेश देते थे। एक सेवा में, पादरी ने बाइबल का एक अंश पढ़ने के बाद हमसे कहा, हमें हर मामले में सहिष्णु होकर सब्र रखना चाहिए—सिर्फ धर्मोपदेशों को सुनकर नहीं, बल्कि उन्हें व्यवहार में लाकर ही हम परमेश्वर का महिमागान कर पाएंगे। सिर्फ तभी हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर पाएंगे। उस समय से, मैंने अपने परिवार और दोस्तों के साथ प्यार और दया का व्यवहार करना शुरू कर दिया। अगर कोई मुझे ठेस पहुँचाता, तो मैं प्रभु से प्रार्थना करती कि इसे क्षमा करने में मेरी सहायता करें। एक-दो बार तो इसमें कोई दिक्कत नहीं हुई। लेकिन समय के साथ मैं इसे बनाए नहीं रख सकी। कभी-कभी मैं अपना आपा खो देती, और छोटी सी बात पर भाषण झाड़ देती थी। फिर मैं खुद को दोषी महसूस करती। लगातार पाप करती और स्वीकारती, मैं पाप के बंधन से मुक्त नहीं हो पा रही थी। क्या प्रभु के आने पर मुझे राज्य में ले जाया जाएगा? मैंने अपने पादरी से पूछा कि पाप की समस्या का समाधान कैसे किया जाए। उन्होंने मुझे पाप स्वीकारने और पश्चाताप करने को कहा—ज्यादा प्रार्थना करो, ज्यादा बाइबल पढ़ो, सहिष्णु और धैर्यवान बनो। मुझे किसी पथ की ओर निर्देशित किए बिना, जब भी वो ये कहते तो मैं निराश हो जाती थी। मैंने परमेश्वर के वचनों को याद किया, "इसलिये तुम पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ" (लैव्यव्यवस्था 11:45)। और इब्रानियों में कहा गया है, "पवित्रता के बिना कोई प्रभु को कदापि न देखेगा" (इब्रानियों 12:14)। मुझे लगा कि मेरे जैसी इंसान—जो हमेशा पाप करके उसे स्वीकारती है, जो प्रभु के वचनों का अभ्यास करने में असमर्थ है—उसे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं मिल सकता। मैं हर दिन दुखी रहती थी। बाद में, मैंने देखा कि कलीसिया ईर्ष्या और अंदरूनी कलह से भरा था। मंच के लिए लड़ाई में एक प्रचारक ने आराधना के समय पुराने उपदेशक की बाइबल जमीन पर फेंक दी और उसके स्थान पर कब्जा कर लिया। कुछ लोग तो कलीसिया में कारोबार भी कर रहे थे। मैंने प्रभु यीशु के वचनों के बारे में सोचा : "लिखा है, 'मेरा घर प्रार्थना का घर कहलाएगा'; परन्तु तुम उसे डाकुओं की खोह बनाते हो" (मत्ती 21:13)। ऐसे कलीसिया में पवित्र आत्मा का कार्य कैसे हो सकता है? क्या यह चोरों का अड्डा नहीं था? मुझे लगा उन सेवाओं से पोषण नहीं मिलेगा और मेरे पाप करने की समस्या का समाधान कभी नहीं होगा। मैं पवित्र आत्मा के कार्य वाली कलीसिया खोजना चाहती थी। मेरी बड़ी बहन मुझे कुछ और कलीसियाओं में ले गई, लेकिन उन सभी की हालत एक जैसी थी। जब मैंने उनसे पूछा कि पाप से कैसे बचा जाये, तो उनमें से कोई भी रास्ता नहीं बता सके। उन्होंने कहा कि प्रभु यीशु ने हमें क्षमा कर दिया है—हमें केवल प्रार्थना और पश्चाताप करना चाहिए। इससे मुझे खालीपन महसूस हुआ। अब मेरा सेवाओं में शामिल होने का मन भी नहीं था। एक दिन मुझे अचानक एक विचार आया : शायद परमेश्वर यहाँ की कलीसियाओं में कार्यरत नहीं था? जब कोरियाई पादरियों ने दौरा किया था, तो वे पवित्र लग रहे थे—वे कलीसियाओं की चरवाही के लिए सीधे चीन आए थे। उनका इतना विश्वास था। क्या कोरियाई कलीसियाओं में परमेश्वर कार्यरत था? मुझे वहाँ पवित्र आत्मा के कार्य वाली कलीसिया की तलाश होगी।
2007 में, मैं और मेरी बड़ी बहन अपने परिवार के साथ कोरिया आ गये। उसने मुझे एक कलीसिया से मिलवाया जहाँ कई चीनी लोग सेवाओं में शामिल हुये थे। कलीसिया के सदस्यों ने चीनी लोगों को नौकरी पाने में मदद की, ताकि हम अपना जीवन यापन कर सकें। उस कलीसिया के सदस्य बहुत स्नेही थे, इसीलिए मैंने वहाँ सभाओं में भाग लिया—शायद उनके पास पवित्र आत्मा का कार्य था। एक सेवा के दौरान, पादरी ने कहा, "चीन की मेरी सबसे हाल की यात्रा में, मैंने सुना कि परमेश्वर लौट आया है, वह प्रकट होकर चीन में कार्य कर रहा है, और उसे सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहा जाता है। लेकिन चीन एक पिछड़ा देश है। यहाँ के लोग अशिक्षित हैं। परमेश्वर बहुत महान हैं—वह प्रकट होकर वहाँ कैसे कार्य कर सकता है? बहुत से लोग चमकती पूर्वी बिजली का प्रचार कर रहे हैं। इसे सुनो मत। तुम्हारी जैसी छोटे आध्यात्मिक कद वाली, एक बार शामिल हो गई, तो कभी बाहर नहीं निकल पाओगी।" जब मैंने उसे यह कहते सुना, तो मैं पूरी तरह से सहमत हो गयी। चीन में इतनी सारी कलीसियाओं में पवित्र आत्मा के कार्य का अभाव है। वहाँ की सरकार विश्वासियों पर अत्याचार करती है, और चीनी लोग मूर्तियों की आराधना करते हैं। क्या परमेश्वर प्रकट होकर चीन में कार्य कर सकता है? यह असंभव होगा।
जल्द ही, मैंने पाया कि भले ही पादरी वाक्पटुता के साथ प्रचार करते थे, लेकिन बाद में कुछ अलग ही करते थे; वे प्रभु के मार्ग का अभ्यास नहीं कर रहे थे। मैं बहुत निराश हो गई थी। जब मैंने पादरी से पूछा कि पापी होने का समाधान कैसे किया जाए, तो उन्होंने गुस्से से कहा, "हर कोई भ्रष्ट है। पाप करना सामान्य है। प्रभु के सामने स्वीकारो, और तुम्हें क्षमा किया जायेगा। तुम पश्चाताप को तैयार हो, इसीलिए प्रभु ने तुम्हारे पापों को क्षमा कर दिया है।" पादरी ने जो कहा उससे मुझे घृणा हुई। वे ठीक वही बात क्यों कह रहे थे जो चीनी पादरियों ने कही थी? पाप पल भर में नहीं छूट सकता। कम से कम कुछ तो बदलाव होना चाहिए। अगर हम बिल्कुल नहीं बदले हैं, तो स्वीकारने की जहमत क्यों उठाएँ? क्या यह हमें अविश्वासियों जैसा नहीं बनाता है? तो क्या विश्वासी होने का कोई अर्थ है? बार-बार मैं निराश हुई, लेकिन मैं हार नहीं मानना चाहती थी। मुझे विश्वास था कि प्रभु मेरा त्याग नहीं करेगा, एक दिन मुझे पवित्र आत्मा के कार्य वाली कलीसिया जरूर मिलेगी। उसके बाद मैंने इस मुद्दे पर काफी विचार किया। सड़कों पर चलते हुए, मैं ईसाई कलीसियाओं के लिए क्रॉस की तलाश कर रही थी, और अगर मुझे किसी पादरी के उपदेश के बारे में सकारात्मक बातें सुनाई देती थीं, तो मैं हवा, बारिश, बर्फ या ओले की परवाह न करके उपदेश सुनने चली जाती थी, मैंने आशा नहीं छोड़ी, मुझे अपनी उलझन को दूर करने की लालसा थी। मैंने कोरिया में 40 से अधिक कलीसियाओं का दौरा किया फिर भी ऐसी कलीसिया नहीं मिली जिसमें पवित्र आत्मा का कार्य हो। कोई भी पादरी मेरी समस्या का समाधान नहीं कर सके। हताश होकर, मैं रातों की नींद गंवाकर करवटें बदलती रहती थी। मैंने दिल से पुकारा, "हे प्रभु, तुम पृथ्वी पर कहाँ हो? क्या तुमने मुझे त्याग दिया है?" उन वर्षों में, मैंने अपने दिल पर बहुत बोझ महसूस किया—मैं उदास थी, पीड़ा में थी।
इस पीड़ा और हताशा के बीच, जून 2015 में मेरी बड़ी बहन मेरे घर आई और उसने खुशी-खुशी मुझसे कहा, "मैं एक बहुत अच्छी खबर लायी हूँ! प्रभु बहुत समय पहले लौट आया था। वह प्रकट होकर चीन में कार्य कर रहा है, बहुत सारे सत्य व्यक्त कर रहा है। सुसमाचार अब कोरिया तक पहुँच गया है।" मैंने सोचा, "परमेश्वर चीन में कार्य कर रहा है? यह कैसे हो सकता है?" मैंने हठपूर्वक कहा, "एक पादरी ने हमें 2009 में बताया था कि परमेश्वर चीन में कार्यरत नहीं हो सकता, क्योंकि चीन पिछड़ा हुआ है और यहाँ के लोग अशिक्षित हैं। परमेश्वर आदरणीय और महान है—वह चीन में क्यों कार्यरत होगा?" फिर मैं बर्तन धोने चली गयी। उसने एक किताब निकाली और धैर्य से बोली, "यह मेमने द्वारा खोली गई पुस्तक है, इसमें अंत के दिनों में परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए वचन मौजूद हैं। मैं इसमें से कुछ तुम्हें पढ़कर सुनाती हूँ।"
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "जब यीशु मनुष्य के संसार में आया, तो उसने अनुग्रह के युग में प्रवेश कराया और व्यवस्था का युग समाप्त किया। अंत के दिनों के दौरान, परमेश्वर एक बार फिर देहधारी बन गया, और इस देहधारण के साथ उसने अनुग्रह का युग समाप्त किया और राज्य के युग में प्रवेश कराया। उन सबको, जो परमेश्वर के दूसरे देहधारण को स्वीकार करने में सक्षम हैं, राज्य के युग में ले जाया जाएगा, और इससे भी बढ़कर वे व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर का मार्गदर्शन स्वीकार करने में सक्षम होंगे। यद्यपि यीशु ने मनुष्यों के बीच अधिक कार्य किया, फिर भी उसने केवल समस्त मानवजाति की मुक्ति का कार्य पूरा किया और वह मनुष्य की पाप-बलि बना; उसने मनुष्य को उसके समस्त भ्रष्ट स्वभाव से छुटकारा नहीं दिलाया। मनुष्य को शैतान के प्रभाव से पूरी तरह से बचाने के लिए यीशु को न केवल पाप-बलि बनने और मनुष्य के पाप वहन करने की आवश्यकता थी, बल्कि मनुष्य को उसके शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए स्वभाव से मुक्त करने के लिए परमेश्वर को और भी बड़ा कार्य करने की आवश्यकता थी। और इसलिए, अब जबकि मनुष्य को उसके पापों के लिए क्षमा कर दिया गया है, परमेश्वर मनुष्य को नए युग में ले जाने के लिए वापस देह में लौट आया है, और उसने ताड़ना एवं न्याय का कार्य आरंभ कर दिया है। यह कार्य मनुष्य को एक उच्चतर क्षेत्र में ले गया है। वे सब, जो परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन समर्पण करेंगे, उच्चतर सत्य का आनंद लेंगे और अधिक बड़े आशीष प्राप्त करेंगे। वे वास्तव में ज्योति में निवास करेंगे और सत्य, मार्ग और जीवन प्राप्त करेंगे।
"यदि लोग अनुग्रह के युग में अटके रहेंगे, तो वे कभी भी अपने भ्रष्ट स्वभाव से छुटकारा नहीं पाएँगे, परमेश्वर के अंर्तनिहित स्वभाव को जानने की बात तो दूर! यदि लोग सदैव अनुग्रह की प्रचुरता में रहते हैं, परंतु उनके पास जीवन का वह मार्ग नहीं है, जो उन्हें परमेश्वर को जानने और उसे संतुष्ट करने का अवसर देता है, तो वे उसमें अपने विश्वास से उसे वास्तव में कभी भी प्राप्त नहीं करेंगे। इस प्रकार का विश्वास वास्तव में दयनीय है। जब तुम इस पुस्तक को पूरा पढ़ लोगे, जब तुम राज्य के युग में देहधारी परमेश्वर के कार्य के प्रत्येक चरण का अनुभव कर लोगे, तब तुम महसूस करोगे कि अनेक वर्षों की तुम्हारी आशाएँ अंततः साकार हो गई हैं। तुम महसूस करोगे कि केवल अब तुमने परमेश्वर को वास्तव में आमने-सामने देखा है; केवल अब तुमने परमेश्वर के चेहरे को निहारा है, उसके व्यक्तिगत कथन सुने हैं, उसके कार्य की बुद्धिमत्ता को सराहा है, और वास्तव में महसूस किया है कितना वास्तविक और सर्वशक्तिमान है वह। तुम महसूस करोगे कि तुमने ऐसी बहुत-सी चीजें पाई हैं, जिन्हें अतीत में लोगों ने न कभी देखा था, न ही प्राप्त किया था। इस समय, तुम स्पष्ट रूप से जान लोगे कि परमेश्वर पर विश्वास करना क्या होता है, और परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप होना क्या होता है। निस्संदेह, यदि तुम अतीत के विचारों से चिपके रहते हो, और परमेश्वर के दूसरे देहधारण के तथ्य को अस्वीकार या उससे इनकार करते हो, तो तुम खाली हाथ रहोगे और कुछ नहीं पाओगे, और अंततः परमेश्वर का विरोध करने के दोषी ठहराए जाओगे। वे जो सत्य का पालन करते हैं और परमेश्वर के कार्य के प्रति समर्पण करते हैं, उनका दूसरे देहधारी परमेश्वर—सर्वशक्तिमान—के नाम पर दावा किया जाएगा। वे परमेश्वर का व्यक्तिगत मार्गदर्शन स्वीकार करने में सक्षम होंगे, वे अधिक और उच्चतर सत्य तथा वास्तविक जीवन प्राप्त करेंगे। वे उस दृश्य को निहारेंगे, जिसे अतीत के लोगों द्वारा पहले कभी नहीं देखा गया था : 'तब मैं ने उसे, जो मुझ से बोल रहा था, देखने के लिये अपना मुँह फेरा; और पीछे घूमकर मैं ने सोने की सात दीवटें देखीं, और उन दीवटों के बीच में मनुष्य के पुत्र सदृश एक पुरुष को देखा, जो पाँवों तक का वस्त्र पहिने, और छाती पर सोने का पटुका बाँधे हुए था। उसके सिर और बाल श्वेत ऊन और पाले के समान उज्ज्वल थे, और उसकी आँखें आग की ज्वाला के समान थीं। उसके पाँव उत्तम पीतल के समान थे जो मानो भट्ठी में तपाया गया हो, और उसका शब्द बहुत जल के शब्द के समान था। वह अपने दाहिने हाथ में सात तारे लिये हुए था, और उसके मुख से तेज दोधारी तलवार निकलती थी। उसका मुँह ऐसा प्रज्वलित था, जैसा सूर्य कड़ी धूप के समय चमकता है' (प्रकाशितवाक्य 1:12-16)। यह दृश्य परमेश्वर के संपूर्ण स्वभाव की अभिव्यक्ति है, और उसके संपूर्ण स्वभाव की यह अभिव्यक्ति वर्तमान देहधारण में परमेश्वर के कार्य की अभिव्यक्ति भी है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना)। यह सुनकर मैं अवाक रह गयी। इसने प्रकाशित-वाक्य की पुस्तक के रहस्यों का खुलासा किया। यह बहुत आधिकारिक था—कोई भी इंसान ऐसे वचन नहीं बोल सकता था। मैंने उस अधिकार के बारे में सोचा जिसके साथ प्रभु यीशु ने वापस आकर कार्य करने की बात की थी, और सोचा कि क्या ये सच में परमेश्वर के वचन थे। तुरंत मेरी आत्मा में उत्साह जगा, और मैं ध्यान से सुनने लगी। खासकर जब मेरी बहन ने प्रकाशित-वाक्य की कुछ भविष्यवाणियाँ पढ़ीं, तब मैं सोच रही थी कि कोई इंसान उनकी व्याख्या नहीं कर सकता। प्रकाशित-वाक्य हमें बताता है, "देख, यहूदा के गोत्र का वह सिंह जो दाऊद का मूल है, उस पुस्तक को खोलने और उसकी सातों मुहरें तोड़ने के लिये जयवन्त हुआ है" (प्रकाशितवाक्य 5:5)। केवल मेमना, केवल परमेश्वर ही इन रहस्यों का खुलासा कर सकता है। क्या यह परमेश्वर का वचन था? क्या यह संभव था कि वह प्रकट होकर चीन में कार्य कर रहा हो? क्या मुझे अपने इतने सालों के अनसुलझे सवालों का जवाब उस किताब में मिल सकता है? मैं इस बारे में बहुत उत्सुक हो गयी। तभी मेरी बहन ने इसे पढ़ा : "ये प्रकाशितवाक्य के इन वचनों की पूर्ति भी हैं : 'जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है।' ये वचन उस कार्य के आरंभिक चरण का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसे परमेश्वर ने राज्य के युग में आरंभ किया था" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना)। इससे मुझे और दिलचस्पी हुई—क्या यह प्रकाशित-वाक्य की पुस्तक की भविष्यवाणी नहीं थी? क्या प्रकाशित-वाक्य की भविष्यवाणियाँ पूरी हुई थीं? क्या ये परमेश्वर के वचन थे? इसे ठीक से पढ़ने की इच्छा से मैंने अपनी बहन से इसे मेरे पास छोड़ने को कहा। जब उसने मुझे किताब सौंपी तो मैं खुशी से झूम उठी। मैं इसे खोलने के लिए बेताब थी। लेकिन मेरी कुछ चिंताएं भी थीं। क्या यह पुस्तक सच में बाइबल के अनुरूप थी? मैंने पलंग पर बाइबल और इस पुस्तक को पास-पास रखकर उनकी तुलना करनी चाही। पुस्तक में, मैंने इस अंश को पढ़ा। "जब मैं नए स्वर्ग और पृथ्वी में प्रवेश करूँगा, सिर्फ तभी मैं अपनी महिमा का दूसरा भाग लेकर उसे सबसे पहले कनान की धरती पर प्रकट करूँगा, जिससे रात के गहरे अंधकार में डूबी पूरी पृथ्वी पर रोशनी की चमक फ़ैल जाएगी, ताकि पूरी पृथ्वी प्रकाशमान हो जाए; ताकि इस प्रकाश के सामर्थ्य से पूरी पृथ्वी के मनुष्य शक्ति प्राप्त करें, जिससे मेरी महिमा बढ़ सके और हर देश में नए सिरे से प्रकट हो सके; और सभी मनुष्यों को यह एहसास हो सके कि मैं बहुत पहले मानव-संसार में आ चुका हूँ और बहुत पहले अपनी महिमा इस्राएल से पूरब में ला चुका हूँ; क्योंकि मेरी महिमा पूरब से चमकती है और वह अनुग्रह के युग से आज के दिन तक लाई गई है। लेकिन वह इस्राएल ही था जहाँ से मैं गया था और वहीं से मैं पूरब में पहुँचा था। जब पूरब का प्रकाश धीरे-धीरे सफेद रोशनी में तब्दील होगा, तभी पूरी धरती का अंधकार प्रकाश में बदलना शुरू होगा, और तभी मनुष्य को यह पता चलेगा कि मैं बहुत पहले इस्राएल से जा चुका हूँ और नए सिरे से पूरब में उभर रहा हूँ। एक बार इस्राएल में अवतरित होने और फिर वहाँ से चले जाने के बाद मैं दोबारा इस्राएल में पैदा नहीं हो सकता, क्योंकि मेरा कार्य पूरे ब्रह्मांड की अगुआई करता है, और यही नहीं, रोशनी सीधे पूरब से पश्चिम की ओर चमकती है। यही कारण है कि मैं पूरब में अवतरित हुआ हूँ और कनान को पूरब के लोगों तक लाया हूँ। मैं पूरी पृथ्वी के लोगों को कनान की धरती पर लाऊँगा, इसलिए मैं पूरे ब्रह्मांड को नियंत्रित करने के लिए कनान की धरती से लगातार अपने कथन जारी कर रहा हूँ। इस समय, कनान को छोड़कर पूरी पृथ्वी पर प्रकाश नहीं है, और सभी लोग भूख और ठंड के कारण संकट में हैं। मैंने अपनी महिमा इस्राएल को दी और फिर उसे हटा लिया, और इस प्रकार इस्राएलियों और सभी मनुष्यों को पूरब में ले आया। मैं उन सभी को प्रकाश में ले आया हूँ, ताकि वे इसके साथ फिर से जुड़ सकें और इससे जुड़े रह सकें, और उन्हें इसकी खोज न करनी पड़े। जो लोग प्रकाश की खोज कर रहे हैं, उन्हें मैं फिर से प्रकाश देखने दूँगा और उस महिमा को देखने दूँगा जो मेरे पास इस्राएल में थी; मैं उन्हें यह देखने दूँगा कि मैं बहुत पहले एक सफेद बादल पर सवार होकर मनुष्यों के बीच आ चुका हूँ, मैं उन्हें असंख्य सफेद बादल और प्रचुर मात्रा में फलों के गुच्छे देखने दूँगा, और यही नहीं, मैं उन्हें इस्राएल के यहोवा परमेश्वर को भी देखने दूँगा। मैं उन्हें यहूदियों के गुरु, इच्छित मसीहा को देखने दूँगा, और अपना पूर्ण प्रकटन देखने दूँगा, जिन्हें युगों-युगों से राजाओं द्वारा सताया गया है। मैं संपूर्ण ब्रह्मांड पर कार्य करूँगा और मैं महान कार्य करूँगा, और अंत के दिनों में मनुष्य के सामने अपनी पूरी महिमा और अपने सभी कर्म प्रकट कर दूँगा। मैं अपना महिमामय मुखमंडल उसकी पूर्णता में उन लोगों को, जिन्होंने कई वर्षों से मेरी प्रतीक्षा की है और जो मुझे सफेद बादल पर सवार होकर आते हुए देखने के लिए लालायित रहे हैं, और उस इस्राएल को, जिसने मेरे एक बार फिर प्रकट होने की लालसा की है, और उस पूरी मनष्यजाति को दिखाऊँगा, जो मुझे कष्ट पहुँचाती हैं, ताकि सभी यह जान सकें कि मैंने बहुत पहले ही अपनी महिमा हटा ली है और उसे पूरब में ले आया हूँ, और वह अब यहूदिया में नहीं है। कारण, अंत के दिन पहले ही आ चुके हैं!" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सात गर्जनाएँ होती हैं—भविष्यवाणी करती हैं कि राज्य का सुसमाचार पूरे ब्रह्मांड में फैल जाएगा)। फिर मैंने इसकी तुलना बाइबल की एक भविष्यवाणी से की : "क्योंकि जैसे बिजली पूर्व से निकलकर पश्चिम तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य के पुत्र का भी आना होगा" (मत्ती 24:27)। यह प्रभु यीशु के वचनों से मेल खाता था—यह पूरी तरह से बाइबल के अनुरूप था। परमेश्वर के अलावा और कौन इन रहस्यों को खोल सकता है? इन वचनों ने मुझे आकर्षित किया—जितना ज्यादा मैंने पढ़ा, उतनी ज्यादा पढ़ने की मेरी चाह हुई। मुझे लगा जैसे इस किताब में, मुझे अपने मन की उलझन का जवाब मिल जाएगा।
उसके बाद मैंने एक और अंश पढ़ा। "चूँकि हम परमेश्वर के पदचिह्नों की खोज कर रहे हैं, इसलिए हमारा कर्तव्य बनता है कि हम परमेश्वर की इच्छा, उसके वचन और कथनों की खोज करें—क्योंकि जहाँ कहीं भी परमेश्वर द्वारा बोले गए नए वचन हैं, वहाँ परमेश्वर की वाणी है, और जहाँ कहीं भी परमेश्वर के पदचिह्न हैं, वहाँ परमेश्वर के कर्म हैं। जहाँ कहीं भी परमेश्वर की अभिव्यक्ति है, वहाँ परमेश्वर प्रकट होता है, और जहाँ कहीं भी परमेश्वर प्रकट होता है, वहाँ सत्य, मार्ग और जीवन विद्यमान होता है। परमेश्वर के पदचिह्नों की तलाश में तुम लोगों ने इन वचनों की उपेक्षा कर दी है कि 'परमेश्वर सत्य, मार्ग और जीवन है।' और इसलिए, बहुत-से लोग सत्य को प्राप्त करके भी यह नहीं मानते कि उन्हें परमेश्वर के पदचिह्न मिल गए हैं, और वे परमेश्वर के प्रकटन को तो बिलकुल भी स्वीकार नहीं करते। कितनी गंभीर ग़लती है! परमेश्वर के प्रकटन का समाधान मनुष्य की धारणाओं से नहीं किया जा सकता, और परमेश्वर मनुष्य के आदेश पर तो बिलकुल भी प्रकट नहीं हो सकता। परमेश्वर जब अपना कार्य करता है, तो वह अपनी पसंद और अपनी योजनाएँ बनाता है; इसके अलावा, उसके अपने उद्देश्य और अपने तरीके हैं। वह जो भी कार्य करता है, उसके बारे में उसे मनुष्य से चर्चा करने या उसकी सलाह लेने की आवश्यकता नहीं है, और अपने कार्य के बारे में हर-एक व्यक्ति को सूचित करने की आवश्यकता तो उसे बिलकुल भी नहीं है। यह परमेश्वर का स्वभाव है, जिसे हर व्यक्ति को पहचानना चाहिए। यदि तुम लोग परमेश्वर के प्रकटन को देखने और उसके पदचिह्नों का अनुसरण करने की इच्छा रखते हो, तो तुम लोगों को पहले अपनी धारणाओं को त्याग देना चाहिए। तुम लोगों को यह माँग नहीं करनी चाहिए कि परमेश्वर ऐसा करे या वैसा करे, तुम्हें उसे अपनी सीमाओं और अपनी धारणाओं तक सीमित तो बिलकुल भी नहीं करना चाहिए। इसके बजाय, तुम लोगों को खुद से यह पूछना चाहिए कि तुम्हें परमेश्वर के पदचिह्नों की तलाश कैसे करनी चाहिए, तुम्हें परमेश्वर के प्रकटन को कैसे स्वीकार करना चाहिए, और तुम्हें परमेश्वर के नए कार्य के प्रति कैसे समर्पण करना चाहिए। मनुष्य को ऐसा ही करना चाहिए। चूँकि मनुष्य सत्य नहीं है, और उसके पास भी सत्य नहीं है, इसलिए उसे खोजना, स्वीकार करना और आज्ञापालन करना चाहिए" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 1: परमेश्वर के प्रकटन ने एक नए युग का सूत्रपात किया है)। मैंने इस अंश को लगातार दो बार पढ़ा। तब मैं सोच रही थी कि जहाँ परमेश्वर की वाणी मिल सकती है, वहाँ उसके पदचिह्न भी मिल सकते हैं। वहीं परमेश्वर का प्रकटन होता है। क्या वे सचमुच परमेश्वर के वचन थे? परमेश्वर के अलावा कोई भी ऐसा कुछ नहीं कह सकता। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया में यही पढ़ते हैं, तो शायद परमेश्वर उस कलीसिया में काम कर रहा था। मैं रोमांचित थी, और मैंने पढ़ना जारी रखा।
बाद में, मुझे यह अंश मिला। "आज परमेश्वर अपना कार्य करने के लिए संसार में लौट आया है। उसका पहला पड़ाव तानाशाही शासन का नमूना है : नास्तिकता का कट्टर गढ़ चीन है। परमेश्वर ने अपनी बुद्धि और सामर्थ्य से लोगों का एक समूह प्राप्त कर लिया है। इस अवधि के दौरान चीन की सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा उसका हर तरह से शिकार किया जाता रहा है और उसे अत्यधिक पीड़ा का भागी बनाया जाता रहा है, उसे अपना सिर टिकाने के लिए भी कोई जगह नहीं मिली और वह कोई आश्रय पाने में असमर्थ रहा। इसके बावजूद, परमेश्वर अभी भी वह कार्य जारी रखे हुए है, जिसे करने का उसका इरादा है : वह अपनी वाणी बोलता है और सुसमाचार का प्रसार करता है। कोई भी परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता की थाह नहीं पा सकता। चीन में, जो परमेश्वर को शत्रु माननेवाला देश है, परमेश्वर ने कभी भी अपना कार्य बंद नहीं किया है। इसके बजाय, और अधिक लोगों ने उसके कार्य और वचन को स्वीकार किया है, क्योंकि परमेश्वर मानवजाति के हर एक सदस्य को अधिक से अधिक बचाता है, जो वह कर सकता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 2: परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियंता है)। लेकिन जब मैंने इस भाग को पढ़ा, "आज परमेश्वर अपना कार्य करने के लिए संसार में लौट आया है। उसका पहला पड़ाव तानाशाही शासन का नमूना है : नास्तिकता का कट्टर गढ़ चीन है," मैं तुरंत रुक गयी, मैं निराश हो गई। मेरी नजर उन दो वाक्यों पर टिकी हुई थी, मैं बस यही सोचती रही, "परमेश्वर, चीन में? यह कैसे हो सकता है? शायद मुझे इसे नहीं पढ़ना चाहिए—अगर मैं भटक गयी तो क्या होगा?" लेकिन फिर मैंने सोचा, ये वचन परमेश्वर की वाणी जैसे लग रहे थे। अगर मैंने इस पर गौर नहीं किया और प्रभु सच में लौट आये थे, तो क्या मैं अपना अवसर नहीं गँवा दूँगी? मैं बहुत परेशान थी, सोचना बंद नहीं कर पा रही थी : परमेश्वर प्रकट होकर चीन में कार्यरत क्यों होगा? मैंने इसकी तुलना बाइबल से की और पढ़ा कि प्रभु यीशु ने क्या कहा था : "क्योंकि जैसे बिजली पूर्व से निकलकर पश्चिम तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य के पुत्र का भी आना होगा" (मत्ती 24:27)। क्या "पूरब" चीन का संदर्भ था? लेकिन चीन इतना पिछड़ा हुआ था और देश में हर जगह नास्तिकता फैली थी। क्या परमेश्वर प्रकट होकर चीन में कार्यरत हो सकता है? इस पुस्तक में बहुत स्पष्ट कहा गया है कि ऐसा ही हुआ है। फिर भी मैं हिचकिचा रही थी—क्या मुझे जारी रखना चाहिए या छोड़ देना चाहिए? फिर मैंने सोचा कि इतने सालों में मैंने अपनी खोज में कितना संघर्ष किया है। इसीलिए जब तक आशा की किरण थी, मैं हार नहीं मान सकती थी। इसीलिए मैंने छानबीन के लिए सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया में जाने का फैसला किया।
अगले दिन, मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया गई। एक भाई धर्मोपदेश दे रहे थे, वही बात कह रहे थे जिसके बारे में मैं सोच रही थी—पाप से कैसे मुक्त हों। वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ रहे थे। "अनुग्रह के युग में हाथ रखकर और प्रार्थना करके दुष्टात्माओं को मनुष्य से निकाला जाता था, परंतु मनुष्य के भीतर का भ्रष्ट स्वभाव तब भी बना रहता था। मनुष्य को उसकी बीमारी से चंगा कर दिया जाता था और उसके पाप क्षमा कर दिए जाते थे, किंतु जहाँ तक इस बात का संबंध था कि मनुष्य को उसके भीतर के शैतानी स्वभावों से कैसे मुक्त किया जाए, तो यह कार्य अभी किया जाना बाकी था। मनुष्य को उसके विश्वास के कारण केवल बचाया गया था और उसके पाप क्षमा किए गए थे, किंतु उसका पापी स्वभाव उसमें से नहीं निकाला गया था और वह अभी भी उसके अंदर बना हुआ था। मनुष्य के पाप देहधारी परमेश्वर के माध्यम से क्षमा किए गए थे, परंतु इसका अर्थ यह नहीं था कि मनुष्य के भीतर कोई पाप नहीं रह गया था। पापबलि के माध्यम से मनुष्य के पाप क्षमा किए जा सकते हैं, परंतु मनुष्य इस समस्या को हल करने में पूरी तरह असमर्थ रहा है कि वह आगे कैसे पाप न करे और कैसे उसका भ्रष्ट पापी स्वभाव पूरी तरह से मिटाया और रूपांतरित किया जा सकता है। मनुष्य के पाप क्षमा कर दिए गए थे और ऐसा परमेश्वर के सलीब पर चढ़ने के कार्य की वजह से हुआ था, परंतु मनुष्य अपने पुराने, भ्रष्ट शैतानी स्वभाव में जीता रहा। इसलिए मनुष्य को उसके भ्रष्ट शैतानी स्वभाव से पूरी तरह से बचाया जाना आवश्यक है, ताकि उसका पापी स्वभाव पूरी तरह से मिटाया जा सके और वह फिर कभी विकसित न हो पाए, जिससे मनुष्य का स्वभाव रूपांतरित होने में सक्षम हो सके। इसके लिए मनुष्य को जीवन में उन्नति के मार्ग को समझना होगा, जीवन के मार्ग को समझना होगा, और अपने स्वभाव को परिवर्तित करने के मार्ग को समझना होगा। साथ ही, इसके लिए मनुष्य को इस मार्ग के अनुरूप कार्य करने की आवश्यकता होगी, ताकि उसका स्वभाव धीरे-धीरे बदल सके और वह प्रकाश की चमक में जी सके, ताकि वह जो कुछ भी करे, वह परमेश्वर की इच्छा के अनुसार हो, ताकि वह अपने भ्रष्ट शैतानी स्वभाव को दूर कर सके और शैतान के अंधकार के प्रभाव को तोड़कर आज़ाद हो सके, और इसके परिणामस्वरूप पाप से पूरी तरह से ऊपर उठ सके। केवल तभी मनुष्य पूर्ण उद्धार प्राप्त करेगा" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारण का रहस्य (4))।
उन्होंने संगति की, "हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों से देख सकते हैं कि अनुग्रह के युग में, परमेश्वर ने केवल छुटकारे का कार्य किया था। प्रभु यीशु ने राज्य का सुसमाचार फैलाया, लोगों को पाप स्वीकारने और पश्चात्ताप करने को कहा। उसने बीमारों को ठीक किया, दुष्टात्माओं को निकाला और लोगों के पापों को क्षमा किया। उसने मानवता पर असीम कृपा भी की। अंत में, उसे समस्त मानवजाति के लिए पाप-बलि के रूप में सूली पर चढ़ाया गया। तभी से, पाप से क्षमा पाने, परमेश्वर के अनुग्रह और आशीषों का आनंद लेने के लिए, हमें बस प्रार्थना कर पाप को स्वीकारना होता है। अनुग्रह के युग में यह प्रभु यीशु का कार्य था। तो, क्या प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य के पूरा होने का मतलब था कि परमेश्वर का उद्धार कार्य पूरा हो गया है? बिल्कुल नहीं। छुटकारे के कार्य ने सिर्फ हमारे पापों को क्षमा किया, लेकिन हमारे पाप और हमारी पापी प्रकृति की जड़ का समाधान नहीं हुआ। हम अभी भी हर समय पाप करते हैं। हम घमंडी हैं, दिखावा करते हैं, झूठ बोलते हैं और धोखा देते हैं। कभी-कभी हमें ईर्ष्या और घृणा जैसी चीजें महसूस होती हैं। हम दिन में पाप करने और रात में स्वीकारने की स्थिति में जीते हैं जिससे हम स्वयं को मुक्त नहीं कर पाते। इब्रानियों 12:14 में कहा गया है, 'पवित्रता के बिना कोई प्रभु को कदापि न देखेगा।' परमेश्वर पवित्र और धार्मिक है। हम इतने गंदे और भ्रष्ट लोग भला स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने लायक कहाँ हैं? सर्वशक्तिमान परमेश्वर सत्य व्यक्त करने और न्याय का कार्य करने के लिए, अंत के दिनों में आया है, ताकि हमारी पापी प्रकृति को दूर कर सके, ताकि हम पूरी तरह से पाप के बंधनों और बेड़ियों से निकलकर स्वच्छ बन सकें और परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर सकें। यह प्रभु यीशु की भविष्यवाणियों को पूरा करता है : 'मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा' (यूहन्ना 16:12-13)। 'मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूँ। जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा' (यूहन्ना 12:47-48)। अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने लाखों वचन कहे हैं, जिसमें उसने मानवजाति को शुद्ध कर पूरी तरह बचाने के लिए जरूरी सभी सत्यों को व्यक्त किया है। वह हमारे सभी परमेश्वर-विरोधी भ्रष्ट स्वभावों और हमारी शैतानी प्रकृति का न्याय करता है और उन्हें उजागर करता है, परमेश्वर के प्रति हमारी पापबुद्धि और प्रतिरोध की जड़ का पूरा खुलासा करता है। वह हमें पाप को दूर करने और परमेश्वर का उद्धार पाने के मार्ग की ओर ले जाता है। अपनी भ्रष्टता की सच्चाई को देखने का एकमात्र तरीका परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना को स्वीकारना है, तब हम पछतावा महसूस कर स्वयं से घृणा और परमेश्वर के सामने पश्चात्ताप कर सकते हैं, भ्रष्टाचार से मुक्त और शुद्ध हो सकते हैं। अंत के दिनों में परमेश्वर का न्याय का कार्य हमारे लिए शुद्ध होने, बचाये जाने और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने का एकमात्र मार्ग है।"
इन भाई की संगति सुनना बहुत प्रबोधक था, मानो मेरे कंधों से एक बड़ा बोझ उतर गया हो। पता चला कि प्रभु यीशु ने छुटकारे का कार्य किया था और उसकी पाप-बलि से मनुष्य के पाप क्षमा हो गये, लेकिन उनके भीतर की पापी प्रकृति अभी भी बनी हुई है। परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय कार्य को स्वीकारना ही पाप के मसले को हल करने का एकमात्र तरीका है, ताकि हम पाप के बंधनों और बेड़ियों से बचकर शुद्ध हो सकें, और परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने के योग्य बन सकें। सिर्फ परमेश्वर ही अपने प्रबंधन कार्य के रहस्यों को प्रकट कर सकता था, और परमेश्वर ही मानवजाति को पूरी तरह से शुद्ध करके बचा सकता है। मुझे यकीन हो गया कि यह परमेश्वर का कार्य था—मैं रोमांचित हो गयी।
अगले दिन, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की एक बहन ने मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़कर सुनाया। "अंत के दिनों का मसीह मनुष्य को सिखाने, उसके सार को उजागर करने और उसके वचनों और कर्मों की चीर-फाड़ करने के लिए विभिन्न प्रकार के सत्यों का उपयोग करता है। इन वचनों में विभिन्न सत्यों का समावेश है, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को परमेश्वर का आज्ञापालन किस प्रकार करना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मनुष्यता का जीवन जीना चाहिए, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धिमत्ता और उसका स्वभाव, इत्यादि। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर निर्देशित हैं। खास तौर पर वे वचन, जो यह उजागर करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार परमेश्वर का तिरस्कार करता है, इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार मनुष्य शैतान का मूर्त रूप और परमेश्वर के विरुद्ध शत्रु-बल है। अपने न्याय का कार्य करने में परमेश्वर केवल कुछ वचनों के माध्यम से मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता; बल्कि वह लंबे समय तक उसे उजागर करता है, उससे निपटता है और उसकी काट-छाँट करता है। उजागर करने, निपटने और काट-छाँट करने की इन तमाम विधियों को साधारण वचनों से नहीं, बल्कि उस सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसका मनुष्य में सर्वथा अभाव है। केवल इस तरह की विधियाँ ही न्याय कही जा सकती हैं; केवल इस तरह के न्याय द्वारा ही मनुष्य को वशीभूत और परमेश्वर के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और इतना ही नहीं, बल्कि मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान भी प्राप्त कर सकता है। न्याय का कार्य मनुष्य में परमेश्वर के असली चेहरे की समझ पैदा करने और उसकी स्वयं की विद्रोहशीलता का सत्य उसके सामने लाने का काम करता है। न्याय का कार्य मनुष्य को परमेश्वर की इच्छा, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य और उन रहस्यों की अधिक समझ प्राप्त कराता है, जो उसकी समझ से परे हैं। यह मनुष्य को अपने भ्रष्ट सार तथा अपनी भ्रष्टता की जड़ों को जानने-पहचानने और साथ ही अपनी कुरूपता को खोजने का अवसर देता है। ये सभी परिणाम न्याय के कार्य द्वारा लाए जाते हैं, क्योंकि इस कार्य का सार वास्तव में उन सभी के लिए परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य है, जिनका उस पर विश्वास है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है)। इसे पढ़ने के बाद, उन्होंने मेरे साथ संगति और गवाही साझा की जिससे मुझे और स्पष्टता मिली। अंत के दिनों में, परमेश्वर मनुष्य की पापी प्रकृति को दूर करने के लिए सत्य व्यक्त कर न्याय का कार्य कर रहा है। अगर हम परमेश्वर के न्याय को स्वीकार न कर, अपना पूरा जीवन धर्म में बिता देंगे, तो हम पाप से बचकर शुद्ध नहीं हो पाएंगे। परमेश्वर की दया और अनुग्रह से, आखिरकार मुझे पाप से शुद्ध होने का मार्ग मिल गया। मैं इतनी उत्साहित थी कि अपने आंसू नहीं रोक सकी। मैंने पिछले आठ सालों के बारे में सोचा, कैसे मैं पाप से छुटकारा पाने और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश के मार्ग की खोज में बड़ी और छोटी, अनगिनत कलीसियाओं में गई थी। हर बार, मैंने आशा लेकर प्रवेश किया और निराशा लेकर लौटी। परमेश्वर के अनुग्रह से मुझे उसकी वाणी सुनने और उनके प्रकटन को देखने का मौका मिला। मैं धन्य हो गई थी! ऐसा लगा जैसे बरसों भटकने के बाद एक खोया हुआ बच्चा आखिरकार अपनी माँ के पास लौट आया हो। मुझे इतनी शांति और आनंद की अनुभूति हुई कि शब्दों में बयाँ नहीं कर सकती।
लेकिन, मेरे अभी भी कुछ उलझनें दूर नहीं हुई थीं। मैंने इन बहन से पूछा, "चीनी लोग इतने अशिक्षित हैं और परमेश्वर के खिलाफ हैं। परमेश्वर अंत के दिनों में वहाँ प्रकट होकर काम क्यों करेगा?" उन्होंने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़कर सुनाया। "यहोवा का कार्य दुनिया का सृजन था, वह आरंभ था; कार्य का यह चरण कार्य का अंत है, और यह समापन है। आरंभ में, परमेश्वर का कार्य इस्राएल के चुने हुए लोगों के बीच किया गया था और यह सभी जगहों में से सबसे पवित्र जगह पर एक नए युग का उद्भव था। कार्य का अंतिम चरण दुनिया का न्याय करने और युग को समाप्त करने के लिए सभी देशों में से सबसे अशुद्ध देश में किया जा रहा है। पहले चरण में, परमेश्वर का कार्य सबसे प्रकाशमान स्थान पर किया गया था और अंतिम चरण सबसे अंधकारमय स्थान पर किया जा रहा है, और इस अंधकार को बाहर निकालकर प्रकाश को प्रकट किया जाएगा और सभी लोगों पर विजय प्राप्त की जाएगी। जब इस सबसे अशुद्ध और सबसे अंधकारमय स्थान के लोगों पर विजय प्राप्त कर ली जाएगी और समस्त आबादी स्वीकार कर लेगी कि परमेश्वर है, जो कि सच्चा परमेश्वर है और हर व्यक्ति को पूरी तरह से विश्वास हो जाएगा, तब समस्त ब्रह्मांड में विजय का कार्य करने के लिए इस तथ्य का उपयोग किया जाएगा। कार्य का यह चरण प्रतीकात्मक है : एक बार इस युग का कार्य समाप्त हो गया, तो प्रबंधन का छह हजार वर्षों का कार्य पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा। एक बार सबसे अंधकारमय स्थान के लोगों को जीत लिया गया, तो कहने की आवश्यकता नहीं कि अन्य जगह पर भी ऐसा ही होगा। इस तरह, केवल चीन में ही विजय का कार्य सार्थक प्रतीकात्मकता रखता है। चीन अंधकार की सभी शक्तियों का मूर्त रूप है और चीन के लोग उन सभी लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो देह के हैं, शैतान के हैं, मांस और रक्त के हैं। चीनी लोग ही बड़े लाल अजगर द्वारा सबसे ज़्यादा भ्रष्ट किए गए हैं, वही परमेश्वर के सबसे कट्टर विरोधी हैं, उन्हीं की मानवता सर्वाधिक अधम और अशुद्ध है, इसलिए वे समस्त भ्रष्ट मानवता के मूल आदर्श हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि अन्य देशों में कोई समस्या नहीं है; मनुष्य की अवधारणाएँ समान हैं, यद्यपि इन देशों के लोग अच्छी क्षमता वाले हो सकते हैं, किन्तु यदि वे परमेश्वर को नहीं जानते, तो वे अवश्य ही उसके विरोधी होंगे। ... चीन के लोगों में भ्रष्टता, अशुद्धता, अधार्मिकता, विरोध और विद्रोहशीलता पूरी तरह से व्यक्त और विविध रूपों में प्रकट होते हैं। एक ओर, वे खराब क्षमता के हैं और दूसरी ओर, उनका जीवन और उनकी मानसिकता पिछडी हुई है, उनकी आदतें, सामाजिक वातावरण, जिस परिवार में वे जन्में हैं—सभी गरीब और सबसे पिछड़े हुए हैं। उनकी हैसियत भी निम्न है। इस स्थान में कार्य प्रतीकात्मक है, एक बार जब यह परीक्षा-कार्य पूरी तरह से संपन्न हो जाएगा, तो परमेश्वर का बाद का कार्य अधिक आसान हो जाएगा। यदि कार्य के इस चरण को पूरा किया जा सका, तो इसके बाद का कार्य अच्छी तरह से आगे बढ़ेगा। एक बार जब कार्य का यह चरण सम्पन्न हो जायेगा, तो बड़ी सफलता प्राप्त हो जाएगी और समस्त ब्रह्माण्ड में विजय का कार्य पूरी तरह समाप्त हो जायेगा। वास्तव में, एक बार तुम लोगों के बीच कार्य सफल होने पर, यह समस्त ब्रह्माण्ड में सफलता प्राप्त करने के बराबर होगा। यही इस बात की महत्ता है कि क्यों मैं तुम लोगों को एक आदर्श और नमूने के रूप में कार्य करने को कहता हूँ" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (2))। फिर उन्होंने संगति की, "परमेश्वर के वचन बहुत स्पष्ट हैं। अंत के दिनों में परमेश्वर के चीन में प्रकट होकर कार्य करने की बहुत महत्ता है। परमेश्वर का कार्य अब न्याय और शुद्धिकरण करना है। वह मनुष्य की परमेश्वर विरोधी, शैतानी प्रकृति और हमारे विभिन्न भ्रष्ट स्वभावों को उजागर करने के लिए सत्य व्यक्त कर रहा है। वह हमें अपना धार्मिक, प्रतापी, और क्रोधपूर्ण स्वभाव दिखा रहा है जो कोई अपराध सहन नहीं करता। इसीलिए उसे गहराई से भ्रष्ट और परमेश्वर के विरुद्ध लोगों को चुनना पड़ा, ताकि एक मिसाल बना सके। लोगों के बीच कार्य करना ही उनकी हर प्रकार की भ्रष्टता को प्रकट करने का एकमात्र तरीका है, इससे उसकी पवित्रता और धार्मिकता भी बेहतर प्रदर्शित होती है। ऐसे वह अपने न्याय के कार्य में सर्वोत्तम परिणाम हासिल कर सकता है। फिर, चीन बड़े लाल अजगर की मांद है। बड़ा लाल अजगर शैतान का स्वरूप है—इन्हीं लोगों को शैतान ने सबसे अधिक गहराई तक भ्रष्ट किया है। इसीलिए चीन दुनिया की बुराई का केंद्र है और चीनी लोग सबसे ज्यादा भ्रष्ट हैं। वे परमेश्वर को सबसे ज्यादा नकारते और उनका विरोध करते हैं, उनमें मानवता भी बदतर होती है। चीनी लोग भ्रष्ट मानवता के प्रतीक हैं। परमेश्वर का चीन में प्रकट होकर कार्य करना और सत्य व्यक्त करना, चीनी लोगों की भ्रष्टता और विद्रोह के हर अंश को उजागर करना ही मानवजाति को जीतने का बेहतर तरीका है। यह इस सार और सत्य को अधिक प्रभावी ढंग से दिखा सकता है कि शैतान ने मनुष्य को कितनी गहराई तक भ्रष्ट कर दिया है। इसके अलावा, सबसे गंदे, सबसे भ्रष्ट, सबसे अधिक परमेश्वर विरोधी देश में कार्यरत होकर, चीन के सबसे अशिक्षित और अत्यधिक भ्रष्ट लोगों को जीतकर, उन्हें शुद्ध और रूपांतरित करके, दूसरे देशों के लोगों को बचाना आसान होगा। परमेश्वर के ऐसे कार्य करने से समस्त मानवजाति परमेश्वर की असीम सामर्थ्य को देखकर पूरी तरह से आश्वस्त हो पाती है। यह परमेश्वर के अधिकार और सामर्थ्य के साथ-साथ उनकी बुद्धि और सर्वशक्तिमत्ता को प्रकट करता है।"
उसके बाद, उन्होंने परमेश्वर के और वचन पढ़े। "चीनी लोगों ने कभी परमेश्वर में विश्वास नहीं किया है; उन्होंने कभी भी यहोवा की सेवा नहीं की है, और कभी भी यीशु की सेवा नहीं की है। वे केवल धूप जलाना, जॉस पेपर जलाना, और बुद्ध की पूजा करना जानते हैं। वे सिर्फ मूर्तियों की पूजा करते हैं—वे सब चरम सीमा तक विद्रोही हैं। इसलिए लोगों की स्थिति जितनी अधिक निम्न है, उससे उतना ही अधिक पता चलता है कि परमेश्वर तुम लोगों से और भी अधिक महिमा पाता है। ... मानवीय धारणाओं के अनुसार तो मुझे किसी अच्छे देश में जन्म लेना होगा, यह दिखाने के लिए कि मैं ऊँची हैसियत का हूँ, यह दिखाने के लिए कि मेरा मोल बहुत ज्यादा है, और अपना सम्मान, पवित्रता और महानता दिखाने के लिए। अगर मैं किसी ऐसे स्थान पर पैदा हुआ होता जो मुझे पहचानता, किसी संभ्रांत परिवार में, और अगर मैं उच्च स्थिति और हैसियत का होता, तो मेरे साथ बहुत अच्छा व्यवहार किया जाता। इससे मेरे कार्य को कोई लाभ नहीं होता, और क्या तब भी ऐसा महान उद्धार प्रकट किया जा सकता था? वे सभी लोग जो मुझे देखते, वे मेरी आज्ञा का पालन करते, और वे गंदगी से प्रदूषित न होते। मुझे इस तरह के स्थान पर जन्म लेना चाहिए था। तुम लोग यही मानते हो। लेकिन इस बारे में सोचो : क्या परमेश्वर पृथ्वी पर आनंद लेने के लिए आया था, या कार्य करने के लिए? अगर मैं उस तरह के आसान, आरामदायक स्थान पर काम करता, तो क्या मैं अपनी पूरी महिमा हासिल कर सकता था? क्या मैं अपनी समूची सृष्टि को जीत सकता था? जब परमेश्वर पृथ्वी पर आया, तो वह संसार का नहीं था, और संसार का सुख भोगने के लिए वह देह नहीं बना था। जिस स्थान पर कार्य करना सबसे अच्छी तरह से उसके स्वभाव को प्रकट करता और जो सबसे अर्थपूर्ण होता, वह वही स्थान है, जहाँ वह पैदा हुआ। चाहे वह स्थल पवित्र हो या गंदा, और चाहे वह कहीं भी काम करे, वह पवित्र है। दुनिया में हर चीज़ उसके द्वारा बनाई गई थी, हालाँकि शैतान ने सब-कुछ भ्रष्ट कर दिया है। फिर भी, सभी चीजें अभी भी उसकी हैं; वे सभी चीजें उसके हाथों में हैं। वह अपनी पवित्रता प्रकट करने के लिए एक गंदे देश में आता है और वहाँ कार्य करता है; वह केवल अपने कार्य के लिए ऐसा करता है, अर्थात् वह इस दूषित भूमि के लोगों को बचाने के लिए ऐसा कार्य करने में बहुत अपमान सहता है। यह पूरी मानवजाति की खातिर, गवाही के लिए किया जाता है। ऐसा कार्य लोगों को परमेश्वर की धार्मिकता दिखाता है, और वह परमेश्वर की सर्वोच्चता प्रदर्शित करने में अधिक सक्षम है। उसकी महानता और शुचिता उन नीच लोगों के एक समूह के उद्धार के माध्यम से व्यक्त होती है, जिनका अन्य लोग तिरस्कार करते हैं। एक मलिन भूमि में पैदा होना यह बिलकुल साबित नहीं करता कि वह दीन-हीन है; यह तो केवल सारी सृष्टि को उसकी महानता और मानवजाति के लिए उसका सच्चा प्यार दिखाता है। जितना अधिक वह ऐसा करता है, उतना ही अधिक यह मनुष्य के लिए उसके शुद्ध प्रेम, उसके दोषरहित प्रेम को प्रकट करता है। परमेश्वर पवित्र और धर्मी है। यद्यपि वह एक गंदी भूमि में पैदा हुआ था, और यद्यपि वह उन लोगों के साथ रहता है जो गंदगी से भरे हुए हैं, ठीक वैसे ही जैसे यीशु अनुग्रह के युग में पापियों के साथ रहता था, फिर भी क्या उसका हर कार्य संपूर्ण मानवजाति के अस्तित्व की खातिर नहीं किया जाता? क्या यह सब इसलिए नहीं है कि मानवजाति महान उद्धार प्राप्त कर सके? दो हजार साल पहले वह कई वर्षों तक पापियों के साथ रहा। वह छुटकारे के लिए था। आज वह गंदे, नीच लोगों के एक समूह के साथ रह रहा है। यह उद्धार के लिए है। क्या उसका सारा कार्य तुम मनुष्यों के लिए नहीं है? यदि यह मानवजाति को बचाने के लिए न होता, तो क्यों वह एक नाँद में पैदा होने के बाद कई सालों तक पापियों के साथ रहता और कष्ट उठाता? और यदि यह मानवजाति को बचाने के लिए न होता, तो क्यों वह दूसरी बार देह में लौटकर आता, इस देश में पैदा होता जहाँ दुष्ट आत्माएँ इकट्ठी होती हैं, और इन लोगों के साथ रहता जिन्हें शैतान ने गहराई से भ्रष्ट कर रखा है? क्या परमेश्वर वफ़ादार नहीं है? उसके कार्य का कौन-सा भाग मानवजाति के लिए नहीं रहा है? कौन-सा भाग तुम लोगों की नियति के लिए नहीं रहा है? परमेश्वर पवित्र है—यह अपरिवर्तनीय है। वह गंदगी से प्रदूषित नहीं है, हालाँकि वह एक गंदे देश में आया है; इस सबका मतलब केवल यह हो सकता है कि मानवजाति के लिए परमेश्वर का प्रेम अत्यंत निस्वार्थ है और जो पीड़ा और अपमान वह सहता है, वह अत्यधिक है!" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मोआब के वंशजों को बचाने का अर्थ)।
फिर उन्होंने संगति की : "परमेश्वर के वचन हमें बताते हैं कि परमेश्वर ने अंत के दिनों में देहधारण किया है, वह चीन में प्रकट होकर कार्य कर रहा है जो अत्यधिक महत्व रखता है। चीनी लोग सबसे अधिक परमेश्वर विरोधी हैं और उससे घृणा करते हैं। उनमें काबिलियत और मानवता की सबसे ज्यादा कमी है, लेकिन परमेश्वर ने चीन में देहधारण कर कार्य किया, वह अत्यधिक सहनशीलता और धैर्य के साथ सत्य व्यक्त कर रहा है। सबसे गंदे और सबसे भ्रष्ट लोगों को बचाने के लिए परमेश्वर ने बहुत अपमान सहा है। इससे पता चलता है कि परमेश्वर कितना विनम्र और छिपा हुआ है, इसमें हमें उसकी पवित्रता और धार्मिकता, मानवजाति के लिए उनका निःस्वार्थ, सच्चा प्रेम दिखाता है। इसके साथ, हम देख सकते हैं कि परमेश्वर सृष्टि का प्रभु है। उसे हर देश में, सभी लोगों के बीच अपना कार्य करने का अधिकार है, भले ही वह किसी भी देश में प्रकट हो और कार्य करे, उनका कार्य पूरी मानवता के लिए है—यह पूरी मानवजाति को बचाने के लिए है। अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर प्रकट होकर सत्य व्यक्त करते हुए चीन में कार्यरत है। उसने पहले ही विजेताओं का एक समूह बना लिया है, और अब उसका सुसमाचार पूरे विश्व में फैल रहा है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य और वचन एक महान रोशनी के समान हैं जो पूर्व से पश्चिम तक चमक रही है। ज्यादा से ज्यादा लोग परमेश्वर की वाणी सुन रहे हैं, झुंड में सर्वशक्तिमान परमेश्वर की ओर मुड़कर परमेश्वर के शुद्धिकरण और उद्धार को स्वीकार रहे हैं। अगर हम अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के अनुसार चलें, यह सोचें कि परमेश्वर के कार्य के पिछले दो चरण इस्राएल में थे, वह इस्राएलियों का परमेश्वर है और वह चीन में प्रकट होकर कार्य नहीं करेगा, तो क्या यह उसे सीमांकित करना नहीं होगा? परमेश्वर ने कहा, 'जाति में मेरा नाम महान् है' (मलाकी 1:11)। फिर यह भविष्यवाणी कैसे पूरी होगी? अंत के दिनों में, परमेश्वर देहधारण कर चीन में कार्य कर रहा है, जहाँ नास्तिकता का शासन है, यह मानवीय धारणाओं को पूरी तरह चकनाचूर कर देता है। यह हमें दिखाता है कि परमेश्वर ना केवल इस्राएलियों का है, बल्कि वह अन्य-जाति राष्ट्रों का भी परमेश्वर है। वह समस्त मानवजाति का परमेश्वर है, ना कि किसी एक देश या एक व्यक्ति का। परमेश्वर का चीन में देहधारण करना, वहाँ प्रकट होकर कार्य करना, बेहद अर्थपूर्ण है!"
उनकी संगति सुनकर मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। मैं परमेश्वर के कार्य को नहीं समझ पायी थी, बल्कि परमेश्वर को सीमांकित करने वाले पादरियों की बात मान कर सोच लिया कि परमेश्वर चीन में कार्य नहीं कर सकता। मैं कितनी अहंकारी और अज्ञानी थी! इसके बारे में सोचकर ही डर जाती हूँ। परमेश्वर की कृपा की वजह से, मुझे उसकी वाणी सुनने और अंत के दिनों के उसके कार्य को स्वीकारने का सौभाग्य मिला। अन्यथा, मैं अभी भी अपनी धारणाओं के आधार पर परमेश्वर को सीमांकित कर रही होती, उसके प्रकटन और कार्य की निंदा कर रही होती, और मुझे उसका उद्धार पाने की कोई आशा नहीं होती। मैं अपने दिल की गहराई से परमेश्वर के उद्धार की आभारी हूँ। जो प्रभु यीशु ने कहा था उसे मैंने व्यक्तिगत रूप से भी अनुभव किया है : "और जो ढूँढ़ता है, वह पाता है; और जो खटखटाता है, उसके लिये खोला जाएगा" (मत्ती 7:8)। ये वचन बहुत सच्चे हैं, और परमेश्वर विश्वास योग्य है। अगर हम सत्य खोजेंगे, तो परमेश्वर हमारी अगुवाई कर हमें प्रबुद्ध करेगा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का धन्यवाद!