550  परमेश्वर इंसान से क्या पाता है?

इंसान को ईश्वर बचाए, अपने प्रेम,

करुणा और योजना के कारण,

क्योंकि गिर गया इंसा,

ख़ुद ही बात करनी होगी ईश्वर को।


1

महान अनुग्रह है जब उद्धार पाए इंसा।

ईश-वाणी न हो तो बर्बाद हो जाए इंसा।

ईश्वर को घृणा है इंसानी नस्ल से,

फिर भी वो तैयार है

इंसा के उद्धार की कीमत चुकाने को।

इंसा ईश्वर से प्रेम का ढोंग करे,

उससे जबरन कृपा ले, विद्रोह करे,

ईश्वर को आहत करे, बहुत दुख भी दे।

स्वार्थी इंसा और निस्स्वार्थ ईश्वर में

यही बड़ा अंतर है!


इंसा हर ईश-वचन से सत्य पाए,

उसमें बदलाव आए, वो जीवन की दिशा पाए।

बदले में इंसा ईश्वर को ज़रा-सी प्रशंसा दे,

तुच्छ शब्दों से आभार जताए।

क्या ईश्वर इंसा से ऐसा प्रतिफल चाहे?


2

इंसा ईश्वर को शायद अपने जैसा ही समझे।

ईश्वर को बड़ा दुख होता जब

इंसा उसके प्रकटन और काम को नकारे।

ईश्वर खुद अपमान सहे इंसा को बचाने के लिए।

वो इंसान को बचाने के लिए सब कुछ दे;

चाहे कि वो उसे स्वीकारे।

ईश्वर द्वारा चुकाई कीमत को समझ सकते हैं,

विवेक है जिनमें।

इंसान ने ईश-वचन, कार्य और उसका उद्धार पाया है।

मगर कभी भी किसी ने ये पूछा नहीं:

ईश्वर ने इंसा से क्या पाया है?

ईश्वर ने इंसा से क्या पाया है?


इंसा हर ईश-वचन से सत्य पाए,

उसमें बदलाव आए, वो जीवन की दिशा पाए।

बदले में इंसा ईश्वर को ज़रा-सी प्रशंसा दे,

तुच्छ शब्दों से आभार जताए।

क्या ईश्वर इंसा से ऐसा प्रतिफल चाहे?

इंसा हर ईश-वचन से सत्य पाए,

उसमें बदलाव आए, वो जीवन की दिशा पाए।

बदले में इंसा ईश्वर को ज़रा-सी प्रशंसा दे,

तुच्छ शब्दों से आभार जताए।

क्या ईश्वर इंसा से ऐसा प्रतिफल चाहे?


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, परिचय से रूपांतरित

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