538  परमेश्वर में मनुष्य का विश्वास असहनीय रूप से बुरा है

1

कई लोग ईश्वर में आशीष पाने या आपदा से बचने को विश्वास करें।

उसके काम और प्रबंधन की बात सुनते ही

वे सारी रुचि खो देते।

वे समझ नहीं पाते ऐसी फीकी बात कैसे उनके फायदे की हो सके।

इसलिए ईश-प्रबंधन की बात सुनकर भी,

वे उस पर ध्यान नहीं देते।


वे उसे अनमोल न समझें, उसे

जीवन का अंग न बना पाएँ।

ऐसे लोग ईश्वर का अनुसरण करें

बस उससे आशीष पाने के मतलब से।

अगर आशीष न मिलते हों,

तो वे इसकी परवाह न करें।


ईश्वर के साथ इंसान का रिश्ता

है नग्न स्वार्थ का,

देने और पाने वाले के बीच का रिश्ता,

जैसे कोई मालिक से पैसे पाने को काम करे,

बस लेन-देन, कोई अनुराग नहीं,

न प्यार देना, न प्यार पाना,

सिर्फ दया, सिर्फ खैरात,

कोई समझ नहीं, बस शांत क्रोध है।

कोई नज़दीकी नहीं, बस धोखा है,

पार न की जा सकने वाली खाई है।


2

अब चीज़ें आ गई हैं इस मुकाम पर,

क्या है कोई जो इसे बदल सके?

कितने हैं जो समझ सकें कि ये रिश्ता कितना विकट है?

जब लोग आशीष पाने की खुशी में डूब जाते,

तो उनमें से कोई न जान सके कि ऐसा रिश्ता

कितना बदसूरत और शर्मनाक है।


ईश्वर के साथ इंसान का रिश्ता

है नग्न स्वार्थ का,

देने और पाने वाले के बीच का रिश्ता,

जैसे कोई मालिक से पैसे पाने को काम करे,

बस लेन-देन, कोई अनुराग नहीं,

न प्यार देना, न प्यार पाना,

सिर्फ दया, सिर्फ खैरात,

कोई समझ नहीं, बस शांत क्रोध है।

कोई नज़दीकी नहीं, बस धोखा है,

पार न की जा सकने वाली खाई है।


ईश्वर के साथ इंसान का रिश्ता

है नग्न स्वार्थ का,

देने और पाने वाले के बीच का रिश्ता,

जैसे कोई मालिक से पैसे पाने को काम करे,

बस लेन-देन, कोई अनुराग नहीं,

न प्यार देना, न प्यार पाना,

सिर्फ दया, सिर्फ खैरात,

कोई समझ नहीं, बस शांत क्रोध है।

कोई नज़दीकी नहीं, बस धोखा है,

पार न की जा सकने वाली खाई है।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 3: मनुष्य को केवल परमेश्वर के प्रबंधन के बीच ही बचाया जा सकता है से रूपांतरित

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