600  अंत के दिनों के लोगों ने परमेश्वर के क्रोध को कभी नहीं देखा

1 सृजन के समय से लेकर आज तक, किसी भी समूह ने परमेश्वर के अनुग्रह या दया और प्रेममय दयालुता का उतना आनंद नहीं लिया है जितना इस अंतिम समूह ने लिया है। यद्यपि, अंतिम चरण में, परमेश्वर ने न्याय और ताड़ना का कार्य किया है, और अपना कार्य प्रताप और कोप के साथ किया है, तो भी अधिकांश बार परमेश्वर अपना कार्य संपन्न करने के लिए केवल वचनों का उपयोग करता है; वह सिखाने और सींचने, भरण-पोषण और भोजन के लिए वचनों का उपयोग करता है। इस बीच, परमेश्वर के कोप को हमेशा छिपाकर रखा गया है, और परमेश्वर के वचनों में उसके कोपपूर्ण स्वभाव का अनुभव करने के अलावा, बहुत ही कम लोगों ने व्यक्तिगत रूप से उसके क्रोध का अनुभव किया है।

2 न्याय और ताड़ना के परमेश्वर के कार्य के दौरान, यद्यपि परमेश्वर के वचनों में प्रकट किया गया कोप लोगों को परमेश्वर की महिमा और अपमान के प्रति उसकी असहिष्णुता अनुभव करने देता है, फिर भी यह कोप उसके वचनों से आगे नहीं जाता है। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर मनुष्य को झिड़कने, मनुष्य को उजागर करने, मनुष्य का न्याय करने, मनुष्य को ताड़ना देने, और यहाँ तक कि मनुष्य की निंदा करने के लिए भी वचनों का उपयोग करता है—परंतु परमेश्वर अभी तक मनुष्य के प्रति प्रचंड रूप से क्रोधित नहीं हुआ है, और अपने वचनों के साथ के अलावा उसने अपने कोप का बाँध मनुष्य पर मुश्किल से ही खोला है। इस प्रकार, मनुष्य के द्वारा इस युग में अनुभव की गई परमेश्वर की अनुकंपा और प्रेममय दयालुता परमेश्वर के सच्चे स्वभाव का प्रकाशन है, जबकि मनुष्य के द्वारा अनुभव किया गया परमेश्वर का कोप महज़ उसके कथनों के स्वर और भाव का प्रभाव है। बहुत-से लोग इस प्रभाव को ग़लत ढंग से परमेश्वर के कोप का सच्चा अनुभव करना और सच्चा ज्ञान मान लेते हैं।

3 परिणामस्वरूप, अधिकतर लोग मानते हैं कि उन्होंने परमेश्वर के वचनों में उसकी अनुकंपा और प्रेममय दयालुता को देखा है, कि उन्होंने मनुष्य द्वारा अपमान के प्रति परमेश्वर की असहिष्णुता को भी देखा है, और उनमें से अधिकांश लोग तो मनुष्य के प्रति परमेश्वर की करुणा और सहिष्णुता की सराहना भी करने लगे हैं। परंतु मनुष्य का व्यवहार चाहे जितना बुरा हो, या उसका स्वभाव चाहे जितना भ्रष्ट हो, परमेश्वर ने हमेशा सहन किया है। सहन करने में, उसका उद्देश्य इस बात की प्रतीक्षा करना है कि जो वचन उसने कहे हैं, जो प्रयास उसने किए हैं और जो क़ीमत उसने चुकाई है, वे उन लोगों में जिन्हें वह प्राप्त करना चाहता है, सफलतापूर्वक निष्कर्ष पर पहुँच सकें।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II से रूपांतरित

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