510  परमेश्वर के वचनों को अपने आचरण का आधार बनाओ

मैं बस यही उम्मीद करता हूँ, तुम मेरे दिए को,

मेरे अथक प्रयासों को ज़ाया नहीं करोगे;

मेरे दिल को जानोगे, मेरे वचनों को अपने जीने का आधार बनाओगे।


1

मेरे वचनों को तुम सुनना चाहो या न चाहो,

मेरे वचनों को तुम स्वीकार करना चाहो या न चाहो, तुम उन्हें गंभीरता से लो।

तुम्हारे बेपरवाह, उदासीन अंदाज़ मेरे अंदर दुख या घृणा भर देंगे।

मैं बस यही उम्मीद करता हूँ, तुम मेरे दिए को,

मेरे अथक प्रयासों को ज़ाया नहीं करोगे;

मेरे दिल को जानोगे, मेरे वचनों को अपने जीने का आधार बनाओगे।


2

मुझे पूरी उम्मीद है, तुम लोग मेरे वचनों को हज़ारों बार पढ़ते हो,

मुझे पूरी उम्मीद है, मेरे वचन तुम्हें ज़बानी याद भी होंगे।

तभी मेरी उम्मीदों पर खरे उतर सकते हो तुम लोग।

अभी इस तरह नहीं जीते तुम लोग।

मैं बस यही उम्मीद करता हूँ, तुम मेरे दिए को,

मेरे अथक प्रयासों को ज़ाया नहीं करोगे;

मेरे दिल को जानोगे, मेरे वचनों को अपने जीने का आधार बनाओगे।


3

तुम सभी लोग दिन-रात, खाने-पीने, मौज-मस्ती की,

ऐयाशी की ज़िंदगी में पूरी तरह से डूबे हो।

मेरे वचनों से समृद्ध नहीं करते, अपने दिलों, आत्माओं को।

मेरा निष्कर्ष है, इंसान का असली चेहरा दगाबाज़ी है।

इंसान मुझे कभी भी धोखा दे सकता है,

मेरे वचनों के प्रति कोई सच्चा नहीं हो सकता।

मैं बस यही उम्मीद करता हूँ, तुम मेरे दिए को,

मेरे अथक प्रयासों को ज़ाया नहीं करोगे;

मेरे दिल को जानोगे, मेरे वचनों को अपने जीने का आधार बनाओगे।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, एक बहुत गंभीर समस्या : विश्वासघात (1) से रूपांतरित

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