515  परमेश्वर को सबसे अधिक क्या दुखी करता है

1

इंसान के लिए ईश्वर के प्रयास साबित करें, इंसान से प्रेम उसका सार है।

और इंसान के काम साबित करें सत्य से उसकी नफरत और ईश-विरोध को।

उसे कोई कभी नहीं समझता, और वे उसे स्वीकार नहीं कर सकते,

जबकि वो सच्चे मन वाला है, उसके वचन कोमल और साफ हैं।


हमेशा ईश्वर फिक्र करे अपना अनुसरण करने वालों की।

पर वे कभी उसके वचनों को नहीं समझते।

वे उसके सुझाव को स्वीकार नहीं कर सकते।

यही ईश्वर को सबसे ज्यादा दुखी करता है।


2

ईश्वर ने जो काम उनको सौंपा है वे उसे अपनी मर्ज़ी से करते हैं,

बिना पूछे कि वो क्या चाहता है, न वे उसका इरादा खोजते।

फिर भी उसकी निष्ठा से सेवा का दंभ भरते हैं,

हाँ वे उसकी निष्ठा से सेवा का दंभ भरते हैं,

लेकिन उसके खिलाफ विद्रोह करते हैं,

अब भी उसके खिलाफ विद्रोह करते हैं।


हमेशा ईश्वर फिक्र करे अपना अनुसरण करने वालों की।

पर वे कभी उसके वचनों को नहीं समझते।

वे उसके सुझाव को स्वीकार नहीं कर सकते।

यही ईश्वर को सबसे ज्यादा दुखी करता है।


3

बहुत लोग मानें, वो सत्य नहीं, जिसे वे स्वीकार न सकें;

बहुत लोग मानें, वो सत्य नहीं, जिसका वे अभ्यास न कर सकें।

उन्होंने उसका सत्य नकार दिया है, ठुकरा दिया है, अलग कर दिया है।

कहने को तो वे उस पर विश्वास करें, पर समझें परदेसी, सत्य, मार्ग जीवन नहीं।


हमेशा ईश्वर फिक्र करे अपना अनुसरण करने वालों की।

पर वे कभी उसके वचनों को नहीं समझते।

वे उसके सुझाव को स्वीकार नहीं कर सकते।

यही ईश्वर को सबसे ज्यादा दुखी करता है।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम लोगों को अपने कर्मों पर विचार करना चाहिए से रूपांतरित

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