929  स्वभाव-संबंधी बदलाव हासिल कर चुके लोग इंसान के समान जी सकते हैं

1 जिन लोगों का स्वभाव बदल जाता है, वे वास्तव में एक मनुष्य के समान जीवन जीते हैं, और उनमें सत्य होता है। वे हमेशा सत्य के अनुरूप बोलने और चीज़ों को देखने में समर्थ होते हैं और वे जो भी करते हैं, सैद्धांतिक रूप से करते हैं; वे किसी व्यक्ति, मामले या चीज़ के प्रभाव में नहीं होते, उन सभी का अपना दृष्टिकोण होता है और वे सत्य-सिद्धांत को कायम रख सकते हैं। उनका स्वभाव सापेक्षिक रूप से स्थिर होता है, वे असंतुलित नहीं होते, चाहे उनकी स्थिति कैसी भी हो, वे समझते हैं कि कैसे उन्हें अपने कर्तव्य को सही ढंग से निभाना है और परमेश्वर की संतुष्टि के लिए कैसे व्यवहार करना है। जिन लोगों के स्वभाव वास्तव में बदल गए हैं वे इस पर ध्यान नहीं देते कि सतही तौर पर स्वयं को अच्छा दिखाने के लिए क्या किया जाए; परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए क्या करना है, इस पर उन्होंने आंतरिक स्पष्टता पा ली है। हो सकता है कि बाहर से वे इतने उत्साही न दिखें या ऐसा न लगे कि उन्होंने कुछ बड़ा किया है, लेकिन वो जो कुछ भी करते हैं वह सार्थक होता है, मूल्यवान होता है, और उसके परिणाम व्यावहारिक होते हैं।

2 जिन लोगों के स्वभाव बदल गए हैं उनके अंदर निश्चित रूप से बहुत सत्य होता है, और इस बात की पुष्टि चीज़ों के बारे में उनके दृष्टिकोण और सैद्धांतिक कार्यों के आधार पर की जा सकती है। जिन लोगों में सत्य नहीं है, उनके स्वभाव में कोई बिलकुल परिवर्तन नहीं हुआ है। स्वभाव में बदलाव को लेकर सर्वाधिक महत्व की बात यह है कि इंसान का आंतरिक जीवन बदल गया है। परमेश्वर द्वारा व्यक्त सत्य ही उसका जीवन बन जाता है, उसके भीतर का शैतानी विष निकाल दिया गया है, उसका दृष्टिकोण पूरी तरह से बदल गया है, और उनमें से कुछ भी अभी भी दुनियावी दृष्टिकोण के अनुसार नहीं है। ये लोग बड़े लाल अजगर की योजनाओं और विष को उनके असल रूप में स्पष्टता से देख सकते हैं; उन्होंने जीवन का सच्चा सार समझ लिया है। उनके जीवन के मूल्य बदल गए हैं, और यह सबसे मौलिक किस्म का रूपांतरण है और स्वभाव में परिवर्तन का सार है।

3 जिनका जीवन स्वभाव बदल गया है, उन्हें लगता है कि जीते जी इंसान को अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए, परमेश्वर की आराधना करनी चाहिए, परमेश्वर के प्रति समर्पित होना चाहिए और परमेश्वर को संतुष्ट करना चाहिए। उनका मानना है कि यह एक व्यक्ति होने का आधार है और स्वर्ग और पृथ्वी के अपरिवर्तनीय सिद्धांतों के अनुरूप उनका दायित्व है। अन्यथा, वे मानव कहलाने के योग्य नहीं होंगे; उनके जीवन खाली और निरर्थक होंगे। वे यह महसूस करते हैं कि लोगों को परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए, अपना कर्तव्य अच्छी तरह से पूरा करने के लिए जीवन जीना चाहिए, उन्हें एक सार्थक जीवन जीना चाहिए ताकि मृत्यु हो जाने पर भी, वे संतुष्ट रहें और उनमें ज़रा सा भी पछतावा न रहे—उन्हें निरर्थक जीवन नहीं जीना चाहिए। किसी के जीवन स्वभाव में परिवर्तन का मुख्य कारण उसके भीतर सत्य का होना है, और परमेश्वर का ज्ञान होना है; इससे जीवन पर व्यक्ति का दृष्टिकोण बदल जाता है, और मूल्य पहले से भिन्न हो जाते हैं। यह परिवर्तन व्यक्ति के भीतर से, और उसके जीवन से शुरू होता है; यह निश्चित रूप से सिर्फ एक बाहरी परिवर्तन नहीं है।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन से रूपांतरित

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