689  मनुष्य परमेश्वर के संरक्षण में विकसित होता है

जब शैतान इंसान को भ्रष्ट करे, हानि पहुँचाए,

तो ईश्वर मुँह न मोड़े।

किसी का ध्यान खींचे बिना करे वो जो ज़रूरी है।


1

ईश्वर चुने तुम किस परिवार में,

किस दिन पैदा होगे।

वो तुम्हें इस दुनिया में रोते हुए आते,

पहले शब्द कहते देखे,

चलना सीखते हुए जब तुम लड़खड़ाते

तो वो तुम्हें पहला कदम उठाते देखे।


बड़े होते हुए, तुम्हारा सामना होगा कई चीज़ों से;

कुछ तुम्हें पसंद न आएंगी, जैसे रोग और कुंठा।

पर इस राह पर चलते हुए,

तुम्हारा जीवन रहता ईश्वर की देखरेख में।

तुम जीते, बड़े होते उसकी निगाह तले।


ईश्वर का सबसे महत्वपूर्ण काम है

देना आश्वस्ति तुम्हारी सुरक्षा की,

देना आश्वस्ति कि शैतान द्वारा

निगले न जाओगे तुम कभी।

सभी इंसान अपना जीवन जीते हुए

सामना करते खतरे और प्रलोभन का,

क्योंकि बुराई तुम्हारे पास ही रहे,

तुम पर नज़रें जमाए रखे शैतान।


2

जब तुम पर आपदा आती, विपदा टूट पड़ती,

जब तुम शैतान के जाल में फंस जाते,

शैतान को बड़ा मज़ा आता।

लेकिन ईश्वर तुम्हारी रक्षा करता, तुम्हें राह दिखाता।

इंसान की नियति, सुरक्षा और आनंद ईश्वर के हाथों में है।


वो सबका हाथ पकड़कर राह दिखाए,

सभी का ख्याल रखे, हर क्षण देखभाल करे,

वो कभी तुम्हारा साथ न छोड़े।

लोग ऐसे परिवेश में, ऐसी पृष्ठभूमि में बड़े होते।

सच तो है ये कि लोग ईश्वर की हथेली में बड़े होते।


ईश्वर के सब कर्म देते लोगों को शांति और आनंद;

तब वे ईश्वर के सामने जीते,

सामान्य समझ से ईश्वर का उद्धार स्वीकारते।

ईश्वर भरोसेमंद है, हर मामले में सच्चा है,

है वो ईश्वर जिसे इंसान अपना जीवन,

अपना सब-कुछ सौंप सके,

अकेला जिस पर वो भरोसा कर सके।


—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI से रूपांतरित

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