58  सबसे बड़ी आशीष जो ईश्वर मानव को प्रदान करता है

1

परमेश्वर के शब्दों के समापन के साथ, उसका साम्राज्य है बन रहा।

फिर से मानव के होने से सामान्य, प्रभु का साम्राज्य बना।

साम्राज्य में रहते परमेश्वर के जन, फिर पाओगे तुम मनुष्योचित जीवन।

आज, तुम जीते हो प्रभु के समक्ष; उसके साम्राज्य में जिओगे तुम कल।

आनंद–सौहार्द से भरी धरती सारी।

धरती पर प्रभु का साम्राज्य बना। धरती पर प्रभु का साम्राज्य बना।


2

बर्फीले ठण्ड के स्थान पर है ऐसी एक दुनिया, जहां है बहारें साल भर,

जब इंसां ना झेलेगा इस दुनिया के दर्द-ओ-ग़म को।

ना होंगें झगड़े इंसानों में, ना तो जंग होंगे मुल्कों में,

ना होगी हिंसा, ना ही खून।

उसके साम्राज्य में जिओगे तुम कल।

आनंद–सौहार्द से भरी धरती सारी।

धरती पर प्रभु का साम्राज्य बना। धरती पर प्रभु का साम्राज्य बना।


3

प्रभु विचरता है इस जग में, रस लेता अपने सिंहासन से।

रहता है वो सितारों में, फरिश्ते उसके लिए नाचें-गाएं।

फरिश्ते अब रोते नहीं, अपनी कमजोरियों पर।

फरिश्ते उसके लिए नाचें-गाएं। फरिश्ते उसके लिए नाचें-गाएं।

अब ना प्रभु कभी, सुनेगा रोना फरिश्तों का।

फरिश्ते उसके लिए नाचें-गाएं। फरिश्ते उसके लिए नाचें-गाएं।


4

तकलीफों की फरियाद करेगा ना कोई।

आज, तुम जीते हो प्रभु के समक्ष; उसके साम्राज्य में जिओगे तुम कल।

क्या नहीं, आशीष ये सबसे बड़ी है प्रभु ने दी जो इंसानों को?

साम्राज्य में रहते परमेश्वर के जन, फिर पाओगे तुम मनुष्योचित जीवन।

आज, तुम जीते हो प्रभु के समक्ष; उसके साम्राज्य में जिओगे तुम कल।

आनंद–सौहार्द से भरी धरती सारी।

धरती पर प्रभु का साम्राज्य बना। धरती पर प्रभु का साम्राज्य बना।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 20 से रूपांतरित

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