177  तुम्हें अपने विश्वास में ईश्वर से प्रेम करने का प्रयास करना चाहिए

1

ईश्वर द्वारा तुम्हारा इस्तेमाल

तुम्हें शुद्ध करने या कष्ट देने से कहीं अधिक है।

यह जताता तुम्हें जीवन का अर्थ और कर्म ईश्वर के,

कि नहीं आसान करना उसकी सेवा।

ईश्वर के कार्य को अनुभव करना केवल

उसकी कृपा का आनंद लेना नहीं,

है उससे प्रेम करने की पीड़ा भी सहना।

सभी पहलू महसूस करो:

उसकी कृपा और उसकी ताड़ना,

उसका प्रबोधन और उसका न्याय।


ईश्वर के सेवक केवल

उसके लिए कष्ट उठाना ही ना जानें,

उसमें उनका विश्वास हो ऐसा

कि वे उससे प्रेम करना चाहें।


ईश्वर में विश्वास उसे संतुष्ट करने के लिए है,

और जो वो चाहता, वो स्वभाव जीने के लिए है।

इस तरह उसके कार्य और उसकी महिमा

प्रकट होगी इन अयोग्य लोगों के ज़रिए।

उस पर विश्वास का यही सही नज़रिया है,

और वो सच्चा लक्ष्य, जो तुम्हें खोजना चाहिए।


2

ईश्वर ने न्याय किया है, तुम्हें ताड़ना दी।

उसके वचन तुमसे निपटे, तुम्हें आलोकित भी किया।

जब तुम नकारात्मक और कमजोर होते,

ईश्वर तुम्हारे लिए चिंता करे।

ताकि तुम्हें पता चले, मानव ईश्वर की दया पर है।

तुम शायद सोचो, ईश्वर पर विश्वास का मतलब है पीड़ा,

उसके लिए काम करना, या सब-कुछ ठीक रहना,

लेकिन इनमें से कुछ भी तुम्हारे विश्वास का उद्देश्य न हो।

गर है, तो गलत है, तुम कभी पूर्ण नहीं होगे।


3

ईश्वर के कार्य, उसका धर्मी स्वभाव,

उसकी बुद्धि और उसके वचन,

उसकी अद्भुतता, उसकी अगाधता,

वे चीजें हैं, जिन्हें लोगों को समझना चाहिए।

इस ज्ञान से अपने अनुरोध,

आशाएँ और धारणाएँ हटाओ,

तभी तुम ईश्वर की शर्तें पूरी कर पाओगे।

केवल इसके ज़रिए तुम जीवन पा सकोगे।

केवल इसके ज़रिए तुम ईश्वर को संतुष्ट कर सकोगे।


ईश्वर में विश्वास उसे संतुष्ट करने के लिए है,

और जो वो चाहता, वो स्वभाव जीने के लिए है।

इस तरह उसके कार्य और उसकी महिमा

प्रकट होगी इन अयोग्य लोगों के ज़रिए।

उस पर विश्वास का यही सही नज़रिया है,

और वो सच्चा लक्ष्य, जो तुम्हें खोजना चाहिए।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा से रूपांतरित

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