105  सत्य पर अमल के लिये सबसे सार्थक है दुख सहना

1

जान लो तुम्हारा लक्ष्य है कि वचन परमेश्वर के तुम में प्रभावी हों,

और सचमुच उन्हें अभ्यास में समझो।

परमेश्वर के वचन समझने में, शायद मुश्किल होती हो तुम्हें,

मगर अभ्यास से दूर होती है ये कमी।

बहुत से सत्यों को तुम्हें जान लेना चाहिये,

सिर्फ जानना नहीं बल्कि अमल में लाना चाहिये।

इसी पर तुम्हारा ध्यान होना चाहिए।

बहुत से सत्य हैं जो तुम्हें जानकर अमल में लाने चाहिए।

इसी पर तुम्हारा ध्यान होना चाहिए। इसी पर तुम्हारा ध्यान होना चाहिए।


2

साढ़े तैंतीस की उम्र में बहुत सहा है यीशु ने,

क्योंकि सत्य पर अमल किया और सत्य को जिया है उसने।

परमेश्वर की इच्छा को पूरा किया और सत्य पर अमल किया है उसने।

इसीलिए इतना दुख सहा उसने।

अगर सत्य को जाना होता, मगर अमल न किया होता,

तो इस तरह दुख न सहा होता उसने।

अगर फरीसियों का अनुसरण किया होता,

यहूदियों की सीख को माना होता उसने,

तो इतना दुख न सहा होता उसने।


3

अभ्यास यीशु का ऐसा कुछ दिखा सकता है जिसे जानना चाहिए तुम्हें।

ज़रूरी है इंसान की मदद,

ताकि परमेश्वर का कार्य परिणाम हासिल करे।

ज़रूरी है इस बात को समझो तुम,

इस बात को समझो तुम, इस बात को समझो तुम।

यीशु ने अगर सत्य पर अमल न किया होता,

तो उसने सूली पर दुख न उठाया होता।

उसने अगर परमेश्वर की इच्छा के मुताबिक कार्य न किया होता,

तो क्या वो इतनी दुखद प्रार्थना कह पाया होता?

तो इंसान को ऐसा ही दुख सहना चाहिये,

तो इंसान को ऐसा ही दुख सहना चाहिये।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सत्य को समझने के बाद, तुम्हें उस पर अमल करना चाहिए से रूपांतरित

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