854  सच का अनुसरण करने के लिए ज़रूरी संकल्प

क्या तुममें सच्चाई को समझने, सच्चाई हासिल करने और अंततः परमेश्वर द्वारा सिद्ध होने का दृढ़ संकल्प है?

1 तुम्हें उस चरण तक पहुँचना चाहिए, जहाँ तुम्हारा संकल्प न बदले, भले ही तुम्हारे सामने कैसा भी माहौल क्यों न आए; यही मतलब है ईमानदार होने का, और केवल यही है सत्य से असली प्रेम। तुम्हें ऐसा ही व्यक्ति बनना चाहिए। कोई समस्या या कठिनाई आने पर पीछे हटने या नकारात्मक होकर अपना संकल्प छोड़ देने से बात नहीं बनेगी। तुम्हारे भीतर ज़िंदगी दाँव पर लगाने के लिए तैयार रहने की ताकत होनी जरूरी है : "चाहे कुछ भी हो जाए, चाहे मेरी जान ही क्यों न चली जाए, मैं अपना संकल्प कभी नहीं छोडूँगा, अपने लक्ष्य से कभी पीछे नहीं हटूँगा।" अगर तुम ऐसा करोगे, तो कोई भी कठिनाई तुम्हें रोक नहीं पाएगी। परमेश्वर तुम्हारे लिए सब-कुछ संभव कर देगा।

2 जब भी कोई मुश्किल आ पड़े, तुम्हारी समझ इस तरह की होनी चाहिए : चाहे कुछ भी हो जाए, यह मेरे लक्ष्य को प्राप्त करने का एक हिस्सा है, और यह परमेश्वर का काम है। मुझमें कमज़ोरी है, पर मैं नकारात्मक नहीं बनूँगा। मुझ पर अपना प्यार बरसाने और मेरे लिए इस तरह के माहौल की व्यवस्था करने के लिए मैं परमेश्वर को धन्यवाद देता हूँ। मुझे अपनी इच्छा और अपने संकल्प को नहीं छोड़ना चाहिए; क्योंकि वैसा करना शैतान के साथ समझौता करने के समान होगा, आत्म-विनाश जैसा होगा, और परमेश्वर को धोखा देने के बराबर होगा। ऐसी मानसिकता होनी चाहिए तुम्हारी। दूसरे चाहे कुछ भी कहें या कुछ भी करें, या परमेश्वर तुम्हारे साथ कैसा भी व्यवहार क्यों न करे, तुम्हारा निश्चय भंग नहीं होना चाहिए।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अक्सर परमेश्वर के सामने जीने से ही उसके साथ एक सामान्य संबंध बनाया जा सकता है से रूपांतरित

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