183 आस्था केवल शोधन से ही आती है
1 केवल जब तुममें आस्था होगी, तभी तुम परमेश्वर को देखने में समर्थ हो पाओगे। जब तुममें आस्था होगी, परमेश्वर तुम्हें पूर्ण बनाएगा और अगर तुममें आस्था नहीं है तो वह ऐसा नहीं कर सकता। जब तुम्हारे वास्तविक अनुभवों में यह आस्था होती है कि तुम परमेश्वर के कर्म देख सको, तब परमेश्वर तुम्हारे सामने प्रकट होगा और भीतर से तुम्हें प्रबुद्ध करेगा और तुम्हारा मार्गदर्शन करेगा। इस आस्था के बिना परमेश्वर ऐसा करने में असमर्थ होगा। अगर तुम परमेश्वर पर विश्वास खो चुके हो, तो तुम कैसे उसके कार्य का अनुभव कर पाओगे? इसलिए, केवल जब तुम्हारे भीतर आस्था हो और तुम परमेश्वर पर संदेह न करो और जब तुम उस पर सच्ची आस्था रखो जो उसके कुछ भी करने से न डगमगाए, तभी वह तुम्हारे अनुभवों के माध्यम से तुम्हें प्रबुद्ध और रोशन करेगा और केवल तभी तुम उसके कार्यों को देख सकोगे। ये सभी चीजें आस्था के माध्यम से ही हासिल की जाती हैं। आस्था केवल शोधन के माध्यम से ही आती है और शोधन की अनुपस्थिति में आस्था विकसित नहीं हो सकती।
2 आस्था किस चीज को संदर्भित करती है? आस्था सच्चा भरोसा और ईमानदार हृदय है, जो मनुष्यों के पास तब होना चाहिए जब वे किसी चीज को देख या छू न सकते हों, जब परमेश्वर का कार्य मनुष्यों की धारणाओं के अनुरूप न होता हो, जब वह मनुष्यों की पहुँच से बाहर हो। मैं इसी आस्था की बात करता हूँ। लोगों को कष्ट और शोधन के समय आस्था की आवश्यकता होती है और जब उनमें आस्था होती है तो वे शोधन का सामना करते हैं—शोधन और आस्था को अलग नहीं किया जा सकता। परमेश्वर चाहे कैसे भी कार्य करे और तुम्हारा परिवेश कैसा भी हो, अगर तुम जीवन का अनुसरण करने और सत्य खोजने में समर्थ होते हो, परमेश्वर के कार्य के ज्ञान का अनुसरण करते हो और उसके कर्मों को जानने का प्रयास करते हो और तुम सत्य के अनुसार कार्य करने में समर्थ होते हो तो यह सच्ची आस्था का होना है और इससे साबित होता है कि तुमने परमेश्वर में आस्था नहीं खोई है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा