491  परमेश्वर उन्हें आशीष देता है जो ईमानदार हैं

1  ईमानदारी का अर्थ है अपना हृदय परमेश्वर को अर्पित करना; हर बात में उसके साथ सच्चाई से पेश आना; हर बात में उसके साथ खुलापन रखना, कभी तथ्यों को न छुपाना; अपने से ऊपर और नीचे वालों को कभी भी धोखा न देना, और मात्र परमेश्वर की चापलूसी करने के लिए चीज़ें न करना। संक्षेप में, ईमानदार होने का अर्थ है अपने कार्यों और शब्दों में शुद्धता रखना, न तो परमेश्वर को और न ही इंसान को धोखा देना। यदि तुम्हारी बातें बहानों और बेकार तर्कों से भरी हैं, तो परमेश्वर कहता है कि तुम ऐसे व्यक्ति हो जो सत्य का अभ्यास करने से घृणा करता है।

2  यदि तुम्हारे पास ऐसे बहुत-से गुप्त भेद हैं जिन्हें तुम साझा नहीं करना चाहते, और यदि तुम प्रकाश के मार्ग की खोज करने के लिए दूसरों के सामने अपने राज़ यानी अपनी कठिनाइयाँ उजागर करना नहीं चाहते हो, परमेश्वर कहता है कि तुम्हें आसानी से न उद्धार मिलेगा न तुम अंधकार से बाहर निकल पाओगे। अगर तुम सच में आनंदित होते हो सत्य का मार्ग खोजकर, तो तुम सदैव प्रकाश में रहने वाले व्यक्ति हो।

3  यदि तुम परमेश्वर के घर में सेवाकर्मी बने रहकर बहुत प्रसन्न हो, गुमनाम रहकर कर्मठता से काम करते हो, हमेशा देते हो, और कभी लेते नहीं, तो परमेश्वर कहता है कि तुम एक वफादार संत हो, क्योंकि तुम्हें किसी इनाम की अपेक्षा नहीं है, तुम बस ईमानदार बनने का प्रयास करते हो। यदि तुम स्पष्टवादी बनने को तैयार हो, अपना सर्वस्व खपाने को तैयार हो, यदि तुम परमेश्वर के लिए अपना जीवन दे सकते हो और दृढ़ता से अपनी गवाही दे सकते हो, यदि तुम इस स्तर तक ईमानदार हो जहाँ तुम्हें केवल परमेश्वर को संतुष्ट करना आता है, और अपने बारे में विचार नहीं करते हो या अपने लिए कुछ नहीं लेते हो, तो परमेश्वर कहता है कि ऐसे लोग प्रकाश में पोषित किए जाते हैं और वे सदा राज्य में रहेंगे।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तीन चेतावनियाँ

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