660  इंसान अपनी किस्मत पर काबू नहीं कर सकता

1

हर नया दिन कहाँ ले जाएगा तुम्हें? कल तुम क्या कहोगे या करोगे?

कल किससे हो जायेगा सामना? क्या जान सकते हो तुम पहले से?

क्या देख सकोगे होने वाली बातों को? क्या बस है इन पर तुम्हारा कोई?

नहीं, नहीं नहीं, नहीं।

अपेक्षा नहीं होती जिनकी, हो जाती हैं ऐसी चीज़ें कई।

इंसान अपनी किस्मत को बस में कर सकता नहीं।


2

रोज़ाना की छोटी बातें, जैसे आती हैं सामने,

घटित होती हैं जिस स्वरूप में, सदा इंसान को याद दिलाती हैं,

कुछ भी बस यूं ही होता नहीं, धीरे-धीरे आकार लेती हैं ये बातें,

होना है जो तो वो होकर रहेगा, इंसान की मर्ज़ी से ये न टलेगा।

उसकी काबिलियत के परे है ये,

इंसान अपनी किस्मत को बस में कर सकता नहीं।


छोटी बातों से लेकर, इंसान के पूरे जीवन की नियति तक।


सब प्रकट करते हैं योजना और प्रभुता सृष्टिकर्ता की,

उसका अधिकार सर्वोच्च है, उसके अधिकार से बढ़कर कुछ नहीं।

यह सत्य है चिरस्थायी।

इस संसार में सब कुछ प्रकट करता है योजना और प्रभुता सृष्टिकर्ता की।

इंसान अपनी किस्मत को बस में कर सकता नहीं।


3

जो कुछ भी होता है, देता है इंसान को परमेश्वर की ओर से चेतावनी।

बताता है कि इंसान अपनी किस्मत को बस में कर सकता नहीं।

होती है जो भी घटना, करती है खंडन इंसान की आकांक्षाओं का,

जो हैं जीवन-कमान अपने हाथों मे लेने की व्यर्थ, निरंकुश लालसाओं से भरीं।

इंसान अपनी किस्मत को बस में कर सकता नहीं।


छोटी बातों से लेकर, इंसान के पूरे जीवन की नियति तक।


सब प्रकट करते हैं योजना और प्रभुता सृष्टिकर्ता की,

उसका अधिकार सर्वोच्च है, उसके अधिकार से बढ़कर कुछ नहीं।

यह सत्य है चिरस्थायी।

इस संसार में सब कुछ प्रकट करता है, योजना और प्रभुता सृष्टिकर्ता की।

इंसान अपनी किस्मत को बस में कर सकता नहीं।


4

एक के बाद एक, इंसान के गालों पे पड़े तेज़ थप्पड़ हैं ये।

इंसान के गालों पे पड़े तेज़ थप्पड़ ये, मजबूर करते इंसान को सोचने पे,

उनकी किस्मत लिखने वाला कौन है, उसे चलाने वाला अंत में कौन है।

उसकी लालसाएँ बार-बार टूटती हैं। सारे लक्ष्य धरे रह जाते हैं।

अंत में किस्मत का लिखा मानना ही पड़ता है,

सच्चाई को स्वीकारना ही पड़ता है।

स्वर्ग की इच्छा, सृष्टिकर्ता की प्रभुता के आगे सिर झुकाना ही पड़ता है।


सब प्रकट करते हैं योजना और प्रभुता सृष्टिकर्ता की,

उसका अधिकार सर्वोच्च है, उसके अधिकार से बढ़कर कुछ नहीं।

यह सत्य है चिरस्थायी।

इस संसार में सब कुछ प्रकट करता है योजना और प्रभुता सृष्टिकर्ता की।

इंसान अपनी किस्मत को बस में कर सकता नहीं।


—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III से रूपांतरित

पिछला: 659  एकमात्र परमेश्वर का प्रभुत्व है इंसान की नियति पर

अगला: 661  बहुत पहले ही तय कर दिया इंसान की नियति को परमेश्वर ने

परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2025 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।

संबंधित सामग्री

775  जब तुम सत्य का अनुसरण नहीं करते तो तुम पौलुस के रास्ते पर चलते हो

1 इन दिनों, अधिकांश लोग इस तरह की स्थिति में हैं : "आशीष प्राप्त करने के लिए मुझे परमेश्वर के लिए खुद को खपाना होगा और परमेश्वर के लिए कीमत...

396  उद्धार-कार्य के अधिक उपयुक्त है देहधारी परमेश्वर

1 अन्त के दिनों में, परमेश्वर देहधारी रूप में प्रकट होकर अपना न्याय का कार्य करता है। क्योंकि जिसका न्याय किया जाता है वह मनुष्य है, मनुष्य...

902  परमेश्वर अंततः उसी को स्वीकार करते हैं, जिसके पास सत्य होता है

1 अंत के दिनों में जन्म लेने वाले लोग किस प्रकार के थे? ये वो लोग हैं जो हजारों सालों से शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए थे, वे इतनी गहराई तक...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 6) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 7) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 8) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 9) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

सेटिंग

  • इबारत
  • कथ्य

ठोस रंग

कथ्य

फ़ॉन्ट

फ़ॉन्ट आकार

लाइन स्पेस

लाइन स्पेस

पृष्ठ की चौड़ाई

विषय-वस्तु

खोज

  • यह पाठ चुनें
  • यह किताब चुनें

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें