30. जेल की यातना
बचपन से ही मैं हमेशा कमजोर डील-डौल वाली थी और मेरे बीमार होने की आशंका रहती थी। शुरू से जहाँ तक याद है, मैं रोज सिरदर्द से पीड़ित रही हूँ। और बारह साल की उम्र में मुझे हृदय रोग हो गया। उसके बाद मुझे जठरांत्र रोग और ब्रोंकाइटिस भी हो गई। कई बीमारियाँ होने की वजह से मुझे जीवन बहुत ही दयनीय लगता था। 24 साल की उम्र में मैंने प्रभु यीशु पर विश्वास करना शुरू किया और मैं अक्सर बाइबल पढ़ने और प्रभु से प्रार्थना करने लगी। मुझे अपनी आस्था से शांति और खुशी का एहसास होने लगा और मुझे पता भी नहीं चला और मेरी बीमारियाँ ठीक हो गईं। प्रभु के प्रेम का बदला चुकाने के लिए मैं प्रभु का सुसमाचार फैलाने लगी और उस दिन का इंतजार करने लगी जब प्रभु वापस आएगा। 1999 में मैंने आखिरकार परमेश्वर की वाणी सुनी और प्रभु यीशु की वापसी का स्वागत किया। देखा कि कैसे सर्वशक्तिमान परमेश्वर कार्य करने और कई सत्य व्यक्त करने के लिए प्रकट हुआ था ताकि मानव जाति को पाप की बेड़ियों से बचा सके, उसे आपदाओं से बचने दे और मनुष्य को परमेश्वर के राज्य का मार्ग दिखाए, मैं बेहद उत्साहित हो गई और सुसमाचार फैलाने वालों की कतार में शामिल हो गई, मुझे उम्मीद थी कि स्वर्ग के राज्य का सुसमाचार और भी ज्यादा लोगों तक फैलाऊँगी।
मार्च 2003 में एक दिन सुसमाचार फैलाते हुए पुलिस ने मुझे गिरफ्तार कर लिया। मेरी तलाशी लेने पर उन्हें एक पेजर और नोटबुक मिली तो उनमें से एक ने मुझसे पूछा, “यह पेजर कहाँ से आया?” जब मैंने उसे बताया कि यह मेरा निजी पेजर है तो उसने प्लास्टिक का पाइप उठाया और मुझे कई बार बुरी तरह मारा और फिर मुझे उठाकर कार में पीछे की तरफ फेंक दिया। फिर पुलिसवालों ने बारी-बारी से मेरे चेहरे पर बेरहमी से थप्पड़ मारे और चिल्लाए, “सुसमाचार फैलाने के लिए इधर-उधर घूमने की यही सजा है! अब हमने तुम्हें पकड़ लिया है!” मैं बहुत भयभीत थी और मैंने जल्दी से परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे मेरी रक्षा करने और मुझे आस्था और शक्ति देने के लिए कहा। जब हम काउंटी सार्वजनिक सुरक्षा ब्यूरो पहुँचे तो पुलिसवाले मुझे घसीटकर एक खाली कमरे में ले गए और मुझे धातु की चादर पर फेंक दिया। और इतनी ठंड थी कि मैं लगातार काँप रही थी। और इतनी ठंड थी कि मैं लगातार काँप रही थी। मैंने पुलिसवालों से कहा “मुझे हृदय रोग है और मैं इसके लिए इंजेक्शन और दवा लेती हूँ। मैं ठंड में नहीं रह सकती।” पुलिसवालों ने मुझे नजरअंदाज कर दिया। मैं बस इतना कर सकती थी कि खुद को गेंद की तरह सिकोड़ लूँ, अपनी बाहों से अपनी छाती को कसकर पकड़ लूँ, लेकिन उसके कुछ ही देर बाद मुझे इतनी ठंड लगने लगी कि मुझे लगातार ऐंठन होने लगी और मेरे दाँत किटकिटाने लगे। पुलिसवालों द्वारा मेरे हाथों और नाक में सुई चुभोने के बाद ही मैं आखिरकार ठीक हुई और ऐंठन बंद हुई। बाद में वे मुझे दूसरे कमरे में ले गए, मुझे एक कुर्सी पर बिठा दिया और खाना खाने बाहर चले गए। मैं थोड़ी भयभीत और चिंतित थी कि जब पुलिसवाले वापस आएँगे तो वे मुझे कैसे प्रताड़ित करेंगे। मैंने लगातार परमेश्वर से प्रार्थना की, उसकी सुरक्षा माँगी। अपनी प्रार्थना के बीच में मुझे परमेश्वर के वचनों का यह अंश याद आया : “तुम्हें सत्य के लिए कष्ट उठाने होंगे, तुम्हें सत्य के लिए समर्पित होना होगा, तुम्हें सत्य के लिए अपमान सहना होगा, और अधिक सत्य प्राप्त करने के लिए तुम्हें अधिक कष्ट उठाने होंगे। यही तुम्हें करना चाहिए” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान)। मैंने सोचा, “हाँ, मुझे कष्ट सहना चाहिए और शैतान के सामने परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए, क्योंकि इसे परमेश्वर की स्वीकृति हासिल है।” मैंने यह भी सोचा कि शैतान ने अय्यूब को कैसे लुभाया था। जब अय्यूब ने एक ही रात में अपनी सारी संपत्ति और संतानें गँवा दीं उसके शरीर पर फोड़े निकल आए तो भी वह इतने बड़े दुख के बावजूद परमेश्वर के नाम की स्तुति कर पाया, जिसके कारण आखिरकार शैतान को अपमानित होना पड़ा और उसे असफलता मिली। परमेश्वर ने मेरी परीक्षा लेने और आस्था पूर्ण बनाने के लिए इस परिवेश का सामना कराया था। चाहे पुलिस ने मेरे साथ कुछ भी किया हो, मुझे पता था कि मुझे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग रहना होगा।
पुलिसवाले जल्दी ही वापस आ गए और बिना एक भी शब्द कहे उन्होंने मेरे चेहरे पर थप्पड़ मारने शुरू कर दिए। मुझे सिर्फ अपने हाथों से थप्पड़ मारने से उनका मन नहीं भरा, उन्होंने अपने जूते भी उठाए और अपने जूतों के तलवों से मेरे चेहरे, सिर और शरीर पर मारने लगे। पहले तो यह बहुत दर्दनाक था और मुझे अपने दिल में कुछ बेचैनी हुई। मैंने अपने दाँत कस लिए और दर्द सहने की कोशिश की जबकि मेरे चेहरे पर आँसू बह रहे थे। बार-बार पीटने से कुछ समय बाद मेरा चेहरा सुन्न हो गया और मुझे अब दर्द महसूस नहीं हो रहा था। उनमें से एक ने एक मीटर से ज्यादा लंबी प्लास्टिक की ट्यूब ली और मेरे शरीर पर मारने लगा और मुझसे सवाल करते हुए कहा, “तुम्हारे कलीसिया में कितने सदस्य हैं? तुम्हारे कलीसिया का अगुआ कौन है? बोलो अब!” मैंने एक शब्द भी नहीं कहा और वह और भी ज्यादा क्रोधित हो गया और मेरे सिर पर जोर से वार किया, जिससे मेरे सिर तुरंत भनभनाने लगे। उसके बाद वे मुझे दूसरे कमरे में ले गए, जहाँ मैंने देखा कि मेरी सभा की दो बहनें कोने में बेंच पर बैठी हुई थीं। राष्ट्रीय सुरक्षा ब्रिगेड के कप्तान ने दो बहनों की ओर इशारा करते हुए मुझसे पूछा, “क्या तुम इन दोनों को जानती हो?” मैंने कहा, “नहीं।” इससे वह इतना नाराज हुआ कि उसने प्लास्टिक की एक ट्यूब उठाकर जोर से मेरे सिर पर मारी और फिर मुझ पर मुक्के और लातें बरसाने लगा, मेरे शरीर में ऐसा कोई भी हिस्सा नहीं था जिसमें चोट नहीं लगी हो। मैं स्तब्ध और भ्रमित हो गई। फिर एक और पुलिसकर्मी ने मुझसे पूछा, “ये पेजर और नोटबुक कहाँ से आए? ये किस काम के लिए हैं?” यह कहते हुए उसने प्लास्टिक की ट्यूब उठाई और मुझे फिर से मारने के लिए तैयार हो गया। मैं बहुत डर गई थी कि मैं ऐसी यातना नहीं झेल पाऊँगी और अपने भाई-बहनों के बारे में बता दूँगी, इसलिए मैं लगातार अपने हृदय में परमेश्वर से प्रार्थना करती रही। मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए जो कहते हैं : “मेरी गवाही की रक्षा के लिए तुम्हें अपना सब-कुछ देना होगा। यह तुम लोगों के कार्यों का लक्ष्य होगा—इसे मत भूलना” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 41)। मुझे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग रहने के लिए अपनी जान जोखिम में डालनी होगी। पुलिसवाले मुझ पर चाहे जितनी भी क्रूरता करें, मैं परमेश्वर को धोखा नहीं दे सकती। तभी एक पुलिसकर्मी ने मुझे मुक्का मारा, मुझे जमीन पर गिरा दिया और फिर मेरे सिर पर प्लास्टिक की ट्यूब से वार किया, जिससे मेरा सिर झनझनाने लगा। फिर उसने मेरे सिर और शरीर पर बेरहमी से मारा, जिससे मेरे पूरे शरीर पर नील पड़ गए। मेरा दिल जोरदार ऐंठन के साथ धड़कने लगा और मानो जैसे मेरा दिल हलक में फँस गया हो। मुझे लगा कि मैं किसी भी पल मर जाऊँगी। मुझे थोड़ी कमजोरी महसूस हुई और सोचने लगी : अगर वे मुझे इसी तरह मारते रहे तो क्या मुझे वाकई पीट-पीटकर मार डालेंगे? तभी मुझे एक बार फिर परमेश्वर के वचन याद आए : “आस्था एक ही लट्ठे से बने पुल की तरह है : जो लोग हर हाल में जीवन जीने की लालसा से चिपके रहते हैं उन्हें इसे पार करने में परेशानी होगी, परन्तु जो आत्म बलिदान करने को तैयार रहते हैं, वे बिना किसी फ़िक्र के, मज़बूती से कदम रखते हुए उसे पार कर सकते हैं” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 6)। मेरा जीवन परमेश्वर के हाथों में था। चाहे पुलिसवाले कितने भी क्रूर क्यों न हों, वे परमेश्वर की अनुमति के बिना मेरे साथ कुछ नहीं कर सकते थे। अगर वे मुझे पीट-पीटकर मार भी देते तो भी मैं परमेश्वर को धोखा नहीं देती, अपनी गवाही में अडिग रहती और मेरी आत्मा तब भी नहीं मरती। अगर मैंने यहूदा की तरह अपने भाई-बहनों को धोखा दिया सिर्फ अपनी देह की अस्थायी पीड़ा से बचने के बारे में सोचा और परमेश्वर के स्वभाव को नाराज किया तो न केवल मुझे बाद में अपराध बोध होगा, बल्कि मैं मृत्यु के बाद नरक में भी जाऊँगी और मेरी आत्मा अनंत काल तक सजा भोगेगी। इसका एहसास होने के बाद मुझे थोड़ी शांति मिली और अब मैं उतनी भयभीत नहीं रही। बस तभी पुलिसवालों ने मुझे पीटना बंद कर दिया। मैंने कहा कि मुझे बाथरूम जाना है, लेकिन कप्तान ने मुझे घूरकर देखा और कहा, “तुम कहीं नहीं जाओगी!” और फिर मेरे पेट के निचले हिस्से में लात मारी। लात की वजह से मैं काबू नहीं रख सकी और मेरी सूती अस्तर वाली पैंट पेशाब से भीग गई।
उसी दिन पुलिसवालों ने मुझे और बाकी दोनों बहनों को हिरासत केंद्र में भेज दिया। मैं सीधी खड़ी नहीं हो पा रही थी और मुझे अपने हाथों से अपने पेट को सहारा देते हुए आगे बढ़ना पड़ रहा था। एक बूढ़ा सुरक्षाकर्मी सब कुछ देख रहा था और बोला, “वे सिर्फ परमेश्वर में विश्वास करते हैं। उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है तो उन्हें इस तरह क्यों पीटा गया?” उसने हम सभी को एक-एक हल्का कंबल दिया और हमें ठंडे फर्श पर सोना पड़ा। मेरी पैंट अभी तक नहीं सूखी थी मैं ठंड से बुरी तरह कांप रही थी और भ्रूण की तरह सिकुड़ी हुई थी। बाद में बूढ़ा आदमी मेरे लिए कुछ दवा और एक कप गर्म पानी लाया। मुझे पता था कि परमेश्वर मेरी कमजोरी पर दया कर रहा था और इस आदमी को हमारी मदद करने के लिए व्यवस्थित कर रहा था। मैंने अपने दिल में परमेश्वर का धन्यवाद किया। अगले दिन पुलिस एक बहन को पूछताछ के लिए दूर ले गई। हम बहुत चिंतित थे और लगातार उसके लिए प्रार्थना कर रहे थे। हम हर दिन लगातार बेचैन रहते थे। तीन दिन और दो रातों के बाद बहन आखिरकार हमारे पास वापस आ गई। जैसे ही वह लंगड़ाती हुई कमर झुकाकर अपने बिस्तर तक पहुँची, हम जल्दी से उसके पास गए। मैंने देखा कि उसका पूरा शरीर घावों से भरा था और उसके पैर काले और नीले हो गए थे और गुब्बारे की तरह सूज गए थे। बहन ने बताया कि ले जाने के बाद पुलिसवालों ने उसे लगातार पीटा। चार-पाँच पुलिसवालों ने बारी-बारी से उसे लात-घूंसे मारे और उसके हाथों को उसकी पीठ के पीछे हथकड़ी से बाँध दिया और उसके हाथों को बेरहमी से ऊपर की ओर झटका दिया, जिससे उसे इतना दर्द हुआ कि वह कई बार बेहोश हो गई। पुलिसवाले उसे जगाने के लिए रसोई के गंदे पानी से छींटे मारते थे और पीटते थे। उन्होंने उसे पूरे तीन दिन और दो रातों तक कोई खाना या पानी नहीं दिया। मैं बहुत क्रोधित थी : राक्षसों के इस गिरोह ने उसके साथ इतना अमानवीय व्यवहार किया था! हालाँकि मैं बहुत भयभीत भी थी। मेरे पुराने घाव अभी तक ठीक नहीं हुए थे और मुझे नहीं पता था कि पुलिस मुझे आइंदा कैसे प्रताड़ित करेगी। क्या मैं इसे सहन कर पाऊँगी? मैंने अपने हृदय में लगातार परमेश्वर से प्रार्थना की और उससे मुझे शक्ति देने के लिए कहा।
मेरी बहन के लौटने के तीसरे दिन सुबह 8 बजे राष्ट्रीय सुरक्षा ब्रिगेड का कप्तान मुझसे पूछताछ करने आया। एक पुलिसकर्मी ने मुझे हथकड़ी लगाई, मेरी गर्दन को नीचे की ओर झटका ताकि मैं कमर से झुक जाऊँ और मुझे आगे की ओर धकेल दिया। एक अन्य पुलिसकर्मी ने पीछे से मेरी कमर पर इतनी जोर से लात मारी कि मैं लगभग गिर ही गई थी। उन्होंने मुझे एक छोटे से कमरे में धकेल दिया जिसमें एक बिस्तर था और मुझे बिस्तर के सिरहाने लगी रेलिंग से हथकड़ी लगा दी। मुझे नहीं पता था कि मेरे लिए क्या यातनाएँ सोची गई हैं और मेरा दिल हलक में फँस गया था। भयानक तरीके से हँसते हुए कप्तान ने एक पुलिसकर्मी से कहा, “उसके मुँह में क्यूशिन हार्ट टॉनिक की कुछ गोलियाँ डालकर निगलवा दो। इस तरह पीटने से वह इतनी आसानी से नहीं मरेगी। हमें आज उससे जवाब लेना ही है।” फिर उन्होंने मेरे मुँह में जबरन गोलियाँ ठूँस दीं और सिर से पैर तक प्लास्टिक की नलियों से मुझे पीटने लगे, यहाँ तक कि मेरे पैरों के तलवों को भी नहीं छोड़ा। हर वार के साथ मैं दर्द से कराह उठती थी। जब वे मुझे पीटते थे तो वे मुझसे कलीसिया के बारे में भी पूछते थे। मुझे चिंता हुई कि मैं उनकी यातना नहीं झेल पाऊँगी, इसलिए मैंने जल्दी से मदद के लिए परमेश्वर से प्रार्थना की। मैंने परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचा जो कहते हैं : “जिन लोगों का उल्लेख परमेश्वर ‘विजेताओं’ के रूप में करता है, वे लोग वे होते हैं, जो तब भी गवाही में दृढ़ बने रहने और परमेश्वर के प्रति अपना विश्वास और भक्ति बनाए रखने में सक्षम होते हैं, जब वे शैतान के प्रभाव और उसकी घेरेबंदी में होते हैं, अर्थात् जब वे स्वयं को अंधकार की शक्तियों के बीच पाते हैं। यदि तुम, चाहे कुछ भी हो जाए, फिर भी परमेश्वर के समक्ष पवित्र दिल और उसके लिए अपना वास्तविक प्यार बनाए रखने में सक्षम रहते हो, तो तुम परमेश्वर के सामने गवाही में दृढ़ रहते हो, और इसी को परमेश्वर ‘विजेता’ होने के रूप में संदर्भित करता है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम्हें परमेश्वर के प्रति अपनी भक्ति बनाए रखनी चाहिए)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे एहसास दिलाया कि परमेश्वर हमारी आस्था पूर्ण बनाने के लिए बड़े लाल अजगर की गिरफ्तारी, उत्पीड़न और यातना का उपयोग करता है और हमें विजेताओं के समूह में शामिल करता है। पुलिस द्वारा गिरफ्तार करवाना और यातना सहन करवाना परमेश्वर का मुझे आजमाने और परखने का तरीका था और यह परमेश्वर की गवाही देने का अवसर था। चाहे पुलिस मुझे कितना भी सताए, चाहे वे मुझे पीट-पीट कर मार डालें, मैं कभी भी परमेश्वर से विश्वासघात नहीं करूँगी या अपने भाई-बहनों को धोखा नहीं दूँगी। पुलिसवाले मुझसे पूछते रहे कि हमारे कलीसिया का अगुआ कौन है और फिर प्लास्टिक की ट्यूब लेकर मेरे पूरे शरीर पर फिर से बेरहमी से प्रहार किए। मैं अपनी तरफ गेंद की तरह सिकुड़ जाती थी, दाँत पीसती रहती थी और एक शब्द भी नहीं बोलती थी। सुबह तक मुझसे पूछताछ करने और यह देखने के बाद कि मैं कुछ भी नहीं बताने वाली हूँ, उन्होंने झल्लाहट में धमकी दी, “अगर तुम हमें कुछ नहीं बताओगी तो हम तुम्हें दस या बीस साल की सजा देंगे और तुम कहीं नहीं जा पाओगी!” उसके बाद वे मुझे वापस उसी कोठरी में ले गए जहाँ उन्होंने हमें रखा था। पूछताछ के दौरान मुझे जगह-जगह मारा गया था और मेरे पूरे शरीर पर घाव के निशान थे, लेकिन पुलिसवालों के चेहरे पर उनकी हार के भाव देखकर मुझे बहुत खुशी हुई। मैं लगातार परमेश्वर को उसकी सुरक्षा के लिए धन्यवाद देती रही, जिसकी वजह से मैं मौत के मुँह से बच निकली थी।
हिरासत केंद्र में पंद्रहवें दिन पुलिसवाले हम तीनों को बाहर आँगन में ले गए। उनमें से एक ने कहा, “कुत्ते छोड़ दो!” फिर डरावनी आवाज में उसने कहा, “हम देखेंगे कि तुम अब बोलते हो या नहीं!” तभी पुलिस के दो कुत्ते अचानक आँगन की तरफ से उछलते हुए बाहर आए अपनी लंबी जीभ बाहर निकाले और अपने सिर ऊपर उठाए सीधे हम पर हमला कर दिया। जब वे वहाँ पहुँचे जहाँ हम तीनों खड़े थे तो वे हमारे चारों तरफ चक्कर लगाने लगे। मैं बहुत डर गई और सोचा, “क्या ये कुत्ते हमें काट कर मार देंगे?” मैंने जल्दी से परमेश्वर से प्रार्थना की। प्रार्थना के दौरान मुझे दानियाल की कहानी याद आई, जो शेरों की मांद में फेंके जाने के बावजूद नहीं मरा था, क्योंकि परमेश्वर उसके साथ था और उसने शेरों के मुँह बंद कर दिए थे, जिससे वे उसे काट नहीं पाए। मुझे परमेश्वर के वचन भी याद आए जो कहते हैं : “तुम्हें किसी भी चीज़ से भयभीत नहीं होना चाहिए; चाहे तुम्हें कितनी भी मुसीबतों या खतरों का सामना करना पड़े, तुम किसी भी चीज़ से बाधित हुए बिना, मेरे सम्मुख स्थिर रहने के काबिल हो, ताकि मेरी इच्छा बेरोक-टोक पूरी हो सके। यह तुम्हारा कर्तव्य है...। डरो मत; मेरी सहायता के होते हुए, कौन इस मार्ग में बाधा डाल सकता है? यह स्मरण रखो! इस बात को भूलो मत! जो कुछ घटित होता है वह मेरी सदिच्छा से होता है और सबकुछ मेरी निगाह में है। क्या तुम्हारा हर शब्द व कार्य मेरे वचन के अनुसार हो सकता है? जब तुम्हारी अग्नि परीक्षा होती है, तब क्या तुम घुटने टेक कर पुकारोगे? या दुबक कर आगे बढ़ने में असमर्थ होगे?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 10)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था दी। परमेश्वर मेरा सहारा है और उसकी अनुमति के बिना कुत्ते मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। मेरी चिंता धीरे-धीरे कम हो गई और मेरी आस्था थी कि सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है। हैरानी की बात थी कुत्तों ने हमें सूंघा, अपनी दुम हिलाई और चले गए। मैंने राहत की गहरी सांस ली, लगातार अपने दिल में परमेश्वर का धन्यवाद किया और उसमें मेरी आस्था और भी मजबूत हो गई।
उसके बाद पुलिस हमें जेल ले गई। हम कोठरी में तीन अन्य बहनों से मिले जिनके पूरे शरीर पर और भी बुरी तरह से मारा गया था। दो दिन बाद हमसे बारी-बारी से एक-एक कर पूछताछ की गई। वे मुझे एक छोटे से कमरे में ले गए और कलीसिया के विभिन्न विवरणों पर मुझसे पूछताछ की। जब मैंने उन्हें कुछ नहीं बताया तो उन्होंने मुझे लात मारकर नीचे गिरा दिया और मुझे जमीन पर घुटनों के बल बैठा दिया, फिर मेरी पिंडलियों के पीछे खड़े हो गए और मेरे बाल पकड़कर सिर को जोर से पीछे की ओर खींचा। उसके बाद एक पुलिसकर्मी ने मेरी गर्दन जकड़ ली, मेरे बाल पकड़ कर उन्हें आगे-पीछे खींचा, लगभग दस मिनट तक यही करता रहा। जब वह मुझसे दूर हुआ तो उसने अपने गुप्तांगों को छूना शुरू कर दिया और अश्लील हरकतें करने लगा और मुझे कामुक निगाहों से देखने लगा। मैंने घृणा से अपना सिर दूसरी ओर घुमा लिया और सोचा, “वह खुद को पुलिसवाला कैसे कह सकता है? वह लुच्चा और वहशी है!” उसके बाद उसने दराज में रखी दवाओं की ओर इशारा किया और कहा, “हमारे पास हर तरह की दवा है जिसके बारे में तुम सोच सकती हो। एक इंजेक्शन से हम तुम्हें पागल या सनकी बना सकते हैं। उसके बाद कोई भी तुम्हारे साथ इंसान जैसा व्यवहार नहीं करेगा।” भयावह हँसी के साथ उसने आगे कहा, “सीसीपी एक नास्तिक और भौतिकवादी दर्शन को बढ़ावा देती है, हमें तुम्हारे जैसे विश्वासियों को बाहर निकालना है। अगर तुम हमें कोई जानकारी नहीं देती तो हम तुम पर इन दवाओं का इस्तेमाल करेंगे।” यह बोलते हुए उसने दराज से एक सिगरेट निकाली, उसे जलाया और फिर उसे मेरी नाक के नीचे रख दिया जिससे उसका धुआँ मेरे नथुनों में चला गया जिससे मुझे खाँसी और चक्कर आने लगे और मतली होने लगी। फिर उसने कहा, “इस सिगरेट में एक दवा है जो तुम्हें अनचाहे ही वह सब कुछ बताने पर मजबूर करेगी जो तुम जानती हो।” इससे मैं बहुत डर गई। अगर मुझे वाकई नशा दिया गया और मैंने अपने भाई-बहनों को धोखा दिया तो क्या मैं यहूदा नहीं बन जाऊँगी? और अगर उनके इंजेक्शन की वजह से मैं अपनी समझ खो बैठी या फिर सनकी बन गई? तो मैं कैसे जी पाऊँगी? मैंने लगातार परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर। मैं यहूदा नहीं बनना चाहती। मैं अपने दम पर पुलिस की यातनाएँ नहीं झेल सकती। मेरा मार्गदर्शन और रक्षा करो।” तभी मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “ब्रह्मांड में घटित होने वाली समस्त चीजों में से ऐसी कोई चीज नहीं है, जिसमें मेरी बात आखिरी न हो। क्या कोई ऐसी चीज है, जो मेरे हाथ में न हो?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 1)। वाकई परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभुता रखता है। मेरा जीवन उसके हाथों में था और मुझे मानसिक बीमारी होगी या नहीं या मैं सनकी बनूँगी या नहीं, यह सब उसके ऊपर निर्भर था। मुझे परमेश्वर में आस्था रखनी थी। आखिरकार मैं जरा भी प्रभावित नहीं हुई, पुलिसकर्मी द्वारा मुझे जबरन पिलाई जा रही नशीली सिगरेट से और जागृत हो रही थी। इससे मुझे पता चला कि परमेश्वर हमेशा मेरे साथ था, मेरी रक्षा और मेरी देखभाल कर रहा था। मैंने अपने हृदय में परमेश्वर को धन्यवाद दिया और मेरा डर कम हो गया। सिगरेट के लगभग दो तिहाई जलने के बाद पुलिसकर्मी ने देखा कि मैं अभी भी पूरी तरह से जाग रही हूँ और सतर्क हूँ तो उसने गुस्से में सिगरेट जमीन पर फेंक दी और आह भरते हुए कहा, “इसे जेल भेजो!” 13 मई की सुबह एक पुलिसकर्मी ने मुझसे कहा, “परमेश्वर में तुम्हारा विश्वास सीसीपी के कानूनों का उल्लंघन करता है। तुम पर सार्वजनिक व्यवस्था बिगाड़ने का आरोप लगाया गया है और तुम्हें दो साल की सश्रम पुनर्शिक्षा की सजा सुनाई गई है।” जब मैंने उसे यह कहते सुना तो मैं काफी परेशान हो गई। दो महीने की कैद पहले से ही असहनीय थी और मुझे नहीं पता था कि मैं श्रम करते हुए दो साल की पुनर्शिक्षा की सजा कैसे काटूँगी। पुलिसकर्मी आगे कहता गया, “अपील करने की जहमत मत उठाना। इस दुनिया में गलत सजाओं की कोई कमी नहीं है और तुम अकेले नहीं हो। भले ही तुम अपील करो, तुम सीसीपी के खिलाफ किसी भी मामले में कभी नहीं जीत पाओगी।” उसकी राक्षसी बातें सुनकर मुझे सीसीपी का बुरा और बदसूरत सार और भी स्पष्ट हो गया। दो दिन बाद मुझे एक श्रम शिविर में भेज दिया गया।
श्रम शिविर में मुझे नौ अन्य बहनों के साथ कैद किया गया था। हर सुबह हमें 5 बजे सुबह उठना पड़ता था और सुबह की कसरत के बाद चटाई बुननी पड़ती थी। अगर हम थोड़ा धीमे काम करते तो वे हम पर चिल्लाते थे और अगर हम अपना काम पूरा नहीं कर पाते तो हमें सजा दी जाती। कभी-कभी हमें रातभर काम करना पड़ता था और कभी-कभी तो हम तीन दिन तीन रात बिना सोए ही गुजार देते थे। श्रम शिविर में रहने के दौरान मैंने कभी भी पेट भर खाना नहीं खाया और मैं हमेशा थकावट, नींद की कमी और भूख की अवस्था में रहती थी। मैं अक्सर खड़े-खड़े ही सो जाती थी। विश्वासी होने के कारण सुरक्षाकर्मी अक्सर हमें परेशान करता था। मुझे बार-बार पेशाब आता था और जब मैं बाथरूम जाने के लिए कहती थी तो सुरक्षाकर्मी द्वारा उकसाए गए दो मुख्य कैदी जानबूझकर मेरा मजाक उड़ाते हुए कहते थे, “यह तुम्हारा घर नहीं है, तुम जब चाहो तब नहीं जा सकती! इसे रोक कर रखो!” मैं उसे इतनी देर तक रोक कर रखती थी कि मुश्किल से ही चल पाती थी, मुझे चिंता होती थी कि अगर मैं बहुत तेजी से चली तो नियंत्रण खो दूँगी और दुर्घटना हो जाएगी। मुझे एक बार में एक कदम उठाकर धीरे-धीरे बाथरूम की ओर जाना पड़ता था। लेकिन जब मैं आखिरकार बाथरूम में पहुँचती तो मैं पेशाब नहीं कर पाती थी। यह भयानक था। एक दिन एक बहन जो करीब साठ साल की थी, उसे अत्यधिक काम के कारण दिल का दौरा पड़ा और वह फर्श पर गिर पड़ी, उसके मुँह से झाग निकल रहा था। सुरक्षाकर्मी ने उसकी मदद तो की ही नहीं, बल्कि उसने उसे दो बार लात भी मारी। जब वह जागी तो उसने उसे काम करते रहने के लिए मजबूर किया। एक और बार एक मुख्य कैदी ने कहा कि एक बहन का काम मानक के अनुसार नहीं है, जबकि वह स्पष्ट रूप से मानक के अनुसार था। सुरक्षाकर्मी ने कहा कि बहन निष्क्रिय है, काम में ढिलाई बरत रही है और काम करने से इनकार कर रही है और उसे एक छोटी ही कोठरी में डालकर, लटका दिया और लगातार दो दिनों तक पीटकर दंडित करते रहे। उसके बाद उसे कैफेटेरिया में एक मंच पर लाया गया और सबके सामने आत्म-आलोचना करने के लिए मजबूर किया गया। जब मैंने बहन की कलाई पर हथकड़ी के गहरे काले और नीले निशान देखे तो मुझे बहुत गुस्सा आया। सिर्फ हमारी आस्था के कारण बड़ा लाल अजगर हमें गिरफ्तार कर मनमर्जी से पीटता था और हमें मजदूरी के जरिए पुर्नशिक्षा की सजा के लिए भेजता था, हमारे साथ बहुत दुर्व्यवहार करता था। वे हम विश्वासियों को बचने का कोई मौका नहीं दे रहे थे! तभी मुझे परमेश्वर के वचनों का एक भजन याद आया जिसका शीर्षक था “अंधेरे में हैं जो उन्हें ऊपर उठना चाहिये।”
1 हजारों सालों से यह मलिनता की भूमि रही है। यह असहनीय रूप से गंदी और असीम दुःखों से भरी हुई है, चालें चलते और धोखा देते हुए, निराधार आरोप लगाते हुए, क्रूर और दुष्ट बनकर इस भुतहा शहर को कुचलते हुए और लाशों से पाटते हुए प्रेत यहाँ हर जगह बेकाबू दौड़ते हैं; सड़ांध ज़मीन पर छाकर हवा में व्याप्त हो गई है, और इस पर जबर्दस्त पहरेदारी है। आसमान से परे की दुनिया कौन देख सकता है? ऐसे भुतहा शहर के लोग परमेश्वर को कैसे देख सके होंगे? क्या उन्होंने कभी परमेश्वर की प्रियता और मनोहरता का आनंद लिया है? उन्हें मानव-जगत के मामलों की क्या कद्र है? उनमें से कौन परमेश्वर के उत्कट इरादों को समझ सकता है?
2 परमेश्वर के कार्य में ऐसी अभेद्य बाधा क्यों खड़ी की जाए? परमेश्वर के लोगों को धोखा देने के लिए विभिन्न चालें क्यों चली जाएँ? वास्तविक स्वतंत्रता और वैध अधिकार एवं हित कहाँ हैं? निष्पक्षता कहाँ है? आराम कहाँ है? गर्मजोशी कहाँ है? परमेश्वर के लोगों को छलने के लिए धोखे भरी योजनाओं का उपयोग क्यों किया जाए? परमेश्वर के कार्य को क्यों दबाना? क्यों परमेश्वर को इस हद तक खदेड़ा जाए कि उसके पास आराम से सिर रखने के लिए जगह भी न रहे? तुम लोग परमेश्वर के आगमन को अस्वीकार क्यों कर देते हो? तुम लोग इतने निर्लज्ज क्यों हो? क्या तुम लोग ऐसे अंधकारपूर्ण समाज में अन्याय सहन करना चाहते हो?
यही समय है : मनुष्य अपनी सभी शक्तियाँ लंबे समय से इकट्ठा करता आ रहा है, उसने इसके लिए सभी प्रयास किए हैं, हर कीमत चुकाई है, ताकि वह इस दुष्ट के घृणित चेहरे से नकाब उतार सके और जो लोग अंधे हो गए हैं, जिन्होंने हर प्रकार की पीड़ा और कठिनाई सही है, उन्हें अपने दर्द से उबरने और इस दुष्ट बूढ़े शैतान से विद्रोह करने दे।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8)
मैंने निर्विवाद निश्चितता के साथ देखा कि सीसीपी एक राक्षस है जो सत्य से घृणा करता है और परमेश्वर को अपना शत्रु मानता है; मैंने सीसीपी के खिलाफ पूरी तरह से विद्रोह करने, परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग रहने और बड़े लाल अजगर को अपमानित करने का मन बना लिया।
बाद में हमें नकली पलकें बनाने का काम सौंपा गया हमें हर रात अतिरिक्त समय काम करना पड़ता था। लंबे समय तक काम करने के कारण मेरी नजर धुँधली हो गई और चिमटी पकड़ते समय मेरे हाथ काँपने लगते थे। शुरू में मेरा शरीर कमजोर था और अत्यधिक थकान के कारण मेरी हालत दिन-ब-दिन खराब होती गई। मुझे अक्सर बुखार रहता था, लेकिन बीमार होने पर भी मुझे काम करना पड़ता था। और यहाँ तक कि बाथरूम जाना भी एक समस्या थी—मुख्य कैदी जानबूझकर मुझे परेशान करता था और मुझे तभी जाने देता था जब मैं बहुत देर तक पेशाब रोके रखने के चलते रोने लगती थी। मैं बेहद उदास और दुखी थी और मुझे नहीं पता था कि मैं दो साल कैसे काटूँगी। कभी-कभी मैं इतनी दुखी हो जाती थी कि मुझे रोने का मन करता था और कभी-कभी अपनी जान देने का भी ख्याल आता था। उस दौरान मैं अक्सर परमेश्वर से प्रार्थना करती थी और उसके वचनों का यह अंश याद करती थी : “जब तुम कष्टों का सामना करते हो, तो तुम्हें देह की चिंता छोड़ने और परमेश्वर के विरुद्ध शिकायतें न करने में समर्थ होना चाहिए। जब परमेश्वर तुमसे अपने आप को छिपाता है, तो उसका अनुसरण करने के लिए तुम्हें अपने पिछले प्रेम को डिगने या मिटने न देते हुए उसे बनाए रखने के लिए विश्वास रखने में समर्थ होना चाहिए। परमेश्वर चाहे कुछ भी करे, तुम्हें उसकी योजना के प्रति समर्पण करना चाहिए, और उसके विरुद्ध शिकायतें करने के बजाय अपनी देह को धिक्कारने के लिए तैयार रहना चाहिए। जब परीक्षणों से तुम्हारा सामना हो, तो तुम्हें परमेश्वर को संतुष्ट करना चाहिए, भले ही तुम फूट-फूटकर रोओ या अपनी किसी प्यारी चीज से अलग होने के लिए अनिच्छुक महसूस करो। केवल यही सच्चा प्यार और विश्वास है। तुम्हारा वास्तविक आध्यात्मिक कद चाहे जो भी हो, तुममें पहले कठिनाई झेलने की इच्छा और सच्चा विश्वास, दोनों होने चाहिए, और तुममें देह-सुख के खिलाफ विद्रोह करने की इच्छा भी होनी चाहिए। तुम्हें परमेश्वर के इरादे पूरे करने के लिए व्यक्तिगत रूप से कठिनाइयों का सामना करने और अपने व्यक्तिगत हितों का नुकसान उठाने के लिए तैयार होना चाहिए। तुम्हें अपने हृदय में अपने बारे में पछतावा महसूस करने में भी समर्थ होना चाहिए : अतीत में तुम परमेश्वर को संतुष्ट करने में असमर्थ थे, और अब, तुम पछतावा कर सकते हो। तुममें इनमें से किसी भी मामले में कमी नहीं होनी चाहिए—इन्हीं चीजों के द्वारा परमेश्वर तुम्हें पूर्ण बनाएगा। अगर तुम इन कसौटियों पर खरे नहीं उतर सकते, तो तुम्हें पूर्ण नहीं बनाया जा सकता” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा)। पहले मैं अक्सर कहती थी कि मैं अय्यूब और पतरस का अनुकरण करने के लिए तैयार हूँ और चाहे मेरे सामने कितनी भी भयानक परीक्षाएँ क्यों न हों, मैं परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए अपनी गवाही में अडिग रहूँगी। लेकिन अब जब वाकई मेरा इस स्थिति से सामना हुआ तो मुझे एहसास हुआ कि मैं सिर्फ नारे और धर्म-सिद्धांत पढ़ रही थी और परमेश्वर के प्रति मेरी सच्ची आस्था और समर्पण नहीं था। शैतान मुझे परमेश्वर से दूर करने और उसे धोखा देने के लिए मेरी देह को पीड़ा दे रहा था, लेकिन परमेश्वर इस कठिन परिवेश का उपयोग मेरी कमियों को बेनकाब करने और मेरी आस्था और प्रेम को पूर्ण बनाने के लिए कर रहा था। मुझे इस परिवेश का अनुभव करने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करना था और चाहे मैं कितना भी कष्ट सहूँ, मुझे परमेश्वर को संतुष्ट करना था। एक बार जब मैंने परिवेश के प्रति समर्पण कर दिया तो मुझे नहीं लगा कि यह अब इतना कष्टदायक है। बाद में श्रम शिविर के डॉक्टर ने मेरी शारीरिक जाँच की और पाया कि मुझे गंभीर क्षिप्रहृदयता और उन्नत हृदय रोग है। उसके बाद सुरक्षाकर्मी ने मुझे अतिरिक्त काम नहीं दिया। मुझे पता था कि परमेश्वर मेरे लिए एक रास्ता खोल रहा है और मैंने तहे दिल से उसका धन्यवाद किया। परमेश्वर की सुरक्षा में मैंने एक वर्ष और दस महीने की कैद काट ली।
अपने पिछले अनुभव के बारे में सोचूँ तो हर बार जब मुझे लगा कि मैं यातना और पीड़ा से बच नहीं पाऊँगी तो परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था और शक्ति दी, एक के बाद एक मुश्किल से गुजरने में मेरा मार्गदर्शन किया। सिर्फ परमेश्वर की सुरक्षा और प्रेम के कारण ही मैं कमजोर शारीरिक संरचना और कई बीमारियों से पीड़ित होने के बावजूद बड़े लाल अजगर की शैतानी जेल से जिंदा बाहर निकल पाई और उस की यातना से बच पाई! सर्वशक्तिमान परमेश्वर का धन्यवाद!