100. मैंने अपनी यातनाओं के दौरान क्या सीखा
28 जुलाई 2007 की सुबह, कुछ भाई-बहनों के साथ एक सभा के दौरान, पुलिस ने उस घर का दरवाजा तोड़ डाला जहाँ में हम सभा कर रहे थे और अंदर घुस आई। एक मोटा पुलिस अधिकारी, जिसने एक स्टन बैटन पकड़ी हुई थी, उसने चिल्लाकर कहा, “कोई नहीं हिलेगा, वरना हम तुम्हारी टांगे तोड़ देंगे!” उस पुलिस अधिकारी का निर्दयी रवैया देखकर मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने जवाब दिया, “तुम हमें किस आधार पर गिरफ्तार कर रहे हो? हम विश्वासी हमेशा अच्छा जीवन जीते हैं और सही मार्ग पर चलते हैं।” इस पर राष्ट्रीय सुरक्षा प्रमुख ने सख्त लहजे में टोकते हुए कहा, “तुम कह रहे हो कि परमेश्वर में विश्वास करना सही मार्ग पर चलना होता है? सीसीपी में विश्वास करना ही एकमात्र सही मार्ग है! हम राष्ट्रीय सुरक्षा ब्रिगेड वालों को खासतौर पर परमेश्वर में विश्वास रखने वालों को पकड़ने का कार्य सौंपा गया है। सिर्फ तुम्हें पकड़ने के लिए हमने कई रातें जागकर निगरानी की है। तुम लोग इतनी सारी दूसरी चीजें कर सकते थे, लेकिन इसके बजाय तुमने परमेश्वर में विश्वास करना ही चुना!” इसके बाद, उसने अपने हाथ हिलाकर अपने अधीनस्थों को घर की तलाशी शुरू करने का संकेत दिया। तलाशी पूरी करने के बाद उन्होंने हमें हथकड़ी पहना दी और वे हमसे अलग-अलग पूछताछ करने के लिए हमें प्रांतीय सार्वजनिक सुरक्षा ब्यूरो ले गए।
जैसे ही मैं पूछताछ वाले कमरे में दाखिल हुआ, राष्ट्रीय सुरक्षा प्रमुख ने मेरे चेहरे पर कई बार थप्पड़ मारे, जिसके कारण मेरा सिर चकराने लगा और मेरा सिर भारी हो गया, मेरे कान बजने लगे, मेरी आँखों के सामने अंधेरा छा गया और मुझे अपने मुँह में खून का स्वाद महसूस हुआ। इसके तुरंत बाद, पास खड़े चार अन्य अधिकारियों ने मुझ पर हमला कर दिया और उन्होंने मुझे लातों-घूसों से मारना शुरू कर दिया। कुछ देर बाद, राष्ट्रीय सुरक्षा प्रमुख ने अपनी सिगरेट का एक कश लिया और उंगली से मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा, “तुम्हारी शक्ल देखकर लगता है कि या तो तुम अपनी कलीसिया के अगुआ हो या एक महत्वपूर्ण सदस्य हो। अगर तुम हमें वो सब बता दो जो हम जानना चाहते हैं, तो हम तुम्हें जाने देंगे लेकिन अगर तुम ऐसा नहीं करते, तो फिर मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।” उसने यह भी कहा कि, “तुम्हारे शरीर की बनावट को देखकर लगता है कि तुम कुछ ज्यादा यातना सहन नहीं कर पाओगे। तो बस हमें बता दो : तुम्हारा अगुआ कौन है? कलीसिया का पैसा किसके घर पर रखा है?” मैंने एक शब्द भी नहीं कहा, बल्कि मन ही मन में लगातार परमेश्वर से प्रार्थना करता रहा कि वह मेरे साथ रहे और मुझे ताकत दे। मैंने संकल्प लिया कि चाहे पुलिस मुझे जितनी भी यातना क्यों न दे, मैं यहूदा नहीं बनूँगा और परमेश्वर के साथ विश्वासघात नहीं करूँगा। जब उन्होंने देखा कि मैं कुछ भी नहीं बता रहा, तो राष्ट्रीय सुरक्षा प्रमुख ने अपनी सिगरेट जमीन पर फेंक दी और वह अपने हाथ से इशारा करते हुए चिल्लाया, “मारो इसे! इसे पीट-पीटकर जान से मार डालो!” बस फिर क्या था, कई पुलिस अधिकारियों ने मुझे फिर से बुरी तरह पीटना शुरू कर दिया। फिर उन्होंने मेरे हाथ मेरी पीठ के पीछे हथकड़ी से बांध दिए, मेरी पैंट को नीचे मेरी पिंडलियों तक खींच दिया, मेरे मोजे उतार दिए और उन्हें मेरे मुँह में ठूंस दिए ताकि मैं चिल्ला न सकूँ फिर मेरा सिर मेरी पैंट में ठूंस दिया। इसके बाद पुलिस अधिकारी बारी-बारी से मुझे घूंसे और लात मारने लगे और ऐसा करते हुए वे दिल खोलकर हँस रहे थे। वहाँ कुछ महिला अधिकारी भी थीं, जो एक तरफ से यह सब देख रही थीं और वे इतना हँस रही थीं कि उन्हें अपनी बगल की मेज का सहारा लेना पड़ा। पुलिसकर्मी मेरे साथ एक जानवर जैसा व्यवहार कर रहे थे और मुझे बहुत अपमानित महसूस हुआ। जुलाई का महीना था और पूछताछ वाले कमरे के अंदर भीषण गर्मी थी—कुछ ही समय में, मेरे सारे कपड़े पसीने से भीग गए। जिन जगहों पर मुझे पुलिस के चमड़े के जूतों से मारा गया था, वहाँ से खून बहने लगा और चोट की जगह खून में पसीने के मिलने से मुझे बहुत तेज दर्द हो रहा था। इतने घूंसे मारे जाने के कारण मेरे सिर पर कई रक्तस्राव भी हो गए थे। फिर एक अधिकारी ने फिर मेरे बालों को पकड़ा और मुझे थप्पड़ मारने लगा और मेरे सिर को जोर-जोर से बाईं और दाईं ओर घुमाने लगा। उसने अपने दाँत पीसते हुए कहा, “अब तू बोलेगा या नहीं?” मैंने कहा, “मुझे कुछ नहीं पता!” वह गुस्से में आ गया, उसने मेरी हथकड़ी को पकड़ा और मेरी पीठ के पीछे से मेरे हाथों को जोर से ऊपर खींच दिया। मेरी बाहों में ऐसा दर्द हो रहा था जैसे मानो वे टूट गई हों, और उन्हें मोड़ने के दौरान चटकने की आवाज भी आई थी। हथकड़ियाँ मेरी कलाई की त्वचा को काट चुकी थीं और वहाँ से खून बहने लगा। जब भी वे मेरे हाथों को ऊपर खींचते थे, मेरे लिए दर्द असहनीय हो जाता था और मैं लगातार अपने दिल में परमेश्वर से प्रार्थना करता रहा और उससे मुझे आस्था और शक्ति देने की याचना करता रहा ताकि मैं उसके लिए अपनी गवाही में दृढ़ रह सकूँ। मुझे इतनी बुरी तरह तड़पते हुए देखकर, राष्ट्रीय सुरक्षा प्रमुख ने मजाक उड़ाते हुए कहा, “क्या हुआ? मैंने तो पहले ही तुम्हें कहा था कि तुम इस यातना को सहन नहीं कर सकोगे। जिद मत करो और बताना शुरू करो! तुम्हारा अगुआ कौन है? तुम लोग कैसे आपस में संवाद करते हो? सारा पैसा किसके घर में रखा है?” मैंने उसका कोई जवाब नहीं दिया। मोटे पुलिसकर्मी ने फिर मेरी पिण्डली पर लात मारी, जिससे मैं तुरंत गिरकर घुटनों के बल जमीन पर आ गया। फिर उसने मुझे अपने हाथ सीधे बाहर की ओर फैलाने पर मजबूर किया और फिर मेरे हाथों पर एक मोटी किताब रख दी। थोड़ी देर तक घुटनों के बल रहने के बाद, मैं और सहन नहीं कर पाया और जमीन पर गिर पड़ा। मोटे अधिकारी ने मुझे ऊपर खींचा, दोबारा घुटनों के बल बैठने पर मजबूर किया और लकड़ी की चॉपस्टिक से मेरी उँगलियों पर मारने लगा। हर बार जब वह मुझे मारता, मेरी उँगलियों में तेज दर्द होता। मुझे मारते हुए वह साथ ही चिल्लाता कि, “अब कैसा लगा? अच्छा नहीं लग रहा, है न? तुम अपने परमेश्वर से क्यों नहीं कहते कि वह तुम्हें बचाने के लिये आए!” जब उसने ऐसा कहा, तो सभी अधिकारी जोर-जोर से ठहाके मारने लगे। उनकी हँसी ने मुझे क्रोधित कर दिया और मैंने अपने दिल ही दिल में उन राक्षसों को कोसा। मेरे घुटने झुकने और दर्द से काले-नीले पड़ चुके थे और ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उन्हें किसी चाकू से काटा जा रहा हो। पिटाई के कारण मेरी छह उंगलियां चोटिल हो गई थीं। कुछ महीनों बाद उन उँगलियों के नाखून गिर गए।
शाम के करीब 5 बजे, पुलिस ने मुझे एक डिटेंशन सेंटर में भेज दिया और जाने से पहले, वहाँ के कर्मचारियों को विशेष रूप से निर्देश दिया कि, “उसे केवल एक छोटी सी उबली हुई रोटी और एक कटोरी सूप खिलाओ। उसे अच्छी तरह से सोचने का समय दो कि कल वह हमें क्या बताएगा।” फिर उन्होंने मुझे 10 वर्ग मीटर से कम की एक छोटी सी कोठरी में बंद कर दिया। वहाँ पहले से दस से ज्यादा लोग बंद थे और वह जगह बहुत गंदी और बदबूदार थी। जमीन पर केवल दो लकड़ी के तख्ते रखे हुए थे और उन दोनों पर सेल के मुखिया ने कब्जा कर रखा था। मुझे याद है कि उस रात, मैं सेल के एक कोने में सिकुड़कर बैठा हुआ था, मुझे भूख और प्यास लग रही थी और सिरदर्द हो रहा था, सर बहुत भारी लग रहा था और मुझे चेहरे में भी तेज दर्द हो रहा था। मैंने मन ही मन में सोचा, “आज उन्होंने मुझे इतनी निर्दयता से मारा और वे मुझसे कोई जानकारी नहीं निकाल पाए। पता नहीं वे कल मेरे साथ क्या करेंगे। अगर वे मुझे इसी तरह यातना देते रहे, तो क्या मैं अपंग हो जाऊँगा या मर जाऊँगा? अगर मैं अपंग हो गया, तो मैं अपनी बाकी की जिंदगी कैसे जिऊँगा?” जितना अधिक मैं इस बारे में सोचता, उतना ही कमजोर महसूस करता और इसलिए मैंने तुरंत परमेश्वर से मदद के लिए प्रार्थना की, “हे परमेश्वर! मैं अब और इस यातना को सहन नहीं कर सकता, लेकिन मैं यहूदा बनकर तेरे साथ विश्वासघात भी नहीं करना चाहता। कृपया मेरी मदद कर, मुझे शक्ति दे और मेरी रक्षा कर ताकि मैं तेरे लिए अपनी गवाही में दृढ़ रह सकूँ।” उसी समय, मुझे उसके वचनों का एक अंश याद आया : “निराश न हो, कमज़ोर न बनो, मैं तुम्हारे लिए चीज़ें स्पष्ट कर दूँगा। राज्य की राह इतनी आसान नहीं है; कुछ भी इतना सरल नहीं है! तुम चाहते हो कि आशीष आसानी से मिल जाएँ, है न? आज हर किसी को कठोर परीक्षणों का सामना करना होगा। बिना इन परीक्षणों के मुझे प्यार करने वाला तुम लोगों का दिल और मजबूत नहीं होगा और तुम्हें मुझसे सच्चा प्यार नहीं होगा। यदि ये परीक्षण केवल मामूली परिस्थितियों से युक्त भी हों, तो भी सभी को इनसे गुज़रना होगा; अंतर केवल इतना है कि परीक्षणों की कठिनाई हर एक व्यक्ति के लिए अलग-अलग होगी” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 41)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करके, मुझे एहसास हुआ परमेश्वर ने मुझे इस पीड़ा से इसलिए गुजरने दिया ताकि वह मेरी परीक्षा ले सके। वह मुझे दुख सहने के दौरान अपने संकल्प को मजबूत करने में मदद कर रहा था। अतीत में, जब मुझे गिरफ्तार नहीं किया गया था, तो मुझे हमेशा लगता था कि मेरा परमेश्वर पर विश्वास मजबूत है और मुझे चाहे कितनी भी पीड़ा क्यों न झेलनी पड़े, मैं हमेशा उसे संतुष्ट करने के लिए तैयार रहूँगा। लेकिन फिर भी, केवल एक ही दिन की यातना और कष्ट झेलने के बाद मुझे अभी से डर लगने लगा था और घबराहट महसूस हो रही थी और मैं यह सोचकर परेशान हो रहा था कि कहीं मैं अपंग न हो जाऊँ या मारा न जाऊँ। परमेश्वर में मेरा सच्ची आस्था कहाँ थी? मेरा आध्यात्मिक कद अभी भी बहुत छोटा था। परमेश्वर के इरादे को समझने के बाद, मुझे अब इतना डर या घबराहट महसूस नहीं हो रही थी और मैं परमेश्वर पर भरोसा करके उसके लिए अपनी गवाही में दृढ़ रहने के लिए तैयार था।
दूसरे दिन, पुलिस आगे की पूछताछ करने के लिए मुझे राष्ट्रीय सुरक्षा ब्रिगेड में ले गई। प्रमुख ने मेरी ओर इशारा करते हुए कहा, “बेहतर होगा कि आज तुम सही से पेश आओ! क्या तुम्हारे पास उन सवालों का कोई जवाब है जो मैंने कल तुमसे पूछे थे?” मैंने कहा कि मुझे कुछ भी नहीं पता। वह बहुत गुस्से में आ गया और उसने मेरे बाल पकड़कर मुझे खींचा और फिर मुझे थप्पड़ मारते हुए चिल्लाने लगा कि, “देखते हैं पहले कौन हार मानता है, तुम या मेरा स्टन बैटन! मारो इसे! इसे पीट-पीटकर जान से मार डालो!” इसके बाद पाँच पुलिसकर्मी मेरे पास आए और मुझे लातों-घूसों से मारना शुरू कर दिया। एक अधिकारी ने मेरी पीठ पर पैर रखा और मेरी दोनों बाहों को जबरदस्ती पीछे की ओर मरोड़ते हुए हथकड़ी लगा दी, जिससे मुझे बहुत दर्द हो रहा था क्योंकि मेरी बाहें पीछे की ओर मुड़ गई थीं। दर्द इतना तेज था कि मैं तुरंत पसीने से तर हो गया था। एक मोटे अधिकारी ने एक स्टन बैटन लिया और उसे हवा में घुमाया, बैटन से बिजली की चिंगारी निकलने लगीं और फिर उसने मुझे इससे दो बार बिजली का झटका दिया। इन झटकों से मेरा शरीर ऐंठने लगा और मैं चीखने पर मजबूर हो गया। प्रमुख ने इस मौके का फायदा उठाकर मुझे समझाने की कोशिश की और कहा, “अगर तुम हमें यह बता दो कि तुम्हारा अगुआ कौन है और पैसा किसके घर में रखा है, तो मैं तुम्हें तुरंत रिहा कर दूँगा। तुम्हारी पत्नी, बच्चे, और माता-पिता सभी को तुम्हारी देखभाल की जरूरत है। अगर तुम्हें अपनी फिक्र नहीं है, तब भी कम से कम अपने परिवार के बारे में सोचो।” यह सुनकर मैं थोड़ा डगमगाने लगा। मैंने सोचा, “अगर मैंने अभी भी कुछ भी नहीं बताया, तो वे मुझे यकीनन मार डालेंगे। शायद मैं उन्हें कुछ कम महत्वपूर्ण जानकारी देकर बच सकता हूँ और वे मुझे घर जाने देंगे।” तभी मुझे परमेश्वर के वचन याद आए : “मैं उन लोगों पर अब और दया नहीं करूँगा, जिन्होंने गहरी पीड़ा के समय में मेरे प्रति रत्ती भर भी निष्ठा नहीं दिखाई, क्योंकि मेरी दया का विस्तार केवल इतनी दूर तक ही है। इसके अतिरिक्त, मुझे ऐसा कोई इंसान पसंद नहीं, जिसने कभी मेरे साथ विश्वासघात किया हो, और ऐसे लोगों के साथ जुड़ना तो मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं, जो अपने मित्रों के हितों को बेच देते हैं। चाहे जो भी व्यक्ति हो, मेरा यही स्वभाव है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपनी मंजिल के लिए पर्याप्त अच्छे कर्म तैयार करो)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे तुरंत जगा दिया। मैं लगभग शैतान की चाल में फँस ही गया था। अगर मैंने अपने परिवार के प्रति दैहिक भावनाओं और अस्थायी आराम की लालसा के कारण परमेश्वर के साथ विश्वासघात किया और अपने भाई-बहनों को धोखा दिया, तो मैं परमेश्वर और मित्रों को धोखा देने वाला यहूदा बन जाऊँगा, जिससे परमेश्वर सबसे अधिक घृणा करता है। इसके कारण परमेश्वर के स्वभाव का अपमान होगा और मुझे शाप और दंड दिया जाएगा। मैं परमेश्वर के वचनों की प्रबुद्धता के लिए आभारी था, जिसने मुझे प्रबुद्ध किया और मुझे शैतान की चाल से मेरी रक्षा की। मैंने यह कहते हुए परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर! चाहे ये मुझे अपंग कर दें या मार डालें, मैं कभी भी तेरे साथ विश्वासघात नहीं करूँगा और एक शर्मनाक यहूदा नहीं बनूँगा।” प्रार्थना करने के बाद, मुझे ज्यादा सहज और कम कष्ट महसूस हुआ। अधिकारी की पूछताछ का सामना करते हुए मैंने सख्ती और धार्मिकता से जवाब दिया कि, “परमेश्वर में विश्वास करना पूरी तरह से स्वाभाविक और उचित, तर्कसंगत और वैध है, तुमने मुझे किस आधार पर गिरफ्तार किया है? हमारे देश का संविधान स्पष्ट रूप से कहता है कि नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है। तुम मुझे मेरी आस्था के कारण मौत तक यातनाएँ दे रहे हो, इसमें धार्मिक स्वतंत्रता कहाँ है?” यह सुनकर, अधिकारी क्रोधित हो गया और उसने चिल्लाया, “धार्मिक स्वतंत्रता का दावा हम सिर्फ विदेशी देशों को संतुष्ट करने के लिए करते हैं—चीन में, सीसीपी तुम्हें परमेश्वर में विश्वास करने की अनुमति नहीं देती और तुम्हारा विश्वास अवैध है। हम तुम्हारे जैसे परमेश्वर-भक्त लोगों को पूरी छूट के साथ मार सकते हैं! इसे पीट-पीटकर जान से मार डालो! देखते हैं यह कब तक टिकता है!” इसके साथ ही, वे सभी मुझ पर टूट पड़े और मुझे लातों-घूसों से मारना शुरू कर दिया। एक अधिकारी ने मेरे चेहरे और शरीर पर चमड़े की बेल्ट से जोरदार प्रहार किया। बेल्ट की मार के कारण मेरा चेहरा चोटिल हो गया और सूज गया और मैं फर्श पर गिर पड़ा। अंत में, जब उन्होंने देखा कि मैं फिर भी कुछ नहीं कह रहा हूँ, तो उनके पास मुझे फिर से डिटेंशन सेंटर भेजने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। पुलिस ने मुझे रात के खाने में केवल एक छोटी सी उबली हुई रोटी खाने की अनुमति दी। मुझे इतनी भूख लगी थी कि मेरे पास खड़े होने की भी ताकत नहीं थी और लगातार यातनाओं के कारण, मुझे चक्कर आ रहे थे, मेरे चेहरे में तेज दर्द और झनझनाहट हो रही थी, मेरे पैर कांप रहे थे, और मैं पूरी तरह कमजोर था। मैं केवल दीवार का सहारा लेकर ही फर्श पर बैठा रह सकता था। मुझे लगा कि मैं और अधिक सहन नहीं कर पाऊँगा और मैंने सोचा, “अगर ऐसा ही चलता रहा, तो या तो मैं यातनाओं से मर जाऊँगा या भूख से।” तभी मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “कार्य के इस चरण में हमसे परम आस्था और प्रेम की अपेक्षा की जाती है। थोड़ी-सी लापरवाही से हम लड़खड़ा सकते हैं, क्योंकि कार्य का यह चरण पिछले सभी चरणों से अलग है : परमेश्वर लोगों की आस्था को पूर्ण कर रहा है—जो कि अदृश्य और अमूर्त दोनों है। परमेश्वर वचनों को आस्था में, प्रेम में और जीवन में परिवर्तित करता है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मार्ग ... (8))। वास्तव में, पुलिस मुझे यातनाओं, कष्टों और भूख के जरिए तोड़ना चाहती थी, मेरी आस्था को डगमगाना चाहती थी और मुझे परमेश्वर से विश्वासघात करने के लिए मजबूर करना चाहती थी, लेकिन परमेश्वर इसी कठिन परिस्थिति का उपयोग मेरी आस्था को पूर्ण करने के लिए कर रहा था। मुझे प्रभु यीशु के वे शब्द याद आए, जो उसने परीक्षा के समय कहे थे : “मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है, जीवित रहेगा” (मत्ती 4:4)। मुझे विश्वास था कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं और मनुष्य के जीवन का आधार भी हैं। मुझे पता था कि मुझे परमेश्वर में आस्था रखनी है। मैंने अपने दिल में परमेश्वर से मौन प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मेरा शरीर कमजोर और शक्तिहीन हो सकता है, लेकिन मैं तेरे वचनों के अनुसार जीने के लिए तैयार हूँ, मैं अपने शरीर की नहीं सुनूँगा और तेरे लिए अपनी गवाही में दृढ़ रहूँगा...।” प्रार्थना करने के बाद, मुझे थोड़ा अधिक शांति महसूस हुई और मेरी तकलीफ और कमजोरी कुछ हद तक कम हो गई।
तीसरे दिन की सुबह, पुलिस एक बार फिर से पूछताछ करने के लिए मुझे राष्ट्रीय सुरक्षा ब्रिगेड में ले गई। जैसे ही मैं पूछताछ वाले कमरे में दाखिल हुआ, एक अधिकारी ने मुझे लात मार कर गिरा दिया और मुझे सीमेंट के फर्श पर घुटने टेकने के लिए मजबूर किया। राष्ट्रीय सुरक्षा प्रमुख ने जोर से मुझे डाँटते हुए कहा, “तो क्या तुमने अपना मन बना लिया है? तुम्हारा अगुआ कौन है? कलीसिया का पैसा किसके घर पर रखा है? अगर तुम अब नहीं बोलोगे, तो ये यातना उपकरण तुम्हें बोलने पर मजबूर कर देंगे। हम तुम्हें इनमें से हर एक का अनुभव कराएँगे!” मैंने एक भी शब्द नहीं कहा, तो उन्होंने मुझे सीमेंट के फर्श पर घुटनों के बल झुकाए रखा। लगातार यातना झेलने, कष्ट सहने और भोजन की कमी के कारण मैं बेहद कमजोर हो गया था। करीब एक घंटे तक घुटने टेकने के बाद, मैं पूरी तरह से थक गया था और अब और नहीं झुक सकता था। मेरे दिल में कमजोरी घर करने लगी और इसलिए मैं लगातार परमेश्वर से प्रार्थना करता रहा, “हे परमेश्वर! मैं अब और इस यातना को सहन नहीं कर सकता। मैं यहूदा बनकर तेरे साथ विश्वासघात भी नहीं करना चाहता। कृपया मेरी मदद कर, मुझे आस्था दे और मुझे मजबूत बनाए रख।” प्रार्थना करने के बाद, मुझे परमेश्वर के वचनों का यह अंश याद आया : “चूँकि परमेश्वर का कार्य उस देश में आरंभ किया जाता है जो परमेश्वर का विरोध करता है, इसलिए परमेश्वर के संपूर्ण कार्य को भयंकर बाधाओं का सामना करना पड़ता है, और उसके बहुत-से वचनों को संपन्न करने में समय लगता है; इस प्रकार, परमेश्वर के वचनों के परिणामस्वरूप लोग शोधित किए जाते हैं, जो कष्ट झेलने का भाग भी है। परमेश्वर के लिए बड़े लाल अजगर के देश में अपना कार्य करना अत्यंत कठिन है—परंतु इसी कठिनाई के माध्यम से परमेश्वर अपने कार्य का एक चरण पूरा करता है, अपनी बुद्धि और अपने अद्भुत कर्म प्रत्यक्ष करता है, और लोगों के इस समूह को पूर्ण बनाने के लिए इस अवसर का उपयोग करता है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करके, मुझे एहसास हुआ कि सीसीपी ने मुझे मेरी आस्था के कारण यातनाएँ दीं हैं और यातनाओं और कष्टों के माध्यम से परमेश्वर के लिए गवाही देना गौरवपूर्ण और सम्मानजनक बात है। अधिकारी मुझे परमेश्वर का इनकार करने और उसे धोखा देने के लिए हर तरह की यातनाएँ देने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन परमेश्वर की बुद्धि शैतान की चालों के आधार पर काम करती है। परमेश्वर इस परिस्थिति का उपयोग मेरी आस्था को पूर्ण करने के लिए कर रहा था, जिससे मैं बड़े लाल अजगर का विकृत चेहरा और दानवी सार देख सकूँ ताकि मैं इसे अपने पूरे दिल से नफरत करूँ और इसे पूरी तरह से ठुकरा दूँ। परमेश्वर के इरादे को समझने के बाद, मुझे बहुत स्पष्टता मिली और एक नई ताकत महसूस हुई। “मैं शैतान की चालों का शिकार नहीं बनूँगा और इसे मुझे तोड़ने नहीं दूँगा। चाहे मेरा शरीर कितना भी दयनीय और कमजोर क्यों न हो जाए, मुझे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में दृढ़ रहना है!” यह देखकर कि मैं अब भी नहीं बोल रहा, एक अधिकारी ने मुझे एक बड़ा पानी का गिलास दिया और झूठी मुस्कान के साथ कहा कि, “तुमने कुछ दिनों से अच्छा खाना नहीं खाया होगा, है ना? तुम्हें भूख लगी होगी! तुम्हारी हालत देखते हुए, मुझे लगता है कि तुम ज्यादा देर तक नहीं टिक सकते। जल्दी करो और हमें वह सब बताओ जो तुम जानते हो। हमने पहले ही उबली हुई रोटी और तली हुई सब्जियों का ऑर्डर दे दिया है और हम इसमें से तुम्हें भी कुछ दे सकते हैं। मेरा मतलब है कि आखिर तुम खुद को इस तकलीफ में क्यों डाल रहे हो?” मुझे एहसास हुआ कि यह भी शैतान की एक चाल थी और मैंने परमेश्वर से मन ही मन प्रार्थना की और मैंने उससे शैतान की चालाकी से मेरी रक्षा करने के लिए कहा। कुछ समय बाद, अधिकारी ने मेरी हथकड़ियाँ खोल दीं, कुछ सब्जियाँ, एक उबली हुई रोटी और एक गिलास पानी मेरे सामने रखा और कहा, “कुछ खा लो। जब तुम खा लोगे, तो फिर तुम हमें वह सब बता देना जो तुम जानते हो।” मैंने जवाब दिया, “मैं किसी को नहीं जानता और मैं तुम्हें कुछ भी नहीं बता सकता।” राष्ट्रीय सुरक्षा प्रमुख यह सुनकर बहुत गुस्सा हो गया और वह अचानक खड़ा हुआ, उसने मेरे बालों को पकड़ा और मुझे थप्पड़ मारा और फिर मुझे लात मारकर फर्श पर गिराते हुए चिल्लाया, “कोई इसके हाथों में पीठ के पीछे हथकड़ी लगाओ और तब तक मारो जब तक यह मर न जाए! देखते हैं यह कितनी देर तक सहता है!” चार अधिकारी मेरे पास आए और उन्होंने मेरी पीठ के पीछे मेरे हाथों को हथकड़ी में जकड़ दिया। जब वे शुरू में मेरे हाथों को पीछे खींचकर हथकड़ी लगाने में असमर्थ रहे, तो उन्होंने मेरे हाथों को ज़बरदस्ती खींचा, जिससे असहनीय दर्द हुआ और मैं चीख उठा। इसके बाद, एक अधिकारी ने चमड़े की बेल्ट से मुझे लगातार जोर से मारा। मेरा पूरा शरीर भयंकर दर्द से तड़प उठा और उसकी बेल्ट ने मेरी त्वचा पर मोटे काले-नीले निशान छोड़ दिए। मुझे मारते हुए वह चिल्लाया कि, “मैं नहीं मानता कि तुम स्टील से बने हो और मैं तुम्हें तोड़कर ही मानूँगा!” इसके बाद उसने अपना चमड़े का बूट उतारा और बूट की तलवे से मेरे सिर और चेहरे पर मारना शुरू कर दिया। इस मार के कारण मेरा सिर सुन्न हो गया, जैसे यह फटने वाला हो। मुझे आँखों के सामने सितारे दिखने लगे और मेरे कानों में एक गूँज-सी आवाज आने लगी। थोड़ी देर बाद, मुझे दाएँ कान से सुनाई देना पूरी तरह से बंद हो गया। मैंने कहा, “तुमने मेरे दाएँ कान को खराब कर दिया है। अब मैं इससे कुछ भी सुन नहीं पा रहा।” अधिकारी ने बेपरवाही से सिगरेट का कश लेते हुए एक खतरनाक लहजे में कहा, “अगर तुम बहरे हो जाते हो, तो यह बिल्कुल सही है। इससे तुम्हें भविष्य में आस्था का अभ्यास करने से रोका जा सकेगा।” जब राष्ट्रीय सुरक्षा प्रमुख ने देखा कि इतनी भयंकर मार-पीट के बावजूद मैं कुछ भी नहीं बोल रहा हूँ, तो वह गुस्से से चिल्लाया, “मैं नहीं मानता कि मैं आज तुम्हें तोड़ नहीं पाऊँगा! अगर तुमने कुछ नहीं बताया, तो हम तुम्हारी नाखून के नीचे लोहे की छड़ घुसा देंगे। उँगलियों का दर्द सीधे दिल को झकझोरता है—तुम उस कष्ट को कभी भी सह नहीं पाओगे। समझदारी से काम लो : जो कुछ भी तुम्हें पता है, वह हमें बता दो और हमारे साथ सहयोग करो। यही तुम्हारे लिए सबसे अच्छा विकल्प है!” उस समय, मुझे कुछ डर महसूस हुआ—सिर्फ एक छोटा काँटा भी उँगली में बहुत दर्द देता है, तो फिर मोटी लोहे की छड़ का दर्द कैसा होगा! यह सोचकर ही मेरे पैर कमजोर पड़ने लगे और मेरे सिर की त्वचा सुन्न हो गई। अगर उन्होंने सच में मेरे नाखून में वह छड़ घुसाई, तो क्या मैं उस दर्द को सह पाऊँगा? मैंने तुरंत परमेश्वर से मदद के लिए लगातार प्रार्थना की और उससे आस्था और कष्ट सहने का संकल्प माँगा। तभी मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “सत्ता में रहने वाले लोग बाहर से दुष्ट लग सकते हैं, लेकिन डरो मत, क्योंकि ऐसा इसलिए है कि तुम लोगों में विश्वास कम है। जब तक तुम लोगों का विश्वास बढ़ता रहेगा, तब तक कुछ भी ज्यादा मुश्किल नहीं होगा” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 75)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था और शक्ति दी। परमेश्वर ही सभी चीजों पर संप्रभुता रखता है—मुझे परमेश्वर पर भरोसा रखना था और यह आस्था रखनी थी कि वह मुझे उन राक्षसों की यातना और पीड़ा पर विजय पाने के लिए मार्गदर्शन करेगा। इस बात को समझने के बाद, मुझे पहले जितना डर और घबराहट महसूस नहीं हो रही थी। जब उन्होंने देखा कि मैं अब भी कुछ बता नहीं रहा था, तो उन्होंने मुझे अपने हाथ सीधा मेज पर रखने को कहा और फिर उन्होंने मेरे चेहरे के सामने 7 से 8 इंच की लोहे की सूई लहराई। एक अधिकारी ने फिर उस सूई से मेरे नाखून को छेदने की कोशिश की। सूई बेहद नुकीली थी और जैसे ही उसने मेरे नाखून को छेदा, मुझे तेज चुभन महसूस हुई। मैं लगातार परमेश्वर को पुकार रहा था, उनसे यह प्रार्थना कर रहा था कि वह मुझे इस पीड़ा को सहने की ताकत दे। जैसे ही अधिकारी सूई पर और दबाव डालने वाला था, तभी एक और पुलिसवाला भागते हुए आया और उसने राष्ट्रीय सुरक्षा प्रमुख के कान में कुछ फुसफुसाया। प्रमुख ने चिल्लाकर कहा, “इस पर नजर रखने के लिए एक व्यक्ति यहीं रुक जाए। बाकी सब मेरे साथ चलो!” यह सब होते हुए देखकर, मैंने परमेश्वर का धन्यवाद किया कि उसने एक ऐसी परिस्थिति की व्यवस्था की, जिसने मुझे उनकी क्रूर और अमानवीय यातना से बचने का मौका दिया।
दो दिन बाद, एक पुलिस अधिकारी पूछताछ करने के लिए एक बार फिर से मुझे राष्ट्रीय सुरक्षा ब्रिगेड में ले गया। एक मोटे अधिकारी ने आक्रामक रूप से चिल्लाकर कहा, “अगर तुमने आज बातें नहीं बताईं, तो मैं तुम्हें मौत की दुआ माँगने पर मजबूर कर दूँगा!” मैंने कहा, “मुझे कुछ भी नहीं पता। अगर तुम सच में मुझे मार भी डालो, तो भी मेरे पास बताने के लिए कुछ नहीं है।” राष्ट्रीय सुरक्षा प्रमुख आगे आया और उसने मुझे लात मारकर जमीन पर गिरा दिया और चिल्लाते हुए कहा, “चाहे तुम कुछ भी न कहो, हमें तुम्हारे बारे में सब पता है। तुम एक कलीसिया के अगुआ हो और तुम अभी भी अपना मुँह बंद किए बैठे हो!” फिर उसने मेरे बालों को पकड़ा और यह कहते हुए मेरे चेहरे पर थप्पड़ मारने लगा कि, “देखते हैं पहले क्या टूटता है, तुम या मेरे जूते और बेल्ट!” उसने फिर गरजते हुए कहा, “इसे पीट-पीटकर जान से मार डालो!” इसके बाद कई पुलिस अधिकारी मुझ पर टूट पड़े और मुझे घूंसे और लातों से मारना शुरू कर दिया। एक अधिकारी ने अपनी चमड़े की बेल्ट निकाली और मुझे मारना शुरू कर दिया। उसकी बेल्ट से मेरी त्वचा पर दस से अधिक गहरे निशान पड़े। फिर उसने अपना जूता उतारा और उसके तलवे से मुझे बुरी तरह मारना शुरू कर दिया। मुझे चक्कर आ गए, मुझे अपना सिर भारी महसूस हो रहा था और मैं इतनी पीड़ा में था कि मेरा शरीर कांप रहा था और मैं चीखने लगा। अंततः, मैं यह सब और सहन नहीं कर सका और चाहा कि काश मैं मर जाता और सब खत्म हो जाता। मैंने मन ही मन सोचा, “अगर मैं मर जाऊँ, तो मुझे इस यातना को और सहन नहीं करना पड़ेगा।” इसलिए, मैंने अपना सिर दीवार पर मारने की कोशिश की, लेकिन एक अधिकारी ने अपनी जाँघ से मेरा सिर रोक लिया। उसे इतनी चोट लगी कि वह दर्द से उछल पड़ा। मुझे तुरंत परमेश्वर के वचन स्पष्ट रूप से याद आए : “इन अंत के दिनों में तुम लोगों को परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए। चाहे तुम्हारे कष्ट कितने भी बड़े क्यों न हों, तुम्हें बिल्कुल अंत तक चलना चाहिए, यहाँ तक कि अपनी अंतिम साँस पर भी तुम्हें परमेश्वर के प्रति निष्ठावान और उसके आयोजनों के प्रति समर्पित होना चाहिए; केवल यही वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करना है, और केवल यही सशक्त और जोरदार गवाही है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे एकाएक समझ दी : क्या मैं इस पीड़ा को सहन न कर पाने पर मृत्यु की चाह करके कायरता नहीं दिखा रहा था? मेरी गवाही कहाँ थी? तब मुझे एहसास हुआ कि अधिकारी का मुझे रोकना परमेश्वर का काम था, जो परदे के पीछे मेरी रक्षा कर रहा था। परमेश्वर का इरादा था कि मैं जिंदा रहूँ, बल्कि यह था कि मैं इस पीड़ा के बीच अपनी गवाही में दृढ़ रहूँ और शैतान को शर्मिंदा करूँ। यह समझने पर, मैं गहराई से प्रेरित हुआ और मैंने संकल्प लिया : चाहे पुलिस मुझे कितना भी सताए, मैं दृढ़ रहूँगा, और भले ही मेरे शरीर में सिर्फ एक आखिरी साँस बची हो, मैं जीवित रहूँगा और परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में दृढ़ रहूँगा! मेरा दिल शक्ति और ताकत से भर गया—मैंने अपने दाँत भींचे और मैं और भी क्रूर यातना सहने के लिए तैयार हो गया। आश्चर्य की बात यह हुई कि, राष्ट्रीय सुरक्षा प्रमुख मेरे पास आया और मेरी ओर इशारा करते हुए कहने लगा, “तुमने मुझे मात दे दी! मुझे समझ नहीं आता कि उन किताबों में ऐसा क्या है जो तुम्हें लगता है कि अपने परमेश्वर के लिए अपनी जान कुर्बान करना सही है!” एक अन्य अधिकारी ने कहा, “ऐसे परमेश्वर-भक्त लोगों को बस जेल में डाल देना चाहिए!” थोड़ी देर बाद, एक और अधिकारी ने खुशामदी के लहजे में कहा, “अभी भी समय है, जो तुम्हें पता है वह हमें बता दो, यहाँ मैं फैसले लेता हूँ, लेकिन जब तुम जेल में पहुँच जाओगे, तो वहाँ मेरी चलने वाली नहीं। हम तुम्हें दो विकल्प दे रहे हैं : या तो तुम घर जाओगे या फिर जेल, यह तुम्हारे ऊपर है!” उस पल मुझे थोड़ी कमजोरी महसूस हुई, चिंता होने लगी कि जेल में लंबे समय तक मुझे कितना अत्याचार और क्रूरता सहनी पड़ेगी और क्या मैं उसे सहने में सक्षम हो पाऊँगा। अगर उन्होंने मुझे यातना देते-देते मार डाला तो क्या होगा? मैं यह नहीं चाहता था कि मैं यहूदा बनकर परमेश्वर के दिल को दुखाऊँ और सदा के लिए पछतावे में रहूँ, लेकिन मुझे यह भी नहीं पता था कि मुझे इस स्थिति को कैसे अनुभव करना चाहिए, जो अब मेरे सामने थी। इसलिए मैंने अपने दिल में परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मुझे सजा सुनाई जाने वाली है और मुझे जेल भेजा जाएगा। मैं नहीं जानता कि इस लंबे और कठिन जेल समय को कैसे सहन करूँगा, कृपया मुझे इस परिस्थिति के प्रति समर्पण करने में मार्गदर्शन दें।” प्रार्थना करने के बाद, मुझे परमेश्वर के वचनों का यह अंश याद आया : “परमेश्वर से प्रेम करने की चाह रखने वाले व्यक्ति के लिए कोई भी सत्य अप्राप्य नहीं है, और ऐसा कोई न्याय नहीं जिस पर वह अटल न रह सके। तुम्हें अपना जीवन कैसे जीना चाहिए? तुम्हें परमेश्वर से कैसे प्रेम करना चाहिए और इस प्रेम का उपयोग करके उसके इरादों को कैसे पूरा करना चाहिए? तुम्हारे जीवन में इससे बड़ा कोई मुद्दा नहीं है। सबसे बढ़कर, तुम्हारे अंदर ऐसी आकांक्षा और कर्मठता होनी चाहिए, न कि तुम्हें एक रीढ़विहीन और निर्बल प्राणी की तरह होना चाहिए। तुम्हें सीखना चाहिए कि एक अर्थपूर्ण जीवन का अनुभव कैसे किया जाता है, तुम्हें अर्थपूर्ण सत्यों का अनुभव करना चाहिए, और अपने-आपसे लापरवाही से पेश नहीं आना चाहिए” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान)। परमेश्वर की माँगों के सामने, मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। मैंने सोचा कि कैसे मैंने परमेश्वर के सामने कई बार यह प्रण लिया था कि चाहे मुझे कितनी भी तकलीफ सहनी पड़े, मैं हमेशा परमेश्वर के लिए अपने गवाह में दृढ़ रहूँगा और उसे संतुष्ट करने की कोशिश करूँगा, लेकिन जब मुझे लंबे कारावास और यातना के समय का सामना करना पड़ा, तो मैं उस पीड़ा से गुजरना नहीं चाहता था और उस परिस्थिति से भागने की कोशिश की। मेरा समर्पण और गवाही कहाँ थी? मैंने सोचा कि जब पतरस जेल से भागा था, तो प्रभु यीशु ने उसे प्रकट होकर कहा कि वह पतरस के लिए फिर से क्रूस पर चढ़ेगा। पतरस ने परमेश्वर के इरादे को समझा, स्वेच्छा से जेल लौट आया और परमेश्वर के लिए उल्टा क्रूस पर चढ़ाया गया, जिससे उसने एक गूंजती हुई गवाही दी। पतरस के दिल में परमेश्वर के प्रति सच्चा प्रेम और सच्चा समर्पण था। मेरे पास पतरस जितना आध्यात्मिक कद नहीं था, लेकिन मुझे उसका अनुसरण करना चाहिए और परमेश्वर के लिए अपने गवाह में दृढ़ रहना चाहिए। मैंने यह भी सोचा कि जब मैं यातना और पीड़ा झेलते हुए दुखी और कमजोर हो गया था, तो परमेश्वर के वचनों ने मुझे प्रबुद्ध किया, मार्गदर्शन, आस्था और शक्ति दी और मुझे उन राक्षसों की क्रूर यातना पर विजय पाने में मदद की। जब मैं सबसे अधिक दुखी और कमजोर था और हार मानने के करीब था, तब परमेश्वर ने चमत्कारिक रूप से लोगों, घटनाओं, चीजों और परिस्थिति की योजना बनाई, मेरे लिए एक रास्ता खोला और मुझे और अधिक यातना सहने से बचा लिया मैंने वास्तव में महसूस किया कि परमेश्वर मेरे साथ था, मेरी देखभाल कर रहा था और मेरी रक्षा कर रहा था। परमेश्वर का प्रेम कितना सच्चा है, इसलिए मैं उसके दिल को ठेस नहीं पहुँचा सकता था और न ही उसे निराश कर सकता था। मैंने चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर! भले ही मुझे सजा मिले और जेल में समय बिताना पड़े, मैं शैतान के सामने झुकूँगा नहीं। मैं शैतान को अपमानित करने के लिए अपनी गवाही में दृढ़ रहूँगा।” बाद में, बिना किसी सबूत के, उन्होंने “सार्वजनिक व्यवस्था में बाधा डालने और कानून के प्रवर्तन को कमजोर करने” का झूठा आरोप लगाकर मुझे एक साल और छह महीने के श्रम द्वारा पुनः शिक्षा की सजा दी।
श्रम शिविर में मेरे समय के दौरान, मुझे कभी भी पूरा भोजन नहीं मिला और मुझे हर दिन पंद्रह से सोलह घंटे काम करना पड़ता था। हमें शुरुआत में प्रति दिन छह सौ संगमरमर पॉलिश करने का कार्य सौंपा गया, जो बाद में प्रति दिन एक हजार तक बढ़ा दिया गया। मेरी दृष्टि कमजोर थी, इसलिए मैं अपेक्षाकृत धीमा काम करता था और अक्सर अपना काम पूरा न करने के कारण मार खाता था। एक बार, एक अन्य कैदी इस डर से कि वह अपना कार्य पूरा नहीं कर पाएगा और उसे पीटा जाएगा, उसने अपने आधे-अधूरे सामान मेरे “पूर्ण” वाले बॉक्स में डाल दिए। जब वार्डन ने मेरे “पूर्ण” वाले बॉक्स में अधूरे सामान देखे, तो मेरी बात सुने बिना ही उसने मुझे दीवार के सहारे सिर टिकाने और अपनी पैंट उतारने के लिए मजबूर किया और फिर मुझे वी-बेल्ट से कोड़े मारे। पहली बार जब उसने मुझे बेल्ट से मारा तो तार ने तुरंत मेरी टांग पर एक बड़ी लाल रेखा छोड़ दी और दूसरी बार के कोड़े के बाद मैं जमीन पर गिर पड़ा और उठने लायक नहीं रहा। गलियारे के दोनों ओर खड़े कैदी मुझ पर जोर-जोर से हँसने लगे। वास्तव में, दूसरे कैदी अक्सर मुझे परेशान करते थे। वे मुझे शौचालय के पास सोने के लिए मजबूर करते और जानबूझकर शौचालय का ढक्कन खोल देते थे। बदबू इतनी असहनीय होती कि मुझे मिचली आती और मैं उल्टी कर देता था। वे मुझे अपने जूते के तलवों से भी पीटते थे और मैं अक्सर उनकी मार से आधी रात को जाग जाता, मेरे सिर पर लगी चोटों से मेरे कानों में घंटियाँ बजती रहतीं। मुझे कभी पता नहीं होता था कि वे मुझे फिर कब पीटना शुरू कर देंगे और मैं अक्सर रात में सोने से डरता था। मैं हमेशा डरा हुआ रहता था और काम के अत्यधिक बोझ के कारण मेरी सेहत लगातार खराब होती जा रही थी। इस क्रूर यातना का सामना करते हुए, अपनी लंबी जेल सजा के विचार से मुझे बहुत तकलीफ महसूस होती थी। मैं उस शैतानी जेल में एक और मिनट भी बिताना नहीं चाहता था। उस समय मेरी कोठरी में एक बुजुर्ग भाई भी था और जब भी मौका मिलता, वह चुपचाप परमेश्वर के वचनों पर संगति करके मुझे सांत्वना देता और प्रोत्साहित करता था। मुझे याद है कि उस बुजुर्ग भाई ने परमेश्वर के वचनों का यह अंश मुझे सुनाया था : “जब तुम कष्टों का सामना करते हो, तो तुम्हें देह की चिंता छोड़ने और परमेश्वर के विरुद्ध शिकायतें न करने में समर्थ होना चाहिए। जब परमेश्वर तुमसे अपने आप को छिपाता है, तो उसका अनुसरण करने के लिए तुम्हें अपने पिछले प्रेम को डिगने या मिटने न देते हुए उसे बनाए रखने के लिए विश्वास रखने में समर्थ होना चाहिए। परमेश्वर चाहे कुछ भी करे, तुम्हें उसकी योजना के प्रति समर्पण करना चाहिए, और उसके विरुद्ध शिकायतें करने के बजाय अपनी देह को धिक्कारने के लिए तैयार रहना चाहिए। जब परीक्षणों से तुम्हारा सामना हो, तो तुम्हें परमेश्वर को संतुष्ट करना चाहिए, भले ही तुम फूट-फूटकर रोओ या अपनी किसी प्यारी चीज से अलग होने के लिए अनिच्छुक महसूस करो। केवल यही सच्चा प्यार और विश्वास है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था और शक्ति दी। यह परिस्थिति मेरी दृढ़ता और पीड़ा सहने की क्षमता को निखार सकती थी—यह एक अच्छी बात थी। परमेश्वर के इरादे को समझने के बाद, मैं उतना दुखी महसूस नहीं कर रहा था। मुझे सच में लगा कि परमेश्वर हमेशा मेरे साथ खड़ा था, मेरी देखभाल और रक्षा कर रहा था और मुझे अपने वचनों से प्रबुद्ध कर रहा था और मेरा मार्गदर्शन कर रहा था। मुझे परमेश्वर पर भरोसा करना था और अपनी गवाही में दृढ़ रहना था, शैतान के आगे झुकना नहीं था!
इस उत्पीड़न और कष्ट को सहने की प्रक्रिया में, मैंने परमेश्वर के प्रेम और उद्धार का सबसे गहराई के साथ अनुभव किया। कई बार, जब यातनाएँ बहुत कठोर होती थीं और मैं कमजोर और निराश महसूस कर रहा होता था, हार मानने के लिए तैयार होता था और यहाँ तक कि जीवन समाप्त करने के बारे में सोच रहा होता था, तो ऐसे समय में, परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था और सहन करने की सामर्थ्य दी और अपनी गवाही में दृढ़ रहने का संकल्प दिया। मैंने सच में महसूस किया कि कैसे जब बड़ा लाल अजगर निर्दयता से मेरा उत्पीड़न करता था, तब भी परमेश्वर ने मेरा साथ नहीं छोड़ा था, बल्कि उसने मेरी रक्षा की और मेरी देखभाल की और इन राक्षसों के विनाश पर विजय पाने के लिए मेरा मार्गदर्शन किया। परमेश्वर मानवजाति से सबसे अधिक प्रेम करता है और वही मनुष्य को बचा सकता है और पूर्ण बना सकता है। अब मेरी आस्था और भी दृढ़ हो गई है। भविष्य में चाहे मैं किसी भी कठिनाई या उत्पीड़न का सामना करूँ, मैं परमेश्वर का अंत तक अनुसरण करूँगा और अपनी गवाही में दृढ़ रहूँगा ताकि बड़े लाल अजगर को पूरी तरह से शर्मिंदा कर सकूँ!