20. अब मैं प्रसिद्धि और रुतबे से बँधी नहीं हूँ

शाओ हान, चीन

लिंग शिन एक खाली सड़क पर साइकिल चला रही थी। इस समय सबसे ज्यादा ठंड पड़ रही थी और इस चीर देने वाली हवा में वह बुरी तरह ठिठुर रही थी। उसका मन चिंता से भरा था। वह कुछ सिंचनकर्ताओं से मिलने एक सभा में जा रही थी, उसने सुना था कि दो भाई अपने काम को लेकर विशेष रूप से गंभीर हैं और हमेशा समस्याओं का समाधान खोजने के उत्सुक रहते हैं। लिंग शिन यह सोचकर चिंतित थी, “मैं बहुत छोटी हूँ और मैंने अभी-अभी सुपरवाइजर के तौर पर अभ्यास करना शुरू किया है। अगर मैं उनकी समस्याओं का समाधान नहीं कर सकी तो क्या होगा? यह कितना अपमानजनक होगा?” उसने अपनी साइकिल की गति धीमी कर दी लेकिन ठंडी हवा के झोंके उसे सड़क पर टिकने नहीं दे रहे थे। उसने सभा की ओर तेजी से बढ़ते हुए अपनी रफ्तार बढ़ा दी।

जब लिंग शिन मेजबान के घर पहुँची तो सभी ने उसका अभिवादन किया और संगति शुरू कर दी और अपने काम के बारे में बातें करने लगे। बाद में संगति अपना कर्तव्य निभाते हुए कष्ट सहने के महत्व पर केंद्रित हो गई। लिंग शिन ने इस विषय पर अपनी समझ पर संगति की। उसकी बात सुनकर एक सिंचनकर्ता भाई सु रुई ने कहा, “अपना कर्तव्य निभाते समय कष्ट से डरने के मुद्दे को हल करने के लिए हमें न केवल कष्ट का अर्थ समझना होगा बल्कि इसका भी गहन विश्लेषण करना होगा कि हमारे भ्रष्ट स्वभाव का कौन सा पहलू हमें हमेशा सुख-सुविधाओं में लिप्त रहने की ओर ले जाता है। मैं देह की परवाह करता था और पीड़ा से दूर रहता था लेकिन फिर मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े...।” लिंग शिन को उसकी बात सुनकर ऐसा लगा जैसे सु रुई सीधे उससे संगति कर रहा है और उसने अचानक महसूस किया कि उसका चेहरा तपिश से लाल हो गया है। उसने सोचा, “क्या सु रुई ने मेरी कमियाँ पकड़ ली हैं? कहीं उसे यह तो नहीं लगता कि मैं सुपरवाइजर के रूप में उतनी सक्षम नहीं हूँ? क्या उसे यह लगता है कि मेरा जीवन प्रवेश इतना सतही है फिर भी मैं यहाँ उनके साथ संगति कर रही हूँ!” लिंग शिन को घबराहट हुई।

दोपहर भर भाइयों ने अनेक प्रश्न पूछे और लिंग शिन लगातार सोचती रही, एक पल के लिए भी वह सहज नहीं हो पाई। फिर सु रुई ने एक और सवाल किया जिसका उत्तर लिंग शिन स्पष्ट रूप से नहीं दे सकी। लिंग शिन ने अपने विचारों पर संगति की मगर सु रुई फिर भी उसकी बात समझ न सका और वे सब चुप हो गये। घड़ी टिक-टिक करती रही, टिक-टिक की आवाज धीमी होते हुए भी उस वक्त काफी तेज सुनाई दे रही थी। “अब हमें क्या करना चाहिए?” भाई ली यांग ने चुप्पी तोड़ी। सु रुई ने जवाब दिया, “हम सुपरवाइजर की संगति की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इस मुद्दे पर अभी तक स्पष्ट रूप से संगति नहीं की गई है।” लिंग शिन खिसियाई और शांत रहने की कोशिश करते हुए बोली, “मैं अभी भी इसी पर सोच रही हूँ।” लेकिन अंदर ही अंदर उसका दिमाग उलझा हुआ था, वह बेचैन और परेशान थी। “अगर मैं यह मसला नहीं सुलझा पाई तो? क्या यह मेरे लिए शर्मनाक नहीं होगा?” अच्छी बात यह रही कि सबने एक-एक कर संगति शुरू कर दी और मसला कुछ हद तक सुलझ गया। लिंग शिन ने राहत की साँस ली और अपने कंप्यूटर पर समय देखा—बहुत देर हो चुकी थी—उसने जल्दी से अपना सामान पैक किया और तुरंत बाहर निकल गई।

जब तक वह लौटी सूरज डूब चुका था, गोधूलि वेला अपने आखिरी मुकाम पर थी और लिंग शिन के चेहरे पर अब भी निराशा और कुछ खो देने के भाव थे। उसने सोचा, “इतने लंबे दिन के बाद भाइयों ने मुझे ठीक से परख लिया है। मैं दूसरों पर अच्छा प्रभाव छोड़ना चाहती थी, लेकिन मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि चीजें ऐसा मोड़ ले लेंगी। कहीं वे यह तो नहीं कहेंगे कि मैं सुपरवाइजर के रूप में अच्छा काम नहीं कर रही हूँ? कि मेरा जीवन प्रवेश सतही है और मुझमें उतना कौशल भी नहीं है? उनके पास इतने सारे सवाल क्यों हैं? क्या वे गिने-चुने सवाल नहीं पूछ सकते?” लिंग शिन को मन ही मन शिकायत हुई, “मैं अब इस समूह में नहीं जाऊँगी। ज्यादा जाने से ज्यादा शर्मिंदगी होती है। वैसे भी मेरी एक साथीदार बहन है ना। अपनी बजाय उसे भेज दूँगी।”

इस घटना के बाद लिंग शिन लंबे समय तक राहत की साँस न ले सकी। जब भी सिंचनकर्ताओं के लिए सभा करने की बात आती तो वह बस उससे बचना चाहती थी। वह जानती थी कि वह भ्रष्ट स्वभाव में जी रही है, इसलिए उसने अपनी दशा के संबंध में परमेश्वर के वचनों को सजग रहकर खाया और पिया। उसने परमेश्वर के वचन पढ़े : “एक सृजित प्राणी के उचित स्थान पर खड़ा होना और एक साधारण व्यक्ति बनना : क्या ऐसा करना आसान है? (यह आसान नहीं है।) इसमें कठिनाई क्या है? वह यह है : लोगों को हमेशा लगता है कि उनके सिर पर कई प्रभामंडल और उपाधियाँ जड़ी हैं। वे खुद को महान विभूतियों और अतिमानवों की पहचान और दर्जा भी देते हैं और तमाम दिखावटी और झूठी प्रथाओं और बाहरी प्रदर्शनों में संलग्न होते हैं। अगर तुम इन चीजों को नहीं छोड़ते, अगर तुम्हारी कथनी-करनी हमेशा इन चीजों से बाधित और नियंत्रित होती है तो तुम्हें परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश करना मुश्किल लगेगा। जिन चीजों को तुम नहीं समझते, उनके समाधानों के लिए चिंता न करना और ऐसी बातों को अक्सर परमेश्वर के समक्ष लेकर लाना और उससे सच्चे दिल से प्रार्थना करना मुश्किल होगा। तुम ऐसा नहीं कर पाओगे। वास्तव में इसका कारण यह है कि तुम्हारी हैसियत, तुम्हारी उपाधियाँ, तुम्हारी पहचान और ऐसी तमाम चीजें झूठी और असत्य हैं क्योंकि वे परमेश्वर के वचनों के खिलाफ जाकर उनका खंडन करती हैं, क्योंकि ये चीजें तुम्हें बाँधती हैं ताकि तुम परमेश्वर के सामने न आ सको। ये चीजें तुम्हारे लिए क्या बुराइयाँ लेकर आती हैं? ये तुम्हें खुद को छिपाने, समझने का दिखावा करने, होशियार होने का दिखावा करने, एक महान हस्ती होने का दिखावा करने, एक सेलिब्रिटी होने का दिखावा करने, सक्षम होने का दिखावा करने, बुद्धिमान होने का दिखावा करने, यहाँ तक कि सब-कुछ जानने, सभी चीजों में सक्षम होने और सब-कुछ करने में सक्षम होने का दिखावा करने में कुशल बनाती हैं। वह इसलिए ताकि दूसरे तुम्हारी पूजा करें और तुम्हें सराहें। वे अपनी तमाम समस्याओं के साथ तुम्हारे पास आएँगे, तुम पर भरोसा करेंगे और तुम्हारा आदर करेंगे। इस तरह, यह ऐसा है मानो तुमने खुद को भुनने के लिए किसी भट्टी में झोंक दिया हो। तुम्हीं बताओ, क्या आग में भुनना अच्छा लगता है? (नहीं।) तुम नहीं समझते, लेकिन तुम यह कहने का साहस नहीं करते कि तुम नहीं समझते। तुम असलियत नहीं समझते लेकिन तुम यह कहने का साहस नहीं करते कि तुम असलियत नहीं समझते। तुमने स्पष्ट रूप से गलती की है लेकिन तुम इसे स्वीकारने का साहस नहीं करते। तुम्हारा दिल व्यथित है लेकिन तुम यह कहने की हिम्मत नहीं करते, ‘इस बार यह वाकई मेरी गलती है, मैं परमेश्वर और अपने भाई-बहनों का ऋणी हूँ। मैंने परमेश्वर के घर को इतना बड़ा नुकसान पहुँचाया है, लेकिन मुझमें सबके सामने खड़े होकर इसे स्वीकारने की हिम्मत नहीं है।’ तुम बोलने की हिम्मत क्यों नहीं करते? तुम मानते हो, ‘मुझे अपने भाई-बहनों द्वारा दिए गए प्रभामंडल और प्रतिष्ठा पर खरा उतरने की जरूरत है, मैं अपने प्रति उनके उच्च सम्मान और भरोसे को धोखा नहीं दे सकता, उन उत्कट अपेक्षाओं को तो बिल्कुल भी नहीं जो उन्होंने इतने सालों से मेरे प्रति रखी हैं। इसलिए मुझे दिखावा करते रहना होगा।’ यह कैसा छद्मवेश है? तुमने खुद को सफलतापूर्वक एक महान हस्ती और अतिमानव बना लिया है। भाई-बहन अपने सामने आने वाली किसी भी समस्या के बारे में पूछने, सलाह लेने, यहाँ तक कि तुम्हारे परामर्श की विनती करने तुम्हारे पास आना चाहते हैं। ऐसा लगता है कि वे तुम्हारे बिना जी नहीं सकते। लेकिन क्या तुम्हारा हृदय व्यथित नहीं होता? बेशक, कुछ लोग यह व्यथा महसूस नहीं करते। किसी मसीह-विरोधी को यह व्यथा महसूस नहीं होती। इसके बजाय, वह यह सोचकर इससे प्रसन्न होता है कि उसकी हैसियत बाकी सबसे ऊपर है। हालाँकि एक औसत, सामान्य व्यक्ति को आग में भुनने पर व्यथा महसूस होती है। उसे लगता है कि वह कुछ भी नहीं है, बिल्कुल एक साधारण व्यक्ति जैसा है। वह यह नहीं मानता कि वह दूसरों से ज्यादा मजबूत है। वह न सिर्फ यह सोचता है कि वह कोई व्यावहारिक कार्य नहीं कर सकता, बल्कि वह कलीसिया के काम में देरी भी कर देगा और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को भी देर करवा देगा, इसलिए वह दोष स्वीकारकर इस्तीफा दे देगा। यह एक विवेकवान व्यक्ति है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, परमेश्वर के वचनों को सँजोना परमेश्वर में विश्वास की नींव है)। लिंग शिन ने परमेश्वर के वचनों पर विचार किया और उसे एहसास हुआ कि वह प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए जी रही है। वह यही सोचती रहती है कि हर हाल में एक सुपरवाइजर के तौर पर अपने रुतबे और पद को कैसे बनाए रखा जाए। उसने सुपरवाइजर बनने से पहले के समय पर विचार किया। उसने कभी कोई बोझ नहीं उठाया था, चाहे वह सत्य पर संगति कर रही होती या लोगों के साथ संवाद कर रही होती और उनके सवाल सुन रही होती जिन्हें वह समझ नहीं पाती थी। वह जितना जानती थी उतना साझा करती थी। न उसे कुछ गलत कहने का डर होता था, न अपनी समझ की कमी को लेकर घबराहट होती थी। वह जानती थी कि उसका जीवन प्रवेश सतही है और वह कुछ सिद्धांतों को पूरी तरह नहीं समझ पाई है, इसलिए उसे संगति करनी है और जो कमी है उसे पूरा करने के लिए और अधिक खोज करनी है। लेकिन सुपरवाइजर बनने के बाद सब बदल गया। उसे लगने लगा था कि उसे हमेशा दूसरे भाई-बहनों से बेहतर बनना है, सत्य पर उसकी संगति अधिक गहन होनी चाहिए और उसकी कार्यक्षमताएँ बहुत खराब नहीं हो सकतीं। उसे लगता था कि दूसरे जो सवाल उठाएँ, उनके समाधान के लिए उसे संगति करने में सक्षम होना होगा; वरना भाई-बहन उसे हेय दृष्टि से देखेंगे। जब उसने सभाओं में हिस्सा लिया था तो सु रुई ने सत्य पर उसकी संगति में कमियाँ बताई थीं। उसे कुछ समस्याओं का भी सामना करना पड़ा था जिन्हें वह स्पष्ट रूप से समझ नहीं पाई थी। हालाँकि वह उत्तर नहीं जानती थी, फिर भी वह इसे स्वीकारने को तैयार नहीं थी। वह अपने अभिमान और रुतबे को लेकर चिंतित रहती थी और असहज महसूस करती थी। उसे यह भी चिंता रहती थी कि अगर वह सिंचनकर्ताओं के साथ सभा करना जारी रखेगी तो उसे और भी अधिक शर्मिंदा होना पड़ेगा, इसलिए वह भाग लेने में झिझकती थी, सोचती थी कि अगर नहीं जाएगी तो इससे उसकी कमियों और दोषों को छिपाए रखने में मदद मिलेगी और एक सुपरवाइजर के रूप में उसकी छवि भी अच्छी बनी रहेगी। लिंग शिन को पता था कि उसने अपनी एक इज्जत बना रखी है और खुद को एक ऐसे बेहतरीन इंसान के छद्म आवरण में रखने की कोशिश कर रही है जिसमें कोई दोष नहीं है। वह सचमुच घमंडी थी और उसमें आत्म-ज्ञान की कमी थी! चूँकि वह सुपरवाइजर के रूप में नई थी उसके लिए अपने मुद्दों और कमियों को उजागर करना बिल्कुल सामान्य बात थी और परमेश्वर इन मुद्दों और कठिनाइयों को उसके अभ्यास के अवसर के रूप में उपयोग कर रहा था। इन समस्याओं को हल करने के लिए उसे ईमानदारी से सत्य सिद्धांतों की खोज करनी थी, न कि खुद को अयोग्य मानकर उनसे बचने की कोशिश करनी थी; यही नहीं, ऐसी हरकत करके तो वह अपनी जिम्मेदारियाँ भी नहीं निभा रही थी। लिंग शिन ने लोगों से परमेश्वर की अपेक्षाओं को देखा : “जिसे तुम नहीं समझ पाते हो, उस बात के समाधान के लिये चिंता मत करो; ऐसी बातों को अक्सर परमेश्वर के समक्ष लेकर जाओ और उससे सच्चे दिल से प्रार्थना करो(परमेश्वर की संगति)। लिंंग शिन को यह समझ आया कि परमेश्वर चाहता है कि जब लोग ऐसी परेशानियों का सामना करें जो उन्हें समझ न आएँ तो उन्हें अक्सर उसके सामने आकर सच्चे दिल से प्रार्थना और खोज करनी चाहिए। लेकिन वह तो अपने अभिमान और रुतबे की चिंता रूपी बेड़ियों में बुरी तरह जकड़ी हुई थी और हमेशा यही सोचती रहती थी कि अपनी छवि और रुतबा कैसे बरकरार रखा जाए। वह जानती थी कि उसमें ढेरों कमियाँ हैं, लेकिन उसने कभी यह विचार नहीं किया कि काम को आगे बढ़ाने के लिए समस्याओं का समाधान कैसे किया जाए। यह अच्छी बात थी कि भाई अपने काम के प्रति काफी गंभीर थे; हालाँकि वह खुद सत्य समझने और समस्याओं को हल करने में असमर्थ थी, लेकिन दोष दूसरों को देती थी कि वे बहुत सारे सवाल पूछते हैं। वह दरअसल कोई तर्क नहीं स्वीकारती थी! इन बातों को समझने के बाद लिंग शिन ने परमेश्वर के वचनों को पढ़ना जारी रखा और अभ्यास का मार्ग ढूँढ़ लिया।

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “मुझे बताओ, तुम साधारण और सामान्य इंसान कैसे बन सकते हो? कैसे तुम, जैसा कि परमेश्वर कहता है, एक सृजित प्राणी का उचित स्थान ग्रहण कर सकते हो—कैसे तुम अतिमानव या कोई महान हस्ती बनने की कोशिश नहीं कर सकते? एक साधारण और सामान्य इंसान बनने के लिए तुम्हें कैसे अभ्यास करना चाहिए? यह कैसे किया जा सकता है? ... पहली बात, खुद को यह कहते हुए कोई उपाधि देकर उससे बँधे मत रहो, ‘मैं अगुआ हूँ, मैं टीम का मुखिया हूँ, मैं निरीक्षक हूँ, इस काम को मुझसे बेहतर कोई नहीं जानता, मुझसे ज्यादा इन कौशलों को कोई नहीं समझता।’ अपनी स्व-प्रदत्त उपाधि के फेर में मत पड़ो। जैसे ही तुम ऐसा करते हो, वह तुम्हारे हाथ-पैर बाँध देगी, और तुम जो कहते और करते हो, वह प्रभावित होगा। तुम्हारी सामान्य सोच और निर्णय भी प्रभावित होंगे। तुम्हें इस रुतबे की बेबसी से खुद को आजाद करना होगा। पहली बात, खुद को इस आधिकारिक उपाधि और पद से नीचे ले आओ और एक आम इंसान की जगह खड़े हो जाओ। अगर तुम ऐसा करते हो, तो तुम्हारी मानसिकता कुछ हद तक सामान्य हो जाएगी। तुम्हें यह भी स्वीकार करना और कहना चाहिए, ‘मुझे नहीं पता कि यह कैसे करना है, और मुझे वह भी समझ नहीं आया—मुझे कुछ शोध और अध्ययन करना होगा,’ या ‘मैंने कभी इसका अनुभव नहीं किया है, इसलिए मुझे नहीं पता कि क्या करना है।’ जब तुम वास्तव में जो सोचते हो, उसे कहने और ईमानदारी से बोलने में सक्षम होते हो, तो तुम सामान्य विवेक से युक्त हो जाओगे। दूसरों को तुम्हारा वास्तविक स्वरूप पता चल जाएगा, और इस प्रकार वे तुम्हारे बारे में एक सामान्य दृष्टिकोण रखेंगे, और तुम्हें कोई दिखावा नहीं करना पड़ेगा, न ही तुम पर कोई बड़ा दबाव होगा, इसलिए तुम लोगों के साथ सामान्य रूप से संवाद कर पाओगे। इस तरह जीना निर्बाध और आसान है; जिसे भी जीवन थका देने वाला लगता है, उसने उसे ऐसा खुद बनाया है। ढोंग या दिखावा मत करो। पहली बात, जो कुछ तुम अपने दिल में सोच रहे हो, उसे खुलकर बताओ, अपने सच्चे विचारों के बारे में खुलकर बात करो, ताकि हर कोई उन्हें जान और उन्हें समझ ले। नतीजतन, तुम्हारी चिंताएँ और तुम्हारे और दूसरों के बीच की बाधाएँ और संदेह समाप्त हो जाएँगे। तुम किसी और चीज से बाधित हो। तुम हमेशा खुद को टीम का मुखिया, अगुआ, कार्यकर्ता, या किसी पदवी, हैसियत और प्रतिष्ठा वाला इंसान मानते हो : अगर तुम कहते हो कि तुम कोई चीज नहीं समझते, या कोई काम नहीं कर सकते, तो क्या तुम खुद को बदनाम नहीं कर रहे? जब तुम अपने दिल की ये बेड़ियाँ हटा देते हो, जब तुम खुद को एक अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में सोचना बंद कर देते हो, और जब तुम यह सोचना बंद कर देते हो कि तुम अन्य लोगों से बेहतर हो और महसूस करते हो कि तुम अन्य सभी के समान एक आम इंसान हो, और कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जिनमें तुम दूसरों से कमतर हो—जब तुम इस रवैये के साथ सत्य और काम से संबंधित मामलों में संगति करते हो, तो प्रभाव अलग होता है, और परिवेश भी अलग होता है। अगर तुम्हारे दिल में हमेशा शंकाएँ रहती हैं, अगर तुम हमेशा तनावग्रस्त और बाधित महसूस करते हो, और अगर तुम इन चीजों से छुटकारा पाना चाहते हो लेकिन नहीं पा सकते, तो तुम्हें परमेश्वर से गंभीरता से प्रार्थना करनी चाहिए, आत्मचिंतन करना चाहिए, अपनी कमियाँ देखनी चाहिए और सत्य की दिशा में प्रयास करना चाहिए। अगर तुम सत्य को अमल में ला सकते हो, तो तुम्हें परिणाम मिलेंगे। चाहे जो करो, पर किसी विशेष पद से या किसी विशेष पदवी का उपयोग करके बात या काम न करो। पहली बात, यह सब एक तरफ कर दो, और खुद को एक आम इंसान के स्थान पर रखो(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, परमेश्वर के वचनों को सँजोना परमेश्वर में विश्वास की नींव है)। परमेश्वर के वचनों से लिंग शिन को एहसास हुआ कि उसे एक सुपरवाइजर के रूप में अपना रुतबा छोड़ देना चाहिए, वह भी दूसरों की तरह एक सामान्य इंसान है, बस एक अलग कर्तव्य निभा रही है। अब चूँकि वह एक सुपरवाइजर थी, इसका सीधा सा अर्थ था अधिक जिम्मेदारी वहन करना, लेकिन उसका आध्यात्मिक कद वैसा ही रहेगा जैसा पहले था। सुपरवाइजर बनने का मतलब यह नहीं था कि उसका आध्यात्मिक कद बढ़ गया था या उसमें सत्य के विभिन्न पहलुओं की और अधिक स्पष्ट समझ पैदा हो गई थी—ऐसा सोचना यथार्थपरक नहीं था। इसके अलावा इतने लंबे समय तक सिंचनकर्ता के रूप में सेवा करने के बाद भाई-बहन पहले से ही उसकी असलियत जानते थे; क्या श्रेष्ठ होने का दिखावा करने का मतलब यह नहीं था कि उसने खुद को और दूसरों को धोखा देने की कोशिश की थी और अपने लिए और बड़ी चुनौतियाँ खड़ी कर ली थीं? लिंग शिन समझ गई कि उसे सुपरवाइजर का पद छोड़कर अपनी कमियों को दूर करना होगा, जो बातें उसे समझ नहीं आतीं उन पर उसे औरों के साथ संगति और खोज करनी होगी या उसे हल करने के लिए खुद सत्य खोजना होगा और हर प्रकाशन को जीवन विकास के लिए एक अच्छे अवसर के रूप में लेना होगा।

मौसम धीरे-धीरे गर्म हो रहा था और हवा भी काफी धीमी हो गई थी। लिंग शिन को अपने भारी सूती कपड़े उतारकर हल्का और अच्छा लग रहा है।

इसके तुरंत बाद लिंग शिन को धर्मोपदेश का कार्यभार सौंप दिया गया। जब उसने देखा कि कुछ भाई-बहनों ने पहले भी धर्मोपदेश लिखे हैं और कुछ के पास सुसमाचार प्रचार का कई वर्षों का अनुभव है तो वह विलाप करने लगी, “उनमें से कौन-सा मुझसे बेहतर नहीं है? मुझे इस काम की निगरानी कैसे करनी चाहिए?” लिंग शिन अभिभूत हो रही थी, उसे इस बात की चिंता हो रही थी कि अगर वह काम का निर्देशन ठीक से न कर सकी तो भाई-बहन उससे असहमत होकर कह सकते हैं, “तुम सुपरवाइजर तो हो, लेकिन क्या वाकई इस तरह सुपरवाइजर बनकर काम संभाल सकती हो?” उसे चिंता हुई कि अगर नतीजे खराब रहे और उसे बरखास्त कर दिया गया तो उसे बुरी तरह से अपमानित होना पड़ेगा। लिंग शिन को दबाव और चिंता खाए जा रही थी।

बाहर लगातार कई दिनों से रिमझिम बारिश हो रही थी, हालाँकि मूसलाधार नहीं थी। लिंग शिन ने देखा कि भाई-बहनों द्वारा लिखे उपदेशों की गुणवत्ता बहुत अच्छी नहीं है और वह सिद्धांतों के बारे में उनके साथ संगति करना चाहती थी। लेकिन वह यह सोचकर झिझक रही थी, “पिछली बार सभा के दौरान मैं बस एक तरफ चुपचाप बैठी थी और कुछ बोल नहीं रही थी। यह बेहद शर्मनाक था। मुझे तो यह भी नहीं पता कि भाई-बहन मेरे बारे में क्या सोचते हैं। अगर मैं इस बार भी गई और कोई समस्या न सुलझा पाई तो मुझे क्या करना चाहिए? शायद मुझे जाना ही नहीं चाहिए, इस तरह मेरी बदनामी तो नहीं होगी।” लिंग शिन ने खिड़की से बाहर देखा; अभी भी बारिश हो रही थी। उसने यह सोचकर खुद को तसल्ली दी, “हालाँकि मैं उनके साथ संगति नहीं करूँगी, लेकिन फिर भी एक पत्र के जरिए तो संगति कर ही सकती हूँ। फिर चाहे मैं जाऊँ या न जाऊँ एक ही बात होगी।”

एक दिन अगुआ ने लिंग शिन के साथ एक सभा करने का समय तय किया। काम की स्थिति के बारे में पूछताछ करने के बाद अगुआ ने कहा कि लिंग शिन अपने कर्तव्य में जिम्मेदार नहीं है और वास्तव में कार्य का जायजा लेने और समस्याएँ हल करने में विफल हो रही है जिसकी वजह से धर्मोपदेशों की गुणवत्ता गिर रही है। लिंग शिन को बहुत शर्म आई और उसे खुद से घृणा होने लगी कि वह हमेशा अपने अभिमान और रुतबे की चिंता में रहती है जिससे काम में देरी होती है। फिर अगुआ ने परमेश्वर के कुछ वचन साझा किए और एक अंश विशेष ने लिंग शिन को कुछ हद तक प्रभावित किया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितने प्रतिभाशाली हो, तुम्हारे पास किस स्तर की काबिलियत और शिक्षा है, तुम कितने नारे लगा सकते हो, या कितने शब्द और धर्म-सिद्धांतों पर तुम्हारी पकड़ है; इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितने व्यस्त हो, या दिन भर में कितने थके हो, या तुमने कितनी दूर की यात्रा की है, कितनी कलीसियाओं में जाते हो, या तुम कितने जोखिम उठाते हो और कितना कष्ट सहते हो—इनमें से कोई भी बात मायने नहीं रखती। जो बात मायने रखती है वह यह है कि क्या तुम अपना काम दी गई कार्य व्यवस्थाओं के आधार पर कर रहे हो, क्या तुम उन व्यवस्थाओं को सही ढंग से लागू कर रहे हो; क्या तुम अपनी अगुआई के दौरान हर उस विशिष्ट कार्य में भाग ले रहे हो जिसके लिए तुम जिम्मेदार हो, और तुमने वास्तव में कितने वास्तविक मुद्दों का समाधान किया है; तुम्हारी अगुआई और मार्गदर्शन के कारण कितने लोग सत्य सिद्धांतों को समझ पाए हैं, और कलीसिया का काम कितना आगे बढ़ा और विकसित हुआ है—जो मायने रखता है वह यह है कि तुमने ये परिणाम हासिल किए हैं या नहीं। तुम जिस भी विशिष्ट कार्य में लगे हो, उसके बावजूद जो मायने रखता है वह यह है कि क्या तुम उच्चपदस्थ और शक्तिशाली बन कर आदेश जारी करने के बजाय लगातार कार्य का अनुसरण और निर्देशन कर रहे हो या नहीं। इसके अलावा यह भी मायने रखता है कि तुम अपने कर्तव्य निभाते हुए जीवन प्रवेश करते हो या नहीं, क्या तुम सिद्धांतों के अनुसार मामलों से निपट सकते हो, क्या तुम्हारे पास सत्य को अभ्यास में लाने की गवाही है, और क्या तुम परमेश्वर के चुने हुए लोगों के सामने आने वाले वास्तविक मुद्दों को सँभाल सकते हो और उनका समाधान कर सकते हो। ये और इसी तरह की दूसरी चीजें यह आकलन करने की कसौटियाँ हैं कि किसी अगुआ या कार्यकर्ता ने अपनी जिम्मेदारियों को पूरा किया है या नहीं। क्या तुम लोग कहोगे कि ये कसौटियाँ व्यावहारिक हैं? और लोगों के प्रति निष्पक्ष हैं? (हाँ।) वे सभी के लिए निष्पक्ष हैं। तुम्हारी शिक्षा का स्तर जो भी हो, तुम युवा हो या बूढ़े, तुमने कितने ही वर्षों तक परमेश्वर पर विश्वास किया हो, तुम्हारी वरिष्ठता जो भी हो, या तुमने परमेश्वर के वचनों को कितना भी पढ़ा हो, इनमें से कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है। जो महत्व रखता है वह यह है कि अगुआ के रूप में चुने जाने के बाद तुम कलीसिया का काम कितनी अच्छी तरह से करते हो, तुम अपने कार्य में कितने प्रभावी और कुशल हो, और क्या काम की हर एक मद सुसंगठित और प्रभावी तरीके से आगे बढ़ रही है, और उसमें देरी तो नहीं हो रही है। ये मुख्य चीजें हैं जिनका मूल्यांकन तब किया जाता है जब यह मापा जाता है कि किसी अगुआ या कार्यकर्ता ने अपनी जिम्मेदारियों को पूरा किया है या नहीं(वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (9))। लिंग शिन ने देखा कि परमेश्वर ने संगति की कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं का कर्तव्य भाई-बहनों को सत्य सिद्धांतों को समझने के लिए मार्गदर्शन देना और परमेश्वर के घर में काम की सभी वस्तुओं को बढ़ावा देने में सहायता करना है। परमेश्वर किसी व्यक्ति का आकलन इस आधार पर नहीं करता कि वह कितना कष्ट झेल रहा है, बल्कि इस आधार पर करता है कि क्या उसके कर्तव्य वास्तविक परिणाम देते हैं और क्या वे अपनी जिम्मेदारियाँ निभाते हैं। परमेश्वर के वचन पढ़कर लिंग शिन ने खुद से पूछा, “सुपरवाइजर बनने के बाद से मैंने कितना वास्तविक काम किया है? क्या मैंने नजर में आईं सभी समस्याओं का समाधान कर लिया है? क्या काम के वास्तविक परिणाम आए और काम आगे बढ़ा?” लिंग शिन इनमें से किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकी। एक अगुआ और कार्यकर्ता के नाते जब वह देखता है कि काम अच्छे परिणाम नहीं दे रहा है, तो उसे वास्तव में इन खराब परिणामों के कारणों की जाँच करनी चाहिए और यह देखते हुए कि क्या लोग अपने भ्रष्ट स्वभावों में जी रहे हैं या क्या सिद्धांतों को नहीं समझते हैं, व्यक्ति को समस्याओं का समाधान लक्ष्य बनाकर करना चाहिए। लेकिन इस डर से कि वह समस्याओं का समाधान नहीं कर पाएगी और दूसरे लोग उसकी असलियत समझ जाएँगे, उसने केवल सिद्धांतों पर संक्षेप में संगति करने के लिए पत्र लिखे थे जिसके परिणामस्वरूप समस्याएँ अनसुलझी रह गईं और कार्य परिणाम लगातार खराब होते गए। क्या यह सब उसके वास्तविक कार्य न करने के कारण नहीं था? सभा के बाद लिंग शिन तुरंत उन भाई-बहनों से मिलने गई जो धर्मोपदेश लिख रहे थे। विस्तृत पूछताछ से उसे पता चला कि वे वास्तव में सिद्धांतों के अनुसार नहीं लिख रहे थे, तो उसने सबके साथ मिलकर कुछ सिद्धांतों पर संगति की। कुछ ही दिनों बाद उच्च गुणवत्ता वाला एक धर्मोपदेश प्रस्तुत किया गया। लिंग शिन बहुत खुश हुई लेकिन उसे थोड़ी आत्म-ग्लानि भी हुई। अगर उसने पहले ही इन समस्याओं का समाधान कर लिया होता तो काम में इतनी देरी न हुई होती। उसने खुद से पूछा, “मैं अपना अभिमान क्यों नहीं त्याग सकी? मेरे लिए सत्य का अभ्यास करना इतना कठिन क्यों था?” इस समस्या को हल करने के लिए दृढ़ संकल्पित लिंग शिन ने इस मामले पर परमेश्वर के और अधिक वचनों की खोज की।

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “मसीह-विरोधी रोज केवल प्रतिष्ठा और हैसियत के लिए जीते हैं, वे केवल रुतबे के लाभों का आनंद लेने के लिए जीते हैं, वे बस इसी बारे में सोचते हैं। यहाँ तक कि जब वे कभी-कभी कोई छोटा-मोटा कष्ट उठाते हैं या कोई मामूली कीमत चुकाते हैं, तो वह भी हैसियत और प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए होता है। हैसियत के पीछे दौड़ना, सत्ता धारण करना और एक आसान जीवन जीना वे प्रमुख चीजें हैं, जिनके लिए मसीह-विरोधी परमेश्वर पर विश्वास करने के बाद हमेशा योजना बनाते हैं, और तब तक हार नहीं मानते, जब तक कि वे अपने लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लेते। अगर कभी उनके दुष्कर्म उजागर हो जाते हैं, तो वे घबरा जाते हैं, मानो उन पर आकाश गिरने वाला हो। वे न तो खा पाते हैं, न सो पाते हैं, और बेहोशी की-सी हालत में प्रतीत होते हैं, मानो अवसाद से ग्रस्त हों। जब लोग उनसे पूछते हैं कि क्या समस्या है, तो वे झूठ बोलते हुए कहते हैं, ‘कल मैं इतना व्यस्त रहा कि पूरी रात सो नहीं पाया, इसलिए बहुत थक गया हूँ।’ लेकिन वास्तव में, इसमें से कुछ भी सच नहीं होता, यह सब धोखा होता है। वे ऐसा इसलिए महसूस करते हैं, क्योंकि वे लगातार सोच रहे होते हैं, ‘मेरे द्वारा किए गए बुरे काम उजागर हो गए हैं, तो मैं अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत कैसे बहाल कर सकता हूँ? मैं खुद को छुड़ाने के लिए किन साधनों का उपयोग कर सकता हूँ? इसे समझाने के लिए मैं सभी लोगों के साथ किस लहजे का उपयोग कर सकता हूँ? मैं लोगों को अपनी असलियत जानने से रोकने के लिए क्या कह सकता हूँ?’ काफी समय तक उन्हें समझ नहीं आता कि क्या करें, इसलिए वे खिन्न रहते हैं। कभी-कभी उनकी आँखें एक ही स्थान पर शून्य में ताकती रहती हैं, और कोई नहीं जानता कि वे क्या देख रहे हैं। यह मुद्दा उन्हें सिर खपाने पर मजबूर कर देता है, वे जितना सोच सकते हैं उतना सोचते हैं और उनकी खाने-पीने की इच्छा नहीं होती। इसके बावजूद, वे अभी भी कलीसिया के काम की परवाह करने का दिखावा करते हैं और लोगों से पूछते हैं, ‘सुसमाचार का काम कैसा चल रहा है? उसे कितने प्रभावी ढंग से प्रचारित किया जा रहा है? क्या भाई-बहनों ने हाल ही में कोई जीवन प्रवेश प्राप्त किया है? क्या कोई विघ्न-बाधा डाल रहा है?’ कलीसिया के काम के बारे में उनकी यह पूछताछ दूसरों को दिखाने के लिए होती है। अगर उन्हें समस्याओं के बारे में पता चल भी जाता, तो भी उनके पास उन्हें हल करने का कोई उपाय न होता, इसलिए उनके प्रश्न महज औपचारिकता होते हैं, जिन्हें दूसरे लोग कलीसिया के काम की परवाह के रूप में देख सकते हैं। अगर कोई कलीसिया की समस्याओं की रिपोर्ट बनाए जिनका उन्हें समाधान करना हो, तो वे बस इनकार में अपने सिर हिला देंगे। कोई भी योजना उनके काम नहीं आएगी, और हालाँकि वे खुद को छिपाना चाहेंगे, लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाएँगे, और उनके उजागर और प्रकट होने का खतरा होगा। यह सबसे बड़ी समस्या है, जिसका सामना मसीह-विरोधियों को अपने पूरे जीवन में करना पड़ता है। ... हालाँकि मसीह-विरोधियों के शासन में कलीसिया का काम जारी है, लेकिन इसकी प्रभावशीलता बहुत कम हो गई है। कुछ महत्वपूर्ण कार्य अभी भी बुरे व्यक्तियों द्वारा संभाला जाता है, और परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाएँ लागू नहीं की गई हैं। हालाँकि परमेश्वर के चुने हुए सभी लोग अपना कर्तव्य निभा रहे हैं, फिर भी कोई वास्तविक परिणाम नहीं मिला है, और कई काम लंबे समय से अटके पड़े हैं। इन समस्याओं का मूल कारण क्या है? यही कि मसीह-विरोधियों ने कलीसिया को अपने काबू में कर लिया है। जहाँ कहीं भी मसीह-विरोधी सत्ता में हैं, तो चाहे उनके प्रभाव का दायरा कुछ भी हो, चाहे वह सिर्फ एक समूह ही हो, वे परमेश्वर के घर के काम और परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से कुछ के जीवन-प्रवेश को प्रभावित करेंगे। अगर किसी कलीसिया में उनके पास सत्ता है, तो वहाँ कलीसिया का काम और परमेश्वर की इच्छा बाधित होती है। कुछ कलीसियाओं में परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाएँ लागू क्यों नहीं की जा सकतीं? इसलिए, कि उन कलीसियाओं में सता मसीह-विरोधियों के पास होती है। जो कोई भी मसीह-विरोधी है, वह परमेश्वर के लिए ईमानदारी से नहीं खपेगा, उसके कर्तव्यों का निर्वाह सिर्फ औपचारिकताओं और बेमन से काम करने का मामला होगा। वे वास्तविक कार्य नहीं करेंगे, भले ही वे अगुआ या कार्यकर्ता हों, कलीसिया के कार्य की रक्षा बिल्कुल न करते हुए वे सिर्फ शोहरत, लाभ और रुतबे के लिए बोलेंगे और कार्य करेंगे(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दो))। परमेश्वर ने उजागर किया कि मसीह-विरोधी केवल प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए जीते हैं और वे अपना दिन इस बात में बिताते हैं कि इन चीजों को कैसे बचाया जाए। वे परमेश्वर के घर के कार्य के प्रति कोई चिंता नहीं दिखाते और विशिष्ट कार्य करने से बचते हैं। लेकिन जब उनकी प्रतिष्ठा या रुतबे को खतरा होता है तो फिर भले ही यह हानि जरा-सी हो, वे अपना दिमाग दौड़ाते हैं और खुद को छिपाने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं। यह स्पष्ट है कि मसीह-विरोधियों को परमेश्वर के घर के कार्य की कोई परवाह नहीं होती, वे अपने उपयुक्त कर्तव्यों की उपेक्षा करते हैं और पूरी तरह से स्वार्थी और घृणित होते हैं। लिंग शिन को एहसास हुआ कि वह बिल्कुल एक मसीह-विरोधी की तरह ही व्यवहार कर रही थी, प्रतिष्ठा और रुतबे को हर चीज से ऊपर रख रही थी। उसे कलीसिया के काम की कोई परवाह नहीं थी; जब तक उसकी प्रतिष्ठा और रुतबा सुरक्षित है तब तक उसके लिए और कुछ मायने नहीं रखता था। ऐसा लगता था जैसे कलीसिया का काम करना उस पर एक अतिरिक्त बोझ है। उसका मुख्य ध्यान अपनी प्रतिष्ठा और रुतबा बनाए रखने पर था। सिंचनकर्ताओं के साथ एक सभा में भाई-बहनों के सामने मूर्ख बनने के बाद इतना दबाव और परेशानी महसूस कर रही थी कि वह अब सभाओं में जाना ही नहीं चाहती थी। अब धर्मोपदेश कार्य का जायजा लेते वक्त उसने देखा कि अपनी कमियों को पहचानने के बाद तुरंत सीखने के बारे में सोचने के बजाय वह बस वहाँ से भाग जाना और अपनी समस्याओं को छुपाना चाहती थी ताकि वह अक्षम न दिखे। उसकी जिम्मेदारी थी कर्तव्य में विभिन्न मुद्दों की तुरंत पहचान करना, सत्य खोजना और सिद्धांतों में प्रवेश करने के लिए भाई-बहनों का मार्गदर्शन करना ताकि कार्य सुचारु रूप से आगे बढ़ सके। उसमें सत्य की स्पष्ट समझ का अभाव और कार्य में अनुभवहीनता वास्तविक कार्य न करने के वैध कारण या बहाने नहीं थे। परमेश्वर जबर्दस्त परिणामों की अपेक्षा नहीं करता पर आशा है कि लोग अपने कर्तव्य करने में अपना दिल लगाएँ और अधिकतम प्रयास करें ताकि वे अपने कर्तव्यों में प्रगति कर सकें और अपनी कमियों की भरपाई कर सकें। लेकिन लिंग शिन केवल अपनी प्रतिष्ठा और रुतबा बनाए रखने पर ध्यान दे रही थी और कोई वास्तविक काम नहीं कर रही थी। अपनी कमियों को छुपाने के लिए वह दूसरों के भरोसे काम छोड़ देने वाली कार्यकर्ता बन गई थी जिससे कलीसिया के काम को नुकसान पहुँचा। वह न केवल कार्य की प्रगति में योगदान देने में विफल रही बल्कि इससे काम में देरी भी हुई और काम पर बुरा असर भी पड़ा। परमेश्वर उसके इन कार्यों से घृणा कैसे न करता? उसने विचार किया कि कलीसिया से निकाले गए मसीह-विरोधियों को अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की बेहद चिंता रहती थी और यह भी कि उन्हें भाई-बहनों का कितना सम्मान प्राप्त था, उन्हें केवल उन्हीं चीजों की फिक्र रहती थी जिनसे उनकी प्रतिष्ठा और रुतबे की रक्षा हो, भले ही इससे कलीसिया का काम बाधित हो लेकिन उन्हें इसकी परवाह नहीं होती थी। अंत में उनके अनगिनत बुरे कर्मों के कारण उन्हें निष्कासित कर हटा दिया गया। लिंग शिन को एहसास हुआ कि वह भी एक मसीह-विरोधी का स्वभाव प्रकट कर रही है और अगर उसने पश्चात्ताप नहीं किया तो उसका भी यही परिणाम होगा। इस पर विचार करके लिंग शिन ने मन ही मन संकल्प लिया कि आगे से वह पूरी लग्न से अपना कर्तव्य करेगी, अपने अभिमान और रुतबे की चिंताओं से विवश नहीं होगी और अपना कर्तव्य दृढ़ता से निभाएगी। अगर उसे कुछ समझ नहीं आया तो वह प्रासंगिक सिद्धांतों का अध्ययन करेगी या अपने अभिमान को दर-किनार कर भाई-बहनों से मदद लेगी। इस तरह धीरे-धीरे वह अपना कर्तव्य अच्छे से निभा सकेगी।

बाद के दिनों में लिंग शिन ने वास्तव में प्रासंगिक सत्य सिद्धांतों का अध्ययन करने और खुद को इनसे युक्त करने पर ध्यान दिया। दूसरों के साथ संगति करते समय वह सीखने और साझा करने की मानसिकता के साथ आगे बढ़ने लगी। जब भी कुछ ऐसा होता जो उसकी समझ से परे होता तो वह सक्रिय रूप से दूसरों से सलाह लेती। उसने यह परवाह नहीं की कि दूसरे उसके बारे में क्या सोचेंगे। अगर वह परमेश्वर की अपेक्षाओं के प्रति प्रयास कर सके और अपना कर्तव्य पूरे मन से निभाती है तो इतना काफी होगा।

घनघोर घटा और बारिश के मौसम ने हवा को तेज और तूफानी बना दिया था लेकिन यह सब अंततः गुजर ही जाएगा। धूप भी खिलेगी। उससे पहले ही आसमान अपनी चमक और रंगत बिखेर चुका होगा।

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