75. जो यातना मैंने सही
20 मार्च, 2014 को सुबह करीब दस बजे जब मैं बाहर कुछ काम निपटा रहा था तभी अचानक मेरी पत्नी का फोन आया और उसने हड़बड़ाते हुए कहा, “थाने से पुलिसवाले तुम्हें गिरफ्तार करने आए हैं। घर मत आना!” यह सुनते ही मैं घबरा गया और सोचा, “मैं कहाँ जाऊँ? अगर मैं किसी भाई या बहन के घर गया तो वो भी मुसीबत में पड़ जाएँगे। मेरे पास किसी दोस्त या रिश्तेदार के घर रुकने के अलावा कोई और चारा नहीं है।” फिर मैंने अपनी बेटी के घर जाने का फैसला किया। उसी दिन दोपहर करीब दो बजे सादी वर्दी वाले तीन अधिकारी मेरी बेटी के घर आ धमके और उनमें से एक चिल्लाया, “तुम लिन गुआंग हो, है न? हम पुलिस थाने से आए हैं और हम बरसों से तुम्हारी छानबीन कर रहे हैं।” बिना कोई पहचान दिखाए, वो जबरन मुझे अपनी गाड़ी में डालने लगे। तब मैं काफी डरा हुआ था कि वो मुझे मारेंगे और कलीसिया की जानकारी देने के लिए मजबूर करेंगे, तो मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मुझे आस्था और शक्ति देना। ये अधिकारी मेरे साथ चाहे कुछ भी करें, मैं यहूदा बनकर तुम्हें धोखा नहीं दूँगा।” प्रार्थना करने के बाद, मैं थोड़ा शांत हुआ।
थाने में दो अधिकारियों ने मुझे तुरंत टाइगर कुर्सी पर बिठा दिया, मेरे हाथ कुर्सी से बांध दिए और मेरे जूते-मोजे उतारकर मेरे पैरों में बेड़ियाँ लगा दीं। थाना अधिकारी ने भयानक, नफरत भरी आवाज में मुझसे कहा, “आज तुम्हें गिरफ्तार करने का आदेश सीधे प्रांतीय जन सुरक्षा विभाग से आया है और उन्होंने मुझसे खुद तुम्हें गिरफ्तार करने को कहा है। तुम जरूर कोई ऊँची चीज होगे! फटाफट मुँह खोलो और हमें वह सब बताओ जो तुम्हें पता है!” साथ ही, उसने दस से ज्यादा लोगों की एक इंच वाली तस्वीरें मेरे सामने रख दीं और एक-एक करके तस्वीरें दिखाते हुए पूछने लगा कि क्या मैं तस्वीर में दिख रहे लोगों में से किसी को भी जानता हूँ। मुझे एक बहन दिखी जिसे मैं जानता था और फौरन उससे कहा, “मैं इनमें से किसी को भी नहीं जानता।” फिर उसने मेरे घर से बरामद कुछ चीजें दिखाईं, जिनमें दो बाइबल, एक “वचन देह में प्रकट होता है” की एक प्रति, परमेश्वर के वचनों की किताबों की सुरक्षा की रसीदें और 7,400 युआन शामिल थे, उसने कहा, “यह इसका सबूत है कि तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखते हो और सीसीपी के खिलाफ काम कर रहे हो!” फिर उसने रसीदें उठाईं और मुझसे पूछा, “तुमने इन किताबों को कहाँ रखा है?” उसके हाथ में वो रसीदें देखकर मैं बहुत घबरा गया और सोचा, “वो एक हजार से भी ज्यादा किताबों की रसीदें हैं। अगर मैंने उसे नहीं बताया तो वह निश्चित ही मुझे जाने नहीं देगा, लेकिन अगर बता दिया तो क्या मैं यहूदा नहीं कहलाऊँगा?” यह एहसास होते ही मैंने तुरंत परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर! मेरी रक्षा करो और तुम्हारे सामने शांत होने में मेरी मदद करो। पुलिस चाहे मेरे साथ जो भी करे, मैं यहूदा बनकर अपने भाई-बहनों को धोखा नहीं दूँगा!” प्रार्थना के बाद, मैंने परमेश्वर के वचनों के इस अंश को याद किया : “ब्रह्मांड में घटित होने वाली समस्त चीजों में से ऐसी कोई चीज नहीं है, जिसमें मेरी बात आखिरी न हो। क्या कोई ऐसी चीज है, जो मेरे हाथ में न हो?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 1)। मैंने परमेश्वर के वचनों से उसके अधिकार को महसूस किया। सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है और सभी चीजों पर उसकी संप्रभुता है! मैंने एक हफ्ते पहले ही अपने पास रखी किताबों की जगह बदली थी, क्या यह परमेश्वर की सुरक्षा नहीं थी? यह सोचकर मैंने आत्मविश्वास के साथ जवाब दिया, “वो किताबें किसी और को दी जा चुकी हैं।” एक अधिकारी ने सवाल करना जारी रखते हुए पूछा, “जिस व्यक्ति को किताबें मिली हैं वह कहाँ रहता है? उसका नाम क्या है? उसका अगुआ कौन है?” मैंने कहा, “मैं नहीं जानता।” उसने मुझे घूरा और फिर चिल्लाकर कहा, “बताओगे या नहीं? मैं तुम्हारे साथ नरमी से पेश आ रहा हूँ तो ज्यादा होशियारी मत दिखाओ!” फिर वो मेरे पास आया और बेरहमी से मेरे दोनों गालों पर करारे चांटे लगाए। फिर दो अन्य अधिकारी आगे आए और बारी-बारी से मुझे थप्पड़ मारे। उन्होंने मुझे करीब दस बार चांटे मारे जिससे मुझे तारे दिखने लगे, मेरे कानों में घंटियाँ बजने लगीं और मेरा चेहरा दर्द से सूज गया। क्योंकि मैंने अभी भी अपना मुँह नहीं खोला था, तो एक अधिकारी ने ढाई सेंटीमीटर मोटी बिजली की तार उठाई और उसे चाबुक बनाकर दस बार मेरी पीठ पर मारा, जिसके दर्द से मैं काँप उठा। मैंने मन में परमेश्वर से प्रार्थना की कि मुझे आस्था और इस पीड़ा को सहने की इच्छाशक्ति दो। कुछ अधिकारी बेरहमी से गुर्राए, “इसके कपड़े उतारो और इसे दबाकर ठोको। फिर देखते हैं यह कैसे नहीं बताता!” फिर उन्होंने जबरदस्ती मेरे कपड़े उतार दिए और लगातार मुझे मारते हुए फिर एक चिल्लाया, “बताओगे या नहीं?” उन्होंने मुझे कम-से-कम आठ-नौ बार चाबुक मारे और हरेक चाबुक मेरे पूरे शरीर को तेज दर्द दे रहा था। चाहे उन्होंने मुझे कितना भी मारा, मगर मैंने एक शब्द नहीं कहा। फिर दो अन्य अधिकारी आए और बारी-बारी से मुझे चांटे लगाने लगे। वो मुझे तब तक मारते रहे जब तक मैं बेसुध नहीं हो गया।
थोड़ी देर बाद एक अधिकारी बड़े से बर्तन में पानी भरकर लाया। उसने एक गंदी पैंट पानी में फेंक दी और फिर एक छड़ी से पैंट को पानी से बाहर निकाला और उस पानी को मेरे सिर और शरीर पर लगातार छिड़कता रहा, जिससे मुझे काफी ठंड और दर्द महसूस हुआ। यह देखकर कि मैं अभी भी कुछ नहीं बता रहा हूँ, उसने एक छोटी उंगली के बराबर की बांस की छड़ ली और उसे मेरी छाती पर दो से तीन मिनट तक दबाकर घुमाया, जिससे मुझे बहुत तेज दर्द हुआ। मैंने अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं और दांत पीसे, मगर मुझे लगा कि मैं इसे और नहीं सह सकूँगा, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर! मुझे आस्था और इस पीड़ा को सहने की इच्छाशक्ति दो। इस पीड़ा से निजात पाने और तुम्हारी गवाही में दृढ़ रहने में मेरी मदद करो।” प्रार्थना के दौरान मैंने याद किया कि कैसे प्रभु यीशु को सैनिकों ने इतना मारा था कि उसका पूरा शरीर घाव और चोटों से भर गया था, उसे बेड़ियों में जकड़कर क्रूस पर चढ़ने के लिए मजबूर किया और अंत में उसे निर्ममता से क्रूस पर चढ़ा दिया था। प्रभु यीशु ने मानवजाति को छुटकारा दिलाने के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। परमेश्वर का प्रेम बहुत महान है! परमेश्वर के प्रेम ने मुझे गहराई से प्रेरित किया। यह सोचकर कि कैसे पतरस को भी क्रूस पर उल्टा लटकाया गया था, मुझे लगा कि मैं जिस पीड़ा से गुजर रहा हूँ वह इसके मुकाबले बहुत कम है। मैं जानता था कि मुझे पतरस का अनुकरण करना है, अपनी गवाही में दृढ़ रहना है, और पुलिस चाहे मुझे कितनी भी यातना दे, भले ही मुझे अपना जीवन बलिदान करना पड़े, मुझे परमेश्वर को संतुष्ट करना होगा। इन सबका एहसास होने पर मुझे आस्था मिली, मैंने अपने शरीर की पीड़ा कम होती महसूस की और शांति का अनुभव करने लगा। उसके बाद पुलिस मुझे बारी-बारी से बांस की छड़ी और बिजली के तार से यातना देती रही, मगर जब उन्होंने देखा कि मैंने अभी भी अपना मुँह नहीं खोला, तो वे चिल्लाए, “बड़े ढीठ हो! हमने पहले कभी तुम्हारे जैसा ढीठ व्यक्ति नहीं देखा! अब तक तो कोई सूरमा भी टूट जाता! तुममें शक्ति कहाँ से आती है?” उन्हें यह कहते सुनकर मुझे बड़ी खुशी हुई। मैं जानता था कि परमेश्वर ने मुझे आस्था और पीड़ा सहने की इच्छाशक्ति दी है, जिससे मैं यातना से उबर पाया हूँ। मुझे लगा कि परमेश्वर मेरे साथ है, मेरी आस्था और बढ़ गई है—मैं परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में दृढ़ रहूँगा, चाहे इसके लिए मुझे मरना ही क्यों न पड़े। मैंने दृढ़ता से कहा, “परमेश्वर का वचन मुझे शक्ति देता है!” यह सुनते ही अधिकारियों ने फौरन अपनी यातनाएँ बढ़ा दीं, मुझे थप्पड़ मारे, मेरी छाती को दबाया, मरोड़ा और बांस की छड़ी से मेरे हाथों पर तब तक मारते रहे जब तक कि वे काले-नीले होकर सुन्न नहीं पड़ गए। फिर एक अधिकारी ने मुझसे कहा, “अगर तुमने मुँह नहीं खोला, तो आज रात हम पीट-पीटकर तुम्हारी जान ले लेंगे। किसी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। तुम सभी विश्वासियों को मार देना चाहिए!” यह सुनते ही मैं आग-बबूला हो गया और सोचा, “अगर तुम मुझे मार भी दो, तो भी मैं एक शब्द नहीं कहूँगा। मुझसे कोई जानकारी हासिल करने की उम्मीद भी मत रखना!”
बाद में, मेरी चुप्पी को देखते हुए, पुलिस ने बांस की छड़ी से मेरे दोनों पैरों के अँगूठों को जोर से दबाया और मरोड़ा और बिजली की तार से मेरे पैरों पर चाबुक मारे। वे बारी-बारी से मुझे चाबुक मारते रहे, मेरी छाती और पैर के अँगूठों को बांस की छड़ी से दबाते और मरोड़ते रहे और मुझे थप्पड़ मारते रहे। मैं दर्द के मारे अपने दांत पीसता रहा, मुँह से कटकटाने की आवाज आती रही। फिर एक पुलिस अधिकारी ने कहा, “अगर तुमने जबान नहीं खोली तो कल हम सड़कों पर तुम्हारा जुलूस निकालेंगे। तुम्हारे रिश्तेदार, दोस्त और परिवार के सभी लोग तुमसे नफरत करेंगे और तुम्हें ठुकरा देंगे। अगर तुम हमें सब बता दो तो हम किसी को नहीं बताएँगे कि तुम्हें गिरफ्तार किया गया था और तुम्हारी इज्जत बच जाएगी।” मुझे एहसास हुआ कि यह शैतान की घिनौनी साजिश है और मैंने प्रभु यीशु की कही इस बात को याद किया : “धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण सताए जाते हैं” (मत्ती 5:10)। परमेश्वर में विश्वास रखने के कारण मेरा मजाक उड़ाया जाना, मेरा अपमान और मेरी बदनामी, ये सब धार्मिकता की खातिर उत्पीड़न के रूप थे। यह अपमान नहीं, बल्कि गौरव की बात थी। चाहे दूसरे लोग कुछ भी सोचें, मेरे लिए सबसे जरूरी सिर्फ परमेश्वर को संतुष्ट करना था। यह सोचकर मैंने उस अधिकारी की बात को अनदेखा कर दिया। फिर एक अन्य अधिकारी ने मुझे धमकाते हुए कहा, “तुम अपना मुँह खोलोगे या नहीं? अगर नहीं, तो आज रात हम पीट-पीटकर तुम्हें मार देंगे और हाईवे पर फेंक देंगे। गाड़ियाँ तुम्हारा कचूमर बना देंगी और किसी को पता भी नहीं चलेगा कि असल में क्या हुआ था!” यह सुनकर मैंने सोचा, “ये अधिकारी निहायत ही दुष्ट हैं, ये कुछ भी कर सकते हैं। अगर इन्होंने मुझे मार डाला तो किसी को पता भी नहीं चलेगा।” मैंने अपने 80 साल के बूढ़े पिता के बारे में सोचा जो घर पर थे, और मेरी पत्नी, जो कई बीमारियों से जूझ रही थी। “अगर ये मुझे मार देते हैं तो मेरे पिता और मेरी पत्नी अपना ख्याल कैसे रखेंगे?” यह विचार आते ही मुझे बहुत बुरा लगा, तो मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की। बाद में, मुझे परमेश्वर के वचनों का यह अंश याद आया : “परमेश्वर द्वारा मनुष्य पर किए जाने वाले कार्य के प्रत्येक चरण में, बाहर से यह लोगों के मध्य अंतःक्रिया प्रतीत होता है, मानो यह मानव-व्यवस्थाओं द्वारा या मानवीय विघ्न से उत्पन्न हुआ हो। किंतु पर्दे के पीछे, कार्य का प्रत्येक चरण, और घटित होने वाली हर चीज, शैतान द्वारा परमेश्वर के सामने चली गई बाजी है और लोगों से अपेक्षित है कि वे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग बने रहें” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। परमेश्वर के वचनों से मुझे एहसास हुआ कि शैतान मेरी देह की कमजोरी और अपने परिवार के प्रति मेरे लगाव का इस्तेमाल भाई-बहनों को धोखा देने और परमेश्वर से विश्वासघात करने के लिए कर रहा था। मैं उसके जाल में नहीं फँस सकता था। फिर मुझे प्रभु यीशु की कही एक और बात याद आई : “जो अपने प्राण बचाता है, वह उसे खोएगा; और जो मेरे कारण अपना प्राण खोता है, वह उसे पाएगा” (मत्ती 10:39)। परमेश्वर के वचनों से मुझे आस्था और शक्ति मिली। अगर वे पीट-पीटकर मुझे मार भी डालें, तब भी मेरी आत्मा परमेश्वर के हाथों में होगी, और फिर चाहे मुझे अपना जीवन बलिदान ही करना पड़े, मुझे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में दृढ़ रहना होगा। मनुष्य का अपने भाग्य पर कोई काबू नहीं है और हमारी नियति पर परमेश्वर की संप्रभुता रहती है, तो मेरे परिवार का भविष्य भी परमेश्वर के हाथों में होगा। मैं परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होने को तैयार था, तो मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर! सब कुछ और सारी घटनाएँ तुम्हारे हाथों में हैं, मेरा जीवन भी। पुलिस चाहे मुझे कैसी भी यातना दे, चाहे मेरी मौत भी आ जाए, मैं कभी तुमसे विश्वासघात नहीं करूँगा या अपने भाई-बहनों को धोखा नहीं दूँगा।”
यह देखते हुए कि मैं अभी भी जबान नहीं खोल रहा, पुलिसवाले ने पानी के बरतन से वह गंदी पैंट निकाली और मेरे सिर पर कई बार छींटे मारे, बांस की छड़ी को मेरी छाती और पैर के अँगूठों में दबाकर घुमाया और मेरे पैरों के तलवे पर जोर से मारा। जितनी बार भी वे मुझे मारते, मुझे इतना दर्द होता कि मेरा पूरा शरीर सुन्न हो जाता, मेरा दिल जोरों से धड़कने लगता और साँस फूल जाती। मैंने दाँत पीसते हुए मन ही मन परमेश्वर से प्रार्थना की और एक शब्द नहीं बोला। फिर एक अधिकारी ने बदबूदार मोजा उठाया, उसे गंदे पानी में भीगने के लिए बर्तन में फेंक दिया और फिर निकालकर मेरे मुँह पर रगड़ा। मैंने अपना मुँह कसकर बंद कर लिया तो उसने बस इसे मेरे होठों पर रगड़ा। फिर जब मैंने अपना मुँह थोड़ा ढीला किया, तो उसने मोजे मेरे मुँह में ठूँस दिए और यह कहते हुए उसे मेरे दांतों पर रगड़ने लगा, “आओ जरा तुम्हारा मुँह साफ करा दूँ!” फिर उसने फ्रिज से ठंडे पानी का बर्तन निकाला और मेरे सिर पर डाल दिया। उसके बाद भी जब मैंने अपना मुँह नहीं खोला, तो उसने एक हथौड़ा लिया और लकड़ी के हैंडल से मेरा मुँह खोला और फिर काली मिर्च के तेल का आधा गर्म कटोरा लिया और उसे मेरे गले में डालने की कोशिश की। जब उन्हें लगा कि वे तेल अंदर नहीं डाल सकते क्योंकि मैंने अपना मुँह पूरी ताकत से बंद कर रखा था, तो उन्होंने उसे मेरे होंठों और मेरी छाती के जख्मों पर रगड़ दिया और तब तक रगड़ा जब तक सारा तेल खत्म नहीं हो गया। इतनी तेज जलन और दर्द मुझसे सहा नहीं गया और मैं लगातार टाइगर चेयर पर काँपता और हिलता रहा। मेरे पैर लोहे की बेड़ियों से रगड़ खा रहे थे और आखिरकार मेरी एड़ियों पर दो घाव बन गए जिनसे खून बहने लगा। दर्द इतना भयानक था कि लगा मानो मर ही जाऊँ तो बेहतर होगा और मैं काफी हताश था। मैंने सोचा, “अगर तुम मुझे पीट-पीट कर मारने वाले हो, तो मार ही डालो और इस पीड़ा से मुक्त कर दो।” जब मेरे मन में मरने के ख्याल आने लगे, तब मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ—अगर मैं मर गया तो परमेश्वर के लिए गवाही कैसे दूँगा? तब मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “तुम अभी मर नहीं सकते। तुम्हें अपनी मुट्ठियाँ भींचकर संकल्प के साथ जीते रहना होगा। तुम्हें परमेश्वर के लिए जीवन जीना चाहिए। जब लोगों के भीतर सत्य होता है, तब उनमें यह संकल्प होता है और वे फिर कभी मरने की इच्छा नहीं करते। जब मृत्यु तुम्हें डराएगी, तो तुम कहोगे, ‘हे परमेश्वर, मैं मरने का इच्छुक नहीं हूँ; मैं अभी भी तुझे नहीं जानता। मैंने अभी तक तेरे प्रेम का प्रतिदान नहीं दिया है। मैं तब तक नहीं मर सकता, जब तक मैं तुझे अच्छी तरह से नहीं जान लेता।’ ... अगर तुम परमेश्वर का इरादा नहीं समझते, और सिर्फ पीड़ा के बारे में सोचते हो, तो जितना अधिक तुम इसके बारे में सोचते हो, यह उतनी ही असुविधाजनक हो जाती है और तुम उतने ही निराश महसूस करते हो, मानो तुम्हारे जीवन का मार्ग समाप्त हो रहा हो। तुम मृत्यु की पीड़ा भोगने लगोगे। अगर तुम अपना हृदय और समस्त प्रयास सत्य में लगाओ और सत्य को समझने में सक्षम हो जाओ, तो तुम्हारा हृदय उज्ज्वल हो जाएगा, और तुम आनंद का अनुभव करोगे। तुम जीवन में अपने दिल के भीतर शांति और आनंद पाओगे, और जब बीमारी आए या मौत मँडराए, तो तुम कहोगे, ‘मैंने अभी तक सत्य प्राप्त नहीं किया है, इसलिए मैं मर नहीं सकता। मुझे परमेश्वर के लिए अच्छी तरह खपना चाहिए, अच्छी तरह से परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए, और परमेश्वर के प्रेम का कर्ज चुकाना चाहिए। मैं अंत में कैसे मरता हूँ, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि मैंने एक संतोषजनक जीवन जी लिया होगा। चाहे कुछ भी हो, मैं अभी मर नहीं सकता। मुझे बने रहना चाहिए और जीते रहना चाहिए’” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, मनुष्य का स्वभाव कैसे जानें)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे गहराई से प्रभावित किया, परमेश्वर इस कठिनाई का इस्तेमाल मेरी आस्था और प्रेम को पूर्ण बनाने के लिए कर रहा था ताकि मुझे सत्य हासिल हो सके। मैं जरा सी पीड़ा सहने के बाद ही मरना और उस यातना से मुक्त होना चाहता था—मेरी गवाही कहाँ थी? मैंने सोचा कि कैसे पतरस ने इतनी पीड़ा झेलने और कठिनाइयाँ सहने के बाद भी, कभी परमेश्वर के बारे में शिकायत नहीं की, बल्कि परमेश्वर का इरादा जानने के लिए प्रार्थना की, परमेश्वर से आई हर चीज के प्रति समर्पण किया और आखिरकार मृत्यु तक समर्पित रहकर परमेश्वर के प्रति इष्टतम प्रेम दिखाया, परमेश्वर के लिए क्रूस पर उल्टा लटकाया गया और एक शानदार और बेजोड़ गवाही दी। मुझे पतरस की तरह बनना था—चाहे मुझे कितनी भी पीड़ा सहनी पड़े, मैं जीवित रहूँगा और शैतान को नीचा दिखाने के लिए आखिरी साँस तक अपनी गवाही में दृढ़ रहूँगा। उसके बाद, एक अधिकारी पंखा लेकर आया और उसे फुल स्पीड पर चला दिया, करीब दस मिनट तक मुझे हवा खिलाई, जिससे मैं ठंड के मारे काँपने लगा। मैंने मन में सोचा, “तुम चाहे कोई भी पैंतरा अपनाओ, मैं कभी अपना मुँह नहीं खोलूँगा।” वे मुझे दोपहर के 3 बजे से लेकर सुबह के 4:30 बजे तक इसी तरह से सताते रहे। मेरे मुँह से एक भी शब्द न निकलवा पाने के बाद वे इतने थक गए कि हार मानकर चले गए।
अगले दिन की सुबह वे मुझे नजरबंदी केंद्र लेकर आए। मेरे पैर इतने सूज गए थे कि मैं अपने जूते भी नहीं पहन पा रहा था और लंगड़ाता हुआ चल रहा था, मेरे पैर जूतों से आधे बाहर ही थे। हर कदम पर मुझे असह्य पीड़ा हो रही थी। जब एक अधिकारी ने जाँच के लिए मेरे कपड़े उतरवाए और देखा कि मेरे पूरे शरीर पर घाव और चोट है, तो उसने पूछा, “तुम्हें इतनी बेदर्दी से किसने मारा?” मैं जवाब देने ही वाला था कि तभी डिप्टी डायरेक्टर बीच में बोल पड़ा, “ये घाव पहले से हैं, पीटने से नहीं हुए।” जब मैं उस जेल में घुसा जहाँ मुझे हिरासत में रखा जा रहा था, तो एक मोटे कैदी ने मुझसे कहा, “नए कैदियों को सिर से लेकर पैर तक 6 बाल्टी पानी से नहलाया जाता है। यही नियम है।” यह सुनकर मैं थोड़ा घबरा गया और सोचा, “बाहर इतनी ठंड है, छह बाल्टी पानी से नहलाने पर तो बहुत ठंड लगेगी और काफी दर्द भी होगा। मैं यह कैसे झेल पाऊँगा?” लेकिन मुझे आश्चर्य हुआ जब मैंने अपने कपड़े उतारे और उसने देखा कि मेरे पूरे शरीर पर घाव और चोट है, तो उसने दूसरे कैदियों से कहा, “उसकी पीठ, पैर और चेहरा सब काला-नीला पड़ा है, उसकी दोनों एड़ियों पर गहरे, खून से लथपथ घाव हैं। उसे बहुत बुरी तरह पीटा गया है, तो उसे छह बाल्टी पानी से नहलाने की जरूरत नहीं है।” मुझे काफी राहत महसूस हुई और मैंने अपने दिल में लगातार परमेश्वर का धन्यवाद किया।
मेरी हिरासत के तीसरे दिन दोपहर 2 बजे, मुझे अचानक बहुत तेज सिरदर्द हुआ, मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा और मैं अपने पत्थर के बिस्तर पर बेहोश हो गया। तब मुझे अपनी छाती में एक तेज जकड़न महसूस हुई, मानो कि उसे रस्सी से बांध दिया गया हो, मुझे भारीपन का एहसास हुआ जैसे कि कोई पत्थर की सिल्ली मेरे ऊपर रखी हो। बहुत बेचैनी हो रही थी और मेरा सिरदर्द इतना बुरा था कि मानो मेरा सिर फट जाएगा। एक कैदी ने जल्दी से किसी अधिकारी को बुलाया जिसने मेरे दिल और नब्ज की जाँच की और कहा, “उसका दिल बहुत तेज धड़क रहा है, मैं धड़कनों को गिन तक नहीं सकता।” फिर उन्होंने मुझे अस्पताल भेज दिया, जाँच के बाद पता चला कि मेरा दिल 240 बीपीएम पर धड़क रहा था और मुझे दिल का दौरा पड़ा था। मुझे अस्पताल में भर्ती किया गया, ऑक्सीजन मास्क लगाया और एक कार्डियोटॉनिक दवा की सूई भी लगाई। मैं चार दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहा और चूँकि पुलिस को चिंता थी कि मैं भागने की कोशिश करूँगा, उन्होंने बिस्तर से मेरे हाथ बांध दिए और दरवाजे पर दो सशस्त्र सुरक्षाकर्मी बिठा दिए। चौथे दिन रात को वो मुझे वापस नजरबंदी केंद्र लेकर गए। कई अधिकारियों ने मेरी हालत के बारे में पूछा, जिसका जवाब मेरे साथ आए अधिकारी ने सिर हिलाकर दिया और कहा, “इसका तो किस्सा ही खत्म समझो, ये किसी काम का नहीं।” मुझे याद आया जो मैंने दूसरे कैदियों से सुना था कि गंभीर चोट वाले या बीमार कैदियों को करीब दस दिन तक हिरासत में रखने के बाद रिहा किया जा सकता है। मैंने सोचा कि मैं बहुत बीमार हूँ, तो शायद मुझे ज्यादा समय तक हिरासत में नहीं रखा जाएगा और शायद परमेश्वर मेरे लिए कोई रास्ता खोल रहा है। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की और कहा कि मैं अपनी बीमारी उसके हाथों सौंपने को तैयार हूँ। चाहे मैं जिंदा रहूँ या मर जाऊँ, चाहे मैं कैद में रहूँ या रिहा हो जाऊँ, मैं उसकी संप्रभुता और व्यवस्थाओं के आगे समर्पण करने के लिए तैयार हूँ। अगले कुछ दिनों तक मैं भयंकर पीड़ा में पूरे दिन अपने बिस्तर पर लेटा रहा और जेल के साथियों ने एक हफ्ते तक बारी-बारी से मेरी देखभाल की। मैं जानता था कि परमेश्वर ने मेरी मदद के लिए लोगों, घटनाओं और चीजों का आयोजन और व्यवस्था की थी और मैं लगातार उसका धन्यवाद करता रहा! क्योंकि मुझे दिल की गंभीर बीमारी थी और मेरी साँसें कभी भी बंद हो सकती थीं, तो नजरबंदी केंद्र के अधिकारियों को चिंता थी कि अगर मैं कैद में मर गया तो वे इसके लिए जिम्मेदार होंगे, तो उन्होंने उनतीस दिनों की हिरासत के बाद मेरी पत्नी को बुलाया ताकि मेरी जमानत की व्यवस्था की जा सके और मुझे रिहा करके घर भेज दिया। मुझे याद है कि जब मैं जा रहा था तो डिप्टी डायरेक्टर ने मुझे चेतावनी दी, “हमने तुम्हें रिहा तो कर दिया है, मगर तुम अभी भी हमारे नियंत्रण में हो। तुम्हारी पत्नी ने तुम्हारी जमानत दी है। अगर आगे से तुमने किसी विश्वासी से कोई संपर्क किया, तो अगली बार तुम्हें और तुम्हारी पत्नी, दोनों को गिरफ्तार कर लेंगे। अब से तुम हर महीने लोकल पुलिस थाने में रिपोर्ट करने आओगे।” उस समय मैंने कुछ नहीं कहा और बस यही सोचा, “तुम मुझ पर निगरानी रख सकते हो और मुझे काबू में कर सकते हो, मगर परमेश्वर का अनुसरण करने वाले मेरे दिल को काबू में नहीं कर सकते। मैं रिहा होने के बाद भी परमेश्वर में विश्वास रखता रहूँगा।”
नजरबंदी केंद्र से रिहा होने के बाद, मेरी बीमारी बद से बदतर होती गई और दौरे लगातार बढ़ते गए। जब भी मुझे दौरा पड़ता, दर्द मेरे दिल से लेकर मेरी पीठ तक और मेरी रीढ़ से सिर तक फैल जाता। मेरा सिरदर्द इतना बुरा हो जाता कि ऐसा लगता जैसे कोई मेरे सिर पर शिकंजा कस रहा हो और मेरे कान फैक्ट्री की मशीन से भी ज्यादा तेज बजने लगते। मेरे दिल में बहुत ज्यादा जकड़न हो जाती मानो उसे रस्सी से बाँध दिया गया हो और साँस लेना मुश्किल हो जाता। मुझे केवल गहरी, धीमी साँस लेने से ही कुछ राहत मिल पाती थी। अगर दौरे अपने आप बेहतर नहीं होते, तो मुझे सुई लेने के लिए अस्पताल जाना पड़ता। मैं कोई शारीरिक काम नहीं कर पा रहा था और पानी की बाल्टी भी उठाना मेरे दिल के लिए बहुत भारी काम था। साथ ही, लंबे समय तक दवाई लेने के कारण मेरे पेट में बहुत गंभीर समस्या आ गई। मैं कमोवेश एक अपंग बन गया था और थोड़ा-सा भी काम नहीं कर पाता था। इसके अलावा, चिकित्सा बिलों ने मेरे परिवार पर बहुत ज्यादा दबाव डाला और जीवन को बेहद मुश्किल बना दिया। जब भी मैं सोचता कि कैसे एक पुरुष होने के नाते मैं काम करने और अपने परिवार के लिए पैसे जुटाने में असमर्थ था, अपने परिवार पर बोझ बन गया था, और कैसे मुझे हर दिन बीमारी की पीड़ा और यातना से गुजरना पड़ता था, तो मुझे बहुत ज्यादा पीड़ा और दुख होता। जब भी मैं इस तरह से पीड़ित होता, तो मैं अय्यूब और पतरस के अनुभवों के बारे में सोचता। मैंने परमेश्वर के वचनों का यह अंश पढ़ा : “तुम अय्यूब के परीक्षणों से गुजरते हो, और साथ ही, तुम पतरस के परीक्षणों से भी गुजरते हो। जब अय्यूब की परीक्षा ली गई, तो उसने गवाही दी, और अंत में, यहोवा उसके सामने प्रकट हुआ। गवाही देने के बाद ही वह परमेश्वर का चेहरा देखने योग्य हुआ था। यह क्यों कहा जाता है : ‘मैं गंदगी की भूमि से छिपता हूँ, लेकिन खुद को पवित्र राज्य को दिखाता हूँ’? इसका मतलब यह है कि जब तुम पवित्र होते हो और गवाही देते हो, केवल तभी तुम्हें परमेश्वर का चेहरा देखने का गौरव प्राप्त हो सकता है। अगर तुम उसके लिए गवाह नहीं बन सकते, तो तुम्हें उसका चेहरा देखने का गौरव प्राप्त नहीं होगा। अगर तुम शोधनों का सामना करने से पीछे हट जाते हो या परमेश्वर के विरुद्ध शिकायतें करते हो, और इस प्रकार परमेश्वर का गवाह बनने में विफल हो जाते हो और शैतान की हँसी के पात्र बन जाते हो, तो तुम्हें परमेश्वर के दर्शन प्राप्त नहीं होंगे। अगर तुम अय्यूब की तरह हो, जिसने परीक्षणों के बीच अपनी ही देह को धिक्कारा और परमेश्वर के विरुद्ध शिकायत नहीं की, और अपने शब्दों से शिकायत या पाप किए बिना अपनी ही देह का तिरस्कार करने में समर्थ हुआ, तो तुम गवाह बनोगे। जब तुम एक निश्चित मात्रा तक शोधनों से गुजरते हो और फिर भी अय्यूब की तरह हो सकते हो, परमेश्वर के सामने सर्वथा समर्पित हो सकते हो और उससे कोई अन्य अपेक्षा नहीं रखते या अपनी धारणाएँ नहीं रखते, तब परमेश्वर तुम्हें दिखाई देगा” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करके मुझे एहसास हुआ कि भले ही सीसीपी की यातना ने मुझे पंगु और बीमार कर दिया, परमेश्वर इस परिवेश का इस्तेमाल मेरी आस्था और प्रेम को पूर्ण करने के लिए कर रहा था। वह देखना चाहता था कि क्या मैं इस आयोजन और व्यवस्था के प्रति समर्पित हो पाऊँगा या नहीं, और इस शोधन के जरिये उसके प्रति अपनी गवाही में दृढ़ रह पाऊँगा या नहीं। जब अय्यूब ने परीक्षणों का सामना किया, अपनी सारी संपत्ति खो दी, अपने बच्चों को एक ही दिन में मरते हुए देखा और बाद में उसका पूरा शरीर फोड़े-फुंसियों से भर गया, तब भी उसने परमेश्वर का भय माना, इतनी पीड़ा और कठिनाई का सामना करने के बाद भी, उसने कभी परमेश्वर के बारे में शिकायत नहीं की और यहाँ तक कि परमेश्वर के नाम की स्तुति भी की। फिर पतरस ने भी सैकड़ों परीक्षणों का सामना किया, मगर कभी भी परमेश्वर में अपनी आस्था नहीं खोई और आखिरकार परमेश्वर के लिए क्रूस पर उल्टा लटकाया गया, अपनी आखिरी साँस तक परमेश्वर के प्रति समर्पित रहा। वे जिस पीड़ा, परीक्षण और शोधन से गुजरे थे, वह उससे कई गुणा ज्यादा था जिससे मैं गुजर रहा था, मगर फिर भी उन्होंने कभी परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह या विरोध नहीं किया, और चाहे उन्हें आशीष मिले या दुर्भाग्य का सामना करना पड़ा, वे बिना किसी शिकायत के अपनी मर्जी से उसके सामने समर्पण करने में सक्षम थे। मैं उनकी तरह बनने को तैयार था, चाहे मुझे कितनी भी बड़ी पीड़ा और शोधन का सामना करना पड़े, मैं परमेश्वर के बारे में शिकायत करने से दूर रहता। मैं परमेश्वर के प्रति अपनी गवाही में दृढ़ता से खड़ा रहता।
इस उत्पीड़न और गिरफ्तारी के अनुभव से गुजरने के बाद, मैं सीसीपी के राक्षसी, सत्य से घृणा और परमेश्वर से घृणा करने वाले सार को स्पष्ट रूप से देख पाया। वे वैसे ही हैं जैसा परमेश्वर कहता है : “यह सहअपराधियों का गिरोह! वे भोग में लिप्त होने के लिए मनुष्यों के देश में उतरते हैं और हंगामा करते हैं, और चीज़ों में इतनी हलचल पैदा कर देते हैं कि दुनिया एक चंचल और अस्थिर जगह बन जाती है और मनुष्य का दिल घबराहट और बेचैनी से भर जाता है, और उन्होंने मनुष्य के साथ इतना खिलवाड़ किया है कि उसका रूप उस क्षेत्र के एक अमानवीय जानवर जैसा अत्यंत कुरूप हो गया है, जिससे मूल पवित्र मनुष्य का आखिरी निशान भी खो गया है। इतना ही नहीं, वे धरती पर संप्रभु सत्ता ग्रहण करना चाहते हैं। वे परमेश्वर के कार्य को इतना बाधित करते हैं कि वह मुश्किल से बहुत धीरे आगे बढ़ पाता है, और वे मनुष्य को इतना कसकर बंद कर देते हैं, जैसे कि तांबे और इस्पात की दीवारें हों। इतने सारे गंभीर पाप करने और इतनी आपदाओं का कारण बनने के बाद भी क्या वे ताड़ना के अलावा किसी अन्य चीज की उम्मीद कर रहे हैं?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (7))। हमें परमेश्वर ने बनाया है, तो परमेश्वर में विश्वास रखना और उसकी आराधना करना बिल्कुल स्वाभाविक और उचित है, मगर सीसीपी विश्वासियों को सताने और गिरफ्तार करने के लिए अपना हर पैंतरा आजमाती है, परमेश्वर को धोखा देकर उन्हें अपना अनुसरण करने को मजबूर करती है, और परमेश्वर की रची इस मानवजाति पर काबू पाने के सपने देखती है। कितना शर्मनाक है! अंत में इन राक्षसों को परमेश्वर द्वारा शापित और दंडित किया जाएगा! अपने अनुभव के दौरान, मैंने परमेश्वर के चमत्कारी कर्मों, उसकी सर्वशक्तिमत्ता और संप्रभुता को भी देखा। जब भी मुझे ऐसा लगता कि मैं उनकी यातना और अत्याचार से होने वाली पीड़ा को सहन नहीं कर सकता, तो मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता और उस पर भरोसा करता था जिससे मेरे शरीर की पीड़ा कम हो जाती। जब मैं दुखी और नकारात्मक हो गया था, तो परमेश्वर के वचनों ने मुझे मजबूत बनने और मौत के आगे बेबस न होने का मार्गदर्शन दिया। परमेश्वर ने मेरी मदद के लिए लोगों, घटनाओं और चीजों को आयोजित और व्यवस्थित किया, जिससे मुझे महसूस हुआ कि वह मेरे साथ है, मेरी कमजोरियों पर दया कर रहा है। यह सब मेरे लिए परमेश्वर का प्रेम था और अब मुझे परमेश्वर में पहले से कहीं अधिक आस्था है।