74. दूसरों की मदद और सलाह किस ढंग से लें

ज़ियाओक्सुआन, चीन

31 दिसंबर 2022, शनिवार, धूप खिली है।

समय ऐसे ही गुजर गया। मुझे वीडियो के काम के लिए सुपरवाइजर बने दो महीने बीत गए और पता भी नहीं चला। मुझे लगता है कि मैंने हाल ही में बहुत कुछ हासिल किया है। चाहे मेरे भाई-बहनों की अवस्थाएँ सुलझाने की बात हो या काम की समस्याओं पर संगति करने की, मुझे लगता है कि मैं ज्यादा से ज्यादा सहज होती जा रही हूँ। ऐसा लगता है कि मुझमें कुछ काबिलियत है और मैं इस काम के लिए तैयार हूँ। ओह, वैसे कल नया साल है और ली रैन को कुछ देखने के लिए कुछ दिनों के लिए घर वापस जाना है। वह लंबे समय से सुपरवाइजर है और हमेशा मेरी मदद करती रही है। लेकिन अब जब मैं कुछ महीनों से अभ्यास कर रही हूँ तो मुझे लगता है कि उसके बिना भी मैं काम सँभाल सकती हूँ। भाई-बहन हाल ही में जो वीडियो बना रहे हैं, वे मानक के अनुरूप नहीं हैं और वे नकारात्मक हो गए हैं। मुझे जल्द से जल्द संगति करते हुए उन्हें पत्र लिखना होगा। मुझे उम्मीद है कि वे परमेश्वर के इरादे समझ पाएँगे और अपनी नकारात्मक अवस्थाओं से बच पाएँगे।

2 जनवरी 2023, सोमवार, आसमान में बादल छा रहे हैं।

आज मुझे कुछ भाई-बहनों से पत्र मिले, जिनमें कहा गया है कि हमारी संगति से वाकई उन्हें मदद मिली है और वे आगे बढ़कर अपना कौशल सुधारने और अपना कर्तव्य ठीक से करने के लिए तैयार हैं। इन पत्रों को पढ़कर मुझे बहुत खुशी हुई और मैंने सोचा, “देखो, मैं वाकई कुछ वास्तविक समस्याएँ सुलझा सकती हूँ।” और मैंने अपनी पीठ थपथपाई। ली रैन आज शाम वापस आई। उसने मुझसे पूछा कि पिछले कुछ दिनों में काम कैसा चला और मुझे याद दिलाया, “सिर्फ सभी की अवस्थाएँ सुलझाना ही काफी नहीं है, हमें तकनीकों और सिद्धांतों पर उनके साथ संगति करने की भी जरूरत है, वरना वे गुणवत्ता वाले वीडियो नहीं बना पाएँगे।” मैं उसकी बातों से सहमत थी, लेकिन उसके भौंहें सिकोड़ने और असंतुष्ट लहजे ने मुझे बेचैन कर दिया, “क्या तुमने नहीं देखा कि मैंने अभी कुछ अच्छा किया है? तुम इस छोटी सी गलती पर क्यों सवाल उठाती रहती हो?” कई बार उसे यह कहते हुए सुनने के बाद कि “तुम लोगों की अवस्थाएँ सुलझा कर पल्ला नहीं झाड़ सकतीं”, मैं वाकई असहज होने लगी, मानो ऐसा करने का मतलब है कि मेरा IQ बहुत कम है। “मैं भी सोच-समझकर काम करती हूँ। तुम विचारहीनता के क्षण में हुई गलती उजागर कर रही हो। क्या तुम मुझे बुरा दिखाने की कोशिश कर रही हो? ऐसा लगता है कि पिछले कुछ दिनों में मैंने जो काम किया है, उसकी कोई कीमत नहीं है।” ली रैन अभी भी मेरे काम की समस्याओं का सारांश दे रही थी, लेकिन मैं सुनते नहीं रहना चाहती थी और मैंने उस पर पलटवार किया, “ठीक है, अगर तुम्हारे पास इतने ही विचार हैं तो तुम सीधे आकर मुझे क्यों नहीं बताती कि क्या करना है?” ली रैन एक पल के लिए स्तब्ध रह गई और चीजें अजीब सी हो गईं। मुझे एहसास हुआ कि मैंने यह कहकर उसे शर्मिंदा कर दिया है, इसलिए मैंने परमेश्वर से एक मौन प्रार्थना की, और उससे मुझे शांत करने और अपनी भावनाओं के हिसाब से आचरण न करने में मदद करने के लिए कहा। हमारी चर्चा पूरी होने के बाद मैंने सोचा, “ली रैन जो कह रही थी, उसमें वह गलत नहीं थी, लेकिन जब मैंने यह सुना तो भी मैं इसे स्वीकारना नहीं चाहती थी। यह भ्रष्ट स्वभाव दर्शाता है, लेकिन मैं इसे कैसे सुलझाऊँ?”

5 जनवरी 2023, गुरुवार, बादल छाए हुए हैं।

आज ली रैन ने मुझसे पूछा कि हाल में मेरी अवस्था कैसी रही है। मैंने कहा, “ठीक है, बस थोड़ी ऊर्जा कम है और नींद आ रही है।” जैसे ही मैंने यह कहा, उसने जवाब दिया, “तुम्हें नींद क्यों आ रही है? क्या तुम्हें अपने कर्तव्य के प्रति अपने रवैये पर आत्म-चिंतन करने की जरूरत नहीं है? तुम कहती हो कि तुम्हारी अवस्था ठीक है, लेकिन अगर तुम्हारी अवस्था सामान्य है तो तुम्हें अपनी जिम्मेदारी वाले काम में कोई नतीजा क्यों नहीं मिल रहा है? तुम्हारा सबसे हालिया वीडियो भी अभी तक नहीं बना है तो तुम अपना सारा समय कहाँ खर्च कर रही हो?” इसके बाद ली रैन ने मेरे साथ संगति करते हुए कर्तव्य में लापरवाह अवस्था में रहने के बारे में अपना अनुभव बताया। मुझे लगा कि मेरे साथ अन्याय हुआ है और मैं बहुत कुछ कहना चाहती थी, “क्या मैं लापरवाह हो रही हूँ? नहीं। मैंने पहले ही अपना लापरवाह व्यवहार पहचान लिया है और उसे सुधारने लगी हूँ तो फिर भी तुम्हें क्यों लगता है कि मैं ऐसा व्यवहार कर रही हूँ? मुझे नतीजे नहीं मिलने का कारण यह नहीं है कि मैं अपने कर्तव्यों में चौकस नहीं हूँ, मैं अपने काम में वाकई तत्परता की भावना रखती हूँ और ऐसा नहीं है कि मैं शोध का हिस्सा छोड़ देती हूँ, है न? तुम मेरी समस्याएँ उठाती रहती हो और उन्हें बड़ा मुद्दा बनाती हो। तुम मेरी प्रगति क्यों नहीं देखती? क्या तुम मुझसे परिपूर्ण होने की उम्मीद करती हो?” ली रैन की संगति के बाद शाशा ने भी यही बताया कि कैसे वह लापरवाह थी और उसने अपने कर्तव्यों में कोई जिम्मेदारी नहीं समझी। सच तो यह है कि मैंने भी कुछ ऐसे ही व्यवहार दिखाए जिनका उसने जिक्र किया था, लेकिन मैं इसे स्वीकारना नहीं चाहती थी और मैंने पलटकर कहा, “मझे लगता है कि मैं हाल ही में अपना कर्तव्य बहुत अच्छे से निभा रही हूँ। मैंने अपने कर्तव्यों में खुद को लापरवाह होते नहीं देखा, जैसा कि तुम कह रही हो, लेकिन मैं प्रार्थना और आत्म-चिंतन करूँगी, ठीक है?” मैं मन में बहुत प्रतिरोधी महसूस कर रही थी, और मुझे एहसास हुआ कि यह अवस्था वाकई बहुत खराब थी, इसलिए मैंने मौन प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मेरे दिल पर नजर रखो। चाहे कोई भी हो, जब तक वे सत्य के अनुसार बोलते हैं, मुझे सुनना चाहिए। मैं अब अपनी बहनों की रचनात्मक आलोचना के प्रति प्रतिरोधी महसूस नहीं करना चाहती।”

6 जनवरी, 2023, शुक्रवार, बादल और धूप छाई है।

कल रात को बेनकाब हुई अपनी अवस्था के बारे में सोचकर मेरा दिल अभी भी भारी हो रहा है। “मैं इतनी गुस्सैल क्यों हूँ? मैं दूसरों को मेरी समस्याओं के बारे में बताते हुए क्यों नहीं सुन पाती? यह किस तरह का स्वभाव है? जब भी कोई मेरे बारे में कुछ कहता है तो मैं गुस्से में भड़क जाती हूँ। मैं इस तरह अपना कर्तव्य कैसे निभा सकती हूँ या दूसरों के साथ कैसे सहयोग कर सकती हूँ?” आज सुबह, मैंने एक अनुभवात्मक वीडियो देखा जिसका शीर्षक है “काट-छाँट को किस ढंग से लें।” इसमें परमेश्वर के वचन का एक अंश था जिसने मुझे सचमुच प्रभावित किया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “जब मसीह-विरोधियों की काट-छाँट की जाती है, तो सबसे पहले वे उसका विरोध करते हैं और उसे दिल की गहराई से नकार देते हैं। वे उससे लड़ते हैं। और ऐसा क्यों करते हैं? ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि मसीह-विरोधियों का प्रकृति सार सत्य से विमुख और उससे घृणा करने वाला होता है और वे सत्य जरा-भी नहीं स्वीकारते। स्वाभाविक-सी बात है कि एक मसीह-विरोधी का सार और स्वभाव उन्हें अपनी गलतियों को मानने या अपने भ्रष्ट स्वभाव को स्वीकारने से रोकता है। इन दो तथ्यों के आधार पर, काट-छाँट किए जाने के प्रति एक मसीह-विरोधी का रवैया उसे पूरी तरह से नकारने और अवज्ञा करने का होता है। वे दिल की गहराइयों से इससे घृणा और इसका विरोध करते हैं, उनमें जरा-सा भी स्वीकृति या समर्पण का भाव नहीं होता, तो सच्चे आत्मचिंतन या पश्चात्ताप की तो बात ही दूर है। जब किसी मसीह-विरोधी की काट-छाँट की जाती है, तो यह किसने किया है, यह किससे संबंधित है, उस मामले के लिए वह किस हद तक जिम्मेदार है, उसकी भूल कितनी स्पष्ट है, उसने कितनी बुराई की है या कलीसिया के कार्य के लिए उसकी बुराई से क्या परिणाम पैदा होते हैं—मसीह-विरोधी इनमें से किसी बात पर कोई विचार नहीं करता। एक मसीह-विरोधी के लिए, उसकी काट-छाँट करने वाला बस उसी के पीछे पड़ा है या जानबूझकर उसका उत्पीड़न करने के लिए उसमें दोष ढूँढ़ रहा है। मसीह-विरोधी तो यह तक सोच सकता है कि उसे धमकाया और अपमानित किया जा रहा है, उसके साथ इंसान की तरह व्यवहार नहीं किया जा रहा, उसे नीचा दिखाकर उसका उपहास किया जा रहा है। मसीह-विरोधी काट-छाँट के बाद भी, इस बात पर कभी विचार नहीं करते कि उन्होंने आखिर क्या गलती की है, उन्होंने क्या भ्रष्ट स्वभाव प्रकट किया, और क्या उन्होंने उन सिद्धांतों की खोज की है, जिसके अनुसार उन्हें चलना चाहिए, क्या उन्होंने सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य किया या उस मामले में अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी कीं, जिनमें उनकी काट-छाँट की गई। वे इनमें से किसी की भी न तो जाँच या आत्म-चिंतन करते हैं, न ही इन मुद्दों पर वे सोच-विचार या मंथन करते हैं। बल्कि, वे काट-छाँट से अपनी मनमर्जी और गुस्सैल दिमाग से पेश आते हैं। जब भी किसी मसीह-विरोधी की काट-छाँट की जाती है, तो वह क्रोध, अवज्ञा और असंतोष से भर जाता है और किसी की सलाह नहीं मानता। वह अपनी काट-छाँट को स्वीकार नहीं पाता, वह अपने बारे में जानने और आत्म-चिंतन करने, और अनमना या अपना कर्तव्य निरंकुशता से करने जैसी सिद्धांतों का उल्लंघन करने वाली हरकतों का समाधान करने के लिए कभी परमेश्वर के सामने नहीं आता, न ही वह इस अवसर का उपयोग अपने भ्रष्ट स्वभाव को दूर करने के लिए करता है। इसके बजाय, वह अपना बचाव करने के लिए, खुद को निर्दोष साबित करने के लिए बहाने ढूँढ़ता है, यहाँ तक कि वह कलह पैदा करने वाली बातें कहकर लोगों को उकसाता है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद बारह : जब उनके पास कोई रुतबा नहीं होता या आशीष पाने की आशा नहीं होती तो वे पीछे हटना चाहते हैं)। परमेश्वर के वचन कहते हैं कि चूँकि मसीह-विरोधी सत्य से विमुख होते हैं, जब उनकी काट-छाँट की जाती है या जब दूसरे उनकी समस्याएँ बताते हैं तो वे इसका दृढ़ता से इसका विरोध करते हैं। वे कभी भी अपनी समस्याओं पर आत्म-चिंतन नहीं करते हैं और हमेशा चीजों को सँभालने के लिए अपनी उग्रता पर भरोसा करते हैं, और यहाँ तक कि उनके दिल में भ्रांतियाँ भरी होती हैं, कहते हैं कि दूसरे उनकी काट-छाँट कर रहे हैं क्योंकि वे उन्हें नीचा समझते हैं और अपमानित करना चाहते हैं। उनके मन में दूसरों के लिए शिकायतें भरी होती हैं। तुलनात्मक रूप से मेरा और मसीह-विरोधियों का व्यवहार एक जैसा था। ली रैन ने बताया कि मैं मुद्दे सुलझाते समय मुख्य बिंदु नहीं समझ पा रही थी और मैंने पेशेवर या तकनीकी मामलों पर पर्याप्त संवाद नहीं किया। यह वाकई ध्यान देने लायक मुद्दे थे। यह सच था कि भाई-बहनों में पेशेवर कौशल और सिद्धांतों की समझ कम थी, जिसका मतलब था कि उनके वीडियो पर हमेशा फिर से काम करना पड़ता था और यह समस्या वाकई मेरी लापरवाही से पैदा हुई थी। ली रैन द्वारा सुझाव देने के बाद से ही मुझे तुरंत यह चूक सुधारने करने के बारे में चर्चा करनी चाहिए थी, लेकिन क्योंकि मैं उसका लहजा बर्दाश्त नहीं कर पाई जिसका इस्तेमाल उसने मेरी समस्याएँ बताते समय किया था, मुझे लगा कि वह मुझे अपमानित करने और नीचा दिखाने की कोशिश कर रही है, इसलिए मैं अपनी असंतुष्टि जाहिर करने से खुद को रोक नहीं पाई। उसके बाद मैं उसकी कोई बात नहीं सुनना चाहती थी या उसकी बताई समस्याएँ नहीं पहचानना चाहती थी। मुझे लगा कि वह मुझे नीची नजरों से देख रही है और मुझे अपमानित करने और नीचा दिखाने की कोशिश कर रही है। मैं जो बेनकाब कर रही थी क्या वह उन लोगों के व्यवहार की तरह ही शर्मनाक नहीं था जो सत्य नहीं स्वीकारते और लगातार तर्कहीन ढंग से हास्यास्पद तर्क देते हैं? जो लोग वाकई सत्य से प्रेम करते हैं और समझदार होते हैं, वे काट-छाँट होने और उनकी समस्याएँ बताने को स्वीकृति के रवैये से लेते हैं। वे इन विचलनों को जल्द से जल्द सुलझाने के लिए आत्म-चिंतन करने और सत्य खोजने में सक्षम होते हैं। भले ही वे उस समय इन बातों को पहचान न पाएँ, लेकिन वे अपना आपा नहीं खोते या दूसरों की आलोचनाएँ पलटने की कोशिश में बेतुके तर्क नहीं देते रहते हैं। हालाँकि जब मेरी बहन ने मुझे काम के लिए फायदेमंद कुछ सुझाव दिए तो न सिर्फ मैं उन्हें नकार रही थी, बल्कि मुझे लगा कि वह मुझे अपमानित करने और नीचा दिखाने की कोशिश कर रही है। मेरी समझ बेतुकी और अनुचित थी और मैंने परमेश्वर से प्रार्थना नहीं की या खुद के खिलाफ विद्रोह नहीं किया। इसके बजाय मैंने अपनी बहन को शर्मिंदा करने के लिए शिकायतें कीं और असंतोष दिखाया। मैं तीखे स्वर में बोल रही थी और किसी को भी मेरी परवाह करने या पास फटकने नहीं दे रही थी। यह ऐसा स्वभाव दर्शाता है जो सत्य के प्रति विमुख है और क्रूरता से भरा हुआ है। अगर मैंने इसे नहीं सुधारा तो परमेश्वर पक्का मुझे ठुकराकर निकाल देगा!

मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया जो मैंने पढ़ा था : “हालाँकि, आज, बहुत से लोग कर्तव्य करते हैं, लेकिन कम ही लोग सत्य का अनुसरण करते हैं। बहुत कम लोग अपने कर्तव्य करने के दौरान सत्य का अनुसरण करते हुए सत्य वास्तविकता में प्रवेश करते हैं; अधिकांश लोगों के काम करने के तरीके में कोई सिद्धांत नहीं होते, वे अब भी सच्चाई से परमेश्वर के प्रति समर्पण नहीं करते; वे केवल यह दावा करते हैं कि उन्हें सत्य से प्रेम है, सत्य का अनुसरण करने और सत्य के लिए प्रयास करने के इच्छुक हैं, लेकिन पता नहीं उनका यह संकल्प कितने दिनों तक टिकेगा। जो लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते, उनका भ्रष्ट स्वभाव किसी भी समय या स्थान पर बाहर आ सकता है। उनमें अपने कर्तव्य के प्रति किसी जिम्मेदारी की भावना नहीं होती, वे अक्सर अनमने होते हैं, मनमर्जी से कार्य करते हैं, यहाँ तक कि काट-छाँट भी स्वीकार करने में अक्षम होते हैं। जैसे ही वे नकारात्मक और कमजोर होते हैं, वे अपने कर्तव्य त्यागने में प्रवृत्त हो जाते हैं—ऐसा अक्सर होता रहता है, यह सबसे आम बात है; सत्य का अनुसरण न करने वाले लोगों का व्यवहार ऐसा ही होता है। और इसलिए, जब लोगों को सत्य की प्राप्ति नहीं होती, तो वे भरोसेमंद और विश्वास योग्य नहीं होते। उनके भरोसेमंद न होने का क्या मतलब है? इसका मतलब यह है कि जब उन्हें कठिनाइयों या असफलताओं का सामना करना पड़ता है, तो बहुत संभव है कि वे गिर पड़ें, और नकारात्मक और कमजोर हो जाएँ। जो व्यक्ति अक्सर नकारात्मक और कमजोर हो जाता है, क्या वह भरोसेमंद होता है? बिल्कुल नहीं। लेकिन जो लोग सत्य समझते हैं, वे अलग ही होते हैं। जो लोग वास्तव में सत्य की समझ रखते हैं, उनके अंदर परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय, परमेश्वर के प्रति समर्पण वाला हृदय होता है, और जिन लोगों में परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय होता है, केवल वही लोग भरोसेमंद होते हैं; जिनमें परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय नहीं होता, वे लोग भरोसेमंद नहीं होते। जिनमें परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय नहीं होता, उनके प्रति कैसा रवैया अपनाया जाना चाहिए? उन्हें प्रेमपूर्वक सहायता और सहारा देना चाहिए। जब वे कर्तव्य कर रहे हों, तो उनका अधिक अनुवर्तन करना चाहिए, और उन्हें अधिक मदद और निर्देश दिए जाने चाहिए; तभी वे अपना कार्य प्रभावी ढंग से कर पाएँगे। और ऐसा करने का उद्देश्य क्या है? मुख्य उद्देश्य परमेश्वर के घर के काम को बनाए रखना है। दूसरा मकसद है समस्याओं की तुरंत पहचान करना, तुरंत उनका पोषण करना, उन्हें सहारा देना, या उनकी काट-छाँट करना, भटकने पर उन्हें सही मार्ग पर लाना, उनके दोषों और कमियों को दूर करना। यह लोगों के लिए फायदेमंद है; इसमें दुर्भावनापूर्ण कुछ भी नहीं है(वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (7))। परमेश्वर के वचनों पर विचार करने से मुझे एहसास हुआ कि भाई-बहन इसलिए समस्याएँ और गलतियाँ नहीं बताते क्योंकि वे द्वेषपूर्ण हैं या लोगों की कमियाँ उजागर करके उनका उपहास करने और नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं, बल्कि इसलिए बताते हैं क्योंकि वे कलीसिया के काम के लिए जिम्मेदार हैं और हर किसी का भ्रष्ट स्वभाव है, जो भरोसे के लायक नहीं है और अनजाने में बुराई करने, व्यक्तिगत इच्छाओं के आधार पर काम करके सिद्धांतों का उल्लंघन करने, कर्तव्यों में लापरवाह होने और कलीसिया के काम में देरी करने और उसे बाधित करने में सक्षम है, जिसके गंभीर नतीजे हो सकते हैं। ऐसा कहा जाता है कि “जब लोग भटक जाते हैं तो उन्हें डर लगता है कि कोई उनका मार्गदर्शन नहीं करेगा।” जब लोगों के आस-पास कोई ऐसा व्यक्ति होता है जो अक्सर उनकी मदद करता है या उनके कर्तव्यों में उनकी काट-छाँट करता है तो यह उनके लिए एक बड़ी मदद और सुरक्षा होती है। आम तौर पर जब मैं काम की कोई मद जाँचती हूँ और चूक या विचलन देखती हूँ तो मैं उन्हें बताती हूँ और लोगों को उनकी गंभीरता और नतीजों से अवगत कराती हूँ। मैं ऐसा इसलिए करती हूँ क्योंकि मैं चाहती हूँ कि लोग अपने कर्तव्य ठीक से निभाएँ और काम में चूक और देरी से बचें। ली रैन इन्हीं वजहों से मेरी समस्याएँ बता रही थी। एक तरह से यह मुझे अच्छे नतीजे पाने में मदद करने के लिए था, लेकिन यह प्रेम और जिम्मेदारी की भावना से मेरे ही भले के लिए किया गया था। मुझे प्रतिरोध महसूस नहीं करना या गुस्सा नहीं करना चाहिए था; उस पर चिल्लाना तो बिल्कुल नहीं चाहिए था। ठीक वैसे ही जैसे शुरुआत में जब वीडियो मानक के अनुसार नहीं थे, ऐसा खासकर इसलिए था क्योंकि लोग तकनीकी सिद्धांत नहीं समझते थे। मैं इस समस्या से अनजान थी और जब उसने इसके बारे में बताया तो मुझे कुछ कौशल सीखने के लिए इन गलतियों का सारांश देने में सभी का मार्गदर्शन करना चाहिए था, लेकिन मैंने कभी आत्म-चिंतन नहीं किया या अपनी समस्याओं का सारांश नहीं दिया और बस उस पर चिल्ला पड़ी। मेरा व्यवहार किस तरह से उचित था? मैंने खुद से कहा कि भविष्य में मुझे दूसरों द्वारा मेरी समस्याएँ बताने पर उन्हें स्वीकारना चाहिए और अब इसके प्रति प्रतिरोधी महसूस नहीं करना चाहिए।

7 जनवरी, 2023, शनिवार, धूप खिली है।

आज एक अगुआ हमारी सभा में आया और उसने हमारे काम के दौरान हुए कुछ विचलन पकड़े। उदाहरण के लिए कुछ भाई-बहनों के बीच एक वीडियो को लेकर विवाद था और हमने यह समस्या नहीं सुलझाई, बस कुछ सुझाव दिए और उन्हें आगे बढ़ने दिया, नतीजा यह हुआ कि वीडियो मानक के अनुरूप नहीं बना, जिससे काम में देरी हुई। अगुआ ने वास्तविक काम न करने के लिए हमें उजागर किया और हमारी आलोचना भी की। एक-एक करके यह सभी समस्याएँ सुनकर मैं वाकई असहज होने लगी और मुझे एहसास हुआ कि मैं कितनी स्तब्ध हो गई थी। अगुआ जो समस्याएँ बता रहा था, वे वही थीं जो ली रैन ने मुझे बताई थीं। लेकिन क्योंकि मैं सुनना नहीं चाहती थी और उन्हें गंभीरता से नहीं लिया था तो वे अनसुलझी रह गईं। अगर मैं तब उसकी चेतावनियाँ स्वीकार कर पाती और उसके साथ विस्तार से चर्चा करती और समाधान का रास्ता तलाशती तो शायद ये समस्याएँ सुलझ जातीं और थोड़ा सुधार हो जाता या कम से कम काम इतनी भयानक अवस्था में नहीं पहुँचता।

14 मार्च 2023, मंगलवार, घने बादल छाए हैं और धूप खिली है।

अपनी भक्ति के दौरान मैंने अपने सत्य के प्रति विमुख स्वभाव के बारे में परमेश्वर के कुछ वचन पढ़े और मैं इस समस्या की गंभीरता के बारे में और अधिक जागरूक हो गई। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “कलीसिया में ऐसे लोग हैं जो सोचते हैं कि बड़ा प्रयास करने या कुछ जोखिम भरे काम करने का मतलब है कि उन्होंने योग्यता अर्जित कर ली है। तथ्यतः, अपने कार्यों के अनुसार वे वास्तव में प्रशंसा के योग्य हैं, लेकिन सत्य के प्रति उनका स्वभाव और रवैया घृणित और बिल्कुल अस्वीकार्य है। ... परमेश्वर लोगों की तुच्छ क्षमता को नापसंद नहीं करता, वह उनकी मूर्खता को नापसंद नहीं करता, और वह इस बात को भी नापसंद नहीं करता कि उनके स्वभाव भ्रष्ट हैं। लोगों में वह क्या चीज है, जिससे परमेश्वर सबसे ज्यादा नापसंद करता है? वह है उनका सत्य से विमुख होना। अगर तुम सत्य से विमुख हो, तो केवल इसी एक कारण से, परमेश्वर कभी भी तुमसे खुश नहीं होगा। यह बात पत्थर की लकीर है। अगर तुम सत्य से विमुख हो, अगर तुम सत्य से प्रेम नहीं करते, अगर सत्य के प्रति तुम्हारा रवैया परवाह न करने वाला, तिरस्कारपूर्ण और अहंकारी, यहाँ तक कि ठुकराने, प्रतिरोध करने और नकारने का है—अगर तुम इस तरह से व्यवहार करते हो, तो परमेश्वर तुमसे बिल्कुल निराश है, और तुम मृतप्राय हो और बचाए नहीं जाओगे। अगर तुम वास्तव में अपने दिल में सत्य से प्रेम करते हो, और बात सिर्फ इतनी है कि तुम कुछ हद तक कम काबिलियत वाले हो और तुममें अंतर्दृष्टि की कमी है, थोड़े मूर्ख हो और तुम अक्सर गलतियाँ करते हो, लेकिन तुम बुराई करने का इरादा नहीं रखते, और तुमने बस कुछ मूर्खतापूर्ण काम किए हैं; अगर तुम सत्य पर परमेश्वर की संगति सुनने के दिल से इच्छुक हो, और तुम सत्य के लिए दिल से लालायित हो; अगर तुम सत्य और परमेश्वर के वचनों के प्रति अपने व्यवहार में ईमानदारी और ललक भरा रवैया अपनाते हो, और तुम परमेश्वर के वचन बहुमूल्य समझकर सँजो सकते हो—तो यह काफी है। परमेश्वर ऐसे लोगों को पसंद करता है। भले ही तुम कभी-कभी थोड़ी मूर्खता करते हो, परमेश्वर तुम्हें फिर भी पसंद करता है। परमेश्वर तुम्हारे दिल से प्रेम करता है, जो सत्य के लिए तरसता है, और वह सत्य के प्रति तुम्हारे ईमानदार रवैये से प्रेम करता है। तो, तुम पर परमेश्वर की दया है और वह तुम पर हमेशा अनुग्रह कर रहा है। वह तुम्हारी खराब क्षमता या तुम्हारी मूर्खता पर विचार नहीं करता, न ही वह तुम्हारे अपराधों पर विचार करता है। चूँकि सत्य के प्रति तुम्हारा दृष्टिकोण सच्चा और उत्सुकता भरा है, और तुम्हारा हृदय सच्चा है, इसलिए तुम्हारे हृदय की सच्चाई और इस रवैये का ध्यान रखते हुए वह हमेशा तुम्हारे प्रति दयालु रहेगा—और पवित्र आत्मा तुम पर कार्य करेगा, और तुम्हें उद्धार की आशा होगी। दूसरी ओर, यदि तुम दिल से अड़ियल और असंयमी हो, अगर तुम सत्य से विमुख हो, और परमेश्वर के वचनों और सत्य से जुड़ी किसी भी चीज पर कभी ध्यान नहीं देते, और अपने दिल की गहराइयों से प्रतिपक्षी और तिरस्कारपूर्ण हो, तो फिर तुम्हारे प्रति परमेश्वर का रवैया कैसा होगा? सख्त नापसंदगी, विकर्षण, और निरंतर क्रोध का(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपना कर्तव्‍य सही ढंग से पूरा करने के लिए सत्‍य को समझना सबसे महत्त्वपूर्ण है)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मुझे लगा कि परमेश्वर का स्वभाव धार्मिक और पवित्र है। परमेश्वर लोगों को इसलिए तुच्छ नहीं समझता क्योंकि वे मूर्ख हैं या उनमें काबिलियत की कमी है, बल्कि वह सत्य के प्रति उनका रवैया देखता है। अगर किसी व्यक्ति में बहुत गुण और काबिलियत है और वह काम करने में सक्षम है, लेकिन वह अक्सर अपने कर्तव्यों में सत्य के प्रति विमुख स्वभाव बेनकाब करता है और वह आमतौर पर सत्य स्वीकार करने या आत्म-चिंतन करने में असमर्थ रहता है तो परमेश्वर ऐसे व्यक्ति को पसंद नहीं करेगा, चाहे उसकी काबिलियत कितनी भी ऊँची क्यों न हो। परमेश्वर ऐसे लोगों से प्रेम करता है जो सत्य स्वीकारने के लिए तैयार रहते हैं, भले ही उनमें काबिलियत की कमी हो और वे महान काम न कर सकें। लोगों का मूल्यांकन करने का परमेश्वर का मानक देखने और इसकी अपने व्यवहार से तुलना करने पर मुझे लगा कि मैं गंभीर खतरे में हूँ। मैं अपनी बुद्धि और काबिलियत पर भरोसा कर रही थी और एक सुपरवाइजर के रूप में कुछ काम करने में सक्षम थी और जीवन प्रवेश को लेकर अपनी टीम के सदस्यों की कुछ कठिनाइयाँ सुलझा पाई थी, जिससे मुझे लगा कि मैं जानती हूँ कि मैं क्या कर रही हूँ। लेकिन जब दूसरों ने मेरी समस्याएँ बताईं तो मेरा अभिमान हावी हो गया और मुझे लगा जैसे वे मुझे नीचा दिखाने और अपमानित करने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरों के सुझावों, सकारात्मक चीजों और सत्य के प्रति मेरा रवैया घृणास्पद और अहंकारी था और मैंने परमेश्वर से घृणा की थी। मैंने पहले ही अपने कर्तव्यों में अपराध कर दिया था और अगर मैं इतनी तर्कहीन और पश्चात्तापहीन बनी रही तो परमेश्वर पक्का मुझे हटाकर निकाल देगा। मैं इससे सचमुच भयभीत हो गई! मैंने परमेश्वर से एक मौन, गंभीर प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मैं पश्चात्ताप करना चाहती हूँ। मैं अपने भाई-बहनों के साथ अपने कर्तव्य ठीक से करना चाहती हूँ, लेकिन मेरा भ्रष्ट स्वभाव बहुत गंभीर है। मुझे और अधिक अनुशासित करो और मुझे मेरे भ्रष्ट स्वभाव के बंधन से बचाओ।”

21 मार्च 2023, मंगलवार, धूप खिली है

आज मैंने परमेश्वर के वचन का एक अंश पढ़ा जिसने मुझे अभ्यास का मार्ग दिया। परमेश्वर कहता है : “पहले तुम्हें परमेश्वर पर भरोसा करके अपने भीतर की सभी कठिनाइयों को हल करना होगा। अपने पतित स्वभाव को छोड़ दो और अपनी अवस्था को वास्तव में समझने में सक्षम बनो और यह जानो कि तुम्हें कैसे व्यवहार करना चाहिए; जो कुछ भी तुम्हें समझ में न आए, उसके बारे में सहभागिता करते रहो। व्यक्ति का खुद को न जानना अस्वीकार्य है। पहले अपनी बीमारी ठीक करो, और मेरे वचनों को खाने और पीने और उन पर चिंतन-मनन द्वारा, अपना जीवन मेरे वचनों के अनुसार जीओ और उन्हीं के अनुसार अपने कर्म करो; चाहे तुम घर पर हो या किसी अन्य जगह पर, तुम्हें परमेश्वर को अपने भीतर शक्ति के प्रयोग की अनुमति देनी चाहिए। देह और स्वाभाविकता को त्याग दो। अपने भीतर हमेशा परमेश्वर के वचनों का प्रभुत्व बना रहने दो। यह चिंता करने की आवश्यकता नहीं है कि तुम लोगों का जीवन बदल नहीं रहा है; समय के साथ, तुम महसूस करोगे कि तुम्हारे स्वभाव में एक बड़ा परिवर्तन हुआ है। पहले तुम चर्चा में रहने के लिए उतावले रहते थे, किसी की आज्ञा नहीं मानते थे या महत्वाकांक्षी, आत्मतुष्ट या दंभी थे—पर तुम धीरे-धीरे इन चीजों से छुटकारा पा लोगे। यदि तुम इन्हें अभी छोड़ना चाहते हो, तो यह संभव नहीं है! क्योंकि तुम्हारा पुराना अहं दूसरों को इसे छूने की अनुमति नहीं देगा, इसकी जड़ें इतनी गहरी हैं। अतः तुम्हें व्यक्तिपरक प्रयास करने होंगे, सकारात्मक और सक्रिय रूप से पवित्र आत्मा के कार्य के प्रति समर्पण करना होगा, परमेश्वर के साथ सहयोग करने के लिए अपनी इच्छा-शक्ति का उपयोग करना होगा, और मेरे वचनों को अभ्यास में लाने के इच्छुक रहना होगा। ... आत्मतुष्ट मत बनो; अपनी कमियों को दूर करने के लिए दूसरों से ताकत बटोरो, और देखो कि दूसरे परमेश्वर के वचनों के अनुसार कैसे जीते हैं; और देखो कि क्या उनके जीवन, कर्म और बोल अनुकरणीय हैं। यदि तुम दूसरों को अपने से कम मानते हो, तो तुम आत्मतुष्ट और दंभी हो और किसी के भी काम के नहीं हो। अब जो सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है वह है जीवन पर ध्यान केंद्रित करना, मेरे वचनों को और ज्यादा खाना-पीना, मेरे वचनों का अनुभव करना, मेरे वचनों को जानना, मेरे वचनों को सचमुच ही अपना जीवन बना लेना—ये सब मुख्य बातें हैं। जो व्यक्ति परमेश्वर के वचनों के अनुसार नहीं जी सकता, क्या उसका जीवन परिपक्व हो सकता है? नहीं, यह नहीं हो सकता। तुम्हें हर समय मेरे वचनों के अनुसार जीना चाहिए और मेरे वचनों को जीवन की आचार-संहिता बना लेना चाहिए, इससे तुम लोग महसूस करोगे कि इस आचार-संहिता के साथ व्यवहार करने से परमेश्वर आनंदित होता है, और ऐसा नहीं करने से परमेश्वर घृणा करता है; और धीरे-धीरे तुम सही मार्ग पर चलने लगोगे(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 22)। परमेश्वर कहता है : “व्यक्ति का खुद को न जानना अस्वीकार्य है। पहले अपनी बीमारी ठीक करो।” सच तो यही था कि परमेश्वर ने पहले से ही अभ्यास का मार्ग बहुत साफ कर दिया है। जब हम चीजों का सामना करते हैं तो हमें हमेशा परमेश्वर के सामने आकर आत्म-चिंतन करना चाहिए, खुद को जानना चाहिए और अपनी समस्याएँ सुलझाने के लिए सत्य की खोज करनी चाहिए। पहले जब दूसरे लोग मेरी समस्याओं की ओर इशारा करते थे तो मुझे तुरंत गुस्सा आ जाता था और मैं आत्म-चिंतन करने के लिए तैयार नहीं होती थी और मैं सोचती थी कि “तुम जो कह रहे हैं वह वस्तुनिष्ठ नहीं है; ऐसा नहीं है,” या फिर, “तुमने मेरी समस्या बताई है, लेकिन जरूरी नहीं कि तुम मुझसे बेहतर हो।” मैं बहस करती और विरोधी महसूस करती और स्थिति को परमेश्वर की ओर से नहीं देखती, इसलिए मैं खुद को दूसरों के खिलाफ खड़ा करती और अंत में कुछ हासिल नहीं करती। सच तो यह है कि भले ही मेरी समस्या बताने वाला व्यक्ति भ्रष्टता बेनकाब करे और कभी-कभी ऐसी बातें कहे जो पूरी तरह से सटीक नहीं हों, जब तक कि वे आंशिक रूप से उन तथ्यों के अनुरूप हों जिन पर वे मुझे सुधार रहे हैं, मुझे इसे स्वीकारना चाहिए, आत्म-चिंतन करना चाहिए और इस समस्या के समाधान से संबंधित सत्य की तलाश करनी चाहिए। यह सत्य को स्वीकारने का रवैया है। सिर्फ इसी तरह से अभ्यास करने से ही सत्य के प्रति विमुख मेरा अहंकारी स्वभाव धीरे-धीरे सुलझ सकता है।

10 अप्रैल 2023, सोमवार, धूप खिली है।

आज अगुआ ने मुझे वीडियो बनाने में हमारी धीमी प्रगति के बारे में लिखा, कहा कि कि हम बस काम चला रहे हैं और इस काम को आगे बढ़ाने में सतर्क नहीं हैं, हम इस धीमेपन के पीछे के कारणों पर गौर नहीं कर रहे हैं और ऐसा करके हम अपने कर्तव्यों की उपेक्षा कर रहे हैं। मेरी पहली प्रतिक्रिया बहस करने की थी और मैंने सोचा, “हम यह समस्या सुलझा रहे हैं, इसमें कुछ ही वक्त लगेगा। इसके अलावा वीडियो बनाने वालों को तकनीकों के साथ वास्तविक मुश्किलें आ रही हैं, तो क्या तुम वाकई हमें दोष दे सकते हो?” मुझे लगा कि मेरे साथ अन्याय हुआ है, लेकिन मुझे एहसास हुआ कि मैं प्रतिरोधी महसूस करना शुरू कर रही हूँ और फिर से सुझाव नहीं स्वीकार नहीं रही हूँ, इसलिए मैं परमेश्वर से प्रार्थना करती रही, “हे परमेश्वर, मैं कितनी विद्रोही हूँ! मैं तर्कहीन बनी रहती हूँ और सबक सीखने के लिए सत्य की खोज नहीं कर पाती हूँ। हे परमेश्वर, मेरे हृदय पर नजर रखो ताकि मैं अगुआ का मार्गदर्शन और सहायता स्वीकार सकूँ।” इसके बाद हमने साथ मिलकर धीमी गति से वीडियो निर्माण की समस्या पर विचार किया और अंत में पाया कि हमारी दक्षता वाकई बहुत कम थी और हम बहुत ज्यादा टाल-मटोल कर रहे थे। मैं आमतौर पर उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए सिर्फ खोखले शब्दों की बौछार करती थी, लेकिन मैं वाकई कभी नहीं समझ पाई कि वे किस हिस्से में धीमे हो रहे हैं, कौन से हिस्से छोड़े जा सकते थे, कौन से हिस्से अटकने और समय बर्बाद करने के लिए काफी हैं या कुछ लोगों के अपने कर्तव्यों में ढीले रवैये को कैसे ठीक किया जाए। वाकई यह मुद्दे सुलझाने के लिए सत्य सिद्धांतों की जाँच और खोज करके काम कम से कम दोगुनी तेजी से आगे बढ़ सकता है। मैंने फिर से दूसरों के सुझावों को लगभग नकार दिया था, और अगर मैंने वाकई ऐसा किया होता तो ये समस्याएँ अनसुलझी रह जातीं और काम में देरी होती रहती। जितनी ज्यादा चीजें मैं अनुभव करती हूँ, उतना ही ज्यादा मुझे लगता है कि दूसरों की सलाह स्वीकारना और जब चीजें होती हैं तो उस पर आत्म-चिंतन करना कितना जरूरी है!

अपने अनुभव पर पीछे मुड़कर देखने पर मैं बहुत भावुक हो जाती हूँ और देखती हूँ कि परमेश्वर कितना बुद्धिमान है! अगर ली रैन ने मेरी समस्या नहीं बताई होती तो मुझे कभी एहसास नहीं होता कि सत्य के प्रति विमुख होने का मेरा स्वभाव कितना गंभीर था, और परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन और उजागर हुए बिना मैं आत्म-चिंतन करना भी नहीं जानती। मैं बस गलत रास्ते पर आगे बढ़ती रहती और अंत में मुझे मेरे भाई-बहनों द्वारा नकार दिया जाता और परमेश्वर ने मुझे निकाल दिया होता। यह परमेश्वर का अद्भुत कार्य था जिसने मेरी भ्रष्टता और कुरूपता बेनकाब की और यह परमेश्वर के न्याय के कठोर वचन ही थे जिन्होंने मेरा भ्रष्ट स्वभाव उजागर किया और मुझे सत्य के प्रति विमुख अपने शैतानी स्वभाव को देखने और जागकर उसे बदलने की अनुमति दी। यह सब परमेश्वर का प्रेम था! भले ही मैं अभी भी बहुत अधिक नहीं बदली हूँ, मैं भविष्य में परमेश्वर के वचन का न्याय और ताड़ना स्वीकार करने के लिए तैयार हूँ ताकि मैं धीरे-धीरे बदल सकूँ।

पिछला: 73. जब एक ऐसे अगुआ को बर्खास्त कर दिया गया जिसकी मैं प्रशंसक थी

अगला: 75. जो यातना मैंने सही

परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2024 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।

संबंधित सामग्री

12. त्रित्व की पहेली का निराकरण

जिन्ग्मो, मलेशियामैं भाग्यशाली थी कि 1997 में मैंने प्रभु यीशु के सुसमाचार को स्वीकार किया और, जब मैंने बपतिस्मा लिया, तो पादरी ने...

10. हृदय की मुक्ति

झेंगशिन, अमेरिका2016 के अक्टूबर में, जब हम देश से बाहर थे, तब मेरे पति और मैंने अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य को स्वीकार किया था। कुछ...

34. ईसाई आध्यात्मिक जागृति

लिंग वू, जापानमैं अस्सी के दशक का हूँ, और मैं एक साधारण से किसान परिवार में जन्मा था। मेरा बड़ा भाई बचपन से ही हमेशा अस्वस्थ और बीमार रहता...

13. यह आवाज़ कहाँ से आती है?

लेखिका: शियीन, चीनमेरा जन्म एक ईसाई परिवार में हुआ था। मेरे बहुत से सगे-संबंधी प्रचारक हैं। मैं बचपन से ही अपने माता-पिता के साथ प्रभु में...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 6) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 7) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

सेटिंग

  • इबारत
  • कथ्य

ठोस रंग

कथ्य

फ़ॉन्ट

फ़ॉन्ट आकार

लाइन स्पेस

लाइन स्पेस

पृष्ठ की चौड़ाई

विषय-वस्तु

खोज

  • यह पाठ चुनें
  • यह किताब चुनें

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें