44. साझेदारी से सीखे सबक

लू क्वीमिंग, चीन

मैं कलीसिया में भजनों की रिकॉर्डिंग का कर्तव्य निभाता आ रहा हूँ और रिकॉर्ड किए हुए भजनों की गुणवत्ता काफी अच्छी रही है। भाई-बहन आम तौर पर मेरे कार्य की प्रशंसा करते हैं। दस साल से ज्यादा समय तेजी से गुजर गया, मैंने देखा कि वे जो भजन सुनते हैं उनमें से ज्यादातर मेरे रिकॉर्ड किए हुए हैं, इस पर मुझे नाज होता था। बाद में कलीसिया ने भाई ली मिंग को मेरे साथ कार्य करने में लगा दिया। भजनों की रिकॉर्डिंग में उसकी बहुत दिलचस्पी थी और उसके पास कुछ हुनर भी था। शुरुआत में मैं ली मिंग के साथ कार्य करने के लिए उत्साहित था और हममें अच्छी पटती थी। मैंने उसे अपनी रिकॉर्डिंग तकनीकें सिखाने की कोशिश की। ली मिंग ने जब कुछ नई रिकॉर्डिंग तकनीकें सीख लीं तो उसने सुझाव दिया कि इन नए तरीकों का इस्तेमाल करने से बेहतर नतीजे मिलेंगे और इन्हें आजमाने के लिए कलीसिया के अगुआ भी उससे सहमत थे। मैंने सोचा, “मैं बरसों से यह रिकॉर्डिंग कर्तव्य निभाता आ रहा हूँ और तुम जिन तकनीकों की बात कर रहे हो, उनकी कुछ समझ मुझे भी है। मुझे भी ये नई तकनीकें काफी चुनौतीपूर्ण लगीं, तुम्हें यहाँ आए हुए चंद दिन ही हुए हैं और तुम इन नई तकनीकों को रिकॉर्डिंग के लिए इस्तेमाल करने चले हो? क्या तुम्हें बहुत घमंड नहीं हो गया है? यही नहीं, ये नई तकनीकें जटिल हैं और ऐसा नहीं है कि इन्हें तुरत-फुरत सीख लिया जाए। मुझे लगता है कि तुम बस अपना समय बर्बाद कर रहे हो।” मैंने इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया। ली मिंग कई दिनों तक नए तरीकों को उलट-पुलटकर आजमाता रहा लेकिन शुरुआती रिकॉर्डिंग बहुत अच्छी नहीं रही और भाई-बहनों को भी नतीजे संतोषजनक नहीं लगे। तब मुझे लगा कि ये नई तकनीकें कारगर नहीं हैं और मैं रिकॉर्डिंग के पुराने तरीके ही इस्तेमाल करता रहा।

लेकिन मैं यह देखकर दंग रह गया कि कुछ समय बाद ली मिंग के नई तकनीक से रिकॉर्ड हुए भजनों में बहुत सुधार आ गया। इसके कारण मैं धर्मसंकट में पड़ गया और मन ही मन सोचने लगा, “ली मिंग के रिकॉर्डिंग तरीकों की अपनी खूबियाँ तो हैं। भले ही ये शुरुआत में कुछ चुनौतीपूर्ण लगें, लेकिन इनसे भजनों की बेहतर रिकॉर्डिंग होती है और ज्यादातर भाई-बहनों को ये पसंद भी आते हैं। इसके अलावा, इस क्षेत्र में ली मिंग के हुनर में भी तेजी से सुधार आ रहा है। अगर वह कुछ समय तक इसका अभ्यास कर ले और इन तकनीकों में पारंगत हो जाए तो क्या हर कोई उसकी सराहना नहीं करेगा और उसी पर ध्यान नहीं देगा? तब लोगों के मन में मेरा कोई रुतबा नहीं रह जाएगा और मैं अपनी अहमियत कभी नहीं जता पाऊँगा! यही नहींं, क्या भाई-बहन यह नहीं कहेंगे कि मैं बरसों से उसी पुराने ढर्रे से भजन रिकॉर्ड कर कोई तरक्की नहीं कर रहा हूँ, जबकि ली मिंग ने यहाँ दो महीनों में ही नई चीजें सीख लीं और मुझसे बेहतर नतीजे दे रहा है? उन्हें लगेगा कि ली मिंग ज्यादा काबिल है! और वे मुझे हेय दृष्टि से देखेंगे, है ना? तब मेरी प्रतिष्ठा का क्या होगा? मैं बरसों से रिकॉर्डिंग का यह कर्तव्य निभा रहा हूँ; मैं ली मिंग को इतनी तेजी से अपने से आगे नहीं बढ़ने दे सकता। मैं इसे स्वीकार नहीं कर सकता हूँ। चाहे कुछ भी हो जाए, मैं उसे अपने से आगे नहीं निकलने दूँगा।” ली मिंग से पिछड़ने से बचने के लिए मैंने पहले वाली तकनीकें सीखने के लिए सुबह जल्दी उठना और रात को देर से सोना शुरू कर दिया। जब रिकॉर्डिंग सुधर गई और ज्यादातर भाई-बहनों को पसंद आने लगी तो मुझे राहत महसूस हुई और मैं सोचने लगा, “इस बार मैंने भाई-बहनों को दिखा दिया कि मैं अब भी तुमसे बेहतर हूँ; तुम बहुत कुशल नहीं हो, इसलिए हार मान लो।” लेकिन बाद में मैंने देखा कि ली मिंग अभी भी नई तकनीकें सीख रहा है जिससे मैं काफी परेशान हो गया। मुझे यह चिंता हुई कि अगर वह कामयाब रहा तो मेरी जगह ले लेगा, इसलिए मैंने सोचा, “काश, तुम आगे न बढ़ पाओ; अच्छा हो कि तुम्हारा शोध नाकाम रहे! इस तरह मेरी प्रतिष्ठा कायम रह सकेगी और कोई मुझे हेय दृष्टि से नहीं देखेगा।” मुझे लगातार यह चिंता खाए जा रही थी कि ली मिंग मेरी जगह ले लेगा, इसलिए मेरे मन में उसके प्रति मनमुटाव और पूर्वाग्रह पैदा होने लगा और मैं उसे अधिकाधिक नापसंद करने लगा, उसके प्रति मेरा रवैया रूखा हो गया। कभी-कभी जब ली मिंग अपनी नई तकनीकों के बारे में उत्साह और खुशी के साथ बात करता था तो मैं गुस्से में आकर सोचने लगता, “तुम अब फिर से लोगों की नजरों में चढ़ गए हो!” बाद में जब मैंने देखा कि ली मिंग को नई तकनीकों पर शोध करने में मदद की जरूरत है तो मैंने इसमें हाथ बँटाना नहीं चाहा और दिल से यही उम्मीद करता था कि वह नाकाम रहे। कभी-कभी यह सोचकर मुझे मेरा दिल कचोटता था, “मैं उसके साथ बिल्कुल भी सहयोग नहीं कर रहा हूँ; क्या यह हाथ पर हाथ धरे बैठकर उसे जूझते हुए देखना नहीं है?” लेकिन इस थोड़े-से जमीर को मेरा भ्रष्ट स्वभाव तुरंत दबा देता था। बाद में ली मिंग को अपनी नई तकनीकों पर शोध करने से रोकने के लिए मैं बहाने बनाने लगा और जानबूझ कर ऐसी बातें करने लगा, “इस समय भजनों की रिकॉर्डिंग का कार्य काफी जरूरी हो गया है और नई तकनीकों पर तुम्हारा शोध बहुत समय ले रहा है। शायद तुम्हें यह छोड़ देना चाहिए।” लेकिन उस पर मेरी बातों का असर नहीं पड़ा और वह अपने शोध में मन लगाकर जुटा रहा।

एक दिन ली मिंग अहंकारी स्वभाव प्रकट कर अपने ही तरीके पर अड़ा रहा और उसकी काट-छाँट की गई। मैं मन ही मन खुश होकर सोचने लगा, “देख लो, दिखावा करने का यही नतीजा होता है! तुम्हें यहाँ आए चंद दिन ही हुए हैं और सिर्फ इसलिए कि तुम्हें थोड़ी-सी जानकारी है, तुम्हें लगता है कि तुम यहाँ आकर सबका ध्यान खींच लोगे, यह दिखा दोगे कि तुम कितने होशियार हो। अब जबकि तुम्हारी काट-छाँट हो गई है तो तुम शांत रहोगे!” उस दौरान मैंने देखा कि ली मिंग की मायूसी बढ़ती जा रही है। एक साथ कार्य करते हुए हम शायद ही कभी बात करते थे और अगर बातचीत करते भी थे तो केवल तब जब बहुत जरूरी हो। हम दोनों भावनात्मक रूप से काफी दूर हो चुके थे। मुझे यह एहसास हुआ कि मैं ख्याति और रुतबे की तलाश में फँसा हुआ हूँ लेकिन मैं इसे त्याग नहीं पाया। उस समय मैंने जो भावनात्मक संकट अनुभव किया वह बयान नहीं किया जा सकता है—हर रोज मुझे कमजोरी महसूस होती थी, मेरी आत्मा विचलित रहती थी और मैं निहायत थका-माँदा रहता था। हमारे बीच सामंजस्यपूर्ण सहयोग न होने के कारण हमारे रिकॉर्ड किए हुए भजनों का प्रभाव बहुत कमजोर रहता था, इससे हमारे कार्य की प्रगति पर भी असर पड़ा। ये नतीजे सामने आने पर मैं बहुत व्यथित हो गया, लेकिन मैं खुद को फँसा हुआ महसूस करता था और यह नहीं जानता था कि स्थिति को कैसे बदला जाए। उस दौरान मेरे मन में परमेश्वर के वचनों का एक अंश अक्सर उभरता था : “यदि जीवन में तुम सत्य के लिए कष्ट नहीं उठाते हो, या इसे प्राप्त करने की कोशिश नहीं करते हो, तो क्या तुम मरने के समय पछताना चाहते हो? यदि ऐसा है, तो फिर परमेश्वर में विश्वास क्यों करते हो? ... अपनी देह की इच्छाओं के वास्ते जी कर और लाभ तथा प्रसिद्धि के लिए संघर्ष कर तुम क्या प्राप्त कर लोगे?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम्हें सत्य के लिए जीना चाहिए क्योंकि तुम्हें परमेश्वर में विश्वास है)। मैंने परमेश्वर के वचनों पर बार-बार विचार किया और सोचा, “वाकई मैं परमेश्वर में इतने साल से विश्वास क्यों कर रहा हूँ? क्या इसका मकसद सिर्फ प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपने भाई के साथ होड़ करना है? इस तरह से परमेश्वर में विश्वास करके मुझे आखिर मिलेगा क्या? इस दौरान मैं अपने भाई के साथ प्रसिद्धि और लाभ के लिए होड़ करता रहा हूँ और अंधकार में घिरकर पवित्र आत्मा का कार्य गँवा चुका हूँ, इसी कारण पीड़ा और कष्ट झेल रहा हूँ। यह मेरे प्रति परमेश्वर का तिरस्कार और घृणा है। इस ढंग से अपना कर्तव्य निभाने में क्या तुक है?” मैंने परमेश्वर से प्रार्थना कर कहा, “हे परमेश्वर, मैं प्रसिद्धि और लाभ के पीछे भागते हुए जी रहा हूँ और यह बहुत ही पीड़ादायक है। मुझे इस स्थिति से निकालो, ताकि मैं अपने भाई के साथ सामंजस्यपूर्ण ढंग से कार्य कर सकूँ, हम दिल और दिमाग से एक होकर अपने कर्तव्य अच्छे से निभा सकें।”

बाद में मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश मिला : “तुम लोगों में से हर एक अधिकता के शिखर तक उठ चुका है; तुम लोग बहुतायत के पितरों के रूप में आरोहण कर चुके हो। तुम लोग अत्यंत स्वेच्छाचारी हो, और आराम के स्थान की तलाश करते हुए और अपने से छोटे भुनगों को निगलने का प्रयास करते हुए उन सभी भुनगों के बीच पगलाकर दौड़ते हो। अपने हृदयों में तुम लोग द्वेषपूर्ण और कुटिल हो, और समुद्र-तल में डूबे हुए भूतों को भी पीछे छोड़ चुके हो। तुम गोबर की तली में रहते हो और ऊपर से नीचे तक भुनगों को तब तक परेशान करते हो, जब तक कि वे बिल्कुल अशांत न हो जाएँ, और थोड़ी देर एक-दूसरे से लड़ने-झगड़ने के बाद शांत होते हो। तुम लोगों को अपनी जगह का पता नहीं है, फिर भी तुम लोग गोबर में एक-दूसरे के साथ लड़ाई करते हो। इस तरह की लड़ाई से तुम क्या हासिल कर सकते हो? यदि तुम लोगों के हृदय वास्तव में मेरा भय मानते तो तुम लोग मेरी पीठ पीछे एक-दूसरे के साथ कैसे लड़ सकते थे? तुम्हारी हैसियत कितनी भी ऊँची क्यों न हो, क्या तुम फिर भी गोबर में एक बदबूदार छोटा-सा कीड़ा ही नहीं हो? क्या तुम पंख उगाकर आकाश में उड़ने वाला कबूतर बन पाओगे?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब झड़ते हुए पत्ते अपनी जड़ों की ओर लौटेंगे, तो तुम्हें अपनी की हुई सभी बुराइयों पर पछतावा होगा)। परमेश्वर के वचन पढ़कर मुझे अपने बारे में थोड़ी-सी अंतर्दृष्टि मिली। पहले मैं यह मानता था कि इतने साल भजन रिकॉर्ड करने का कर्तव्य निभा चुकने के कारण मुझमें कोई विशेष योग्यता है और मैं अद्वितीय हूँ। मैं अपने बारे में ऊँची राय रखता था, यह मानता था कि मेरे तुच्छ-से कौशल और योग्यताएँ दूसरों की प्रशंसा पाने की हकदार हैं और मैं हमेशा अपनी सराहना करता था और खुद को ऊँचा मानता था। जब ली मिंग ने मेरे साथ काम करना शुरू किया तो शुरुआत में उसके बारे में मेरी राय बहुत अच्छी नहीं थी। लेकिन जब उसने नई तकनीकें थोड़ी-सी सीख लीं और भाई-बहनों की स्वीकृति पा ली तो मुझे यह डर सताने लगा कि भविष्य में वह मुझे पीछे छोड़ देगा। भाई-बहनों के मन में अपना रुतबा कायम रखने के लिए मैं ली मिंग को अपना प्रतिद्वंद्वी मानने लगा और चुपचाप उससे होड़ करने लगा। यह जानते हुए भी कि मैं जिन पुरानी रिकॉर्डिंग तकनीकों का इस्तेमाल करता हूँ उनमें सुधार की बहुत सीमित संभावना है, मैं अपना अभिमान छोड़ने और नई तकनीकें सीखने के लिए तैयार नहीं था। बाद में जब मैंने देख लिया कि ली मिंग नई तकनीकों में पारंगत होता जा रहा है और कुछ भाई-बहनों को भी इनका इस्तेमाल पसंद आने लगा है तो मुझे यह डर सताने लगा कि वह मेरी जगह ले सकता है और मैं हर मामले में उसे नापंसद करने लगा और दिल से चाहने लगा कि उसका शोध नाकाम रहे। जब उसकी काट-छाँट की गई तो मुझे मजा आया, मैंने उसकी बदकिस्मती का जश्न मनाया। साथ ही, जब भी उसके सामने कठिनाइयाँ आईं, मैंने मदद का हाथ नहीं बढ़ाया, बल्कि सनकभरी टिप्पणियाँ करके शोध के प्रति उसकी सकारात्मकता का गला घोंटने का प्रयास तक किया, मैंने यह चाहा कि वह मैदान छोड़ दे ताकि मेरी प्रतिष्ठा कायम रहे। मैंने प्रसिद्धि और लाभ के लिए होड़ करने पर ध्यान केंद्रित किया, मुझे सिर्फ इस बात की चिंता थी कि अपना रुतबा कैसे कायम रखूँ और बदल न दिया जाऊँ। असल में, किसी व्यक्ति के पास चाहे कितनी ही खास प्रतिभा हो या वह कितना ही अधिक योग्य हो, परमेश्वर की नजर में वह सिर्फ एक तुच्छ सृजित प्राणी होता है, उसमें ऐसा कुछ नहीं होता है जिसे लेकर शेखी बघारी जाए या अहंकार पाला जाए। फिर भी अपने तुच्छ से कौशल के कारण मैं कपटी बनकर यह मान बैठा था कि मैं दूसरों से अलग हूँ और लोगों से सराहना पाने के लिए उनके दिल में हमेशा जगह खोजता रहता था। मैं कितना घमंडी और विवेकहीन था!

आगे चलकर मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा : “क्रूर मानवजाति! साँठ-गाँठ और साज़िश, एक-दूसरे से छीनना और हथियाना, प्रसिद्धि और संपत्ति के लिए हाथापाई, आपसी कत्लेआम—यह सब कब समाप्त होगा? परमेश्वर द्वारा बोले गए लाखों वचनों के बावजूद किसी को भी होश नहीं आया है। लोग अपने परिवार और बेटे-बेटियों के वास्ते, आजीविका, भावी संभावनाओं, हैसियत, महत्वाकांक्षा और पैसों के लिए, भोजन, कपड़ों और देह-सुख के वास्ते कार्य करते हैं। पर क्या कोई ऐसा है, जिसके कार्य वास्तव में परमेश्वर के वास्ते हैं? यहाँ तक कि जो परमेश्वर के लिए कार्य करते हैं, उनमें से भी बहुत थोड़े ही हैं, जो परमेश्वर को जानते हैं। कितने लोग अपने स्वयं के हितों के लिए काम नहीं करते? कितने लोग अपनी हैसियत बचाए रखने के लिए दूसरों पर अत्याचार या उनका बहिष्कार नहीं करते?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बुरे लोगों को निश्चित ही दंड दिया जाएगा)। परमेश्वर के वचन मेरे दिल में कटार की तरह चुभे। उसके न्याय और ताड़ना के वचनों से मैंने देखा कि अपना रुतबा बचाने की खातिर मैंने किस तरह कलीसिया के हितों की अनदेखी की, ली मिंग का दमन और बहिष्कार किया, प्रसिद्धि और लाभ के लिए प्रपंच और होड़ में शामिल हुआ और अपने दिल में परमेश्वर के लिए कोई जगह नहीं छोड़ी। जब मैं उन दिनों के बारे में सोचता हूँ जब ली मिंग मेरे पास आया ही था तो मैं प्रेमपूर्वक उसकी मदद करता था और उसके साथ सामंजस्यपूर्ण ढंग से मिल-जुलकर रहता था। लेकिन बाद में उसे नई तकनीकों पर कार्य करते हुए देखकर मुझे यह डर सताने लगा कि वह मुझे पीछे छोड़ देगा और मैंने बरसों से भाई-बहनों के मन में जो रुतबा कायम किया है, मैं उसे गँवा बैठूँगा। इस कारण मैं उससे नाराज हो गया और उसका बहिष्कार करने लगा, बेसब्र होकर यह चाहने लगा कि वह अपने शोध में विफल हो जाए। मैं उसके साथ बातचीत करने से बचने लगा, यहाँ तक कि मैं हर वो हथकंडा अपनाने लगा जिससे वह गलती कर बैठे और उसका उत्साह ठंडा पड़ जाए। मेरी प्रकृति वास्तव में दुर्भावनापूर्ण थी! भजनों की रिकॉर्डिंग भाई-बहनों के जीवन को अत्यधिक लाभ पहुँचाती है और यह सुसमाचार फैलाने और परमेश्वर की गवाही देने के लिए महत्वपूर्ण है। मैं जिन पुरानी रिकॉर्डिंग तकनीकों का इस्तेमाल कर रहा था वे पहले ही बहुत पुरानी पड़ चुकी थीं और नई तकनीकों से भजनों की रिकॉर्डिंग में बेहतर नतीजे आ सकते थे जिससे सुसमाचार कार्य को भी फायदा होता। चूँकि मैंने कोई बेहतर समाधान नहीं निकाला था, इसलिए मुझे ली मिंग के साथ एकमत होकर नई तकनीकें खोजने में सामंजस्यपूर्ण ढंग से सहयोग करना चाहिए था। लेकिन अपनी प्रतिष्ठा और रुतबा सुरक्षित रखने के लिए मैंने परमेश्वर के घर के हितों के बारे में विचार नहीं किया, यहाँ तक कि ऐसे महत्वपूर्ण कार्य के महत्व को कम करके आँका। इससे साबित होता है कि मुझमें रत्तीभर भी मानवता नहीं थी, मुझमें रत्तीभर भी जमीर और विवेक नहीं था—मैं निहायत स्वार्थी था! ली मिंग के विरुद्ध लगातार प्रतिस्पर्धा करके और प्रपंच रचकर मैंने भजन रिकॉर्डिंग कार्य को बाधित कर दिया था, मैं प्रतिष्ठा, लाभ और रुतबे के चक्कर में अंधा हो चुका था और परमेश्वर का प्रतिरोध करने वाले कार्य कर चुका था। मैंने अपने कार्य स्थल को युद्धक्षेत्र में बदल दिया था और अपने कर्तव्य को रुतबा और आजीविका सुरक्षित करने का औजार बना दिया था। इसका परमेश्वर तिरस्कार और बेइंतहा नफरत करता है! मैंने पौलुस के बारे में सोचा, उसने भी प्रसिद्धि और फायदे के लिए प्रतिस्पर्धा की थी। जब परमेश्वर ने पतरस को कलीसियाओं की चरवाही की जिम्मेदारी सौंपी और भाई-बहन वास्तव में पतरस का सम्मान कर उसका समर्थन करने लगे तो पौलुस को जलन हो गई और वह जानबूझकर पतरस की तौहीन कर अपनी ही गवाही देने लगा। पौलुस लोगों से अपनी आराधना और सराहना कराने में सफल रहा और उसकी प्रसिद्धि और रुतबे की इच्छा पूरी हो गई लेकिन वह गलत मार्ग पर था, लोगों को अपनी ओर ला रहा था और अंततः परमेश्वर ने उसे हटा दिया और दंडित किया। अनुसरण पर मेरा दृष्टिकोण और मैं जिस राह पर चल रहा था, वे बिल्कुल पौलुस जैसे थे और अगर मैं पश्चात्ताप किए बिना यह सब जारी रखूँ तो मुझे भी ऐसे ही दंड का सामना करना पड़ेगा! अगर मैं अब भी प्रतिष्ठा और रुतबे से कसकर चिपका रहा तो यह निहायत ही मूर्खतापूर्ण और दयनीय होगा!

बाद में मैंने परमेश्वर के और अधिक वचन पढ़े : “संपूर्ण जगत में अपने कार्य की शुरुआत से ही, परमेश्वर ने अनेक लोगों को अपनी सेवा के लिए पूर्वनिर्धारित किया है, जिसमें हर सामाजिक वर्ग के लोग शामिल हैं। उसका प्रयोजन स्वयं के इरादों को पूरा करना और पृथ्वी पर अपने कार्य को सुचारु रूप से पूरा करना है। परमेश्वर का लोगों को अपनी सेवा के लिए चुनने का यही प्रयोजन है। परमेश्वर की सेवा करने वाले हर व्यक्ति को परमेश्वर के इरादे को अवश्य समझना चाहिए। उसका यह कार्य परमेश्वर की बुद्धि और सर्वशक्तिमत्ता को तथा पृथ्वी पर उसके कार्य के सिद्धांतों को लोगों के समक्ष बेहतर ढंग से ज़ाहिर करता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, धार्मिक सेवाओं का शुद्धिकरण अवश्य होना चाहिए)। परमेश्वर के वचनों से मैं समझ गया कि वह अपना सुसमाचार कार्य फैलाने के लिए जीवन के हर क्षेत्र के लोगों को चुनता है और लोगों की खूबियाँ और प्रतिभाएँ परमेश्वर से आती हैं। परमेश्वर लोगों को कुछ कर्तव्य सौंपता है और उन्हें संबंधित प्रतिभाएँ प्रदान करता है ताकि वे अपने कर्तव्य निभाने में अपनी विशेषज्ञता का उपयोग कर सकें जिससे परमेश्वर के घर के कार्य को लाभ हो। ली मिंग में नई तकनीकों का शोध करने की प्रतिभा थी जबकि मेरे पास कुछ तकनीकी अनुभव था। यह परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्था थी कि हम एक साथ कर्तव्य निभा सकें और वह चाहता था कि हम एक दूसरे की खूबियों और कमियों की भरपाई करें और अपने कर्तव्य निभाने में सामंजस्यपूर्ण ढंग से सहयोग करें। यही परमेश्वर का इरादा था। यह जानकर मैं अब और अपने भ्रष्ट स्वभाव में नहीं जीना चाहता था। जैसे-जैसे ली मिंग का कौशल सुधरता गया, मैंने देखा कि रिकॉर्डिंग में नई तकनीकों के उपयोग के नतीजे भी बेहतर होते जा रहे हैं और मैंने यह स्वीकार कर लिया कि परमेश्वर के घर के कार्य के लिए इन नई तकनीकों को अपनाना ज्यादा लाभदायक है। मैं अपना अभिमान एक किनारे रखकर ली मिंग से सीखने के लिए तैयार था। लेकिन मुझे यह भी लगा, “मैं यह कर्तव्य कई बरसों से निभा रहा हूँ और भाई-बहन मेरा बहुत सम्मान करते हैं। लेकिन अभी-अभी यहाँ आए ली मिंग ने तकनीक में नई खोज कर ली है। अब अगर मैं उससे सीखने के लिए विनम्र बन जाता हूँ तो भाई-बहन मेरे बारे में क्या सोचेंगे? यह बहुत ही शर्मनाक होगा!” इस विचार ने मुझे बहुत ही अजीब स्थिति में डाल दिया और मुझे अपना अहंकार त्यागना बहुत मुश्किल लगा, मुझे यह एहसास हुआ कि मैं अपने रुतबे से बहुत ज्यादा जुड़ा हुआ हूँ। मैंने यह सोचा कि मसीह किस प्रकार विनम्र और अज्ञात रहकर इस पृथ्वी पर आया और उसने कभी भी अपने दर्जे से खुद को ऊँचा नहीं आँका या दिखावा नहीं किया। मैंने यह एहसास किया कि थोड़े-से कौशल और उपलब्धि ने मुझे बहुत घमंडी बना दिया था और मैं दूसरों से सराहना चाहने लगा था। मुझमें कोई आत्म-जागरूकता नहीं थी और मैं बहुत ही अहंकारी था। मेरे पास जो कौशल और प्रतिभाएँ थीं वे परमेश्वर ने प्रदान की थीं और मेरे पास शेखी बघारने के लिए कुछ नहीं था। अगर मैं अहं त्यागने और भाई से सीखने के लिए तैयार न रहूँ तो तकनीकी रूप से सुधर भी नहीं पाऊँगा। इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मैं अपने अभिमान और रुतबे को परे रखकर ली मिंग से सीखने के लिए तैयार हूँ। मुझे यह ताकत दो कि मैं भाई के साथ खुले मन से सामंजस्यपूर्ण सहयोग कर सकूँ।”

एक दिन रिकॉर्डिंग स्टूडियो में सिर्फ मैं और ली मिंग थे और मैंने उसे खुलकर अपनी दशा बताने की पहल की। मैंने बताया कि मैं किस तरह प्रसिद्धि और लाभ की खातिर उसके साथ होड़ ले रहा था। ली मिंग ने भी अपनी दशा के बारे में मुझे बताया। हमारी बातचीत के बाद मेरे दिल की बाधा दूर हो गई और मुझे कहीं अधिक राहत मिली, मानो हमारे बीच की दीवार ढह गई हो। मैंने परमेश्वर के वचनों के दो अंश भी पढ़े जिन्होंने मुझे यह व्यावहारिक मार्गदर्शन दिया कि भविष्य में अपने कर्तव्य निभाते समय सामंजस्यपूर्ण सहयोग कैसे किया जाए। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “तुम युवा भाई-बहन हो या वृद्ध, तुम जानते हो कि तुम्हें क्या कार्य करना है। जो अपनी युवावस्था में हैं, वे अभिमानी नहीं हैं; जो वृद्ध हैं, वे नकारात्मक नहीं हैं और न ही वे पीछे हटते हैं। इतना ही नहीं, वे अपनी कमियाँ दूर करने के लिए एक-दूसरे के सामर्थ्य का उपयोग करने में सक्षम हैं, और वे बिना किसी पूर्वाग्रह के एक-दूसरे की सेवा कर सकते हैं। युवा और वृद्ध भाई-बहनों के बीच मित्रता का एक पुल बन गया है, और परमेश्वर के प्रेम के कारण तुम लोग एक-दूसरे को बेहतर समझने में सक्षम हो। युवा भाई-बहन वृद्ध भाई-बहनों को हेय दृष्टि से नहीं देखते, और वृद्ध भाई-बहन दंभी नहीं हैं : क्या यह एक सामंजस्यपूर्ण सहयोग नहीं है? यदि तुम सभी का यही संकल्प हो, तो तुम लोगों की पीढ़ी में परमेश्वर की इच्छा निश्चित रूप से पूरी होगी(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सभी के द्वारा अपना कार्य करने के बारे में)। “परमेश्वर के कार्य के प्रयोजन के लिए, कलीसिया के फ़ायदे के लिये और अपने भाई-बहनों को आगे बढ़ाने के वास्ते प्रोत्साहित करने के लिये, तुम लोगों को सद्भावपूर्ण सहयोग करना होगा। परमेश्वर के इरादों के प्रति लिहाज दिखाने के लिए तुम्हें एक दूसरे के साथ सहयोग करना चाहिये, एक दूसरे में सुधार करके कार्य का बेहतर परिणाम हासिल करना चाहिये। सच्चे सहयोग का यही मतलब है और जो लोग ऐसा करेंगे सिर्फ़ वही सच्चा प्रवेश हासिल कर पाएंगे(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, इस्राएलियों की तरह सेवा करो)। परमेश्वर का इरादा यह है कि बूढ़े आत्मतुष्ट न बन जाएँ या पुरानी चीजों से न चिपके रहें और युवा अहंकारी न बनें। उन्हें अपने कर्तव्य अच्छे से निभाने के लिए सामंजस्यपूर्ण ढंग से एक साथ कार्य करना चाहिए। भले ही मैं लंबे समय से यह कर्तव्य निभा रहा था, मैंने रिकॉर्डिंग तकनीक में ज्यादा तरक्की नहीं की थी। ली मिंग को नई तकनीक खोजने में ज्यादा रुचि थी और वह पहले ही कुछ उपलब्धियाँ हासिल कर चुका था। उसमें वह हुनर था जो मुझमें नहीं था, इसलिए उसके साथ सहयोग करके मेरी कमियों की भरपाई हो सकती थी और हमारे कर्तव्यों को लाभ हो सकता था। मुझे अहं त्यागकर उससे नई तकनीकें सीखनी चाहिए और अपने कर्तव्य अच्छे से निभाने के लिए मिलकर कार्य करना चाहिए। इसके बाद मैंने ली मिंग के साथ मिलकर नई तकनीक सीखी और शोध किया। परमेश्वर के मार्गदर्शन से जैसे-जैसे हमने नए कौशलों का अध्ययन किया, हमारी सोच स्पष्ट होती गई और पहले जिन समस्याओं को हल करना मुश्किल हो गया था उन्हें तुरंत दुरुस्त कर दिया गया।

अनुभव के इस दौर में मैंने गहराई से महसूस किया कि प्रसिद्धि और रुतबे के लिए जीना बहुत ही पीड़ादायक है, इसने मेरे दिल को कलुषित कर दिया और इतनी अकथनीय पीड़ा दी कि मेरे पास कोई समाधान नहीं था। मैंने देखा कि मुझे शैतान ने कितनी गहराई तक भ्रष्ट कर दिया था, मुझमें रुतबे के लिए तीव्र इच्छा थी और मैं बहुत ही अहंकारी हो गया था। साथ ही मुझे यह अनुभव भी हुआ कि परमेश्वर का स्वभाव धार्मिक और पवित्र है और इसका अपमान नहीं किया जा सकता है, जैसा कि परमेश्वर ने कहा है : “मैं पवित्र राज्य के लिए प्रकट होता हूँ, और अपने आपको मलिनता की भूमि से छिपा लेता हूँ(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 29)। जब मैं प्रसिद्धि और लाभ के प्रयास करने वाले भ्रष्ट स्वभाव में जी रहा था तो परमेश्वर ने मेरा तिरस्कार कर खुद को मुझसे छिपा लिया था और मैं अंधकार में जीता रहा और मेरी आत्मा बहुत पीड़ित हो गई। लेकिन जब मैं परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना को स्वीकार कर और अपने अभिमान और रुतबे को परे रखकर ली मिंग के साथ सहयोग करने के लिए तैयार हो गया तो मैंने पवित्र आत्मा के कार्य और मार्गदर्शन को देखा। परमेश्वर के वचनों ने मुझे राहत और मुक्ति दी। और मैंने अपने दिल की अतल गहराई से महसूस किया कि सत्य का अभ्यास कर परमेश्वर के वचनोंं के अनुसार जीना कितना अद्भुत है!

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13. यह आवाज़ कहाँ से आती है?

लेखिका: शियीन, चीनमेरा जन्म एक ईसाई परिवार में हुआ था। मेरे बहुत से सगे-संबंधी प्रचारक हैं। मैं बचपन से ही अपने माता-पिता के साथ प्रभु में...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 6) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 7) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

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