69. मैं अब संकट में अपना कर्तव्य नहीं छोड़ती
अक्टूबर 2021 में, मैंने डेब्रेक कलीसिया में एक अगुआ के बतौर अपना कर्तव्य निभाना शुरू किया। 10 दिसंबर की रात को, मुझे एक पत्र मिला जिसमें कहा गया था कि सुसमाचार के उपयाजक यांग हुई और उनके परिवार को 8 तारीख की दोपहर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। मुझे अचानक याद आया कि अगली सुबह मेरे एक साथी भाई ली जी को यांग हुई और अन्य लोगों से मिलने जाना था। मैंने अपनी दूसरी साथी बहन झांग शिन से इस बारे में चर्चा की और हमने अगली सुबह यांग हुई की गिरफ्तारी के बारे में जल्दी से ली जी को सूचित करने का फैसला किया। झांग शिन अगले दिन चली गई, लेकिन 12 तारीख की दोपहर तक वह नहीं लौटी। मैं बेचैन और भयभीत थी, मुझे चिंता हुई कि कहीं झांग शिन भी तो गिरफ्तार नहीं हो गई। अगर वे सभी पकड़े गए, तो कई भाई-बहन फँस जाएँगे, और कलीसिया की परमेश्वर के वचनों की किताबें खतरे में पड़ जाएँगी। अगर हम पुलिस के तलाशी लेने से पहले किताबें स्थानांतरित करने में जल्दी नहीं करते, तो नुकसान बहुत अधिक होगा और मेरा अपराध गंभीर हो जाएगा। इन बातों के बारे में सोचकर मैं और भी ज्यादा डर गई। मैं अपने दिल में परमेश्वर से प्रार्थना करती रही, “हे परमेश्वर! मेरा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है और मैं नहीं जानती कि इस स्थिति से कैसे बाहर निकलूँ। मुझे प्रबुद्ध कर मेरा मार्गदर्शन करो, मुझे आस्था और साहस दो ताकि मैं इसके दुष्परिणामों से ठीक से निपट सकूँ।” प्रार्थना करने के बाद, मैंने तुरंत दो बहनों के साथ बैठक की व्यवस्था करने के लिए पत्र लिखा ताकि परमेश्वर के वचनों की किताबें स्थानांतरित करने पर चर्चा की जा सके। मैं निकलने ही वाली थी कि मेरी मेजबान बहन ने बेचैन होकर कहा, “तुम नहीं जा सकतीं! अगर तुम बाहर गईं और वापस न लौटीं, तो कलीसिया के काम का क्या होगा?” उसके डरे हुए चेहरे को देखकर मैं और भी अधिक चिंतित हो गई : “वे अभी भी वापस नहीं लौटे हैं, शायद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया होगा। अगर मैं बाहर गई और किसी ने मेरा पीछा किया तो? और अगर मैं वापस न लौट पाई तो क्या होगा?” मैं अपने दिल में परमेश्वर से प्रार्थना करती रही और मैंने परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचा : “आस्था एक ही लट्ठे से बने पुल की तरह है : जो लोग हर हाल में जीवन जीने की लालसा से चिपके रहते हैं उन्हें इसे पार करने में परेशानी होगी, परन्तु जो आत्म बलिदान करने को तैयार रहते हैं, वे बिना किसी फ़िक्र के, मज़बूती से कदम रखते हुए उसे पार कर सकते हैं। अगर मनुष्य कायरता और भय के विचार रखते हैं तो ऐसा इसलिए है कि शैतान ने उन्हें मूर्ख बनाया है, उसे डर है कि हम आस्था का पुल पार कर परमेश्वर में प्रवेश कर जाएँगे। शैतान अपने विचारों को हम तक पहुँचाने में हर संभव प्रयास कर रहा है। हमें हर पल परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि वह हमें रोशन और प्रबुद्ध करे, अपने भीतर मौजूद शैतान के ज़हर से छुटकारा पाने के लिए हमें हर पल परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिए। हमें हर पल अपनी आत्मा के भीतर यह अभ्यास करना चाहिए कि हम परमेश्वर के निकट आ सकें और हमें अपने सम्पूर्ण अस्तित्व पर परमेश्वर का प्रभुत्व होने देना चाहिए” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 6)। अब जबकि कलीसिया को गिरफ्तारियों का सामना करना पड़ रहा था, तो भाई-बहनों और परमेश्वर के वचनों की किताबों की सुरक्षा मेरी जिम्मेदारी और जरूरी कर्तव्य था। गिरफ्तारी का मेरा डर शैतान द्वारा भेजा गया विचार था। मुझे शैतान के जाल में फँसने से बचना था। अगर मैं गिरफ्तारी के डर से छिप गई और समय रहते परमेश्वर के वचनों की किताबों को स्थानांतरित न किया और किताबें पुलिस द्वारा जब्त कर ली गईं, तो मैंने अपराध किया होता। ऐसे अहम वक्त में कलीसिया के हितों की रक्षा न करना एक अपमान होता। हालाँकि स्थानांतरण की प्रक्रिया जोखिम भरी थी, लेकिन मेरा मानना था कि परमेश्वर सर्वशक्तिमान है और सब कुछ परमेश्वर के नियंत्रण में है। मेरा गिरफ्तार होना या न होना परमेश्वर द्वारा निर्धारित था; अगर परमेश्वर की अनुमति न हो, तो पुलिस मेरा बाल भी बाँका नहीं कर सकती। परमेश्वर के वचनों पर विचार करने से मेरा डर कम हो गया। दो बहनों से चर्चा करने के बाद हम अलग-अलग कार्रवाई करने के लिए जल्दी से दो समूह में बँट गए। एक बहन भाई-बहनों को सूचित करने गई और मैंने दूसरी बहन के साथ मिलकर परमेश्वर के वचनों की किताबों को स्थानांतरित करने का कार्यभार सँभाला। जब परमेश्वर के वचनों की सभी किताबें सुरक्षित रूप से स्थानांतरित कर दी गईं, तब कहीं जाकर मुझे चैन मिला।
बाद में, एक यहूदा के विश्वासघात के कारण, कलीसिया में अधिक से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया जाने लगा, और परमेश्वर के वचनों की किताबें पुलिस द्वारा जब्त की जाती रहीं। 14 जनवरी, 2022 को मेरे मेजबान यांग होंग को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। ठहरने की कोई उपयुक्त जगह न होने पर मैंने यह सोचकर भागने की सोची, “अगर पुलिस ने मुझे पकड़ लिया, तो मुझे बहुत यातनाएँ सहनी पड़ेंगी। अगर मैं इसे सहन न कर पाई और यहूदा की तरह परमेश्वर से विश्वासघात किया, तो परिणाम अकल्पनीय होंगे।” मुझे आखिरकार एक अपेक्षाकृत सुरक्षित जगह मिल गई, लेकिन कुछ ही समय में इस जगह के बारे में भी एक यहूदा ने खुलासा कर दिया, इसलिए मुझे वह जगह भी छोड़नी पड़ी। ठहरने की कोई उपयुक्त जगह न होने पर मुझे लगा कि हमारे लिए कोई भी जगह सुरक्षित नहीं है। मैं बहुत असहाय और व्यथित महसूस कर रही थी, और शिकायत करने लगी, “निरंतर भय और चिंता में जीने वाले ये दिन कब खत्म होंगे? इससे अच्छा तो यही होगा कि पुलिस मुझे गिरफ्तार कर ले और पीट-पीट कर मार डाले।” अपनी घोर पीड़ा में मैंने परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचा : “तुम्हें सबकुछ सहना होगा; मेरे लिए, तुम्हें अपनी हर चीज़ का त्याग करने को तैयार रहना होगा, और मेरा अनुसरण करने के लिए सबकुछ करना होगा, अपना सर्वस्व व्यय करने के लिए तैयार रहना होगा। अब वह समय है जब मैं तुम्हें परखूंगा : क्या तुम अपनी निष्ठा मुझे अर्पित करोगे? क्या तुम ईमानदारी से मार्ग के अंत तक मेरे पीछे चलोगे? डरो मत; मेरी सहायता के होते हुए, कौन इस मार्ग में बाधा डाल सकता है? यह स्मरण रखो! इस बात को भूलो मत! जो कुछ घटित होता है वह मेरी सदिच्छा से होता है और सबकुछ मेरी निगाह में है। क्या तुम्हारा हर शब्द व कार्य मेरे वचन के अनुसार हो सकता है? जब तुम्हारी अग्नि परीक्षा होती है, तब क्या तुम घुटने टेक कर पुकारोगे? या दुबक कर आगे बढ़ने में असमर्थ होगे?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 10)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे यह समझने में मदद की कि हालाँकि कुछ यहूदाओं के उजागर होने से कलीसिया उत्पीड़न और गिरफ्तारियों की लहर से जूझ रही थी और कर्तव्य करने के लिए सुरक्षित स्थानों की कमी से हमें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन ये कठिनाइयाँ मेरी आस्था पूर्ण करने और मेरे भ्रष्टाचार को उजागर करने में सक्षम थीं। अंत के दिनों में परमेश्वर का कार्य विभिन्न प्रकार के उत्पीड़न, क्लेश, परीक्षणों और शोधन के माध्यम से लोगों की आस्था का परीक्षण करने के उद्देश्य के लिए है, जो यह प्रकट करता है कि कौन सचमुच विश्वास करता है और कौन नहीं। जो लोग परमेश्वर के वचनों को पढ़ना जारी रखते हैं और खतरे और विपत्ति में अपने कर्तव्यों में वफादार रहते हैं, जो गिरफ्तार होने पर भी बड़े लाल अजगर के सामने गवाही में अडिग रहते हैं, वही परमेश्वर के सच्चे विश्वासी और अनुयायी होते हैं। दूसरी ओर, जो लोग उत्पीड़न और क्लेश के दौरान खुद को बचाने के लिए दुबक जाते हैं, अपने कर्तव्य त्याग देते हैं और परमेश्वर से विश्वासघात करते हैं, वे परमेश्वर के कार्य के माध्यम से प्रकट होने वाली खरपतवार और छद्म-विश्वासी होते हैं और उन्हें अंततः हटा दिया जाएगा। यह परमेश्वर के कार्य की बुद्धिमत्ता है। अतीत में, मुझे लगता था कि मेरी आस्था मजबूत है और मैं परमेश्वर पर भरोसा करती हूँ, लेकिन तथ्यों से पता चला कि मुझमें सच्ची निष्ठा और समर्पण की कमी है। ऐसी स्थिति में, मैं छिपती रही और इधर-उधर घूमती रही, शारीरिक पीड़ा का सामना करने पर शिकायत करती रही और समर्पण करने से इनकार करती रही, और यहाँ तक कि निरंतर भय में रहने से बचने के लिए यह तक सोचने लगी कि पुलिस मुझे पकड़ ले और पीट-पीटकर मार डाले। मैंने देखा कि मैं कितनी विद्रोही थी! मैं महत्वपूर्ण क्षणों में परमेश्वर के लिए गवाही देने में विफल रही, और इसके बजाय शैतान के साथ समझौते कर रही थी। मैंने सचमुच परमेश्वर को निराश किया! मुझे यह भी एहसास हुआ कि उत्पीड़न और विपत्ति का सामना करते हुए मुझे परमेश्वर के प्रति वफादारी बनाए रखनी चाहिए, और अंत तक किसी भी कठिनाई को सहना चाहिए, जो कि सच्चे विश्वासियों को करना चाहिए।
मार्च 2022 में एक बहन को रिहा किया गया था, उसने मुझे सूचित किया कि पुलिस को पता है कि मैं कलीसिया अगुआ हूँ और मेरा पता लगाने के लिए वह स्काईनेट निगरानी प्रणाली का उपयोग कर रही है, उनका दावा है कि वे मुझे घर से बाहर निकलते ही पकड़ लेंगे। इस जानकारी ने मुझे बेहद बेचैन और भयभीत कर दिया, और मुझे लगा कि मैं लगातार पकड़े जाने के खतरे में हूँ। मैंने सोचा, “अगर पुलिस मुझे पकड़ लेती है, तो वह मुझे आसानी से नहीं छोड़ेगी। चूँकि वे खास तौर पर अगुआओं को निशाना बना रहे हैं, तो वे जरूर मुझे भाई-बहनों से विश्वासघात करने के लिए मजबूर करेंगे। अगर मैं उनसे विश्वासघात नहीं करती, तो वे निश्चित रूप से मुझ पर गंभीर अत्याचार करेंगे, संभवतः मुझे पीट-पीटकर मार डालेंगे या मुझे अपंग बना देंगे। अगर मुझे पीट-पीटकर मार दिया जाता है, तो क्या परमेश्वर में विश्वास करने की मेरी यात्रा समाप्त नहीं हो जाएगी? क्या मैं बचाए जाने का अपना मौका नहीं खो दूँगी?” मैं इस बारे में और अधिक नहीं सोच पाई। कुछ दिनों बाद, मुझे एक उच्च अगुआ से एक पत्र मिला जिसमें मुझे और बहन चेन ली को मॉर्निंग स्टार कलीसिया में स्थानांतरित करने का निर्देश था। मैं मन ही मन यह सोचकर खुश थी, “मैं आखिरकार यह जगह छोड़ सकती हूँ। यहाँ की स्थिति बहुत डरावनी है; पुलिस ने पहले ही नब्बे से अधिक लोगों को गिरफ्तार कर लिया है। यहाँ रहना खतरे से खाली नहीं है!” स्थानांतरण की प्रतीक्षा करते हुए मुझे मॉर्निंग स्टार कलीसिया से एक और पत्र मिला। उन्होंने कहा कि दो कलीसिया अगुआओं और दर्जनों भाई-बहनों को गिरफ्तार किया गया है, और परमेश्वर के वचनों की कुछ किताबें भी पुलिस ने जब्त कर ली हैं। वहाँ के हालात से परिचित चेन ली को रातों-रात वहाँ पहुँचकर बाद की स्थिति को सँभालना पड़ा, जिससे मेरा स्थानांतरण विलंबित हो गया। चेन ली ने कहा, “वहाँ का माहौल बहुत खराब है, और हमें मॉर्निंग स्टार कलीसिया में जाकर बाद की स्थिति को सँभालना है। अगर तुम अभी चली गईं, तो हमारे इस कलीसिया के काम का क्या होगा?” उसके शब्दों ने मुझे बहुत अपराध बोध महसूस कराया। बहनें अपने जीवन को जोखिम में डालकर उस स्थिति को सँभाल रही थीं, जबकि मैं जल्दी जाने के बारे में सोच रही थी। एक कलीसिया अगुआ के तौर पर, मैं कलीसिया के काम की रक्षा नहीं कर रही थी या इस महत्वपूर्ण समय में बहनों की कठिनाइयों पर विचार नहीं कर रही थी, और बस वहाँ से जाना चाहती थी। मैं इतनी स्वार्थी कैसे हो सकती हूँ? इसका एहसास करते हुए, मैंने उच्च अगुआ को स्थिति के बारे में बताया और कलीसिया का काम सँभालने के लिए रुकने की अपनी इच्छा व्यक्त की। इस समय, मैं प्रार्थना करने और यह खोजने परमेश्वर के सामने आई, “इस तरह के माहौल की अनुमति देने में परमेश्वर का इरादा क्या है? मैं कैसे आत्म-चिंतन कर खुद को जानूँ?” उस समय, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “जब वे लोग जो परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होते हैं, स्पष्ट रूप से जानते हैं कि परिवेश खतरनाक है, तब भी वे गिरफ्तारी के बाद का कार्य सँभालने का जोखिम उठाते हैं, और निकलने से पहले वे परमेश्वर के घर को होने वाले नुकसान को न्यूनतम करते हैं। वे अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं देते। मुझे बताओ, बड़े लाल अजगर के इस दुष्ट राष्ट्र में, कौन यह सुनिश्चित कर सकता है कि परमेश्वर में विश्वास करने और कर्तव्य करने में कोई भी खतरा न हो? चाहे व्यक्ति कोई भी कर्तव्य निभाए, उसमें कुछ जोखिम तो होता ही है—लेकिन कर्तव्य का निर्वहन परमेश्वर द्वारा सौंपा गया आदेश है, और परमेश्वर का अनुसरण करते हुए, व्यक्ति को अपना कर्तव्य करने का जोखिम उठाना ही चाहिए। इसमें बुद्धि का इस्तेमाल करना चाहिए और अपनी सुरक्षा के इंतजाम करने की भी आवश्यकता होती है, लेकिन व्यक्ति को अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा को पहला स्थान नहीं देना चाहिए। उसे पहले परमेश्वर के इरादों पर विचार करना चाहिए, उसके घर के कार्य और सुसमाचार के प्रचार को सबसे ऊपर रखना चाहिए। परमेश्वर ने तुम्हें जो आदेश सौंपा है, उसे पूरा करना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, और वह पहले आता है” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दो))। परमेश्वर के वचनों को पढ़कर मैं समझ गई कि जो लोग सचमुच परमेश्वर में विश्वास करते हैं और उसके प्रति वफादार होते हैं, जब वे बड़े लाल अजगर को परमेश्वर के चुने हुए लोगों को पागलों की तरह गिरफ्तार करते देखते हैं, तो वे देह के विरुद्ध विद्रोह कर सकते हैं, अपनी सुरक्षा की अनदेखी कर सकते हैं और परमेश्वर के घर के हितों को कायम रख पाते हैं। यह वह व्यक्ति होता है जो परमेश्वर के इरादे पर विचार करता है, जिसमें मानवता और अंतरात्मा होती है। लेकिन जब मैंने देखा कि कलीसिया के काम को करने के लिए लोगों की जरूरत है, तो मैंने केवल अपनी सुरक्षा के बारे में सोचा और सोचा कि यह जगह कैसे जल्दी छोड़ी जाए, ताकि मुझे अपने दिन अब और लगातार डर और बेचैनी में न बिताने पड़ें। मैंने कलीसिया के काम पर विचार नहीं किया या बहनों की कठिनाइयों के प्रति सहानुभूति नहीं जताई, मैं बस अपनी जिम्मेदारियों से बचना चाहती थी और कछुए की तरह अपने खोल में छिप जाना चाहती थी। मैं बहुत कायर थी, पूरी तरह मानवता से रहित! जब विपत्ति का सामना हुआ, तो मैंने खुद को बचाया और कलीसिया के काम की अनदेखी की, अपना स्वार्थी और नीच स्वभाव प्रदर्शित किया। अगर मैंने सुधार न किए, तो मैं निश्चित रूप से परमेश्वर की घृणा और तिरस्कार झेलूँगी। मैं अब देह सुख के पीछे नहीं भाग सकती थी या कायर नहीं बनी रह सकती थी। चाहे परिवेश कितना भी खतरनाक हो या कितनी भी कठिनाइयाँ हों, कलीसिया का काम बरकरार रखने के लिए मुझे पूरी तरह से जुट जाना था। एक सृजित प्राणी में ऐसी वफादारी और समर्पण होना चाहिए और यह शैतान पर विजय की गवाही है। मैं बहनों के साथ रुककर उनके साथ काम करने को तैयार थी ताकि बाद में स्थिति को सँभाला जा सके।
बाद में, भाई-बहनों ने मेरे लिए परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा, जिसमें मेरी स्थिति के बारे में बताया गया था। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “मसीह-विरोधी अपनी सुरक्षा बनाए रखने के लिए हरसंभव प्रयास करते हैं। वे मन ही मन यह सोचते हैं : ‘मुझे अपनी सुरक्षा अवश्य सुनिश्चित करनी चाहिए। चाहे जो भी पकड़ा जाए, मैं न पकड़ा जाऊँ।’ ... अगर कोई स्थान सुरक्षित होता है, तो मसीह-विरोधी उस स्थान को कार्य करने के लिए चुनेगा, और बेशक, वह बहुत सक्रिय और सकारात्मक दिखाई देगा, अपनी महान ‘जिम्मेदारी की भावना’ और ‘निष्ठा’ दिखाएगा। अगर किसी कार्य में जोखिम होता है और उसके घटना का शिकार होने या उसे करने वाले के बारे में बड़े लाल अजगर को पता चल जाने की संभावना होती है, तो वे बहाने बना देते हैं और इससे इनकार करते हुए बचकर भागने का मौका ढूँढ़ लेते हैं। जैसे ही कोई खतरा होता है, या जैसे ही खतरे का कोई संकेत होता है, वे भाई-बहनों की परवाह किए बिना, खुद को छुड़ाने और अपना कर्तव्य त्यागने के तरीके सोचते हैं। वे केवल खुद को खतरे से बाहर निकालने की परवाह करते हैं। दिल में वे पहले से ही तैयार रह सकते हैं : जैसे ही खतरा प्रकट होता है, वे उस काम को तुरंत छोड़ देते हैं जिसे वे कर रहे होते हैं, इस बात की परवाह किए बिना कि कलीसिया का काम कैसे होगा, या इससे परमेश्वर के घर के हितों या भाई-बहनों की सुरक्षा को क्या नुकसान पहुँचेगा। उनके लिए जो मायने रखता है, वह है भागना। ... ये लोग परमेश्वर पर विश्वास करने के कारण उत्पीड़न सहने को तैयार नहीं होते; वे गिरफ्तार होने, प्रताड़ित किए जाने और दोषी ठहराए जाने से डरते हैं। सच तो यह है कि वे बहुत पहले ही अपने दिलों में शैतान के आगे घुटने टेक चुके हैं। वे शैतानी शासन की शक्ति से भयभीत हैं, और इससे भी ज्यादा वे खुद पर होने वाली यातना और कठोर पूछताछ जैसी चीजों से डरते हैं। इसलिए, मसीह-विरोधियों के साथ अगर सब-कुछ सुचारु रूप से चल रहा होता है, और उनकी सुरक्षा को कोई खतरा या उसे लेकर कोई समस्या नहीं होती, और कोई जोखिम संभव नहीं होता है, तो वे अपने उत्साह और ‘वफादारी,’ यहाँ तक कि अपनी संपत्ति की भी पेशकश कर सकते हैं। लेकिन अगर हालात खराब हों और परमेश्वर में विश्वास रखने और अपना कर्तव्य करने के कारण उन्हें किसी भी समय गिरफ्तार किया जा सकता हो, और अगर परमेश्वर पर उनके विश्वास के कारण उन्हें उनके आधिकारिक पद से हटाया जा सकता हो या उनके करीबी लोगों द्वारा त्यागा जा सकता हो, तो वे असाधारण रूप से सावधान रहेंगे, न तो सुसमाचार का प्रचार करेंगे, न ही परमेश्वर की गवाही देंगे और न ही अपना कर्तव्य करेंगे। जब परेशानी का कोई छोटा-सा भी संकेत होता है, तो वे अपने खोल में छिपने वाले कछुए की तरह पीछे हट जाते हैं; जब परेशानी का कोई छोटा-सा भी संकेत होता है, तो वे परमेश्वर के वचनों की अपनी पुस्तकें और परमेश्वर पर विश्वास से संबंधित कोई भी चीज फौरन कलीसिया को लौटा देना चाहते हैं, ताकि खुद को सुरक्षित और हानि से बचाए रख सकें। क्या वे खतरनाक नहीं हैं? गिरफ्तार किए जाने पर क्या वे यहूदा नहीं बन जाएँगे? मसीह-विरोधी इतने खतरनाक होते हैं कि कभी भी यहूदा बन सकते हैं; इस बात की संभावना हमेशा बनी रहती है कि वे परमेश्वर से विश्वासघात करेंगे। इतना ही नहीं, वे बेहद स्वार्थी और नीच होते हैं। यह मसीह-विरोधियों के प्रकृति सार से निर्धारित होता है” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दो))। परमेश्वर उजागर करता है कि मसीह-विरोधी खुद को बचाने के लिए खतरे का सामना करने पर अपने कर्तव्य त्याग देना चाहते हैं। वे कलीसिया के काम की उपेक्षा करते हैं और केवल जीवित बाहर निकलने के बारे में सोचते हैं। ऐसे लोग स्वार्थी और नीच होते हैं। मुझे एहसास हुआ कि मेरा व्यवहार एक मसीह-विरोधी के व्यवहार जैसा था। जब कोई खतरा नहीं था, तो मैं सक्रिय रूप से अपने कर्तव्यों का पालन कर पाई। लेकिन जब कई अगुआओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, तो कुछ यहूदा बन गए और मुझे भी धोखा दिया गया, मैं डरपोक और भयभीत हो गई और जल्दी से जल्दी उस खतरनाक जगह को छोड़ना चाहा। मैंने देखा कि मैं वास्तव में स्वार्थी और नीच थी, हमेशा अपने भौतिक हितों के बारे में सोच रही थी, मैंने बहनों के साथ मिलकर काम करने के बारे में नहीं सोचा ताकि बाद के परिणामों को सँभाला जा सके और नुकसान को कम किया जा सके। अपने कर्तव्यों के प्रति मेरी कोई निष्ठा नहीं थी और मैंने एक मसीह-विरोधी का स्वार्थी और नीच स्वभाव प्रकट किया। परमेश्वर के वचनों द्वारा उजागर हुए बिना, मैं यह नहीं पहचान पाती कि यह एक मसीह-विरोधी स्वभाव है।
बाद में, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा, जिसने मेरे दिल को कुछ स्पष्टता दी। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “इस तरह के लोग बस डरपोक होते हैं, और हम सिर्फ इस अभिव्यक्ति के आधार पर उन्हें मसीह-विरोधी नहीं कह सकते, मगर इस अभिव्यक्ति की प्रकृति क्या है? इस अभिव्यक्ति का सार एक छद्म-विश्वासी का सार है। वे यह नहीं मानते कि परमेश्वर लोगों की सुरक्षा कर सकता है, और वे यह तो बिल्कुल नहीं मानते कि परमेश्वर की खातिर खुद को खपाने के लिए समर्पित होना, सत्य के लिए खुद को समर्पित करना है, और परमेश्वर इसे स्वीकृति देता है। वे अपने दिलों में परमेश्वर का भय नहीं मानते; वे केवल शैतान और दुष्ट राजनीतिक दलों से डरते हैं। वे परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं रखते, वे यह नहीं मानते कि सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है, और यह तो बिल्कुल नहीं मानते कि परमेश्वर ऐसे व्यक्ति को स्वीकृति देगा जो परमेश्वर की खातिर, उसके मार्ग पर चलने की खातिर और परमेश्वर का आदेश पूरा करने की खातिर खुद को खपाता है। वे इनमें से कुछ भी नहीं देख पाते। वे किसमें विश्वास करते हैं? उनका मानना है कि अगर वे बड़े लाल अजगर के हाथ लग गए, तो उनका बुरा अंत होगा, उन्हें सजा हो सकती है या यहाँ तक कि अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ सकता है। अपने दिलों में, वे केवल अपनी सुरक्षा के बारे में सोचते हैं, कलीसिया के कार्य के बारे में नहीं। क्या ये छद्म-विश्वासी नहीं हैं?” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दो))। परमेश्वर के वचनों ने मेरी सच्ची दशा को उजागर कर दिया। मैंने हमेशा सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने का दावा किया था, लेकिन सीसीपी की गिरफ्तारियों का सामना होने पर, मुझे सच में विश्वास नहीं हुआ कि सब कुछ परमेश्वर के हाथ में है, परमेश्वर के अद्वितीय अधिकार में तो बिल्कुल भी विश्वास नहीं था। यह जानने पर कि मुझे यहूदा ने धोखा दिया और पुलिस मेरी तलाश में है, मुझे पकड़े जाने, अपंग होने या पीट-पीटकर मार दिए जाने का डर सताने लगा, और यहाँ तक कि परमेश्वर से विश्वासघात करने की इच्छा भी हुई। तथ्यों के प्रकाशन के माध्यम से, मैंने देखा कि मैं सच में कितनी डरपोक और कायर हूँ, और मुझे परमेश्वर के अधिकार की कोई समझ नहीं है। मैंने ऐसा व्यवहार किया जैसे मेरा जीवन शैतान के हाथों में हो। मैं सीसीपी की बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियों से इतनी भयभीत थी कि मैं पूरी तरह से आपा खो बैठी। मेरी हालत बहुत दयनीय थी! वास्तव में, चाहे सीसीपी मुझ पर नजर रखने या मुझे पकड़ने के लिए कोई भी तरीका या उन्नत तकनीक का उपयोग करे, परमेश्वर की अनुमति के बिना, उनकी योजनाएँ सफल नहीं हो सकतीं। मुझे 2021 का एक दिन याद आया, जब मैं एक बहन के घर बैठक के लिए जाने वाली थी। जैसे ही मैं सीढ़ियों से ऊपर जाने लगी, मुझे कलीसिया में एक जरूरी मामला याद आया और मैंने ऊपर न जाने का फैसला किया। अगले दिन, मुझे पता चला कि पुलिस ने उसी समय उसके घर पर छापा मारा था। परमेश्वर की सुरक्षा के बिना, मैं पुलिस के हाथों में पड़ जाती। इसी तरह, हालाँकि मैं यहूदा के हाथों धोखा खा चुकी थी और सीसीपी को पता था कि मैं कलीसिया की अगुआ हूँ और मेरा पता लगाने के लिए उच्च तकनीक वाली निगरानी का इस्तेमाल कर रही थी, मुझे पता था कि परमेश्वर की अनुमति के बिना, चाहे बड़ा लाल अजगर मुझे पकड़ने की हर संभव कोशिश कर ले, उसके सारे प्रयास व्यर्थ होंगे। अगर परमेश्वर अनुमति देता है तो मैं चाहकर भी भाग नहीं पाऊँगी। मेरा जीवन और मृत्यु उसके हाथों में है, शैतान के हाथों में नहीं। जब खतरे का सामना हुआ, तो भागने की मेरी इच्छा मृत्यु के मेरे अत्यधिक भय और जीवन के लालच से उपजी थी। मैंने अपने जीवन को सबसे महत्वपूर्ण माना, यह सोचकर कि अगर मैंने अपना जीवन खो दिया, तो मैं अब उद्धार का अनुसरण नहीं कर पाऊँगी और मेरा कोई अच्छा परिणाम और गंतव्य नहीं होगा। इसलिए, जब खतरा आया, तो मैंने हमेशा अपने जीवन की रक्षा करना चाहा। प्रभु यीशु ने कहा था : “जो अपने प्राण बचाता है, वह उसे खोएगा; और जो मेरे कारण अपना प्राण खोता है, वह उसे पाएगा” (मत्ती 10:39)। पूरे इतिहास में, प्रभु के शिष्य और प्रेरित सुसमाचार का प्रचार करते समय पत्थरों से मार डाले गए और घोड़ों द्वारा फाड़ दिए गए। हालाँकि उनके शरीर मर गए, लेकिन उन्होंने शैतान के सामने परमेश्वर की गवाही दी, जो कि धार्मिकता के लिए सताया जाना है और परमेश्वर इसे याद रखता है। दूसरी ओर, जो लोग खतरे में होने पर परमेश्वर को धोखा देते हैं, यहूदा बन जाते हैं, या जीवन के लालच में और मृत्यु के डर से अपने कर्तव्य छोड़ देते हैं, वे देह में जीवित रहते हुए लग सकते हैं, लेकिन उन्होंने परमेश्वर के सामने अपनी गवाही खो दी है, और परमेश्वर उनकी सराहना नहीं करता। मैं भाग्यशाली थी कि अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य को स्वीकार किया, जो एक महान अनुग्रह है। अगर परमेश्वर मुझे पकड़े जाने की अनुमति देता है, तो मुझे बिना किसी निजी चुनाव के शैतान के सामने परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए, यह जानते हुए कि भले ही मैं पकड़ी जाऊँ या मर जाऊँ, यह सार्थक और मूल्यवान होगा। बाद में, कई कलीसिया सदस्यों को यहूदा द्वारा धोखा दिया गया, और सामान्य सभाएँ और कर्तव्य बाधित हुए। भाई-बहन डर में रहने लगे। ऐसी स्थिति का सामना करते हुए, मैं भी कमजोर थी और अक्सर परमेश्वर से प्रार्थना करती थी, आस्था और साहस माँगती थी। मैंने संकल्प लिया कि चाहे कितनी भी मुश्किलें क्यों न आएँ, मैं बाद के परिणाम सँभालने के लिए परमेश्वर पर भरोसा रखूँगी। एक कलीसिया को तत्काल नए अगुआओं की जरूरत थी, और मुझे वहाँ जाकर चुनाव आयोजित कराना था। हालाँकि मुझे चिंताएँ थीं, खासकर पुलिस के स्काईनेट निगरानी सिस्टम द्वारा पीछा किए जाने के बारे में, मुझमें बुजदिली और भय था, मुझे परमेश्वर के वचन याद आए : “परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान के लिए जमीन पर पानी की एक बूँद या रेत का एक कण छूना भी मुश्किल है; परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान धरती पर चींटियों का स्थान बदलने के लिए भी स्वतंत्र नहीं है, परमेश्वर द्वारा सृजित मानव-जाति की तो बात ही छोड़ दो” (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I)। परमेश्वर के वचनों ने मेरी आस्था को मजबूत किया। शैतान परमेश्वर के हाथों में केवल सेवा की वस्तु है, विषमता है, और मुझे कोई डर नहीं होना चाहिए। मुझे प्रार्थना करनी चाहिए और परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिए, खुद को उसके हाथों में सौंप देना चाहिए, और अपने कर्तव्य पूरे करने चाहिए। फिर मैंने कलीसिया के अगुआ के चुनाव के आयोजन में परमेश्वर पर भरोसा किया, और इस तरह से अभ्यास करने पर मुझे अपने दिल में शांति और स्थिरता महसूस हुई।
इस अनुभव के जरिए मुझे अपने स्वार्थी और घृणित भ्रष्ट स्वभाव की कुछ समझ मिली, परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और संप्रभुता का सच्चा एहसास हुआ, और परमेश्वर का प्रतिरोध करने में सीसीपी के सार की समझ मिली। ये वे अंतर्दृष्टियाँ हैं जो मैं आरामदेह परिवेश में प्राप्त नहीं कर सकती थी।