18. खतरनाक परिस्थिति में भी अपने कर्तव्य पर अडिग रहना

ली फांग, चीन

जुलाई 2023 में एक दिन जब मैं एक सभा से लौटी तो एक बहन मेरे पास दौड़ी आई और बताने लगी कि किउ लिंग नाम के सामान्य मामलों के उपयाजक और एक कलीसिया अगुआ को गिरफ्तार कर लिया गया है। उसने मुझसे भी आग्रह किया कि जब भी मैं सभाओं के लिए बाहर जाऊँ तो बेहद सावधान रहूँ। मैं काफी चौंक गई और सोचने लगी, “मैं हमेशा किउ लिंग के साथ सभा करती हूँ और अक्सर उसके घर जाती हूँ। क्या पुलिस ने पहले ही मुझे देख लिया है? दो साल पहले परमेश्वर में विश्वास करने के लिए मेरी रिपोर्ट की गई थी और पुलिस ने उस समय मेरा एक वीडियो बनाया था। अगर मुझे दोबारा गिरफ्तार किया गया तो यह दोहरा अपराध होगा और अगर वे मुझे जान से नहीं मारते हैं तो भी बुरी तरह से जख्मी कर ही देंगे।” इसके तुरंत बाद एक और कलीसिया अगुआ आई और उसने कहा कि वह आगे की स्थिति सँभालेगी। उसने मुझसे नवागंतुकों का सिंचन करने और साथ देने को कहा ताकि वे उत्पीड़न और मुश्किल का सामना करने में अडिग रह सकें। जब उसने मुझे वह काम सौंपा तो मुझे अचानक घबराहट हुई और मैंने सोचा, “इतनी खतरनाक चीजें होने के बावजूद क्या वह मुझे आग से खेलने नहीं भेज रही है?” हर तरह की यातना झेल रहे भाई-बहनों की तस्वीरें मेरे दिमाग में एक के बाद एक घूमने लगीं। मैं चिंता में सोचने लगी, “पुलिस के पास मेरा एक वीडियो है। जैसे ही वे मुझे पकड़ लेंगे, वे पक्का मेरे साथ नरमी नहीं बरतेंगे। अगर मैं यातना नहीं सह पाई और यहूदा बन गई तो न सिर्फ मुझे उद्धार नहीं मिलेगा, बल्कि मुझे सजा देने के लिए नरक में भेज दिया जाएगा। इन वर्षों में मैंने अपनी आस्था में जो कुछ भी किया है, परिवार त्यागना, अपना करियर छोड़ना, खुद को खपाना, कष्ट झेलना, कीमत चुकाना—क्या यह सब बेकार नहीं चला जाएगा?” इसका एहसास होने पर मैं बस अपनी मेजबान घर में छिप जाना चाहती थी और बाहर जाने से बचना चाहती थी। मुझे लगा कि काम करने का यही तरीका सुरक्षित होगा। हालाँकि तभी मुझे एहसास हो गया कि ऐसे सोचना गलत था : क्या ऐसे नाजुक क्षण में डरना, कायरता दिखाना और सिर्फ अपने हितों की रक्षा करना मेरा स्वार्थी होना नहीं होगा? अगुआ खतरे का जोखिम उठाकर बाद की स्थिति सँभाल रही थी—अगर वह मेरी तरह होती, खतरे के मामूली संकेत पर पीछे हट जाती, तो बाद की स्थिति कौन सँभालता? इसका एहसास होने पर डरने और कायरता महसूस करने के बावजूद मैंने कार्यभार स्वीकार लिया।

अगले दिन दोपहर के आसपास मैंने सुना कि एक मेजबान बहन और उसकी छोटी बहन को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। मैंने मन ही मन सोचा, “मैं अभी कुछ समय पहले ही उनके साथ एक सभा में थी और अब उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है। अगर मैं बाहर जाती हूँ तो क्या मुझे भी गिरफ्तार नहीं किया जाएगा?” मुझे बहुत उलझन हुई : अगर मैं बाहर गई तो मुझे गिरफ्तार किया जा सकता था, लेकिन अगर मैं छिपी रही तो दूसरे भाई-बहनों को इन दो बहनों की गिरफ्तारी के बारे में पता नहीं चलेगा। अगर मैंने उन्हें तुरंत नहीं बताया तो उनके भी गिरफ्तार होने का खतरा होगा। इसका एहसास होने पर मैंने फैसला किया कि उन्हें बताऊँगी कि क्या हुआ है, और कहूँगी कि अस्थायी रूप से सभाएँ स्थगित कर परमेश्वर के वचनों की अपनी सभी किताबें छिपा दें। वापस आने के बाद मैंने सोचा, “मैं फिर से बाहर नहीं जा सकती। यह बहुत खतरनाक है!” मुझे हैरानी हुई कि उसी शाम को भाई वांग बिन मेरे पास आया और मुझे बताया कि अगुआओं ने मूल रूप से काम पर चर्चा करने के लिए उसके घर पर सभा आयोजित की थी, लेकिन उसकी पत्नी को अभी-अभी गिरफ्तार कर लिया गया और वह दीवार फांदकर बच निकला। भाई वांग ने कहा कि हमें तुरंत अगुआओं को उसके घर न जाने के लिए सूचित करना होगा। मैं और भी डर गई और घबराहट में मेरे पैर सुन्न पड़ गए। मैंने सोचा, “अगर पुलिस तुम्हारा पीछा कर रही है और निगरानी कर रही है तो बाहर निकलते ही वह मुझे गिरफ्तार कर लेगी! वे पुलिसवाले परमेश्वर के चुने हुए लोगों के प्रति साथ बेहद दुष्ट और क्रूर हैं और वे मुझे गिरफ्तार करने के लिए पीछे पड़ गए हैं। अगर वे मुझे गिरफ्तार करते हैं और पीट-पीटकर मार डालते हैं तो मैं अपने पति और बच्चे को फिर कभी नहीं देख पाऊँगी!” लेकिन वांग बिन के अलावा, जो पुलिस से बाल-बाल बचकर भागा था, वहाँ सिर्फ एक बूढ़ी बहन ही मौजूद थी। वह बहन लगभग 80 साल की थी और ज्यादा चल-फिर नहीं पाती थी। इतना ही नहीं, बाहर पहले से ही अंधेरा हो चुका था, इसलिए अगुआओं को पत्र देना का जिम्मा मेरा था। मैंने जल्दी से परमेश्वर से प्रार्थना की और फिर मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया जो मैंने पढ़ा था : “लोगों की निष्ठाहीनता इस बात में अभिव्यक्त होती है कि वे हमेशा खुद की रक्षा कैसे करते हैं, किसी भी चीज से सामना होने पर, वे कैसे कछुए की तरह अपने कवच में घुस जाते हैं, और अपना सिर तब तक बाहर नहीं निकलते जब तक वह चीज गुजर न जाए। उनका चाहे जिस भी चीज से सामना हो, वे हमेशा बेहद सावधानी बरतते हैं, उनमें बहुत व्याकुलता, चिंता और आशंका होती है, और वे कलीसिया कार्य के बचाव में खड़े होने में असमर्थ होते हैं। यहाँ समस्या क्या है? क्या यह आस्था का अभाव नहीं है? परमेश्वर में तुम्हारी आस्था सच्ची है ही नहीं, तुम नहीं मानते कि परमेश्वर की संप्रभुता सभी चीजों पर है, नहीं मानते कि तुम्हारा जीवन और सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है। तुम परमेश्वर की इस बात पर विश्वास नहीं करते, ‘परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान तुम्हारे शरीर का एक रोआँ भी हिला नहीं सकता।’ तुम अपनी ही आँखों पर भरोसा कर तथ्य परखते हो, हमेशा अपनी रक्षा करते हुए अपने ही आकलन के आधार पर चीजों को परखते हो। ... परमेश्वर में सच्ची आस्था क्यों नहीं है? क्या इसलिए कि लोगों के अनुभव बहुत उथले हैं, और वे इन चीजों को गहराई से नहीं समझ सकते, या फिर इसलिए कि वे बहुत कम सत्य समझते हैं? कारण क्या है? क्या इसका लोगों के भ्रष्ट स्वभावों से कुछ लेना-देना है? क्या ऐसा इसलिए है कि लोग बहुत कपटी हैं? (बिल्कुल।) वे चाहे जितनी भी चीजों का अनुभव कर लें, उनके सामने कितने भी तथ्य रख दिए जाएँ, वे नहीं मानते कि यह परमेश्वर का कार्य है, या व्यक्ति का भाग्य परमेश्वर के हाथों में है। यह एक पहलू है। एक और घातक मुद्दा यह है कि लोग खुद की बहुत ज्यादा परवाह करते हैं। वे परमेश्वर, उसके कार्य, परमेश्वर के घर के हितों, उसके नाम या महिमामंडन के लिए कोई कीमत नहीं चुकाना चाहते, कोई त्याग नहीं करना चाहते। वे ऐसा कुछ भी करने को तैयार नहीं हैं जिसमें जरा भी खतरा हो। लोग खुद की बहुत ज्यादा परवाह करते हैं! मृत्यु, अपमान, बुरे लोगों के जाल में फँसने और किसी भी प्रकार की दुविधा में पड़ने के अपने डर के कारण लोग अपनी देह को संरक्षित रखने के लिए किसी भी हद तक चले जाते हैं, किसी भी खतरनाक स्थिति में प्रवेश न करने की कोशिश करते हैं। एक ओर, यह व्यवहार दिखाता है कि लोग बहुत ज्यादा कपटी हैं, जबकि दूसरी ओर यह उनका आत्म-संरक्षण और स्वार्थ दर्शाता है(वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण कैसे करें (19))। परमेश्वर के वचनों के न्याय और प्रकाशन ने गंभीर चोट की। मुझे बहुत शर्मिंदगी हुई : मेरा आचरण ठीक वैसा ही था जैसा परमेश्वर ने बताया था। जब कोई खतरा नहीं था और सब कुछ ठीक चल रहा था तो मैं हमेशा कहती थी कि परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभुता रखता है, सब कुछ उसके नियंत्रण में है, मनुष्य का भाग्य परमेश्वर के हाथों में है और चाहे परिस्थिति कितनी भी मुश्किल क्यों न हो, हमें अपना कर्तव्य ठीक से निभाना चाहिए और परमेश्वर की गवाही में अडिग रहना चाहिए। अब मैंने देखा कि मैं सिर्फ नारे लगा रही थी और अपना कर्तव्य निभाना और परमेश्वर को संतुष्ट करना सिर्फ मेरी आकांक्षाएँ थीं। अगुआओं के गिरफ्तार होने का खतरा था और वांग बिन ने मुझे उन्हें एक पत्र देने के लिए कहा था—थोड़ी सी भी मानवता वाला कोई भी व्यक्ति कलीसिया के हितों पर विचार करता और तुरंत पत्र भेज देता, लेकिन मैं स्वार्थी और धोखेबाज थी और सिर्फ अपनी सुरक्षा के बारे में सोच रही थी। मैं नहीं जाना चाहती थी क्योंकि मुझे डर था कि अगर मैंने पत्र भेजा तो मेरा पीछा किया जाएगा और मुझे गिरफ्तार कर लिया जाएगा और मुझे चिंता थी कि अगर मुझे गिरफ्तार किया गया तो मुझे यातना दी जाएगी। मैंने देखा कि मैं बाकी स्वार्थी और धोखेबाज थी। इस खतरनाक क्षण में, मैंने परमेश्वर के घर के हितों या अपने भाई-बहनों की सुरक्षा के बारे में जरा भी नहीं सोचा। मैं जीवन से चिपकी रही और मरने से डरती रही और बस वही किया मुझे जिंदा रहने के लिए चाहिए था। मैं विश्वासी होने के लायक नहीं थी! इसका एहसास होने पर मैंने झिझकना बंद कर दिया और तुरंत अपने स्कूटर से जाकर अगुआओं को पत्र दिया। पत्र पाने के बाद अगुआ वांग बिन के घर नहीं गए।

पुलिस ने गिरफ्तारियाँ जारी रखीं और भाई-बहनों को एक के बाद एक पकड़ती रही। कलीसिया के ज्यादातर भाई-बहनों ने अस्थायी रूप से सभा स्थगित कर दी, लेकिन अभी भी कुछ नवागंतुकों को मेरे सिंचन और सहयोग की जरूरत थी। मुझे थोड़ी उलझन हुई : इतनी सारी गिरफ्तारियों होने पर नवागंतुक सभाओं में शामिल न हो पाने के कारण परमेश्वर का इरादा समझने में नाकाम हो सकते हैं और कभी भी कलीसिया छोड़ सकते हैं। लेकिन मैंने सुना कि पुलिस गिरफ्तार किए गए भाई-बहनों को तस्वीरें दिखाकर भाई-बहनों की पहचान करने के लिए मजबूर कर रही थी। वे तीन भाई-बहनों की पहचान करने वाले को छोड़ने को तैयार थे। अगर किसी ने मुझे फँसा दिया तो मैं बहुत खतरनाक स्थिति में पड़ जाऊँगी। जब मुझे यह एहसास हुआ तो मैं थोड़ी डर गई। फिर मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए जो कहते हैं : “लोग जो हासिल कर सकते हैं, उसे पूरा करने के लिए उन्हें अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना चाहिए; बाकी सब परमेश्वर के हाथों में है कि वह अपनी संप्रभुता का प्रयोग करे, उसे आयोजित करे और उसका मार्गदर्शन करे। हमें इस बारे में सबसे कम चिंता करनी है। हमारे पीछे परमेश्वर है। न केवल हमारे दिलोंमें परमेश्वर है, बल्कि हमारे पास सच्ची आस्था भी है। यह कोई आध्यात्मिक सहारा नहीं है; वास्तव में, परमेश्वर दिखाई नहीं देता लेकिन वह सदा लोगों को देखता रहता है और उनकी रक्षा करता है, और वह लोगों के साथ है, हमेशा उनके पास मौजूद होता है। जब भी लोग कुछ करते हैं या कोई कर्तव्य निभाते हैं, तो वह देख रहा होता है; वह किसी भी समय और स्थान पर तुम्हारी मदद करने, तुम्हारी रक्षा करने और तुम्हें बचाने के लिए मौजूद होता है। लोगों को बस इतना करना चाहिए कि उन्हें जो करना चाहिए उसे पूरा करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करें। अगर तुम परमेश्वर के वचनों से अवगत हो जाते हो, उन्हें अपने दिल में महसूस करते होऔर उन्हें समझते हो, तुम्हारेआस-पास के लोग तुम्हेंयाद दिलाते हैं या परमेश्वर द्वारा तुम्हें कोई संकेत या शकुन दिया जाता है जो तुम्हें जानकारी प्रदान करता है—यह कुछ ऐसा है जो तुम्हें करना चाहिए, यह परमेश्वर का तुम्हें दिया गया आदेश है—तो तुम्हें अपनी जिम्मेदारी पूरी करनीचाहिए और निष्क्रिय होकर नहीं बैठना चाहिए या किनारे खड़े होकर इसे नहीं देखना चाहिए(वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (21))। परमेश्वर के वचनों ने मुझे सांत्वना दी और प्रेरित किया। मुझे आस्था की अनुभूति हुई और पता चला कि यह खतरनाक स्थिति परमेश्वर द्वारा मुझे परखने का तरीका है। परमेश्वर मेरी हर कथनी और करनी की जाँच कर रहा था और चाहे मुझे कितना भी कष्ट क्यों न सहना पड़े, मुझे वफादार बने रहना था और किसी भी व्यक्ति, घटना या चीज से बाधित नहीं होना था। परमेश्वर मेरी चट्टान था और चाहे बाहरी दुनिया में परिवेश कितना भी खतरनाक क्यों न रहा हो या बड़ा लाल अजगर कितना भी बुरा और उन्मादी क्यों न रहा हो, वे सभी परमेश्वर के हाथों में थे और उनके आयोजनों और संप्रभुता के अधीन थे। परिस्थिति जितनी ज्यादा गंभीर और विकट होगी, मुझे अपना कर्तव्य उतना ही ठीक से निभाना होगा, परमेश्वर की गवाही में अडिग रहना होगा और शैतान को अपमानित करना होगा। इसका एहसास होने के बाद मैंने भेष बदला और नवागंतुकों के सिंचन के लिए तुरंत बाहर चली गई।

उसके बाद कलीसिया के दस से ज्यादा भाई-बहनों की गिरफ्तारी हुई और मेरे रहने के लिए कोई सुरक्षित घर नहीं बचा। जब मैं सड़क पर चल रही थी तो मुझे दुख का एहसास हुआ और मेरी आँखों से आँसू बहने लगे। मैंने सोचा, “यह आवारा, भटकता हुआ जीवन आखिरकार कब खत्म होगा? मेरे कुछ भाई-बहनों को गिरफ्तार कर लिया गया है जबकि कुछ को धोखा दे दिया गया है। अब किसी भी मेजबान का घर सुरक्षित नहीं है तो मैं कहाँ जा सकती हूँ?” मैंने चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना की और उससे मेरे लिए एक रास्ता खोलने के लिए कहा। बाद में मुझे उसके वचनों का यह अंश याद आया : “तुम्हें हर समय यह याद रखना चाहिए कि परमेश्वर लोगों के साथ है, अगर उन्हें कोई कठिनाई हो रही है तो सिर्फ परमेश्वर से प्रार्थना करने और खोजने की जरूरत है और परमेश्वर के साथ रहते कुछ भी कठिन नहीं है। तुममें यह आस्था होनी चाहिए। चूँकि तुम मानते हो कि परमेश्वर सभी चीजों का संप्रभु है तो फिर अपने ऊपर कोई संकट आने पर तुम्हें अभी भी डर क्यों लगता है और ऐसा क्यों लगता है कि तुम्हारे पास कोई सहारा नहीं है? इससे साबित होता है कि तुम परमेश्वर पर भरोसा नहीं करते हो। अगर तुम उसे अपना सहारा और अपना परमेश्वर नहीं मानोगे तो फिर वह तुम्हारा परमेश्वर नहीं है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे याद दिलाया कि परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभुता रखता है और जब तक हम वाकई परमेश्वर पर भरोसा करते हैं, वह हमारा मार्गदर्शन करेगा। इसका एहसास होने पर मुझे फिर से कुछ आस्था मिली। मैं चलते-चलते सोचती रही और अचानक याद आया कि एक बूढ़ी बहन का घर अभी भी अपेक्षाकृत सुरक्षित है और तुरंत वहाँ चला गई। बहन ने मुझे बिना किसी हिचकिचाहट के आने दिया। तब मुझे वाकई एहसास हुआ कि परमेश्वर मनुष्य का अटूट सहारा है और यह मनुष्य पर निर्भर है कि वह मुश्किल का सामना करने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करे।

एक दिन नवागंतुकों के सिंचन के बाद मैं कुछ सवाल पूछने पुराने मेजबान के घर गई। हैरानी की बात थी कि मेजबान बहन ने मुझे बताया कि उसके घर की अभी-अभी तलाशी ली गई है और मुझे तुरंत वहाँ से निकल जाना चाहिए। मैं जल्दी से एक तंग गली में भाग गई। मुझे चिंता थी कि मेरा पीछा किया जा रहा है और मेरा दिल जोर से धड़क रहा था। मैंने सोचा, “पुलिस के पास पहले से ही मेरी जानकारी है। अगर मैं इस बार उनके हाथों में पड़ गई तो पक्का वे मुझे पीट-पीटकर मार डालेंगे!” जितना ज्यादा मैंने सोचा, मुझे उतना ही ज्यादा डर लगा और मेरा कलेजा मुँह को आ गया। मैं लगातार परमेश्वर से प्रार्थना करती रही, “हे परमेश्वर! अगर इस बार पुलिस ने मुझे पकड़ लिया तो यह तुम्हारी अनुमति से होगा। मैं समर्पण करने को तैयार हूँ। मुझे बस आस्था और शक्ति और कष्ट सहने की इच्छाशक्ति दो ताकि मैं तुम्हारी गवाही में अडिग रह सकूँ और शैतान को शर्मिंदा कर सकूँ।” प्रार्थना के बाद मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए : “मृत्यु के विषय की प्रकृति वही है जो दूसरे विषयों की होती है। इसका चयन लोग खुद नहीं कर सकते, और इसे मनुष्य की इच्छा से बदलना तो दूर की बात है। मृत्यु भी जीवन की किसी दूसरी महत्वपूर्ण घटना जैसी ही है : यह पूरी तरह से सृष्टिकर्ता के पूर्वनिर्धारण और संप्रभुता के अधीन है। अगर कोई मृत्यु की भीख माँगे, तो जरूर नहीं कि वह मर जाए; अगर कोई जीने की भीख माँगे, तो जरूरी नहीं कि वह जीवित रहे। ये सब परमेश्वर की संप्रभुता और पूर्वनिर्धारण के अधीन हैं, और परमेश्वर के अधिकार, उसके धार्मिक स्वभाव और उसकी संप्रभुता और व्यवस्थाओं से ही इसे बदला जा सकता है(वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण कैसे करें (4))। “अगर तुम सिर्फ यह नारा लगाते हो कि तुम परमेश्वर के लिए क्या करना चाहते हो, तुम अपना कर्तव्य कैसे पूरा करना चाहते हो और तुम परमेश्वर के लिए खुद कितना खपना और कोशिश करना चाहते हो, तो यह बेकार है। जब वास्तविकता तुम्हारे सामने आएगी, जब तुमसे अपना जीवन बलिदान करने को कहा जाएगा, तो क्या तुम अंतिम क्षण में शिकायत करोगे, क्या तुम इच्छुक होगे और क्या तुम वास्तव में समर्पण करोगे—यही तुम्हारे आध्यात्मिक कद की परीक्षा है। अगर अपनी मृत्यु के क्षण में, तुम सहज हो, इच्छुक हो और बिना किसी शिकायत के समर्पण करते हो, अगर तुम्हें लगता है कि तुमने अंत तक अपनी जिम्मेदारियाँ, दायित्व और कर्तव्य निभाए हैं, अगर तुम्हारा दिल आनंदित और शांत है—अगर तुम्हारी मृत्यु इस तरह होती है तो परमेश्वर की निगाह में तुम मरे नहीं हो। बल्कि, तुम दूसरे लोक में और दूसरे रूप में रह रहे होगे। तुमने बस अपने जीने का तरीका बदल लिया होगा। तुम वास्तव में मरे तो बिल्कुल भी नहीं होगे। मनुष्य के हिसाब से, ‘यह व्यक्ति इतनी कम उम्र में चल बसा, कितने दुख की बात है!’ मगर परमेश्वर की नजर में तुम न तो मरे हो, न ही दुख भोगने गए हो। इसके बजाय, तुम आशीष का आनंद लेने गए हो और परमेश्वर के करीब आए हो। क्योंकि, एक सृजित प्राणी के रूप में तुम पहले ही परमेश्वर की नजरों में अपना कर्तव्य निभाने में मानक तक पहुँच चुके हो, इसलिए अब तुम्हारा कर्तव्य पूरा हो गया है, परमेश्वर को अब सृजित प्राणियों के बीच इस कर्तव्य को निभाने के लिए तुम्हारी आवश्यकता नहीं है। परमेश्वर के लिए, तुम्हारे ‘जाने’ को ‘जाना’ नहीं कहा जाएगा, बल्कि इसे ‘ले जाया,’ ‘वापस ले जाया जाना,’ या ‘रहनुमाई कर ले जाना’ कहा जाएगा, और यह एक अच्छी चीज है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सुसमाचार का प्रसार करना सभी विश्वासियों का गौरवपूर्ण कर्तव्य है)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करते हुए मुझे एहसास हुआ कि मनुष्य अपना जीवन और मृत्यु खुद नहीं चुन सकते। वे सिर्फ इसलिए नहीं मरेंगे क्योंकि वे चाहते हैं या सिर्फ इसलिए जीवित रहेंगे क्योंकि वे जीना चाहते हैं। सब कुछ परमेश्वर की संप्रभुता और पूर्वनियति के अधीन है। मुझे यह भी एहसास हुआ कि कि परमेश्वर को इससे खुशी होती है कि सृजित प्राणी सृष्टिकर्ता द्वारा मानवजाति के उद्धार का सुसमाचार फैलाते हैं और अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करते हैं और प्रतिकूल परिवेश में भी अपने कर्तव्य निभाते हैं जिसमें बड़ा लाल अजगर ईसाइयों को उन्मादियों की तरह गिरफ्तार करता है। मैंने सोचा कि कैसे युगों-युगों से संतों ने प्रभु का सुसमाचार फैलाने के लिए अपने बहुमूल्य जीवन का बलिदान दिया है। कुछ को पत्थरों से मार डाला गया, तो कुछ को घोड़ों द्वारा घसीटकर—उन्हें हर तरह की भयानक मौतें मिलीं। लोग सोच सकते हैं कि उनकी मृत्यु क्रूर और दुखद थी, लेकिन परमेश्वर उनकी मृत्यु को सार्थक और मूल्यवान मानता है। जहाँ तक मेरी बात है, किसी खतरनाक स्थिति का सामना होने पर मैं मरने से डरती थी, अपना जीवन संजोती थी और समझ नहीं पाती थी कि मृत्यु वाकई क्या है और मृत्यु का अर्थ क्या है। अगर किसी दिन पुलिस ने मुझे वाकई पकड़ लिया और मरने के डर से मैंने परमेश्वर को धोखा दिया और यहूदा बन गई तो मैं हमेशा के लिए पापी बन जाऊँगी और मेरी देह, रुह और आत्मा अनन्त दंड के अधीन होंगे—यही वास्तविक मृत्यु होगी। बड़ा लाल अजगर चाहे कितना भी क्रूर और दुष्ट क्यों न हो, वह सिर्फ मनुष्य की देह ही नष्ट कर सकता है। अगर मुझे पुलिस ने वाकई गिरफ्तार कर लिया और पीट-पीटकर मार डाला तो मैं धार्मिकता के लिए उत्पीड़न सहूँगी। भले ही मेरी देह नष्ट हो जाएगी, मेरी आत्मा अभी भी परमेश्वर के हाथों में होगी। इसका एहसास होने पर मुझे मृत्यु का उतना डर नहीं रहा।

तब मुझे परमेश्वर के वचन याद आए, जो कहते हैं : “परमेश्वर के प्रबंधन कार्य के विस्तार की अवधि में, परमेश्वर का अनुसरण करने वाला हर व्यक्ति अपना कर्तव्य निभा रहा है, और उन सभी ने बार-बार बड़े लाल अजगर के दमन और क्रूर उत्पीड़न का अनुभव किया है। परमेश्वर के अनुसरण का मार्ग खुरदरा और ऊबड़-खाबड़ है, और यह बेहद कठिन भी है। जिस किसी ने भी दो या तीन साल से ज्यादा समय तक परमेश्वर का अनुसरण किया है, उसने खुद इसका अनुभव किया होगा। हर व्यक्ति द्वारा निभाया गया कर्तव्य, चाहे वह निर्धारित कर्तव्य हो या कोई अस्थायी व्यवस्था, परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं से आता है। लोगों को अक्सर गिरफ्तार किया जा सकता है, कलीसिया के कार्य को बिगाड़ा और खराब किया जा सकता है, और कर्तव्य निभाने वालों की स्पष्ट कमी हो सकती है, खासकर अच्छी काबिलियत और पेशेवर विशेषज्ञता वाले लोगों की, जिनकी संख्या बहुत कम है, मगर परमेश्वर की अगुआई के कारण, उसकी शक्ति और अधिकार की वजह से, परमेश्वर का घर पहले ही सबसे कठिन समय से बाहर निकल चुका है, और इसके सभी कार्य सही रास्ते पर आ गए हैं। मनुष्य के लिए, यह नामुमकिन लगता है, मगर परमेश्वर के लिए कुछ भी हासिल करना मुश्किल नहीं है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सुसमाचार का प्रसार करना सभी विश्वासियों का गौरवपूर्ण कर्तव्य है)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करते हुए मुझे स्पष्टता मिली। चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों, लोगों को एक समय पर एक कदम बढ़ाने के लिए परमेश्वर ने हमेशा अपने अधिकार और शक्ति का उपयोग किया। उदाहरण के लिए जब मूसा ने इस्राएलियों का पलायन करवाया तो लाल सागर उनके सामने था और सैनिकों की सेना ने उन्हें पीछे से खदेड़ा—लोगों ने अपनी धारणाओं और कल्पनाओं में माना कि इस्राएलियों को निश्चित मृत्यु का सामना करना पड़ेगा—लेकिन परमेश्वर ने सैनिकों को इस्राएलियों को नुकसान पहुँचाने की अनुमति नहीं दी। उसने मूसा को अपनी छड़ी से लाल सागर की ओर इशारा करने को कहा और पानी अलग हो गया, जिससे सूखी जमीन का एक रास्ता दिखाई दिया जिससे इस्राएली समुद्र पार कर सके। जब सैनिकों ने समुद्र पार करने का प्रयास किया तो सूखी धरती पर पानी भर गया, जिससे पूरी सेना डूब गई। यह हमें परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता, बुद्धि और चमत्कारी कर्म दिखाता है। अगर मैं आधा घंटा पहले अपनी बहन के घर गई होती तो शायद मुझे गिरफ्तार कर लिया जाता, लेकिन परमेश्वर की चमत्कारी सुरक्षा के कारण मैं सुरक्षित और भली-चंगी थी। इसका एहसास होने पर मैंने परमेश्वर से संकल्प लिया कि अगर वह मुझे पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने की अनुमति देता है तो मैं उसके आयोजनों और व्यवस्थाओं के आगे झुकने को तैयार हूँ। अगर मुझे पीट-पीटकर मार दिया गया तो यह धार्मिकता के लिए उत्पीड़न सहना होगा और सार्थक होगा। यह सब समझने के बाद मुझे काफी शांति मिली। यह सुनिश्चित करने के बाद कि कोई मेरा पीछा नहीं कर रहा है, मैंने जल्दी से उन भाई-बहनों से संपर्क किया जिनके सिर पर खतरा मँडरा रहा था और उन्हें छिपने के लिए कहा।

इस व्यक्तिगत अनुभव के माध्यम से मुझे पता चला कि सीसीपी एक राक्षस है जो मानव जाति को तबाह करती और नुकसान पहुँचाती है। इसने भाई-बहनों को एक-एक करके गिरफ्तार किया और सभी तरह की घृणित चालें अपनाईं—उन्हें धमकाया, वादों की रिश्वत दी, उन्हें प्रताड़ित किया और यातना दी— इसलिए कि वे परमेश्वर से विश्वासघात करें और एक-दूसरे को धोखा दे दें। यह शापित है और बुराई का मूर्त रूप है! मैंने अपने दिल की गहराई से उससे नफरत की और इसे अस्वीकार दिया और इसके खिलाफ विद्रोह किया। इतना ही नहीं, मैं अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करने के अपने दृढ़ संकल्प में और भी अधिक अडिग हो गई। इस अनुभव के दौरान थोड़ा कष्ट सहने और डर और घबराहट से निपटने के बावजूद, इससे गुजरने से मुझे अपनी स्वार्थी, घृणित शैतानी प्रकृति पहचानने में मदद मिली और मुझे परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता, संप्रभुता और चमत्कारी कर्मों को देखने की अनुमति मिली। इससे मुझे परमेश्वर में और अधिक आस्था मिली। यह एक ऐसा अनुभव है जिसे मैं कभी नहीं भूलूँगी और इसने मुझे जीवन का अनमोल अनुभव दिया है।

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