35. अमिट पछतावा

पान ली, चीन

नवंबर 2020 में एक दिन मैंने सुना कि झाओ जून नाम की एक कलीसिया अगुआ को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। चूँकि मैं झाओ जून की कलीसिया की स्थिति से अपेक्षाकृत परिचित थी तो मेरे उच्च नेता ने मुझसे कहा कि जाकर समझो कि क्या हुआ है, झाओ जून को कैसे गिरफ्तार किया गया है और समय रहते वहाँ की स्थिति सँभालने के लिए काम करो। यह कार्यभार मिलने पर मैं थोड़ी भयभीत होकर सोचने लगी, “चूँकि झाओ जून को हाल ही में गिरफ्तार किया गया है, इसलिए फिलहाल मेरे लिए उस कलीसिया में जाना बहुत खतरनाक होगा। अगर मैं हमारे कलीसिया पर नजर रखने वाले अधिकारियों की पकड़ में आ गई तो मेरा क्या होगा? क्या मैं सीधे जाल में नहीं फँस जाऊँगी?” लेकिन फिर मैंने सोचा कि झाओ जून कितने लोगों और मेजबान परिवारों के संपर्क में थी और झाओ जून की गिरफ्तारी के बाद वे सभी खतरे में होंगे। मुझे पता था कि मुझे तुरंत सभी को सतर्क रहने के लिए सूचित करना होगा। अपना मन बना लेने के बाद मैं भाई-बहनों को सूचित करने के लिए जल्दी से कलीसिया चली गई। अगले दिन मुझे पता चला कि पिछली रात मैंने जिन दो मेजबान परिवारों से मुलाकात की थी, उनके साथ कुछ घटनाएँ हुई थीं। मेरे निकलने के कुछ ही देर बाद एक परिवार के घर पर छापा मारा गया था और दूसरे परिवार से पति-पत्नी दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया था। अगर मैं थोड़ी देर बाद निकलती तो मुझे भी गिरफ्तार कर लिया जाता। दिसंबर में अलग-अलग कलीसियाओं में बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियों का सिलसिला जारी रहा। मेरी साझेदार बहन के साथ तीस से ज्यादा भाई-बहन एक के बाद एक गिरफ्तार किए गए, जिनमें अगुआ और कार्यकर्ता शामिल थे। यह एक बहुत ही खतरनाक स्थिति थी और यह जरूरी था कि मैं उन दूसरे भाई-बहनों को सूचित करूँ जिन पर खतरा मंडरा रहा था कि उन्हें छिप जाना चाहिए और परमेश्वर के वचनों की किताबें सुरक्षित रखने के लिए दूसरों को सौंप देनी चाहिए। उस समय, पहले ही हमारा कुछ कलीसियाओं से संपर्क टूट चुका था, कोई उपयुक्त घर नहीं था जहाँ परमेश्वर के वचनों की किताबें और कलीसिया की संपत्ति रखी जा सके और हमारे कुछ भाई-बहनों की सुरक्षित मेजबान घरों तक पहुँच नहीं थी। ऐसी मुश्किल परिस्थिति का सामना करते हुए मैं काफी कमजोर, भयभीत और बेचैन हो गई थी। ऐसा लग रहा था कि मुझे किसी भी समय गिरफ्तार किया जा सकता है। मैंने मन ही मन सोचा, “अगर मुझे इतनी कम उम्र में गिरफ्तार करके पीट-पीट कर मार डाला गया तो क्या होगा?” मैं पूरे दिन चिंता में डूबी रहती थी और दिन कछुए की गति से गुजरते हुए नजर आते थे। मैं सोचता रही कि आखिरकार यह स्थिति कब सुधरेगी। उस समय मैंने सुना कि प्रांतीय स्तर से कई दर्जन विशेष पुलिस दल विश्वासियों को गिरफ्तार करने के खास लक्ष्य के साथ आ चुके हैं। मैं और भी ज्यादा घबराकर डर गई और सोचने लगी, “मुझे गिरफ्तार करने के लिए पहले से ही पीछा किया जा रहा है, तो क्या मैं किताबें स्थानांतरित करके खुद को पुलिस का सामने नहीं परोस दूँगी? अगर वे मेरा पीछा करते हैं और मुझे गिरफ्तार करते हैं तो पुलिस पक्का मुझे आसानी से नहीं छोड़ेगी। सीसीपी बिना किसी दंड के विश्वासियों की हत्या कर सकती है—अगर वे मुझे गिरफ्तार करते हैं तो क्या वे मुझे पीट-पीटकर मार डालेंगे? मैंने इतने सालों तक परमेश्वर में विश्वास किया, त्याग किया और खुद को खपाया, बस इसलिए कि मुझे पीट-पीटकर मार डाला जाए? क्या मैं फिर भी उद्धार प्राप्त कर पाऊँगी? अगर ऐसा नहीं हुआ तो क्या मेरे सभी वर्षों के कष्ट व्यर्थ नहीं चले जाएँगे? अगर मुझे कई सालों की सजा दी जाती है तो मैं जेल में जीवन कैसे बिता पाऊँगी?” मैं जेल में जीवन के बारे में सोच भी नहीं सकती थी, जहाँ ऐसी परिस्थितियों में जीने से बेहतर है कि कोई मर जाए। मैं लगातार डरती रही और किताबें स्थानांतरित करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई, इसलिए मैंने भाई ली यी को एक पत्र लिखा और उनसे जितनी जल्दी हो सके किताबें स्थानांतरित करने के लिए कहा। हालाँकि कई पत्र लिखने के बाद भी मुझे उसका कोई जवाब नहीं मिला। कुछ और दिन बीत गए और किताबें अभी भी स्थानांतरित नहीं हुई थीं। मुझे चिंता थी कि मेरा उच्च अगुआ मुझे अपने कर्तव्य में गैर-जिम्मेदार होने के लिए दोषी ठहराएगा, इसलिए मैंने अगुआ से अनुरोध किया कि वह स्थिति सँभालने के लिए किसी और को लगा दे। अपने व्यक्तिगत इरादे और उद्देश्य छिपाने के लिए मैंने कहा कि मेरा आध्यात्मिक कद छोटा है, कि मुझे ऐसी स्थिति का कोई अनुभव नहीं है और काम के कुछ खास पहलुओं के लिए मुझे किसी और से चर्चा और परामर्श करने की जरूरत है। इससे अगुआ को लगेगा कि मैं अपना कर्तव्य करने और कलीसिया के काम में बोझ उठाने की पूरी कोशिश कर रही हूँ। इस तरह अगर समस्याएँ भी आती हैं तो अगुआ मुझे दोष नहीं देगा। इसके तुरंत बाद मेरे अगुआ ने बहन युन किंग को मेरे साथ मिलकर बाद के हालात से निपटने का काम सौंप दिया।

उसके बाद स्थिति दिन-ब-दिन तनावपूर्ण होती गई—एक के बाद एक भाई-बहनों के गिरफ्तार होने की रिपोर्टें आने लगीं और मैंने यह भी सुना कि पुलिस ने बहुत से भाई-बहनों के बारे में जानकारी हासिल कर ली है। मैंने समूह अगुआओं को पत्र लिखकर आग्रह किया कि वे सभी भाई-बहनों को तुरंत छिपने के लिए कह दें, लेकिन मैं बस ऐसी स्थिति में नहीं थी जहाँ मैं भाई-बहनों की सुरक्षा के बारे में चिंता कर सकूँ। मैं बहुत चिंतित और भयभीत थी, मुझे चिंता थी कि जल्द ही एक दिन मुझे भी गिरफ्तार कर लिया जाएगा, इसलिए मैं कुछ विस्तृत काम नहीं कर पाई, मैंने उन लोगों को सूचित नहीं किया जिन्हें छिपना चाहिए, जो कि मुझे करना चाहिए था और नतीजा यह हुआ कि वांग लैन नाम की एक बहन को गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में उसे घर भेज दिया गया और दस घंटे के भीतर उसकी मौत हो गई। मुझे बहुत अपराध बोध हुआ—अगर मैंने थोड़ा और कोशिश की होती और वांग लैन को समय पर सूचित करने की अपनी जिम्मेदारी निभाई होती कि उसे छिप जाना चाहिए तो शायद उसे गिरफ्तार नहीं किया जाता और उसकी मौत नहीं होती। मैं वांग लैन की गिरफ्तारी के लिए जिम्मेदार थी और इसके बचने का कोई बहाना भी नहीं था।

उसके कुछ समय बाद मेरा उच्च अगुआ मेरे पास एक रिपोर्ट लेकर आया, जो भाई-बहनों ने मेरे बारे में लिखी थी, इसमें बताया गया था कि कैसे सबसे महत्वपूर्ण क्षण में मैं अपने भाई-बहनों को बचाने में नाकाम रही, परमेश्वर के वचनों की किताबों को समय पर स्थानांतरित नहीं किया, स्वार्थी और घृणित तरीके से मैंने खुद को बचाया और कलीसिया के काम की रक्षा और रखरखाव नहीं किया। इसके बाद अगुआ ने मुझे तुरंत बर्खास्त कर दिया। मुझे एहसास हुआ कि मैं उस समय कायरता में जी रही थी और वास्तविक काम करने में नाकाम रही था। मैं बर्खास्त होने की हकदार थी। अपनी भक्ति और आत्म-चिंतन के बीच मैं परमेश्वर के वचनों के इस अंश पर पहुँची : “पहली बुनियादी चीज जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करनी चाहिए, वह है परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुओं की उचित निगरानी रखना, उचित तरीके से जाँच करना और परमेश्वर के घर की ठीक से रखवाली करना, बुरे लोगों को कोई भी वस्तु खराब या बर्बाद नहीं करने देना या उसका दुरुपयोग नहीं करने देना। उन्हें कम से कम इतना तो करना ही चाहिए। जैसे ही तुम्हें अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में चुना जाता है, परमेश्वर का घर तुम्हें अपना प्रबंधक मानता है : तुम प्रबंधकीय वर्ग से हो और तुम्हारे द्वारा अपने कंधों पर लिया गया कार्य दूसरों के कार्य की तुलना में भारी होता है। तुम पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है। इसीलिए तुम्हारा हर रवैया, तुम्हारा हर क्रियाकलाप, समस्याओं से निपटने की तुम्हारी हर योजना और समस्याएँ हल करने का तुम्हारा हर तरीका, सभी में परमेश्वर के घर के हित शामिल रहते हैं। अगर तुम परमेश्वर के घर के हितों पर विचार तक नहीं करते या उन्हें गंभीरता से नहीं लेते, तो तुम उसके घर के प्रबंधक बनने के योग्य नहीं हो। ... इसलिए जब अगुआओं और कार्यकर्ताओं को चुनने की बात आती है तो इसे मानवता के परिप्रेक्ष्य से देखने पर वह सबसे बुनियादी चीज क्या है जो उनमें होनी चाहिए? उनमें जमीर और न्याय की भावना होनी चाहिए और उनके इरादे सही होने चाहिए। उनकी मानवता पहले निर्धारित मानदंडों पर खरी उतरनी चाहिए। उनमें चाहे जितनी भी कार्यक्षमता या जिस भी स्तर की काबिलियत हो, इस तरह के लोग अगर पर्यवेक्षक के रूप में काम करेंगे तो ही वे मानक स्तर के प्रबंधक होंगे। कम से कम वे परमेश्वर के घर के हित और भाई-बहनों के सामान्य हित बनाए रखने में सक्षम होंगे। वे भाई-बहनों के हितों के साथ विश्वासघात बिल्कुल नहीं करेंगे और न ही परमेश्वर के घर के हितों के साथ विश्वासघात करेंगे। जब परमेश्वर के घर और भाई-बहनों के हितों को नुकसान या चोट पहुँचने वाली होगी, वे उससे पहले ही इसके बारे में सोच लेंगे और वे पहले व्यक्ति होंगे जो आगे आकर उनकी रक्षा करेंगे, भले ही ऐसा करने से उनकी अपनी सुरक्षा खतरे में पड़ जाए या उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़े या कष्ट उठाना पड़े। ये सभी ऐसी चीजें हैं जो जमीर और विवेक वाले लोग कर सकते हैं। कुछ नकली अगुआ और कार्यकर्ता खतरनाक परिस्थितियों से सामना होने पर खुद को छिपाने के लिए भागकरसुरक्षित जगह ढूँढ़ने लगते हैं, लेकिन परमेश्वर के घर की महत्वपूर्ण वस्तुओं—परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें, सेलफोन, कंप्यूटर इत्यादि—की वे न तो परवाह करते हैं न ही उनके बारे में पूछताछ करते हैं। अगर उन्हें इस बात की चिंता होती कि उनके गिरफ्तार होने पर कलीसिया के कार्य की दीर्घकालीन परियोजना पर क्या असर पड़ेगा, तो वे इन चीजों को सँभालने के लिए दूसरों को भेज सकते थे—लेकिन ये नकली अगुआ सिर्फ अपनी सुरक्षा की खातिर छिप जाते हैं। वे मौत से डरते हैं और वे जो कर सकते हैं वह नहीं करते ताकि वे सुरक्षित रह सकें। इसलिए ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ नकली अगुआओं की लापरवाही, निष्क्रियता और गैरजिम्मेदारी के कारण परमेश्वर के घर की विभिन्न वस्तुएँ और परमेश्वर को चढ़ाए गए चढ़ावे खतरनाक स्थितियाँ आने पर बड़े लाल अजगर द्वारा लूट लिए जाते हैं, जिससे गंभीर नुकसान होता है। जब कलीसिया में ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हुई ही होती हैं तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं का पहला विचार परमेश्वर के घर के उपकरण और भौतिक वस्तुएँ उपयुक्त स्थानों पर रखने, उन्हें प्रबंधन के लिए उपयुक्त लोगों को सौंपने का होना चाहिए; बड़े लाल अजगर को उन्हें नहीं ले जाने देना चाहिए। लेकिन नकली अगुआओं के मन में कभी ऐसी बातें नहीं आतीं; वे परमेश्वर के घर के हितों को कभी पहले नहीं रखते, इसके बजाय वे अपनी सुरक्षा को पहले रखते हैं। वास्तविक कार्य करने में नकली अगुआओं की विफलता के कारण अक्सर परमेश्वर के घर की विभिन्न महत्वपूर्ण वस्तुओं को नुकसान या क्षति पहुँचती है। क्या यह नकली अगुआओं द्वारा कर्तव्य की गंभीर उपेक्षा नहीं है?(वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (11))। परमेश्वर के वचनों ने एक अगुआ की जिम्मेदारियाँ साफ बताई हैं। एक अगुआ में मानवता और न्याय की भावना होनी चाहिए और उसे भरोसेमंद होना चाहिए। महत्वपूर्ण क्षणों में अगुआओं को हमेशा भाई-बहनों की रक्षा करनी चाहिए और परमेश्वर के वचनों की किताबों की रक्षा करनी चाहिए, भले ही इसका मतलब पीड़ा सहना और अपने निजी हितों से समझौता करना हो। झूठे अगुआ बेहद स्वार्थी और नीच होते हैं और भले ही वे समय-समय पर काम करते हों, लेकिन वे किस तरह के काम पसंद करते हैं उसे लेकर हमेशा चयनशील रहते हैं। सभी चीजों में वे अपने हित साधते हैं और कभी भी परमेश्वर के घर के हितों की परवाह नहीं करते हैं। ऐसे लोगों का चरित्र खराब होता है और परमेश्वर उनसे घृणा करता है। तुलना करके मैंने देखा कि मैं उन झूठे अगुआओं से अलग नहीं थी जिन्हें परमेश्वर के वचनों ने उजागर किया था। जब कलीसिया में गिरफ्तारियाँ होने लगीं, मैंने खतरनाक काम दूसरे लोगों को सौंप दिया, ली यी से किताबें स्थानांतरित करने के लिए कहा और जब उसने समय पर मेरे पत्रों का जवाब नहीं दिया, तो मैंने जल्दी से किताबें खुद स्थानांतरित नहीं कीं, इसके बजाय अपने उच्च अगुआ को पत्र लिख दिया कि मेरा आध्यात्मिक कद छोटा है और अगुआ को कहा कि यह काम किसी और को सौंप दे। मैंने खुद को बचाने के लिए बहाने बनाए और खुद को जोखिम में न डालने के लिए खतरनाक काम दूसरों को सौंप दिया। जैसे-जैसे हमारा परिवेश बद से बदतर होता गया, मुझे बस बाद के हालात सँभालने के विवरण जानने का मन नहीं हुआ, इसके बजाय मैंने सिर्फ औपचारिकताएँ निभाईं और ऐसे दिखाया जैसे मैं काम कर रही हूँ, ऊपर से काम सौंप रही हूँ और बाद की स्थिति से निपटने का सारा काम समूह अगुआओं को सौंप दिया, ताकि वे खुद आकर स्थिति सुलझाने के लिए मजबूर हो जाएँ। जब मैंने सुना कि वांग लैन के गिरफ्तार होने का खतरा है तो मुझे तुरंत उसे छिपने के लिए कहने को पत्र लिखना चाहिए था। अगर मैंने ऐसा किया होता तो शायद उसे गिरफ्तार नहीं किया जाता और उसकी जान नहीं जाती। लेकिन मैं डर और कायरता में जी रही थी और मैंने लोगों को सूचित नहीं किया जो मुझे करना चाहिए था। कुछ भाई-बहन नकारात्मक और कमजोर हो गए थे, लेकिन मैंने उनके साथ संगति नहीं की और उनका साथ नहीं दिया। मैंने सोचा कि सभी परिस्थितियों में अपने हितों को नुकसान होने से कैसे बचाया जाए और कलीसिया के काम पर जरा भी ध्यान नहीं दिया। मैं कितनी स्वार्थी और नीच थी! एक कलीसिया अगुआ के रूप में यह मेरी जिम्मेदारी थी कि मैं परमेश्वर के चुने हुए लोगों और परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करूँ, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण क्षण में मैं अपने कर्तव्य से पीछे हट गई। मैं स्वार्थी, नीच थी, मैंने सिर्फ अपनी परवाह की और मेरे पास जरा भी अंतरात्मा और विवेक नहीं था। नतीजा यह हुआ कि मेरी बहन को गिरफ्तार कर लिया गया और उसे यातना देकर मार डाला गया, कलीसिया के काम में देरी हुई और मैंने एक शाश्वत अपराध किया।

बाद में मुझे परमेश्वर के वचनों का यह अंश मिला : “अपना कर्तव्य करना कोई छोटी बात नहीं है; लोग अपने कर्तव्य के निर्वहन में सबसे ज्यादा बेनकाब होते हैं, और लोगों द्वारा कर्तव्य करते समय उनके निरंतर निर्वहन के आधार पर परमेश्वर उनके परिणाम निर्धारित करता है। जब कोई व्यक्ति अपना कर्तव्य अच्छी तरह से नहीं करता है तो इससे क्या पता चलता है? इससे पता चलता है कि वह सत्य स्वीकार नहीं करता है या वास्तव में पश्चात्ताप नहीं करता है, और परमेश्वर द्वारा हटा दिया जाता है। जब झूठे अगुआ और झूठे कार्यकर्ता बर्खास्त किए जाते हैं, तो यह क्या दर्शाता है? यह ऐसे लोगों के प्रति परमेश्वर के घर का रवैया दर्शाता है और, यकीनन, यह ऐसे लोगों के प्रति परमेश्वर का रवैया भी दर्शाता है। तो, ऐसे बेकार लोगों के प्रति परमेश्वर का क्या रवैया है? वह उनका तिरस्कार करता है, उनकी निंदा करता है और उन्हें हटा देता है। तो क्या तुम लोग अब भी रुतबे के फायदों में लिप्त रहना चाहते हो और झूठे अगुआ बनना चाहते हो?(वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (8))। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मेरे आँसू बह निकले। मैंने देखा कि मेरी बर्खास्तगी परमेश्वर के क्रोध का संकेत थी मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव का अपमान नहीं किया जा सकता। यह सोचकर कि कैसे मैंने हमेशा खुद की सुरक्षा की सबसे ज्यादा परवाह की, कलीसिया के काम की रक्षा नहीं की, अपने भाई-बहनों की सुरक्षा के बारे में नहीं सोचा, जिसके कारण अपरिवर्तनीय नतीजे मिले, मुझे बेहद पछतावा था। बिना किसी नुकसान के बाहर आने के बावजूद, मैंने अपनी जिम्मेदारियाँ नहीं निभाई थीं, मैंने ऐसा अपराध किया जिसकी मैं कभी भरपाई नहीं कर सकती थी और परमेश्वर को मुझसे नफरत और घृणा करने के लिए मजबूर किया। यह मेरी अपनी गलती थी कि मेरे भाई-बहनों ने मेरी शिकायत की थी। उस दौरान मैं अक्सर यही सोचकर रोती रहती थी और जीवन को लेकर इतनी लोभी होने और मौत से डरने के लिए खुद से नफरत करने लगी। हर बार जब यह बात सामने आती तो मेरे दिल में हल्का सा दर्द होता और मुझे लगता कि मैं परमेश्वर और अपने भाई-बहनों की ऋणी हूँ। मुझे खुद से नफरत हो गई क्योंकि मैं वहशी जानवर से बेहतर नहीं थी और सोचती थी कि परमेश्वर की ओर से मुझे कठोर से कठोर सजा मिलनी चाहिए।

उसके बाद मैं यह समझने की कोशिश करने लगी कि ऐसा क्यों था कि जब भी मेरा मुश्किल परिस्थितियों से सामना होता था तो मैं हमेशा खुद को बचाने की कोशिश करती थी। मुझे परमेश्वर के वचनों का यह अंश मिला : “जब तक लोग परमेश्वर के कार्य का अनुभव नहीं कर लेते हैं और सत्य को समझ नहीं लेते हैं, तब तक यह शैतान की प्रकृति है जो भीतर से इन पर नियंत्रण कर लेती है और उन पर हावी हो जाती है। उस प्रकृति में विशिष्ट रूप से क्या शामिल होता है? उदाहरण के लिए, तुम स्वार्थी क्यों हो? तुम अपने पद की रक्षा क्यों करते हो? तुम्हारी भावनाएँ इतनी प्रबल क्यों हैं? तुम उन अधार्मिक चीज़ों से प्यार क्यों करते हो? ऐसी बुरी चीजें तुम्हें अच्छी क्यों लगती हैं? ऐसी चीजों को पसंद करने का आधार क्या है? ये चीजें कहाँ से आती हैं? तुम इन्हें स्वीकारकर इतने खुश क्यों हो? अब तक, तुम सब लोगों ने समझ लिया है कि इन सभी चीजों के पीछे मुख्य कारण यह है कि मनुष्य के भीतर शैतान का जहर है। तो शैतान का जहर क्या है? इसे कैसे व्यक्त किया जा सकता है? उदाहरण के लिए, यदि तुम पूछते हो, ‘लोगों को कैसे जीना चाहिए? लोगों को किसके लिए जीना चाहिए?’ तो लोग जवाब देंगे, ‘हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए।’ यह अकेला वाक्यांश समस्या की जड़ को व्यक्त करता है। शैतान का फलसफा और तर्क लोगों का जीवन बन गए हैं। लोग चाहे जिसका भी अनुसरण करें, वे ऐसा बस अपने लिए करते हैं, और इसलिए वे केवल अपने लिए जीते हैं। ‘हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए’—यही मनुष्य का जीवन-दर्शन है, और इंसानी प्रकृति का भी प्रतिनिधित्व करता है। ये शब्द पहले ही भ्रष्ट इंसान की प्रकृति बन गए हैं, और वे भ्रष्ट इंसान की शैतानी प्रकृति की सच्ची तस्वीर हैं। यह शैतानी प्रकृति पहले ही भ्रष्ट इंसान के अस्तित्व का आधार बन चुकी है। कई हजार सालों से वर्तमान दिन तक भ्रष्ट इंसान शैतान के इस जहर से जिया है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, पतरस के मार्ग पर कैसे चलें)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के माध्यम से मुझे एहसास हुआ कि शैतानी जहर “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए” मुझमें गहराई तक समा गया था। और एक इंसान के रूप में मेरे बर्ताव के लिए मेरा मानक बन गया था। खतरों का सामना होने पर मैंने लगातार खुद को बचाया और परमेश्वर के घर के हितों की कोई परवाह नहीं की, सिर्फ इसी बात की फिक्र की कि मैं गिरफ्तार होने से कैसे बचूँ और दूसरे लोगों को खतरनाक काम सौंपती रही। मैं सिर्फ अपनी सुरक्षा के बारे में सोच पाई, स्थिति सँभालने को लेकर मेरा कुछ करने का मन नहीं हुआ और मैंने अपनी जिम्मेदारियाँ नहीं निभाईं। चूँकि दूसरे भाई-बहनों ने समय रहते परमेश्वर के वचनों की किताबें स्थानांतरित कर दी थीं जिससे कलीसिया के हितों से समझौता नहीं हुआ। मैं शैतान के जहर के अनुसार जी रही थी और बेहद स्वार्थी, घृणित और पूरी तरह से मानवता से रहित हो गई थी। बार-बार मैं सत्य का अभ्यास करने में नाकाम रही, अपने कर्तव्य के प्रति जरा भी वफादारी नहीं दिखाई और परमेश्वर को मेरे व्यवहार से नफरत और घृणा हो गई। अगर मैं अभी भी पश्चात्ताप न करती और खुद को न बदलती तो मैं उद्धार पाने का अपना मौका गँवा देती। तभी मुझे एहसास हुआ कि मेरा स्वभाव कितना भ्रष्ट था और यह बर्खास्तगी परमेश्वर का मुझे बचाने का तरीका थी।

तब मुझे परमेश्वर के वचनों का यह अंश मिला : “प्रभु यीशु के उन अनुयायियों की मौत कैसे हुई? उनमें ऐसे अनुयायी थे जिन्हें पत्थरों से मार डाला गया, घोड़े से बाँध कर घसीटा गया, सूली पर उलटा लटका दिया गया, पाँच घोड़ों से खिंचवाकर उनके टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए—हर प्रकार की मौत उन पर टूटी। उनकी मृत्यु का कारण क्या था? क्या उन्हें उनके अपराधों के लिए कानूनी तौर पर फाँसी दी गई थी? नहीं। उनकी भर्त्सना की गई, पीटा गया, डाँटा-फटकारा गया और मार डाला गया, क्योंकि उन्होंने प्रभु का सुसमाचार फैलाया था और उन्हें इस संसार के लोगों ने ठुकरा दिया था—इस तरह वे शहीद हुए। ... वास्तव में, उनके शरीर इसी तरह मृत्यु को प्राप्त हुए और चल बसे; यह मानव संसार से प्रस्थान का उनका अपना माध्यम था, तो भी इसका यह अर्थ नहीं था कि उनका परिणाम भी वैसा ही था। उनकी मृत्यु और प्रस्थान का साधन चाहे जो रहा हो, या यह चाहे जैसे भी हुआ हो, यह वैसा नहीं था जैसे परमेश्वर ने उन जीवनों के, उन सृजित प्राणियों के अंतिम परिणाम को परिभाषित किया था। तुम्हें यह बात स्पष्ट रूप से समझ लेनी चाहिए। इसके विपरीत, उन्होंने इस संसार की भर्त्सना करने और परमेश्वर के कर्मों की गवाही देने के लिए ठीक उन्हीं साधनों का उपयोग किया। इन सृजित प्राणियों ने अपने सर्वाधिक बहुमूल्य जीवन का उपयोग किया—उन्होंने परमेश्वर के कर्मों की गवाही देने के लिए अपने जीवन के अंतिम क्षण का उपयोग किया, परमेश्वर के महान सामर्थ्य की गवाही देने के लिए उपयोग किया, और शैतान तथा इस संसार के समक्ष यह घोषित करने के लिए किया कि परमेश्वर के कर्म सही हैं, प्रभु यीशु परमेश्वर है, वह प्रभु है, और परमेश्वर का देहधारी शरीर है। यहां तक कि अपने जीवन के बिल्कुल अंतिम क्षण तक उन्होंने प्रभु यीशु का नाम कभी नहीं छोड़ा। क्या यह इस संसार के ऊपर न्याय का एक रूप नहीं था? उन्होंने अपने जीवन का उपयोग किया, संसार के समक्ष यह घोषित करने के लिए, मानव प्राणियों के समक्ष यह पुष्टि करने के लिए कि प्रभु यीशु प्रभु है, प्रभु यीशु मसीह है, वह परमेश्वर का देहधारी शरीर है, कि समस्त मानवजाति के लिए उसने जो छुटकारे का कार्य किया, उसी के कारण मानवता जीवित है—यह सच्चाई कभी बदलने वाली नहीं है। जो लोग प्रभु यीशु के सुसमाचार को फैलाने के लिए शहीद हुए, उन्होंने किस सीमा तक अपने कर्तव्य का पालन किया? क्या यह अंतिम सीमा तक किया गया था? यह अंतिम सीमा कैसे परिलक्षित होती थी? (उन्होंने अपना जीवन अर्पित किया।) यह सही है, उन्होंने अपने जीवन से कीमत चुकाई(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सुसमाचार का प्रसार करना सभी विश्वासियों का गौरवपूर्ण कर्तव्य है)। परमेश्वर के वचन स्पष्टता से परमेश्वर के लिए शहीद होने का अर्थ समझाते हैं। प्रभु यीशु के प्रेरित और शिष्य मृत्यु तक परमेश्वर के प्रति वफादार रहे और परमेश्वर का सुसमाचार फैलाने के लिए अपने बहुमूल्य जीवन बलिदान कर दिए। उन्होंने अपने जीवन का उपयोग प्रभु यीशु के परमेश्वर होने और मानवजाति के उद्धार के परमेश्वर के कार्य की गवाही देने के लिए किया। प्रभु यीशु का सुसमाचार को फैलाने के लिए स्टीफन को पत्थर मार-मारकर मार डाला गया और पतरस को सूली पर उल्टा लटका दिया गया। भले ही उनकी देह नष्ट हो गई, लेकिन उनकी मृत्यु सार्थक और सम्मानजनक थी। परमेश्वर ने उनकी प्रशंसा की कि कैसे उन्होंने अपने जीवन का उपयोग उसकी गवाही देने के लिए किया। अब कलीसिया के सदस्यों को गंभीर उत्पीड़न और गिरफ्तारियों का सामना करना पड़ रहा था और कुछ भाई-बहनों को गिरफ्तार किए जाने पर यातनाएँ दी जा रही थीं और उन्हें सताया जा रहा था, लेकिन उन्होंने शैतान के आगे घुटने नहीं टेके और परमेश्वर को धोखा देने के बजाय जेल जाना पसंद किया। जहाँ तक वांग लैन की बात है तो उसने यहूदा बनने के बजाय मरना पसंद किया। इसके विपरीत मैंने उस स्थिति में हमेशा अपनी सुरक्षा के बारे में सोचा, अपनी जान को हर चीज से ऊपर रखा, अपने कर्तव्य के प्रति जरा भी वफादारी नहीं दिखाई और अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी नहीं कीं। भले ही मुझे गिरफ्तार नहीं किया गया और मेरी जान बच गई, लेकिन मैंने बिल्कुल गवाही नहीं दी और जिंदा रहना अपमानजनक था। मुझे बहुत ज्यादा अपराध बोध हुआ और मैं अब ऐसा नीच जीवन नहीं जीना चाहती थी। मुझे यह भी एहसास हुआ कि परमेश्वर सेवा करने के लिए बड़े लाल अजगर का इस्तेमाल करता है और पहचान करता है कि कौन सच्चा विश्वासी है और कौन झूठा, कौन गवाही देता है और कौन नहीं और फिर हर किसी को उसकी किस्म के अनुसार अलग करता है। यह परमेश्वर के कार्य की बुद्धि है। इसका एहसास होने पर मैंने अपना कर्तव्य अच्छी तरह से करने और परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग रहने का दृढ़ निश्चय किया। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा, “हे परमेश्वर, मैं बहुत स्वार्थी और नीच रही हूँ। क्योंकि मैं गिरफ्तारी और प्रताड़ित होने से डरती रही, इसलिए मैंने कलीसिया के काम की रक्षा नहीं की और एक शाश्वत अपराध किया। आगे चलकर मैं चाहे किसी भी स्थिति का सामना करूँ, मैं कलीसिया के हितों को बनाए रखने के लिए अपना जीवन दाँव पर लगा दूँगी। मैं अब एक नीच जीवन नहीं जीऊँगी। मैं अपना जीवन तुम्हारे हाथों में सौंपने और तुम्हारी संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने के लिए तैयार हूँ।”

कुछ महीने बाद मुझे एक बार फिर कलीसिया अगुआ चुना गया। अपना कर्तव्य निभाने के कुछ ही दिनों में मुझे अपने उच्च अगुआ से एक पत्र मिला जिसमें कहा गया था कि सीसीपी को एक सीसीटीवी कैमरे की रिकॉर्डिंग से मेरी एक तस्वीर मिली है। अगुआ ने मुझे सलाह दी कि जब तक बहुत जरूरी न हो, मैं सार्वजनिक रूप से अपना चेहरा दिखाने से परहेज करूँ। पत्र पाने के बाद मुझे थोड़ी चिंता हुई, लेकिन इससे मेरे कर्तव्य के प्रदर्शन पर कोई असर नहीं पड़ा। अगर काम के लिए मुझे बाहर जाना पड़ता तो मैं बस थोड़ा सा भेष बदल लेती और फिर अपना कर्तव्य निभाने के लिए बाहर चली जाती। उसके कुछ समय बाद ही मेरे कलीसिया के कई भाई-बहनों को गिरफ्तार कर लिया गया और मुझे एक बार फिर से स्थिति सँभालने की जरूरत थी। मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर मेरी परीक्षा ले रहा था। थोड़ी चिंतित और परेशान होने के बावजूद मैंने सोचा कि कैसे पहले मैं स्वार्थी और नीच थी, खतरनाक काम दूसरे लोगों को सौंपती थी, परमेश्वर की नजरों में मैंने अपने दामन पर स्थायी दाग लगा दिया था और शैतान के उपहास का पात्र बन गई थी—मौजूदा स्थिति का सामना होने पर मुझे पश्चात्ताप करना था और अतीत की तरह जीना बंद करना था। मैंने चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना की, उसे बताया कि मैं जितनी जल्दी हो सके स्थिति सँभालने के लिए उस पर भरोसा करने को तैयार हूँ। उसके बाद मैंने जल्दी से समूह अगुआओं के साथ परमेश्वर के वचनों की किताबें स्थानांतरित करने के लिए विस्तृत व्यवस्था की और भाई-बहनों ने जल्द ही सभी किताबें सफलतापूर्वक स्थानांतरित कर दी। इस तरह से अभ्यास करने से मैं काफी सहज हो गई और मुझे पता लगा कि यह शांति परमेश्वर से मिलती है। दो महीने बाद लगभग दस भाई-बहनों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें एक कलीसिया का पुराना अगुआ भी शामिल था। इस स्थिति का सामना करते हुए मैंने खुद को सुरक्षित रखने पर ध्यान केंद्रित नहीं किया जैसा कि मैंने पहले किया था, इसके बजाय मैंने परमेश्वर पर भरोसा किया कि वह बाद की घटनाओं को सँभालेगा, वह मेरे भाई-बहनों की रक्षा करेगा और परमेश्वर के घर के हितों को खतरे में पड़ने से बचाएगा। मैंने अपने सहकर्मियों से इस बारे में सलाह ली कि किताबें छिपाने और स्थानांतरित करने के लिए भाई-बहनों को जल्दी से कैसे सूचित किया जा सकता है। भाई-बहनों के सहयोग से सभी किताबें सफलतापूर्वक स्थानांतरित हो गईं। जब मैंने खुशखबरी सुनी तो मुझे बहुत खुशी हुई और मैंने परमेश्वर को उसके मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद दिया! मैंने सोचा कि कैसे अतीत में मैंने हर पड़ाव पर अपने हितों की रक्षा की थी, अपने कर्तव्य से मुँह मोड़ लिया था और एक झूठे अगुआ के रूप में बेनकाब हुई थी। इस बार मैं आखिरकार मरने के डर से बेबस नहीं हुई और सत्य का अभ्यास और अपनी जिम्मेदारियाँ निभाने में सक्षम थी। यह सब परमेश्वर के वचनों के कारण था कि मैं यह परिवर्तन कर पाई।

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