32. मुझमें मसीह-विरोधियों की बुरी शक्तियों से लड़ने का साहस है

एक साल से ज्यादा समय तक परमेश्वर पर विश्वास करने के बाद मैंने कलीसिया में एक समूह अगुआ के रूप में सेवा की। ये पिंग हमारे कलीसिया की अगुआ थी। मैंने देखा कि वह ऊँची काबिलियत वाली थी, अपना कर्तव्य उत्साहपूर्वक निभाती थी और काम को नियमित और स्पष्ट रूप से व्यवस्थित करती थी। जब भी किसी को कोई समस्या होती तो वह हमेशा उसके साथ संगति और मदद करने के लिए परमेश्वर के उपयुक्त वचन तुरंत ढूँढ़ लेती थी। हर कोई उसकी प्रशंसा करता था और सोचता था कि वह सत्य समझती है। सभाओं के दौरान ये पिंग अक्सर कहती थी, “कलीसिया में इस समय काम की बहुत व्यस्तता है तो मुझे सुसमाचार फैलाने के साथ-साथ सिंचन कार्य की भी चिंता करनी होगी। कलीसिया में ज्यादातर लोग नए विश्वासी हैं जो सत्य नहीं समझते, इसलिए मुझे उनके जीवन प्रवेश पर ध्यान देना होगा।” सभी भाई-बहन सोचते थे कि उस पर काफी बोझ है और जब वे मुश्किलों का सामना करते थे तो वे संगति के लिए ये पिंग का इंतजार करते थे। मैं भी उसकी प्रशंसा करती थी और सोचती थी कि वह हमारे कलीसिया की अच्छी अगुआ है। उस समय, कलीसिया में सभी लोग ये पिंग के बारे में बहुत अच्छा सोचते थे और अक्सर कहते थे कि वह संगति करना जानती है और एक सक्षम कार्यकर्ता है। जब ये पिंग यह सुनती तो वह प्रसन्न भाव प्रकट करती और गर्व से कहती, “मैंने कलीसिया में कार्य के सभी मदों में पर्याप्त रूप से भाग लिया है, और मुझे हर भाई-बहन की परिस्थितियाँ याद हैं।” मुझे लगा कि उसका ऐसा कहना अहंकारपूर्ण था। लेकिन मैंने सोचा कि चूँकि ऊँची काबिलियत और प्रतिभा वाले लोग अपेक्षाकृत अहंकारी होते हैं, इसलिए उसके लिए कलीसिया का काम अच्छी तरह से करना ही काफी था, इसलिए मैंने इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया।

उसके बाद, मुझे पता चला कि ये पिंग सुसमाचार-प्रसार कार्य की प्रभारी थी लेकिन उसने कभी भी सुसमाचार के प्रसार के सिद्धांतों या परमेश्वर के इरादे पर संगति नहीं की थी। वह वास्तविक समस्याओं को नहीं सुलझाती थी और सिर्फ लोगों को आदेश देती थी और सतही काम करती थी। एक बार, ये पिंग ने मुझे एक संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ता के पास सुसमाचार फैलाने के लिए भेजने की व्यवस्था की। जब हम बात कर रहे थे तो सुसमाचार पाने वाले ने मुझे बार-बार शारीरिक रूप से परेशान किया। मैंने देखा कि इस व्यक्ति की प्रकृति बहुत दुष्ट थी और वह ईमानदारी से सच्चे मार्ग की जाँच नहीं कर रहा था। मैंने तुरंत ये पिंग को इसकी सूचना दी। मुझे हैरानी हुई जब उसने झुंझलाकर मुझ पर भाषण झाड़ा, “तुम सिर्फ कुछ बार गई और पहले ही हार मान ली? तुमने क्या सबक सीखा है?” उसने अपनी बात खत्म की और चली गई। उस समय, मैं उलझन में थी कि उसने अचानक क्यों मेरी काट-छाँट की, और मुझे लगा कि मेरे साथ गलत हुआ है, “मुझे किसी ने परेशान किया था, और तुमने न तो मुझे सांत्वना दी और न ही समस्या सुलझाई, बल्कि मुझे ही डाँटा। इसमें तुम्हारी करुणा और जिम्मेदारी की भावना कहाँ है?” बाद में मैंने खोज जारी रखी और पुष्टि की कि इस व्यक्ति की प्रकृति दुष्ट थी, वह सत्य से प्रेम नहीं करता था और वह सुसमाचार पाने के योग्य नहीं था और इसलिए मैंने उस पर हार मान ली। लेकिन इसके बाद ये पिंग हमेशा अकारण ही मुझमें गलतियाँ निकालने लगी। उदाहरण के लिए, वह जानबूझकर मुझसे कुछ सवाल पूछती और जब मैं जवाब नहीं दे पाती तो वह मुझे भ्रमित कहती। उसने मुझे ऐसे व्यक्ति की मदद करने के लिए भी भेजा, जो सत्य का अनुसरण जरा-सा भी नहीं कर रहा था। जब मैं उसकी मदद नहीं कर पाई तो उसने मौका पाकर मुझ पर भाषण झाड़ा। मैंने इस समस्या के बारे में वरिष्ठ अगुआओं को बताने की हिम्मत नहीं की, क्योंकि मुझे लगा कि आखिरकार वह एक अगुआ है और कई भाई-बहन उसके बारे में बहुत अच्छा सोचते हैं। इस बीच, मैं सिर्फ एक समूह अगुआ थी और उसे नाराज न करने की मुझे पूरी कोशिश करनी चाहिए थी। लेकिन मुझे उम्मीद नहीं थी कि ये पिंग समूह अगुआ के रूप में मेरा काम अनुचित रूप से रोक देगी और दो ऐसे लोगों के साथ मेरी सभा करने की व्यवस्था करेगी, जो सत्य का अनुसरण जरा भी नहीं कर रहे थे। सभाओं के दौरान एक हमेशा सो जाता था और दूसरा हमेशा मुझे गपशप करने के लिए परेशान करता था। दो महीने बाद, इन सभाओं से कोई लाभ नहीं हुआ, और मैं असमंजस की अवस्था में थी। मैंने सोचा कि जब मैं पहले सभा करती थी, कैसे हर कोई अपना दिल खोलकर अपने अनुभवों और ज्ञान पर संगति करता था, जिसका मैं बहुत आनंद लेती थी। लेकिन अब, मैं बहुत पीड़ा में थी और बहुत नकारात्मक और कमजोर भी थी। मैंने सोचा कि यहाँ सभाओं में भाग लेने से मेरे जीवन पर जो नुकसान हुआ है, वह बहुत बड़ा है। अगर इसी तरह चलती रही तो क्या मैं सत्य और उद्धार पा सकूँगी? बाद में पता चला कि ये पिंग वास्तव में मुझे अलग-थलग कर रही थी उन दो लोगों के साथ मेरी सभा करवा रही थी, जो हटाए जाने वाले थे। सच जानने के बाद मैं परेशान और क्रोधित हो गई। मैंने कभी नहीं सोचा था कि वह इतनी कपटी और दुर्भावनापूर्ण होगी। वह मुझे इस तरह से सता रही थी क्योंकि मैंने उसकी बात नहीं सुनी थी, क्या यह ऐसा बर्ताव नहीं था जो दुष्ट लोग करते हैं? उस समय मैं वास्तव में ये पिंग की स्थिति अगुआओं और कार्यकर्ताओं को बताना चाहती थी और अपने भाई-बहनों के साथ संगति करके उसे पहचानना चाहती थी। लेकिन, चूँकि ये पिंग हमेशा कलीसिया में अगुआ रही थी और कई भाई-बहन उसके बारे में बहुत अच्छा सोचते थे, अगर मैं अपने भाई-बहनों के साथ संगति करके उसे पहचानती, तो क्या वे सभी मुझ पर विश्वास करते? अगर ये पिंग को इसके बारे में पता चल जाता तो वह निश्चित रूप से बदला लेना और मुझे पीड़ा देना जारी रखती। अगर वह मुझ पर आरोप लगाती और मुझे निकाल देती तो क्या परमेश्वर में विश्वास करने का मेरा मार्ग समाप्त नहीं हो जाता? यह सोचकर मैंने अपनी शिकायतें मन में ही दबा ली। कुछ समय बाद, सुरक्षा चिंताओं के कारण ये पिंग कलीसिया के काम की प्रभारी बनने में असमर्थ हो गई और एक बहन को अस्थायी रूप से कार्यभार संभालने के लिए व्यवस्थित किया गया। जब इस बहन ने हमारे साथ सभा की, उसने देखा कि परमेश्वर के वचनों पर मेरी संगति में कुछ प्रबुद्धता और रोशनी थी और मैं अपना कर्तव्य निभाने के लिए तैयार थी, तो मेरी स्थिति को समझने के बाद उसने मुझे अपना काम फिर शुरू करने दिया।

उसके बाद, मैंने सुना कि अन्य दो बहनों को भी लगातार अलग-थलग किया जा रहा था उसके कारण अभी भी अज्ञात थे। विवरण जानने के बाद, मुझे पता चला कि इन दो बहनों को ये पिंग ने एक भाई का बचाव करने के कारण अलग-थलग कर दिया था। चूँकि भाई ने सुसमाचार कार्य में देरी की थी, इसलिए ये पिंग ने उसकी लगातार काट-छाँट की थी। दोनों बहनों ने उसे याद दिलाया, “वह पहले से ही जानता है कि वह गलत था। तुम्हें सिर्फ उसकी काट-छाँट नहीं करनी चाहिए; तुम्हें समस्या को सुलझाने के लिए सत्य पर संगति भी करनी चाहिए।” यह सुनने के बाद ये पिंग बहुत चिढ़ गई और उसने तुरंत उन्हें अलग-थलग कर दिया। अगर भाई-बहन उसकी अवज्ञा करते या उसे भड़काते तो वह उन्हें पीड़ा देने के लिए उनके अपराधों और कमियों को पकड़ लेती। यह एक बुरा कर्म था! एक सभा के दौरान, मैंने संगति की और उसे पहचाना तो एक बहन ने मुझे बीच में टोकते हुए कहा, “क्या तुम हमसे ये पिंग को पहचानने के लिए कह रही हो क्योंकि तुम उससे बदला लेना चाहती हो कि उसने तुम्हें पहले अलग-थलग कर दिया था? अगर ऐसा है तो तुम्हें वास्तव में आत्म-चितंन करने की जरूरत है।” जब मैंने यह सुना तो लगा कि ज्यादातर भाई-बहन ये पिंग से गुमराह हो गए थे और उसे बहुत ज्यादा महत्व देते थे। मैं सिर्फ एक समूह अगुआ थी, तो वे मेरी कही बातों पर कैसे विश्वास कर सकते थे और किसी ऐसे व्यक्ति को कैसे पहचान सकते थे जो कई सालों से अगुआ रही है? इस समय मुझे अचानक निराशा महसूस हुई। मैंने मन ही मन सोचा, “सत्य के बारे में मेरी समझ उथली है और ये पिंग की समस्या का मैं एक बार में पूरा गहन-विश्लेषण नहीं कर सकती। अगर मैं बोलना जारी रखती हूँ तो वे गलत समझ सकते हैं और सोच सकते हैं कि मैं अपने निजी हितों की खातिर बदला ले रही हूँ। अगर ये पिंग को इस बारे में पता चला तो वह मुझे एक अगुआ से बदला लेने के लिए दोषी ठहरा सकती है और मुझे निष्कासित कर सकती है। तो क्या परमेश्वर में विश्वास करने का मेरा मौका भी नहीं खो जाएगा? इसे भूल जाओ। बेहतर होगा कि मैं मुसीबत से दूर रहने के लिए कुछ रियायतें दूँ और खुद पर कोई संकट न लाऊँ।” बाद में, कलीसिया ने नए अगुआओं और कार्यकर्ताओं का चुनाव किया और मुझे सिंचन उपयाजक चुना गया। शिन या और ली रु कलीसिया अगुआ चुने गए और ये पिंग को पाठ्य-सामग्री आधारित कार्य का प्रभारी बनाया गया। ये पिंग के दिल में नाराजगी थी क्योंकि उसे अगुआ नहीं चुना गया था। बाद में, उसने चुपके से अपनी बहन और वांग जिंग को अपने साथ मिला लिया और भाई-बहनों के सामने सही और गलत को तोड़-मरोड़ कर अफवाहें फैलाईं। उसने कहा कि इस बार जो अगुआ चुने गए हैं, उन्हें पहले से ही नियुक्त कर दिया गया था, इस तरह उसने भाई-बहनों को गुमराह किया और चुनाव परिणाम पलटने के लिए उनका समर्थन हासिल कर लिया। सौभाग्य से, अगुआओं ने पहले ही चुनाव सिद्धांतों के बारे में सभी को बता दिया था, इसलिए भाई-बहनों को इस मामले की बारीकियों का पता था और उन्होंने धोखा नहीं खाया। इसके बारे में सुनकर मैं क्रोधित और चिंतित हो गई और मैंने अगुआओं से कहा, “ये पिंग के लिए पहले लोगों को सताना एक बात थी और अब वह भाई-बहनों को गुमराह करके और अपने साथ लेकर कलीसिया के काम में बाधा डाल रही है। इसकी प्रकृति बहुत बुरी है! उच्च-स्तरीय अगुआओं को इसकी तुरंत रिपोर्ट की जानी चाहिए!” अगुआओं की राय भी मेरी ही तरह थी और उन्होंने स्थिति की सूचना उच्च-स्तरीय अगुआ लियू रुओ को दी। लियू रुओ ने ये पिंग, उसकी बहन और वांग जिंग के बुरे कर्मों को उजागर किया, लेकिन लियू रुओ के चले जाने के बाद ये पिंग जरा भी पीछे नहीं हटी और कलीसिया में अपनी बातों को फैलाना जारी रखा, “अगुआ और कार्यकर्ता वास्तविक कार्य नहीं कर सकते और उनके पास पवित्र आत्मा का कार्य नहीं है; वे सभी झूठे अगुआ हैं। झूठे अगुआ कलीसिया का काम नहीं कर सकते और समस्याएँ सुलझाने के लिए सत्य पर संगति करना नहीं जानते। वे सिर्फ लोगों को नुकसान पहुँचा सकते हैं।” ये पिंग और बाकियों ने उनसे भी बात की, जो अलग-थलग किए गए थे, “तुम अपना कर्तव्य निष्ठापूर्वक निभा रहे थे और झूठे अगुआओं ने तुम्हें दबाया और अलग-थलग कर दिया।” उन्होंने एक बहन से भी कहा, जो मेजबानी का काम करती थी, “तुम्हारे लिए अपने कर्तव्य का निष्ठापूर्वक पालन करना बेकार है। फलां व्यक्ति तुम्हारी तरह ही मेजबानी का काम कर रहा था और अब उसे अलग-थलग कर दिया गया है। तुम्हारे साथ भी ऐसा ही होगा।” ये पिंग और उसके साथियों ने कुछ अविवेकी लोगों को भड़काया और गुमराह किया, तो उनके मन में अगुआओं के बारे में पूर्वाग्रही विचार पैदा हो गए और सभाओं के दौरान उन्होंने परमेश्वर के वचनों पर संगति नहीं की, हमेशा अगुआओं की कमियों की आलोचना करते रहे और उन पर हमले करते हुए उन्हें वास्तविक कार्य करने में असमर्थ बताते रहे। वे ये पिंग का भी बहुत सम्मान करते थे, उन्होंने कहा कि वह संगति करना जानती है, कलीसिया का काम करना जानती है, और वह अगुआ बनने के लिए उपयुक्त है। उन्होंने कुछ भाई-बहनों को भी गुमराह किया और उनसे वर्तमान अगुआओं की रिपोर्ट करने को कहा। ये पिंग ने कलीसियाई जीवन को पूरी तरह से अस्त-व्यस्त कर दिया और अराजकता फैला दी और काम आगे नहीं बढ़ सका। कलीसिया की ऐसी हालत होते देखकर मेरे दिल में ऐसी भावना पैदा हुई जिसे मैं बयाँ नहीं कर सकती। अगुआ पद की दावेदारी पाने के लिए ये पिंग ने बहुत सारे बुरे काम किए। वह एक सरासर शैतान थी और खुद को परमेश्वर के खिलाफ खड़ा कर रही थी!

इसके बाद, मैंने उपदेशक को ये पिंग की स्थिति के बारे में बताया। उपदेशक तुरन्त ये पिंग और अन्य लोगों के साथ संगति करने चला गया। उसने कुछ ही शब्द कहे थे कि ये पिंग और उसके साथियों ने उस पर हमला कर दिया और कहा कि वह झूठे अगुआओं का पक्ष ले रही है और कलीसिया के काम की रक्षा नहीं कर रही है। इस मौखिक हमले ने उपदेशक को रुला दिया और फिर जितनी जल्दी हो सके, अराजकता को शांत करने के लिए उसने अकारण ही दो कलीसिया अगुआओं और एक सुसमाचार उपयाजक को बर्खास्त कर दिया। ऐसी व्यवस्था देखकर मेरा दिल भर आया और मैंने सोचा, “क्या चीजें उलटी नहीं हो रही हैं? उसने बुरे काम करने वाले व्यक्ति को नहीं रोका, बल्कि उन लोगों को निकाल दिया जो कुछ वास्तविक काम करने में सक्षम थे। यह कितना सिद्धांतहीन था! क्या वह बुराई करने में ये पिंग का अनुसरण नहीं कर रही थी?” मैंने उपदेशक से पूछा, “इन लोगों को हटाने का तुम्हारा फैसला उनके किन व्यवहारों और सिद्धांतों पर आधारित था?” उसने कहा कि ये अगुआ और सुसमाचार उपयाजक भाई-बहनों की समस्याओं का समाधान नहीं कर सकते, सभाओं में अपनी खुद की भ्रष्टता के बारे में बात नहीं करते और उनमें पवित्र आत्मा के कार्य की कमी है और फिर उसने मुझे कलीसिया के काम का अस्थायी प्रभार सौंप दिया। यह सुनकर कि उपदेशक द्वारा दिए गए कारण और ये पिंग और उसके साथियों द्वारा अगुआओं पर किए गए हमले एक जैसे थे, मुझे बहुत गुस्सा आया। घर लौटते समय मैं इसे स्वीकार नहीं पाई। अब उपदेशक भी ये पिंग का पक्ष ले रही थी। कलीसिया के सभी अगुआओं को बर्खास्त कर दिया गया था और मैं सिर्फ एक सिंचन उपयाजक थी। मेरे पास पहचानने के सिद्धांतों की कमी थी और मैं सत्य पर स्पष्टता से संगति नहीं कर सकती थी। अगर मैं अपना काम ठीक से नहीं कर पाई तो क्या ये पिंग इसका इस्तेमाल मेरी निंदा और रिपोर्ट करने के लिए नहीं करेगी? इसके अलावा, ये पिंग और अन्य सभी चिकनी-चुपड़ी बातें करते थे और भाई-बहनों को पहले ही गुमराह कर चुके थे, तो मेरा पक्ष कौन लेगा? इन विचारों के साथ, मैंने अपनी सारी हिम्मत खो दी और अपने दिल में बहुत कमजोरी महसूस की। मैंने सोचा कि मुझे कलीसिया के काम के लिए जिम्मेदार होना चाहिए, इसलिए मैं कुछ हद तक डरपोक थी। ये पिंग अगुआ के ओहदे के पीछे पड़ी थी और अगर मैं कलीसिया के काम की प्रभारी बनती तो वह निश्चित रूप से सोचती कि मैं उसका ओहदा ले रही हूँ और मुझे निशाना बनाती। ऐसी दुर्भावनापूर्ण मानवता के साथ क्या वह मुझे बख्श देगी? क्या वह मुझे सताने के लिए और भी दुर्भावनापूर्ण तरीकों का इस्तेमाल करेगी? मैंने जितना ज्यादा सोचा, उतनी ही अधिक चिंतित और बेचैन हो गई और मैंने बहन ली रु को मेरी जगह कलीसिया का काम संभालने के लिए कहा। इस तरह, ये पिंग और उसके साथी मुझ पर सीधे हमला नहीं करते। उसके बाद, जब हम छोटे समूहों में काम करते थे तो मैं ली रु को उस समूह में भेज देती थी, जिसमें ये पिंग होती थी। परिणामस्वरूप, उन्होंने ली रु पर हमला किया। काम नहीं चल सका और ली रु की स्थिति भी प्रभावित हुई। मैंने खुद को दोषी ठहराया और घृणा की कि मैं कितनी स्वार्थी थी। लेकिन, अगर मुझे वास्तव में यह मामला खुद देखना पड़ता तो मुझमें ऐसा करने की आस्था नहीं होती। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, कुछ बुरे लोग कलीसिया में व्यवधान डाल रहे हैं और मुझे इसके खिलाफ खड़ी होकर कलीसिया के काम की रक्षा करनी चाहिए, लेकिन मुझे डर है कि ये पिंग और उसके साथी इसका इस्तेमाल मुझे दबाने और सताने के लिए करेंगे, जिसके कारण मैं अपना काम गँवा दूँगी। मैं एक कायर की तरह पीछे छिपी हूँ और मैंने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई है। परमेश्वर, मैं तुमसे विनती करती हूँ कि मुझे साहस और आस्था दो।” प्रार्थना के बाद मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश देखा, जिसने मुझे बहुत अपमानित महसूस कराया। परमेश्वर के वचन कहते हैं : “यदि लोग वह व्यक्त नहीं कर सकते, जो उन्हें सेवा के दौरान व्यक्त करना चाहिए या वह हासिल नहीं कर सकते, जो उनके लिए सहज रूप से संभव है, और इसके बजाय वे बेमन से काम करते हैं, तो उन्होंने अपना वह प्रयोजन खो दिया है, जो एक सृजित प्राणी में होना चाहिए। ऐसे लोग ‘औसत दर्जे के’ माने जाते हैं; वे बेकार का कचरा हैं। इस तरह के लोग उपयुक्त रूप से सृजित प्राणी कैसे कहे जा सकते हैं?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारी परमेश्वर की सेवकाई और मनुष्य के कर्तव्य के बीच अंतर)। परमेश्वर ने कहा कि जो लोग वह सब नहीं करते जो वे करने में सक्षम हैं, वे “औसत दर्जे के” और “बेकार का कचरा” हैं। मैं ऐसी ही इंसान थी। मैंने देखा कि ये पिंग अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को लेकर विशेष रूप से चिंतित थी और उन लोगों पर हमला करती थी और उनसे बदला लेती थी जिन्होंने उसकी बात नहीं मानी, उन्हें परेशान करने के लिए उसने गंदी चालें चलीं। अगुआ के ओहदे पर दावेदारी के लिए उसने लोगों को गुमराह करने और उन्हें अपने साथ मिलाकर चुनाव परिणामों को पलटने के लिए एक साजिश भी रची। अपने साथियों से मिलकर उसने भाई-बहनों और अगुआओं के बीच कलह के बीज बोए। मैंने निस्संदेह उसके दुर्भावनापूर्ण व्यवहार को बहुत स्पष्टता से देखा, लेकिन जब मैंने संगति की और ये पिंग को पहचाना और भाई-बहनों को संदेह हुआ कि मैं उससे बदला ले रही हूँ, तो मैं डर गई कि अगर मैं उसे पहचानना जारी रखती हूँ तो अंततः और लोग मेरा विरोध करने के लिए खड़े हो जाएँगे। खुद को बचाने और ये पिंग और उसके साथियों द्वारा नुकसान पहुँचाने और हमला करने से बचने के लिए मैंने उसे पहचानने का वह थोड़ा सा साहस भी खो दिया जो मेरे पास था। जब दो अगुआओं और उपयाजक को बर्खास्त करने के बाद मुझे कलीसिया का काम सौंपा गया तो सबसे पहले मुझे ये पिंग और उसके साथियों द्वारा अगुआओं पर हमला करने के दृश्य याद आए और मुझे डर लगा कि अगर मैं कलीसिया के काम की प्रभारी बनी तो ये पिंग को लगेगा कि मैं उसके ओहदे पर हूँ और मुझसे बदला लेने के लिए वह इसका इस्तेमाल करेगी। मैं लगातार इस जिम्मेदारी से बचना चाहती थी और कलीसिया के काम का प्रभार लेने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। मैं अच्छी तरह जानती थी कि ये पिंग और उसके साथी बेहद क्रूर थे। उन्होंने ली रु पर भी कई बार हमले किए थे। मैं सिर्फ खुद को बचाना चाहती थी, इसलिए जब मैं काम सौंप रही थी तो मैंने जानबूझकर ली रु को उनका सामना करने के लिए भेजा। मैंने ली रु को ढाल के रूप में इस्तेमाल किया। मैं इतनी स्वार्थी और नीच कैसे हो सकती थी? कलीसिया में व्यवधान डालने वाली मसीह-विरोधी बुरी शक्तियों का सामना करते हुए मैंने सिद्धांतों का पालन नहीं किया और न्याय के पक्ष में खड़ी नहीं हो सकी। मुझे एक सृजित प्राणी कैसे माना जा सकता है? मैं वास्तव में बेकार थी; मैंने परमेश्वर को बहुत निराश किया था! जितना अधिक मैंने परमेश्वर के वचनों पर विचार करने की कोशिश की, उतना ही ज्यादा मैंने खुद को धिक्कारा और पछतावा महसूस किया। मैं अब परमेश्वर के हृदय को और चोट नहीं पहुँचा सकती थी और मैं अब इतनी स्वार्थी और कायर नहीं हो सकती थी कि सिर्फ अपने बारे में सोचती रहूँ। मुझे परमेश्वर द्वारा व्यवस्थित परिस्थितियों के आगे समर्पण करना था और सबसे पहले कलीसिया का काम करने की पूरी कोशिश करनी थी। तब, मुझे ये पिंग और उसके साथियों का सामना करने का साहस मिला। जब भी मैं काम करने जाऊँगी, भले ही ये पिंग और दूसरे लोग मुझ पर हमला करेंगे, चाहे वे कितने भी अनुचित क्यों न हों, मैं अब उनसे बचकर नहीं निकलूँगी। मैं सिर्फ सत्य सिद्धांतों की संगति करने पर ध्यान दूँगी और उनसे प्रभावित नहीं होऊँगी।

उसके बाद, मैंने यह सोचते हुए आत्म-चिंतन किया “मैं उनसे इतनी क्यों डरती हूँ और उनका सामना करने की हिम्मत क्यों नहीं करती हूँ?” इस खोज के बीच, मैंने परमेश्वर के वचनों के दो अंश देखे जिन्होंने मुझे बहुत प्रभावित किया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं : “जब न्याय दुष्टता से टकराता है, तो मनुष्य न्याय के अस्तित्व का बचाव या समर्थन करने के लिए क्रोध से आगबबूला नहीं होता; इसके विपरीत, जब न्याय की शक्तियों को धमकाया, सताया और उन पर आक्रमण किया जाता है, तब मनुष्य का स्वभाव नज़रअंदाज़ करने, टालने या मुँह फेरने वाला होता है। लेकिन दुष्ट शक्तियों से सामना होने पर मनुष्य का रवैया समझौतापरक, झुकने और मक्खन लगाने वाला होता है(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है II)। “परमेश्वर ने कहा है : ‘परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान के लिए जमीन पर पानी की एक बूँद या रेत का एक कण छूना भी मुश्किल है; परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान धरती पर चींटियों का स्थान बदलने के लिए भी स्वतंत्र नहीं है, परमेश्वर द्वारा सृजित मानव-जाति की तो बात ही छोड़ दो।’ तुम इन वचनों पर किस हद तक विश्वास कर पाते हो? मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों के खिलाफ लड़ना तुम्हारी आस्था की सीमा को प्रकट करता है। अगर तुममें परमेश्वर के प्रति सच्चा विश्वास है, तो तुममें सच्ची आस्था है। अगर परमेश्वर में तुम्हारा केवल थोड़ा-सा विश्वास है और वह विश्वास अस्पष्ट और खोखला है तो तुममें सच्ची आस्था नहीं है। अगर तुम यह नहीं मानते कि परमेश्वर इन सभी चीजों पर संप्रभु हो सकता है और शैतान परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन है, और तुम अभी भी मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों से डरते हो, उन्हें कलीसिया में बुराई करते हुए, कलीसिया के काम को बाधित और बर्बाद करते हुए बर्दाश्त कर सकते हो और खुद को बचाने के लिए शैतान के साथ समझौता कर सकते हो या उससे दया की भीख माँग सकते हो, उसके खिलाफ खड़े होने और उससे लड़ने की हिम्मत नहीं कर सकते हो, और तुम भगोड़े, खुशामदी और तमाशबीन व्यक्ति बन गए हो, तो तुममें परमेश्वर में सच्चे विश्वास की कमी है। परमेश्वर में तुम्हारा विश्वास बस एक प्रश्नचिह्न बनकर रह जाता है, जो तुम्हारे विश्वास को बहुत दयनीय बना देता है!(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग आठ))। ऐसा लग रहा था मानो परमेश्वर के वचन आमने-सामने मेरा न्याय कर रहे हों, जिससे मैं बहुत व्यथित और भयभीत हो गई। मैंने देखा कि परमेश्वर ने वास्तव में मानव हृदय की गहराई से पड़ताल की और उसने स्पष्टता से देखा कि मेरे हृदय में क्या था। इस पर ध्यानपूर्वक विचार करने पर मुझे एहसास हुआ कि चाहे शैतान की बुरी शक्तियाँ कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हों, वे परमेश्वर द्वारा निर्धारित सीमाओं को पार नहीं कर सकती थीं और वे उन चीजों को करने की हिम्मत भी नहीं कर सकती थीं जिनकी अनुमति परमेश्वर ने नहीं दी थी। ये पिंग और उसके साथियों से मेरे डर का मूल कारण यह था कि मैं हर चीज पर परमेश्वर की संप्रभुता में विश्वास नहीं करती थी। मुझे लगता था कि कलीसिया में मेरा कोई रुतबा नहीं है और मेरे बातों का कोई वजन नहीं है। इस बीच, ये पिंग हमेशा एक अगुआ रही थी और चिकनी-चुपड़ी बातें करती थी, जिसने कुछ भाई-बहनों को भी गुमराह किया था। उसने उपदेशक को भी अपने पक्ष में कर लिया था। मैं कमजोर और असुरक्षित थी और मेरे शब्दों का कोई वजन नहीं था; मैं उसका मुकाबला नहीं कर सकती थी। इसलिए जब मैं अलग-थलग थी और उसके द्वारा प्रताड़ित थी और जब मैंने उसे भाई-बहनों का दमन करते हुए देखा, साथ ही बुराई करते और कलीसिया के काम में बाधा डालते हुए देखा, तब भी मुझमें उतना साहस नहीं था कि मैं उसकी रिपोर्ट करूँ। मैंने सोचा कि मुझे बर्खास्त करके निकाल दिया जाएगा, जिससे मेरा उद्धार पाने का मौका खो जाएगा। मैं एक अर्थहीन जीवन जीना पसंद करूँगी, उसके बुरे कामों में हस्तक्षेप नहीं करूँगी और उसके कुकर्मों को उजागर नहीं करूँगी। मैं बस उसकी बुराई में भागीदार थी और कलीसिया के काम को नुकसान पहुंचाने वाले शैतान को अपनी मौन सहमति दे रही थी। परमेश्वर में विश्वास रखने के दौरान अपने विभिन्न अनुभवों पर सोचते हुए, मैंने देखा कि परमेश्वर हर कदम पर मेरा मार्गदर्शन और शासन कर रहा था। मुझे ये पिंग के दमन और पीड़ा का सामना करना पड़ा और मुझे लगा कि मैं हमेशा के लिए अलग-थलग पड़ जाऊँगी, लेकिन फिर, सुरक्षा चिंताओं के कारण ये पिंग कलीसिया का काम करने में सक्षम नहीं थी और काम की प्रभारी नई बहन ने स्थिति को समझने के बाद मेरा काम फिर से शुरू करवा दिया। मैंने जो कुछ भी प्रत्यक्ष अनुभव किया, वह परमेश्वर द्वारा शासित था; क्या मेरी संभावनाओं और भाग्य में भी उसका निर्णय अंतिम नहीं था? मैंने परमेश्वर द्वारा व्यवस्थित इन सभी परिवेशों का अनुभव किया और मुझे बहुत सारे सत्य प्राप्त हुए, लेकिन अब तक मुझे परमेश्वर पर कोई आस्था क्यों नहीं थी? जब मुझ पर मुसीबत आई तो मैंने प्रार्थना नहीं की और परमेश्वर को नहीं पुकारा या सत्य का अभ्यास नहीं किया। इसके बजाय, मैं शैतान के रुतबे और शक्ति से भयभीत थी। मैंने शैतान की इन बुरी शक्तियों को स्वयं परमेश्वर से भी अधिक ऊँचा माना। क्या मैं शैतान के सामने आत्मसमर्पण नहीं कर रही थी? मैंने अपने दिल में परमेश्वर के लिए क्या जगह छोड़ी थी? मैंने देखा कि मैं इस सिद्धांत पर विश्वास करती थी कि परमेश्वर की हर चीज पर संप्रभुता है और वह धार्मिक है, लेकिन जब मुझ पर थोड़ी मुसीबत आई तो मैंने शैतान के साथ समझौता कर लिया और भगोड़ी बन गई। मुझे परमेश्वर पर इतनी कम आस्था थी! तब आखिरकार मैं समझ गई कि भले ही मसीह-विरोधियों की बुरी शक्तियाँ कुछ समय के लिए निरंकुश हो सकती हैं, भाई-बहनों को दबा सकती हैं और कुछ भ्रमित, विवेकहीन लोगों को गुमराह कर सकती हैं, लेकिन परमेश्वर ने लोगों को विवेकशील बनने में मदद करने के लिए अपनी सेवा में उनका इस्तेमाल किया है। देर-सवेर, मसीह-विरोधियों को उनकी असलियत दिखा दी जाएगी और निकाल दिया जाएगा। यह पहले की तरह ही था, जब हमारे कलीसिया में एक मसीह-विरोधी अपना कर्तव्य निभाते हुए कई तरह की बुराइयाँ करता था। अंत में, उसके सभी बुरे कर्म बेनकाब हो गए और उसे भाई-बहनों ने त्याग दिया और कलीसिया से निकाल दिया। मैंने देखा कि कलीसिया वह जगह है, जहाँ परमेश्वर की धार्मिकता का राज है। अगर कोई स्वयं के लिए इसका लगन से अनुभव नहीं करता है तो वह परमेश्वर के कर्मों को कैसे जान सकता है? मैंने सिर्फ वही देखा जो सतह पर था और जब मुझ पर मुसीबत आई तो मैंने शैतान की ताकतों के आगे घुटने टेक दिए; मेरे दिल में परमेश्वर के लिए कोई जगह नहीं थी। मैं पूरी तरह से छद्म-विश्वासी थी! मैं सत्य नहीं समझती थी; मैं एक दयनीय प्राणी थी! यह सोचकर मुझे शर्म आई कि मैं कितनी कायर और स्वार्थी थी। मैं परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुसार अभ्यास करने और मसीह-विरोधियों को उजागर करने और त्यागने के लिए परमेश्वर पर निर्भर रहने के लिए तैयार थी। मैं तुरंत अपने साथी कार्यकर्ताओं से मिलने गई और चर्चा की कि हमें ये पिंग और उसके साथियों से कैसे निपटना चाहिए।

मुलाकात के बाद, हमने परमेश्वर के वचनों का एक अंश खाया-पिया। परमेश्वर कहते हैं : “यदि कलीसिया में ऐसा कोई भी नहीं है जो सत्य का अभ्यास करने का इच्छुक हो, और परमेश्वर की गवाही में दृढ़ रह सकता हो, तो उस कलीसिया को पूरी तरह से अलग-थलग कर दिया जाना चाहिए और अन्य कलीसियाओं के साथ उसके संबंध समाप्त कर दिये जाने चाहिए। इसे ‘मृत्यु दफ़्न करना’ कहते हैं; इसी का अर्थ है शैतान को ठुकराना। यदि किसी कलीसिया में कई स्थानीय गुण्डे हैं, और कुछ ‘छोटी-मोटी मक्खियों’ द्वारा उनका अनुसरण किया जाता है जिनमें विवेक का पूर्णतः अभाव है, और यदि ऐसी कलीसियाओं में लोग, सच्चाई जान लेने के बाद भी, इन गुण्डों की जकड़न और तिकड़म को नकार नहीं पाते, तो उन सभी मूर्खों को अंत में निकाल दिया जायेगा। भले ही इन छोटी-छोटी मक्खियों ने कुछ खौफनाक न किया हो, लेकिन ये और भी धूर्त, ज़्यादा मक्कार और कपटी होती हैं, इस तरह के सभी लोगों को निकाल दिया जाएगा। एक भी नहीं बचेगा!(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं उनके लिए एक चेतावनी)। परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद, मुझे लगा कि वह मुझ पर अपना क्रोध बरसा रहा है। “मृत्यु दफ़्न करना” और “एक भी नहीं बचेगा,” ये शब्द तलवार की तरह मेरे दिल की गहराई तक चुभ गए। मुझे महसूस हुआ कि परमेश्वर का स्वभाव धार्मिक है और वह अपमान बर्दाश्त नहीं करता और मैं भय से काँप उठी। ये पिंग और अन्य मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों ने ताकत और रुतबे की होड़ में लगभग एक साल तक कलीसिया में व्यवधान डाला और बहुत से बुरे कर्म किए। मैं साफ तौर पर उनके प्रति कुछ हद तक विवेकशील थी और इन बुरे लोगों के प्रकृति सार को पहले ही देख चुकी थी, लेकिन मैंने उन्हें उजागर करने और रिपोर्ट करने में देरी की, जिससे उन्हें बुराई करने की अनुमति मिल गई; मैंने पहले ही परमेश्वर के स्वभाव को नाराज कर दिया था। जब मैंने परमेश्वर को यह कहते हुए देखा कि चालाक और धूर्त लोगों को अंत में निकाल दिया जाएगा तो मैंने सोचा कि कैसे पहले अपने हितों की रक्षा के लिए मैंने ये पिंग के बुरे कर्मों को देखकर भी उसे उजागर नहीं किया था या उसकी रिपोर्ट नहीं की थी, जिससे मेरे भाई-बहनों के जीवन प्रवेश में नुकसान हुआ। मुझे आत्म-ग्लानि की गहरी भावना महसूस हुई। अपने चिंतन के बीच मैंने पहचाना कि, “जो पक्षी अपनी गर्दन उठाता है गोली उसे ही लगती है” नामक शैतानी जहर के नियंत्रण में होने के कारण मैंने बहुत ही धूर्त और धोखेबाज तरीके से काम किया था। ये पिंग द्वारा मुझे सताने के बाद कई बार ऐसा हुआ जब मैंने उसके बुरे कर्मों के बारे में रिपोर्ट करना चाहा, लेकिन जैसे ही मैंने सोचा कि ये पिंग मुझे फिर से दबा और सता सकती है, जिससे मेरी संभावनाएं और मेरी मंजिल खतरे में पड़ सकती है, मैं डर के मारे पीछे हट गई। कलीसिया का काम संभालने के बाद मैंने ली रु को ढाल के रूप में काम करने के लिए भेजा जबकि मैं पृष्ठभूमि में छिप गई, किसी को भी नाराज नहीं किया। मैंने देखा कि मैं शैतानी जहर के अनुसार जी रही थी और मैं स्वार्थी और नीच बन गई थी। जब कोई संकट आया तो मैं घोंघे की तरह अपने खोल के अंदर छिप गई। मेरे पास उसका सामना करने की हिम्मत नहीं थी, न्याय की भावना तो दूर की बात है! दरअसल, मैं मुसीबत से बचने के लिए जितनी अधिक रियायतें ले रही थी, मसीह-विरोधियों और कुकर्मियों को कलीसिया में विघ्न-बाधा डालने की उतनी ही अनुमति दे रही थी, और मैं भाई-बहनों को उतना ही शैतान और राक्षसों की क्रूरता के हवाले कर रही थी। अब मैं कलीसिया के काम की प्रभारी थी और परमेश्वर का इरादा था कि मैं सिद्धांतों का पालन करूँ, भाई-बहनों की रक्षा करूँ और मसीह-विरोधियों को कलीसिया के काम को नुकसान न पहुँचाने दूँ। मुझे अपना दायित्व और जिम्मेदारी निभाने की जरूरत थी। पहले मैं हर तरह से खुद की रक्षा कर रही थी और मैं सत्य का अभ्यास करने और परमेश्वर को संतुष्ट करने में सक्षम नहीं थी, लेकिन परमेश्वर ने मुझे अपना कर्तव्य करने से नहीं रोका; इसके बजाय, उसने मुझे न्याय करने और चेतावनी देने के लिए अपने वचनों का उपयोग किया। यह परमेश्वर का सबसे बड़ा प्रेम है! इस बार मुझे ये पिंग की रिपोर्ट करनी थी और अंत तक मसीह-विरोधियों की दुष्ट शक्तियों के खिलाफ लड़ना था। मुझे एक बार के लिए सच्चा इंसान बनना था! उसके बाद हमने ये पिंग और उसके साथियों के कुकर्मों की रिपोर्ट की, साथ ही उपदेशक द्वारा बुराई करने में उनका अनुसरण करने की अभिव्यक्ति की सूचना उच्च-स्तरीय अगुआओं को दी। जब अगुआओं ने ये पिंग की अभिव्यक्तियों की पहचान कर ली तो उन्होंने हमें पहले भाई-बहनों के साथ संगति करने और उसे पहचानने और जितनी जल्दी हो सके ये पिंग और उसके साथियों के कुकर्मों के बारे में और अधिक तथ्य देने के लिए कहा। कुछ समय तक संगति करने के बाद भाई-बहन ये पिंग को पहचानने लगे और वे सभी ये पिंग और उसके साथियों के कुकर्मों का सबूत देने के लिए तैयार हो गए। बाद में जब अगुआओं ने दिखाई गई अभिव्यक्तियाँ सत्यापित कर लीं तो उन्होंने देखा कि सबूत निर्णायक थे और ये पिंग और अन्य लोगों को कलीसिया से निकाल दिया गया।

बाद में हमने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा और इस बात पर संगति की कि परमेश्वर ने अंत के दिनों में मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों को बुराई करने और कलीसिया में गड़बड़ी पैदा करने की अनुमति क्यों दी, यहाँ परमेश्वर का इरादा क्या था, और हमें क्या सबक सीखना चाहिए। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं : “कुछ कलीसियाओं में मसीह-विरोधी और दुष्ट लोग दिखाई पड़ते हैं, गड़बड़ी पैदा करते हैं, और ऐसा करते हुए वे कुछ लोगों को गुमराह करते हैं—यह अच्छी बात है या बुरी? यह परमेश्वर का प्रेम है या परमेश्वर लोगों के साथ खिलवाड़ कर उनका खुलासा कर रहा है? तुम इसे नहीं समझ सकते, समझ सकते हो क्या? परमेश्वर सभी चीजों को पूर्ण बनाने के लिए उन्हें अपनी सेवा में ले आता है और वह उन लोगों को बचाता है जिन्हें बचाना चाहता है, और सच्चाई से सत्य को खोजने वाले और सत्य का अभ्यास करने वाले लोग आखिर में जो प्राप्त करते हैं वह सत्य होता है। हालाँकि कुछ लोग जो सत्य नहीं खोजते, वे यह कह कर शिकायत करते हैं, ‘परमेश्वर का इस तरह कार्य करना सही नहीं है। इससे मुझे बहुत कष्ट होता है! मैं लगभग मसीह-विरोधियों के साथ हो गया था। अगर यह सचमुच परमेश्वर द्वारा व्यवस्थित किया गया है, तो वह लोगों को मसीह-विरोधियों के साथ कैसे होने दे सकता है?’ यहाँ क्या चल रहा है? तुम्हारे मसीह-विरोधियों के पीछे न चलने से साबित होता है कि तुम्हें परमेश्वर की रक्षा प्राप्त है; अगर तुम मसीह-विरोधियों के साथ हो जाते हो, तो यह परमेश्वर के साथ धोखा है, और अब परमेश्वर तुम्हें नहीं चाहता। तो कलीसिया में इन मसीह-विरोधियों और दुष्ट लोगों का गड़बड़ी पैदा करना अच्छी बात है या बुरी? बाहर से लगता है कि यह बुरी बात है, लेकिन जब इन मसीह-विरोधियों और दुष्ट लोगों का खुलासा होता है, तो वे समझ-बूझ में विकसित हो जाते हैं, वे स्वच्छ कर दिए जाते हैं और आध्यात्मिक कद में ऊँचे हो जाते हैं। भविष्य में जब तुम ऐसे लोगों से दोबारा मिलोगे, तो उनके अपने असली रंग दिखाने से पहले ही तुम उन्हें पहचान जाओगे और ठुकरा दोगे। इससे तुम कुछ सबक सीख कर लाभान्वित हो पाओगे; तुम जान लोगे कि मसीह-विरोधियों को कैसे पहचानें और अब शैतान से गुमराह न हों। तो मुझे बताओ, क्या यह अच्छी बात नहीं है कि मसीह-विरोधियों को लोगों को बाधित और गुमराह करने दिया जाए? इस चरण तक अनुभव करने के बाद ही लोग देख सकते हैं कि परमेश्वर ने उनकी धारणाओं और कल्पनाओं के अनुरूप कार्य नहीं किया है, वह बड़े लाल अजगर को उन्माद के साथ गड़बड़ी पैदा करने की अनुमति देता है, मसीह-विरोधियों को परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गुमराह करने की अनुमति देता है, ताकि वह अपने चुने हुए लोगों को पूर्ण करने के लिए शैतान को अपनी सेवा में लगा सके, और केवल तभी लोग परमेश्वर के श्रमसाध्य इरादों को समझ सकते हैं। कुछ लोग कहते हैं, ‘मुझे मसीह-विरोधियों ने दो बार गुमराह किया है, फिर भी मैं उन्हें नहीं पहचान सकता हूँ। यदि कोई और ज्यादा चालाक मसीह-विरोधी आ गया, तो मैं फिर से गुमराह हो जाऊंगा।’ तो ऐसा फिर से होने दो, ताकि तुम इसका अनुभव कर सबक सीख लो—परमेश्वर को इसी तरह चीजें करनी होंगी, ताकि वह मानवजाति को शैतान के प्रभाव से बचा सके(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपनी धारणाओं का समाधान करके ही व्यक्ति परमेश्वर पर विश्वास के सही मार्ग पर चल सकता है (1))। परमेश्वर के वचनों ने मुझे महसूस कराया कि वह अपने कार्य में वास्तव में बहुत सर्वशक्तिमान और बुद्धिमान है! कुकर्मियों और मसीह-विरोधियों द्वारा कलीसिया में व्यवधान डालना वैसे तो अच्छी बात नहीं थी और यह मनुष्य की धारणाओं और कल्पनाओं के अनुरूप भी नहीं थी, लेकिन यह परमेश्वर की अनुमति से हुआ और इसमें परमेश्वर की बुद्धि थी। परमेश्वर ने कलीसिया में शैतान और राक्षस के प्रदर्शनों का इस्तेमाल किया ताकि उन्हें बेनकाब करके हटाया जा सके और साथ ही विवेकशील बनने में हमारी मदद की जा सके। परमेश्वर जानता था कि हमारा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है और मसीह-विरोधियों और कुकर्मियों द्वारा हमें गुमराह किया जाना आसान है, इसलिए कलीसिया में उनके द्वारा बुराई करने के माध्यम से, उसने हमें अधिक विवेकशील बनाया। साथ ही, उसने उन लोगों को भी बेनकाब किया जो भ्रमित और विवेकहीन थे और दूसरों का आँख मूंदकर अनुसरण करते थे। मैंने परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचा : “बुलाए बहुत जाते हैं, पर चुने कुछ ही जाते हैं(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बुलाए बहुत जाते हैं, पर चुने कुछ ही जाते हैं)। मैंने अपने दिल में और भी स्पष्टता से देखा कि ऐसे बहुत से लोग हैं जो परमेश्वर पर विश्वास करते हैं और उसका अनुसरण करते हैं और शुरू में गेहूँ और खरपतवार सभी एक साथ बंधे होते हैं और कोई यह नहीं देख सकता कि कौन अच्छा है और कौन बुरा। हालाँकि, जैसे-जैसे अंत के दिनों में परमेश्वर का न्याय कार्य आगे बढ़ता है, जो लोग सत्य को स्वीकार सकते हैं और उसका अनुसरण कर सकते हैं, वे परमेश्वर का न्याय स्वीकारने और खुद को भ्रष्टता से मुक्त करने में सक्षम होते हैं। इस बीच छद्म-विश्वासियों, बुरे लोगों और मसीह विरोधियों को उनकी असलियत दिखाई जाती है और उन्हें पूरी तरह से हटा दिया जाता है और कलीसिया अधिक से अधिक स्वच्छ होती जाती है। यह परमेश्वर के न्याय कार्य के सफल समापन का अपरिहार्य परिणाम है!

4 दिसंबर 2018 को, ये पिंग और अन्य लोगों के निष्कासन की सूचना कलीसिया को दी गई। सभी भाई-बहनों ने आनन्दित होकर अपने हृदय की गहराई से परमेश्वर की धार्मिकता की प्रशंसा की। कलीसिया में अराजकता अंततः समाप्त हो गई और भाई-बहन अपने सामान्य कलीसियाई जीवन में लौट आए। मैं अपने हृदय की गहराई से परमेश्वर को उसके मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद देती हूँ!

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