6. दोहरी मुसीबत के दौरान इम्तहान
शनिवार, 15 अक्टूबर, 2022, खिली धूप, गहराते बादल
कुछ समय पहले हुआशी कलीसिया को एक बड़ी कार्रवाई का सामना करना पड़ा और उसके बाद के परिणामों में सहायता करने के लिए अगुआओं ने मेरे आने की व्यवस्था की। आज जब मैं हुआशी कलीसिया पहुँची हूँ, वांग यिंग मुझे एक मेजबान के घर ले गई और मुझसे कहा, “26 सितंबर को हमारे कई भाई-बहनों, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया है। हमारे अधिकांश घर अब सुरक्षित नहीं रहे; पुलिस के पास हममें से उन लोगों के नाम और तस्वीरें हैं जिन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया था, इसलिए हमारे लिए काम पर आना कठिन है।” ये बातें सुनकर मेरा दिल बैठ गया। मैंने मन में सोचा, “मैंने तो यहाँ अपना काम पूरा होते ही वापस जाने की योजना बनाई थी। लेकिन अब मैं देख रही हूँ कि यहाँ हालात मेरी कल्पना से कहीं ज्यादा खराब हैं। हमारे बहुत से भाई-बहनों, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया है; परमेश्वर के वचनों की बहुत सारी पुस्तकों को हटाने की आवश्यकता है। फिलहाल तो सुरक्षित स्थान ढूँढ़ना आसान नहीं होगा और इसके अलावा, मुझे उन लोगों के साथ कार्य व्यवस्था पर चर्चा करनी होगी जिनकी सुरक्षा खतरे में है। पता नहीं कब मुझ पर नजर रखी जाने लगे और मैं भी गिरफ्तार कर ली जाऊँ। पुलिस अब विश्वासियों को पागलों की तरह पकड़ रही है। जिस तरह के हालात हैं, अगर मुझे गिरफ्तार कर लिया गया तो मुझे उत्पीड़न देकर मार डाला जाएगा। अगर मुझे पुलिस ने यातना देकर मार डाला तो क्या मैं अपना कर्तव्य निभाने का अवसर नहीं गँवा बैठूँगी? फिर मैं कैसे बचाई जा सकूँगी?” लेकिन फिर मैंने सोचा कि यह हालात परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्था के तहत पैदा हुए हैं। विवेक से प्रेरित होकर मैंने परिस्थितियों के सामने समर्पण कर दिया और तुरंत परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों से जुड़ी स्थिति को समझना शुरू कर दिया।
वांग यिंग के जाने के बाद मेजबान बहन ने मुझे यह बताया कि न तो उसके घर की किताबें और न ही एक भाई के घर की किताबें हटाई गईं हैं और भाई को गिरफ्तार कर लिया गया है। यह सुनकर मेरे दिल में एक जकड़न-सी हुई : हमारे भाई-बहनों को गिरफ्तार हुए 20 दिन से ऊपर हो गए थे और परमेश्वर के वचनों की ये पुस्तकें अभी भी असुरक्षित स्थानों पर थीं। अगर वे पुलिस के हाथ पड़ गईं तो भारी नुकसान होगा। पुस्तकों को हर कीमत पर बचाना जरूरी था। लेकिन जैसे ही मैंने उन्हें खुद हटाने की सोची, मैं चिंतित हो गई। मुझे एक बहन की याद आई जो किताबें ले जाते समय पकड़ी गई थी और पुलिस ने उसे पीट-पीटकर मार डाला था। अगर मैं किताबें ले जाते समय पकड़ी गई तो क्या होगा? पुलिस मुझे कभी नहीं छोड़ेगी और पक्का मुझे कड़ी सजा मिलेगी। हो सकता है पीट-पीटकर मार ही डाली जाऊँ। क्या यह परमेश्वर के विश्वासी के रूप में मेरा अंत नहीं होगा? मैं अपने भविष्य और परमेश्वर के घर के हितों के बीच फँस गई थी। मेरे दिल में दर्द और द्वंद्व उमड़ पड़ा। अगर मैं यूँ ही खड़ी रही और कुछ न किया और परमेश्वर के वचनों की किताबें खतरे में पड़ी रहीं तो परमेश्वर के विश्वासी के रूप में मैं ग्लानि से भर जाऊँगी। इसलिए मैंने तुरंत बहन के साथ किताबें रखवाने की जगह के बारे में चर्चा शुरू कर दी। लेकिन यहाँ हालात प्रतिकूल थे और हमें ऐसी कोई जगह ख्याल में नहीं आ रही थी जो उपयुक्त हो। काम आगे न बढ़ता देख, मेरे दिल पर मानो हजारों टन बोझ आ गया हो।
सोमवार, 17 अक्टूबर 2022, बादल छाए हुए थे
हमने कल देर रात तक काम पर चर्चा की इसलिए मैं रात को बहन सोंग यी के घर पर ही रुक गई। दोपहर को वांग यिंग मेरे पास आई और चिंतित होकर कहने लगी, “शहर में महामारी फैल गई है और रात से ही पूरे शहर में तालाबंदी है। तुम वापस नहीं जा सकती।” यह सुनकर मैं चिंतित हो गई। एक तो कार्रवाई के बाद के परिणामों से निपटना पहले ही काफी कठिन है; उस पर अब महामारी फैल गई है और शहर में तालाबंदी है। अब इस दोहरी मुसीबत का सामना कर हम काम कैसे पूरा करेंगे? इस समय बाहर भयंकर महामारी फैल रही है, हर जगह गश्त चल रही है। हर जगह सख्त नाकाबंदी है। अगर किताबों के लिए कोई सुरक्षित जगह मिल भी गई और अगर उन्हें ले जाते समय कहीं गश्ती पुलिस ने मुझे पकड़ लिया तो भी मैं उन्हें सुरक्षित नहीं रख पाऊँगी। फिर यह तो और भी बड़ा नुकसान हो जाएगा। लेकिन मैं किताबें असुरक्षित स्थानों पर छोड़ भी तो नहीं सकती। मुझे क्या करना चाहिए? बस एक ही उम्मीद है कि तालाबंदी फौरन हटा लिया जाए और मैं जल्द से जल्द किताबें हटा सकूँ।
गुरुवार, 10 नवंबर 2022, बादल छाए हुए थे और बारिश हो रही थी
सुबह मैंने उत्सुकता से खिड़की से बाहर देखा। नीचे सड़क पर पीसीआर जाँच कराने वालों की लंबी कतार थी। मुझे तालाबंदी हटाए जाने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे थे। बेचैन होकर मैंने मेजबान बहन से आग्रह किया कि वह देखे कि क्या कोई और रास्ता निकल सकता है। उसने मायूसी से कहा, “महामारी और बुरी तरह फैलती जा रही है। पास-पड़ोस में किसी को भी घर से निकलने की अनुमति नहीं है; सब कुछ ठप्प पड़ा है।” यह सुनकर मैं और भी चिंतित हो गई, सोचने लगी, “जब पूरा शहर ही बंद है तो फिर मैं यह काम कैसे कर पाऊँगी? अगर तालाबंदी जारी रहती है तो मैं परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों को कैसे हटा पाऊँगी? तालाबंदी आखिर खत्म कब होगी? मुझे यहाँ 20 दिनों से ज्यादा हो गए और जो बहन मेरी मेजबानी कर रही है पुलिस उसका भी पीछा कर रही है। मुझे किसी भी समय गिरफ्तार किये जाने का खतरा है। यह शहर महामारी के लिए भी एक उच्च जोखिम वाला क्षेत्र है, इसलिए अगर तालाबंदी हटा भी ली जाए तो भी मैं संक्रमित हो सकती हूँ और बाहर जाने पर मुझे क्वारंटाइन किया जा सकता है। और अगर मैं संक्रमित होकर यहीं मर गई तो क्या होगा?” यह सोचकर ही मेरा हृदय कमजोर होने लगा। मैंने सोचा, “अब तो मेरे पास रहने के लिए भी कोई सुरक्षित जगह नहीं बची है। स्थिति बहुत ही खतरनाक है! मुझे यहाँ अपना काम खत्म करके जल्द से जल्द वापस जाना होगा ताकि मुझे जगह-जगह छिपकर ऐसी दमनकारी अवस्था में न रहना पड़े। लेकिन अब महामारी भयंकर रूप ले रही है; बसें और ट्रेनें भी अब नहीं चल रही हैं तो मैं वापस कैसे जाऊँ?” मैं सुरक्षित लौटने के तरीकों के बारे में सोचती रही। मैंने जितना अधिक सोचा, परमेश्वर से उतनी ही दूर होती गई। मैं परेशान और बेचैन हो गई।
शाम को ही मैं बीमार पड़ गई। तेज सिरदर्द हो रहा था और मेरा पूरा शरीर कमजोरी से कराह रहा था। मैं ठीक से चल भी नहीं पा रही थी, पूरा बदन ढीला पड़ गया था। आराम करने के लिए सिर को मेज पर टिकाया तो सिर उठाना मुश्किल हो गया। लगा जैसे मेरे अंदर भी महामारी के लक्षण उभर रहे हैं। कुछ समझ नहीं आ रहा था। मैं तो अच्छी खासी थी फिर अचानक बीमार कैसे पड़ सकती हूँ? इससे मैं क्या सबक लूँ? इस स्थिति में परमेश्वर का इरादा क्या है?
शुक्रवार, नवंबर 11, 2022, खिली धूप
आज सुबह भक्ति करते समय मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े जो कहते हैं : “मुख्यभूमि चीन में परमेश्वर के चुने हुए सभी लोगों ने बड़े लाल अजगर के हाथों दमन और गिरफ्तारियों का अनुभव किया है और कुछ प्रलोभनों का भी अनुभव किया है। चाहे सत्य का अनुसरण कर सकने वाले सभी लोग कितनी ही बार कमजोर पड़े हों और विफल हुए हों, उन सबका आध्यात्मिक कद धीरे-धीरे बढ़ता रहा है और उन्हें जीवन प्रवेश मिल गया है। अगर उन्हें अतीत में अनुभव किए हुए परिवेशों और प्रलोभनों का सामना फिर से करना पड़े, तो उनमें कुछ आस्था होगी। अगर एक दिन उनका अनुभव उन्हें उस मुकाम तक ले जाए जहाँ वे मृत्यु से न डरें और स्पष्ट रूप से यह देख सकें कि लोगों का जीवन-मरण सचमुच परमेश्वर के हाथ में है और परमेश्वर द्वारा आयोजित और व्यवस्थित है, तो क्या इसका मतलब यह नहीं होगा कि उनकी आस्था बढ़ गई है? ठीक पुराने नियम के युग की तरह—जब दानियेल को शेरों की माँद में फेंक दिया गया था, तो शेरों ने उसे क्यों नहीं काटा? वह इसलिए क्योंकि उसमें यह आस्था थी कि परमेश्वर ने शेरों को उसे काटने की अनुमति नहीं दी है। तब दानियेल अपने दिल में क्या सोच रहा था? उसने परमेश्वर के बारे में शिकायत नहीं की। उसने अपने दिल में कहा : ‘परमेश्वर ने मुझे शेरों की माँद में फेंक दिया है। मैं और शेर दोनों ही सृजित प्राणी हैं। अगर परमेश्वर ने उन्हें मुझे खाने की अनुमति दे दी, तो इसका मतलब होगा कि यह मेरे मरने का समय है। अगर परमेश्वर ने इसकी अनुमति नहीं दी, तो शेर मुझे नहीं खाएँगे। इससे यह साबित होगा कि मुझे अब भी परमेश्वर के हाथ में रहना चाहिए और मेरा जीवनकाल अभी भी समाप्त नहीं हुआ है और मुझे मरना नहीं चाहिए। यह सृष्टिकर्ता ने तय किया है।’ जब दानियेल को इस मामले का सामना करना पड़ा, तो पहली बात, उसने परमेश्वर के नाम को अस्वीकार नहीं किया; दूसरी बात, परमेश्वर ने जो किया उस बारे में उसके मन में कोई संदेह नहीं था, उसने इस बारे में कोई राय नहीं बनाई या इसकी निंदा नहीं की या परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह नहीं किया और वह परमेश्वर की व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण कर पाया। इस प्रकार शैतान को हराया गया और अपमानित किया गया। तो दानियेल के क्रियाकलाप और अभिव्यक्तियाँ क्या थीं? वे गवाहियाँ थीं। सिर्फ ऐसा आध्यात्मिक कद होने पर ही तुम ऐसे परीक्षणों का सामना करोगे। मान लो कि अगर परमेश्वर तुम्हें शेरों की माँद में डाल देता है और फिर भी तुम डरते नहीं हो और शेर तुम्हें खाने की हिम्मत नहीं करते हैं, तो इससे यह साबित हो जाता है कि तुममें सच्ची आस्था है और तुम पूर्ण बनाए जाने के मार्ग पर चल पड़े हो। जीवन विकास बिल्कुल ऐसा ही है। शेरों की माँद में फेंक दिया जाना भी एक परीक्षण है, ठीक वैसे ही जैसे अय्यूब की बेशुमार संपत्ति को छीन लिया जाना एक परीक्षण था। अय्यूब की अभिव्यक्ति क्या थी? (समर्पण।) वह क्यों समर्पण कर पाया? वह इसलिए कर पाया क्योंकि परमेश्वर ने जो किया उस बारे में अय्यूब के मन में कोई संदेह नहीं था। चाहे परमेश्वर इनाम दे या छीन ले, अय्यूब के लिए यह एक ही बात थी। अगर परमेश्वर एक दिन देता और अगले दिन छीन लेता तो भी अय्यूब समर्पण करता। परमेश्वर ने चाहे जैसे भी कार्य किया, वह अय्यूब के लिए ठीक था; वह परमेश्वर को उसकी इच्छानुसार आयोजन करने दे पाया और परमेश्वर के प्रति समर्पण कर पाया। वह परमेश्वर के अनुरूप था। परमेश्वर ने चाहे जैसे भी कार्य किया हो, भले ही परमेश्वर ने उसके साथ खिलवाड़ किया हो, फिर भी वह समर्पण कर पाया। ... सच्ची आस्था में सच्चा समर्पण निहित होता है और सच्चे समर्पण से सच्ची आस्था जन्म लेती है। अगर तुममें सच्ची आस्था है और तुम सच्चा समर्पण प्राप्त कर सकते हो, तो भला कौन-सा परीक्षण तुम्हें हरा सकता है? भला कौन-सी परिस्थिति तुम्हें हरा सकती है? कोई भी तुम्हें हरा नहीं सकता। भले ही तुम्हें शेरों की माँद में क्यों न फेंक दिया जाए, शेर तुम्हें खाने की हिम्मत नहीं करेंगे। क्या यह अच्छी बात नहीं है? (है।)” (परमेश्वर की संगति)। परमेश्वर के वचनों ने मेरे हृदय को प्रकाशस्तंभ की तरह रोशन कर दिया। राजा के ज़ुल्म के कारण दानिय्येल को शेर की माँद में फेंक दिया गया था, लेकिन मौत सामने देखकर भी उसने परमेश्वर को दोष नहीं दिया। उसकी आस्था इस बात पर दृढ़ थी कि हर चीज पर परमेश्वर की संप्रभुता है और उसने खुद को पूरी तरह से परमेश्वर को सौंप दिया था। परमेश्वर में उसकी आस्था सच्ची थी। दानिय्येल के अनुभव ने मुझे प्रेरित किया। इससे मुझे पता चला कि दानिय्येल की तरह मुझे भी परमेश्वर में वैसी ही आस्था रखनी चाहिए, उत्पीड़न और अत्याचार के परिवेश में उसकी संप्रभुता के प्रति समर्पित हो जाना चाहिए। लेकिन जब इन असल जिंदगी के हालात का सामना करना पड़ा तो मुझमें वह आस्था नहीं थी जो दानिय्येल में थी। जब कलीसिया को बड़ी कार्रवाई का सामना करना पड़ा और परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों को फौरन हटाने की आवश्यकता पड़ी तो मैंने पहले इस कर्तव्य से जुड़े अहम जोखिमों का विचार किया। मुझे डर था कि पुलिस रास्ते में मुझे पकड़ लेगी और पीट-पीट कर मार डालेगी। जब महामारी फैली तो मुझे संक्रमित होने और जान जाने का डर था और मैं खौफ और कायरता की दशा में जी रही थी। मैं अपनी सुरक्षा के लिए अपना कर्तव्य तक छोड़कर तेजी से भाग जाना चाहती थी। इस प्रतिकूल परिवेश ने परमेश्वर के प्रति मेरी सच्ची आस्था और समर्पण की कमी को बेनकाब कर दिया। जब अविश्वासी देखते हैं कि पूरा शहर महामारी की चपेट में आ गया है तो वे आतंक और भय में डूब जाते हैं। इसका कारण यह है कि वे परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते और उनके पास भरोसे के लिए कोई नहीं होता। और मैं परमेश्वर की विश्वासी होकर भी इतनी डरी हुई थी। जब मुझे परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और संप्रभुता में विश्वास ही नहीं था तो मैं अपने आप को विश्वासी कैसे कह सकती थी? मैंने दानिय्येल के बारे में सोचा जिसने खुद को एक विदेशी भूमि में पाया, वहाँ के राजा ने उसे सताया और परमेश्वर से प्रार्थना करने से रोका। दानिय्येल ने अंधेरे की ताकतों के साथ समझौता नहीं किया, उसने झुकने के बजाय मृत्यु को चुना और परमेश्वर से प्रार्थना करता रहा। आखिरकार उसे शेरों की मांद में फेंक दिया गया, लेकिन चूँकि परमेश्वर उसके साथ था तो शेरों ने उसे हानि पहुँचाने का साहस नहीं किया। इसी तरह चाहे हमें महामारी का सामना करना पड़े या गिरफ्तारियों का, यह सब परमेश्वर के हाथों में होता है। मेरा गिरफ्तार होना या न होना पूरी तरह से परमेश्वर के हाथों में है। भले ही मुझे गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया जाए, मुझे अपने आपको परमेश्वर को सौंपकर उसके प्रति अपनी गवाही में दृढ़ रहना चाहिए। अगर मुझे संक्रमण हो गया तो मैं परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित हो जाऊँगी, भले ही मैं मर जाऊँ पर शिकायत नहीं करूँगी। फिलहाल तो सबसे जरूरी काम परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों की सुरक्षा करना है। जोखिम चाहे जो भी हो, मुझे पुस्तकें फौरन हटाने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिए। मुझे अपनी चिंताएँ छोड़ देनी चाहिए और कार्रवाई के बाद के कार्यों को ठीक से संभालने के लिए भाई-बहनों के साथ मिलकर काम करना चाहिए। मैंने इस तरह से सोचना शुरू किया तो मुझे बड़ी राहत मिली। दोपहर तक मुझे अपने आप ही अच्छा महसूस होने लगा।
गुरूवार, 15 दिसम्बर 2022, बरसाती मौसम
समय कैसे बीतता है पता ही नहीं चलता। मुझे यहाँ आए हुए दो महीने हो गए हैं। जब से मैं यहाँ आई हूँ कार्रवाई के बाद के हालात से निपट रही हूँ लेकिन प्रतिकूल माहौल के कारण प्रगति धीमी रही है। कल शाम मुझे पता चला कि किसी ने यहूदा बनकर कई अगुआओं, कार्यकर्ताओं और भाई-बहनों को धोखा दिया है। मैंने मन में सोचा, “अब यहाँ के घर लोगों की मेजबानी के लिए सुरक्षित नहीं रहे। हमारे सारे काम बहुत बाधित हो गए हैं और अब स्थिति और भी बदतर हो गई है। अब इस काम को पूरा करने में और कितना समय लगेगा?” यह सोचकर ही मुझे घुटन होने लगी। रात को वांग यिंग आई और बोली कि मुझे लग रहा है कि कल रात मेरा पीछा किया जा रहा था, अब यह जगह सुरक्षित नहीं रही। उसने कहा कि मुझे अब वापस चले जाना चाहिए। मुझे भी उसका सुझाव ठीक लगा और मैंने सोचा, “इन बिगड़ते हालात में वापस जाना ही अच्छा है। ऐसा तो है नहीं कि मैं यहाँ रुकना नहीं चाहती लेकिन बस बात इतनी सी है कि रहने के लिए अब यहाँ कोई जगह सुरक्षित नहीं है। अब मेरा चले जाना ही ठीक है।” लेकिन जैसे ही मैंने जाने के बारे में सोचा, मुझे फिर से ग्लानि होने लगी। यहाँ अभी भी बहुत सारा काम बाकी है, क्या अपना कर्तव्य छोड़कर चले जाना ठीक होगा? मौजूदा प्रतिकूल हालात के बावजूद हमारे भाई-बहन अभी भी यहाँ आकर काम पर चर्चा करने का रास्ता ढूँढ़ ही लेते हैं। अगर मैं चली गई तो काम पर नजर नहीं रख पाऊँगी। लेकिन यह भी है कि यहाँ रहने के लिए अब कोई सुरक्षित जगह नहीं बची है। मैं यहाँ किसी डरे हुए जानवर की तरह निरंतर भय और चिंता में जी रही हूँ। दिमाग में इतना द्वंद्व चल रहा है। रुकूँ या जाऊँ? समझ नहीं आ रहा कि क्या करूँ।
रविवार, दिसम्बर 18, 2022, खिली धूप
आज भी यही विचार करती रही, “जब भी मेरा सामना प्रतिकूल हालात से होता है तो मैं हमेशा भाग क्यों जाना चाहती हूँ?” मुझे एक बहन का पत्र मिला और पत्र पढ़कर मैं बहुत प्रभावित हुई। उसने बताया कि हिरासत से रिहा होकर वह कार्रवाई के बाद के परिणामों से निपटने के लिए कलीसिया में रहना चाहती थी। लेकिन यह सोचकर कि पुलिस उसे किसी भी समय फिर से गिरफ्तार कर सकती है, वह चली गई। नतीजतन, वह कुछ समय के लिए अपना कर्तव्य नहीं निभा पाई जिसका उसे पछतावा हुआ। उसने खास तौर से परमेश्वर के वचनों का एक अंश उद्धृत किया जो मेरी दशा के लिए काफी प्रासंगिक था। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “सकारात्मक पक्ष की बात करें तो अपने कर्तव्य निर्वहन की प्रक्रिया में यदि तुम अपने कर्तव्यों से सही ढंग से पेश आ सकते हो, चाहे तुम्हारे सामने कैसी भी परिस्थितियाँ क्यों न आएँ तुम कर्तव्यों को कभी नहीं छोड़ते हो और जब अन्य लोग आस्था खोकर अपने कर्तव्य निभाना बंद कर दें तब भी तुम अपने कर्तव्यों पर मजबूती से डटे रहते हो और शुरू से अंत तक उन्हें कभी नहीं छोड़ते हो, अंत तक अपने कर्तव्यों के प्रति दृढ़ और वफादार बने रहते हो तो फिर तुम वास्तव में अपने कर्तव्यों को कर्तव्य मान रहे हो और पूरी निष्ठा दिखा रहे हो। यदि तुम इस मानक पर खरे उतर सकते हो तो तुमने वास्तव में अपने कर्तव्यों के समुचित निर्वहन का लक्ष्य पूरा कर लिया है; यह सकारात्मक पक्ष है। हालाँकि, नकारात्मक पक्ष की बात करें तो इस मानक तक पहुँचने से पहले व्यक्ति को विभिन्न प्रलोभनों का सामना करने में सक्षम होना होगा। जब कोई अपने कर्तव्य निर्वहन की प्रक्रिया में प्रलोभनों का सामना न कर पाने के कारण अपना कर्तव्य छोड़ देता है और अपने कर्तव्य से विश्वासघात करते हुए भाग जाता है तो यह किस प्रकार की समस्या है? यह परमेश्वर को धोखा देने के समान है। परमेश्वर के आदेश से विश्वासघात करना परमेश्वर से विश्वासघात करना है। क्या परमेश्वर को धोखा देने वाला अब भी बचाया जा सकता है? इस व्यक्ति का काम तमाम हो चुका है; अब कोई आशा नहीं बची और वह पहले जो कर्तव्य निभाता था वह मात्र श्रम करना था जो उसके विश्वासघात के साथ ही मिट्टी में मिल गया। इसलिए अपने कर्तव्य पर दृढ़ता से टिके रहना आवश्यक है; ऐसा करने से आशा बनी रहती है। व्यक्ति अपने कर्तव्य को निष्ठापूर्वक निभाकर बचाया जा सकता है और परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त कर सकता है। लोगों को अपने कर्तव्य पर दृढ़ता से टिके रहने में कौन-सा हिस्सा सबसे कठिन लगता है? यही कि प्रलोभन का सामना करते समय क्या वे दृढ़ता से खड़े रह सकते हैं। इन प्रलोभनों में क्या-क्या शामिल है? पैसा, रुतबा, अंतरंग संबंध, भावनाएँ। और क्या हैं? यदि कुछ कर्तव्यों में जोखिम है, यहाँ तक कि जीवन का भी जोखिम है, और ऐसे कर्तव्यों का निर्वाह करने पर गिरफ्तारी व कारावास हो सकता है या यहाँ तक कि मौत की सजा भी हो सकती है तो क्या तुम तब भी अपना कर्तव्य निभा सकते हो? क्या तुम दृढ़ रह सकते हो? इन प्रलोभनों पर व्यक्ति कितनी आसानी से काबू पा सकता है यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह सत्य का अनुसरण करता है या नहीं। यह सत्य का अनुसरण करते हुए इन प्रलोभनों को धीरे-धीरे समझने और पहचानने, उनके सार और उनके पीछे की शैतानी चालों को पहचानने की क्षमता पर निर्भर करता है। इसमें व्यक्ति के स्वयं के भ्रष्ट स्वभाव, उसके प्रकृति सार और उसकी कमजोरियों को पहचानने की भी आवश्यकता होती है। व्यक्ति को लगातार परमेश्वर से अपनी रक्षा करने की प्रार्थना करनी चाहिए ताकि वह इन प्रलोभनों का सामना कर सके। यदि कोई उनका सामना कर सकता है और किसी भी परिस्थिति में विश्वासघात या पलायन किए बिना अपने कर्तव्य पर दृढ़ता से कायम रह सकता है तो बचाए जाने की संभावना 50 प्रतिशत तक पहुँच जाती है। क्या यह 50 प्रतिशत संभावना आसानी से प्राप्त की जा सकती है? प्रत्येक कदम एक चुनौती है, जोखिम से भरा है; इसे हासिल करना आसान नहीं है!” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, कर्तव्य का समुचित निर्वहन क्या है?)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे बेहद प्रभावित किया। परमेश्वर का इरादा यह उम्मीद है कि चाहे मेरे सामने कितनी भी विपरीत परिस्थितियाँ आएँ, मैं हमेशा अपने कर्तव्यों पर अडिग रहूँगी। मैं न विश्वासघात करूँगी और न ही भागूँगी। तभी मेरी गवाही सच्ची होगी। अगर मैं प्रतिकूल परिवेश में कायरता और भय से पीछे हट जाऊँ और खुद को बचाने के नाम पर अपने कर्तव्यों का त्याग कर दूँ तो यह परमेश्वर के साथ धोखा होगा और मैं अपनी गवाही गँवा बैठूँगी। इतने सारे भाई-बहनों की गिरफ्तारी के पश्चात कार्रवाई के बाद के परिणामों पर ध्यान देने की तत्काल आवश्यकता है। मैंने परमेश्वर के बहुत सारे वचन पढ़े हैं और परमेश्वर ने जो कुछ भी प्रदान किया है उसका आनंद उठाया है, लेकिन सत्य के क्षण में मैं परमेश्वर के प्रति निष्ठावान रहने में असमर्थ हूँ या एक सृजित प्राणी की भूमिका नहीं निभा पा रही हूँ। बल्कि मैं तो यहाँ के प्रतिकूल माहौल को यहाँ से निकलने का बहाना बनाना चाहती हूँ। मैं कितनी स्वार्थी और धूर्त हूँ! अगर मैं यहाँ से चली जाती हूँ तो भाई-बहनों के साथ आमने-सामने बैठकर काम पर चर्चा नहीं कर पाऊँगी। इससे काम पर असर पड़ेगा। इसके अलावा सामूहिक गिरफ्तारियों के कारण भाई-बहन थोड़े डरे हुए और भयभीत हैं, इसलिए हमें इस समय एक दूसरे को समर्थन और प्रोत्साहन देना चाहिए। मुझे परमेश्वर के इरादे के बारे में और उत्पीड़न और कठिनाइयों के सामने अपने कर्तव्यों को अच्छी तरह से कैसे निभाना है, इस पर उनके साथ ज्यादा से ज्यादा संगति करनी चाहिए। इसलिए मेरा यहाँ रहना काम के लिए फायदेमंद है। अगर मैं केवल अपने हितों के बारे में चिंता करूँ और मृत्यु के भय से अपना कर्तव्य त्याग दूँ तो मैं पूरी तरह भगोड़ी और परमेश्वर से गद्दारी करने वाली बन जाऊँगी। यह कितना स्वार्थी, घृणित और मानवता से रहित होगा! इन बातों को ध्यान में रखते हुए मुझे पता है कि मुझे क्या करना है। मैं मौजूदा हालात से डरकर नहीं बैठ सकती, न ही अपना कर्तव्य छोड़कर जा सकती हूँ क्योंकि वांग यिंग का पीछा किया जा रहा है और मुझे फँसाए जाने का डर है। मुझे परमेश्वर पर भरोसा कर कार्रवाई के बाद के कार्यों को देखने का हर संभव प्रयास करना चाहिए जिसके लिए मुझे यहाँ भेजा गया है। चाहे मुझ पर कितने ही संकट आएँ या काम कितना भी मुश्किल हो, मैं अपनी निष्ठा अर्पित करने को तैयार हूँ। चाहे मैं जिऊँ या मरूँ, मैं अपने आप को परमेश्वर को सौंप दूँगी, उसे ही सब कुछ आयोजित करने दूँगी, उसकी संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित हो जाऊँगी। अगर मेरी जान भी चली जाए तो भी मैं यह काम अच्छे से करूँगी।
मंगलवार, 20 दिसंबर, 2022, खिली धूप
मेरे साथ जो कुछ घटित हो रहा है उसके एक-एक दृश्य पर चिंतन करते हुए मैंने विचार किया : “ऐसा क्यों होता है कि मैं संकटपूर्ण परिवेश से सामना होते ही भाग जाना और अपना कर्तव्य छोड़ देना चाहती हूँ? कौन-सी प्रकृति मुझे नियंत्रित कर रही है?” अपनी खोज में मैंने परमेश्वर के वचनों के दो अंश देखे : “मसीह-विरोधी बेहद स्वार्थी और घिनौने होते हैं। उनमें परमेश्वर के प्रति सच्ची आस्था नहीं होती, परमेश्वर के प्रति निष्ठा तो बिल्कुल नहीं होती; जब उनके सामने कोई समस्या आती है, तो वे केवल अपना बचाव और अपनी सुरक्षा करते हैं। उनके लिए, उनकी अपनी सुरक्षा से ज्यादा जरूरी और कुछ नहीं है। अगर वे जिंदा रह सकें और गिरफ्तार न हों, तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि कलीसिया के काम को कितना नुकसान हुआ है। ये लोग बेहद स्वार्थी हैं, वे भाई-बहनों या कलीसिया के काम के बारे में बिल्कुल नहीं सोचते, सिर्फ अपनी सुरक्षा के बारे में सोचते हैं। वे मसीह-विरोधी हैं। ... मसीह-विरोधी कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के चढ़ावे को छोड़कर भाग जाते हैं, और वे गिरफ्तारी के बाद की स्थिति को सँभालने के लिए लोगों की व्यवस्था नहीं करते। यह बड़े लाल अजगर को परमेश्वर के चढ़ावे और उसके चुने हुए लोगों को जब्त करने की अनुमति देने के समान है। क्या यह परमेश्वर के चढ़ावे और उसके चुने हुए लोगों के साथ गुप्त विश्वासघात नहीं है? जब वे लोग जो परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होते हैं, स्पष्ट रूप से जानते हैं कि परिवेश खतरनाक है, तब भी वे गिरफ्तारी के बाद का कार्य सँभालने का जोखिम उठाते हैं, और निकलने से पहले वे परमेश्वर के घर को होने वाले नुकसान को न्यूनतम करते हैं। वे अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं देते। मुझे बताओ, बड़े लाल अजगर के इस दुष्ट राष्ट्र में, कौन यह सुनिश्चित कर सकता है कि परमेश्वर में विश्वास करने और कर्तव्य करने में कोई भी खतरा न हो? चाहे व्यक्ति कोई भी कर्तव्य निभाए, उसमें कुछ जोखिम तो होता ही है—लेकिन कर्तव्य का निर्वहन परमेश्वर द्वारा सौंपा गया आदेश है, और परमेश्वर का अनुसरण करते हुए, व्यक्ति को अपना कर्तव्य करने का जोखिम उठाना ही चाहिए। इसमें बुद्धि का इस्तेमाल करना चाहिए और अपनी सुरक्षा के इंतजाम करने की भी आवश्यकता होती है, लेकिन व्यक्ति को अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा को पहला स्थान नहीं देना चाहिए। उसे पहले परमेश्वर के इरादों पर विचार करना चाहिए, उसके घर के कार्य और सुसमाचार के प्रचार को सबसे ऊपर रखना चाहिए। परमेश्वर ने तुम्हें जो आदेश सौंपा है, उसे पूरा करना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, और वह पहले आता है। मसीह-विरोधी अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं; उनका मानना है कि किसी और चीज का उनसे कोई लेना-देना नहीं है। जब किसी दूसरे के साथ कुछ होता है, तो वे परवाह नहीं करते, चाहे वह कोई भी हो। जब तक खुद मसीह-विरोधी के साथ कुछ बुरा नहीं होता, तब तक वे आराम से बैठे रहते हैं। वे निष्ठारहित होते हैं, जो मसीह-विरोधी के प्रकृति सार से निर्धारित होता है” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दो))। “मसीह-विरोधी परमेश्वर के प्रति कोई निष्ठा नहीं दिखाते। जब उन्हें काम सौंपा जाता है, तो वे इसे बहुत खुशी से स्वीकार लेते हैं और कुछ अच्छी घोषणाएँ करते हैं, मगर जब खतरा आता है, तो वे सबसे तेजी से भागते हैं; सबसे पहले भागने वाले, सबसे पहले बचकर निकलने वाले वही होते हैं। इससे पता चलता है कि उनका स्वार्थ और घिनौनापन बहुत गंभीर है। उन्हें जिम्मेदारी या निष्ठा का रत्ती भर भी एहसास नहीं है। जब किसी समस्या का सामना करना पड़ता है, तो वे केवल भागना और छिपना जानते हैं, और सिर्फ खुद को बचाने के बारे में सोचते हैं, कभी अपनी जिम्मेदारियों या कर्तव्यों पर विचार नहीं करते। अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा की खातिर, मसीह-विरोधी लगातार अपना स्वार्थी और घिनौना स्वभाव दिखाते हैं। वे परमेश्वर के घर के काम या अपने कर्तव्यों को प्राथमिकता नहीं देते। वे परमेश्वर के घर के हितों को जरा भी प्राथमिकता नहीं देते। इसके बजाय, वे अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता देते हैं” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दो))। परमेश्वर मसीह-विरोधियों के स्वार्थ और नीचता को उजागर करता है। अपने कर्तव्य निर्वहन में प्रतिकूल परिवेश का सामना करने पर वे जहाँ भी जाते हैं केवल अपने बारे में ही सोचते हैं। वे अपनी सुरक्षा और जीवन को विशेष महत्व देते हैं। अगर उनके अपने हित प्रभावित हो रहे हों तो वे परमेश्वर के घर का कार्य छोड़ देते हैं और परमेश्वर के प्रति कोई निष्ठा नहीं दिखाते। मसीह-विरोधियों को उजागर करने वाले परमेश्वर के वचन पढ़कर मेरे दिल में एक चुभन-सी हुई। क्या मेरा व्यवहार भी ऐसा ही नहीं था? यहाँ कलीसिया का खराब माहौल और महामारी का प्रकोप देखकर, मुझे डर लगा कि पुलिस मुझे गिरफ्तार कर लेगी और यातना देकर मार डालेगी; मुझे यह भी भय हुआ कि कहीं मैं संक्रमण की चपेट में आकर मर न जाऊँ। खास तौर से मुझे मरने का डर था और जितनी जल्दी हो सके मैं भाग जाना चाहती थी। मैं इस तरह के शैतानी जहर के सहारे जी रही थी, “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए,” “किसी व्यक्ति की नियति उसी के हाथ में होती है,” और “बुरा जीवन भी अच्छी मृत्यु से बेहतर है,” मेरा मानना था कि हमें जीवन में अपने बारे में ही सोचना चाहिए; मैं अपना कर्तव्य निभाने के लिए कीमत चुकाने के बजाय एक अधम जीवन जीना पसंद करूँगी। मैं बहुत स्वार्थी और घृणित हूँ! वे भाई-बहन निष्ठापूर्वक अपना कर्तव्य निभाते हैं, प्रतिकूल परिवेश में ऐसा करने के जोखिमों को जानने के बावजूद अपनी जान जोखिम में डालकर परमेश्वर पर भरोसा करके अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं और अंततः परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों और अन्य भाई-बहनों की सुरक्षा करते हैं। इसके विपरीत, मुझे बहुत शर्मिंदगी होती है। यहाँ का परिवेश प्रतिकूल है, बहुत बुरी महामारी फैली है लेकिन फिर भी ऐसे भाई-बहन हैं जो मेरी मेजबानी करके खुद को जोखिम में डाल रहे हैं, फिर भी मैं अपनी ही चिंता किए जा रही हूँ, अपने कर्तव्य के प्रति पूरे मन से समर्पित नहीं हो पा रही हूँ। सचमुच मुझमें मानवता नहीं है! अगर मुझमें जरा सा भी जमीर या विवेक होता और जानती कि परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें खतरे में हैं तो मैं यह सुनिश्चित करने की पूरी कोशिश करती कि कार्रवाई के बाद का काम ठीक से हो और नुकसान कम से कम हो। अगर मैं सचमुच भाग गई और परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें समय पर नहीं हटाई गईं तो बहुत संभव है कि वे बड़े लाल अजगर के हाथों में पड़ जाएँ। बल्कि और भी भाई-बहनों पर गिरफ्तारी की तलवार लटक जाएगी और नतीजतन भाई-बहनों के जीवन प्रवेश को और भी अधिक नुकसान होगा। ऐसा करके भले ही मैं पकड़े जाने से बच जाऊँ और अपनी जान बचा लूँ, लेकिन मैं अपने पीछे एक गंभीर अपराध छोड़ जाऊँगी। मैं अत्यधिक पछतावे से भर जाऊँगी और फिर इस बारे में कुछ भी करने के लिए बहुत देर हो चुकी होगी! मुझे प्रभु यीशु की कही बात याद आ गई : “जो शरीर को घात करते हैं, पर आत्मा को घात नहीं कर सकते, उनसे मत डरना; पर उसी से डरो, जो आत्मा और शरीर दोनों को नरक में नष्ट कर सकता है” (मत्ती 10:28)। “जो अपने प्राण बचाता है, वह उसे खोएगा; और जो मेरे कारण अपना प्राण खोता है, वह उसे पाएगा” (मत्ती 10:39)। मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक अंश भी याद आ गया जो कहता है : “परिवार, सम्पदा, और इस जीवन की भौतिक वस्तुएँ, सभी बाहरी उपादान हैं; स्वयं से संबंधित एकमात्र चीज जीवन है। प्रत्येक जीवित व्यक्ति के लिए, जीवन सर्वाधिक सहेजने योग्य है, सर्वाधिक बहुमूल्य है, और असल में कहा जाए तो ये लोग मानव-जाति के प्रति परमेश्वर के प्रेम की पुष्टि और गवाही के रूप में, अपनी सर्वाधिक बहुमूल्य चीज अर्पित कर पाए, और वह चीज है—जीवन। अपनी मृत्यु के दिन तक उन्होंने परमेश्वर का नाम नहीं छोड़ा, न ही परमेश्वर के कार्य को नकारा, और उन्होंने जीवन के अपने अंतिम क्षणों का उपयोग इस तथ्य के अस्तित्व की गवाही देने के लिए किया—क्या यह गवाही का सर्वोच्च रूप नहीं है? यह अपना कर्तव्य निभाने का सर्वश्रेष्ठ तरीक़ा है; अपना उत्तरदायित्व इसी तरह पूरा किया जाता है। जब शैतान ने उन्हें धमकाया और आतंकित किया, और अंत में, यहां तक कि जब उसने उनसे अपने जीवन की कीमत अदा करवाई, तब भी उन्होंने अपनी जिम्मेदारी नहीं छोड़ी। यह उनके कर्तव्य-निर्वहन की पराकाष्ठा है। इससे मेरा क्या आशय है? क्या मेरा आशय यह है कि तुम लोग भी परमेश्वर की गवाही देने और उसका सुसमाचार फैलाने के लिए इसी तरीके का उपयोग करो? तुम्हें हूबहू ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है, किन्तु तुम्हें समझना होगा कि यह तुम्हारा दायित्व है, यदि परमेश्वर ऐसा चाहे, तो तुम्हें इसे अपने बाध्यकारी कर्तव्य के रूप में स्वीकार करना चाहिए। आज लोगों के मन में भय और चिंता व्याप्त है, किंतु ये अनुभूतियां किस काम की हैं? यदि परमेश्वर तुमसे ऐसा करने के लिए न कहे, तो इसके बारे में चिंता करने का क्या लाभ है? यदि परमेश्वर को तुमसे ऐसा कराना है, तो तुम्हें इस उत्तरदायित्व से न तो मुँह मोड़ना चाहिए और न ही इसे ठुकराना चाहिए। तुम्हें आगे बढ़कर सहयोग करना और निश्चिंत होकर इसे स्वीकारना चाहिए। मृत्यु चाहे जैसे हो, किंतु उन्हें शैतान के सामने, शैतान के हाथों में नहीं मरना चाहिए। यदि मरना ही है, तो उन्हें परमेश्वर के हाथों में मरना चाहिए। लोग परमेश्वर से आए हैं, और उन्हें परमेश्वर के पास ही लौटना है—यही विवेक और रवैया सृजित प्राणियों में होना चाहिए” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सुसमाचार का प्रसार करना सभी विश्वासियों का गौरवपूर्ण कर्तव्य है)। परमेश्वर के वचनों से मुझे समझ आ गया कि जब कर्तव्य निर्वहन के समय खतरा और मृत्यु का खौफ मंडराने लगे तो मुझे परमेश्वर के प्रति निष्ठावान रहना चाहिए। भले ही इसके लिए मुझे अपने जीवन का बलिदान देना पड़े, मैं अपने कर्तव्य पर दृढ़ता से कायम रहूँगी और कभी भी शैतान के सामने नहीं झुकूँगी। यह शैतान को पराजित करने की सबसे शक्तिशाली गवाही है जो परमेश्वर को स्वीकार्य है। जब मेरी जान को खतरा हो, उस समय अपनी मौत के डर से अगर मैं परमेश्वर का आदेश न मानूँ तो यह चीज शर्मिंदगी की निशानी बन जाएगी और परमेश्वर को इससे घृणा होगी। युगों-युगों से पैगम्बरों और प्रेरितों को सुसमाचार का प्रचार करने और परमेश्वर की गवाही देने के लिए भीषण मौतों का सामना करना पड़ा : कुछ को घोड़ों ने कुचल डाला, कुछ को टुकड़े-टुकड़े कर मार डाला गया, जबकि कुछ अन्य लोग जलाकर मार दिए गए। पतरस को तो परमेश्वर के लिए सूली पर उल्टा लटका दिया गया था। पिछले दिनों बहुत से भाई-बहनों को राज्य के सुसमाचार का प्रचार करने के लिए कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा गिरफ्तार कर क्रूरतापूर्वक प्रताड़ित किया गया। मृत्यु के कगार पर भी वे परमेश्वर के नाम को नकारने से इनकार करते हैं; जबकि कुछ लोग मौत की यातनाएँ दिए जाने के बावजूद यहूदा बनने या परमेश्वर को धोखा देने से इनकार कर देते हैं। उन्होंने परमेश्वर के लिए सुंदर और शानदार गवाही दी है। उन्होंने सच्चे मार्ग की रक्षा के लिए अपने जीवन का उपयोग किया है और अपनी मृत्यु के साथ इस बुरी दुनिया में घोषणा कर गवाही दी है कि परमेश्वर ही एकमात्र सच्चा परमेश्वर, सृष्टिकर्ता है। भले ही इसके लिए उन्हें अपने प्राणों की आहुति देनी पड़े, फिर भी वे हिचकिचाएंगे नहीं। परमेश्वर के लिए गवाही देने की खातिर अपना जीवन दे देना एक मूल्यवान और सार्थक कार्य है। यह गवाही का उच्चतम रूप है। यह एहसास होने पर मुझे कम डर लगा। मैं परमेश्वर पर भरोसा करके इस परिवेश का सामना करने को तैयार थी।
इस समय मेरे मन में परमेश्वर के ये वचन आए। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “शैतान चाहे जितना भी ‘सामर्थ्यवान’ हो, चाहे वह जितना भी दुस्साहसी और महत्वाकांक्षी हो, चाहे नुकसान पहुँचाने की उसकी क्षमता जितनी भी बड़ी हो, चाहे मनुष्य को भ्रष्ट करने और लुभाने की उसकी तकनीकें जितनी भी व्यापक हों, चाहे मनुष्य को डराने की उसकी तरकीबें और योजनाएँ जितनी भी चतुराई से भरी हों, चाहे उसके अस्तित्व के रूप जितने भी परिवर्तनशील हों, वह कभी एक भी जीवित चीज सृजित करने में सक्षम नहीं हुआ, कभी सभी चीजों के अस्तित्व के लिए व्यवस्थाएँ या नियम निर्धारित करने में सक्षम नहीं हुआ, और कभी किसी सजीव या निर्जीव चीज पर शासन और नियंत्रण करने में सक्षम नहीं हुआ। ब्रह्मांड और आकाश के भीतर, एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उससे पैदा हुई हो, या उसके कारण अस्तित्व में हो; एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उसके द्वारा शासित हो, या उसके द्वारा नियंत्रित हो। इसके विपरीत, उसे न केवल परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन रहना है, बल्कि, परमेश्वर के सभी आदेशों और आज्ञाओं को समर्पण करना है। परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान के लिए जमीन पर पानी की एक बूँद या रेत का एक कण छूना भी मुश्किल है; परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान धरती पर चींटियों का स्थान बदलने के लिए भी स्वतंत्र नहीं है, परमेश्वर द्वारा सृजित मानव-जाति की तो बात ही छोड़ दो। परमेश्वर की दृष्टि में, शैतान पहाड़ पर उगने वाली कुमुदनियों से, हवा में उड़ने वाले पक्षियों से, समुद्र में रहने वाली मछलियों से, और पृथ्वी पर रहने वाले कीड़ों से भी तुच्छ है। सभी चीजों के बीच उसकी भूमिका सभी चीजों की सेवा करना, मानव-जाति की सेवा करना और परमेश्वर के कार्य और उसकी प्रबंधन-योजना की सेवा करना है। उसकी प्रकृति कितनी भी दुर्भावनापूर्ण क्यों न हो, और उसका सार कितना भी बुरा क्यों न हो, केवल एक चीज जो वह कर सकता है, वह है अपने कार्य का कर्तव्यनिष्ठा से पालन करना : परमेश्वर के लिए सेवा देना, और परमेश्वर को एक विषमता प्रदान करना। ऐसा है शैतान का सार और उसकी स्थिति। उसका सार जीवन से असंबद्ध है, सामर्थ्य से असंबद्ध है, अधिकार से असंबद्ध है; वह परमेश्वर के हाथ में केवल एक खिलौना है, परमेश्वर की सेवा में रत सिर्फ एक मशीन है!” (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I)। “जब लोग अपने जीवन का त्याग करने के लिए तैयार होते हैं, तो हर चीज तुच्छ हो जाती है, और कोई उन्हें हरा नहीं सकता। जीवन से अधिक महत्वपूर्ण क्या हो सकता है? इस प्रकार, शैतान लोगों में आगे कुछ करने में असमर्थ हो जाता है, वह मनुष्य के साथ कुछ भी नहीं कर सकता” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 36)। परमेश्वर के वचन अधिकार और सामर्थ्य रखते हैं। सब कुछ परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्था के अधीन है। शैतान चाहे कितना भी वहशी और क्रूर क्यों न हो, वह भी परमेश्वर द्वारा निर्धारित सीमाओं को लाँघ नहीं सकता। परमेश्वर की अनुमति के बिना वह सीमा पार करने का साहस नहीं करता, हमें नुकसान पहुँचाना तो दूर की बात है। जैसे शैतान अय्यूब को नष्ट करना चाहता था, लेकिन परमेश्वर ने शैतान को अय्यूब की जान लेने की छूट नहीं दी। हालाँकि शैतान ने हर चाल चली और षड्यंत्र रचा, लेकिन फिर भी उसने अय्यूब की जान लेने का दुस्साहस नहीं किया। इससे मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर का अधिकार किसी भी शत्रुतापूर्ण ताकतों की पहुँच से परे होता है। यहाँ के हालात इतने खराब होने के बावजूद मुझे गिरफ्तार नहीं किया गया है, यह सब परमेश्वर की सुरक्षा के कारण है। एक बार मैं एक मेजबान के घर गई, लेकिन वह बहन मुझे लेने ही नहीं आई। बाद में मुझे पता चला कि एक यहूदा ने उस घर को धोखा दे दिया था और वहाँ पर पुलिस की कड़ी निगरानी थी। मेरा वहाँ न पहुँच पाना परमेश्वर की सुरक्षा ही थी। इसके अलावा इस महामारी ने पुलिस के हाथ भी बांध दिये हैं, इससे भाई-बहनों को गिरफ्तार करने के उनके प्रयासों को बाधा पहुँच रही है। वरना क्या पता कितने और भाई-बहनों को गिरफ्तारी का सामना करना पड़ता। यह सब परमेश्वर का चमत्कारी कर्म, बुद्धि और सर्वशक्तिमत्ता है। इस प्रतिकूल परिवेश के बीच भी परमेश्वर की अनुमति के बिना सीसीपी मुझे छूने की हिम्मत नहीं करती। मुझे गिरफ्तार कर कड़ी सजा दी जाएगी या नहीं, यह सब परमेश्वर पर निर्भर है। अब मैं अपने लिए नहीं जी सकती; मैं खुद को परमेश्वर को सौंपने को तैयार हूँ ताकि हर दिन वह मेरा मार्गदर्शन करे। चाहे यहाँ का परिवेश कितना भी प्रतिकूल क्यों न हो या कितनी भी भयंकर महामारी क्यों न फैली हो, मैं अंत तक अपने कर्तव्य पर कायम रहूँगी। यह एहसास होने पर मुझे मानसिक शांति मिली और मैंने खुद को अपने कर्तव्य में झोंक दिया।
शनिवार, 31 दिसंबर, 2022, खिली धूप
कल सु शाओ और मैं एक कलीसिया में पहुँचे। हमें हैरानी हुई कि जिस भाई ने हमारी मेजबानी की वही हमें किताबें रखने की जगह की पेशकश कर रहा था। हम दोनों रोमांचित थे और फिर हमने काम बाँटने का फैसला किया। सु शाओ घर की स्थिति समझने चली गई और मैं भाई-बहनों के साथ परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें हटाने के मामले पर चर्चा करने के लिए लौट आई। दोपहर तक हमने पुस्तकों का पहला बैच सफलतापूर्वक हटा दिया।
मंगलवार, 14 फरवरी 2023, खिली धूप
हम पिछले कुछ दिनों से लगातार परमेश्वर के वचनों की किताबें हटा रहे हैं और आखिरकार आज किताबों का आखिरी बैच भी हटाया जा रहा है। आज सुबह करीब 3:00 बजे मैंने देखा कि जो भाई किताबें हटा रहा था, वह सुरक्षित वापस आ गया है। मैं बेहद भावुक हो गई और कुछ बोल नहीं पाई। इस दौरान ऐसे प्रतिकूल परिवेश के बावजूद हम सभी पुस्तकों को सुरक्षित रूप से हटाने में कामयाब रहे। यह सब परमेश्वर के मार्गदर्शन और भाई-बहनों के संयुक्त सहयोग का परिणाम है। घर जाने के लिए बस में बैठकर मैं शांति और सुरक्षा का अनुभव कर रही थी। पूरी यात्रा के दौरान मैं सोचती रही : खतरनाक माहौल में काम करने के लिए यहाँ आने के बावजूद, मुझे गहराई से एहसास हुआ है कि ऐसे खतरनाक परिवेश में ही हम परमेश्वर के चमत्कारी कार्यों को देख पाते हैं और पहचान पाते हैं कि परमेश्वर का अधिकार और सामर्थ्य किसी भी शत्रुतापूर्ण ताकतों की पहुँच से परे होता है। मैं अब यह भी समझ गई हूँ कि ऐसे प्रतिकूल परिवेश का अनुभव करने से ही मेरी आस्था पूर्ण हो सकती है, मुझे परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और संप्रभुता को समझने में मदद मिल सकती है, मेरा स्वार्थ और नीचता प्रकट हो सकती है। उस खतरनाक परिवेश में मैं अपने ही हितों की रक्षा कर रही थी और केवल अपने भविष्य और नियति के बारे में ही सोच रही थी। परमेश्वर के वचनों ने मुझे शैतान के अंधेरे प्रभाव को तोड़ने के लिए प्रेरित किया, मैं अंत तक डटी रही और जिस काम के लिए मुझे भेजा गया था उसे पूरा कर पाई। इस यात्रा के दौरान मैंने बहुत कुछ हासिल किया है। यह मेरे जीवन का एक अविस्मरणीय अनुभव और अनमोल खजाना है! परमेश्वर का धन्यवाद!