54. क्या पैसे से सचमुच खुशी मिलती है?

जब मैं आठ साल का था, तब मेरे परिवार के साथ एक अप्रत्याशित घटना हो गई। तभी से मेरी माँ और मैं एक-दूसरे पर निर्भर हो गए, और वह वापस मुझे हमारे देहात वाले घर में ले आई। उस समय हम बेहद गरीब और बदहाल थे। दूसरे लोग बहुमंजिला घरों में रहते थे, जबकि हम खपरैल की छत वाली एक झोपड़ी में रहते थे; हम बहुत मुश्किल में थे। मैं दूसरों से ईर्ष्या करता था और उम्मीद करता था कि बड़ा होकर बहुत पैसे कमाऊँगा ताकि मेरी माँ और मैं आर्थिक रूप से सुरक्षित हो सकें। पैसे कमाने के लिए मैंने हाई स्कूल के बाद पढ़ाई छोड़ दी। उस समय, भाई-बहन चाहते थे कि मैं कलीसिया में शामिल होकर कलीसियाई जीवन जिऊँ। लेकिन मुझे चिंता थी कि सभाओं में भाग लेने से पैसे कमाने के मेरे रास्ते में बाधा आएगी। मैं अभी भी कम उम्र का था और मुझे शादी करके भविष्य में जीवनयापन करना था। मुझे हर काम के लिए पैसे की जरूरत पड़ने वाली थी। इसलिए मैंने भाई-बहनों की भली बातों और सलाह को ठुकरा दिया और सधे कदमों से धन, प्रसिद्धि और लाभ की राह पर चल पड़ा।

मैंने निर्माण कार्य और कुली का काम भी किया। फिर मैंने मार्केटिंग की पढ़ाई की और कुछ रिश्तेदारों के साथ मिलकर कारोबार भी किया। आखिरकार, कारोबार में लगातार सफलता मिलती गई और जिस छोटी सी दुकान से हमने शुरुआत की थी, वह कुछ ही वर्षों में बढ़कर लगभग एक दर्जन कर्मचारियों वाली एक छोटी कंपनी बन गई। छोटी सी उम्र में ही मैं बॉस बन गया और अच्छे-खासे पैसे कमा लिए। मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ, मैंने एक घर खरीदा और मैं अपने जीवन के सभी बुनियादी खर्चों को पूरा करने में सक्षम हो गया। भले ही मैं खूब पैसे कमा रहा था और मेरा दैहिक जीवन संतुष्ट था, लेकिन मेरा मन लगातार दुखी रहता था। पैसे कमाने के लिए, मुझे ग्राहकों के साथ खुशी का दिखावा करना पड़ता था, उनकी चापलूसी और खुशामद करनी पड़ती थी और लोगों से झूठ बोलना और उन्हें धोखा देना मेरी दिनचर्या बन गई थी। मैं अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी करने से नहीं चूकता था और एक इंसान की तरह नहीं जी रहा था। पहले मैं देख चुका था कि परमेश्वर के वचन हमें ईमानदार व्यक्ति बनने के लिए कहते हैं। हर बार इसके बारे में सोचकर मुझे बहुत ग्लानि होती थी। उस पर भी, मैं दिन-रात अपना सारा समय और ऊर्जा व्यवसाय में लगा रहा था और हमेशा ग्राहकों के साथ अच्छा मनोभाव और रवैया बनाए रखता था। जब वे मुझे किसी चीज का इंतजाम करने के लिए कॉल करते, तो मैं तुरंत उसे पूरा करता था, मानो मैं किसी शाही आदेश पर अमल कर रहा हूँ। लेकिन जब कभी माँ चाहती कि मैं घर के कामों में उनकी मदद करूँ या उनसे बात करूँ, तो मैं हमेशा व्यस्त होने का बहाना बनाकर उनसे कहता कि वे मुझे परेशान न करें। मैं सभाओं में शामिल नहीं होता था, और शायद ही कभी प्रार्थना करता था। मेरी हालत पूरी तरह से एक आस्थाहीन अविश्वासी जैसी थी। चूँकि व्यवसाय में संबंध बहुत महत्वपूर्ण होते हैं, इसलिए हर दिन मैं यही सोचता रहता था कि ग्राहकों के साथ संबंध कैसे बनाए रखूँ। चाहे मैं जिसके साथ भी काम कर रहा होता, अगर वे मेरा फायदा करा सकते थे, तो मैं उनकी तारीफ करता और उन्हें खुश करने के लिए ऐसी बातें करता जिनमें सच्चाई नहीं होती थी। मुझे अपने इस व्यवहार से घृणा हो गई थी। मैं और ज्यादा पाखंडी और धोखेबाज बनता जा रहा था, और यह चीज उस स्थिति में पहुँच गई थी जहाँ मैं दोगलेपन का व्यवहार कर रहा था। मुझे खुद से ही नफरत होने लगी थी और जीने का यह तरीका रास नहीं आ रहा था।

कई साल बाद, जब कोविड पूरे देश में फैल रहा था, मैं संक्रमित हो गया और मेरे पूरे शरीर में बहुत दर्द रहता था। मेरे लक्षण शुरू होने से कई घंटे पहले, मैं ऊर्जा से भरा हुआ था और विभिन्न व्यावसायिक मामलों में व्यस्त था, जब अचानक मुझमें खड़े होने की भी ताकत नहीं रही। मैं बिस्तर पर पड़ा हुआ था, मेरी सभी मांसपेशियाँ दर्द से टूट रही थीं और ऐसा लग रहा था जैसे मेरा सिर फट जाएगा। मुझे बहुत तेज बुखार था जो कम ही नहीं हो रहा था, मेरे होंठ सूखकर फट गए थे। मुझे उल्टी और दस्त हो रहे थे; मेरी हालत खराब थी, मानो मौत करीब हो। तभी मैंने महसूस किया कि इंसान कितना क्षणभंगुर और अदना होता है। उस समय मैं सोच रहा था, “आखिर मैं इस तरह से क्यों जी रहा हूँ?” अतीत की घटनाओं का एक-एक दृश्य मेरे मन में किसी फिल्म की तरह उभरने लगा और मैंने सोचा, “दिन-रात मैं ज्यादा पैसे कमाने के तरीकों पर ही दिमाग लड़ाता रहा हूँ, झूठ बोलकर लोगों को छलता रहा हूँ। क्या मैं वाकई सिर्फ पैसे कमाने और इस तरह काम करने के लिए जी रहा हूँ? क्या यह सब सिर्फ मेरे घमंड और आत्म-सम्मान की संतुष्टि के लिए है, ताकि लोग मेरे बारे में अच्छा सोचें? सिर्फ खाने-पीने और मौज-मस्ती में लिप्त रहने के लिए है? क्या यही मेरे जीवन का उद्देश्य है? क्या यही सब मेरे जीवन का सार है? क्या मैं वाकई ऐसी ही मौत मरने वाला हूँ?” यह सोचकर मैं गहरे पश्चात्ताप से भर गया। मुझे पछतावा हुआ कि मैंने शुरू से ही परमेश्वर पर ठीक से विश्वास नहीं किया था और कलीसियाई जीवन नहीं जिया था। मुझे बहुत पछतावा हुआ और मैं इस तरह से मरना नहीं चाहता था। मुझे पहले पढ़े हुए परमेश्वर के वचन याद आए : “एक के बाद एक सभी तरह की आपदाएँ आ पड़ेंगी; सभी राष्ट्र और स्थान आपदाओं का सामना करेंगे : हर जगह महामारी, अकाल, बाढ़, सूखा और भूकंप आएँगे। ये आपदाएँ सिर्फ एक-दो जगहों पर ही नहीं आएँगी, न ही वे एक-दो दिनों में समाप्त होंगी, बल्कि इसके बजाय वे बड़े से बड़े क्षेत्र तक फैल जाएँगी, और अधिकाधिक गंभीर होती जाएँगी। इस दौरान, एक के बाद एक सभी प्रकार की कीट-जनित महामारियाँ उत्पन्न होंगी, और हर जगह नरभक्षण की घटनाएँ होंगी। सभी राष्ट्रों और लोगों पर यह मेरा न्याय है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 65)। “लोग अपना जीवन धन-दौलत और प्रसिद्धि का पीछा करते हुए बिता देते हैं; वे इन तिनकों को यह सोचकर कसकर पकड़े रहते हैं, कि केवल ये ही उनके जीवन का सहारा हैं, मानो कि उनके होने से वे निरंतर जीवित रह सकते हैं, और मृत्यु से बच सकते हैं। परन्तु जब मृत्यु उनके सामने खड़ी होती है, केवल तभी उन्हें समझ आता है कि ये चीज़ें उनकी पहुँच से कितनी दूर हैं, मृत्यु के सामने वे कितने कमज़ोर हैं, वे कितनी आसानी से बिखर जाते हैं, वे कितने एकाकी और असहाय हैं, और वे कहीं से सहायता नही माँग सकते हैं। उन्हें समझ आ जाता है कि जीवन को धन-दौलत और प्रसिद्धि से नहीं खरीदा जा सकता है, कि कोई व्यक्ति चाहे कितना ही धनी क्यों न हो, उसका पद कितना ही ऊँचा क्यों न हो, मृत्यु के सामने सभी समान रूप से कंगाल और महत्वहीन हैं। उन्हें समझ आ जाता है कि धन-दौलत से जीवन नहीं खरीदा जा सकता है, प्रसिद्धि मृत्यु को नहीं मिटा सकती है, न तो धन-दौलत और न ही प्रसिद्धि किसी व्यक्ति के जीवन को एक मिनट, या एक पल के लिए भी बढ़ा सकती है। लोग जितना अधिक इस प्रकार महसूस करते हैं, उतनी ही अधिक उनकी जीवित रहने की लालसा बढ़ जाती है; लोग जितना अधिक इस प्रकार महसूस करते हैं, उतना ही अधिक वे मृत्यु के पास आने से भयभीत होते हैं। केवल इसी मोड़ पर उन्हें वास्तव में समझ में आता है कि उनका जीवन उनका नहीं है, और उनके नियंत्रण में नहीं है, और किसी का इस पर वश नहीं है कि वह जीवित रहेगा या मर जाएगा—यह सब उसके नियंत्रण से बाहर है(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III)। दरअसल, मैंने ये वचन पहले भी कई बार पढ़े थे। हालाँकि मैं विपत्तियों से डरता था, जब तक वे मुझ पर नहीं आती थीं, तब तक मुझे हमेशा लगता था कि वे काफी दूर हैं और मैं धन-दौलत और मनचाही जिंदगी जीने में लगा रहता था, जैसा मैं पहले करता रहा था। अब मैं बिस्तर पर पड़ा था और मेरा पूरा शरीर दर्द से कराह रहा था, मेरा दिमाग बंद हो गया था और तभी मुझे समझ आया कि भले ही पैसा लोगों को कुछ भौतिक सुख दे सकता है लेकिन कोविड का सामना करते समय यह बेकार है। आखिरकार मुझे एहसास हुआ कि मैं अज्ञानी और अंधा था। मैं कितना अड़ियल था! ध्यान से देखें तो भले ही मैं परमेश्वर में विश्वास करता था, पर मैंने उसके वचनों को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया था और धन, प्रसिद्धि और लाभ की अपनी लालसा को कभी नहीं रोका था; परमेश्वर और उसके वचनों के प्रति यही मेरा असली रवैया था। जब मैं कोविड से संक्रमित हुआ, तभी मैंने आत्म-चिंतन करना शुरू किया। मैंने प्रभु यीशु की बात पर विचार किया : “यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्‍त करे, और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा? या मनुष्य अपने प्राण के बदले क्या देगा?(मत्ती 16:26)। मुझे आखिरकार इन वचनों का कुछ मतलब समझ आ गया। वास्तव में पैसे से जीवन नहीं खरीदा जा सकता! मैंने बिस्तर पर किसी तरह करवट बदली और घुटनों के बल बैठकर प्रार्थना करने लगा, “सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मैं कितना अज्ञानी और अंधा हूँ। अपने जीवन में इस हद तक पहुंचने के लिए सिर्फ मैं ही दोषी हूँ। तुम हमेशा से मुझे बचाते रहे हो, भाई-बहनों के जरिए मुझे बार-बार कलीसिया जीवन में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित करते रहे हो, लेकिन मैंने इसे कभी नहीं स्वीकारा और तुम्हारे उद्धार को अस्वीकार कर दिया। हे परमेश्वर, मुझे बहुत पछतावा है। अब मैं समझ गया हूँ कि पैसे से स्वास्थ्य या जीवन नहीं खरीदा जा सकता। मैं हमेशा पैसे के पीछे भागता रहा, मैं चाहता था कि इसका इस्तेमाल अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने में करूँ लेकिन पैसे कमाने के लिए मैं शारीरिक और भावनात्मक रूप से इतना थक गया कि लगभग मैं मर ही गया। मैं ऐसे दर्दनाक तरीके से नहीं जीना चाहता। मैं आपसी धोखाधड़ी से भरे इस माहौल में पाखंडी की तरह नहीं जीना चाहता। हे परमेश्वर, मुझे माफ कर दो और मुझे एक और मौका दो। मुझे बचा लो!” इस तरह मैंने प्रार्थना की और पश्चात्ताप किया। हालाँकि मेरा शारीरिक दर्द जरा भी कम नहीं हुआ लेकिन उस पल मेरा दिल ऐसी गर्माहट महसूस कर रहा था जैसे कोई बच्चा अपने माता-पिता की गोद में लिपटा हो।

अगले दिन मेरी माँ को पता चला कि मैं संक्रमित हो गया हूँ और वह मेरी देखभाल करने आई। उसने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कई वचन पढ़कर सुनाए और उनमें से कुछ ने मुझ पर गहरी छाप छोड़ी। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं : “शैतान मनुष्य के विचारों को नियंत्रित करने के लिए प्रसिद्धि और लाभ का तब तक उपयोग करता है, जब तक सभी लोग प्रसिद्धि और लाभ के बारे में ही नहीं सोचने लगते। वे प्रसिद्धि और लाभ के लिए संघर्ष करते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए कष्ट उठाते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपमान सहते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर देते हैं, और प्रसिद्धि और लाभ के लिए कोई भी फैसला या निर्णय ले लेते हैं। इस तरह शैतान लोगों को अदृश्य बेड़ियों से बाँध देता है और उनमें उन्हें उतार फेंकने का न तो सामर्थ्‍य होता है, न साहस। वे अनजाने ही ये बेड़ियाँ ढोते हैं और बड़ी कठिनाई से पैर घसीटते हुए आगे बढ़ते हैं। इस प्रसिद्धि और लाभ के लिए मानवजाति परमेश्वर से दूर हो जाती है, उसके साथ विश्वासघात करती है और अधिकाधिक दुष्ट होती जाती है। इसलिए, इस प्रकार एक के बाद एक पीढ़ी शैतान की प्रसिद्धि और लाभ के बीच नष्ट होती जाती है(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI)। “‘पैसा दुनिया को नचाता है’ यह शैतान का एक फ़लसफ़ा है। यह संपूर्ण मानवजाति में, हर मानव-समाज में प्रचलित है; तुम कह सकते हो, यह एक रुझान है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि यह हर एक व्यक्ति के हृदय में बैठा दिया गया है, जिन्होंने पहले तो इस कहावत को स्वीकार नहीं किया, किंतु फिर जब वे जीवन की वास्तविकताओं के संपर्क में आए, तो इसे मूक सहमति दे दी, और महसूस करना शुरू किया कि ये वचन वास्तव में सत्य हैं। क्या यह शैतान द्वारा मनुष्य को भ्रष्ट करने की प्रक्रिया नहीं है? शायद लोग इस कहावत को समान रूप से नहीं समझते, बल्कि हर एक आदमी अपने आसपास घटित घटनाओं और अपने निजी अनुभवों के आधार पर इस कहावत की अलग-अलग रूप में व्याख्या करता है और इसे अलग-अलग मात्रा में स्वीकार करता है। क्या ऐसा नहीं है? चाहे इस कहावत के संबंध में किसी के पास कितना भी अनुभव हो, इसका किसी के हृदय पर कितना नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है? तुम लोगों में से प्रत्येक को शामिल करते हुए, दुनिया के लोगों के स्वभाव के माध्यम से कोई चीज प्रकट होती है। यह क्या है? यह पैसे की उपासना है। क्या इसे किसी के हृदय में से निकालना कठिन है? यह बहुत कठिन है! ऐसा प्रतीत होता है कि शैतान का मनुष्य को भ्रष्ट करना सचमुच गहन है! शैतान लोगों को प्रलोभन देने के लिए धन का उपयोग करता है, और उन्हें भ्रष्ट करके उनसे धन की आराधना करवाता है और भौतिक चीजों की पूजा करवाता है। और लोगों में धन की इस आराधना की अभिव्यक्ति कैसे होती है? क्या तुम लोगों को लगता है कि बिना पैसे के तुम लोग इस दुनिया में जीवित नहीं रह सकते, कि पैसे के बिना एक दिन जीना भी असंभव होगा? लोगों की हैसियत इस बात पर निर्भर करती है कि उनके पास कितना पैसा है, और वे उतना ही सम्मान पाते हैं। गरीबों की कमर शर्म से झुक जाती है, जबकि धनी अपनी ऊँची हैसियत का मज़ा लेते हैं। वे ऊँचे और गर्व से खड़े होते हैं, ज़ोर से बोलते हैं और अंहकार से जीते हैं। यह कहावत और रुझान लोगों के लिए क्या लाता है? क्या यह सच नहीं है कि पैसे की खोज में लोग कुछ भी बलिदान कर सकते हैं? क्या अधिक पैसे की खोज में कई लोग अपनी गरिमा और ईमान का बलिदान नहीं कर देते? क्या कई लोग पैसे की खातिर अपना कर्तव्य निभाने और परमेश्वर का अनुसरण करने का अवसर नहीं गँवा देते? क्या सत्य प्राप्त करने और बचाए जाने का अवसर खोना लोगों का सबसे बड़ा नुकसान नहीं है? क्या मनुष्य को इस हद तक भ्रष्ट करने के लिए इस विधि और इस कहावत का उपयोग करने के कारण शैतान कुटिल नहीं है? क्या यह दुर्भावनापूर्ण चाल नहीं है?(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है V)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़कर मुझे लगा कि हर वाक्य सत्य है। उसने जो वचन कहे, वे बहुत सही थे और वे मेरे दिल की गहराई तक उतर गए। मैं वैसा ही था जैसा परमेश्वर ने उजागर किया था : हमेशा पैसे की पूजा करना, “पैसे से बढ़कर कुछ नहीं है” के विचार के अनुसार कार्य करना। मैं मानता था कि अगर मेरे पास पैसा होगा तो मेरे पास सब कुछ होगा और मैं उच्च-वर्ग का जीवन जी पाऊँगा, अपनी मर्जी से जी पाऊँगा और दूसरे मुझे बहुत सम्मान देंगे, और अगर मेरे पास पैसा नहीं होगा तो मैं कुछ भी नहीं कर पाऊँगा। परमेश्वर के वचनों ने जो उजागर किया, उसके माध्यम से मैंने शैतान की दुर्भावना और घृणित इरादों को देखा। शैतान ने मेरे दिमाग को नियंत्रित करने के लिए धन, प्रसिद्धि और लाभ का इस्तेमाल किया, जिससे मैं इन चीजों में गहराई तक खो गया और पैसे के पीछे भागने को अपने जीवन का लक्ष्य और दिशा बना लिया, जिससे मैं परमेश्वर से दूर हो गया और उसे धोखा देने लगा और अधिक से अधिक धोखेबाज, दुष्ट और लालची होता गया, शैतान चाहता था कि मैं भी उसके साथ ही नष्ट हो जाऊँ। पहले मैं उन विचारों के अनुसार जीता था जो शैतान ने मेरे अंदर डाले थे, मेरा दिमाग पैसे, प्रसिद्धि और लाभ के अलावा किसी और चीज में नहीं लगता था। मुझे लगता था कि लोग पैसे के बिना कुछ नहीं कर सकते और जिनके पास पैसा है वे बेहतर जीवन का आनन्द ले सकते हैं और लोग भी उनके बारे में अच्छा सोचने लगते हैं। इस साधारण से लगने वाले विश्वास ने मुझे अदृश्य जंजीरों से जकड़ रखा था, मुझे मजबूती से शैतान के वश कर दिया था और मुझमें मुक्त होने के लिए लेशमात्र भी साहस नहीं था। इस तरह मुझे शैतान ने धोखा दिया और भ्रष्ट किया। पैसे, प्रसिद्धि और लाभ के लिए मैं उदासीन और हृदयहीन हो गया, तिकड़म लगाकर झूठे और धोखाधड़ी वाले काम करने लगा। मैं बिल्कुल भी इंसान की तरह नहीं जी रहा था। कुछ पैसे कमाने के बाद अपना दर्द कम करने के लिए मैं हर जगह घूमने-फिरने लगा। वास्तव में, यह खुद को सुन्न करने का एक अस्थायी तरीका था। भले ही मैंने अपनी सारी ऊर्जा और समय काम में लगा दिया था ताकि मेरा जीवन समृद्ध हो जाए, लेकिन मैं अपने अंदर के खालीपन को कभी दूर नहीं कर पाया। यह परमेश्वर के वचन थे जिन्होंने मेरे हृदय को जागृत किया। मैंने अपनी गतिविधियों की बारीकी से जाँच शुरू कर दी, मैं लगातार धन, प्रसिद्धि और लाभ के पीछे नहीं भागना चाहता था। ये चीजें उतनी शक्तिशाली नहीं थीं जितनी मैंने कल्पना की थी। जब मैं बिस्तर पर पड़ा था और उठ नहीं पा रहा था तो भौतिक सुख और पैसा सब बहुत महत्वहीन लग रहे थे। पैसा मनुष्य का जीवन नहीं बचा सकता और यह मनुष्य के अस्तित्व का मूल नहीं है। यह लोगों को दर्द से मुक्त नहीं करता है।

फिर मैंने खोज शुरू की कि मुझे मूल्यवान और अर्थपूर्ण जीवन जीने के लिए क्या करना चाहिए। उस समय मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो सामान्य है और जो परमेश्वर के प्रति प्रेम का अनुसरण करता है, परमेश्वर के जन बनने के लिए राज्य में प्रवेश करना ही तुम सबका असली भविष्य है और यह ऐसा जीवन है, जो अत्यंत मूल्यवान और सार्थक है; कोई भी तुम लोगों से अधिक धन्य नहीं है। मैं यह क्यों कहता हूँ? क्योंकि जो लोग परमेश्वर में विश्वास नहीं करते, वो देह के लिए जीते हैं और वो शैतान के लिए जीते हैं, लेकिन आज तुम लोग परमेश्वर के लिए जीते हो और परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चलने के लिए जीवित हो। यही कारण है कि मैं कहता हूँ कि तुम्हारे जीवन अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। केवल इसी समूह के लोग, जिन्हें परमेश्वर द्वारा चुना गया है, अत्यंत महत्वपूर्ण जीवन जीने में सक्षम हैं : पृथ्वी पर और कोई इतना मूल्यवान और सार्थकजीवन नहीं जी सकता(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के सबसे नए कार्य को जानो और उसके पदचिह्नों का अनुसरण करो)। “इससे फर्क नहीं पड़ता कि कोई व्यक्ति क्या कर्तव्य निभाता है, यह सबसे उचित काम है जो वह कर सकता है, मानवजाति के बीच सबसे सुंदर और सबसे न्यायपूर्ण काम है। सृजित प्राणियों के रूप में, लोगों को अपना कर्तव्य निभाना चाहिए, और केवल तभी वे सृष्टिकर्ता की स्वीकृति प्राप्त कर सकते हैं। सृजित प्राणी सृष्टिकर्ता के प्रभुत्व में जीते हैं और वे वह सब जो परमेश्वर द्वारा प्रदान किया जाता है और हर वह चीज जो परमेश्वर से आती है, स्वीकार करते हैं, इसलिए उन्हें अपनी जिम्मेदारियाँ और दायित्व पूरे करने चाहिए। यह पूरी तरह से स्वाभाविक और न्यायोचित है, और यह परमेश्वर का आदेश है। इससे यह देखा जा सकता है कि लोगों के लिए सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाना धरती पर रहते हुए किए गए किसी भी अन्य काम से कहीं अधिक उचित, सुंदर और भद्र होता है; मानवजाति के बीचइससे अधिक सार्थक या योग्य कुछ भी नहीं होता, और सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाने की तुलना में किसी सृजित व्यक्ति के जीवन के लिए अधिक अर्थपूर्ण और मूल्यवान अन्य कुछ भी नहीं है। पृथ्वी पर, सच्चाई और ईमानदारी से सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाने वाले लोगों का समूह ही सृष्टिकर्ता के प्रति समर्पण करने वाला होता है। यह समूह सांसारिक प्रवृत्तियों का अनुसरण नहीं करता; वे परमेश्वर की अगुआई और मार्गदर्शन के प्रति समर्पण करते हैं, केवल सृष्टिकर्ता के वचन सुनते हैं, सृष्टिकर्ता द्वारा व्यक्त किए गए सत्य स्वीकारते हैं, और सृष्टिकर्ता के वचनों के अनुसार जीते हैं। यह सबसे सच्ची, सबसे शानदार गवाही है, और यह परमेश्वर में विश्वास की सबसे अच्छी गवाही है। सृजित प्राणी के लिए एक सृजित प्राणी का कर्तव्य पूरा करने में सक्षम होना, सृष्टिकर्ता को संतुष्ट करने में सक्षम होना, मानवजाति के बीच सबसे सुंदर चीज होती है, और यह कुछ ऐसा है जिसे एक कहानी के रूप में फैलाया जाना चाहिए जिसकी सभी लोग इसकी प्रशंसा करें। सृजित प्राणियों को सृष्टिकर्ता जो कुछ भी सौंपता है उसे बिना शर्त स्वीकार लेना चाहिए; मानवजाति के लिए यह खुशी और सौभाग्य दोनों की बात है, और उन सबके लिए, जो एक सृजित प्राणी का कर्तव्य पूरा करते हैं, कुछ भी इससे अधिक सुंदर या स्मरणीय नहीं होता—यह एक सकारात्मक चीज़ है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग सात))। परमेश्वर के वचन पढ़कर मुझे जीवन में एक दिशा मिली। मैंने समझा कि एक सृजित प्राणी के रूप में हमें सत्य का अनुसरण करने, परमेश्वर के इरादों को संतुष्ट करने और सृष्टिकर्ता की स्वीकृति पाने के लिए जीना चाहिए। एक सृजित प्राणी के रूप में हमें अपना कर्तव्य निभाना चाहिए और अपनी जिम्मेदारी पूरी करनी चाहिए; इससे अधिक मूल्यवान या सार्थक कुछ भी नहीं है। शैतान का अनुसरण करने, धन, प्रसिद्धि और लाभ के पीछे भागने से कोई सच्चा सुख नहीं पा सकता, वह अधिकाधिक स्वार्थी और लालची बन जाएगा। अंततः वह शैतान द्वारा पूरी तरह से बंदी बना लिया जाएगा और अनंत पीड़ा में गिर जाएगा। अब परमेश्वर का अंत के दिनों का कार्य लगभग समाप्त हो चुका था; अगर मैं अब भी परमेश्वर में ठीक से विश्वास रखने के इस अवसर का लाभ नहीं उठा सका, तो मैं वास्तव में बहुत मूर्ख हूँ। मैं नहीं चाहता था कि शैतान ने मुझमें जो विचार भरे हैं, उनसे मुझे नुकसान हो। और मैंने इस पीड़ा भरे जीवन से दूर जाने का मन बना लिया। तीन दिनों तक बिस्तर पर पड़े रहने के बाद भी, मुझे अभी भी बुखार था, लेकिन मुझे उतना दर्द नहीं हो रहा था। मैंने अपनी माँ से कहा, “मैं सभाओं में जाना चाहता हूँ।” कुछ ही समय में मैंने कलीसियाई जीवन जीना शुरू कर दिया और मैंने अपने दिल में परमेश्वर को धन्यवाद दिया। परमेश्वर ने मुझे उसके घर लौटने का एक और मौका दिया था और मुझे इसे ठीक से संजोना था; मैं उसके इरादों पर खरा उतरने में नाकाम नहीं हो सकता था।

हालाँकि मेरे सामने अभी भी एक दुविधा थी। मेरे व्यवसाय में कुछ पुराने ग्राहक थे, भले ही मैं अब व्यवसाय को बढ़ाने के लिए उतनी बेताबी से कोशिश नहीं कर रहा था, फिर भी मैंने अपनी ऊर्जा उसमें लगा दी। मैं सभाओं के दौरान असहज महसूस करता था, परमेश्वर के सामने अपने दिल को शांत नहीं कर पाता था। जब सभाएँ समाप्त हो जाती थीं तो मैं अपना फोन निकालता और ग्राहकों की मिस्ड कॉल और संदेशों के अलावा कुछ नहीं देखता। हर सभा में मुझे कई तरह की गड़बड़ियों का अनुभव होता था। मुझे याद है कि एक बार मैं एक सभा के लिए जा रहा था, तो मुझे अचानक एक ग्राहक का फोन आया, जिसे कुछ सामान की तुरंत जरूरत थी। मैं उस जगह पर लगभग पहुँच ही गया था जहाँ हम सभा कर रहे थे, लेकिन ग्राहक के दबाव में आकर सभा स्थल पर पहुँच कर मैंने भाई-बहनों से कहा कि मुझे कुछ जरूरी काम आ गया है और फिर जल्दबाजी में वहाँ से चला गया। मुझे लगा कि सभाओं और काम में ठीक से तालमेल नहीं बैठ रहा है और मैं व्यवसाय छोड़ना चाहता था, लेकिन मैं बहुत उलझन में था। पहले मैं पूरे दिन ग्राहकों से मिलता रहता था, किसी भी तरह से उनके साथ अपने रिश्ते बनाए रखना चाहता था। अगर मैं अब रुक गया और पिछले सारी कोशिशों पर पानी फेर दिया तो यह वास्तव में शर्म की बात होगी। मैं सभाओं में जाना तो चाहता था लेकिन पैसा भी नहीं छोड़ सकता था, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की कि मुझे कोई रास्ता दिखाए।

एक दिन मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “अगर मैं तुम लोगों के सामने कुछ पैसे रखूँ और तुम्हें चुनने की आजादी दूँ—और अगर मैं तुम्हारी पसंद के लिए तुम्हारी निंदा न करूँ—तो तुममें से ज्यादातर लोग पैसे का चुनाव करेंगे और सत्य को छोड़ देंगे। तुममें से जो बेहतर होंगे, वे पैसे को छोड़ देंगे और अनिच्छा से सत्य को चुन लेंगे, जबकि इन दोनों के बीच वाले एक हाथ से पैसे को पकड़ लेंगे और दूसरे हाथ से सत्य को। इस तरह तुम्हारा असली रंग क्या स्वतः प्रकट नहीं हो जाता? सत्य और किसी ऐसी अन्य चीज के बीच, जिसके प्रति तुम वफादार हो, चुनाव करते समय तुम सभी ऐसा ही निर्णय लोगे, और तुम्हारा रवैया ऐसा ही रहेगा। क्या ऐसा नहीं है? क्या तुम लोगों में बहुतेरे ऐसे नहीं हैं, जो सही और ग़लत के बीच में झूलते रहे हैं? सकारात्मक और नकारात्मक, काले और सफेद के बीच प्रतियोगिता में, तुम लोग निश्चित तौर पर अपने उन चुनावों से परिचित हो, जो तुमने परिवार और परमेश्वर, संतान और परमेश्वर, शांति और विघटन, अमीरी और ग़रीबी, हैसियत और मामूलीपन, समर्थन दिए जाने और दरकिनार किए जाने इत्यादि के बीच किए हैं। शांतिपूर्ण परिवार और टूटे हुए परिवार के बीच, तुमने पहले को चुना, और ऐसा तुमने बिना किसी संकोच के किया; धन-संपत्ति और कर्तव्य के बीच, तुमने फिर से पहले को चुना, यहाँ तक कि तुममें किनारे पर वापस लौटने की इच्छा भी नहीं रही; विलासिता और निर्धनता के बीच, तुमने पहले को चुना; अपने बेटों, बेटियों, पत्नियों और पतियों तथा मेरे बीच, तुमने पहले को चुना; और धारणा और सत्य के बीच, तुमने एक बार फिर पहले को चुना। तुम लोगों के दुष्कर्मों को देखते हुए मेरा विश्वास ही तुम पर से उठ गया है। मुझे बहुत आश्चर्य होता है कि तुम्हारा हृदय कोमल बनने का इतना प्रतिरोध करता है। सालों की लगन और प्रयास से मुझे स्पष्टतः केवल तुम्हारे परित्याग और निराशा से अधिक कुछ नहीं मिला, लेकिन तुम लोगों के प्रति मेरी आशाएँ हर गुजरते दिन के साथ बढ़ती ही जाती हैं, क्योंकि मेरा दिन सबके सामने पूरी तरह से खुला पड़ा रहा है। फिर भी तुम लोग लगातार अँधेरी और बुरी चीजों की तलाश में रहते हो, और उन पर अपनी पकड़ ढीली करने से इनकार करते हो। तो फिर तुम्हारा परिणाम क्या होगा? क्या तुम लोगों ने कभी इस पर सावधानी से विचार किया है? अगर तुम लोगों को फिर से चुनाव करने को कहा जाए, तो तुम्हारा क्या रुख रहेगा? क्या अब भी तुम लोग पहले को ही चुनोगे? क्या अब भी तुम मुझे निराशा और भयंकर कष्ट ही पहुँचाओगे? क्या अब भी तुम्हारे हृदयों में थोड़ा-सा भी सौहार्द होगा? क्या तुम अब भी इस बात से अनभिज्ञ रहोगे कि मेरे हृदय को सुकून पहुँचाने के लिए तुम्हें क्या करना चाहिए? इस क्षण तुम्हारा चुनाव क्या है? क्या तुम मेरे वचनों के प्रति समर्पण करोगे या उनसे विमुख रहोगे?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम किसके प्रति वफादार हो?)। परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद मुझे एहसास हुआ कि जैसा परमेश्वर ने कहा था, मैं एक ऐसा व्यक्ति था जो एक हाथ से धन और दूसरे हाथ से सत्य थामे हुए था। हालाँकि मैंने स्पष्टता से देखा था कि पैसा मनुष्य का जीवन नहीं बचा सकता, यह मनुष्य के अस्तित्व का मूल नहीं है और यह लोगों को दर्द से मुक्त नहीं कर सकता, फिर भी मैं इसके लोभ से नहीं बच पाया। जब मेरे व्यवसाय और सभा के समय में टकराव पैदा हुआ तो मैंने पैसे को प्राथमिकता दी और सही चुनाव नहीं कर पाया। क्या मैं बहुत जिद्दी और मूर्ख नहीं था? मैं वैसा ही था जैसा परमेश्वर के वचनों ने उजागर किया था : “फिर भी तुम लोग लगातार अँधेरी और बुरी चीजों की तलाश में रहते हो, और उन पर अपनी पकड़ ढीली करने से इनकार करते हो।” मेरा दिल इतना जिद्दी और हठी था कि मैं परमेश्वर की विचारशीलता को जरा भी नहीं समझ पाया और मैं पूरी तरह से समझ नहीं पाया था कि परमेश्वर मनुष्य की प्रतीक्षा में कैसे रहता है। मैं परमेश्वर पर सही तरीके से विश्वास करना चाहता था; मैं अब और उसके इरादों पर खरा उतरने में नाकाम नहीं हो सकता था। हालाँकि मैं जानता था कि मेरा आध्यात्मिक कद छोटा था और मैं अपने दम पर इससे आगे नहीं बढ़ सकता था। मैंने तुरंत परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर! मैं ऐसे जीवन से मुक्त होना चाहता हूँ। मैं सारा दिन काम करने और पैसे कमाने में व्यस्त रहता हूँ और मैं शांति से तुम्हारे वचनों को पढ़ने और सभा में जाने में असमर्थ हूँ। इस तरह से जीने से मेरे कलीसियाई जीवन पर गंभीर असर पड़ा है। परमेश्वर, मुझे कोई रास्ता दिखाओ। मैं वास्तव में बदलना चाहता हूँ; मुझे इस दर्द भरे जीवन से मुक्त होने के लिए आस्था और शक्ति दो।”

बाद में, एक सभा के दौरान मैंने परमेश्वर के वचनों के दो अंश पढ़े जिन्होंने मेरे दिल को गहराई से छुआ। परमेश्वर के वचन कहते हैं : “युवा लोगों की आँखें दूसरों के लिए धोखे और पूर्वाग्रह से भरी हुई नहीं होनी चाहिए, और उन्हें विनाशकारी, घृणित कृत्य नहीं करने चाहिए। उन्हें आदर्शों, आकांक्षाओं और खुद को बेहतर बनाने की उत्साहपूर्ण इच्छा से रहित नहीं होना चाहिए; उन्हें अपनी संभावनाओं को लेकर निराश नहीं होना चाहिए और न ही उन्हें जीवन में आशा और भविष्य में भरोसा खोना चाहिए, उनमें उस सत्य के मार्ग पर बने रहने की दृढ़ता होनी चाहिए, जिसे उन्होंने अब चुना है—ताकि वे मेरे लिए अपना पूरा जीवन खपाने की अपनी इच्छा साकार कर सकें। उन्हें सत्य से रहित नहीं होना चाहिए, न ही उन्हें ढोंग और अधर्म को छिपाना चाहिए—उन्हें उचित रुख पर दृढ़ रहना चाहिए। उन्हें सिर्फ यूँ ही धारा के साथ बह नहीं जाना चाहिए, बल्कि उनमें न्याय और सत्य के लिए बलिदान और संघर्ष करने की हिम्मत होनी चाहिए। युवा लोगों में अँधेरे की शक्तियों के दमन के सामने समर्पण न करने और अपने अस्तित्व के महत्व को रूपांतरित करने का साहस होना चाहिए। युवा लोगों को प्रतिकूल परिस्थितियों के सामने नतमस्तक नहीं हो जाना चाहिए, बल्कि अपने भाइयों और बहनों के लिए माफ़ी की भावना के साथ खुला और स्पष्ट होना चाहिए। ... विशेष रूप से, युवा लोगों को मुद्दों में विवेक का उपयोग करने और न्याय और सत्य की तलाश करने के संकल्प से रहित नहीं होना चाहिए। तुम लोगों को सभी सुंदर और अच्छी चीज़ों का अनुसरण करना चाहिए, और तुम्हें सभी सकारात्मक चीजों की वास्तविकता प्राप्त करनी चाहिए। तुम्हें अपने जीवन के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए और उसे हल्के में नहीं लेना चाहिए(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, युवा और वृद्ध लोगों के लिए वचन)। “जागो, भाइयो! जागो, बहनो! मेरे दिन में देरी नहीं होगी; समय जीवन है, और समय को थाम लेना जीवन बचाना है! वह समय बहुत दूर नहीं है! यदि तुम लोग महाविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं होते, तो तुम पढ़ाई कर सकते हो और जितनी बार चाहो फिर से परीक्षा दे सकते हो। लेकिन, मेरा दिन अब और देरी बर्दाश्त नहीं करेगा। याद रखो! याद रखो! मैं इन अच्छे वचनों के साथ तुमसे आग्रह करता हूँ। दुनिया का अंत खुद तुम्हारी आँखों के सामने प्रकट हो रहा है, और बड़ी-बड़ी आपदाएँ तेज़ी से निकट आ रही हैं। क्या अधिक महत्वपूर्ण है : तुम लोगों का जीवन या तुम्हारा सोना, खाना-पीना और पहनना-ओढ़ना? समय आ गया है कि तुम इन चीज़ों पर विचार करो(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 30)। परमेश्वर के इन वचनों को पढ़कर मेरा दिल बहुत भावुक हो गया और मैंने सोचा, “मैंने पहले ही कई मौके गँवा दिए हैं और मुझे वह समय वापस नहीं मिलेगा। आजकल सभी देशों में स्थिति अशांत है, भूकंप, युद्ध, महामारी और अन्य प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाएँ लगातार जारी हैं। मुझे सत्य खोजने और परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए और अधिक अवसर नहीं मिलेंगे। अगर मैं चूकता रहा तो मैं हमेशा के लिए चूक सकता हूँ; मुझे शायद कभी दूसरा मौका न मिले। क्या मैं परमेश्वर पर विश्वास करने के लिए मृत्यु का सामना करने तक प्रतीक्षा करूँगा? क्या तब तक बहुत देर नहीं हो जाएगी? अधिक महत्वपूर्ण क्या है, पैसा कमाना या मेरा जीवन? अब समय आ गया है कि मैं इन सब पर विचार करूँ।” युवा लोगों के लिए परमेश्वर के इरादों और अपेक्षाओं का मुझे उसके वचनों से पता चला : “युवा लोगों में अँधेरे की शक्तियों के दमन के सामने समर्पण न करने और अपने अस्तित्व के महत्व को रूपांतरित करने का साहस होना चाहिए(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, युवा और वृद्ध लोगों के लिए वचन)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था और शक्ति दी। अब मैं इस तरह जिद्दी और मूर्ख नहीं बना रह सकता था। मुझे पैसे, शोहरत और लाभ के लिए नहीं जीना चाहिए; मुझे परमेश्वर में विश्वास रखने और सत्य खोजने के मार्ग पर चलना चाहिए। मुझे अपने पिछले जीवन को समाप्त करने की आवश्यकता थी और इसलिए मैंने इस व्यवसाय को छोड़ने का मन बना लिया।

इसके बाद, मैंने अपने रिश्तेदारों को इस विचार के बारे में बताया। उन्होंने मुझे ऐसा न करने के लिए मनाने की हर संभव कोशिश की, उन्होंने कहा कि वे मेरे साल के अंत के वेतन और मूल वेतन दोनों को बढ़ा देंगे। इस तरह मैं हर महीने 10,000 युआन से अधिक कमाऊँगा, और साल के अंत के वेतन के साथ मैं एक साल में लगभग 200,000 युआन कमाऊँगा। यह एक छोटे शहर में रहने वाले किसी व्यक्ति के लिए काफी ज्यादा था। मुझे बहुत लालच दिया गया। हालाँकि यह एक आकर्षक प्रस्ताव था, पर मैंने पहले ही अपना मन बना लिया था। मैं अब एक हाथ में पैसा और दूसरे हाथ में सत्य थामे हुए यह जीवन नहीं जीना चाहता था। बाद में, मैंने परमेश्वर के और भी वचन पढ़े : “यदि तुम उच्च पद वाले, सम्मानजनक प्रतिष्ठा वाले, प्रचुर ज्ञान से संपन्न, विपुल संपत्तियों के मालिक हो, और तुम्हें बहुत लोगों का समर्थन प्राप्त है, तो भी ये चीज़ें तुम्हें परमेश्वर के आह्वान और आदेश को स्वीकार करने, और जो कुछ परमेश्वर तुमसे कहता है, उसे करने के लिए उसके सम्मुख आने से नहीं रोकतीं, तो फिर तुम जो कुछ भी करोगे, वह पृथ्वी पर सर्वाधिक महत्वपूर्ण होगा और मनुष्य का सर्वाधिक न्यायसंगत उपक्रम होगा। यदि तुम अपनी हैसियत और लक्ष्यों की खातिर परमेश्वर के आह्वान को अस्वीकार करोगे, तो जो कुछ भी तुम करोगे, वह परमेश्वर द्वारा श्रापित और यहाँ तक कि तिरस्कृत भी किया जाएगा(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 2: परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियंता है)। पहले मैं अपनी देह और शैतान के लिए जी रहा था और सिर्फ पैसे, शोहरत और लाभ पर नजर रखता था। नतीजतन, मैं और भी दुष्ट और भ्रष्ट होता गया, परमेश्वर से दूर होता गया और हर दिन एक चलती-फिरती लाश की तरह जीता रहा। अब मैं अपने जीने का तरीके बदलना चाहता था और पूरे दिल से परमेश्वर का अनुसरण करना चाहता था।

मेरे रिश्तेदारों ने मुझे एक बार फिर रुक जाने के लिए कहा और यह जानकर कि शैतान मुझे परमेश्वर के सामने जाने से रोकने के लिए उनका इस्तेमाल कर रहा है, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की कि मुझे कोई रास्ता दिखाए, “हे परमेश्वर, मैं पैसे, शोहरत और लाभ के पीछे भागते हुए गलत रास्ते पर नहीं चलना चाहता। मैं एक सार्थक और मूल्यवान जीवन जीना चाहता हूँ। मेरा मार्गदर्शन करो और मुझे शैतान के इस प्रलोभन पर विजय पाने के लिए आस्था दो!” मैं समझ गया कि यह शैतान का मुझे बहकाने और जीतने का तरीका था, इसलिए मैंने हंसते हुए अपने रिश्तेदारों से कहा, “मुझे पता है कि आपके इरादे अच्छे हैं, लेकिन मैं जवानी में ही दुनियादारी से बाहर निकलना चाहता हूं और हमेशा रिश्तेदारों और दोस्तों पर निर्भर नहीं रहना चाहता। मैंने पहले ही निर्णय कर लिया है; मैं अकेले ही आगे बढ़ूँगा।” मेरे रिश्तेदारों ने देखा कि मैंने अपना मन बना लिया है और उन्होंने मेरे चुनाव का सम्मान किया। मैं समझ गया कि परमेश्वर मुझे एक रास्ता दिखा रहा है और मैंने इस मौके का फायदा उठाते हुए अपना काम छोड़ दिया। उसके बाद मैं परमेश्वर पर विश्वास करने और मन की शांति के साथ सभाओं में भाग लेने में सक्षम हो गया और मैंने अपना कर्तव्य निभाना शुरू कर दिया। भाई-बहनों के साथ बातचीत करते समय मुझे अब मुखौटा लगाने और पाखंडी बनकर काम करने की जरूरत नहीं थी, जैसा कि मैं व्यवसाय करते समय करता था। कलीसिया में मैं हर बोझ और दिखावे को दूर कर सकता था। कोई समस्या आने पर मैं परमेश्वर से प्रार्थना कर सकता था और मैं अपने दिल को भाई-बहनों के सामने खोल सकता था और उनसे संवाद कर सकता था और वे ईमानदारी और पूरे दिल से मेरी मदद करते थे। मैं महसूस कर सकता था कि भाई-बहन कितने सच्चे और दयालु हैं, मैंने उनके स्नेह को महसूस किया। इस तरह का एहसास मुझे पहले कभी महसूस नहीं हुआ था। मैं इस तरह जीकर बहुत खुश था और ऐसी शांति और खुशी कोई पैसे से नहीं खरीद सकता था! अब मुझे एक साधारण, सामान्य नौकरी मिल गई है और मेरे लिए बस कपड़े और खाना ही काफी है। मैं अपना समय और ऊर्जा सबसे सार्थक और मूल्यवान कामों में लगाता हूँ : जैसे सत्य की खोज और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाना। परमेश्वर का धन्यवाद कि उसने मुझे कोविड होने दिया और मेरे सुन्न दिल को जगाया और मुझे अपने जीवन मार्ग और दिशा को स्पष्टता से देखने और सबसे सही विकल्प चुनने में मदद की।

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