53. खतरनाक परिवेश में विकल्प
15 अप्रैल 2022 को रात 10 बजे के बाद मुझे अगुआ का पत्र मिला जिसमें कहा गया था कि मेरे गृहनगर कलीसिया के चार भाई-बहनों को गिरफ्तार किया गया है। इन जाने-पहचाने नामों को देखकर मेरा दिल बहुत घबरा गया। इनमें से एक बहन ने एक बार मेरे साथ अपने कर्तव्य निभाए थे और हम दोनों की पुलिस ने फोन पर जाँच की थी। क्या उसकी गिरफ्तारी से मैं भी फँस जाऊँगी? मुझे थोड़ा डर लगा। इसके बाद मैंने सुना कि पाँच और भाई-बहनों को गिरफ्तार किया गया है, जिनमें से दो कलीसिया अगुआ थे। 21 तारीख को दोपहर के वक्त मुझे अगुआ का एक और पत्र मिला जिसमें कहा गया था कि उनका मेरे गृहनगर कलीसिया से संपर्क टूट गया है और पूछा था कि क्या मैं स्थिति समझने के लिए वापस जा सकती हूँ, जाँच कर सकती हूँ कि परमेश्वर के वचनों की संग्रहीत किताबें खतरे में तो नहीं हैं और देख सकती हूँ कि क्या उन्हें दूसरी जगह ले जाया जा सकता है। पत्र पढ़ने के बाद मुझे बहुत चिंता हुई। अगर परमेश्वर के वचनों की किताबें पुलिस द्वारा जब्त कर ली जातीं तो नुकसान बहुत बड़ा होता। लेकिन मैं दस साल पहले ही स्थानीय कलीसिया छोड़ चुकी थी और मुझे नहीं पता था कि किताबें कहाँ रखी होंगी। अचानक मुझे अपनी माँ का ख्याल आया जो हमेशा कलीसिया में रहती थी और शायद उसे स्थिति का पता होगा। लेकिन फिर मेरे दिल में एक स्वार्थी विचार आया : “अगर मैं कहूँ कि मेरी माँ उस घर को ढूँढ़ सकती है जहाँ किताबें रखी हैं तो अगुआ जरूर मुझे वापस भेजने की व्यवस्था करेगा। कम्युनिस्ट पार्टी का दमन अब इतना कठोर है; अगर मैं इस समय वापस जाती हूँ तो क्या मैं सीधे आग से नहीं खेलूँगी? अगर मुझे गिरफ्तार कर कैद कर लिया जाता है तो क्या मैं यातना सहन कर पाऊँगी? गिरफ्तारी के बाद पुलिस द्वारा भाई-बहनों को प्रताड़ित करने के दृश्यों के बारे में सोचकर ही मैं डर जाती हूँ। मेरे लिए यहीं रहना बेहतर होगा; वापस जाना बहुत खतरनाक है!” यह सोचते हुए मैंने अगुआ को वापस जाने के लिए सहमति पर तुरंत जवाब नहीं दिया। लेकिन फिर मैंने सोचा कि कैसे इतने वर्षों तक मैंने परमेश्वर के लिए कुछ भी किए बिना परमेश्वर के अनेक अनुग्रहों और सत्य की आपूर्ति का आनंद लिया है। खासकर अभी अपने कर्तव्य निभाने में मेरे प्रयासों का कोई खास परिणाम नहीं निकला था और मैं अक्सर अपने भ्रष्ट स्वभाव के साथ जीती थी। मैं पहले से ही परमेश्वर की बहुत ज्यादा ऋणी थी। अब मेरे गृहनगर कलीसिया के कई भाई-बहनों को गिरफ्तार कर लिया गया था और उनसे संपर्क टूट गया था, तो मैं बस खड़े होकर तमाशा नहीं देख सकती थी, न ही मैं परमेश्वर के वचनों की किताबों को बड़े लाल अजगर द्वारा जब्त करने दे सकती थी। उसी क्षण, एक भजन की पंक्ति मेरे दिमाग में गूँज उठी : “परमेश्वर के प्रति अपनी वफादारी दिखाने का समय आ गया है; हमें उसकी गवाही देने के लिए कष्ट सहना होगा।” परमेश्वर को उम्मीद थी कि खतरे और कठिनाई के समय में मैं परमेश्वर के परिवार के हितों को प्राथमिकता दूँ। लेकिन मुझे डर था कि अगर मैं वापस गई तो गिरफ्तार हो जाऊँगी और मैं सिर्फ अपने हितों के बारे में सोच रही थी। मेरे पास परमेश्वर के प्रति जरा भी वफादारी नहीं थी, मैं बहुत स्वार्थी थी! जब कलीसिया को उत्पीड़न और कठिनाई का सामना करना पड़ा तो मैं बस अपनी जान बचाने की कोशिश कर रही थी। मुझमें वाकई अंतरात्मा की कमी थी! जब कलीसिया के काम के लिए मेरी जरूरत थी तो भी अगर मैं खड़ी न होती तो मुझे अपराध बोध होता और बाद में पछताना पड़ता। मैं अब और कायर नहीं बन सकती थी; मुझे परमेश्वर के वचनों की किताबें बचाने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना था। इसका एहसास होने पर मैंने जल्दी से अगुआ को पत्र लिखा, उसे बताया कि मैं वापस जाकर अपनी माँ से मिल सकती हूँ ताकि स्थिति समझ सकूँ।
बाद में अगुआ मुझसे मिलने आई और विस्तार से संगति कर मुझे बताया कि एक बार जब मैं अपने गृहनगर जाऊँ तो क्या करूँ। उसने बार-बार मुझसे आग्रह किया कि मैं वापस जाने के बाद सीधे कलीसिया के भाई-बहनों या अपनी माँ से संपर्क न करूँ, क्योंकि यह अनिश्चित था कि वे पुलिस की निगरानी में हैं या नहीं। उसने मुझसे यह भी कहा कि पहले मैं पता लगा लूँ कि मेरी माँ सुरक्षित है या नहीं, उसके बाद ही उससे मिलकर परमेश्वर के वचनों की किताबों के बारे में चर्चा करूँ। उस समय मैं घबराई हुई और डरी हुई दोनों थी। मुझे पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने का डर था और मैं घबरा गई थी क्योंकि मैंने पहले कभी ऐसी स्थिति का सामना नहीं किया था मुझे नहीं पता था कि मैं इसे अच्छी तरह से सँभाल पाऊँगी या नहीं। अगुआ के जाने के बाद मैंने जल्दी से परमेश्वर के वचन पढ़े। परमेश्वर कहता है : “तुम्हें किसी भी चीज़ से भयभीत नहीं होना चाहिए; चाहे तुम्हें कितनी भी मुसीबतों या खतरों का सामना करना पड़े, तुम किसी भी चीज़ से बाधित हुए बिना, मेरे सम्मुख स्थिर रहने के काबिल हो, ताकि मेरी इच्छा बेरोक-टोक पूरी हो सके। यह तुम्हारा कर्तव्य है...। तुम्हें सबकुछ सहना होगा; मेरे लिए, तुम्हें अपनी हर चीज़ का त्याग करने को तैयार रहना होगा, और मेरा अनुसरण करने के लिए सबकुछ करना होगा, अपना सर्वस्व व्यय करने के लिए तैयार रहना होगा। अब वह समय है जब मैं तुम्हें परखूंगा : क्या तुम अपनी निष्ठा मुझे अर्पित करोगे? क्या तुम ईमानदारी से मार्ग के अंत तक मेरे पीछे चलोगे? डरो मत; मेरी सहायता के होते हुए, कौन इस मार्ग में बाधा डाल सकता है? यह स्मरण रखो! इस बात को भूलो मत! जो कुछ घटित होता है वह मेरी सदिच्छा से होता है और सबकुछ मेरी निगाह में है। क्या तुम्हारा हर शब्द व कार्य मेरे वचन के अनुसार हो सकता है? जब तुम्हारी अग्नि परीक्षा होती है, तब क्या तुम घुटने टेक कर पुकारोगे? या दुबक कर आगे बढ़ने में असमर्थ होगे?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 10)। जब मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े, जो कहते हैं : “अब वह समय है जब मैं तुम्हें परखूंगा : क्या तुम अपनी निष्ठा मुझे अर्पित करोगे?” “जब तुम्हारी अग्नि परीक्षा होती है, तब क्या तुम घुटने टेक कर पुकारोगे? या दुबक कर आगे बढ़ने में असमर्थ होगे?” ऐसा लगा मानो परमेश्वर मुझे साफ-साफ बता रहा हो कि मौजूदा हालात उसने निर्धारित किए हैं, यह मेरे लिए एक परीक्षा है। मुझे लगा कि परमेश्वर यह देखने के लिए मेरे दिल की पड़ताल कर रहा है कि क्या मैं अपने हितों को प्राथमिकता दूँगी और उत्पीड़न और कठिनाई के दौरान डरकर पीछे हट जाऊँगी, या क्या मैं परमेश्वर के घर के हितों को प्राथमिकता दूँगी और परमेश्वर के वचनों की किताबें सुरक्षित रूप से स्थानांतरित करूँगी। मुझे यह भी लगा कि परमेश्वर उम्मीद कर रहा था कि मैं अच्छा प्रदर्शन कर पाऊँगी। मैं परमेश्वर के इरादे को निराश नहीं करना चाहती थी, न ही मैं कायर बनना चाहती थी जो सिर्फ जीवित रहने की कोशिश करता है, इसलिए मैंने जल्दी से घुटने टेके और परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मेरा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है; मैंने पहले कभी ऐसी परिस्थितियों का अनुभव नहीं किया है और मुझे बहुत घबराहट हो रही है, मुझे डर है कि मैं यह कर्तव्य अच्छी तरह से नहीं करूँगी। परमेश्वर, मेरा मार्गदर्शन करो और मेरा दिल शांत करने में मेरी मदद करो।” प्रार्थना करने के बाद मुझे बहुत सुकून मिला।
अपने गृहनगर पहुँचने तक रात के 8 बज चुके थे। सड़क पर चलते हुए मुझे बेचैनी हुई, मैं नहीं जानती थी भाई-बहन कैसे हैं, क्या परमेश्वर के वचनों की किताबें सुरक्षित हैं या नहीं और क्या मुझ पर कोई खतरा आएगा। अपने दिल में मैंने लगातार परमेश्वर से मेरा दिल शांत रखने में मदद करने को कहा। जब मैं अपने छोटे भाई के घर के दरवाजे पर पहुँची तो मुझे झिझक हुई, मुझे पता था कि मेरा भाई परमेश्वर में मेरे विश्वास का विरोधी है। जब मेरे पिता बीमारी से गुजर गए थे, तो मैं वापस नहीं गई थी और मेरे भाई ने निजी तौर पर मुझसे कहा था, “अब से तुम मेरी बहन नहीं हो।” मुझे नहीं पता था कि वह मेरी मदद करेगा या नहीं। मेरा दिल फिर से तनावग्रस्त हो गया और मैं कई मिनट तक गलियारे में खड़ी रही, अंदर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। मैंने मन ही मन प्रार्थना की और धीरे-धीरे शांत हो गई और दरवाजा खटखटाने की हिम्मत जुटाई। मुझे हैरानी हुई कि मेरे भाई ने कोई शत्रुता नहीं दिखाई। मैंने उससे यह भी पता चला कि मेरी माँ फिलहाल सुरक्षित है। जिस दिन भाई-बहनों को गिरफ्तार किया गया, उस दिन संयोग से वह नई जगह जा रही थी और अब कलीसिया में किसी को पता नहीं था कि वह कहाँ रहती है। मैं तुरंत अपनी माँ से मिलने गई। मैंने सोचा, “मेरी माँ सात साल से अपने पुराने घर में रह रही थी और कलीसिया में हर भाई-बहन को उसका घर पता था। पुलिस के लिए उसे ढूँढ़ना बहुत आसान होता, इसलिए यह सौभाग्य की बात है कि वह चली गई—वरना मैं उससे संपर्क नहीं कर पाती। क्या यह परमेश्वर का आयोजन और व्यवस्था नहीं है कि मेरी माँ पहले ही चली गई?” इस पल मुझे लगा कि मेरा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है और मुझे परमेश्वर में जरा भी आस्था नहीं है। शुरू में मैंने वापस आने की हिम्मत नहीं की, डरती रही कि मुझे गिरफ्तार कर लिया जाएगा और मुझे वह घर नहीं मिलेगा जहाँ किताबें सुरक्षित रखी गई हैं। अब मैंने देखा कि परमेश्वर ने सब कुछ व्यवस्थित कर दिया था। परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और संप्रभुता देखकर मुझे आस्था मिली। मेरी माँ ने कहा कि वह चार घरों को जानती है जहाँ दो साल पहले परमेश्वर के वचनों की किताबें रखी गई थीं, लेकिन उसे नहीं पता कि अब कोई बदलाव हुआ है या नहीं। ली हान नाम की एक बहन इस मामले की प्रभारी थी और उससे जानकारी लेना अधिक सटीक होता। इसके अलावा ली हान के साथ पहचान होने पर किताबों के रखवाले हम पर भरोसा करते। मैंने सोचा, “ली हान का घर एक दुकान है और गिरफ्तार हुए लगभग सभी लोग इसे जानते हैं। अगर वह पुलिस की निगरानी में हुई तो क्या मुझे और मेरी माँ को भी गिरफ्तार नहीं कर लिया जाएगा?” वे पुलिस अधिकारी शैतान हैं जो लोगों को नुकसान पहुँचाते हैं। गिरफ्तार किए गए कुछ भाई-बहनों को उबलते पानी से जलाया गया था, कुछ को नंगा करके उनके पूरे शरीर पर करंट वाली छड़ियों से वार किया गया था और बाकियों को हथकड़ी लगाकर उल्टा लटका दिया गया था। इन क्रूर दृश्यों के बारे में सोचकर ही मैं काँप उठी। मैंने सोचा, “अगर मुझे गिरफ्तार कर लिया गया तो क्या मुझे भी इस तरह की यातना नहीं सहनी पड़ेगी? अगर वे मुझे गोली मार कर जल्दी से खत्म कर देते हैं तो यह ठीक होगा और मैं बिना किसी कष्ट के मर जाऊँगी। शायद मैं शहीद हो जाऊँ और मेरी आत्मा बच जाए। लेकिन ये शैतान कपटी और क्रूर हैं। वे गिरफ्तार किए गए भाई-बहनों को परमेश्वर को नकारने के लिए मजबूर करते हैं और कलीसिया के अगुआओं और कलीसिया के धन के लिए धोखाधड़ी करवाते हैं। अगर भाई-बहन बोलने से मना करते हैं तो उन्हें कई तरह की यातनाएँ दी जाती हैं और अगर वे फिर भी नहीं बोलते हैं तो उन्हें कैद कर लिया जाता है और कैदियों द्वारा प्रताड़ित किया जाता है। पुलिस सभी तरह के क्रूर तरीकों का इस्तेमाल करती है, जीते-जी नरक बना देती है, जहाँ लोग न तो जी सकते हैं और न मर सकते हैं और भयानक कष्ट झेलते हैं! मैंने अपने जीवन में बहुत ज्यादा कष्ट नहीं झेले हैं और यहाँ तक कि सिरदर्द या बुखार से भी मैं काफी असहज हो जाती हूँ। मैं ऐसी अमानवीय यातना कैसे सहन कर सकती हूँ? मेरी माँ भी बूढ़ी है और अगर उसे गिरफ्तार किया गया तो भले ही वह मरे नहीं तो भी उसे बहुत तकलीफ होगी।” यह सोचकर मैंने अपनी माँ से कहा, “अगर ली हान पर पुलिस की नजर हुई तो हमें भी गिरफ्तार किया जा सकता है। मुझे नहीं लगता कि हमें ली हान से संपर्क करना चाहिए।” यह सुनने के बाद मेरी माँ ने इस मामले पर जोर नहीं दिया।
इस पर चर्चा करने में ही रात हो गई और मुझे नींद नहीं आई, मैं बिस्तर पर लेटकर सोचती रही, “मेरी माँ ठीक से नहीं जानती कि किताबें कहाँ रखी हैं और अगर हम जल्दबाजी में वहाँ जाते हैं तो क्या रखवाली करने वाले परिवार हमें आसानी से किताबें सौंप देंगे? ली हान से संपर्क करना ज्यादा विश्वसनीय होता।” मुझे एहसास हुआ कि मैं ली हान से संपर्क करने के लिए अनिच्छुक थी क्योंकि मुझे फँसने का डर था और मैं अभी भी अपने हितों की रक्षा कर रही थी, इसलिए मैंने अपनी अवस्था सुलझाने के लिए तुरंत परमेश्वर के वचनों की तलाश की। मैंने परमेश्वर के वचनों से यह अंश पढ़ा : “मसीह-विरोधी बेहद स्वार्थी और घिनौने होते हैं। उनमें परमेश्वर के प्रति सच्ची आस्था नहीं होती, परमेश्वर के प्रति निष्ठा तो बिल्कुल नहीं होती; जब उनके सामने कोई समस्या आती है, तो वे केवल अपना बचाव और अपनी सुरक्षा करते हैं। उनके लिए, उनकी अपनी सुरक्षा से ज्यादा जरूरी और कुछ नहीं है। अगर वे जिंदा रह सकें और गिरफ्तार न हों, तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि कलीसिया के काम को कितना नुकसान हुआ है। ये लोग बेहद स्वार्थी हैं, वे भाई-बहनों या कलीसिया के काम के बारे में बिल्कुल नहीं सोचते, सिर्फ अपनी सुरक्षा के बारे में सोचते हैं। वे मसीह-विरोधी हैं। तो जब उन लोगों के साथ ऐसी चीजें घटती हैं जो परमेश्वर के प्रति निष्ठावान हैं और परमेश्वर में सच्ची आस्था रखते हैं, तो वे उन्हें कैसे संभालते हैं? वे जो करते हैं वह मसीह-विरोधियों के काम से किस तरह अलग है? (जब ऐसी चीजें उन लोगों पर बीतती हैं जो परमेश्वर के प्रति निष्ठावान हैं, तो वे परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने, परमेश्वर के चढ़ावे को नुकसान से बचाने के लिए किसी भी तरीके के बारे में सोचेंगे, और वे नुकसान को कम करने के लिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं, और भाई-बहनों के लिए जरूरी व्यवस्थाएँ भी करेंगे। जबकि, मसीह-विरोधी सबसे पहले यह सुनिश्चित करते हैं कि वे सुरक्षित रहें। वे कलीसिया के कार्य या परमेश्वर के चुने हुए लोगों की सुरक्षा के बारे में चिंता नहीं करते, और जब कलीसिया में गिरफ्तारियाँ होती हैं, तो इससे कलीसिया के कार्य को नुकसान होता है।) मसीह-विरोधी कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के चढ़ावे को छोड़कर भाग जाते हैं, और वे गिरफ्तारी के बाद की स्थिति को सँभालने के लिए लोगों की व्यवस्था नहीं करते। यह बड़े लाल अजगर को परमेश्वर के चढ़ावे और उसके चुने हुए लोगों को जब्त करने की अनुमति देने के समान है। क्या यह परमेश्वर के चढ़ावे और उसके चुने हुए लोगों के साथ गुप्त विश्वासघात नहीं है? जब वे लोग जो परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होते हैं, स्पष्ट रूप से जानते हैं कि परिवेश खतरनाक है, तब भी वे गिरफ्तारी के बाद का कार्य सँभालने का जोखिम उठाते हैं, और निकलने से पहले वे परमेश्वर के घर को होने वाले नुकसान को न्यूनतम करते हैं। वे अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं देते। मुझे बताओ, बड़े लाल अजगर के इस दुष्ट राष्ट्र में, कौन यह सुनिश्चित कर सकता है कि परमेश्वर में विश्वास करने और कर्तव्य करने में कोई भी खतरा न हो? चाहे व्यक्ति कोई भी कर्तव्य निभाए, उसमें कुछ जोखिम तो होता ही है—लेकिन कर्तव्य का निर्वहन परमेश्वर द्वारा सौंपा गया आदेश है, और परमेश्वर का अनुसरण करते हुए, व्यक्ति को अपना कर्तव्य करने का जोखिम उठाना ही चाहिए। इसमें बुद्धि का इस्तेमाल करना चाहिए और अपनी सुरक्षा के इंतजाम करने की भी आवश्यकता होती है, लेकिन व्यक्ति को अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा को पहला स्थान नहीं देना चाहिए। उसे पहले परमेश्वर के इरादों पर विचार करना चाहिए, उसके घर के कार्य और सुसमाचार के प्रचार को सबसे ऊपर रखना चाहिए। परमेश्वर ने तुम्हें जो आदेश सौंपा है, उसे पूरा करना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, और वह पहले आता है। मसीह-विरोधी अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं; उनका मानना है कि किसी और चीज का उनसे कोई लेना-देना नहीं है। जब किसी दूसरे के साथ कुछ होता है, तो वे परवाह नहीं करते, चाहे वह कोई भी हो। जब तक खुद मसीह-विरोधी के साथ कुछ बुरा नहीं होता, तब तक वे आराम से बैठे रहते हैं। वे निष्ठारहित होते हैं, जो मसीह-विरोधी के प्रकृति सार से निर्धारित होता है” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दो))। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मैं बहुत व्यथित और परेशान हो गई, सोचने लगी कि परमेश्वर के वचन मेरा न्याय कर रहे हैं। मैंने जो स्वभाव प्रकट किया था वह बिल्कुल मसीह-विरोधियों जैसा था। जब मसीह-विरोधियों का सामना खतरे और कठिनाई से होता है तो वे सिर्फ अपनी सुरक्षा के बारे में सोचते हैं और खुद को बचाने की परवाह करते हैं, वे परमेश्वर के प्रति कोई वफादारी नहीं दिखाते और परमेश्वर के परिवार के हितों और भाई-बहनों की सुरक्षा की अवहेलना करते हैं। वे बेहद स्वार्थी और नीच होते हैं। अब जब कलीसिया को गिरफ्तारियों का सामना करना पड़ रहा है तो इस खतरे के समय में परमेश्वर के वचनों की किताबों की सुरक्षा करना सबसे महत्वपूर्ण कार्य था और यह ऐसा काम था जिसे अंतरात्मा और मानवता वाले किसी भी व्यक्ति को करना चाहिए। इस अहम मोड़ पर मैं सिर्फ खुद को बचाने के बारे में सोच रही थी, यह नहीं सोच रही थी कि किताबों को निरापद और सुरक्षित तरीके से कैसे स्थानांतरित किया जाए। परमेश्वर के प्रति मेरी वफादारी कहाँ थी? अगर मैंने जल्दबाजी की, अगर मुझे रखवाली करने वाले घर नहीं मिले या अगर उन्होंने हमें किताबें नहीं सौंपीं तो इससे किताबों के स्थानांतरण में देरी होगी। अगर इन किताबों को समय पर स्थानांतरित नहीं करने के कारण पुलिस द्वारा जब्त कर लिया गया तो इसके लिए मुझे ही जिम्मेदार ठहराया जाएगा! परमेश्वर के वचन मानव जीवन का पोषण हैं। सत्य समझना, स्वयं को जानना, भ्रष्ट स्वभाव उतार फेंकना, और उद्धार पाना परमेश्वर के वचनों के बिना संभव नहीं है। परमेश्वर के वचन मानव जीवन से भी अधिक महत्वपूर्ण हैं। भाई-बहन परमेश्वर के वचन कलीसिया तक पहुँचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग उन्हें पढ़ सकें, सत्य समझ सकें और परमेश्वर का उद्धार पा सकें। जो लोग परमेश्वर में ईमानदारी से विश्वास करते हैं, वे परमेश्वर के वचनों की किताबों की रक्षा करने के लिए निश्चित रूप से अपनी जान जोखिम में डालेंगे, लेकिन इस महत्वपूर्ण क्षण में मैं सिर्फ खुद को बचाने के बारे में सोच रही थी। जितना अधिक मैंने इसके बारे में सोचा, उतना ही मुझे लगा कि मुझमें जरा भी मानवता नहीं है। मैंने पतरस के बारे में भी सोचा, जिसने प्रभु के लिए कलीसिया की चरवाही और कार्य करते हुए बहुत कष्ट सहे और यहाँ तक कि जेल भी गया। रोमन सम्राट द्वारा ईसाइयों के अंतिम उत्पीड़न के दौरान पतरस पहले ही शहर से बच निकला था। जब प्रभु यीशु ने खुद को पतरस के सामने प्रकट किया तो वह समझ गया कि इसका मतलब यह है कि प्रभु यीशु की इच्छा है कि उसे सूली पर चढ़ाया जाए, इसलिए उसने समर्पण कर दिया और रोम लौट आया, जहाँ उसे आखिरकार सूली पर उल्टा लटका दिया गया, जिससे परमेश्वर के प्रति सर्वोच्च प्रेम की गवाही मिली। भले ही मेरी तुलना पतरस से नहीं की जा सकती, कलीसिया ने मुझे यह कार्य सौंपा था और यह मेरी जिम्मेदारी और कर्तव्य था। मुझे परमेश्वर के प्रति वफादार होना चाहिए, परमेश्वर के घर के हितों को प्राथमिकता देनी चाहिए, जहाँ तक हो सके काम करना चाहिए और अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना चाहिए। इसका एहसास होने पर मैंने पश्चात्ताप में परमेश्वर से प्रार्थना की।
ली हान से संपर्क करने के लिए अगली सुबह मैंने एक बहन से संपर्क किया और उससे मुलाकात की व्यवस्था की। जब ली हान ने हमें देखा तो उसने बेचैन होकर कहा, “गिरफ्तार किए गए लोगों में से एक यहूदा बन गया है। अब रखवाली करने वाले परिवार की एक बहन को गिरफ्तार कर लिया गया है और अन्य परिवार भी खतरे में हैं। हमें उम्मीद है कि तुम जल्दी से आकर किताबें ले जाओगी।” ली हान की बात सुनकर मुझे स्थिति की गंभीरता का एहसास हुआ और मैं और भी ज्यादा चिंतित हो गई। मैं तुरंत ली हान के साथ रखवाली करने वाले बाकी घरों की पहचान करने गई। हम रास्ते में बहुत सावधान थे, लगातार अपने आस-पास का अवलोकन कर रहे थे और मैं अपने दिल में प्रार्थना करती जा रही थी। परिवारों की पहचान करने के बाद मैंने किताबें स्थानांतरित करने के लिए एक कार की व्यवस्था की। हैरानी की बात थी कि जब हम राजमार्ग पर पहुँचे तो हमने पाया कि पुलिस की जाँच बहुत सख्त है। हर कार को जाने देने से पहले काफी देर तक जाँचा जा रहा था और आस-पास कई ट्रैफिक पुलिस अधिकारी व्यवस्था देख रहे थे। यह स्थिति देखकर मुझे फिर से घबराहट होने लगी। अगर हम पकड़े गए तो किताबों को स्थानांतरित नहीं कर पाएँगे। मैंने अपने दिल में लगातार परमेश्वर से प्रार्थना की। मैंने परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचा जो कहते हैं : “एक-एक चीज चाहे वह सजीव हो या मृत, परमेश्वर के विचारों के अनुसार ही इधर से उधर होगी, बदलेगी, नवीनीकृत और गायब होगी। परमेश्वर इसी तरह सभी चीजों पर संप्रभुता रखता है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है)। दरअसल जीवित और निर्जीव दोनों ही परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्था के अधीन हैं और जो लोग परमेश्वर में विश्वास नहीं करते हैं, उनकी सोच और विचार भी उसी के नियंत्रण में होते हैं। आज हम आसानी से निकल पाएँगे या नहीं, यह परमेश्वर के हाथों में था और मुझे आस्था रखनी चाहिए थी। उसी समय हमारी कार को निरीक्षण के लिए रोका गया। मुझे हैरानी हुई कि इंस्पेक्टर कार चलाने वाले भाई को जानता था और उसने बिना जाँच किए हमें जाने दिया। मैंने परमेश्वर की सुरक्षा देखी।
इसके बाद मैंने आत्म-चिंतन करते हुए सोचा, “मैं गिरफ्तार होने से इतनी क्यों डरती हूँ? अगर मैं इस मुद्दे को नहीं सुलझाती हूँ तो कह नहीं सकते कि मैं कब गिर जाऊँगी।” मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश देखा : “तुम्हें सत्य के लिए कष्ट उठाने होंगे, तुम्हें सत्य के लिए समर्पित होना होगा, तुम्हें सत्य के लिए अपमान सहना होगा, और अधिक सत्य प्राप्त करने के लिए तुम्हें अधिक कष्ट उठाने होंगे। यही तुम्हें करना चाहिए। एक शांतिपूर्ण पारिवारिक जीवन के लिए तुम्हें सत्य का त्याग नहीं करना चाहिए, और क्षणिक आनन्द के लिए तुम्हें जीवन भर की गरिमा और सत्यनिष्ठा को नहीं खोना चाहिए। तुम्हें उस सबका अनुसरण करना चाहिए जो खूबसूरत और अच्छा है, और तुम्हें अपने जीवन में एक ऐसे मार्ग का अनुसरण करना चाहिए जो ज्यादा अर्थपूर्ण है। यदि तुम एक गंवारू जीवन जीते हो और किसी भी उद्देश्य को पाने की कोशिश नहीं करते हो तो क्या तुम अपने जीवन को बर्बाद नहीं कर रहे हो? ऐसे जीवन से तुम क्या हासिल कर पाओगे? तुम्हें एक सत्य के लिए देह के सभी सुखों को छोड़ देना चाहिए, और थोड़े-से सुख के लिए सारे सत्यों का त्याग नहीं कर देना चाहिए। ऐसे लोगों में कोई सत्यनिष्ठा या गरिमा नहीं होती; उनके अस्तित्व का कोई अर्थ नहीं होता!” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मुझे एहसास हुआ सत्य के लिए कष्ट सहना सबसे मूल्यवान चीज है। सिर्फ विपत्ति के माध्यम से ही कोई सत्य पा सकता है। उदाहरण के लिए उन भाई-बहनों को ही लो जिन्होंने यातनाएँ सहन कीं। उन्होंने यातना और अमानवीय दुर्व्यवहार का अनुभव किया, लेकिन उनमें कम्युनिस्ट पार्टी के बदसूरत चेहरे और बुरे सार के प्रति सच्ची समझ और घृणा विकसित हुई और उनके दिल परमेश्वर का अनुसरण करने में और अधिक अडिग हो गए। कुछ भाई-बहन जब मरने के कगार पर थे तो उन्होंने परमेश्वर को पुकारा और उसकी अद्भुत सुरक्षा के गवाह बने, परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और संप्रभुता की वास्तविक समझ पाई और असली आस्था विकसित की। हालाँकि उन्होंने बहुत कष्ट सहे, लेकिन उन्होंने ऐसी गवाही दी जिसने शैतान पर विजय पाई। ये सभी चीजें एक आरामदायक परिवेश में नहीं पाई जा सकती थीं; उनकी पीड़ा बहुत ही सार्थक थी! मैंने सत्य नहीं समझा था या पीड़ा के मूल्य और महत्व को नहीं जाना था, हमेशा दैहिक कष्टों से डरती थी और उन परिवेशों से दूर रहती थी जो परमेश्वर ने मेरे लिए बनाए थे। क्या यह मेरी ओर से आँखें मूँदना और अज्ञानता नहीं थी? मैंने परमेश्वर के वचनों के इस अंश के बारे में भी सोचा : “मानवजाति के एक सदस्य और मसीह के समर्पित अनुयायियों के रूप में अपने मन और शरीर परमेश्वर के आदेश की पूर्ति करने के लिए समर्पित करना हम सभी की जिम्मेदारी और दायित्व है, क्योंकि हमारा संपूर्ण अस्तित्व परमेश्वर से आया है, और वह परमेश्वर की संप्रभुता के कारण अस्तित्व में है। यदि हमारे मन और शरीर परमेश्वर के आदेश और मानवजाति के न्यायसंगत कार्य को समर्पित नहीं हैं, तो हमारी आत्माएँ उन लोगों के सामने शर्मिंदा महसूस करेंगी, जो परमेश्वर के आदेश के लिए शहीद हुए थे, और परमेश्वर के सामने तो और भी अधिक शर्मिंदा होंगी, जिसने हमें सब-कुछ प्रदान किया है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 2: परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियंता है)। मेरा जीवन परमेश्वर द्वारा दिया गया है। यह परमेश्वर ही था जिसने मुझे अपने सामने लाकर सत्य का अनुसरण करने और उद्धार पाने का अवसर दिया। अंतरात्मा और विवेक वाले इंसान के रूप में मुझे परमेश्वर के लिए जीना चाहिए। आज परमेश्वर के वचनों की किताबों को स्थानांतरित करना मेरी जिम्मेदारी थी। भले ही मुझे वाकई गिरफ्तार कर लिया जाता और शारीरिक कष्ट सहना पड़ता, मुझे अपना कर्तव्य पूरा करना था। मैंने इतिहास भर के उन संतों के बारे में सोचा जिन्हें परमेश्वर की गवाही के लिए सताया और शहीद किया गया था : पतरस को परमेश्वर के लिए सूली पर उल्टा लटकाया गया, स्टीफन को पत्थर मार-मारकर मार डाला गया, कुछ को तलवार से मार दिया गया, आधा काट दिया गया या तेल में उबाला गया और बाकियों को पाँच घोड़ों से खींचकर फाड़ दिया गया। उन सभी ने मानवता के न्यायसंगत कार्य के लिए खुद को समर्पित किया था, जिसे परमेश्वर द्वारा याद किया जाता है और जो गौरवमय कर्म है। अगर मुझे आज परमेश्वर की किताबें स्थानांतरित करने के लिए गिरफ्तार किया जाता और जेल में डाला जाता तो यह भी धार्मिकता के लिए कष्ट सहना होता। इसका एहसास होने पर मैंने अपनी देह के खिलाफ विद्रोह करने का संकल्प लिया और इस कर्तव्य में अपना सर्वश्रेष्ठ करने के लिए तैयार हो गई।
बाद में मुझे पता चला कि गिरफ्तार किए गए लोगों में से एक यहूदा बन गया था और भाई-बहनों को गिरफ्तार करने में पुलिस की अगुआई कर रहा था। गिरफ्तार किए गए लोगों की संख्या बढ़कर उन्नीस हो गई थी और पुलिस के पास एक सूची थी और वे यहूदा से लोगों की पहचान करवाने के लिए तस्वीरों का इस्तेमाल कर रहे थे। इन भाई-बहनों को जल्दी से छिपने की जरूरत थी। ऐसी खबर सुनकर मैंने सोचा, “स्थिति इतनी गंभीर हो गई है, जितनी मैंने कल्पना भी नहीं की थी। अगर मैं अब किताबों को दूसरी जगह ले गई तो बहुत आसार होंगे कि मुझे गिरफ्तार कर लिया जाए। क्या मैं पुलिस की यातना सहन कर सकती हूँ?” मुझे पता था कि मैं एक बार फिर से डरपोक और भयभीत हो गई थी, इसलिए मैंने जल्दी से घुटने टेककर प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, कलीसिया की स्थिति के बारे में सुनकर मैं फिर से डर गई हूँ। मुझे गिरफ्तार होने और शारीरिक कष्ट सहने का डर है। हे परमेश्वर, मेरा मार्गदर्शन करो और मुझे मेरे स्वार्थी और घृणित भ्रष्ट स्वभाव के अनुसार नहीं जीने और यह काम पूरा करने के लिए प्रेरित करो।” उसी पल मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए : “यरूशलम जाने के मार्ग पर यीशु बहुत संतप्त था, मानो उसके हृदय में कोई चाकू मरोड़ दिया गया हो, फिर भी उसमें अपने वचन से पीछे हटने की जरा-सी भी इच्छा नहीं थी; एक सामर्थ्यवान ताक़त उसे लगातार उस ओर बढ़ने के लिए बाध्य कर रही थी, जहाँ उसे सलीब पर चढ़ाया जाना था। अंततः उसे सलीब पर चढ़ा दिया गया और वह मानवजाति के छुटकारे का कार्य पूरा करते हुए पापी देह की छवि बन गया। वह मृत्यु एवं रसातल की बेड़ियों से मुक्त हो गया। उसके सामने मृत्यु, नरक और रसातल ने अपना सामर्थ्य खो दिया और उससे परास्त हो गए” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के इरादों के अनुरूप सेवा कैसे करें)। जब प्रभु यीशु सूली को गुलगोथा ले गया, उसे बुरी तरह पीटा गया, उसके शरीर पर घाव थे और उसका चेहरा खून से लथपथ था, वह बहुत पीड़ा में था। फिर भी उसने पछतावे का कोई संकेत नहीं दिखाया। पूरी मानवता को छुड़ाने के लिए उसने स्वेच्छा से यह कष्ट सहे और सूली पर चढ़ गया। आखिरकार उसने शैतान पर विजय पाई और पूरी मानवजाति को छुड़ाने का कार्य पूरा किया। प्रभु यीशु सूली पर चढ़ने के कारण होने वाली अपार पीड़ा से पूरी तरह अवगत था, पर वह पीछे नहीं हटा। भले ही इसका मतलब खुद पीड़ा सहना हो, वह मानवजाति को पाप से बचाएगा। इस बारे में सोचकर मुझे गहरी प्रेरणा मिली। फिर आत्म-चिंतन करते हुए मुझे एहसास हुआ कि मैं खतरे और क्लेश का सामने करने से पीछे हटती रही और मेरा व्यवहार बहुत नीच और घृणित था! आज जिस स्थिति का मैंने सामना किया, वह भी एक परीक्षा थी, यह निर्धारित करने के लिए कि मैं इस महत्वपूर्ण क्षण में परमेश्वर के प्रति वफादार रहना चुनूँगी या खुद के प्रति। मैं अब स्वार्थी नहीं रह सकती थी और सिर्फ अपनी देह के बारे में नहीं सोच सकती थी; मुझे प्रभु यीशु के उदाहरण का अनुसरण करने की आवश्यकता थी, चाहे इसका मतलब गिरफ्तार होना, कैद होना या मौत के घाट उतार दिया जाना ही क्यों न हो, मुझे परमेश्वर के वचनों की किताबों को दूसरी जगह ले जाना था। एक बार भी परमेश्वर को संतुष्ट करना सार्थक होगा। जब मैंने यह सोचा तो मेरे पूरे शरीर में ताकत का संचार हुआ और मुझमें यह काम करने के लिए ऊर्जा भर गई। मुझे पता था कि यह सब परमेश्वर ने दिया है और मैं बहुत आभारी थी।
इसके बाद हमने तीन घरों से किताबों को सुरक्षित दूसरी जगह पहुँचाया। जब तक हम चौथे घर से किताबें दूसरी जगह ले रहे थे, तब तक आधी रात हो चुकी थी। एक पड़ोसी के घर में दो कुत्ते थे जो किसी भी आवाज पर लगातार भौंकते थे। मैं इतनी घबरा गई थी कि मेरा दिल हलक में फँस गया था, मुझे डर था कि पड़ोसी हमें देख लेंगे और पुलिस बुला लेंगे। मैं अपने दिल में परमेश्वर को पुकारती रही। यह राहत थी कि जब तक हमने गाड़ी में सामान लादा, पड़ोसी बाहर नहीं आए। परमेश्वर की सुरक्षा देखकर, मैंने उसका दिल से धन्यवाद किया। इस प्रकार हमने बिना किसी दुर्घटना के रखवाली वाले चार घरों से किताबों को सफलतापूर्वक और सुरक्षित दूसरी जगह पहुँचाया। वापस आते समय हमने अपने अनुभव साझा किए और हमें जो खुशी महसूस हुई, वह शब्दों से परे थी।
इस अनुभव के माध्यम से मुझे परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और संप्रभुता के बारे में कुछ समझ मिली। जिस दिन भाई-बहनों को गिरफ्तार किया गया, उसी दिन मेरी माँ का घर बदलना, मेरे भाई द्वारा मुझे स्थिति समझने में मदद करना और चेकपॉइंट्स से हमारा आसानी से गुजरना—ये सब परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्था के अधीन था। इस बार किताबों का सुरक्षित स्थानांतरण पूरी तरह से परमेश्वर के मार्गदर्शन से ही हुआ। परमेश्वर के वचनों के प्रबोधन और परमेश्वर द्वारा दी गई शक्ति के बिना मैं अपनी देह के खिलाफ विद्रोह नहीं कर पाती और यह काम करने के लिए मुझमें आस्था की कमी होती। यह सब परमेश्वर के वचनों का ही नतीजा था।