64. धन और यश के दलदल से मुक्ति

शेन जी, चीन

जब मैं छोटी थी, मेरा परिवार गरीब था और अक्सर लोग हमें नीची नजरों से देखते थे। तो मैं सोचती थी, “बड़ी होकर मैं बहुत सारा पैसा कमाऊँगी ताकि वे मुझे बहुत सम्मान दें।” बाद में मेरी शादी हो गई, लेकिन मेरे पति का परिवार भी गरीब था। जहाँ से भी संभव हो, मैं पैसे कमाने के तरीके खोजती रहती थी और कभी कोई मौका नहीं जाने देती थी। हमने टैक्सी चलाने और सब्जियाँ बेचने की कोशिश की, लेकिन हम ज्यादा पैसे नहीं कमा पाए। लेकिन मैंने हार नहीं मानी। मैंने देखा कि मेरी चचेरी बहन सीपी के मशरूम उगाकर अच्छा पैसा कमा रही है और बहुत जल्दी अच्छा घर बना ले रही है। इसलिए मैंने उससे मशरूम की खेती सीखने का फैसला किया। हमने पतझड़ से लेकर वसंत तक कड़ी मेहनत की, लेकिन जब हमारे मशरूम बाजार में आए तो उनकी आपूर्ति बहुत ज्यादा हो गई और वे हर जगह थे। हम कोई पैसा नहीं कमा पाए। हमारी आधे साल की कोशिशें बेकार चली गईं। काम के दौरान लंबे समय तक झुके रहने से मुझे डिस्क हर्निया का रोग हो गया। मैंने जगह-जगह इलाज कराने में काफी पैसा खर्च कर दिया, इससे पहले से खराब चल रही हमारी माली हालत और बिगड़ गई। फिर भी मैंने हार नहीं मानी। एक दिन मैंने एक बड़े कबूतर प्रजनन फार्म के बारे में एक समाचार रिपोर्ट देखी जो सालाना लाखों युआन कमा रहा था। मेरी आँखें चमक उठीं, “लाखों! यहाँ आसपास कोई कबूतर प्रजनन फार्म नहीं है। अगर मैं अभी शुरू कर दूँ तो कुछ सालों में मालिक बन सकती हूँ।” इसलिए हमने कबूतर पालने के लिए ऋण ले लिया। कबूतरों की तादाद बढ़ते देखकर मैं पूरी तरह से ऊर्जावान और उत्साहित महसूस करने लगी। लेकिन जैसे ही हम अपना पहला बैच बेचने के लिए तैयार हुए, एवियन फ्लू का प्रकोप शुरू हो गया और हमें 20,000 से अधिक युआन का नुकसान हो गया। एक साल की कड़ी मेहनत के बाद पैसे गँवाने का विचार मेरे दिल में चाकू घोंपने जैसा था। रात में बिस्तर पर लेटे हुए मैं रोती थी और खुद से पूछती थी, “मेरी किस्मत इतनी खराब क्यों है? मेरे लिए पैसे कमाना इतना मुश्किल क्यों होता है जबकि दूसरे इतनी आसानी से कमा लेते हैं?” तनाव का मेरी सेहत पर बुरा असर पड़ा। मैं सो या खा नहीं पा रही थी और मेरा पेट खराब रहता था। मेरा वजन घटकर चालीस किलोग्राम से थोड़ा ही ज्यादा रह गया था और मैं चलते समय लड़खड़ाती थी। फिर भी मैंने हार नहीं मानी, मैं सोचती थी, “मेरे पास भी दूसरों की तरह दिमाग और दो हाथ हैं। मैं किसी और से कम होशियार नहीं हूँ। मुझे नहीं लगता कि मैं पैसे नहीं कमा सकती! मुझे दोबारा कोशिश करनी चाहिए!” बाद में मैंने सुना कि बारबेक्यू बेचने में फायदा था। सेहत खराब होने के बावजूद मैं यह कारोबार सीखने के लिए दूसरे शहर चली गई। घर आने के बाद मैंने एक बारबेक्यू रेस्तरां खोला। भयानक प्रतिस्पर्धा के कारण यह कारोबार ज्यादा दिन नहीं चल पाया और मुझे इसे बंद करना पड़ा। मैं समझ नहीं पाई कि दूसरे लोग उसी कारोबार में क्यों सफल हो पाए और एक रात में 3,000 युआन कमा पाए, जबकि मैं कुछ भी नहीं कमा सकी। मुझे याद आया कि मेरी माँ अक्सर मुझसे कहा करती थी कि मेरी “महत्वाकांक्षा बड़ी और किस्मत फूटी है।” मैंने सोचा कि कैसे मेरी बहन ने अपने सब्जी के कारोबार से कुछ ही साल में मोटा पैसा कमाकर एक अच्छा सा घर बना लिया था, लाखों की बचत कर ली थी, जबकि मैं एक दशक से ज्यादा समय से संघर्ष कर रही थी और नाकाम हो रही थी। क्या यह वाकई मेरी किस्मत थी? मैंने इसके बारे में जितना सोचा, उतनी ही मैं परेशान हो गई। और मैं निराशा में डूब गई, कई दिन तक निराश और बीमार रही, मैं हिलना-डुलना तक नहीं चाहती थी, मैं चाहती थी कि मैं हमेशा के लिए सो जाऊँ और फिर कभी न जागूँ। जीवन बहुत कठिन था। मेरा पति भी दुख भुलाने के लिए रोज शराब पीता था।

उसके बाद हमने अपना नाश्ते का काम शुरू किया। मुझे आश्चर्य हुआ कि यह कारोबार बहुत अच्छा चल निकला। हम हर दिन रात 1 बजे उठते और सुबह 10 बजे तक काम करते थे, उसके बाद ही हम खुद नाश्ता कर पाते थे। इस तरह भूखे रहने से मेरे पेट की समस्या और बढ़ गई और मुझे एसिड रिफ्लक्स और निम्न रक्त शर्करा का रोग हो गया। इससे मेरे पति को सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस भी हो गया, जिससे उसके हाथ सुन्न होने लगे और दर्द रहने लगा। डॉक्टर ने उसे अंतःशिरा उपचार के लिए कई दिन की छुट्टी लेने की सलाह दी। लेकिन उसे लगा कि हर दिन आईवी ड्रिप लगाए रखना समय की बर्बादी है और एक हजार युआन की दैनिक आय से चूकना बड़े ही दुख की बात होगी। उसने दर्द निवारक दवाओं का विकल्प चुना और सोचा कि कारोबार में मंदी आने के दौरान उचित उपचार लेगा। समय बीतने के साथ उसकी हालत और बिगड़ती गई। उसे दर्द निवारक की और ज्यादा जरूरत पड़ने लगी, एक गोली से लेकर दो-तीन तक खाने लगा। दर्द बढ़ने पर वह मुझसे गाली-गलौज करने लगता और उसका स्वभाव और भी चिड़चिड़ा हो जाता। हमारा संवाद किसी और बात के बजाय बहस तक सीमित हो गया। शारीरिक दर्द और मेरे मन और आत्मा के दमन के कारण मैं खोया हुआ महसूस करने लगी। इतनी कड़ी मेहनत का क्या मतलब था? मैं एक मशीन की तरह हो गई थी, जो सुबह से रात तक काम करती रहती थी। मैं इतना थक जाती थी कि मेरी कमर और पीठ में दर्द होने लगता था। हमने पैसे कमाए पर उनका आनंद लेने के लिए हमारे पास समय नहीं था। हम कहा करते थे कि पैसे से हमें खुशी मिलेगी, लेकिन पैसे होने के बावजूद मैं इतना दुखी महसूस क्यों करती थी?

एक साल बाद हम एक नया घर बनाने के लिए अपने गाँव लौटे। मुझे यह सोचकर उपलब्धि का एहसास हुआ कि दर्जन भर या उससे ज्यादा साल के संघर्ष के बाद आखिरकार हम एक अच्छे घर में रह पाए थे। हमारे पड़ोसियों, रिश्तेदारों और दोस्तों ने हमारी क्षमताओं और हिम्मत की प्रशंसा की और यहाँ तक कि उन्होंने निर्माण के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने में भी हमें सक्रिय रूप से मदद दी। गांव के पार्टी शाखा सचिव ने भी हमारे निर्माण कार्यों के लिए मंजूरी दिलाकर हमें विशेष सहायता प्रदान की। बहुत सारा पैसा होने पर मुझे अलग ही महसूस होता था और सब कुछ काफी सुचारू रूप से चल रहा था। मगर तभी, जैसे ही हमारे लिए चीजें ठीक होने लगीं, त्रासदी घटित हो गई। अपने पुराने घर को गिराने के बाद मेरे पति को अपनी गर्दन में बहुत दर्द होने लगा और उसने गाँव के अस्पताल जाने का फैसला किया। मेरे पहुँचते ही डॉक्टर ने मुझे तुरंत बताया, “तुम बिल्कुल सही समय पर आई हो! तुम्हारे पति की हालत गंभीर है!” मेरा तो जैसे दिमाग सुन्न हो गया। “यह असंभव है,” मैंने सोचा, “मेरे पति की सेहत हमेशा अच्छी रही है और हमारी शादी के बाद से उसे शायद ही कभी सर्दी भी लगी हो। अभी वह मर कैसे सकता है?” मैं वार्ड की ओर भागी और देखा वहाँ मेरा पति पड़ा था। उसका चेहरा काला पड़ गया था और उसकी आँखें बंद थीं। मैंने उसका हाथ पकड़ा और उसका नाम पुकारते हुए रोने लगी, लेकिन वह फिर कभी नहीं उठा। डॉक्टर ने बताया कि मेरे पति को एक तीव्र आघात लगा था, संभवतः उसकी ग्रीवा रीढ़ की स्थिति के कारण उसकी रक्त वाहिकाएँ दब गई थीं और इस तरह उसका रक्त संचार बाधित हो गया था। मेरे पति की अचानक मृत्यु ने मुझे स्तब्ध कर दिया। “मैं दो बच्चों के साथ अपना गुजारा कैसे करूँगी?” मैंने सोचा, “मैं हमेशा यही चाहती थी कि हम अपने जीवन को बेहतर बनाएँ और दूसरों की नजरों में नीचे न रहें। सालों की कड़ी मेहनत के बाद जब हालात सुधरने लगे थे, मेरा पति अचानक चल बसा। मैं जो कुछ भी चाहती हूँ, वह सब इतना दूर और मेरी पहुँच से बाहर क्यों लगता है?” मैंने खुद को अपने कमरे में बंद कर लिया, लगातार रोती रही। मेरी बहनों को चिंता होती थी कि मैं खुद को नुकसान न पहुँचा लूँ, वे रोज बारी-बारी से मुझसे मिलने आती थीं। लेकिन वे सिर्फ कुछ सांत्वना भरे शब्द ही बोल पाती थीं, जो मेरे दिल का दुख दूर करने में पूरी तरह से असमर्थ होते थे।

बाद में एक रिश्तेदार मेरे साथ सुसमाचार साझा करने के लिए एक बहन को लेकर आया। बहन ने मेरे लिए परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “सर्वशक्तिमान ने बुरी तरह से पीड़ित इन लोगों पर दया की है; साथ ही, वह उन लोगों से विमुख महसूस करता है, जिनमें चेतना की कमी है, क्योंकि उसे मनुष्य से जवाब पाने के लिए बहुत लंबा इंतजार करना पड़ा है। वह तुम्हारे हृदय की, तुम्हारी आत्मा की तलाश करना चाहता है, तुम्हें पानी और भोजन देना और तुम्हें जगाना चाहता है, ताकि अब तुम भूखे और प्यासे न रहो। जब तुम थक जाओ और तुम्हें इस दुनिया के बेरंग उजड़ेपन का कुछ-कुछ अहसास होने लगे, तो तुम हारना मत, रोना मत। द्रष्टा, सर्वशक्तिमान परमेश्वर, किसी भी समय तुम्हारे आगमन को गले लगा लेगा। वह तुम्हारी बगल में पहरा दे रहा है, तुम्हारे लौट आने का इंतजार कर रहा है। वह उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा है जिस दिन तुम अचानक अपनी याददाश्त फिर से पा लोगे : जब तुम्हें यह एहसास होगा कि तुम परमेश्वर से आए हो लेकिन किसी अज्ञात समय में तुमने अपनी दिशा खो दी थी, किसी अज्ञात समय में तुम सड़क पर होश खो बैठे थे, और किसी अज्ञात समय में तुमने एक ‘पिता’ को पा लिया था; इसके अलावा, जब तुम्हें एहसास होगा कि सर्वशक्तिमान तो हमेशा से ही तुम पर नज़र रखे हुए है, तुम्हारी वापसी के लिए बहुत लंबे समय से इंतजार कर रहा है। वह हताश लालसा लिए देखता रहा है, जवाब के बिना, एक प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करता रहा है। उसका नज़र रखना और प्रतीक्षा करना बहुत ही अनमोल है, और यह मानवीय हृदय और मानवीय आत्मा के लिए है। शायद ऐसे नज़र रखना और प्रतीक्षा करना अनिश्चितकालीन है, या शायद इनका अंत होने वाला है। लेकिन तुम्हें पता होना चाहिए कि तुम्हारा दिल और तुम्हारी आत्मा इस वक्त कहाँ हैं(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सर्वशक्तिमान की आह)। जब मैंने सुना, “जब तुम थक जाओ और तुम्हें इस दुनिया के बेरंग उजड़ेपन का कुछ-कुछ अहसास होने लगे, तो तुम हारना मत, रोना मत। ... वह तुम्हारी बगल में पहरा दे रहा है, तुम्हारे लौट आने का इंतजार कर रहा है,” मुझे पता भी नहीं चला कि कब मेरे चेहरे पर आँसू बहने लगे। मैंने उन कठिनाइयों के बारे में आत्म-चिंतन किया जो मैंने बरसों तक झेली थीं और उस अवर्णनीय दर्दनाक पीड़ा के बारे में सोचा जिससे मैं गुजरी थी। मेरे माता-पिता का निधन हो चुका था और मेरा पति भी जा चुका था। मैं अपने भीतर के दर्द को किसके सामने बताऊँ? कौन मुझे समझ पाता? परमेश्वर के वचनों ने मेरे दिल को छू लिया और मुझे अंदर बहुत अच्छा महसूस हुआ। मैं अपने दिल में जमा हुए सारे दर्द को जोर से बोलकर बता देना चाहती थी, लेकिन मुझे नहीं पता था कि कहाँ से शुरू करूँ। बहन ने कहा, “मैं समझती हूँ कि तुम्हें कैसा महसूस हो रहा है। हम जो कहते हैं, उससे तुम्हें सिर्फ तसल्ली मिल सकती है, पर हम तुम्हारे दर्द को सही मायने में मिटा नहीं सकते। सिर्फ परमेश्वर ही हमारे दर्द को मिटा सकता है।” मैंने पूछा, “यह सारा दर्द कहाँ से आता है? क्या परमेश्वर वाकई इसे मिटा सकता है?” फिर बहन ने मेरे लिए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “तुम्हारे दिल में एक बहुत बड़ा रहस्य है, जिसके बारे में तुमने कभी नहीं जाना है, क्योंकि तुम एक प्रकाशविहीन दुनिया में रह रहे हो। तुम्हारा दिल और तुम्हारी आत्मा शैतान द्वारा छीन लिए गए हैं। तुम्हारी आँखें अंधकार से धुंधला गई हैं, तुम न तो आकाश में सूर्य को देख सकते हो और न ही रात के उस टिमटिमाते तारे को। तुम्हारे कान भ्रामक शब्दों से भरे हुए हैं, तुम न तो यहोवा की गरजती वाणी सुनते हो, न ही सिंहासन से बहने वाले पानी की आवाज सुनते तो। तुमने वह सब कुछ खो दिया है जिस पर तुम्हारा हक है, वह सब भी जो सर्वशक्तिमान ने तुम्हें प्रदान किया था। तुम दुःख के अनंत सागर में प्रवेश कर चुके हो, तुम्हारे पास खुद को बचाने की ताकत नहीं है, न जीवित बचे रहने की कोई उम्मीद है। तुम बस संघर्ष करते हो और भाग-दौड़ करते हो...। उस क्षण से, तुम दुष्ट के द्वारा पीड़ित होने के लिए शापित हो गए थे, सर्वशक्तिमान के आशीषों से दूर, सर्वशक्तिमान के प्रावधानों की पहुंच से बाहर, ऐसे पथ पर चलते हुए जहां से लौटना संभव नहीं। लाखों पुकार भी शायद ही तुम्हारे दिल और तुम्हारी आत्मा को जगा सकें। तुम उस शैतान की गोद में गहरी नींद में सो रहे हो, जो तुम्हें फुसलाकर एक ऐसे असीम क्षेत्र में ले गया है, जहाँ न कोई दिशा है, न कोई दिशा-सूचक। अब से, तुमने अपनी मौलिक मासूमियत और शुद्धता खो दी, और सर्वशक्तिमान की देखभाल से दूर रहना शुरू कर दिया। तुम्हारे दिल के भीतर, सभी मामलों में तुम्हें चलाने वाला शैतान है, वो तुम्हारा जीवन बन गया है। अब तुम उससे न तो डरते हो, न बचते हो, न ही उस पर शक करते हो; इसके बजाय, तुम उसे अपने दिल में परमेश्वर मानते हो। तुमने उसे पवित्र के रूप में स्थापित कर पूजना शुरू कर दिया, तुम दोनों शरीर और छाया जैसे अविभाज्य हो गए हो, एक-साथ जीने मरने के लिए प्रतिबद्ध हो। तुम्हें कुछ पता नहीं है कि तुम कहाँ से आए, क्यों पैदा हुए, या तुम क्यों मरोगे। तुम सर्वशक्तिमान को एक अजनबी के रूप में देखते हो; तुम उसके उद्गम को नहीं जानते, तुम्हारे लिए जो कुछ उसने किया है, वो जानने की तो बात ही दूर है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सर्वशक्तिमान की आह)। बहन ने मुझसे संगति की, “परमेश्वर ने मानवीय पीड़ा के मूल कारण को उजागर किया है। शुरुआत में परमेश्वर ने मनुष्यों को बनाया और उन्हें अदन की वाटिका में रहने के लिए भेज दिया। उस समय लोग परमेश्वर की बात सुनते थे, बेफिक्र होकर जीवन जीते थे और इन दर्द और परेशानियों का अनुभव नहीं करते थे। हालाँकि शैतान द्वारा लुभाए जाने और भ्रष्ट किए जाने के बाद मनुष्यों ने परमेश्वर को धोखा दे दिया, उसकी देखभाल और सुरक्षा से भटक गए और शैतान की शक्ति के अधीन हो गए। अब लोग पाप के अधीन होकर रहते हैं, षडयंत्र करते हैं, साजिश रचते हैं, लड़ते हैं, पैसे, रुतबे, शोहरत और लाभ के लिए एक-दूसरे को फँसाते हैं और कुछ तो आत्महत्या के बारे में भी सोचते हैं। यह सारा दुख शैतान के कारण आया है। हजारों साल से शैतान ने मनुष्यों में सांसारिक आचरण के कई फलसफे और कई भ्रांतियाँ भर दी हैं, जैसे, ‘दुनिया पैसों के इशारों पर नाचती है,’ ‘अपनी खुशी अपने हाथों से पैदा करो’ और ‘किसी व्यक्ति की नियति उसी के हाथ में होती है’ लोग परमेश्वर की संप्रभुता के बजाय शैतान के इन शैतानी शब्दों पर विश्वास करना पसंद करते हैं, शैतान के इन अस्तित्व नियमों के आधार पर जीवन जीते हैं और आगे बढ़ते हैं। परमेश्वर की अगुआई और मार्गदर्शन के बिना लोग निष्क्रिय होकर समाज की बुरी प्रवृत्तियों के साथ चलते जाते हैं, साल दर साल पैसे, रुतबे, शोहरत और लाभ के पीछे भागते रहते हैं, वे जीवन का अर्थ नहीं समझते या यह नहीं जानते कि वे कहाँ से आए हैं या कहाँ जा रहे हैं। यह सब उन्हें खालीपन और पीड़ा का एहसास कराता है। भले ही इंसानों ने परमेश्वर को धोखा दिया हो, लेकिन परमेश्वर ने इंसानों को बचाने का काम नहीं छोड़ा है। परमेश्वर 6,000 साल से इंसानों की अगुआई कर रहा है और उन्हें बचा रहा है, वह अपना काम कर रहा है, लोगों के उसके पास लौटने की प्रतीक्षा कर रहा है। अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर, उद्धारकर्ता, इंसानों को बचाने के लिए सत्य व्यक्त करते हुए व्यक्तिगत रूप से धरती पर उतरा है। केवल परमेश्वर द्वारा व्यक्त सत्य को स्वीकार करके ही मनुष्य शैतान की चालों का भेद पहचान सकता है और शैतान की भ्रष्टता और पीड़ा से बच सकता है।” बहनों की बातें सुनते हुए मुझे गहराई से भावुकता का एहसास हुआ। क्या यह बिल्कुल मेरी ही स्थिति नहीं थी? मैं सिर्फ ज्यादा पैसे कमाने के लिए दिन-रात अथक परिश्रम कर रही थी, बस इस उम्मीद में कि एक दिन मैं बाकियों से ऊपर उठकर लोगों का सम्मान पा सकूँगी, और थक कर बीमार हो गई थी, इतना सब करने के बाद भी खालीपन और पीड़ा महसूस कर रही थी। लेकिन मैंने कभी सवाल नहीं किया था कि इस तरह से जीना गलत है या नहीं। क्योंकि यह पीढ़ियों से चलता आ रहा था, है न? मैं अपवाद कैसे हो सकती थी? केवल अब जाकर मुझे समझ आया कि यह सारा दुख शैतान की भ्रष्टता और यातना के कारण था। अगर सर्वशक्तिमान परमेश्वर मनुष्यों के प्रति शैतान की भ्रष्टता की सच्ची तस्वीर को उजागर नहीं करता तो मुझे इस सब का कभी एहसास नहीं हो पाता और मैं शैतान द्वारा गुमराह होती रहती और दर्द में संघर्ष करती रहती।

बाद में मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के और वचन पढ़े : “क्योंकि लोग परमेश्वर के आयोजनों और परमेश्वर की संप्रभुता को नहीं पहचानते हैं, इसलिए वे हमेशा अवज्ञापूर्ण ढंग से, और एक विद्रोही दृष्टिकोण के साथ भाग्य का सामना करते हैं, और इस निरर्थक उम्मीद में कि वे अपनी वर्तमान परिस्थितियों को बदल देंगे और अपने भाग्य को पलट देंगे, हमेशा परमेश्वर के अधिकार और उसकी संप्रभुता तथा उन चीज़ों को छोड़ देना चाहते हैं जो उनके भाग्य में होती हैं। परन्तु वे कभी भी सफल नहीं हो सकते हैं; वे हर मोड़ पर नाकाम रहते हैं। उनकी आत्माओं की गहराइयों में घटित होने वाला यह संघर्ष उन्हें गहरी पीड़ा देता है और यह पीड़ा उनकी हड्डियों में समा जाती है और साथ ही यह उन्हें धीरे-धीरे अपना जीवन बर्बाद करने पर मजबूर कर देती है। इस पीड़ा का कारण क्या है? क्या यह परमेश्वर की संप्रभुता के कारण है, या इसलिए है क्योंकि वह व्यक्ति अभागा ही जन्मा था? स्पष्ट है कि दोनों में कोई भी बात सही नहीं है। वास्तव में, लोग जिस मार्ग पर चलते हैं, जिस तरह से वे अपना जीवन बिताते हैं, उसी कारण से यह पीड़ा होती है। ... यदि लोग वास्तव में इस तथ्य को पहचान नहीं सकते हैं कि सृजनकर्ता की मनुष्य के भाग्य और मनुष्य की सभी स्थितियों पर संप्रभुता है, यदि वे सही मायनों में सृजनकर्ता के प्रभुत्व के प्रति समर्पण नहीं कर सकते हैं, तो उनके लिए ‘किसी का भाग्य उसके अपने हाथों में होता है,’ इस अवधारणा द्वारा प्रेरित न होना, और इसे न मानने को विवश न होना कठिन होगा। उनके लिए भाग्य और सृजनकर्ता के अधिकार के विरुद्ध अपने तीव्र संघर्ष की पीड़ा से छुटकारा पाना कठिन होगा, और कहने की आवश्यकता नहीं कि उनके लिए सच में बंधनमुक्त और स्वतंत्र होना, और ऐसा व्यक्ति बनना कठिन होगा जो परमेश्वर की आराधना करते हैं(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III)। परमेश्वर के वचनों को पढ़ने पर मेरे चेहरे पर आँसू बहने लगे और मेरे पिछले अनुभव मेरे मन में फिर से उभरने लगे। लोगों की निगाहों में नीचा होने से बचने के लिए मैंने अपना दिमाग खपाया और पैसे कमाने की बेतहाशा कोशिश की, यह माना कि केवल दृढ़ता और कड़ी मेहनत के जरिए मैं अपने हाथों से अपनी किस्मत बदल सकती हूँ। हर बार असफल होने पर मैंने एक अवज्ञाकारी मानसिकता बनाए रखी थी, यह सोचा कि अगर दिमाग वाले और दो हाथों वाले दूसरे लोग अमीर बन सकते हैं तो मैं भी अगर कड़ी मेहनत करूँ तो अमीर बन सकती हूँ। आखिरकार मेरे पास भी दिमाग और दोनों हाथ थे और मैं उनसे कम होशियार नहीं थी। मैंने सोचा कि मेरी पिछली असफलताओं की वजह अनुभव की कमी या सही मौका न मिलना था। मैंने “सबसे महान इंसान बनने के लिए व्यक्ति को सबसे बड़ी कठिनाइयाँ सहनी होंगी” जैसी भ्रांतियों और “अपनी नियति अपने हाथों से बदलो” को बुद्धिमानी भरी कहावतें माना था और चाहे मैं कितनी भी बार असफल हुई, मैं कभी हार न मानने वाली मानसिकता के साथ लगातार अपने भाग्य के विरुद्ध लड़ती रही, मुझे विश्वास था कि कड़ी मेहनत से नियति बदल सकती है और मैं दूसरों से बेहतर बनने के लिए लगातार प्रयास करती रही। इससे मुझे कई बीमारियाँ हो गईं और यहाँ तक कि मेरे पति की जान भी चली गई। यह सब शैतान की भ्रष्टता और यातना के कारण था! अतीत में मैंने अक्सर अपने साथ अन्याय के लिए भाग्य को दोषी ठहराया था। अब मुझे एहसास हुआ कि ऐसा नहीं था कि परमेश्वर ने मेरे साथ बुरा व्यवहार किया था या मेरा भाग्य खराब था। इसके बजाय बात यह थी कि मेरे द्वारा चुने गए मार्ग और जीने के तरीके गलत थे। मैंने परमेश्वर की संप्रभुता को नहीं पहचाना था और उसके आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण नहीं कर पाई थी। मैं हमेशा अपने हाथों से अपनी वर्तमान स्थिति और नियति को बदलना चाहती थी। पैसे, प्रसिद्धि और लाभ की खातिर मैंने एक दशक से अधिक समय तक संघर्ष किया और कष्ट सहा था। अब जाकर मुझे एहसास हुआ कि यह सारा दुख शैतान द्वारा भ्रष्ट और प्रताड़ित किए जाने से आया था, जो सत्य के बारे में मेरी अज्ञानता के कारण था। उस समय के बाद से जब भी मेरे पास समय होता, मैं परमेश्वर के वचनों को पढ़ती, हमेशा सत्य को समझने के लिए अधिक उत्सुक रहती।

एक दिन मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “वास्तव में, मनुष्य के आदर्श चाहे कितने भी ऊँचे क्यों न हों, उसकी इच्छाएँ चाहे कितनी भी यथार्थपरक क्यों न हों या वे कितनी भी उचित क्यों न हों, वह सब जो मनुष्य हासिल करना चाहता है और खोजता है, वह अटूट रूप से दो शब्दों से जुड़ा है। ये दो शब्द हर व्यक्ति के जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, और ये ऐसी चीजें हैं जिन्हें शैतान मनुष्य के भीतर बैठाना चाहता है। वे दो शब्द कौन-से हैं? वे हैं ‘प्रसिद्धि’ और ‘लाभ।’ शैतान एक बहुत ही सौम्य किस्म का तरीका चुनता है, ऐसा तरीका जो मनुष्य की धारणाओं से बहुत अधिक मेल खाता है; जो बिल्कुल भी क्रांतिकारी नहीं है, जिसके जरिये वह लोगों से अनजाने ही जीने का अपना मार्ग, जीने के अपने नियम स्वीकार करवाता है, और जीवन के लक्ष्य और जीवन में उनकी दिशा स्थापित करवाता है, और वे अनजाने ही जीवन में महत्‍वाकांक्षाएँ भी पालने लगते हैं। जीवन की ये महत्‍वाकांक्षाएँ चाहे जितनी भी ऊँची क्यों न प्रतीत होती हों, वे ‘प्रसिद्धि’ और ‘लाभ’ से अटूट रूप से जुड़ी होती हैं। कोई भी महान या प्रसिद्ध व्यक्ति—वास्तव में सभी लोग—जीवन में जिस भी चीज का अनुसरण करते हैं, वह केवल इन दो शब्दों : ‘प्रसिद्धि’ और ‘लाभ’ से जुड़ी होती है। लोग सोचते हैं कि एक बार उनके पास प्रसिद्धि और लाभ आ जाए, तो वे ऊँचे रुतबे और अपार धन-संपत्ति का आनंद लेने के लिए, और जीवन का आनंद लेने के लिए इन चीजों का लाभ उठा सकते हैं। उन्हें लगता है कि प्रसिद्धि और लाभ एक प्रकार की पूँजी है, जिसका उपयोग वे भोग-विलास का जीवन और देह का प्रचंड आनंद प्राप्त करने के लिए कर सकते हैं। इस प्रसिद्धि और लाभ की खातिर, जिसके लिए मनुष्‍य इतना ललचाता है, लोग स्वेच्छा से, यद्यपि अनजाने में, अपने शरीर, मन, वह सब जो उनके पास है, अपना भविष्य और अपनी नियति शैतान को सौंप देते हैं। वे ईमानदारी से और एक पल की भी हिचकिचाहट के बगैर ऐसा करते हैं, और सौंपा गया अपना सब-कुछ वापस प्राप्त करने की आवश्यकता के प्रति सदैव अनजान रहते हैं। लोग जब इस प्रकार शैतान की शरण ले लेते हैं और उसके प्रति वफादार हो जाते हैं, तो क्या वे खुद पर कोई नियंत्रण बनाए रख सकते हैं? कदापि नहीं। वे पूरी तरह से शैतान द्वारा नियंत्रित होते हैं, सर्वथा दलदल में धँस जाते हैं और अपने आप को मुक्त कराने में असमर्थ रहते हैं(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करते हुए मुझे एहसास हुआ कि पैसा, प्रसिद्धि और लाभ वे तरीके हैं जिनसे शैतान लोगों को भ्रष्ट करता है। शैतान सामाजिक प्रभावों और पारिवारिक परवरिश का उपयोग करके मुझमें कई झूठी धारणाएँ भरता है, जैसे, “आदमी ऊपर की ओर जाने के लिए संघर्ष करता है; पानी नीचे की ओर बहता है,” “बाकी सबसे ऊपर खड़े हो भीड़ से ऊपर उठो” और “पैसा सबसे पहले है” गरीबी में पले-बढ़े होने और भेदभाव का सामना करने के कारण मैंने आसानी से इन दृष्टिकोणों को अपना लिया, यह मानने लगी कि पैसा, प्रसिद्धि और लाभ के कारण मेरा सम्मान और आदर किया जाएगा, मैं आत्मविश्वास से बात कर पाऊँगी और एक गरिमापूर्ण और मूल्यवान जीवन जी पाऊँगी। प्रसिद्धि और लाभ पाने के लिए मैंने दिमाग खपाया ताकि कारोबार के अवसर खोज सकूँ और बीमार होने के बावजूद काम कर सकूँ और यहाँ तक कि अपने एक साल के बेटे को पीछे छोड़कर हुनर सीखने के लिए हजारों मील की यात्रा की। प्रसिद्धि और लाभ की खातिर खाने के लिए बहुत व्यस्त होने और भूख से चक्कर आने और बेहोश होने के बावजूद, जिसने मेरी सेहत को नुकसान पहुँचाया, मैंने कभी भी त्याग करने में संकोच नहीं किया। इन्हीं इच्छाओं से प्रेरित होकर मेरा पति कारोबार को नहीं छोड़ना चाहता था, इलाज कराने के बजाय दर्द निवारक दवाएँ लेना पसंद करता था। आखिरकार वह अमीर तो बन गया, लेकिन उसने अपना जीवन गँवा दिया। क्या यह सारा दुख पैसे, प्रसिद्धि और लाभ के पीछे भागने की वजह से नहीं था? सत्य को समझे बिना और भेद पहचाने बिना मैंने शैतान द्वारा मनुष्य को भ्रष्ट करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पाखंडों और भ्रांतियों को जीवन का लक्ष्य और अस्तित्व के नियमों के रूप में गलत ढंग से समझा। मैं सचमुच मूर्ख और अंधी थी! यह समझने के बाद मैंने खुद को अतीत की तरह पैसे, प्रसिद्धि और लाभ के पीछे भागने में लगाने के बजाय परमेश्वर में विश्वास करने और सत्य का अनुसरण करने के लिए समर्पित करने का फैसला किया। मैंने प्रतिदिन परमेश्वर के वचनों को पढ़ने में अधिक समय बिताने लगी और सक्रिय रूप से संगति में भाग लेने लगी। तीन महीने बाद मैंने कलीसिया में अपना कर्तव्य सँभाला, नए विश्वासियों के सिंचन का अभ्यास किया।

यह देखकर कि मैंने अपना कारोबार बंद कर दिया है, मेरे रिश्तेदारों ने चिंता जताई, कहा कि छोटे बच्चों और भविष्य में आने वाले कई खर्चों को देखते हुए मुझे नाश्ते का कारोबार जारी रखना चाहिए। मकान मालिक ने भी मुझे फोन किया, कहा कि कई लोगों ने हमारे भोजन का आनंद लिया और उम्मीद जताई कि मैं फिर से दुकान खोलूँगी, अगर मैं इसे खुद न कर पाई तो वह और उसका परिवार मेरी मदद करेगा। उनके शब्दों ने मेरे विचारों को झकझोर दिया, “यह सच है। स्कूल में दो बच्चों को पढ़ाते हुए मेरे वेतन से मुश्किल से ही जीवनयापन की बुनियादी जरूरतें पूरी होती हैं। अगर मैंने और पैसे नहीं कमाए तो मेरे बच्चों को और मुझे नीची निगाहों से देखा जाता रहेगा। नाश्ते के कारोबार से प्रतिदिन हजारों युआन की कमाई हो सकती है। इसे छोड़ना मुश्किल है। हो सकता है कि मैं किसी को काम पर रख लूँ और कारोबार को फिर से शुरू कर दूँ?” मैंने इस विकल्प की योजना बनाना और उस पर विचार करना शुरू कर दिया। हालाँकि मुझे पता था कि नाश्ते के कारोबार को फिर से खोलने के लिए काफी प्रयास करने होंगे, जिससे मुझे कलीसिया में अपने कर्तव्य पूरे करने के लिए बहुत कम समय मिलेगा। मेरे लिए संगति में शामिल होने की बात सुनिश्चित करना काफी अच्छा होता। कारोबार चलाने के लिए हमेशा चिंताएँ करनी पड़ेंगी। परमेश्वर के वचनों को पढ़ने और सत्य का अनुसरण करने पर ध्यान केंद्रित करना चुनौतीपूर्ण हो जाएगा और मेरे आध्यात्मिक जीवन को निश्चित रूप से नुकसान होगा। मैं परेशान और उलझन में थी, इस बारे में सोचकर उन दिनों रात को नींद नहीं आती थी। एक दिन मैंने परमेश्वर के कुछ वचन पढ़े : “अधिकांश लोगों की ये इच्छाएं होती हैं—कम काम करना और अधिक कमाना, बहुत अधिक परिश्रम न करना, अच्छे कपड़े पहनना, हर जगह नाम और प्रसिद्धि हासिल करना, दूसरों से आगे निकलना, और अपने पूर्वजों का सम्मान बढ़ाना। लोग सब कुछ बेहतरीन होने की इच्छा रखते हैं, किन्तु जब वे अपनी जीवन-यात्रा में पहला कदम रखते हैं, तो उन्हें धीरे-धीरे समझ में आने लगता है कि मनुष्य का भाग्य कितना अपूर्ण है, और पहली बार उन्हें समझ में आता है कि भले ही इंसान अपने भविष्य के लिए स्पष्ट योजना बना ले, भले ही वो महत्वाकांक्षी कल्पनाएँ पाल ले, लेकिन किसी में अपने सपनों को साकार करने की योग्यता या सामर्थ्य नहीं होता, कोई अपने भविष्य को नियन्त्रित नहीं कर सकता। सपनों और हकीकत में हमेशा कुछ दूरी रहेगी; चीज़ें वैसी कभी नहीं होतीं जैसी इंसान चाहता है, और इन सच्चाइयों का सामना करके लोग कभी संतुष्टि या तृप्ति प्राप्त नहीं कर पाते। कुछ लोग तो अपनी जीविका और भविष्य के लिए, अपने भाग्य को बदलने के लिए, किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं, हर संभव प्रयास करते हैं और बड़े से बड़ा त्याग कर देते हैं। किन्तु अंततः, भले ही वे कठिन परिश्रम से अपने सपनों और इच्छाओं को साकार कर पाएं, फिर भी वे अपने भाग्य को कभी बदल नहीं सकते, भले ही वे कितने ही दृढ़ निश्चय के साथ कोशिश क्यों न करें, वे कभी भी उससे ज्यादा नहीं पा सकते जो नियति ने उनके लिए तय किया है। योग्यता, बौद्धिक स्तर, और संकल्प-शक्ति में भिन्नताओं के बावजूद, भाग्य के सामने सभी लोग एक समान हैं, जो महान और तुच्छ, ऊँचे और नीचे, तथा उत्कृष्ट और निकृष्ट के बीच कोई भेद नहीं करता। कोई किस व्यवसाय को अपनाता है, कोई आजीविका के लिए क्या करता है, और कोई जीवन में कितनी धन-सम्पत्ति संचित करता है, यह उसके माता-पिता, उसकी प्रतिभा, उसके प्रयासों या उसकी महत्वाकांक्षाओं से तय नहीं होता, बल्कि सृजनकर्ता द्वारा पूर्व निर्धारित होता है(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III)। “यदि मनुष्य के भाग्य पर परमेश्वर की संप्रभुता के प्रति किसी व्यक्ति का दृष्टिकोण सकारात्मक है, तो जब वह पीछे मुड़कर अपनी यात्रा को देखता है, जब वह सही मायनों में परमेश्वर की संप्रभुता का अनुभव करता है, तो वह और भी अधिक ईमानदारी से हर उस चीज के प्रति समर्पण करना चाहेगा जिसकी परमेश्वर ने व्यवस्था की है, और उसके पास परमेश्वर को उसके भाग्य का आयोजन करने देने और आगे से परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह न करने के लिए और अधिक दृढ़ संकल्प और भरोसा होगा। क्योंकि जब कोई यह देखता है कि जब वह भाग्य को नहीं समझ पाता है, जब वह परमेश्वर की संप्रभुता को नहीं समझ पाता है, तो वह हठपूर्वक अँधेरे में टटोलते हुए आगे बढ़ता है, धुँध में लड़खड़ाता और डगमगाता है; यात्रा बहुत ही कठिन और बहुत ही हृदयविदारक होती है। इसलिए जब लोग मनुष्य के भाग्य पर परमेश्वर की संप्रभुता को पहचान जाते हैं, तो चतुर मनुष्य परमेश्वर की संप्रभुता को जानना और स्वीकार करना चुनते हैं, उन दर्द भरे दिनों को अलविदा कहते हैं जब उन्होंने अपने दोनों हाथों से एक अच्छा जीवन निर्मित करने की कोशिश की थी, और वे स्वयं के तरीके से भाग्य के विरुद्ध लगातार संघर्ष करने और अपने तथाकथित ‘जीवन लक्ष्यों’ की खोज करना बंद कर देते हैं। जब किसी व्यक्ति का कोई परमेश्वर नहीं होता है, जब वह उसे नहीं देख सकता है, जब वह स्पष्टता से परमेश्वर की संप्रभुता को समझ नहीं सकता है, तो उसका हर दिन निरर्थक, बेकार, और हताशा से भरा होगा। कोई व्यक्ति जहाँ कहीं भी हो, उसका कार्य जो कुछ भी हो, उसके आजीविका के साधन और उसके लक्ष्यों की खोज उसके लिए बिना किसी राहत के, अंतहीन निराशा और असहनीय पीड़ा के सिवाय और कुछ लेकर नहीं आती है, ऐसी पीड़ा कि वह पीछे अपने अतीत को मुड़कर देखना भी बर्दाश्त नहीं कर पाता है(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III)। परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हुए मैं फूट-फूट कर रो पड़ी। उन दर्दनाक दिनों पर आत्म-चिंतन करते हुए जब मैं परमेश्वर को जानने से पहले भाग्य के विरुद्ध संघर्ष कर रही थी, मुझे एहसास हुआ कि मेरी पीड़ा परमेश्वर की संप्रभुता को न पहचानने और भ्रष्ट स्वभावों के साथ अपने भाग्य का विरोध करने से उपजी थी। मैं जो चाहती थी उसे न पाने की पीड़ा अभी भी मेरी यादों में ताजा थी। दूसरे लोग उसी कारोबार से लाखों कमा पाए थे जबकि मैं बहुत सारे नुकसान के साथ भी कुछ नहीं कर पाई थी। इससे पता चलता है कि कोई कितना पैसा कमा सकता है और वह अमीर है या गरीब, यह सब परमेश्वर द्वारा पहले से निर्धारित है। यह ऐसा कुछ नहीं है जिसे केवल किसी के प्रयासों से प्राप्त किया जा सके। आज की दुनिया में आपदाएँ लगातार गंभीर होती जा रही हैं। अगर मैं पैसा कमाने, प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे का अनुसरण करने और सत्य का अनुसरण करने और उद्धार प्राप्त करने का अवसर त्यागने को प्राथमिकता देती, तो क्या मैं मूर्ख और अज्ञानी नहीं होती? भले ही नाश्ते के कारोबार से एक दिन में हजारों युआन कमा लिए जाएँ, लेकिन परमेश्वर से दूर होने के कारण हुए खालीपन और पीड़ा की भरपाई पैसे से नहीं की जा सकती। मैं शायद अब अमीर न रहूँ, लेकिन मैं अभी भी एक सामान्य जीवन जी सकती हूँ। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि मैं कुछ सत्य और जीवन के अर्थ को समझ पाई हूँ। मैं कलीसिया में अपने कर्तव्य भी कर सकती हूँ, जिनसे मुझे शांति और खुशी मिलती है। इस एहसास के साथ मैंने कारोबार छोड़ने और अपने कर्तव्यों पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया। मैंने अपनी दुकान में रखे रसोई के बर्तन दूसरों को कम कीमत पर बेच दिए।

बाद में मैंने परमेश्वर के और वचन पढ़े : “यदि लोग वास्तव में इस तथ्य को पहचान नहीं सकते हैं कि सृजनकर्ता की मनुष्य के भाग्य और मनुष्य की सभी स्थितियों पर संप्रभुता है, यदि वे सही मायनों में सृजनकर्ता के प्रभुत्व के प्रति समर्पण नहीं कर सकते हैं, तो उनके लिए ‘किसी का भाग्य उसके अपने हाथों में होता है,’ इस अवधारणा द्वारा प्रेरित न होना, और इसे न मानने को विवश न होना कठिन होगा। उनके लिए भाग्य और सृजनकर्ता के अधिकार के विरुद्ध अपने तीव्र संघर्ष की पीड़ा से छुटकारा पाना कठिन होगा, और कहने की आवश्यकता नहीं कि उनके लिए सच में बंधनमुक्त और स्वतंत्र होना, और ऐसा व्यक्ति बनना कठिन होगा जो परमेश्वर की आराधना करते हैं। अपने आपको इस स्थिति से मुक्त करने का एक बहुत ही आसान तरीका है जो है जीवन जीने के अपने पुराने तरीके को विदा कहना; जीवन में अपने पुराने लक्ष्यों को अलविदा कहना; अपनी पुरानी जीवनशैली, जीवन को देखने के दृष्टिकोण, लक्ष्यों, इच्छाओं एवं आदर्शों को सारांशित करना, उनका विश्लेषण करना, और उसके बाद मनुष्य के लिए परमेश्वर के इरादों और माँग के साथ उनकी तुलना करना, और देखना कि उनमें से कोई परमेश्वर के इरादों और माँग के अनुकूल है या नहीं, उनमें से कोई जीवन के सही मूल्य प्रदान करता है या नहीं, यह व्यक्ति को सत्य को अच्छी तरह से समझने की दिशा में ले जाता है या नहीं, और उसे मानवता और मनुष्य की सदृशता के साथ जीवन जीने देता है या नहीं। जब तुम जीवन के उन विभिन्न लक्ष्यों की, जिनकी लोग खोज करते हैं और जीवन जीने के उनके अनेक अलग-अलग तरीकों की बार-बार जाँच-पड़ताल करोगे और सावधानीपूर्वक उनका विश्लेषण करोगे, तो तुम यह पाओगे कि उनमें से एक भी सृजनकर्ता के उस मूल इरादे के अनुरूप नहीं है जिसके साथ उसने मानवजाति का सृजन किया था। वे सभी, लोगों को सृजनकर्ता की संप्रभुता और उसकी देखभाल से दूर करते हैं; ये सभी ऐसे जाल हैं जो लोगों को भ्रष्ट बनने पर मजबूर करते हैं, और जो उन्हें नरक की ओर ले जाते हैं। जब तुम इस बात को समझ लेते हो, उसके पश्चात्, तुम्हारा काम है जीवन के अपने पुराने दृष्टिकोण को अपने से अलग करना, अलग-अलग तरह के जालों से दूर रहना, परमेश्वर को तुम्हारे जीवन को अपने हाथ में लेने देना और तुम्हारे लिए व्यवस्थाएं करने देना; तुम्हारा काम है केवल परमेश्वर के आयोजनों और मार्गदर्शन के प्रति समर्पण करने का प्रयास करना, अपनी कोई निजी पसंद मत रखना, और एक ऐसा इंसान बनना जो परमेश्वर की आराधना करता है(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III)। “जो लोग परमेश्वर को जानने की खोज करने का प्रयास करते हैं वे अपनी इच्छाओं की उपेक्षा करने में समर्थ हैं, वे परमेश्वर की संप्रभुता और परमेश्वर की व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने के लिए तैयार हैं, और वे इस प्रकार के लोग बनने की कोशिश करते हैं जो परमेश्वर के अधिकार के प्रति समर्पित हैं और परमेश्वर के इरादे पूरे करते हैं। ऐेसे लोग प्रकाश में रहते हैं, परमेश्वर की आशीषों के बीच जीवन जीते हैं, और निश्चित रूप से परमेश्वर के द्वारा उनकी प्रशंसा की जाएगी(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III)। “तुम सृजित प्राणी हो—तुम्हें निस्संदेह परमेश्वर की आराधना और सार्थक जीवन का अनुसरण करना चाहिए। यदि तुम परमेश्वर की आराधना नहीं करते हो बल्कि अपनी अशुद्ध देह के भीतर रहते हो, तो क्या तुम बस मानव भेष में जानवर नहीं हो? चूँकि तुम मानव प्राणी हो, इसलिए तुम्हें स्वयं को परमेश्वर के लिए खपाना और सारे कष्ट सहने चाहिए! आज तुम्हें जो थोड़ा-सा कष्ट दिया जाता है, वह तुम्हें प्रसन्नतापूर्वक और दृढ़तापूर्वक स्वीकार करना चाहिए और अय्यूब तथा पतरस के समान सार्थक जीवन जीना चाहिए। इस संसार में, मनुष्य शैतान का भेष धारण करता है, शैतान का दिया भोजन खाता है, और शैतान के अँगूठे के नीचे कार्य और सेवा करता है, उसकी गंदगी में पूरी तरह रौंदा जाता है। यदि तुम जीवन का अर्थ नहीं समझते हो या सच्चा मार्ग प्राप्त नहीं करते हो, तो इस तरह जीने का क्या महत्व है? तुम सब वे लोग हो, जो सही मार्ग का अनुसरण करते हो, जो सुधार की खोज करते हो। तुम सब वे लोग हो, जो बड़े लाल अजगर के देश में ऊपर उठते हो, जिन्हें परमेश्वर धार्मिक कहता है। क्या यह सबसे सार्थक जीवन नहीं है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (2))। परमेश्वर के वचनों से मेरे सामने प्रकट हुआ कि जीवन में सचमुच में सार्थक और मूल्यवान अनुसरण क्या होते हैं। अब मैं भाग्यशाली थी कि मनुष्य को बचाने में सृष्टिकर्ता के कार्य के समक्ष थी, जो मौका जीवन में एक बार मिलता है और सृष्टिकर्ता की वाणी सुनना कुछ ऐसा है जिसका कई लोग सपना देखते हैं। इसलिए मैंने पैसे, प्रसिद्धि और लाभ के पीछे न भागने का फैसला किया, बल्कि परमेश्वर की संप्रभुता को समर्पित होने और उसकी अपेक्षाओं के अनुसार जीने का फैसला किया। मैंने पतरस के बारे में सोचा। प्रभु यीशु का आह्वान सुनने पर उसने बिना किसी हिचकिचाहट के उसका अनुसरण करने के लिए मछली पकड़ने वाले अपने जाल छोड़ दिए, आखिरकार वह परमेश्वर को जानने लगा, समर्पण करने और उससे प्रेम करने लगा। अय्यूब ने भी सब कुछ खो दिया पर फिर भी उसने परमेश्वर की स्तुति की, शैतान के सामने परमेश्वर की एक सुंदर गवाही दी आखिरकार परमेश्वर के प्रकटन को देखने का आशीष प्राप्त किया। पूरे इतिहास में कई संतों ने परमेश्वर का सुसमाचार फैलाने के लिए सब कुछ यहाँ तक कि अपने जीवन को भी त्यागा है, जो जीने का सबसे सार्थक और मूल्यवान तरीका है। इन उदाहरणों को ध्यान में रखते हुए मुझे पता था कि मुझे कपड़े और भोजन से संतुष्ट हो जाना चाहिए और सत्य का अनुसरण करने और अपने कर्तव्य पूरा करने के लिए अधिक ऊर्जा लगानी चाहिए। परमेश्वर को जानने की कोशिश करना सबसे मूल्यवान है। अपना कारोबार पूरी तरह छोड़ने के बाद काम करने और अपने कर्तव्य पूरा करने के अलावा मैं अपना बाकी समय परमेश्वर के वचन पढ़ने और अपने बच्चों के साथ परमेश्वर की स्तुति करने के लिए भजन गाने में बिताने लगी। हर दिन मैं शांतिपूर्ण और स्थिर महसूस करती थी और यह आनंददायक होता था। कुछ महीने बाद लंबे समय से चल रही मेरी पेट की बीमारी ठीक हो गई, जिसे मैंने परमेश्वर की दया माना। मेरे बच्चे अपनी पढ़ाई और दैनिक दिनचर्या में अधिक आत्मनिर्भर हो गए। विशेष रूप से वे आज्ञाकारी और समझदार बन गए थे। परमेश्वर के वचन खाने और पीने और अपने कर्तव्य करने से मैंने परमेश्वर का प्रबोधन और मार्गदर्शन महसूस किया। धीरे-धीरे मैंने कुछ सत्य समझे। मुझे परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और संप्रभुता की गहरी समझ मिली, कैसे शैतान ने लोगों को भ्रष्ट किया और कैसे परमेश्वर ने मनुष्यों को बचाया। मैंने यह भी जाना कि लोगों को कैसे जीना चाहिए और कौन से अनुसरण वास्तव में सार्थक और मूल्यवान हैं। मेरे दिल में चल रही उथल-पुथल काफी कम हो गई। मैं परमेश्वर के उद्धार के लिए बहुत आभारी हूँ!

पिछला: 63. मसले बताने के पीछे कौन-सी अशुद्धियाँ छिपी होती हैं?

अगला: 65. झूठ बोलने की समस्या का समाधान खोजना

परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2024 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।

संबंधित सामग्री

22. "शेर की माँद" से भाग निकलना

जायोयू, चीनमेरा नाम जायोयू है और मैं 26 साल की हूँ। मैं एक कैथोलिक हुआ करती थी। जब मैं छोटी थी, तो अपनी माँ के साथ ख्रीस्तयाग में भाग लेने...

48. मौत के कगार से जीवन में वापसी

यांग मेई, चीन2007 में मैं अचानक गुर्दे फेल होने की लंबी बीमारी से ग्रस्त हो गई। जब मेरी ईसाई माँ और भाभी तथा कुछ कैथोलिक दोस्तों ने यह खबर...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 6) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 7) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

सेटिंग

  • इबारत
  • कथ्य

ठोस रंग

कथ्य

फ़ॉन्ट

फ़ॉन्ट आकार

लाइन स्पेस

लाइन स्पेस

पृष्ठ की चौड़ाई

विषय-वस्तु

खोज

  • यह पाठ चुनें
  • यह किताब चुनें

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें