92. एक परिवार के उत्पीड़न के पीछे की कहानी

म्यू हान, चीन

एक समय मेरा एक सुखी परिवार था और मेरा पति मुझ पर बड़ा मेहरबान था। मुझे एक ही अफसोस था कि शादी के कई वर्ष बाद भी मेरे बच्चे नहीं हैं। मैंने कई प्रसिद्ध डॉक्टरों से सलाह ली और बहुत पैसा खर्च किया, लेकिन सब व्यर्थ रहा। इसी कारण मेरा अधिकांश समय पीड़ा और निराशा की स्थिति में गुजरता था। 2015 में एक दिन एक बहन मेरी सास से संगति करने हमारे घर आई। उसने सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का सुसमाचार मुझसे साझा किया और मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कई वचन पढ़कर सुनाए। परमेश्वर के वचनों से मैंने समझा कि मनुष्य को परमेश्वर ने बनाया है, कि लोगों की नियति परमेश्वर के हाथ में है, कि किसी व्यक्ति के पास जो कुछ भी है वह परमेश्वर का दिया हुआ है और बच्चे कब होंगे, यह भी परमेश्वर ने पहले से निर्धारित किया हुआ है। धीरे-धीरे मैं अपनी पीड़ा से उबरने में कामयाब हो गई, अब मैं बच्चे न होने से दुखी नहीं रहती थी और मेरी मनःस्थिति पहले से काफी अच्छी हो गई। बाद में मेरा एक बच्चा हुआ। उस समय मेरा पति परमेश्वर में विश्वास नहीं करता था, फिर भी वह हमारी आस्था का समर्थन करता था। हमारा परिवार सुखी था और मिल-जुलकर रहता था और हमारे पड़ोसी हमसे बहुत ईर्ष्या करते थे।

लेकिन यह अच्छा समय ज्यादा देर तक नहीं रहा। 2017 में मेरे सास-ससुर ने टीवी पर देखा कि सीसीपी सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को बदनाम कर रही है और अपमानजनक बातें फैला रही है और सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखने वालों का दमन और उन्हें गिरफ्तार कर रही है। उन्हें गिरफ्तारी का डर था और अब उनमें भाई-बहनों की मेजबानी की हिम्मत नहीं थी। फिर उन्होंने मुझे भी विश्वास करना बंद करने के लिए समझाना शुरू कर दिया। एक दिन मेरे ससुर ने गंभीर स्वर में कहा, “मैंने टीवी पर देखा कि सीसीपी सब जगह सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने वालों को गिरफ्तार कर रही है। बहुत से लोगों को गिरफ्तार किया गया है और मैंने सुना है कि गिरफ्तार करने के बाद उन्हें यातनाएँ दी जाती हैं, बच्चों से लेकर बड़ों तक पूरे परिवार को भुगतना पड़ता है और भविष्य में इन लोगों के बच्चे कॉलेज नहीं जा पाएँगे, सेना में भर्ती नहीं हो पाएँगे या सरकारी नौकरशाह नहीं बन पाएँगे। इस परिवार की खातिर अब अपने भाई-बहनों को हमारे घर में सभा करने मत आने दो। तुम्हें भी विश्वास रखना छोड़ देना चाहिए!” मेरी सास ने उसकी बात का समर्थन करते हुए कहा, “एक बहन को सीसीपी तलाश रही है और वह फरार है, और आज भी वह अपने घर नहीं जा सकती। उसके बेटे ने सेना में भर्ती होने के लिए अपना नाम दिया, लेकिन क्योंकि उसकी माँ सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करती थी, इसलिए वह राजनीतिक समीक्षा में असफल रहा और उसे स्वीकार नहीं किया गया। सीसीपी इस समय बहुत कड़ी कार्रवाई कर रही है। तुम्हें विश्वास रखना बंद कर देना चाहिए!” उनकी बातें सुनकर मैंने सोचा, “लोगों को परमेश्वर ने बनाया है और हमारे लिए परमेश्वर की आराधना करना सही है। यदिअगर हम उत्पीड़न के डर से परमेश्वर पर विश्वास रखना बंद कर देते हैं, तो क्या यह परमेश्वर के साथ विश्वासघात नहीं होगा?” इसलिए मैंने कहा, “हम परमेश्वर के वचन पढ़ने के लिए सभा करके और जीवन में सही मार्ग पर चलकर परमेश्वर में विश्वास रखते हैं। हम कोई भी गैरकानूनी काम नहीं करते। सीसीपी विश्वासियों को पकड़ती और सताती है क्योंकि यह परमेश्वर का विरोध करने वाली एक नास्तिक पार्टी है। हमें भविष्य में बस और सावधानी बरतने की जरूरत है।” मेरी सास ने कहा, “परमेश्वर में विश्वास रखना एक अच्छी बात है, लेकिन सीसीपी से लड़ने की कोशिश करना बेकार है। सीसीपी लोगों को विश्वास करने की अनुमति नहीं देती और अगर तुम विश्वास रखने पर जोर देती हो और तुम्हें किसी दिन गिरफ्तार कर लिया गया, तो यह परिवार तबाह हो जाएगा!” मैंने देखा कि मैं उनसे तर्क नहीं कर सकती, इसलिए मैंने और कुछ नहीं कहा। बाद में मेरा पति भी सीसीपी की अफवाहों से गुमराह होने लगा और डरने लगा कि अपनी आस्था के कारण मैं गिरफ्तार कर ली जाऊँगी और इससे परिवार फँस जाएगा, इसलिए वह अक्सर मुझे सभाओं में जाने और अपना कर्तव्य निभाने से रोकने लगा। मेरे प्रति मेरी सास का रवैया भी अचानक बहुत बदल गया। उसने न केवल मेरे बच्चे की देखभाल में मेरी मदद करना बंद कर दिया, बल्कि वह मुझ पर नजर भी रखने लगी। जब भी मैं किसी सभा में जाने के लिए बाहर जाती, वह मेरे पति को बता देती और मेरा पति अक्सर मुझसे नाराज हो जाता था और धमकी देता था कि अगर मैंने इन सभाओं में जाना जारी रखा, तो वह बदला लेने के लिए भाई-बहनों की तलाश करना शुरू कर देगा। मेरे पूरे परिवार ने मुझे परमेश्वर में विश्वास रखने से रोक दिया और बच्चे की देखभाल करने में कोई मेरी मदद नहीं करता था। मैं सभाओं के लिए बाहर नहीं जा सकती थी या अपना कर्तव्य नहीं निभा सकती थी और मैं बहुत कमजोर और परेशान महसूस करती थी। मैं अक्सर उदास हो कर रोती थी, मैं नहीं जानती थी कि ये दिन कब खत्म होंगे। कभी-कभी मैं यहाँ तक सोचती थी, “अगर मैं उनकी बात मान लूँ और सभाओं में जाना बंद कर दूँ, तो क्या ये झगड़े रुक नहीं जाएँगे? क्या हमारा परिवार फिर से पहले जैसा सुखी जीवन जी सकेगा?” लेकिन मुझे पता था कि इस तरह से सोचना गलत था। मैं उन्हें खुश करने के लिए परमेश्वर से विश्वासघात नहीं कर सकती थी। अगर मैंने ऐसा किया तो इसका मतलब होगा कि मुझमें सचमुच अंतरात्मा नहीं है।

बाद में परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़कर मेरी दशा कुछ हद तक बदल गई। परमेश्वर कहता है : “आज अधिकतर लोगों के पास यह ज्ञान नहीं है। वे मानते हैं कि कष्टों का कोई मूल्य नहीं है, कष्ट उठाने वाले संसार द्वारा त्याग दिए जाते हैं, उनका पारिवारिक जीवन अशांत रहता है, वे परमेश्वर के प्रिय नहीं होते, और उनकी संभावनाएँ धूमिल होती हैं। कुछ लोगों के कष्ट चरम तक पहुँच जाते हैं, और उनके विचार मृत्यु की ओर मुड़ जाते हैं। यह परमेश्वर के लिए सच्चा प्रेम नहीं है; ऐसे लोग कायर होते हैं, उनमें धीरज नहीं होता, वे कमजोर और शक्तिहीन होते हैं! परमेश्वर उत्सुक है कि मनुष्य उससे प्रेम करे, परंतु मनुष्य जितना अधिक उससे प्रेम करता है, उसके कष्ट उतने अधिक बढ़ते हैं, और जितना अधिक मनुष्य उससे प्रेम करता है, उसके परीक्षण उतने अधिक बढ़ते हैं। यदि तुम उससे प्रेम करते हो, तो तुम्हें हर प्रकार के कष्ट झेलने पड़ेंगे—और यदि तुम उससे प्रेम नहीं करते, तब शायद सब-कुछ तुम्हारे लिए सुचारु रूप से चलता रहेगा और तुम्हारे चारों ओर सब-कुछ शांतिपूर्ण होगा। जब तुम परमेश्वर से प्रेम करते हो, तो तुम महसूस करोगे कि तुम्हारे चारों ओर बहुत-कुछ दुर्गम है, और चूँकि तुम्हारा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है, इसलिए तुम्हारा शोधन किया जाएगा; इसके अलावा, तुम परमेश्वर को संतुष्ट करने में असमर्थ रहोगे और हमेशा महसूस करोगे कि परमेश्वर के इरादे बहुत बड़े हैं और वे मनुष्य की पहुँच से बाहर हैं। इस सबकी वजह से तुम्हारा शोधन किया जाएगा—क्योंकि तुममें बहुत निर्बलता है, और बहुत-कुछ ऐसा है जो परमेश्वर के इरादे पूरे करने में असमर्थ है, इसलिए तुम्हारा भीतर से शोधन किया जाएगा। फिर भी तुम लोगों को यह स्पष्ट देखना चाहिए कि शुद्धिकरण केवल शोधन के द्वारा ही प्राप्त किया जाता है। इस प्रकार, इन अंत के दिनों में तुम लोगों को परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए। चाहे तुम्हारे कष्ट कितने भी बड़े क्यों न हों, तुम्हें बिल्कुल अंत तक चलना चाहिए, यहाँ तक कि अपनी अंतिम साँस पर भी तुम्हें परमेश्वर के प्रति निष्ठावान और उसके आयोजनों के प्रति समर्पित होना चाहिए; केवल यही वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करना है, और केवल यही सशक्त और जोरदार गवाही है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो)। परमेश्वर के वचन पढ़कर मैं बहुत विचलित हो गई। मेरा परिवार सीसीपी की अफवाहों पर विश्वास कर रहा था और परमेश्वर में विश्वास करने से रोकने के लिए मुझे सता रहा था और मेरी राह में अड़चनें खड़ी कर रहा था, जिससे मैं समझौता करने की स्थिति में आ गई थी। मैं इतनी कमजोर थी और मेरा कोई आध्यात्मिक कद नहीं था। कम्युनिस्ट पार्टी परमेश्वर का विरोध करती है और जिस देश में उसका शासन है, वहाँ परमेश्वर पर विश्वास करना और परमेश्वर का अनुसरण करना और जीवन के सही मार्ग पर चलना बाधाओं से भरा होता है। मेरे परिवार द्वारा मेरा उत्पीड़न भी मेरे लिए एक परीक्षा थी जिससे यह दिख जाएगा कि मैं परमेश्वर के पक्ष में खड़ी रहूँगी या शैतान के पक्ष में। यह सोचकर मैंने दृढ़ संकल्प लिया कि मेरा परिवार मुझे चाहे कैसे भी सताए, मैं कभी समझौता नहीं करूँगी और चाहे मुझे कितना भी कष्ट सहना पड़े, मैं अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करूँगी। बाद में मैं अपने बच्चे के साथ दूसरे घर में चली गई और मैं अब अपने ससुराल वालों की निगरानी से आजाद थी। मेरा पति दिन के दौरान घर से बाहर होता था क्योंकि वह काम पर जाता था, और मैं फिर से संगति में भाग ले सकती थी और अपना कर्तव्य निभा सकती थी। मैं वाकई खुश थी।

बाद में बहन चेन पिंग मेरे साथ सभा करने आई लेकिन मेरे पति को यह पता चल गया और उसने उसे भगा दिया और फिर उसने गुस्से में मुझसे कहा, “इन लोगों को अब हमारे घर पर सभा करने की अनुमति नहीं है। अगर पुलिस को पता चला, तो हमारा सारे परिवार को भुगतना पड़ेगा। अगर मैंने फिर कभी उन्हें यहाँ देख लिया तो मैं पुलिस बुला लूँगा!” मैं बहुत गुस्से में थी और मैंने उससे झगड़ा किया, लेकिन मैंने चाहे जो भी कहा, मेरा पति मुझे परमेश्वर पर विश्वास करने की अनुमति देने को तैयार नहीं था। मैंने सोचा कि बहन चेन पिंग अब मुझसे मिलने नहीं आ सकती और मेरा बच्चा इतना छोटा है कि मैं उसे सभाओं में ले जाकर अपना कर्तव्य नहीं निभा सकती हूँ। मैं अंदर से खुद को कमजोर महसूस कर रही थी और मुझे लगा कि आस्था का मार्ग बहुत ही कठिन है और शायद मुझे कुछ समय के लिए अपना कर्तव्य निभाना बंद कर देना चाहिए और इसे दुबारा शुरू करने के लिए अपने बच्चे के बड़े होने का इंतजार करना चाहिए। बाद में मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े और अपनी दशा का कुछ भेद पहचाना। परमेश्वर कहता है : “जब परमेश्वर कार्य करता है, किसी की देखभाल करता है, उस पर नजर रखता है, और जब वह उस व्यक्ति पर अनुग्रह करता और उसे स्वीकृति देता है, तब शैतान करीब से उसका पीछा करता है, उस व्यक्ति को गुमराह करने और नुकसान पहुँचाने की कोशिश करता है। अगर परमेश्वर इस व्यक्ति को पाना चाहता है, तो शैतान परमेश्वर को रोकने के लिए अपने सामर्थ्य में सब-कुछ करता है, वह परमेश्वर के कार्य को प्रलोभित करने, उसमें विघ्न डालने और उसे खराब करने के लिए विभिन्न दुष्ट हथकंडों का इस्तेमाल करता है, ताकि वह अपना छिपा हुआ उद्देश्य हासिल कर सके। क्या है वह उद्देश्य? वह नहीं चाहता कि परमेश्वर किसी भी मनुष्य को प्राप्त कर सके; परमेश्वर जिन्हें पाना चाहता है, वह उन पर कब्जा कर लेना चाहता है, वह उन पर नियंत्रण करना, उनको अपने अधिकार में लेना चाहता है, ताकि वे उसकी आराधना करें, ताकि वे बुरे कार्य करने और परमेश्वर का प्रतिरोध करने में उसका साथ दें। क्या यह शैतान का भयानक उद्देश्य नहीं है? तुम लोग अकसर कहते हो कि शैतान कितना दुष्ट, कितना खराब है, परंतु क्या तुमने उसे देखा है? तुम यह देख सकते हो कि मनुष्य जाति कितनी बुरी है; तुमने यह नहीं देखा है कि असल शैतान कितना बुरा है। पर अय्यूब के मामले में, तुम स्पष्ट रूप से देखा है कि शैतान कितना दुष्ट है। इस मामले ने शैतान के भयंकर चेहरे और उसके सार को बिल्कुल स्पष्ट कर दिया है। परमेश्वर के साथ युद्ध करने और उसके पीछे-पीछे चलने में शैतान का उद्देश्य उस समस्त कार्य को नष्ट करना है, जिसे परमेश्वर करना चाहता है; उन लोगों पर कब्ज़ा और नियंत्रण करना है, जिन्हें परमेश्वर प्राप्त करना चाहता है; उन लोगों को पूरी तरह से मिटा देना है, जिन्हें परमेश्वर प्राप्त करना चाहता है। यदि वे मिटाए नहीं जाते, तो वे शैतान द्वारा इस्तेमाल किए जाने के लिए उसके कब्ज़े में आ जाते हैं—यह उसका उद्देश्य है(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IV)। परमेश्वर के वचनों से मैंने शैतान की बुराई और नीचता को स्पष्ट रूप से देखा। परमेश्वर लोगों को बचाने के लिए कार्य करता है, लेकिन शैतान पूरी कोशिश करता है कि लोग परमेश्वर का अनुसरण न करें। यह सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को बदनाम करने के लिए हर तरह की अफवाहें फैलाता है और विश्वासियों को राज्य का कट्टर दुश्मन मानता है, उन्हें गिरफ्तार करता है और उनका उत्पीड़न करता है, यहाँ तक कि मसीही परिवारों को भी फँसाता है, हमारे अविश्वासी परिजनों को डराता है और उनका इस्तेमाल हमें परेशान करने और हमारी आस्था में अड़चन डालने के लिए करता है। यह सब करने के पीछे बड़े लाल अजगर का यह घिनौना उद्देश्य है कि हम सब परमेश्वर से विश्वासघात करें और साथ ही नरक में चले जाएँ। मेरे परिवार वाले सीसीपी के हाथों गिरफ्तार होने से डरे हुए थे और उनमें परमेश्वर पर विश्वास करने की हिम्मत नहीं थी और उन्होंने मेरी आस्था में बाधा डालने के लिए गिरोह बना लिया। उत्पीड़न का सामना करने पर मैं कमजोर पड़ गई और अपने छोटे-से सुखी परिवार की रक्षा करने के लिए अपना कर्तव्य छोड़ना चाहती थी। यह तो शैतान के जाल में फँसने जैसा होता! इस बात को समझने के बाद मैंने संकल्प किया कि चाहे आगे का मार्ग कितना भी कठिन क्यों न हो, मैं समझौता नहीं करूँगी और मुझे अपनी गवाही में अडिग रहने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करना है। बाद में मैं सभाओं में जाने के लिए चुपके से अपने बच्चे को ले जाने लगी। अद्भुत बात यह थी कि बहन के घर पहुँचते ही वह सो जाता था और हमारी सभा समाप्त होने के बाद ही उठता था, इसका मतलब यह था कि मैं शांत मन से सभाओं में भाग ले सकती थी। बाद में मुझे कलीसिया की अगुआ चुन लिया गया और कलीसिया का कार्य बहुत व्यस्त था, इसलिए मैंने अपने बेटे को किंडरगार्टन में भेज दिया और अपना कर्तव्य निभाना जारी रखा।

2018 में सीसीपी ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को निशाना बनाते हुए एक और विशेष अभियान शुरू किया और सभी सड़कें ऐसे बैनरों से अट गईं : “सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करना” और “जब तक प्रतिबंध समाप्त नहीं हो जाता तब तक सैनिकों को नहीं हटाया जाएगा।” लोगों को भड़काने और उन्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने वालों की सूचना देने के लिए उकसाने के मकसद से रिहायशी इलाकों में लाउडस्पीकरों के माध्यम से सुबह से रात तक लगातार घोषणाएं की गईं और प्रत्येक गिरफ्तारी पर 2,000 युआन का इनाम घोषित किया गया। उस दौरान कई भाई-बहनों को गिरफ्तार किया गया और शहर में डर और घबराहट का माहौल छा गया था। मेरा पति मेरी गिरफ्तारी की आशंका से डर गया और मुझ पर और बुरी तरह जुल्म करने लगा। एक दिन जब मैं बाहर जाने वाली थी तो मेरे पति ने कहा, “यह मत सोचना कि तुम्हारे छुपकर सभाओं में जाने की मुझे खबर नहीं है। मैं सब देख रहा हूँ कि तुम कितनी व्यस्त हो; अब तक तो तुम एक अगुआ बन चुकी होगी! सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखने वालों को पुलिस खास तौर पर गिरफ्तार करती है। देखो, सड़कों पर हर जगह निगरानी वाले कैमरे और जाँच उपकरण लगे हुए हैं और पुलिस तुम्हें कभी भी पकड़ सकती है। अब तुम्हें विश्वास करने की अनुमति नहीं है, वरना तुम अपने साथ हमें भी ले डूबोगी। तुम्हें अभी यह लिखकर एक प्रतिज्ञा करनी होगी कि तुम अब सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास नहीं करोगी। अगर तुमने यह नहीं लिखा तो मैं तुम्हें इस घर से बाहर निकाल दूँगा और तुम अपने बच्चे का मुँह कभी नहीं देख पाओगी!” उसकी यह बात सुनकर मैं हैरान रह गई। केवल सीसीपी के शैतान ही किसी से परमेश्वर में विश्वास न करने की गारंटी लिखवा सकते हैं। क्या वह एक शैतान नहीं है! मैंने दृढ़ता से कहा, “सर्वशक्तिमान परमेश्वर वह उद्धारकर्ता है जो मानवजाति को बचाने के लिए आया है, मैं परमेश्वर से कभी विश्वासघात नहीं करूँगी, ऐसी गारंटी लिखना तो दूर की बात है!” यह सुनकर मेरे पति ने आपा खो दिया और उसने बाएँ हाथ से मेरा गला पकड़ा और दाएँ हाथ से मुझे दो जोरदार थप्पड़ मारे। मेरा चेहरा तुरंत दर्द से बिलबिला उठा और मेरी आँखों से आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। इतने सालों में मेरे पति ने मुझ पर कभी हाथ नहीं उठाया, लेकिन उस दिन उसने सीसीपी की अफवाहों पर विश्वास करने के कारण मुझे थप्पड़ मारा। मुझे बहुत चोट पहुँची थी और मैं खुद को कमजोर महसूस करने लगी। मैंने आँसुओं के बीच परमेश्वर से प्रार्थना की कि वह मुझे आस्था और शक्ति दे। फिर जब मैंने देखा कि सभा का समय हो गया है, तो मैंने बाहर जाने का कोई बहाना बनाया। लेकिन मेरे पति ने मुझे रोक दिया और कहा, “आज तो मैं तुम्हारा पीछा करके रहूँगा। अगर तुमने सभा में जाने का दुस्साहस किया तो मैं पुलिस बुलाकर तुम सबको गिरफ्तार करवा दूँगा!”

लेकिन इसके बावजूद मैंने सभा में जाने का तरीका ढूँढ़ ही लिया। जब मेरे पति ने देखा कि मैं उसकी बात नहीं मान रही हूँ तो उसने मेरे माता-पिता और रिश्तेदारों के सामने मेरे बारे में भद्दी बातें कहकर यह कोशिश की कि मेरा परिवार मुझे विश्वास रखने से रोकने के लिए मजबूर करे। मेरी माँ ने कहा, “मुझे पता है वह कैसी है। जब से वह तुम्हारे घर आई है, उसने तुमसे कभी भी झगड़ा नहीं किया है और उसने वह सब कुछ किया जो उसे करना चाहिए था। वह बस परमेश्वर में विश्वास रखती है। इसमें गलत क्या है?” मेरे भाई ने भी उसे समझाने की कोशिश की। जब मेरे पति ने देखा कि मेरा परिवार उसका साथ नहीं दे रहा है तो वह बहुत क्रोधित हो गया। उसने मेरा एमपी5 प्लेयर ढूँढ़कर उसे तोड़ दिया, उसी से मैं परमेश्वर के वचन पढ़ती थी। उसने बाइबल भी फाड़ दी और फिर उसने बाथरूम का काँच का दरवाजा, हमारी रसोई का अधिकांश सामान और भी बहुत सारी दूसरी चीजें तोड़ डालीं। जब मेरे ससुराल वालों को इस बारे में पता चला, तो वे तुरंत मेरे घर आए और उन्होंने गुस्से से मेरी आलोचना करते हुए कहा, “कम्युनिस्ट पार्टी लोगों को परमेश्वर में विश्वास करने की अनुमति नहीं देती है तो क्या तुम विश्वास करना बंद नहीं कर सकती हो? अगर तुम अभी भी परमेश्वर में विश्वास करने की जिद करती हो और पकड़ी जाती हो, तो यह हमारे परिवार के लिए तबाही का कारण बनेगा। तुम्हारे पति को कोई भी भवन निर्माण का ठेका नहीं मिलेगा, हमारी संपत्ति जब्त कर ली जाएगी और फिर पूरे परिवार के पास जीने का कोई साधन नहीं बचेगा। आज से यह सब बंद! ये किताबें हटाओ और विश्वास करना बंद करो!” मेरी सास ने मेरे ससुर को चेन पिंग के घर जाकर उससे निपटने के लिए भी कहा। मुझे यह ख्याल आया कि चेन पिंग के पास कलीसिया के कार्य की जिम्मेदारी थी, इसलिए अगर उसके साथ कुछ होता है तो इससे पूरी कलीसिया पर असर पड़ेगा और मैंने गुस्से में कहा, “परमेश्वर में विश्वास करना मेरा अपना निर्णय है। इसके लिए दूसरों को परेशान मत करो। आज से वह यहाँ नहीं आएगी और मैं भी उसके पास नहीं जाऊँगी।” मेरी यह बात सुनकर उन्हें लगा कि मैंने समझौता कर लिया है और वे चले गए। लेकिन मेरा पति फिर भी बाद में चेन पिंग को परेशान करने उसके घर गया, जिसके कारण वह अपने कर्तव्य को निभाने के लिए अपना घर छोड़ने पर मजबूर हो गई। मैं यह सोच कर खुद को दोषी और असहज महसूस कर रही थी कि चेन पिंग मेरे कारण अपने घर वापस नहीं जा सकती थी और मैंने यह भी सोचा कि कैसे अपने परिवार के उत्पीड़न के कारण मैं भाई-बहनों से संपर्क नहीं कर पा रही थी। मैं अपने दिन गहरे दबाव की स्थिति में बिताती थी। मैं परमेश्वर के वचन पढ़ते समय सावधान रहती थी, डरती थी कि कहीं मेरा पति मुझे देख न ले और जब मैं अपने बड़े कमरे को देखती थी, तो मुझे ऐसा लगता था कि जैसे पिंजरे में कैद एक पक्षी हूँँ। यद्यपि मेरा जीवन आरामदायक था, फिर भी मुझे कोई खुशी महसूस नहीं होती थी। मैं यही चाहती थी कि काश मैं मुक्त रूप से परमेश्वर पर विश्वास रख सकूँ और उसके वचन पढ़ सकूँ!

इसके कुछ ही समय बाद मेरे पति ने कहा, “पुलिस थाने से मेरे एक दोस्त ने मुझे बताया कि सरकार तुम्हारे जैसे सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने वालों के खिलाफ एक विशेष अभियान शुरू कर रही है और अगर उन्होंने तुम्हें पकड़ लिया तो कितना भी पैसा तुम्हें छुड़ा नहीं पाएगा। अंदर तुम तो कष्ट सहोगी ही, अपने साथ पूरे परिवार को भी ले डूबोगी। सरकार सभी धार्मिक विश्वासों को खत्म करना चाहती है। यहाँ तक कि थ्री-सेल्फ कलीसिया को भी गिरा दिया जाएगा। क्या तुम्हें लगता है कि अगर तुम सीसीपी की बात नहीं सुनोगी, तो तुम एक अच्छा जीवन जी सकती हो? चीन में परमेश्वर में विश्वास रखना मौत को दावत देने जैसा है! मैं तुम्हारी आस्था के कारण लगातार डर और चिंता के साथ नहीं जीना चाहता। तुम्हारे पास दो विकल्प हैं : पहला, अपनी आस्था छोड़ दो और घर पर रहकर हमारे बेटे की देखभाल करो। अगर तुम ऐसा करती हो तो तुम इस परिवार की मुखिया होगी और मैं तुम्हारी हर बात मानूँगा। दूसरा, अपनी आस्था पर कायम रहो, लेकिन बेटे को यहीं छोड़कर इस घर से खाली हाथ निकल जाओ।” मेरे लिए यह बात स्पष्ट हो गई थी कि हमारी शादी खत्म हो चुकी थी। मैं बहुत दुखी महसूस कर रही थी और अपने बच्चे के इतनी छोटी-सी उम्र में अपनी माँ से अलग होने की बात सोचकर मैं बहुत कमजोर हो गई और चुपचाप आँसू बहाने लगी। अपने परिवार को टूटने के कगार पर देखकर मेरा पूरा अतीत मेरी आँखों के सामने फिल्म के दृश्यों की तरह घूमने लगा। क्या मैं वास्तव में इतने वर्षों की मेहनत से बनाए गए इस परिवार को छोड़ सकती हूँ? विशेष रूप से, जब मैंने अपने बच्चे से अलग होने और उसे बड़े होते हुए न देख पाने के बारे में सोचा, तो मुझे घर छोड़ना दस हजार गुना अधिक कठिन लगने लगा। मेरा दिल ऐसा दुख रहा था जैसे किसी ने उस पर छुरी चला दी हो और मेरा दिमाग सुन्न हो गया था। इस पीड़ादायी संघर्ष के बीच मेरे मन में एक विचार आया, “अगर मैं परमेश्वर में आस्था रखना बंद कर दूँ, तो मेरा पति मुझसे तलाक नहीं लेगा, मैं अपने बच्चे के साथ रह सकूँगी और पूरा परिवार फिर से पहले जैसा हो सकता है, सुखी पारिवारिक आनंद लेकर जी सकता है।” ऐसा सोचकर मुझे लगा कि यह परमेश्वर के साथ विश्वासघात होगा। मैंने ख्याल किया कि जब मैं परमेश्वर में विश्वास नहीं रखती थी तो मैं कैसे अंधकार और खालीपन के साथ दिन काटती थी और यह परमेश्वर ही था जिसने मुझे दुःख के इस सागर से बचाया था और मुझे सत्य प्रदान किया था और बचाए जाने का यह अवसर दिया था। अगर मैं अपने परिवार के लिए परमेश्वर से विश्वासघात करने का चुनाव करती हूँ, तो मैं परमेश्वर के उद्धार के योग्य नहीं रहूँगी! इसलिए मैंने अपने दिल में परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मैं तेरे साथ विश्वासघात नहीं करना चाहती हूँ, मैं तुझ में विश्वास रखना चाहती हूँ, अपना कर्तव्य निभाना चाहती हूँ और तेरे प्रेम का बदला चुकाना चाहती हूँ, लेकिन मैं अपने बच्चे को छोड़ना भी बर्दाश्त नहीं कर सकती। मैं बहुत कमजोर हूँ। मुझे आस्था और ताकत दो।” प्रार्थना करने के बाद मुझे परमेश्वर के वचनों का एक भजन याद आया जिसका शीर्षक है “सत्य के लिए तुम्हें सब कुछ त्याग देना चाहिए” :

1  तुम्हें सत्य के लिए कष्ट उठाने होंगे, तुम्हें सत्य के लिए समर्पित होना होगा, तुम्हें सत्य के लिए अपमान सहना होगा, और अधिक सत्य प्राप्त करने के लिए तुम्हें अधिक कष्ट उठाने होंगे। यही तुम्हें करना चाहिए। एक शांतिपूर्ण पारिवारिक जीवन के लिए तुम्हें सत्य का त्याग नहीं करना चाहिए, और क्षणिक आनन्द के लिए तुम्हें जीवन भर की गरिमा और सत्यनिष्ठा को नहीं खोना चाहिए।

2  तुम्हें उस सबका अनुसरण करना चाहिए जो खूबसूरत और अच्छा है, और तुम्हें अपने जीवन में एक ऐसे मार्ग का अनुसरण करना चाहिए जो ज्यादा अर्थपूर्ण है। यदि तुम एक गंवारू जीवन जीते हो और किसी भी उद्देश्य को पाने की कोशिश नहीं करते हो तो क्या तुम अपने जीवन को बर्बाद नहीं कर रहे हो? ऐसे जीवन से तुम क्या हासिल कर पाओगे? तुम्हें एक सत्य के लिए देह के सभी सुखों को छोड़ देना चाहिए, और थोड़े-से सुख के लिए सारे सत्यों का त्याग नहीं कर देना चाहिए। ऐसे लोगों में कोई सत्यनिष्ठा या गरिमा नहीं होती; उनके अस्तित्व का कोई अर्थ नहीं होता!

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान

परमेश्वर के वचनों के प्रबोधन और मार्गदर्शन से मुझे समझ में आया कि मैं अपने परिवार को बचाने के लिए परमेश्वर के साथ विश्वासघात नहीं कर सकती। मैंने यह ख्याल किया कि लोगों को शैतान की शक्ति से बचाने के उद्देश्य से परमेश्वर कैसे लोगों के बीच बोलने और कार्य करने के लिए देहधारण कर अत्यधिक अपमान और तमाम तरह की कठिनाइयाँ सहता है। परमेश्वर ने सारी पीड़ादायक कीमत चुकाई है। अगर मैं अपने परिवार की खुशी के लिए परमेश्वर से विश्वासघात कर दूँ तो फिर कैसे मेरे अंदर कोई अंतरात्मा या मानवीय गरिमा हो सकती है? परमेश्वर में मेरे विश्वास के अंतर्गत सत्य और परमेश्वर के उद्धार की मेरी खोज ही जीवन में सही मार्ग है और सत्य को प्राप्त करने के लिए सहा गया हर कष्ट इसके योग्य है। भौतिक सुख या जीवन में सुख-सुविधा चाहे जितनी भी हो, वे सब खाली हैं और केवल सत्य को प्राप्त करके ही कोई बचाया जा सकता है और जीते रह सकता है। मुझे अपने बच्चे और परिवार के लिए सत्य को त्यागकर परमेश्वर के साथ विश्वासघात नहीं करना चाहिए। मुझे दृढ़ रहना होगा, सत्य की खोज करनी होगी, परमेश्वर के प्रेम का बदला चुकाना होगा और एक सार्थक जीवन जीना होगा। उसी क्षण मुझे सारी चीजें स्पष्ट हो गईं। चाहे मेरा पति मुझ पर कितना भी दबाव क्यों न डाले, मैं कभी भी ऐसा कुछ नहीं करूँगी जिससे परमेश्वर के साथ विश्वासघात हो। मेरा पति मुझ पर तलाक लेने के लिए दबाव डाल रहा था क्योंकि उसे डर था कि अगर मैं गिरफ्तार हो गई, तो मैं उसे भी अपने साथ फंसा दूँगी। वह अपने स्वार्थ की रक्षा के लिए ऐसा कर रहा था। मैंने देखा कि केवल परमेश्वर ही वास्तव में लोगों से प्रेम करता है। लोगों के बीच प्रेम कहाँ है? लोगों के रिश्ते केवल व्यक्तिगत स्वार्थों से प्रेरित होते हैं और जैसे ही कोई लाभ मिलने की संभावना नहीं रहती, लोग एक-दूसरे के खिलाफ हो जाते हैं। मेरा पति यह अच्छी तरह से जानता था कि परमेश्वर में विश्वास रखना ही सही मार्ग है, लेकिन फिर भी वह सीसीपी का पक्ष लेकर मुझ पर दबाव डाल रहा था। उसका सार परमेश्वर विरोधी था और सीसीपी का अनुसरण करके वह बरबादी और विनाश के मार्ग पर चल रहा था। जबकि परमेश्वर में विश्वास करके और सत्य की खोज करके मैं उद्धार के मार्ग पर चल रही थी। हमारे मार्ग बुनियादी रूप से अलग थे। साथ रहने का मतलब केवल यह होता कि मैं लगातार उसके दबाव में रहती और मेरे लिए मुक्त रूप से परमेश्वर में विश्वास करने या सत्य का अनुसरण करने का कोई रास्ता न बचता। इसलिए मैंने शांत होकर कहा, “चूँकि तुम तलाक का प्रस्ताव दे रहे हो, तो मैं सहमत हूँ।” मेरे पति ने ताना मारते हुए कहा, “हमारे बीच तलाक के बाद तुम अपने बच्चे से कभी नहीं मिल पाओगी और अगर मुझे पता चला कि तुम उससे मिलने आई हो तो मैं पुलिस बुलाकर तुम सबको गिरफ्तार करवा दूँगा!” मेरी सास फिर मुझे मनाने की कोशिश करने आई और कहने लगी, “अगर तुम बस परमेश्वर में विश्वास करना छोड़ दो तो तुम अपने बच्चे को जहाँ चाहो वहाँ ले जा सकती हो और एक अच्छा जीवन जी सकती हो! वैसे भी, वह अभी बहुत छोटा है; तुम उससे बिछोह कैसे सह लोगी?” अपनी सास की बातें सुनकर मुझे लगा कि मेरे दिल पर छुरियाँ चल रही हैं। मैंने सोचा, “जब से वह पैदा हुआ है, वह कभी भी मुझसे अलग नहीं रहा। भविष्य में उसकी देखभाल कौन करेगा? क्या उसे तकलीफ सहनी पड़ेगी? क्या दूसरे लोग उसे सताएँगे? अगर वह बीमार पड़ गया और उसकी देखभाल करने के लिए कोई नहीं हुआ, तो क्या होगा?” इस बारे में मैंने जितना सोचा, मुझे उतनी ही पीड़ा होती गई। तभी मुझे परमेश्वर के वचन याद आए : “मैं हमेशा उन सभी को आराम पहुँचाऊँगा जो मेरे इरादे समझेंगे, और मैं उन्हें पीड़ा सहने या कोई नुकसान पहुँचने नहीं दूँगा। अब महत्वपूर्ण बात मेरे इरादों के अनुसार कार्य करने में सक्षम बनना है। जो लोग ऐसा करेंगे, वे निश्चित रूप से मेरे आशीष प्राप्त करेंगे और मेरी सुरक्षा में आ जाएँगे। कौन वास्तव में पूरी तरह से मेरे लिए खप सकता है और मेरी खातिर अपना सब-कुछ अर्पित कर सकता है? तुम सभी अनमने हो; तुम्हारे विचार इधर-उधर घूमते हैं, तुम घर के बारे में, बाहरी दुनिया के बारे में, भोजन और कपड़ों के बारे में सोचते रहते हो। इस तथ्य के बावजूद कि तुम यहाँ मेरे सामने हो, मेरे लिए काम कर रहे हो, अपने दिल में तुम अभी भी घर पर मौजूद अपनी पत्नी, बच्चों और माता-पिता के बारे में सोच रहे हो। क्या ये सभी चीजें तुम्हारी संपत्ति हैं? तुम उन्हें मेरे हाथों में क्यों नहीं सौंप देते? क्या तुम्हें मुझ पर पर्याप्त विश्वास नहीं है? या ऐसा है कि तुम डरते हो कि मैं तुम्हारे लिए अनुचित व्यवस्थाएँ करूँगा? तुम हमेशा अपने दैहिक परिवार के बारे में चिंतित क्यों रहते हो और तुम हमेशा अपने प्रियजनों के लिए विलाप क्यों करते रहते हो? क्या तुम्हारे दिल में मेरा कोई निश्चित स्थान है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 59)। “जन्म देने और बच्चे के पालन-पोषण के अलावा, बच्चे के जीवन में माता-पिता का उत्तरदायित्व उसके बड़ा होने के लिए बस एक औपचारिक परिवेश प्रदान करना है, क्योंकि सृजनकर्ता के पूर्वनिर्धारण के अलावा किसी भी चीज़ का उस व्यक्ति के भाग्य से कोई सम्बन्ध नहीं होता। किसी व्यक्ति का भविष्य कैसा होगा, इसे कोई नियन्त्रित नहीं कर सकता; इसे बहुत पहले ही पूर्व निर्धारित किया जा चुका होता है, किसी के माता-पिता भी उसके भाग्य को नहीं बदल सकते। जहाँ तक भाग्य की बात है, हर कोई स्वतन्त्र है, और हर किसी का अपना भाग्य है। इसलिए किसी के भी माता-पिता जीवन में उसके भाग्य को नहीं रोक सकते या उस भूमिका पर जरा-सा भी प्रभाव नहीं डाल सकते जिसे वह जीवन में निभाता है। ऐसा कहा जा सकता है कि वह परिवार जिसमें किसी व्यक्ति का जन्म लेना नियत होता है, और वह परिवेश जिसमें वह बड़ा होता है, वे जीवन में उसके ध्येय को पूरा करने के लिए मात्र पूर्वशर्तें होती हैं। वे किसी भी तरह से किसी व्यक्ति के भाग्य को या उस प्रकार की नियति को निर्धारित नहीं करते जिसमें रहकर कोई व्यक्ति अपने ध्येय को पूरा करता है(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था और शक्ति दी। मैंने सोचा कि मैं कैसे कई वर्षों तक बीमारी के कारण बाँझ थी, यहाँ तक कि प्रसिद्ध डॉक्टर भी असहाय थे और जब मैं अंधकार और पीड़ा में जी रही थी, तो परमेश्वर के वचनों ने मुझे उस समय प्रकाश दिया था, मुझे परमेश्वर की संप्रभुता और पूर्वनियति को समझने की क्षमता दी थी और मुझे पीड़ा से मुक्त होने में मदद की थी। बाद में चमत्कारिक रूप से मेरा बच्चा हुआ। मेरा परिवार और मेरा बच्चा परमेश्वर के दिए हुए उपहार हैं। मुझे हमेशा यह लगता था कि मैं अपने बच्चे की अच्छी देखभाल कर सकती हूँ और मैंने उसे कभी भी परमेश्वर के हाथ में नहीं सौंपा। परमेश्वर के वचनों ने मुझे समझाया कि वास्तव में परमेश्वर ही है जो हर व्यक्ति की रक्षा, देखभाल और भरण-पोषण करता है। मेरे बच्चे का भाग्य परमेश्वर के हाथ में है और वह उसके लिए हर व्यवस्था करेगा। उसकी नियति परमेश्वर ने पहले से तय कर रखी है और यह भी तय कर रखा है कि वह कष्ट सहेगा या नहीं सहेगा। ऐसा नहीं है कि मेरे घर में रहने से ही उसकी अच्छी देखभाल होगी, न ही बस रोज उसके साथ रहने से मैं उसका स्वास्थ्य और सुरक्षा सुनिश्चित कर सकती हूँ। मुझे अपने बच्चे से संबंधित हर मामले को परमेश्वर को सौंप देना चाहिए और अपने कर्तव्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इस तरह सोचकर मैंने अपने बच्चे के प्रति अपनी कुछ चिंताओं को छोड़ दिया और मेरा दिल अब उतना दुखी नहीं था। मेरी सास अभी भी मेरी शिकायत कर रही थी लेकिन मैं उससे बहस नहीं करना चाहती थी और मैंने मन ही मन सोचा, “स्पष्ट है कि तुम्हारा बेटा ही खुद को बचाने के लिए तलाक चाहता है, फिर भी तुम कहती हो कि मैं परमेश्वर में आस्था के कारण अपने परिवार और बच्चे को छोड़ रही हूँ। क्या तुम्हें यह नहीं दिखता कि तुम सत्य के उलट चल रही हो?”

मैंने अपने इलाके के एक भाई के बारे में भी सोचा जिसे आस्था रखने के कारण सीसीपी ने अपना शिकार बना दिया था। उसने अपने बुजुर्ग लकवाग्रस्त पिता की देखभाल करने के लिए गुप्त रूप से घर लौटने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी थी, लेकिन सीसीपी ने उसे पकड़ लिया था और पीट-पीटकर मार डाला था। आखिर विश्वासी कैसे अपने परिवारों को छोड़ रहे थे? क्या यह सीसीपी द्वारा मसीहियों के प्रति क्रूर उत्पीड़न नहीं था, जिसने ऐसे परिणामों को जन्म दिया था? मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “हजारों सालों से यह मलिनता की भूमि रही है। यह असहनीय रूप से गंदी और असीम दुःखों से भरी हुई है, चालें चलते और धोखा देते हुए, निराधार आरोप लगाते हुए, क्रूर और दुष्ट बनकर इस भुतहा शहर को कुचलते हुए और लाशों से पाटते हुए प्रेत यहाँ हर जगह बेकाबू दौड़ते हैं; सड़ांध ज़मीन पर छाकर हवा में व्याप्त हो गई है, और इस पर जबर्दस्त पहरेदारी है। आसमान से परे की दुनिया कौन देख सकता है? शैतान मनुष्य के पूरे शरीर को कसकर बांध देता है, अपनी दोनों आंखों पर पर्दा डालकर, अपने होंठ मजबूती से बंद कर देता है। शैतानों के राजा ने हजारों वर्षों तक उपद्रव किया है, और आज भी वह उपद्रव कर रहा है और इस भुतहा शहर पर बारीकी से नज़र रखे हुए है, मानो यह राक्षसों का एक अभेद्य महल हो; इस बीच रक्षक कुत्ते चमकती हुई आंखों से घूरते हैं, वे इस बात से अत्यंत भयभीत रहते हैं कि कहीं परमेश्वर अचानक उन्हें पकड़कर समाप्त न कर दे, उन्हें सुख-शांति के स्थान से वंचित न कर दे। ऐसे भुतहा शहर के लोग परमेश्वर को कैसे देख सके होंगे? क्या उन्होंने कभी परमेश्वर की प्रियता और मनोहरता का आनंद लिया है? उन्हें मानव-जगत के मामलों की क्या कद्र है? उनमें से कौन परमेश्वर के उत्कट इरादों को समझ सकता है? फिर, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि देहधारी परमेश्वर पूरी तरह से छिपा रहता है : इस तरह के अंधकारपूर्ण समाज में, जहाँ राक्षस बेरहम और अमानवीय हैं, पलक झपकते ही लोगों को मार डालने वाला शैतानों का सरदार, ऐसे मनोहर, दयालु और पवित्र परमेश्वर के अस्तित्व को कैसे सहन कर सकता है? वह परमेश्वर के आगमन की सराहना और जयजयकार कैसे कर सकता है? ये अनुचर! ये दया के बदले घृणा देते हैं, लंबे समय पहले ही वे परमेश्वर से शत्रु की तरह पेश आने लगे थे, ये परमेश्वर को अपशब्द बोलते हैं, ये बेहद बर्बर हैं, इनमें परमेश्वर के प्रति थोड़ा-सा भी सम्मान नहीं है, ये लूटते और डाका डालते हैं, इनका विवेक मर चुका है, ये विवेक के विरुद्ध कार्य करते हैं, और ये लालच देकर निर्दोषों को अचेत कर देते हैं। प्राचीन पूर्वज? प्रिय अगुआ? वे सभी परमेश्वर का विरोध करते हैं! उनके हस्तक्षेप ने स्वर्ग के नीचे की हर चीज को अंधेरे और अराजकता की स्थिति में छोड़ दिया है! धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप को छिपाने की चालें हैं!(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। परमेश्वर के वचनों पर विचार कर मैंने देखा कि सीसीपी वास्तव में एक बुरी राक्षस है जो परमेश्वर का विरोध करती है और लोगों को नुकसान पहुँचाती है। यह धार्मिक स्वतंत्रता के समर्थन का दिखावा करती है, लेकिन यह गुपचुप पागलों की तरह परमेश्वर का प्रतिरोध करती है और उसके चुने हुए लोगों को पकड़ती और सताती है। सीसीपी को वास्तव में कोसना और धिक्कारना चाहिए! परमेश्वर पृथ्वी पर सत्य व्यक्त करने, लोगों को शुद्ध करने और बचाने के लिए देह धारण करता है, लेकिन सीसीपी पागलों की तरह बाधा और गड़बड़ी पैदा करती है। परमेश्वर के चुने हुए लोगों को पकड़ने और सताने और उसके कार्य को मिटाने के लिए सीसीपी ने कई वर्षों से न केवल सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को दबाने के लिए विभिन्न विशेष अभियान चलाए हैं, बल्कि यह सेलफोन ट्रैकिंग का भी उपयोग करती है और सड़कों पर इलेक्ट्रॉनिक निगरानी स्थापित करती है ताकि भाई-बहनों की निगरानी कर उन्हें पकड़ सके, इस कारण कई भाई-बहन बेघर और अपने परिवारों से अलग हो गए हैं, जबकि कई भाई-बहनों को पकड़ लिया गया है, जेल में यातनाएँ दी गई हैं और यहाँ तक कि मार भी डाला गया है। सीसीपी मसीहियों के परिवारों को काम करने और स्कूल जाने के अधिकारों से भी वंचित करती है और पारिवारिक टकराव को उकसाती और भड़काती है जिसके कारण अनगिनत परिवार बिखर गए हैं। सीसीपी वास्तव में बहुत घृणित और बुरी है! कभी मेरा जो हँसता-खेलता परिवार था वह सीसीपी की अफवाहों और दमन के कारण टूटकर बिखर गया है। सीसीपी एक राक्षसी समूह है जो परमेश्वर का विरोध करता है, लोगों को नुकसान पहुँचाता है और उन्हें निगल जाता है! ये उत्पीड़न सहन कर मैंने यह भी देखा कि परमेश्वर की बुद्धि शैतान की चालों के आधार पर काम करती है। सीसीपी के अंधाधुंध जुल्मों के बावजूद परमेश्वर के चुने हुए लोगों का उसका अनुसरण करने का संकल्प डिगा नहीं है। इसके बजाय अधिक से अधिक लोगों ने परमेश्वर का अंत के दिनों का उद्धार स्वीकार किया है और परमेश्वर का अंत के दिनों का सुसमाचार कई बाहरी देशों में फैल चुका है। जो परमेश्वर से आता है वह निश्चित रूप से फलेगा-फूलेगा! मैंने सोचा कि कैसे बहुत से लोग अभी भी सीसीपी की अफवाहों के कारण अंधे बने हुए हैं, शैतान की सत्ता के अधीन जी रहे हैं और परमेश्वर के अंत के दिनों के उद्धार को नहीं जानते। जो लोग परमेश्वर के प्रकटन के लिए लालायित हैं, उनके साथ परमेश्वर का अंत के दिनों का सुसमाचार साझा करना मेरी जिम्मेदारी और दायित्व है। मैंने परमेश्वर के सामने संकल्प किया कि मैं उसका अंत तक अनुसरण करूँगी और उसके प्रेम का बदला चुकाने के लिए सुसमाचार का प्रसार करूँगी। बाद में मैंने अपने पति से तलाक की प्रक्रिया पूरी की।

अब जब मैं अपने अनुभवों को पीछे मुड़कर देखती हूँ, तो यद्यपि मैंने अपना परिवार खो दिया है और मेरा जीवन पहले जैसा आरामदायक नहीं रहा और मैं अपने दिन-रात अपने बच्चे के साथ नहीं बिता सकती, लेकिन मैं कुछ सत्य समझ चुकी हूँ और मैंने विवेक क्षमता हासिल कर ली है। आज परमेश्वर के सामने आकर एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाने और परमेश्वर के अंत के दिनों के उद्धार का प्रचार और इसकी गवाही देने में सक्षम होना वास्तव में मूल्यवान और अर्थपूर्ण है! मैं अपनी पसंद पर कभी नहीं पछताऊँगी।

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