14. अपने कर्तव्य में धूर्त होने का अंजाम
जुलाई 2023 में मैं कलीसिया के लिए वीडियो बनाया करती थी। लेकिन चूँकि मुझे अभ्यास करते हुए ज्यादा समय नहीं हुआ था और मेरा तकनीकी कौशल औसत दर्जे का था, इसलिए मेरी साथी बहन जियांग शिन कुछ मुश्किल वीडियो सँभालती थी, जबकि मैं सिर्फ साधारण और आसानी से बनने वाले वीडियो पर ही काम करती थी। मैंने मन ही मन सोचा, “मैंने अभी-अभी शुरुआत की है, मैं बहुत से सिद्धांत नहीं जानती हूँ और मेरा कौशल बहुत अच्छा नहीं है, लेकिन चूँकि जियांग शिन यहाँ है, इसलिए मैं समय के साथ धीरे-धीरे सीख जाऊँगी।” थोड़े अध्ययन के बाद मैंने कुछ प्रगति की, लेकिन जब भी मुझे कोई ऐसा वीडियो दिखाई देता जिसे बनाना मुश्किल होता तो मैं उसे न बनाने का बहाना बनाती थी, सोचती थी, “ऐसा वीडियो बनाना बहुत मुश्किल होगा, इसके लिए बहुत कोशिश करनी पड़ेगी और बहुत कीमत चुकानी होगी!” चूँकि मैंने सिर्फ आसान वीडियो बनाने का विकल्प चुना था, इसलिए काम आरामदायक था और मुझे कोई दबाव महसूस नहीं होता था। मैंने देखा कि जियांग शिन लगातार शोध, खोज और विचार करती रहती है तो मुझे लगा, “जियांग शिन मुझसे ज्यादा कुशल है और उसे भी कभी-कभी शोध करने की जरूरत पड़ती है, अगर मैं वो वीडियो बनाऊँगी तो मुझे और भी ज्यादा कीमत चुकानी पड़ेगी। यह बहुत मुश्किल और थकाऊ होगा! मैं सिर्फ साधारण वीडियो बनाया करूँगी।” इस तरह मैं कुछ समय तक बिना किसी दबाव के अपना कर्तव्य निभाती रही। बाद में जब जियांग शिन को वीडियो बनाने में मुश्किलें आईं तो वह मुझसे शोध करने और समस्याओं पर चर्चा करने के लिए कहने लगी। मुझे यह वाकई मुश्किल और झुँझलाने वाला काम लगा, इसलिए मैंने इसमें मदद की ही नहीं। मैं सारे मुश्किल वीडियो जियांग शिन की ओर ठेलती रही और खुद चुनौती स्वीकारने की जरा भी कोशिश नहीं की। जब मैंने देखा कि बहन जियांग शिन पर बहुत सारा काम आ गया है और वह बहुत दबाव में है, तब भी मैंने उसकी मदद नहीं करनी चाही। समय के साथ मैं अपने कर्तव्य में सुस्त पड़ गई और मैंने लंबे समय तक कोई प्रगति नहीं की। मुझे लगा कि मेरी अवस्था ठीक नहीं है और मैंने खुद से पूछा, “मैं हमेशा बहाने बनाती हूँ कि मैं नई हूँ और इस काम को ठीक से नहीं जानती हूँ, इसलिए मैं काम से बचती रहती हूँ, बहन जियांग शिन पर सारे मुश्किल वीडियो थोप देती हूँ, कीमत नहीं चुकाना चाहती हूँ या मेहनत नहीं करना चाहती हूँ। क्या मैं मुश्किलों से भाग नहीं रही हूँ और विपत्ति के सामने झुक रही हूँ?”
बाद में मैंने परमेश्वर के प्रासंगिक वचन देखे। परमेश्वर कहता है : “कर्तव्य करते समय, लोग हमेशा हल्का काम चुनते हैं, ऐसा काम जो थकाए नहीं और जिसमें बाहर जाकर चीजों का सामना करना शामिल न हो। इसे आसान काम चुनना और कठिन कामों से भागना कहा जाता है, और यह दैहिक सुखों के लालच की अभिव्यक्ति है। और क्या? (अगर कर्तव्य थोड़ा कठिन, थोड़ा थका देने वाला हो, अगर उसमें कीमत चुकानी पड़े, तो हमेशा शिकायत करना।) (भोजन और वस्त्रों की चिंता और दैहिक आनंदों में लिप्त रहना।) ये सभी दैहिक सुखों के लालच की अभिव्यक्तियाँ हैं। जब ऐसे लोग देखते हैं कि कोई कार्य बहुत श्रमसाध्य या जोखिम भरा है, तो वे उसे किसी और पर थोप देते हैं; खुद वे सिर्फ आसान काम करते हैं, और यह कहते हुए बहाने बनाते हैं कि उनकी काबिलियत कम है, कि उनमें उस कार्य को करने की क्षमता नहीं है और वे उस कार्य का बीड़ा नहीं उठा सकते—जबकि वास्तव में, इसका कारण यह होता है कि वे दैहिक सुखों का लालच करते हैं। ... क्या दैहिक सुखों के भोग में लिप्त लोग कोई कर्तव्य करने के लिए उपयुक्त होते हैं? जैसे ही कोई उनसे कर्तव्य करने या कीमत चुकाने और कष्ट सहने की बात करता है, तो वे इनकार में सिर हिलाते रहते हैं। उन्हें बहुत सारी समस्याएँ होती हैं, वे शिकायतों से भरे होते हैं, और वे नकारात्मकता से भरे होते हैं। ऐसे लोग निकम्मे होते हैं, वे अपना कर्तव्य करने की योग्यता नहीं रखते, और उन्हें हटा दिया जाना चाहिए” (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (2))। परमेश्वर उजागर करता है कि कुछ लोग हमेशा आसान काम चुनते हैं और अपने कर्तव्य निभाते हुए मुश्किल कामों से बचते हैं और जब भी वे मुश्किल काम देखते हैं तो उन्हें दूसरों पर थोप देते हैं और अपने लिए सिर्फ आसान और साधारण काम ही चुनते हैं। ऐसे लोग शारीरिक सुख-सुविधाओं में लिप्त रहते हैं और कर्तव्य निभाने के लायक नहीं होते। आत्म-चिंतन करने पर मुझे एहसास हुआ कि मैंने भी यही व्यवहार किया था। जियांग शिन के साथ साझेदारी करते समय मैंने देखा था कि वैसे जटिल वीडियो बनाने के लिए खोज, चिंतन, शोध करने और कीमत चुकाने की जरूरत होती है और मुझे यह झुँझलाहट और बिल्कुल सिरदर्द वाला काम लगा, इसलिए मैंने इन चीजों को जियांग शिन पर थोपने के लिए अनुभवहीन होने का बहाना बनाया। मैंने सिर्फ साधारण और बनाने में आसान वीडियो चुने, इसलिए मुझे कोई दबाव महसूस नहीं हुआ और मैं तनावमुक्त रही। बाद में जब जियांग शिन को वीडियो बनाने में मुश्किलें आईं और चीजों पर शोध और चर्चा करने के लिए मेरी मदद की जरूरत पड़ी तो मुझे यह झुँझलाहट भरा काम लगा और मैंने कोशिश करने की जहमत नहीं उठानी चाही। अपने कर्तव्य निभाते हुए मैंने वे कार्य दूसरों पर थोप दिए, जिनमें मेहनत और बलिदान की जरूरत थी, मैं आराम में लिप्त रही और धूर्तता और टालमटोल करती रही। ऐसे व्यवहार से मैंने अपनी सारी सत्यनिष्ठा और गरिमा गँवा दी। इस तरह से अपना कर्तव्य निभाने पर परमेश्वर द्वारा मुझे पक्का ठुकराकर निकाल दिया जाएगा। सिर्फ इस बिंदु पर मुझे थोड़ा डर लगा। मैं प्रेरणाहीन, लापरवाह और दैहिक सुखों में लिप्त नहीं रह सकती थी।
बाद में एक अनुभवात्मक गवाही वीडियो देखते समय मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश देखा जो मेरी अवस्था के अनुकूल था। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, ‘क्योंकि जिसके पास है, उसे दिया जाएगा, और उसके पास बहुत हो जाएगा; पर जिसके पास कुछ नहीं है, उससे जो कुछ उसके पास है, वह भी ले लिया जाएगा’ (मत्ती 13:12)। इन वचनों का क्या अर्थ है? इनका अर्थ है कि यदि तुम अपना कर्तव्य या कार्य तक पूरा नहीं करते या उनके प्रति समर्पित नहीं होते, तो परमेश्वर वह सब तुमसे ले लेगा जो कभी तुम्हारा था। ‘ले लेने’ का क्या अर्थ है? इससे लोगों को कैसा महसूस होता है? हो सकता है कि तुम उतना प्राप्त करने में भी नाकाम रहो जो तुम अपनी क्षमता और हुनर से कर सकते थे, और तुम कुछ महसूस नहीं करते, और बस एक गैर-विश्वासी जैसे हो। यही है परमेश्वर द्वारा सब ले लिया जाना। यदि तुम अपने कर्तव्य में चूक जाते हो, कोई कीमत नहीं चुकाते, और तुम ईमानदार नहीं हो, तो परमेश्वर वह सब छीन लेगा जो कभी तुम्हारा था, वह तुमसे अपना कर्तव्य निभाने का तुम्हारा अधिकार वापस ले लेगा, वह तुम्हें यह अधिकार नहीं देगा। चूँकि परमेश्वर ने तुम्हें हुनर और क्षमता दी, लेकिन तुमने अपना कर्तव्य ठीक से नहीं निभाया, परमेश्वर के लिए खुद को नहीं खपाया, या कीमत नहीं चुकाई, उसे पूरे दिल से नहीं किया, इसलिए परमेश्वर न केवल तुम्हें आशीष नहीं देगा, बल्कि वह भी छीन लेगा जो कभी तुम्हारे पास था। परमेश्वर लोगों को गुण प्रदान करता है, उन्हें विशेष हुनर और साथ ही विवेक और बुद्धि देता है। लोगों को इन गुणों का इस्तेमाल कैसे करना चाहिए? तुम्हें अपने विशेष हुनर, गुणों, विवेक और बुद्धि को अपने कर्तव्य के प्रति समर्पित करना चाहिए। तुम्हें अपने कर्तव्य में अपना दिल इस्तेमाल करना चाहिए और जो कुछ भी तुम जानते हो, जो कुछ भी तुम समझते हो, और जो कुछ भी तुम हासिल कर सकते हो, उसे लागू करना चाहिए। ऐसा करके तुम धन्य हो जाओगे। परमेश्वर का आशीष पाने का क्या अर्थ है? इससे लोगों को क्या महसूस होता है? यह कि उन्हें परमेश्वर ने प्रबुद्ध कर उनका मार्गदर्शन किया है, और अपना कर्तव्य निभाते हुए उनके पास एक मार्ग होता है। दूसरे लोगों को यह लग सकता है कि तुम्हारी क्षमता और तुम्हारे द्वारा सीखी गई चीजें तुम्हें काम पूरे करने में सक्षम नहीं बना सकतीं—लेकिन अगर परमेश्वर कार्य करके तुम्हें प्रबुद्ध कर देता है, तो तुम न केवल उन चीजों को समझने और करने में, बल्कि उन्हें अच्छी तरह से करने में सक्षम हो जाओगे। यहाँ तक कि अंत में तुम मन ही मन सोचोगे, ‘मैं इतना कुशल तो नहीं हुआ करता था, लेकिन अब मेरे अंदर बहुत सारी अच्छी चीजें हैं—वे सभी सकारात्मक हैं। मैंने कभी इन चीजों का अध्ययन नहीं किया, लेकिन अब मैं अचानक इन्हें समझता हूँ। मैं अचानक इतना बुद्धिमान कैसे हो गया? मैं अब इतनी सारी चीजें कैसे कर सकता हूँ?’ तुम इसे स्पष्ट नहीं कर पाओगे। यह परमेश्वर का प्रबोधन और आशीष है; परमेश्वर इसी तरह लोगों को आशीष देता है। यदि तुम लोग अपना कर्तव्य निभाते या काम करते समय ऐसा महसूस नहीं करते, तो तुम पर परमेश्वर का आशीष नहीं है। यदि तुम्हें अपना काम हमेशा निरर्थक लगता है, अगर ऐसा लगता है कि करने के लिए कुछ नहीं है, और तुम योगदान नहीं दे पाते, यदि तुम कभी प्रबुद्धता प्राप्त नहीं करते, और तुम महसूस करते हो कि इस्तेमाल करने के लिए तुम्हारे पास मेधा या बुद्धि नहीं है, तो इसका मतलब समस्या है। यह दर्शाता है कि तुम्हारे पास अपना कर्तव्य निभाने के लिए सही प्रेरणा या सही मार्ग नहीं है, और परमेश्वर इसे नहीं स्वीकारता, और तुम्हारी स्थिति असामान्य है” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, केवल एक ईमानदार व्यक्ति ही सच्चे मनुष्य की तरह जी सकता है)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मुझे एहसास हुआ कि वीडियो बनाने में मेरी हाल की प्रगति की कमी मुख्य रूप से इसलिए थी क्योंकि अपने कर्तव्य के प्रति मेरा रवैया गलत था। मैं परेशान होने और थकने से डरती थी और मैं अपने कर्तव्य में कोशिश करने के लिए तैयार नहीं थी, सिर्फ आसान काम चुनती थी। मैं अपने कर्तव्य में अपना दिमाग और ऊर्जा नहीं लगाती थी और हमेशा धूर्तता और टालमटोल करती थी। मेरा अपने कर्तव्य को लेकर जो रवैया था उससे घृणा कर परमेश्वर ने मुझसे वह भी छीन लिया जो मेरे पास पहले से था। मैंने अपने कर्तव्य में कोई प्रगति नहीं की थी और साधारण वीडियो भी अच्छे से नहीं बना पाई थी। अगर मैंने पश्चात्ताप न किया तो मैं शायद अपने कर्तव्य से हाथ धो बैठूँगी। मैंने उन दिनों के बारे में आत्मचिंतन किया जब मैं नए सदस्यों को सींचने का अभ्यास किया करती थी, शुरुआत में कई ऐसे सिद्धांत भी थे जिन्हें मैं समझती नहीं थी, लेकिन मेरी साझेदार बहन ने मेरे साथ संगति की और मेरी मदद की। जब भी मुझे मुश्किलें आती थीं तो मैं उससे पूछती थी और मैं चीजों का सारांश बनाती थी, अध्ययन करती थी और अक्सर परमेश्वर से प्रार्थना करती थी। उस समय मैंने तेजी से प्रगति की और अपने कर्तव्य में प्रभावी रही। आज से तुलना करूँ तो भले ही मुझे वीडियो बनाने का अभ्यास करते हुए ज्यादा समय नहीं हुआ है, फिर भी कुछ ऐसी तकनीकें हैं जिन्हें मैं मेहनत और अध्ययन करने से बखूबी सीख सकती हूँ। लेकिन मैं भौतिक सुख-सुविधाओं में लिप्त हो गई, मुझमें प्रगति की इच्छा नहीं थी और मैं कीमत नहीं चुकाना चाहती थी, इसलिए मेरे पेशेवर कौशल में सुधार नहीं हुआ था और मैं अपने कर्तव्य निर्वहन में परमेश्वर का मार्गदर्शन नहीं देख पाई थी। परमेश्वर लोगों के प्रति निष्पक्ष और धार्मिक है। अगर हम कीमत चुकाते हैं और अपने कर्तव्य में अपना दिल लगाते हैं तो हमें परमेश्वर का प्रबोधन और मार्गदर्शन मिलेगा और हम अपने जीवन प्रवेश और पेशेवर कौशल दोनों में प्रगति करेंगे। लेकिन अगर हम अपने कर्तव्य में दिल नहीं लगाते और धूर्तता और टालमटोल करते हैं तो आखिरकार हम बेनकाब हो जाएँगे और समय के साथ वह हासिल नहीं कर पाएँगे जो हम अन्यथा हासिल कर सकते थे। इस पर आत्म-चिंतन करते हुए मुझे बहुत अपराध बोध और पछतावा हुआ। परमेश्वर का इरादा है कि मैं कीमत चुकाऊँ और अपने कर्तव्य में अपना दिल लगाऊँ, अपने कर्तव्य में अपना काम करूँ और सुसमाचार फैलाने और परमेश्वर की गवाही देने के लिए बेहतर वीडियो बनाऊँ। लेकिन मैं आलसी बनी रही और आराम में लिप्त थी, मैंने अपने कर्तव्य में वाकई कीमत नहीं चुकाई थी और वह नहीं किया जो मुझे करना चाहिए था। मैंने परमेश्वर की उम्मीदों पर पानी फेर दिया था। मेरे अंदर वाकई मानवता की कमी थी और मैं इस बात से अनजान थी कि मेरे लिए क्या अच्छा है! इसका एहसास होने पर मैंने रोते हुए परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मुझे ऐसे रवैये के साथ अपना कर्तव्य नहीं निभाना चाहिए था। मैं वाकई भरोसे के लायक नहीं हूँ! परमेश्वर, मैं तुमसे पश्चात्ताप करने को तैयार हूँ। मेरे दिल की पड़ताल करो और मुझे मार्गदर्शन और मदद दो।”
इसके बाद मैंने फिर से यह समझने की कोशिश की कि मुश्किलों का सामना करने पर मैं हमेशा पीछे क्यों हट जाती थी। मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “आज, यद्यपि परमेश्वर के कार्य का अगला कदम अभी शुरू होना बाकी है, फिर भी तुमसे जो कुछ अपेक्षित है और तुम्हें जिन्हें जीने के लिए कहा जाता है, उनमें कुछ भी अतिरिक्त नहीं है। इतना सारा कार्य है, इतने सारे सत्य हैं; क्या वे इस योग्य नहीं हैं कि तुम उन्हें जानो? क्या परमेश्वर की ताड़ना और न्याय तुम्हारी आत्मा को जागृत करने में असमर्थ हैं? क्या परमेश्वर की ताड़ना और न्याय तुममें खुद के प्रति नफरत पैदा करने में असमर्थ हैं? क्या तुम शैतान के प्रभाव में जी कर, और शांति, आनंद और थोड़े-बहुत दैहिक सुख के साथ जीवन बिताकर संतुष्ट हो? क्या तुम सभी लोगों में सबसे अधिक निम्न नहीं हो? उनसे ज्यादा मूर्ख और कोई नहीं है जिन्होंने उद्धार को देखा तो है लेकिन उसे प्राप्त करने का प्रयास नहीं करते; वे ऐसे लोग हैं जो पूरी तरह से देह-सुख में लिप्त होकर शैतान का आनंद लेते हैं। तुम्हें लगता है कि परमेश्वर में अपनी आस्था के लिए तुम्हें चुनौतियों और क्लेशों या कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ेगा। तुम हमेशा निरर्थक चीजों के पीछे भागते हो, और तुम जीवन के विकास को कोई अहमियत नहीं देते, बल्कि तुम अपने फिजूल के विचारों को सत्य से ज्यादा महत्व देते हो। तुम कितने निकम्मे हो! तुम सूअर की तरह जीते हो—तुममें और सूअर और कुत्ते में क्या अंतर है? जो लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते, बल्कि शरीर से प्यार करते हैं, क्या वे सब पूरे जानवर नहीं हैं? क्या वे मरे हुए लोग जिनमें आत्मा नहीं है, चलती-फिरती लाशें नहीं हैं? तुम लोगों के बीच कितने सारे वचन कहे गए हैं? क्या तुम लोगों के बीच केवल थोड़ा-सा ही कार्य किया गया है? मैंने तुम लोगों के बीच कितनी आपूर्ति की है? तो फिर तुमने इसे प्राप्त क्यों नहीं किया? तुम्हें किस बात की शिकायत है? क्या यह बात नहीं है कि तुमने इसलिए कुछ भी प्राप्त नहीं किया है क्योंकि तुम देह से बहुत अधिक प्रेम करते हो? क्योंकि तुम्हारे विचार बहुत ज्यादा निरर्थक हैं? क्योंकि तुम बहुत ज्यादा मूर्ख हो? ... तुम जैसा डरपोक इंसान, जो हमेशा दैहिक सुख के पीछे भागता है—क्या तुम्हारे अंदर एक दिल है, क्या तुम्हारे अंदर एक आत्मा है? क्या तुम एक पशु नहीं हो? मैं बदले में बिना कुछ मांगे तुम्हें एक सत्य मार्ग देता हूँ, फिर भी तुम उसका अनुसरण नहीं करते। क्या तुम उनमें से एक हो जो परमेश्वर पर विश्वास करते हैं? मैं तुम्हें एक सच्चा मानवीय जीवन देता हूँ, फिर भी तुम अनुसरण नहीं करते। क्या तुम कुत्ते और सूअर से भिन्न नहीं हो? सूअर मनुष्य के जीवन की कामना नहीं करते, वे शुद्ध होने का प्रयास नहीं करते, और वे नहीं समझते कि जीवन क्या है। प्रतिदिन, उनका काम बस पेट भर खाना और सोना है। मैंने तुम्हें सच्चा मार्ग दिया है, फिर भी तुमने उसे प्राप्त नहीं किया है : तुम्हारे हाथ खाली हैं। क्या तुम इस जीवन में एक सूअर का जीवन जीते रहना चाहते हो? ऐसे लोगों के जिंदा रहने का क्या अर्थ है? तुम्हारा जीवन घृणित और ग्लानिपूर्ण है, तुम गंदगी और व्यभिचार में जीते हो और किसी लक्ष्य को पाने का प्रयास नहीं करते हो; क्या तुम्हारा जीवन अत्यंत निकृष्ट नहीं है? क्या तुम परमेश्वर की ओर देखने का साहस कर सकते हो? यदि तुम इसी तरह अनुभव करते रहे, तो क्या केवल शून्य ही तुम्हारे हाथ नहीं लगेगा? तुम्हें एक सच्चा मार्ग दे दिया गया है, किंतु अंततः तुम उसे प्राप्त कर पाओगे या नहीं, यह तुम्हारी व्यक्तिगत खोज पर निर्भर करता है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान)। जब मैंने “डरपोक” और “जानवर” जैसे शब्द पढ़े, मुझे अपने दिल में तकलीफ हुई। मैं बिल्कुल वैसी ही इंसान थी जैसा परमेश्वर उजागर करता है, जो देह को संजोती है और सत्य का अनुसरण नहीं करती। अपने कर्तव्य निभाने में मैं किसी भी चीज के लिए कीमत चुकाने की इच्छा के बिना दैहिक आराम में लिप्त थी, मैं हमेशा आसान और साधारण काम करना चाहती थी और बस हर दिन उलझन में रहती थी। मैं एक सुअर की तरह थी, बस दिन भर खाती-पीती और सोती रहती थी, मेरे पास अनुसरण करने के लिए कोई विचार या लक्ष्य नहीं था। अपने कर्तव्य में आगे बढ़ने के लिए मुझमें कोई जिम्मेदारी या इच्छा नहीं थी और मैं हमेशा अपनी देह के आगे समर्पण कर देती थी। ऐसा इसलिए था क्योंकि मैंने हमेशा शैतानी जहरों जैसे “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए” और “चार दिन की जिंदगी है, मौज कर लो,” को जीने के नियम माना था। परमेश्वर में विश्वास करने से पहले मैं यथास्थिति से संतुष्ट थी, आराम चाहती थी और कोई महत्वाकांक्षा नहीं रखती थी। मैं सोचती थी कि चार दिन की जिंदगी है, इसलिए मुझे अपने लिए जिंदगी को थकाऊ या मुश्किल बनाने के बजाय इस दुनिया में हर दिन मौज करनी चाहिए। परमेश्वर में विश्वास करने के बाद भी मैं अपने कर्तव्य निर्वहन में इसी नजरिए पर कायम रही। जब मुझे मुश्किल वीडियो मिलते थे तो मैं उन्हें जियांग शिन पर थोप देती थी और अपने लिए आसान काम खोजती थी। बाद में जब बहन का काम बहुत बढ़ गया और वह अपने कर्तव्य में बेहद दबाव में आ गई तो उसका बोझ साझा करने के लिए राजी न होकर मैंने उससे कन्नी काट ली और आरामखोरी की। मैंने सिर्फ अपनी देह के बारे में सोचा, बहन की मुश्किलों या कलीसिया के काम की परवाह नहीं की। मैं इतनी स्वार्थी और नीच थी! इस पर आत्म-चिंतन करते हुए मुझे एहसास हुआ कि शैतान द्वारा भरे गए इन जहरों ने मुझे भ्रष्ट और पतित बना दिया है, मुझमें प्रगति की कोई इच्छा नहीं है और मैं बेकार की जिंदगी जी रही हूँ। मैं निश्चित रूप से इस तरह के रवैये के साथ अपना कर्तव्य निभाते हुए लंबे समय तक नहीं टिक पाऊँगी और आखिरकार मुझे परमेश्वर द्वारा बेनकाब कर निकाल दिया जाएगा।
बाद में परमेश्वर के वचनों से मुझे यह समझ में आया कि वह लोगों से क्या अपेक्षाएँ करता है। मैंने परमेश्वर के वचनों में यह पढ़ा : “मान लो कि कलीसिया तुम्हारे लिए किसी नियत कार्य की व्यवस्था करती है, और तुम कहते हो, ‘... कलीसिया मुझे जो भी काम सौंपेगी, मैं उसे पूरे दिल और ताकत से करूँगा। अगर कुछ ऐसा हुआ जो मुझे समझ न आए, या अगर कोई समस्या सामने आई, तो मैं परमेश्वर से प्रार्थना करूँगा, सत्य की तलाश करूँगा, सत्य सिद्धांतों के अनुसार समस्याओं का समाधान करूँगा, और नियत कार्य अच्छी तरह से करूँगा। मेरा जो भी कर्तव्य हो, मैं उसे अच्छी तरह से करने और परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए अपना सब-कुछ इस्तेमाल करूँगा। मैं जो कुछ भी हासिल कर सकता हूँ, उसके लिए मैं वह जिम्मेदारी उठाने का भरसक प्रयास करूँगा जो मुझे उठानी चाहिए, और कम से कम, मैं अपने जमीर और विवेक के खिलाफ नहीं जाऊँगा, लापरवाह नहीं होऊँगा, शातिर नहीं बनूँगा और कामचोरी नहीं करूँगा, और ना ही दूसरों की मेहनत के फलों में लिप्त होऊँगा। मैं जो कुछ भी करूँगा, वह जमीर के मानक से नीचे नहीं होगा।’ यह स्व-आचरण का न्यूनतम मानक है, और जो व्यक्ति इस तरह से अपना कर्तव्य करता है, वह जमीर और सूझ-बूझ वाला व्यक्ति माना जा सकता है। अपना कर्तव्य करते समय तुम्हें कम से कम साफ जमीर वाला व्यक्ति होना चाहिए, और तुम्हें कम से कम दिन में तीन बार भोजन करने के लायक होना चाहिए और मुफ्तखोर नहीं होना चाहिए। इसे जिम्मेदारी की भावना होना कहते हैं। चाहे तुम्हारी क्षमता ज्यादा हो या कम, और चाहे तुम सत्य समझते हो या नहीं, जो भी हो, तुम्हारा यह रवैया होना चाहिए : ‘चूँकि यह कार्य मुझे करने के लिए दिया गया था, इसलिए मुझे इसे गंभीरता से लेना चाहिए; मुझे इसे अपनी जिम्मेदारी बनानी चाहिए, और मुझे इसे अच्छी तरह से करने के लिए अपना पूरा दिल और ताकत लगा देनी चाहिए। रही यह बात कि मैं इसे पूर्णतया अच्छी तरह से कर सकता हूँ या नहीं, तो मैं कोई गारंटी देने की कल्पना तो नहीं कर सकता, लेकिन मेरा रवैया यह है कि मैं इसे अच्छी तरह से करने के लिए अपना भरसक प्रयास करूँगा, और मैं यकीनन इसके बारे में लापरवाह नहीं होऊँगा। अगर काम में कोई समस्या आती है, तो मुझे जिम्मेदारी लेनी चाहिए, और सुनिश्चित करना चाहिए कि मैं इससे सबक सीखूँ और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से करूँ।’ यह सही रवैया है” (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (8))। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मुझे अभ्यास का मार्ग मिला। परमेश्वर ने यह कर्तव्य निभाने के लिए मेरा उत्कर्ष किया था, इसलिए इसे ठीक से निभाने में मुझे अपना दिल झोंकना था। मुश्किलों का सामना होने पर मैं धूर्तता नहीं बरत सकती थी या टालमटोल नहीं कर सकती थी। मुझे अपना कर्तव्य अच्छे से निभाने के लिए वाकई कीमत चुकाने और अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करने की जरूरत थी। मैंने अभी-अभी वीडियो बनाने का अभ्यास शुरू किया था और मैं इसमें कुशल नहीं थी, इसलिए आगे बढ़ते हुए मुझे अपना पेशेवर कौशल बेहतर बनाने के लिए कड़ी मेहनत करने की जरूरत थी। मुश्किल वीडियो सामने आने पर अगर मैं उन्हें बनाने लायक हूँ तो मुझे वे स्वीकार करने चाहिए या मुझे उन पर जियांग शिन के साथ साझेदारी करनी चाहिए, वाकई कीमत चुकानी चाहिए, उन चीजों के बारे में पूछना चाहिए जो मुझे समझ में नहीं आतीं और थोड़ा-थोड़ा करके सीखना चाहिए। इस तरह मैं सीखे गए कौशल को अपने कर्तव्य में लागू करने में सक्षम हो सकती हूँ।
एक बार मैं फिर से उस मुश्किल वीडियो से पल्ला झाड़कर जियांग शिन को सौंपना चाहती थी, जिसे मैं बना रही थी, लेकिन मुझे पश्चात्ताप करने के लिए परमेश्वर से की गई अपनी प्रार्थना याद आ गई और मुझे एहसास हुआ कि इस वीडियो में मुश्किलों का सामना होने पर मैं फिर से जिम्मेदारी से बचना चाहती हूँ। क्या मैं अभी भी कीमत चुकाने से डर नहीं रही हूँ और प्रगति का प्रयास करने से कतरा नहीं रही हूँ? इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे कहा कि वह मेरी अगुआई करे ताकि मैं अपनी देह के खिलाफ विद्रोह करूँ और वाकई कीमत चुकाऊँ। मैंने यह भी सोचा कि कैसे परमेश्वर को उम्मीद है कि मैं इस मुश्किल का सामना करते समय अपनी देह के खिलाफ विद्रोह कर सकती हूँ और सत्य का अभ्यास कर सकती हूँ और वीडियो बनाकर अपना कौशल सुधार सकती हूँ। परमेश्वर का इरादा समझते हुए मैंने लगन से जानकारी खोजी और कुछ तकनीकें सीखीं और आखिकार मैंने सफलतापूर्वक वीडियो पूरा किया। भले ही वीडियो बनाने में कुछ समय और मेहनत लगी, लेकिन मेरे कौशल में सुधार हुआ। परमेश्वर के मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद!