42. एक बुरे इंसान को पहचान कर मैंने क्या पाया

नील, जापान

अगस्त 2015 में मुझे पता चला कि सिस्टर निकोल हटा दी गई है, मुख्य रूप से इसलिए कि उसने वास्तविक काम नहीं किया और प्रतिष्ठा और हैसियत के लिए दूसरों के साथ प्रतिस्पर्धा की, साथ ही अन्य भाई-बहनों के सामने अपने साथी की आलोचना की, जिससे कलीसिया का काम बाधित हुआ। बर्खास्त किए जाने के बाद संगति और काट-छाँट के माध्यम से निकोल ने अपने अपराधों और भ्रष्ट स्वभाव के बारे में कुछ समझ हासिल की। उसने बड़ा पछतावा दिखाया और खुद को दोष दिया, और पश्चात्ताप करने के लिए तैयार हो गई। मेरी एक साथी अलीना पहले निकोल की साथी थी। जब उसने सुना कि निकोल को नकली अगुआ ठहराया गया है, तो उसने कहा, “अगुआ बनने के बाद निकोल खुद को सबसे ऊपर रखती थी। वह मेरे साथ काफी रूखी और घमंडी, और बहुत अहंकारी थी। प्रतिष्ठा हासिल करने के लिए उसने गुट भी बनाए और ईर्ष्यापूर्ण विवादों में लिप्त रहती थी। सिर्फ मसीह-विरोधी ही ऐसे काम कर सकता है। उसे नकली अगुआ कहना काफी नहीं है; उसे मसीह-विरोधी के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए।” उसने ऊपरी अगुआओं से निकोल को पुनर्वर्गीकृत करने के लिए कहने की योजना भी बनाई। एक अन्य साथी रेचल ने भी अलीना की बात सुनकर उससे सहमति जताई। उस समय मैंने सोचा, “निकोल अकड़ू और दूसरों के प्रति उदासीन है और गंभीर रूप से अहंकारी स्वभाव की है, लेकिन उसने कोई बड़ी बुराई नहीं की, न ही वह लगातार व्यवधान और गड़बड़ी पैदा कर रही थी, और बदले जाने के बाद वह पश्चात्ताप करने, आत्मचिंतन करने और आत्म-ज्ञान प्राप्त करने में सक्षम रही। वह उन लोगों में से नहीं है, जो सत्य बिल्कुल नहीं स्वीकारते। अगर हम सिर्फ उसके द्वारा प्रकट की गई सीमित भ्रष्टता और एक-दो क्षणिक अपराधों के आधार पर उसे मसीह-विरोधी के रूप में वर्गीकृत करते हैं, तो क्या यह बहुत ज्यादा नहीं हो जाएगा? उसे गलत तरीके से वर्गीकृत करना एक अच्छी इंसान के साथ अन्याय करना होगा।” इसलिए मैंने अपने विचार व्यक्त कर दिए। लेकिन अलीना ने न सिर्फ उन्हें अस्वीकार किया, बल्कि यह भी कहा : “तुम निकोल का कुछ व्यवहार नहीं समझते। हमें सिद्धांतों पर चलना चाहिए। हम किसी भी मसीह-विरोधी को छोड़ नहीं सकते।” उस समय मुझे थोड़ी बेचैनी महसूस हुई, लेकिन इसके बाद अलीना ने जो किया, उसने मुझे और भी हैरान कर दिया।

एक दिन अलीना ने रेचल को निकोल के बारे में मूल्यांकन एकत्र करने के लिए कहा और ऊपरी अगुआओं से परामर्श किए बिना उसने निजी तौर पर निकोल की पहचान और गहन विश्लेषण करने के लिए भाई-बहनों की एक सभा आयोजित कर ली। सभा में, अलीना ने विस्तार से दोहराया कि कैसे निकोल ने पहले अहंकारी तरीके से व्यवहार किया था, और विशेष रूप से इस बात पर जोर दिया कि निकोल ने मनमाने ढंग से काम किया था, लेकिन उसने यह नहीं बताया कि यह आदतन व्यवहार था या भ्रष्टता का एक क्षणिक उदाहरण था। न ही उसने यह उल्लेख किया कि क्या निकोल बाद में सत्य स्वीकारने में सक्षम रही और बाद में पश्चात्ताप कर पाई। एक बहन ने महसूस किया कि सभा निकोल को प्रताड़ित करने और उसकी निंदा करने के लिए आयोजित की गई लगती है, और बाद में उसने रेचल को सचेत किया : “ऐसा करके तुम असल में क्या हासिल करने की कोशिश कर रही हो? क्या यह परमेश्वर के इरादे के अनुरूप है? बिना पर्याप्त प्रमाण के तुम दूसरों को वर्गीकृत नहीं कर सकती। इससे परमेश्वर के नाराज होने की संभावना है।” रेचल यह सुनकर थोड़ा डर गई और उसने भी महसूस किया कि निकोल के साथ ऐसा व्यवहार करना थोड़ा ज्यादा हो सकता है, इसलिए उसने अपनी शंकाओं के बारे में मुझसे और अलीना से बात की। अलीना ने नाराज होकर उत्तर दिया, “हर बार जब हम सत्य का अभ्यास करना चाहते हैं, तो शैतान चीजें बाधित करता है।” अंत में उसने निकोल के व्यवहार का फिर से गहन विश्लेषण किया, और इस बात पर जोर दिया कि चूँकि निकोल अपने साथी से ईर्ष्या करती थी, इसलिए उसने एक गुट बनाकर उस साथी की आलोचना की और उसका दमन किया। उसने यह भी कहा कि निकोल ने मनमाने ढंग से और दूसरों के साथ परामर्श किए बिना काम किया और मनमर्जी से लोगों को बर्खास्त कर दिया। अलीना जिस व्यवहार की बात कर रही थी, उसकी गंभीरता देखकर रेचल आश्वस्त हो गई और उसने फिर से अलीना का पक्ष ले लिया। इस बार मैं भी थोड़ा अनिश्चित था। क्या अलीना और रेचल का विचार सही था? जब मैंने अलीना को मसीह-विरोधियों द्वारा गुट बनाए जाने को प्रकट करने वाले परमेश्वर के वचनों पर जोरदार ढंग से संगति करते सुना, तो मैं और भी भ्रमित हो गया और मुझे लगा कि उसका विश्लेषण सही हो सकता है। क्या ऐसा हो सकता है कि ऊपरी अगुआओं ने निकोल की ठीक से पहचान नहीं की, एक मसीह-विरोधी को नकली अगुआ समझकर उसे बने रहने दिया? और अगर ऐसा है, तो क्या मैं ऐसा व्यक्ति नहीं बन गया, जो एक मसीह-विरोधी को नहीं पहचान पाया और उसके पक्ष में बोलता रहा? इस हांलत में मैं अपना पद खो सकता हूँ। मुझ पर एक मसीह-विरोधी को बचाने का आरोप लगाया जा सकता है और अंत में पूरी तरह से बदनाम किया जा सकता है। शायद मेरे लिए अलीना और रेचल का पक्ष लेना ही बेहतर होगा। इस तरह, अगर मैं गलत भी हुआ, तो यह सिर्फ मेरी गलती नहीं होगी। यह गलत साबित होने और सारा दोष अपने सिर लेने से बेहतर होगा। मैं उनके दृष्टिकोण से सहमत होने ही वाला था कि मुझे थोड़ी बेचैनी महसूस हुई। मैंने सोचा कि चूँकि चीजें अभी तक स्पष्ट नहीं हैं, इसलिए मैं किसी और की राय यूँ ही नहीं स्वीकार सकता। अगर निकोल मसीह-विरोधी न हुई और मैंने उसका वर्गीकरण करने में आँख मूँदकर दूसरों का अनुसरण किया, तो यह मनमाने ढंग से किसी की निंदा करना होगा, जो ऐसी चीज है जो परमेश्वर को नाराज करेगी। ऐसा अपराध एक बार हो जाने के बाद कभी मिटाया नहीं जा सकता। अपनी अंतरात्मा के कचोटने पर मैंने अलीना के साथ न जाने का फैसला किया।

इसके बाद मैंने इस सत्य की खोज की कि मसीह-विरोधियों को कैसे पहचाना जाए। परमेश्वर के वचनों में मैंने पढ़ा : “जिस व्यक्ति में सिर्फ मसीह-विरोधी का स्वभाव है, उसे सार से मसीह-विरोधी होने की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। जो लोग मसीह-विरोधी के प्रकृति-सार वाले होते हैं, केवल वही असली मसीह-विरोधी होते हैं। निश्चित तौर पर दोनों की मानवता में अंतर होता है, और विभिन्न प्रकार की मानवता के शासन के अंतर्गत, सत्य के प्रति उन लोगों द्वारा अपनाए जाने वाले रवैये भी समान नहीं होते—और जब सत्य के प्रति लोगों द्वारा अपनाए जाने वाले रवैये समान नहीं होते, तो उनके द्वारा चुने गए रास्ते भी अलग होते हैं; और जब उनके रास्ते अलग होते हैं, उनके कार्यों के परिणामी सिद्धांतों और नतीजों में भी अंतर होता है। चूँकि सिर्फ मसीह-विरोधी के स्वभाव वाले व्यक्ति की अंतरात्मा काम कर रही होती है, उसमें विवेक होता है, गौरव की भावना होती है और सापेक्ष रूप से कहें तो, वह सत्य से प्रेम करता है, तो जब उनका भ्रष्ट स्वभाव उजागर होता है, तो मन ही मन वे उसकी भर्त्सना करते हैं। ऐसे में वे आत्मचिंतन कर खुद को जान सकते हैं, अपने भ्रष्ट स्वभाव और भ्रष्टता के प्रकाशन को स्वीकार सकते हैं, इस तरह वे दैहिक सुख और भ्रष्ट स्वभाव के विरुद्ध विद्रोह सकते हैं और सत्य का अभ्यास कर परमेश्वर के प्रति समर्पित हो सकते हैं। लेकिन मसीह-विरोधी के साथ ऐसा नहीं होता। चूँकि उनकी अंतरात्मा क्रियाशील नहीं होती या उनमें कर्तव्यनिष्ठा के भाव नहीं जगा होता, उनमें गौरव की भावना तो होती ही नहीं, इसलिए जब उनका भ्रष्ट स्वभाव प्रकट होता है, तो वे परमेश्वर के वचनों के अनुसार इसका आकलन नहीं करते कि उनका प्रकाशन सही है या गलत, वह भ्रष्ट स्वभाव है या सामान्य मानवता या वह सत्य के अनुरूप है या नहीं। वे इन बातों पर कभी विचार नहीं करते। तो उनका व्यवहार कैसा होता है? वे हमेशा यही मानते हैं कि उन्होंने जो भ्रष्ट स्वभाव दिखाया और जो रास्ता चुना है, वह सही है। उन्हें लगता है कि वे जो कुछ भी करते हैं वह सही है, जो कहते हैं वह सही है; वे अपने विचारों पर अड़े रहते हैं। और इसलिए, वे चाहे कितनी भी बड़ी गलती कर लें, चाहे उनका कितना ही भयंकर भ्रष्ट स्वभाव उजागर हो जाए, वे उस मामले की गंभीरता को नहीं पहचानते और निश्चित रूप से अपने द्वारा प्रकट किए गए भ्रष्ट स्वभाव को नहीं समझते। बेशक, वे अपनी इच्छाओं को दरकिनार नहीं करते, परमेश्वर और सत्य के प्रति समर्पण के मार्ग को चुनने के पक्ष में अपने भ्रष्ट स्वभाव की अपनी महत्वाकांक्षा के खिलाफ विद्रोह नहीं करते। इन दो अलग-अलग परिणामों से देखा जा सकता है कि अगर एक मसीह-विरोधी के स्वभाव वाला व्यक्ति अपने दिल में सत्य से प्रेम करता है तो उसके पास उसकी समझ हासिल करने, उसका अभ्यास करने और उद्धार प्राप्त करने का अवसर होता है, जबकि एक मसीह-विरोधी के सार वाला व्यक्ति सत्य नहीं समझ सकता या उसे व्यवहार में नहीं ला सकता और न ही वह उद्धार प्राप्त कर सकता है। दोनों में यही अंतर होता है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, प्रकरण पाँच : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव सार का सारांश (भाग दो))। “कुछ अगुआओं और कार्यकर्ताओं ने अतीत में अक्सर मसीह-विरोधी का स्वभाव प्रकट किया था : वे आवारा और स्वेछाचारी थे, वे जो कहें हमेशा वही होता था या फिर परिणाम झेलना पड़ता था। लेकिन उन्होंने कोई स्पष्ट बुराई नहीं की और उनकी मानवता भयानक नहीं थी। काट-छाँट से गुजर कर, भाई-बहनों द्वारा मदद किए जाने से, तबादला किए जाने या बदले जाने के माध्यम से, कुछ समय के लिए नकारात्मक होकर वे अंततः इस बात से अवगत हो जाते हैं कि उन्होंने जो पहले प्रकट किया था, वह भ्रष्ट स्वभाव था, वे पश्चात्ताप करने के लिए तैयार हो जाते और सोचते हैं, ‘चाहे जो हो, अपना कर्तव्य निभाते रहना सबसे महत्वपूर्ण है। हालाँकि मैं मसीह-विरोधी के मार्ग पर चल रहा था, लेकिन मुझे उस श्रेणी में नहीं रखा गया। यह परमेश्वर की दया है, इसलिए मुझे अपने विश्वास और अपने अनुसरण में कड़ी मेहनत करनी चाहिए। सत्य के अनुसरण के मार्ग में कुछ भी गलत नहीं है।’ धीरे-धीरे, वे खुद को बदल लेते हैं, और फिर वे पश्चात्ताप करते हैं। उनमें अच्छी अभिव्यक्तियाँ होती हैं, वे अपने कर्तव्य निभाते समय सत्य सिद्धांतों को खोज पाते हैं, और दूसरों के साथ कार्य करते समय भी वे सत्य सिद्धांतों को खोजते हैं। हर लिहाज से वे एक सकारात्मक दिशा में प्रवेश कर रहे होते हैं। तब क्या वे बदले नहीं हैं? वे मसीह-विरोधी के मार्ग से सत्य के अभ्यास और उसको खोजने के मार्ग की ओर मुड़ गए हैं। उनके लिए उद्धार पाने की आशा और मौका है। क्या तुम ऐसे लोगों को इसलिए मसीह-विरोधी की श्रेणी में डाल सकते हो, कि उन्होंने एक बार मसीह-विरोधी के कुछ लक्षण प्रदर्शित किए थे, या वे मसीह-विरोधी के मार्ग पर चले थे? नहीं। मसीह-विरोधी पश्‍चात्ताप करने के बजाय मरना पसंद करेंगे। उनमें शर्म की कोई भावना नहीं होती; इसके अलावा वे शातिर और दुष्ट स्वभाव के होते हैं, और वे सत्य से अत्यधिक विमुख होते हैं। क्या सत्य से इतना ज्यादा विमुख व्यक्ति उसे अभ्यास में ला सकता है, या पश्‍चात्ताप कर सकता है? यह असंभव होगा। सत्य से उसके बेहद विमुख होने का यह अर्थ है कि वह कभी पश्चात्ताप नहीं करेगा(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग एक))। असली मसीह-विरोधियों का एक क्रूर स्वभाव, एक द्वेषपूर्ण प्रकृति होती है और वे बुरे लोग होते हैं। उनमें जमीर, विवेक और शर्म नहीं होती, और वे चाहे कितनी भी बुराई करें, या कलीसिया के काम या भाई-बहनों के जीवन प्रवेश को कितना भी नुकसान पहुँचाएँ, उनमें जमीर का कोई बोध नहीं होता। इसके अलावा, वे सत्य से गहराई से विमुख और घृणा करते हैं। वे कभी न्यूनतम सत्य भी नहीं स्वीकारते, और कभी अपनी गलतियाँ नहीं मानते या पश्चात्ताप नहीं करते, चाहे वे कितनी भी बुराई क्यों न करें। लेकिन मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों की प्रकृति दुष्ट नहीं होती; वे अनिवार्य रूप से बुरे लोग नहीं होते। वे कभी-कभी मसीह-विरोधी व्यवहार प्रदर्शित जरूर करते हैं, जैसे स्वच्छंद और लापरवाह होना, दबंग तरीके से कार्य करना और खुद से असहमत होने वालों को बाहर कर देना, लेकिन काट-छाँट, बर्खास्तगी या समायोजन के जरिये वे सत्य की तलाश और आत्मचिंतन कर सकते हैं, अपने बुरे कर्मों के लिए पश्चात्ताप महसूस कर सकते हैं, और बाद में, वास्तव में पश्चात्ताप कर बदल जाते हैं। कुछ नकली अगुआओं की ही तरह, जो कई बर्खास्तगियों के बाद आत्म-चिंतन के माध्यम से अंततः सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चलने में सक्षम होते हैं। जब किसी का कुछ व्यवहार मसीह-विरोधी के व्यवहार जैसा होता है, तो उसे मसीह-विरोधी के रूप में वर्गीकृत करके गलत समझ लिया जाना बहुत संभव है। इसके बाद, मैंने अलीना और अन्य लोगों द्वारा निकोल के व्यवहार के बारे में जो कुछ एकत्र किया गया था, उसे फिर से पढ़ा और पाया कि वह ज्यादातर ऐसा व्यवहार था जो भ्रष्टता प्रकट करता था, जैसे कि अहंकारी स्वभाव, दूसरों का तिरस्कार करना, मनमाने ढंग से कार्य करना, सहकर्मियों से परामर्श किए बिना लोगों को समायोजित करना, इत्यादि। उसने अपने साथी की आलोचना करने के लिए अन्य भाई-बहनों को भी शामिल कर लिया था, जिससे कलीसियाई जीवन बाधित हो गया। यह वाकई एक दुष्कर्म था, लेकिन ऐसा कुछ नहीं था जो उसने आदतन किया हो। अतीत में उसने कभी दूसरों का दमन या आलोचना नहीं की थी। अपनी बर्खास्तगी के बाद वह अपने अपराधों और भ्रष्ट स्वभाव पर चिंतन कर उन्हें पहचानने में सक्षम रही थी और उसने खुद से घृणा कर पश्चात्ताप किया था। इससे यह देखा जा सकता है कि वह ऐसी नहीं थी, जो सत्य से इनकार करती हो या जो कभी पश्चात्ताप नहीं करती। इसे इस तरह से देखने पर, उसका कुछ व्यवहार मसीह-विरोधी तो था, पर वह अनिवार्य रूप से मसीह-विरोधी नहीं थी। इस तरह के अपराधों के कारण उसे मसीह-विरोधी के रूप में वर्गीकृत करना असंगत और सत्य सिद्धांत के विपरीत होता। यह उसका दमन करना और उसकी निंदा करना होता, जो एक बुरी बात है।

बाद में ऊपरी अगुआओं ने भ्रष्ट व्यवहार और प्रकृति सार के बीच के अंतर पर हमारे साथ संगति की। मैंने सोचा, “अब अलीना को समझ जाना चाहिए और इस मामले को और तूल नहीं देना चाहिए।” अप्रत्याशित रूप से, बैठक के बाद अलीना ने हमसे कहा, “ऊपरी अगुआ निकोल की रक्षा कर रहे हैं। वे समस्या को निकोल के व्यवहार के सार के अनुसार नहीं देखते। शायद वे उसका बचाव इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उसमें कुछ क्षमता है।” मैंने सोचा, “अलीना क्यों निकोल के एक अपराध के पीछे ही पड़ गई है? क्या अगुआओं ने स्पष्ट रूप से संगति नहीं की? निकोल का व्यवहार सिर्फ भ्रष्टता दिखा रहा था। यह एक अस्थायी अपराध था। उसे वास्तव में एक मसीह-विरोधी के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता।” लेकिन अलीना और अन्य लोगों ने इसे स्वीकार नहीं किया और कहा कि अगर अगुआ निकोल को नहीं सँभालेंगे, तो वे और ऊपर जाएँगे। अलीना का रवैया बहुत जिद्दी था और अन्य दो साथी भी उसके पक्ष में थे। मैं अकेला था, जो उससे असहमत था। मैं बहुत परेशान था। अगर मैं अगुआओं द्वारा चीजें सँभालने का तरीका स्वीकारना जारी रखता हूँ, तो क्या अलीना और अन्य लोग यह नहीं कहेंगे कि मैं रुतबे को पूजता हूँ, मुझमें सूझ-बुझ की कमी है और मैं वही कहता हूँ, जो अगुआ कहते हैं? लेकिन अगर मैं उनकी बातों से सहमत होता हूँ, तो क्या यह यूँ ही किसी की निंदा करना नहीं होगा? शायद मुझे यह कहना चाहिए कि मुझे पहचानना नहीं आता। इस तरह वे मेरे वास्तविक विचार नहीं जान पाएँगे और यह नहीं कहेंगे कि मुझमें विवेक की कमी है या मैं मसीह-विरोधी के पक्ष में खड़ा हूँ। इसलिए मैंने बहुत झिझकते हुए कहा, “मुझे निकोल के व्यवहार के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है, इसलिए मुझे नहीं पता कि उसे कैसे वर्गीकृत किया जाए।” जब अलीना ने देखा कि मैंने उसका साथ नहीं दिया, तो उसके हाव-भाव तुरंत बदल गए। बाद में, निकोल के बारे में जानकारी देने के बारे में चर्चा करते वक्त वे मुझे जान-बूझकर नजरंदाज कर देते। मुझे लगा, जैसे मुझे अलग-थलग किया जा रहा था, जिससे मुझे बुरा लगा, “क्या मैंने कुछ गलत किया है? वे मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रही हैं?” यह मुझे परेशान करने वाला था और मैं अशांत मन से कर्तव्य निभाने लगा। मुझे शक हुआ कि मेरी पीठ पीछे वे कहते होंगे कि मैं सत्य को बहुत सतही तौर पर समझता हूँ और मुझमें विवेक की कमी है। क्या वे मुझे अब से बाहर रखना जारी रखेंगे? मैं और भी हताश हो गई और मैंने सोचा, “ठीक है, अगर वे मेरे सुझाव नहीं सुनते और मुझे शामिल नहीं करना चाहते, तो मैं खुद को बहुत परेशानी से बचा लूँगा और उन्हें नाराज करने से बचूँगा, ताकि वे मुझ पर आरोप लगाकर मुझे बर्खास्त न करें। उन्हें जो करना है करें; यह वैसे भी मेरा काम नहीं है।” लेकिन यह चुनाव करने के बाद मैंने खुद को धिक्कारा : “क्या मैं स्थिति से भाग नहीं रहा? मैं कलीसिया का काम बनाए नहीं रख रहा।” बाद में मैंने खुलकर अपनी स्थिति के बारे में अगुआओं से बातचीत की और उन्होंने मुझे परमेश्वर का इरादा खोजने और कलीसिया का काम बनाए रखने की याद दिलाई, और यह भी कहा कि अगर मैं इसलिए नकारात्मक हो गया और पीछे हट गया या मैंने इसलिए स्थिति से भागने के बारे में सोचा कि अलीना और अन्य लोग मुझे अलग-थलग कर रहे हैं, तो मैं अपनी जिम्मेदारी से भाग रहा हूँगा। अगुआओं ने जो कहा, उसे सुनकर मुझे एहसास हुआ कि मैं सिर्फ अपने निजी हितों के बारे में सोच रहा था। मैंने देखा था कि परमेश्वर के चुने हुए किसी इंसान को प्रताड़ित किया जा रहा था, लेकिन मैं ऐसे दिखा रहा था, मानो इससे मुझे कोई मतलब नहीं था। मैं बाहर किए जाने से बचने के लिए स्थिति से भागना तक चाहता था। मैं बहुत स्वार्थी और नीच था!

बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा, और तभी मैंने अपना प्रकृति सार थोड़ा और स्पष्ट रूप से देखा। परमेश्वर कहता है : “जब लोग अपने कर्तव्यों के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं लेते, इन्हें अनमने ढंग से निभाते हैं, चापलूसों जैसे पेश आते हैं, और परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा नहीं करते, तो यह किस प्रकार का स्वभाव है? यह चालाकी है, यह शैतान का स्वभाव है। चालाकी इंसान के सांसारिक आचरण के फलसफों का सबसे प्रमुख पहलू है। लोग सोचते हैं कि अगर वे चालाक न हों, तो वे दूसरों को नाराज कर बैठेंगे और खुद की रक्षा करने में असमर्थ होंगे; उन्हें लगता है कि कोई उनके कारण आहत या नाराज न हो जाए, इसलिए उन्हें पर्याप्त रूप से चालाक होना चाहिए, जिससे वे खुद को सुरक्षित रख सकें, अपनी आजीविका की रक्षा कर सकें, और दूसरे लोगों के बीच सुदृढ़ता से पाँव जमा सकें। सभी अविश्वासी शैतान के फलसफों के अनुसार जीते हैं। वे सभी चापलूस होते हैं और किसी को ठेस नहीं पहुँचाते। तुम परमेश्वर के घर आए हो, तुमने परमेश्वर के वचन पढ़े हैं और परमेश्वर के घर के उपदेश सुने हैं, तो तुम सत्य का अभ्यास करने, दिल से बोलने और एक ईमानदार इंसान बनने में असमर्थ क्यों हो? तुम हमेशा चापलूसी क्यों करते हो? चापलूस केवल अपने हितों की रक्षा करते हैं, कलीसिया के हितों की नहीं। जब वे किसी को बुराई करते और कलीसिया के हितों को नुकसान पहुँचाते देखते हैं, तो इसे अनदेखा कर देते हैं। उन्हें चापलूस होना पसंद है, और वे किसी को ठेस नहीं पहुँचाते। यह गैर-जिम्मेदाराना है, और ऐसा व्यक्ति बहुत चालाक होता है, भरोसे लायक नहीं होता। अपने घमंड और अभिमान की रक्षा करने के लिए, और अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत बनाए रखने के लिए कुछ लोग खुशी से दूसरों की मदद करने और हर कीमत पर अपने दोस्तों के लिए त्याग करने को तैयार होते हैं। लेकिन जब उन्हें परमेश्वर के घर के हितों, सत्य और न्याय की रक्षा करनी होती है, तो उनके अच्छे इरादे छू-मंतर हो जाते हैं, वे पूरी तरह से गायब हो जाते हैं। जब उन्हें सत्य का अभ्यास करना चाहिए, तो वे बिल्कुल भी अभ्यास नहीं करते। यह क्या हो रहा है? अपनी गरिमा और अभिमान की रक्षा के लिए वे कोई भी कीमत चुकाएँगे और कोई भी कष्ट सहेंगे। लेकिन जब उन्हें वास्तविक कार्य करने और व्यावहारिक मामले संभालने होते हैं, कलीसिया के कार्य और सकारात्मक चीजों की रक्षा करनी होती है, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों की रक्षा करने और उन्हें पोषण प्रदान करने की आवश्यकता होती है, तो उनमें कोई भी कीमत चुकाने और कोई भी कष्ट सहने की ताकत क्यों नहीं रहती? यह अकल्पनीय है। असल में, उनका स्वभाव सत्य से विमुख रहने वाला होता है। मैं क्यों कहता हूँ कि उनका स्वभाव सत्य से विमुख रहने वाला होता है? क्योंकि जब भी किसी चीज में परमेश्वर के लिए गवाही देना, सत्य का अभ्यास करना, परमेश्वर के चुने हुए लोगों की रक्षा करना, शैतान की चालों से लड़ना, या कलीसिया के कार्य की रक्षा करना शामिल होता है, तो वे भागकर छिप जाते हैं, और किसी भी उचित मामले पर ध्यान नहीं देते। कष्ट उठाने की उनकी वीरता और जज्बा कहाँ चला जाता है? उन चीजों का वे इस्तेमाल कहाँ करते हैं? यह देखना आसान है। भले ही कोई उन्हें फटकारे और कहे कि उन्हें इतना स्वार्थी और नीच नहीं होना चाहिए, और खुद को बचाते नहीं रहना चाहिए और उन्हें कलीसिया के कार्य की रक्षा करनी चाहिए, फिर भी वे वास्तव में इसकी परवाह नहीं करते। वे अपने मन में कहते हैं, ‘मैं ये चीजें नहीं करता, और इनका मुझसे कोई लेना-देना नहीं है। इस तरह कार्य करने से मेरी प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के अनुसरण को क्या फायदा होगा?’ वे सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति नहीं होते। वे केवल प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के पीछे भागना पसंद करते हैं, और वह काम तो बिल्कुल नहीं करते जो परमेश्वर ने उन्हें सौंपा होता है। इसलिए जब कलीसिया का कार्य करने के लिए उनकी जरूरत पड़ती है तो वे बस भाग जाना चुनते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि अपने दिल में वे सकारात्मक चीजों को पसंद नहीं करते और सत्य में रुचि नहीं रखते। यह सत्य से विमुख होने की स्पष्ट निशानी है। जो सत्य से प्रेम करते हैं और जिनमें सत्य वास्तविकता होती है, वही लोग तब आगे आ सकते हैं, जब परमेश्वर के घर के काम को और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को उनकी आवश्यकता होती है, वही लोग खड़े होकर, बहादुरी और कर्तव्य-निष्ठा से, परमेश्वर की गवाही दे सकते हैं, सत्य पर संगति कर सकते हैं, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सही मार्ग पर ले जा सकते हैं और उन्हें परमेश्वर के कार्य के प्रति समर्पित होने में सक्षम बना सकते हैं। यही जिम्मेदारी का रवैया है और परमेश्वर के इरादों की परवाह दिखाने की अभिव्यक्ति है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। परमेश्वर के वचनों से तुलना करके ही मैंने देखा कि मैं ज्यादा ही चालाक और धोखेबाज था। अलीना और अन्य लोग निकोल को मसीह-विरोधी के रूप में वर्गीकृत करना चाहते थे। मैं स्पष्ट रूप से उनसे सहमत नहीं था और मैं यह भी जानता था कि वे निकोल की मनमाने ढंग से निंदा करके उसके साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार कर रहे हैं, लेकिन मैं उन्हें नाराज करने और उनके द्वारा निंदा या बर्खास्त किए जाने को लेकर चिंतित था। अपने रुतबे और प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए मैंने वह कहने से परहेज किया, जो मैं वास्तव में सोचता था, और साफ-साफ कुछ नहीं कहा। मुझमें सही दृष्टिकोण पर टिके रहने का साहस नहीं था। मैंने हमेशा अपने हितों पर विचार किया और आत्मरक्षा को पहले रखा, और कलीसिया के हितों की रक्षा के लिए बिल्कुल भी कुछ नहीं किया। न ही मैंने यह सोचा कि ऐसा करके वे कलीसिया के काम में कितनी परेशानी लाएँगे। कलीसिया के काम और भाई-बहनों के जीवन-प्रवेश से जुड़े एक बड़े मामले में मैंने अनभिज्ञता का ढोंग किया, ताकि किसी को ठेस न पहुँचे या चोट न लगे, और अपना पद बनाए रखने के लिए मैं धारा के साथ बहा और सिद्धांतों के विरुद्ध बोला। मैं सचमुच बहुत चालाक था। मैं न सिर्फ चालाक था, बल्कि सत्य से विमुख भी हो गया था। मैं समझता था कि सत्य का अभ्यास करना और कलीसिया के कार्य की रक्षा करना एक न्यायोचित और सकारात्मक चीज है, लेकिन जब मुझे लगा कि मेरे हितों को नुकसान पहुँच सकता है, तो मैंने इसका अभ्यास नहीं किया। मैंने यह तक सोचा कि जो सही है, उसका बचाव करने पर मुझे भुगतना पड़ सकता है। क्या यह सिर्फ यह नहीं दिखाता कि मैं सकारात्मक चीजों को नापसंद करता था और सत्य से विमुख था? मुझे बहुत पछतावा और अपराध-बोध हुआ।

इसके बाद ऊपरी अगुआओं ने मुझे याद दिलाया कि इस बार निकोल को बर्खास्त किए जाने के बाद अलीना ने उसे एक मसीह-विरोधी के रूप में रिपोर्ट करना जारी रखा है और वह तब तक नहीं रुकेगी, जब तक निकोल को बाहर नहीं निकाल दिया जाता। यह अब भ्रष्टता की सामान्य अभिव्यक्ति नहीं थी। अगर अलीना का इरादा वाकई एक मसीह-विरोधी को पहचानना और कलीसिया के काम की रक्षा करना था, पर वह सिर्फ सही ढंग से पहचान नहीं पा रही थी, तो अगुआओं द्वारा सत्य सिद्धांतों के अनुसार संगति करने के बाद वह अपनी गलतियाँ देखने में सक्षम होती और निकोल के अपराध को सही ढंग से लेती। लेकिन उसने संगति बिल्कुल भी नहीं स्वीकारी, अपनी बात पर अड़ी रही और मामला जाने नहीं दिया, जिसमें किसी को प्रताड़ित और दंडित करने की बू आ रही थी। अगुआओं ने मुझसे अलीना की जाँच करने और मामले की सच्चाई का पता लगाने के लिए कहा, और मैं सहमत हो गया। लेकिन जब मैं इसके बारे में दूसरों से पूछने जा रहा था, तो मैं फिर से पीछे हटने लगा। “सिर्फ रेचल ही ऐसी नहीं है, जो अलीना को नहीं पहचानती। कलीसिया के कुछ और भाई-बहन भी उसका पक्ष ले रहे हैं। अगर मैंने निजी तौर पर मामले की सच्चाई पता लगाने की कोशिश की और उन्होंने अलीना को इस बारे में बता दिया, तो क्या अलीना और अन्य लोग मुझे बर्खास्त नहीं करवा देंगे?” जब मैंने इस बारे में सोचा, तो मुझे फिर से दुविधा महसूस होने लगी। बाद में मुझे परमेश्वर के वचन याद आए : “तुम सभी कहते हो कि तुम परमेश्वर के बोझ के प्रति विचारशील हो और कलीसिया की गवाही की रक्षा करोगे, लेकिन वास्तव में तुम में से कौन परमेश्वर के बोझ के प्रति विचारशील रहा है? अपने आप से पूछो : क्या तुम उसके बोझ के प्रति विचारशील रहे हो? क्या तुम उसके लिए धार्मिकता का अभ्यास कर सकते हो? क्या तुम मेरे लिए खड़े होकर बोल सकते हो? क्या तुम दृढ़ता से सत्य का अभ्यास कर सकते हो? क्या तुममें शैतान के सभी दुष्कर्मों के विरूद्ध लड़ने का साहस है? क्या तुम अपनी भावनाओं को किनारे रखकर मेरे सत्य की खातिर शैतान का पर्दाफ़ाश कर सकोगे? क्या तुम मेरे इरादों को स्वयं में संतुष्ट होने दोगे? सबसे महत्वपूर्ण क्षणों में क्या तुमने अपने दिल को समर्पित किया है? क्या तुम ऐसे व्यक्ति हो जो मेरी इच्छा पर चलता है? स्वयं से ये सवाल पूछो और अक्सर इनके बारे में सोचो(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 13)। परमेश्वर के वचनों ने मेरे हृदय को झकझोर दिया। परमेश्वर के सवालों से मैंने देखा कि मैं डरपोक और कायर हो रहा था और मुसीबत से डर रहा था। मैं हमेशा मुसीबत से दूर भागना चाहता था। मैं परमेश्वर के दायित्व के बारे में बिल्कुल भी विचारशील नहीं था। मैंने इस डर से कलीसिया के काम की रक्षा नहीं की कि ऐसा करने से दूसरे नाराज होंगे और इससे मेरा अहित होगा। मैं बहुत स्वार्थी और नीच था! परमेश्वर के वचनों ने मुझे जगा दिया। अब अलीना का व्यवहार कलीसियाई जीवन को अस्त-व्यस्त कर रहा था। अगर मैं अभी खड़ा नहीं हुआ, तो बहुत देर हो चुकी होगी और अलीना कलीसिया के काम को और भी बड़ा नुकसान पहुँचा चुकी होगी। मेरी कायरता और डर परमेश्वर में विश्वास की कमी के कारण थे। मुझे विश्वास नहीं था कि सब-कुछ परमेश्वर के हाथों में है, इसलिए मुझे हमेशा दूसरों द्वारा उत्पीड़ित किए जाने का डर रहता था। परमेश्वर धार्मिक है, उसके घर में सत्य शासन करता है। अंत में नकारात्मक लोगों और बुरे इंसानों को यहाँ पैर जमाने की जगह नहीं मिल सकती, लेकिन मेरी आस्था बहुत छोटी थी। इसलिए मैंने परमेश्वर के सामने आकर प्रार्थना की, “परमेश्वर, मेरे दिल में डर और कायरता है। कृपया मुझे आस्था दो, ताकि मैं खड़ा होकर कलीसिया के काम की रक्षा कर सकूँ।” प्रार्थना करने के बाद मुझे एक ऐसे समूह-अगुआ का खयाल आया, जो ईमानदार था और जिसमें थोड़ा विवेक था। इसलिए मैंने उसे खोजा और मामले की जाँच में मेरे साथ काम करने को कहा। निकोल के मसीह-विरोधी व्यवहारों के बारे में अलीना की रिपोर्ट की जाँच करने पर हम भौचक्के रह गए। हमने पाया कि कुछ आरोप असत्य थे और अन्य उन व्यवहारों से संबंधित, जो सिर्फ भ्रष्टता प्रकट करते थे और मौलिक समस्या नहीं थे। इस तरह के व्यवहारों के आधार पर निकोल की एक मसीह-विरोधी के रूप में निंदा करके क्या अलीना निकोल को प्रताड़ित करने के लिए तथ्यों को तोड़-मरोड़ नहीं रही थी? सामान्य मामलों के उपयाजक ने यह भी देखा था कि अलीना निकोल के प्रति निर्दयी हो रही है और उसने उसे बुराई न करने की चेतावनी दी थी, लेकिन अलीना अविचलित रही और अभी भी निकोल की एक मसीह-विरोधी के रूप में निंदा करने के लिए शोर मचा रही थी। हमने देखा कि अलीना को निकोल से विशेष नफरत थी और वह उसे निकलवाने पर आमादा थी। हमें उस स्थिति के बारे में पता चला, जब अलीना और निकोल साथी थीं, और पाया कि ऊपरी अगुआओं ने उस समय निकोल को बहुत सारे महत्वपूर्ण काम दिए थे, क्योंकि उसकी योग्यता और कार्य-क्षमता अलीना से बेहतर थी। अलीना सोचती थी कि निकोल उससे ज्यादा सबकी प्रशंसा की पात्र बन रही है और नतीजतन ईर्ष्यालु और असंतुष्ट हो गई थी। साथ ही, निकोल अक्सर उसके काम की समस्याएँ बताती थी, इसलिए अलीना को लगा कि निकोल उसका तिरस्कार करती है। अलीना निकोल से द्वेष रखती थी और हमेशा बदला लेने का मौका ढूँढ़ती रहती थी। इस अवसर पर, जब निकोल ने सिद्धांतों का उल्लंघन किया और एक नकली अगुआ के रूप में सामने आई, तो अलीना इस मौके का फायदा उठाकर निकोल को एक मसीह-विरोधी के रूप में वर्गीकृत कर उसे निकलवाना चाहती थी। पहले मैं सोचता था कि वह निकोल की निंदा इसलिए करती है कि वह सत्य नहीं समझती। अब मैंने देखा कि अलीना की बदला लेने की इच्छा इतनी प्रबल है कि अपना निजी हिसाब चुकता करने के लिए उसने दूसरों को गुमराह कर उन्हें निकोल की निंदा में शामिल करवाने के लिए तथ्य तोड़-मरोड़कर पेश किए। यह पूरी तरह से घिनौनी प्रकृति थी!

एक दिन परमेश्वर के वचनों में किए गए प्रकाशन के माध्यम से मैंने अलीना का सार और अधिक स्पष्ट रूप से देखा। परमेश्वर कहता है : “विरोधी क्या होता है? वे कौन लोग होते हैं, जिन्हें मसीह-विरोधी अपना विरोधी समझता है? कम से कम, वे वो लोग होते हैं जो अगुआ के रूप में मसीह-विरोधी को गंभीरता से नहीं लेते; अर्थात् वे उनका आदर या आराधना नहीं करते, जो उन्हें सामान्य व्यक्ति समझते हैं। यह एक किस्म है। फिर ऐसे लोग भी होते हैं, जो सत्य से प्रेम करते हैं, सत्य का अनुसरण करते हैं, अपने स्वभाव में बदलाव लाने की कोशिश करते हैं, और परमेश्वर से प्रेम करने का प्रयास करते हैं; वे मसीह-विरोधी के मार्ग से भिन्न मार्ग अपनाते हैं, और वे मसीह-विरोधी की दृष्टि में विरोधी होते हैं। क्या इसके अलावा भी कोई और होते हैं? (जो लोग हमेशा मसीह-विरोधियों को सुझाव देते रहते हैं और उन्हें उजागर करने का साहस करते हैं।) जो कोई मसीह-विरोधी को सुझाव देने और उसे उजागर करने का साहस करता है, या जिसके विचार उसके विचारों से भिन्न होते हैं, उसे उसके द्वारा विरोधी समझा जाता है। एक किस्म और है : वे जो क्षमता और काबिलियत में मसीह-विरोधी के बराबर होते हैं, जिनकी बोलने और कार्य करने की क्षमता उनके समान होती है, या जिन्हें वे खुद से ऊँचा समझते और पहचानने में सक्षम होते हैं। मसीह-विरोधी के लिए यह असहनीय है, उसकी हैसियत के लिए खतरा है। ऐसे लोग मसीह-विरोधी के सबसे बड़े विरोधी होते हैं। मसीह-विरोधी ऐसे लोगों की उपेक्षा करने की हिम्मत नहीं करता या उनके प्रति जरा भी शिथिल नहीं होता। वह उन्हें अपने लिए एक काँटा समझते हैं जो उन्हें लगातार परेशान करता है और हर समय उनसे सावधान और सँभलकर रहता है और वह अपने हर काम में उनसे बचता है। खासकर तब जब मसीह-विरोधी देखता है कि कोई विरोधी उसे पहचानने वाला और उजागर करने वाला है, तो एक खास दहशत उन्हें जकड़ लेती है; वह इस तरह के विरोधी को निकाल देने और उस पर आक्रमण करने के लिए बेताब हो जाता है, और तब तक संतुष्ट नहीं होता, जब तक कलीसिया से उस विरोधी को हटा नहीं देता। ... किसी मसीह-विरोधी के लिए, विरोधी उसकी हैसियत और सत्ता के लिए खतरा होता है। कोई भी उनकी हैसियत और सत्ता के लिए खतरा बनता है, चाहे कोई भी हो, तो मसीह-विरोधी उसे ‘ठिकाने लगाने’ के लिए किसी भी हद तक चले जाते हैं; अगर इन लोगों को नियंत्रित या भर्ती न किया जा सके, तो मसीह-विरोधी उन्हें सत्ता से गिरा देंगे या बाहर निकाल देंगे। अंततः, मसीह-विरोधी पूर्ण सत्ता पाने का अपना मकसद हासिल कर ही लेंगे और खुद ही कानून बन जाएँगे। ये ऐसी कुछ तरकीबें हैं जिन्हें मसीह-विरोधी अपनी हैसियत और सामर्थ्य बनाए रखने के लिए आदतन उपयोग में लाते हैं—वे विरोधियों पर आक्रमण करते हैं और उन्हें निकाल देते हैं(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद दो : वे विरोधियों पर आक्रमण करते हैं और उन्हें निकाल देते हैं)। “जब एक शातिर व्यक्ति को किसी भी प्रकार के सुविचारित उपदेश, आरोप, सीख या सहायता का सामना करना पड़ता है, तो उसका रवैया आभार जताने या विनम्रतापूर्वक इसे स्वीकारने का नहीं होता है, बल्कि वह शर्म से लाल हो जाता है, और अत्यंत शत्रुता, नफरत, और यहाँ तक कि प्रतिशोध का भाव महसूस करता है। ... बेशक, जब वे घृणा के कारण किसी के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करते हैं, तो ऐसा इसलिए नहीं होता है कि उन्हें उस व्यक्ति से नफरत है या उसके खिलाफ कोई पुरानी दुश्मनी है, बल्कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उस व्यक्ति ने उनकी गलतियों को उजागर किया है। इससे पता चलता है कि किसी मसीह-विरोधी को उजागर करने का कार्य मात्र, चाहे यह कोई भी करे, और चाहे मसीह-विरोधी के साथ उसका संबंध जो भी हो, उसकी नफरत और बदले की आग को भड़का सकती है। चाहे वह कोई भी हो, चाहे वह सत्य को समझता हो या नहीं, चाहे वह अगुआ हो या कार्यकर्ता या परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से कोई मामूली व्यक्ति, अगर कोई मसीह-विरोधियों को उजागर कर उनकी काट-छाँट करता है तो वे उस व्यक्ति को अपना शत्रु मानेंगे। वे खुलेआम यह भी कहेंगे, ‘जो कोई भी मेरी काट-छाँट करेगा, मैं उसके साथ सख्ती से पेश आऊँगा। जो कोई भी मेरी काट-छाँट करेगा, मेरे रहस्य उजागर करेगा, मुझे परमेश्वर के घर से निष्कासित करवाएगा या मेरे हिस्से के आशीष मुझसे छीन लेगा, मैं उसे कभी नहीं छोड़ूँगा। लौकिक संसार में भी मैं ऐसा ही हूँ : कोई भी मुझे तकलीफ देने की हिमाकत नहीं करता। मुझे परेशान करने की हिम्मत करने वाला व्यक्ति अभी तक पैदा नहीं हुआ!’ मसीह-विरोधी अपनी काट-छाँट का सामना करने पर ऐसे ही रूखे शब्द बोलते हैं। जब वे ये रूखे शब्द बोलते हैं तो इसका उद्देश्य दूसरों को डराना नहीं होता है, न ही वे खुद को बचाने के लिए ऐसा कहते हैं। वे वास्तव में बुरा करने में सक्षम हैं और वे अपने पास उपलब्ध किसी भी साधन का इस्तेमाल करने को तैयार हैं। यह मसीह-विरोधियों का शातिर स्वभाव है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग आठ))। यह सिर्फ परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन के माध्यम से ही था कि मैंने अलीना के इरादे स्पष्ट रूप से देख लिए। वह कहती रही थी कि वह कलीसिया के काम की रक्षा करना चाहती है और किसी मसीह-विरोधी को जाने नहीं दे सकती, जबकि असल में वह एक निजी प्रतिशोध ले रही थी। सिर्फ इसलिए कि निकोल ने उसके काम में गलतियाँ बताई थीं, उसने द्वेष पाल लिया। उसने निकोल की बर्खास्तगी का उपयोग एक बड़ा उपद्रव करने के लिए किया और निकोल के क्षणिक अपराध को उसे मसीह-विरोधी के रूप में वर्गीकृत करने के लिए लपक लिया। हमारे अगुआओं द्वारा भ्रष्टता और कुकर्म के बीच के अंतर पर स्पष्ट रूप से संगति करने के बाद भी उसने इसे जाने नहीं दिया और निकोल के बारे में एकतरफा जानकारी पेश करने के लिए वह सब-कुछ करती रही, जो वह कर सकती थी। उसने अलग विचार रखने वालों को हटाने के अपने प्रयास में निकोल पर झूठे आरोप लगाए और भाई-बहनों को गुमराह किया ताकि वे भी उसके साथ मिलकर निकोल की निंदा करें। जब अगुआ निकोल से वैसे नहीं पेश आए जैसा वह चाहती थी, तो वह असंतुष्ट हो गई और उसने सहकर्मियों से कहा कि अगुआ निकोल का बचाव कर रहे हैं, जिससे वे उसके द्वारा गुमराह होकर उसका पक्ष लेने लगे और अगुआओं के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो गए। जब मैंने निकोल के मामलों पर एक अलग राय रखी, तो उसने मुझे बाहर कर अलग-थलग कर दिया। जब कुछ भाई-बहनों ने उसे सचेत किया कि वह क्या कर रही है, तो उसने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया और कहा कि यह शैतान द्वारा पैदा किया गया व्यवधान है। इन तथ्यों से हम देख सकते हैं कि अलीना को सत्य से नफरत थी और उसका स्वभाव बहुत ही शातिर था। अगर कोई उसे पहचान लेता था या उसकी हैसियत के लिए खतरा पैदा करता था, तो वह दुश्मन समझकर उस पर हमला करती थी, उसे बहिष्कृत कर देती थी और प्रतिशोध में दंडित करती थी। अलीना एक बुरी इंसान थी। इसके बाद मैंने अगुआओं को उन तथ्यों की सूचना दी, जो मैंने पता लगाए थे। तब उन्होंने अलीना को बर्खास्त कर दिया और उसे अलग-थलग कर उसके व्यवहार की निगरानी की, ताकि अगर वह और व्यवधान पैदा करे तो उसे निष्कासित कर दिया जाए। संगति के माध्यम से रेचल ने भी अलीना की समझ हासिल कर ली। जब उसने देखा कि वह बुराई करने में अलीना का साथ दे रही थी, तो वह पछतावे से भर गई और खुद से नफरत करने लगी।

हालाँकि यह बहुत समय पहले हुआ था, फिर भी मुझे यह सोचकर शर्म आती है कि कैसे उस दौरान अपने स्वार्थ के लिए मैंने इस बात की जरा भी परवाह नहीं की थी कि कलीसिया का काम प्रभावित हो रहा था। अगर परमेश्वर के वचनों की प्रबुद्धता और मार्गदर्शन न होता, तो मुझमें कलीसिया के कार्य की रक्षा करने का साहस तक न होता। ये परमेश्वर के वचन ही थे, जिन्होंने मुझे अभ्यास के सिद्धांत दिए। चाहे मैं जितना भी सत्य समझ लूँ, अगर कलीसिया के हित जुड़े हैं तो मुझे उनके बचाव में खड़ा होना ही होगा। यह एक अटल जिम्मेदारी है।

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