42. एक कुकर्मी को पहचान कर मैंने क्या पाया

अगस्त 2015 में मुझे पता चला कि एक अगुआ, बहन चेन व्यावहारिक कार्य न करने, प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा के लिए दूसरों के साथ प्रतिस्पर्धा करने, और भाई-बहनों के बीच अपनी साथी की आलोचना करने के लिए बर्खास्त कर कर दी गई थी, जिससे कलीसिया का काम बाधित हो गया था। बर्खास्त होने के बाद बहन चेन ने संगति, काट-छाँट और निपटान के जरिये अपने अपराध और भ्रष्ट स्वभाव के बारे में कुछ समझ हासिल कर ली, उसे विशेष रूप से अपराध-बोध हुआ, और वह पश्चात्ताप करने के लिए तैयार हो गई। मेरी साथी ली किन कभी बहन चेन की साथी रही थी। जब उसने सुना कि बहन चेन को नकली अगुआ माना गया है, तो वह बोली, "अगुआ बनने के बाद बहन चेन ऐसे कार्य करती थी मानो वह सबसे ऊपर हो। बात करने पर वह अक्सर मेरी उपेक्षा करती थी, हमेशा दूसरों का अनादर करती थी और बहुत घमंडी थी। उसने गुटबाजी तक की और हैसियत पाने के लिए विवाद पैदा किए। सिर्फ मसीह-विरोधी ही ऐसे काम कर सकता था। उसे नकली अगुआ कहना काफी नहीं। उसे मसीह-विरोधी कहा जाना चाहिए था।" उसने बहन चेन की शिकायत ऊपरी अगुआओं से करने की योजना भी बनाई। एक अन्य साथी शाओमिन भी ली किन की हर बात से सहमत थी। उस समय मैंने सोचा, "बहन चेन खुद को दूसरों से बड़ा मानती है, और उसका अहंकारी स्वभाव गंभीर है, लेकिन उसने कोई बड़ी बुराई नहीं की, न ही उसने आदतन रुकावटें पैदा की, बर्खास्तगी के बाद वह पश्चात्ताप और आत्मचिंतन कर खुद को जान सकती थी। वह ऐसी नहीं है, जो सत्य को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करती। अगर हम उसे सिर्फ उसके अपराध और अस्थायी भ्रष्टता के आधार पर मसीह-विरोधी करार देते हैं, तो क्या यह ज्यादती नहीं होगी? गलती से यह तय कर लेना एक अच्छी इंसान को अनुचित नुकसान पहुँचाएगा।" इसलिए मैंने उनके साथ अपने विचार साझा किए। लेकिन ली किन ने मेरी बात नहीं मानी और बोलती रही, "आप बहन चेन के कुछ व्यवहारों को नहीं समझते। हमें सिद्धांतों पर टिके रहना है। हम किसी भी मसीह-विरोधी को छोड़ नहीं सकते।" उस समय मैंने थोड़ा असहज महसूस किया, लेकिन ली किन के अगले कदम ने मुझे और हैरान कर दिया।

फिर, ली किन ने शाओमिन से बहन चेन के मूल्यांकन एकत्र करने के लिए कहा, और ऐसा उसने ऊपरी अगुआओं से पूछे बिना किया। फिर, उसने निजी तौर पर एक सभा बुलाई, ताकि हर कोई बहन चेन को पहचान कर उसके बारे में विचार-विमर्श कर सके। सभा में, ली किन ने दोहराया कि कैसे बहन चेन ने पहले अहंकार भरा व्यवहार किया, और जोर देकर कहा कि बहन चेन ने मनमाने ढंग से काम किया, लेकिन उसने यह नहीं बताया कि क्या बहन चेन ने यह भ्रष्टता क्षणिक रूप से प्रकट की या लगातार ऐसा कर रही थी, और न ही इस बात का जिक्र किया कि बहन चेन ने बाद में सत्य स्वीकार कर पश्चात्ताप किया या नहीं। इनमें से किसी बात का जिक्र नहीं किया। बैठक के बाद एक बहन ने पाया कि यह सभा बहन चेन की निंदा करने के लिए थी, और उसने खास तौर से शाओमिन से कहा, "ऐसा करके आप क्या हासिल करने की कोशिश कर रही हैं? क्या यह परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप है? पर्याप्त सबूत के बिना आप मनमाने ढंग से दूसरों को बुरा नहीं कह सकतीं। इस तरह परमेश्वर को नाराज करना बहुत आसान है।" यह सुनकर शाओमिन थोड़ी डर गई, और उसने भी सोचा कि बहन चेन के साथ ऐसा करना ज्यादती है, इसलिए उसने ली किन और मुझे अपनी शंकाएँ बताईं। उसने गुस्से से जवाब दिया, "जब भी हम सत्य का अभ्यास करना चाहते हैं, शैतान हमें परेशान करता है।" अंत में, उसने फिर से बहन चेन के व्यवहार का विश्लेषण किया, और जोर देकर कहा कि चूँकि बहन चेन अपनी साथी से ईर्ष्या करती थी, उसने एक गुट बनाया, उसकी आलोचना की और उसे दबाया। साथ ही, उसने मनमानी की, दूसरों के साथ चीजों पर चर्चा नहीं की, लोगों को अपनी मर्जी से बर्खास्त कर दिया...। ली किन ने जिन व्यवहारों की बात की, वे बहुत गंभीर थे, इसलिए आश्वस्त होकर शाओमिन फिर से ली किन के साथ खड़ी हो गई। इस समय, मैं भी थोड़ा अनिश्चित था। क्या होगा, अगर ली किन का विचार सही हुआ? खासकर जब मैंने सुना कि ली किन सच लगने वाली संगति करने के लिए मसीह-विरोधियों द्वारा गुट बनाए जाने को प्रकट करने वाले परमेश्वर के वचनों का उपयोग करती है, तो मैं और उलझन में पड़ गया। मुझे लगा, शायद उसका विश्लेषण सही हो। क्या यह संभव है कि ऊपरी अगुआ उसे पहचान नहीं पाए, गलती से एक मसीह-विरोधी को नकली अगुआ के रूप में आँका और उसे कलीसिया में रहने दिया? अगर ऐसा है, तो क्या मैं मसीह-विरोधी को पहचाने बिना उसके लिए बोलने वाला नहीं बन जाऊँगा? शायद मैं अपना पद बनाए न रख पाऊँ और मुझ पर एक मसीह-विरोधी का बचाव करने का आरोप लगा दिया जाए। तब मेरी प्रतिष्ठा धूमिल हो जाएगी। मैंने सोचा कि मेरा ली किन और शाओमिन के साथ खड़े होना ही बेहतर होगा। इस तरह, अगर मैं गलत हुआ, तो यह अकेले मेरी गलती नहीं होगी। यह गलत साबित होने और सारा दोष अपने सिर मढ़े जाने से बेहतर होगा। मैं उनकी बात मानने वाला ही था कि मुझे थोड़ी बेचैनी महसूस हुई। मैंने सोचा कि चूँकि चीजें अभी तक स्पष्ट नहीं हैं, इसलिए मुझे किसी की बातों में नहीं आना चाहिए। अगर बहन चेन मसीह-विरोधी न हुई, और मैंने उसे पहचानने में आँख मूँदकर दूसरों का अनुसरण किया, तो मैं मनमाने ढंग से किसी की निंदा कर उसे तबाह कर रहा होऊंगा, जो परमेश्वर को ठेस पहुँचाने वाली बात है। अपराध करने के बाद उसे कभी मिटाया नहीं जा सकता। दिल कचोटने के कारण मैंने ली किन का अनुसरण नहीं किया।

उसके बाद मैंने मसीह-विरोधियों की पहचान के लिए सत्य की तलाश की। परमेश्वर के वचनों में मैंने पढ़ा, "अगर किसी व्यक्ति का बस स्वभाव ही मसीह-विरोधी का है, तो उसे एक मसीह-विरोधी की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। जो लोग मसीह-विरोधी के स्वभाव और सार वाले होते हैं, केवल वही असली मसीह-विरोधी होते हैं। निश्चित तौर पर दोनों की बाह्य मानवता में अंतर होता है, वे अलग-अलग प्रकार की मानवता के अधीन होकर काम करते हैं और सत्य के प्रति दोनों का नजरिया भी अलग होता है—जब सत्य के प्रति लोगों का नजरिया समान न हो, तो उनके द्वारा चुने गए रास्ते भी अलग होते हैं; और जब उनके रास्ते अलग होते हैं, उनके कार्यों के परिणामी सिद्धांतों और नतीजों में भी अंतर होता है। क्योंकि एक मसीह-विरोधी स्वभाव वाले व्यक्ति की अंतरात्मा काम कर रही होती है, उसमें विवेक होता है, उसमें लज्जा होती है और वह सत्य से प्रेम करता है, अपेक्षाकृत रूप से कहें, तो जब उनका भ्रष्ट स्वभाव उजागर होता है, तो मन ही मन वे उसकी भर्त्सना करते हैं। ऐसे में वे आत्मचिंतन कर खुद को जान सकते हैं, अपने भ्रष्ट स्वभाव और भ्रष्टता के प्रकटन को स्वीकार सकते हैं, इस तरह वे दैहिक-सुख और भ्रष्ट स्वभाव को त्याग सकते हैं और सत्य का अभ्यास कर परमेश्वर के प्रति समर्पित हो सकते हैं। लेकिन मसीह-विरोधी के साथ ऐसा नहीं होता। चूँकि उनकी अंतरात्मा क्रियाशील नहीं होती या उनमें कर्तव्यनिष्ठा के भाव नहीं जगा होता, उनमें लज्जा होती ही नहीं, इसलिए जब उनका भ्रष्ट स्वभाव प्रकट होता है, तो वे परमेश्वर के वचनों के अनुसार इसका आकलन नहीं करते कि उन्होंने जो प्रकट किया, वह सही है या गलत, वह भ्रष्ट स्वभाव है या सामान्य मानवता या वह सत्य के अनुरूप है या नहीं। वे इन बातों पर विचार नहीं करते। तो उनका व्यवहार कैसा होता है? वे हमेशा यही मानते हैं कि उन्होंने जो भ्रष्ट स्वभाव दिखाया और जो रास्ता चुना है, वह सही है। उन्हें लगता है कि वे जो कुछ भी करते हैं वह सही है, जो कहते हैं वह सही है; वे खुद को बचाने पर आमादा रहते हैं। तो होता यह है कि वे चाहे कितना भी बड़ी गलती कर लें, चाहे उनका कितना ही भयंकर भ्रष्ट स्वभाव उजागर हो जाए, वे उस मामले की गंभीरता को नहीं पहचानते और निश्चित रूप से अपने द्वारा प्रकट किए गए भ्रष्ट स्वभाव से परिचित नहीं होते। बेशक, वे अपनी इच्छाओं को दरकिनार नहीं करते, अपनी महत्वाकांक्षा नहीं त्यागते या परमेश्वर की आज्ञाकारिता और सत्य के मार्ग को चुनने के पक्ष में अपने भ्रष्ट स्वभाव के खिलाफ विद्रोह नहीं करते। इन दो अलग-अलग परिणामों से देखा जा सकता है कि एक मसीह-विरोधी स्वभाव वाले व्यक्ति के पास सत्य की समझ हासिल करने, उसका अभ्यास करने और उद्धार प्राप्त करने का अवसर होता है, जबकि एक मसीह-विरोधी के सार वाला व्यक्ति सत्य नहीं समझ सकता या उसे व्यवहार में नहीं ला सकता और न ही वह उद्धार प्राप्त कर सकता है। दोनों में यही अंतर होता है" (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, प्रकरण पाँच : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव के सार का सारांश (भाग दो))। "कुछ अगुआओं और कार्यकर्ताओं ने अतीत में अक्सर मसीह-विरोधी का स्वभाव प्रकट किया था : वे आवारा और स्वेछाचारी थे, वे जो कहें हमेशा वही होता था या फिर परिणाम झेलना पड़ता था। लेकिन उन्होंने कोई स्पष्ट बुराई नहीं की और उनकी मानवता भयानक नहीं थी। काट-छाँट और निपटारे से गुज़र कर, भाई-बहनों द्वारा मदद किए जाने से, तबादला किए जाने या बदले जाने के माध्यम से, कुछ समय के लिए नकारात्मक होकर वे अंततः इस बात से अवगत हो जाते हैं कि उन्होंने जो पहले प्रकट किया था, वह भ्रष्ट स्वभाव था, वे पश्चात्ताप करने के लिए तैयार हो जाते और सोचते हैं, 'चाहे जो हो जाए, अपना कर्तव्य ठीक से निभाते रहना सबसे महत्वपूर्ण है। हालाँकि मैं मसीह-विरोधी के मार्ग पर चल रहा था, लेकिन मुझे उस रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया। यह ईश्वर की अनुकंपा है, इसलिए मुझे अपने विश्वास में अच्छा होना चाहिए, मुझे ईमानदारी से तलाश करनी चाहिए। सत्य की तलाश करने के मार्ग में कुछ भी ग़लत नहीं है।' धीरे-धीरे, वे खुद को वापस मोड़ लेते हैं, और फिर वे पश्चात्ताप करते हैं। उनमें अच्छी संभावनाएँ दिखाई पड़ती हैं, वे अपने कर्तव्यों का पालन करते समय सत्य के सिद्धांतों की तलाश कर पाते हैं, और दूसरों के साथ कार्य करते हुए भी वे सत्य के सिद्धांतों की तलाश करते हैं। हर लिहाज से वे एक बेहतर दिशा में बढ़ रहे होते हैं। तब क्या वे बदले नहीं हैं? यह मसीह-विरोधी के मार्ग से हटना और सत्य के अभ्यास और उसकी तलाश के मार्ग पर चलना है। उनके लिए उद्धार पाने की आशा और मौका है, वे खुद को वापस मोड़ सकते हैं। क्या तुम ऐसे लोगों को इसलिए मसीह-विरोधी के रूप में वर्गीकृत कर सकते हो, कि उन्होंने एक बार मसीह-विरोधी के कुछ लक्षण प्रदर्शित किए थे, या वे मसीह-विरोधी के मार्ग पर चले थे? नहीं। मसीह-विरोधी पश्‍चात्ताप करने के बजाय मरना पसंद करेंगे। उनमें शर्म की कोई भावना नहीं होती; वे शातिर और दुष्ट स्वभाव के होते हैं, और वे सत्य से अत्यंत चिढ़ते हैं। क्या सत्य से इतना चिढ़ने वाला व्यक्ति उसे व्यवहार में ला सकता है, या पश्‍चात्ताप कर सकता है? यह असंभव होगा। सत्य से उसकी बेहद चिढ़ यह तय करती है कि वह कभी पश्चात्ताप नहीं करेगा" (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपना आज्ञापालन करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर का नहीं (भाग एक))। पक्के मसीह-विरोधियों का स्वभाव दुष्ट और मानवता जहरीली होती है, और वे कुकर्मी होते हैं। उनमें कोई जमीर और शर्म नहीं होती, चाहे वे कितनी भी बुराई करें, या कलीसिया के काम या दूसरों के जीवन-प्रवेश को कितना भी नुकसान पहुँचाएँ, उनके जमीर पर कोई फर्क नहीं पड़ता। वे सत्य से बेहद ऊबे हुए और घृणा करने वाले होते हैं, और उसे कभी स्वीकार नहीं करते, और वे कभी अपनी गलती नहीं मानते या पश्चात्ताप नहीं करते, चाहे उन्होंने कितनी भी बुराई की हो। लेकिन मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोग मानवता में बुरे नहीं होते, न सार में कुकर्मी होते हैं। हालाँकि कभी-कभी उनकी अभिव्यक्तियाँ मसीह-विरोधी होती हैं, जैसे मनमानी करना, अकेले कार्य करना, और असहमति को नकारना, लेकिन काट-छाँट और निपटान, या बर्खास्तगी और समायोजन के जरिये वे सत्य की तलाश, आत्मचिंतन, और अपने कुकर्मों के लिए पश्चात्ताप महसूस कर सकते हैं, और बाद में, सच्चे मन से प्रायश्चित करके बदल सकते हैं। कुछ नकली अगुआ कई बार बर्खास्त किए जाने के बाद आत्मचिंतन कर खुद को समझ सकते हैं, और अंततः, वे सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चल सकते हैं। अगर हम उन्हें इसलिए मसीह-विरोधी ठहरा दें कि उनके कुछ व्यवहार मसीह-विरोधियों जैसे हैं, तो हम उन पर गलत आरोप लगाते हैं। उसके बाद, मैंने बहन चेन के व्यवहारों पर ली किन की फाइलों का संग्रह फिर से पढ़ा, और पाया कि ज्यादातर सिर्फ भ्रष्टता दिखा रहे थे, जैसे अहंकारी होना, दूसरों को तुच्छ समझना, मनमाने ढंग से काम करना, सहकर्मियों से चर्चा किए बिना लोगों का तबादला करना, आदि। उसने अपनी साथी की आलोचना करने के लिए भाई-बहनों को भी फुसलाया, जिससे कलीसियाई जीवन बाधित हुआ—यह निश्चित रूप से एक कुकर्म था, लेकिन वह उसका आदतन व्यवहार नहीं था। इससे पहले, उसने कभी दूसरों का दमन या आलोचना नहीं की थी। अपनी बर्खास्तगी के बाद वह अपने अपराध और भ्रष्ट स्वभाव पर चिंतन करने में सक्षम थी, वह खुद से घृणा और पश्चात्ताप कर सकती थी। वह ऐसी नहीं थी, जो बदलने या सत्य स्वीकारने से मना करे। इसके आधार पर, उसमें सिर्फ कुछ मसीह-विरोधी अभिव्यक्तियाँ थीं, मसीह-विरोधी सार नहीं। अगर इस अपराध के कारण उसे मसीह-विरोधी ठहराया गया, तो यह चीजों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना होगा, जो सत्य के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है। यह उसका दमन और निंदा करना होगा, जो एक कुकर्म है।

उसके बाद, ऊपरी अगुआओं ने भ्रष्ट अभिव्यक्तियों और सार के अंतर पर हमसे फिर बात की। मैंने सोचा, "अब ली किन को समझना चाहिए, और इससे चिपकना नहीं चाहिए।" अप्रत्याशित रूप से, सभा के बाद, ली किन ने हमसे कहा, "ऊपरी नेतृत्व बहन चेन की रक्षा कर रहा है। वे समस्याओं को बहन चेन के व्यवहार के सार के अनुसार नहीं देखते। पता नहीं, क्या वे उसे इसलिए बचा रहे हैं कि उन्हें लगता है कि बहन चेन में कुछ काबिलियत है।" मैंने सोचा, "ली किन क्यों बहन चेन के इस एक अपराध पर अड़ी हुई है और उसे छोड़ नहीं रही? क्या अगुआओं ने स्पष्ट रूप से संगति नहीं की? बहन चेन का व्यवहार सिर्फ भ्रष्टता दिखा रहा था। यह एक अस्थायी अपराध था। उसे मसीह-विरोधी कतई नहीं कहा जा सकता।" लेकिन ली किन और उसका गुट इसे स्वीकार नहीं पाया। उसने यह भी कहा कि अगर अगुआ बहन चेन से नहीं निपटेंगे, तो वह इसकी आगे रिपोर्ट करेगी। ली किन का रवैया बहुत अड़ियल था, और बाकी दो साथी भी उसकी तरफ थे। मैं अकेला था, जो उससे असहमत था। इससे मैं बहुत परेशान हो गया। अगुआओं ने चीजें जैसे सँभाली थीं, अगर मैं उसका समर्थन करता रहा, तो क्या ली किन और उसका गुट यह नहीं कहेंगे कि मैं हैसियत को पूजता हूँ, मुझमें समझ की कमी है, और मैं अगुआओं की बात ही दोहराता हूँ? लेकिन अगर मैं उनकी बात से सहमत हो गया, तो क्या मैं आँख मूँदकर किसी की निंदा नहीं करूँगा? मैंने सोचा, मेरा सबसे अच्छा विकल्प यह कहना होगा कि मुझे अंतर करना नहीं आता। इस तरह, वे मेरे असली विचार नहीं जान पाएँगे, और यह नहीं कहेंगे कि मुझमें विवेक की कमी है या मैं एक मसीह-विरोधी के पक्ष में खड़ा हूँ। इसलिए हिचकते हुए मैंने कहा, "मैं बहन चेन के व्यवहार के बारे में ज्यादा नहीं जानता, इसलिए मुझे नहीं पता कि उसे क्या कहा जाए।" ली किन की अभिव्यक्ति तुरंत बदल गई, जब उसने देखा कि मैंने उसका अनुसरण नहीं किया। बाद में, बहन चेन की रिपोर्ट करने के बारे में चर्चा करते समय उन्होंने जान-बूझकर मुझे नजरअंदाज किया। मुझे लगा, जैसे मुझे अलग-थलग किया जा रहा है, और यह बहुत दुखद था, "क्या मैंने कुछ गलत किया? वे मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हैं?" यह मेरे लिए परेशान करने वाला था, और मैं शांति से अपना कर्तव्य नहीं निभा पा रहा था। मुझे चिंता थी वे कहेंगे कि मैं सत्य बहुत कम समझता हूँ और मुझमें समझ की कमी है। क्या वे इस बात पर मुझे ठुकराते रहेंगे? जब मैंने इस बारे में सोचा, तो मेरा दिल और भी डूब गया, "चलो छोड़ो, अगर वे मेरे सुझाव नहीं सुनते और मुझे इसमें शामिल नहीं करना चाहते, तो मैं बेवजह शामिल नहीं होऊँगा, और वे खुद को अपमानित करने के लिए मुझे बर्खास्त करने का कारण नहीं गढ़ेंगे। वे जैसे चाहें बहन चेन के साथ पेश आ सकते हैं। इससे मेरा कोई लेना-देना नहीं है।" लेकिन जब मैंने वह फैसला किया, तो दिल में टीस महसूस हुई, "क्या मैं भाग नहीं रहा हूँ? मैं कलीसिया के कार्य की रक्षा नहीं कर रहा हूँ।" बाद में, मैंने अपने अगुआओं के साथ अपनी हालत के बारे में खुलकर संगति की, तो उन्होंने मुझे परमेश्वर की इच्छा जानने और कलीसिया का काम बनाए रखने की याद दिलाई, और कहा कि अगर मैं निष्क्रियता से पीछे हटा या मैंने इसलिए बचना चाहा कि ली किन मुझे अलग-थलग कर रही है, तो मैं अपनी जिम्मेदारी की अनदेखी कर रहा होऊंगा। अगुआओं की बात सुनकर एहसास हुआ कि मैं सिर्फ अपने निजी हितों पर विचार कर रहा था। मैंने देखा कि बहन चेन को दबाया जा रहा है, लेकिन मैंने परवाह नहीं की। मैं निकाले जाने से बचने के लिए भाग जाना चाहता था। मैं कितना स्वार्थी और नीच था! बाद में, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा, तब जाकर मुझे अपनी प्रकृति थोड़ी और स्पष्ट दिखाई दी। परमेश्वर कहते हैं, "वह कैसा स्वभाव होता है, जब लोग अपने कर्तव्य के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं लेते, उसे लापरवाह और अनमने ढंग से निभाते हैं, जी-हुजूरी करने वालों जैसे कार्य करते हैं, और परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा नहीं करते? यह चालाकी है, यह शैतान का स्वभाव है। इंसान के जीवन-दर्शनों में चालाकी सबसे अधिक उलल्रेखनीय है। लोग सोचते हैं कि अगर वे चालाक न हों, तो वे दूसरों को नाराज करेंगे और खुद की रक्षा करने में असमर्थ होंगे; उन्हें लगता है कि कोई उनसे आहत या नाराज न हो जाए, इसलिए उन्हें पर्याप्त रूप से चालाक होना चाहिए, जिससे वे खुद को सुरक्षित रख सकें, अपनी आजीविका की रक्षा कर सकें, और जन-साधारण के बीच पाँव जमाने के लिए एक सुदृढ़ जगह हासिल कर सकें। सभी अविश्वासी शैतान के फलसफे के अनुसार जीते हैं। वे सभी जी-हुजूरी करते हैं और किसी को ठेस नहीं पहुँचाते। तुम परमेश्वर के घर आए हो, तुमने परमेश्वर के वचन पढ़े हैं, और परमेश्वर के घर के उपदेश सुने हैं। तो तुम हमेशा जी-हुजूरी क्यों करते हो? जी-हुजूरी करने वाले केवल अपने हितों की रक्षा करते हैं, कलीसिया के हितों की नहीं। जब वे किसी को बुराई करते और कलीसिया के हितों को नुकसान पहुँचाते देखते है, तो इसे अनदेखा कर देते हैं। उन्हें जी-हुजूरी करने वाला बनना पसंद है, और वे किसी को ठेस नहीं पहुँचाते। यह गैर-जिम्मेदाराना है, और ऐसा व्यक्ति बहुत चालाक होता है, भरोसे लायक नहीं होता। अपने घमंड और प्रतिष्ठा की रक्षा करने के लिए, और अपनी साख और हैसियत बनाए रखने के लिए कुछ लोग हर कीमत पर दूसरों की मदद और अपने दोस्तों के लिए त्याग करके प्रसन्न होते हैं। लेकिन जब उन्हें परमेश्वर के घर के हितों, सत्य और न्याय की रक्षा करनी होती है, तो वे ऐसे अच्छे इरादे नहीं रखते, वे पूरी तरह से गायब हो गए होते हैं। जब उन्हें सत्य का अभ्यास करना चाहिए, तो वे नहीं करते। यह क्या हो रहा है? अपनी गरिमा और प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए वे कोई भी कीमत चुकाएँगे और कुछ भी सहेंगे। लेकिन जब उन्हें वास्तविक कार्य करने, सकारात्मक चीजों की रक्षा करने, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों की रक्षा करने और उन्हें पोषण प्रदान करने की आवश्यकता होती है, तो उनमें कोई भी कीमत चुकाने और कुछ भी सहने की ताकत क्यों नहीं रहती? यह अकल्पनीय है। असल में, उनका स्वभाव सत्य से चिढ़ने वाला होता है। मैं क्यों कहता हूँ कि उनका स्वभाव सत्य से चिढ़ने वाला होता है? क्योंकि जब भी किसी चीज में परमेश्वर के लिए गवाही देना, सत्य का अभ्यास करना, परमेश्वर के चुने हुए लोगों की रक्षा करना, शैतान के धोखे से लड़ना, या सकारात्मक चीजों की रक्षा करना शामिल होता है, तो वे भागकर छिप जाते हैं, और जो उचित होता है, वह नहीं करते। कष्ट उठाने का उनका वीरोचित ढंग और जज्बा कहाँ चला जाता है? उनका वे कहाँ इस्तेमाल करते हैं? यह देखना आसान है। भले ही कोई उनकी आलोचना करे और कहे कि उन्हें इतना स्वार्थी और तुच्छ नहीं होना चाहिए, और अपनी रक्षा नहीं करनी चाहिए, वे बिलकुल भी परवाह नहीं करते। वे अपने मन में कहते हैं, 'मैं ये चीजें नहीं करता, और ये मुझ पर लागू नहीं होतीं। इस तरह कार्य करने से मेरी प्रसिद्धि और हैसियत को क्या फायदा होगा?' वे सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति नहीं होते। वे प्रसिद्धि और हैसियत के पीछे दौड़ना पसंद करते हैं, और वह काम बिलकुल नहीं करते जो परमेश्वर ने उन्हें सौंपा होता है। इसलिए जब उन्हें कलीसिया का कार्य करना होता है, तो वे भाग जाना चुनते हैं। अपने दिल में, वे सकारात्मक चीजों को पसंद नहीं करते, और सत्य में रुचि नहीं रखते। यह साफ दर्शाता है कि वे सत्य से चिढ़ते हैं। जो सत्य से प्रेम करते हैं और जिनमें सत्य की वास्तविकता होती है, वही लोग तब आगे आ सकते हैं, जब परमेश्वर के घर के काम को और चुने हुए लोगों को आवश्यकता होती है, वही लोग साथ खड़े होकर, बहादुरी और कर्तव्य-निष्ठा से, परमेश्वर की गवाही दे सकते हैं, सत्य पर संगति कर सकते हैं, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सही मार्ग पर ले जा सकते हैं और उन्हें परमेश्वर के कार्य के प्रति आज्ञाकारी होने दे सकते हैं; यही परमेश्वर की इच्छा के प्रति जिम्मेदारी का रवैया है और उसकी परवाह करने की अभिव्यक्ति है" (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने स्‍वभाव का ज्ञान उसमें बदलाव की बुनियाद है)। परमेश्वर के वचनों से मैंने देखा कि मैं विशेष रूप से कपटी और धोखेबाज था। ली किन और दूसरे लोग बहन चेन को मसीह-विरोधी दिखाना चाहते थे। मैं जाहिर तौर पर उनसे सहमत नहीं था, और मैं यह भी जानता था कि वे बहन चेन की अन्यायपूर्ण और मनमाने ढंग से निंदा कर रहे हैं, लेकिन मुझे उन्हें ठेस पहुँचाने और उनके द्वारा निंदा या बर्खास्त किए जाने का डर था। अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए मैंने अपने शब्द बदल दिए और अस्पष्ट बात कही। मैंने सही दृष्टिकोण अपनाने की बिल्कुल भी हिम्मत नहीं की। हर चीज में मैंने अपने हितों के लिए साजिश रचने और खुद को बचाने की कोशिश की, मैंने कलीसिया के काम की रक्षा नहीं की, और मैंने ध्यान नहीं दिया कि वे कलीसिया के काम को कितना बाधित कर सकते हैं। कलीसिया के काम और भाई-बहनों के जीवन-प्रवेश से जुड़े एक बड़े मामले में मैंने भ्रमित होने का नाटक किया, ताकि कोई अपमानित या आहत न हो, अपना पद बनाए रखने के लिए मैं भीड़ के साथ गया और सिद्धांतों के खिलाफ बोला। मैं सचमुच बहुत कपटी था। मैं सिर्फ कपटी ही नहीं, बल्कि सत्य से ऊबा हुआ भी था। मैं जानता था कि सत्य का अभ्यास और कलीसिया के कार्य की रक्षा करना धार्मिक और सकारात्मक बात है, लेकिन जब मैंने देखा कि मेरे अपने हितों को खतरा है, तो मैंने इसका अभ्यास नहीं किया, और यहाँ तक सोचा कि धार्मिकता बनाए रखने पर मुझे कष्ट होगा। क्या यह वास्तव में सकारात्मक चीजों और सत्य के प्रति अरुचि नहीं थी? मुझे बहुत पछतावा और अपराध-बोध हुआ।

उसके बाद, मेरे अगुआओं ने मुझे याद दिलाया कि बहन चेन की बर्खास्तगी के बाद ली किन उसकी मसीह-विरोधी के रूप में रिपोर्ट कर रही थी, और उसे निकाले जाने तक रुकने वाली नहीं थी, जो अब भ्रष्टता की एक सामान्य अभिव्यक्ति नहीं रही। अगर ली किन का इरादा सच में मसीह-विरोधी को पहचानकर कलीसिया का काम बनाए रखने का था, लेकिन वह ठीक से नहीं समझ पाई, तब अगुआओं द्वारा सत्य के सिद्धांतों पर संगति करने के बाद उसे अपनी गलतियाँ समझने और बहन चेन के अपराध को सही ढंग से देखने में सक्षम होना चाहिए था। इसके बजाय, उसने संगति को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं किया और बहन चेन को नहीं छोड़ा, जिसमें लोगों को दबाने और दंडित करने का सार है। अगुआओं ने मुझे ली किन की जाँच करने और मामले की सच्चाई पता लगाने के लिए कहा, तो मैं सहमत हो गया। लेकिन इस मामले के बारे में दूसरों से पूछते वक्त मैंने फिर से पीछे हटना चाहा। इस समय, यह सिर्फ शाओमिन नहीं थी, जिसने ली किन को नहीं पहचाना। कलीसिया के कुछ भाई-बहन भी उसके साथ खड़े थे। अगर मैं गुप्त रूप से सच्चाई पता लगाने की कोशिश करता, और वे ली किन को मेरी जाँच के बारे में बता देते, तो क्या ली किन और उसका गुट मुझे हटाने की कोशिश न करता? जैसे ही मैंने इस बारे में सोचा, मुझे फिर से दुविधा महसूस होने लगी। फिर, मुझे परमेश्वर के वचन याद आए, "तुम सभी कहते हो कि तुम परमेश्वर के बोझ के प्रति विचारशील हो और कलीसिया की गवाही की रक्षा करोगे, लेकिन वास्तव में तुम में से कौन परमेश्वर के बोझ के प्रति विचारशील रहा है? अपने आप से पूछो : क्या तुम उसके बोझ के प्रति विचारशील रहे हो? क्या तुम उसके लिए धार्मिकता का अभ्यास कर सकते हो? क्या तुम मेरे लिए खड़े होकर बोल सकते हो? क्या तुम दृढ़ता से सत्य का अभ्यास कर सकते हो? क्या तुममें शैतान के सभी दुष्कर्मों के विरूद्ध लड़ने का साहस है? क्या तुम अपनी भावनाओं को किनारे रखकर मेरे सत्य की खातिर शैतान का पर्दाफ़ाश कर सकोगे? क्या तुम मेरी इच्छा को स्वयं में पूरा होने दोगे? सबसे महत्वपूर्ण क्षणों में क्या तुमने अपने दिल को समर्पित किया है? क्या तुम ऐसे व्यक्ति हो जो मेरी इच्छा पर चलता है? स्वयं से ये सवाल पूछो और अक्सर इनके बारे में सोचो" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 13)। परमेश्वर के वचनों ने मेरा हृदय झकझोर दिया। परमेश्वर के सवालों का सामना करके मुझे लगा कि मैं एक डरपोक कायर हूँ। जब भी कुछ हुआ, मैंने भाग जाना चाहा। मुझे परमेश्वर के दायित्व का जरा भी खयाल नहीं था। मैंने दूसरों को ठेस और खुद को नुकसान पहुँचाने के डर से कलीसिया के काम की रक्षा नहीं की। मैं कितना स्वार्थी और नीच था! परमेश्वर के वचनों ने मुझे जगा दिया। परमेश्वर ने यह परिवेश मेरी परीक्षा लेने के लिए बनाया था। ली किन का व्यवहार कलीसियाई जीवन में गड़बड़ी पैदा कर रहा था। अगर मैं अब खड़ा नहीं हुआ, तो ली किन कलीसिया के काम को और भी ज्यादा नुकसान पहुँचाएगी। मेरी कायरता और डर परमेश्वर में आस्था की कमी के प्रतीक थे। मुझे विश्वास नहीं था कि सब-कुछ परमेश्वर के हाथों में है, इसलिए मुझे हमेशा दूसरों द्वारा दबाए जाने का डर लगा रहा। परमेश्वर धार्मिक है, उसके घर में सत्य का शासन है, नकारात्मक लोग और कुकर्मी यहाँ कभी पैर नहीं रख सकते, लेकिन मेरी आस्था बहुत छोटी थी। इसलिए, मैंने परमेश्वर के सामने आकर प्रार्थना की, "परमेश्वर, मेरे दिल में डर और कायरता है। कृपया मुझे आस्था दो, ताकि मैं कलीसिया के काम की सुरक्षा के लिए खड़ा हो सकूँ।" प्रार्थना करने के बाद मुझे एक समूह-अगुआ का ध्यान आया, जो काफी ईमानदार था और कुछ समझ रखता था। इसलिए मैंने उससे मामले की जाँच में मेरे साथ काम करने को कहा। बहन चेन की मसीह-विरोधी अभिव्यक्तियों की ली किन की रिपोर्ट जाँचने पर हमें जो पता चला, हम उस पर हैरान हुए बिना नहीं रह सके। हमने पाया कि उनमें से कुछ रिपोर्टें तथ्यात्मक नहीं थीं। कुछ में उसने भ्रष्टता दिखाई थी, लेकिन वे सार की समस्याएँ नहीं थीं। इन बातों के आधार पर बहन चेन की मसीह-विरोधी के रूप में निंदा करके क्या वह बहन चेन को दबाने के लिए तथ्यों को तोड़-मरोड़ नहीं रही थी? सामान्य मामलों के उपयाजक ने भी देखा कि ली किन बहन चेन के प्रति बेरहम थी, और उसे बुराई न करने की याद दिलाते हुए चेतावनी दी, लेकिन ली किन बेदर्द थी, और अभी भी बहन चेन के मसीह-विरोधी होने की निंदा करते हुए शोर मचा रही थी। हमने देखा कि ली किन बहन चेन से इतनी नफरत करती थी कि उसे निकलवाना चाहती थी, इसलिए हमने बहन चेन के साथ ली किन की साझेदारी की जाँच शुरू की और पता चला कि जब वे साथी थीं, तो चूँकि बहन चेन की काबिलियत और कार्य-क्षमता उसकी तुलना में कहीं बेहतर थी, इसलिए ऊपरी अगुआओं ने बहन चेन को बहुत-से अहम काम सौंपे। ली किन यह सोचकर बहन चेन से जलती और असंतुष्ट रहती थी कि उसने उसकी चमक चुरा ली है। बहन चेन अक्सर उसके काम में समस्याएँ भी बताती रहती थी, इसलिए ली किन को लगता था कि बहन चेन उसे कमतर समझती और उसके प्रति द्वेष रखती है, और वह हमेशा बदला लेने का मौका तलाशती रहती थी। जब बहन चेन ने सिद्धांतों का उल्लंघन किया और उसे एक नकली अगुआ दर्शाया गया, तो ली किन मौके का फायदा उठाते हुए बहन चेन को मसीह-विरोधी बता कर निकलवाना चाहती थी। पहले, मुझे हमेशा लगता था कि वह बहन चेन की निंदा इसलिए करती है, क्योंकि वह सत्य नहीं समझती। अब मैंने देखा कि ली किन की बदला लेने की इच्छा इतनी प्रबल थी कि वह तथ्यों को तोड़-मरोड़कर और लोगों को भ्रमित कर उन्हें बहन चेन की निंदा करने के लिए फुसला रही थी। इसका सार बहुत बुरा था!

फिर, परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन के जरिये मैंने ली किन का सार और ज्यादा स्पष्ट रूप से देखा। परमेश्वर कहते हैं, "विरोधी कौन होता है? वे कौन लोग होते हैं, जिन्हें मसीह-विरोधी अपने विरोधी समझता है? कम से कम, वे वो लोग होते हैं जो अगुआ के रूप में मसीह-विरोधी को गंभीरता से नहीं लेते; वे वो लोग होते हैं जो उनका आदर या आराधना नहीं करते, जो उन्हें सामान्य व्यक्ति समझते हैं। यह एक किस्म है। फिर ऐसे लोग भी होते हैं, जो सत्य से प्रेम करते हैं, सत्य का अनुसरण करते हैं, अपने स्वभाव में बदलाव लाने की कोशिश करते हैं, और परमेश्वर से प्रेम करने का प्रयास करते हैं; वे मसीह-विरोधी के मार्ग से भिन्न मार्ग अपनाते हैं, और वे मसीह-विरोधी की दृष्टि में विरोधी होते हैं। इसके अलावा, जो कोई मसीह-विरोधी को अपने सुझाव देने और उसे उजागर करने का साहस करता है, या जिसके विचार उसके विचारों से भिन्न होते हैं, उसे उसके द्वारा विरोधी समझा जाता है। एक किस्म और है : वे जो क्षमता और काबिलियत में मसीह-विरोधी के बराबर होते हैं, जिनकी बोलने और कार्य करने की क्षमता उनके समान होती है, या जिन्हें वे खुद से ऊँचा समझते और पहचानने में सक्षम होते हैं। मसीह-विरोधी के लिए यह असहनीय है, उसकी हैसियत के लिए खतरा है। ऐसे लोग मसीह-विरोधी के सबसे बड़े विरोधी होते हैं। मसीह-विरोधी ऐसे लोगों की उपेक्षा करने की हिम्मत नहीं करता या उनके प्रति जरा भी शिथिल नहीं होता। वह उन्हें अपने पाँव का काँटा समझता है, और हर समय उनसे सावधान और सँभलकर रहता है। वह अपने हर काम में उनसे बचता है। जब मसीह-विरोधी देखता है कि कोई विरोधी उन्हें पहचानकर उजागर करने वाला है, तो एक खास दहशत उन्हें जकड़ लेती है; वह इस तरह के विरोधी को बाहर करने और उस पर हमला करने के लिए बेताब हो जाता है, और तब तक संतुष्ट नहीं होता, जब तक कलीसिया से उस विरोधी को हटा नहीं देता। ... किसी मसीह-विरोधी के लिए, विरोधी उसकी हैसियत और सत्ता के लिए खतरा होता है। कोई भी उनकी हैसियत और सत्ता के लिए खतरा बनता है, चाहे कोई भी हो, तो मसीह-विरोधी उसे ठिकाने लगाने के लिए किसी भी हद तक चले जाते हैं; अगर उन पर नियंत्रण न किया जा सके या उन्हें अपने खेमे में शामिल न किया जा सके, तो मसीह-विरोधी उन्हें नीचा दिखाकर निकाल देंगे। अंतत:, मसीह-विरोधी पूर्ण सत्ता पाने का अपना मकसद हासिल कर ही लेंगे और खुद ही कानून बन जाएँगे। ये ऐसी कुछ तरकीबें हैं जिन्हें मसीह-विरोधी अपनी हैसियत और सामर्थ्य बनाए रखने के लिए आदतन उपयोग में लाते हैं—वे विरोधियों पर आक्रमण करते हैं और उन्हें निकाल देते हैं" (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद दो : वे विरोधियों पर आक्रमण करते हैं और उन्हें निकाल देते हैं)। "जब एक उग्र व्यक्ति को किसी भी प्रकार के सुविचारित उपदेश, आरोप, सीख या सहायता का सामना करना पड़ता है, तो उसका रवैया विनम्रतापूर्वक धन्यवाद देने या स्वीकार करने का नहीं होता, बल्कि क्रोधित होने, अत्यंत नफरत करने, शत्रुता रखने, यहाँ तक कि प्रतिशोध लेने का होता है। ... बेशक, जब वे नफरत के कारण किसी से प्रतिशोध लेते हैं, तो उसकी वजह कोई पुरानी रंजिश नहीं होती, बल्कि यह होती है कि उस व्यक्ति ने उनकी गलतियों को उजागर कर दिया। इससे पता चलता है कि मसीह-विरोधियों को इससे फर्क नहीं पड़ता कि ऐसा किसने किया, इससे भी फर्क नहीं पड़ता कि मसीह-विरोधी के साथ उसके संबंध कैसे हैं, केवल उन्हें उजागर करने मात्र से उनकी नफरत भड़क सकती है और वे प्रतिशोध लेने पर उतारू हो सकते हैं। इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह कौन है, ऐसा करने वाले व्यक्ति को सत्य की समझ है या नहीं, वह कोई अगुआ है या कर्मी है या परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से कोई साधारण सदस्य है। कोई भी व्यक्ति मसीह-विरोधी को उजागर करे, उनकी काट-छाँट करे और उनके साथ निपटे, वे तो उस व्यक्ति को शत्रु मानेंगे और खुले तौर पर यह तक कहेंगे, 'अगर कोई मुझसे निपटेगा, तो मैं उसे तकलीफ दूँगा। अगर कोई मुझसे निपटेगा और मेरी काट-छाँट करेगा, मेरे राज़ उजागर करेगा, मुझे परमेश्वर के घर से निष्कासित करवाएगा और मुझसे मेरे हिस्से के आशीष लूटेगा, तो मैं उसे कभी नहीं छोड़ूँगा। मैं धर्मनिरपेक्ष दुनिया में ऐसा ही हूँ : कोई मुझे परेशान करने की हिम्मत नहीं करता, मुझे परेशान करने वाला अभी पैदा ही नहीं हुआ!' काट-छाँट और निपटे जाने के समय मसीह-विरोधी ऐसे क्रोधपूर्ण शब्द बोलते हैं। जब वे ऐसे क्रोधपूर्ण शब्द बोलते हैं, तो यह दूसरों को डराने के लिए नहीं होता, न ही खुद को बचाने के लिए भड़ास निकालना है। ये उनकी दुष्टता के लक्षण हैं और वे किसी भी हद तक गिर सकते हैं। यही मसीह-विरोधियों का उग्र स्वभाव है" (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और अपने व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ धोखा तक कर देते हैं (भाग आठ))। सिर्फ परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन के जरिये ही मैं ली किन की मंशाएं साफ तौर पर देख पाई। उसका कहना था कि वह कलीसिया के काम की रक्षा के लिए एक मसीह-विरोधी को छोड़ना नहीं चाहती, लेकिन वह सार्वजनिक न्याय का इस्तेमाल निजी बदले के लिए कर रही थी। वह सिर्फ इसलिए नाराज हो गई कि बहन चेन ने उसके काम में भटकावों के बारे में बताया था, उससे ऐसा बखेड़ा खड़ा करने के लिए बहन चेन की बर्खास्तगी का इस्तेमाल किया, और बहन चेन के क्षणिक अपराध पर उसे मसीह-विरोधी दिखाने पर अड़ गई। हमारे अगुआओं ने भ्रष्टता और कुकर्म के अंतर पर स्पष्ट रूप से संगति की, फिर भी उसने इसे नहीं छोड़ा, और बहन चेन के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के लिए हर तरीका आजमाया। उसने बहन चेन के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर बताया और उसकी अंधाधुंध निंदा की, उसने बहन चेन को हटाने के अपने प्रयास में भाई-बहनों को उसकी निंदा में शामिल होने के लिए धोखा देकर फुसलाया। जब अगुआ बहन चेन से उसकी आशा के अनुरूप नहीं निपटे, तो वह असंतुष्ट हो गई, और सहकर्मियों के बीच ऐसी आलोचनाएँ भी फैला दी कि अगुआ बहन चेन की रक्षा कर रहे हैं, कुछ लोगों को धोखे से अपने पक्ष में करके अगुआओं के प्रति पूर्वाग्रह से भर दिया। जब मैंने बहन चेन के बारे में एक अलग विचार रखा, तो उसने उसे नकारकर मुझे अलग-थलग कर दिया। जब कुछ भाई-बहनों ने उसे याद दिलाया और चेतावनी दी, तो उसने स्वीकार नहीं किया और कहा कि यह शैतान की गड़बड़ी है। इन तथ्यों से हमने जाना कि ली किन को सत्य से नफरत थी और उसका स्वभाव बहुत शातिर था। अगर किसी ने उसे पहचान लिया या उसकी हैसियत के लिए खतरा पैदा किया, तो वह उसकी दुश्मन बन गई, उस पर हमला किया, उसे अलग किया, दंडित किया, और उससे प्रतिशोध लिया। ली किन एक कुकर्मी थी। इसके बाद, मैंने तथ्यों की अपनी रिपोर्ट अगुआओं को दी, जिन्होंने तब ली किन को बर्खास्त कर अलग-थलग कर दिया, और उसके व्यवहार पर नजर रखी, ताकि अगर उसने और गड़बड़ी की, तो उसे निष्कासित कर दिया जाए। संगति के माध्यम से शाओमिन को भी ली किन की पहचान हो गई। यह देखकर कि उसने बुराई करने में ली किन का अनुसरण किया था, उसे पछतावा हुआ और उसने खुद से नफरत की।

हालाँकि यह बहुत पहले हुआ था, लेकिन जब मैं सोचता हूँ कि इस प्रक्रिया के दौरान कैसे मैं अपने हितों की रक्षा के लिए कलीसिया के काम को नुकसान होते देख रहा था, तो मुझे बहुत शर्म आती है! अगर परमेश्वर भाई-बहनों के जरिये मेरी मदद और संगति किए जाने की व्यवस्था न करता, तो मैंने कलीसिया के काम की रक्षा करने का साहस तक न किया होता। ये परमेश्वर के वचन ही थे, जिन्होंने मुझे अभ्यास के सिद्धांत दिए। मैं चाहे जितना भी सत्य समझूँ, अगर इसमें कलीसिया के हित शामिल हैं, तो मुझे खड़े होकर उनका बचाव करना होगा। यह ऐसी जिम्मेदारी है, जिससे बचा नहीं जा सकता।

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