25. मेरे परिवार द्वारा मेरा दमन : सबक देने वाला एक अनुभव

वुवें, कनाडा

जब मैं नई-नई इस आस्था से जुड़ी थी, तो मेरे पति मेरे आड़े नहीं आते थे, मैंने उनके साथ भी सुसमाचार साझा किया था। मगर पैसा कमाने पर पूरा ध्यान देने के कारण वे आस्था से जुड़ना नहीं चाहते थे। फिर उन्होंने देखा कि मेरा पूरा व्यवहार ही बदल गया था, मैं बहुत शांतचित्त हो गई थी, इसलिए उन्होंने सच में इसका समर्थन किया। लेकिन एक साल बाद, वे रोकटोक करने लगे। एक दिन, काम से घर लौटने पर उन्होंने मुझसे पूछा, "तुम जिसमें विश्वास रखती हो, वह चमकती पूर्वी बिजली है? है न? आज मैं माइक को घर छोड़ने गया तो उसने बताया कि उसकी कलीसिया के पादरी लोग कहते हैं कि यह सच्चा रास्ता नहीं है, इसके धर्मसंदेश बहुत गूढ़ हैं, और उनसे गुमराह हो जाना बहुत आसान है। माइक ने मुझे नसीहत दीकि तुम्हें ये धर्मसंदेश नहीं सुनने चाहिए।" माइक उनके बॉस थे और वे प्रभु में लंबे समय से विश्वास रखते थे। वे सच में प्रतिभाशाली थे—मेरे पति के मन में उनके लिए बड़ा आदर था। मैं समझ गई कि मेरे पति माइक को सही मानते हैं, इसलिए मैंने उनसे कहा कि वे आस्था की बातें नहीं समझते और उन्हें दूसरों की कही बातें तोते की तरह नहीं दोहरानी चाहिए। थोड़ी देर के लिए वे झिझकते हुए–से लगे, फिर वे और कुछ नहीं बोले।

फिर एक बार, उन्होंने मुझसे गंभीरता से कहा, "मैंने थोड़ी ऑनलाइन, रिसर्च की है, तुम्हारे सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर कम्युनिस्ट पार्टी कार्रवाई करने में लगी हुई है। इसके अलावा सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बारे में लोग बहुत-सी बातें कह रहे हैं, कि वह परमेश्वर नहीं, बस एक आम इंसान है, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया लोगों से पैसे ऐंठ रही है। मैं अब तुम्हें कलीसिया के लोगों के साथ सभाओं में भाग लेने नहीं दे सकता। मुझे डर है कि तुम्हारे साथ कोई धोखाधड़ी हो सकती है।" यह सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आया, और मैंने जवाब दिया, "आपने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन नहीं पढ़े हैं, और आप कलीसिया को नहीं समझते हैं। कुछ ऑनलाइन अफवाहों के आधार पर आप मनमाने ढंग से फैसला कैसे कर सकते हैं? आप जानते हैं कि सभी ईसाई प्रभु यीशु में विश्वास रखते हैं, और वे जानते हैं कि वही सच्चा परमेश्वर है। 2,000 साल पहले, प्रभु यीशु के कार्यकाल में, बहुत-से लोगों ने उसकी भी निंदा की और उसे नकारा। उन लोगों ने कहा कि यह तो एक आम इंसान है, एक बढ़ई का बेटा। प्रभु यीशु बाहर से तो एक आम इंसान जैसा ही दिखता था, लेकिन उसका सार दिव्य था, और वह सत्य को व्यक्त करके मनुष्य को छुटकारा दिला सकता था। वह इंसान के चोले में परमेश्वर का आत्मा था, मनुष्य को छुटकारा दिलाने वाला। अगर हम कम्युनिस्ट पार्टी की बातें सुनें और कहें कि बाहर से आम इंसान की तरह दिखने वाला कोई भी व्यक्ति परमेश्वर नहीं है, तो क्या यह भी प्रभु यीशु मसीह को नकारना नहीं होगा? प्रभु यीशु की तरह ही सर्वशक्तिमान परमेश्वर भी साधारण लगता है, लेकिन वह सत्य व्यक्त कर सकता है, परमेश्वर की वाणी व्यक्त कर सकता है। अब तक मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बहुत-से वचन पढ़ लिए हैं। उनमें बाइबल के सभी तरह के रहस्यों को प्रकट किया गया है, और बताया गया है कि शैतान किस तरह से मनुष्य को भ्रष्ट करता है, और परमेश्वर मनुष्य को कैसे बचाता है, हमारी दुनिया में सारे अंधकार और बुराई की जड़ क्या है, और मनुष्य की भ्रष्टता का सत्य क्या है। ये हमें पाप से मुक्त होने, परमेश्वर द्वारा बचाए जाने और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने की राह भी दिखाते हैं। कोई कितना भी महान या प्रसिद्ध क्यों न रहा हो, ऐसे सत्य व्यक्त नहीं कर पाया। कौनसा इंसान सत्य व्यक्त कर सकता है? छुटकारे और उद्धार का कार्य कौन कर सकता है? कोई भी नहीं। इससे साबित होता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर सचमुच ही मनुष्य के बीच आया हुआ एक देहधारी परमेश्वर है।" मैंने उनसे यह भी कहा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया ने कभी भी चढ़ावों के लिए अपील नहीं की। परमेश्वर के वचनों की सभी किताबें मुफ्त दी जाती हैं। सीसीपी का यह दावा कि कलीसिया को बस लोगों का पैसा चाहिए, सरासर झूठा लांछन है। मैंने उनसे कहा कि उन्हें इन झूठी बातों में नहीं फंसना चाहिए। वे एक भी शब्द बोले बिना चले गए।

फिर एक बार जब मैं सुसमाचार साझा करके घर लौटी, तो उन्होंने बहुत खीझकर मुझसे कहा, "मैंने अभी-अभी ऑनलाइन पर देखा, पार्टी कहती है कि तुम्हारी कलीसिया के लोग अपने परिवारों को छोड़ रहे हैं। इन दिनों तुम बहुत ज्यादा बाहर जाती हो। क्या तुम भी घर छोड़कर जाने की तैयारी कर रही हो?" मैंने कहा, "मैं अपने घर का बहुत ख्याल रखती हूँ। आप ऐसा कैसे कह सकते हैं? मैं सुसमाचार साझा करने के लिए बाहर जाती हूँ, ताकि लोग जान सकें कि उद्धारकर्ता आ गया है और वे उसका उद्धार स्वीकार कर सकते हैं। आपने देखा है, लोग किस तरह से लगातार और ज्यादा भ्रष्ट होते जा रहे हैं, बुरी आदतों के शिकार होकर पापमें जी रहे हैं। अपने दोस्तों को ही लीजिए—वे सभी या तो जुआ खेलते हैं, या वेश्याओं के पास जाते हैं। क्या एक भी ऐसा है जो सदाचारी हो? दुनिया बहुत बुरी हो गई है। सभी लोग परमेश्वर को नकारते और उसका प्रतिरोध करते हैं, और भ्रष्टता अपने चरम पर है। बाइबल में भविष्यवाणी की गई है कि अंत के दिनों में महाविपत्तियाँ आएंगी, जो तमाम भ्रष्ट मनुष्यों को मिटा कर रख देंगी। अब विपत्तियाँ बढ़ रही हैं। जब लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को स्वीकार करके, पाप और भ्रष्टता को छोड़ देंगे, तभी वे विपत्तियों में परमेश्वर द्वारा बचाए जा सकेंगे और उसके राज्य में प्रवेश कर सकेंगे। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विश्वासी समझते हैं कि परमेश्वर लोगों को बचाने के लिए कितना तत्पर है, और हम देह-सुख को छोड़ देने, परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार की गवाही देने और उसे साझा करने की कोशिश करने को तैयार हैं। यह परमेश्वर की इच्छा का पालन करना है—यह एक धार्मिक और नेक काम है! लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी यह अनुमति नहीं देती कि लोग आस्था रखें, सुसमाचार साझा करें या परमेश्वर की गवाही दें, वह पागलों की तरह ईसाइयों को गिरफ्तार करके उन्हें सता रही है। इस कारण से बहुत-से ईसाई अपने परिवारों से दूर जाने को मजबूर हो गए हैं, और वापस नहीं लौट पा रहे हैं। कुछ को तो गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया है या सता-सता कर मार डाला गया है। क्या यह सब कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा ईसाइयों के उत्पीड़न के कारण नहीं है? लेकिन वे पीड़ितों को दोष देते हैं, और कहते हैं कि विश्वासी अपने परिवारों को छोड़ रहे हैं। क्या यह चीजों को तोड़ना-मरोड़ना नहीं है, सच्चाई को बदलना नहीं है? आस्था रखना बिल्कुल सही और उचित है। दुनिया भर में बहुत-से विश्वासी हैं। आस्था परिवारों को कहाँ नष्ट कर रही है? सीसीपी दुष्ट है, वह सिर्फ झूठी बातें ही फैलाती है। मगर आप उससे घृणा नहीं करते—उल्टे आप उसकी झूठी बातों पर यकीन करते हैं। आप बस उसका साथ दे रहे हैं और कह रहे हैं कि हम अपने परिवारों को छोड़ रहे हैं। यह सही और गलत का घालमेल करना है।" वे सीसीपी की झूठी बातों के फेर में आ चुके थे, इसलिए उन्होंने मेरी एक न सुनी। वे गुस्से से बोले, "मुझे कोई परवाह नहीं। किसी में भी विश्वास रखो, बस सर्वशक्तिमान परमेश्वर में नहीं।" यह देखकर कि वे इस ख्याल से चिपके हुए हैं, मुझे एकाएक थोड़ा डर लगा। हमारी शादी को दस साल हो चुके थे और हम दोनों ने साथ-साथ बहुत-कुछ झेला था। हम हमेशा तमाम चीजों पर चर्चा करते थे और बिना किसी बड़े मतभेद के एक-दूसरे का साथ देते थे, सर्वशक्तिमान परमेश्वर में मेरी आस्था के कारण उनका इतना ज्यादा खीजना बहुत बेचैन करने वाला था। मैंने मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे विनती की कि वह मुझे उसकी इच्छा को समझने का रास्ता दिखाए। प्रार्थना के बाद, मुझे परमेश्वर के वचनों का यह कथन याद आया : "परमेश्वर द्वारा मनुष्य के भीतर किए जाने वाले कार्य के प्रत्येक चरण में, बाहर से यह लोगों के मध्य अंतःक्रिया प्रतीत होता है, मानो यह मानव-व्यवस्थाओं द्वारा या मानवीय हस्तक्षेप से उत्पन्न हुआ हो। किंतु पर्दे के पीछे, कार्य का प्रत्येक चरण, और घटित होने वाली हर चीज़, शैतान द्वारा परमेश्वर के सामने चली गई बाज़ी है, और लोगों से अपेक्षित है कि वे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग बने रहें" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है')। इससे मुझे यह समझने में मदद मिली कि ऊपर से तो यूं लग रहा था जैसे मेरे पति मेरी आस्था के मार्ग में आड़े आ रहे हैं, लेकिन दरअसल इसके पीछे शैतान की दखलंदाजी थी। शैतान सदा के लिए लोगों के ऊपर शासन करके उन्हें अपने कब्जे में रखना चाहता है। वह नहीं चाहता था कि मैं परमेश्वर के सामने आकर उसकी आराधना करूँ, इसलिए वह मुझे रोकने की भरसक कोशिश कर रहा था, मेरे पति को गुमराह करके मेरी राह मेंरुकावट डालने की कोशिश में, ऑनलाइन झूठी बातों और अफवाहों का इस्तेमाल कर रहा था, ताकि मैं अपने पति के लिए अपनी भावनाओं के कारण सच्चे रास्ते को छोड़कर परमेश्वर को धोखा दूं। शैतान बेहद कुटिल और धूर्त है! यह जानकर, मैंने संकल्प किया कि शैतान चाहे जो करे, मैं अपनी आस्था पर अडिग रहकर परमेश्वर का अनुसरण करूंगी, और कभी भी शैतान के सामने घुटने नहीं टेकूँगी! इसलिए मैंने उनसे कहा, "मैं परमेश्वर में विश्वास रखकर उसका अनुसरण करती हूँ। यह सही रास्ता है। यह मेरी अपनी इच्छा है, और आपको इसमें दखल देने का कोई हक नहीं है!" वे एक भी शब्द बोले बिना गुस्से से बाहर चले गए।

एक दिन उन्होंने मुझे परमेश्वर के वचनों के भजन सुनते हुए देख लिया। वे चेहरा लटकाते हुए गुस्से से बोले, "मैंने तुमसे कहा था, सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास मत रखो। तुम कभी सुनती क्यों नहीं हो? माइक बरसों से एक विश्वासी रहा है, वह सच में एक निष्ठावान ईसाई है। उसने मुझे बताया है कि चमकती पूर्वी बिजली सच्चा रास्ता नहीं है, इसलिए अगर तुम्हें परमेश्वर में विश्वास रखना ही है, तो माइक की कलीसिया में जाओ। वह बहुत बड़ी है और जानी-मानी है। मैं हर हफ्ते तुम्हारे साथ सेवा में शामिल हुआ करूंगा, और माइक अपने पादरी से तुम्हारी बात भी करवा देगा।" मैंने उनसे कहा, "आप माइक की बातों को इतना सही क्यों मानते हैं? और हम भला पादरियों को क्यों देखें? आप सिर्फ यह देखते हैं कि पादरियों के पास डिग्रियाँ हैं, वे जाने-माने हैं, लेकिन आपको कोई परवाह नहीं कि असल में वे क्या प्रचार करते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार किए बिना उन्हें सत्य का पोषण नहीं मिल सकता। वे बस बाइबल का ज्ञान बघारते हैं, वही पुरानी बातें। वे यह नहीं बता सकते कि प्रभु के वचनों पर अमल कैसे करें, या लोगों की पापी सोच को कैसे दुरुस्त करें। उस कलीसिया में जाकर मुझे कोई फायदा नहीं होगा। मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की सभाओं में आनंद मिलता है; पोषण मिलता है। मैं हर सभा में और ज्यादा सत्य को समझ पाती हूँ, मैं सीख पाती हूँ कि सामान्य मानवता के साथ जीवन कैसे जीना है। आपने खुद ही कहा था कि आस्था पाने के बाद से आपने मुझमें कुछ बदलाव देखे हैं। तो फिर आप इस सच्चाई पर क्यों नहीं ध्यान देते, क्यों सीसीपी की झूठी बातों पर यकीन करने की जिद करके मेरे आड़े आते हैं?" इस दलील को वे काट नहीं पाए, तो उन्होंने मुझे बस धमकी दे डाली : "तुम मेरी बात मानने से इनकार करती रहती हो। अगर तुम इस बात पर अड़ी रही, तो तुम्हें अपना सारा पैसा और बैंक खाते मेरे हवाले करने होंगे, और तुम्हें घर भी मेरे नाम पर करना होगा।" उनकी यह बात मेरे दिल में नश्तर की तरह चुभ गई। शादी के ये तमाम बरस मैंने बहुत कम खर्च में घर चलाकर काटे थे, पैसा कमाने के लिए कड़ी मेहनत की थी। घर खरीदने के लिए मिलजुलकर पैसे जुटाना आसान नहीं था। मैं अपने लिए एक नया कपड़ा तक नहीं खरीद रही थी। मैंने अपने घर के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी थी। उनकी ऐसी कठोर बातें सुनकर मुझे बहुत झटका लगा। सिर्फ मेरी आस्था के कारण, इतने वर्षों का हमारा रिश्ता ऐसे मोड़ पर कैसे आ गया था? अगर मेरे पास कोई पैसा या संपत्ति न रहे, और वो मुझे घर से बाहर कर दें, तो मैं क्या करूँगी? मुझे यूं लगा मानो कोई छुरा मेरे दिल को तार-तार कर रहा हो। मैं बेडरूम में जाकर रोने लगी, और आँसू बहाते हुए परमेश्वर से प्रार्थना करने लगी, "हे परमेश्वर, मैं बहुत दुखी हूँ, बहुत कमजोर महसूस कर रही हूँ। मुझे नहीं पता, ऐसे हालात से कैसे उबरा जाए। मुझे तुम्हारी इच्छा को समझने का रास्ता दिखाओ।"

फिर मैंने परमेश्वर के कुछ वचन याद किए, "पहले ऐसा होता था कि लोग परमेश्वर के सामने अपने सारे संकल्प करते और कहते : 'अगर कोई अन्य परमेश्वर से प्रेम नहीं भी करता है, तो भी मुझे अवश्य परमेश्वर से प्रेम करना चाहिए।' परन्तु अब, शुद्धिकरण तुम पर पड़ता है। यह तुम्हारी धारणाओं के अनुरूप नहीं है, इसलिए तुम परमेश्वर में विश्वास को खो देते हो। क्या यह सच्चा प्रेम है? तुमने अय्यूब के कर्मों के बारे में कई बार पढ़ा है—क्या तुम उनके बारे में भूल गए हो? सच्चा प्रेम केवल विश्वास के भीतर ही आकार ले सकता है। तुम अपने शुद्धिकरण के माध्यम से परमेश्वर के लिए वास्तविक प्रेम विकसित करते हो, अपने वास्तविक अनुभवों में तुम अपने विश्वास के माध्यम से ही परमेश्वर की इच्छा के बारे में विचारशील हो पाते हो, और विश्वास के माध्यम से तुम अपने देह-सुख को त्याग देते हो और जीवन का अनुसरण करते हो; लोगों को यही करना चाहिए। यदि तुम ऐसा करोगे तो तुम परमेश्वर के कार्यों को देखने में समर्थ हो सकोगे, परन्तु यदि तुम में विश्वास का अभाव है तो तुम देखने में समर्थ नहीं होगे और तुम उसके कार्यों का अनुभव करने में समर्थ नहीं होगे" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शुद्धिकरण से अवश्य गुज़रना चाहिए')। परमेश्वर के वचनों से मुझे थोड़ी ताकत मिली। दमन और मुश्किलों से सामना होने पर, परमेश्वर सच्ची आस्था और प्रेम चाहता है। हम किसी भी दौर से गुजर रहे हों, कितने भी कष्ट झेल रहे हों, हम परमेश्वर से दूर नहीं हो सकते। मुझे पता था कि मैं बहुत भाग्यशाली हूँ, जो मुझे अंत के दिनों में परमेश्वर की वाणी सुनने को मिली। प्रभु के वापस लौटने का स्वागत करना, परमेश्वर के प्रकटन की साक्षी होना, और परमेश्वर द्वारा व्यक्त उन सभी सत्यों के पोषण का आनंद लेना, पूरी तरह से मेरे प्रति उसका प्रेम ही था। मसीह का अनुसरण करने के लिए कष्ट सहने का बहुत मूल्य और अर्थ था। यह धार्मिकता के लिए था। मैंने प्रभु यीशु के प्रेरितों और शिष्यों के बारे में सोचा, जिन्होंने परमेश्वर का अनुसरण किया और उसकी गवाही दी। वे रोमन सरकार द्वारा क्रूरता से सताए गए और धार्मिक अगुआओं द्वारा निंदित होकर अत्याचार का शिकार हुए। कुछ लोग अपने प्राण देकर प्रभु के नाम पर शहीद हो गए। संतों ने युगों-युगों से जो कष्ट सहे, उनकी तुलना में, आज मेरे द्वारा झेले जा रहे थोड़े-से कष्ट कुछ भी नहीं थे। मुझे अपने लिए दुखी नहीं होना चाहिए, बल्कि उनसे सीख लेनी चाहिए। कुछ भी हो जाए, मुझे अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करना चाहिए। यह विचार आते ही, मैंने अपने आँसू पोंछे और बेडरूम से बाहर आकर अपने पति से बोली, "हमारी शादी को दस साल से भी ज्यादा हो चुके हैं, और मैंने हमारे घर के लिए बहुत कुछ किया है। अब आप मेरा सारा पैसा और संपत्ति ले लेना चाहते हैं, मुझ पर आर्थिक दबाव डालना चाहते हैं ताकि मैं सच्चा रास्ता छोड़ दूं। मैं आपकी बात नहीं सुनूँगी। मैं परमेश्वर का अनुसरण करूँगी!" मेरी यह बात सुनकर वे आग बबूला हो गए। मानो वे पगला गए हों, उन्होंने मेरे हाथ से एमपी3 प्लेयर छीन लिया, और मेरी तमाम निजी चीजों को चीर-फाड़ डाला। उन्होंने मेरी पहचान के तमाम दस्तावेज और मेरे सारे गहने छीन लिए, मेरे बैंक कार्ड और नकद राशि को भी हथिया लिया। फिर उन्होंने मेरा फोन छीन कर फर्श पर बहुत जोर से पटक दिया, और एक स्टूल से फोन के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। इस तरह, वे बाहरी दुनिया के साथ मेरा हर संपर्क काट देने की कोशिश कर रहे थे।

फिर, उन्होंने मेरे माता-पिता, बहनों और जीजा को हमारे यहाँ बुला लिया, वे सब भी मेरे खिलाफ हो गए। मेरी बहनों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के बारे में कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा गढ़ी गई बहुत-सी झूठी बातें ऑनलाइन पर देख रखी थीं, उन्होंने सीसीपी द्वारा गढ़े गए झाओयुआन मामले के बारे में भी मुझे बहुत-सी चीजें दिखाईं। मैंने कहा, "मैं यह सब जानती हूँ। झाओयुआन मामले पर सीसीपी की अदालत में मुकदमा चला था, और उन संदिग्धों ने यह नहीं कहा कि वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया से जुड़े हुए थे। उन्होंने अदालत में साफ-साफ कहा कि कलीसिया के साथ उनका कभी भी कोई संपर्क नहीं रहा था, लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी का जज बार-बार यह कहता रहा कि वे कलीसिया के सदस्य थे। क्या यह कलीसिया को फँसाना नहीं है? क्या यह साफ तौर से एक गढ़ा हुआ झूठा मामला नहीं है? तुम दोनों जानती हो कि कम्युनिस्ट पार्टी नास्तिक है, सत्ता में आने के बाद से ही उसने धार्मिक आस्थाओं का दमन किया है। तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के खिलाफ कही गई इस पार्टी की बातों पर कैसे यकीन कर सकती हो?" लेकिन मेरी दोनों बहनें उसकी झूठी बातों के जाल में फँस चुकी थीं, और उन्होंने सीसीपी द्वारा फैलाई गई अफवाहों को सोच-विचार करके नहीं देखा था। वे बोलीं, "तमाम समाचार चैनल यही बता रहे हैं। यह सच कैसे नहीं है?" मैंने उनसे कहा, "सभी चीनी समाचार चैनल कम्युनिस्ट पार्टी के कब्जे में हैं। वे सीसीपी के मुखपत्र हैं। उन्हें वही कहना पड़ता है जो सीसीपी उन्हें कहने के लिए बोलती है, वे सत्य के बारे में कुछ कहने की कभी हिम्मत नहीं कर सकते। बहुत सारे विदेशी मीडिया को भी सीसीपी ने खरीद रखा है और वे भी उसी का राग अलापते हैं। क्या तुम नहीं देख सकतीं कि यही सब हो रहा है? सच्चाई की अपनी जबान होती है और बुद्धिमान लोग अफवाहें नहीं सुनते। मैं तुम्हें सलाह देती हूँ कि आँखें खोलो और इन अफवाहों को आँखें बंद करके सुनना छोड़ दो।" उनके पास जवाब में कहने को कुछ नहीं था। मेरी माँ ने गुस्से से कहा, "तू हमारी बात नहीं सुनेगी। क्या तेरे लिए सर्वशक्तिमान परमेश्वर को छोड़ देना सच में इतना मुश्किल है? तेरी आस्था के कारण पूरे परिवार को तेरी फिक्र है। तू हमारी सलाह क्यों नहीं मानती?" फिर उसने रोना शुरू कर दिया। अपनी माँ को इतना दुखी देखना मेरे लिए बड़ा मुश्किल था। उसने हम तीनों को अकेले ही बड़ा किया था, और यह कोई आसान काम नहीं था। अब उसकी उम्र हो चली है, इसलिए मैं नहीं चाहती थी कि वह मेरी फिक्र करे। यह सोचकर मेरी आँखों में आँसू आ गए। फिर मेरी छोटी बहन ने कहा, "ज़रा देख, तू हमारी मॉम के साथ क्या कर रही है? तुझे मॉम चाहिए या सर्वशक्तिमान परमेश्वर?" मेरी दूसरी बहन ने रूखेपन से कहा, "तू अगर अपने धर्म पर अड़े रहना चाहती है, तो तेरे साथ परिवार की तरह पेश न आने पर हमें दोष न देना। हम किसी अपराध के लिए पुलिस से तेरी शिकायत कर देंगे, कहेंगे कि तूने किसी के साथ धोखाधड़ी की है, और वे तुझे निर्वासित करके चीन भेज देंगे। मत भूल, मैंने ही तेरे कनाडा आने का खर्च उठाया था।" उन सबको ये सब कहते सुन मैं आग बबूला हो चुकी थी। मैंने कभी यह कल्पना भी नहीं की थी कि वे मुझे अपनी आस्था छोड़ने को मजबूर करने की कोशिश करेंगे, और ऐसी दुश्मनी भरी घिनौनी चालों से भी मुझे धमकाएंगे। मैं इन चालों में नहीं फँस सकती थी। मैं पहले से ही एक देशीकृत कैनेडियन नागरिक थी, इसलिए वे मुझ पर आरोप लगाकर वहां से निर्वासित नहीं करवा सकते थे। मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि मेरी सगी बहन मुझसे ऐसी बात कहेगी। मुझे बहुत बुरा लगा, और मैं लगातार रोती रही।

फिर मुझे कलीसिया का एक भजन याद आया। "हर वक्त तुम्हारे साथ" : "तुम्हारे वचन और कार्य दिखाते हैं मुझे रास्ता, तुम्हारा प्रेम मुझे खींचता है तुम्हारे पीछे चलने को। मैं आनंद लेता हूं तुम्हारे वचनों का हर रोज़, तुम हो मेरे निरंतर साथी। जब मैं होता हूं नकारात्मक और कमज़ोर, तुम्हारे वचन होते हैं मेरा सहारा और ताक़त। जब मैं नाकामयाबी और विफलता का करता हूं सामना, तुम्हारे वचन होते हैं वे हाथ जो पकड़ कर खड़ा करते हैं मुझे। जब शैतान कब्ज़ा करता है मुझ पर, तुम्हारे वचन देते हैं मुझे साहस और बुद्धि। जब मैं गुज़रता हूं परीक्षणों और शुद्धिकरण से, तुम्हारे वचन गवाही देने के लिए दिखाते हैं मुझे रास्ता। तुम्हारे वचन साथ देते हैं मेरा और दिखाते हैं मुझे रास्ता, मेरा दिल है स्नेह और चैन से भरा। तुम्हारा प्रेम है बहुत वास्तविक, मेरा दिल भरा हुआ है आभार से" (मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ)। कि मुझे न समझने वाले एक दमनकारी परिवार के बावजूद, परमेश्वर हमेशा मेरे साथ था। उसके वचनों की प्रबुद्धता और मार्गदर्शन से, मैं शैतान की चालों को समझ सकी, और परमेश्वर ने अपने वचनों से मुझे आराम दिया, शक्ति और आस्था दी। इस तरह सोचने पर, मैंने उतना दुखी महसूस नहीं किया। एक और भी अंश था जो मुझे याद आया : "निराश न हो, कमज़ोर न बनो, मैं तुम्हारे लिए चीज़ें स्पष्ट कर दूँगा। राज्य की राह इतनी आसान नहीं है; कुछ भी इतना सरल नहीं है! तुम चाहते हो कि आशीष आसानी से मिल जाएँ, है न? आज हर किसी को कठोर परीक्षणों का सामना करना होगा। बिना इन परीक्षणों के मुझे प्यार करने वाला तुम लोगों का दिल मजबूत नहीं होगा और तुम्हें मुझसे सच्चा प्यार नहीं होगा। यदि ये परीक्षण केवल मामूली परिस्थितियों से युक्त भी हों, तो भी सभी को इनसे गुज़रना होगा; अंतर केवल इतना है कि परीक्षणों की कठिनाई हर एक व्यक्ति के लिए अलग-अलग होगी। ... जो लोग मेरी कड़वाहट में हिस्सा बँटाते हैं, वे निश्चित रूप से मेरी मिठास में भी हिस्सा बँटाएँगे। यह मेरा वादा है और तुम लोगों को मेरा आशीष है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'आरंभ में मसीह के कथन' के 'अध्याय 41')। इस पर चिंतन करके मैं समझ सकी कि स्वर्ग के राज्य का मार्ग ऐसी मुश्किलों से पटा पड़ा है जिनसे कोई भी नहीं बच सकता। मेरे परिवार द्वारा यह दमन और बमबारी मेरे लिए शैतान के सामने गवाही देने का एक मौका था। यह परमेश्वर द्वारा मुझे ऊंचा उठाकर मुझे आशीष देना था, ऐसी चीज जो मुझे एक आरामदेह माहौल में कभी नहीं मिल सकती थी। उस कष्ट में एक मूल्य और अर्थ था। मुझे भरोसा था कि यह सच्चा मार्ग है, कि यह परमेश्वर का कार्य है, इसलिए कितने भी दमन और दुखों से मेरा सामना क्यों न हुआ हो, मैं परमेश्वर का अनुसरण करने को तैयार थी।

यह देखकर कि मैं पीछे नहीं हटने वाली हूँ, उनकी आँखें गुस्से से लाल हो गईं, और वे दहाड़ते हुए बोले, "मुझे पता है, तुम्हारी एक मित्र ने तुम्हारा धर्म-परवर्तन किया था। वह सिर्फ तुमसे पैसे ऐंठना चाहती थी। मैं उससे नफरत करता हूँ। तुम मानो या न मानो, भले ही मुझे जेल हो जाए, पर मैं उसका खून कर दूंगा।" उनको ऐसा कहते सुनकर मैं बुरी तरह चौंक गई, यह बहुत डरावनी बात थी। मैं सिहर-सी गई। मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि जिस आदमी के साथ मैं इतने बरसों से रहरही थी, वह एकाएक इतना क्रूर हो जाएगा। यह कैसा पति था? वह साफ तौर पर एक दानव था, जो परमेश्वर और सत्य से घृणा करता था! मुझे अपनी आस्था से दूर रखने के लिए उसने कितनी भयानक बात कह डाली थी। उस समय मैंने उनका बर्बर रूप देखा और मुझे सच में डर लगा कि वे मेरी मित्र को मार डालेंगे। मैं खुद को संभाल पाती, इससे पहले ही मेरी माँ ने मुझसे कहा, "लगता है, तुम दोनों लड़ते रहोगे। कुछ कपड़े ले लो, और कुछ दिन मेरे साथ मेरे घर पर रहो। तुम न तो बाहर किसी से संपर्क रख सकोगी और न ही काम पर जा सकोगी, तुम्हें घर पर रहकर अपनी करनी के बारे में सोचना होगा।" उसकी यह बात सुनकर मुझे चिंता होने लगी। मेरे पति पगला-से गए थे—किसे पता वे क्या कर डालें। उन्होंने मेरे फोन को चूर-चूर कर दिया था, इसलिए मैं अपने मित्र को चेता नहीं सकती थी। अब वे मुझे किसी से संपर्क नहीं रखने देंगे और न ही काम पर जाने देंगे। क्या यह नजरबंदी नहीं है? मैं नहीं जानती थी कि मैं अब कलीसिया से कैसे संपर्क रखूँगी और कलीसिया का जीवन कैसे जियूंगी। मैंने जल्दी से मन-ही-मन परमेश्वर को पुकारा और मुझे रास्ता दिखाने की विनती की। फिर मुझे याद आया कि पश्चिमी देशों में धार्मिक अधिकारों की रक्षा की जाती है, लोगों को आस्था की आजादी मिलती है। मेरी बहनें पुलिस को मेरी सूचना देना चाहती थीं, मुझे बदनाम करना चाहती थीं, इसलिए मैं भी पुलिस से शिकायत कर सकती हूँ। अव्वल तो यह मेरे मित्र की सुरक्षा के लिए होगा, और दूसरे पुलिस के जुड़ जाने के कारण ये लोग गड़बड़ी नहीं कर सकेंगे। इसलिए मैंने अपनी मॉम से कहा, "मैं तुम्हारे घर नहीं जाना चाहती, मैं जाकर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाना चाहती हूँ।" यह सुनकर वे हक्का-बक्का रह गए, और कुछ नहीं बोले। मैं उसी वक्त पुलिस थाने के लिए निकल पड़ी। वहां पहुँचकर, मैंने उन्हें अपनी आस्था के लिए अपने परिवार द्वारा सताए जाने के बारे में बताया। उन्हें बड़ी मुश्किल से यकीन हो पाया कि एक पश्चिमी देश में ऐसा कुछ घट सकता है। वे सच में बहुत हमदर्दी जता रहे थे, और वे मुझे वापस घर ले आए। उन्होंने मेरे पति और परिवार को चेतावनी दी, "इस देश में धर्म की आजादी है। आप इनकी आस्था में दखल नहीं दे सकते या इनकी निजी आजादी पर रोक नहीं लगा सकते। अगर इन्हें काम पर जाना हो, तो आप इनके आड़े नहीं आ सकते। इसके अलावा, पहचान दस्तावेज निजी संपत्ति होते हैं। वो सब इन्हें लौटा दें।" पुलिस से यह सुनने के बाद उन लोगों ने मुझे मजबूर करने की हिम्मत नहीं की। मैं परमेश्वर की बहुत आभारी थी, मेरे लिए एक रास्ता खोल देने पर मैंने उसका धन्यवाद किया।

मेरे पति पर अब क़ानून का दबाव था, इसलिए वे मेरे खिलाफ सीधी कार्रवाई नहीं कर सकते थे, लेकिन उन्होंने अपनी जिद नहीं छोड़ी और मुझे अपनी आस्था छोड़ने को मजबूर करने के तरीके सोचने में जुटे रहे। दो दिन बाद, उन्होंने घर को उनके नाम कर देने के लिए मुझ पर दबाव डालना शुरू कर दिया। उनकी यह बात सुनकर मुझे चिंता हुई। दो दिन पहले ही उन्होंने मेरी सारी नकद राशि और गहने छीन लिए थे, और अब वे चाहते थे कि मैं घर भी उनके नाम कर दूँ। अगर उन्होंने मुझे धक्के देकर घर से बाहर निकाल दिया, तो मेरे पास कुछ भी नहीं होगा। साथ ही मेरे माता-पिता और बहनें भी मुझे अपने साथ नहीं रहने देंगी। यह सब सोचकर मैं फिर से बेचैन होने लगी, लेकिन उसी समय मुझे परमेश्वर के वचन याद आए : "परमेश्वर अपना कार्य करता है, वह एक व्यक्ति की देखभाल करता है, उस पर नज़र रखता है, और शैतान इस पूरे समय के दौरान उसके हर कदम का पीछा करता है। परमेश्वर जिस किसी पर भी अनुग्रह करता है, शैतान भी पीछे-पीछे चलते हुए उस पर नज़र रखता है। यदि परमेश्वर इस व्यक्ति को चाहता है, तो शैतान परमेश्वर को रोकने के लिए अपने सामर्थ्य में सब-कुछ करता है, वह परमेश्वर के कार्य को भ्रमित, बाधित और नष्ट करने के लिए विभिन्न बुरे हथकंडों का इस्तेमाल करता है, ताकि वह अपना छिपा हुआ उद्देश्य हासिल कर सके। क्या है वह उद्देश्य? वह नहीं चाहता कि परमेश्वर किसी भी मनुष्य को प्राप्त कर सके; उसे वे सभी लोग अपने लिए चाहिए जिन्हें परमेश्वर चाहता है, ताकि वह उन पर कब्ज़ा कर सके, उन पर नियंत्रण कर सके, उनको अपने अधिकार में ले सके, ताकि वे उसकी आराधना करें, ताकि वे बुरे कार्य करने में उसका साथ दें। क्या यह शैतान का भयानक उद्देश्य नहीं है?" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IV')। "यदि मनुष्य बचाए जाना चाहते हैं, और परमेश्वर द्वारा पूरी तरह प्राप्त किए जाना चाहते हैं, तो उन सभी को जो परमेश्वर का अनुसरण करते हैं शैतान के बड़े और छोटे दोनों प्रलोभनों और हमलों का सामना करना ही चाहिए। जो लोग इन प्रलोभनों और हमलों से उभरकर निकलते हैं और शैतान को पूरी तरह परास्त कर पाते हैं ये वे लोग हैं जिन्हें परमेश्वर द्वारा बचा लिया गया है। कहने का तात्पर्य यह, वे लोग जिन्हें परमेश्वर पर्यंत बचा लिया गया है ये वे लोग हैं जो परमेश्वर की परीक्षाओं से गुज़र चुके हैं, और अनगिनत बार शैतान द्वारा लुभाए और हमला किए जा चुके हैं। वे जिन्हें परमेश्वर पर्यंत बचा लिया गया है परमेश्वर की इच्छा और अपेक्षाओं को समझते हैं, और परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं को चुपचाप स्वीकार कर पाते हैं, और वे शैतान के प्रलोभनों के बीच परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के मार्ग को नहीं छोड़ते हैं। वे जिन्हें परमेश्वर पर्यंत बचा लिया गया है वे ईमानदारी से युक्त हैं, वे उदार हृदय हैं, वे प्रेम और घृणा के बीच अंतर करते हैं, उनमें न्याय की समझ है और वे तर्कसंगत हैं, और वे परमेश्वर की परवाह कर पाते और वह सब जो परमेश्वर का है सँजोकर रख पाते हैं। ऐसे लोग शैतान की बाध्यता, जासूसी, दोषारोपण या दुर्व्यवहार के अधीन नहीं होते हैं, वे पूरी तरह स्वतंत्र हैं, उन्हें पूरी तरह मुक्त और रिहा कर दिया गया है। अय्यूब बिल्कुल ऐसा ही स्वतंत्र मनुष्य था, और ठीक यही परमेश्वर द्वारा उसे शैतान को सौंपे जाने का महत्व था" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II')। अय्यूब शैतान के आरोपों और प्रलोभनों से इसलिए उबर पाया, क्योंकि उसमें परमेश्वर के प्रति सच्ची आस्था, आज्ञाकारिता और सम्मान था। वह परमेश्वर के संपूर्ण शासन में विश्वास रखता था, वह मानता था कि उसके पास की हर चीज परमेश्वर की दी हुई थी, इसलिए परमेश्वर उसे दे या उससे छीन ले, वह इसे स्वीकार करके समर्पण कर पाया था। जब अय्यूब ने अपनी दौलत और बच्चे खो दिए, और उसके पूरे शरीर पर फोड़े हो गए, तब भी उसने परमेश्वर को दोष न देकर उसका गुणगान किया। उसकी पत्नी ने उससे कहा, "क्या तू अब भी अपनी खराई पर बना है? परमेश्‍वर की निन्दा कर, और चाहे मर जाए तो मर जा" (अय्यूब 2:9)। और उसने उसे यह कहकर डांटा, "तू एक मूढ़ स्त्री की सी बातें करती है, क्या हम जो परमेश्‍वर के हाथ से सुख लेते हैं, दु:ख न लें?" (अय्यूब 2:10)। अय्यूब की गवाही से मुझे बड़ी प्रेरणा मिली। मैं उसके जैसा होना चाहती थी। मेरे पति मेरा चाहे जितना दमन करें, या मेरी चाहे जितनी संपत्ति ले लें, मुझे घर से बाहर धकेल दें, और मेरे पास कुछ न छोड़ें, तो भी मैं आस्था में प्रभु का अनुसरण करूंगी, गवाही दूँगी और शैतान को नीचा दिखाऊँगी।

अगले दिन, जब हमगिरवी पड़े घर को उनके नाम करवाने बैंक गए, तो बैंक कर्मचारी ने हमें बताया कि यह नया-नया कर्ज था, इसलिए अगर हम गिरवी के नए कागज बनवाना चाहते हैं, तो इसकी प्रक्रिया बहुत जटिल होगी, और इसमें हमें काफी नुकसान भी होगा। उसने सुझाया कि अगर संभव हो, तो पांच साल बाद यह बदलाव करें। मेरे पति के हाथबंध गए, इसलिए उन्होंने यह जिद छोड़ दी। मैंने दिल से परमेश्वर का धन्यवाद किया, और सचमुच महसूस किया कि परमेश्वर के वचन कितने सच्चे हैं : "मनुष्य का हृदय और आत्मा परमेश्वर के हाथ में हैं, उसके जीवन की हर चीज़ परमेश्वर की दृष्टि में रहती है। चाहे तुम यह मानो या न मानो, कोई भी और सभी चीज़ें, चाहे जीवित हों या मृत, परमेश्वर के विचारों के अनुसार ही जगह बदलेंगी, परिवर्तित, नवीनीकृत और गायब होंगी। परमेश्वर सभी चीज़ों को इसी तरीके से संचालित करता है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है')। इसके बाद मैंने भाई-बहनों से संपर्क किया। जब मेरे पति को पता चला तो उन्होंने पूछा, कि क्या मैं सभाओं में जाया करूँगी। मैंने जवाब में पूछा, "क्या आप फिर से मेरा रास्ता रोकने की सोच रहे हैं? अगर ऐसा है, तो मैं यह घर छोड़कर कहीं और रह लूँगी। आपको यह फ़िक्र है न कि कलीसिया मुझे ठग लेगी, और मैं अपने परिवार को छोड़ दूँगी? पर क्या कलीसिया के साथ बिताए इतने वर्षों में उन्होंने कभी मुझे धोखा देकर पैसे हड़पे हैं? क्या ये अफवाहें सच हैं कि हम विश्वासी अपने परिवारों को छोड़ रहे हैं?" वे सन्न रह गए, और थोड़ी देर बाद बोले, "तुम सही कह रही हो। मैंने कलीसिया को तुमसे पैसे हड़पते हुए नहीं देखा है, और तुम हमें छोड़ नहीं रही हो। मैं किसी अनाड़ी की तरह इन अफवाहों पर यकीन कर बैठा था। मैं तुम्हें धोखा खाने से बचाना चाहता था। तुम जिसमें चाहो, विश्वास रख सकती हो।" मैं बहुत खुश थी। उनके रुकावट डालने के बाद से मैं सामान्य रूप से सभाओं में नहीं जा पाई थी, और मैं जान गई थी कि अब वे मुझे नहीं रोकेंगे। बाद में, उन्हें लगने लगा कि हमारे पैसों का प्रबंध करना सच में बड़ा सिरदर्द था, और यह उनके बूते की बात नहीं थी, इसलिए उन्होंनेघर चलाने का पूरा जिम्मा मुझे सौंप दिया। उन्होंने गिरवी अपने नाम करवाने की बात फिर कभी नहीं छेड़ी।

मेरे परिवार द्वारा मेरे दमन के इस अनुभव ने मुझे दर्शाया कि कम्युनिस्ट पार्टी कितनी दुष्ट है। वह न सिर्फ चीन में ईसाइयों को पागलों की तरह सता कर गिरफ्तार कर रही है, बल्कि वह अपनी झूठी बातें ऑनलाइन पर फैला रही है और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को बदनाम कर रही है, पूरी दुनिया को बेवकूफ बना रही है ताकि वह कलीसिया के खिलाफ हो जाए, उसके साथ मिलकर परमेश्वर से लड़ाई करे, ताकि सारे लोग नरक में दंडित किए जाएं। कम्युनिस्ट पार्टी एक दुष्ट दानव है, जो परमेश्वर का प्रतिरोध करती है, लोगों को गुमराह करती है, और उन्हें पूरा-का-पूरा निगल जाती है। शैतान बहुत ज्यादा दुष्ट है, मगर परमेश्वर की बुद्धिमत्ता शैतान की चालों के आधार पर चलती है। शैतान इस दमन का इस्तेमाल मुझसे परमेश्वर को धोखा दिलाने के लिए करना चाहता था, ताकि मैं उद्धार का अपना मौका गँवा दूँ, मगर उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि इससे मुझमें समझ पैदा हो सकेगी और मैं उसकी कुरूपता को सच में देख पाऊँगी। मैंने उसे जी भरकर कोसा है, और दिल से ठुकरा दिया है, और परमेश्वर में मेरी आस्था ज्यादा मजबूत हो गई है। परमेश्वर का धन्यवाद!

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