85. केवल बुद्धिमान कुँवारियाँ ही प्रभु का स्वागत कर सकती हैं

मिंग्ज़ी, चीन

जब प्रभु यीशु ने अपनी वापसी की भविष्यवाणी की तो उसने दो प्रकार के लोगों के बारे में बात की : बुद्धिमान कुँवारियाँ और मूर्ख कुँवारियाँ। जो लोग प्रभु की वाणी सुनकर स्वीकारते और समर्पण करते हैं, वे बुद्धिमान कुँवारियाँ हैं। जो लोग उसकी वाणी नहीं सुनते या सुनकर भी विश्वास नहीं करते या उसे नकारते और निंदा करते हैं, वे मूर्ख कुँवारियाँ हैं। बुद्धिमान कुँवारियाँ बुद्धिमान होती हैं क्योंकि जब वे प्रभु की वापसी की गवाही सुनती हैं, तो प्रभु की वाणी की खोज करती हैं, उसकी वाणी सुनकर उसे पहचान लेती हैं और उसका स्वागत करती हैं। लेकिन मूर्ख कुँवारियाँ प्रभु की वाणी नहीं सुनतीं, वे केवल पादरियों, एल्डरों और याजकों की बातों पर ही भरोसा करती हैं और अपनी धारणाओं पर विश्वास करती हैं। वे प्रभु की वाणी सुन सकती हैं, लेकिन उसे स्वीकारने का साहस नहीं करतीं और प्रभु का स्वागत करने का मौका चूक जाती हैं। यहीं पर मूर्ख कुँवारियाँ गलती कर जाती हैं। मैं भी बिल्कुल मूर्ख कुँवारी की तरह हुआ करता था। अंत के दिनों में झूठे मसीहों के प्रकट होने और लोगों को गुमराह करने के बारे में याजक और बिशप जो कहते थे, मैं उन पर आँख मूँद कर विश्वास कर लिया करता था, और सोचता था कि बेहतर होगा कि मैं उन गवाहियों की जाँच न करूँ जो दावा करती हैं कि प्रभु यीशु वापस आ गया है और अंत के दिनों में न्याय का कार्य करने के लिए सत्य व्यक्त कर रहा है। तो मैंने अंत के दिनों में प्रभु द्वारा उद्धार को लगभग गँवा ही दिया था।

बचपन में मैं अपने परिवार के साथ कैथोलिक धर्म में आस्था रखता था और प्रार्थना के दौरान याजक को यह कहते सुनता था, “प्रभु के लौटने का समय निकट है। किसी और के उपदेश मत सुनो। बाइबल कहती है : ‘उस समय यदि कोई तुम से कहे, “देखो, मसीह यहाँ है!” या “वहाँ है!” तो विश्‍वास न करना। क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्ता उत्पन्न हो जाएंगे, और बड़े संकेत और आश्चर्यजनक कार्य दिखाएंगे; ताकि अगर संभव हो, तो वे चुने हुए लोगों को ही गुमराह कर दें(मत्ती 24:23-24)। अंत के दिनों में झूठे मसीह प्रकट होंगे। तुम्हारा आध्यात्मिक कद छोटा है और विवेक की कमी है, इसलिए तुम आसानी से भटक जाओगे। गलत मार्ग में विश्वास रखना प्रभु के साथ विश्वासघात होगा! हमें प्रभु के मार्ग पर बने रहकर उसके आने और हमें अपने राज्य में ले जाने का इंतजार करना चाहिए। हम बिना किसी अपवाद के दूसरों की शिक्षाएँ न तो सुन सकते हैं, न पढ़ सकते हैं और न ही उनकी जाँच कर सकते हैं, विशेषकर उनकी जो दावा करते हैं कि प्रभु लौट आया है।” मुझे लगा कि याजक की बात में दम है। मैं अभी अपरिपक्व ही था और मुझमें विवेक की भी कमी थी, अगर मैं झूठे मसीह के हाथों गुमराह हो गया, तो मेरी सालों की आस्था बेकार हो जाएगी। मैंने कसम खाई कि मैं सावधान रहूँगा और ऐसे किसी भी व्यक्ति को नहीं सुनूंगा जो बाकी शिक्षाओं का प्रचार करता हो।

अप्रैल 2012 में एक दिन, म्यू झेंग नामक एक परिशनर ने कहा, “प्रभु यीशु वापस आ गया है। वह देह में सर्वशक्तिमान परमेश्वर है। वह नया कार्य कर रहा है, परमेश्वर के घर से शुरू होने वाला न्याय का कार्य जैसी कि बाइबल में भविष्यवाणी की गई है।” यह सुनकर मुझे आश्चर्य भी हुआ और संदेह भी। तो मैंने पूछा, “आप कैसे जानते हैं कि प्रभु वापस आ गया है और नया कार्य कर रहा है? आप इतने यकीन से कैसे कह सकते हैं?” म्यू झेंग का जवाब था, “प्रभु यीशु ने कहा था : ‘मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं(यूहन्ना 10:27), ‘आधी रात को धूम मची : “देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे भेंट करने के लिये चलो”(मत्ती 25:6), और ‘देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ(प्रकाशितवाक्य 3:20)। प्रभु यीशु ने हमें बताया कि वह वापस आएगा और अपने वचनों से हमारे दरवाजे पर दस्तक देगा। उसकी भेड़ें उसके बोले हुए वचनों से उसकी वाणी पहचान लेंगी। वे प्रभु की वापसी का स्वागत करेंगी और मेमने के विवाह-भोज में शामिल होंगी। वे बुद्धिमान कुँवारियाँ हैं। जरा सोचिए जब प्रभु यीशु ने प्रकट होकर अपना कार्य किया। पतरस, यूहन्ना और फिलिप्पुस जैसे लोगों ने उसकी वाणी सुनी, वे जानते थे कि वह वही मसीहा है जिसका उन्हें इंतजार था। उन्होंने तत्परता से प्रभु यीशु का अनुसरण किया और उससे उद्धार प्राप्त किया। मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बहुत से वचन पढ़े हैं और मैंने पुष्टि की है कि वे सत्य हैं। उनमें अधिकार है और वे प्रभु की वाणी हैं। इसलिए मुझे यकीन है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटकर आया प्रभु यीशु है। अगर प्रभु की वाणी सुनने के बजाय, हम झूठे मसीहों के खिलाफ आँख मूँदकर सतर्क रहते हैं, गुमराह होने के डर से खुद को बंद कर लेते हैं और प्रभु की वापसी की गवाही के बारे में सुनकर भी हम उसकी जाँच नहीं करते हैं, तो हम प्रभु के लिए अपने दरवाजे बंद करने के उत्तरदायी होंगे और अंत के दिनों के उसके उद्धार को गँवा देंगे।”

म्यू झेंग की संगति मेरे लिए प्रबोधनकारी थी। प्रभु का स्वागत करने के लिए उसकी वाणी सुनना बाइबल और प्रभु के वचनों के अनुरूप है। अगर कोई कहता है कि प्रभु यीशु लौट आया है और मैं उसकी जाँच नहीं करता या प्रभु की वाणी पर ध्यान नहीं देता, तो मैं उसका स्वागत कैसे करूँगा? मैंने कभी किसी को प्रभु के वचनों पर इस तरह संगति करते नहीं सुना था, मुझे यह प्रबोधनकारी लगा। मैं और जानना चाहता था, लेकिन मुझे बार-बार याजक की चेतावनी याद आने लगी जो अंत के दिनों में लोगों को गुमराह करने वाले झूठे मसीहों के बारे में थी कि हमें किसी भी परिस्थिति में अन्य कलीसियाओं की शिक्षाओं पर भरोसा नहीं करना चाहिए। मैं तुरंत सतर्क हो गया और यूँ ही अन्य शिक्षाओं को न सुनने के प्रति खुद को याद दिलाने लगा कि अगर मैंने गलत विश्वास अपना लिया तो मेरी बरसों की आस्था व्यर्थ हो जाएगी। इसलिए म्यू झेंग ने जो कहा था उसे मैंने खारिज कर दिया। उसने मुझे कई बार कहा कि मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ने चाहिए और देखना चाहिए कि क्या वे परमेश्वर की वाणी हैं, लेकिन मैं सावधान था और हमेशा मना करने के तरीके ढूँढता था।

कुछ महीने बाद मेरी पत्नी अपने पीहर से लौटी। उसके हाथ में “वचन देह में प्रकट होता है” की प्रति थी। उसने कहा कि यह “आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है(प्रकाशितवाक्य 2:7) और सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटकर आया प्रभु यीशु है। उसने मुझे इसे पढ़ने का सुझाव दिया। मुझे लगा उसे गुमराह कर दिया गया है, इसलिए मैंने उससे कहा कि उसे इस बारे में अधिक सावधान रहना होगा कि वह क्या उपदेश सुनती है, लेकिन वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखने पर दृढ़ थी। मुझे डर था कि उसने प्रभु को धोखा दे दिया है, मैं उसके लिए केवल उपवास रखकर आँसू लिए प्रार्थना ही कर सकता था। कुछ दिनों बाद, मेरी सास भी मुझे प्रभु की वापसी का उपदेश देने आईं, उन्होंने मुझसे कहा, “प्रभु ने कहा : ‘मैं शीघ्र आनेवाला हूँ!(प्रकाशितवाक्य 22:7)। अगर हम मान भी लें कि प्रभु की वापसी की तमाम खबरें झूठी हैं क्योंकि हम झूठे मसीहों द्वारा गुमराह होने से डरते हैं और सब मिलकर उसे सुनने, पढ़ने या जाँच करने से इनकार कर देते हैं, तो क्या हम प्रभु की वापसी को नकार कर उसकी निंदा नहीं करेंगे? क्या यह दम घुटने के डर से खाना छोड़ देने जैसा नहीं होगा? अगर हम सच्चे मसीह को निकाल बाहर करें, तो हमें पछतावे का अवसर भी नहीं मिलेगा। हमें झूठे मसीहों से बचने के लिए कहकर, प्रभु हमें बता रहा है कि मसीह अंत के दिनों में आएगा, झूठे मसीह भी पैदा होंगे और लोगों को गुमराह करने के लिए असली मसीह का रूप धरेंगे—इसका मतलब यह है कि हमें सच्चे मसीह और झूठे मसीह में अंतर करना सीखना होगा। अगर हम ऐसा न कर पाएँ और प्रभु के आगमन की किसी भी खबर को नकार कर उसे सुनने से ही इनकार कर देंगे, तो हम प्रभु का स्वागत करने का मौका चूक जाने के जिम्मेदार होंगे और हम उसके द्वारा त्याग दिए जाएँगे।” मेरी सास ने जो कुछ कहा उससे मैं बहुत प्रभावित हुआ और सोचने लगा, “यह बात तो सही है। मैं प्रभु के स्वागत के लिए दिन-रात इंतजार कर रहा हूँ। अगर मैं समान रूप से उसकी वापसी की खबर सुनने, पढ़ने या जाँच करने से इनकार कर दूँ, तो मैं कभी भी परमेश्वर की वाणी कैसे सुन पाऊँगा और प्रभु का स्वागत कैसे करूँगा? लगता है हमेशा सतर्क रहना इस समस्या का कोई समाधान नहीं है। अगर मैंने प्रभु को अस्वीकार कर दिया तो क्या होगा? यह तो बहुत मूर्खतापूर्ण होगा!” सास के जाने के बाद, मैंने अपनी पत्नी को पूरी लगन से “वचन देह में प्रकट होता है” पढ़ते देखा। मैं सोचने लगा कि पिछले कुछ वर्षों में कलीसिया उजाड़ हो गई है और सभी परिशनर परमेश्वर में अपने विश्वास के प्रति नकारात्मक, कमजोर और उदासीन हो गए हैं। काफी समय बाद मैंने अपनी पत्नी को इतनी आस्था से भरा देखा था। क्या वे वचन उतने ही सामर्थ्यवान और आधिकारिक हो सकते हैं जितने उन्होंने कहे हैं? क्या वे परमेश्वर की वाणी हो सकते हैं? मुझे ख्याल आया कि म्यू झेंग को सुनना कितना प्रबोधनकारी रहा था। अगर प्रभु सचमुच लौट आया तो क्या होगा? मैंने फैसला किया कि मुझे इसकी और जाँच-पड़ताल करनी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि मैं प्रभु की वापसी का स्वागत करने का मौका न चूकूँगा। इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की कि वह मुझे अपनी वाणी सुनने की समझ प्रदान करे।

रात के खाने के बाद मैंने और मेरी पत्नी ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का यह अंश पढ़ा : “‘परमेश्वर में विश्वास’ का अर्थ यह मानना है कि परमेश्वर है; यह परमेश्वर में विश्वास की सरलतम अवधारणा है। इससे भी बढ़कर, यह मानना कि परमेश्वर है, परमेश्वर में सचमुच विश्वास करने जैसा नहीं है; बल्कि यह मजबूत धार्मिक संकेतार्थों के साथ एक प्रकार का सरल विश्वास है। परमेश्वर में सच्चे विश्वास का अर्थ यह है : इस विश्वास के आधार पर कि सभी वस्तुओं पर परमेश्वर की संप्रभुता है, व्यक्ति परमेश्वर के वचनों और कार्यों का अनुभव करता है, अपने भ्रष्ट स्वभाव को शुद्ध करता है, परमेश्वर के इरादे संतुष्ट करता है और परमेश्वर को जान पाता है। केवल इस प्रकार की यात्रा को ही ‘परमेश्वर में विश्वास’ कहा जा सकता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन अद्भुत थे। मैंने जाना कि आस्था केवल हर दिन बाइबल का पाठ करने, सभाओं और प्रार्थना में भाग लेने का मामला नहीं है। हमें परमेश्वर के वचनों का अभ्यास करने, अपने भ्रष्ट स्वभावों से मुक्ति पाने पर भी ध्यान देना चाहिए और प्रभु का सच्चा ज्ञान रखना चाहिए। केवल ऐसी आस्था ही परमेश्वर के इरादे से मेल खाती है। जितना सोचा यही लगा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन वास्तव में अद्भुत हैं, सत्य हैं और कोई मनुष्य उनका कथन नहीं कर सकता। इसकी पूरी संभावना है कि वे परमेश्वर के वचन हैं। जब मुझे इस बात का एहसास हुआ तो मैंने अपनी सतर्कता थोड़ी कम कर दी।

कुछ दिनों बाद म्यू झेंग मुझसे मिलने हमारी दुकान पर आया और मैंने उसे बताया कि मैं पिछले कुछ दिनों से क्या सोच रहा था। उसने कहा, “मुझे भी यही लगता था। मुझे झूठे मसीह द्वारा गुमराह होने का डर था, इसलिए मैंने आँख मूँद कर याजक की बात मान ली थी और प्रभु की वापसी का प्रसार करने वाले किसी भी व्यक्ति की बात नहीं सुनता था। लेकिन मैंने कभी यह नहीं सोचा कि याजक की बात परमेश्वर के वचनों के अनुरूप है भी या नहीं। प्रभु ने हमें बताया कि अंत के दिनों में लोगों को गुमराह करने के लिए झूठे मसीह आएँगे, क्योंकि वह चाहता है कि हम उन्हें पहचानना सीखें। लेकिन याजक ने प्रभु यीशु के वचनों को गलत तरीके से प्रस्तुत किया और हमसे कहा कि हम प्रभु की वापसी की किसी भी खबर की जाँच न करें, न पढ़ें और न ही सुनें। क्या यह हमें उसकी वापसी का स्वागत करने से रोकना नहीं है? अगर याजक वाकई हमें गुमराह होने से बचाने को लेकर चिंतित था, तो उसने हमें यह क्यों नहीं सिखाया कि सच्चे और झूठे मसीह में अंतर कैसे किया जाए? अगर हम ऐसा कर सकें तो हम गुमराह नहीं होंगे।” म्यू झेंग का स्पष्टीकरण मुझे सही लगा। अगर हम निष्क्रिय और सतर्क रहते, जैसा कि याजक चाहता था, तो यह पूरी तरह से प्रभु के वचनों का उल्लंघन होता। यह हमें प्रभु की वापसी का स्वागत करने से रोकने का एक गुप्त तरीका था। मुझे समझ आ गया कि याजक की बातों को अब आँख मूँदकर नहीं माना जा सकता। मुझे बुद्धिमान कुँवारी बनकर प्रभु की वाणी की खोज करनी होगी और उसका स्वागत करना होगा। मैंने उत्सुकता से म्यू झेंग से पूछा कि सच्चे और झूठे मसीह में अंतर कैसे किया जाए। उसने कहा, “दरअसल, प्रभु यीशु ने इस अंतर को समझने के सिद्धांत हमें पहले ही बता दिए हैं जो मत्ती 24:24 में हैं। उसने कहा कि झूठे मसीह और झूठे पैगंबर बड़े संकेत और चमत्कार दिखाएँगे। यह लोगों को गुमराह करने वाले अंत के दिनों के झूठे मसीह की प्रमुख अभिव्यक्ति है।” फिर म्यू झेंग ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़कर सुनाया : “यदि वर्तमान समय में ऐसा कोई व्यक्ति उभरे, जो चिह्न और चमत्कार प्रदर्शित करने, दुष्टात्माओं को निकालने, बीमारों को चंगा करने और कई चमत्कार दिखाने में समर्थ हो, और यदि वह व्यक्ति दावा करे कि वह यीशु है जो आ गया है, तो यह बुरी आत्माओं द्वारा उत्पन्न नकली व्यक्ति होगा, जो यीशु की नकल उतार रहा होगा। यह याद रखो! परमेश्वर वही कार्य नहीं दोहराता। कार्य का यीशु का चरण पहले ही पूरा हो चुका है, और परमेश्वर कार्य के उस चरण को पुनः कभी हाथ में नहीं लेगा। परमेश्वर का कार्य मनुष्य की धारणाओं के साथ मेल नहीं खाता; उदाहरण के लिए, पुराने नियम ने मसीहा के आगमन की भविष्यवाणी की, और इस भविष्यवाणी का परिणाम यीशु का आगमन था। चूँकि यह पहले ही घटित हो चुका है, इसलिए एक और मसीहा का पुनः आना ग़लत होगा। यीशु एक बार पहले ही आ चुका है, और यदि यीशु को इस समय फिर आना पड़ा, तो यह गलत होगा। प्रत्येक युग के लिए एक नाम है, और प्रत्येक नाम में उस युग का चरित्र-चित्रण होता है। मनुष्य की धारणाओं के अनुसार, परमेश्वर को सदैव चिह्न और चमत्कार दिखाने चाहिए, सदैव बीमारों को चंगा करना और दुष्टात्माओं को निकालना चाहिए, और सदैव ठीक यीशु के समान होना चाहिए। परंतु इस बार परमेश्वर इसके समान बिल्कुल नहीं है। यदि अंत के दिनों के दौरान, परमेश्वर अब भी चिह्नों और चमत्कारों को प्रदर्शित करे, और अब भी दुष्टात्माओं को निकाले और बीमारों को चंगा करे—यदि वह बिल्कुल यीशु की तरह करे—तो परमेश्वर वही कार्य दोहरा रहा होगा, और यीशु के कार्य का कोई महत्व या मूल्य नहीं रह जाएगा। इसलिए परमेश्वर प्रत्येक युग में कार्य का एक चरण पूरा करता है। ज्यों ही उसके कार्य का प्रत्येक चरण पूरा होता है, बुरी आत्माएँ शीघ्र ही उसकी नकल करने लगती हैं, और जब शैतान परमेश्वर के बिल्कुल पीछे-पीछे चलने लगता है, तब परमेश्वर तरीक़ा बदलकर भिन्न तरीक़ा अपना लेता है। ज्यों ही परमेश्वर ने अपने कार्य का एक चरण पूरा किया, बुरी आत्माएँ उसकी नकल कर लेती हैं। तुम लोगों को इस बारे में स्पष्ट होना चाहिए(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आज परमेश्वर के कार्य को जानना)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद म्यू झेंग ने कहा, “परमेश्वर की नवीनता शाश्वत है। वह एक ही कार्य दो बार नहीं करता। जब भी वह अपना कार्य करने आता है, तो वह एक नए युग की शुरुआत करता है, पुराने युग को समाप्त करता है और अपने कार्य का एक नया और अधिक उन्नत चरण लाता है। जब प्रभु यीशु ने अपना कार्य किया, तो उसने व्यवस्था के युग के कार्य को नहीं दोहराया। उसने इस पर अपने नए कार्य का निर्माण किया—मानवजाति को छुटकारा दिलाने का कार्य। उसने अनुग्रह के युग की शुरुआत की और व्यवस्था के युग का समापन किया। अगर प्रभु अंत के दिनों में छुटकारे के कार्य को दोहराने के लिए लौटता, बीमारों को चंगा करता, दुष्टात्माओं को निकालता, संकेत और चमत्कार दिखाता, तो परमेश्वर का कार्य आगे नहीं बढ़ता। सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों में आया है, उसने राज्य के युग की शुरुआत की है और अनुग्रह के युग को समाप्त किया है। वह छुटकारे के कार्य की नींव पर, परमेश्वर के घर से शुरू होने वाला न्याय का कार्य कर रहा है। वह लोगों का न्याय करने और उन्हें शुद्ध करने के लिए सत्य व्यक्त कर रहा है, ताकि वे खुद को पाप के बंधनों और बाधाओं से मुक्त कर सकें और शुद्ध होकर उद्धार प्राप्त करें। लेकिन झूठे मसीह अपने सार में बुरी आत्माएँ और शैतान हैं। वे चाहे कैसे भी संकेत और चमत्कार दिखाएँ या खुद को कितना भी परमेश्वर कहें, वे सत्य व्यक्त नहीं कर सकते या परमेश्वर के वचन नहीं बोल सकते, वे यकीनन न तो एक नया युग शुरू कर सकते हैं और न ही पुराने को समाप्त कर सकते हैं। झूठे मसीह सिर्फ प्रभु के पुराने वचनों और कार्यों की नकल करते हैं या कुछ सरल संकेत और चमत्कार दिखाते हैं और कुछ विशिष्ट भ्रांतियाँ और पाखंड बकते हैं ताकि जिनमें विवेक की कमी है उन्हें गुमराह कर सकें। लेकिन झूठे मसीह कभी भी प्रभु यीशु के चमत्कारों की नकल नहीं कर सकते, जैसे पाँच रोटियों और दो मछलियों से पाँच हजार लोगों का पेट भरना, आँधी और समुद्र को रोक देना और लाजर को फिर से जिंदा कर देना।” म्यू झेंग की संगति सुनकर मेरा हृदय प्रकाशित हो गया। मैंने सोचा, “सच्चे और झूठे मसीह में अंतर कैसे किया जाए, इस पर मैंने इतनी स्पष्ट व्याख्या कभी नहीं सुनी थी। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सत्य हैं और वे लोगों को अनुसरण करने का मार्ग देते हैं। अब मैं समझ गया कि झूठे मसीह केवल उस कार्य की नकल कर सकते हैं जो प्रभु ने अतीत में किया है और लोगों को गुमराह करने के लिए कुछ संकेत और चमत्कार दिखाते हैं। केवल परमेश्वर ही एक नए युग की शुरुआत और पुराने युग को समाप्त कर सकता है, हमारे पोषण के लिए सत्य व्यक्त कर सकता है।”

फिर म्यू झेंग ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के कुछ और अंश पढ़े : “देहधारी हुए परमेश्वर को मसीह कहा जाता है, और इसलिए वह मसीह जो लोगों को सत्य दे सकता है, परमेश्वर कहलाता है। इसमें कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं है, क्योंकि उसमें परमेश्वर का सार होता है, और उसमें परमेश्वर का स्वभाव और उसके कार्य में बुद्धि होती है, जो मनुष्य के लिए अप्राप्य हैं। जो अपने आप को मसीह कहते हैं, परंतु परमेश्वर का कार्य नहीं कर सकते, वे धोखेबाज हैं। मसीह पृथ्वी पर परमेश्वर की अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, बल्कि वह विशेष देह भी है, जिसे धारण करके परमेश्वर मनुष्यों के बीच रहकर अपना कार्य पूरा करता है। कोई मनुष्य इस देह की जगह नहीं ले सकता, बल्कि यह वह देह है जो पृथ्वी पर परमेश्वर के कार्य का पर्याप्त रूप से बीड़ा उठा सकती है और परमेश्वर का स्वभाव व्यक्त कर सकती है, और परमेश्वर का अच्छी तरह प्रतिनिधित्व कर सकती है, और मनुष्य को जीवन प्रदान कर सकती है। मसीह का भेस धारण करने वाले लोगों का देर-सबेर पतन हो जाएगा, क्योंकि हालाँकि वे मसीह होने का दावा करते हैं, किंतु उनमें मसीह के सार का लेशमात्र भी नहीं है। और इसलिए मैं कहता हूँ कि मसीह की प्रामाणिकता मनुष्य द्वारा परिभाषित नहीं की जा सकती, बल्कि इसका उत्तर और निर्णय स्वयं परमेश्वर द्वारा ही दिया-लिया जाता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है)। “जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर का सार होगा और जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर की अभिव्यक्ति होगी। चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उस कार्य को सामने लाएगा, जो वह करना चाहता है, और चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उसे अभिव्यक्त करेगा जो वह है और वह मनुष्य के लिए सत्य को लाने, उसे जीवन प्रदान करने और उसे मार्ग दिखाने में सक्षम होगा। जिस देह में परमेश्वर का सार नहीं है, वह निश्चित रूप से देहधारी परमेश्वर नहीं है; इसमें कोई संदेह नहीं। अगर मनुष्य यह पता करना चाहता है कि क्या यह देहधारी परमेश्वर है, तो इसकी पुष्टि उसे उसके द्वारा अभिव्यक्त स्वभाव और उसके द्वारा बोले गए वचनों से करनी चाहिए। इसे ऐसे कहें, व्यक्ति को इस बात का निश्चय कि यह देहधारी परमेश्वर है या नहीं और कि यह सही मार्ग है या नहीं, तो उसे इसकी पहचान उसके सार के आधार पर करनी चाहिए। और इसलिए, यह निर्धारित करने की कुंजी कि यह देहधारी परमेश्वर की देह है या नहीं, उसके बाहरी स्वरूप के बजाय उसके सार (उसका कार्य, उसके कथन, उसका स्वभाव और कई अन्य पहलू) में निहित है। यदि मनुष्य केवल उसके बाहरी स्वरूप की ही जाँच करता है, और परिणामस्वरूप उसके सार की अनदेखी करता है, तो इससे उसके अज्ञ और अज्ञानी होने का पता चलता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना)। मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़कर म्यू झेंग ने कहा, “मसीह मनुष्य के पुत्र के रूप में देहधारी परमेश्वर है जो इंसानों के बीच प्रकट होकर कार्य करने के लिए आया है। देखने में वह बिल्कुल एक सामान्य व्यक्ति लगता है, लेकिन उसका सार दिव्य है। इसीलिए वह सत्य और परमेश्वर का स्वभाव व्यक्त कर सकता है, मानवजाति को छुटकारा दिलाने और बचाने का कार्य कर सकता है। कोई भी इंसान यह हासिल नहीं कर सकता। सच्चे मसीह को पहचानने के लिए यह देखना चाहिए कि क्या वह सत्य व्यक्त कर उद्धार का कार्य कर सकता है। यह सबसे मौलिक और महत्वपूर्ण सिद्धांत है। जब प्रभु यीशु ने प्रकट होकर अपना कार्य किया, तो वह बिल्कुल एक सामान्य व्यक्ति लग रहा था। लेकिन उसने स्वर्ग के राज्य के रहस्यों को उजागर किया और मानवजाति को प्रायश्चित का मार्ग दिया। उसने लोगों को पूरे मन, आत्मा और मस्तिष्क से परमेश्वर से प्यार करना सिखाया। उसने उन्हें दूसरों से अपने समान प्रेम करना और लोगों को सत्तर गुना सात बार क्षमा करना सिखाया। उसने परमेश्वर का प्रेमपूर्ण, दयालु स्वभाव व्यक्त किया और अंततः उसे शाश्वत पापबलि के रूप में सूली पर चढ़ा दिया गया, इस तरह मानवजाति के लिए छुटकारे का कार्य पूरा किया। हम प्रभु यीशु के कार्य, वचनों और उसके द्वारा व्यक्त स्वभाव से निश्चित हो सकते हैं कि वह मसीह था। वह स्वयं देहधारी परमेश्वर था। अब सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों में आया है और परमेश्वर के घर से शुरू होने वाला न्याय का कार्य कर रहा है। वह वो सभी सत्य व्यक्त कर रहा है जो मानवजाति को शुद्ध कर बचा सकते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मानवजाति को बचाने के लिए परमेश्वर की प्रबंधन योजना के रहस्यों को उजागर किया है, कैसे शैतान लोगों को भ्रष्ट करता है, कैसे परमेश्वर हमें चरण-दर-चरण बचाता है, परमेश्वर के देहधारण का रहस्य बताता है, अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय कार्य का महत्व समझाता है, कैसे वह विभिन्न प्रकार के लोगों के लिए गंतव्य और परिणाम निर्धारित करता है, कैसे मसीह का राज्य पृथ्वी पर साकार होता है, वगैरह। सर्वशक्तिमान परमेश्वर न केवल बाइबल के रहस्यों का खुलासा करता है, बल्कि परमेश्वर के विरुद्ध हमारे पापों और प्रतिरोध के स्रोत को भी उजागर करता है और उसका न्याय करता है—जैसे मानवजाति की शैतानी प्रकृति और विभिन्न शैतानी स्वभाव। वह परमेश्वर के धार्मिक, पवित्र स्वभाव को प्रकट करता है जो कोई अपराध सहन नहीं करता और हमें पाप को दूर करने और शुद्ध होने का मार्ग दिखाता है। वह हमें बताता है कि हमें आस्था कैसे रखनी चाहिए, परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने के लिए कैसे पश्चात्ताप करना चाहिए, कैसे हमें परमेश्वर के प्रति समर्पित होकर उससे प्रेम करना चाहिए, उसकी इच्छा का पालन करना क्या होता है, वगैरह। अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य ने पहले ही विजेताओं का एक समूह बना दिया है और परमेश्वर के अधिक से अधिक चुने हुए लोगों ने शैतान पर विजय पाने की गवाहियाँ दी हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार पूर्व से पश्चिम तक कई देशों में फैल चुका है, जिससे प्रभु की भविष्यवाणी पूरी तरह से साकार हो जाती है : ‘क्योंकि जैसे बिजली पूर्व से निकलकर पश्‍चिम तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य के पुत्र का भी आना होगा(मत्ती 24:27)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर जो सत्य व्यक्त करता है, जो न्याय का कार्य वह करता है, और उसके कार्य का फल, ये सब सिद्ध करते हैं कि वह लौटकर आया प्रभु यीशु है। वह अंत के दिनों का मसीह है। इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता। जैसा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : ‘वह अपने कार्य से अपनी पहचान की पुष्टि होने देता है और जो वह प्रकट करता है, उसे अपना सार प्रमाणित करने देता है। उसका सार निराधार नहीं है; उसकी पहचान उसके हाथ से ज़ब्त नहीं की गई थी; यह उसके कार्य और उसके सार से निर्धारित होती है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, स्वर्गिक परमपिता की इच्छा के प्रति समर्पण ही मसीह का सार है)। झूठे मसीहों में दिव्य सार नहीं होता और वे सत्य व्यक्त नहीं कर सकते। चाहे वो इस बात पर कितना भी जोर दें कि वे परमेश्वर हैं, वे मसीह हैं, यह सब झूठ है और लोगों को गुमराह करने के लिए रचा गया है। उनका अनुसरण करना बदमाशों के झुंड में फँसने जैसा है और इससे केवल बर्बादी ही होती है। चाहे वे खुद को कितना भी मसीह के रूप में पेश करें, वे केवल कुछ समय के लिए ही लोगों को धोखा दे सकते हैं। अंततः तथ्यों के सामने उजागर और पराजित होकर नष्ट होना ही उनकी नियति है। केवल मसीह ही सत्य व्यक्त कर मानवजाति के उद्धार का कार्य कर सकता है। इसीलिए सच्चे मसीह को पहचानने के लिए यह देखना जरूरी है कि क्या वह सत्य और परमेश्वर की वाणी व्यक्त कर सकता है और क्या वह मनुष्य को शुद्ध करने और बचाने का कार्य कर सकता है। यह महत्वपूर्ण है।”

म्यू झेंग की संगति से मैं पूरी तरह प्रबुद्ध हो गया। सच्चे मसीह को पहचानने के लिए यह देखना जरूरी है कि क्या वह सत्य व्यक्त कर सकता है। अगर वह ऐसा कर सकता है तो वह मसीह है, लौटकर आया प्रभु है। अगर कोई व्यक्ति सत्य व्यक्त नहीं कर सकता, फिर चाहे वह कितना भी दावा करे कि वह मसीह है, वह धोखेबाज, झूठा मसीह और गुमराह करने वाला ही होगा। मैंने पाया कि पहचानने की यह विधि सरल भी है और व्यावहारिक भी। एकदम अद्भुत! सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन बिल्कुल स्पष्ट हैं कि सच्चे और झूठे मसीह में अंतर कैसे करना है। उनमें वाकई सच्चाई है! मैं बेहद मूर्ख और अज्ञानी हुआ करता था, याजक की बातों पर आँख मूँद कर भरोसा कर लेता था। झूठे मसीह द्वारा गुमराह होने के डर से, मैंने कभी सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की जाँच-पड़ताल नहीं की थी। मैंने प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश कभी नहीं की थी, परिणामस्वरूप मैं प्रभु का स्वागत करने का मौका लगभग चूक ही गया था। अगर प्रभु की दया और सहनशीलता न होती, और मेरे प्रियजनों और भाई के जरिए बार-बार मेरे साथ सुसमाचार साझा करने के लिए उसने मेरे दरवाजे पर दस्तक न दी होती, तो मैं जीवन भर धर्म में प्रतीक्षा करता रहता, कभी परमेश्वर की वाणी न सुन पाता या प्रभु की वापसी का स्वागत न कर पाता। मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा उद्धार के लिए सच में धन्यवाद देता हूँ!

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