1. एक कैथोलिक याजक की घर-वापसी

झांग जियान, चीन

मेरा परिवार पीढ़ियों से कैथोलिक रहा है। जब मैं 20 साल का था, तो मैंने मठवासी बनकर प्रभु की सेवा में अपना जीवन अर्पित करने का निर्णय लिया। सेमिनरी में सात साल के व्यवस्थित धर्मशास्त्रीय प्रशिक्षण के बाद मेरा 27 साल की उम्र में याजक के रूप में अभिषेक किया गया, और 30 साल की उम्र में मुझे एक मठ के मठाध्यक्ष के रूप में पदोन्नत कर दिया गया। उस समय मैं अत्यधिक अहंकारी था। मुझे लगता था कि मैं बहुत कम उम्र में मठ का मठाध्यक्ष बन गया हूँ, और सभी याजक और मठवासी कहते थे कि मेरे उपदेश सुनने से उन्हें लाभ हुआ है, इसलिए मैं सोचता था कि मैं दूसरे लोगों की तुलना में बाइबल बेहतर समझता हूँ और प्रभु का ज्ञान रखता हूँ। मैं सोचता था कि जब प्रभु आएगा, तो मुझे निश्चित रूप से उसका अनुमोदन प्राप्त होगा और मैं स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने में सक्षम रहूँगा।

जून 2001 की एक शाम उपयाजक वांग ने काफी हड़बड़ी में मेरे पास आकर कहा कि दो ईसाई आए हैं और वे आस्था के बारे में बहुत गहराई से बोलते हैं। जब मैंने सुना कि वे ईसाई हैं, तो मैंने उन्हें बिल्कुल भी गंभीरता से नहीं लिया। मैंने सोचा, “कैथोलिक कलीसिया ही सच्ची कलीसिया है और इसमें यीशु के उद्धार का पूरा सत्य है। मैंने कई वर्षों तक धार्मिक प्रशिक्षण लिया है, मैंने बाइबल के प्रत्येक अध्याय का पंक्ति-दर-पंक्ति अध्ययन किया है। यह उत्तम अवसर है; मैं जाकर उनके साथ आस्था के प्रश्न पर चर्चा करूँगा और उन्हें कैथोलिक धर्म में परिवर्तित होने के लिए राजी करूँगा।” इसके बाद उपयाजक वांग मुझे उन दोनों से मिलवाने ले गए। वे भाई चेंग शी और भाई शियांग गुआंग थे। जब मुझे पता चला कि उन्हें परमेश्वर में विश्वास करते सिर्फ छह-सात साल ही हुए हैं, तो मैंने उन्हें और भी नीची नजर से देखा, लेकिन फिर भी मैंने उन्हें कैथोलिक धर्म के इतिहास के बारे में धैर्यपूर्वक बात की। मैंने उनसे आग्रह किया कि अगर वे स्वर्ग के राज्य में अपना प्रवेश सुनिश्चित करना चाहते हैं, तो उन्हें सच्ची कलीसिया, कैथोलिक कलीसिया में शामिल होना चाहिए। लेकिन दोनों भाई न केवल धर्मांतरित नहीं होना चाहते थे, बल्कि शियांग गुआंग ने कहा, “कैथोलिक धर्म और ईसाई धर्म दोनों में कलीसिया की स्थिति अब बहुत वीरान है। प्रचारक बिना प्रबुद्धता के शास्त्र पढ़ते और उपदेश देते हैं, वे कोई नया या गहरा उपदेश नहीं दे पाते। कई प्रचारकों ने तो सांसारिक चीजों का अनुसरण करना भी शुरू कर दिया है और सेवा का मार्ग छोड़ दिया है। विश्वासी और भी ज्यादा निराश और कमजोर महसूस करते हैं; उनकी आस्था ठंडी पड़ गई है। सभाओं के दौरान वे अपने दैनिक जीवन या पैसा बनाने के बारे में चर्चा करते हैं, वे एक-दूसरे को नौकरी दिलवाते और शादियाँ कराते हैं। ऐसे भी कई विश्वासी हैं जो सांसारिक प्रवृत्तियों का अनुसरण करते हैं और कुछ तो धर्मनिरपेक्ष दुनिया में लौट भी गए हैं। कलीसिया की स्थिति व्यवस्था के युग के परवर्ती दिनों की मंदिर की स्थिति से किस तरह अलग है? व्यवस्था के युग के अंत में मंदिर स्पष्ट रूप से वीरान हो गया था। लोग वहाँ पैसे का आदान-प्रदान और मवेशियों, भेड़ों और कबूतरों का व्यापार कर रहे थे—वह चोरों का अड्डा बन गया था। यह दर्शाता है कि मंदिर में पवित्र आत्मा कार्य नहीं कर रहा था। तो पवित्र आत्मा कहाँ कार्य कर रहा था? उस समय प्रभु यीशु पहले से ही मंदिर के बाहर नया कार्य कर रहा था, इसलिए पवित्र आत्मा का कार्य प्रभु यीशु के कार्य पर स्थानांतरित हो गया। यह कुछ वैसा ही है, जैसे सर्दियों में अंगीठी से कमरा गर्म हो जाता है, लेकिन अगर अंगीठी हटा दी जाए तो कमरा धीरे-धीरे ठंडा हो जाता है। इसी तरह, जब पवित्र आत्मा कलीसिया में कार्य करता है, तो भाई-बहनों में आस्था होती है और वे लगन से खोजते हैं, लेकिन जब पवित्र आत्मा का कार्य खो जाता है, तो कलीसिया धीरे-धीरे वीरान हो जाती है। कलीसियाएँ हर जगह उसी स्थिति में हैं, जैसे व्यवस्था के युग के परवर्ती दिनों में मंदिर थे। वे सब सुनसान हैं। क्या आपने कभी इस बात पर विचार किया है कि क्या पवित्र आत्मा का कार्य स्थानांतरित हो गया है? आज पवित्र आत्मा कहाँ कार्य करता है?” मुझे इन बातों से काफी आश्चर्य हुआ। मुझे उम्मीद नहीं थी कि वे व्यवस्था के युग के परवर्ती दिनों की मंदिर की वीरानी को प्रभु यीशु के कार्य से जोड़ेंगे। यह समझ काफी नई और ताजी थी। हमने अपनी कलीसिया में चीजों को इस तरह कभी नहीं समझा था। मैं कलीसिया की स्थिति के उनके आकलन से भी सहमत था। अन्य चीजों के अलावा, बहुत-से विश्वासी पहले ही शास्त्र पढ़ना और प्रभु का दिन मनाना जैसी प्रथाओं का पालन करना बंद कर चुके थे। वे बिल्कुल अविश्वासियों की तरह धन और सांसारिक सुखों के पीछे भाग रहे थे और कलीसिया में लोगों की संख्या घटती जा रही थी। ये तथ्य थे। कलीसिया वाकई वीरान थी। चूँकि उन भाइयों के शब्द तथ्यों और बाइबल के अनुरूप थे और उनकी समझ में कुछ गहराई थी, इसलिए मैंने सोचा, “मैंने इसे समझे बिना कई वर्षों तक बाइबल का अध्ययन किया है, लेकिन वे केवल कुछ ही वर्षों के विश्वास के बाद ही इस बारे में बोल पा रहे हैं। लगता है, मैंने इन्हें कम आँका है।” यह देखकर कि मैं उन्हें मना नहीं सकता, मैंने बस उनके कुछ शब्द दोहराए और घर जाने का बहाना बना लिया।

उस समय, मैं यह जरूर सोचने लगा कि क्या पवित्र आत्मा का कार्य स्थानांतरित हो रहा है। लेकिन मैं यह भी मानता था कि पवित्र आत्मा कैथोलिक कलीसिया का आत्मा है, इसलिए अगर वह वहाँ कार्य नहीं करता, तो और कहाँ कर सकता है? मैं इसे समझ नहीं पाया, इसलिए मैंने इसके बारे में ज्यादा नहीं सोचा। इसके बाद चेंग शी और शियांग गुआंग दो बार फिर मुझसे मिलने आए। उन्होंने कहा, “परमेश्वर नए वचन व्यक्त करने, मनुष्य का न्याय कर उसे शुद्ध करने का कार्य करने, हमें पाप के बंधन से छुड़ाने और हमें परमेश्वर के राज्य में लाने के लिए देहधारी हुआ है।” उस समय मैंने यह सोचकर बहुत प्रतिरोध महसूस किया, “क्या तुम वाकई बाइबल समझते हो? प्रभु यीशु पहले ही छुटकारे का कार्य पूरा कर चुका है और अंत के दिनों में वह लोगों के परिणाम निर्धारित करने के लिए आत्मा के रूप में बादलों के साथ उतरेगा। वह देहधारी होकर नया कार्य भला कैसे कर सकता है?” फिर मुझे याद आया कि कुछ ही समय पहले मैंने सुना था कि कुछ लोग चमकती पूर्वी बिजली के बारे में प्रचार कर रहे हैं। उन लोगों ने गवाही दी थी कि प्रभु पहले ही देहधारी होकर लौट चुका है और नया कार्य कर रहा है, और उनके उपदेश बहुत गहरे थे। यह काफी संभव लगता था कि चेंग शी और शियांग गुआंग चमकती पूर्वी बिजली में विश्वास करते हों। लेकिन मैं सोचता था कि कैथोलिक कलीसिया ही सच्ची कलीसिया है, और मैंने इससे पहले चमकती पूर्वी बिजली के बारे में कभी नहीं सुना था। चूँकि वे सच्ची कलीसिया से जुड़े नहीं थे, इसलिए उन्होंने जो कुछ भी प्रचार किया, वह गलत होना चाहिए। मुझसे उनकी बात सुनी नहीं गई, इसलिए मैंने उन्हें टोककर पूछा, “तुम चमकती पूर्वी बिजली में विश्वास करते हो, है न? तुम कहते हो कि प्रभु फिर से देहधारी हो गया है और नया कार्य कर रहा है। यह असंभव है। मैं इस पर विश्वास नहीं करता! अगर तुम मुझे यह सुसमाचार सुनाना चाहते हो, तो कोशिश करना बेकार है!” चेंग शी और शियांग गुआंग मेरे साथ धैर्यपूर्वक संगति करते रहे, लेकिन उस समय मेरी धारणाएँ बहुत मजबूत थीं और मैंने उनकी एक नहीं सुनी। मैंने उनसे गुस्से से कहा, “तुम्हारे उपदेश मेरी आस्था के विरुद्ध हैं और मैं उन्हें और नहीं सुनना चाहता!” मेरा इस तरह का रवैया देखकर उन्होंने अपनी बात खत्म कर दी। उन्होंने इसके बाद मुझसे दो बार फिर बात की, लेकिन मैं बहुत प्रतिरोधी था। उन्होंने जो कुछ भी कहा, वह मैंने एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल दिया। अंत में, उन्होंने मुझे “वचन देह में प्रकट होता है” पुस्तक की एक प्रति देकर उसकी जाँच करने का आग्रह किया। उनकी गंभीरता देखकर मुझे मना करने में बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई और मैंने किताब रख ली। जब मैंने “वचन देह में प्रकट होता है” की वह मोटी प्रति देखी, तो मुझे यह जानने की थोड़ी उत्सुकता हुई कि आखिर उसमें लिखा क्या है। इसलिए मैंने पुस्तक की विषय-सूची देखी और फिर कुछ पन्ने पलटे। मैंने पाया कि पुस्तक के कुछ हिस्से हमारी परंपरागत शिक्षाओं से भिन्न थे, जैसे कि त्रित्व वास्तव में मौजूद है या नहीं और मानवजाति के भावी परिणाम और गंतव्य से संबंधित बातें, इसलिए मैंने पुस्तक बंद कर दी और उसे दोबारा नहीं देखा। उस समय मैंने सोचा कि मठाध्यक्ष के रूप में अपने समूह की रक्षा करना मेरा कर्तव्य है और मुझे याजकों और मठवासियों को गुमराह होने से रोकने के लिए सूचित करने की आवश्यकता है। इसलिए नवदीक्षितों की एक एकांत-साधना के दौरान मैंने याजकों और मठवासियों से कहा, “हम अंत के दिनों में हैं और कई झूठे मसीह प्रकट हो रहे हैं। कुछ दिन पहले मैं चमकती पूर्वी बिजली के दो लोगों से मिला। उन्होंने कहा कि प्रभु यीशु लौट आया है, कि वह देहधारी होकर नया कार्य कर रहा है। यह कैसे संभव है?” मैंने “वचन देह में प्रकट होता है” पुस्तक ऊपर उठाते हुए कहा, “देखिए, यह उनकी पुस्तक है। मैंने इस पर उड़ती नजर डाली है और यह जो सिखाती है, वह हमारी परंपरागत मान्यताओं से अलग है। मुझे यकीन है कि यह परमेश्वर से नहीं आई है! आप लोगों को सावधान रहना चाहिए। उनकी किताबें मत पढ़िए, उनसे मत मिलिए और उनके उपदेश मत सुनिए। आपको कलीसिया के सदस्यों को उनके द्वारा गुमराह किए जाने से बचाना चाहिए!” मेरी यह बात सुनकर सभी याजक और मठवासी सहमत हो गए कि यह आत्माओं को बचाने का एक महत्वपूर्ण मामला है और कलीसिया के सदस्यों को बचाया जाना चाहिए। उन सभी को इतना आज्ञाकारी देख मुझे लगा कि मैंने एक बहुत ही न्यायसंगत काम किया है और अपने समूह की रक्षा के लिए मठाध्यक्ष के रूप में अपनी जिम्मेदारी और दायित्व निभाया है। मुझे बिल्कुल भी एहसास नहीं हुआ कि मैं परमेश्वर का विरोध कर रहा था।

इस घटना के कुछ दिनों बाद शियांग गुआंग मुझसे मिलने आया और पूछा कि क्या मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़े हैं। मैंने उससे कहा, “सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन हमारी कलीसिया की परंपरागत शिक्षाओं से भिन्न हैं, इसलिए मैं उनकी जाँच नहीं करूँगा और किसी और को भी उनकी जाँच नहीं करने दूँगा, क्योंकि यह आस्था का मामला है। तुम्हारे उपदेश सुनकर हम कभी प्रभु को धोखा नहीं देंगे!” शियांग गुआंग ने धैर्यपूर्वक मुझसे कहा, “आपने अभी तक सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन नहीं पढ़े हैं। आपने बस तय कर लिया है कि वे परमेश्वर की वाणी और वचन नहीं हैं, और उनकी जाँच करने से सिर्फ इसलिए इनकार कर रहे हैं, क्योंकि आपने उनमें एक चीज ऐसी पाई जो आपकी कलीसिया की परंपरागत शिक्षाओं से अलग है। यह विवेक से काम लेना नहीं है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : ‘मैं तुम लोगों को परमेश्वर में विश्वास के रास्ते पर सावधानी से चलने की सलाह देता हूँ। निष्कर्ष पर पहुँचने की जल्दी में न रहो; और परमेश्वर में अपने विश्वास में लापरवाह और विचारहीन न बनो। तुम लोगों को जानना चाहिए कि कम से कम, जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं उनके पास विनम्र और परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय होना चाहिए। जिन्होंने सत्य सुन लिया है और फिर भी इस पर अपनी नाक-भौंह सिकोड़ते हैं, वे मूर्ख और अज्ञानी हैं। जिन्होंने सत्य सुन लिया है और फिर भी लापरवाही के साथ निष्कर्षों तक पहुँचते हैं या उसकी निंदा करते हैं, ऐसे लोग अभिमान से घिरे हैं। जो भी यीशु पर विश्वास करता है वह दूसरों को शाप देने या निंदा करने के योग्य नहीं है। तुम सब लोगों को ऐसा व्यक्ति होना चाहिए, जो समझदार है और सत्य स्वीकार करता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब तक तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देखोगे, परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को फिर से बना चुका होगा)। प्रभु के विश्वासियों के रूप में हमारे हृदय ऐसे होने चाहिए, जो परमेश्वर का भय मानें। अपनी धारणाओं या कल्पनाओं के अनुरूप न होने के कारण हम आँख मूँदकर परमेश्वर के वचनों और कार्य की निंदा नहीं कर सकते। अगर परमेश्वर के सामने हम विनम्र, खोजी रवैया नहीं रखते, अगर हम हमेशा अपने मन और कल्पनाओं से परमेश्वर के नए कार्य और वचनों का मूल्यांकन करते हैं, तो परमेश्वर की निंदा और विरोध करने का बड़ा पाप करना बहुत आसान होता है। ठीक वैसे ही जब प्रभु यीशु कार्य करने के लिए आया था : चूँकि फरीसियों ने देखा कि उसके वचन और कार्य व्यवस्था से परे जाते थे, तो उन्हें उसके खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए कुछ मिल गया, उन्होंने उसकी निंदा की, और अंत में लोगों को उसे सूली पर चढ़ाने के लिए भड़काया। उन्होंने परमेश्वर के स्वभाव को गंभीर रूप से अपमानित किया और अंततः उन्हें परमेश्वर द्वारा शापित और दंडित किया गया। यह ऐसा सबक था, जिसकी कीमत खून से चुकाई गई थी। आज हमें इस बारे में सावधान रहना चाहिए कि हम प्रभु की वापसी के मामले से कैसे पेश आते हैं, क्योंकि अगर हम गलत तरीके से इसकी निंदा करते हैं, तो हम पवित्र आत्मा की निंदा कर सकते हैं। प्रभु यीशु ने बहुत पहले कहा था : ‘मनुष्य का सब प्रकार का पाप और निन्दा क्षमा की जाएगी, परन्तु पवित्र आत्मा की निन्दा क्षमा न की जाएगी(मत्ती 12:31)। यह पाप करना भयानक बात होगी! जबसे सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने प्रकट होकर कार्य किया है, विभिन्न संप्रदायों के कई अगुआओं ने अंत के दिनों के उसके कार्य की आँख मूँदकर निंदा की है। कुछ ने तो सर्वशक्तिमान परमेश्वर की बदनामी और निंदा भी की है। गंभीरता से विरोध करने वालों में से कई को दंडित किया गया। अगर हम इस मामले को सावधानी से नहीं देखते, तो हम अपनी मंजिलों को आसानी से खो सकते हैं।” उस समय मैंने सोचा, “मैं अपनी कलीसिया के सदस्यों के बारे में सोच रहा हूँ और उन्हें गुमराह होने से बचा रहा हूँ। यह प्रभु का अपमान कैसे कर सकता है?” लेकिन जब मैंने इसके बारे में और गंभीरता से सोचा, तो मुझे एहसास हुआ कि उसकी बात में दम है। मैं चमकती पूर्वी बिजली के बारे में वाकई ज्यादा नहीं जानता था, फिर भी मैंने फौरन ही उसकी निंदा कर दी, और याजकों और मठवासियों को भी यही उपदेश दिया। अगर मैं गलत तरीके से उसकी निंदा कर रहा था, जैसा कि उसने कहा, तो इससे परमेश्वर का अपमान होगा। इसके परिणाम अकल्पनीय थे। जब मुझे यह खयाल आया, तो मैंने शियांग गुआंग से कहा, “मैंने पहले कभी इस पर विचार नहीं किया, लेकिन भविष्य में इस मामले को ध्यान से देखूँगा।” इसके बाद हमारी कलीसिया में कुछ ऐसी चीजें हुईं, जिन्होंने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया। एक बार मैं अपने बिशप से मिला, तो उन्होंने उदास होकर मुझसे कहा, “इस धर्मप्रांत में कई याजक भेंट न सौंपने के बहाने ढूँढ़ रहे हैं, और कुछ याजक व्यभिचार में लिप्त हैं और पश्चात्ताप करने से इनकार कर रहे हैं। एक पुराने याजक ने मुझे अकेले में बताया कि उसने चढ़ावा गुप्त रूप से किसी और को कारखाना लगाने के लिए दे दिया था...।” ये बातें सुनकर मैंने सोचा, “याजक के लिए व्यभिचार में लिप्त होना या चढ़ावे बरबाद करना और उनका गलत इस्तेमाल करना प्रभु के प्रति घोर पाप है। प्रभु ने कहा : ‘यदि तुम मन न फिराओगे तो तुम सब भी इसी रीति से नष्‍ट होगे(लूका 13:3)। अगर तमाम याजक पाप में जी रहे हैं और कभी पश्चात्ताप नहीं करते, तो वे स्वर्ग के राज्य में कैसे प्रवेश करेंगे?” अतीत में इस तरह की समस्याएँ केवल कुछ ही याजकों के साथ थीं। मैंने कभी नहीं सोचा था कि अब इतने सारे लोग भ्रष्टता में डूब गए हैं। इन चीजों के कारण मैं कलीसिया की वीरानी के बारे में सोचे बिना नहीं रह सका, जिसका वर्णन शियांग गुआंग ने किया था। मैंने सोचा, “अतीत में जब पवित्र आत्मा कलीसिया में कार्य करता था, तो जब हम कुछ गलत करते थे तो पवित्र आत्मा हमें अनुशासित करता था। लेकिन अब इतने सारे याजक परमेश्वर के प्रति पाप कर रहे हैं—पवित्र आत्मा उन्हें अनुशासित क्यों नहीं कर रहा? क्या ऐसा हो सकता है कि पवित्र आत्मा अब वाकई हमारी कलीसिया में कार्य नहीं करता?” उस समय मैं यह नहीं समझ पाया।

थोड़ी देर बाद भाई शियांग गुआंग और भाई फैंग यी मुझसे मिलने आए। उस समय भी मैं थोड़ा प्रतिरोधी था। मैंने सोचा, “आप गवाही देते हैं कि प्रभु नया कार्य करने के लिए देहधारी होकर लौटा है। क्या बाइबल में इसका कोई आधार है? मुझे नहीं लगता कि आपके पास कोई सबूत है! इस बार मैं आपसे पहले कुछ प्रश्न पूछूँगा। अगर आप उनका उत्तर न दे पाए, तो बात खत्म।” मैंने पूछा, “बाइबल कहती है कि अंत के दिनों में प्रभु एक आध्यात्मिक शरीर के रूप में बादलों पर उतरते हुए वापस आएगा। लेकिन आप गवाही देते हैं कि वह नया कार्य करने के लिए देहधारी होकर लौट आया है। आपके ऐसा कहने का क्या आधार है?” फैंग यी ने शांति से उत्तर दिया, “परमेश्वर ने बहुत पहले योजना बना ली थी और व्यवस्था कर ली थी कि प्रभु देहधारण करेगा और अंत के दिनों में वापस आएगा। इसका प्रमाण स्वयं प्रभु यीशु की भविष्यवाणी में है। आइए, कुछ पदों पर नजर डालें। लूका 17:24–25 कहता है : ‘क्योंकि जैसे बिजली आकाश के एक छोर से कौंध कर आकाश के दूसरे छोर तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य का पुत्र भी अपने दिन में प्रगट होगा। परन्तु पहले अवश्य है कि वह बहुत दुःख उठाए, और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएँ।’ और फिर, ‘इसलिये तुम भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी के विषय में तुम सोचते भी नहीं हो, उसी घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जाएगा(मत्ती 24:44), साथ ही, ‘जैसे नूह के दिन थे, वैसा ही मनुष्य के पुत्र का आना भी होगा(मत्ती 24:37)। जैसा कि तुम देख सकते हो, ये सभी पद ‘मनुष्य के पुत्र’ का उल्लेख करते हैं। ‘मनुष्य का पुत्र’ यहाँ क्या दर्शाता है? हम सभी जानते हैं कि प्रभु यीशु मनुष्य का पुत्र और देहधारी परमेश्वर है। इस बारे में कोई संदेह नहीं है। मनुष्य का पुत्र एक साधारण मनुष्य बनने के लिए देहधारी परमेश्वर के आत्मा को संदर्भित करता है—इसका अर्थ है देहधारी परमेश्वर। इसलिए प्रभु यीशु का ‘मनुष्य के पुत्र के आने’ की भविष्यवाणी करना दर्शाता है कि जब वह लौटेगा, तो वह देहधारी होगा। इसके अलावा बाइबल यह भी कहती है : ‘परन्तु पहले अवश्य है कि वह बहुत दुःख उठाए, और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएँ।’ इसका क्या मतलब है? इसका मतलब यह है कि जब प्रभु यीशु लौटेगा, तो लोग उसे जानेंगे या पहचानेंगे नहीं, कि पूरी पीढ़ी उसकी निंदा करेगी और उसे नकारेगी। कहा जा सकता है कि केवल मनुष्य के पुत्र के रूप में देहधारण करके ही परमेश्वर अत्यधिक कष्ट उठा सकता है और इस पीढ़ी द्वारा नकारा जा सकता है। अगर प्रभु यीशु सबके सामने आत्मा के रूप में, यहूदी व्यक्ति के समान, प्रतापी और महिमा में प्रकट होता है, तो उसे देखकर कौन झुककर उसकी आराधना नहीं करेगा? तो फिर वह कैसे बड़ी पीड़ा सहेगा? कैसे इस पीढ़ी द्वारा नकारा जाएगा? इसलिए, जब प्रभु लौटेगा, तो वह मनुष्य के देहधारी पुत्र के रूप में होगा। यह किसी भी संदेह से परे है।”

फैंग यी की संगति सुनने के बाद मैं हैरान हुए बिना नहीं रह सका। मैंने मन ही मन सोचा : “यह सही है। अगर प्रभु यीशु एक आध्यात्मिक देह के रूप में फिर से आता है, बादलों पर सवार होकर बड़ी महिमा में उतरता है, तो लोग उसे देखते ही अपने घुटनों पर गिर जाएँगे। कौन उसे नकारने का साहस करेगा? वह अत्यधिक कष्ट कैसे सहेगा? केवल भौतिक शरीर ही पीड़ा सह सकते हैं। क्या यह साबित नहीं करता कि प्रभु देहधारी होकर आएगा? फैंग यी की संगति पूरी तरह से उचित और तार्किक है! धार्मिक जगत का कोई भी धर्मशास्त्री या आध्यात्मिक हस्ती प्रभु यीशु की इस भविष्यवाणी की व्याख्या नहीं कर पाई है। वे सभी कहते हैं कि यह प्रभु का रहस्य है, जिसे मनुष्य पूरी तरह से नहीं समझ सकते। मैंने इतने सालों तक बाइबल का अध्ययन किया है, लेकिन मैं इस भविष्यवाणी को कभी नहीं समझ पाया। मैं नहीं जानता था कि जब प्रभु आध्यात्मिक रूप में लौटेगा, तो अत्यधिक पीड़ा क्यों सहेगा। मैंने कभी नहीं सोचा था कि चमकती पूर्वी बिजली के लोग इस भविष्यवाणी के रहस्य को समझाने में सक्षम होंगे। इतना ही किसी को गौर करने पर मजबूर करने के लिए पर्याप्त है! क्या सच में प्रभु देहधारी होकर लौट सकता है? लेकिन बाइबल में और भी कई भविष्यवाणियाँ हैं, जो प्रभु के बादलों के साथ उतरने का उल्लेख करती हैं।” इसलिए मैंने उन भाइयों से पूछा, “बाइबल में कई भविष्यवाणियाँ हैं कि जब प्रभु लौटेगा, तो वह बादलों पर उतरेगा। उदाहरण के लिए, प्रभु यीशु ने कहा था : ‘तब मनुष्य के पुत्र का चिह्न आकाश में दिखाई देगा, और तब पृथ्वी के सब कुलों के लोग छाती पीटेंगे; और मनुष्य के पुत्र को बड़ी सामर्थ्य और ऐश्‍वर्य के साथ आकाश के बादलों पर आते देखेंगे(मत्ती 24:30)। प्रकाशितवाक्य में भी भविष्यवाणी की गई है : ‘देखो, वह बादलों के साथ आनेवाला है, और हर एक आँख उसे देखेगी, वरन् जिन्होंने उसे बेधा था वे भी उसे देखेंगे, और पृथ्वी के सारे कुल उसके कारण छाती पीटेंगे(प्रकाशितवाक्य 1:7)। अगर वह वास्तव में देहधारी होकर लौटता है, तो ये भविष्यवाणियाँ कैसे पूरी होंगी?”

फैंग यी ने संगति की, “प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी अवश्य की थी कि वह अंत के दिनों में बादलों के साथ उतरेगा और सार्वजनिक रूप से सभी राष्ट्रों और लोगों का न्याय करेगा। इन भविष्यवाणियों का पूरा होना निश्चित है। लेकिन पहले वह गुप्त रूप से देह बनता है; बादलों पर सवार होकर सबके सामने वह बाद में प्रकट होगा। दूसरे शब्दों में, प्रभु दो तरीकों से वापस आएगा। पहले वह सत्य व्यक्त करने, लोगों का न्याय करने और उन्हें शुद्ध करने का अपना कार्य करने और विजेताओं का एक समूह बनाने के लिए देह बनता है। इसके बाद बड़ी आपदाएँ उतरनी शुरू होंगी और देहधारी परमेश्वर का गुप्त कार्य पूरा हो जाएगा। आपदाओं के बाद परमेश्वर महिमा में सबके सामने प्रकट होगा और अच्छे लोगों को पुरस्कृत करेगा और दुष्टों को दंड देगा। इसलिए, जिन लोगों ने परमेश्वर के देहधारण और गुप्त कार्य की अवधि के दौरान उसका विरोध और निंदा की है और पश्चात्ताप नहीं किया, वे अपना उद्धार का अवसर पूरी तरह खो चुके होंगे। वे आपदाओं में गिरेंगे, रोएँगे और दाँत पीसेंगे। यह प्रकाशितवाक्य की पुस्तक की भविष्यवाणी को पूरा करता है : ‘देखो, वह बादलों के साथ आनेवाला है, और हर एक आँख उसे देखेगी, वरन् जिन्होंने उसे बेधा था वे भी उसे देखेंगे, और पृथ्वी के सारे कुल उसके कारण छाती पीटेंगे। हाँ। आमीन(प्रकाशितवाक्य 1:7)।” फैंग यी की संगति सुनने के बाद मेरे दिल ने अचानक खुला और स्पष्ट महसूस किया। जब प्रभु लौटेगा, तो न केवल वह खुले तौर पर बादलों के साथ उतरेगा, बल्कि पहले वह देह बनेगा और गुप्त रूप से उतरेगा। ये वे दो तरीके हैं, जिनसे प्रभु प्रकट होगा। पहले मैं एक ही तरीके के बारे में जानता था—ऐसा लगता था कि मुझे इसकी अधूरी समझ थी। जब मैंने देखा कि चमकती पूर्वी बिजली ने बाइबल की भविष्यवाणियों का रहस्य इस तरह प्रकट किया है जो उचित और तार्किक लगता है, तो मैंने सोचा कि यह शायद परमेश्वर की ओर से आया है और जाँच के लायक है। इसके बाद मेरा रवैया पूरी तरह से बदल गया और मैं बिना प्रतिरोध के उनकी संगति सुनने और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ने के लिए तैयार हो गया।

कुछ समय तक सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मुझे यकीन हो गया कि प्रभु देहधारी होकर लौटेगा, लेकिन मैं यह नहीं जानता था कि यह कैसे निश्चित किया जाए कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटकर आया हुआ प्रभु यीशु है। मैं सोचता था कि कैथोलिक कलीसिया ही सच्ची कलीसिया है, कि उसके पास यीशु के उद्धार का पूरा सत्य है। मैं सोचता था कि कैथोलिक धर्म के जरिये ही हमारी आत्माएँ बचाई जा सकती हैं और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश किया जा सकता है। अगर मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार लिया, और बाद में पता चला कि मैं अपने विश्वास में भटक गया था, तो क्या होगा? क्या मैं प्रभु के साथ विश्वासघात नहीं कर रहा हूँगा? तब मैं स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कैसे कर सकूँगा? मुझे अभी भी बेचैनी महसूस हो रही थी, क्योंकि मैं इस समस्या का समाधान नहीं कर पाया था। उस समय संयोगवश मैंने सुना कि याजक युआन योंगजिन ने भी अंत के दिनों का सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य स्वीकार लिया है। मैं उससे मिलना चाहता था, क्योंकि वह भी कैथोलिक था और हमारी शिक्षाएँ और विचार समान थे। मैं देखना चाहता था कि वह इस मुद्दे को कैसे समझता है। कुछ दिनों बाद हम मिले और मैंने उसे अपनी चिंता बताई।

युआन योंगजिन ने मेरे साथ संगति की, “कभी मेरी भी यही चिंताएँ थीं। मुझे चिंता होती थी कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकारने का मतलब है प्रभु यीशु को धोखा देना। इस समस्या का समाधान करने के लिए हमें जो मुख्य काम करने की जरूरत है, वह है यह पहचानना कि क्या सर्वशक्तिमान परमेश्वर और प्रभु यीशु एक ही आत्मा हैं, और क्या वे एक ही कार्यरत परमेश्वर हैं। व्यवस्था के युग में वह यहोवा था जो कार्य कर रहा था, और अनुग्रह के युग में वह प्रभु यीशु था। हालाँकि परमेश्वर का नाम बदल गया और जो कार्य उसने किया, वह भिन्न था, पर क्या तुम कह सकते हो कि प्रभु यीशु और यहोवा एक ही परमेश्वर नहीं हैं? क्या तुम कह सकते हो कि प्रभु यीशु में विश्वास करना यहोवा को धोखा देना है? हरगिज नहीं। इसलिए उनके नामों के आधार पर यह तय नहीं किया जा सकता कि क्या वे एक ही परमेश्वर हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह देखना है कि क्या सर्वशक्तिमान परमेश्वर सत्य व्यक्त कर सकता है और मानवजाति को बचाने का कार्य कर सकता है। अगर सर्वशक्तिमान परमेश्वर सत्य और परमेश्वर की वाणी व्यक्त कर सकता है और मानवजाति को बचाने का कार्य कर सकता है, तो वह स्वयं परमेश्वर है, और वह और यहोवा और प्रभु यीशु एक ही परमेश्वर हैं। हम सभी जानते हैं कि व्यवस्था के युग में यहोवा ने मानवजाति के जीवन का मार्गदर्शन करने के लिए नियम और आज्ञाएँ जारी कीं, ताकि लोग जान सकें कि पाप क्या है, पापों के प्रायश्चित के लिए बलियाँ कैसे अर्पित करें, और परमेश्वर की आराधना कैसे करें। व्यवस्था के युग के अंत में लोग ज्यादा से ज्यादा पाप कर रहे थे और उनके सभी पापों के लिए पर्याप्त बलियाँ नहीं थीं। तमाम लोगों को व्यवस्था द्वारा दोषी ठहराए जाने और मरने का जोखिम था, इसलिए यहोवा ने नबी के जरिये भविष्यवाणी की : ‘देखो, एक कुँवारी गर्भवती होगी और एक पुत्र जनेगी, और उसका नाम इम्मानुएल रखा जाएगा(मत्ती 1:23), ‘क्योंकि हमारे लिये एक बालक उत्पन्न हुआ, हमें एक पुत्र दिया गया है; और प्रभुता उसके काँधे पर होगी(यशायाह 9:6)। इन वचनों ने इस्राएलियों को बताया कि मसीहा आएगा और वह पापबलि होगा, जो मानवजाति को छुटकारा दिलाएगा। वादे के मुताबिक तब परमेश्वर प्रभु यीशु के रूप में देहधारी हुआ और उसने व्यवस्था के कार्य की नींव पर निर्माण करते हुए मानवजाति को छुटकारा दिलाने का कार्य किया। प्रभु यीशु ने कई सत्य व्यक्त किए, मनुष्य को पश्चात्ताप का मार्ग प्रदान किया, और फिर शाश्वत पापबलि के रूप में मानवजाति के लिए सूली पर चढ़ा दिया गया, जिससे समस्त मानवजाति के छुटकारे का कार्य पूरा हो गया। इसके बाद, अगर लोग यीशु मसीह को अपने उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकारते हैं और उसके सामने पश्चात्ताप करते हैं, तो परमेश्वर उनके पाप क्षमा कर देगा और वे व्यवस्था का उल्लंघन करने के कारण नहीं मरेंगे। लोग प्रार्थना कर परमेश्वर का अनुग्रह और शांति प्राप्त करने के लिए उसके सामने आने के योग्य हो गए। इस तरह प्रभु यीशु के कार्य ने पुराने विधान की भविष्यवाणियाँ पूरी तरह से साकार कर दीं। उसने लोगों को व्यवस्था के बंधन से छुड़ाया, व्यवस्था का युग समाप्त किया और मानवजाति को अनुग्रह के युग में लाया। यह ये साबित करने के लिए पर्याप्त है कि प्रभु यीशु उद्धारकर्ता और मसीहा का आगमन है। प्रभु यीशु और यहोवा एक आत्मा और एक परमेश्वर हैं, जैसा कि प्रभु यीशु ने कहा था : ‘मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में है(यूहन्ना 14:11), ‘मैं और पिता एक हैं(यूहन्ना 10:30)। प्रभु यीशु ने जब छुटकारे का कार्य समाप्त कर लिया, तो प्रभु में विश्वास करने वालों को उनके पापों के लिए क्षमा कर दिया जाता है, लेकिन मनुष्य की पापी प्रकृति अभी तक दूर नहीं हुई है। लोग अभी भी बार-बार पाप और प्रभु का विरोध कर सकते हैं और वे पाप के बंधन से पूरी तरह मुक्त नहीं हैं। कुछ उदाहरण देता हूँ : हम अभी भी निजी लाभ के लिए अक्सर झूठ बोलते और धोखा देते हैं। हम अभी भी ईर्ष्यालु हो सकते हैं, दूसरों से घृणा, और सत्ता और हितों के लिए संघर्ष कर सकते हैं। किसी बीमारी या विपदा से पीड़ित होने पर हम अभी भी प्रभु को दोष देते हैं, यहाँ तक कि उसे नकार और धोखा भी दे सकते हैं। यह बाइबल में लिखा है : ‘जो कोई पाप करता है वह पाप का दास है। दास सदा घर में नहीं रहता; पुत्र सदा रहता है(यूहन्ना 8:34–35), ‘पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ(1 पतरस 1:16)। परमेश्वर पवित्र है, और अंततः वह ऐसे लोग चाहता है, जो पूरी तरह से उसके वचनों के प्रति समर्पित हो सकें और पवित्रता हासिल कर सकें। लेकिन हम अभी भी पापी, मलिन और भ्रष्ट हैं। हम पाप के बंधन से अलग नहीं हुए हैं और हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के योग्य नहीं हैं। इसलिए प्रभु यीशु ने कई बार भविष्यवाणी की कि वह अंत के दिनों में सत्य व्यक्त करने और न्याय का कार्य करने के लिए वापस आएगा, मानवजाति को पाप और शैतान के प्रभाव से पूरी तरह से बचाएगा और हमें स्वर्ग के राज्य में ले जाएगा। जैसा कि उसने भविष्यवाणी की थी : ‘मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा(यूहन्ना 16:12–13), ‘यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता; क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूँ। वो जो मुझे नकार देता है, और मेरे वचन नहीं स्वीकारता, उसका भी न्याय करने वाला कोई है : मैंने जो वचन बोले हैं वे ही अंत के दिन उसका न्याय करेंगे(यूहन्ना 12:47–48)। और 1 पतरस 4:17 में कहा गया है : ‘क्योंकि वह समय आ चुका है कि परमेश्वर के घर से न्याय शुरू किया जाए।’ और जैसा कि उसने वादा किया था, प्रभु यीशु मानवजाति को शुद्ध करके बचाने के लिए जरूरी सभी सत्य व्यक्त करने अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में देहधारी होकर लौट आया है। प्रभु यीशु के कार्य की नींव पर निर्माण करते हुए सर्वशक्तिमान परमेश्वर मनुष्य की पापी प्रकृति का समाधान करने और मानवजाति को सभी सत्यों में ले जाने के लिए परमेश्वर के घर से शुरू होने वाला न्याय का कार्य कर रहा है और इस प्रकार प्रभु यीशु की भविष्यवाणियाँ पूरी तरह से साकार कर रहा है।”

तब युआन योंगजिन ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़कर सुनाया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “यद्यपि यीशु मनुष्यों के बीच आया और अधिकतर कार्य किया, फिर भी उसने केवल समस्त मानवजाति के छुटकारे का कार्य ही पूरा किया और वह मनुष्य की पाप-बलि के रूप में सेवा की; उसने मनुष्य को उसके समस्त भ्रष्ट स्वभाव से छुटकारा नहीं दिलाया। मनुष्य को शैतान के प्रभाव से पूरी तरह से बचाने के लिए यीशु को न केवल पाप-बलि बनने और मनुष्य के पाप वहन करने की आवश्यकता थी, बल्कि मनुष्य को उसके शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए स्वभाव से मुक्त करने के लिए परमेश्वर को और भी बड़ा कार्य करने की आवश्यकता थी। और इसलिए, मनुष्य को उसके पापों के लिए क्षमा कर दिए जाने के बाद, परमेश्वर मनुष्य को नए युग में ले जाने के लिए देह में वापस आ गया, और उसने ताड़ना एवं न्याय का कार्य आरंभ कर दिया। यह कार्य मनुष्य को एक उच्चतर क्षेत्र में ले गया है। वे सब, जो परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन समर्पण करेंगे, उच्चतर सत्य का आनंद लेंगे और अधिक बड़े आशीष प्राप्त करेंगे। वे वास्तव में ज्योति में निवास करेंगे और सत्य, मार्ग और जीवन प्राप्त करेंगे(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना)। युआन योंगजिन ने संगति की, “अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु ने छुटकारे का कार्य किया और मनुष्य के पाप क्षमा किए, लेकिन वह उद्धार के कार्य का केवल आधा था। केवल सर्वशक्तिमान परमेश्वर का न्याय-कार्य ही मानवजाति को पूरी तरह से बचाएगा। हम केवल तभी बचाए जा सकते और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने योग्य बन सकते हैं, जब हम अंत के दिनों का परमेश्वर का न्याय और ताड़ना स्वीकारते हैं, जब हम अपनी भ्रष्टता से शुद्ध हो जाते हैं, जब हम पाप से अलग हो जाते हैं और जब हम शैतान द्वारा गुमराह नहीं किए जाते और नियंत्रित नहीं होते। इसका अर्थ है कि अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर का न्याय का कार्य प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य से आगे बढ़ता है, और यह वह कार्य है जो युग का समापन करेगा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटकर आया प्रभु यीशु है और वे एक आत्मा और एक परमेश्वर हैं।” यह सुनकर कि कार्य के तीन चरणों के बारे में युआन योंगजिन की संगति बाइबल और तथ्यों के अनुरूप है, मेरा हृदय उजला हो गया। ऐसा लगा कि प्रभु यीशु अंत के दिनों में न्याय का कार्य करने, हमारी पापी प्रकृति का समाधान करने और हमें पाप के बंधन से बचाने के लिए वापस आ गया है। हम वाकई अब पाप में जी रहे हैं और खुद को उससे छुड़ाने में अशक्त हैं। हम पाप करते हैं, फिर कबूल करते हैं, और कबूल करने के बाद फिर से पाप करते हैं। हम इस अंतहीन चक्र में हमेशा फँसे रहते हैं। यहाँ तक कि याजक भी पाप के बंधन से नहीं बच सकते, साधारण विश्वासियों की तो बात ही छोड़ो। ये सभी अखंडनीय तथ्य हैं। पहले मैं इसका कारण समझ ही नहीं पाता था, लेकिन अब मुझे समझ आ गया। हमें असल में अभी भी प्रभु के लौटकर लोगों को पूरी तरह से शुद्ध करने और बदलने का अपना कार्य करने की आवश्यकता थी। यह पूरी तरह से संभव लग रहा था कि अंत के दिनों का सर्वशक्तिमान परमेश्वर का न्याय का कार्य परमेश्वर की ओर से आया हो।

इसके बाद युआन योंगजिन ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़कर सुनाया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “आज के कार्य ने अनुग्रह के युग के कार्य को आगे बढ़ाया है; अर्थात्, समस्त छह हजार सालों की प्रबंधन योजना का कार्य आगे बढ़ा है। यद्यपि अनुग्रह का युग समाप्त हो गया है, किन्तु परमेश्वर के कार्य ने प्रगति की है। मैं क्यों बार-बार कहता हूँ कि कार्य का यह चरण अनुग्रह के युग और व्यवस्था के युग पर आधारित है? क्योंकि आज का कार्य अनुग्रह के युग में किए गए कार्य की निरंतरता और व्यवस्था के युग में किए गए कार्य की प्रगति है। तीनों चरण आपस में घनिष्ठता से जुड़े हुए हैं और श्रृंखला की हर कड़ी निकटता से अगली कड़ी से जुड़ी है। मैं यह भी क्यों कहता हूँ कि कार्य का यह चरण यीशु द्वारा किए गए कार्य पर आधारित है? मान लो, यह चरण यीशु द्वारा किए गए कार्य पर आधारित न होता, तो फिर इस चरण में क्रूस पर चढ़ाए जाने का कार्य फिर से करना होता, और पहले किए गए छुटकारे के कार्य को फिर से करना पड़ता। यह अर्थहीन होता। इसलिए, ऐसा नही है कि कार्य पूरी तरह समाप्त हो चुका है, बल्कि युग आगे बढ़ गया है, और कार्य के स्तर को पहले से अधिक ऊँचा कर दिया गया है। यह कहा जा सकता है कि कार्य का यह चरण व्यवस्था के युग की नींव और यीशु के कार्य की चट्टान पर निर्मित है। परमेश्वर का कार्य चरण-दर-चरण निर्मित किया जाता है, और यह चरण कोई नई शुरुआत नहीं है। सिर्फ तीनों चरणों के कार्य के संयोजन को ही छह हजार सालों की प्रबंधन योजना माना जा सकता है। इस चरण का कार्य अनुग्रह के युग के कार्य की नींव पर किया जाता है। यदि कार्य के ये दो चरण जुड़े न होते, तो इस चरण में क्रूस पर चढ़ाए जाने का कार्य क्यों नहीं दोहराया गया? मैं मनुष्य के पापों को अपने ऊपर क्यों नहीं लेता हूँ, इसके बजाय सीधे उनका न्याय करने और उन्हें ताड़ना देने क्यों आता हूँ? अब जबकि मेरा आगमन पवित्र आत्मा द्वारा गर्भ में आए बिना हुआ है, अगर मनुष्य का न्याय करने और उन्हें ताड़ना देने का मेरा कार्य क्रूसीकरण के बाद नहीं होता, तो मैं मनुष्य को ताड़ना देने के योग्य नहीं होता। मैं यीशु से एकाकार हूँ, बस इसी कारण मैं प्रत्यक्ष रूप से मनुष्य को ताड़ना देने और उसका न्याय करने के लिए आता हूँ। कार्य का यह चरण पूरी तरह से पिछले चरण पर ही निर्मित है। यही कारण है कि सिर्फ ऐसा कार्य ही चरण-दर-चरण मनुष्य का उद्धार कर सकता है। यीशु और मैं एक ही पवित्रात्मा से आते हैं। यद्यपि हमारे देह एक-दूसरे से जुड़े नहीं है, किन्तु हमारा आत्मा एक ही है; यद्यपि हमारे कार्य की विषयवस्तु और हम जो कार्य करते हैं, वे एक नहीं हैं, तब भी सार रूप में हम समान हैं; हमारे देह भिन्न रूप धारण करते हैं, लेकिन यह युग में परिवर्तन और हमारे कार्य की भिन्न आवश्यकताओं के कारण है; हमारी सेवकाई एक जैसी नहीं है, इसलिए जो कार्य हम आगे लाते हैं और जिस स्वभाव को हम मनुष्य पर प्रकट करते हैं, वे भी भिन्न हैं। यही कारण है कि आज मनुष्य जो देखता और समझता है वह अतीत के समान नहीं है; ऐसा युग में बदलाव के कारण है। यद्यपि उनके देह के लिंग और रूप भिन्न-भिन्न हैं, और वे दोनों एक ही परिवार में नहीं जन्मे हैं, उसी समयावधि में तो बिल्कुल नहीं, किन्तु फिर भी उनके आत्मा एक ही हैं। ... यहोवा का आत्मा यीशु के आत्मा का पिता नहीं है, यीशु का आत्मा यहोवा के आत्मा का पुत्र नहीं है : वे एक ही आत्मा हैं। उसी तरह, आज के देहधारी परमेश्वर और यीशु में कोई रक्त-संबंध नहीं है, लेकिन वे हैं एक ही, क्योंकि उनके आत्मा एक ही हैं। परमेश्वर दया और करुणा का, और साथ ही धार्मिक न्याय का, मनुष्य की ताड़ना का, और मनुष्य को श्राप देने का कार्य कर सकता है; अंत में, वह संसार को नष्ट करने और दुष्टों को सज़ा देने का कार्य कर सकता है। क्या वह यह सब स्वयं नहीं करता? क्या यह परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता नहीं है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, दो देहधारण पूरा करते हैं देहधारण के मायने)। युआन योंगजिन ने संगति की, “हालाँकि परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों की विषयवस्तु अलग-अलग है और हर युग में परमेश्वर का नाम भी अलग है, फिर भी यह तमाम कार्य एक आत्मा और एक परमेश्वर द्वारा किया जाता है। कार्य के तीनों चरण घनिष्ठता से जुड़े हैं और हर चरण पिछले चरण के कार्य पर निर्मित होता है, हर चरण पिछले चरण से ज्यादा उन्नत और गहरा है, और अंत में यह कार्य लोगों को शैतान की सत्ता से बचाएगा और उन्हें परमेश्वर के राज्य में लाएगा। इसलिए, हम उसका नया कार्य स्वीकार कर प्रभु के साथ विश्वासघात नहीं करते, बल्कि उसके कार्य के साथ कदम से कदम मिलाते हैं।” मेरा हृदय उस समय और भी उज्ज्वल महसूस हो रहा था। अब मैं समझ गया था कि कार्य के तीनों चरण घनिष्ठता से जुड़े हैं, हर चरण पिछले चरण से ज्यादा ऊँचा और गहरा है, और कार्य का कोई चरण दूसरे चरणों से स्वतंत्र नहीं है। वे एक ही परमेश्वर द्वारा किए गए कार्य के तीन चरण हैं। यहोवा, प्रभु यीशु और सर्वशक्तिमान परमेश्वर सभी एक हैं। मैं हमेशा सोचता था कि कैथोलिक कलीसिया ही सच्ची कलीसिया है, केवल कैथोलिक धर्म ही आत्माओं को बचाकर स्वर्ग के राज्य में ला सकता है, कैथोलिक धर्म को छोड़ने का मतलब है प्रभु को धोखा देना और उद्धार का अवसर खो देना। अब मैं समझ गया कि मैं केवल प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य को पकड़े हुए था। अगर मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर का न्याय का कार्य स्वीकार कर लिया, तो मैं मेमने के नक्शेकदम पर चल रहा हूँगा और प्रभु के साथ विश्वासघात नहीं कर रहा हूँगा। लेकिन अगर मैं कैथोलिक धर्म में बना रहा और प्रभु यीशु के उद्धार से चिपका रहा, तो मुझे अंत के दिनों में परमेश्वर का उद्धार नहीं मिलेगा और मैं स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर पाऊँगा। यह सोचकर मुझे अच्छे से यकीन हो गया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर का न्याय का कार्य अंत के दिनों में परमेश्वर का नया कार्य है। इसके बाद युआन योंगजिन ने मेरे साथ परमेश्वर के नामों के अर्थ, बाइबल की अंदरूनी कहानी, और कैसे परमेश्वर मानवजाति का अंत और गंतव्य निर्धारित करता है, जैसे सत्यों पर संगति की। युआन योंगजिन की संगति सुनकर मैं भावविभोर हो गया। मैंने इतने सालों से परमेश्वर में विश्वास किया था, लेकिन मैंने ऐसा उत्कृष्ट उपदेश पहले कभी नहीं सुना था। उस दिन मुझे वाकई बहुत-कुछ प्राप्त हुआ—मैं प्रभु में विश्वास करने के अपने तमाम वर्षों में जितना समझ पाया था, उससे कहीं ज्यादा मैंने समझा!

युआन योंगजिन ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कई वचन पढ़कर सुनाए। मैंने देखा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने कई सत्य और रहस्य प्रकट किए हैं, और मुझे गहराई से महसूस हुआ कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन परमेश्वर की वाणी हैं। उस दिन घर लौटने के बाद मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “ऐसी चीज़ की जाँच-पड़ताल करना कठिन नहीं है, परंतु इसके लिए हममें से प्रत्येक को इस सत्य को जानने की ज़रूरत है : जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर का सार होगा और जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर की अभिव्यक्ति होगी। चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उस कार्य को सामने लाएगा, जो वह करना चाहता है, और चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उसे अभिव्यक्त करेगा जो वह है और वह मनुष्य के लिए सत्य को लाने, उसे जीवन प्रदान करने और उसे मार्ग दिखाने में सक्षम होगा। जिस देह में परमेश्वर का सार नहीं है, वह निश्चित रूप से देहधारी परमेश्वर नहीं है; इसमें कोई संदेह नहीं। अगर मनुष्य यह पता करना चाहता है कि क्या यह देहधारी परमेश्वर है, तो इसकी पुष्टि उसे उसके द्वारा अभिव्यक्त स्वभाव और उसके द्वारा बोले गए वचनों से करनी चाहिए। इसे ऐसे कहें, व्यक्ति को इस बात का निश्चय कि यह देहधारी परमेश्वर है या नहीं और कि यह सही मार्ग है या नहीं, तो उसे इसकी पहचान उसके सार के आधार पर करनी चाहिए। और इसलिए, यह निर्धारित करने की कुंजी कि यह देहधारी परमेश्वर की देह है या नहीं, उसके बाहरी स्वरूप के बजाय उसके सार (उसका कार्य, उसके कथन, उसका स्वभाव और कई अन्य पहलू) में निहित है। यदि मनुष्य केवल उसके बाहरी स्वरूप की ही जाँच करता है, और परिणामस्वरूप उसके सार की अनदेखी करता है, तो इससे उसके अज्ञ और अज्ञानी होने का पता चलता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना)। इस अंश से मैं समझ गया कि यह तय करने के लिए कि क्या सर्वशक्तिमान परमेश्वर प्रकट होकर कार्य करने वाला प्रभु यीशु है, मुझे मुख्य रूप से उसके द्वारा व्यक्त किए गए वचन और उसके द्वारा किया जाने वाला कार्य देखने की आवश्यकता है। अगर वह सत्य व्यक्त कर सकता है और लोगों को बचाने और शुद्ध करने का कार्य कर सकता है, तो वह प्रकट होकर कार्य करने वाला प्रभु होना चाहिए। प्रभु यीशु ने एक बार कहा था : “मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता(यूहन्ना 14:6)। इसलिए, परमेश्वर जब बोलने और कार्य करने के लिए प्रकट होगा, तब वही सत्य व्यक्त करेगा, अन्य कोई नहीं। इसके बाद मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ने के लिए रोज समय निकाला। दो महीने बाद मैं और भी बहुत-कुछ समझ गया था, जैसे देहधारण और परमेश्वर के नामों के रहस्य, परमेश्वर के कार्य और इंसान के कार्य के बीच का अंतर, सच्चे मसीह और झूठे मसीह के बीच कैसे अंतर करें, इत्यादि। मैंने देखा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन समृद्ध और व्यापक हैं, और उन्होंने वाकई मेरी आँखें खोल दीं। मैंने मन ही मन सोचा : लौटकर आए प्रभु के सिवा कौन इतने सत्य व्यक्त कर सकता है और इतने सारे रहस्य उजागर कर सकता है? प्रभु वास्तव में वापस आ गया है और मानवजाति के न्याय और शुद्धिकरण का नया कार्य कर रहा है। मुझे पूरा यकीन था कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर का न्याय का कार्य प्रभु का नया कार्य है और सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटा हुआ प्रभु है! उस समय मुझे बहुत खुशी महसूस हुई। प्रभु यीशु, जिसकी इतने वर्षों से प्रतीक्षा की जा रही थी, वास्तव में वापस आ गया था। मैंने अंत के दिनों का परमेश्वर का कार्य स्वीकार पाने के लिए बहुत भाग्यशाली महसूस किया। मैंने सोचा कि कैसे वे भाई लगभग एक साल से मुझे सुसमाचार सुना रहे थे और कैसे मैंने लगातार उसका विरोध किया और उसे नकार दिया था। अगर परमेश्वर की दया और उद्धार न होता, और भाइयों ने मुझे बार-बार सुसमाचार न सुनाया होता, तो मैं परमेश्वर के सामने न आ पाया होता। इसके लिए मैंने खुद को परमेश्वर का बहुत आभारी महसूस किया। लेकिन फिर मुझे याद आया कि कैसे मैंने अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य की खोज या जाँच नहीं की थी, कैसे मैंने आँख मूँदकर उसकी आलोचना और निंदा की थी, यहाँ तक कि कलीसिया बंद कर दी थी और कलीसिया के सदस्यों को उसकी खोज या जाँच करने से रोक दिया था। जब मैंने इस बारे में सोचा, तो मुझे बहुत ग्लानि महसूस हुई, और मुझे खुद से नफरत हुई कि मैं इतना अंधा था कि परमेश्वर को जान न पाया, परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय न रखा और उसका विरोध किया। क्या मैं उन फरीसियों जैसा ही नहीं था, जो प्रभु यीशु का विरोध करते थे? मैं सोचता था कि चूँकि मैंने इतने सालों तक धर्मशास्त्र का अध्ययन किया है और हमेशा प्रभु की सेवा की है, इसलिए मुझे उसके बारे में कुछ ज्ञान होना चाहिए। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं प्रभु से इस तरह “मिलूँगा।” उस समय मुझे यह सोचकर बहुत बेचैनी महसूस हुई कि मैंने प्रभु का विरोध करके इतना बड़ा पाप कैसे कर दिया, मैं सोचने लगा कि वह मेरे साथ कैसा व्यवहार करेगा। मैं परमेश्वर के सामने अपने घुटनों पर गिर गया और अपने पाप स्वीकारने के लिए प्रार्थना की, “सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मैं बहुत अहंकारी रहा हूँ। मैं तुझे नहीं जानता था, मैंने तेरे कार्य का विरोध किया और उसकी आलोचना की, और मैंने कलीसिया बंद कर दी और कलीसिया के सदस्यों को तेरे कार्य की खोज और जाँच करने से रोक दिया। मैंने जो किया, वह फरीसियों के समान था, और मैं वास्तव में तेरी सजा का पात्र हूँ। मैं वास्तव में तेरे उद्धार के योग्य नहीं हूँ!” उन दिनों मैं पछतावे और चिंता की स्थिति में जी रहा था। हर बार जब मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के उन वचनों को पढ़ता, जो उसका विरोध और निंदा करने वाले लोगों को उजागर करते थे, तो ऐसा लगता जैसे परमेश्वर मेरे ही बारे में बोल रहा हो। मुझे लगा कि मेरी पहले ही निंदा की जा चुकी है और परमेश्वर मुझे नहीं बचाएगा।

बाद में मैंने भाई-बहनों को अपनी स्थिति के बारे में खुलकर बताया, तो उन्होंने मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़कर सुनाया, जिससे मुझे बहुत सुकून मिला। परमेश्वर कहता है : “उन सभी व्यक्तियों के पास उद्धार के लिए कई अवसर होंगे जिन्होंने परमेश्वर द्वारा जीत लिया जाना स्वीकार लिया है; इनमें से प्रत्येक व्यक्ति के उद्धार में परमेश्वर उन्हें यथासंभव अधिकतम छूट देगा। दूसरे शब्दों में, उनके प्रति परम उदारता दिखाई जाएगी। अगर लोग गलत रास्ता छोड़ दें और पश्चात्ताप करें, तो परमेश्वर उन्हें उद्धार प्राप्त करने का अवसर देगा। जब मनुष्य पहली बार परमेश्वर से विद्रोह करते हैं, तो वह उन्हें मृत्युदंड नहीं देना चाहता; बल्कि, वह उन्हें बचाने की पूरी कोशिश करता है। यदि किसी में वास्तव में उद्धार के लिए कोई गुंजाइश नहीं है, तो परमेश्वर उन्हें दर-किनार कर देता है। कुछ लोगों को दंडित करने में परमेश्वर थोड़ा धीमा इसलिए चलता है क्योंकि वह हर उस व्यक्ति को बचाना चाहता है, जिसे बचाया जा सकता है। वह केवल वचनों से लोगों का न्याय करता है, उन्हें प्रबुद्ध करता है और उनका मार्गदर्शन करता है, वह उन्हें मारने के लिए छड़ी का उपयोग नहीं करता। मनुष्य को उद्धार दिलाने के लिए वचनों का प्रयोग करना कार्य के अंतिम चरण का उद्देश्य और महत्त्व है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मनुष्य के उद्धार के लिए तुम्हें सामाजिक प्रतिष्ठा के आशीष से दूर रहकर परमेश्वर के इरादे को समझना चाहिए)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद एक भाई ने कहा, “हम शैतान द्वारा भ्रष्ट कर दिए गए हैं, हम सभी का स्वभाव भ्रष्ट है और हमारे हृदय में परमेश्वर का कोई भय नहीं है। जब हम देखते हैं कि परमेश्वर के वचन और उसका कार्य हमारी धारणाओं के अनुरूप नहीं हैं, तो हम परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह और उसका विरोध करते हैं, और संभव है कि हम उसे नकारें और उसकी निंदा करें। लेकिन जब हम सत्य समझकर सही मार्ग पर लौट आते हैं और परमेश्वर के सामने ईमानदारी से पश्चात्ताप करते हैं, तो वह अभी भी हमें बचाए जाने का मौका देगा। लेकिन जो जिद्दी होते हैं, पश्चात्ताप नहीं करते और हठपूर्वक परमेश्वर का विरोध करते हैं, वे उसके द्वारा दोषी ठहराए जाएँगे और अंत में वे सभी दंडित किए जाएँगे।” उस क्षण मैंने बहुत प्रभावित महसूस किया। मैंने सोचा, “मैंने परमेश्वर का विरोध किया और इतनी बड़ी बुराई की, फिर भी परमेश्वर मुझ पर दया करेगा और मुझे बचाएगा। परमेश्वर का प्रेम बहुत महान है! भविष्य में मुझे बहुत-से लोगों को सुसमाचार सुनाना चाहिए और परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान करना चाहिए। मुझे कलीसिया के सदस्यों को प्रभु की वापसी का महान समाचार अवश्य बताना चाहिए, ताकि वे भी उसकी वाणी सुन सकें और उसका स्वागत कर सकें।” इसलिए, इसके बाद मैंने कलीसिया के सदस्यों में सुसमाचार फैलाना शुरू कर दिया।

एक बार मैंने कलीसिया के एक सदस्य को सर्वशक्तिमान परमेश्वर के नए कार्य के बारे में गवाही दी और बिशप को इसके बारे में पता चल गया, तो उन्होंने मुझे मिलने के लिए बुलाया। जब मैं कलीसिया पहुँचा, तो पहले एक मठाध्यक्ष से मिला, जिसकी उम्र अस्सी पार थी। उसने धीरे से मुझे बताया कि बिशप चमकती पूर्वी बिजली में मेरे विश्वास के बहुत खिलाफ हैं। मठाध्यक्ष ने मुझे बिशप के सामने अपनी गलती स्वीकार करने, पश्चात्ताप करने और उनसे अपने साथ नरमी बरतने की विनती करने के लिए मनाने की कोशिश की। यह सुनकर मैं बहुत परेशान हो गया, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मैं नहीं जानता कि इसका सामना कैसे करूँ। कृपया मेरी रक्षा करो और मुझे आस्था और दृढ़ संकल्प दो। चाहे आगे कुछ भी हो, मेरी विनती है कि तुम मेरा मार्गदर्शन करो, ताकि मैं सच्चे मार्ग पर अडिग रह सकूँ।” प्रार्थना करने के बाद मैंने थोड़ा शांत महसूस किया। जब मैं बिशप से मिला, तो उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं चमकती पूर्वी बिजली में विश्वास करता हूँ, और मैंने हाँ कह दिया। वे बहुत क्रोधित हुए और बोले, “मैंने सुना था कि तुम चमकती पूर्वी बिजली के लोगों के संपर्क में हो, लेकिन मैंने इस पर ध्यान नहीं दिया। मैंने सोचा था कि चूँकि तुम एक याजक हो और तुमने विशेष धर्मशास्त्रीय प्रशिक्षण प्राप्त किया है, इसलिए तुम चमकती पूर्वी बिजली को कभी स्वीकार नहीं करोगे। मुझे विश्वास नहीं हो रहा कि तुमने वाकई ऐसा किया है!” मैंने उनसे कहा, “मैंने भ्रमवश चमकती पूर्वी बिजली को स्वीकार नहीं किया। मैंने छह महीने से भी ज्यादा समय तक उसकी जाँच की है और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बहुत-से वचन पढ़े हैं। वे वचन सत्य हैं, ऐसी बातें, जो कोई मनुष्य नहीं कह सकता, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटकर आया प्रभु यीशु है...।” बिशप ने मेरी बात खत्म होने का इंतजार नहीं किया और अधीरता से कहा, “यह पोप को तय करना है कि चमकती पूर्वी बिजली प्रभु की वापसी है या नहीं। आस्था के मामले में पोप कभी गलत नहीं होते। अगर पोप ने इसे मान लिया, तो हम भी मान लेंगे। अगर वे नहीं मानते और कहते हैं कि चमकती पूर्वी बिजली पाखंड है, तो हम उस पर विश्वास नहीं कर सकते!” उन्होंने जो कहा, उसे सुनने के बाद मैंने सोचा, “पोप भी एक भ्रष्ट मनुष्य ही हैं। अगर वे खोज नहीं करते, तो वे संभवतः पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता या रोशनी प्राप्त नहीं कर सकते या प्रभु के नए कार्य को नहीं पहचान सकते। आप प्रभु में विश्वास करते हैं, लेकिन उसके वचन सुनने के बजाय आँख मूँदकर पोप के—एक आदमी के शब्दों का पालन करते हैं। यह प्रभु में विश्वास करना कैसे है? क्या यह विशुद्ध रूप से मनुष्य में विश्वास नहीं है?” मैं बिशप को अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य के बारे में गवाही देता रहा, लेकिन उन्होंने एक नहीं सुनी। उन्होंने कहा, “अगर पोप यह नहीं कहते कि चमकती पूर्वी बिजली लौटकर आए प्रभु का कार्य है, तो हम उस पर विश्वास नहीं कर सकते। वह सच्चा मार्ग है या नहीं, यह पोप के निर्णय पर निर्भर करता है!”

पहले मैं भी पोप की आराधना करता था। मैं सोचता था कि वे प्रभु के प्रतिनिधि है और हमें सभी चीजों में उनकी सुननी चाहिए। लेकिन बाद में मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कुछ वचन पढ़े, जिन्होंने इस मामले पर मेरे विचार बदल दिए। मुझे एक अंश याद है, जिसमें निम्नलिखित बात कही गई है : “संसार में कई प्रमुख धर्म हैं, प्रत्येक का अपना प्रमुख, या अगुआ है, और उनके अनुयायी संसार भर के देशों और सम्प्रदायों में सभी ओर फैले हुए हैं; लगभग प्रत्येक देश में, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, भिन्न-भिन्न धर्म हैं। फिर भी, संसार भर में चाहे कितने ही धर्म क्यों न हों, ब्रह्मांड के सभी लोग अंततः एक ही परमेश्वर के मार्गदर्शन के अधीन अस्तित्व में हैं, और उनका अस्तित्व धर्म-प्रमुखों या अगुवाओं द्वारा मार्गदर्शित नही है। कहने का अर्थ है कि मानवजाति किसी विशेष धर्म-प्रमुख या अगुवा द्वारा मार्गदर्शित नहीं है; बल्कि संपूर्ण मानवजाति को एक ही रचयिता के द्वारा मार्गदर्शित किया जाता है, जिसने स्वर्ग और पृथ्वी का और सभी चीजों का और मानवजाति का भी सृजन किया है—यह एक तथ्य है। यद्यपि संसार में कई प्रमुख धर्म हैं, किंतु वे कितने ही महान क्यों न हों, वे सभी सृष्टिकर्ता के प्रभुत्व के अधीन अस्तित्व में हैं और उनमें से कोई भी इस प्रभुत्व के दायरे से बाहर नहीं जा सकता है। मानवजाति का विकास, समाज का आगे बढ़ना, प्राकृतिक विज्ञानों का विकास—प्रत्येक सृष्टिकर्ता की व्यवस्थाओं से अविभाज्य है और यह कार्य ऐसा नहीं है जो किसी धर्म-प्रमुख द्वारा किया जा सके। धर्म-प्रमुख मात्र किसी धर्म विशेष के अगुआ हैं, और वे परमेश्वर का, या उसका जिसने स्वर्ग, पृथ्वी और सभी चीज़ों को रचा है, प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते हैं। धर्म-प्रमुख पूरे धर्म के भीतर सभी का नेतृत्व कर सकते हैं, परंतु वे स्वर्ग के नीचे के सभी सृजित प्राणियों को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं—यह सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत तथ्य है। एक धर्म-प्रमुख मात्र अगुआ है, और वह परमेश्वर (सृष्टिकर्ता) के समकक्ष खड़ा नहीं हो सकता। सभी चीजें रचयिता के हाथों में हैं, और अंत में वे सभी रचयिता के हाथों में लौट जाएँगी। मानवजाति परमेश्वर द्वारा बनाई गई थी, और किसी का धर्म चाहे कुछ भी हो, प्रत्येक व्यक्ति परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन लौट जाएगा—यह अपरिहार्य है। केवल परमेश्वर ही सभी चीज़ों में सर्वोच्च है, और सभी सृजित प्राणियों में उच्चतम शासक को भी उसके प्रभुत्व के अधीन लौटना होगा। मनुष्य की हैसियत चाहे कितनी भी ऊँची क्यों न हो, लेकिन वह मनुष्य मानवजाति को किसी उपयुक्त गंतव्य तक नहीं ले जा सकता, और कोई भी सभी चीजों को उनके प्रकार के आधार पर वर्गीकृत करने में सक्षम नहीं है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों को जानना ही परमेश्वर को जानने का मार्ग है)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों से मैं समझ गया कि पोप केवल एक अगुआ हैं, एक सृजित प्राणी, और वे परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते। परमेश्वर सृष्टिकर्ता है। परमेश्वर ने स्वर्ग और पृथ्वी और सभी चीजों को, साथ ही मनुष्यों को भी बनाया, और आज तक मानवजाति का नेतृत्व किया। परमेश्वर मानवजाति की नियति नियंत्रित करता है और केवल परमेश्वर ही लोगों को बचाने के लिए सत्य व्यक्त कर सकता है और हमें एक सुंदर मंजिल तक ले जा सकता है। यह काम न तो कोई सृजित प्राणी कर सकता है और न ही कोई धार्मिक अगुआ। हालाँकि पोप उच्च हैसियत रखते हैं, लेकिन वे भी भ्रष्ट मनुष्य ही होते हैं। वे सत्य व्यक्त नहीं कर सकते, मानवजाति को बचाने का कार्य तो छोड़ ही दो, इसलिए उनकी हैसियत कितनी भी ऊँची क्यों न हो, वे परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते। अगर वे परमेश्वर द्वारा अपना नया कार्य किए जाने पर खोज नहीं करते, तो उन्हें पवित्र आत्मा द्वारा प्रबुद्ध या रोशन नहीं किया जाएगा, और अंततः उन्हें परमेश्वर द्वारा त्यागकर हटा दिया जाएगा। वे प्राचीन समय के मुख्य याजकों और फरीसियों जैसे ही हैं—वे उच्च हैसियत रखते थे, लेकिन जब प्रभु यीशु कार्य करने आया, तो उन्होंने बिल्कुल भी खोज नहीं की। उन्होंने प्रभु यीशु का विरोध और निंदा की, और परमेश्वर द्वारा शापित और दंडित किए गए।

इसके बाद बिशप ने मुझे चमकती पूर्वी बिजली के लोगों से संपर्क तोड़ने का आदेश दिया। मैं नहीं माना, तो वे बहुत क्रोधित हुए और बोले, “तो मठाध्यक्ष के रूप में अपने कर्तव्य निलंबित समझो। मठ के बहीखाते सौंप दो और बेसमेंट में जाकर सोचो कि तुमने क्या किया है।” मैं उस समय थोड़ा हैरान हुआ, मुझे उम्मीद नहीं थी कि वे मुझे इतनी जल्दी बरखास्त कर देंगे। लगा जैसे कुछ समझ नहीं आ रहा। मैंने सोचा कि कैसे कई वर्षों तक मैं एक मठाध्यक्ष था, मैं जहाँ भी गया, याजक और मठवासी मेरे चारों ओर इकट्ठे होकर मेरी बातें सुनते और मैं जो कहता, वही करते। अब बिशप ने मुझे मेरे पद से हटा दिया था, मैं जानता था कि अब याजक और मठवासी मेरा उस तरह सम्मान नहीं करेंगे। मैंने यह भी सोचा कि मठाध्यक्ष और याजक के पद तक पहुँचने के लिए मैंने कितना काम किया था। जैसे ही मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करने का निर्णय किया, मैं मठाध्यक्ष और याजक बना नहीं रह सकता था। हालाँकि मैं अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य के बारे में पहले से ही निश्चित था, लेकिन अभी भी मुझमें कैथोलिक धर्म से खुद को पूरी तरह से अलग करने का साहस नहीं था। मैंने सोचा, “यह चुनाव कोई मामूली बात नहीं है। मुझे निर्णय लेने से पहले अच्छी तरह से सोचना होगा।” मैं बेसमेंट में गया और याजक झाओ को देखा, जिसे उसके व्यभिचार पर विचार करने के लिए वहाँ रखा गया था। मैंने उसे बताया कि मुझे वहाँ इसलिए भेजा गया है, क्योंकि मैंने अंत के दिनों का सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य स्वीकार लिया है। वह बहुत हैरान हुआ और बोला कि उसने केवल कमजोरी के क्षण में व्यभिचार का पाप किया है, इसलिए अगर वह प्रभु के सामने कबूल करता है, तो उसे अभी भी बचाया जा सकता है। उसने कहा कि मेरी समस्या ज्यादा गंभीर है, यह आस्था का सवाल है, और जैसे ही हम अपनी आस्था खो देते हैं, हम बचाए नहीं जा सकते और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते। उस समय उसकी बातों का मुझ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।

दो-तीन दिन बाद याजक वांग और मुनीम मेरे साथ बहीखाते सत्यापित करने के लिए बेसमेंट में आए। याजक वांग ने मुझे तिरस्कार से देखा, और जब उन्होंने खाता-बही के बारे में पूछा, तो ऐसा लगा जैसे वे किसी कैदी से पूछताछ कर रहे हों। यह सब बहुत परेशान कर देने वाला लगा। उनके जाने के बाद मैं दुखी और अपने साथ गलत हुआ महसूस करता हुआ कमजोरी से बिस्तर पर लेट गया। मैंने सोचा कि कैसे जब मैं मठ चलाता था, तो हर कोई हमेशा मेरे प्रति बहुत आदरपूर्ण व्यवहार करता था। मैं जहाँ भी अतिथि बनकर जाता, याजक और मठवासी खुशी-खुशी मेरा अभिवादन करने के लिए बाहर आते, और मेजबान फल परोसते और गर्मजोशी से मेरा आतिथ्य-सत्कार करते। याजक और मठवासी हमेशा मेरे उपदेशों की प्रतीक्षा करते और आम तौर पर किसी भी बात पर चर्चा करते हुए मेरे द्वारा निर्णय लिए जाने की प्रतीक्षा करते। मैं अक्सर याजकों और मठवासियों के काम की व्यवस्था भी करता था और वे सभी मेरी बात सुनते थे और मेरी आज्ञा मानते थे। लेकिन अब, मुझे पद से हटाए जाने के बाद, वे सब मुझे हेय दृष्टि से देखने लगे थे। याजक अब मेरा सम्मान नहीं करते थे, और जब मैं बेसमेंट में था, तो हर कोई मेरी उपेक्षा कर रहा था। जब मैं मठाध्यक्ष था, तब चीजें जैसी थीं, यह उससे बिल्कुल उलटा था! हैसियत न होने से वाकई चीजें बदल जाती हैं। फिर मैंने सोचा कि अगर मैंने भविष्य में सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करना चुना, तो मैं फिर कभी मठाध्यक्ष के जीवन का आनंद नहीं ले पाऊँगा, मुझे जो रुतबा मिलता था, जैसे लोग मुझसे पेश आते थे, वह सब खत्म हो जाएगा। इससे मुझे निराशा हुई। लेकिन फिर मैंने सोचा, “सर्वशक्तिमान परमेश्वर वास्तव में लौटकर आया प्रभु यीशु है। अगर मैंने सिर्फ अपनी हैसियत और आनंद की खातिर सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण नहीं किया, तो क्या मैं वास्तव में परमेश्वर का विश्वासी हूँ? क्या मैं अब भी परमेश्वर द्वारा बचाया जा सकता हूँ?” मैं नहीं जानता था कि मुझे कौन-सा मार्ग चुनना चाहिए। मैंने बहुत पीड़ा महसूस की और अपने घुटनों पर गिरकर परमेश्वर से प्रार्थना कर उससे मुझे प्रबुद्ध कर मेरा मार्गदर्शन करने के लिए कहा, ताकि मैं अब हैसियत और प्रतिष्ठा के बंधनों से विवश न रहूँ और परमेश्वर के पदचिह्नों का अनुसरण कर सकूँ। प्रार्थना करने के बाद मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया, जो भाई-बहनों ने मुझे पढ़कर सुनाया था : “परमेश्वर ने स्वयं को इस स्तर तक विनम्र किया है कि वह अपना कार्य इन अशुद्ध और भ्रष्ट लोगों में करता है, और लोगों के इस समूह को पूर्ण बनाता है। परमेश्वर न केवल लोगों के बीच जीने और खाने-पीने, लोगों की चरवाही करने, और लोग जो चाहते हैं, उन्हें वह प्रदान करने के लिए देह में आया है, बल्कि इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि वह उद्धार और विजय का अपना प्रबल कार्य इन असहनीय रूप से भ्रष्ट लोगों पर करता है। वह इन सबसे अधिक भ्रष्ट लोगों को बचाने के लिए बड़े लाल अजगर के केंद्र में आया, जिससे सभी लोग परिवर्तित हो सकें और नए बनाए जा सकें। वह अत्यधिक कष्ट, जो परमेश्वर सहन करता है, मात्र वह कष्ट नहीं है जो देहधारी परमेश्वर सहन करता है, अपितु सबसे बढ़कर वह परम निरादर है, जो परमेश्वर का आत्मा सहन करता है—वह स्वयं को इतना अधिक विनम्र बनाता है और इतना अधिक छिपाए रखता है कि वह एक साधारण व्यक्ति बन जाता है। परमेश्वर ने इसलिए देहधारण किया और देह का रूप लिया, ताकि लोग देखें कि उसका जीवन एक सामान्य मानव का जीवन है, और उसकी आवश्यकताएँ एक सामान्य मानव की आवश्यकताएँ हैं। यह इस बात को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है कि परमेश्वर ने स्वयं को बेहद विनम्र बनाया है। परमेश्वर का आत्मा देह में साकार होता है। उसका आत्मा बहुत उच्च और महान है, फिर भी वह अपने आत्मा का कार्य करने के लिए एक सामान्य मानव, एक तुच्छ मनुष्य का रूप ले लेता है। तुम लोगों में से प्रत्येक व्यक्ति की क्षमता, अंतर्दृष्टि, समझ, मानवता और जीवन दर्शाते हैं कि तुम सब वास्तव में परमेश्वर के इस प्रकार के कार्य को स्वीकार करने के अयोग्य हो। तुम लोग वास्तव में इस योग्य नहीं हो कि परमेश्वर तुम्हारे लिए यह कष्ट सहन करे। परमेश्वर अत्यधिक महान है। वह इतना सर्वोच्च है और लोग इतने निम्न हैं, फिर भी वह उन पर कार्य करता है। उसने लोगों का भरण-पोषण करने, उनसे बात करने के लिए न केवल देहधारण किया, अपितु वह उनके साथ रहता भी है। परमेश्वर इतना विनम्र, इतना प्यारा है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल उन्हें ही पूर्ण बनाया जा सकता है जो अभ्यास पर ध्यान देते हैं)। यह सच है। कोई भी देश चीन से ज्यादा सख्ती से परमेश्वर का विरोध नहीं करता। परमेश्वर बोलने और कार्य करने के लिए बड़े लाल अजगर के देश में देहधारी होकर आया, उसने कम्युनिस्ट पार्टी के हाथों उत्पीड़न और बदनामी और धार्मिक दुनिया की निंदा और अस्वीकृति सही है। परमेश्वर इतना सर्वोच्च और इतना महान है, फिर भी उसने पृथ्वी पर आने के लिए बहुत अपमान सहा है, और वह जो कुछ भी करता है, हमें बचाने के लिए करता है। परमेश्वर वास्तव में विनम्र और प्यारा है! लेकिन मैं केवल रुतबे के लाभों का आनंद लेना चाहता था और मुझे दूसरों का समर्थन और प्रशंसा प्राप्त करना अच्छा लगता था। हालाँकि मैं पहले से ही परमेश्वर के कार्य के बारे में निश्चित था, फिर भी मैं उसका अनुसरण करने के लिए अपनी हैसियत छोड़ने को तैयार नहीं था। क्या मैं जानबूझकर विरोध नहीं कर रहा था, जबकि मैं सच्चा मार्ग जानता था? क्या मुझमें वास्तव में अंतःकरण की कमी नहीं थी? जब मुझे इसका एहसास हुआ, तो मुझे थोड़ा अपराधबोध और शर्मिंदगी महसूस हुई, और मैंने खुद को अपने पद से हटने के लिए तैयार कर लिया।

कुछ दिन बाद, मेरा चचेरा भाई मुझे मनाने और मुझसे चिंतन करवाने की कोशिश करने के लिए बेसमेंट में आया। उसने कहा कि अगर मैंने ऐसा नहीं किया, तो बिशप मुझे कलीसिया से निकाल देंगे। जब मैंने यह सुना, तो मैं दंग रह गया। मैंने कभी किसी को हमारी कलीसिया से बहिष्कृत किए जाने की बात नहीं सुनी थी। अगर मुझे निष्कासित कर दिया गया, तो मेरे आस-पास के सभी कलीसिया-सदस्य और पूरे धर्मप्रांत में हर कोई मुझे नकार देगा। अपने चचेरे भाई के जाने के बाद, कुछ दिनों तक मैं आंतरिक रूप से संघर्ष करता रहा। प्रभु में विश्वास करना शुरू करने के क्षण से मेरे मन में यह खयाल कभी नहीं आया था कि मुझे बहिष्कृत किया जा सकता है, और मुझे नहीं लगा था कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने के कारण बिशप मुझे निकाल देंगे। मैं उन दिनों इन चीजों के बारे में बार-बार सोचता था। हर बार जब मैंने अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य के बारे में बाइबल की भविष्यवाणियाँ देखता, तो मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य की गवाही देने वाले भाई-बहनों और परमेश्वर के उन वचनों की याद आई, जिन्हें मैंने पढ़ा था। वे दृश्य मेरे दिमाग में किसी चलचित्र की तरह घूम रहे थे। सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटकर आया प्रभु यीशु है और मैं उसका अनुसरण करना नहीं छोड़ सकता। लेकिन जब मैं कैथोलिक कलीसिया छोड़ने या निष्कासित किए जाने के बारे में सोचता, तो अपना मन न बना पाता।

बाद में बिशप ने बेसमेंट में आकर पूछा कि मेरा आत्मचिंतन कैसा चल रहा है। जब उन्होंने देखा कि मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर में अपना विश्वास बनाए हुए हूँ, तो वे बहुत नाखुश थे और बोले, “चमकती पूर्वी बिजली में तुम्हारा विश्वास कोई मामूली बात नहीं है। तुम्हें वाकई आत्मचिंतन करने की जरूरत है। अगर तुम ईमानदारी से खुद को जान पाओ, पश्चात्ताप कर पाओ और चमकती पूर्वी बिजली को नकार पाओ, तो हम तुम्हारी गलती भुला सकते हैं और तुम मठाध्यक्ष के अपने पद पर बने रह सकते हो।” बिशप के जाने के बाद याजक झाओ ने मुझे फिर से मनाने की कोशिश की। उसने कहा, “तुम्हें वे निष्कर्ष लिखने की जरूरत है, जिन पर तुम आत्मचिंतन के जरिये पहुँचे हो। अगर तुम ऐसा करते हो, तो तुम मठाध्यक्ष बने रह सकते हो। अगर तुम ऐसा नहीं करते, तो बिशप तुम्हें हलके में नहीं छोड़ेंगे!” यह सुनकर मैंने सोचा, “बिशप मुझे पहले ही अंतिम चेतावनी दे चुके हैं, इसलिए अगर मैंने आत्मचिंतन के परिणाम नहीं लिखे, तो मैं वाकई मठाध्यक्ष का अपना पद खो दूँगा, और मुझे कलीसिया से निष्कासन का सामना करना पड़ेगा।” जब मैंने इसके बारे में सोचा, तो मुझे दुख हुआ। हालाँकि मैं जानता था कि मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करना चुनना चाहिए, फिर भी मैं अपना पद छोड़ना नहीं चाहता था। अपनी पीड़ा में मैं परमेश्वर के सामने आया और ईमानदारी से उसे यह कहते हुए पुकारा, “सर्वशक्तिमान परमेश्वर, अब मुझे अपना अंतिम चुनाव करना है। कृपया मेरी मदद और मेरा मार्गदर्शन करो, ताकि मैं सही चुनाव कर सकूँ।” प्रार्थना करने के बाद मैंने परमेश्वर के कुछ वचनों के बारे में सोचा, जो भाई-बहनों ने एक बार मुझे पढ़कर सुनाए थे। परमेश्वर के वचन कहते हैं : “परमेश्वर निश्चित रूप से कभी अन्यत्र कहीं फिर से आरंभ नहीं करेगा। परमेश्वर इस तथ्य को पूर्ण करेगा : वह संपूर्ण ब्रह्मांड के लोगों को अपने सामने आने के लिए बाध्य करेगा, और पृथ्वी पर परमेश्वर की आराधना करवाएगा, और अन्य स्थानों पर उसका कार्य समाप्त हो जाएगा, और लोगों को सच्चा मार्ग तलाशने के लिए मजबूर किया जाएगा। यह यूसुफ की तरह होगा : हर कोई भोजन के लिए उसके पास आया, और उसके सामने झुका, क्योंकि उसके पास खाने की चीज़ें थीं। अकाल से बचने के लिए लोग सच्चा मार्ग तलाशने के लिए बाध्य होंगे। संपूर्ण धार्मिक समुदाय गंभीर अकाल से ग्रस्त होगा, और केवल आज का परमेश्वर ही मनुष्य के आनंद के लिए हमेशा बहने वाले स्रोत से युक्त, जीवन के जल का स्रोत है, और लोग आकर उस पर निर्भर हो जाएँगे(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सहस्राब्दि राज्य आ चुका है)। यह सच है। कलीसियाएँ अब हर जगह वीरान और पवित्र आत्मा के कार्य से वंचित हैं। बिशपों और याजकों के उपदेशों में कोई रोशनी नहीं है, वे केवल कुछ धार्मिक सिद्धांतों और वादों का प्रचार करने में सक्षम हैं, और कुछ धार्मिक अनुष्ठानों और मानव-निर्मित नियमों का सख्ती से पालन करते हैं। लेकिन इन चीजों से चिपके रहना लोगों के जीवन को जरा-सा भी पोषण या शिक्षा प्रदान नहीं करता; हर व्यक्ति रोजाना पाप करने, पाप स्वीकारने और फिर से पाप करने के चक्र में जीता है। लोग कितनी भी कोशिश कर लें, वे यह समस्या हल नहीं कर सकते। यहाँ तक कि पादरी भी चढ़ावे की चोरी या व्यभिचार जैसे स्पष्ट पाप करने से रुक नहीं पाते, जैसे कि याजक झाओ, जो इतनी गहराई तक डूब गया था कि इतना बड़ा पाप करने पर भी बिल्कुल भी शर्मिंदा नहीं था। कैथोलिक धर्म आज एक गदले तालाब के सिवा कुछ नहीं है! सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया अलग है। जब हम प्रत्येक सभा में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों पर संगति करते हैं, तो वह हमें सत्य समझने और अपने जीवन में पोषण और शिक्षा प्राप्त करने में मदद करती है। अगर मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य के साथ नहीं चला और अंत के दिनों में उसके द्वारा व्यक्त किए जा रहे सत्य हासिल नहीं किया, तो मैं कभी पाप से अलग नहीं हो पाऊँगा। मैं रोज पाप में फँसा रहूँगा और खुद को उससे निकालने में असमर्थ रहूँगा। फिर धर्म में रहने और सबके समर्थन का आनंद लेने का क्या मतलब होगा? तब मैंने दोबारा परमेश्वर के कुछ वचनों के बारे में सोचा : “मसीह अंत के दिनों के दौरान राज्य में जाने के लिए मनुष्य का प्रवेशद्वार है, और ऐसा कोई नहीं जो उससे कन्नी काटकर जा सके। मसीह के माध्यम के अलावा किसी को भी परमेश्वर द्वारा पूर्ण नहीं बनाया जा सकता। तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, इसलिए तुम्हें उसके वचनों को स्वीकार करना और उसके मार्ग को समर्पित होना चाहिए। सत्य को स्वीकार करने या जीवन का पोषण स्वीकार करने में असमर्थ रहते हुए भी तुम केवल आशीष प्राप्त करने की नहीं सोच सकते। मसीह अंत के दिनों में इसलिए आया है, ताकि उन सबको जीवन प्रदान कर सके, जो उसमें सच्चा विश्वास रखते हैं। उसका कार्य पुराने युग को समाप्त करने और नए युग में प्रवेश करने के लिए है, और उसका कार्य वह मार्ग है, जिसे नए युग में प्रवेश करने वाले सभी लोगों को अपनाना चाहिए। यदि तुम उसे स्वीकारने में असमर्थ हो, और इसके बजाय उसकी भर्त्सना, निंदा, यहाँ तक कि उसका उत्पीड़न करते हो, तो तुम्हें अनंतकाल तक जलाया जाना तय है और तुम परमेश्वर के राज्य में कभी प्रवेश नहीं करोगे। क्योंकि यह मसीह स्वयं पवित्र आत्मा की अभिव्यक्ति है, परमेश्वर की अभिव्यक्ति है, वह जिसे परमेश्वर ने पृथ्वी पर करने के लिए अपना कार्य सौंपा है। और इसलिए मैं कहता हूँ कि यदि तुम वह सब स्वीकार नहीं करते, जो अंत के दिनों के मसीह द्वारा किया जाता है, तो तुम पवित्र आत्मा की निंदा करते हो। पवित्र आत्मा की निंदा करने वालों को जो प्रतिफल भोगना होगा, वह सभी के लिए स्वतः स्पष्ट है। मैं तुम्हें यह भी बताता हूँ कि यदि तुम अंत के दिनों के मसीह का प्रतिरोध करोगे, यदि तुम अंत के दिनों के मसीह को ठुकराओगे, तो तुम्हारी ओर से परिणाम भुगतने वाला कोई अन्य नहीं होगा। इतना ही नहीं, आज के बाद तुम्हें परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त करने का दूसरा अवसर नहीं मिलेगा; यदि तुम प्रायश्चित करने का प्रयास भी करते हो, तब भी तुम दोबारा कभी परमेश्वर का चेहरा नहीं देखोगे। क्योंकि तुम जिसका प्रतिरोध करते हो वह मनुष्य नहीं है, तुम जिसे ठुकरा रहे हो वह कोई अदना प्राणी नहीं, बल्कि मसीह है। क्या तुम जानते हो कि इसके क्या परिणाम होंगे? तुमने कोई छोटी-मोटी गलती नहीं, बल्कि एक जघन्य अपराध किया होगा। और इसलिए मैं सभी को सलाह देता हूँ कि सत्य के सामने अपने जहरीले दाँत मत दिखाओ, या छिछोरी आलोचना मत करो, क्योंकि केवल सत्य ही तुम्हें जीवन दिला सकता है, और सत्य के अलावा कुछ भी तुम्हें पुनः जन्म लेने या दोबारा परमेश्वर का चेहरा देखने नहीं दे सकता(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर हमारे लिए सत्य, मार्ग और जीवन लाता है। हम केवल इन सत्यों के द्वारा ही शुद्ध किए और बचाए जा सकते हैं। यह परमेश्वर की कृपा और उत्कर्ष का ही परिणाम था कि मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए सत्य स्वीकार पाया और मुझे अपना भ्रष्ट स्वभाव बदलने का मार्ग मिला। अगर मैंने कैथोलिक धर्म में बने रहने का चुनाव किया, हैसियत और आनंद की लालसा की, और अंत के दिनों का परमेश्वर का उद्धार नकारा, तो परमेश्वर हमेशा मेरी निंदा करेगा और मैं उद्धार का अपना अवसर पूरी तरह से खो दूँगा। मैं ठीक मुख्य याजकों और फरीसियों के समान होऊँगा। वे यहूदियों के बीच ऊँची हैसियत रखते थे और सभी की अच्छी राय और समर्थन का आनंद लेते थे। जब प्रभु यीशु आया, तो वे जानते थे कि उसके उपदेशों में अधिकार और शक्ति है, लेकिन अपनी हैसियत और आमदनी की रक्षा के लिए उन्होंने उसका उद्धार स्वीकारने से मना कर दिया, यहाँ तक कि उसे सूली पर भी चढ़ा दिया। अंत में, वे सभी परमेश्वर द्वारा अनंत काल के लिए शापित और दंडित किए गए। मैं उनके नक्शेकदम पर नहीं चल सकता था! मैं केवल सर्वशक्तिमान परमेश्वर के नए कार्य के साथ चलकर, उसके वचनों के सिंचन और पोषण का आनंद लेकर, उनके जरिये खुद को जानकर, अपने पाप के मूल कारण का पता लगाकर और भ्रष्टता से शुद्ध होने का तरीका समझकर ही उद्धार प्राप्त कर सकता था और परमेश्वर की स्वीकृति पा सकता था—क्या यह ऊँची हैसियत पाने से ज्यादा मूल्यवान और अर्थपूर्ण नहीं था? मैं जितना इस बारे में सोचता, मेरा दिल उतना ही उज्जवल महसूस हुआ। मैंने बिल्कुल स्पष्ट रूप से देख लिया कि धर्म में रहने में कुछ भी सार्थकता नहीं है और मुझे वहाँ रहने की आवश्यकता नहीं है। इसलिए, मैंने एक याजक और मठाध्यक्ष का अपना पद त्याग दिया और दृढ़ता से कैथोलिक धर्म छोड़ दिया।

हालाँकि बेसमेंट में बिताए उन कुछ दिनों के दौरान मुझे कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन और अगुआई ने मुझे समझा दिया कि मुझे हैसियत के पीछे नहीं भागना चाहिए, और वह ऐसी चीज नहीं है जिसे परमेश्वर स्वीकार करता है। आगे का रास्ता साफ था। पहले मैं सोचता था कि बाइबल का ज्ञान और धर्मशास्त्रीय सिद्धांत समझने का अर्थ है कि मैं परमेश्वर को जानता हूँ। मुझे नहीं पता था कि मैंने जो धर्मशास्त्रीय सिद्धांत सीखे थे, वे सभी परमेश्वर के बारे में धारणाएँ और कल्पनाएँ थीं, वे सत्य के अनुरूप बिल्कुल भी नहीं थे। वे मेरे चारों ओर बनी मजबूत दीवारों की तरह थे, जो मुझे परमेश्वर के बारे में अपने निर्णयों पर पहुँचा रहे थे और मुझसे उसके कार्य का विरोध करवा रहे थे। उन्होंने मुझे ज्यादा से ज्यादा अहंकारी, आत्म-तुष्ट और हठी भी बना दिया था। मेरे पास परमेश्वर के प्रति विनम्र, खोजी या उसका भय मानने वाला हृदय नहीं था। अगर सर्वशक्तिमान परमेश्वर की दया न होती, तो मेरे लिए उसका उद्धार प्राप्त करना असंभव होता! इसके अलावा, जब मैं हैसियत और आनंद के लिए ललचा रहा था और समझ नहीं पा रहा था कि क्या निर्णय करूँ, तो परमेश्वर ने बार-बार अपने वचनों से मुझे प्रबुद्ध किया और मेरा मार्गदर्शन कर मुझे अपना पद छोड़ने और अपने कार्य के साथ चलने के लिए प्रेरित किया। अगर परमेश्वर की देखरेख और समर्थन न होता, तो मैं कभी उसके सामने न लौट पाता। परमेश्वर का प्रेम बहुत व्यावहारिक और वास्तविक है!

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