44. कैद में बीते मेरे दिन

यांग किंग, चीन

जुलाई 2006 में, मैंने अंत के दिनों का सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य स्वीकारा। मेरे पति, परमेश्वर में मेरी आस्था का समर्थन करते थे, और जब भाई-बहन हमारे घर आते, तो वे गर्मजोशी से उनका स्वागत करते थे। बाद में उन्होंने सुना कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विश्वासियों को सरकार से उत्पीड़न और गिरफ्तारी का सामना करना पड़ सकता है। वे इसके बारे में मेरे मौसेरे भाई से पूछने गये, जो एक प्रशासनिक कार्यालय में काम करते थे। घर आकर उन्होंने मुझसे कहा, “तुम्हारा भाई कहता है कि सरकार धार्मिक आस्था पर, खासकर सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विश्वासियों कड़ी कार्रवाई कर रही है। इसके अलावा, एक विश्वासी के साथ उसका पूरा परिवार फँस जाता है। अब से सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर विश्वास मत करो। अगर तुम्हें विश्वास करना हो, तो किसी थ्री-सेल्फ़ चर्च में चले जाओ।” मैं देख सकती थी कि मेरे पति आस्था की बातें नहीं समझते थे। मैंने उन्हें बताया, “थ्री-सेल्फ़ चर्च की स्थापना कम्युनिस्ट पार्टी ने की थी। वे देशभक्ति और पार्टी के प्रेम को सबसे आगे रखते हैं। वे पार्टी को परमेश्वर से बड़ा मानते हैं। यह आस्था नहीं है। मैं थ्री-सेल्फ़ चर्च में नहीं जाऊँगी।” उन्होंने निराशापूर्ण ढंग से मुझसे कहा, “मैं जानता हूँ कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था रखना अच्छी बात है, मगर तुम्हें हालात को अच्छे से समझना होगा। अभी कम्युनिस्ट पार्टी का राज है, अगर तुम आस्था रखोगी तो हमारी नौकरियां जा सकती हैं। क्या तुम अस्पताल की अपनी नौकरी छोड़ने को तैयार हो? इतना ही नहीं, हमने बंधक ऋण ले रखा है और बेटी की परवरिश के लिए भी पैसे चाहिए। पैसों के बिना हम कैसे जी पाएंगे? अगर तुम्हें जेल भेज दिया गया, तो लोग मुझे नीची नजर से देखेंगे और हमारी बेटी के सहपाठी उसका मजाक बनाएंगे। तुम्हें हमारे बारे में भी सोचना होगा! तुम्हें विश्वास रखना छोड़ देना चाहिए।” मैं जानती थी कि मेरे गैर-विश्वासी पति को इस तरह की चिंताएं जरूर होंगी, तो मैंने उनसे कहा, “कम्युनिस्ट पार्टी नास्तिक है और वह हमेशा परमेश्वर में विश्वास रखने वालों पर अत्याचार करती है। पार्टी के अत्याचार से डरकर मैं अपनी आस्था नहीं छोडूंगी। क्या आप नहीं जानते कि डरने वाले स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते? आपदाएं अब बद से बदतर होती जा रही हैं। उद्धारक सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने सत्य व्यक्त किया है और अंत के दिनों का न्याय कार्य किया है, जिसका मकसद मानवजाति को पूरी तरह से शुद्ध करके बचाना है, ताकि हम आपदा में बचे रह सकें और परमेश्वर के राज्य में ले जाये जा सकें। यह एक ऐसा अवसर है जो फिर कभी नहीं आने वाला! परमेश्वर में आस्था रखने का मतलब है इसमें कुछ समय की पीड़ा और खतरा जरूर होगा, पर इससे गुजरकर हम सत्य हासिल कर सकते हैं और परमेश्वर द्वारा बचाये जा सकते हैं। यही बात मायने रखती है।” मेरे पति ने कहा, “परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने की बात बहुत दूर की है। अभी सबसे व्यावहारिक चीज है एक अच्छा जीवन जीना। मुझे इस बात की फिक्र नहीं है कि आगे क्या हो सकता है, मैं इस बारे में सोचूंगा भी नहीं।” बाद में, जब उन्होंने देखा कि मैं अब भी सभाओं में जा रही हूँ और अपना कर्तव्य निभा रही हूँ, तो वे मुझसे बहस करने लगे। उन्होंने कहा : “इस तरह डर-डरकर जीना, जीना नहीं है। अगर तुम विश्वास रखने पर अड़ी रही, तो हमारा परिवार टूट जाएगा।” मैंने सोचा : “अगर मैं अपनी आस्था पर अड़ी रही, तो शायद हमारा परिवार टूट जाएगा। मेरी बेटी बस नौ साल की है, और पूरा परिवार साथ न होने से उसे काफी दुःख होगा!” उस वक्त मैं अपना परिवार नहीं खोना चाहती थी, पर मेरे पति मेरी आस्था में बाधक बनकर खड़े थे। अगर सब ऐसे ही चलता रहा, तो मैं अपना कर्तव्य कैसे निभा पाऊंगी? मेरी बेटी, मेरा परिवार और परमेश्वर—मैं इनमें से किसी को भी नहीं छोड़ना चाहती थी। इसी दुविधा में उलझी थी कि मुझे प्रभु यीशु के वचन याद आए : “जो माता या पिता को मुझ से अधिक प्रिय जानता है, वह मेरे योग्य नहीं; और जो बेटा या बेटी को मुझ से अधिक प्रिय जानता है, वह मेरे योग्य नहीं; और जो अपना क्रूस लेकर मेरे पीछे न चले वह मेरे योग्य नहीं(मत्ती 10:37-38)। मैंने युगों-युगों के उन सभी संतों के बारे में सोचा जिन्होंने सुसमाचार फैलाते और परमेश्वर की गवाही देते हुए उसकी आज्ञा का पालन करने के लिए सब कुछ त्याग दिया; और सोचा कि जब मैंने परमेश्वर के इतने अधिक सत्य का पोषण पाया है तो मुझे परमेश्वर के इरादों का ध्यान रखना होगा; मैं सिर्फ अपने परिवार की रक्षा के लिए अपनी आस्था और कर्तव्य का त्याग नहीं कर सकती। मैंने परमेश्वर के बारे में सोचा, जो शैतान की ताकत से हमें बचाने सीधा हमारे बीच देहधारी बनकर आया है; बड़े लाल अजगर के उत्पीड़न, गिरफ्तारी, तिरस्कार और निंदा के साथ-साथ धार्मिक समुदाय की अस्वीकृति और बदनामी को सहन करते हुए, हमारा सिंचन और पोषण करने के लिए वह चुपचाप सत्य व्यक्त कर रहा है। मानवजाति के लिए परमेश्वर का प्रेम कितना महान है! मुझे परमेश्वर से बहुत कुछ मिला, पर मैंने हमेशा अपने परिवार और बेटी का ही सोचा, परमेश्वर के प्रेम का मूल्य चुकाने की बिल्कुल नहीं सोची। मेरी अंतरात्मा कहाँ थी? यह सोचकर, मैंने खुद को परमेश्वर की ऋणी महसूस किया और यह संकल्प लिया कि चाहे मेरे पति कैसे भी मेरे रास्ते की बाधा बनें या मुझ पर दबाव डालें, मैं परमेश्वर का अनुसरण करूंगी; मैं सुसमाचार फैलाऊंगी और परमेश्वर की गवाही दूंगी।

बाद में, कलीसिया पर कम्युनिस्ट पार्टी का उत्पीड़न बहुत अधिक बढ़ गया और मेरे पति का विरोध भी काफी उग्र हो गया। साल 2007 के आखिरी छह महीनों में, ओलंपिक खेलों के लिए व्यवस्था बनाये रखने की आड़ में, पार्टी ने धार्मिक आस्था पर कड़ी कार्रवाई की और कलीसियाओं का दमन किया; बहुत-से भाई-बहन गिरफ्तार कर लिए गये। सितंबर महीने की एक सुबह जब मैं सुसमाचार फैलाने के लिए बाहर जाने को तैयार हो रही थी, मेरे पति ने मेरा रास्ता रोक लिया और मुझे जाने नहीं दिया। उसने मेरे बड़े भाई को बुला लिया और कहा, “कुछ दिन पहले ही तुम्हारे मौसेरे भाई ने कहा था कि राजनीतिक और कानूनी मामलों की समिति ने सुरक्षा और न्याय एजेंसियों की एक संयुक्त कार्रवाई शुरू की है, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विश्वासियों की सामूहिक गिरफ्तारी के लिए बहुत से कर्मियों को तैनात किया गया है। गिरफ्तार करने के बाद, वे सीधा जेल में डाल देते हैं। इसलिए, परमेश्वर में विश्वास रखना बंद कर दो, समझी?” मेरे भाई ने भी कहा, “मैं जानता हूँ कि आस्था रखना अच्छी बात है, मगर पार्टी लोगों को परमेश्वर में आस्था रखने की अनुमति नहीं देती। हमारे पास उनसे लड़ने की ताकत नहीं है, ऐसे में अगर तुम्हें अपनी आस्था का अभ्यास करना है, तो घर पर ही रहकर करो। सुसमाचार फैलाने के लिए बाहर जाना बंद कर दो। गिरफ्तार हो गई तो क्या करोगी?” मैंने कहा : “मैं जानती हूँ कि आप मेरा भला चाहते हैं, पर परमेश्वर में आस्था रखना और सुसमाचार फैलाना ही सबसे न्यायोचित चीज है, ताकि ज्यादा लोग परमेश्वर द्वारा बचाये जा सकें और जीवित रह सकें। इससे बड़ा नेक कर्म कोई और नहीं हो सकता। सिर्फ खुद को बचाने के लिए सुसमाचार फैलाना बंद करके क्या मैं बेहद स्वार्थी नहीं बन जाऊंगी?” इस पर मेरे पति ने अपने घुटनों पर आकर मुझसे गुहार लगाई, “मैं तुमसे भीख मानता हूँ। हमारे घर के लिए, हमारे बच्चे के लिए, परमेश्वर में आस्था रखना छोड़ दो। आस्था रखने का मतलब है हमारी बेटी यूनिवर्सिटी नहीं जाएगी या उसे अच्छी नौकरी नहीं मिलेगी। उसकी संभावनाएं खत्म हो जाएंगी! हमारी एक ही बेटी है—तुम्हें उसके बारे में सोचना होगा! अगर तुम गिरफ्तार हो गई, तो मेरे बाहर जाने पर लोग पीठ पीछे मेरे बारे में बातें करेंगे। बताओ मुझे, मेरी क्या इज्जत रह जाएगी?” मेरे पति को ऐसे देखकर मुझे समझ नहीं आया कि क्या करूं। वैसे तो वे बड़े अहंकारी थे, पर यहाँ वे मेरे भाई के सामने, घुटनों पर आकर मुझसे भीख मांग रहे थे। अगर मैं अपनी आस्था पर अड़ी रही तो उनको और ज्यादा दुख ही पहुंचेगा। और अगर मेरी आस्था के कारण पार्टी ने आखिर में मेरी बेटी को यूनिवर्सिटी जाने से रोक दिया तो उसका क्या होगा, उसे अच्छी नौकरी नहीं मिल पाएगी और वह अपना करियर नहीं बना पाएगी? यहाँ तक कि मेरे भाई भी मेरी आस्था का विरोध करते थे। मेरा परिवार भी शायद मेरी आस्था के मार्ग में रोड़ा बनकर खड़ा हो जाएगा, अगर उसे पता चला कि यह मेरे और मेरे पति के बीच दरार पैदा कर रही है। इससे मेरे लिए आस्था का मार्ग और भी ज्यादा मुश्किल हो जाएगा। लेकिन अगर मैंने पति के आगे हार मानकर अपनी आस्था त्यागने का वादा किया, तो क्या यह परमेश्वर को धोखा देना नहीं होगा? इस बारे में मैंने जितना सोचा उतनी ही ज्यादा परेशान हो गई, इसलिए मैंने मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना कर उससे मेरे दिल की रक्षा करने की गुहार लगाई। इस मुकाम पर मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया जो मैंने पहले पढ़ा था : “परमेश्वर द्वारा मनुष्य के भीतर किए जाने वाले कार्य के प्रत्येक चरण में, बाहर से यह लोगों के मध्य अंतःक्रिया प्रतीत होता है, मानो यह मानव-व्यवस्थाओं द्वारा या मानवीय विघ्न से उत्पन्न हुआ हो। किंतु पर्दे के पीछे, कार्य का प्रत्येक चरण, और घटित होने वाली हर चीज, शैतान द्वारा परमेश्वर के सामने चली गई बाजी है, और लोगों से अपेक्षित है कि वे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग बने रहें(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। वाकई! बाहर से ऐसा लग रहा था मानो मेरा परिवार मेरे रास्ते का रोड़ा बनकर खड़ा है, पर असल में शैतान मुझे ललचा रहा था। परमेश्वर में विश्वास करके और अपना कर्तव्य निभाकर, मैं सही मार्ग पर चल रही थी। शैतान मेरे रास्ते का रोड़ा बनने के लिए मेरे परिवार का इस्तेमाल कर रहा था, ताकि मैं परमेश्वर को धोखा दूं। मैं शैतान की चालों में नहीं फँस सकती थी, बल्कि मुझे डटकर खड़ी होना था, परमेश्वर की गवाही देकर शैतान को नीचा दिखाना था। इस बारे में सोचकर, मैंने दृढ़तापूर्वक उनसे कहा, “सब कुछ परमेश्वर ही तय करता है। कम्युनिस्ट पार्टी चाहे जो भी कहे, हमारे कार्य और हमारे भविष्य का आयोजन परमेश्वर करता है। देशों और पार्टियों का उत्थान और पतन, यहाँ तक कि किसी मामूली इंसान का भाग्य भी परमेश्वर के हाथों में ही है। आप दोनों जानते हैं कि विश्वासी बनने से पहले मैं कितनी बीमार रहती थी, परमेश्वर का अनुग्रह न होता तो मैं बहुत पहले मर चुकी होती। परमेश्वर ने मुझे यह जीवन दिया और मैंने उससे बहुत कुछ पाया है। मेरे लिए आस्था न रखना या अपना कर्तव्य न निभाना निर्लज्जता होगी। क्या मैं इंसान कहलाने लायक भी रहूँगी? क्या मेरे जीवन का कोई अर्थ होगा?” मेरे भाई ने त्यौरियां चढ़ाकर कहा, “सही कहा, आस्था रखने के बाद तुम्हारी बीमारी ठीक हो गई। मगर अब हम कम्युनिस्ट पार्टी के शासन में रहते हैं और वह विश्वासियों को गिरफ्तार करना चाहती है। क्या सुसमाचार का प्रचार करने के लिए बाहर जाना खुद को खतरे में डालना नहीं है?” मेरे पति भी उनकी ही तरफदारी कर रहे थे। मगर उन्होंने चाहे जो भी कहा, मैं अपनी आस्था रखने पर जोर देती रही। यह देखकर कि मैं अपना इरादा नहीं बदलने वाली, वे कठोर तरीके आजमाने लगे। करीब एक महीने बाद, एक दिन जैसे ही मैं एक सभा घर पहुँची, मेरे पति ने चेहरे पर जोर का तमाचा लगाते हुए गुस्से में कहा, “पार्टी पागलों की तरह लोगों को गिरफ्तार कर रही है, पर तुम अभी भी सभाओं में भाग ले रही हो। मैंने तुमसे विश्वास नहीं रखने को कहा था, पर तुम विश्वास रखने पर अड़ी रही! इतने सालों तक मैंने तुम्हारा सम्मान किया, कभी तुम पर हाथ नहीं उठाया। तुम्हारे भाई और भाभी कहते हैं कि मैंने तुम्हें सिर चढ़ा रखा है, मुझे तुम्हें ठीक करना चाहिए और तुम्हें परमेश्वर में विश्वास नहीं रखने देना चाहिए।” उनके इस व्यवहार से हैरान, मैं बस उन्हें घूरती रही। मेरी आँखों में देखने के डर से, उन्होंने अपना सिर नीचे कर लिया और कहा, “मैं तुम्हें मारना बिल्कुल नहीं चाहता। मैं नहीं चाहता कि परमेश्वर में आस्था रखने के कारण तुम गिरफ्तार हो जाओ और तुम्हें जेल में डाल दिया जाये। यह तुम्हारे भले के लिये ही है।” उनके मुँह से यह बात सुनकर मैं बहुत परेशान हो गई। मेरे पति हमेशा मेरे साथ अच्छा बर्ताव करते थे, पर मुझ पर होने वाले अत्याचार के डर से, वे कम्युनिस्ट पार्टी के लिए एक साधन बन गए थे। वे मुझसे परमेश्वर को धोखा दिलवाने की कोशिश कर रहे थे। यह मेरे भले के लिए कैसे था? बाद में, यह देखकर कि मैं अपनी आस्था बनाये रखने पर दृढ़ हूँ, उन्होंने काम पर जाना ही बंद कर दिया। वे बारीकी से मुझ पर नजर रखने लगे, मुझे परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ने देते थे, सभाओं में जाने या कर्तव्य निभाने नहीं देते थे। उस वक्त कलीसिया में बहुत सारा काम पड़ा था, पर उन्होंने मुझे घर में नजरबंद कर रखा था और मैं अपना कर्तव्य नहीं निभा सकती थी। मैंने उनसे मुझे आस्था रखने से न रोकने की गुहार लगाई। मैंने कहा, “जब आप मेरी आस्था का समर्थन करते थे, तब यह परमेश्वर की सुरक्षा ही थी कि आप एक कार दुर्घटना से बाल-बाल बचे थे। परमेश्वर ने हमें इतना सारा अनुग्रह दिया है, आप उसका विरोध कर उसे ठुकरा कैसे सकते हैं?” उन्होंने कहा, “पहले, परमेश्वर में तुम्हारी आस्था फायदेमंद होती थी, पर अब वैसी बात नहीं है। जब तक तुम परमेश्वर में आस्था रखोगी, पार्टी तुम्हें अकेला नहीं छोड़ेगी और हमारा परिवार मुसीबत झेलेगा। क्या हम आस्था रखने से जीवित रह पाएंगे?” बाद में, फँसा दिये जाने के डर से उन्होंने कहा कि हमें तलाक ले लेना चाहिए। इससे मुझे जोर का झटका लगा, पर बड़े लाल अजगर के प्रति मेरी नफरत और बढ़ गई। वे मुझ पर अत्याचार करते थे, मारते थे और अब तलाक लेना चाहते थे। यह सब कम्युनिस्ट पार्टी के उत्पीड़न के कारण था। मैंने परमेश्वर के वचनों के इस अंश को याद किया : “यही समय है : मनुष्य अपनी सभी शक्तियाँ लंबे समय से इकट्ठा करता आ रहा है, उसने इसके लिए सभी प्रयास किए हैं, हर कीमत चुकाई है, ताकि वह इस दुष्ट के घृणित चेहरे से नकाब उतार सके और जो लोग अंधे हो गए हैं, जिन्होंने हर प्रकार की पीड़ा और कठिनाई सही है, उन्हें अपने दर्द से उबरने और इस दुष्ट बूढ़े शैतान से विद्रोह करने दे। परमेश्वर के कार्य में ऐसी अभेद्य बाधा क्यों खड़ी की जाए? परमेश्वर के लोगों को धोखा देने के लिए विभिन्न चालें क्यों चली जाएँ? वास्तविक स्वतंत्रता और वैध अधिकार एवं हित कहाँ हैं? निष्पक्षता कहाँ है? आराम कहाँ है? गर्मजोशी कहाँ है? परमेश्वर के लोगों को छलने के लिए धोखे भरी योजनाओं का उपयोग क्यों किया जाए?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। पार्टी एक परमेश्वर विरोधी, परमेश्वर से घृणा करने वाली राक्षसी है। यह परमेश्वर के कार्य को रोकने और मिटाने के लिए विश्वासियों को गिरफ्तार करती और सताती है। यह परमेश्वर के कार्य को बदनाम करने के लिये सभी तरह की अफवाहें गढ़ती है और लोगों को मूर्ख बनाती है, ताकि वे भी परमेश्वर का विरोध करें और अंत में नष्ट कर दिए जाएं। यहाँ तक कि यह तो ईसाइयों के परिवारों का भी दमन और उत्पीड़न करती है, ताकि एक इंसान की आस्था के कारण पूरे परिवार को कष्ट भुगतना पड़े। मेरा परिवार पहले मेरी आस्था का समर्थन करता था, मगर पार्टी के अत्याचार और अफवाहों ने उन्हें भटका दिया, वे परमेश्वर के विरोध करने वाले सह-अपराधी बन गये। पार्टी बेहद दुष्ट है! मुझे परमेश्वर के वचनों का एक और अंश याद आया : “एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो सामान्य है और जो परमेश्वर के लिए प्रेम का अनुसरण करता है, परमेश्वर के जन बनने के लिए राज्य में प्रवेश करना ही तुम सबका असली भविष्य है और यह ऐसा जीवन है, जो अत्यंत मूल्यवान और सार्थक है; कोई भी तुम लोगों से अधिक धन्य नहीं है। मैं यह क्यों कहता हूँ? क्योंकि जो लोग परमेश्वर में विश्वास नहीं करते, वो देह के लिए जीते हैं और वो शैतान के लिए जीते हैं, लेकिन आज तुम लोग परमेश्वर के लिए जीते हो और परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चलने के लिए जीवित हो। यही कारण है कि मैं कहता हूँ कि तुम्हारे जीवन अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। केवल इसी समूह के लोग, जिन्हें परमेश्वर द्वारा चुना गया है, अत्यंत महत्वपूर्ण जीवन जीने में सक्षम हैं : पृथ्वी पर और कोई इतना मूल्यवान और सार्थकजीवन नहीं जी सकता(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के सबसे नए कार्य को जानो और उसके पदचिह्नों का अनुसरण करो)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करके मुझे रोशनी मिली। मैंने परमेश्वर का अंत के दिनों का कार्य स्वीकारा था। मैंने उसके वचनों के सिंचन और पोषण का काफी आनंद उठाया था, एक सृजित प्राणी के तौर पर अपना कर्तव्य निभा पाई थी, सुसमाचार साझा करते हुए परमेश्वर के लिए गवाही दी थी और बहुत-से लोगों को परमेश्वर के समक्ष आने और बचाये जाने में मदद कर पाई थी। ऐसा करना सबसे न्यायोचित चीज थी, सबसे मूल्यवान चीज थी; मैं अपने परिवार को बचाने के लिए अपनी आस्था और अपने कर्तव्य को नहीं छोड़ सकती थी। मुझे अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करना था, चाहे इसका मतलब तलाक लेना ही क्यों न हो। इसलिए, मैंने अपने पति से कहा, “मैं इस रास्ते पर चलने के लिए प्रतिबद्ध हूँ। चूंकि आप तलाक लेने पर जोर दे रहे हैं, तो मैं इसकी सहमति देती हूँ।”

उसी दिन हम तलाक की प्रक्रिया पूरी करने के लिए सिविल अफेयर्स ब्यूरो गये। जैसे ही मैं कागजात को भरने करने जा रही थी, मेरे भाई और भाभी आ धमके, बिना कुछ बोले मुझे अपनी कार में खींच लिया और फिर अपनी दुकान में ले गये। मेरे डैड पहले से वहां मौजूद थे, मुझ पर नजर पड़ते ही उन्होंने मुझे मारने के लिए हाथ उठाया, पर कर्मचारी ने भागकर उन्हें रोका। वे चिल्लाये, “मैं सोचता था सरकार तुम्हारी आस्था का समर्थन करती है। मुझे नहीं पता था कि तुम गिरफ्तार हो सकती हो और तुम्हारे परिवार को फँसाया जा सकता है। तुम परमेश्वर में विश्वास बनाये नहीं रख सकती। अगर ऐसा करोगी तो मैं तुम्हें बेदखल कर दूंगा!” मैंने कहा, “डैड, परमेश्वर ने हमें बनाया है, वह सभी चीजों पर राज करता है। इंसानों को आस्था रखनी चाहिए और उसकी आराधना करनी चाहिए।” मेरी बात पूरी होने से पहले ही मेरे भाई बोल पड़े, “तुम अभी भी आस्था रखना चाहती हो, भले ही इसका मतलब अपने परिवार को खोना हो?” मैंने दृढ़ता से कहा, “मेरी आस्था में कुछ भी गलत नहीं है। मैं अपने परिवार से दूर नहीं जा रही हूँ, बल्कि वे ही तलाक लेना चाहते हैं।” मेरे भाई ने चिल्ला कर कहा, “मेरा दोस्त जो सरकार के लिए काम करता है, उसने बताया कि दमन के मुख्य लक्ष्यों के रूप में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विश्वासियों के नाम से एक दस्तावेज जारी किया गया है। उसने हमें तुम पर नज़र रखने और तुम्हें आस्था रखने से रोकने के लिए कहा है, ताकि तुम्हारे साथ-साथ हम लोगों भी न फँसा दिया जाये।” तभी उन्होंने एक छड़ी निकाली और मेरी आँखों पर मारते हुए कहा, “चीजों को सही नजरिये से न देखने का नतीजा भुगतो!” अपने परिवार से इस तरह का बर्ताव देखकर काफी दुःख हुआ। मैंने पूरी ताकत लगाई और उनसे बचकर बाहर भागी। घर लौटते वक्त पूरे रास्ते रोती रही। मैंने काफी लाचार और अकेला महसूस किया, बिल्कुल नहीं जानती थी कि इस मार्ग पर कैसे कायम रहूँ। रोते हुए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, अब मेरा पूरा परिवार मेरे खिलाफ है, मेरे रास्ते की बाधा बन गया है, कहता है कि मैं आस्था नहीं रख सकती। यह मेरे लिये बेहद मुश्किल है। परमेश्वर, कृपा करके तुम्हारा इरादा समझने और इन हालात से बाहर निकलने में मेरा मार्गदर्शन करो।” प्रार्थना के बाद मैंने परमेश्वर के वचनों के इस अंश पर विचार किया : “चूँकि परमेश्वर का कार्य उस देश में आरंभ किया जाता है जो परमेश्वर का विरोध करता है, इसलिए परमेश्वर के संपूर्ण कार्य को भयंकर बाधाओं का सामना करना पड़ता है, और उसके बहुत-से वचनों को संपन्न करने में समय लगता है; इस प्रकार, परमेश्वर के वचनों के परिणामस्वरूप लोग शोधित किए जाते हैं, जो कष्ट झेलने का भाग भी है। परमेश्वर के लिए बड़े लाल अजगर के देश में अपना कार्य करना अत्यंत कठिन है—परंतु इसी कठिनाई के माध्यम से परमेश्वर अपने कार्य का एक चरण पूरा करता है, अपनी बुद्धि और अपने अद्भुत कर्म प्रत्यक्ष करता है, और लोगों के इस समूह को पूर्ण बनाने के लिए इस अवसर का उपयोग करता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। परमेश्वर के वचनों से मैंने समझा कि परमेश्वर अंत के दिनों में बड़े लाल अजगर के देश में कार्य कर रहा है, जहाँ उसका सबसे अधिक उग्रता से विरोध किया जाता है, और उसका अनुसरण करने वाले हम जैसे लोगों को उत्पीड़न और बहिष्कार का सामना करना निश्चित है। परमेश्वर इस तरह काम करता है, ताकि हम बड़े लाल अजगर और उसकी दुष्टता, उसके परमेश्वर विरोधी सार को समझ सकें और अब उसके द्वारा गुमराह न हों। इसका मकसद हमारी आस्था को पूर्ण करना भी है, ताकि हम मुश्किलों से गुजरते हुए परमेश्वर पर आश्रित होना सीख सकें, शैतान की ताकतों से बेबस हुए बिना परमेश्वर का अनुसरण कर सकें और परमेश्वर में सच्ची आस्था रखें। लेकिन थोड़ी-सी पीड़ा झेलने के बाद ही मुझे लगा कि आस्था रखना बहुत मुश्किल है। मैं नकारात्मकता में जी रही थी और हालात से बचकर भाग जाना चाहती थी। मुझमें वाकई आस्था का अभाव था। इन मुश्किलों का सामना करते हुए, मैंने जाना कि मुझे इन्हें परमेश्वर से स्वीकारना होगा। मुझे प्रार्थना करके सत्य खोजना होगा और परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में दृढ रहना होगा। एक सृजित प्राणी के रूप में, मुझे यही करना चाहिए। परमेश्वर का इरादा समझने के बाद मैंने उतना दुखी महसूस नहीं किया। बाद में, मैंने सुना कि असल में मेरे पति तलाक नहीं लेना चाहते थे, बल्कि इस बारे में मेरे परिवार से बात की थी और उन्हें लगा था कि यह मुझे अपनी आस्था त्यागने पर मजबूर कर देगा।

कुछ ही समय बाद, जब मेरे पति कार में हमें शॉपिंग के लिए लेकर जा रहे थे, वे अचानक एक रास्ते पर मुड़े और सीधा मनोरोग अस्पताल की ओर रुख कर लिया। वे मुझे खींचकर परामर्श वाले कमरे में लेकर गये और डॉक्टर से कहा, “यह सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखती है और सुसमाचार का प्रचार कर रही है। इसे अंदर बंद करके अन्य विश्वासियों से अलग रखना होगा। जैसा कि नशे की लत छुड़ाने वालों के साथ किया जाता है। अपनी आस्था त्यागने और सुसमाचार का प्रचार करना बंद करने के बाद ही यह बाहर आ सकती है।” इससे दिल को बहुत ठेस पहुँची। परमेश्वर में मेरी आस्था रोकने के लिए वे मुझे मनोरोगियों के साथ रखना चाहते थे। वहाँ कैद कर देने से कोई भी इंसान पागल हो सकता है! मैंने फौरन डॉक्टर से कहा, “मैं भी एक डॉक्टर हूँ। भर्ती करने से पहले देख तो लीजिए कि मुझे मानसिक स्वास्थ्य की कोई समस्या है भी या नहीं।” फिर मैंने उन्हें सिलसिलेवार ढंग से बताया कि कैसे पिछले कुछ सालों में मैंने परिवार के मामलों को अच्छे से प्रबंधित किया। मेरी बात सुनने के बाद, डॉक्टर ने मेरे पति से कहा, “वह मनोरोगी नहीं है। हम उसे भर्ती नहीं कर सकते। अगर आप इन्हें यहाँ छोड़ने पर जोर डालेंगे, तो हम इनकी सुरक्षा की गारंटी नहीं दे सकते।” मेरे पति डॉक्टर से मुझे भर्ती कर लेने की गुहार लगाते रहे। मैंने कहा, “अगर आप मुझे यहाँ बंद कर देंगे, तो मैं यहीं आत्महत्या कर लूंगी।” इस डर से कि यह उनकी जिम्मेदारी होगी, डॉक्टर ने मुझे भर्ती नहीं किया। मेरे पति के पास मुझे वापस घर लेकर जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।

जो कुछ भी हुआ उससे मुझे साफ पता चल गया कि मेरे पति हमेशा दावा करते थे कि वे सब कुछ मेरे भले के लिए करते हैं, लेकिन असल में यह सिर्फ एक दिखावा था। मुझे दुःख पहुंचाकर और अपमानित कर, हर बार उन्होंने अपने हितों की रक्षा की। यहाँ तक कि वे मुझे मनोरोगी अस्पताल में कैद कर देना चाहते थे। मुझे आस्था रखने से रोकने के लिए वे कुछ भी कर सकते थे। पार्टी का साथ देकर वे परमेश्वर के खिलाफ जा रहे थे, जिससे पता चला है कि वे भी बुराई से प्रेम, सत्ता का सम्मान और सत्य से नफरत करते थे। परमेश्वर के वचन कहते हैं : “विश्वासी और अविश्वासी आपस में मेल नहीं खाते हैं, बल्कि वे एक दूसरे के विरोधी हैं(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)। हम दो अलग-अलग रास्तों पर चल रहे थे। मैं उनसे मायूस थी, केवल हमारी बच्ची की खातिर मैंने तलाक नहीं लिया था। उसके बाद, उन्होंने झगड़े करना और चिल्लाना कभी बंद नहीं किया, बस यही कहते रहे कि मैं अपनी आस्था त्याग दूं। खास तौर पर ओलंपिक खेलों के करीब आने पर, जब मेरे मौसेरे भाई ने कहा कि सरकार सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विश्वासियों को गिरफ्तार करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है, और विश्वासियों को निर्दयता से दंडित किया जा रहा है, कोई उनकी जमानत भी नहीं ले सकता, तब मेरे पति मुझ पर और कड़ी नज़र रखने लगे और मेरी हर गतिविधि पर ध्यान देने लगे। उन्होंने 11 दिनों तक मुझे घर में नज़रबंद करके रखा। मेरे पास घर पर अपनी आस्था का अभ्यास करने का कोई तरीका नहीं था। ऐसा करने और कर्तव्य निभाने के लिए, मुझे परिवार को छोड़ना पड़ता। मगर मैं सच में अपनी बेटी से अलग होना बर्दाश्त नहीं कर सकती थी। अगर मैं उसे छोड़कर चली गई तो यह उसके लिए बहुत बुरा होगा! मेरे साथ न होने और उसकी ठीक से देखभाल करने वाला कोई न होने पर, अगर कहीं वह भटक गई तो क्या होगा? जब भी मैं ऐसा सोचती, मेरी आँखों से आँसू छलक पड़ते। इस गहरे दुःख की घड़ी में, मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “तुम्हें सत्य के लिए कष्ट उठाने होंगे, तुम्हें सत्य के लिए समर्पित होना होगा, तुम्हें सत्य के लिए अपमान सहना होगा, और अधिक सत्य प्राप्त करने के लिए तुम्हें अधिक कष्ट उठाने होंगे। यही तुम्हें करना चाहिए। एक शांतिपूर्ण पारिवारिक जीवन के लिए तुम्हें सत्य का त्याग नहीं करना चाहिए, और क्षणिक आनन्द के लिए तुम्हें अपने जीवन की गरिमा और सत्यनिष्ठा को नहीं खोना चाहिए। तुम्हें उस सबका अनुसरण करना चाहिए जो खूबसूरत और अच्छा है, और तुम्हें अपने जीवन में एक ऐसे मार्ग का अनुसरण करना चाहिए जो ज्यादा अर्थपूर्ण है। यदि तुम एक गंवारू जीवन जीते हो और किसी भी उद्देश्य को पाने की कोशिश नहीं करते हो तो क्या तुम अपने जीवन को बर्बाद नहीं कर रहे हो? ऐसे जीवन से तुम क्या हासिल कर पाओगे? तुम्हें एक सत्य के लिए देह के सभी सुखों को छोड़ देना चाहिए, और थोड़े-से सुख के लिए सारे सत्यों का त्याग नहीं कर देना चाहिए। ऐसे लोगों में कोई सत्यनिष्ठा या गरिमा नहीं होती; उनके अस्तित्व का कोई अर्थ नहीं होता!(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद, मैंने अपनी आस्था के बीते सालों पर विचार किया। शैतान मुझे दबाने और परेशान करने के लिए हमेशा मेरे रिश्तेदारों का इस्तेमाल करता था, ताकि मुझे परमेश्वर से दूर कर उसे धोखा देने पर मजबूर कर सके। मैं अपने परिवार के साथ थी लेकिन खुश नहीं थी, मेरे पति मुझे परमेश्वर के वचन पढ़ने या सुसमाचार साझा करने और अपना कर्तव्य निभाने नहीं देते थे। ऐसे जीना पीड़ादायक था। परमेश्वर ने मेरे लिए अंत के दिनों में पैदा होने और उसका सुसमाचार स्वीकारने की व्यवस्था की थी, ताकि मैं सत्य का अनुसरण कर सकूं, बचाई जा सकूं और एक सृजित प्राणी के तौर पर अपना कर्तव्य पूरा कर सकूं। मुझे ऐसा ही अनुसरण करना चाहिए। मैंने परमेश्वर के वचनों पर विचार किया : “मनुष्य का भाग्य परमेश्वर के हाथों से नियंत्रित होता है। तुम स्वयं को नियंत्रित करने में असमर्थ हो : हमेशा अपनी ओर से भाग-दौड़ करते रहने और व्यस्त रहने के बावजूद मनुष्य स्वयं को नियंत्रित करने में अक्षम रहता है। यदि तुम अपने भविष्य की संभावनाओं को जान सकते, यदि तुम अपने भाग्य को नियंत्रित कर सकते, तो क्या तुम तब भी एक सृजित प्राणी होते?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मनुष्य के सामान्य जीवन को बहाल करना और उसे एक अद्भुत मंज़िल पर ले जाना)। यह सही है। इन दुनिया में आने वाले हर इंसान के लिए, परमेश्वर ने बहुत पहले तय कर दिया है कि हम किस रस्ते पर चलेंगे और कितनी पीड़ा सहेंगे। कोई भी किसी की मदद नहीं कर सकता। मैंने अपनी बेटी को जन्म दिया, पर उसका भाग्य परमेश्वर के हाथों में था। परमेश्वर ने बहुत पहले निर्धारित कर दिया है कि वह कितनी पीड़ा सहेगी और अपने जीवन में कितने आशीषों का आनंद लेगी। अगर मैं उसका साथ देती रहूँ, तब भी उसके भाग्य में लिखी पीड़ा का बोझ नहीं उठा सकती। उसके भाग्य की क्या कहूं, मैं तो अपने भाग्य को भी नियंत्रित नहीं कर सकती। मुझे बस बेटी को परमेश्वर के हाथों में सौंपकर उसकी व्यवस्था के आगे समर्पण करना होगा। फिर एक दिन, जब मेरे पति सोये हुए थे, मैं चोरी-छिपे घर से भागने में कामयाब हो गई।

मुझे हैरानी हुई जब कुछ हफ़्तों बाद ही एक अगुआ ने बताया कि मेरे पति बार-बार भाई-बहनों को परेशान करते और कहते थे कि अगर मैं वापस नहीं आई तो वे पुलिस को उनके बारे में रिपोर्ट कर देंगे। मुझे घर जाना पड़ा, वरना भाई-बहन मुश्किल में पड़ जाते। इस बार, मेरे पति और अधिक कड़ाई से मेरी निगरानी करने लगे। वे मुझे घर में बंद करके चाभी छिपा देते और हमेशा मुझसे कुछ फीट के दायरे में ही रहते थे। खाना पकाते और बाथरूम जाते समय भी उनकी नज़र मुझ पर बनी रहती। वे सुबह से शाम तक टीवी चालू रखते, मुझे अपने साथ बैठकर समाचार और देशभक्ति वाली फिल्में देखने को मजबूर करते, कहते कि वे मेरा मन बदलना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि मेरे मौसेरे भाई ने उन्हें बताया था कि वे मुझे प्रार्थना करने या परमेश्वर के वचन पढ़ने का कोई भी मौका न दें। टीवी पर जो कुछ भी आता, वे मुझे देखने को मजबूर करते, ताकि धार्मिक विचारों के लिए वक्त ही न बचे और मैं अपनी आस्था का त्याग कर दूं। उन्होंने मुझे यह भी बताया कि वे मुझे एक पल की भी शांति नहीं दे सकते, क्योंकि जैसे ही मैंने प्रार्थना की, परमेश्वर मुझे कोई न कोई रास्ता दिखाएगा, फिर मैं दोबारा सभाओं में जाने और सुसमाचार का प्रचार करने लगूंगी। गुस्से में, मैंने उनसे कहा, “आस्था रखना मेरी आजादी है। आप मेरा दमन करके और मुझे अपनी आजादी से वंचित करके कम्युनिस्ट पार्टी का साथ क्यों दे रहे हैं? आपने मेरी आस्था के कारण ही परमेश्वर के अनुग्रह का काफी आनंद उठाया है और आपने देखा है कि परमेश्वर क्या कर सकता है। अब आप मेरी आस्था का मार्ग बंद करके मेरा दमन कर रहे हैं। यह सिर्फ मुझे दबाना नहीं, बल्कि परमेश्वर के खिलाफ जाना है!” मुझे हैरानी हुई जब उन्होंने वापस चिल्लाकर कहा, “हाँ, मैं परमेश्वर के खिलाफ जा रहा हूँ, उसे मुझे दंडित करने दो!” मैं अवाक रह गई। वे ऐसा कैसे कह सकते थे? उनकी सोचने-समझने की शक्ति खो चुकी है। उन्होंने करीब एक हफ्ते तक मुझे ऐसे ही घर में बंद करके रखा, मैं एक कदम भी बाहर नहीं रख सकती थी। मैं परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ सकती थी, सभाओं में नहीं जा सकती थी या अपना कर्तव्य नहीं निभा सकती थी। यह बड़ी दयनीय स्थिति थी। मैं सोच रही थी कि बाकी लोग कैसे कर्तव्य निभा रहे होंगे, जबकि मेरे पति ने मुझे यहाँ बंद कर रखा है, यहाँ तक कि मुझसे प्रार्थना करने का अधिकार भी छीन लिया है। अगर ऐसे ही चलता रहा, तो क्या मैं परमेश्वर दूर, बहुत दूर नहीं हो जाऊंगी? इतना ही नहीं, मेरे परिवार के सभी सदस्य मुझे दबाने में मेरे पति का साथ दे रहे थे। मैं अब इसे बर्दाश्त नहीं कर सकती थी। इस बारे में मैंने जितना सोचा उतना ही बुरा लगा। मैं अकेली और लाचार थी।

एक शाम जब मेरे पति सोये हुए थे, मैंने मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना की। कहा, “परमेश्वर, मैं तुम्हारे वचन नहीं पढ़ सकती। मैं अंदर से बेहद कमजोर महसूस कर रही हूँ। हे परमेश्वर, मेरा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है। कृपा करके मुझे आस्था और शक्ति दो।” प्रार्थना के बाद मैंने परमेश्वर के वचनों के एक अंश पर विचार किया : “जिन लोगों का उल्लेख परमेश्वर ‘विजेताओं’ के रूप में करता है, वे लोग वे होते हैं, जो तब भी गवाही में दृढ़ बने रहने और परमेश्वर के प्रति अपना विश्वास और भक्ति बनाए रखने में सक्षम होते हैं, जब वे शैतान के प्रभाव और उसकी घेरेबंदी में होते हैं, अर्थात् जब वे स्वयं को अंधकार की शक्तियों के बीच पाते हैं। यदि तुम, चाहे कुछ भी हो जाए, फिर भी परमेश्वर के समक्ष पवित्र दिल और उसके लिए अपना वास्तविक प्यार बनाए रखने में सक्षम रहते हो, तो तुम परमेश्वर के सामने गवाही में दृढ़ रहते हो, और इसी को परमेश्वर ‘विजेता’ होने के रूप में संदर्भित करता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम्हें परमेश्वर के प्रति अपनी भक्ति बनाए रखनी चाहिए)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे दिखाया कि अंत के दिनों में, वह लोगों के एक समूह को विजेता बनाना चाहता है, जो शैतान के हमलों और अत्याचार के बीच अँधेरे की ताकतों के आगे नहीं झुकेगा। इसके बजाय, वे लोग अपनी आस्था और भक्ति में अडिग रहेंगे और परमेश्वर की शानदार गवाही देंगे। मुझे प्रेरणा मिली और मैं समर्पित होकर सबक सीखने के लिये तैयार हो गई। मेरे पति मुझे चाहे कितना भी रोकें और दबाएं, मैं अपनी गवाही में अडिग रहकर परमेश्वर को संतुष्ट करूंगी। बाद में, जब भी मेरे पति सोते, तो मैं परमेश्वर के वचनों पर विचार करती, मन-ही-मन प्रार्थना करती या कोई भजन गुनगुनाती, जिससे मुझे थोड़ी खुशी मिलती। मेरी नज़रबंदी के उन्नीसवें दिन से, जैसे ही मेरे पति मेरे साथ झगड़ा करना शुरू करते, उनके सिर, गर्दन और कमर में दर्द होने लगता। वे जितना अधिक गुस्सा करते, तकलीफ उतनी ही ज्यादा होती, यहाँ तक कि वे दर्द से रोने लगते और फिर उनमें मुझे बहस करने की हिम्मत नहीं होती। अंत में उन्होंने कहा : “अब मैं इसे और बर्दाश्त नहीं कर सकता! मैं तुम्हें जितने दिन बंद रखता हूँ, तुम्हारा हौसला उतना ही बढ़ता जाता है। ऐसा करके मैं खुद को ही बीमार कर रहा हूँ।” अगले दिन वे मुझे घर में बंद करके काम पर चले गये। एक दिन मुझे चाभी मिल गई और मैं जब वे वहां नहीं थे, मैं चुपचाप घर से निकल गई। मुझे रास्ता दिखाने के लिए, मैं परमेश्वर की बहुत आभारी थी; आखिरकार मैं सभाओं में हिस्सा लेकर फिर से अपना कर्तव्य निभा सकती थी।

उसके बाद मेरे पति ने मुझ पर कड़ी नज़र रखना बंद कर दिया। कभी-कभार, जब वे जोर देकर मेरा विरोध करने और मुझे रोकने की कोशिश करते, तो वे बीमार पड़ जाते और उनकी गर्दन में भयंकर दर्द होने लगता। मार्च 2012 में एक दिन, उन्होंने मुझसे कहा, “बीते कुछ सालों से मैंने बस यही चाहा कि तुम हमारे परिवार और अपनी आस्था के बीच कोई रास्ता चुन लो, मगर तुमने कभी अपनी आस्था का त्याग नहीं किया। आज यह किस्सा ही खत्म करते हैं। तुम्हारे सामने दो रास्ते हैं। अगर तुम इस घर में रही तो परमेश्वर का अनुसरण नहीं कर सकती, और अगर तुमने परमेश्वर का अनुसरण किया, तो तुम कभी इस घर में वापस नहीं आ सकती।” मैंने दृढ़तापूर्वक उनसे कहा, “मैंने परमेश्वर में आस्था रखने का मार्ग चुना है, मैं कभी पीछे नहीं हटूंगी।” फिर मैंने अपना सामान पैक किया और अपना कर्तव्य निभाने वालों की श्रेणी में शामिल हो गई। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का धन्यवाद!

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