82. सही फैसला
मैं दूर के एक पहाड़ी गाँव में पैदा हुआ, मेरा परिवार पीढ़ियों से खेती-बाड़ी कर रहा था। जब मैं स्कूल में था, तो मेरी माँ अक्सर समझाती थी, "हमारे परिवार के पास कुछ नहीं है। अपनी किस्मत बदलने के लिए तुम्हें अपनी मदद खुद करनी होगी। अच्छी पढ़ाई करके ही तुम आगे बढ़ सकते हो।" मैंने उनकी बातों को दिल में बसा लिया, मैं चाहता था एक दिन "भीड़ से ऊपर उठकर अपने पूर्वजों का नाम करूँ।" मगर ग्रेजुएशन के बाद, न सिर्फ मुझे अच्छी नौकरी नहीं मिली, बल्कि मेरे माँ-बाप बहुत बीमार पड़ गए। हमने परिवार की बचत के सारे पैसे खर्च दिए, रिश्तेदारों से भी उधार लिया। क्योंकि मैं समय रहते पैसे नहीं चुका पाया, तो मेरी अपनी ही चाची ने पीठ पीछे मुझे बुरा-भला कह डाला। मैंने पैसे कमाने में लग गया ताकि वे मुझे हिकारत से न देखें, पर हमारे परिवार की गरीबी और रिश्तेदारों के अपमान से, मैं बहुत दुखी रहने लगा, सबसे छुपकर बहुत रोता था। जब मैं बहुत दुखी और हताश था, तभी जून 2013 में, एक दोस्त ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का सुसमाचार सुनाया। परमेश्वर के वचन पढ़कर और भाई-बहनों के साथ सभा करके, मैंने सीखा कि इंसान को परमेश्वर ने बनाया है, हमारा जीवन उसके हाथों में है। मैंने यह भी जाना कि जीवन इतना कष्टमय इसलिए है क्योंकि जब शैतान ने इंसान को भ्रष्ट किया तब वह परमेश्वर की सुरक्षा खो बैठा, और परमेश्वर अंत के दिनों में देहधारण कर सत्य व्यक्त कर रहा है, ताकि इंसान को शैतान की भ्रष्टता और नुकसान से बचाए। इंसान को बचाने की परमेश्वर की इच्छा जानकर, मैं सभाओं में जाकर परमेश्वर के वचनों को खूब पढ़ने लगा। जल्द ही कलीसिया में कर्तव्य निभाने लगा।
कुछ महीनों बाद, मेरे उत्साह और सत्य खोजने की चाह को देखकर, सबने मुझे समूह अगुआ बनने की तैयारी करने की सलाह दी। मैंने भाई ली के साथ सभाओं की कुछ समूहों की अगुआई की। तब मैं नौकरी भी करता था, इसलिए दिन में दूर की सभाओं में भाई ली जाते थे, और मैं शाम की सभाओं में जाता था। इस तरह हम अपने शेड्यूल के हिसाब से काम कर पाते थे। साल के अंत में सामान्य मामले संभालने वाले कर्मी कम पड़ गए, तो वह काम भाई ली सौंप दिया गया और मुझे अस्थायी तौर पर समूहों का प्रभार मिला। मैं जानता था इसके लिए मुझे परमेश्वर पर भरोसा रखना होगा। मगर तब, मैंने खुद को एक बड़ी मुश्किल में पाया। अगर मैं अपनी सारी ऊर्जा और समय अपने कर्तव्य में लगा दूं, तो मेरे पास और काम करने का समय नहीं बचेगा। मेरी कंपनी ने मुझे साल के अंत तक एक अरब युआन की बिक्री का लक्ष्य दिया था, इससे ज्यादा बिक्री कर पाया तो मुझे साल के अंत में बोनस मिलता। मैंने सोचा, यह लक्ष्य हासिल कर पाया, तो अपने उधार चुकाने के साथ ही कुछ पैसे भी बचा पाऊँगा, फिर मेरे जानने वाले मुझे हिकारत से नहीं देखेंगे। मैंने फैसला किया कि एक बार पैसा हाथ आ जाए तब कर्तव्य में कड़ी मेहनत करूँगा। मेरा सुपरवाइजर चाहता था कि मैं लक्ष्य पूरा करने के लिए ओवरटाइम करूँ, तो मैं एक घंटे ज्यादा काम करके सभाओं के लिए छुट्टी ले लेता था, मगर फिर सुपरवाइजर ने छुट्टियाँ देनी बंद कर दी, वह चाहता था मैं और ओवरटाइम करूँ। इस कारण मैं सभाओं में देर से पहुंचता था। जब लोग मुझे सभाओं में जल्दी आने को कहते, तो बेमन से सिर हिला देता। जल्द ही, मैंने 500,000 युआन का एक ऑर्डर साइन कराया, उस महीने मुझे 7,000 युआन से भी ज्यादा मिले, जिससे पैसे कमाने की मेरी चाह बढ़ गई। सोचने लगा इतनी जल्दी पैसे मिल गए और मैंने आधे से ज्यादा लक्ष्य भी पूरा कर लिया है। अगर दस में से पांच क्लाइंट भी एक ऑर्डर साइन कर दें, तो मुझे उससे काफी मुनाफा होगा। अगर कुछ और बड़े क्लाइंट मिल गए, तो शायद कुछ सालों में एक घर और गाड़ी भी खरीद लूंगा, फिर मैं इज्जत के साथ गाँव लौट सकूंगा, सब मेरा आदर करेंगे। इसलिए, मैं पैसे कमाने के अपने सपने को पूरा करने में लग गया। शाम को अक्सर ओवरटाइम करता था। कभी-कभी सभाओं में मेरा इंतजार कर रहे भाई-बहनों की सोचकर थोड़ा दोषी महसूस करता, पर काम खत्म होते-होते इतनी देर हो जाती कि मुझे घर जाना पड़ता था। मैं पूरी तरह थककर घर पहुँचता, परमेश्वर के वचन पढ़ने की ऊर्जा नहीं बचती, तो मैं सीधे जाकर सो जाता था। सुबह को बहुत देर से उठने के कारण, परमेश्वर के वचनों पर सरसरी नजर डालकर काम पर चला जाता था। प्रार्थना में क्या कहूँ, समझ नहीं आता था। ऐसी हालत में जीते हुए, मैं कर्तव्य में अधिक लापरवाह हो गया। मेरी जिम्मेदारी वाले कुछ नए सदस्यों को तत्काल सिंचन की जरूरत होती, तो मैं अपनी जगह दूसरों को नए सदस्यों की सभाओं में भेज देता। पर उन सबके अपने कर्तव्य थे, तो कभी-कभी वे मेरा काम न कर पाते, जिससे सिंचन कार्य की प्रभावशीलता पर बुरा असर पड़ा। अगुआ और सभी ने मेरे साथ संगति कर कहा कि मुझे कर्तव्य को अहमियत देनी चाहिए, और याद दिलाया कि बेमन से सभा करने और कर्तव्य में गैर-जिम्मेदार होने से नए सदस्यों के जीवन की प्रगति में रुकावट आयेगी। उनकी बात सुनकर मैं थोड़ा डर गया। समय रहते नए सदस्यों का सिंचन नहीं हुआ, तो वे झूठों से गुमराह होकर आस्था छोड़ देंगे, और यह मेरा कुकर्म होगा। मुझे पता था मैं इस तरह काम नहीं कर सकता, मुझे फौरन प्रार्थना और प्रायश्चित करना था।
इसके बाद, जब मैं उन समूहों की खोज-खबर लेने गया, तो देखा कि मेरे व्यावहारिक कार्य न करने के कारण, नए सदस्यों की समस्याएँ समय रहते हल नहीं हो पाईं, जिससे उनकी हालत बुरी हो गई थी, कुछ ने नियमित रूप से सभाओं में आना भी छोड़ दिया था। यह सब देखकर मुझे बहुत दोषी महसूस हुआ। ज्यादा से ज्यादा नए विश्वासी आस्था में शामिल हो रहे थे उन्हें तत्काल सिंचन और सहारे की जरूरत थी, सच्चे मार्ग पर नींव बनाने में मदद चाहिए थी। मुझे लगा नौकरी छोड़कर अपना सारा समय कर्तव्य निभाने में लगाना चाहिए। मगर काम पर मेरे बॉस मुझे अच्छे प्रोजेक्ट सौंप रहे थे, मेरे सुपरवाइजर ने क्लाइंट ढूँढने में मेरी मदद करने का भरोसा दिया था। मेरे नौकरी छोड़ने की बात पर सहकर्मी बोले, "तुमने बिक्री का आधा लक्ष्य हासिल कर लिया है, साल के अंत तक इससे आगे भी निकल जाओगे। अभी छोड़ना अफसोस की बात होगी।" उनकी बात सुनकर, मुझे भी लगा कि ऐसा करना ठीक नहीं होगा, मैं साल के अंत तक काम करके नौकरी छोड़ना चाहता था। मगर कलीसिया के काम में लोगों की सख्त जरूरत थी, अगर मैंने सिर्फ अपनी नौकरी और पैसे कमाने में लगकर कलीसिया का काम नहीं किया, तो यह स्वार्थी बनना होगा। मैं बहुत ही बड़ी दुविधा में था। मैं तब वाकई बहुत असमंजस में था। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे प्रबुद्ध कर राह दिखाने को कहा।
फिर एक दिन परमेश्वर के वचनों के भजन में मैंने यह सुना : "इस समय तुम लोगों के जीवन का हर दिन निर्णायक है, और यह तुम्हारे गंतव्य और भाग्य के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है, अतः आज जो कुछ तुम्हारे पास है, तुम्हें उससे आनंदित होना चाहिए और गुजरने वाले हर क्षण को सँजोना चाहिए। ख़ुद को अधिकतम लाभ देने के लिए तुम्हें जितना संभव हो, उतना समय निकालना चाहिए, ताकि तुम्हारा यह जीवन बेकार न चला जाए" ("मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ" में 'हर दिन जो तुम अभी जीते हो, निर्णायक है')। "जागो, भाइयो! जागो, बहनो! मेरे दिन में देरी नहीं होगी; समय जीवन है, और समय को थाम लेना जीवन बचाना है! वह समय बहुत दूर नहीं है! यदि तुम लोग महाविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं होते, तो तुम पढ़ाई कर सकते हो और जितनी बार चाहो फिर से परीक्षा दे सकते हो। लेकिन, मेरा दिन अब और देरी बर्दाश्त नहीं करेगा। याद रखो! याद रखो! मैं इन अच्छे वचनों के साथ तुमसे आग्रह करता हूँ। दुनिया का अंत खुद तुम्हारी आँखों के सामने प्रकट हो रहा है, और बड़ी-बड़ी आपदाएँ तेज़ी से निकट आ रही हैं। क्या अधिक महत्वपूर्ण हैः तुम लोगों का जीवन या तुम्हारा सोना, खाना-पीना और पहनना-ओढ़ना? समय आ गया है कि तुम इन चीज़ों पर विचार करो" ("मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ" में 'समय जो गँवा दिया कभी वापस न आएगा')। परमेश्वर के वचनों के इन भजनों का मुझ पर काफी गहरा असर पड़ा। परमेश्वर का अंत के दिनों का कार्य युग का अंत करने का कार्य है। वह हर व्यक्ति का परिणाम निर्धारित कर रहा है, सभी को उनकी किस्म में बांटेगा। बाद में, या तो लोग बचाए जाएँगे या फिर वे बर्बाद हो जाएँगे। इसका निर्धारण सत्य खोजने के हमारे तरीके से होगा। यह घड़ी हमारे परिणाम और किस्मत का फैसला करेगी। अब एक-एक करके आपदाएं आती जा रही हैं। भूकंप, बाढ़, और सूखा आम बात हो गई है। कोई नहीं जानता कि परमेश्वर का कार्य कब पूरा होगा। मुझे पता था कि अगर मैं सत्य खोजने में अपने समय का इस्तेमाल न कर, अविश्वासियों की तरह पैसे और आसान जिंदगी के पीछे भागता रहा, तो मैं सत्य हासिल करने और बचाये जाने का मौका खो बैठूँगा। मैंने लूत की पत्नी के बारे में सोचा। उसे अपने परिवार की संपत्ति का लालच था। दूतों ने उन्हें शहर से बाहर निकलने का मार्ग दिखाया और पीछे मुड़ने से मना किया, फिर भी वह पीछे मुड़ी, और नमक का खंबा बन गई, जो शर्मिंदगी का प्रतीक है। मैं भी लूत की पत्नी जैसा ही था। मुझे संपत्ति का लालच था, मैं सांसारिक सुख के पीछे भागता था, हल पर हाथ रख मैंने पीछे मुड़कर देखा। मैं एकदम बेवकूफ और अँधा था! मैंने याद किया मैं पहले अपना जीवन कैसे जी रहा था, पूरी तरह उधार में डूबा था, निकलने का कोई रास्ता नहीं था। परमेश्वर ने मेरा उद्धार किया, मुझे पीड़ा की हालत से निकाला, सत्य खोजने और उद्धार पाने का मौका दिया। परमेश्वर के प्रेम का आनंद तो उठाया, पर उसका प्रतिफल देने का इच्छुक न था। मैंने कर्तव्य में लापरवाही की, गैर-जिम्मेदार बन गया। मेरा जमीर मर चुका था, इससे परमेश्वर को नफरत थी। मैं अड़ियल बनकर गलत मार्ग पर नहीं चल सकता, मुझे निजी हितों को छोड़ सत्य खोजना और कर्तव्य निभाना होगा।
इसके बाद, मैं सोचने लगा कि मेरे लिए नौकरी और पैसों को त्यागना इतना मुश्किल क्यों था—इस समस्या की जड़ क्या थी? फिर एक दिन, मैंने परमेश्वर के कुछ वचन पढ़े। "शैतान मनुष्य के विचारों को नियंत्रित करने के लिए प्रसिद्धि और लाभ का तब तक उपयोग करता है, जब तक सभी लोग प्रसिद्धि और लाभ के बारे में ही नहीं सोचने लगते। वे प्रसिद्धि और लाभ के लिए संघर्ष करते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए कष्ट उठाते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपमान सहते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर देते हैं, और प्रसिद्धि और लाभ के लिए कोई भी फैसला या निर्णय ले लेते हैं। इस तरह शैतान लोगों को अदृश्य बेड़ियों से बाँध देता है और उनमें उन्हें उतार फेंकने का न तो सामर्थ्य होता है, न साहस। वे अनजाने ही ये बेड़ियाँ ढोते हैं और बड़ी कठिनाई से पैर घसीटते हुए आगे बढ़ते हैं। इस प्रसिद्धि और लाभ के लिए मानवजाति परमेश्वर से दूर हो जाती है, उसके साथ विश्वासघात करती है और अधिकाधिक दुष्ट होती जाती है। इसलिए, इस प्रकार एक के बाद पीढ़ी शैतान की प्रसिद्धि और लाभ के बीच नष्ट होती जाती है" (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI)। "'पैसा दुनिया को नचाता है' यह शैतान का एक फ़लसफ़ा है और यह संपूर्ण मानवजाति में, हर मानव-समाज में प्रचलित है। तुम कह सकते हो कि यह एक रुझान है, क्योंकि यह हर एक व्यक्ति के हृदय में बैठा दिया गया है। बिलकुल शुरू से ही, लोगों ने इस कहावत को स्वीकार नहीं किया, किंतु फिर जब वे जीवन की वास्तविकताओं के संपर्क में आए, तो उन्होंने इसे मूक सहमति दे दी, और महसूस करना शुरू किया कि ये वचन वास्तव में सत्य हैं। क्या यह शैतान द्वारा मनुष्य को भ्रष्ट करने की प्रक्रिया नहीं है? शायद लोग इस कहावत को समान रूप से नहीं समझते, बल्कि हर एक आदमी अपने आसपास घटित घटनाओं और अपने निजी अनुभवों के आधार पर इस कहावत की अलग-अलग रूप में व्याख्या करता है और इसे अलग-अलग मात्रा में स्वीकार करता है। क्या ऐसा नहीं है? चाहे इस कहावत के संबंध में किसी के पास कितना भी अनुभव हो, इसका किसी के हृदय पर कितना नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है? तुम लोगों में से प्रत्येक को शामिल करते हुए, दुनिया के लोगों के स्वभाव के माध्यम से कोई चीज़ प्रकट होती हैं। यह क्या है? यह पैसे की उपासना है। क्या इसे किसी के हृदय में से निकालना कठिन है? यह बहुत कठिन है! ऐसा प्रतीत होता है कि शैतान का मनुष्य को भ्रष्ट करना सचमुच गहन है! शैतान लोगों को प्रलोभन देने के लिए धन का उपयोग करता है, और उन्हें भ्रष्ट करके उनसे धन की आराधना करवाता है और भौतिक चीजों की पूजा करवाता है। और लोगों में धन की इस आराधना की अभिव्यक्ति कैसे होती है? क्या तुम लोगों को लगता है कि बिना पैसे के तुम लोग इस दुनिया में जीवित नहीं रह सकते, कि पैसे के बिना एक दिन जीना भी असंभव होगा? लोगों की हैसियत इस बात पर निर्भर करती है कि उनके पास कितना पैसा है, और वे उतना ही सम्मान पाते हैं। गरीबों की कमर शर्म से झुक जाती है, जबकि धनी अपनी ऊँची हैसियत का मज़ा लेते हैं। वे ऊँचे और गर्व से खड़े होते हैं, ज़ोर से बोलते हैं और अंहकार से जीते हैं। यह कहावत और रुझान लोगों के लिए क्या लाता है? क्या यह सच नहीं है कि पैसे की खोज में लोग कुछ भी बलिदान कर सकते हैं? क्या अधिक पैसे की खोज में कई लोग अपनी गरिमा और ईमान का बलिदान नहीं कर देते? क्या कई लोग पैसे की खातिर अपना कर्तव्य निभाने और परमेश्वर का अनुसरण करने का अवसर नहीं गँवा देते? क्या सत्य प्राप्त करने और बचाए जाने का अवसर खोना लोगों का सबसे बड़ा नुकसान नहीं है? क्या मनुष्य को इस हद तक भ्रष्ट करने के लिए इस विधि और इस कहावत का उपयोग करने के कारण शैतान कुटिल नहीं है? क्या यह दुर्भावनापूर्ण चाल नहीं है?" (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है V)। वचनों से पैसों और शोहरत के पीछे भागने की जड़ का खुलासा हुआ। बचपन से ही, ये शैतानी फलसफे मुझे जीवन की कुंजी लगते थे, "दुनिया पैसों के इशारे पर नाचती है" और "भीड़ से ऊपर उठो और अपने पूर्वजों का नाम करो"। लगता था पैसा होने पर लोग आत्मविश्वास और गरिमा से बात कर सकते हैं, गर्व से खड़े होकर, ऊंचा उठकर सम्मान पा सकते हैं। एक सार्थक और सम्मानित जीवन जीने का यही एकमात्र तरीका है। खासकर जब मेरे परिवार ने मुझसे मुंह मोड़ लिया, तो मैंने पैसे कमाने के लिए ओवरटाइम किया, ताकि एक दिन उनसे बड़ा बन जाऊं। आस्था रखने के बाद, मैं समझ गया कि सत्य जानने और जीवन में आगे बढ़ने के लिए मुझे अपना कर्तव्य निभाना होगा। मगर मैं पैसों और रुतबे की चाह को नहीं त्याग पाया। जब मेरी नौकरी और मेरे कर्तव्य के बीच टकराव होने लगा, तो मैं पैसे कमाने को अहमियत देकर कर्तव्य में लापरवाही की। खासकर जब मेरा काम अच्छा चल रहा था और मैं ज्यादा पैसे कमा रहा था, तब मेरी इच्छा और भी तीव्र हो गयी। मेरा ध्यान पैसे कमाने के लिए ज्यादा क्लाइंट जोड़ने और ज्यादा ऑर्डर साइन करवाने में लग गया, मैंने कलीसिया के काम को पूरी तरह अनदेखा कर दिया। इससे कुछ नए सदस्यों का समय रहते सिंचन नहीं हुआ और वे छोड़कर जाने ही वाले थे, सिंचन कार्य में भी बहुत देरी हो गई थी। तब जाकर मैंने देखा कि इन शैतानी फलसफों से जीकर मैं अधिक स्वार्थी और लालची बन रहा था, मैं सिर्फ अपने निजी हितों के बारे में सोचता था। मैं परमेश्वर के सिंचन और पोषण का भरपूर आनंद उठा रहा था, पर अपने कर्तव्य से उसकी कीमत नहीं चुका रहा था। मुझमें जरा भी विवेक या जमीर नहीं था! नाम और रुतबा इंसान को नर्क में घसीटने के शैतान के साधन हैं, ये उसकी चालें हैं। इससे मेरा दिल परमेश्वर से दूर होता चला गया, मैं प्रार्थना करने और परमेश्वर के वचन पढ़ने में भी लापरवाही करने लगा था। अगर ऐसे ही चलता रहता, तो मुझे सत्य हासिल न होता, और मैं परमेश्वर द्वारा बचाए जाने का मौका खो बैठता।
बाद में, मैंने एक और भजन सुना : "इस मौके को खो दोगे तो तुम हमेशा पछताओगे।" "तुम्हें परमेश्वर के बोझ के लिए अभी तुरंत विचारशील हो जाना चाहिए; परमेश्वर के बोझ के प्रति विचारशील होने से पहले तुम्हें इंतजार नहीं करना चाहिए कि परमेश्वर सभी लोगों के सामने अपना धार्मिक स्वभाव प्रकट करे। क्या तब तक बहुत देर नहीं हो जाएगी? परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाने के लिए अभी अच्छा अवसर है। यदि तुम अपने हाथ से इस अवसर को निकल जाने दोगे, तो तुम जीवन भर पछताओगे, जैसे मूसा कनान की अच्छी भूमि में प्रवेश नहीं कर पाया और जीवन भर पछताता रहा, पछतावे के साथ ही मरा। एक बार जब परमेश्वर अपना धार्मिक स्वभाव सभी लोगों पर प्रकट कर देगा, तो तुम पछतावे से भर जाओगे। यदि परमेश्वर तुम्हें ताड़ना नहीं भी देता है, तो भी तुम स्वयं ही अपने आपको अपने पछतावे के कारण ताड़ना दोगे। यह समय ही पूर्ण बनाए जाने का श्रेष्ठ अवसर है; यह बहुत ही अच्छा समय है। यदि तुम गंभीरतापूर्वक परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाने की कोशिश नहीं करोगे, तो उसका काम पूरा हो जाने पर, बहुत देर हो जाएगी—तुम अवसर से चूक जाओगे। तुम्हारी अभिलाषा कितनी भी बड़ी हो, यदि परमेश्वर ने काम करना बंद कर दिया है तो फिर तुम चाहे कितने भी प्रयास कर लो, तुम कभी भी पूर्णता हासिल नहीं कर पाओगे" (मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ)। मैं परमेश्वर के वचनों में उसकी अपेक्षाओं को महसूस कर पा रहा था। वह चाहता है कि हम इस कीमती समय को सँजो सकें, ताकि सत्य खोजकर कर्तव्य निभा, और उसका उद्धार पा सकें। यह परमेश्वर द्वारा पूर्ण किए जाने का अनुसरण करने का अमूल्य अवसर और कर्तव्य निभाने की अहम घड़ी है। कर्तव्य निभाने में, विभिन्न समस्याओं को हल करने के लिए सत्य खोजने का अभ्यास करके, हम अधिक सत्य जान सकते हैं और जीवन में तेजी से आगे बढ़ सकते हैं। अगर मैं प्रशिक्षण पाने के उस मौके का फायदा न उठाकर पैसे के पीछे भागता रहा, तो परमेश्वर का कार्य पूरा होने पर मेरे पास कुछ न होगा, और फिर पछताना बेकार होगा। जीवन में भोजन और आवास पाकर ही संतुष्ट रहना चाहिए। ढेर सारे पैसे कमाने के चक्कर में कर्तव्य की अनदेखी की तो इससे जीवन को ही नुकसान होगा, सत्य हासिल करने और परमेश्वर द्वारा पूर्ण किए जाने का मौका छिन जाएगा। यह बड़ी बेवकूफी होगी!
मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा, "एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो सामान्य है और जो परमेश्वर के प्रति प्रेम का अनुसरण करता है, परमेश्वर के जन बनने के लिए राज्य में प्रवेश करना ही तुम सबका असली भविष्य है और यह ऐसा जीवन है, जो अत्यंत मूल्यवान और महत्वपूर्ण है; कोई भी तुम लोगों से अधिक धन्य नहीं है। मैं यह क्यों कहता हूँ? क्योंकि जो लोग परमेश्वर में विश्वास नहीं करते, वो देह के लिए जीते हैं और वो शैतान के लिए जीते हैं, लेकिन आज तुम लोग परमेश्वर के लिए जीते हो और परमेश्वर की इच्छा पर चलने के लिए जीवित हो। यही कारण है कि मैं कहता हूँ कि तुम्हारे जीवन अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। केवल इसी समूह के लोग, जिन्हें परमेश्वर द्वारा चुना गया है, अत्यंत महत्वपूर्ण जीवन जीने में सक्षम हैं: पृथ्वी पर और कोई इतना मूल्यवान और सार्थकजीवन नहीं जी सकता" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के सबसे नए कार्य को जानो और उसके पदचिह्नों का अनुसरण करो)। परमेश्वर के वचन पढ़कर मैं रोमांचित हो गया। सत्य खोजकर और परमेश्वर को जानकर ही हम एक सार्थक जीवन जी सकते हैं। पहले मैं हमेशा शैतानी फलसफों के अनुसार जीवन जीता था, सोचता था पैसा और रुतबा होने से सब मेरी सराहना करेंगे, और यह एक सार्थक जीवन होगा। पर यह सरासर गलत था। आस्था के बिना, सत्य और जीवन हासिल किए बिना, लोग कुछ भी नहीं समझ सकते। उन्हें तो यह भी नहीं पता कि वे खुद कहाँ से आए हैं, वे नहीं जानते कि इंसान की नियति परमेश्वर तय करता है। इंसान रुतबे और पैसे के पीछे भागता रहता है, पीड़ा सहने के बावजूद पीछे मुड़ने की नहीं सोचता, आपदाएं आने पर उनकी मौत पक्की है—तब उनका पैसा किसी काम नहीं आएगा! पूरी जिंदगी शैतान का खिलौना बनकर नुकसान झेलना बहुत दुखदायी है। मगर आस्था रखकर सत्य खोजना बहुत अलग है। हमारे पास ज्यादा सांसारिक सुख नहीं होता, पर सत्य जानकर, कुछ चीजों की गहरी समझ पाकर, पैसों के लालच और बंधन से मुक्त होकर, हम शांति और प्रबुद्धता हासिल कर सकते हैं। अय्यूब के पास बेशुमार दौलत होने के बाद भी उसे उसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी। उसने हर चीज में परमेश्वर की सत्ता को जानने, परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने पर ध्यान दिया। परीक्षा के समय उसने कोई शिकायत नहीं की, और मजबूती से डटे रहकर गवाही दी। उसे परमेश्वर की स्वीकृति मिली और अंत में उसने उसे दर्शन दिया। अय्यूब का जीवन सार्थक और मूल्यवान था। यह सब सोचकर, मैंने अपना इस्तीफा लिखा। यह देखकर कि मैं अपना फैसला कर चुका था, बॉस ने मुझे रोकने की कोशिश नहीं की। मेरे इस्तीफे की प्रक्रिया आसानी से पूरी हो गई। कंपनी से निकलते समय मुझे बहुत सुकून मिला, मैं आजाद था।
इसके बाद मैं पूरी तरह कर्तव्य निभाने में लग गया और नए सदस्यों के सिंचन में सबके साथ मिलकर काम करने लगा। कुछ समय बाद, नए विश्वासी उत्साहित होकर सभाओं में आने लगे, और कलीसियाई जीवन बेहतर होने लगा। मेरे मन को बहुत शांति मिली! परमेश्वर का धन्यवाद!