70. मैं सिद्धांतों पर क्यों टिकी नहीं रह पाती?

अगस्त 2021 में, मैंने कलीसिया-अगुआ के रूप में अभ्यास शुरू किया। सुसमाचार-कार्य की प्रभारी ली यान के साथ व्यवहार में मैंने देखा, वह अक्सर लोगों की छोटी-मोटी समस्याओं का बतंगड़ बनाकर सबको बताती फिरती थी। वह दूसरों के साथ अच्छी तरह काम नहीं कर पाती थी, और हमेशा तथ्यों के विरुद्ध बातें करती थी। एक बार एक सभा में, उसने कहा कि एक कलीसिया-अगुआ, जिसका तबादला हो गया था, सुसमाचार-कार्य पर ध्यान नहीं देती थी, और कभी उससे उसके कामकाज के बारे में नहीं पूछती थी। जबकि असल में वह अगुआ हमेशा उसके काम की जाँच किया करती थी। साथ ही, वह सूचित करती थी कि काम बढ़िया चल रहा है, जिससे लोग सोचते कि वह जिस काम की प्रभारी है, वह सामान्य रूप से चल रहा है। जबकि वास्तव में, उसने कोई असली काम नहीं किया था। एक सभा में, वह अपने काम की दिक्कतों पर यह कहकर जोर देती रही, कि उसकी टीम के सदस्य बेकार हैं, लेकिन गौर करने पर मैंने पाया कि उसने खुद बहुत सारा काम नहीं किया था, इसलिए उसके पास ऐसा कहने का कोई आधार नहीं था। व्यावहारिक कार्य न करने और दूसरों को दोष देने को लेकर मैंने उससे सवाल किया। वह जवाब में कुछ नहीं बोली। मुझे लगा, वह थोड़ा आत्म-चिंतन करेगी, लेकिन देखकर हैरत हुई कि उसने मेरी सहयोगी बहन लियू को संदेश भेजा कि वह मुझसे कोई सरोकार नहीं रखना चाहती, कि मैंने समस्या देखकर, उसकी असली मुश्किलें समझे बिना, आँख मूँदकर उसका निपटान किया था। उसने यह भी कहा कि वह मुझ जैसी नहीं हो सकती, वह भाई-बहनों से प्रेम और सब्र से पेश आएगी। यह पढ़कर पल भर के लिए मैं भौचक्की रह गई। उसके काम में बहुत-सी समस्याएँ थीं। मैं बस उनके बारे में बता रही थी—यह काट-छाँट और निपटान से कोसों दूर था। वह कैसे कह सकती है कि मैंने आँख मूँदकर उसका निपटान किया? ऐसा बिलकुल नहीं हुआ था। वह इतनी ढुलमुल और कपटी कैसे हो सकती है? मैं बहन लियू को चीजें स्पष्ट करना चाहती थी, लेकिन संदेश पूरा करने से पहले ही मैं झिझक गई। अगर मैं ली यान के मसले स्पष्ट करते या बताते हुए संदेश भेजती हूँ, तो बहन लियू को लग सकता है कि समस्याओं से सामना होने पर मैं खुद को जान नहीं पाती, और लोगों से सही बरताव नहीं करती। यह सोचकर मैंने संदेश नहीं भेजा। बाद में मैंने सुना कि ली यान दूसरों के सामने यह कहते हुए बहाने से अपना दिल खोल रही थी, कि पृष्ठभूमि जाने बिना मैंने आँख मूँदकर उसका निपटान किया और उसे हताश किया। यह सुनकर मुझे बहुत बेचैनी हुई। मैं समझ नहीं पाई कि भविष्य में उसके कामकाज की जाँच कैसे कर पाऊँगी, और मुझे लगा कि उसके साथ निभाना बहुत मुश्किल है। कुछ दिन बाद, काम की जरूरतों के कारण, हमने ली यान की टीम के कुछ लोगों का सिंचन-कार्य के लिए तबादला करना चाहा। मुझे हैरत हुई कि जैसे ही मैंने उसे बताया, उसने नाराज होकर कहा, "अगर तुम्हें उनका तबादला करना है, तो कर दो। मुझे परवाह नहीं। वैसे भी, मुझे यकीन है, मेरे कामकाज के नतीजे अच्छे नहीं होंगे।" बाद में वह मुझसे खुल्लमखुल्ला बोली, कि सिंचन-कार्य की प्रभारी बहन से उसकी नहीं बनती, इसलिए वह उनका तबादला नहीं करना चाहती। उसने यह भी कहा, कि अगर उस बहन ने मेरे साथ और गड़बड़ की, तो मुझे दोष न देना कि मैं उसके साथ अच्छे से पेश क्यों नहीं आई। उसकी बातों में निहित धमकी सुनकर मुझे लगा कि उसके साथ काम करना ही मुश्किल नहीं, बल्कि उसकी मानवता भी बुरी है, और उसके काम की जाँच करते समय मुझे सावधान रहना होगा, वरना वह मेरे खिलाफ कुछ ढूँढ़ लेगी।

एक बार, एक उच्च अगुआ ने हमें सफाई-कार्य सौंपा, ताकि पता लगा सके कि कलीसिया में दुष्कर्मी और मसीह-विरोधी तो नहीं हैं, और अगर कोई नजर आए, तो उसे हटाकर कलीसिया से निकाल सके। मेरे दिमाग में ली यान आई। उसकी मानवता अच्छी नहीं थी और वह सत्य स्वीकारने से मना करती थी। वह समस्याएँ बताने वालों के खिलाफ मन में वैर रखती थी, वह चीजों को तोड़ती-मरोड़ती थी, काले-सफ़ेद में घालमेल कर उनकी पीठ पीछे अपने पूर्वाग्रह फैलाती थी। मुझे लगा, उसके सामान्य बरताव की जाँच करनी चाहिए। लेकिन फिर मैंने सोचा कि किस तरह ली यान ने अपने कामकाज की जाँच करने पर मेरा प्रतिरोध किया था, और मेरी पीठ पीछे कहा था कि मैंने आँख मूँदकर उसका निपटान किया था। अगर इस बार मैं उसके मूल्यांकन एकत्र करने गई, तो क्या भाई-बहन यह नहीं सोचेंगे कि मैं उससे बदला लेने के लिए इस मौके का फायदा उठा रही हूँ? क्या मेरी सहयोगी यह नहीं सोचेगी कि मुझे रुतबा बहुत प्यारा है, और मैं समस्याएँ बताने वाले हर व्यक्ति पर हमला करने के मौके ढूँढ़ती हूँ? फिर हर व्यक्ति डरकर मुझसे दूर रहेगा, और अगर उन्होंने मेरी समस्याएँ समझने की कोशिश कर मेरे एक नकली अगुआ होने की शिकायत कर दी, तो बड़ी समस्या हो जाएगी। मैंने सोचा, जाने दो। पहले कोई और उसकी समस्याएँ समझ ले, उसके बाद देखा जाएगा, वरना इस मामले में बोलने वाली मैं ही अव्वल रही, तो मुझे गलत समझा जा सकता है। इसलिए, मैंने मसला नहीं उठाया। जल्दी ही बहन लियू ने कहा कि ली यान की मानवता अच्छी नहीं है और वह उसके बरताव की जाँच करना चाहती है। उसके यह कहने पर मैं खुश भी हुई और थोड़ा दोषी भी महसूस किया। मैं ली यान की यह कमी पहले से जानती थी और मुझे उसके बरताव की जाँच करनी चाहिए थी, पर मैंने इस डर से कुछ नहीं कहा कि दूसरे गलती से यह समझ लेंगे कि मैं उस पर हमला कर रही हूँ। मैं कलीसिया के कार्य की रक्षा नहीं कर रही थी। लेकिन कम-से-कम किसी और ने कुछ कहा था, तो मुझे अब इस बारे में फिक्र करने की जरूरत नहीं थी। ली यान के मूल्यांकन इकट्ठे करने के बाद, हमने देखा कि उन्हें लिखने वाले ज्यादातर लोग उसे ठीक से नहीं जानते थे, और उन्होंने बहुत थोड़ी जानकारी दी थी। कुछ ही लोगों ने उसकी समस्याएँ देखी थीं। मैं जान गई कि इन हालात में उन लोगों को ढूँढ़ना सही होगा, जिन्होंने लंबे समय तक उससे व्यवहार किया हो, लेकिन मुझे चिंता हुई कि दूसरे कहेंगे कि मैं उसे निशाना बना रही हूँ, निजी बदले के लिए इसका इस्तेमाल कर रही हूँ, इसलिए मैंने कुछ नहीं कहना चाहा। तभी बहन लियू ने कहा कि हमें मामले पर नजर रखनी चाहिए, और मैंने आगे कुछ नहीं कहा।

बाद में मैंने देखा कि दूसरे भाई-बहनों ने ली यान को सुझाव दिए थे, और उसने न सिर्फ उन्हें नहीं माना था, बल्कि उनके खिलाफ आरोप भी लगाए थे। एक बार, एक सिंचनकर्मी ने ली यान को थोड़ा फीडबैक दिया कि सुसमाचार-कर्मियों ने जिन्हें उपदेश दिया था, उनमें से कुछ की मानवता अच्छी नहीं है और वे सिद्धांतों पर खरे नहीं उतरते। ली यान ने न केवल इसे नहीं माना, बल्कि सुसमाचार-टीम के बारे में भाई-बहनों के सामने अपने पूर्वाग्रह और शिकायतें भी रख दीं, और कहा कि वे सभी अपने कर्तव्य में सिद्धांतों का पालन कर रहे हैं, लेकिन चूँकि सिंचन-कर्मियों ने उन लोगों से सत्य पर स्पष्ट संगति नहीं की, जिन्हें परिवर्तित करने में उन लोगों ने कड़ी मेहनत की थी, इसलिए कुछ नए विश्वासी अफवाहों से गुमराह होकर चले गए थे। एक सभा में, बहन लियू और मैंने इस समस्या के सार पर संगति की, और ली यान के बरताव को निशाना बनाया। इसके बाद हमने उससे कई बार और संगति की। मुझे लगा, वह आत्म-चिंतन करेगी, लेकिन वह टस-से-मस नहीं हुई, और सिंचन-कर्मियों के खिलाफ अपने पूर्वाग्रह साझा करती रही। उसने कहा कि वह खिन्न है और नहीं समझ पा रही कि अपना काम कैसे करे। उसकी बोई इस कलह के कारण, कुछ भाई-बहन आपस में भुनभुनाने लगे, उनमें सामंजस्यपूर्ण सहयोग नहीं रहा। मैं जानती थी कि ली यान निरीक्षक होने लायक नहीं है और उसे तुरंत बरखास्त कर दिया जाना चाहिए। मुझे शुरू में ही तेजी से जाँच-पड़ताल कर उसे बरखास्त न करने पर पछतावा हुआ। मैं जानती थी कि उसकी मानवता बुरी है, फिर भी मैंने उसे कलीसिया का कार्य बाधित करने के और मौके दिए। मुझे बहुत बुरा लगा। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना कर आत्म-चिंतन करने और खुद को जानने में मार्गदर्शन करने की विनती की।

अपनी खोज में मैंने पाया कि परमेश्वर के वचनों में कहा गया है : "वह कैसा स्वभाव होता है, जब लोग अपने कर्तव्य के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं लेते, उसे लापरवाह और अनमने ढंग से निभाते हैं, जी-हुजूरी करने वालों जैसे कार्य करते हैं, और परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा नहीं करते? यह चालाकी है, यह शैतान का स्वभाव है। इंसान के जीवन-दर्शनों में चालाकी सबसे अधिक उलल्रेखनीय है। लोग सोचते हैं कि अगर वे चालाक न हों, तो वे दूसरों को नाराज करेंगे और खुद की रक्षा करने में असमर्थ होंगे; उन्हें लगता है कि कोई उनसे आहत या नाराज न हो जाए, इसलिए उन्हें पर्याप्त रूप से चालाक होना चाहिए, जिससे वे खुद को सुरक्षित रख सकें, अपनी आजीविका की रक्षा कर सकें, और जन-साधारण के बीच पाँव जमाने के लिए एक सुदृढ़ जगह हासिल कर सकें। सभी अविश्वासी शैतान के फलसफे के अनुसार जीते हैं। वे सभी जी-हुजूरी करते हैं और किसी को ठेस नहीं पहुँचाते। तुम परमेश्वर के घर आए हो, तुमने परमेश्वर के वचन पढ़े हैं, और परमेश्वर के घर के उपदेश सुने हैं। तो तुम हमेशा जी-हुजूरी क्यों करते हो? जी-हुजूरी करने वाले केवल अपने हितों की रक्षा करते हैं, कलीसिया के हितों की नहीं। जब वे किसी को बुराई करते और कलीसिया के हितों को नुकसान पहुँचाते देखते है, तो इसे अनदेखा कर देते हैं। उन्हें जी-हुजूरी करने वाला बनना पसंद है, और वे किसी को ठेस नहीं पहुँचाते। यह गैर-जिम्मेदाराना है, और ऐसा व्यक्ति बहुत चालाक होता है, भरोसे लायक नहीं होता" (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने स्‍वभाव का ज्ञान उसमें बदलाव की बुनियाद है)। परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन से मैंने समझा कि अपनी छवि और रुतबा बनाए रखने की कोशिश में ली यान को नाराज कर देने के डर से, उसे कलीसिया का कार्य बाधित करते देखकर भी मैंने बचाने की कोशिश नहीं की। इसके बजाय, मैं एक आँख खुली और एक बंद रखने वाली चापलूस थी। यह गैरजिम्मेदाराना, कपटी बरताव था। अविश्वासी शैतानी फलसफों से जीते हैं, ताकि अपने हितों की रक्षा कर सकें। वे बोलते वक्त सावधानी से दूसरों को देखकर जानने की कोशिश करते हैं कि हवा किस ओर बह रही है—वे बहुत चालबाज होते हैं। अपने कर्तव्य में मेरा रवैया अविश्वासियों जैसा ही था। मैंने स्पष्ट देखा कि ली यान अच्छी मानवता वाली नहीं है, वह कलीसिया के कार्य में बाधक बन चुकी है। उसे बरखास्त कर दिया जाना चाहिए था। लेकिन मैं नहीं चाहती थी कि दूसरे यह सोचें कि मैं उसकी कमियाँ निकालकर बदला ले रही हूँ, इसलिए मैंने शंका जगाने वाला कोई काम करने की कोशिश न कर मसले से परहेज किया, और ली यान से निपटने का काम टाल दिया। मैं तब तक प्रतीक्षा करना चाहती थी, जब तक दूसरे भाई-बहन उसे न समझ लें। अपनी शोहरत और रुतबा बचाने की चाह में, यह जानकर भी कि वह कलीसिया-कार्य को बाधित कर रही है, मैंने अभी भी कलीसिया के हितों को नुकसान होने दिया और सिद्धांतों का पालन नहीं किया, उजागर कर उसे निपटाया नहीं। मैं सच में चालबाज, स्वार्थी और घिनौनी थी। यह सोचकर मुझे बहुत पछतावा हुआ, मैंने दोषी महसूस किया। मैं जान गई कि मैं एक आँख खुली और एक बंद रखकर काम नहीं कर सकती, बल्कि मुझे ली यान का मसला सिद्धांत के अनुसार निपटाना चाहिए—मैं अपने ही हितों की रक्षा करती नहीं रह सकती।

इसके बाद बहन लियू और मैं ली यान से बात करने गईं, और उजागर किया कि उसने किस तरह से दूसरों के बारे में चीजें तोड़-मरोड़कर मनमाने ढंग से पूर्वाग्रह फैलाए, भाई-बहनों के बीच रिश्ते खराब कर उन्हें नुकसान पहुँचाया, और कैसे वह कलीसिया के कार्य में बाधा बन गई। मुझे हैरानी हुई कि वह इसे मानने को बिल्कुल तैयार नहीं हुई, बल्कि उल्टा हमें फटकारकर गुस्से से बोली, "मैंने तुम्हें समस्याएँ बताईं, और तुमने न केवल उन्हें दूर नहीं किया, बल्कि मुझमें ही कमियाँ निकालीं। मैं देख सकती हूँ कि तुम कोई व्यावहारिक कार्य नहीं करती।" यह देखकर कि खुद को जाने बिना वह हम पर हावी हो रही है, हमने परमेश्वर के संगत वचनों से उसकी कथनी और करनी की प्रकृति और परिणामों का विश्लेषण किया, लेकिन वह कुछ भी मानने को तैयार नहीं हुई—वह अपने मामले की पैरवी कर झगड़ती रही।

बाद में, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा, जिससे मुझे ली यान का सार समझने में मदद मिली। परमेश्वर के वचन कहते हैं, "जो लोग अक्सर कलीसिया के कार्य और जीवन को अस्त-व्यस्त करते हैं, जो परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन-प्रवेश में गंभीर हस्तक्षेप करते हैं, वे अविश्वासी और दुष्ट लोग होते हैं। कलीसिया को उन्हें निकाल बाहर करना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति अक्सर कलीसिया के कार्य और जीवन को बाधित करता है, काट-छाँट और निपटाए जाने को स्वीकार नहीं करता, हमेशा विकृत औचित्य देता है, तो फिर वह व्यक्ति भले ही कोई भी हो, उसने पहले कैसा भी व्यवहार किया हो, उसे कलीसिया से निकाल बाहर करना चाहिए। ऐसा करने का एकमात्र उद्देश्य कलीसिया के कार्य को सामान्य रूप से आगे बढ़ाना होता है, परमेश्वर के चुने हुए लोगों के हितों की रक्षा करना होता है। ऐसा करना सत्य के सिद्धांतों के अनुसार और परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप होता है" (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ)। "दुष्ट स्वभाव के लोग जो भी गलतियाँ या बुरे काम करते हैं, उन्हें कोई उजागर नहीं कर पाता, न ही कोई उनका निपटारा या काट-छाँट कर पाता है। यदि कोई उन्हें उजागर और उनका अपमान करता है, तो वे भड़क जाते हैं; वे बदला लेते हैं और उस मुद्दे को कभी भूलते नहीं हैं। दूसरों के प्रति उनमें न तो धैर्य होता है, न सहनशीलता और न ही स्वीकृति का भाव होता है। उनका व्यवहार किस सिद्धांत पर आधारित होता है? 'मैं दुनिया में सबका अपमान कर दूँगा, बजाय इसके कि कोई मेरा अपमान करे।' वे किसी के द्वारा भी अपमान नहीं सहते। क्या यही दुष्टों का तर्क होता है? दुष्टों का तर्क ऐसा होता है। किसी को उनका अपमान करने की अनुमति नहीं है। उन्हें हल्की-सी ठेस भी अस्वीकार्य है, वे ठेस पहुँचाने वाले हर इंसान से नफरत करेंगे। वे उस इंसान को कभी नहीं छोड़ेंगे, कभी इस बात को नहीं भूलेंगे—ऐसे होते हैं दुष्ट लोग" (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ)। परमेश्वर के वचनों से मैंने देखा कि बुरे लोगों का स्वभाव बुरा होता है और वे सत्य जरा भी नहीं स्वीकारते। जो भी उनकी समस्याएँ उजागर कर बताता है, वे उसके प्रति घृणा पाल लेते हैं, फिर उन्हें अपना दुश्मन मानकर उन पर हमला करके बदला भी ले सकते हैं। मैंने ली यान को इस खुलासे पर मापा। समस्याएँ आने पर वह कभी आत्म-चिंतन या अपने बारे में जानने की कोशिश नहीं करती थी, जो भी उसे सुझाव देता उससे घृणा करती थी, सत्य को तोड़ती-मरोड़ती थी, काले-सफेद का घालमेल करती थी, बार-बार दूसरों के बारे में पूर्वाग्रह और शिकायतें फैलाती थी, और भाई-बहनों के रिश्तों में समस्याएँ खड़ी करती थी। इससे वे मिल-जुलकर काम न कर पाते, और सुसमाचार-कार्य को बाधित कर उसमें रुकावट डालते। दूसरों ने कई बार उसे संकेत दिए और उसकी मदद की, पर उसने कभी नहीं माना। वह उनकी विरोधी हो गई, जरा भी पछताए बिना उसने उन पर झूठे आरोप लगाए। वह प्रकृति से ही सत्य से घृणा करती थी और उससे चिढ़ती थी। वह बुरी इंसान के रूप में उजागर हो चुकी थी, और अगर हम उसे कलीसिया में रहने देते, तो इससे कलीसिया के कार्य में और मुश्किलें आतीं। इसलिए, बहन लियू और मैंने सिद्धांतों के आधार पर ली यान के बरताव की अपनी समझ को लेकर संगति की, और मतदान से भाई-बहनों की स्वीकृति लेकर उसे बरखास्त कर दिया। हमने उसे अलग-थलग रहकर आत्म-चिंतन करने को कहा, और तय किया कि ज्यादा बाधाएं खड़ी करने पर उसे निकाल बाहर करेंगे।

बाद में, कुछ भाई-बहनों ने बारी-बारी से कहा कि ली यान के साथ काम करने में बड़ी लाचारी होती थी। वह हमेशा लोगों को ढिठाई से डांटती रहती थी, और बहुत-से लोग उससे डरते थे। जब वह उनके काम की जाँच करने आती, तो सभी लोग समय से पहले तैयार हो जाते, इस डर से कि अगर वे कोई चीज ठीक से न समझा सके, तो वह उन्हें डांटेगी। मुझे बड़ी बेचैनी हुई। ली यान ने बहुत बुराई की थी, भाई-बहनों का बहुत दिल दुखाया था। कलीसिया-अगुआ होने के बावजूद मैंने एक दुष्कर्मी को देखकर भी उसे नहीं निपटाया। तो क्या मैंने कोई व्यावहारिक प्रयोजन पूरा किया? मैं असली काम नहीं कर रही थी।

कुछ दिन तक मैं सोच-विचार करती रही कि दूसरे दुष्कर्मियों और मसीह-विरोधियों को सही ढंग से निपटाने के बावजूद मैं ली यान के मामले से क्यों बचती रही और उसे क्यों नहीं निपटाया। मैंने परमेश्वर के कुछ वचन पढ़े। "मसीह-विरोधी चाहे कोई भी कार्य कर रहे हों, वे पहले अपना हित देखते हैं, वे तभी कार्य करते हैं जब वे हर चीज पर अच्छी तरह सोच-विचार कर लेते हैं; वे बिना समझौते के, सच्चाई से, ईमानदारी से और पूरी तरह से सत्य का पालन नहीं करते, बल्कि वे चुन-चुन कर अपनी शर्तों पर ऐसा करते हैं। यह कौन-सी शर्त होती है? शर्त है कि उनका रुतबा और प्रतिष्ठा सुरक्षित रहे, उन्हें कोई नुकसान न हो। यह शर्त पूरी होने के बाद ही वे तय करते हैं कि क्या करना है। यानी मसीह-विरोधी इस बात पर गंभीरता से विचार करते हैं कि सत्य के सिद्धांतों, परमेश्वर के आदेशों और परमेश्वर के घर के कार्य से किस ढंग से पेश आया जाए या उनके सामने जो चीजें आती हैं, उनसे कैसे निपटा जाए। वे इन बातों पर विचार नहीं करते कि परमेश्वर की इच्छा कैसे पूरी की जाए, परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाने से कैसे बचा जाए, परमेश्वर को कैसे संतुष्ट किया जाए या भाई-बहनों को कैसे लाभ पहुँचाया जाए; वे लोग इन बातों पर विचार नहीं करते। मसीह-विरोधी किस बात पर विचार करते हैं? वे सोचते हैं कि कहीं उनके अपने रुतबे और प्रतिष्ठा पर तो आँच नहीं आएगी, कहीं उनकी प्रतिष्ठा तो कम नहीं हो जाएगी। अगर सत्य के सिद्धांतों के अनुसार कुछ करने से कलीसिया के काम और भाई-बहनों को लाभ पहुँचता है, लेकिन इससे उनकी अपनी प्रतिष्ठा को नुकसान होता है और लोगों को उनके वास्तविक कद का एहसास हो जाता है और पता चल जाता है कि उनकी प्रकृति और सार कैसा है, तो वे निश्चित रूप से सत्य के सिद्धांतों के अनुसार कार्य नहीं करेंगे। यदि व्यावहारिक काम करने से और ज्यादा लोग उनके बारे में अच्छी राय बना लेते हैं, उनका सम्मान और प्रशंसा करते हैं, या उनकी बातों में अधिकार आ जाता है जिससे और अधिक लोग उनके प्रति समर्पित हो जाते हैं, तो फिर वे काम को उस प्रकार करना चाहेंगे; अन्यथा, वे परमेश्वर के घर या भाई-बहनों के हितों पर ध्यान देने के लिए अपने हितों की अवहेलना करने का चुनाव कभी नहीं करेंगे। यह मसीह-विरोधी की प्रकृति और सार है। क्या यह स्वार्थ और नीचता नहीं है?" (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और अपने व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ धोखा तक कर देते हैं (भाग तीन))। "यदि कोई कहता है कि उसे सत्य से प्रेम है और वह सत्य का अनुसरण करता है, लेकिन सार में, जो लक्ष्य वह हासिल करना चाहता है, वह है अपनी अलग पहचान बनाना, दिखावा करना, लोगों का सम्मान प्राप्त करना और अपने हित साधना, और उसके लिए अपने कर्तव्य का पालन करने का अर्थ परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना या उसे संतुष्ट करना नहीं है बल्कि प्रतिष्ठा और हैसियत प्राप्त करना है, तो फिर उसका अनुसरण अवैध है। ऐसा होने पर, जब कलीसिया के कार्य की बात आती है, तो उनके कार्य एक बाधा होते हैं या आगे बढ़ने में मददगार होते हैं? वे स्पष्ट रूप से बाधा होते हैं; वे आगे नहीं बढ़ाते। कुछ लोग कलीसिया का कार्य करने का झंडा लहराते फिरते हैं, लेकिन अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा और हैसियत के पीछे भागते हैं, अपनी दुकान चलाते हैं, अपना एक छोटा-सा समूह, अपना एक छोटा-सा साम्राज्य बना लेते हैं—क्या इस प्रकार का व्यक्ति अपना कर्तव्य निभा रहा है? वे जो भी कार्य करते हैं, वह अनिवार्य रूप से कलीसिया के कार्य को बाधित करता है, अस्त-व्यस्त करता है और बिगाड़ता है। उनके हैसियत और प्रतिष्ठा के पीछे भागने का क्या परिणाम होता है? पहला, यह इस बात को प्रभावित करता है कि परमेश्वर के चुने हुए लोग परमेश्वर के वचनों को कैसे खाते-पीते हैं और सत्य को कैसे समझते हैं, यह उनके जीवन-प्रवेश में बाधा डालता है, यह उन्हें परमेश्वर में विश्वास के सही मार्ग में प्रवेश करने से रोकता है और उन्हें गलत मार्ग पर ले जाता है—जो चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचाता है, और उन्हें बरबाद कर देता है। और यह अंततः कलीसिया के साथ क्या करता है? यह विघटन, रुकावट और हानि है। यह लोगों के प्रसिद्धि और हैसियत के पीछे भागने का परिणाम है" (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और अपने व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ धोखा तक कर देते हैं (भाग एक))। परमेश्वर के वचन खुलासा करते हैं कि मसीह-विरोधी अपने कामों में सिर्फ अपनी शोहरत और रुतबे का ध्यान रखते हैं। जो काम करने से उनकी शोहरत बढ़ सकती है, मसीह-विरोधी बस वही करते हैं। अगर सिद्धांत के अनुसार काम करने से उनकी शोहरत या रुतबे को हानि हो, तो मसीह-विरोधी सिद्धांतों से किनारा कर सिर्फ इसी बारे में सोचते हैं कि किस चीज से उनके निजी हितों की रक्षा होगी, किससे उन्हें लाभ होगा। वे सच में स्वार्थी और बुरे होते हैं। मैं मसीह-विरोधी की तरह ही काम कर रही थी। मुझे बहुत पहले ही पता चल गया था कि ली यान की मानवता खराब है, और वह सत्य का अनुसरण नहीं करती। सुझाव देने वाले हर इंसान से वह घृणा करती, उनकी गलतियाँ ढूँढ़ती, उनकी आलोचना करती और उन पर हमले करती थी। उसे तुरंत बरखास्त कर चीजों की देखभाल न करने से कलीसिया-कार्य में रुकावट पैदा होती। लेकिन चूँकि वह मेरे प्रति पूर्वाग्रह रखती थी, इसलिए मैं उस हालत में उसकी जाँच-पड़ताल कर उसके बारे में पता लगाने से डरती थी, कि दूसरे लोग मुझे गलत समझेंगे कि मैं उसे दंडित कर रही हूँ, यहाँ तक कि मुझे नकली अगुआ भी समझ सकते हैं। मुझे लगा कि मेरा पद खतरे में पड़ जाएगा। और ली यान के स्वभाव के कारण मुझे फिक्र थी कि अगर मैंने उसे बरखास्त कर दिया, तो वह पीठ पीछे मेरी आलोचना करेगी, यहाँ तक कि मेरी निंदा या शिकायत भी कर सकती है। मुझे लगा, उससे निपटने से मेरा नुकसान ही होगा, फायदा नहीं, और इससे मेरी शोहरत और ओहदे पर आसानी से बुरा असर पड़ सकता है, इसलिए मैंने इंतजार कर देखने का रवैया अपनाया और चीजें नहीं संभालीं। मैं सच में चालबाज और स्वार्थी थी, मुझमें मानवता नहीं थी। पहले जब सफाई-कार्य के दौरान मुझे ऐसे लोग मिले थे, जिनका सफाया कर बाहर निकालना चाहिए था, तो मैं सिद्धांत के अनुसार यह काम कर पाई थी। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि मैं उनमें से ज्यादातर लोगों को नहीं जानती थी। इससे भी अहम बात यह थी कि वे मेरी शोहरत और रुतबे के लिए खतरा नहीं थे। उन्हें कलीसिया से निकालने पर भाई-बाहन यही सोचते कि एक अगुआ के तौर पर मुझे सत्य की समझ और विवेक है, कि मैं व्यावहारिक कार्य कर सकती हूँ। लेकिन ली यान से निपटते समय, इसे अपने पद से सीधे जुड़ा देखकर, मैं रेत में सिर घुसाए शुतुरमुर्ग की तरह अपने ही हितों की रक्षा कर रही थी। पहले मैं सिद्धांतों पर टिकी रह पाती थी, जो मेरे निजी हितों के न जुड़े होने पर आधारित था, इसलिए नहीं कि मैं ईमानदारी से कलीसिया का कार्य ठीक से करना चाहती थी। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि अपनी शोहरत और रुतबा बचाने के लिए काम करना सार रूप में कलीसिया के कार्य को नुकसान पहुँचाकर बाधित करना है। यह काम की सामान्य प्रगति में रुकावट डालना है। अपनी शोहरत और पद की रक्षा की चाह से मैंने एक बुरे इंसान को जल्दी नहीं निपटाया। इस समस्या की प्रकृति बहुत गंभीर है। यह सिर्फ थोड़ी-सी भ्रष्टता दिखाना नहीं है, बल्कि एक दुष्कर्मी को बचाना है, कलीसिया का कार्य बाधित करने में उसे बढ़ावा देना है। यह शैतान के नौकर की तरह काम करना और बुराई करना है। यह अंश खास तौर से मार्मिक था : "अगर किसी दुष्ट व्यक्ति में तुम्हें कोई बुरा सार मिलता है, तो तुम्हें ऐसे व्यक्ति को कोई बड़ी दुष्टता करने से पहले रोकना या उसे बाहर कर देना चाहिए, ताकि उसके द्वारा न्यूनतम नुकसान हो। यह बुद्धिमानी भरा विकल्प है। उसके बड़ी मुसीबत बन जाने तक का इंतजार करना प्रतिक्रियात्मक होगा। इससे जाहिर होता है कि अगुआ और कार्यकर्ता काफी मूर्ख हैं और उनके क्रियाकलापों में कोई सिद्धांत नहीं है" (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ)। परमेश्वर के वचनों पर मनन करके मुझे बहुत भय लगा, मैंने सचमुच दोषी महसूस किया। एक अगुआ के तौर पर मेरा काम परमेश्वर के चुने हुए लोगों को दुष्कर्मियों के दमन और गड़बड़ियों से बचाना, और कलीसिया के उचित जीवन की रक्षा करना था, ताकि कलीसिया का कार्य उचित और व्यवस्थित ढंग से आगे बढ़े। लेकिन जब कलीसिया में एक दुष्ट व्यक्ति प्रकट हुआ, तो मैंने पैर पीछे खींच लिए और कुछ नहीं किया। मैं एक अगुआ की जिम्मेदारियाँ नहीं निभा रही थी, जिसका अर्थ था कि लोग दुष्कर्मी से लाचार और बाधित हो गए थे, और उनके जीवन को हानि हो रही थी। कलीसिया का कार्य भी बाधित हो गया था। मैंने जो किया था, वह परमेश्वर के लिए घृणास्पद था!

कुछ दिन तक मैं सोच-विचार करती रही। मुझे अच्छी तरह मालूम था कि एक दुष्कर्मी कलीसिया का कार्य बाधित कर रहा है, और दुष्कर्मियों को जल्दी से निपटाना सिद्धांतों के अनुरूप है। तो फिर मैं हमेशा क्यों डरती रही कि दूसरे मुझे गलत समझेंगे और कहेंगे कि मैं उस पर हमला कर रही हूँ? किसी पर हमला करना असल में क्या होता है? परमेश्वर के वचनों में मैंने यह पढ़ा : "मसीह-विरोधियों के लिए दूसरों को परेशान करना और सताना सबसे आम बात है और यह एक अभिव्यक्ति है। अपनी हैसियत बनाए रखने के लिए मसीह-विरोधी हमेशा माँग करते हैं कि दूसरे उनका आज्ञापालन करें और उनकी बात मानें। अगर वे पाते हैं कि कोई व्यक्ति उनकी बात नहीं मानता या उनका विरोध करता है, तो वे उस व्यक्ति को वश में करने के लिए उसे दबाने और सताने की तिकड़म करते हैं। मसीह-विरोधी अक्सर उन लोगों को दबा देते हैं, जिनकी राय उनकी राय से भिन्न होती है। वे अक्सर उन लोगों को दबा देते हैं, जो सत्य का अनुसरण करते हैं और निष्ठापूर्वक अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं। वे अक्सर उन अपेक्षाकृत शालीन और ईमानदार लोगों को दबा देते हैं, जो उनके सामने झुकते नहीं और उनकी चापलूसी नहीं करते। वे उन लोगों को दबा देते हैं, जिनके साथ उनकी नहीं बनती या जो उनके आगे झुकते नहीं। मसीह-विरोधी दूसरों के साथ सत्य के सिद्धांतों के अनुसार व्यवहार नहीं करते। वे लोगों के साथ उचित व्यवहार नहीं कर सकते। जब वे किसी को नापसंद करने लगते हैं, जब उन्हें लगता है कि किसी ने उनसे दिल से हार नहीं मानी है, तो वे उस व्यक्ति पर हमला करने और उसे सताने के मौके और बहाने ढूँढ़ते हैं, झूठे दिखावे तक करते हैं, यहाँ तक कि उन्हें दबाने के लिए परमेश्वर के घर का झंडा भी उठा लेते हैं। वे तब तक नहीं मानते, जब तक लोग नतमस्तक नहीं हो जाते और उन्हें मना करने की उनकी हिम्मत नहीं टूट जाती; वे तब तक नहीं मानते, जब तक कि लोग उनकी हैसियत और अधिकार नहीं स्वीकार लेते, और उनके बारे में कोई अनुमान लगाने की हिम्मत किए बिना, उनके प्रति समर्थन और आज्ञाकारिता व्यक्त करते हुए, एक मुस्कान के साथ उनका अभिवादन नहीं करते। किसी भी स्थिति में, किसी भी समूह में, दूसरों के साथ मसीह-विरोधी के व्यवहार पर 'निष्पक्षता' शब्द लागू नहीं होता, और उन भाई-बहनों के साथ उनके व्यवहार पर 'प्रेम' शब्द लागू नहीं होता, जो वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करते हैं। मसीह-विरोधी उन लोगों को अपनी बगल में चुभता काँटा मानते हैं जिनसे उनकी हैसियत को खतरा होता है, और वे उन्हें सताने के मौके और बहाने ढूँढ़ते हैं। वे अवज्ञा का मुकाबला उत्पीड़न से करते हैं, और तब तक नहीं रुकते जब तक कि व्यक्ति वश में नहीं आ जाता। उनका ऐसा करना सत्य के सिद्धांतों के बिलकुल विपरीत और सत्य के साथ शत्रुता है। तो क्या उनसे निपटा जाना चाहिए और उनकी काट-छाँट की जानी चाहिए? इतना ही पर्याप्त नहीं—उन्हें प्रकट करने, पहचानने और उनका चरित्र-चित्रण करने से कम कुछ काम नहीं आएगा। मसीह-विरोधी सभी के साथ अपनी पसंद, इरादों और उद्देश्यों के अनुसार व्यवहार करता है। उसके अधिकार के तहत, जो कोई धार्मिकता की भावना रखता है, जो कोई औचित्य के साथ बोल सकता है, जो कोई अन्याय से लड़ने का साहस करता है, जो कोई सत्य के सिद्धांत बनाए रखता है, जो कोई वास्तव में प्रतिभाशाली और विद्वान है, जो कोई परमेश्वर के लिए गवाही दे सकता है—ऐसे सभी लोगों को मसीह-विरोधी की ईर्ष्या का सामना करना पड़ेगा, और उन्हें दबा दिया जाएगा, अलग कर दिया जाएगा, यहाँ तक कि मसीह-विरोधी के पैरों के नीचे रौंद दिया जाएगा। ऐसी ही घृणा के साथ मसीह-विरोधी अच्छे लोगों, सत्य का अनुसरण करने वाले लोगों के साथ व्यवहार करता है। कहा जा सकता है कि मसीह-विरोधी जिन लोगों से ईर्ष्या करता है और जिनका दमन करता है, उनमें से ज्यादातर लोग सकारात्मक और अच्छे लोग होते हैं। उनमें से ज्यादातर ऐसे लोग हैं, जिन्हें परमेश्वर बचाएगा, जिनका परमेश्वर उपयोग कर सकता है, जिन्हें परमेश्वर पूर्ण करेगा। जिन्हें परमेश्वर बचाएगा, जिनका उपयोग करेगा और जिन्हें पूर्ण करेगा, उन लोगों के खिलाफ दमन और बहिष्कार की ऐसी चालें चलकर, क्या मसीह-विरोधी परमेश्वर के विरोधी नहीं हो जाते? क्या वे परमेश्वर के प्रतिरोधी नहीं हैं?" (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद ग्यारह : वे व्यवहार और काट-छाँट स्वीकार नहीं करते और न ही गलत काम करने पर उनमें पश्चात्ताप का रवैया होता है, बल्कि इसके बजाय वे धारणाएँ फैलाते हैं और परमेश्वर के बारे में सार्वजनिक रूप से निर्णय सुनाते हैं)। परमेश्वर के वचनों पर मनन कर मैंने जाना कि किसी पर हमला करना और सिद्धांतों का पालन करना दो अलग बातें हैं। एक पहलू यह है कि हमें व्यक्ति के काम में उसकी मंशाएँ देखनी चाहिए, और दूसरा यह कि हमें यह देखना चाहिए कि क्या दूसरों के साथ उसका बरताव परमेश्वर के वचनों पर आधारित है। अगर सत्य के सिद्धांतों के आधार पर पता चले कि वह दुष्कर्मी या मसीह-विरोधी है, तो उसका सफाया करना, उसे कलीसिया से निकालना सिद्धांतों का पालन कर दूसरों को हानि से बचाना है। यह हमला करना नहीं है। लेकिन जब मसीह-विरोधी और दुष्कर्मी लोगों का दमन कर उन पर हमला करते हैं, तो यह पूरी तरह से उनकी बुरी मंशाओं से उपजता है। वे सत्य का अनुसरण करने वालों और न्यायशील लोगों से ईर्ष्या करते हैं। वे उन्हें समझने वालों और उनकी बुराइयाँ बताने वालों से घृणा करते हैं। वे अपनी सत्ता और रुतबा बचाने के लिए मतभेद रखने वालों को हटा देते हैं। वे छोटी-छोटी बातों के लिए दूसरों पर झपट पड़ते हैं और उनका बतंगड़ बना देते हैं। वे तथ्यों को तोड़-मरोड़कर दूसरों को बदनाम करते हैं, उन्हें बाहर निकलवाने के लिए उन पर तमाम आरोप लगाते हैं। उनके मनसूबे और इरादे पूरी तरह से सत्य और परमेश्वर के विपरीत होते हैं। उन्हें परमेश्वर द्वारा निंदित और शापित किया जाता है। मैं परमेश्वर के वचनों के अनुसार ली यान को एक दुष्कर्मी की अपनी समझ के आधार पर उजागर कर बरखास्त कर रही थी। यह कोई निजी वैर के कारण नहीं था, और मैं उस पर हमला नहीं कर रही थी। मुझे समझ नहीं थी कि हमला करना असल में क्या होता है, मैं सिर्फ सतह पर देख रही थी। मुझे लगता था कि अगर किसी को मुझसे वैर है, मैंने उसकी कोई समस्या निपटाई है, तो यह हमला करना है। मैं यह नहीं देखती थी कि वे दुष्कर्मी हैं या नहीं और वे कलीसिया में कौन-सी भूमिका निभाते हैं। नतीजतन, मैं अपने गलत नजरिये से जड़ हो गई थी। कैसी बेवकूफी थी! यह सब समझकर मैंने आजाद महसूस किया।

इसके बाद, मैंने पक्के इरादे से सिद्धांतों के अनुसार कर्तव्य निभाना शुरू किया। अगर किसी भाई-बहन में मुझे कोई समस्या दिखती, तो मैं उससे संगति कर उसकी मदद करने की भरसक कोशिश करती। खास तौर पर सफाए के काम में अगर यह तय हो जाता कि कोई इंसान निष्कासन का पात्र है, चाहे वह मुझसे पूर्वाग्रह रखता हो या नहीं, मैं सत्य के सिद्धांतों के अनुसार ही इसे निपटाती। इस पर अमल करने से मुझे बहुत सुकून मिलता। अब मैंने खुद अनुभव किया है कि कर्तव्य में हमें अपनी मंशाएँ, और शोहरत और रुतबे का हिसाब-किताब छोड़ देना चाहिए, सिद्धांत बनाए रखकर और कलीसिया के कार्य की रक्षा करके शांति और आनंद प्राप्त करना चाहिए।

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