19. मैंने खुलकर बोलने की हिम्मत क्यों नहीं की

पिछले साल मई के मध्य में, हमारी अगुआ चेन लैन ने मुझसे बहन लू का मूल्यांकन लिखवाया था। उसने कहा कि बहन लू घमंडी और आत्म-तुष्ट है, हमेशा अगुआओं और कार्यकर्ताओं की आलोचना करती है। वह एक सही इंसान नहीं है। बहन लू के बारे में अगुआ का मूल्यांकन मुझसे अलग था। पहले जब बहन लू के साथ मेरी बातचीत होती थी, तो वह वैसी नहीं थी जैसी अगुआ ने कहा था। लेकिन मुझे चिंता थी कि अगर मैंने सच बोला, तो अगुआ कहेगी कि मुझमें विवेक की कमी है और उसके मन में मेरी बुरी छवि बन जाएगी। फिर हो सकता है, वह मुझे भविष्य में महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट न सौंपे। इसलिए मैंने अगुआ की इच्छा के आगे झुककर, उसका मूल्यांकन स्वीकारते हुए कह दिया कि बहन लू मनमाने ढंग से दूसरों की आलोचना करती है। इसके तुरंत बाद बहन लू को बदल दिया गया। बाद में मुझे पता चला कि बहन लू ने चेन लैन की व्यावहारिक काम करने में विफल रहने और नकली अगुआ होने की रिपोर्ट की थी। इसलिए चेन लैन ने यह दावा करते हुए उसे दबाया और दंडित किया कि उसने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की आलोचना की है। इसके बाद चेन लैन एक नकली अगुआ के रूप में उजागर कर बदल दी गई। इस बारे में सुनने के बाद मैंने मूल्यांकन लिखने में अपने व्यवहार पर विचार किया और खेद महसूस किया। परमेश्वर के वचन पढ़कर और आत्मचिंतन करके मुझे एहसास हुआ कि मैं अगुआ पर अच्छी छाप छोड़ने के लिए झूठ बोलने और बहन लू की निंदा करने में उसका साथ देने को तैयार थी। मुझमें वास्तव में मानवता की कमी थी। जितना ज्यादा मैंने विचार किया, उतनी ही ज्यादा मुझे अपने आप से अरुचि और घृणा हुई। मैंने विफलता के अपने अनुभव पर एक निबंध लिखने की सोची, ताकि इसे सभी के लिए एक चेतावनी के रूप में भाई-बहनों के साथ साझा कर सकूँ। लेकिन मेरी अपनी चिंताएँ थीं। मैंने सोचा, "अगर मैंने मूल्यांकन और भ्रष्ट व्यवहार के पीछे की अपनी गलत मंशाओं के बारे में सब-कुछ लिख दिया, तो भाई-बहन मेरे बारे में क्या सोचेंगे? अगर उन्होंने मेरा अनादर कर मुझे ठुकरा दिया, तो मेरी प्रतिष्ठा शून्य हो जाएगी और मुझे फिर से उन्हें अपना चेहरा दिखाने में बहुत शर्म आएगी।" मैंने यह भी सोचा कि कैसे मैं बहन लू के काफी करीब हुआ करती थी और समस्याएँ होने पर कैसे वह अक्सर मुझ पर विश्वास किया करती थी। अगर उसे पता चला कि एक भ्रष्ट स्वभाव के साथ उसका वैसा मूल्यांकन मैंने किया था, तो वह क्या सोचेगी? क्या वह मुझसे निराश होकर संबंध नहीं तोड़ लेगी? अगर ऊपरी अगुआओं को पता चल गया, तो क्या वे मेरा चरित्र खराब बताकर मुझे कोई अलग कर्तव्य नहीं सौंप देंगे? यह सब सोचकर मुझे बहुत बुरा लगा। मैंने सचमुच शर्मनाक काम किया था, जिसके बारे में बात करना भी मुश्किल था। मैंने जो किया था, मैं उसका सामना नहीं करना चाहती थी, बस आगे बढ़ना चाहती थी। मैं इस बारे में लिखना नहीं चाहती थी।

बाद में मैं इस मामले पर विचार करने लगी। मैं असफलता का अपना अनुभव बताने के लिए तैयार क्यों नहीं हूँ? मैं खुलकर खुद को उजागर करने के लिए तैयार क्यों नहीं हूँ? मैं किस भ्रष्ट स्वभाव से विवश हो रही हूँ? एक दिन, अनुभव की गवाही का एक वीडियो देखते हुए, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश देखा। "चाहे कोई भी संदर्भ हो, मसीह-विरोधी चाहे कोई भी कर्तव्य निभा रहे हों, वे यह छाप छोड़ने की कोशिश करेंगे कि वे कमजोर नहीं हैं, कि वे हमेशा मजबूत, आत्मविश्वास से भरे हुए रहते हैं, कभी नकारात्मक नहीं होते। वे कभी अपना असली आध्यात्मिक कद या परमेश्वर के प्रति अपना असली रवैया प्रकट नहीं करते। वास्तव में, अपने दिल की गहराइयों में क्या वे सचमुच यह मानते हैं कि ऐसा कुछ नहीं है जो वे नहीं कर सकते? क्या वे वाकई मानते हैं कि उनमें कोई कमजोरी, नकारात्मकता या भ्रष्टता नहीं भरी है? बिलकुल नहीं। वे दिखावा करने में अच्छे होते हैं, चीजों को छिपाने में माहिर होते हैं। वे लोगों को अपना मजबूत और सम्मानजनक पक्ष दिखाना पसंद करते हैं; वे नहीं चाहते कि वे उनका वह पक्ष देखें जो कमजोर और सच्चा है। उनका उद्देश्य स्पष्ट होता है : सीधी-सी बात है, वे अपनी साख, इन लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाए रखना चाहते हैं। उन्हें लगता है अगर वे अपनी नकारात्मकता और कमजोरी दूसरों के सामने उजागर करेंगे, अपना विद्रोही और भ्रष्ट पक्ष प्रकट करेंगे, तो यह उनकी हैसियत और प्रतिष्ठा के लिए एक गंभीर क्षति होगी—तो बेकार की परेशानी खड़ी होगी। इसलिए वे अपनी कमजोरी, विद्रोह और नकारात्मकता को सख्ती से अपने तक ही रखना पसंद करते हैं। और अगर ऐसा कभी हो भी जाए जब हर कोई उनके कमजोर और विद्रोही पक्ष को देख ले, जब वे देख लें कि वे भ्रष्ट हैं, और बिलकुल नहीं बदले, तो वे अभी भी उस दिखावे को बरकरार रखेंगे। वे सोचते हैं कि अगर वे अपने भीतर किसी भ्रष्ट स्वभाव का होना स्वीकार करते हैं, एक सामान्य व्यक्ति होना जो छोटा और महत्वहीन है, तो वे लोगों के दिलों में अपना स्थान खो देंगे, सबकी श्रद्धा और आदर खो देंगे, और इस प्रकार पूरी तरह से विफल हो जाएँगे। और इसलिए, कुछ भी हो जाए, वे बस लोगों के सामने नहीं खुलेंगे; कुछ भी हो जाए, वे अपना सामर्थ्य और हैसियत किसी और को नहीं देंगे; इसके बजाय, वे प्रतिस्पर्धा करने का हर संभव प्रयास करते हैं, और कभी हार नहीं मानते" (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और अपने व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ धोखा तक कर देते हैं (भाग दस))। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि मसीह-विरोधी दिखावा करने में माहिर होते हैं। वे नहीं चाहते कि कोई उनका स्याह पक्ष देखे, और वे अपनी भ्रष्टता और विद्रोह के बारे में खुलकर नहीं बोलते। वे अपनी असफलताओं और त्रुटियों के बारे में बोलने से भी हमेशा बचते हैं। वे हमेशा लोगों को अपने चरित्र के सकारात्मक, दृढ़ और प्रभावशाली पहलू दिखाते हैं, ताकि लोगों का सम्मान और उनके दिलों में जगह पा सकें। मुझे एहसास हुआ कि मेरा व्यवहार किसी मसीह-विरोधी से अलग नहीं है। बहन लू की निंदा करने में नकली अगुआ का साथ देने से मैं अपना भ्रष्ट स्वभाव पहचान गई थी, लेकिन मैं हर किसी को खुलकर बताने को तैयार नहीं थी, क्योंकि यह असफलता का अनुभव था। अगर मैं उस दौरान अपनी मंशाएं और भ्रष्टता सार्वजनिक कर देती, तो सब देख लेते कि कैसे मुझमें विवेक की कमी है और कैसे मैं आसानी से झुक गई, कैसे मैंने किसी को अभिमानी, आत्म-तुष्ट और मनमाने फैसले करने वाली कहकर उसकी निंदा की, जो असल में एक न्यायप्रिय इंसान थी, जिसने एक नकली अगुआ की रिपोर्ट कर उसे उजागर किया, कैसे मैंने एक अच्छी इंसान को गलत रूप में प्रस्तुत किया, और सही-गलत में भेद नहीं कर पाई। मुझे डर था कि हर कोई मेरा अपमान कर मुझे ठुकरा देगा और मेरा कर्तव्य भी छिन सकता है। मैंने देखा कि कैसे मैंने प्रतिष्ठा और हैसियत को सत्य का अभ्यास करने और ईमानदार होने पर तरजीह दी। मुझे सत्य या सकारात्मक चीजें पसंद ही नहीं थीं। इसके बजाय, मुझे मसीह-विरोधी की तरह प्रतिष्ठा, हैसियत और दिखावा करना पसंद था। मैं एक विश्वासघाती इंसान थी।

बाद में मुझे परमेश्वर के वचनों के दो और अंश मिले : "सब लोग गलतियाँ करते हैं। सबमें दोष और कमजोरियाँ होती हैं। और वास्तव में, सभी में वही भ्रष्ट स्वभाव होता है। अपने आप को दूसरों से अधिक महान, परिपूर्ण और दयालु मत समझो; यह एकदम अनुचित है। जब तुम लोगों के भ्रष्ट स्वभाव और सार, और मनुष्य की भ्रष्टता के असली चेहरे को पहचान जाते हो, तब तुम अपनी गलतियाँ छिपाने की कोशिश नहीं करते, न ही तुम दूसरों की गलतियों पर शिकंजा कसते हो, बल्कि दोनों को संतुलित ढंग से देखते हो। तभी तुम समझदार बनोगे और बेवकूफी की बातें नहीं करोगे, और यह बात तुम्हें बुद्धिमान बना देगी। जो लोग बुद्धिमान नहीं हैं, वे मूर्ख होते हैं, और वे हमेशा पर्दे के पीछे चोरी-छिपे अपनी छोटी-छोटी गलतियों पर देर तक बात किया करते हैं। देखकर घृणा होती है" (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, व्यक्ति के आचरण का मार्गदर्शन करने वाले सिद्धांत)। "जब लोग हमेशा मुखौटा लगाए रहते हैं, हमेशा खुद को अच्छा दिखाते हैं, हमेशा ऐसा ढोंग करते हैं जिससे दूसरे उनके बारे में अच्छी राय रखें, और अपने दोष या कमियाँ नहीं देख पाते, जब वे लोगों के सामने हमेशा अपना सर्वोत्तम पक्ष प्रस्तुत करने की कोशिश करते हैं, तो यह किस प्रकार का स्वभाव है? यह अहंकार है, कपट है, पाखंड है, यह शैतान का स्वभाव है, यह एक दुष्ट स्वभाव है। शैतानी शासन के सदस्यों को लें : वे पर्दे के पीछे कितना भी लड़ें-झगड़ें या हत्या करें, किसी को भी इसकी शिकायत करने या इसे उजागर करने की अनुमति नहीं होती। वे डरते हैं कि लोग उनका राक्षसी चेहरा देख लेंगे, और वे इसे छिपाने का हर संभव प्रयास करते हैं। सार्वजनिक रूप से वे यह कहते हुए खुद को पाक-साफ दिखाने की पूरी कोशिश करते हैं कि वे लोगों से कितना प्यार करते हैं, वे कितने महान, गौरवशाली और सही हैं। यह शैतान की प्रकृति है। शैतान की प्रकृति की मुख्य विशेषता धोखाधड़ी और छल है। और इस धोखाधड़ी और छल का उद्देश्य क्या होता है? लोगों की आँखों में धूल झोंकना, लोगों को अपना सार और असली रंग न देखने देना, और इस तरह अपने शासन को दीर्घकालिक बनाने का उद्देश्य हासिल करना। साधारण लोगों में ऐसी शक्ति और हैसियत की कमी हो सकती है, लेकिन वे भी चाहते हैं कि उनके बारे में लोगों की राय अच्छी बने और लोग उन्हें खूब सम्मान की दृष्टि से देखें और अपने दिल में उन्हें ऊँचा स्थान दें। यही होता है भ्रष्ट स्वभाव, और अगर लोग सत्य नहीं समझते, तो वे इसे पहचानने में असमर्थ रहते हैं" (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, व्यक्ति के आचरण का मार्गदर्शन करने वाले सिद्धांत)। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि कोई भी पूर्ण नहीं है, हम सभी में कमियाँ हैं, हम गलतियाँ कर सकते हैं और अपना भ्रष्ट स्वभाव दिखा सकते हैं। जिन लोगों में वास्तव में मानवता और तर्कशीलता होती है, वे अपनी कमियों और समस्याओं का ठीक से सामना कर सकते हैं। गलतियाँ करने के बाद वे उनका सामना करने और अपनी भ्रष्टता दूर करने के लिए सत्य की तलाश करने में सक्षम होते हैं। जो लोग अपनी समस्याओं का सामना नहीं कर पाते, गलतियाँ करने के बाद उन्हें स्वीकार नहीं करते और अपनी भ्रष्टता दिखाते हैं और हमेशा दिखावा करते हुए अपने चरित्र के बेदाग पहलू ही प्रदर्शित करते हैं—वे विशेष रूप से कपटी और विश्वासघाती होते हैं। मुझे शैतान ने बहुत भ्रष्ट कर दिया था और मैं तमाम तरह के भ्रष्ट स्वभावों से घिरी हुई थी। काम के दौरान भटकाव अनुभव करना और भ्रष्टता दिखाना सामान्य बात है। अगर मैं न खुलती, वे भ्रष्ट स्वभाव अभी भी भीतर ही छिपे रहते, तो क्या मैं अभी भी एक भ्रष्ट इंसान न होती? जब मैंने बहन लू का मूल्यांकन किया, तो मैंने उसकी आलोचना और निंदा करने में नकली अगुआ का अनुसरण किया, ताकि अगुआ की नजरों में अपनी छवि बनाए रख सकूँ। इससे इनकार नहीं किया जा सकता—अगर मुझमें मानवता और तर्कशीलता होती, तो मैं इस समस्या का सामना करती, प्रकट करती कि कैसे मैंने भ्रष्टता दिखाई, कैसे परमेश्वर के वचनों द्वारा उजागर और न्याय किए जाने का अनुभव किया, और चर्चा करती कि अपने भ्रष्ट स्वभाव के बारे में मैंने क्या सीखा। मैं इसके बारे में दूसरों को खुलकर बताती, ताकि हर कोई मेरी असलियत देख सके। लेकिन मैंने हमेशा भ्रष्टता दिखाने के बाद दिखावा किया, दूसरों के दिलों में अपनी प्रतिष्ठा और छवि की रक्षा करने की उम्मीद की। मैं कितनी शर्मनाक और घिनौनी थी! मैं हमेशा यही सोचती थी कि अगर मेरी भ्रष्टता सिर्फ एक छोटी-सी समस्या होती, ऐसी जो बहुत लोगों में आम होती है, और जो एक ज्यादा स्पष्ट भ्रष्ट स्वभाव होता है, ऐसे में अगर मैं खुल भी जाती, तो भी शायद इससे मेरी प्रतिष्ठा को बहुत नुकसान न पहुँचता, इसलिए मैं लोगों के सामने खुद को उजागर कर सकती थी। लेकिन इस बार मैंने किसी की निंदा करने में नकली अगुआ का साथ दिया था। यह एक गंभीर अपराध था—इसे प्रकट करना आसान बात नहीं थी। इससे लोगों को दिख जाता कि मेरा चरित्र खराब है और मैं गरिमाहीन हूँ, और मेरी प्रतिष्ठा को भारी नुकसान पहुँचता। इसलिए मैं खुलने को तैयार नहीं थी और हमेशा दिखावा करके लोगों को धोखा देने की कोशिश करती थी। मैं वास्तव में विश्वासघाती थी! तभी मुझे एहसास हुआ कि अपनी भ्रष्टता खुलकर बताने की मेरी अनिच्छा न केवल मेरे घमंड और गर्व की प्रतीक है, बल्कि वह मेरा आंतरिक विश्वासघाती और दुष्ट शैतानी स्वभाव भी दिखाती है।

बाद में, मैं इस समस्या पर चिंतन करती रही और मैंने परमेश्वर के वचनों का यह अंश पढ़ा : "जब कुछ होता है, तो हो सकता है, व्यक्ति न बोले या हलकेपन से कोई विचार व्यक्त न करे, बल्कि हमेशा चुप रहे। इसका यह मतलब नहीं कि वह व्यक्ति सही है; इसके विपरीत, यह दर्शाता है कि वह भली-भाँति छद्मवेश धारण किए हुए है, कि उसने बातें छिपा रखी हैं, कि उसकी धूर्तता गहरी है। अगर तुम किसी और के सामने नहीं खुलते, तो क्या परमेश्वर के सामने खुल सकते हो? और अगर तुम परमेश्वर के साथ भी सच्चे नहीं हो, और उसके सामने खुल नहीं सकते, तो क्या तुम अपना दिल उसे दे सकते हो? निश्चित रूप से नहीं। तुम परमेश्वर के साथ दिल से एक नहीं हो सकते, बल्कि अपने दिल को उससे अलग रख रहे हो! क्या तुम लोग दूसरों के साथ संगति करते समय खुलकर वह कह पाते हो, जो वास्तव में तुम्हारे दिल में होता है? अगर कोई हमेशा वही कहता है जो वास्तव में उसके दिल में होता है, अगर वह कभी झूठ नहीं बोलता या बढ़ा-चढ़ाकर बात नहीं करता, अगर वह ईमानदार है और अपने कर्तव्य का पालन करते हुए बिलकुल भी लापरवाह या असावधान नहीं होता, अगर वह उस सत्य का अभ्यास कर सकता है जिसे वह समझता है, तो इस व्यक्ति के पास सत्य प्राप्त करने की आशा है। अगर व्यक्ति हमेशा अपने आपको ढक लेता है और अपने दिल की बात छिपा लेता है ताकि कोई उसे स्पष्ट रूप से न देख सके, अगर वह दूसरों को धोखा देने के लिए झूठी छवि बनाता है, तो वह गंभीर खतरे में है, वह बहुत परेशानी में है, उसके लिए सत्य प्राप्त करना बहुत मुश्किल होगा। तुम व्यक्ति के दैनिक जीवन और उसकी बातों और कामों से देख सकते हो कि उसकी संभावनाएँ क्या हैं। अगर यह व्यक्ति हमेशा दिखावा करता है, खुद को दूसरों से बेहतर दिखाता है, तो यह कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो सत्य को स्वीकार करता है, और उसे देर-सवेर उजागर कर बाहर कर दिया जाएगा" (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपना हृदय परमेश्वर को देकर सत्य प्राप्त किया जा सकता है)। परमेश्वर के वचनों से मुझे बहुत ठेस लगी। उसने बताया कि कैसे दिखावा करने वाले अपनी समस्याओं का सामना नहीं कर पाते, गलतियाँ करने पर खुलते नहीं, और हमेशा दूसरों को धोखा देकर उन्हें ढकते हैं। उनके दिल परमेश्वर के लिए बंद होते हैं और वह उन्हें नहीं देख सकता। ऐसे लोग विशेष रूप से दुष्ट होते हैं—वे पूरे विश्वासघाती होते हैं। परमेश्वर ईमानदार लोगों को पसंद और विश्वासघातियों से घृणा करता है। विश्वासघाती लोग अंततः उजागर कर बाहर निकाल दिए जाते हैं। मैं सोचा करती थी कि दिखावा करना केवल प्रतिष्ठा और हैसियत की लालसा का संकेत है, जिसका मतलब यह नहीं होता कि वह कुकर्मी या मसीह-विरोधी है, जो कुकर्म करता है, कलीसिया का कार्य बाधित करता है और दूसरों को नुकसान पहुँचाता है। मैंने नहीं सोचा था कि इससे मुझे बाहर निकाल दिया जाएगा। लेकिन परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि ये सब सिर्फ मेरी धारणाएँ और कल्पनाएँ हैं और चीजों के बारे में मेरा दृष्टिकोण विकृत है। मैंने नकली अगुआ के साथ बहन लू की निंदा करने में अपने विवेक की उपेक्षा की, एक कुकर्मी को उकसाया। परमेश्वर मेरा अपराध पहले से बखूबी जानता था, पर मैं फिर भी उसे सामने लाने के लिए तैयार नहीं थी, और मैंने दूसरों की प्रशंसा पाने के लिए ढोंग करने की कोशिश की। इसने उजागर किया कि कैसे मैंने सत्य से प्रेम और वास्तव में पश्चात्ताप नहीं किया। मैंने सत्य का अभ्यास नहीं किया और विश्वासघात और धोखाधड़ी में भी शामिल रही : परमेश्वर मुझसे घृणा क्यों नहीं करेगा? अगर मैं ऐसा ही करती रही, तो जरूर उजागर कर बाहर निकाल दी जाऊँगी। चिंतन के जरिये मैंने जाना कि कैसे ईमानदारी बरतने में विफल रहने और न खुलने के गंभीर परिणाम होते हैं। मुझे काफी डर लगा, इसलिए मैंने चीजें बदलने के लिए जल्दी से काम किया।

बाद में, मुझे परमेश्वर के कुछ वचन मिले : "तुम्हें आत्मचिंतन करने और खुद को जानने में सक्षम होना चाहिए। तुममें भाई-बहनों की उपस्थिति में खुलकर बोलने और खुद को उजागर करने का साहस होना चाहिए, और अपनी वास्तविक अवस्था के बारे में सहभागिता करनी चाहिए। अगर तुम अपने भ्रष्ट स्वभाव को उजागर करने या उसका विश्लेषण करने की हिम्मत नहीं करते, या अपनी गलतियाँ स्वीकार नहीं करते, तो तुम सत्य के अनुयायी नहीं हो, और ऐसे व्यक्ति तो बिलकुल नहीं हो, जो खुद को जानता है" (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, एक ईमानदार व्यक्ति होने का सबसे बुनियादी अभ्यास)। "चाहे लोग कोई भी कर्तव्य निभाएँ या कुछ भी करें, ज्यादा महत्वपूर्ण क्या है—उनका मिथ्याभिमान और दंभ, या परमेश्वर की महिमा? लोगों को किसे चुनना चाहिए? (परमेश्वर की महिमा।) क्या ज्यादा महत्वपूर्ण हैं—तुम्हारे दायित्व, या तुम्हारे स्वार्थ? तुम्हारे दायित्वों को पूरा करना ज्यादा महत्वपूर्ण है, और तुम उनके प्रति कर्तव्यबद्ध हो। ... जब तुम सत्य के सिद्धांतों के अनुसार अभ्यास करते हो, तो एक सकारात्मक प्रभाव होगा, और तुम परमेश्वर की गवाही दोगे, जो शैतान को शर्मिंदा करने और परमेश्वर की गवाही देने का एक तरीका है। परमेश्‍वर की गवाही देने और शैतान को त्यागने और ठुकराने का अपना दृढ़ संकल्प उसे दिखाने के लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग करना : यह शैतान को शर्मसार करना और परमेश्वर की गवाही देना है—यह सकारात्मक और परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप है" (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, केवल सत्‍य को प्राप्‍त करना ही वास्तव में परमेश्‍वर को प्राप्त करना है)। परमेश्वर के वचनों के भीतर से मुझे अभ्यास का एक मार्ग मिला। मैं जैसी भी भ्रष्टता दिखाऊँ या जैसी भी गलतियाँ करूँ, मुझमें उन्हें स्वीकारने, खुलकर बताने, संगति करने और अपने भ्रष्ट स्वभाव का विश्लेषण करने का साहस होना चाहिए। यह शैतान से संबंध तोड़ने, वास्तविक कर्मों का उपयोग कर उसे लज्जित करने और परमेश्वर के लिए गवाही देने का तरीका है। यही सच्चा पश्चात्ताप है। खुलकर बताने के बाद चाहे मेरे घमंड, गर्व, प्रतिष्ठा और हैसियत को कितना भी नुकसान पहुँचे, मुझे अहंकार त्यागकर सत्य का अभ्यास करना चाहिए और परमेश्वर की गवाही देने को तरजीह देनी चाहिए। बहन लू के अपने मूल्यांकन में मैंने तथ्य झुठलाए थे और उसकी निंदा करने में एक नकली अगुआ का साथ दिया था। इस अनुभव के जरिये, मुझे अपने भ्रष्ट स्वभाव की कुछ समझ प्राप्त हुई। मैं जान गई कि मुझे खुलकर बोलना और भाई-बहनों के सामने खुद को उजागर करना चाहिए और परमेश्वर के वचनों के खुद पर पड़े प्रभाव की गवाही देनी चाहिए। यह मेरा कर्तव्य है। अगर मैं अपने घमंड और प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए सबके सामने खुलने में विफल रही, तो मैं शैतान की साजिश में फँसकर अपनी गवाही खो दूँगी। साथ ही, मेरी पहले यह हास्यास्पद धारणा थी कि अपनी विफलताओं पर चर्चा करना शर्मनाक है और यह कोई गवाही नहीं है। बाद में, मैं समझ गई कि अगर मैं अपना घमंड और अभिमान छोड़ पाऊँ, अपने भ्रष्ट स्वभाव से बँधकर न रहूँ, असफलता के अपने अनुभव की संगति में खुलकर बोलूँ और वास्तव में पश्चात्ताप कर सकूँ, तो यह वास्तव में एक तरह की गवाही होगी। जब मुझे यह सब पता चला, तो मेरी सारी चिंताएँ दूर हो गईं।

इसके बाद, मैंने संगति में अपने अनुभव के बारे में सभी को खुलकर बताया और आश्चर्य की बात है कि भाई-बहनों ने कहा : "आपका अनुभव सुनने के बाद हम आपके बारे में बुरा नहीं सोचते। हम भी अक्सर इसी तरह का भ्रष्ट स्वभाव दिखाते हैं, बस हम अक्सर तुरंत ध्यान नहीं देते और उसे अनदेखा कर देते हैं। यह तथ्य कि आपने अपनी भ्रष्टता पहचानी और परमेश्वर के वचनों के न्याय और प्रकाशन के माध्यम से उसके सार की समझ प्राप्त की, हमारे लिए बहुत ही शिक्षाप्रद रहा है।" बाद में, भाई-बहनों ने परमेश्वर के वचनों के दो अंशों पर मेरे साथ संगति की। उन्होंने लोगों का निष्पक्ष मूल्यांकन न करने के परिणामों की गहरी समझ हासिल करने में मेरी मदद की। लोगों का निष्पक्ष मूल्यांकन करने में विफल रहने का मतलब उन पर झूठा आरोप लगाकर उन्हें निकालना और दबाना है। अगर तुम मनमाने ढंग से किसी की निंदा करते हो और इससे वह नकारात्मक हो जाता है, या कोई नकली अगुआ उस निंदा के आधार पर किसी को दंडित करता है, जिससे वह अपना कर्तव्य जारी नहीं रख पाता, तो इससे न केवल उस इंसान को नुकसान पहुँचाता है, बल्कि कलीसिया का काम भी प्रभावित होता है। मुझे इस बात की भी स्पष्ट समझ प्राप्त हुई कि लोगों का मूल्यांकन करते समय किन सिद्धांतों का अभ्यास करना चाहिए। बाद में, जब बहन लू को यह सब पता चला, तो उसने मेरे बारे में बुरा नहीं सोचा। जब मैं उसके पास प्रश्न लेकर जाती, तो वह उनका पहले की तरह ही ईमानदारी से उत्तर देती, नतीजतन कलीसिया ने न मेरा काम बदला, न ही मुझे बर्खास्त किया। इन नतीजों ने मेरी मूल धारणाएँ और कल्पनाएँ पूरी तरह से उलट दीं। मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। इन सारी बातों ने मुझे परमेश्वर की विश्वसनीयता और धार्मिकता के बारे में और ज्यादा जागरूक किया। अगर हम परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास करते हैं, तो हमारे पास एक मार्ग होगा। परमेश्वर का धन्यवाद!

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