16. पादरी की दुष्टता को समझना

क्षीयोचि, म्यांमार

सितंबर 2020 में मैं एक बहन से ऑनलाइन मिला। उसने बताया कि प्रभु यीशु, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में वापस लौट आया है, और वह न्याय-कार्य करने के लिए सत्य व्यक्त कर रहा है। मैं प्रभु के वापस आने की बात सुनकर रोमांचित हो गया, और ऑनलाइन सभाओं में भाग लेना और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य की जांच करना शुरू कर दिया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़कर, मैंने बहुत-कुछ जाना, जैसे शैतान द्वारा मनुष्य की भ्रष्टता की जड़, मनुष्य को बचाने का परमेश्वर के तीन चरणों का कार्य, देहधारण के रहस्य, परमेश्वर का अंत के दिनों का न्याय-कार्य, और ऐसे बहुत-से सत्य, जो मैंने कभी सुने ही नहीं थे। कुछ समय तक खोज और जांच-पड़ताल करने के बाद मुझे यकीन हो गया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही वापस लौटा प्रभु यीशु है, और मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया में शामिल हो गया। हर दिन मिलने वाला परमेश्वर के वचन का पोषण बहुत अच्छा लगता, और मैंने आध्यात्मिक रूप से हमेशा से अधिक सुपोषित महसूस किया। इसकी तुलना में, मेरे पादरी के सभी धर्मोपदेश उन्हीं पुरानी चीजों के बारे में थे, नीरस, ऊबाऊ, और बिना किसी प्रकाश के। वे बिल्कुल भी शिक्षाप्रद नहीं थे, इसलिए मैंने कलीसिया की सेवाओं में भाग लेना बंद कर दिया।

फिर फरवरी 2021 में, म्यांमार में एक सैनिक सत्तापलट हुआ, और इंटरनेट काट दिया गया। मैं ऑनलाइन सभाओं में भाग नहीं ले सका। जल्दी ही, दो-चार भाई मेरे गाँव आए, और बोले कि वे स्थानीय सभाएं करना चाहते हैं। उस वक्त हम 20 लोग सभाओं में भाग लेते थे। अचरज की बात थी कि बस कुछ ही सभाओं के बाद, किसी ने हमारे स्थानीय पादरी को हमारी शिकायत कर दी। वह कलीसिया के लोगों को बताने लगा कि हम ऑनलाइन सभा करते हैं, और पादरी वर्ग की बातें नहीं सुनते। उसने झूठ बोला कि हम अपना गुट बना रहे हैं, और सबसे कहा कि हम लोगों से सरोकार न रखें। हमारे गाँव में लगभग सभी लोग ईसाई थे, और वे सब पादरी के प्रशंसक थे, उसकी बातें सुनते थे। उसके आक्रमण और आलोचनाओं के कारण, सर्वशक्तिमान परमेश्वर में हमारी आस्था की खबर पूरे कस्बे में फैल गई, और सभी लोग, यहाँ तक कि हमारे रिश्तेदार, दोस्त और पड़ोसी भी, कलीसिया में न जाने और पादरी की बात न मानने के लिए हमें फटकारने लगे, कहा कि यह बहुत बुरा है। मैं जहां भी जाता, लोग मेरी ओर इशारा करते, मेरा परिवार भी सर्वशक्तिमान परमेश्वर में मेरी आस्था का विरोध करने में उनके साथ हो गया। मैं सचमुच परेशान था। अपने दोस्तों और पड़ोसियों के साथ मेरा रिश्ता हमेशा से बढ़िया था, हम हमेशा एक-दूसरे की मदद करते थे, मगर अब वे मुझे बगल में चुभता कांटा, एक दुश्मन समझते थे। आस्था एक निजी आजादी है। हम कोई गैरकानूनी काम किए बिना सिर्फ अपनी आस्था पर अमल कर रहे थे। पादरी हमारी आलोचना और निंदा करके गांव वालों से हमें ठुकराने को क्यों कह रहे थे? अनजाने ही मैं निराशा से घिर गया, फिर मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की : "हे परमेश्वर, पादरी हमें फटकार रहा है, मेरे सभी करीबी लोग मुझे ठुकरा रहे हैं। मैं सचमुच बहुत दुखी हूँ। हे परमेश्वर, मैं समझ नहीं पा रहा कि वे हमारे साथ ऐसे क्यों पेश आ रहे हैं। मुझे प्रबुद्ध करो ताकि मैं इसे बेहतर समझकर अपनी निराशा से निकल सकूं।" फिर मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "परमेश्वर अपना कार्य करता है, वह एक व्यक्ति की देखभाल करता है, उस पर नज़र रखता है, और शैतान इस पूरे समय के दौरान उसके हर कदम का पीछा करता है। परमेश्वर जिस किसी पर भी अनुग्रह करता है, शैतान भी पीछे-पीछे चलते हुए उस पर नज़र रखता है। यदि परमेश्वर इस व्यक्ति को चाहता है, तो शैतान परमेश्वर को रोकने के लिए अपने सामर्थ्य में सब-कुछ करता है, वह परमेश्वर के कार्य को भ्रमित, बाधित और नष्ट करने के लिए विभिन्न बुरे हथकंडों का इस्तेमाल करता है, ताकि वह अपना छिपा हुआ उद्देश्य हासिल कर सके। क्या है वह उद्देश्य? वह नहीं चाहता कि परमेश्वर किसी भी मनुष्य को प्राप्त कर सके; उसे वे सभी लोग अपने लिए चाहिए जिन्हें परमेश्वर चाहता है, ताकि वह उन पर कब्ज़ा कर सके, उन पर नियंत्रण कर सके, उनको अपने अधिकार में ले सके, ताकि वे उसकी आराधना करें, ताकि वे बुरे कार्य करने में उसका साथ दें। क्या यह शैतान का भयानक उद्देश्य नहीं है? ... परमेश्वर के साथ युद्ध करने और उसके पीछे-पीछे चलने में शैतान का उद्देश्य उस समस्त कार्य को नष्ट करना है, जिसे परमेश्वर करना चाहता है; उन लोगों पर कब्ज़ा और नियंत्रण करना है, जिन्हें परमेश्वर प्राप्त करना चाहता है; उन लोगों को पूरी तरह से मिटा देना है, जिन्हें परमेश्वर प्राप्त करना चाहता है। यदि वे मिटाए नहीं जाते, तो वे शैतान द्वारा इस्तेमाल किए जाने के लिए उसके कब्ज़े में आ जाते हैं—यह उसका उद्देश्य है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IV')। इससे मुझे यह समझने में मदद मिली कि हमें अंत के दिनों के मसीह का अनुसरण करने से रोकने की पादरी की कोशिश, वास्तव में एक आध्यात्मिक युद्ध है। परमेश्वर अंत के दिनों में लोगों के न्याय और शुद्धिकरण के लिए सत्य व्यक्त करता है। यह सच्चे विश्वासियों के समूह को बचाने और उसे प्राप्त करने के लिए है। लेकिन शैतान परमेश्वर का दुश्मन है, और वह परमेश्वर के कार्य में बाधा डालकर उसे नुकसान पहुँचाने के लिए तरह-तरह की चालें चलता है, ताकि लोग परमेश्वर को छोड़ दें, उसे धोखा दें, और इसकी सत्ता के तहत जिएँ। फिर वह उन पर नियंत्रण कर सकता है, अंत में उसके साथ ये लोग भी नरक में दंडित किए जाएंगे। मैं समझ गया कि कलीसिया का पादरी वर्ग वास्तव में शैतान का गुलाम है। पादरियों ने सुना कि प्रभु वापस लौट आया है, मगर खुद उसकी जांच करने के बजाय, वे दूसरों को भी ऐसा नहीं करने देते। उनके धर्मोपदेश आध्यात्मिक दृष्टि से पोषक नहीं थे, मगर वह लोगों को सच्चे मार्ग को खोजने नहीं देते। यह देखकर कि हमने कलीसिया जाना और उनका अनुसरण करना छोड़ दिया है, उन्होंने हमारी निंदा की, हमें बदनाम किया, वे चाहते थे कि हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर को धोखा देकर कलीसिया में वापस लौट जाएं, वापस उनके कब्जे में हो जाएँ। फिर हम परमेश्वर का अंत के दिनों का उद्धार गँवा देंगे। इसका एहसास होने पर मैंने अपने-आप से कहा कि मैं शैतान की चाल में नहीं फंस सकता। उनका अनुसरण करने के लिए मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर को नहीं छोड़ सकता, बल्कि मुझे डट कर खड़े रहना होगा।

इसके बाद, कुछ नए विश्वासी और परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की जांच कर रहे लोग कमजोर होकर पीछे हट गए। हालांकि हमारे इर्द-गिर्द सभी विरोध कर रहे थे, हम बाकी लोगों ने सभाएं करना बंद नहीं किया। इस बात का पता चलने पर पादरी नाराज हो गया, और कलीसिया के कुछ सहकर्मियों को कहा कि वे मुझ पर पादरी के घर जाने का ज़ोर बनाते रहें। मैं इस बात से नाराज था, सोच रहा था कि मैं बस परमेश्वर की प्रार्थना और संगति कर रहा हूँ, और यह मेरी आजादी है। पादरी को इस तरह मेरे आड़े आने की क्या जरूरत है? मुझे इच्छा हुई कि उसकी बात सुनूं और समझूं कि उसकी नजर में मैंने क्या गलत किया है। उस शाम, कुछ दूसरे भाई-बहनों के साथ, मैं पादरी के घर गया। कुछ और पादरी भी वहां मौजूद थे। पादरी ने कहा, "मैंने आपकी ऑनलाइन सभाओं के बारे में सुना है। आपका पादरी होने के नाते, दूसरा मार्ग अपनाने के खिलाफ आपको चेतावनी देना मेरी जिम्मेदारी है।" मैंने जवाब दिया, "हम उनके धर्मोपदेश सुन रहे हैं, मगर हम प्रभु को धोखा नहीं दे रहे हैं। प्रभु यीशु वापस लौट आया है और कार्य का एक नया चरण कर रहा है—" मैं अपनी बात पूरी कर सकूं, इससे पहले ही उसने गुस्से से मेरी बात काट दी, "बहुत हो गया! हम इस बारे में एक और शब्द नहीं सुनेंगे। आज आपको किसी एक को चुनना है। क्या आप दूसरे परमेश्वर में विश्वास रखेंगे या हमारी कलीसिया में लौट आएँगे?" यह बोलते हुए उसने एक नोटबुक निकाल ली, जिसमें हम सबके नाम लिखे हुए थे। उसने रौब झाड़ते हुए कहा, "अगर आप उनके धर्मोपदेश सुनते रहेंगे, तो अपने नाम के आगे टिक लगाएं, वरना उसे काट दें। मेरी बात नहीं सुनी, तो आपको बहुत दर्द सहना होगा! आपके परिवार में शादी हो, जन्म हो या मृत्यु, हम कुछ नहीं करेंगे। कोई भी व्यवस्था करने में मदद नहीं करेंगे।" किसी ने कुछ नहीं कहा। मैं यह सोचकर थोड़ा झिझक गया कि अगर मैं कुछ भी न लिखूँ, तो भी पादरी मेरी आस्था के आड़े आने के तरीके ढूंढ़ ही लेगा। अगर मैंने अपने नाम के आगे टिक लगा दी, तो पादरी वर्ग कोई भी व्यवस्था करने में कभी मेरे परिवार की मदद नहीं करेगा। ये गाँव की पुरानी प्रथाएं थीं, ये सभी के लिए बहुत महत्वपूर्ण थीं, इनकी अनदेखी नहीं की जा सकती थी, और गाँव के सभी लोग पादरी वर्ग की बात मानते थे। अगर ये लोग नहीं आए, तो कोई दूसरा भी नहीं आएगा, कोई भी मदद नहीं करेगा। क्या सभी लोग मुझे ठुकराने वाले हैं? लेकिन मैं जानता था कि प्रभु वापस लौट आया है, तो अगर मैंने अपना नाम काट दिया और दोबारा कलीसिया में शामिल हो गया, तो क्या यह परमेश्वर को नकार कर उसे धोखा देना नहीं होगा? उस पल, मैं समझ नहीं पाया कि क्या करूँ, इसलिए मैंने परमेश्वर के मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना की। फिर मुझे प्रभु यीशु की बात याद आई : "जो कोई अपना हाथ हल पर रखकर पीछे देखता है, वह परमेश्‍वर के राज्य के योग्य नहीं" (लूका 9:62)। यह सच है। मैं एक विश्वासी हूँ, एक अनुयायी। आस्था में, हमें परमेश्वर के प्रति श्रद्धा रखनी होगी, उसके कार्य के प्रति समर्पण करना होगा, और उसके साथ चलना होगा। अगर मैं पादरी को परमेश्वर से ज्यादा मूल्यवान मानूँ, तो फिर मैं खुद को विश्वासी कैसे कह सकता हूँ? मैं राज्य के योग्य कैसे बन सकूंगा? यह ख्याल आने पर, मैंने प्रार्थना की, "हे परमेश्वर, आज मैं तुम्हारी गवाही देना चाहता हूँ। चाहे कुछ भी हो जाए, मैं तुम्हारा अनुसरण करना चाहता हूँ।" फिर मुझे बड़ा सुकून महसूस हुआ, और मैंने ठानकर अपने नाम के आगे टिक लगा दी। दूसरे कुछ लोगों ने भी अपने नाम के आगे टिक लगाई, सिर्फ एक बहन ने अपना नाम काट दिया। पादरी ने गुस्से से कहा, "यह आप लोगों की पसंद है, अब से हम अलग-अलग रास्तों पर हैं। आपके मामलों से मेरा कोई लेना-देना नहीं है।"

घर पहुँचने के बाद, मेरी चिंताएं फिर उभर आईं। आम तौर पर, हमारे गाँव के परिवारों के साथ जो कुछ भी घटता, हम पादरी से प्रार्थना करने, और धार्मिक रस्मों की अगुआई करने को कहते। अगर पादरी हमारा ध्यान नहीं रखेंगे, तो अब हम कुछ भी नहीं कर सकते, फिर सभी लोग हमें धिक्कारेंगे, और फटकारेंगे। पता नहीं वे हमारी आस्था रोकने के लिए और कौन-सी चालें चलने वाले हैं, और यह सब कब ख़त्म होगा। इन सबके बारे में सोचना मेरे लिए सचमुच दर्दनाक था, मैं नहीं जानता था कि इससे कैसे उबरूं। मैंने तुरंत प्रार्थना की, "हे परमेश्वर, मैं समझ सकता हूँ कि मेरा कद वास्तव में कितना छोटा है। मुझे हमेशा दूसरों द्वारा बदनाम किए जाने और ठुकराए जाने की फ़िक्र रहती है। मैं इसका सामना करने से डरता हूँ, मैं कमजोर महसूस कर रहा हूँ। हे परमेश्वर, मुझे इससे उबरने का रास्ता दिखाओ।" इसके बाद, मैंने सिंचन के लिए ऑनलाइन एक बहन को खोजा, और उन्हें अपनी दशा बताई। उन्होंने मुझे परमेश्वर के कुछ वचन भेजे। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "अय्यूब की परीक्षाएँ समाप्त होने पर उसकी गवाही मिलने के बाद, परमेश्वर ने संकल्प लिया कि वह अय्यूब के समान लोगों का एक समूह—या एक से अधिक समूह—प्राप्त करेगा, इसके अतिरिक्त उसने संकल्प लिया कि वह शैतान को फिर कभी, परमेश्वर से होड़ करते हुए, उन्हीं साधनों का उपयोग करके जिनके द्वारा उसने अय्यूब को लुभाया था, उस पर आक्रमण और उसके साथ दुर्व्यवहार किया था, किसी अन्य व्यक्ति पर आक्रमण या उसके साथ दुर्व्यवहार नहीं करने देगा; परमेश्वर ने शैतान को फिर कभी मनुष्य के साथ, जो कमज़ोर, मूर्ख और अज्ञानी है, ऐसी चीज़ें नहीं करने दीं—बस इतना काफ़ी था कि शैतान ने अय्यूब को लुभाया था! शैतान को लोगों के साथ चाहे जैसा मनचाहा दुर्व्यवहार नहीं करने देना यह परमेश्वर की अनुकंपा है। परमेश्वर के लिए, इतना काफ़ी था कि अय्यूब ने शैतान के प्रलोभन और दुर्व्यवहार झेले थे। परमेश्वर ने शैतान को फिर कभी ऐसी चीज़ें करने की अनुमति नहीं दी, क्योंकि जो लोग परमेश्वर का अनुसरण करते हैं उनका जीवन और सब कुछ परमेश्वर द्वारा शासित और आयोजित किया जाता है, और शैतान परमेश्वर के चुने हुए लोगों को इच्छानुसार बहकाने का अधिकारी नहीं है—तुम लोगों को यह बात स्पष्ट होनी चाहिए! परमेश्वर मनुष्य की कमज़ोरी का ध्यान रखता है, और उसकी मूर्खता तथा अज्ञान को समझता है। यद्यपि, इसलिए कि मनुष्य को पूरी तरह बचाया जा सके, परमेश्वर को उसे शैतान के हाथों में सौंपना पड़ता है, परंतु परमेश्वर मनुष्य को कभी शैतान द्वारा मूर्ख मानकर छले जाते और प्रताड़ित होते देखने का इच्छुक नहीं है, और वह मनुष्य को हमेशा कष्ट भुगतते देखना नहीं चाहता है। मनुष्य परमेश्वर द्वारा सृजित किया गया था, और परमेश्वर मनुष्य से संबंधित सब कुछ शासित और व्यवस्थित करे, यह स्वर्ग द्वारा आदेशित है और पृथ्वी द्वारा स्वीकृत है; यह परमेश्वर का उत्तरदायित्व है, और यह वह अधिकार है जिसके द्वारा परमेश्वर सभी चीज़ों पर शासन करता है! परमेश्वर शैतान को मनुष्य के साथ मनमाने ढंग से दुर्व्यवहार और बुरा बर्ताव नहीं करने देता है, वह मनुष्य को भटकाने के लिए शैतान को नानाविध साधनों का प्रयोग नहीं करने देता है, और इससे भी बढ़कर, वह मनुष्य पर परमेश्वर की संप्रभुता में शैतान को हस्तक्षेप नहीं करने देता है, न ही वह शैतान को उन विधि-विधानों को कुचलने और नष्ट करने देता है जिनके द्वारा परमेश्वर सभी चीज़ों पर शासन करता है, मनुष्यजाति का प्रबंधन करने और बचाने के परमेश्वर के महान कार्य की तो बात ही छोड़ दें! वे जिन्हें परमेश्वर बचाना चाहता है, और वे जो परमेश्वर की गवाही देने में समर्थ हैं, परमेश्वर की छह हज़ार वर्षीय प्रबंधन योजना का मर्म और साकार रूप हैं, साथ ही उसके छह हज़ार वर्षों के कार्य के उसके प्रयासों इनाम है। परमेश्वर इन लोगों को यूँ ही शैतान को कैसे दे सकता है?" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II')। परमेश्वर के वचनों से मैं समझ सका कि हम जो कुछ भी झेलते हैं, वह परमेश्वर की अनुमति से होता है, और सब-कुछ उसके हाथ में है। उसकी अनुमति के बिना, शैतान चाहे जितना क्रूर हो, या वह हमें जितनी भी तकलीफ पहुँचाना चाहे, वह कुछ नहीं कर सकता। परमेश्वर ही ये सब गड़बड़ियाँ होने दे रहा था। वही मेरी परीक्षा ले रहा था, और वही मुझे बचा भी रहा था। उसे आशा थी कि मैं अय्यूब जैसा बन सकूंगा, और उस हालत के दौरान भी गवाही दे सकूँगा। ये इसलिए भी था कि मैं उस माहौल में परमेश्वर का सहारा ले सकूँ और उसके कार्य और वचनों का अनुभव कर सकूँ, ताकि मैं उसमें सच्ची आस्था विकसित कर सकूं। लेकिन मैं शैतान के जाल में फंस गया। मैं अपने आपसी रिश्तों की रक्षा करना और ठुकराए और बदनाम किए जाने से बचना चाहता था। मुझे हमेशा कुछ बुरा हो जाने का डर सताता था। मैं परमेश्वर की इच्छा को नहीं समझ सका था। मैंने शांत होकर प्रार्थना की, "हे परमेश्वर, अब मैं समझ गया हूँ कि तुम्हीं यह सब होने दे रहे हो। यह पूरी तरह से मुझे बचाने और शुद्ध करने और मेरी आस्था को पूर्ण करने के लिए है। मैं तुम्हारी गवाही देने को तैयार हूँ। लेकिन मेरा कद बहुत छोटा है, इससे उबरने के लिए आस्था मजबूत करने में मेरी मदद करो।"

मुझे लगा कि चूंकि मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करना चुना है, इसलिए पादरी अब मुझे अकेला छोड़ देगा और मैं सामान्य रूप से सभा कर सकूँगा। लेकिन पादरी की आक्रामकता और आलोचनाओं के कारण बाकी गाँव वाले गड़बड़ी पैदा करते रहे। वे हमारा मजाक उड़ाते, हमें बदनाम करते, और हमारे परिवारों के सामने हम पर चीखते-चिल्लाते, कहते कि हम धार्मिक रस्में नहीं निभाते और गाँव के नियम तोड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर हमने अपनी आस्था कायम रखी, तो वे सरकार से हमारी शिकायत कर हमें गिरफ्तार करवा देंगे। मेरा परिवार यह तनाव सह नहीं सका। वे लगातार बहस करते और मुझसे आस्था छोड़ देने का आग्रह करते। बाकी लोगों पर भी उनके परिवारों का दबाव बना हुआ था। कुछ को घर से निकाल दिया गया था, वे अपने ही घर नहीं जा सकते थे। पादरी ने यह कहकर झूठ फैलाया कि हमारे घरों में इतनी मुश्किलें सिर्फ इसलिए हैं, क्योंकि हम पादरी वर्ग की बातें नहीं मानते और कलीसिया में नहीं जाते। वह उन दो भाइयों से भी पूछताछ करना चाहता था, जो हमारा सिंचन करने आए थे। मुझे बहुत ज्यादा गुस्सा आया। पादरी वर्ग वास्तव में सत्य को उलट रहा था। अगर उन्होंने हमला न किया होता, तो हमारे लिए ये मुश्किलें कभी खड़ी न होतीं। एक बहन ने बाद में सिंचन करने वाले उन भाइयों को आने से मना किया ताकि वे खतरे से बच सकें। उस दौरान सभी लोग नकारात्मक और कमजोर महसूस कर रहे थे, और हममें सभाएं करने या अपना कर्तव्य निभाने की प्रेरणा ही नहीं थी। ऐसा होते देख मैंने भी थोड़ी कमजोरी महसूस की। मैं नहीं जानता था कि भाई-बहनों को कैसे मदद और सहारा दूं, मुझे एकाएक लगा कि आस्था का मार्ग बहुत कठिन है। मैं इसे समझ नहीं सका। हम बस विश्वासी थे, जो इकट्ठा होकर परमेश्वर के वचन पढ़ते थे। वे हमें हमारे हाल पर क्यों नहीं छोड़ देते, क्यों हमें जबरन एक बंद गली में धकेलने पर उतारू हैं? दर्द के मारे, मैंने परमेश्वर को पुकारा, "हे परमेश्वर, मैं बहुत कमजोर महसूस कर रहा हूँ, और बड़ी उलझन में हूँ। मैं आस्था के इस मार्ग पर कैसे चलता रहूँ? मुझे प्रबुद्ध करो, मेरा मार्गदर्शन करो।" फिर मुझे प्रभु यीशु के कहे वचन याद आए : "यदि संसार तुम से बैर रखता है, तो तुम जानते हो कि उसने तुम से पहले मुझ से बैर रखा। यदि तुम संसार के होते, तो संसार अपनों से प्रेम रखता; परन्तु इस कारण कि तुम संसार के नहीं, वरन् मैं ने तुम्हें संसार में से चुन लिया है, इसी लिये संसार तुम से बैर रखता है" (यूहन्ना 15:18-19)। अचानक मेरे मन में कौंध गया कि वे हमसे घृणा कर हमारा दमन इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें वास्तव में परमेश्वर के आगमन से घृणा है और वे उससे लड़ रहे हैं। परमेश्वर अंत के दिनों में देहधारी हुआ है, मनुष्य को शुद्ध करके बचाने के लिए अपना न्याय-कार्य करने की खातिर सत्य व्यक्त कर रहा है। उसका प्रकटन और कार्य सांसारिक लोगों को उजागर कर रहे हैं। वे सत्य से प्रेम नहीं करते, बल्कि उससे और परमेश्वर से घृणा करते हैं। वे आकाश के एक अस्पष्ट परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, इसी कारण से वे देहधारी परमेश्वर के कार्य और वचनों की आलोचना कर निंदा कर रहे हैं। जैसे कि जब प्रभु यीशु कार्य करने आया, तो यहूदी अगुआओं ने उसके द्वारा व्यक्त सत्य को नहीं स्वीकारा, उसकी निंदा और तिरस्कार करने की भरसक कोशिश की। यहूदी विश्वासियों ने उनका साथ देकर प्रभु को ठुकराया, और अंत में उन लोगों ने उसे सूली पर चढ़वा दिया। यह संसार सच में दुष्ट है! लेकिन धार्मिक ताकतों ने सांसारिक रूप से इसे जितना ठुकराया और निंदा की, उतना ही स्पष्ट हो गया कि यही सच्चा मार्ग है, परमेश्वर का कार्य है। इसने इस मार्ग पर बने रहने की मेरी इच्छा दोगुनी कर दी!

जब भाई-बहनों को पता चला कि क्या हो रहा है, तो उन्होंने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन भेजे। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "निराश न हो, कमज़ोर न बनो, मैं तुम्हारे लिए चीज़ें स्पष्ट कर दूँगा। राज्य की राह इतनी आसान नहीं है; कुछ भी इतना सरल नहीं है! तुम चाहते हो कि आशीष आसानी से मिल जाएँ, है न? आज हर किसी को कठोर परीक्षणों का सामना करना होगा। बिना इन परीक्षणों के मुझे प्यार करने वाला तुम लोगों का दिल मजबूत नहीं होगा और तुम्हें मुझसे सच्चा प्यार नहीं होगा। यदि ये परीक्षण केवल मामूली परिस्थितियों से युक्त भी हों, तो भी सभी को इनसे गुज़रना होगा; अंतर केवल इतना है कि परीक्षणों की कठिनाई हर एक व्यक्ति के लिए अलग-अलग होगी। परीक्षण मेरे आशीष हैं, और तुममें से कितने मेरे सामने आकर घुटनों के बल गिड़गिड़ाकर मेरे आशीष माँगते हैं? बेवकूफ़ बच्चे! तुम्हें हमेशा लगता है कि कुछ मांगलिक वचन ही मेरा आशीष होते हैं, किंतु तुम्हें यह नहीं लगता कि कड़वाहट भी मेरे आशीषों में से एक है। जो लोग मेरी कड़वाहट में हिस्सा बँटाते हैं, वे निश्चित रूप से मेरी मिठास में भी हिस्सा बँटाएँगे। यह मेरा वादा है और तुम लोगों को मेरा आशीष है। मेरे वचनों को खाने-पीने और उनका आनंद लेने में संकोच न करो। जब अँधेरा छँटता है, रोशनी हो जाती है। भोर होने से पहले अँधेरा सबसे घना होता है; उसके बाद धीरे-धीरे उजाला होता है, और तब सूर्य उदित होता है। डरपोक या कायर मत बनो" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'आरंभ में मसीह के कथन' के 'अध्याय 41')। पढ़ने के बाद से मैं द्रवित हो गया। पादरी वर्ग की रुकावटों और दूसरे गाँव वालों के अनुचित बर्ताव के बीच, हम परमेश्वर के नए कार्य का अनुसरण कर रहे थे। यह तो होना ही था। क्योंकि लोग शैतान द्वारा बहुत गहराई तक भ्रष्ट किए जा चुके हैं, और संसार बहुत अंधकारमय और दुष्ट है। उनमें से कोई भी परमेश्वर के आगमन का स्वागत नहीं करता। परमेश्वर का अनुसरण करना आसान काम नहीं है। परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर उसकी स्वीकृति पाने के लिए, हमें इस प्रकार के उत्पीड़न और मुश्किलों का अनुभव करना है। परमेश्वर हमारा बल है, और हमेशा हमारे साथ है। मुझे किसी से डरना नहीं चाहिए, बस परमेश्वर पर भरोसा कर उससे प्रार्थना करनी चाहिए, वह हमें पादरी की बाधाओं से उबरने का रास्ता जरूर दिखाएगा। मैंने चीनी भाई-बहनों के अनुभवों को याद किया, जो मैंने फिल्मों और वीडियो में देखे थे। चीनी सरकार ने उन्हें दबाया-कुचला, पीछा किया और उनकी निगरानी की, उन्हें कभी भी गिरफ्तार किया जा सकता था। उनके परिवारों को भी फंसाया जाता है, उनकी संपत्ति और नौकरियाँ छीन ली जाती हैं। बहुत-से लोगों को जेल में डाल कर उन्हें क्रूर यातना दी जाती है। वे बहुत तकलीफें झेलते हैं, मगर वे परमेश्वर का सहारा लेकर, शैतान को हराने की गवाही दे पाते हैं। फिर मैंने सोचा कि परमेश्वर ने अपने दो देहधारणों में किस तरह कष्ट झेले। जब प्रभु यीशु देहधारी होकर मनुष्य को छुटकारा दिलाने के लिए पृथ्वी पर आया, तो यहूदी लोगों ने उसकी निंदा और उसका तिरस्कार किया और आखिरकार उसे सूली पर चढ़ा दिया। अंत के दिनों में, परमेश्वर फिर से देहधारी हुआ है, और वह मनुष्य को बचाने के लिए सत्य व्यक्त कर रहा है। शैतान की सत्ता और धार्मिक संसार की मसीह-विरोधी ताकतों द्वारा उसका प्रतिरोध होता है, निंदा की जाती है, उसे ठुकरा कर उसका तिरस्कार किया जाता है। मनुष्य को बचाने के लिए परमेश्वर बहुत कष्ट सहता है, उसके आगे मेरा थोड़ा-सा दुख बताने लायक भी नहीं है। परमेश्वर पवित्र है, उसका सारा कष्ट हमारे उद्धार के लिए है। मेरा कष्ट तो इसलिए था ताकि मैं सत्य हासिल कर बचाया जा सकूँ, तो यह ऐसी चीज है, जो मुझे सहन करनी चाहिए। हालांकि वह अनुभव मेरे लिए कष्टप्रद था, मगर मैं पादरी वर्ग को थोड़ा समझ पाया, और परमेश्वर में मेरी आस्था बढ़ गई। परमेश्वर मुश्किल माहौल द्वारा हमें सत्य देता और हमारी आस्था को पूर्ण करता है। यह परमेश्वर का आशीष है! परमेश्वर की इच्छा के बारे में जानने के बाद मैंने बड़ा सुकून महसूस किया, और मैं अपनी निराशा से बाहर आ गया। फिर मैं तुरंत नकारात्मक हालत में फंसे हुए अपने सभी भाई-बहनों के लिए एक सभा आयोजित करने में लग गया। हमारी संगति के जरिए सभी लोग परमेश्वर की इच्छा समझ सके, उन्होंने उसका अनुसरण करते रहने की आस्था पाई, और निराशा से उबर गए। हमने सुसमाचार साझा करते हुए, गवाही देते हुए, सामान्य कलीसियाई जीवन जीना शुरू कर दिया, और सभी ने उत्साहित महसूस किया।

लेकिन पादरी वर्ग हमें रोकने की भरसक कोशिश करता रहा। एक बार, जब एक बहन के पति एक बीमारी के कारण गुजर गए, तो उसका पूरा परिवार पादरी से माफी माँगने के लिए उस पर दबाव डालता रहा, ताकि वह प्रार्थना और अंतिम संस्कार की विधियां करे। पादरी वर्ग ने इस मौके का फायदा उठाकर उस पर दबाव बनाया कि वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर में अपनी आस्था छोड़कर कलीसिया लौट आए। मुझे बहुत गुस्सा आया। वह पहले ही अपनी पति के गुजर जाने से दुखी थी, लेकिन पादरी वर्ग उसके घाव पर नमक छिड़क रहा था, गलती स्वीकारने के लिए दबाव डाल रहा था, बस उसे कलीसिया में वापस लाने और अपना अनुसरण करवाने के लिए। बड़ा घिनौना काम था! एक उच्च पादरी हमसे बात करने आए, और उन्होंने परमेश्वर की निंदा और तिरस्कार करते हुए बहुत-सी बातें कहीं। उन्होंने हमसे आस्था छोड़ देने का बहुत आग्रह किया। लेकिन हम पहले ही समझ चुके थे, तो कोई प्रभाव नहीं पड़ा। जब पादरी वर्ग और गाँव के मुखियाओं ने देखा कि हम अडिग हैं, तो उन्होंने गाँव वालों से यह कह कर हमें अलग करवा दिया, "ये लोग हमारी बात मानने से इनकार करते हैं, इसलिए उन्हें अपनी अलग आस्था रखने दो। अपने बच्चों पर नजर रखो, उन्हें इन लोगों से दूर रखो। इनसे संपर्क रखने वाले और इनकी आस्था के बारे में पूछने वाले के पूरे परिवार को फंसा दिया जाएगा, और हम किसी भी चीज में उनकी मदद नहीं करेंगे।" उन्होंने कलीसिया के युवा लोगों को लेकर एक विशेष युवा समूह का भी गठन किया, जो मुख्य रूप से हम पर नजर रखने के लिए बनाया गया था। हमसे संपर्क करने वाले को पूछताछ के लिए पादरी के घर बुलाया जाता। इससे मुझे उनके सच्चे परमेश्वर-विरोधी रूप को समझने में मदद मिली। विश्वासियों पर उन्होंने सख्ती से कब्जा कर रखा था, वे उन्हें परमेश्वर के सामने आकर उसकी वाणी नहीं सुनने दे रहे थे। मैंने फरीसियों के बारे में सोचा। जब प्रभु यीशु आया, तो उसका कार्य और वचन अधिकारपूर्ण थे, लेकिन उन्होंने उसकी खोज या जाँच-पड़ताल नहीं की। विश्वासियों के प्रभु यीशु का अनुसरण करने के कारण रुतबा और रोजी-रोटी छिन जाने के डर से, उन लोगों ने उसकी निंदा करने में पूरा जोर लगा दिया और उसे सूली पर भी चढ़वा दिया। विश्वासियों को उन्होंने जकड़े रखा, वे लोगों से सिर्फ अपनी आराधना करवाते, और परमेश्वर की भेड़ों को परमेश्वर को लौटाने से मना करते। वे दुष्ट सेवक थे, आज के पादरी और एल्डर उनसे कुछ अलग नहीं हैं। मैंने उनकी निंदा करते प्रभु के वचनों को याद किया : "हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम मनुष्यों के लिए स्वर्ग के राज्य का द्वार बन्द करते हो, न तो स्वयं ही उसमें प्रवेश करते हो और न उस में प्रवेश करनेवालों को प्रवेश करने देते हो" (मत्ती 23:13)। "हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम एक जन को अपने मत में लाने के लिये सारे जल और थल में फिरते हो, और जब वह मत में आ जाता है तो उसे अपने से दूना नारकीय बना देते हो" (मत्ती 23:15)। आज का पादरी वर्ग पहले के फरीसियों जैसा ही है। वे राज्य के मार्ग में रोड़े अटकाने वाले दुष्ट सेवक हैं। जैसा सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है। "ऐसे भी लोग हैं जो बड़ी-बड़ी कलीसियाओं में दिन-भर बाइबल पढ़ते रहते हैं, फिर भी उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य को समझता हो। उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर को जान पाता हो; उनमें से परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप तो एक भी नहीं होता। वे सबके सब निकम्मे और अधम लोग हैं, जिनमें से प्रत्येक परमेश्वर को सिखाने के लिए ऊँचे पायदान पर खड़ा रहता है। वे लोग परमेश्वर के नाम का झंडा उठाकर, जानबूझकर उसका विरोध करते हैं। वे परमेश्वर में विश्वास रखने का दावा करते हैं, फिर भी मनुष्यों का माँस खाते और रक्त पीते हैं। ऐसे सभी मनुष्य शैतान हैं जो मनुष्यों की आत्माओं को निगल जाते हैं, ऐसे मुख्य राक्षस हैं जो जानबूझकर उन्हें विचलित करते हैं जो सही मार्ग पर कदम बढ़ाने का प्रयास करते हैं और ऐसी बाधाएँ हैं जो परमेश्वर को खोजने वालों के मार्ग में रुकावट पैदा करते हैं। वे 'मज़बूत देह' वाले दिख सकते हैं, किंतु उसके अनुयायियों को कैसे पता चलेगा कि वे मसीह-विरोधी हैं जो लोगों से परमेश्वर का विरोध करवाते हैं? अनुयायी कैसे जानेंगे कि वे जीवित शैतान हैं जो इंसानी आत्माओं को निगलने को तैयार बैठे हैं?" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर को न जानने वाले सभी लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं')। पादरी वर्ग न सिर्फ परमेश्वर के नए कार्य की जाँच-पड़ताल नहीं करता, बल्कि दूसरे को जांचते देखता है, उसके आड़े आने की भरसक कोशिश करता है, इस डर से कि विश्वासी सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करने लगेंगे, उनकी आराधना और उनका अनुसरण नहीं करेंगे, या उन्हें चढ़ावे नहीं देंगे। वे लोगों पर कब्जा करने के लिए गाँव के पुराने रीति-रिवाजों और पारंपरिक रस्मों का इस्तेमाल करते, उन्हें कलीसिया में वापस जाने पर मजबूर करते। वे विश्वासी होने का दावा करते, लेकिन उनके मन में परमेश्वर के प्रति जरा भी श्रद्धा नहीं थी। वे प्रकृति से दानव हैं, जो परमेश्वर और सत्य से घृणा करते हैं। वे राज्य के हमारे मार्ग में रोड़ा हैं। मुझे पता था कि परमेश्वर यह सारा दमन होने दे रहा था, ताकि हमारी समझ विकसित हो, हम धार्मिक पादरी वर्ग के नियंत्रण से निकल सकें। पादरी वर्ग के हमले मुझे नकारात्मक हालत में नहीं रख पाए, बल्कि उन्होंने वास्तव में मेरी आस्था को बल दिया। मैं भी उनकी बाध्यताओं से बच निकला, सुसमाचार साझा करते हुए गवाही दे सका। समय के साथ, मेरे कुछ दोस्त और रिश्तेदार भी पादरी वर्ग के बर्ताव को समझने लगे, कुछ ने तो सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार कर लिया। इससे मैं समझ सका कि परमेश्वर की बुद्धिमत्ता शैतान की चालों के आधार पर चलती है। पादरियों के दमन और बाधाओं ने भेड़ों को बकरियों से अलग करने में मदद की। कुछ हमारे विरोध में पादरी वर्ग के साथ हो लिए, मगर कुछ उनके असली सार को समझ गए। उन्होंने परमेश्वर की वाणी सुनी और उसकी ओर मुड़ गए। परमेश्वर का कार्य अद्भुत है! इस अनुभव ने मुझे सिखाया कि कोई भी हालात परमेश्वर की सदिच्छा से ही बनते हैं। हमें यही चाहिए, और ये हमें बचाने और पूर्ण करने के लिए है। मैंने ठान ली कि भविष्य में कोई भी मुश्किल मेरे सामने आए, तो मैं परमेश्वर की व्यवस्थाओं के सामने समर्पण कर उसका सहारा लेने को तैयार हूँ। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का धन्यवाद!

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