13. सच्ची रिपोर्ट दबाने की पीड़ा सहना

लिलियाना, जर्मनी

जब मैं सिंचन कार्य की समूह अगुआ थी, मैरिलिन मेरे कार्य की निगरानी करने वाली कलीसिया अगुआ थी। आपसी बातचीत में पता चला कि जब कार्य पर अमल करने की बात आती तो उसे काम करने के बजाय सिर्फ बातें करना पसंद था। वह नतीजे हासिल करने पर ध्यान देने के बजाय नारे लगाती थी और असली समस्याओं का समाधान नहीं कर पाती थी। उसने समस्याओं को सारांशित कर उनका समाधान करने और कर्तव्य में भटकाव से बचने के लिए हमारी अगुआई नहीं की, उसने परमेश्वर के वचनों या प्रासंगिक सिद्धांतों पर संगति भी नहीं की और न ही हमें अभ्यास का मार्ग दिखाया। उसने बस भाषण झाड़े और हमें फटकार लगाई। जब भाई-बहन उसे सुझाव देते, तो वह आम तौर पर उन्हें नहीं स्वीकारती थी। ऐसे बर्ताव से मुझे लगा कि शायद वह नकली अगुआ है, इसलिए मैं इस बारे में बात करने के लिए उसकी वरिष्ठ अगुआ, जेसिका से संपर्क करना चाहती थी। मगर फिर मैंने सोचा : “जेसिका अक्सर मैरिलिन के साथ सभाएं करती है और वे दोनों मिलकर बहुत सारा काम करते हैं। जेसिका को भी मैरिलिन में वही समस्याएं दिखी होंगी जो मैंने देखीं। फिर मैरिलिन पर अनेक समूहों के कार्य की जिम्मेदारी है और वह एक दर्जन से ज्यादा समूह अगुआओं के कामकाज की देखरेख करती है। क्या उन्हें भी उसकी समस्याएं नहीं दिखती हैं? जब उनमें से किसी ने कोई रिपोर्ट नहीं की है, तो मैं क्यों बोलूँ? अगर मैं गलत हुई और जेसिका कहने लगी कि मैं मैरिलिन के खिलाफ पक्षपात करती हूँ और उसमें गलती ढूँढने की कोशिश करती हूँ, तो क्या होगा? शायद मुझे कुछ कहने का जोखिम नहीं उठाना चाहिए, ऐसा करके मैं मुसीबत मोल लेने से बच जाऊँगी।” मगर फिर मैंने सोचा कि कैसे नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों ने मुझे नुकसान पहुँचाया था। उस समय मैंने फौरन उनकी रिपोर्ट नहीं की थी, जबकि उन्होंने अनेक कलीसियाओं के काम में गड़बड़ी की थी और भाई-बहनों के जीवन पर बुरा असर डाला था। अगर मैंने मैरिलिन की समस्याओं की तुरंत रिपोर्ट नहीं की, तो मैं कलीसिया के हितों का नुकसान करूँगी। यह ख्याल मन में आते ही मैं थोड़ी बेचैन हो गई, मैंने सोचा कि मुझे अन्य भाई-बहनों से बात करके देखना चाहिए कि वे क्या सोचते हैं। मैं भाई जॉर्डन के पास गई, तो उसने कहा कि उसे भी पता चला है कि मैरिलिन वास्तविक समस्याएँ हल नहीं करती, उसने न तो काम का जायजा लिया और न ही उस बारे में पूछताछ की; जब पेशेवर कौशल की बात आई, तो उसने सिद्धांतों में प्रवेश करने के लिए न तो भाई बहनों का मार्गदर्शन किया और न ही उनकी मदद की। उसने यह भी कहा कि काम सौंपते समय उसने मनमानी की और अव्यवस्थित रही, वह कामों में प्राथमिकता तय नहीं कर पाई। इसी वजह से काम की दक्षता और प्रभावशीलता पर बहुत बुरा असर पड़ा और सभी चीजों में बहुत अधिक देरी हुई। जब दूसरों ने इस बारे में सचेत किया, तो उसने इसे गंभीरता से नहीं लिया। सभाओं के दौरान, वह शायद ही कभी इस बात पर संगति करती कि उसने कैसे आत्मचिंतन किया, कैसे खुद के बारे में जाना और समस्याओं का सामना होने पर कैसे परमेश्वर के वचनों का अभ्यास किया। उसने बस शब्द और धर्म-सिद्धांत बघारे, कुछ चिकनी-चुपड़ी बातें की, पर कोई वास्तविक काम नहीं किया। जब मैंने सुना कि जॉर्डन को भी वही समस्याएँ दिखीं जो मैंने देखी थीं, तो मुझे यकीन हो गया कि मैरिलिन नकली अगुआ है जो वास्तविक कार्य नहीं करती। अगर वह अपने ओहदे पर बनी रही, तो इससे कलीसिया के काम को बहुत बड़ा नुकसान पहुँचेगा। मुझे एहसास हुआ कि मैरिलिन की समस्याएँ गंभीर हैं और मुझे इस बारे में तुरंत जेसिका को रिपोर्ट करनी चाहिए। मगर फिर मुझे याद आया कि मैरिलिन सीधे मेरे काम की निगरानी करती है, तो अगर मेरे बोलने के बाद उसे बर्खास्त नहीं किया गया और उसे पता चला कि मैंने उसकी रिपोर्ट की थी, तो वह मेरा जीना मुहाल कर देगी या मुझे बर्खास्त भी कर सकती है। अपना ओहदा इतनी जल्दी गँवाना बहुत अपमानजनक होगा। कहा जाता है कि “जो पक्षी अपनी गर्दन उठाता है गोली उसे ही लगती है,” इसलिए मैंने तय किया कि मुझे सबसे पहले मैरिलिन की रिपोर्ट नहीं करनी चाहिए। मैंने फैसला किया कि मैं जॉर्डन से बात करूँगी और उसे ही यह मसला उठाने दूंगी और फिर मैं उसकी रिपोर्ट का हवाला दे सकती हूँ। इस तरह मैं जोखिम उठाने से बच जाऊँगी। मगर जब मैंने उससे बात करने की कोशिश की, तो मेरे होठ सिल गये। मैंने सोचा कि शायद मुझे इंतजार करके देखना चाहिए कि चीजें कैसे आगे बढ़ती हैं। मगर परमेश्वर लोगों के दिल और मन में देखता है, और चुप रहने पर मुझे थोड़ी बेचैनी महसूस हुई। मुझे अपराध-बोध और ग्लानि हुई, तो मैंने परमेश्वर से प्रार्थना करके मुझे प्रबुद्ध करने को कहा ताकि मैं इस मामले के आधार पर खुद को समझ सकूँ।

फिर मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा जिसने मेरी दशा पर रोशनी डाली। परमेश्वर कहता है : “ज़्यादातर लोग सत्य का अनुसरण और अभ्यास करना चाहते हैं, लेकिन अधिकतर समय उनके पास ऐसा करने का केवल संकल्प और इच्छा ही होती है; सत्य उनका जीवन नहीं बना है। इसके परिणाम स्वरूप, जब लोगों का बुरी शक्तियों से वास्ता पड़ता है या ऐसे राक्षसी लोगों या बुरे लोगों से उनका सामना होता है जो बुरे कामों को अंजाम देते हैं, या जब ऐसे झूठे अगुआओं और मसीह विरोधियों से उनका सामना होता है जो अपना काम इस तरह से करते हैं जिससे सिद्धांतों का उल्लंघन होता है—इस तरह कलीसिया के कार्य में बाधा पड़ती है, और परमेश्वर के चुने गए लोगों को हानि पहुँचती है—वे डटे रहने और खुलकर बोलने का साहस खो देते हैं। जब तुम्हारे अंदर कोई साहस नहीं होता, इसका क्या अर्थ है? क्या इसका अर्थ यह है कि तुम डरपोक हो या कुछ भी बोल पाने में अक्षम हो? या फ़िर यह कि तुम अच्छी तरह नहीं समझते और इसलिए तुम में अपनी बात रखने का आत्मविश्वास नहीं है? दोनों में से कुछ नहीं; यह मुख्य रूप से भ्रष्ट स्वभावों द्वारा बेबस होने का परिणाम है। तुम्हारे द्वारा प्रदर्शित किए जाने वाले भ्रष्ट स्वभावों में से एक है कपटी स्वभाव; जब तुम्हारे साथ कुछ होता है, तो पहली चीज जो तुम सोचते हो वह है तुम्हारे हित, पहली चीज जिस पर तुम विचार करते हो वह है नतीजे, कि यह तुम्हारे लिए फायदेमंद होगा या नहीं। यह एक कपटी स्वभाव है, है न? दूसरा है स्वार्थी और नीच स्वभाव। तुम सोचते हो, ‘परमेश्वर के घर के हितों के नुकसान से मेरा क्या लेना-देना? मैं कोई अगुआ नहीं हूँ, तो मुझे इसकी परवाह क्यों करनी चाहिए? इसका मुझसे कोई लेना-देना नहीं है। यह मेरी जिम्मेदारी नहीं है।’ ऐसे विचार और शब्द तुम सचेतन रूप से नहीं सोचते, बल्कि ये तुम्हारे अवचेतन द्वारा उत्पन्न किए जाते हैं—जो वह भ्रष्ट स्वभाव है जो तब दिखता है जब लोग किसी समस्या का सामना करते हैं। ऐसे भ्रष्ट स्वभाव तुम्हारे सोचने के तरीके को नियंत्रित करते हैं, वे तुम्हारे हाथ-पैर बाँध देते हैं और तुम जो कहते हो उसे नियंत्रित करते हैं। ... तुम जो कहते और करते हो, उस पर तुम्हारा कोई अधिकार नहीं होता। यहाँ तक कि अगर तुम चाहते भी, तो भी तुम सच न बता पाते या वह न कह पाते जो तुम वास्तव में सोचते हो; चाहकर भी तुम सत्य का अभ्यास न कर पाते; चाहकर भी तुम अपनी जिम्मेदारियाँ न निभा पाते। तुम जो कुछ भी कहते, करते हो और जिसका भी अभ्यास करते हो, वह सब झूठ है, और तुम सिर्फ अनमने हो। तुम पूरी तरह से अपने शैतानी स्वभाव की बेड़ियों में जकड़े हुए और उससे नियंत्रित हो। हो सकता है कि तुम सत्य स्वीकार कर उसका अभ्यास करना चाहो, लेकिन यह तुम पर निर्भर नहीं है। जब तुम्हारे शैतानी स्वभाव तुम्हें नियंत्रित करते हैं, तो तुम वही कहते और करते हो जो तुम्हारा शैतानी स्वभाव तुमसे करने को कहता है। तुम भ्रष्ट देह की कठपुतली के अलावा और कुछ नहीं हो, तुम शैतान का एक औजार बन गए हो। ... तुम कभी सत्य नहीं खोजते, उसका अभ्यास करना तो दूर की बात है। तुम सिर्फ लगातार प्रार्थना कर रहे हो, संकल्प कर रहे हो, महत्वाकांक्षाएँ तय कर रहे हो और अपने दिल में प्रतिज्ञा कर रहे हो। और नतीजा क्या होता है? तुम खुशामदी बने रहते हो, तुम अपने सामने आने वाली समस्याओं के बारे में स्पष्टवादी नहीं होते, तुम बुरे लोगों को देखकर उन पर ध्यान नहीं देते, जब कोई बुराई या गड़बड़ी करता है तो तुम प्रतिक्रिया नहीं देते, और अगर तुम व्यक्तिगत रूप से प्रभावित नहीं होते तो तुम अलग रहते हो। तुम सोचते हो, ‘मैं ऐसी किसी चीज के बारे में बात नहीं करता, जिसका मुझसे कोई सरोकार नहीं है। अगर वह मेरे हितों, मेरी शान या मेरी छवि को ठेस नहीं पहुँचाती, तो मैं बिना किसी अपवाद के हर चीज की उपेक्षा करता हूँ। मुझे बहुत सावधान रहना होगा, क्योंकि जो पक्षी अपनी गर्दन उठाता है गोली उसे ही लगती है। मैं कोई बेवकूफी नहीं करूँगा!’ तुम पूरी तरह से और अटूट रूप से दुष्टता, कपट, कठोरता और सत्य से विमुखता के अपने भ्रष्ट स्वभावों से नियंत्रित हो। इन्हें सहना तुम्हारे लिए वानर राजा द्वारा पहने गए उस सुनहरे सरबंद से ज्यादा मुश्किल हो गया है जो असहनीय ढंग से कसता जाता था। भ्रष्ट स्वभावों के नियंत्रण में रहना बहुत थकाऊ और कष्टदायी है!(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। परमेश्वर के वचनों ने मेरे स्वार्थी और कपटी भ्रष्ट स्वभाव को उजागर किया। मैंने देखा कि मैरिलिन अपने काम में बेहद गैर-जिम्मेदार है। वह समस्याएं हल नहीं कर पाती थी, न वास्तविक कार्य करती थी और न ही सत्य स्वीकारती थी। वह अपने काम में मनमानी करती थी और सब कुछ अपने तरीके से करना चाहती थी। ऐसे बर्ताव से ही पुष्टि होती है वह नकली अगुआ थी। अगर वह अपने ओहदे पर बनी रही, तो कलीसिया के काम पर इसका गंभीर असर पड़ेगा और भाई-बहनों के जीवन प्रवेश में देरी हो जाएगी। मैं जानती थी कि इस समस्या की तुरंत रिपोर्ट की जानी चाहिए, मगर मुझे डर था कि अगर मैंने उसे नाराज कर दिया तो वह मुझे पछताने पर मजबूर कर देगी या बर्खास्त कर देगी। अपने हितों की रक्षा के लिए, मैंने उसकी रिपोर्ट करने के बजाय उसे कलीसिया के काम को नुकसान पहुँचाने दिया। मैंने मक्कार बनकर किसी और को यह जोखिम उठाने देने का फैसला किया, ताकि बाद में इस कामयाबी की भागीदार बन सकूँ। इस तरह अगर किसी के लिए मुश्किल खड़ी होती है, तो वह मैं नहीं रहूँगी और मुझे कोई जोखिम नहीं उठाना पड़ेगा। मैंने इन शैतानी नियमों के अनुसार जी रही थी : “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए,” और “जो पक्षी अपनी गर्दन उठाता है गोली उसे ही लगती है।” मैं सिर्फ अपने हितों की रक्षा करने के बारे में सोचती थी, कलीसिया के हितों या भाई-बहनों के जीवन को होने वाले नुकसान की मुझे कोई परवाह नहीं थी। मैं बहुत स्वार्थी और मक्कार थी! मैंने हमेशा यही सोचा कि मुझमें न्याय-भावना है और मैं कलीसिया के हितों को कायम रख सकती हूँ, मगर इस अनुभव ने मुझे दिखाया कि मैं कपटी और स्वार्थी इंसान हूँ जो हवा का रुख देखकर अपना रास्ता चुनता है। मैं शैतानी फलसफों के अनुसार जी रही थी और एक नकली अगुआ की रिपोर्ट करने में विफल रही। मैं शैतान के साथ खड़ी थी और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचा रही थी। मैं एक नकली अगुआ के अपराध में बराबर की भागीदार थी। अब मैं कायर बनी नहीं रह सकती, मुझे सामने दिख रही समस्याओं की रिपोर्ट करनी ही होगी।

जैसे ही मैंने समस्या की रिपोर्ट करने की ठानी, एक अगुआ ने हमें मैरिलिन और उसकी साथी का मूल्यांकन लिखने के लिए कहा। मुझे यह सोचकर बहुत खुशी हुई कि इसका मतलब है अगुआ ने मैरिलिन की समस्याओं को पहचान लिया है और मैंने उसके बर्ताव के बारे में सब कुछ विस्तार से लिख दिया। मगर मुझे हैरानी हुई, जब उसके बजाय उसकी साथी को बर्खास्त कर दिया गया, और मैरिलिन अगुआ के रूप में काम करती रही। कुछ दिन बाद मैरिलिन अपनी संगति में रोते हुए कहने लगी, “मैं वास्तविक काम नहीं कर रही, मैं नकली अगुआ हूँ और मुझमें कोई मानवता नहीं है। मैं भाई-बहनों की समस्याएँ हल नहीं करती, बल्कि दूसरों को दबाती हूँ। अब कोई मुझे सुझाव देने की हिम्मत नहीं करता। मैं कलीसिया अगुआ के रूप में गैर-जिम्मेदार रही और मैंने परमेश्वर को नीचा दिखाया। मैंने बहुत बुराई की है और मैं मानवता से रहित हूँ। कलीसिया ने मुझे अपना कर्तव्य निभाते रहने का मौका दिया, इसलिए मुझे पश्चात्ताप करना होगा। अगर आप लोगों में से किसी को मुझमें समस्या दिखती है, तो मुझे बताइये, मुझे इसे स्वीकारने में खुशी होगी।” ऐसा बोलते हुए वह बुरी तरह रोने लगी, लगा कि उसे सच में पछतावा हो रहा है। मैंने सोचा : “क्या मैं गलत थी? आखिर वह सत्य स्वीकारने में पूरी तरह असमर्थ नहीं है। मुझे उससे इतनी अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए थी। अगर वह पश्चात्ताप करने को तैयार है, तो वह अभी भी अच्छा काम करने में सक्षम होगी। खैर, कोई बात नहीं, उसे बर्खास्त तो नहीं किया गया, अब मुझे उसके साथ काम करने में अपना भरसक योगदान देना चाहिए।” इसलिए मैंने उसे एक संदेश भेजा, “हमने तुम्हारे संघर्ष को नहीं समझा। आओ, अब हम मिलकर काम करें और अपना कर्तव्य निभाएँ।” उसने जवाब में मुझे सुझाव देते रहने और आगे से मदद करने के लिए कहा। मैं यह सोचकर बहुत उत्साहित थी कि अगर वह सत्य स्वीकार कर चीजों को बदल सकती है, तो एक अच्छी अगुआ साबित हो सकती है।

मैं यह देखकर बहुत हैरान हुई कि उसमें कोई बदलाव नहीं आया। वह अभी भी सभाओं में बेवजह की बातें करती थी, पर वास्तविक समस्याएँ हल नहीं करती थी। उस दौरान कलीसिया के सामान्य मामलों में कुछ समस्याएँ सामने आईं, मगर उसने सभाओं में सिर्फ कुछ बाहरी मामलों के बारे में ही बात की। उसने इस बात पर कोई संगति नहीं की कि ऐसे माहौल में सत्य कैसे खोजें। इन बातों ने सभी को चिंता में डाल दिया था, काम करते हुए कोई भी सहज नहीं महसूस करता था, जिससे कलीसिया जीवन पर बहुत बुरा असर पड़ा। यह सब देखकर, मैं उसके साथ अपने विचार साझा करने गई। मैं हैरान रह गई जब उसने कहा, “समस्या तुम्हारे साथ ही है, तुम्हें छोड़कर बाकी सभी लोग वही करते हैं जो मैं कहती हूँ। तुम ही कलीसिया का काम बिगाड़ रही हो!” उसकी बात सुनकर मुझे बड़ी निराशा हुई। मैं नहीं जानती थी कि अब अपना कर्तव्य कैसे निभाऊँ, मैं बहुत तनाव में थी। मैं मैरिलिन को अनदेखा कर उसकी डांट खा सकती थी या फिर उसके कहे अनुसार काम कर सकती थी, जिससे अन्य भाई-बहनों के लिए मुसीबत खड़ी हो जाती। मैं एकदम शक्तिहीन थी—लगा जैसे मेरा दम घुट रहा हो। मैंने मैरिलिन की समस्याओं की रिपोर्ट जेसिका को करने की सोची, मगर फिर याद आया कि मैं पहले वरिष्ठ अगुआओं को मैरिलिन के बारे में बता चुकी थी। तब उन्होंने उस पर कोई कार्रवाई नहीं की थी, और इसके बजाय वास्तविक कार्य करने वाली दूसरी अगुआ को बर्खास्त कर दिया था। अगर मैंने फिर से मैरिलिन की रिपोर्ट की, तो वे कहीं यह तो नहीं कहेंगे कि मैं बेवजह मुसीबत खड़ी कर रही हूँ और समस्या की जड़ मैं ही हूँ? अगर उन्होंने कोई आरोप लगाकर मुझे बर्खास्त कर दिया, तो क्या होगा? ऐसी दशा में, लगा जैसे हर तरफ सिर्फ अँधेरा है और मेरा दिल डूबता जा रहा है। मैं परमेश्वर की मौजूदगी का एहसास नहीं कर पा रही थी।

जल्दी ही परमेश्वर के घर ने एक कार्य व्यवस्था जारी की। इसमें लिखा था कि अगर कलीसिया में कोई ऐसा नकली अगुआ और कर्मी पाया जाता है जो वास्तविक कार्य नहीं करता, वह दुष्ट या मसीह विरोधी है, तो कलीसिया के हितों की रक्षा के लिए उसे उजागर करके उसकी रिपोर्ट करना जरूरी है। यह परमेश्वर के चुने हुए सभी लोगों की जिम्मेदारी है। अगर कोई अगुआ या कर्मी उसकी रिपोर्ट करने के कारण किसी भाई या बहन को दबाता या दंडित करता है, तो वह मसीह-विरोधी है। हर अगुआ और कर्मी को एक शपथपत्र पर दस्तखत भी करना होगा कि वह ऐसे किसी भी व्यक्ति को नहीं दबाएगा जो उसके खिलाफ रिपोर्ट फाइल करता है। इस कार्य व्यवस्था को देखकर मुझे खुशी भी हुई और ग्लानि भी। मैं इस बात से खुश थी कि परमेश्वर जानता है हमारा आध्यामिक कद कितना छोटा है, वह नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों को उजागर करने के लिए हमें प्रोत्साहन देता है। मुझे ग्लानि भी हुई क्योंकि मैं जानती थी कि कलीसिया में नकली अगुआ और कर्मी मौजूद हैं, मगर मैंने दबाये जाने या अपने साथ गलत व्यवहार होने के डर से उनकी रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं की, बल्कि कलीसिया के कार्य का नुकसान होने दिया। मैं परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से एक होने लायक नहीं थी। इसलिए मैंने कुछ अन्य समूह अगुआओं से मैरिलिन की समस्याओं के बारे में बात की, तो वे मेरी बात से सहमत थे। हमने मिलकर नकली अगुआओं और कर्मियों की पहचान करने के सिद्धांतों के बारे में संगति की और आखिर में तय किया कि मैरिलिन वाकई एक नकली अगुआ है और बड़े अगुआओं के साथ भी समस्या है, जो उसकी ढाल बनकर खड़े हैं। हमने फैसला किया कि हम उसके बारे में एक संयुक्त रिपोर्ट तैयार करेंगे। जब मैंने रिपोर्ट तैयार कर ली, तो लोगों ने उनका इंतजार करने के बजाय पहले मुझे वह रिपोर्ट भेज देने को कहा। मुझे फिर से चिंता सताने लगी कि अगर मैरिलिन को इस रिपोर्ट के बारे में पता चला, तो वह मेरे लिए परेशानी खड़ी कर सकती है। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की कि वह मुझे प्रबुद्ध कर आत्मचिंतन के लिए राह दिखाए। इसके बाद मैंने परमेश्वर के वचनों का यह अंश पढ़ा : “तुम सभी कहते हो कि तुम परमेश्वर के बोझ के प्रति विचारशील हो और कलीसिया की गवाही की रक्षा करोगे, लेकिन वास्तव में तुम में से कौन परमेश्वर के बोझ के प्रति विचारशील रहा है? अपने आप से पूछो : क्या तुम उसके बोझ के प्रति विचारशील रहे हो? क्या तुम उसके लिए धार्मिकता का अभ्यास कर सकते हो? क्या तुम मेरे लिए खड़े होकर बोल सकते हो? क्या तुम दृढ़ता से सत्य का अभ्यास कर सकते हो? क्या तुममें शैतान के सभी दुष्कर्मों के विरूद्ध लड़ने का साहस है? क्या तुम अपनी भावनाओं को किनारे रखकर मेरे सत्य की खातिर शैतान का पर्दाफ़ाश कर सकोगे? क्या तुम मेरे इरादों को स्वयं में संतुष्ट होने दोगे? सबसे महत्वपूर्ण क्षणों में क्या तुमने अपने दिल को समर्पित किया है? क्या तुम ऐसे व्यक्ति हो जो मेरी इच्छा पर चलता है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 13)। परमेश्वर के सवालों ने मुझे निरुत्तर कर दिया। मैं हमेशा परमेश्वर के इरादों का ख्याल रखने और कलीसिया के कार्य की रक्षा करने की बातें करती थी, मगर जब मैंने देखा कि मैरिलिन वास्तविक कार्य नहीं कर रही है, वह सिद्धांतों के जरिये लोगों को गुमराह कर रही है, अपने काम में तानाशाह बनकर बुरा बर्ताव कर रही है और इसका कलीसिया जीवन पर बहुत बुरा असर पड़ा है, तो मैं बेहद सतर्क और अनिश्चय की स्थिति में रही। मैंने उसकी रिपोर्ट नहीं की, क्योंकि मैं खुद को बचाना चाहती थी, मैंने सच का साथ देकर अँधेरे की ताकतों के खिलाफ खड़े होने की हिम्मत नहीं दिखाई। मैंने कलीसिया के कार्य की रक्षा बिल्कुल नहीं की। मुझमें अंतरात्मा या विवेक नाम की चीज ही नहीं थी। मैं भला परमेश्वर का सामना कैसे कर सकती थी? परमेश्वर का हर एक वचन मेरे सुन्न पड़े दिल को जगाने वाला था और मैंने खुद की रक्षा न करने का संकल्प लिया। मुझे उसे उजागर करके उसकी रिपोर्ट करनी ही थी, भले ही इसकी वजह से मुझे दबाया जाये, इसलिए मैंने वह रिपोर्ट भेज दी।

कुछ दिन बाद सहकर्मियों की सभा में मैरिलिन फिर से रोती नजर आई और उसने “पश्चात्ताप” करने का दिखावा किया। उसने कहा, “मैं दिन-रात काम करती रही, पर मुझे किसी का सहयोग नहीं मिला, और मेरी रिपोर्ट भी कर दी गई। यह मेरे लिए परमेश्वर का प्रेम है और मैं जानती हूँ कि मुझे थोड़ा रुक कर आत्म-चिंतन करना होगा। भाई-बहन मेरी रिपोर्ट करके मेरी मदद कर रहे हैं और मैंने अपने बारे में रिपोर्ट लिखने वाले किसी भी इंसान को कभी न दबाने की शपथ ली है...।” बाद में वह मुझसे पूछने आई कि मेरे काम में कोई दिक्कत तो नहीं आ रही है और मेरी दशा कैसी है; वह पहले जैसी अतिवादी भी नहीं लगी—वह मेरे लिए खाने-पीने की चीजें भी लेकर आई। पहले मुझमें विवेक नहीं था, मैं सोचती थी कि उसने वाकई पश्चात्ताप किया होगा। मगर फिर मैंने सोचा, “मैं कुछ पल की अच्छाई के बहकावे में नहीं आ सकती—मुझे इंतजार करके देखना चाहिए कि आगे क्या होता है। पिछली बार वह रोती रही और पश्चात्ताप किया, लेकिन उसके बाद कुछ भी नहीं बदला। शायद वह इसलिए मेरे साथ अच्छा बर्ताव कर रही है क्योंकि उसे पता है कि मैंने उसकी रिपोर्ट की थी। शायद वह चाहती है कि जब अगुआ मेरी रिपोर्ट की छानबीन करें तो मैं कहूँ कि वह बदल गई है। वह मुझे गुमराह कर रही है; मैं शैतान के जाल में नहीं फँस सकती और उसके हाथों फिर से छली नहीं जा सकती।” यह विचार मन में आते ही, मैंने फौरन परमेश्वर से प्रार्थना की और उससे मेरे दिल पर नजर रखने को कहा, ताकि पिछली बार की तरह उसके आँसुओं के बहकावे में न आऊँ। मैं इतनी जल्दी फिर से उसके चेहरे का नकाब उतरते देख बहुत हैरान थी।

कुछ ही दिन बाद हम लोगों को पहचानने के सत्य पर संगति कर रहे थे और उसने इस अवसर का फायदा उठाते हुए कहा, “हम सिर्फ सिर झुकाकर खुद को नहीं जान सकते, हमें लोगों को पहचानना सीखना होगा। हाल ही में कलीसिया ने हमें रिपोर्ट लिखने के लिए प्रोत्साहित किया था और इस प्रक्रिया में कुछ दुष्ट लोगों को उजागर किया गया। उन्हें अगुआओं और कर्मियों पर आरोप लगाने का कुछ बहाना मिल गया और फिर उन्होंने इसका इस्तेमाल कर उन पर हमले किये। हमें उन दुष्ट लोगों को और उनका साथ देने वाली सभी ‘छोटी मक्खियों’ को उजागर करना होगा। हमें इसके लिए जिम्मेदार हर एक दुष्ट व्यक्ति और मसीह-विरोधी को पकड़ना होगा।” उसकी बात सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आया। मैंने देखा कि उसका सारा तथाकथित आत्मज्ञान नकली है। वह खुद को तो जानती नहीं, और उन लोगों पर उँगली उठा रही है जिन्होंने उसके खिलाफ रिपोर्ट लिखी है। इससे मुझे परमेश्वर के वचनों के कुछ अंश याद आये : “मसीह-विरोधी पश्‍चात्ताप करने के बजाय मरना पसंद करेंगे। उनमें शर्म की कोई भावना नहीं होती; इसके अलावा वे शातिर और दुष्ट स्वभाव के होते हैं, और वे सत्य से अत्यधिक विमुख होते हैं। क्या सत्य से इतना ज्यादा विमुख व्यक्ति उसे अभ्यास में ला सकता है, या पश्‍चात्ताप कर सकता है? यह असंभव होगा। सत्य से उसके बेहद विमुख होने का यह अर्थ है कि वह कभी पश्चात्ताप नहीं करेगा(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग एक))। “मुझे बताओ, क्या मसीह-विरोधी काट-छाँट किया जाना स्वीकारते हैं? क्या वे स्वीकारते हैं कि उनमें भ्रष्ट स्वभाव है? (नहीं, वे नहीं स्वीकारते।) वे भ्रष्ट स्वभाव होना नहीं स्वीकारते, लेकिन काट-छाँट किए जाने के बाद भी वे ऐसा दिखावा करते हैं जैसे वे खुद को जानते हों। वे कहते हैं कि वे राक्षस और शैतान हैं, उनमें मानवता नहीं है और उनकी काबिलियत कमजोर है और वे चीजों पर पूरी तरह से विचार करने में असमर्थ हैं, वे कलीसिया द्वारा व्यवस्थित कार्यों के लिए अयोग्य हैं और उन्होंने अपने कर्तव्य ठीक से नहीं निभाए हैं। फिर ज्यादातर लोगों के सामने वे अपना भ्रष्ट स्वभाव स्वीकारते हैं, वे स्वीकारते हैं कि वे राक्षस हैं और अंत में यह भी कहते हैं कि परमेश्वर ही उनका शोधन और बचाव कर रहा है और लोगों को यह दिखाते हैं कि काट-छाँट किए जाने को स्वीकारने में वे कितने सक्षम और सत्य के प्रति कितने विनीत हैं। वे इस बात का उल्लेख नहीं करते कि उनकी काट-छाँट क्यों की जा रही है या उनके कामों ने कलीसिया के कार्य को क्या नुकसान पहुँचाया है। वे इन मुद्दों से बचते हैं और लोगों से यह मनवाने के लिए कि उन्हें परमेश्वर के घर से प्राप्त होने वाली काट-छाँट अनुचित है, वे खोखले शब्द, धर्मसिद्धांत, कुतर्क और व्याख्यात्मक टिप्पणियाँ बोलते हैं, मानो उन्होंने कोई बहुत बड़ा अन्याय सहा हो। काट-छाँट किए जाने के बाद वे अपने दिलों में अडिग रहते हैं, अपने विभिन्न बुरे कर्मों को जरा भी नहीं स्वीकारते। तो वे तमाम शब्द क्या हैं जिनकी उन्होंने अपना भ्रष्ट स्वभाव स्वीकारने, सत्य स्वीकारने के लिए तैयार होने और काट-छाँट के लिए प्रस्तुत होने में सक्षम होने के बारे में संगति की थी? क्या ये उनकी सच्ची भावनाएँ हैं? बिल्कुल नहीं। ये सब झूठ, दिखावा और शैतानी शब्द हैं, जो लोगों को गुमराह कर फुसलाने के लिए हैं। लोगों को गुमराह करने के पीछे उनका क्या उद्देश्य होता है? (लोगों से अपनी आराधना और अनुसरण करवाना।) बिल्कुल सही, यह लोगों से अपना अनुसरण करवाने और उन्हें अपनी बात सुनने को मजबूर के लिए उन्हें गुमराह कर फुसलाने के लिए होता है, जिससे हर कोई यह सोचे कि वे सही और अच्छे हैं। इस तरह कोई उनकी असलियत नहीं देखता या उनका विरोध नहीं करता। इसके विपरीत, लोग मानते हैं कि वे ऐसे व्यक्ति हैं जो सत्य और काट-छाँट स्वीकारते हैं और पश्चात्ताप करते हैं। तो वे अपने बुरे कर्म क्यों नहीं स्वीकारते या परमेश्वर के घर के कार्य में स्वयं द्वारा किए गए नुकसान क्यों नहीं स्वीकारते? वे इन मामलों को संगति के लिए सबके सामने क्यों नहीं लाते? (अगर वे ये बातें कहेंगे, तो लोग उन्हें पहचान लेंगे।) अगर लोग उन्हें पहचान लेंगे, उनकी असलियत देख लेंगे और उनकी मानवता और उनके स्वभाव-सार को समझ लेंगे, तो वे उन्हें त्याग देंगे। क्या वे फिर भी उनकी चालों में फँसकर उनके द्वारा गुमराह होंगे? क्या वे फिर भी उनका बहुत सम्मान करेंगे? क्या वे फिर भी उनकी बेहद प्रशंसा करेंगे? क्या वे फिर भी उनकी आराधना करेंगे? वे इनमें से कुछ नहीं करेंगे। मसीह-विरोधी खुद को जानने का दिखावा करते हैं, लेकिन वास्तव में यह सब कुतर्क और स्व-स्पष्टीकरण हैं जो लोगों को गुमराह कर उन्हें अपने पक्ष में खड़ा होने को मजबूर करने के लिए हैं और यही उनका गुप्त उद्देश्य है। वे महत्वपूर्ण मामलों से बचते हैं और लोगों को गुमराह कर उन्हें फुसलाने, लोगों से अपना सम्मान और आराधना करवाने के लिए खुद को जानने और काट-छाँट स्वीकारने के बारे में हलकी बातें करते हैं। क्या यह तरीका काफी दुष्टतापूर्ण नहीं है? कुछ लोग वास्तव में इस झाँसे में आ जाते हैं और मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह किए जाने के बाद कहते हैं, ‘वह व्यक्ति बहुत अच्छा बोलता है—मैं बहुत प्रेरित हुआ। मैं कई बार रोया!’ उस समय ये लोग उनकी बहुत आराधना और सम्मान करते हैं, लेकिन अंत में वे मसीह-विरोधी साबित होते हैं; यह मसीह-विरोधियों द्वारा दूसरों को गुमराह कर उन्हें फुसलाने का नतीजा है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, प्रकरण पाँच : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव सार का सारांश (भाग दो))। मसीह-विरोधी अपनी प्रकृति से ही बेहद अहंकारी और दंभी होते हैं, वे कभी सत्य नहीं स्वीकारते। वे इससे विमुख होते हैं और नफरत करते हैं। वे चाहे कितनी ही बार कड़वे अनुभव का सामना करें, पश्चात्ताप करने या बदलने से इनकार ही करेंगे। वे भ्रम पैदा कर लोगों को गुमराह करने में माहिर होते हैं; वे बेहद धूर्त और कपटी होते हैं। इस बात को समझकर, मैरिलिन के बारे में मेरी समझ बहुत साफ हो गई। जब उसकी रिपोर्ट की गई, तो वह रोने लगी और आत्मज्ञान की बातें करने लगी, उसने कहा कि रिपोर्ट परमेश्वर का प्रेम है और वह आत्मचिंतन करेगी। उसने कहा कि उसमें मानवता की कमी है और उसने परमेश्वर को नीचा दिखाया है; उसने पश्चात्ताप करने की कसम भी खाई। उसने तो और अधिक प्रतिक्रिया माँगी थी। मगर वह सब नकली था, यह सब लोगों को धोखा देने के इरादे से बोला गया झूठ था। उसने हमें गुमराह करने के लिए सिर्फ बाहरी दिखावा किया था, ताकि सभी को लगे कि वह काट-छाँट स्वीकार सकती है और सत्य के लिए समर्पित होने में सक्षम है। मगर उसने सचमुच कभी उन आचरणों की बात नहीं की जिनसे पता चलता हो कि वह नकली अगुआ है, जैसे कि वह वास्तविक कार्य नहीं करती, अपने काम में मनमानी करती है, और उसने कलीसिया के काम को नुकसान पहुँचाया है। उसने बस मानवता की कमी को लेकर कुछ शब्द कहे और उन आचरणों का विश्लेषण नहीं किया जिसमें उसने मानवता की कमी दिखाई थी। उसने कभी यह नहीं बताया कि उसे अपने भ्रष्ट स्वभाव की जानकारी कैसे हासिल हुई और उसने कभी परमेश्वर की धार्मिकता की गवाही भी नहीं दी। इसलिए लोग उसका सम्मान करते और उससे सहानुभूति रखते थे, यह सोचकर कि उसका आध्यात्मिक कद है और वह अपनी रिपोर्ट करने वालों के साथ भी सही ढंग से पेश आएगी। उसकी संगति किसी भी तरह से सच्चा आत्मज्ञान नहीं थी, वह सिर्फ लोगों को गुमराह कर उनसे सहयोग पाना चाहती थी, ताकि वह अपने ओहदे पर बने रह सके। मगर वह मुखौटा थोड़े समय के लिए ही था। जैसे ही उसे मौका मिला, उसने अपने खिलाफ रिपोर्ट करने वालों पर वार करते हुए अपना वह पाखंडी, पश्चात्तापी मुखौटा उतार दिया। उसने सभी के सामने हमारी निंदा करके चीजों को बिगाड़ दिया और अपना बदला लेने लगी। इससे उसका असली चेहरा, सत्य से घृणा करने की प्रवृत्ति और उसकी दुष्ट प्रकृति पूरी तरह उजागर हो गई। वह एक कुकर्मी थी जो सत्य से नफरत करती थी और अपने सार में सत्य से विमुख थी। वह सिर्फ नकली अगुआ नहीं थी, बल्कि उसमें मसीह-विरोधी का सार निहित था।

उसके बाद मुझे पता चला कि मैरिलिन और उसके सहयोगी जॉर्डन को, जो अक्सर मैरिलिन को सुझाव दिया करता था, कलीसिया से निकालने के लिए सामग्री तैयार कर रहे हैं। जब दूसरी अगुआ ने कहा कि जॉर्डन कलीसिया से निकाले जाने के मानदंड पर खरा नहीं उतरता, तो उन्होंने दावा किया कि वह झूठा अगुआ है और उसे बर्खास्त कर दिया। उन्होंने उन दो अन्य समूह अगुआओं को भी बर्खास्त करने के बहाने ढूंढ लिये जिन्होंने मुझे मैरिलिन की रिपोर्ट की थी। सिर्फ मैं बर्खास्त होने से बच गई, क्योंकि भाई-बहनों ने मुझे अपनी जगह पर बने रहने के लिए वोट किया। इसके ठीक बाद कलीसिया ने अपना सालाना चुनाव कराया, तो मुझे हैरानी हुई कि जिन लोगों की रिपोर्ट की गई थी उन्हें फिर से अगुआ और कार्यकर्ता चुन लिया गया। उनके करीबी लोगों को, जिसमें मैरिलिन की छोटी बहन भी शामिल थी, अगुआ की भूमिकाएँ सौंप दी गईं। मैं थोड़ी उलझन में पड़ गई, समझ नहीं आया कि इतना सब कुछ कैसे बदल गया। उन्होंने साफ तौर पर कलीसिया के काम को अस्त-व्यस्त कर दिया था, तो उन्हें फिर से अगुआ और कार्यकर्ता कैसे चुना जा सकता था? मुझे तो यह भी संदेह होने लगा कि कलीसिया भी सांसारिक जगत जैसा ही है, यहाँ भी संबंधों और ताकत का बोलबाला है। इस बारे में सोचकर मेरे दिल में अँधेरा छाने लगा और मैं कर्तव्य निभाने का उत्साह खो बैठी। मैं बस एक कोने में सिमट जाना चाहती थी जहाँ कोई मुझे देख न सके। मेरे मन में परमेश्वर की धार्मिकता को लेकर संदेह पैदा होने लगा। मैंने सभाओं में बोलना और अपनी राय रखना भी काफी हद तक बंद कर दिया। मैं हर किसी से सतर्क रहती और मशीन की तरह अपना कर्तव्य निभाती रहती। कभी-कभी मैं यह भी सोचती : “क्या मुझे भी उन्हें खुश करने की कोशिश करनी चाहिए? अगर मैंने माफी माँगी और कहा कि मैं गलत हूँ और सब कुछ सहज ढंग से चलने लगा, तो शायद वे मेरी रिपोर्ट के बारे में भूल जाएं। इस तरह कम से कम मैं कलीसिया से निकाली तो नहीं जाऊँगी।”

एक दिन मैंने परमेश्वर के वचनों का एक पाठ सुना : “मैं उन लोगों में प्रसन्नता अनुभव करता हूँ जो दूसरों पर शक नहीं करते, और मैं उन लोगों को पसंद करता हूँ जो सच को तत्परता से स्वीकार कर लेते हैं; इन दो प्रकार के लोगों की मैं बहुत परवाह करता हूँ, क्योंकि मेरी नज़र में ये ईमानदार लोग हैं। यदि तुम धोखेबाज हो, तो तुम सभी लोगों और मामलों के प्रति सतर्क और शंकित रहोगे, और इस प्रकार मुझमें तुम्हारा विश्वास संदेह की नींव पर निर्मित होगा। मैं इस तरह के विश्वास को कभी स्वीकार नहीं कर सकता। सच्चे विश्वास के अभाव में तुम सच्चे प्यार से और भी अधिक वंचित हो। और यदि तुम परमेश्वर पर इच्छानुसार संदेह करने और उसके बारे में अनुमान लगाने के आदी हो, तो तुम यकीनन सभी लोगों में सबसे अधिक धोखेबाज हो। तुम अनुमान लगाते हो कि क्या परमेश्वर मनुष्य जैसा हो सकता है : अक्षम्य रूप से पापी, क्षुद्र चरित्र का, निष्पक्षता और विवेक से विहीन, न्याय की भावना से रहित, शातिर चालबाज़ियों में प्रवृत्त, विश्वासघाती और चालाक, बुराई और अँधेरे से प्रसन्न रहने वाला, आदि-आदि। क्या लोगों के ऐसे विचारों का कारण यह नहीं है कि उन्हें परमेश्वर का थोड़ा-सा भी ज्ञान नहीं है? ऐसा विश्वास पाप से कम नहीं है! कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो मानते हैं कि जो लोग मुझे खुश करते हैं, वे बिल्कुल ऐसे लोग हैं जो चापलूसी और खुशामद करते हैं, और जिनमें ऐसे हुनर नहीं होंगे, वे परमेश्वर के घर में अवांछनीय होंगे और वे वहाँ अपना स्थान खो देंगे। क्या तुम लोगों ने इतने बरसों में बस यही ज्ञान हासिल किया है? क्या तुम लोगों ने यही प्राप्त किया है? और मेरे बारे में तुम लोगों का ज्ञान इन गलतफहमियों पर ही नहीं रुकता; परमेश्वर के आत्मा के खिलाफ तुम्हारी निंदा और स्वर्ग की बदनामी इससे भी बुरी बात है। इसीलिए मैं कहता हूँ कि ऐसा विश्वास तुम लोगों को केवल मुझसे दूर भटकाएगा और मेरे खिलाफ बड़े विरोध में खड़ा कर देगा। कार्य के कई वर्षों के दौरान तुम लोगों ने कई सत्य देखे हैं, किंतु क्या तुम लोग जानते हो कि मेरे कानों ने क्या सुना है? तुम में से कितने लोग सत्य को स्वीकारने के लिए तैयार हैं? तुम सब लोग विश्वास करते हो कि तुम सत्य के लिए कीमत चुकाने को तैयार हो, किंतु तुम लोगों में से कितनों ने वास्तव में सत्य के लिए दुःख झेला है? तुम लोगों के हृदय में अधार्मिकता के सिवाय कुछ नहीं है, जिससे तुम लोगों को लगता है कि हर कोई, चाहे वह कोई भी हो, धोखेबाज और कुटिल है—यहाँ तक कि तुम यह भी विश्वास करते हो कि देहधारी परमेश्वर, किसी सामान्य मनुष्य की तरह, दयालु हृदय या कृपालु प्रेम से रहित हो सकता है। इससे भी अधिक, तुम लोग विश्वास करते हो कि कुलीन चरित्र और दयालु, कृपालु प्रकृति केवल स्वर्ग के परमेश्वर में ही होती है। तुम लोग विश्वास करते हो कि ऐसा कोई संत नहीं होता, कि केवल अंधकार एवं दुष्टता ही पृथ्वी पर राज करते हैं, जबकि परमेश्वर एक ऐसी चीज़ है, जिसे लोग अच्छाई और सुंदरता के लिए अपने मनोरथ सौंपते हैं, वह उनके द्वारा गढ़ी गई एक किंवदंती है। ... तुम लोग मसीह के सभी कर्मों पर अधार्मिकता के दृष्टिकोण से विचार करते हो और उसके सभी कार्यों और साथ ही उसकी पहचान और सार का मूल्यांकन दुष्ट के परिप्रेक्ष्य से करते हो। तुम लोगों ने बहुत गंभीर गलती की है और ऐसा काम किया है, जो तुमसे पहले के लोगों ने कभी नहीं किया। अर्थात्, तुम लोग केवल अपने सिर पर मुकुट धारण करने वाले स्वर्ग के उत्कृष्ट परमेश्वर की सेवा करते हो और उस परमेश्वर की सेवा कभी नहीं करते, जिसे तुम इतना महत्वहीन समझते हो, मानो वह तुम लोगों को दिखाई तक न देता हो। क्या यह तुम लोगों का पाप नहीं है? क्या यह परमेश्वर के स्वभाव के विरुद्ध तुम लोगों के अपराध का विशिष्ट उदाहरण नहीं है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पृथ्वी के परमेश्वर को कैसे जानें)। परमेश्वर के न्याय के बारे में सुनकर मुझे बहुत शर्मिंदगी हुई। जब ऐसी चीजें हुईं जो मेरी धारणाओं के अनुरूप नहीं थीं, तो मैंने सत्य नहीं खोजा, इसके बजाय मैंने परमेश्वर की धार्मिकता पर संदेह किया। मुझे लगा कि परमेश्वर के घर में ताकतवर लोग एक दूसरे का बचाव करते हैं और यहाँ अँधेरे का शासन चलता है। क्या मैं यह संदेह नहीं कर रही थी कि परमेश्वर भी मनुष्यों की तरह बुराई और अँधेरे से प्रेम करता है? यह चीजों को देखने का बेतुका तरीका था! परमेश्वर पवित्र और धार्मिक है, इसलिए उसके घर में सत्य और धार्मिकता का शासन चलता है। भले ही झूठे अगुआ और मसीह-विरोधी कुछ समय के लिए कलीसिया में अपनी जगह बना लें, और कुछ लोगों को गुमराह कर उनको काबू में कर लें, पर वे यहाँ वास्तव में अपने पैर नहीं जमा पाएँगे—आखिर में परमेश्वर उन्हें उजागर कर हटा ही देगा। परमेश्वर इन लोगों को कलीसिया में आने देता है, ताकि उसके चुने हुए लोगों को इनकी असली पहचान हो सके और वे इनके जरिये परमेश्वर-विरोधी शैतान का दुष्ट चेहरा देख सकें; और फिर इन्हें ठुकराकर इनके गुमराह करने और नियंत्रण से मुक्त हो सकें। यही परमेश्वर के कार्य की बुद्धिमानी है। मगर जब मैंने कलीसिया को नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों के नियंत्रण में देखा और जाना कि कैसे वे दूसरों को दबाते और दंडित करते हैं, तो मैं सतर्क होकर उनसे अपना बचाव करने लगी, इस डर से कि वे मुझे भी दबाएंगे। मैं इतनी डर गई थी कि भाई-बहनों से बात भी नहीं करती थी, यह सोचकर आतंकित थी कि कहीं मैं कुछ गलत न बोल दूं और मसीह-विरोधी मेरे खिलाफ उसका इस्तेमाल करके मुझे बर्खास्त या निष्कासित न कर दें। खुद को बचाने की कोशिश में, मैंने जीवन जीने के सांसारिक दर्शन पर चलने और उन्हें खुश करने का तरीका अपनाने के बारे में भी सोचा। मैं बहुत कायर थी और मुझमें जरा-सी भी दृढ़ता नहीं थी। मैं परमेश्वर की धार्मिकता को ठुकरा रही थी, यह मानने से इनकार कर रही थी कि परमेश्वर के घर में सत्य और मसीह की सत्ता है। खास तौर पर परमेश्वर के इन वचनों ने मेरे दिल को चीर दिया : “और मेरे बारे में तुम लोगों का ज्ञान इन गलतफहमियों पर ही नहीं रुकता; परमेश्वर के आत्मा के खिलाफ तुम्हारी निंदा और स्वर्ग की बदनामी इससे भी बुरी बात है। इसीलिए मैं कहता हूँ कि ऐसा विश्वास तुम लोगों को केवल मुझसे दूर भटकाएगा और मेरे खिलाफ बड़े विरोध में खड़ा कर देगा।” मैं अपने बेतुके विचारों से परमेश्वर का तिरस्कार कर उसे कलंकित कर रही थी। अपनी आस्था में मुझे परमेश्वर की कोई वास्तविक समझ नहीं थी। जब उन झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों ने मुझे दबाया, तो मैंने मसीह-विरोधी दुष्ट ताकतों की पहचान करने या उनके खिलाफ खड़ी होने और लड़ने के लिए सत्य की खोज बिल्कुल नहीं की, इसके बजाय मैंने परमेश्वर के घर की धार्मिकता पर संदेह किया। मैं कितनी बुरी थी! झूठे अगुआ और मसीह-विरोधी केवल परमेश्वर की अनुमति से कलीसिया में आ सकते हैं। वह हमें वास्तविक सबक देने के लिए उनका इस्तेमाल करता है, ताकि हम सत्य खोजकर लोगों की पहचान कर सकें। मुझे सत्य खोजने और इस माहौल से अपना सबक सीखने की जरूरत थी। यह एहसास होने पर मैंने घुटनों के बल बैठकर परमेश्वर से प्रार्थना की। मैंने कहा, “हे परमेश्वर, मैं तुम्हारे सामने पश्चात्ताप करना चाहती हूँ। मुझे आस्था दो। इसके बाद चाहे कैसे भी हालात से मेरा सामना हो, मैं उनसे उबरने के लिए तुम पर ही निर्भर रहूँगी।” प्रार्थना करने के बाद मुझे थोड़ी राहत महसूस हुई।

एक दिन, मैरिलिन की छोटी बहन ने मुझसे कहा कि कुछ भाई-बहनों ने मेरी रिपोर्ट की है और उन्हें कुछ समय के लिए मुझे काम से निलंबित करना होगा। उसने यह नहीं बताया कि किस बात के लिए मेरी रिपोर्ट की गई है, बस मुझे आत्म-चिंतन करने को कहा। उसने यह भी कहा कि अगर कोई पूछे कि मुझे बर्खास्त क्यों किया गया था, तो मैं कुछ नहीं कह पाऊँगी। यह सब अचानक हो गया था, और मुझे बहुत ग्लानि महसूस हुई। मैं एकदम अवाक रह गई और मेरा दिमाग बिल्कुल खाली हो गया। मैं घर लौटकर सदमे में बैठी रही, बस सोचती ही जा रही थी। क्या वे मुझे कलीसिया से निकालने वाले हैं? जब उन्होंने जॉर्डन को निकाला था, तो पहले उसकी अधिक उम्र का बहाना बनाकर उसे कर्तव्य निभाने से रोका, और फिर उन्होंने उसे निकालने के लिए सामग्रियों का इंतजाम किया। मुझे कोई अंदाजा नहीं था कि अगर उन्होंने मेरे खिलाफ भी वही तरकीब अपनाई, तो मैं क्या करूँगी। मैं बहुत डरी हुई थी। कभी-कभी मैं इसे अधिक आशावादी नजर से देखती; सोचती कि शायद किसी ने सच में मेरी रिपोर्ट की होगी और छानबीन के बाद वे मुझे फिर से सभाएँ करने और कर्तव्य निभाने दे सकते हैं। मैं आशावाद और निराशावाद के बीच झूलती रही। लगा जैसे मेरा सिर फट जाएगा। मैं दुखी थी और ऐसा लगता था मानो मेरे सीने पर बहुत भारी बोझ हो। मुझे नहीं पता था कि इस स्थिति से कैसे उबरूँ और मेरे मन में परमेश्वर की संप्रभुता को लेकर फिर से संदेह के बादल मंडराने लगे। मैंने फौरन परमेश्वर से प्रार्थना की कि वह मुझ पर नजर बनाए रखे, ताकि मैं उसमें अपनी आस्था न गँवाऊँ या उसके कार्य पर संदेह न करूँ। मैं जानती थी कि परमेश्वर यह सब मेरे साथ होने दे रहा था और यह मेरे जीवन के लिए फायदेमंद होगा। मैं शांत होकर सच में सत्य खोजना चाहती थी। उस दौरान मैंने परमेश्वर की संप्रभुता को समझने और परीक्षणों का सामना करने के बारे में परमेश्वर के बहुत से वचन पढ़े और मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर यह सब मेरे साथ होने दे रहा है। कोई मसीह-विरोधी या दुष्ट व्यक्ति कितना ही बुरा क्यों न हो, परमेश्वर की अनुमति के बिना वह मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता था। मैं यह नहीं कह सकती थी कि वे झूठे अगुआ और मसीह-विरोधी मेरे साथ क्या करेंगे, पर मुझे इंतजार करके सत्य की खोज करना सीखना चाहिए, और कम से कम परमेश्वर को दोष तो नहीं देना चाहिए या शैतान को मेरी हँसी उड़ाने नहीं देना चाहिए। अगर उन्होंने मुझे निकाल भी दिया, तो मैं आस्था रखना नहीं छोड़ूँगी, और सुसमाचार का प्रचार करके अभी भी अपना कर्तव्य निभाऊँगी। इस तरह से सोचने पर अब मुझे कोई कमजोरी महसूस नहीं हुई और न ही कोई डर लगा।

करीब दो हफ्ते गुजरने के बाद, मैरिलिन की छोटी बहन ने मुझे बहन जेन का मूल्यांकन लिखने को कहा, जिसने मुझे मैरिलिन की रिपोर्ट की थी। मुझे एहसास हुआ कि वे शायद उसे कलीसिया से निकालने के लिए सामग्री तैयार कर रहे हैं, इसलिए मैंने शांत मन से उन सारी बातों पर अच्छी तरह गौर किया जो बीते दिनों हुई थीं और तब मैरिलिन और दूसरे लोगों ने क्या कुछ किया था। लगा जैसे मुझे उनके बारे में अधिक समझ है। मैंने परमेश्वर के वचन का एक अंश पढ़ा : “जब कोई मसीह-विरोधी किसी विरोधी पर आक्रमण करके उसे निकाल देता है, तो उसका मुख्य उद्देश्य क्या होता है? वे लोग कलीसिया में एक ऐसी स्थिति पैदा करने का प्रयास करते हैं जहाँ उनकी आवाज के विरोध में कोई आवाज न उठे, जहाँ उनकी सत्ता, उनकी अगुआई का दर्जा और उनके शब्द सब सर्वोपरि हों। सभी को उनकी बात माननी चाहिए, भले ही उनमें मतभेद हो, उन्हें इसे व्यक्त नहीं करना चाहिए, बल्कि इसे अपने दिल में सड़ने देना चाहिए। जो कोई भी उनके साथ खुले तौर पर असहमत होने का साहस करता है, वह मसीह-विरोधी का दुश्मन बन जाता है, वे सोचते रहते हैं कि किसी भी तरह उनके लिए हालात को मुश्किल बना दिया जाए और उन्हें गायब कर देने के लिए बेचैन रहते हैं। यह उन तरीकों में से एक है जिसके जरिए मसीह-विरोधी अपने रुतबे को मजबूत करने और अपनी सत्ता की रक्षा के लिए विरोध करने वालों पर आक्रमण कर उन्हें निकाल देते हैं। वे सोचते हैं, ‘तुम्हारी राय मुझसे अलग हो सकती है, लेकिन तुम उसके बारे में मनचाही बातें नहीं बना सकते, मेरी सत्ता और हैसियत को जोखिम में तो बिल्कुल नहीं डाल सकते। अगर कुछ कहना है, तो मुझसे अकेले में कह सकते हो। यदि तुम सबके सामने कहकर मुझे शर्मिंदा करोगे तो मुसीबत को बुलावा दोगे, और मुझे तुम्हारा ध्यान रखना पड़ेगा!’ यह किस प्रकार का स्वभाव है? मसीह-विरोधी दूसरों को खुलकर नहीं बोलने देते। अगर उनकी कोई राय होती है—फिर वह चाहे मसीह-विरोधी के बारे में हो या किसी और चीज के बारे में—तो वे खुद उसे यूँ ही सामने नहीं ला सकते; उन्हें मसीह-विरोधी के चेहरे के भावों का ख्याल रखना चाहिए। अगर ऐसा नहीं किया, तो मसीह-विरोधी उन्हें शत्रु घोषित कर देगा, और उन पर आक्रमण कर उन्हें निकाल देगा। यह किस तरह की प्रकृति है? यह एक मसीह-विरोधी की प्रकृति है। और वे ऐसा क्यों करते हैं? वे कलीसिया के लिए किसी वैकल्पिक आवाज की अनुमति नहीं देते, वे कलीसिया में अपने विरोधी को नहीं रहने देते, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को खुले तौर पर सत्य की संगति और लोगों की पहचान नहीं करने देते। वे सबसे ज्यादा इस बात से डरते हैं कि कहीं लोग उन्हें पहचानकर उजागर न कर दें; वे लगातार अपनी सत्ता और लोगों के दिलों में अपनी हैसियत को मजबूत करने की कोशिश में लगे रहते हैं, उन्हें लगता है हैसियत हमेशा बनी रहनी चाहिए। वे ऐसी कोई चीज बरदाश्त नहीं कर सकते, जो एक अगुआ के रूप में उनके गौरव, प्रतिष्ठा या हैसियत और मूल्य को धमकाए या उस पर असर डाले। क्या यह मसीह-विरोधियों की दुर्भावनापूर्ण प्रकृति की अभिव्यक्ति नहीं है? वे पहले से मौजूद अपनी ताकत से संतुष्ट नहीं होते, वे उसे भी मजबूत और सुरक्षित बनाकर शाश्वत सत्ता चाहते हैं। वे केवल लोगों के व्यवहार को ही नियंत्रित नहीं करना चाहते, बल्कि उनके दिलों को भी नियंत्रित करना चाहते हैं(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद दो : वे विरोधियों पर आक्रमण करते हैं और उन्हें निकाल देते हैं)। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि कलीसिया में अपनी ताकत और ओहदा बढ़ाने के लिए मसीह-विरोधी ऐसे किसी भी व्यक्ति को दबाएंगे और दंडित करेंगे जो उनसे सहमत नहीं है या उनकी रिपोर्ट करता है। क्या मैरिलिन और उसके सहयोगी ठीक उन मसीह-विरोधियों जैसे नहीं हैं जिनका परमेश्वर ने जिक्र किया है? जब कुछ भाई-बहनों ने साफ तौर पर उनकी हरकत देखी और उनकी रिपोर्ट की, तो मैरिलिन के गिरोह ने उनके खिलाफ कुछ ढूंढ निकाला और उन्हें बर्खास्त कर दिया। वे उन सभी पर नजर रखते थे जो उन्हें पहचान चुके थे, और अपने खिलाफ जाने वाले किसी भी व्यक्ति की निंदा कर उसे कलीसिया से निकाल देते थे। उन्होंने तो अपने रिश्तेदारों और अपनी पसंद के लोगों को अगुआओं और कर्मियों की जगह लेने तक की व्यवस्था कर दी थी। वे सब मिलकर पहले ही एक गुट बना चुके थे। चीजें तब और ज्यादा बिगड़ गईं जब हमने वह रिपोर्ट लिखी—वे मसीह-विरोधियों का पक्का गिरोह थे! अगर मैं उनके कुकर्मों की रिपोर्ट नहीं करती, तो न केवल कलीसिया का काम खराब होता, बल्कि कलीसिया में मौजूद सभी भाई-बहनों का नुकसान हो जाता। मगर उनकी रिपोर्ट करने के विचार ने मुझे फिर से डरा दिया। मैंने सोचा, “वे सभी अगुआओं की भूमिकाओं में हैं और मैं पहले ही बर्खास्त होकर सभाओं में हिस्सा लेने से निलंबित की जा चुकी हूँ। अगर मैंने फिर से उनकी रिपोर्ट की, तो क्या लोग मेरा विश्वास करेंगे? अगर पहले की तरह मेरी रिपोर्ट उनके हाथ लग गई, तो न सिर्फ इसका कोई अच्छा नतीजा नहीं निकलेगा, बल्कि वे मुझे कलीसिया से निकाल भी सकते हैं। फिर मेरे लिए सब खत्म हो जाएगा!” कलीसिया से निकाले जाने के विचार से शरीर में सिहरन दौड़ गई। मगर फिर मैंने सोचा कि कैसे उन्होंने कलीसिया का काम बुरी तरह से खराब कर दिया है और अभी भी वे भाई-बहनों को दबाने और दंडित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे। अगर मैंने उनके डर से रिपोर्ट नहीं लिखी और उन्हें मनमानी करने दी, तो न जाने कितने और भाई-बहनों को कष्ट उठाना पड़ेगा। यह परमेश्वर के सामने बहुत गंभीर अपराध होगा और वह यकीनन मुझसे नफरत करके मुझे त्याग देगा। उन दिनों मेरा खाना या सोना भी मुहाल हो गया था। बाद में भाई मैक्स ने मुझे फोन करके पूछा कि हमने असल में अपनी रिपोर्ट में क्या लिखा और मौजूदा हालात के बारे में मैं क्या सोचती हूँ। मैंने कहा, “बस देखते हैं आगे क्या-क्या होता है।” उसने जवाब दिया, “क्या तुम्हें लगता है कि अगर तुमने अपना मन बनाकर अभी उसकी रिपोर्ट नहीं की, तो मैरिलिन तुम्हें ऐसे ही छोड़ देगी? यह कोई निजी मामला नहीं है, इसमें कलीसिया का कार्य शामिल है। इस बारे में जरा सोचो।” फोन रखने के बाद, मैं उसकी बात पर गौर किये बिना नहीं रह सकी। मेरा दम घुट रहा था और मैं नहीं जानती थी कि अब क्या करूँ। एक पल के लिए मैं लड़ना और दूसरी रिपोर्ट लिखना चाहती थी और दूसरे ही पल अपने भविष्य और किस्मत के बारे में सोचने लगती; मुझे कलीसिया से निकाले जाने की चिंता सताने लगती और सोचती कि मेरी आस्था भरी जिंदगी का अंत कैसा होगा। मेरे अंदर काफी हलचल मची थी। फिर मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश देखा : “जब तक लोग परमेश्वर के कार्य का अनुभव नहीं कर लेते हैं और सत्य को समझ नहीं लेते हैं, तब तक यह शैतान की प्रकृति है जो भीतर से इन पर नियंत्रण कर लेती है और उन पर हावी हो जाती है। उस प्रकृति में विशिष्ट रूप से क्या शामिल होता है? उदाहरण के लिए, तुम स्वार्थी क्यों हो? तुम अपने पद की रक्षा क्यों करते हो? तुम्हारी भावनाएँ इतनी प्रबल क्यों हैं? तुम उन अधार्मिक चीज़ों से प्यार क्यों करते हो? ऐसी बुरी चीजें तुम्हें अच्छी क्यों लगती हैं? ऐसी चीजों को पसंद करने का आधार क्या है? ये चीजें कहाँ से आती हैं? तुम इन्हें स्वीकारकर इतने खुश क्यों हो? अब तक, तुम सब लोगों ने समझ लिया है कि इन सभी चीजों के पीछे मुख्य कारण यह है कि मनुष्य के भीतर शैतान का जहर है। तो शैतान का जहर क्या है? इसे कैसे व्यक्त किया जा सकता है? उदाहरण के लिए, यदि तुम पूछते हो, ‘लोगों को कैसे जीना चाहिए? लोगों को किसके लिए जीना चाहिए?’ तो लोग जवाब देंगे, ‘हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए।’ यह अकेला वाक्यांश समस्या की जड़ को व्यक्त करता है। शैतान का फलसफा और तर्क लोगों का जीवन बन गए हैं। लोग चाहे जिसका भी अनुसरण करें, वे ऐसा बस अपने लिए करते हैं, और इसलिए वे केवल अपने लिए जीते हैं। ‘हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए’—यही मनुष्य का जीवन-दर्शन है, और इंसानी प्रकृति का भी प्रतिनिधित्व करता है। ये शब्द पहले ही भ्रष्ट इंसान की प्रकृति बन गए हैं, और वे भ्रष्ट इंसान की शैतानी प्रकृति की सच्ची तस्वीर हैं। यह शैतानी प्रकृति पहले ही भ्रष्ट इंसान के अस्तित्व का आधार बन चुकी है। कई हजार सालों से वर्तमान दिन तक भ्रष्ट इंसान शैतान के इस जहर से जिया है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, पतरस के मार्ग पर कैसे चलें)। इस पर विचार करते हुए मैंने देखा कि मैं बार-बार खुद को बचा रही थी और मैरिलिन की रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी क्योंकि मैं इन शैतानी विषों के आधार पर जी रही थी : “जो पक्षी अपनी गर्दन उठाता है गोली उसे ही लगती है,” “समझदार लोग आत्म-रक्षा में अच्छे होते हैं, वे बस गलतियाँ करने से बचते हैं,” “चीजों को वैसे ही चलने दो अगर वे किसी को व्यक्तिगत रूप से प्रभावित न करती हों,” और “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए।” ये शैतानी विष मेरी हड्डियों और रक्त में गहराई तक जड़ें जमा चुके थे। मैं अपनी हर कथनी और करनी में हमेशा खुद के बारे में सोचती थी, मैं बेहद स्वार्थी और मक्कार थी। विश्वासी बनने से पहले, मैं ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहती थी जिससे किसी को तकलीफ पहुँचे, फिर चाहे बात कार्य-संबंधी हो या निजी जीवन-संबंधी। कलीसिया से जुड़ने के बाद भी मैं इन शैतानी फलसफों के आधार पर जीती रही, सत्य पर अमल करने के बजाय हर मोड़ पर खुद को बचाने का काम किया। मैं जानती थी कि मैरिलिन और उसके सहयोगी मसीह-विरोधियों का गिरोह हैं और मुझे परमेश्वर के पक्ष में खड़े होकर उनकी रिपोर्ट करनी चाहिए। फिर भी मैंने सिर्फ अपने भविष्य और किस्मत के बारे में सोचा, कलीसिया के काम या भाई-बहनों के जीवन का कोई ख्याल नहीं किया। यह भला कैसी परमेश्वर की गवाही थी? मैं तो कुकर्म कर रही थी!

बाद में मैंने इस बात पर गौर करना शुरू किया कि मैं उनसे इतनी ज्यादा क्यों डरती थी। क्या वे मेरी किस्मत तय कर सकते हैं? क्या मेरा भविष्य और किस्मत पूरी तरह से परमेश्वर के हाथों में नहीं है? मसीह-विरोधी दुष्ट ताकतों से इतना अधिक डरना क्या मेरी बेवकूफी नहीं थी? मैंने परमेश्वर के वचनों पर विचार किया : “परमेश्वर के कोप की अभिव्यक्ति इस बात की प्रतीक है कि समस्त दुष्ट ताकतें अस्तित्व में नहीं रहेंगी, और यह इस बात की प्रतीक है कि सभी विरोधी शक्तियाँ नष्ट कर दी जाएँगी। यह परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव और उसके कोप की अद्वितीयता है। जब परमेश्वर की गरिमा और पवित्रता को चुनौती दी जाती है, जब मनुष्य द्वारा न्याय की ताकतों को रोका जाता है और उनकी अनदेखी की जाती है, तब परमेश्वर अपने कोप को भेजता है। परमेश्वर के सार के कारण पृथ्वी की वे सारी ताकतें, जो परमेश्वर का मुकाबला करती हैं, उसका विरोध करती हैं और उसके साथ संघर्ष करती हैं, दुष्ट, भ्रष्ट और अन्यायी हैं; वे शैतान से आती हैं और उसी से संबंधित हैं। चूँकि परमेश्वर न्यायी है, प्रकाशमय है, दोषरहित और पवित्र है, इसलिए समस्त दुष्ट, भ्रष्ट और शैतान से संबंध रखने वाली चीज़ें परमेश्वर का कोप प्रकट होने पर नष्ट हो जाएँगी(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है II)। परमेश्वर का घर सांसारिक जगत जैसा नहीं है—यहाँ परमेश्वर की सत्ता है। वह सत्य और धार्मिक है, वह उन सभी चीजों का प्रतीक है जो रोशन, अच्छी और खूबसूरत हैं। शैतान की कोई भी अँधेरी और दुष्ट ताकत जैसे कि मसीह-विरोधी और बुरे लोग यहाँ अपने पाँव नहीं जमा सकते, परमेश्वर उन सभी को शापित और दंडित करेगा। मेरे इतना अधिक डरने और चिंता करने की कोई वजह नहीं थी। झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों की नकेल भी परमेश्वर के हाथों में होती है। अगर उन्होंने मुझे कलीसिया से निकाल भी दिया, तो यह मेरे अनुभव के लिए जरूरी होगा। मैं जानती थी कि अब मुझे उनसे डरने की कोई जरूरत नहीं, मुझे सत्य पर अमल करके और उसके पक्ष में खड़ी होकर उनकी रिपोर्ट करनी होगी। इसलिए मैंने रिपोर्ट लिखने को लेकर चर्चा के लिए जेन को फोन किया, तो उसने बताया कि मैरिलिन और उसके सहयोगी मुझे तुरंत कलीसिया से निकालने के लिए कागजात जुटा रहे हैं। मैं पहले से जानती थी कि वे मुझे निकालने का कोई न कोई तरीका ढूंढ ही लेंगे, पर असल में इसके बारे में सुनना एक ऐसा झटका था कि डर के मारे शरीर से ठंडा पसीना छूटने लगा। फोन रखने के बाद मैंने परमेश्वर के वचनों के एक अंश पर विचार किया : “यदि कलीसिया में ऐसा कोई भी नहीं है जो सत्य का अभ्यास करने का इच्छुक हो, और परमेश्वर की गवाही में दृढ़ रह सकता हो, तो उस कलीसिया को पूरी तरह से अलग-थलग कर दिया जाना चाहिए और अन्य कलीसियाओं के साथ उसके संबंध समाप्त कर दिये जाने चाहिए। इसे ‘मृत्यु दफ़्न करना’ कहते हैं; इसी का अर्थ है शैतान को ठुकराना। यदि किसी कलीसिया में कई स्थानीय गुण्डे हैं, और कुछ ‘छोटी-मोटी मक्खियों’ द्वारा उनका अनुसरण किया जाता है जिनमें विवेक का पूर्णतः अभाव है, और यदि ऐसी कलीसियाओं में लोग, सच्चाई जान लेने के बाद भी, इन गुण्डों की जकड़न और तिकड़म को नकार नहीं पाते, तो उन सभी मूर्खों को अंत में निकाल दिया जायेगा। भले ही इन छोटी-छोटी मक्खियों ने कुछ खौफनाक न किया हो, लेकिन ये और भी धूर्त, ज़्यादा मक्कार और कपटी होती हैं, इस तरह के सभी लोगों को निकाल दिया जाएगा। एक भी नहीं बचेगा! जो शैतान से जुड़े हैं, उन्हें शैतान के पास भेज दिया जाएगा, जबकि जो परमेश्वर से संबंधित हैं, वे निश्चित रूप से सत्य की खोज में चले जाएँगे; यह उनकी प्रकृति के अनुसार तय होता है। उन सभी को नष्ट हो जाने दो जो शैतान का अनुसरण करते हैं! इन लोगों के प्रति कोई दया-भाव नहीं दिखाया जायेगा। जो सत्य के खोजी हैं उनका भरण-पोषण होने दो और वे अपने हृदय के तृप्त होने तक परमेश्वर के वचनों में आनंद प्राप्त करें। परमेश्वर धार्मिक है; वह किसी से पक्षपात नहीं करता। यदि तुम शैतान हो, तो तुम सत्य का अभ्यास नहीं कर सकते; और यदि तुम सत्य की खोज करने वाले हो, तो यह निश्चित है कि तुम शैतान के बंदी नहीं बनोगे—इसमें कोई संदेह नहीं है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं उनके लिए एक चेतावनी)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद, मैं वाकई परमेश्वर के पवित्र और धार्मिक स्वभाव को महसूस कर पाई जो इंसान का कोई अपराध सहन नहीं करता है। परमेश्वर झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों को कलीसिया का काम बिगाड़ने या अपने चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचने नहीं देगा। परमेश्वर उन लोगों से नफरत करता है जो झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों के आने पर सत्य का अभ्यास नहीं करते या कलीसिया के कार्य को कायम नहीं रखते। अगर ऐसे लोग पश्चात्ताप नहीं करते हैं, तो उनका हटाया जाना और दंडित होना तय है। अगर मैं मैरिलिन के झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों के गिरोह का सामना होने पर सत्य का अभ्यास करने में विफल रही और उनकी रिपोर्ट करने का फैसला नहीं लिया, क्या इसका मतलब यह नहीं होगा कि मैं शैतान के पक्ष में खड़ी थी और उसे कलीसिया के काम में बाधा डालने दे रही थी? फिर मैं भी उनके कुकर्म में भागीदार बनूंगी! मैं उस सत्य का आनंद ले रही थी जो परमेश्वर ने हमें प्रदान किया है, वह सब खा-पी रही थी जो उसने मुझे दिया है, मगर जब मसीह-विरोधी कलीसिया के कार्य में पागलों की तरह बाधा डालकर परमेश्वर के चुने हुए लोगों को दबा रहे थे, तो मैंने कलीसिया के कार्य की रक्षा नहीं की। मैं दुश्मन का पक्ष ले रही थी। यह परमेश्वर के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात था, जिसकी वह निंदा करता है। जैसा कि परमेश्वर ने कहा : “उन सभी को नष्ट हो जाने दो जो शैतान का अनुसरण करते हैं!” तब जाकर मुझे वाकई बहुत डर लगा। अगर मैंने पश्चात्ताप नहीं किया, तो निकाल दिए जाने के बाद भी झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों के साथ मेरी भी निंदा की जाएगी और मुझे हटा दिया जाएगा। यह एहसास होने पर मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की। मैंने कहा, “हे परमेश्वर, मैं तुम्हारे सामने पश्चात्ताप करना चाहती हूँ और बहुत अधिक सतर्क होकर खुद की रक्षा करना बंद कर देना चाहती हूँ। मैं सत्य का अभ्यास करना चाहती हूँ और शैतान की अँधेरी ताकतों के आगे बेबस नहीं होना चाहती। मैं एक सही फैसला लेकर कलीसिया के कार्य की रक्षा करना चाहती हूँ। मैं जानती हूँ कि मुझे उन मसीह-विरोधियों की रिपोर्ट करनी होगी और उनके बारे में जो भी जानती हूँ वह सब लिखना होगा, भले ही आखिर में मुझे कलीसिया से निकाल दिया जाये।” उसके बाद दूसरी बहन ने मेरी रिपोर्ट सीधे बड़े अगुआ तक पहुँचाने में मदद की। जाँच-पड़ताल कराई गई तो पता चला कि मैरिलिन और उसके सहयोगी मसीह-विरोधी हैं और उन्हें उनके काम से निलंबित कर दिया गया। उसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और गुप्त रूप से सांठ-गांठ करके एक आखिरी कोशिश की। उन्होंने अपने कुकर्मों के साक्ष्य छिपाने के लिए भाई-बहनों को गुमराह करने की कोशिश की, और यहाँ तक कि उनकी रिपोर्ट पर कार्रवाई करने की जिम्मेदार बहन की जासूसी भी की। अंत में, मसीह-विरोधियों के इस पूरे गिरोह को कलीसिया से निकाल दिया गया; जिन भाई-बहनों को दबाया और निंदित किया गया था वे सभी फिर से सामान्य कलीसिया जीवन जीने और अपना कर्तव्य निभाने में सक्षम हुए।

इन सारे अनुभवों से गुजरकर, मैंने सच में परमेश्वर के धार्मिक और अपमान न किये जा सकने वाले स्वभाव को महसूस किया और मैंने देखा कि परमेश्वर के घर में सत्य, परमेश्वर और धार्मिकता का शासन चलता है। शैतान कितना ही बुरा या ताकतवर क्यों न दिखता हो, वह सिर्फ एक औजार है जिसका इस्तेमाल परमेश्वर अपने चुने हुए लोगों को पूर्ण बनाने के लिए करता है। परमेश्वर के वचन कहते हैं : “हम हमेशा यह बोलते हैं कि शैतान कितना दुष्ट, शातिर और दुर्भावनापूर्ण है, कि शैतान सत्य से विमुख है और उससे घृणा करता है, लेकिन क्या तुम इसे देख सकते हो? क्या तुम देख सकते हो कि शैतान आध्यात्मिक क्षेत्र में क्या करता है? वह कैसे बोलता और कार्य करता है, सत्य और परमेश्वर के प्रति उसका क्या रवैया है, उसकी दुष्टता कहाँ निहित है—तुम इनमें से कुछ भी नहीं देख सकते। इसलिए, चाहे हम कितना भी कहें कि शैतान दुष्ट है, वह परमेश्वर का प्रतिरोध करता है और सत्य से विमुख है, लेकिन तुम्हारे मन में यह केवल एक वक्तव्य होता है। इसकी कोई सच्ची छवि नहीं होती। यह बहुत खोखला और अव्यावहारिक होता है; यह एक व्यावहारिक संदर्भ नहीं हो सकता। लेकिन जब कोई किसी मसीह-विरोधी के संपर्क में आता है, तो वह शैतान का दुष्ट, शातिर स्वभाव और सत्य से विमुख होने का उसका सार थोड़ा अधिक स्पष्ट रूप से देख लेता है, और शैतान के बारे में उसकी समझ थोड़ी अधिक तीक्ष्ण और व्यावहारिक हो जाती है। इन वास्तविक आंकड़ों और उदाहरणों के संपर्क में आए बिना और इन्हें देखे बिना सत्य की उनकी तथाकथित समझ अस्पष्ट, खोखली और अव्यावहारिक ही होगी। लेकिन जब लोग इन मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों के वास्तविक संपर्क में आते हैं, तो वे देख सकते हैं कि वे किस प्रकार बुराई और परमेश्वर का प्रतिरोध करते हैं, और वे शैतान के प्रकृति सार को पहचान सकते हैं। वे देखते हैं कि ये बुरे लोग और मसीह-विरोधी देहधारी शैतान हैं—कि वे जीते-जागते शैतान, जीते-जागते दानव हैं। मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों के संपर्क का ऐसा प्रभाव हो सकता है। जब शैतान एक बुरे व्यक्ति या मसीह-विरोधी के रूप में देहधारण करता है, तो उसके दैहिक शरीर की क्षमताएँ केवल इतनी ही होती हैं, फिर भी वह बहुत सारे बुरे काम कर सकता है, बहुत अधिक समस्या खड़ी कर सकता है और अपने आचरण और कर्म में बहुत दुष्ट और कपटी हो सकता है। इसलिए, आध्यात्मिक क्षेत्र में शैतान जो बुराई करता है वह देह में रहने वाले सभी बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों द्वारा की जाने वाली बुराई के कुल योग से सौ या हजार गुना अधिक होती है। तो, बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों के संपर्क में आने से लोग जो सबक सीखते हैं, वे उनके लिए विवेक विकसित करने और शैतान का चेहरा स्पष्ट रूप से देखने में बहुत मददगार होते हैं। वे लोगों को यह पहचानने में सक्षम बनाते हैं कि कौन-सी चीजें सकारात्मक हैं और कौन-सी चीजें नकारात्मक, परमेश्वर किससे घृणा करता है और किससे प्रसन्न होता है, सत्य क्या है और भ्रांति क्या है, न्याय क्या है और दुष्टता क्या है, परमेश्वर वास्तव में किस चीज से नफरत करता है और किससे प्रेम करता है और परमेश्वर किन लोगों को ठुकराता और हटाता है और किन्हें स्वीकृति देता है और किन्हें प्राप्त करता है। इन प्रश्नों को केवल धर्म-सिद्धांत के संदर्भ में समझने का प्रयास करना व्यर्थ है। व्यक्ति को बहुत-सी चीजों का अनुभव करना चाहिए, इसमें विशेष रूप से बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह होने और बाधाएँ पैदा करना शामिल है। जब तक व्यक्ति को सच्ची समझ नहीं होती है तब तक वह ये अनेक सत्य नहीं समझ सकता और इस बात की गहरी और अधिक व्यावहारिक समझ प्राप्त नहीं कर सकता कि परमेश्वर की अपेक्षा क्या है और वह क्या हासिल करना चाहता है। क्या इससे परमेश्वर के इरादों की अधिक समझ पैदा नहीं होती है? क्या यह तुम्हें अधिक आश्वस्त नहीं कर सकता है कि परमेश्वर सत्य है और वह सबसे प्यारा है? (हाँ।) परमेश्वर ने लोगों को चीजों का अनुभव करने के दौरान सबक सिखाए हैं और उनका विवेक विकसित किया है, और वह निश्चित रूप से लोगों को प्रशिक्षण भी दे रहा है, साथ ही प्रत्येक प्रकार के लोगों को प्रकट भी कर रहा है। जब कुछ लोगों का सामना किसी बुरे व्यक्ति या मसीह-विरोधी से होता है, तो वे उसे बेनकाब करने या पहचानने की हिम्मत नहीं करते, और उसके संपर्क में आने का साहस नहीं करते। वे डरते हैं, और बस उससे बचने की कोशिश करते हैं, मानो उन्होंने कोई जहरीला साँप देख लिया हो। ऐसे लोग सबक सीखने के मामले में बहुत कमजोर होते हैं, और उनमें विवेक विकसित नहीं हो पाता। कुछ लोग किसी बुरे व्यक्ति या मसीह-विरोधी से सामना होने पर सबक सीखने या समझ हासिल करने पर कोई ध्यान नहीं देते हैं; वे अपने गुस्से को अपने व्यवहार को निर्देशित करने देते हैं, और जब किसी मसीह-विरोधी को उजागर करने और पहचानने का समय आता है, तो वे किसी काम के नहीं हो सकते या कुछ व्यावहारिक नहीं कर सकते। कुछ लोग किसी मसीह-विरोधी को बहुत अधिक बुराई करते हुए देखते हैं और वे इसके प्रति दिल से विमुख महसूस करते हैं, लेकिन उन्हें लगता है कि वे इस बारे में कुछ भी नहीं कर सकते और उनके हाथ बँधे हुए हैं। नतीजतन उनके साथ मसीह-विरोधी मनमाने ढंग से खिलवाड़ करते हैं और वे इसे सहते रहते हैं और वे इससे समझौता कर लेते हैं। वे मसीह-विरोधी को लापरवाही से काम करने और कलीसिया के काम में बाधा डालने देते हैं और वे उनकी रिपोर्ट नहीं करते या उन्हें उजागर नहीं करते। वे मनुष्य होने के नाते अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्य निभाने में विफल रहते हैं। संक्षेप में कहें तो जब बुरे लोग और मसीह-विरोधी कहर बरपाते हैं और मनमानी करते हैं, तो यह सभी प्रकार के लोगों को प्रकट करता है, और बेशक, यह उन लोगों को प्रशिक्षित करने का काम भी करता है, जो सत्य का अनुसरण करते हैं और जिनमें न्याय की भावना होती है, जिससे उनका विवेक और अंतर्दृष्टि बढ़ती है, वे कुछ सीख पाते हैं और वे इससे परमेश्वर के इरादों को समझ पाते हैं। वे परमेश्वर के किन इरादों को समझ पाते हैं? उन्हें यह समझाया जाता है कि परमेश्वर मसीह-विरोधियों को नहीं बचाता, बल्कि सेवा प्रदान करने के लिए बस उनका उपयोग करता है और जब मसीह-विरोधियों द्वारा सेवा प्रदान करने का काम पूरा हो जाता है, तब परमेश्वर उन्हें बेनकाब करके हटा देता है और अंततः उन्हें दंडित करता है, क्योंकि वे बुरे लोग हैं और शैतान के हैं। जिन्हें परमेश्वर बचाता है, वे ऐसे लोगों का एक समूह है जो अपने भ्रष्ट स्वभावों के बावजूद सकारात्मक चीजों से प्रेम करते हैं और यह पहचानते हैं कि परमेश्वर सत्य है, वे उसकी संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होते हैं और कोई अपराध करने के बावजूद सच्चा पश्चात्ताप करने में सक्षम होते हैं। ये लोग काट-छाँट, न्याय और ताड़ना स्वीकार सकते हैं, और इससे भी बढ़कर, जब दूसरे लोग उन्हें उजागर करते हैं या उनकी समस्याएँ बताते हैं तो वे इसे सही नजरिये से ले सकते हैं। परमेश्वर चाहे जैसे भी कार्य करे, जो लोग उस कार्य को स्वीकार कर उसके प्रति समर्पण कर सकते हैं और उससे कुछ सीख सकते हैं—ऐसे लोगों का समूह ही वास्तव में परमेश्वर का अनुसरण करता है, उसके कार्य का अनुभव करता है और उसके द्वारा प्राप्त किया जाता है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग आठ))। उन मसीह-विरोधियों के हाथों दबाये जाने का अनुभव करके मैंने इसकी असली झलक देखी कि वे अपनी प्रकृति में कितने बुरे और निर्दयी होते हैं। वे ऐसे किसी भी व्यक्ति की निंदा करके उसे निकाल देते हैं जो उन्हें पहचान जाता है या जो उनकी बातों पर ध्यान न देकर उनकी रिपोर्ट करता है या उनके ओहदे के लिए खतरा बनता है। इतना ही नहीं, उनमें अंतरात्मा या विवेक नाम की चीज ही नहीं होती। वे चाहे कितनी भी दुष्टता करें या कितने ही लोगों को दबाएँ, चाहे उनकी कितनी ही बार काट-छाँट की जाए और उन्हें उजागर किया जाए, उन्हें जरा-सा भी अफसोस या पछतावा नहीं होता। मैंने देखा कि मसीह-विरोधी अपने सार में सत्य से विमुख होते हैं और उससे नफरत करते हैं। वे परमेश्वर के शत्रु हैं, धरती पर फिर से पैदा हुए राक्षस हैं। मैंने यह भी अनुभव किया कि अगर तुम उनकी ताकत से डर कर उन्हें उजागर करने और उनकी रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं करते हो, तो आखिर में तुम्हें दबाया जाएगा, दंडित किया जाएगा और नुकसान पहुँचाया जाएगा। उनसे लड़ने के लिए तुम्हें परमेश्वर के पक्ष में खड़े होकर उसके वचनों और सत्य का सहारा लेना होगा। तुम्हें उनकी रिपोर्ट करके उनका त्याग करना होगा और उन्हें कलीसिया से निकाल बाहर करना होगा। उनकी ताकत और नियंत्रण से बचने और शैतान पर जीत हासिल करने का यही एकमात्र तरीका है। परमेश्वर के वचनों के दम पर ही मैं यह सब हासिल करने में सफल रही! परमेश्वर का धन्यवाद!

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