2. दुष्ट लोगों को कैसे पहचानें
अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन
बड़े लाल अजगर के देश में मैंने कार्य का एक ऐसा चरण पूरा कर लिया है जिसकी थाह मनुष्य नहीं पा सकते, जिसके कारण वे हवा में डोलने लगते हैं, जिसके बाद कई लोग हवा के वेग में चुपचाप बह जाते हैं। सचमुच, यह एक ऐसा “खलिहान” है जिसे मैं साफ करने वाला हूँ, यही मेरी लालसा है और यही मेरी योजना है। हालाँकि मेरे कार्य करते समय कई कुकर्मी लोग आ घुसे हैं, लेकिन मुझे उन्हें खदेड़ने की कोई जल्दी नहीं है। इसके बजाय, सही समय आने पर मैं उन्हें तितर-बितर कर दूँगा। केवल इसके बाद ही मैं जीवन का सोता बनूँगा, और जो लोग मुझसे सच में प्रेम करते हैं, उन्हें अपने से अंजीर के पेड़ का फल और कुमुदिनी की सुगंध प्राप्त करने दूँगा। जिस देश में शैतान का डेरा है, जो गर्दो-गुबार का देश है, वहाँ शुद्ध सोना नहीं रहा, सिर्फ रेत ही रेत है, और इसलिए, इन हालात को देखते हुए, मैं कार्य का ऐसा चरण पूरा करता हूँ। तुम्हें पता होना चाहिए कि मैं जो प्राप्त करता हूँ, वह रेत नहीं, शुद्ध, परिष्कृत सोना है। कुकर्मी मेरे घर में कैसे रह सकते हैं? मैं लोमड़ियों को अपने स्वर्ग में परजीवी कैसे बनने दे सकता हूँ। मैं इन चीजों को खदेड़ने के लिए हर संभव तरीका अपनाता हूँ। मेरे इरादे प्रकट होने से पहले कोई यह नहीं जानता कि मैं क्या करने वाला हूँ। इस अवसर का लाभ उठाते हुए मैं उन कुकर्मियों को दूर खदेड़ देता हूँ, और वे मेरी उपस्थिति छोड़कर जाने के लिए मजबूर हो जाते हैं। मैं कुकर्मियों के साथ यही करता हूँ, लेकिन फिर भी उनके लिए एक ऐसा दिन होगा, जब वे मेरे लिए सेवा कर पाएँगे।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सात गर्जनाएँ गरजती हैं—भविष्यवाणी करती हैं कि राज्य का सुसमाचार पूरे ब्रह्मांड में फैल जाएगा
अब मैं यथाशीघ्र उन लोगों का एक समूह बनाना चाहता हूँ, जो मेरे इरादों के अनुरूप हैं, ऐसे लोगों का समूह, जो मेरे बोझ पर ध्यान देने में सक्षम हैं। किंतु मैं अपनी कलीसिया की सफाई और शुद्धि करने से नहीं रुक सकता; कलीसिया मेरा हृदय है। मैं उन सभी दुष्ट लोगों से घृणा करता हूँ, जो तुम लोगों को मेरे वचन को खाने और पीने से रोकते हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि कुछ दूसरे लोग हैं, जो वास्तव में मुझे नहीं चाहते। वे लोग छल से भरे हुए हैं, वे अपने सच्चे हृदय से मेरे पास नहीं आते; वे दुष्ट हैं, और वे ऐसे लोग हैं जो मेरी इच्छा पूरी करने में बाधा डालते हैं; वे ऐसे लोग नहीं हैं जो सत्य को अमल में लाते हैं। वे लोग दंभ और अहंकार से भरे हुए हैं, वे बेतहाशा महत्वाकांक्षी हैं, वे दूसरों को नीचा दिखाना पसंद करते हैं, और हालाँकि वे जो वचन बोलते हैं वे सुनने में सुखद होते हैं, लेकिन एकांत में वे सत्य का अभ्यास नहीं करते। इन सभी दुष्ट लोगों को अलग कर बुहार दिया जाएगा; वे आपदा में मुरझा जाएँगे।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 24
हो सकता है, परमेश्वर में अपने इतने वर्षों के विश्वास के दौरान तुमने कभी किसी को कोसा न हो या कोई बुरा कार्य न किया हो, फिर भी अगर मसीह के साथ अपने जुड़ाव में तुम सच नहीं बोल सकते, ईमानदारी से कार्य नहीं कर सकते, या मसीह के वचन को समर्पित नहीं हो सकते; तो मैं कहूँगा कि तुम संसार में सबसे अधिक कुटिल और दुष्ट व्यक्ति हो। तुम अपने रिश्तेदारों, दोस्तों, पत्नी (या पति), बेटे-बेटियों और माता-पिता के प्रति अत्यंत सौम्य और निष्ठावान हो सकते हो, और शायद कभी दूसरों का फायदा न उठाते हो, लेकिन अगर तुम मसीह के साथ संगत नहीं हो पाते, उसके साथ सामंजस्यपूर्ण व्यवहार नहीं कर पाते, तो भले ही तुम अपने पड़ोसियों की सहायता के लिए अपना सब-कुछ खपा दो या अपने माता-पिता और घरवालों की अच्छी देखभाल करो, तब भी मैं कहूँगा कि तुम दुष्ट व्यक्ति हो, और इतना ही नहीं, शातिर चालों से भरे हुए हो।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो मसीह के साथ असंगत हैं वे निश्चित ही परमेश्वर के विरोधी हैं
भाइयों-बहनों में से जो लोग हमेशा अपनी नकारात्मकता का गुबार निकालते रहते हैं, वे शैतान के अनुचर हैं और वे कलीसिया को परेशान करते हैं। ऐसे लोगों को अवश्य ही एक दिन निकाल दिया जाना चाहिए। परमेश्वर में विश्वास रखते हुए अगर लोगों के पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल न हो, परमेश्वर के प्रति समर्पण करने वाला दिल न हो, तो ऐसे लोग न सिर्फ परमेश्वर के लिए कोई कार्य कर पाने में असमर्थ होंगे, बल्कि वे परमेश्वर के कार्य में बाधा डालने वाले और उसका विरोध करने वाले लोग बन जाएंगे। परमेश्वर में विश्वास करना किन्तु उसके प्रति समर्पण न करना या उसका भय न मानना और उसका प्रतिरोध करना, किसी भी विश्वासी के लिए सबसे बड़ा कलंक है। यदि विश्वासी अपनी बोली और आचरण में हमेशा ठीक उसी तरह लापरवाह और असंयमित हों जैसे अविश्वासी होते हैं, तो ऐसे लोग अविश्वासी से भी अधिक दुष्ट होते हैं; ये मूल रूप से राक्षस हैं। जो लोग कलीसिया के भीतर विषैली, दुर्भावनापूर्ण बातों का गुबार निकालते हैं, भाई-बहनों के बीच अफवाहें व अशांति फैलाते हैं और गुटबाजी करते हैं, तो ऐसे सभी लोगों को कलीसिया से निकाल दिया जाना चाहिए था। अब चूँकि यह परमेश्वर के कार्य का एक भिन्न युग है, इसलिए ऐसे लोग नियंत्रित हैं, क्योंकि उन्हें निश्चित रूप से निकाला जाना है। शैतान द्वारा भ्रष्ट ऐसे सभी लोगों के स्वभाव भ्रष्ट हैं। कुछ के स्वभाव पूरी तरह से भ्रष्ट हैं, जबकि अन्य लोग इनसे भिन्न हैं : न केवल उनके स्वभाव शैतानी हैं, बल्कि उनकी प्रकृति भी बेहद विद्वेषपूर्ण है। उनके शब्द और कृत्य न केवल उनके भ्रष्ट, शैतानी स्वभाव को प्रकट करते हैं, बल्कि ये लोग असली दानव और शैतान हैं। उनके आचरण से परमेश्वर के कार्य में गड़बड़ी और विघ्न पैदा होता है; इससे भाई-बहनों के जीवन प्रवेश में विघ्न पड़ता है और कलीसिया के सामान्य कार्यकलापों को क्षति पहुंचती है। आज नहीं तो कल, भेड़ की खाल में छिपे इन भेड़ियों का सफाया किया जाना चाहिए, और शैतान के इन अनुचरों के प्रति एक सख्त और अस्वीकृति का रवैया अपनाया जाना चाहिए। केवल ऐसा करना ही परमेश्वर के पक्ष में खड़ा होना है; और जो ऐसा करने में विफल हैं वे शैतान के साथ कीचड़ में लोट रहे हैं।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं उनके लिए एक चेतावनी
बुरे लोग कुटिल, दुष्ट और विषाक्त चीजों से प्यार करते हैं; वे उन सबसे प्रेम करते हैं जो नकारात्मक चीजों से जुड़ा हुआ है। जब तुम उनके साथ सकारात्मक चीजों के बारे में बात करते हो, या इस बारे में बात करते हो कि किस प्रकार जिस किसी चीज से लोगों को लाभ होता है और वह चीज परमेश्वर से आती है, तो वे न इससे खुश होते हैं, न ही इसके बारे में सुनना चाहते हैं—उनके पास बचाए जाने की कोई उम्मीद नहीं होती है। कोई उनके साथ सत्य पर चाहे कितनी अच्छी तरह संगति कर ले या उनसे कितने ही व्यावहारिक ढंग से बात कर ले, इसमें उनकी बिल्कुल भी रुचि नहीं होती, और वे शायद वैर-भाव और शत्रुता भी व्यक्त कर सकते हैं। लेकिन किसी के मुँह से दैहिक सुखों के बारे में सुनते ही उनकी आँखों में चमक आने लगती है, और वे उत्साह से भर उठते हैं। यह दुष्ट और कुटिल स्वभाव है, और वे नेक दिल वाले नहीं होते हैं। इसलिए वे शायद सकारात्मक चीजों से प्रेम नहीं करते। अपने दिल में वे सकारात्मक चीजों को कैसा मानते हैं? वे उनसे नफरत करते हैं और हिकारत से देखते हैं, वे इन चीजों की हँसी उड़ाते हैं। जब ईमानदार व्यक्ति बनने की बात होती है तो वे सोचते हैं, “ईमानदार होने से तुम घाटे में रहते हो। मैं तो ऐसा करने से रहा! अगर तुम ईमानदार हो तो मूर्ख कहलाओगे। खुद को देखो, तुम अपना कर्तव्य निभाने के लिए कितने कष्ट झेल रहे हो और कड़ी मेहनत कर रहे हो, न तुम्हें अपने भविष्य की चिंता है और न ही अपनी सेहत की। अगर तुम थक कर ढेर हो गए तो कौन तुम्हारी परवाह करेगा? मैं खुद को थकाकर चूर नहीं कर सकता।” कोई और कह सकता है, “चलो अपने बच निकलने के लिए रास्ता छोड़ दें। हम मूर्खों की तरह अपनी कमर नहीं तोड़ सकते। हमें अपनी वैकल्पिक योजना बनानी होगी और फिर थोड़ा-सी ही मेहनत और करनी होगी।” यह सुनकर बुरे लोग खुश हो जाएँगे; यह बात उन्हें रास आ जाती है। लेकिन जब परमेश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण दिखाने और पूरी निष्ठा से खुद को अपने कर्तव्य के लिए खपाने की बात आती है, तो उन्हें चिढ़ और नफरत होती है, और वे इसे स्वीकारते नहीं हैं। क्या ऐसा इंसान दुष्ट नहीं होता? ऐसे सभी लोगों का दुष्ट स्वभाव होता है। जब तक तुम उनके साथ सत्य पर संगति और अभ्यास के सिद्धांतों के बारे में बात करते हो, वे चिढ़ते रहते हैं और सुनना नहीं चाहते हैं। उन्हें लगता है कि इससे उनके स्वाभिमान को चोट पहुँचती है, उनकी गरिमा को ठेस पहुँचती है, और उन्हें इसका कोई लाभ नहीं है। मन ही मन वे कहेंगे : “सत्य के बारे में, अभ्यास के सिद्धांतों के बारे में लगातार बात करते रहना। हमेशा ईमानदार व्यक्ति होने के बारे में बात करते रहना—क्या ईमानदारी से पेट भर पाता है? क्या ईमानदारी से बोलने से तुम्हें पैसा मिल सकता है? बेईमानी से मुझे फायदा होगा!” यह कैसा तर्क है? यह किसी लुटेरे का तर्क है। क्या यह दुष्ट स्वभाव नहीं है? क्या यह व्यक्ति दयालु है? (नहीं।) इस प्रकार का व्यक्ति सत्य हासिल नहीं कर सकता। वह जो थोड़ा-बहुत करता है, खुद को खपाता और त्यागता है, सब कुछ एक लक्ष्य की ओर निर्देशित होता है, जिसका हिसाब वह बहुत पहले ही लगा चुका होता है। वह केवल यह सोचता है कि कुछ देकर अगर बदले में कुछ ज्यादा मिले तो यह अच्छा सौदा है। यह कौन सा स्वभाव है? यह दुष्ट और कुटिल स्वभाव है।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सत्य के अनुसरण में केवल आत्म-ज्ञान ही सहायक है
जो कोई भी अक्सर कलीसिया के जीवन और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश में बाधा डालता है, वह छद्म-विश्वासी होता है और बुरा व्यक्ति होता है और उसे कलीसिया से बाहर निकाल दिया जाना चाहिए। चाहे वह व्यक्ति कोई भी हो या उसने अतीत में कैसे भी काम किया हो, अगर वह अक्सर कलीसिया के काम और कलीसिया के जीवन में बाधा डालता है, काट-छाँट से इनकार करता है, और हमेशा दोषपूर्ण तर्क के साथ खुद का बचाव करता है, तो उसे कलीसिया से बाहर निकाल दिया जाना चाहिए। यह दृष्टिकोण पूरी तरह से कलीसिया के काम की सामान्य प्रगति को बनाए रखने और पूरी तरह से सत्य सिद्धांतों और परमेश्वर के इरादों के अनुरूप रहने वाले परमेश्वर के चुने हुए लोगों के हितों की रक्षा करने के लिए है। परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश और कलीसिया के काम को कुछ बुरे व्यक्तियों के विवादों और अनुचित परेशानियों से प्रभावित नहीं होने देना चाहिए—यह इसके लायक नहीं है और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए अनुचित भी है।
... कुछ लोगों का स्वभाव बहुत क्रूरतापूर्ण होता है। यदि कोई उन्हें चोट पहुँचाने वाली या अपमानित करने वाली बात करता है, तो वे उस व्यक्ति से घृणा करते हैं, और उस पर हमला करने और प्रतिशोध लेने के तरीकों के बारे में सोचते हैं। उन्हें सत्य की चाहे जैसी संगति दी जाए, या उनकी कैसी भी काट-छाँट की जाए, वे इसे स्वीकार नहीं करते। वे पश्चात्ताप करने के बजाय मर जाना पसंद करेंगे, और कलीसिया के जीवन को बाधित करना जारी रखेंगे। इससे साबित होता है कि वे बुरे लोग हैं। हम इस तरह के बुरे लोगों को बरदाश्त नहीं कर सकते। उन्हें सत्य सिद्धांतों के अनुसार कलीसिया से बाहर निकाल देना चाहिए। इस समस्या को पूरी तरह से हल करने का यही एक तरीका है। चाहे उन्होंने कोई भी गलती की हो या कोई भी बुरा काम किया हो, क्रूर स्वभाव वाले ये लोग किसी को भी उन्हें उजागर करने या उनकी काट-छाँट नहीं करने देंगे। अगर कोई उन्हें उजागर करे और अपमानित करे, तो वे क्रोधित हो जाते हैं, जवाबी कार्रवाई करते हैं और मुद्दे को कभी नहीं छोड़ते। उनमें धैर्य और दूसरों के प्रति सहनशीलता नहीं होती, और वे उनके प्रति आत्म-नियंत्रण नहीं दिखाते। उनका स्व-आचरण किस सिद्धांत पर आधारित होता है? “मैं विश्वासघात का शिकार होने के बजाय विश्वासघात करना पसंद करूँगा।” दूसरे शब्दों में, वे किसी के द्वारा अपमानित होना बरदाश्त नहीं करते। क्या यह बुरे लोगों का तर्क नहीं है? यह ठीक बुरे लोगों का ही तर्क होता है। कोई भी उन्हें अपमानित नहीं कर सकता। उन्हें किसी के भी द्वारा थोड़ा सा भी छेड़ा जाना अस्वीकार्य होता है, और वे ऐसा करने वाले किसी भी व्यक्ति से घृणा करते हैं। वे उस व्यक्ति के पीछे लग जाते हैं, कभी भी मामले को खत्म नहीं करने देते—बुरे लोग ऐसे ही होते हैं। जैसे ही तुम्हें पता चले कि किसी में बुरे व्यक्ति का सार है तो इससे पहले कि वह कोई बड़ा कुकर्म कर सके, उस दुष्ट व्यक्ति को औरों से अलग कर दिया जाना चाहिए या उसे बाहर निकाल देना चाहिए। ऐसा करने से उसका किया नुकसान कम हो जाएगा; यह एक बुद्धिमानी भरा विकल्प है। अगर अगुआ और कार्यकर्ता तब तक इंतजार करते हैं जब तक कि कोई बुरा व्यक्ति किसी तरह की आपदा न ले आए, तो इसका मलतब है कि वे निष्क्रिय हो रहे हैं। इससे यह सिद्ध होगा कि अगुआ और कार्यकर्ता बहुत मूर्ख हैं, और उनके कार्यों में कोई सिद्धांत नहीं है। कुछ अगुआ और कार्यकर्ता ऐसे होते हैं जो इतने ही मूर्ख और अज्ञानी होते हैं। वे बुरे लोगों से निपटने से पहले निर्णायक सबूत मिलने तक इंतजार करने पर जोर देते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि यही एक तरीका है जिससे उनका दिमाग शांत रहेगा। लेकिन वास्तव में यह सुनिश्चित करने के लिए तुम्हें किसी निर्णायक सबूत की आवश्यकता नहीं है कि कोई व्यक्ति बुरा है। तुम उनके रोजमर्रा के शब्दों और कार्यों से यह जान सकते हो। एक बार जब तुमको यकीन हो जाए कि वे बुरे हैं, तो तुम उन्हें प्रतिबंधित करने या अलग करने से कार्रवाई शुरू कर सकते हो। इससे सुनिश्चित होगा कि कलीसिया के काम और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश को नुकसान न पहुँचे। ... मुझे बताओ, अगर कोई व्यक्ति बुरे व्यक्ति के रूप में चिह्नित किया जाता है, तो क्या उसकी मदद करने के लिए अभी भी सत्य पर संगति करने की जरूरत है? (नहीं।) उन्हें मौका देने की कोई जरूरत नहीं है। कुछ लोगों में कुछ ज्यादा ही “प्रेम” होता है, और वे हमेशा बुरों को पश्चात्ताप करने का मौका देते रहते हैं, लेकिन क्या इससे कोई प्रभाव पड़ सकता है? क्या यह परमेश्वर के वचनों के सिद्धांतों के अनुरूप है? क्या तुमने कोई ऐसा बुरा व्यक्ति देखा है जो वास्तव में पश्चात्ताप कर सकता हो? ऐसा कभी किसी ने नहीं देखा। बुरे लोगों से पश्चात्ताप की उम्मीद करना जहरीले साँपों पर दया करने जैसा है; यह जंगली जानवरों पर दया करने जैसा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि बुरे लोगों के सार के आधार पर यह निर्धारित किया जा सकता है कि बुरे लोग कभी भी सकारात्मक चीजों से प्रेम नहीं करेंगे, कभी सत्य को स्वीकार नहीं करेंगे और कभी भी पश्चात्ताप नहीं करेंगे। तुमको उनके शब्दकोश में “पश्चात्ताप” शब्द नहीं मिलेगा। तुम उनके साथ सत्य के बारे में चाहे जैसी संगति करो, वे अपने उद्देश्यों और हितों को अलग नहीं करेंगे और खुद को सही ठहराने के विभिन्न कारण और बहाने ढूँढ़ेंगे और किसी की भी बात नहीं मानेंगे। उन्हें अगर कोई नुकसान होता है, तो यह उनके लिए असहनीय होता है और वे इसके बारे में दूसरों को अंतहीन रूप से परेशान करते हैं। ऐसे लोग जो कोई नुकसान सहने को तैयार न हों, वास्तव में पश्चात्ताप कैसे कर सकते हैं? अत्यधिक स्वार्थी लोग वे होते हैं जो अपने हितों को सबसे ऊपर रखते हैं; वे बुरे होते हैं और कभी पश्चात्ताप नहीं करेंगे।
—वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (14)
वह व्यक्ति कैसा होता है जिसे भाई-बहनों से जरा भी प्रेम नहीं होता? ऐसे व्यक्ति का भाई-बहनों के साथ सामान्य पारस्परिक संबंध क्यों नहीं होता? इस तरह का व्यक्ति, चाहे वह किसी से भी बातचीत करे, उस बातचीत को केवल हितों और लेन-देन से जोड़ देता है; यदि कोई हित या लेन-देन शामिल नहीं है, तो वह लोगों से बात नहीं करेगा। क्या इस तरह का व्यक्ति बुरा नहीं है? कुछ लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते, केवल भावनाओं के आधार पर जीते हैं; जो भी उनके साथ अच्छा व्यवहार करता है, वे उसके करीब आ जाते हैं और जो भी उनकी मदद करता है, उसे वे अच्छा मानते हैं। ऐसे लोगों के भी सामान्य पारस्परिक संबंध नहीं होते। वे केवल भावनाओं के आधार पर जीते हैं, तो क्या वे भाई-बहनों के साथ निष्पक्ष और न्यायपूर्ण व्यवहार कर सकते हैं? ऐसी स्थिति का आना बिल्कुल असंभव है। इसलिए, जो कोई भी भाई-बहनों के साथ या ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास करने वालों के साथ सामान्य पारस्परिक संबंध नहीं रखता, वह अंतरात्मा और विवेक से रहित व्यक्ति है, सामान्य मानवता से रहित व्यक्ति है, और निश्चित रूप से वह ऐसा व्यक्ति नहीं है जो सत्य से प्रेम करता है। ऐसा व्यक्ति गैर-विश्वासियों के बीच के तुच्छ आवारा लोगों से अलग नहीं है; वह उन्हीं लोगों से बातचीत करता है जो उसके लिए फायदेमंद होते हैं और जो फायदेमंद नहीं होते हैं उन्हें अनदेखा कर देता है। इसके अलावा जब वह किसी ऐसे व्यक्ति को देखता है जो सत्य का अनुसरण कर रहा हो या जो अनुभवात्मक गवाहियाँ साझा कर सकता हो—कोई जिसकी हर कोई प्रशंसा करता हो और पसंद करता हो—तो वे ईर्ष्या और घृणा करने लगते हैं और सत्य का अनुसरण करने वाले इन लोगों की आलोचना करने और उनकी निंदा करने के हर संभव प्रयास करते हैं। क्या बुरे लोग ऐसा ही नहीं करते? ऐसे लोगों में अंतरात्मा और विवेक की कमी होती है—वे जानवरों से भी बदतर होते हैं। वे लोगों के साथ सही तरीके से व्यवहार नहीं कर सकते, दूसरों से सामान्य रूप से नहीं मिल सकते, परमेश्वर के चुने हुए लोगों के साथ सामान्य पारस्परिक संबंध नहीं बना सकते, और यहाँ तक कि सत्य का अनुसरण करने वालों से भी नफरत कर सकते हैं। ऐसे लोग अपने हृदय में बहुत एकाकी और अकेला महसूस करते होंगे, हमेशा दूसरों और दुनिया को दोष देते होंगे। उनके लिए जीने का आनंद या अर्थ क्या होता है? ये लोग स्वभाव से बहुत क्रूर होते हैं, और चाहे वे किसी के साथ भी बातचीत करें, वे छोटी-छोटी बातों पर घृणा का भाव पैदा कर सकते हैं, उनकी निंदा और प्रतिशोध कर सकते हैं, उन पर आपदाएँ ला सकते हैं। ऐसे बुरे व्यक्ति पूरी तरह से शैतान होते हैं, जो हर दिन कलीसिया में आपदा लाते हैं। यदि वे लंबे समय तक रहे, तो आपदाओं की श्रृंखला कभी खत्म नहीं होगी। केवल उन्हें कलीसिया से बाहर निकालकर ही आपदाओं को टाला जा सकता है।
—वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (14)
जो लोग अविवेकी और जानबूझकर तकलीफदेह होते हैं, वे जब कार्य करते हैं, तो सिर्फ अपने हितों के बारे में सोचते हैं, और वही करते हैं जो उन्हें अच्छा लगता है। उनके शब्द ऊटपटांग विधर्म के अलावा और कुछ नहीं होते हैं, और वे विवेक से अप्रभावित रहते हैं। उनके शातिर स्वभाव सारी हदें पार कर चुके हैं। खुद पर आपदा आमंत्रित करने के डर से कोई उनके साथ जुड़ने की हिम्मत नहीं करता और कोई उनके साथ सत्य के बारे में संगति करने को तैयार नहीं होता। दूसरे लोग जब भी अपने मन की बात उनसे कहते हैं, तो बेचैन रहते हैं, वे डरते हैं कि अगर उन्होंने एक भी शब्द ऐसा कह दिया, जो उन्हें पसंद या उनकी इच्छा के अनुरूप न हो, तो वे उसे लपक लेंगे और उसके आधार पर घोर आरोप लगा देंगे। क्या ऐसे लोग दुष्ट नहीं हैं? क्या वे जीवित राक्षस नहीं हैं? दुष्ट स्वभाव और खराब विवेक वाले सभी लोग जीवित राक्षस हैं। और जब कोई जीवित राक्षस के साथ बातचीत करता है, तो वह पल भर की लापरवाही से अपने ऊपर आपदा ला सकता है। अगर ऐसे जीवित राक्षस कलीसिया में मौजूद हों, तो क्या इससे एक बड़ी मुसीबत नहीं खड़ी हो जाएगी? (हो जाएगी।) अपनी भड़ास निकालने और गुस्सा उतारने के बाद ये जीवित राक्षस कुछ देर के लिए एक इंसान की तरह बोल सकते हैं और माफी माँग सकते हैं, लेकिन बाद में वे नहीं बदलते। कौन जानता है कि कब उनका मूड खराब हो जाएगा और वे फिर से नखरे दिखाने लगेंगे, अपने ऊटपटांग तर्क बकने लगेंगे। हर बार उनके नखरे दिखाने और भड़ास निकालने का लक्ष्य अलग होता है; और ठीक ऐसा ही उनकी भड़ास का स्रोत और पृष्ठभूमि होती है। यानी, कोई भी चीज उन्हें उकसा सकती है, कोई भी चीज उन्हें असंतुष्ट महसूस करवा सकती है, और कोई भी चीज उन्हें उन्मादी और अविवेकी तरीके से प्रतिक्रिया करने पर मजबूर कर सकती है। यह कितनी भयानक, कितनी तकलीफदेह बात है! ये विक्षिप्त कुकर्मी किसी भी समय पगला सकते हैं; कोई नहीं जानता कि वे क्या करने में सक्षम हैं। मुझे ऐसे लोगों से सबसे ज्यादा नफरत है। उनमें से हर एक का सफाया कर देना चाहिए—उन सभी को बाहर कर देना चाहिए। मैं उनके साथ जुड़ना नहीं चाहता। वे भ्रमित विचारों वाले और पाशविक स्वभाव के होते हैं, वे ऊटपटांग तर्कों और शैतानी शब्दों से भरे होते हैं, और जब उनके साथ कोई अनहोनी होती है, तो वे प्रचंड रूप से इसके बारे में अपनी भड़ास निकालते हैं। भड़ास निकालते समय, इनमें से कुछ लोग रोते हैं, दूसरे लोग चीखते-चिल्लाते हैं, और अन्य लोग अपने पैर पटकते हैं, और यहाँ तक कि कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपने सिर हिलाते हैं और अपने हाथ-पैरों को हवा में लहराते रहते हैं। सीधे शब्दों में कहें तो वे जंगली जानवर हैं, इंसान नहीं। कुछ रसोइये अपना आपा खोते ही बर्तन और थालियाँ इधर-उधर फेंकने लगते हैं; दूसरे लोग, जो सूअर या कुत्ते पालते हैं, अपना आपा खोते ही इन जानवरों पर लात-घूँसे बरसाने लगते हैं और अपने गुस्से की सारी भड़ास उन पर निकालते हैं। ये लोग, चाहे कुछ भी हो जाए, हमेशा गुस्से से प्रतिक्रिया देते हैं; वे ना तो चिंतन करने के लिए खुद को शांत करते हैं और ना ही इसे परमेश्वर से आया मानकर स्वीकारते हैं। वे प्रार्थना नहीं करते हैं या सत्य की तलाश नहीं करते हैं, और ना ही वे दूसरों के साथ संगति की तलाश करते हैं। जब उनके पास कोई विकल्प नहीं होता है, तो वे सहते हैं; जब वे सहने के इच्छुक नहीं होते हैं, तो वे पागल हो जाते हैं, ऊटपटांग तर्क बकते हैं, दूसरों पर आरोप लगाते हैं और उनकी निंदा करते हैं। वे अक्सर ऐसी बातें कहते हैं, “मुझे पता है कि तुम सभी पढ़े-लिखे हो और मुझे नीची नजर से देखते हो”; “मुझे पता है कि तुम लोगों के परिवार रईस हैं, और तुम मुझे गरीब होने के कारण तुच्छ समझते हो”; या, “मुझे पता है कि तुम लोग मुझे इसलिए तुच्छ समझते हो क्योंकि मेरी आस्था में ठोस आधार नहीं है, और तुम लोग इसलिए मुझे तुच्छ समझते हो क्योंकि मैं सत्य का अनुसरण नहीं करता हूँ।” अपनी खुद की कई समस्याओं के बारे में स्पष्ट रूप से जानने के बावजूद, वे कभी भी उन्हें सुलझाने के लिए सत्य की तलाश नहीं करते हैं, और ना ही वे दूसरों के साथ अपनी संगति में आत्म-ज्ञान पर चर्चा करते हैं। जब उनकी अपनी समस्याओं का जिक्र किया जाता है, तो वे पलट जाते हैं और दोष किसी और के मत्थे मढ़ देते हैं, सभी समस्याएँ और जिम्मेदारियाँ दूसरों पर डाल देते हैं, और यहाँ तक कि यह शिकायत भी करते हैं कि उनके व्यवहार का कारण यह है कि दूसरे उनके साथ बुरा व्यवहार करते हैं। ऐसा लगता है जैसे उनके नखरे और बेतुके भड़कावे दूसरे लोगों के कारण हुए हैं, जैसे कि बाकी सभी दोषी हैं, और उनके पास इस तरह से कार्य करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है—वे मानते हैं कि वे जायज तरीके से खुद का बचाव कर रहे हैं। वे जब भी असंतुष्ट होते हैं, तो अपनी नाराजगी की भड़ास निकालना और बकवास करना शुरू कर देते हैं, अपने ऊटपटांग तर्कों पर ऐसे अड़े रहते हैं मानो बाकी सभी गलत हैं, वे दूसरों को खलनायक के रूप में चित्रित करते हैं और खुद को अकेला अच्छा व्यक्ति बताते हैं। चाहे वे कितने भी नखरे दिखाएँ या ऊटपटांग तर्क क्यों ना बकें, वे अपेक्षा करते हैं कि उनके बारे में अच्छी-अच्छी बातें कही जाएँ। जब वे गलत करते हैं, तब भी वे दूसरों को उन्हें उजागर करने या उनकी आलोचना करने से रोक देते हैं। अगर तुम उनके किसी मामूली मुद्दे की तरफ भी ध्यान दिलाते हो, तो वे तुम्हें अंतहीन विवादों में फँसा देंगे, और फिर तुम शांति से जीना तो भूल ही जाओ। यह किस किस्म का व्यक्ति है? यह अविवेकी और जानबूझकर तंग करने वाला व्यक्ति है, और जो लोग ऐसा करते हैं, वे कुकर्मी हैं।
—वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (26)
किसी व्यक्ति की अकारण निंदा करने, उस पर कोई ठप्पा लगाए जाने और पीड़ित करने की परिघटना अक्सर हर कलीसिया में होती है। उदाहरण के लिए, कुछ लोग किसी खास अगुआ या कार्यकर्ता के खिलाफ पूर्वाग्रह रखते हैं और बदला लेने की कोशिश में उनकी पीठ पीछे उनके बारे में टिप्पणियाँ करते हैं, सत्य के बारे में संगति करने की आड़ में उनका पर्दाफाश और उनका गहन विश्लेषण करते हैं। ऐसे कार्यों के पीछे का इरादा और प्रयोजन गलत होते हैं। अगर कोई वास्तव में परमेश्वर के लिए गवाही देने और दूसरों को लाभ पहुँचाने के लिए सत्य पर संगति कर रहा है, तो उसे अपने स्वयं के सच्चे अनुभवों पर संगति करनी चाहिए और खुद का गहन विश्लेषण करके और खुद को जानकर दूसरों को लाभ पहुँचाना चाहिए। इस तरह के अभ्यास से बेहतर परिणाम मिलते हैं और परमेश्वर के चुने हुए लोग इसे स्वीकार करेंगे। अगर किसी की संगति किसी दूसरे व्यक्ति पर हमला करने या उससे बदला लेने के प्रयास में उसे उजागर करती है, हमला करती है और उसे नीचा दिखाती है, तो संगति का इरादा गलत है, यह अनुचित है, परमेश्वर इससे घृणा करता है और भाई-बहनों को इससे कोई शिक्षा नहीं मिलती। अगर किसी का इरादा दूसरों की निंदा करना, या उन्हें पीड़ा पहुँचाना है, तो वह एक बुरा व्यक्ति है और वह बुराई कर रहा है। जब बुरे लोगों की बात आती है तो परमेश्वर के चुने हुए सभी लोगों में उन्हें पहचानने की समझ होनी चाहिए। अगर कोई जानबूझकर लोगों को मारता है, उन्हें उजागर करता है या उन्हें नीचा दिखाता है, तो उनकी प्रेम से मदद की जानी चाहिए, उनके साथ संगति करनी चाहिए और उनका गहन विश्लेषण करना चाहिए या उनकी काट-छाँट करनी चाहिए। अगर वे सत्य को स्वीकार करने में असमर्थ हैं और हठपूर्वक अपने तौर-तरीके सुधारने से इनकार करते हैं, तो वह मामला पूरी तरह से अलग होगा। जब अक्सर मनमाने ढंग से दूसरों की निंदा करने वाले, दूसरों पर कोई ठप्पा लगाने और पीड़ा पहुँचाने वाले बुरे लोगों की बात आती है, तो उन्हें पूरी तरह से उजागर किया जाना चाहिए, ताकि हर कोई उन्हें पहचानना सीख सके और फिर उन्हें प्रतिबंधित किया जाना चाहिए या कलीसिया से निष्कासित कर दिया जाना चाहिए। यह आवश्यक है, क्योंकि ऐसे लोग कलीसियाई जीवन और कलीसिया के कार्य को बाधित करते हैं और संभव है कि वे लोगों को गुमराह करें और कलीसिया में अराजकता पैदा करें। विशेष रूप से कुछ बुरे लोग केवल इसलिए अक्सर दूसरों पर हमला करते हैं और उनकी निंदा करते हैं, ताकि वे अपने आप को दिखा सकें और दूसरों से अपना सम्मान करवाने का प्रयोजन पूरा कर सकें। ये बुरे लोग अक्सर सभाओं में सत्य पर संगति करने के अवसर का उपयोग दूसरों को अप्रत्यक्ष रूप से उजागर करने, उनका गहन विश्लेषण करने और उन्हें दबाने के लिए करते हैं। अपने काम को वे यह कहकर उचित भी ठहराते हैं कि वे ऐसा लोगों की मदद करने और कलीसिया में मौजूद समस्याओं को हल करने के लिए कर रहे हैं, और इन बहानों का इस्तेमाल अपने प्रयोजनों को पूरा करने के लिए आवरण के रूप में करते हैं। वे ऐसे लोग हैं जो दूसरों पर हमला करते हैं और पीड़ा पहुँचाते हैं, और वे सभी स्पष्ट रूप से बुरे लोग हैं। वे सभी जो सत्य का अनुसरण करने वाले लोगों पर हमला करते हैं और उनकी निंदा करते हैं, वे बेहद क्रूर होते हैं, और परमेश्वर केवल उनका अनुमोदन करता है जो परमेश्वर के घर के कार्य की रक्षा के लिए बुरे लोगों को उजागर कर उनका गहन विश्लेषण करते हैं, और जिनमें न्याय की भावना होती है। बुरे लोग अक्सर अपने कुकर्मों में बहुत चालाक होते हैं; वे सभी अपने लिए औचित्य खोजने और दूसरों को गुमराह करने का प्रयोजन पूरा करने के लिए सिद्धांतों का उपयोग करने में कुशल होते हैं। यदि परमेश्वर के चुने हुए लोगों में उनके बारे में समझ नहीं है और वे इन बुरे लोगों को प्रतिबंधित करने में असमर्थ हैं, तो कलीसिया का जीवन और कलीसिया का कार्य पूरी तरह से अस्त-व्यस्त हो जाएगा—या यहाँ तक कि हल्ला-गुल्ला मच जाएगा। जब बुरे लोग समस्याओं पर संगति करते हैं और गहन विश्लेषण करते हैं, तो हमेशा उनका एक इरादा और प्रयोजन होता है जो हर बार किसी पर लक्षित होता है। वे अपना गहन विश्लेषण नहीं कर रहे होते या खुद को जानने की प्रक्रिया में नहीं होते, न ही अपनी समस्याओं को हल करने के लिए खुद को खोलकर रख रहे होते हैं—बल्कि वे दूसरों को उजागर करने, उनका गहन विश्लेषण करने और उन पर हमला करने के अवसर का लाभ उठा रहे होते हैं। वे अक्सर दूसरों का गहन विश्लेषण करने और उनकी निंदा करने के लिए अपने आत्म-ज्ञान की संगति का लाभ उठाते हैं, और परमेश्वर के वचनों और सत्य का विश्लेषण करने के माध्यम से वे लोगों को उजागर करते हैं, उन्हें नीचा दिखाते हैं और बदनाम करते हैं। वे विशेष रूप से उन लोगों के प्रति विकर्षण और घृणा महसूस करते हैं जो सत्य का अनुसरण करते हैं, जो कलीसिया के काम का बोझ उठाते हैं, और जो अक्सर अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं। बुरे लोग इन लोगों की प्रेरणा पर प्रहार करने और उन्हें कलीसिया का काम करने से रोकने के लिए सभी प्रकार के औचित्य और बहानों का उपयोग करते हैं। उनके प्रति वे जो कुछ महसूस करते हैं उसका एक हिस्सा ईर्ष्या और घृणा होता है; दूसरा हिस्सा यह डर होता है कि कार्य करने के लिए इन लोगों का उन्नयन, उनकी प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए खतरा पैदा करता है। इसलिए वे उन्हें चेतावनी देने, दबाने और प्रतिबंधित करने हरसंभव तरीका खोजने के लिए व्याकुल रहते हैं, यहाँ तक कि उन्हें दोषी ठहराने और उनकी निंदा करने के लिए तथ्यों को विकृत करने का मसाला इकट्ठा करने की हद तक चले जाते हैं। इससे साफ पता चलता है कि इन बुरे लोगों का स्वभाव ऐसा होता है जो सत्य और सकारात्मक चीजों से नफरत करता है। उन्हें उन लोगों से खास नफरत होती है जो सत्य का अनुसरण करते हैं और सकारात्मक चीजों से प्रेम करते हैं, और उन लोगों से भी जो काफी हद तक निष्कपट, सभ्य और बेलाग-लपेट हैं। भले वे ऐसा न कहें, लेकिन उनकी मानसिकता ऐसी ही होती है। तो वे खास तौर पर केवल सत्य का अनुसरण करने वाले, और सभ्य व ईमानदार लोगों को ही क्यों निशाना बनाते हैं, उनका पर्दाफाश करने, नीचा दिखाने, दबाने और बहिष्कृत करने के लिए? यह स्पष्ट रूप से अच्छे लोगों और सत्य का अनुसरण करने वालों को उखाड़ फेंकने और उन्हें कुचलने या पैरों तले रौंदने का प्रयास होता है, ताकि वे कलीसिया पर नियंत्रण स्थापित कर सकें। कुछ लोग नहीं मानते कि ऐसा है। उनसे मैं एक प्रश्न पूछता हूँ : सत्य पर संगति करते समय ये बुरे लोग खुद को उजागर क्यों नहीं करते या अपना गहन विश्लेषण क्यों नहीं करते, और हमेशा दूसरों को क्यों निशाना बनाते और उजागर करते हैं? क्या यह वास्तव में हो सकता है कि वे भ्रष्टता का खुलासा नहीं करते, या उनके स्वभाव भ्रष्ट नहीं हैं? निश्चित रूप से नहीं। फिर वे प्रकाशन और गहन विश्लेषण के दूसरों को बनाने पर क्यों अड़े रहते हैं? वे वास्तव में क्या हासिल करने की कोशिश कर रहे होते हैं? यह प्रश्न गहन विचार की मांग करता है। यदि कोई कलीसिया को परेशान करने वाले बुरे लोगों के बुरे कामों को उजागर करता है, तो वह वही कर रहा है जैसा उसे करना चाहिए। लेकिन इसके बजाय ये लोग सत्य के बारे में संगति करने के बहाने अच्छे लोगों को उजागर करते हैं और पीड़ा पहुँचाते हैं। उनका प्रयोजन और इरादा क्या होता है? क्या वे इसलिए क्रोधित हैं क्योंकि वे देखते हैं कि परमेश्वर अच्छे लोगों को बचाता है? वास्तव में ऐसा ही है। परमेश्वर बुरे लोगों को नहीं बचाता, इसलिए बुरे लोग परमेश्वर और अच्छे लोगों से घृणा करते हैं—यह सब काफी स्वाभाविक है। बुरे लोग सत्य को स्वीकार नहीं करते या उसका अनुसरण नहीं करते; खुद भी बचाए नहीं जा सकते, फिर भी वे उन अच्छे लोगों को पीड़ा देते हैं जो सत्य का अनुसरण करते हैं और बचाए जा सकते हैं। यहाँ समस्या क्या है? अगर इन लोगों को खुद का और सत्य का ज्ञान होता, तो वे अपने को खोलते हुए संगति कर सकते थे, पर वे तो हमेशा दूसरों को निशाना बनाते और भड़काते रहते हैं—उनमें हमेशा दूसरों पर हमला करने की प्रवृत्ति होती है—और वे हमेशा सत्य का अनुसरण करने वालों को अपना काल्पनिक दुश्मन के तौर पर देखते हैं। यह बुरे लोगों के पहचान-चिह्न हैं। ऐसी बुराई करने में सक्षम लोग असली दानव और शैतान हैं, सर्वोत्कृष्ट मसीह-विरोधी हैं, जिन्हें प्रतिबंधित किया जाना चाहिए, और अगर वे बहुत अधिक कुकर्म करते हैं, तो उनसे तुरंत निपटा जाना चाहिए—उन्हें कलीसिया से निष्कासित कर दिया जाना चाहिए। अच्छे लोगों पर वार करने और उनके अलग-थलग करने वाले लोग सड़े हुए सेबों जैसे होते हैं। मैं उन्हें सड़ा हुआ सेब क्यों कहता हूँ? क्योंकि वे कलीसिया में अनावश्यक विवाद और संघर्ष भड़काने की संभावना पैदा करते हैं, जिससे वहाँ की स्थिति और भी गंभीर होती जाती है। वे एक दिन एक व्यक्ति को निशाना बनाते हैं और दूसरे दिन दूसरे को, और वे हमेशा दूसरों को, उन लोगों को निशाना बनाते जाते हैं जो सत्य से प्रेम करते हैं और उसका अनुसरण करते हैं। इससे कलीसिया का जीवन अस्त-व्यस्त हो सकता है और परमेश्वर के चुने हुए लोगों द्वारा परमेश्वर के वचनों को सामान्य रूप से खाने-पीने पर, साथ ही सत्य पर उनकी सामान्य संगति पर भी इसका असर पड़ सकता है। ये बुरे लोग अक्सर सत्य के बारे में संगति के नाम पर दूसरों पर हमला करने के लिए कलीसियाई जीवन जीने का फायदा उठाते हैं। वे जो कुछ भी कहते हैं उसमें शत्रुता होती है; वे सत्य का अनुसरण करने वालों और परमेश्वर के लिए खुद को खपाने वालों पर हमला करने और उनकी निंदा करने के लिए भड़काऊ टिप्पणियाँ करते हैं। इसके क्या परिणाम होंगे? यह कलीसिया के जीवन को गड़बड़ करेगा और बाधा डालेगा, और लोगों के दिलों में बेचैनी पैदा करेगा और वे परमेश्वर के सामने शांत नहीं रह पाएँगे। विशेष रूप से दूसरों की निंदा करने, उन पर वार करने और उन्हें चोट पहुँचाने के लिए ये बुरे लोग जो विचारहीन बातें कहते हैं, उससे प्रतिरोध भड़क सकता है। यह समस्याओं को हल करने वाली स्थितियाँ नहीं पैदा करता; बल्कि इसके विपरीत, कलीसिया में भय और चिंता को बढ़ाता है और लोगों के बीच संबंधों को खराब करता है, जिससे उनके बीच तनाव पैदा होता है और उनके बीच झगड़े होते हैं। इन लोगों का व्यवहार न केवल कलीसिया के जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि कलीसिया में संघर्ष को भी जन्म देता है। यह पूरे कलीसिया के काम और सुसमाचार के प्रसार को भी प्रभावित कर सकता है। इसलिए, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस तरह के व्यक्ति को चेतावनी देने और उसे प्रतिबंधित करने और उससे निपटने की भी जरूरत है। एक ओर, भाई-बहनों को उन बुरे लोगों पर कठोर प्रतिबंध लगाने चाहिए जो अक्सर दूसरों पर हमला करते हैं और उनकी निंदा करते हैं। दूसरी ओर, कलीसिया के अगुआओं को तुरंत उन लोगों को उजागर करना चाहिए और उन्हें रोकना चाहिए जो मनमाने ढंग से दूसरों पर वार करते हैं और उनकी निंदा करते हैं, और अगर वे नहीं सुधरते हैं, तो उन्हें कलीसिया से बाहर निकाल देना चाहिए। बुरे लोगों को सभाओं में कलीसियाई जीवन को बाधित करने से रोका जाना चाहिए, और साथ ही भ्रमित लोगों को कलीसिया के जीवन को प्रभावित करने वाले तरीके से बोलने से रोका जाना चाहिए। अगर कोई बुरा व्यक्ति बुरा काम करते हुए पाया जाता है, तो उसे उजागर किया जाना चाहिए। उसे मनमानी करने, और अपनी मर्जी से कुकर्म करने की बिल्कुल भी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। यह जरूरी है ताकि कलीसियाई जीवन सामान्य बना रहे, परमेश्वर के चुने हुए लोग एकत्रित हो सकें और परमेश्वर के वचनों को खा-पी सकें, और सामान्य रूप से सत्य के बारे में संगति कर सकें जिससे उन्हें अपने कर्तव्यों को सामान्य रूप से पूरा करने का मौका मिल सके। केवल तभी कलीसिया में परमेश्वर की इच्छा क्रियान्वित हो सकती है, और केवल इसी तरह से उसके चुने हुए लोग सत्य को समझ सकते हैं, वास्तविकता में प्रवेश कर सकते हैं, और परमेश्वर के आशीष पा सकते हैं।
—वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (15)
अच्छे व्यक्ति अंतरात्मा और विवेक के साथ बोलते और कार्य करते हैं, जबकि बुरे व्यक्ति के पास अंतरात्मा और विवेक ही नहीं होता है। जब बुरे लोग कोई बुरा कार्य करते हैं और उजागर हो जाते हैं, तो वे बिल्कुल भी नरम नहीं पड़ते : “हम्म, अगर सबको पता भी चल जाए, तो वे क्या बिगाड़ लेंगे? मैं जो चाहे करूँ! मुझे इस बात की कोई परवाह नहीं है कि मुझे कौन उजागर करता है या मेरी आलोचना करता है। कोई भी वास्तव में मेरा क्या ही कर सकता है?” कोई बुरा व्यक्ति चाहे कितने भी बुरे कर्म क्यों न कर ले, उसे शर्मिंदगी महसूस नहीं होती है। जब कोई साधारण व्यक्ति कुछ बुरा करता है, तो वह इसे छिपाना और इस पर पर्दा डालना चाहता है। अगर कोई उसे उजागर कर देता है तो उसे किसी का सामना करने में बहुत शर्म महसूस होती है और यहाँ तक कि वह आगे जीना भी नहीं चाहता : “आह, मैं ऐसा कैसे कर सकता हूँ? मैं सचमुच बहुत बेशर्म हूँ!” वे बेहद पश्चात्ताप करते हैं और यहाँ तक कि खुद को कोसते भी हैं और कसमें खाते हैं कि वे फिर कभी ऐसा कुछ नहीं करेंगे। इस तरह का व्यवहार इस बात का प्रमाण है कि उनमें अभी भी शर्म की भावना मौजूद है और यह कि उनमें अभी भी कुछ मानवता है। जो व्यक्ति बेशर्म होता है उसमें अंतरात्मा और विवेक नहीं होता और सभी बुरे लोग बेशर्म होते हैं। चाहे एक बुरा व्यक्ति किस भी तरह का बुरा कार्य क्यों न करे, इससे उसका चेहरा लाल नहीं होगा या उसके दिल की धड़कनें तेज नहीं होंगी और वह अभी भी बड़ी ढिठाई के साथ अपने कार्यों का बचाव करेगा, नकारात्मक पहलुओं को सकारात्मक बनाएगा और बुरे कर्मों के बारे में ऐसे बात करेगा जैसे वे अच्छे हों। क्या इस तरह के व्यक्ति में कोई शर्म की भावना होती है? (नहीं होती।) अगर उनका रवैया इस तरह का है, तो क्या वे भविष्य में सचमुच पश्चात्ताप करेंगे? नहीं, वे बस वैसे ही करते रहेंगे जैसा वे करते आए हैं। इसका मतलब यह है कि वे बेशर्म हैं और बेशर्मी का मतलब है अंतरात्मा और विवेक का अभाव। अंतरात्मा और विवेक रखने वाले लोग कुछ बुरा करने पर उजागर हो जाते हैं तो किसी का सामना करने में बहुत शर्म महसूस करते हैं और वे ऐसा काम फिर कभी नहीं करते। ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्हें एहसास होता है कि यह एक शर्मनाक बात थी और वे इतने शर्मिंदा होते हैं कि किसी का सामना नहीं कर पाते; उनकी मानवता में शर्म की एक भावना होती है। क्या यह सामान्य मानवता के लिए न्यूनतम मानक नहीं है? (हाँ, है।) क्या किसी ऐसे व्यक्ति को इंसान कहा जा सकता है जिसे शर्म महसूस नहीं होती? नहीं कहा जा सकता। क्या जो व्यक्ति शर्म महसूस नहीं करता, उसका दिमाग एक सामान्य व्यक्ति जैसा होता है? (नहीं होता।) उनका दिमाग एक सामान्य व्यक्ति जैसा नहीं होता, सकारात्मक चीजों के प्रति प्रेम तो दूर की बात है।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद दो : वे विरोधियों पर आक्रमण करते हैं और उन्हें निकाल देते हैं
एक इस प्रकार का व्यक्ति होता है जो सभी के प्रति प्रेमपूर्ण और सहनशील होता है, और किसी की भी मदद करने को तैयार रहता है। एकमात्र चीज जिसमें उसकी रुचि नहीं होती, वह है सत्य। वह हमेशा परमेश्वर का विरोधी होता है और उससे उसका कोई मेल नहीं होता। वह परमेश्वर का कट्टर शत्रु है। यह कैसा व्यक्ति है? वह छद्म-विश्वासी और शैतान है। शैतान वह है जो सत्य से सबसे अधिक विमुख होता है और सत्य से सबसे अधिक नफरत करता है। अगर किसी चीज में सत्य, या जो परमेश्वर कहता है या मांग करता है, वो शामिल हो तो वह न केवल इसे स्वीकार नहीं करता बल्कि इस पर संदेह करता है, वह इसके लिए प्रतिरोधी होता है, और वह इसके बारे में अपनी धारणाएँ फैलाता है। वह कई ऐसे काम भी करता है जो कलीसिया के काम के लिए हानिकारक होते हैं, यहाँ तक कि जब उसके निजी हितों को ठेस पहुँचती है तो वह सार्वजनिक रूप से परमेश्वर के खिलाफ चिल्लाता भी है। ऐसे लोग शैतान होते हैं; ये वे लोग हैं जो सत्य से नफरत करते हैं और परमेश्वर से नफरत करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति में एक स्वभाव होता है जो सत्य से नफरत करता है; इसलिए हर किसी में एक सार होता है जो परमेश्वर से नफरत करता है। एकमात्र अंतर इस नफरत की सीमा का होता है, कि वह बहुत थोड़ी है या ज्यादा। कुछ लोग परमेश्वर का विरोध करने के लिए बुराई करने में सक्षम होते हैं, जबकि अन्य केवल भ्रष्ट स्वभाव या नकारात्मक भावनाओं को प्रकट करते हैं। तो फिर कुछ लोग परमेश्वर से नफरत करने में सक्षम क्यों होते हैं? वे क्या भूमिका निभाते हैं? वे परमेश्वर से नफरत करने में सक्षम होते हैं क्योंकि उनका स्वभाव ऐसा होता है जो सत्य से नफरत करता है। इस स्वभाव के होने का अर्थ है कि वे दानव हैं और परमेश्वर के शत्रु हैं। दानव क्या होता है? दानव वे सभी होते हैं जो सत्य से नफरत करते हैं और परमेश्वर से नफरत करते हैं। क्या दानवों को बचाया जा सकता है? कदापि नहीं। जब परमेश्वर मानवजाति को बचाता है, बहुत-से लोग उठ खड़े होते हैं और उसका विरोध करते हैं और परमेश्वर के घर के काम में बाधा डालते हैं। ऐसे लोग दानव होते हैं। इन्हें जीवित राक्षस भी कहा जा सकता है। हर जगह की कलीसियाओं में जो कोई भी कलीसिया के काम में बाधा डालता है वह दानव और जीवित राक्षस होता है। और जो कोई कलीसिया पर अत्याचार करता है और सत्य को लेशमात्र भी स्वीकार नहीं करता वह एक जीवित राक्षस होता है। इसलिए यदि तुम लोग सही ढंग से पहचान लेते हो कि कौन से लोग जीवित राक्षस हैं, तो तुम्हें उन्हें दूर करने के लिए शीघ्रता से कार्य करना चाहिए। यदि कुछ लोग ऐसे हैं जिनका व्यवहार आमतौर पर बहुत अच्छा होता है, लेकिन कभी-कभी उनकी स्थिति खराब हो जाती है, या उनका आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है और वे सत्य को नहीं समझते, और वे कुछ ऐसा करते हैं जिससे गड़बड़ियाँ और बाधाएँ पैदा होती हैं लेकिन यह उनकी आदत नहीं है और वे प्रकृति से इस प्रकार के व्यक्ति नहीं हैं, तो वे रह सकते हैं। कुछ लोगों की मानवता बहुत अच्छी नहीं होती; यदि कोई उन्हें ठेस पहुँचाता है, तो वे उसे कभी नहीं छोड़ते। वे उस व्यक्ति के साथ अंतहीन बहस करेंगे, जब उन्हें लगेगा कि वे सही हैं तो वे कोई दया नहीं दिखाएँगे। फिर भी इन लोगों में एक गुण होता है, वह यह है कि वे श्रम करने और कठिनाई सहने को तैयार होते हैं। ऐसे लोग फिलहाल बने रह सकते हैं। यदि ये लोग अक्सर बुराई करते हैं और कलीसिया के काम में बाधा डालते हैं, तो वे दानव और शैतान हैं, और उन्हें बिल्कुल भी नहीं बचाया जा सकता। यह सौ प्रतिशत निश्चित है। इस प्रकार के लोगों को कलीसिया से बाहर निकाल दिया जाना चाहिए; उन्हें बिल्कुल भी रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, परमेश्वर के प्रति मनुष्य का जो रवैया होना चाहिए
हर कलीसिया में ऐसे लोग होते हैं जो कलीसिया के लिए विघ्न पैदा करते हैं या परमेश्वर के कार्य में गड़बड़ी करते हैं। ये सभी लोग शैतान के छ्द्म वेष में परमेश्वर के परिवार में घुस आए हैं। ऐसे लोग अभिनय कला में निपुण होते हैं : मेरे समक्ष विनीत भाव से आकर, नमन करते हुए, नत-मस्तक होते हैं, खुजली वाले कुत्ते की तरह व्यवहार करते हैं, अपने मकसद को पूरा करने के लिये अपना “सर्वस्व” न्योछावर करते हैं, लेकिन भाई-बहनों के सामने उनका बदसूरत चेहरा प्रकट हो जाता है। जब वे सत्य पर चलने वाले लोगों को देखते हैं तो उन पर आक्रमण कर देते हैं और उन्हें दर-किनार कर देते हैं; और जब वे ऐसे लोगों को देखते हैं जो उनसे भी अधिक भयंकर हैं, तो फिर वे उनकी चाटुकारिता करने लगते हैं, उनके आगे गिड़गिड़ाने लगते हैं। कलीसिया के भीतर वे आततायियों की तरह व्यवहार करते हैं। कह सकते हैं कि ऐसे “स्थानीय गुण्डे” और ऐसे “पालतू कुत्ते” ज्यादातर कलीसियाओं में मौजूद हैं। ऐसे लोग मिलकर दुष्ट हरकतें करते हैं, आँखे झपका कर, गुप्त संकेतों और इशारों से आपस में बात करते हैं, और इनमें से कोई भी सत्य का अभ्यास नहीं करता। जो सबसे ज्यादा जहरीला होता है, वही “प्रधान राक्षस” होता है, और जो सबसे अधिक प्रतिष्ठित होता है, वह इनकी अगुवाई करता है और इनका परचम बुलंद रखता है। ऐसे लोग कलीसिया में उपद्रव मचाते हैं, नकारात्मकता फैलाते हुए मौत का तांडव करते हैं, मनमर्जी करते हैं, जो चाहे बकते हैं; किसी में इन्हें रोकने की हिम्मत नहीं होती है, ये शैतानी स्वभाव से भरे होते हैं। जैसे ही ये लोग व्यवधान पैदा करते हैं, कलीसिया में मुर्दनी छा जाती है। कलीसिया के भीतर सत्य का अभ्यास करने वाले लोगों का तिरस्कार किया जाता है और वे अपना सर्वस्व अर्पित करने में असमर्थ हो जाते हैं, जबकि कलीसिया में परेशानियाँ खड़ी करने वाले, मौत का वातावरण निर्मित करने वाले लोग यहां उपद्रव मचाते फिरते हैं, और इतना ही नहीं, अधिकतर लोग उनका अनुसरण करते हैं। साफ बात है, ऐसी कलीसियाएँ शैतान के कब्ज़े में होती है; हैवान इनका सरदार होता है। यदि ऐसी कलीसियाओं में लोग विद्रोह नहीं करेंगे और उन प्रधान राक्षसों को खारिज नहीं करेंगे, तो देर-सवेर वे भी बर्बाद हो जाएँगे। अब ऐसी कलीसियाओं के ख़िलाफ कदम उठाए जाने चाहिए। जो लोग थोड़ा भी सत्य का अभ्यास करने में सक्षम हैं यदि वे खोज नहीं करते हैं, तो उस कलीसिया को मिटा दिया जाएगा। यदि कलीसिया में ऐसा कोई भी नहीं है जो सत्य का अभ्यास करने का इच्छुक हो, और परमेश्वर की गवाही में दृढ़ रह सकता हो, तो उस कलीसिया को पूरी तरह से अलग-थलग कर दिया जाना चाहिए और अन्य कलीसियाओं के साथ उसके संबंध समाप्त कर दिये जाने चाहिए। इसे “मृत्यु दफ़्न करना” कहते हैं; इसी का अर्थ है शैतान को ठुकराना।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं उनके लिए एक चेतावनी
जो लोग सचमुच में परमेश्वर में विश्वास करते हैं, ये वे लोग हैं जो परमेश्वर के वचनों को अभ्यास में लाने को तैयार रहते हैं, और सत्य को अभ्यास में लाने को तैयार हैं। जो लोग सचमुच में परमेश्वर की गवाही दे सकते हैं ये वे लोग हैं जो उसके वचनों को अभ्यास में लाने को तैयार हैं, और जो सचमुच सत्य के पक्ष में खड़े हो सकते हैं। जो लोग चालबाज़ियों और अन्याय का सहारा लेते हैं, उनमें सत्य का अभाव होता है, वे सभी परमेश्वर को लज्जित करते हैं। जो लोग कलीसिया में कलह में संलग्न रहते हैं, वे शैतान के अनुचर हैं, और शैतान के मूर्तरूप हैं। इस प्रकार का व्यक्ति बहुत द्वेषपूर्ण होता है। जिन लोगों में विवेक नहीं होता और सत्य के पक्ष में खड़े होने का सामर्थ्य नहीं होता वे सभी दुष्ट इरादों को आश्रय देते हैं और सत्य को मलिन करते हैं। ये लोग शैतान के सर्वोत्कृष्ट प्रतिनिधि हैं; ये छुटकारे से परे हैं, और स्वाभाविक रूप से निकाल दी जाने वाली वस्तुएँ हैं। परमेश्वर का परिवार उन लोगों को बने रहने की अनुमति नहीं देता है जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं, और न ही यह उन लोगों को बने रहने की अनुमति देता है जो जानबूझकर कलीसियाओं को ध्वस्त करते हैं। हालाँकि, अभी निष्कासन के कार्य को करने का समय नहीं है; ऐसे लोगों को सिर्फ उजागर किया जाएगा और अंत में निकाल दिया जाएगा। इन लोगों पर व्यर्थ का कार्य और नहीं किया जाना है; जिनका सम्बंध शैतान से है, वे सत्य के पक्ष में खड़े नहीं रह सकते हैं, जबकि जो सत्य की खोज करते हैं, वे सत्य के पक्ष में खड़े रह सकते हैं। जो लोग सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं, वे सत्य के वचन को सुनने के अयोग्य हैं और सत्य के लिये गवाही देने के अयोग्य हैं। सत्य बस उनके कानों के लिए नहीं है; बल्कि, यह उन पर निर्देशित है जो इसका अभ्यास करते हैं। इससे पहले कि हर व्यक्ति का अंत प्रकट किया जाए, जो लोग कलीसिया को परेशान करते हैं और परमेश्वर के कार्य में गड़बड़ी करते हैं, अभी के लिए उन्हें सबसे पहले एक ओर छोड़ दिया जाएगा, और उनसे बाद में निपटा जाएगा। एक बार जब कार्य पूरा हो जाएगा, तो इन लोगों को एक के बाद एक करके उजागर किया जाएगा, और फिर निकाल दिया जाएगा। फिलहाल, जबकि सत्य प्रदान किया जा रहा है, तो उनकी उपेक्षा की जाएगी। जब मनुष्य जाति के सामने पूर्ण सत्य प्रकट कर दिया जाता है, तो उन लोगों को निकाल दिया जाना चाहिए; यही वह समय होगा जब लोगों को उनके प्रकार के अनुसार वर्गीकृत किया जाएगा। जो लोग विवेकशून्य हैं, वे अपनी तुच्छ चालाकी के कारण बुरे लोगों के हाथों विनाश को प्राप्त होंगे, और ऐसे लोग दुष्ट लोगों के द्वारा पथभ्रष्ट कर दिये जायेंगे तथा लौटकर आने में असमर्थ होंगे। इन लोगों के साथ इसी प्रकार पेश आना चाहिए, क्योंकि इन्हें सत्य से प्रेम नहीं है, क्योंकि ये सत्य के पक्ष में खड़े होने में अक्षम हैं, क्योंकि ये दुष्ट लोगों का अनुसरण करते हैं, ये दुष्ट लोगों के पक्ष में खड़े होते हैं, क्योंकि ये दुष्ट लोगों के साथ साँठ-गाँठ करते हैं और परमेश्वर की अवमानना करते हैं। वे बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि वे दुष्ट लोग दुष्टता विकीर्ण करते हैं, मगर वे अपना हृदय कड़ा कर लेते हैं और उनका अनुसरण करने के लिए सत्य के विपरीत चलते हैं। क्या ये लोग जो सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं लेकिन जो विनाशकारी और घृणास्पद कार्यों को करते हैं, दुष्टता नहीं कर रहे हैं? यद्यपि उनमें से कुछ ऐसे हैं जो अपने आप को सम्राटों की तरह पेश करते हैं और कुछ ऐसे हैं जो उनका अनुसरण करते हैं, किन्तु क्या परमेश्वर की अवहेलना करने की उनकी प्रकृति एक-सी नहीं है? उनके पास इस बात का दावा करने का क्या बहाना हो सकता है कि परमेश्वर उन्हें नहीं बचाता है? उनके पास इस बात का दावा करने का क्या बहाना हो सकता है कि परमेश्वर धार्मिक नहीं है? क्या यह उनकी अपनी दुष्टता नहीं है जो उनका विनाश कर रही है? क्या यह उनकी खुद की विद्रोहशीलता नहीं है जो उन्हें नरक में नहीं धकेल रही है? जो लोग सत्य का अभ्यास करते हैं, अंत में, उन्हें सत्य की वजह से बचा लिया जाएगा और सिद्ध बना दिया जाएगा। जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं, अंत में, वे सत्य की वजह से विनाश को आमंत्रण देंगे। ये वे अंत हैं जो उन लोगों की प्रतीक्षा में हैं जो सत्य का अभ्यास करते हैं और जो नहीं करते हैं। जो सत्य का अभ्यास करने की कोई योजना नहीं बना रहे, ऐसे लोगों को मेरी सलाह है कि वे यथाशीघ्र कलीसिया को छोड़ दें ताकि और अधिक पापों को करने से बचें। जब समय आएगा तो पश्चाताप के लिए भी बहुत देर हो चुकी होगी। विशेष रूप से, जो गुटबंदी करते हैं और पाखंड पैदा करते हैं, और वे स्थानीय गुण्डे तो और भी जल्दी अवश्य छोड़ कर चले जाएँ। जिनकी प्रवृत्ति दुष्ट भेड़ियों की है ऐसे लोग बदलने में असमर्थ हैं। बेहतर होगा वे कलीसिया से तुरंत चले जाएँ और फिर कभी भाई-बहनों के सामान्य जीवन में बाधा न डालें और परिणास्वरूप परमेश्वर के दंड से बचें। तुम लोगों में से जो लोग उनके साथ चले गये हैं, वे आत्म-मंथन के लिए इस अवसर का उपयोग करें। क्या तुम लोग ऐसे दुष्टों के साथ कलीसिया से बाहर जाओगे, या यहीं रहकर आज्ञाकारिता के साथ अनुसरण करोगे? तुम लोगों को इस बात पर सावधानी से विचार अवश्य करना चाहिए। मैं चुनने के लिए तुम लोगों को एक और अवसर देता हूँ; मुझे तुम लोगों के उत्तर की प्रतीक्षा है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं उनके लिए एक चेतावनी
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कुकर्मियों की पहचान करने की अक्षमता के परिणाम
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जो भी सत्य का अभ्यास नहीं करता वो हटा दिया जाएगा