3. झूठे नेताओं को कैसे पहचानें
अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन
योग्य कर्मी का कार्य लोगों को सही मार्ग पर लाकर उन्हें सत्य में बेहतर प्रवेश प्रदान कर सकता है। उसका कार्य लोगों को परमेश्वर के सम्मुख ला सकता है। इसके अतिरिक्त, जो कार्य वह करता है, वह भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के लिए भिन्न-भिन्न हो सकता है, और वह नियमों से बँधा हुआ नहीं होता, उन्हें मुक्ति और स्वतंत्रता तथा जीवन में क्रमशः आगे बढ़ने और सत्य में अधिक गहन प्रवेश करने की क्षमता प्रदान करता है। अयोग्य कर्मी का कार्य कम पड़ जाता है। उसका कार्य मूर्खतापूर्ण होता है। वह लोगों को केवल नियमों के अधीन ला सकता है; और लोगों से उसकी अपेक्षाएँ हर व्यक्ति के लिए भिन्न-भिन्न नहीं होतीं; वह लोगों की वास्तविक आवश्यकताओं के अनुसार कार्य नहीं करता। इस प्रकार के कार्य में बहुत अधिक नियम और सिद्धांत होते हैं, और वह लोगों को वास्तविकता में नहीं ला सकता, न ही वह उन्हें जीवन में विकास के सामान्य अभ्यास में ला सकता है। वह लोगों को केवल कुछ बेकार नियमों का पालन करने में ही सक्षम बना सकता है। ऐसा मार्गदर्शन लोगों को केवल भटका सकता है। वह तुम्हें अपने जैसा बनाने में तुम्हारी अगुआई करता है; वह तुम्हें अपने स्वरूप में ला सकता है। इस बात को समझने के लिए कि अगुआ योग्य हैं या नहीं, अनुयायियों को अगुवाओं के उस मार्ग को जिस पर वे लोगों को ले जा रहे हैं और उनके कार्य के परिणामों को देखना चाहिए, और यह भी देखना चाहिए कि अनुयायी सत्य के अनुसार सिद्धांत पाते हैं या नहीं और अपने रूपांतरण के लिए उपयुक्त अभ्यास के तरीके प्राप्त करते हैं या नहीं। तुम्हें विभिन्न प्रकार के लोगों के विभिन्न कार्यों के बीच भेद करना चाहिए; तुम्हें मूर्ख अनुयायी नहीं होना चाहिए। यह लोगों के प्रवेश के मामले पर प्रभाव डालता है। यदि तुम यह भेद करने में असमर्थ हो कि किस व्यक्ति की अगुआई में एक मार्ग है और किसकी अगुआई में नहीं है, तो तुम आसानी से गुमराह हो जाओगे। इस सबका तुम्हारे अपने जीवन के साथ सीधा संबंध है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का कार्य
नकली अगुआ कौन होता है? निश्चित रूप से, कोई ऐसा व्यक्ति जो यथार्थ में कार्य न कर सके, जो एक अगुआ के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन न करता हो। ऐसे लोग कोई वास्तविक या महत्वपूर्ण कार्य नहीं करते; वे केवल कुछ सामान्य मामलों और सतही कार्यों को देखते हैं, जिनका जीवन प्रवेश या सत्य से कोई लेना-देना नहीं होता। इस कार्य को वे चाहे जितना कर लें, लेकिन इसे करने का कोई महत्व नहीं होता। इसलिए ऐसे अगुआओं को नकली करार दिया जाता है। तो वास्तव में नकली अगुआ की पहचान कैसे करें? आओ, अब हम इसका गहन विश्लेषण शुरू करते हैं। पहले तो यह स्पष्ट समझ लेना चाहिए कि एक अगुआ या कार्यकर्ता की पहली जिम्मेदारी यह है कि परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने में वह लोगों को की अगुवाई करे और सत्य पर इस तरह से संगति करे कि लोग उसे समझकर सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर सकें। किसी भी अगुआ के नकली या असली होने की जाँच की यह सबसे महत्वपूर्ण कसौटी है। देखो कि क्या वे परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने और सत्य समझने में लोगों की अगुवाई कर सकते हैं और क्या वे समस्याएँ हल करने के लिए सत्य का उपयोग कर सकते हैं। यही एकमात्र कसौटी है जिससे जाँचा जा सकता है कि किसी अगुआ या कार्यकर्ता में परमेश्वर के वचनों को समझने की क्या काबिलियत और योग्यता है और क्या वे सत्य वास्तविकता में प्रवेश के लिए परमेश्वर के चुने हुए लोगों की अगुवाई कर सकते हैं। यदि कोई अगुआ या कार्यकर्ता परमेश्वर के वचनों और सत्य को शुद्धता से समझने में सक्षम है, तो परमेश्वर में आस्था के बारे में लोगों की धारणाओं और कल्पनाओं का परमेश्वर के वचनों के अनुसार समाधान करने और लोगों को परमेश्वर के कार्य की व्यावहारिकता समझने में मदद करनी चाहिए। उन्हें परमेश्वर के वचनों के अनुसार उसके चुने हुए लोगों के सामने आने वाली वास्तविक कठिनाइयों को भी हल करना चाहिए, विशेष रूप से जब उनमें अपनी आस्था के बारे में गलत विचार हों या उनमें अपना कर्तव्य करने के बारे में गलतफहमियाँ हों। उन्हें उन समस्याओं के हल के लिए भी परमेश्वर के वचनों का इस्तेमाल करना चाहिए जब लोग विभिन्न परीक्षणों और परेशानियों का सामना कर रहे हों और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सत्य समझने, उसका अभ्यास करने और परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश कराने में सक्षम होना चाहिए। साथ ही, उन्हें परमेश्वर के वचनों में प्रकट भ्रष्ट अवस्थाओं के आधार पर लोगों के विभिन्न भ्रष्ट स्वभावों का विश्लेषण करना चाहिए, ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग देख सकें कि उनमें से कौन-से उन पर लागू होते हैं और वे अपने बारे में ज्ञान प्राप्त कर शैतान से घृणा करें और उसके विरुद्ध विद्रोह करें ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग अपनी गवाही में अडिग रह सकें और शैतान को हरा सकें, और सभी प्रकार के परीक्षणों के बीच परमेश्वर को महिमा प्रदान कर सकें। यह वह कार्य है जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करना चाहिए। यह कलीसिया का सबसे बुनियादी, महत्वपूर्ण और आवश्यक कार्य है। यदि अगुआओं के रूप में सेवा करने वाले लोगों में परमेश्वर के वचनों को समझने की काबिलियत और सत्य समझने की क्षमता है, तो वे न केवल खुद परमेश्वर के वचनों को समझ पाएंगे और उनकी वास्तविकता में प्रवेश कर पाएंगे, बल्कि वे परमेश्वर के वचनों की समझ और उनकी वास्तविकता में प्रवेश करने के लिए जिन लोगों को राह दिखा रहे हैं, उनका मार्गदर्शन और अगुआई कर उनकी सहायता कर पाएँगे। लेकिन वास्तव में परमेश्वर के वचनों और सत्य को समझने की क्षमता नकली अगुआओं में नहीं होती। वे परमेश्वर के वचनों को नहीं समझते, वे उन भ्रष्ट स्वभावों को नहीं जानते जिन्हें लोग उन अलग-अलग परिस्थितियों में प्रकट करते हैं जो परमेश्वर के वचनों में उजागर की गई हैं या जो परमेश्वर के विरुद्ध प्रतिरोध, शिकायत और विश्वासघात को जन्म देती हैं, इत्यादि। नकली अगुआ आत्मचिंतन करने या परमेश्वर के वचनों को स्वयं से जोड़ पाने में समर्थ नहीं होते, वे परमेश्वर के वचनों के शाब्दिक अर्थ से केवल थोड़े से धर्म-सिद्धांत और कुछ विनियमों को समझते हैं। जब वे दूसरों के साथ संगति करते हैं, तो केवल परमेश्वर के कुछ वचनों को सुनाते हैं, फिर उसका शाब्दिक अर्थ समझाते हैं। ऐसा करके वे सोचते हैं कि वे सत्य पर संगति और वास्तविक कार्य कर रहे हैं। यदि कोई उनकी तरह परमेश्वर के वचनों को पढ़ और सुना सके तो वे सोचेंगे कि ऐसा कर सकने वाले लोग सत्य से प्रेम करते हैं और उसे समझते हैं। नकली अगुए परमेश्वर के वचनों का केवल शाब्दिक अर्थ समझते हैं; उनमें परमेश्वर के वचनों के सत्य की आधारभूत समझ नहीं होती, इसलिए वे उनसे संबंधित अपने अनुभवात्मक ज्ञान के बारे में बात नहीं कर पाते। नकली अगुआओं में परमेश्वर के वचनों को समझने की योग्यता नहीं होती; वे केवल उनका सतही अर्थ ही समझते हैं, लेकिन विश्वास करते हैं कि यही परमेश्वर के वचनों और सत्य को समझना है। अपने दैनिक जीवन में, वे दूसरों को सलाह देने और उनकी सहायता करने के लिए हमेशा परमेश्वर के वचनों के शाब्दिक अर्थ ही समझाते हैं, और मानते हैं कि यह करना ही काम करना है, और वे लोगों को परमेश्वर के वचन खाने और पीने और उनकी वास्तविकता में प्रवेश करने की अगुआई कर रहे हैं। सच्चाई यह है कि यद्यपि नकली अगुआ इस तरह अक्सर दूसरों के साथ परमेश्वर के वचनों के बारे में संगति करते हैं, लेकिन वे थोड़ी-सी भी वास्तविक समस्या का समाधान नहीं कर पाते और परमेश्वर के चुने हुए लोग उसके वचनों का अभ्यास या अनुभव करने में अक्षम रह जाते हैं। वे चाहे जितने भी समागमों में उपस्थिति दर्ज करा लें या परमेश्वर के वचनों को खा-पी लें, फिर भी वे सत्य को नहीं समझते, न ही जीवन प्रवेश हासिल कर पाते, और उनमें से कोई भी अपने अनुभवात्मक ज्ञान के बारे में बात करने योग्य नहीं हो पाता। यदि कलीसिया में गड़बड़ी पैदा करने वाले दुष्ट और छद्मविश्वासी लोग हों, तो भी कोई उन्हें पहचान नहीं पाता। नकली अगुआ जब किसी छद्मविश्वासी या दुष्ट व्यक्ति को बाधा उत्पन्न करते हुए देखता है, तो वह विवेक का प्रयोग नहीं करता, बल्कि वह उनके प्रति प्रेम और प्रोत्साहन व्यक्त करते हुए औरों को भी उनके प्रति सहिष्णु और धैर्यवान होने को कहता है, और दुष्ट लोगों से आनंदित होता है, जबकि वे कलीसिया में गडबड़ियाँ पैदा करते रहते हैं। इससे कलीसिया का हर कार्य एकदम निष्फल हो जाता है। नकली अगुआ के वास्तविक कार्य न करने का यही परिणाम होता है। नकली अगुआ समस्याओं को हल करने के लिए सत्य का उपयोग नहीं कर सकते, इससे साफ जाहिर होता है कि उनमें सत्य वास्तविकता नहीं होती। जब वे बोलते हैं, तो उनके मुख से केवल परमेश्वर के वचन और धर्म-सिद्धांत निकलते हैं और वे लोगों से जिन चीजों का अभ्यास करने को कहते हैं, वे केवल धर्म-सिद्धांतों और विनियम होते हैं। उदाहरण के लिए, जब किसी में परमेश्वर के प्रति कोई गलतफहमी पैदा हो जाती है, तो नकली अगुआ उससे कहेंगे कि, “परमेश्वर के वचनों में तो यह सब पहले से ही शामिल है : परमेश्वर जो कुछ भी करता है, वह इंसान का उद्धार होता है, उसका प्रेम होता है। देखो उसके वचन कितने साफ, कितने स्पष्ट हैं। फिर भी उसके बारे में तुम्हारी समझ गलत कैसे हो गई?” नकली अगुआ लोगों को इस प्रकार के निर्देश देते हैं। वे लोगों को झिड़कने, उन्हें विवश करने और उनसे विनियमों का पालन कराने के लिए धर्म-सिद्धांतों की बातें करते हैं। इसका रत्ती भर फायदा नहीं होता, और इससे किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता। नकली अगुए केवल वचन और धर्म-सिद्धांत बोल पाते हैं जिससे उन लोगों को लगता है कि धर्म-सिद्धांत बोल लेने का मतलब है कि वे सत्य वास्तविकताओं में प्रवेश कर गए हैं। फिर भी, जब उन पर कोई मुसीबत आती है तो उन्हें नहीं पता होता कि कैसे अभ्यास करें, उनके पास कोई रास्ता नहीं होता और जिन वचनों और धर्म-सिद्धांतों को वे समझते हैं, वे सब किनारे धरे रह जाते हैं। यह क्या दिखाता है? यह दिखाता है कि सिद्धांत समझ लेना जरा भी उपयोगी या मूल्यवान नहीं होता। नकली अगुआओं को मात्र धर्म-सिद्धांत की समझ होती है। वे समस्याएँ हल करने के लिए सत्य पर संगति नहीं कर सकते; उनके कार्यों के कोई सिद्धांत नहीं होते और अपने जीवन में वे सिर्फ कुछ उन विनियमों का पालन करते हैं जिन्हें वे अच्छा समझते हैं। ऐसे लोगों में सत्य वास्तविकता नहीं होती। इसीलिए, जब नकली अगुए परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने में लोगों की अगुआई करते हैं, तो उसका कोई सच्चा प्रभाव नहीं होता। वे केवल लोगों को परमेश्वर के वचनों का शाब्दिक अर्थ समझा पाते हैं, उन्हें परमेश्वर के वचनों से प्रबोधन पाने में मदद नहीं कर पाते या यह नहीं समझा पाते कि उनके अंदर किस प्रकार का भ्रष्ट स्वभाव है। नकली अगुए नहीं समझते कि लोगों की स्थितियाँ कैसी हैं या किसी स्थिति-विशेष में लोग कैसा स्वभाव सार प्रकट करेंगे, या इन गलत स्थितियों और भ्रष्ट स्वभावों को दूर करने के लिए परमेश्वर के कौन से वचनों का उपयोग किया जाना चाहिए, परमेश्वर के वचनों में उनके बारे में क्या कहा गया है, परमेश्वर के वचनों की अपेक्षाएँ और सिद्धांत क्या हैं या उनमें क्या सत्य निहित है। नकली अगुए इन सत्य वास्तविकताओं के बारे में कुछ नहीं समझते। वे लोगों को बस यह कहते हुए सलाह देते हैं कि “परमेश्वर के वचनों को और अधिक खाओ-पियो। उनमें सत्य है। जब तुम उसके और अधिक वचन पढ़ोगे तो तुम समझ जाओगे। यदि उनमें से कुछ को न समझ पाओ, तो बस और अधिक प्रार्थना, खोज और उन पर विचार करो।” वे लोगों को इसी तरह की सलाह देते हैं और ऐसा करते हुए वे उनकी समस्याओं का समाधान करने में अक्षम होते हैं। कोई समस्या लेकर उनके पास हल की खोज में चाहे जो आए, वे बस वही एक बात कहते हैं। बाद में वह व्यक्ति खुद को नहीं जान पाता और न ही उसमें सत्य की समझ पैदा हो पाती है। वे खुद ही अपनी वास्तविक समस्या का समाधान नहीं कर पाते या यह नहीं समझ पाते कि उन्हें परमेश्वर के वचनों का अभ्यास कैसे करना चाहिए, वे बस परमेश्वर के वचनों के शाब्दिक अर्थ से और विनियमों से ही चिपके रहते हैं। जब परमेश्वर के वचनों का अभ्यास करने के सत्य सिद्धांतों की बात आती है या यह बात आती है कि उन्हें किन वास्तविकताओं में प्रवेश करना चाहिए, तो वे इन बातों को कभी नहीं समझ पाते। नकली अगुआओं के काम का यही नतीजा होता है : एक भी व्यावहारिक परिणाम नहीं आ पाता।
—वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (1)
यह कैसे तय करना चाहिए कि एक अगुआ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ निभा रहा है, या वह नकली अगुआ है? सबसे बुनियादी स्तर पर, यह देखना चाहिए कि वे वास्तविक कार्य करने में सक्षम हैं या नहीं, कि उनमें यह काबिलियत है या नहीं। फिर, यह देखना चाहिए कि क्या वे इस काम को अच्छे तरीके से करने का भार उठाते हैं या नहीं। इसकी अनदेखी करो कि वे जो बातें बोलते हैं वे कितनी अच्छी लगती हैं और वे धर्म-सिद्धांतों की कितनी समझ रखने वाले लगते हैं, इस पर भी ध्यान मत दो कि बाहरी मामलों से निपटने में वे कितने प्रतिभाशाली और गुणी हैं—ये बातें महत्वपूर्ण नहीं हैं। जो सर्वाधिक महत्व की बात है, वह यह है कि वे कलीसिया के काम की सबसे बुनियादी मदों का काम ठीक तरीके से करने की योग्यता रखते हैं या नहीं, वे सत्य का उपयोग कर समस्याओं को हल कर सकते हैं या नहीं और कि वे लोगों को सत्य वास्तविकता में ले जा सकते हैं या नहीं। यह सबसे मूलभूत और आवश्यक कार्य है। यदि वे वास्तविक कार्य की इन मदों पर काम करने में अक्षम हैं, तो फिर चाहे उनमें कितनी भी काबिलियत हो, वे कितने भी प्रतिभावान हों, या कितनी भी कठिनाइयाँ सह सकते हों और कीमत चुका सकते हों, वे नकली अगुआ ही रहेंगे। कुछ लोग कहते हैं, “भूल जाओ कि वे अभी कोई वास्तविक काम नहीं करते हैं। उनकी क्षमता अच्छी है और वे काबिल हैं। अगर वे थोड़े समय तक प्रशिक्षण लेंगे, तो वे अवश्य ही वास्तविक कार्य करने के काबिल बन जाएँगे। इसके अलावा उन्होंने कुछ भी बुरा नहीं किया है और उन्होंने कोई बुरा काम नहीं किया है या विघ्न-बाधा नहीं डाली है—तुम कैसे कह सकते हो कि वे नकली अगुआ हैं?” हम इसकी व्याख्या कैसे कर सकते हैं? कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितने प्रतिभाशाली हो, तुम्हारे पास किस स्तर की काबिलियत और शिक्षा है, तुम कितने नारे लगा सकते हो, या कितने शब्द और धर्म-सिद्धांतों पर तुम्हारी पकड़ है; इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितने व्यस्त हो, या दिन भर में कितने थके हो, या तुमने कितनी दूर की यात्रा की है, कितनी कलीसियाओं में जाते हो, या तुम कितने जोखिम उठाते हो और कितना कष्ट सहते हो—इनमें से कोई भी बात मायने नहीं रखती। जो बात मायने रखती है वह यह है कि क्या तुम अपना काम दी गई कार्य व्यवस्थाओं के आधार पर कर रहे हो, क्या तुम उन व्यवस्थाओं को सही ढंग से लागू कर रहे हो; क्या तुम अपनी अगुआई के दौरान हर उस विशिष्ट कार्य में भाग ले रहे हो जिसके लिए तुम जिम्मेदार हो, और तुमने वास्तव में कितने वास्तविक मुद्दों का समाधान किया है; तुम्हारी अगुआई और मार्गदर्शन के कारण कितने लोग सत्य सिद्धांतों को समझ पाए हैं, और कलीसिया का काम कितना आगे बढ़ा और विकसित हुआ है—जो मायने रखता है वह यह है कि तुमने ये परिणाम हासिल किए हैं या नहीं। तुम जिस भी विशिष्ट कार्य में लगे हो, उसके बावजूद जो मायने रखता है वह यह है कि क्या तुम उच्चपदस्थ और शक्तिशाली बन कर आदेश जारी करने के बजाय लगातार कार्य का अनुसरण और निर्देशन कर रहे हो या नहीं। इसके अलावा यह भी मायने रखता है कि तुम अपने कर्तव्य निभाते हुए जीवन प्रवेश करते हो या नहीं, क्या तुम सिद्धांतों के अनुसार मामलों से निपट सकते हो, क्या तुम्हारे पास सत्य को अभ्यास में लाने की गवाही है, और क्या तुम परमेश्वर के चुने हुए लोगों के सामने आने वाले वास्तविक मुद्दों को सँभाल सकते हो और उनका समाधान कर सकते हो। ये और इसी तरह की दूसरी चीजें यह आकलन करने की कसौटी होती हैं कि किसी अगुआ या कार्यकर्ता ने अपनी जिम्मेदारियों को पूरा किया है या नहीं।
—वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (9)
सारे नकली अगुआ शब्द और धर्म-सिद्धांतों का प्रचार कर सकते हैं, वे सभी छद्म आध्यात्मिक होते हैं, वे कोई वास्तविक कार्य नहीं कर सकते, और कई वर्षों से परमेश्वर में विश्वास करने के बाद भी सत्य को नहीं समझते—कहा जा सकता है कि उनमें कोई आध्यात्मिक समझ नहीं है। वे सोचते हैं कि कलीसियाई अगुआ होने का अर्थ यह है कि उन्हें बस कुछ शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का उपदेश देना है, कुछ नारे लगाने हैं, और परमेश्वर के वचनों को थोड़ा सा समझाना है, और फिर लोग सत्य समझ जाएँगे। वे नहीं जानते हैं कि कार्य करने का क्या अर्थ है, वे नहीं जानते हैं कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ वास्तव में क्या हैं, और वे नहीं जानते हैं कि परमेश्वर का घर किसी को अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में वास्तव में क्यों चुनता है, या वास्तव में यह किन समस्याओं को हल करने के लिए है। इसलिए, चाहे परमेश्वर का घर कितनी भी संगति क्यों न करे कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं को काम की अनुवर्ती देखभाल करनी चाहिए, काम का निरीक्षण करना चाहिए, और कार्य की निगरानी करनी चाहिए, कि उन्हें काम में आ रही समस्याओं का तुरंत पता लगाकर उनका समाधान करना चाहिए, इत्यादि, वे इनमें से किसी का भी संज्ञान नहीं लेते और वे इसे नहीं समझते हैं। वे परमेश्वर के घर की अगुआओं और कार्यकर्ताओं से की जाने वाली अपेक्षाओं को पूरा करने में सक्षम नहीं होते, और वे कर्तव्यों के निर्वहन में शामिल पेशेवर कौशलों से संबंधित समस्याओं को नहीं समझ पाते हैं, साथ ही पर्यवेक्षकों के चयन के लिए सिद्धांत से जुड़े मसले इत्यादि भी नहीं समझते, और यदि वे इन समस्याओं के बारे में जानते भी हों, फिर भी वे उन्हें सँभालने में सक्षम नहीं होते। इसलिए, ऐसे नकली अगुआओं के नेतृत्व में कलीसिया के काम में आने वाली सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान नहीं किया जा सकता। परमेश्वर के चुने हुए लोगों को अपने कर्तव्यों का पालन करने के दौरान पेशेवर कौशलों से संबंधित जो समस्याएँ आती हैं, सिर्फ वही नहीं, बल्कि परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश से संबंधित कठिनाइयाँ भी लंबे समय तक अनसुलझी रह जाती हैं, और जब कुछ अगुआ और कार्यकर्ता या कार्य के विभिन्न मदों के पर्यवेक्षक वास्तविक कार्य करने में समर्थ नहीं होते हैं, तो उन्हें तुरंत बर्खास्त नहीं किया जाता है या उनकी दोबारा नियुक्ति नहीं की जाती है, वगैरह। इनमें से कोई भी समस्या तेजी से हल नहीं होती, और परिणामस्वरूप कलीसिया में काम की विभिन्न मदों की दक्षता लगातार घटती जाती है, और काम की प्रभावशीलता कम से कमतर होती जाती है। जहाँ तक कार्मिकों की बात है, तो जो लोग कुछ हद तक प्रतिभाशाली और बोलने में अच्छे होते हैं, वे अगुआ और कार्यकर्ता बन जाते हैं, जबकि जो लोग सत्य से प्रेम करते हैं, जो कड़ी मेहनत कर सकते हैं, और बिना किसी शिकायत के अथक परिश्रम करते हैं, उन्हें पदोन्नति और विकास नहीं मिलता है, और उनके साथ श्रमिकों जैसा व्यवहार किया जाता है, और विभिन्न तकनीकी कर्मी जिनके पास कुछ खूबियाँ हैं, उनका उचित उपयोग नहीं किया जाता है। साथ ही, कुछ लोग जो ईमानदारी से अपना कर्तव्य निभाते हैं, उन्हें जीवन का पोषण नहीं मिलता, और इसलिए वे नकारात्मकता और कमजोरी में डूब जाते हैं। इतना ही नहीं, मसीह-विरोधी और बुरे लोग चाहे जितने बुरे काम क्यों न करें, ऐसा लगता है कि नकली अगुआओं ने उसे नहीं देखा होता। यदि कोई किसी दुष्ट व्यक्ति या मसीह-विरोधी को उजागर करता है, तो झूठे अगुआ उनसे यह भी कहेंगे कि उन्हें उस व्यक्ति के साथ प्रेम से पेश आना चाहिए और उन्हें पश्चात्ताप करने का मौका देना चाहिए। ऐसा करके वे कुकर्मियों और मसीह-विरोधियों को बुरा करने और कलीसिया में बाधाएँ पैदा करने देते हैं, और इससे इन कुकर्मियों, छद्म-विश्वासियों और मसीह-विरोधियों को बहिष्कृत या निष्कासित करने में बहुत देरी होती है, और वे कलीसिया में कुकर्म करना और कलीसिया के कार्य में बाधा डालना जारी रख पाते हैं। नकली अगुआ इनमें से किसी भी समस्या से निपटने और उसका समाधान करने में सक्षम नहीं होते; वे लोगों के साथ निष्पक्ष व्यवहार करने या उचित तरीके से काम की व्यवस्था करने में सक्षम नहीं होते, बल्कि वे लापरवाही से कार्य करते हैं और सिर्फ कुछ बेकार कार्य करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप वे कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी और अराजकता उत्पन्न करते हैं। परमेश्वर का घर सत्य पर चाहे जैसी संगति करे या कलीसिया के काम को क्रियान्वित करते समय पालन किए जाने वाले सिद्धांतों पर कैसा भी जोर दे—अलग-अलग प्रकार के कुकर्मियों और अविश्वासियों में से जिन पर प्रतिबंध लगाना चाहिए उन पर प्रतिबंध लगाना और जिन्हें बाहर निकालना चाहिए उन्हें बाहर निकालना, और अच्छी काबिलियत और समझने की क्षमता वाले लोगों को पदोन्नत करना और विकसित करना, और ऐसे लोग जो सत्य का अनुसरण कर सकते हों, जिन्हें पदोन्नत किया जाना चाहिए और तैयार किया जाना चाहिए—यद्यपि इन चीजों पर अनगिनत बार संगति की जाती है, नकली अगुआ उन्हें नहीं जानते या समझते और बस अपने छद्म आध्यात्मिक विचारों और “प्रेमपूर्ण” दृष्टिकोणों पर अड़े रहते हैं। नकली अगुआओं का मानना होता है कि उनके ईमानदार और धैर्ययुक्त निर्देश के अंतर्गत, सभी तरह के लोग अपनी-अपनी भूमिकाएँ, बिना गड़बड़ी के, व्यवस्थित तरीके से निभाते हैं, कि सभी में काफी आस्था है और वह अपने कर्तव्यों को निभाने के लिए तैयार है, वह जेल जाने और खतरों का सामना करने से नहीं डरता, कि हर व्यक्ति में कष्ट सहने का दृढ़ निश्चय है और वह यहूदा बनने का इच्छुक नहीं है। वे मानते हैं कि कलीसियाई जीवन में बढ़िया माहौल होने का अर्थ है कि उन्होंने अच्छा कार्य किया है। चाहे कलीसिया में कुकर्मियों द्वारा बाधाएँ उत्पन्न करने या अविश्वासियों द्वारा विधर्म और भ्रांतियाँ फैलाने की घटनाएँ हुई हों या नहीं, वे इन चीजों को समस्या नहीं मानते और उन्हें इनका समाधान करने की कोई जरूरत महसूस नहीं होती। जब बात किसी ऐसे व्यक्ति की आती है जिसे उन्होंने कार्य सौंपा है और वह अपनी इच्छा के आधार पर लापरवाही से कार्य करता है और सुसमाचार के काम में बाधा डालता है, तो नकली अगुआ और भी अंधे हो जाते हैं। वे कहते हैं, “मुझे जो समझाना था, मैंने उन कार्य सिद्धांतों को समझा दिया है, और मैंने उन्हें बार-बार बताया है कि क्या करना है। अगर कोई भी समस्या आती है, तो मेरा इससे कोई लेना-देना नहीं है।” लेकिन, उन्हें नहीं पता होता है कि क्या वह व्यक्ति सही व्यक्ति है, वे उस बात पर ध्यान नहीं देते हैं, और उन्हें यह भी पता नहीं होता है कि उस व्यक्ति को यह समझाने और बताने के दौरान कि उसे क्या करना चाहिए उन्होंने जो भी कहा क्या उससे सकारात्मक परिणाम प्राप्त हो सकते हैं, या इससे क्या परिणाम सामने आएँगे। जब भी नकली अगुआ कोई सभा करते हैं, तो वे शब्दों और धर्म-सिद्धांतों की एक अंतहीन धारा प्रवाहित करते हैं, लेकिन इसका परिणाम यह होता है कि वे कोई भी समस्या हल नहीं कर पाते हैं। और फिर भी वे यही मानते हैं कि वे बढ़िया कार्य कर रहे हैं, वे इतने पर भी अपने काम से प्रसन्न होते हैं और सोचते हैं कि वे अद्भुत हैं। वास्तव में, वे जो शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते हैं, वे सिर्फ उन्हीं भ्रमित लोगों, मंदबुद्धि लोगों और बेवकूफ लोगों को उल्लू बना सकते हैं, जो अज्ञानी और खराब काबिलियत वाले हैं। ये शब्द सुनने के बाद ये लोग उलझन में पड़ जाते हैं और यह मान लेते हैं कि झूठे अगुआओं ने जो कहा वह बहुत ही सही है, कि उन्होंने जो भी कहा वह गलत नहीं है। नकली अगुआ केवल इन भ्रमित लोगों को संतुष्ट कर सकते हैं और वे वास्तविक समस्याओं को हल करने में सिरे से अक्षम होते हैं। बेशक नकली अगुआ पेशेवर कौशलों और ज्ञान से संबंधित समस्याओं से निपटने में और भी कम सक्षम होते हैं—इन चीजों की बात आने पर वे पूरी तरह से बेबस हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, परमेश्वर के घर के पाठ-आधारित कार्य को ही ले लें। यह वह काम है जिसमें नकली अगुआओं को सबसे ज्यादा सिरदर्द देता है। वे यह पहचान नहीं पाते हैं कि वास्तव में किन लोगों में आध्यात्मिक समझ है, अच्छी काबिलियत है, और कौन लोग पाठ-आधारित कार्य करने के लिए उपयुक्त हैं, और वे उच्च स्तर की शिक्षा पाए, चश्मा लगाने वाले किसी भी व्यक्ति को अच्छी काबिलियत और आध्यात्मिक समझ वाला मान लेते हैं, और इसलिए वे उन लोगों से यह काम करवाते हैं, और उनसे कहते हैं कि “तुम सभी पाठ-आधारित कार्य करने में प्रतिभाशाली हो। मुझे यह काम समझ में नहीं आता, इसलिए यह तुम लोगों की जिम्मेदारी है। परमेश्वर के घर को तुम लोगों से और कुछ नहीं चाहिए, बस यही चाहिए कि तुम लोग अपनी खूबियों का उपयोग करो, कुछ भी न छिपाओ, और तुमने जो कुछ भी ज्ञान प्राप्त किया है, उसका योगदान दो। तुम लोगों को आभारी होना और तुम्हें ऊपर उठाने के लिए परमेश्वर को धन्यवाद देना आना चाहिए।” बहुत सारे निरर्थक और सतही शब्द कह देने के बाद झूठे अगुआ सोचते हैं कि कार्य की व्यवस्था हो गई है, और कि उन्होंने वह सब कुछ कर दिया है जो उन्हें करने की जरूरत है। वे नहीं जानते कि उन्होंने इस काम को करने के लिए जिन लोगों को नियुक्त किया है, वे इसके उपयुक्त हैं या नहीं, न ही वे जानते हैं कि पेशेवर ज्ञान के मामले में इन लोगों की क्या कमियाँ हैं, या उन खामियों को कैसे दूर करना चाहिए। वे नहीं जानते कि लोगों को कैसे देखें और समझें, वे पेशेवर समस्याओं को नहीं समझते, न ही वे लेखन संबंधी ज्ञान की समझ रखते हैं—वे इन चीजों से बिलकुल ही अनभिज्ञ होते हैं। वे कहते हैं कि उन्हें इन चीजों की जानकारी या गहरी समझ नहीं है, लेकिन अपने दिल में वे सोचते हैं, “क्या तुम लोग मुझसे जरा सा ही ज्यादा शिक्षित और जानकार नहीं हो? भले ही मैं इस काम में तुम लोगों का मार्गदर्शन नहीं कर सकता, लेकिन मैं तुम लोगों से ज्यादा आध्यात्मिक हूँ, मैं धर्मोपदेश देने में तुम लोगों से बेहतर हूँ, और मैं परमेश्वर के वचनों को तुम लोगों से बेहतर समझता हूँ। मैं ही तुम लोगों का नेतृत्व कर रहा हूँ, मैं तुम लोगों का वरिष्ठ हूँ। मुझे ही तुम लोगों का प्रभारी होना चाहिए, और तुम्हें वही करना है जो मैं कहूँगा।” झूठे अगुआ खुद को बेहतर मानते हैं, फिर भी वे पेशेवर कौशलों से संबंधित किसी भी तरह के कार्य के बारे में कोई सार्थक सुझाव नहीं दे पाते, और वे कोई मार्गदर्शन देने में भी समर्थ नहीं होते हैं। ज्यादा-से-ज्यादा, वे कर्मचारियों की व्यवस्था अच्छी तरह से कर सकते हैं; वे इसके बाद का कोई भी कार्य नहीं कर सकते हैं। वे पेशेवर ज्ञान हासिल करने का प्रयास नहीं करते हैं, और वे कार्य पर अनुवर्ती कार्रवाई नहीं करते हैं। सभी नकली अगुआ छद्म आध्यात्मिक होते हैं; वे बस कुछ शब्द और धर्म-सिद्धांतों का उपदेश कर सकते हैं और फिर उन्हें लगता है कि वे सत्य को समझते हैं और लगातार परमेश्वर के चुने हुए लोगों के सामने दिखावा करते हैं। हर सभा में वे कई-कई घंटों तक उपदेश देते हैं, और फिर भी परिणाम यही होता है कि वे कोई भी समस्या हल नहीं कर पाते हैं। जब लोगों के कर्तव्यों में पेशेवर ज्ञान से संबंधित समस्याओं की बात आती है तो वे पूरी तरह से अनभिज्ञ होते हैं; वे स्पष्ट रूप से आम लोग हैं, फिर भी वे आध्यात्मिक होने का ढोंग करते हैं, पेशेवरों का कार्य निर्देशित करते हैं—वे इस तरह से कार्य को अच्छी तरह से कैसे कर सकते हैं? झूठे अगुआ पेशेवर ज्ञान सीखने का प्रयास नहीं करते हैं और कोई वास्तविक काम करने में सक्षम नहीं होते, इससे लोग पहले से ही घृणा करते हैं, और ऊपर से, वे आध्यात्मिक लोग होने का ढोंग करते हैं और अपने अध्यात्मिक शब्दों का दिखावा करते हैं, जिसमें सूझ-बूझ बिल्कुल नहीं होती है! यह काम फरीसियों से अलग नहीं है। फरीसी जिस बिंदु पर सबसे ज्यादा विवेकहीन थे वह यह था कि परमेश्वर उनसे घृणा करता था, फिर भी वे इससे पूरी तरह अनजान थे और खुद को बहुत अच्छा और बहुत आध्यात्मिक मानते थे। नकली अगुआओं में आत्म-जागृति की इतनी कमी होती है; वे स्पष्ट रूप से कोई वास्तविक काम नहीं कर सकते और फिर भी वे आध्यात्मिक होने का दिखावा करते हैं, वे पाखंडी फरीसी बन जाते हैं। वे वही हैं जिनका परमेश्वर तिरस्कार करता है और उन्हें निकाल देता है।
—वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (8)
नकली अगुआओं का एक लक्षण यह है कि वे सत्य सिद्धांतों से जुड़ी किसी भी समस्या को पूरी तरह से समझाने या स्पष्ट करने में असमर्थ होते हैं। अगर कोई उनसे कुछ जानना चाहता है तो वे उसे केवल कुछ खोखले शब्द और धर्म-सिद्धांत भर बता सकते हैं। जब उन्हें ऐसी समस्याओं का सामना करना पड़े जिनका समाधान किया जाना हो, तो वे अक्सर इस तरह के कथनों में उत्तर देते हैं, “तुम सभी इस कर्तव्य को निभाने के विशेषज्ञ हो। अगर तुम लोगों को कोई समस्या है, तो तुम्हें खुद ही उसका समाधान निकालना चाहिए। मुझसे मत पूछो; मैं कोई विशेषज्ञ नहीं हूँ और मुझे इसकी समझ नहीं है। इसे तुम लोग अपने आप हल करो।” कुछ लोग जवाब दे सकते हैं कि “हम तुमसे इसलिए पूछ रहे हैं क्योंकि हम समस्या का समाधान नहीं कर पा रहे हैं; अगर हम इसे हल कर पाते, तो तुमसे नहीं पूछते। हम सत्य सिद्धांतों से जुड़ी इस समस्या को नहीं समझते।” नकली अगुआ जवाब देंगे कि “क्या मैं तुम लोगों को पहले ही सिद्धांत नहीं बता चुका हूँ? अपने कर्तव्य अच्छी तरह से निभाओ और विघ्न-बाधा न पैदा करो। तुम फिर भी किस बारे में पूछ रहे हो? तुम्हें जैसे ठीक लगे वैसे इसे संभालो! परमेश्वर के वचन पहले ही बोले जा चुके हैं : परमेश्वर के घर के हितों को प्राथमिकता दो।” इससे वे लोग पूरी तरह से भ्रमित हो जाते हैं और सोचते हैं, “यह तो समस्या का समाधान नहीं है!” नकली अगुआ अपने कार्य को इसी तरह लेते हैं; वे केवल इसका निरीक्षण करते हैं, औपचारिकता निभाते हैं और कभी समस्याओं का समाधान नहीं करते। लोग चाहे जो भी समस्याएँ उठाएं, नकली अगुए उन्हें खुद सत्य खोजने के लिए कहते हैं। वे अक्सर लोगों से पूछते हैं, “क्या तुम्हें कोई समस्या है? तुम्हारा जीवन प्रवेश कैसा है? क्या तुम अपने कर्तव्यों को अनमने ढंग से निभा रहे हो?” वे लोग जवाब देते हैं, “कभी-कभी, मैं खुद को अनमनी स्थिति में पाता हूँ और प्रार्थना के माध्यम से इसे हल कर खुद को ठीक कर लेता हूँ, लेकिन मैं अभी भी अपने कर्तव्य निभाने के सत्य सिद्धांतों को नहीं समझता।” नकली अगुआ कहते हैं, “क्या मैंने पिछली सभा में तुम्हारे साथ विशिष्ट सिद्धांतों पर संगति नहीं की थी? मैंने तो तुम्हें परमेश्वर के वचनों के कई अंश भी सुनाए थे। क्या तुम्हें अब तक समझ नहीं जाना चाहिए था?” वास्तव में वे सभी धर्म-सिद्धांत समझते हैं, फिर भी वे अभी अपनी समस्याओं को हल करने में असमर्थ हैं। नकली अगुआ बड़ी-बड़ी बातें भी करते हैं, “तुम इसे हल क्यों नहीं कर सकते? तुमने परमेश्वर के वचनों को ठीक से पढ़ा ही नहीं है। यदि तुम अधिक प्रार्थना करो और परमेश्वर के वचन और अधिक पढ़ो तो तुम्हारी सभी समस्याएँ हल हो जाएँगी। तुम लोगों को एक साथ चर्चा करना और रास्ता निकालना सीखना होगा, फिर तुम्हारी समस्याएँ अंततः हल हो जाएँगी। जहाँ तक पेशेवर समस्याओं की बात है तो उनके बारे में मुझसे मत पूछो; मेरी जिम्मेदारी काम का निरीक्षण करने की है। मैंने अपना काम पूरा कर लिया है और बाकी काम ऐसे पेशेवर मामले हैं जिन्हें मैं नहीं समझता।” नकली अगुआ अक्सर लोगों को टालने और सवालों से बचने के लिए “मुझे समझ में नहीं आता, मैंने इसे कभी नहीं सीखा, मैं कोई विशेषज्ञ नहीं हूँ” जैसे कारण और बहाने गिनाते हैं। वे काफी विनम्र लग सकते हैं; परंतु यह नकली अगुआओं से जुड़ी एक गंभीर समस्या को उजागर करता है—उन्हें कुछ कामों के पेशेवर ज्ञान से जुड़ी समस्याओं की कोई समझ नहीं होती है, वे अशक्त महसूस करते हैं और बेहद अजीब और शर्मिंदा दिखते हैं। फिर वे क्या करते हैं? वे सभाओं के दौरान सबके साथ संगति करने के लिए सिर्फ परमेश्वर के वचनों के कुछ अंश जुटा सकते हैं और लोगों को प्रेरित करने के लिए कुछ धर्म-सिद्धांतों के बारे में बात कर सकते हैं। थोड़े दयालु किस्म के अगुआ लोगों के प्रति चिंता दिखाकर समय-समय पर उनसे पूछ सकते हैं, “क्या हाल ही में तुम्हें अपने जीवन में किसी कठिनाई का सामना करना पड़ा है? क्या तुम्हारे पास पर्याप्त लत्ते-कपड़े हैं? क्या तुम में से कोई ऐसा है जो दुर्व्यवहार कर रहा है?” यदि हर कोई कहता है कि उन्हें ऐसी कोई समस्या नहीं है तो वे जवाब देते हैं, “तो कोई समस्या नहीं है। तुम लोग अपना काम जारी रखो; मुझे दूसरे मामले देखने हैं” और वे इस डर से तुरंत वहाँ से चले जाते हैं कि कोई सवाल पूछकर उनसे समाधान करने के लिए कह सकता है जिससे वे शर्मनाक स्थिति में पड़ सकते हैं। नकली अगुआ इसी तरह काम करते हैं—वे किसी भी वास्तविक समस्या का समाधान नहीं कर सकते। कलीसिया के कार्य को वे कैसे प्रभावी ढंग से कार्यान्वित सकते हैं? नतीजतन, अनसुलझी समस्याओं का ढेर अंततः कलीसिया के कार्य में बाधा डालता है। यह नकली अगुआओं की कार्यशैली का एक प्रमुख लक्षण और अभिव्यक्ति है।
—वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (2)
नकली अगुआ मूलतः कलीसिया के आवश्यक, महत्वपूर्ण कार्य करने में असमर्थ होते हैं। वे बस कुछ सरल, सामान्य मामलों को निपटाते हैं; उनका काम कलीसिया के समग्र कार्य में महत्वपूर्ण या निर्णायक भूमिका नहीं निभाता और उसके वास्तविक नतीजे नहीं निकलते। उनकी संगति मूल रूप से केवल कुछ घिसे-पिटे और सामान्य विषयों पर होती है, इसमें निरे घिसे-पिटे शब्द और धर्म-सिद्धांत होते हैं और यह अत्यंत खोखली, सामान्य और विवरणहीन होती है। उनकी संगति में केवल वही चीजें होती हैं जिन्हें लोग शाब्दिक रूप से कुछ पढ़कर समझ सकते हैं। ये नकली अगुआ परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश में आने वाली वास्तविक समस्याओं को बिल्कुल हल नहीं कर सकते; खासकर वे लोगों की धारणाओं, कल्पनाओं और भ्रष्ट स्वभावों के खुलासों का समाधान करने में और भी कम सक्षम होते हैं। मुख्य बात यह है कि नकली अगुआ परमेश्वर के घर द्वारा व्यवस्थित महत्वपूर्ण कार्यो, जैसे कि सुसमाचार कार्य, फिल्म निर्माण कार्य या पाठ-आधारित कार्य को अपने कंधे नहीं ले सकते। खास तौर पर जब पेशेवर ज्ञान से जुड़े कार्य की बात आती है, तो हो सकता है कि नकली अगुआ यह अच्छी तरह जानते हों कि इन क्षेत्रों में वे खास जानकार नहीं हैं, लेकिन वे इनका अध्ययन नहीं करते, न ही वे शोध करते हैं, और दूसरों को विशिष्ट निर्देशन दे पाने या उनसे संबंधित किसी भी समस्या का समाधान करने में वे और भी कम सक्षम होते हैं। फिर भी वे बेशर्मी से सभाओं का आयोजन कर खोखले सिद्धांतों के बारे में अंतहीन बातें करते हैं और शब्द और धर्म-सिद्धांत बघारते रहते हैं। नकली अगुआ अच्छी तरह जानते हैं कि वे इस तरह का कार्य नहीं कर सकते, फिर भी वे विशेषज्ञ होने का दिखावा करते हैं, दंभपूर्ण व्यवहार करते हैं और दूसरों पर धौंस जमाने के लिए हमेशा बड़े-बड़े धर्म-सिद्धांतों का इस्तेमाल करते हैं। वे किसी के सवालों का जवाब देने में असमर्थ होते हैं, फिर भी वे दूसरों को झिड़कने के बहाने और कारण ढूँढ़ लेते हैं और पूछते हैं कि वे अपने पेशे को क्यों नहीं सीखते, वे सत्य की खोज क्यों नहीं करते और वे अपनी समस्याओं को हल करने में असमर्थ क्यों हैं। ये नकली अगुए इन क्षेत्रों में अँगूठाटेक होने और किसी भी समस्या का समाधान न कर सकने के बावजूद दूसरों को ऊँचे-ऊँचे उपदेश देते हैं। ऊपरी तौर पर वे दूसरे लोगों को बहुत व्यस्त दिखाई देते हैं, मानो वे बहुत सारा काम करने के योग्य हैं और क्षमतावान हैं, लेकिन वास्तव में वे कुछ भी नहीं हैं। नकली अगुए वास्तविक कार्य करने में बिल्कुल असमर्थ होते हैं, फिर भी वे उत्साहपूर्वक खुद को व्यस्त रखते हैं, और किसी वास्तविक समस्या को हल करने में सक्षम हुए बिना सभाओं में हमेशा एक ही साधारण सी बातें बोलते हैं और बार-बार खुद को दोहराते हैं। लोग इससे बहुत तंग आ जाते हैं और इससे कोई शिक्षा लेने में असमर्थ होते हैं। इस तरह का कार्य बहुत ही खराब है और इससे कोई नतीजा नहीं मिलता है। नकली अगुआ इसी तरह काम करते हैं और इसके कारण कलीसिया के कार्य में देरी होती है। फिर भी नकली अगुआओं को लगता है कि वे बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं और वे बहुत सक्षम हैं, जबकि सच्चाई यह है कि उन्होंने कलीसिया के कार्य का एक भी पहलू अच्छी तरह से नहीं किया होता है। उन्हें नहीं पता होता कि उनके उत्तरदायित्व के दायरे में आने वाले अगुआ और कार्यकर्ता मानकों के अनुरूप हैं या नहीं, न ही वे जानते हैं कि विभिन्न टीमों के अगुआ और सुपरवाइजर अपने कार्य का बीड़ा उठाने में सक्षम हैं या नहीं, और वे न तो इसका ध्यान रखते हैं और न ही यह पूछते हैं कि भाई-बहनों को अपने कर्तव्य निभाने में कोई समस्या तो नहीं आई। संक्षेप में कहें तो नकली अगुआ अपने काम में किसी भी समस्या का समाधान नहीं कर सकते, फिर भी वे पूरी कर्मठता से व्यस्त रहते हैं। दूसरे लोगों के परिप्रेक्ष्य से देखने पर नकली अगुआ कठिनाई झेलने में सक्षम लगते हैं, कीमत चुकाने को तैयार रहते हैं और हर दिन भागदौड़ में बिताते हैं। भोजन के समय उन्हें खाने की मेज पर बुलाना पड़ता है और वे सोने के लिए भी बहुत देर से जाते हैं। फिर भी, उनके काम के नतीजे अच्छे नहीं होते। अगर तुम ध्यान से नहीं देख रहे होगे, तो ऊपरी तौर पर ऐसा लगेगा कि हर काम हो रहा है और हर कोई अपने कर्तव्य निभाने में व्यस्त है, लेकिन अगर तुम ध्यान से देखोगे, सावधान रहोगे और कार्य का ईमानदारी से निरीक्षण करोगे तो असली स्थिति सामने आ जाएगी। उनके दायित्व के दायरे में आने वाला हर कार्य गड्ड-मड्ड होता है, उसकी कोई संरचना या व्यवस्था नहीं मिलेगी। कार्य की हर मद में समस्याएँ या यहाँ तक कि झोल भी मिलेंगे। ये समस्याएँ उत्पन्न होने का संबंध नकली अगुआओं के सत्य सिद्धांतों को न समझने और अपनी धारणाओं, कल्पनाओं और उत्साह के आधार पर काम करने से जुड़ा है। नकली अगुआ कभी भी सत्य सिद्धांतों के बारे में संगति नहीं करते, न ही वे समस्याओं को हल करने के लिए कभी सत्य खोजते हैं। उनमें स्पष्ट रूप से आध्यात्मिक समझ की कमी होती है और वे अगुआई का काम करने में सक्षम नहीं होते, और वे केवल कुछ शब्द और धर्म-सिद्धांत बघार सकते हैं और सत्य को बिल्कुल नहीं समझते, फिर भी वे जिन चीजों को नहीं जानते उन्हीं को जानने का दिखावा कर खुद को विशेषज्ञ के रूप में पेश करने की कोशिश करते हैं। वे जो काम करते हैं वह बस औपचारिकता होता है। जब कोई समस्या आती है तो वे बिना सोचे-समझे इस पर विनियम लागू करते हैं। वे बस आँख मूंदकर ढेरों गतिविधियाँ करते रहते हैं जिनका कोई वास्तविक नतीजा नहीं निकलता। क्योंकि ये नकली अगुआ सत्य सिद्धांतों को नहीं समझते और केवल शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते हुए दूसरों को विनियमों के पालन की सलाह देते हैं, इसलिए कलीसिया के कार्य की हर मद की प्रगति धीमी हो जाती है और कोई स्पष्ट नतीजा प्राप्त नहीं होता। किसी नकली अगुआ के कुछ समय से काम कर रहे होने का सबसे स्पष्ट दुष्परिणाम यह होता है कि अधिकांश लोग सत्य को समझने में असमर्थ रहते हैं, उन्हें नहीं पता होता कि जब कोई भ्रष्टता प्रकट करता है या धारणाएँ विकसित करता है तो उसे कैसे पहचानते हैं, और वे उन सत्य सिद्धांतों को तो निश्चित रूप से नहीं समझते जिनका पालन उन्हें अपने कर्तव्य निभाने के दौरान करना चाहिए। अपने कर्तव्य निभाने वाले और न निभाने वाले लोग बिल्कुल सुस्त, अनियंत्रित और अनुशासनहीन होते हैं और बिखरी हुई रेत की तरह अव्यवस्थित होते हैं। उनमें से अधिकांश लोग कुछ शब्द और धर्म-सिद्धांत तो बघार सकते हैं लेकिन अपने कर्तव्य निभाते समय वे केवल विनियमों का पालन करते हैं; वे नहीं जानते कि समस्याओं को हल करने के लिए सत्य कैसे खोजें। चूँकि नकली अगुआ स्वयं यह नहीं जानते कि समस्याओं को हल करने के लिए सत्य कैसे खोजें, तो इस काम में वे दूसरों की अगुआई कैसे कर सकते हैं? दूसरे लोगों पर चाहे जो भी बीते, नकली अगुआ उन्हें केवल यह कहकर प्रोत्साहित कर सकते हैं, “हमें परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील होना चाहिए!” “हमें अपने कर्तव्यपालन में निष्ठावान होना चाहिए!” “जब हमारे साथ कुछ घटित हो, तो हमें पता होना चाहिए कि प्रार्थना कैसे करनी है और हमें सत्य सिद्धांत जरूर खोजने चाहिए!” नकली अगुआ अक्सर ये नारे और धर्म-सिद्धांत उच्च स्वर में बोलते हैं और इसका कोई नतीजा नहीं निकलता है। उनकी बातें सुनने के बाद भी लोग नहीं समझ पाते कि सत्य सिद्धांत क्या हैं और उनके पास अभ्यास का मार्ग नहीं होता है। लोगों पर जब कोई विपत्ति आती है तो ऊपरी तौर पर वे प्रार्थना करते हैं और वे अपने कर्तव्य निभाने में निष्ठावान होने की इच्छा रखते हैं—लेकिन उन सभी में ऐसे मामलों की समझ नहीं होती है कि निष्ठावान होने के लिए उन्हें क्या करना चाहिए, परमेश्वर के इरादों को समझने के लिए उन्हें कैसे प्रार्थना करनी चाहिए और जब वे किसी समस्या का सामना कर रहे हों तो उन्हें सत्य सिद्धांतों की समझ हासिल करने के लिए कैसे खोज करनी चाहिए। जब लोग नकली अगुआओं से पूछते हैं तो वे कहते हैं, “जब तुम पर कोई संकट आए तो परमेश्वर के वचनों को और अधिक पढ़ो, अधिक प्रार्थना करो और सत्य पर अधिक संगति करो।” लोग उनसे पूछते हैं कि “यह कार्य किन सिद्धांतों से जुड़ा है?” तो वे कहते हैं, “परमेश्वर के वचन पेशेवर कार्यों के मामले में कुछ नहीं कहते और मैं भी उस कार्य क्षेत्र को नहीं समझता। यदि तुम लोग समझना चाहते हो तो खुद शोध करो—मुझसे मत पूछो। मैं सत्य को समझने में तुम्हारा मार्गदर्शन करता हूँ, पेशेवर कार्यों के मामलों में नहीं।” सवालों से बचने के लिए नकली अगुए इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। और इसके परिणामस्वरूप अधिकांश लोग अपने कर्तव्य निभाने का जुनून होने के बावजूद नहीं जानते कि सत्य सिद्धांतों के आधार पर कैसे कार्य करना है, न ही वे यह जानते हैं कि अपने कर्तव्य निभाते समय सिद्धांतों का पालन कैसे करना है। नकली अगुआओं की जिम्मेदारी के दायरे के हर एक काम के नतीजे देखते हुए अधिकांश लोग अपना कार्य करने के लिए अपने ज्ञान, सीख और खूबियों पर भरोसा कर रहे हैं और वे ऐसे मामलों से अनभिज्ञ हैं कि परमेश्वर की विशिष्ट अपेक्षाएँ क्या हैं, कर्तव्य निभाने के सिद्धांत क्या हैं और कोई कार्य कैसे करें कि उससे परमेश्वर के लिए गवाही देने का नतीजा प्राप्त हो, और सुसमाचार को कैसे और अधिक प्रभावी ढंग से प्रसार करें कि परमेश्वर के प्रकट होने के लिए लालायित सभी लोग उसकी वाणी सुन लें, सच्चे मार्ग को परख लें और जितनी जल्दी हो सके परमेश्वर के पास लौट आएं। ऐसा क्यों है कि वे इन चीजों से अनभिज्ञ हैं? इसका सीधा संबंध नकली अगुआओं की वास्तविक कार्य करने में विफलता से जुड़ा है। इसका मुख्य कारण यह है कि नकली अगुआ खुद नहीं जानते कि सत्य सिद्धांत क्या हैं या लोगों को किन सिद्धांतों को समझना और उनका अनुसरण करना चाहिए। वे सिद्धांतों के बिना काम करते हैं और वे अपने कर्तव्यों में अभ्यास के सिद्धांत और मार्ग खोजने में लोगों की अगुआई कभी नहीं करते। जब किसी नकली अगुआ को कोई समस्या मिलती है तो वह उसे स्वयं हल नहीं कर सकता और दूसरों के साथ उस पर संगति और खोज नहीं करता, जिसके कारण हर काम बार-बार नए सिरे से करने की जरूरत पड़ती है। यह न केवल वित्तीय और भौतिक संसाधनों की बर्बादी है, बल्कि लोगों की ऊर्जा और समय की भी बर्बादी है। ऐसे दुष्परिणामों का संबंध सीधे तौर पर नकली अगुआओं की बहुत खराब काबिलियत और गैरजिम्मेदारी से हैं। हालाँकि यह नहीं कहा जा सकता है कि नकली अगुआ जानबूझकर बुराई करते हैं और विघ्न पैदा करते हैं, पर इतना कहा जा सकता है कि वे अपने काम में सत्य सिद्धांतों की तलाश बिल्कुल नहीं करते और कि वे हमेशा अपनी इच्छा के आधार पर काम करते हैं। यह निश्चित है। नकली अगुआ सत्य सिद्धांतों को नहीं समझते, न ही वे दूसरों के साथ उनके बारे में स्पष्ट रूप से संगति कर सकते हैं; इसके बजाय, वे लोगों को अपनी मर्जी से काम करने की खुली छूट देते हैं। यह अनजाने ही कुछ कार्य प्रभारियों को मनमाने ढंग से और स्वेच्छानुसार विशिष्ट काम करने और जी में आए वह करने की ओर ले जाता है। इसके परिणामस्वरूप, न केवल थोड़े ही वास्तविक नतीजे मिलते हैं, बल्कि कलीसिया का कार्य भी गड्ड-मड्ड हो जाता है। जब किसी नकली अगुआ को बर्खास्त किया जाता है तो न केवल वे आत्मचिंतन नहीं करते या खुद को नहीं जानते, बल्कि वे कुतर्क रचकर बहस भी करते हैं और सत्य को जरा भी स्वीकार नहीं करते, और पश्चात्ताप करने का उनका बिल्कुल भी इरादा नहीं होता। वे यह कहते हुए कि वे निश्चित रूप से अच्छी तरह से काम कर सकते हैं, वे परमेश्वर के घर से एक और मौका भी माँग सकते हैं। क्या तुम लोग उन पर विश्वास करते हो? वे खुद को बिल्कुल नहीं जानते, न ही वे सत्य को स्वीकारते हैं। तब क्या वे अपने तौर-तरीके बदल सकते हैं? उनके पास सत्य वास्तविकता नहीं है, तो क्या वे अच्छी तरह से कार्य कर सकते हैं? क्या यह संभव है? उन्होंने इस बार काम अच्छी तरह से नहीं किया—यदि उन्हें एक और मौका दिया जाए तो क्या वे इसे अच्छी तरह से कर पाएंगे? ऐसा संभव नहीं है। निश्चितता के साथ कहा जा सकता है कि नकली अगुआओं में काम करने की क्षमता नहीं होती; कभी-कभी वे बहुत मेहनत कर सकते हैं और बहुत व्यस्त हो सकते हैं, लेकिन यह बिना सोची-समझी व्यस्तता होती है, जिसका कोई फल नहीं मिलता। इतना यह दिखाने के लिए पर्याप्त है कि नकली अगुआओं की काबिलियत बहुत कम होती है, कि वे सत्य को बिल्कुल नहीं समझते और यह भी कि वे वास्तविक कार्य नहीं कर सकते। इससे कार्य में कई समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, लेकिन वे सत्य के बारे में संगति कर उनका समाधान करने में असमर्थ होते हैं और विनियमों के पालन के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए वे केवल कुछ खोखले धर्म-सिद्धांतों का उपयोग करते हैं और परिणामस्वरूप वे कार्य को गड्ड-मड्ड कर इसे अस्त-व्यस्त छोड़ देते हैं। नकली अगुआओं के कार्य करने का यही तरीका है और इसके यही दुष्परिणाम होते हैं। सभी अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इसे एक चेतावनी के रूप में लेना चाहिए।
—वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (3)
नकली अगुआओं के काम की मुख्य विशेषता है धर्म-सिद्धांतों के बारे में बकवास करना और नारे लगाना। अपने आदेश जारी करने के बाद वे बस मामले से पल्ला झाड़ लेते हैं। वे कार्य के आगे की प्रगति के बारे में कोई सवाल नहीं पूछते; वे यह नहीं पूछते कि कोई समस्या, विचलन या कठिनाई तो उत्पन्न नहीं हुई। वे दूसरों को कोई काम सौंपते ही अपना काम समाप्त हुआ मान लेते हैं। वास्तव में अगुआ होने के नाते कार्य को व्यवस्थित कर लेने के बाद तुम्हें कार्य की प्रगति की खोज-खबर लेनी चाहिए। अगर तुम उस कार्यक्षेत्र से परिचित नहीं हो—यदि तुम्हें इसके बारे में कोई भी जानकारी न हो—तब भी तुम अपना काम करने का तरीका खोज सकते हो। तुम जाँच करने और सुझाव देने के लिए किसी ऐसे व्यक्ति को खोज सकते हो, जो इसकी सच्ची पकड़ रखता हो, जो सबंधित पेशे को समझता हो। उसके सुझावों से तुम उपयुक्त सिद्धांत पता लगा सकते हो, और इस तरह तुम काम की खोज-खबर लेने में सक्षम हो सकते हो। चाहे तुम संबंधित पेशे से परिचित हो या नहीं हो या उस काम को समझते हो या नहीं, उसकी प्रगति से अवगत रहने के लिए तुम्हें कम-से-कम उसकी निगरानी तो करनी ही चाहिए, खोज-खबर लेनी चाहिए, उसकी प्रगति के बारे में लगातार पूछताछ करते हुए उसके बारे में सवाल करने चाहिए। तुम्हें ऐसे मामलों पर पकड़ बनाए रखनी चाहिए; यह तुम्हारी जिम्मेदारी है, यह तुम्हारे काम का हिस्सा है। काम की खोज-खबर न लेना, काम दूसरे को सौंपने के बाद और कुछ न करना—उससे पल्ला झाड़ लेना—यह नकली अगुआओं के कार्य करने का तरीका है। कार्य की खोज-खबर न लेना या कार्य के बारे में मार्गदर्शन न देना, आने वाली समस्याओं के बारे में पूछताछ न करना या उनका समाधान न करना और काम की प्रगति या उसकी दक्षता पर पकड़ न रखना—ये भी नकली अगुआओं की अभिव्यक्तियाँ हैं।
चूँकि नकली अगुआ कार्य की प्रगति के बारे में जानकारी नहीं हासिल करते, और क्योंकि वे उसमें उत्पन्न होने वाली समस्याएँ तुरंत पहचानने में असमर्थ होते हैं—उन्हें हल करना तो दूर की बात है—इससे अक्सर बार-बार देरी होती है। किसी-किसी कार्य में, चूँकि लोगों को सिद्धांतों की समझ नहीं होती और उसकी जिम्मेदारी लेने या उसका संचालन करने के लिए कोई उपयुक्त व्यक्ति नहीं होता, इसलिए कार्य करने वाले लोग अक्सर नकारात्मकता, निष्क्रियता और प्रतीक्षा की स्थिति में रहते हैं, जो कार्य की प्रगति को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। अगर अगुआओं ने अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी की होतीं—अगर उन्होंने कार्य का संचालन किया होता, उसे आगे बढ़ाया होता, उसका निरीक्षण किया होता, और कार्य का मार्गदर्शन करने के लिए उस क्षेत्र को समझने वाले किसी व्यक्ति को ढूँढ़ा होता, तो बार-बार देरी होने के बजाय काम तेजी से आगे बढ़ता। तभी, अगुआओं के लिए कार्य की स्थिति को समझना और पकड़ हासिल करना महत्वपूर्ण है। निस्संदेह, अगुआओं के लिए यह समझना और पकड़ना भी बहुत आवश्यक है कि कार्य कैसे प्रगति कर रहा है, क्योंकि प्रगति कार्य की दक्षता और उन परिणामों से संबंधित है जो उस कार्य से मिलने चाहिए। अगर अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह समझ न हो कि कलीसिया का कार्य कैसा चल रहा है, और वे चीजों की खोज-खबर नहीं लेते या उनका निरीक्षण नहीं करते, तो कलीसिया के कार्य की प्रगति धीमी होनी तय है। यह इस तथ्य के कारण है कि कर्तव्य निभाने वाले ज्यादातर लोग बहुत गंदे होते हैं, उनमें दायित्व की भावना नहीं होती, वे अक्सर नकारात्मक, निष्क्रिय और अनमने होते हैं। अगर दायित्व की भावना और कार्य-क्षमताओं से युक्त ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो ठोस ढंग से काम की जिम्मेदारी ले सके, समयबद्ध तरीके से कार्य की प्रगति जान सके, और कर्तव्य निभाने वाले लोगों का मार्गदर्शन, निरीक्षण कर सके, और उन्हें अनुशासित कर उनकी काट-छाँट कर सके, तो स्वाभाविक रूप से कार्य-कुशलता का स्तर बहुत नीचा होगा और कार्य के परिणाम बहुत खराब होंगे। अगर अगुआ और कार्यकर्ता इसे स्पष्ट रूप से देख तक नहीं सकते, तो वे मूर्ख और अंधे हैं। इसलिए, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को काम पर तुरंत गौर करके उसकी खोज-खबर लेकर उसकी प्रगति को समझना होगा और इस बात पर नजर रखकर अवगत रहना चाहिए, यह देखना चाहिए कि कर्तव्य करनेवालों की ऐसी कौन-सी समस्याएँ हैं जिन्हें हल करने की आवश्यकता है, और यह समझना चाहिए कि बेहतर परिणाम प्राप्त करने के लिए किन समस्याओं का समाधान किया जाना चाहिए। ये सारी चीजें बहुत महत्वपूर्ण हैं और अगुआ के रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति को इनके बारे में स्पष्ट होना चाहिए। अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने के लिए, तुम्हें नकली अगुआ की तरह नहीं होना चाहिए, जो कुछ सतही काम करता है और फिर सोचता है कि उसने अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाया है। नकली अगुआ अपने काम में लापरवाह और असावधान होते हैं, उनमें जिम्मेदारी की भावना नहीं होती, समस्याएँ आने पर वे उनका समाधान नहीं करते, और चाहे वे जो भी काम कर रहे हों, वे उसे सिर्फ सतही तौर पर करते हैं, और उसे अनमने दृष्टिकोण से देखते हैं। वे सिर्फ भारी-भरकम आडंबरी शब्द बोलते हैं, धर्म-सिद्धांत झाड़ते हैं, खोखली बातें करते हैं और अपना काम बेमन से करते हैं। सामान्य तौर पर, नकली अगुआओं के काम करने की यही स्थिति होती है। हालाँकि, मसीह-विरोधियों की तुलना में, नकली अगुआ खुल्लमखुल्ला बुरे काम और जान-बूझकर कुकर्म नहीं करते, लेकिन उनके काम की प्रभावशीलता को देखा जाए, तो उन्हें बेपरवाह, दायित्व वहन न करने वाले, गैर-जिम्मेदार और काम के प्रति वफादारी न रखने वाले व्यक्ति के रूप में निरूपित करना उचित है।
—वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (4)
नकली अगुआ कभी भी विभिन्न टीम सुपरवाइजरों की कार्य स्थितियों के बारे में नहीं पूछते या उनकी निगरानी नहीं करते। वे विभिन्न टीमों के सुपरवाइजरों और विभिन्न महत्वपूर्ण कार्यों के लिए जिम्मेदार कार्मिकों के जीवन प्रवेश के साथ ही कलीसिया के कार्य और उनके कर्तव्यों के साथ-साथ परमेश्वर में आस्था, सत्य और स्वयं परमेश्वर के प्रति उनके रवैयों के बारे में भी न तो पूछते हैं, न ही इसकी निगरानी करते हैं या इस बारे में समझ रखते हैं। वे नहीं जानते कि इन व्यक्तियों में कोई परिवर्तन या विकास हुआ है या नहीं, न ही वे उनके कार्य से जुड़ी विभिन्न संभावित समस्याओं के बारे में जानते हैं; खासकर वे कार्य के विभिन्न चरणों में होने वाली त्रुटियों और विचलनों के कारण कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में नहीं जानते, साथ ही वे यह भी नहीं जानते कि इन त्रुटियों और विचलनों को कभी सुधारा गया है या नहीं। वे इन सभी चीजों से पूरी तरह से अनभिज्ञ होते हैं। अगर उन्हें इन विस्तृत स्थितियों के बारे में कुछ भी पता नहीं होता तो समस्याएँ आने पर वे निष्क्रिय हो जाते हैं। परंतु, नकली अगुए अपना काम करते समय इन विस्तृत मुद्दों की बिल्कुल परवाह नहीं करते। वे मानते हैं कि विभिन्न टीम सुपरवाइजरों की व्यवस्था करने और उन्हें काम सौंप देने पर उनका कार्य पूरा हो जाता है—इसे काम को अच्छी तरह से करना समझा जाता है और यदि अन्य समस्याएँ आती हैं तो वे उनकी चिंता का विषय नहीं हैं। चूँकि नकली अगुआ विभिन्न टीम सुपरवाइजरों की देख-रेख करने, उनका निर्देशन करने और उन पर निगरानी रखने में विफल रहते हैं और इन क्षेत्रों में अपनी जिम्मेदारियों को अच्छे से नहीं निभाते, नतीजतन कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी हो जाती है। इसे ही अगुआओं और कार्यकर्ताओं का अपनी जिम्मेदारियों में लापरवाही बरतना कहते हैं। परमेश्वर मानव हृदय की गहराइयों की पड़ताल कर सकता है; यह क्षमता मनुष्य में नहीं है। इसलिए काम करते समय लोगों को ज्यादा मेहनती होने और चौकस रहने की जरूरत है, कलीसिया के कार्य की सामान्य प्रगति सुनिश्चित करने के लिए नियमित रूप से कार्यस्थल पर जाकर निगरानी, देख-रेख और निर्देशन करने की जरूरत है। साफ है कि नकली अगुए अपने कार्य में पूरी तरह गैर-जिम्मेदार होते हैं और वे कभी भी विभिन्न कामों की देख-रेख, निगरानी या निर्देशन नहीं करते हैं। परिणामस्वरूप कुछ सुपरवाइजर यह नहीं जानते कि कार्य में आने वाली विभिन्न समस्याओं को कैसे हल किया जाए और कार्य करने में लगभग पर्याप्त रूप से सक्षम न होने के बावजूद वे सुपरवाइजर की भूमिका में बने रहते हैं। अंततः कार्य में बार-बार देरी होती है और वे इसे पूरी तरह से बिगाड़ देते हैं। नकली अगुआओं द्वारा सुपरवाइजरों की स्थितियों के बारे में पूछताछ न करने, उनकी देख-रेख न करने या उसके बारे में निगरानी न करने का यही दुष्परिणाम होता है, जो पूरी तरह से नकली अगुआओं की अपनी जिम्मेदारी के प्रति लापरवाही के कारण होता है। चूँकि नकली अगुआ कार्य का निरीक्षण नहीं करते, उस पर निगरानी नहीं रखते या उसके बारे में नहीं पूछते और स्थिति को तुरंत समझ नहीं पाते, इसलिए वे इस बात से अनजान रहते हैं कि सुपरवाइजर वास्तविक कार्य कर रहे हैं या नहीं, कार्य कैसे आगे बढ़ रहा है और क्या इससे कोई वास्तविक नतीजे मिले हैं। जब उनसे पूछा जाता है कि सुपरवाइजर किस काम में व्यस्त हैं या वे कौन से खास काम संभाल रहे हैं तो नकली अगुआ जवाब देते हैं, “मुझे नहीं पता, लेकिन वे हर सभा में मौजूद होते हैं और हर बार जब मैं उनसे कार्य के बारे में बात करता हूँ तो वे कभी किसी समस्या या कठिनाई का जिक्र नहीं करते।” नकली अगुआओं का मानना है कि जब तक सुपरवाइजर अपना कार्य नहीं छोड़ते और ढूँढ़ने पर हमेशा मौजूद मिलते हैं, तब तक उनके साथ कोई समस्या नहीं है। नकली अगुआ इसी तरह काम करते हैं। क्या यह “नकलीपन” की अभिव्यक्ति नहीं है? क्या यह अपनी जिम्मेदारियों को अच्छे से निभाने में विफलता नहीं है? यह जिम्मेदारी की गंभीर उपेक्षा है!
—वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (3)
नकली अगुआ जिस कार्य के लिए जिम्मेदार हैं उसके दायरे में अक्सर कुछ ऐसे लोग होते हैं जो वास्तव में सत्य का अनुसरण करते हैं और पदोन्नति और विकास के मानदंडों को पूरा करते हैं, लेकिन उन्हें रोक दिया जाता है। इनमें से कुछ लोग सुसमाचार का प्रचार करते हैं और कुछ को मेजबानी का काम सौंपा गया होता है। सच तो यह है कि वे सब काबिल हैं, वे कुछ सत्यों को समझते हैं और अगुआ और कार्यकर्ता के रूप में विकसित किए जाने के योग्य हैं, बस उन्हें आत्म-प्रदर्शन करना या आकर्षण का केंद्र बनना पसंद नहीं है। फिर भी नकली अगुए इन लोगों पर कोई ध्यान नहीं देते। वे उनके साथ बातचीत नहीं करते या उनके बारे में पूछताछ नहीं करते, और वे कभी भी प्रतिभाशाली लोगों को परमेश्वर के घर के लिए विकसित नहीं करते। वे अपनी स्वार्थपूर्ण इच्छाओं की पूर्ति के लिए उन लोगों को फँसाने पर ही ध्यान केंद्रित करते हैं जो उनकी चापलूसी करते हैं। लिहाजा जो लोग वास्तव में सत्य का अनुसरण करते हैं, उनका पदोन्नयन और विकास नहीं किया जाता है, जबकि जो लोग आकर्षण का केंद्र बनना पसंद करते हैं, जो मुखर हैं, लोगों की चापलूसी करना जानते हैं और प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के शौकीन हैं—वे सभी पदोन्नत हो जाते हैं, और यहाँ तक कि जो लोग समाज में काम करते हुए अधिकारी या किसी कंपनी के मुख्य कार्यकारी रहे हैं या जिन्होंने कॉर्पोरेट प्रबंधन का अध्ययन किया है, उन्हें भी महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त कर दिया जाता है। वे लोग चाहे सच्चे विश्वासी हों या न हों, वे लोग सत्य का अनुसरण करते हों या न करते हों, हर हाल में वे लोग पदोन्नत हो जाते हैं और नकली अगुआओं के जिम्मेदारी वाले कार्य के दायरे में उनका उपयोग किया जाता है। क्या यह सिद्धांतों के अनुसार लोगों का उपयोग करना है? क्या नकली अगुआओं का केवल ऐसे लोगों को पदोन्नत करना बिल्कुल अविश्वासी समाज जैसा नहीं है? जो लोग अपना कर्तव्य निभाते हुए वास्तव में समय पर दक्षतापूर्वक कार्य कर सकते हैं, न्यायबोध वाले हैं और सत्य और सकारात्मक चीजों से प्रेम करते हैं, उन्हें नकली अगुआओं के कार्यकाल के दौरान पदोन्नत या विकसित नहीं किया जाता है—उनके लिए प्रशिक्षण के अवसर प्राप्त करना कठिन होता है। इसके बजाय, जो लोग मुखर होते हैं, जो आत्म-प्रदर्शन करना पसंद करते हैं और जो लोगों की चापलूसी करना जानते हैं, साथ ही जो लोग प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के शौकीन होते हैं, उन्हें महत्वपूर्ण पदों पर तैनात किया जाता है। वे लोग काफी चतुर लगते हैं, लेकिन वास्तव में उनमें समझने की कोई क्षमता नहीं होती, उनमें बहुत कम काबिलियत और कम मानवता होती है, वे अपने कर्तव्यों के प्रति वास्तविक भार नहीं उठाते और वे विकसित करने के लिए जरा भी सुपात्र नहीं होते। लेकिन यही लोग कलीसिया में अगुआओं और कार्यकर्ताओं के पदों पर बैठे होते हैं। लिहाजा कलीसिया का अधिकांश कार्य शीघ्र और सुचारु रूप से शुरू नहीं हो पाता या उसकी प्रगति धीमी रहती है और परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्था को लागू होने में बहुत लंबा समय लगता है। नकली अगुआ जब लोगों का अनुचित तरीके से उपयोग करते हैं तो इसके कारण कलीसिया के कार्य पर यही प्रभाव पड़ता है और यही दुष्परिणाम निकलते हैं।
अधिकतर नकली अगुआ कम काबिलियत वाले होते हैं। भले ही वे मुखर लगते हैं, उनमें सत्य समझने की बिल्कुल योग्यता नहीं होती, इस हद तक कि उनमें आध्यात्मिक समझ ही नहीं होती। वे आँख और दिमाग से अंधे होते हैं, वे किसी भी मामले की असलियत नहीं जान पाते हैं और सत्य को बिल्कुल नहीं समझते, जो अपने आप में एक घातक समस्या है। उनके साथ एक और अधिक गंभीर समस्या यह होती है कि जब वे कुछ शब्द और धर्म-सिद्धांत समझकर इनमें निपुण हो जाते हैं और कुछ नारे लगा सकते हैं, तो उन्हें लगता है कि उनमें सत्य वास्तविकता है। इसलिए वे कोई भी कार्य करते हुए या किसी भी व्यक्ति से काम लेते हुए सत्य सिद्धांत नहीं खोजते हैं, वे दूसरों के साथ संगति नहीं करते हैं और परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं और सिद्धांतों का पालन तो और भी कम करते हैं। वे इतने आत्मविश्वास से भरे होते हैं कि अपने विचारों को हमेशा सही मानते हैं और जो जी में आए वही करते हैं। लिहाजा किसी कठिनाई या असाधारण परिस्थिति का सामना करने पर उन्हें कुछ भी नहीं सूझता। यही नहीं, वे अक्सर गलती से यह मान लेते हैं कि परमेश्वर के घर में बरसों से कार्य करने और एक अगुआ के रूप में सेवा करने का पर्याप्त अनुभव होने के कारण उन्हें कलीसिया का कार्य संचालित और विकसित करना आता है। ऐसा लगता है कि वे इन चीजों को समझ चुके हैं, लेकिन वास्तव में वे बिल्कुल नहीं जानते कि कोई भी कार्य कैसे करना है। वे अपनी धारणाओं और कल्पनाओं, अपने अनुभव और दिनचर्या और अपने विनियमों पर चलते हुए अपनी मर्जी के मुताबिक कलीसिया का कार्य करते हैं। इससे कलीसिया के कार्य की विभिन्न मदों में गड़बड़ी और अव्यवस्था पैदा होती है और इनसे कोई भी वास्तविक नतीजे निकलने में रुकावट आती है। अगर किसी टीम में कुछ ऐसे लोग हों जो सत्य को समझते हैं और थोड़ा वास्तविक काम कर सकते हैं तो वे उस टीम के कार्य को सामान्य बनाए रख सकते हैं। लेकिन इसका संबंध उनके नकली अगुआ होने से बिल्कुल नहीं होता। काम अच्छी तरह से हो पाने का कारण यह है कि टीम में कुछ अच्छे लोग हैं जो थोड़ा वास्तविक कार्य कर सकते हैं और कार्य को सही दिशा में बनाए रख सकते हैं; इसका मतलब यह नहीं है कि उनके नकली अगुआ ने वास्तविक कार्य किया है। इस तरह के कुछ अच्छे लोगों के प्रभारी हुए बिना कोई भी कार्य नहीं हो सकता। नकली अगुआ अपना कार्य करने में निपट असमर्थ होते हैं और वे कोई भी कार्य नहीं कर पाते हैं। नकली अगुआ कलीसिया के कार्य को अस्त-व्यस्त क्यों करेंगे? पहला कारण यह है कि नकली अगुआ सत्य को नहीं समझते, वे समस्याएँ हल करने के लिए सत्य के बारे में संगति नहीं कर सकते और वे समस्याएँ हल करने का तरीका नहीं खोजते, जिसके परिणामस्वरूप समस्याएँ बढ़ती जाती हैं और कलीसिया का काम ठप हो जाता है। दूसरा कारण यह है कि नकली अगुआ दृष्टिहीन होते हैं और वे प्रतिभाशाली व्यक्तियों की पहचान करने में असमर्थ होते हैं। वे टीम सुपरवाइजर कर्मचारी का उचित तरीके से समायोजन नहीं कर सकते, लिहाजा उपयुक्त प्रभारी न होने के कारण कुछ कार्य ठप हो जाते हैं। तीसरा कारण यह है कि नकली अगुआ अधिकारियों की तरह बहुत ज्यादा पेश आते हैं। वे कार्य की निगरानी या निर्देशन नहीं करते और जहाँ काम में कोई कमजोर कड़ी होती है, वहाँ वे सक्रिय भागीदारी नहीं करते या काम की बारीकियों के बारे में मार्गदर्शन नहीं करते हैं। उदाहरण के लिए, मान लो कि कार्य की किसी खास मद में काम करने वाले कई लोग नए विश्वासी हैं जिनका बहुत आधार नहीं है, वे सत्य को नहीं समझते हैं और कार्यक्षेत्र से बहुत परिचित नहीं हैं, न ही कार्य के सिद्धांतों को ठीक से समझ पाए हैं। नकली अगुआ अपने अंधेपन के कारण इन समस्याओं को नहीं देख सकता। वह मानता है कि जब तक कोई काम कर रहा है, तब तक सब ठीक है; इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि काम अच्छी तरह से किया जा रहा है या बुरी तरह से। वे यह नहीं जानते कि कलीसिया के कार्य में जहाँ कहीं भी कोई कमजोर कड़ी हो, वहाँ उन्हें निगरानी रखकर निरीक्षण करते रहना चाहिए और निर्देशन करते रहना चाहिए, उन्हें समस्याएँ हल करने में व्यक्तिगत रूप से भाग लेना चाहिए और जो लोग अपने कर्तव्य निभा रहे हैं उन्हें तब तक सहारा देना चाहिए जब तक कि वे सत्य को समझ न लें, सिद्धांतों के अनुसार कार्य न करने लगें और सही रास्ते पर न आ जाएँ। केवल इसी बिंदु पर उन्हें बहुत चिंता करने की आवश्यकता नहीं होती। नकली अगुआ इस तरह से काम नहीं करते। जब वे देखते हैं कि कोई व्यक्ति काम करने के लिए मौजूद है तो वे इस पर और अधिक ध्यान नहीं देते। काम चाहे कैसा भी चल रहा हो, वे कोई पूछताछ नहीं करते। जहाँ काम में कोई कमजोर कड़ी होती है या कम काबिलियत वाला कोई सुपरवाइजर होता है, वहाँ वे व्यक्तिगत रूप से काम का मार्गदर्शन नहीं करते और स्वयं काम में भागीदारी नहीं करते। और जब कोई सुपरवाइजर काम का बीड़ा उठाने में सक्षम होता है तो नकली अगुआ खुद चीजों की जाँच या निर्देशन का काम और भी कम करते हैं; वे ज्यादा मेहनत करने के कायल नहीं होते, यहाँ तक कि अगर कोई किसी समस्या की सूचना देता है, तो भी वे इसके बारे में नहीं पूछते—उन्हें लगता है कि इसकी कोई आवश्यकता नहीं है। नकली अगुआ इस विशिष्ट कार्य में से कुछ नहीं करते। संक्षेप में कहें तो नकली अगुआ ऐसे पतित होते हैं जो थोड़ा-सा भी वास्तविक कार्य नहीं करते हैं। वे मानते हैं कि किसी भी काम का कोई प्रभारी होने और काम करने के लिए सभी लोगों के तैयार होने भर से सारा काम खत्म और पूरा हो जाता है। उन्हें लगता है कि उन्हें बस कभी-कभार एक सभा करनी होती है और अगर कोई समस्या आए तो पूछताछ करनी होती है। इस तरह से कार्य करने के बावजूद नकली अगुआ मानते हैं कि वे अच्छा काम कर रहे हैं और खुद से काफी खुश रहते हैं। वे सोचते हैं, “कार्य की किसी भी मद में कोई समस्या नहीं है। सभी कर्मचारी पूरी तरह से व्यवस्थित हैं और सुपरवाइजर अपनी जगह तैनात हैं। मैं इस काम में कितना बढ़िया हूँ, कितना प्रतिभाशाली हूँ!” क्या यह बेशर्मी नहीं है? वे आँख और दिमाग से इतने अंधे होते हैं कि उन्हें कोई काम नहीं दिखता और कोई समस्या नहीं दिखती। कुछ जगहों पर काम रुक गया हो, फिर भी वे संतोष के साथ सोचते हैं कि “सभी भाई-बहन युवा हैं, नए खून के हैं। वे अपने कर्तव्यों को मानव डायनेमो की तरह पूरा करते हैं; वे निश्चित रूप से काम को अच्छी तरह से कर सकते हैं।” वास्तव में, ये युवा लोग नौसिखिए होते हैं, जिनमें किसी पेशेवर कौशल की समझ नहीं होती। उन्हें काम करते हुए सीखना चाहिए। यह कहना उचित होगा कि वे अभी तक कोई काम करना नहीं जानते हैं : कुछ लोग थोड़ा-बहुत समझ सकते हैं, लेकिन वे विशेषज्ञ नहीं हैं और वे सिद्धांतों को नहीं समझते, और जब वे कोई काम कर लेते हैं, तो उसे बार-बार सुधारने या बार-बार नए सिरे से करने की आवश्यकता होती है। कुछ युवा अप्रशिक्षित भी होते हैं और उन्हें काट-छाँट का अनुभव नहीं होता है। वे बेहद गंदे और आलसी होते हैं, और आरामखोर होते हैं; वे सत्य का एक अंश भी स्वीकार नहीं करते हैं और थोड़ा-सा भी कष्ट सहने पर लगातार भुनभुनाते रहते हैं। उनमें से अधिकतर लोग लापरवाह पतित होते हैं जो आराम की लालसा रखते हैं। इस तरह के युवाओं के साथ तुम्हें सत्य पर अक्सर संगति करनी चाहिए और उससे भी अधिक तुम्हें उनकी काट-छाँट करनी चाहिए। इन युवा लोगों को कोई ऐसा व्यक्ति चाहिए जो उनका प्रभार संभाले और उन पर नजर रखे। उनके काम की व्यक्तिगत जिम्मेदारी लेने और व्यक्तिगत निगरानी करने और निर्देशन प्रदान करने के लिए कोई अगुआ या कार्यकर्ता होना चाहिए। तभी उनका काम थोड़ा-सा फलदायी हो सकता है। यदि अगुआ या कार्यकर्ता कार्यस्थल छोड़ देता है और काम पर ध्यान नहीं देता या इसकी खैरियत नहीं पूछता, तो ये लोग अव्यवस्थित होकर बिखर जाएँगे और इनका कर्तव्य निर्वहन निष्फल होगा। फिर भी नकली अगुआओं में इस बारे में कोई अंतर्दृष्टि नहीं होती। वे सबको भाई-बहनों के रूप में देखते हैं, आज्ञाकारी और समर्पित लोग मानते हैं और इसीलिए वे उन पर बहुत भरोसा कर उन्हें काम सौंपते हैं और फिर उन पर ध्यान नहीं देते—यह एक नकली अगुआओं की आँख और दिमाग की अंधता का सबसे अच्छा सबूत है। नकली अगुए सत्य को बिल्कुल नहीं समझते, मामलों को साफ तौर पर नहीं देख सकते और किसी भी समस्या को सामने लाने में असमर्थ होते हैं, फिर भी उन्हें लगता है कि वे ठीक-ठाक काम कर रहे हैं। वे अपने दिन क्या सोचते हुए बिताते हैं? वे सोचते हैं कि कैसे किसी अधिकारी की तरह काम किया जाए और रुतबे के फायदे उठाए जाएँ। विचारहीन लोगों की तरह नकली अगुए परमेश्वर के इरादों के प्रति जरा भी विचार नहीं करते। वे कोई वास्तविक कार्य नहीं करते, फिर भी वे परमेश्वर के घर से प्रशंसा और पदोन्नति पाने की प्रतीक्षा करते हैं। सच में, उन्हें जरा भी शर्म नहीं आती!
—वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (5)
क्या नकली अगुआ कार्य-व्यवस्थाओं में अपेक्षित सिद्धांतों और मानकों को ठीक से समझकर उन पर पकड़ बना सकते हैं? (नहीं।) क्यों नहीं बना सकते? वे ठीक से नहीं समझ सकते कि इस कार्य के क्या सिद्धांत हैं और वे इसका पुनरीक्षण नहीं कर सकते। जब कार्य के विशिष्ट कार्यान्वयन के दौरान विशेष परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं, तो उन्हें नहीं पता होता कि उनका समाधान कैसे किया जाए। जब भाई-बहन उनसे पूछते हैं कि ऐसी किसी स्थिति में क्या किया जाए, तो वे भ्रमित हो जाते हैं : “कार्य-व्यवस्था में इसका उल्लेख नहीं है, मुझे भला कैसे पता होगा कि इसे कैसे सँभाला जाए?” यदि तुम्हें नहीं पता, तो तुम इस कार्य को कैसे कार्यान्वित कर सकते हो? तुम्हें पता तक नहीं, फिर भी दूसरों से उसे कार्यान्वित करने के लिए कहते हो—क्या यह यथार्थपरक है? क्या यह उचित है? जब नकली अगुआ और नकली कार्यकर्ता कार्य-व्यवस्थाओं को कार्यान्वित करते हैं, तो एक बात तो यह है कि उन्हें कार्य-व्यवस्थाओं को कार्यान्वित करने के चरणों और योजनाओं के बारे में कोई जानकारी नहीं होती। दूसरी बात यह है कि जब समस्याओं से सामना होता है, तो वे कार्य-व्यवस्थाओं द्वारा अपेक्षित सिद्धांतों के अनुसार पुनरीक्षण नहीं कर सकते। इसलिए जब कार्य-व्यवस्थाओं के कार्यान्वयन के दौरान तमाम तरह के मुद्दे पैदा होते हैं, तो वे उनका समाधान करने में पूरी तरह से असमर्थ होते हैं। चूँकि नकली अगुआ शुरुआती चरणों में समस्याओं की पहचान नहीं कर सकते या उनका पूर्वानुमान नहीं लगा सकते और पहले से संगति नहीं कर सकते, और बाद के चरणों में जब समस्याएँ पैदा होती हैं तो वे उनका समाधान नहीं कर सकते, बल्कि केवल खोखले धर्म-सिद्धांतों का उपदेश देते हैं और विनियमों को सख्ती से लागू करते हैं, इसलिए समस्याएँ बार-बार पैदा होती रहती हैं और बनी रहती हैं जिसके कारण कुछ कार्य के कार्यान्वयन में देरी होती है, और दूसरा कार्य पर्याप्त रूप से कार्यान्वित नहीं हो पाता। उदाहरण के लिए, जब नकली अगुआ लोगों को हटाकर बाहर करने की परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्था संबंधी काम करते हैं, तो वे केवल उन स्पष्ट रूप से बुरे लोगों, मसीह-विरोधियों और दुष्टात्माओं को बाहर निकालते हैं जो विघ्न-बाधाएँ पैदा करते हैं, साथ ही उन छद्मविश्वासियों को, जिन्हें सारे भाई-बहन अप्रिय और घृणास्पद समझते हैं। परंतु इसके बाद भी कुछ ऐसे लोग होते हैं जिन्हें बाहर निकाला जाना चाहिए, यानी वे छिपे हुए, धूर्त, चालाक दुष्ट लोग और मसीह-विरोधी। भाई-बहन उनकी असलियत नहीं देख पाते हैं और न ही नकली अगुआ ये देख पाते हैं। वास्तव में, परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं के अनुसार, ये लोग पहले ही हटाए जाने के स्तर पर पहुँच चुके होते हैं। परंतु चूँकि नकली अगुआ उनकी असलियत नहीं देख पाते, इसलिए वे उन्हें अभी भी अच्छा मानते हैं, यहाँ तक कि उन्हें पदोन्नत, विकसित और महत्वपूर्ण कार्यों के लिए इस्तेमाल भी करते हैं और उन्हें कलीसिया में सत्ता पाने और महत्वपूर्ण पदों पर आसीन होने देते हैं। क्या तब लोगों को हटाकर बाहर निकालने की परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाएँ लागू की जा सकती है? क्या विभिन्न समस्याओं का पूरी तरह से समाधान किया जा सकता है? क्या सुसमाचार फैलाने का कार्य सामान्य रूप से आगे बढ़ सकता है? साफ है कि परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाएँ पूरी तरह से लागू नहीं की जा सकतीं, और बहुत सारा महत्वपूर्ण कार्य अच्छी तरह से नहीं किया जा सकता। चूँकि नकली अगुआओं द्वारा इस्तेमाल किए गए लोगों में कोई सत्य-वास्तविकता नहीं होती और वे कुकर्म भी कर सकते हैं, जिससे कलीसिया के कार्य के विभिन्न मदों के अच्छी तरह से होने में रुकावट आती है। नकली अगुआ इन बुरे लोगों का उपयोग करते हैं, उन्हें कलीसिया में महत्वपूर्ण कर्तव्य और महत्वपूर्ण कार्य करने देते हैं, यहाँ तक कि वे इन दुष्ट लोगों को चढ़ावों का प्रबंधन भी करने देते हैं। क्या इससे कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधा आएगी? क्या इससे परमेश्वर को मिलने वाले चढ़ावों का नुकसान होगा? (हाँ।) यह बहुत ही गंभीर परिणाम होगा। चूँकि नकली अगुआ इन लोगों की असलियत नहीं समझ पाते, उनका पृथक्करण नहीं कर पाते और इन दुष्ट लोगों को महत्वपूर्ण काम करने देते हैं, इसलिए काम पूरी तरह से गड़बड़ा जाता है। ये दुष्ट लोग अपने कर्तव्य हमेशा बेमन से निभाते हैं, अपने से ऊपर के लोगों को धोखा देते हैं और नीचे के लोगों से चीजें छिपाते हैं, और कोई वास्तविक काम नहीं करते; वे जानबूझकर लापरवाही से काम करते हैं, लोगों को गुमराह करते हैं और सभी तरह के बुरे काम करते हैं। किंतु नकली अगुआ उनकी असलियत नहीं समझ पाते और जब तक वे समस्याओं पर ध्यान देते हैं, तब तक कोई बड़ी आपदा आ चुकी होती है। उदाहरण के लिए, हेनान के पादरी-क्षेत्र में अगुआ बने कुछ दुष्ट लोगों ने परमेश्वर का चढ़ावा चुराने के लिए विभिन्न घृणित तरीकों का इस्तेमाल किया; उन्होंने बड़ी धनराशियाँ चुराईं और वे धनराशियाँ कभी बरामद नहीं हुईं। क्या इसका संबंध अगुआओं और कार्यकर्ताओं द्वारा गलत लोगों को चुनकर उनका उपयोग करने से है? (हाँ, ऐसा ही है।) कार्य-व्यवस्थाओं के अनुसार, यदि कोई चुने गए लोगों की असलियत न देख पाए, तो उन्हें पहले कुछ साधारण काम करने के लिए नियुक्त किया जा सकता है, और उनके काम की कुछ समय तक खोज-खबर ली जा सकती है और अवलोकन किया जा सकता है। जिन लोगों की असलियत बिल्कुल भी न देखी जा सके, उन्हें कोई महत्वपूर्ण काम बिलकुल नहीं सौंपा जाना चाहिए, खासकर अगर उसमें जोखिम शामिल हो। लंबे समय तक निरीक्षण करने और उनके सार को समझने के बाद ही इस बारे में निर्णय लिया जाना चाहिए कि उनके साथ कैसे पेश आना है और उन्हें कैसे सँभालना है। नकली अगुआ कार्य-व्यवस्थाओं के अनुसार काम नहीं करते और सिद्धांतों को नहीं समझ सकते; इतना ही नहीं, वे लोगों की असलियत नहीं देख पाते और गलत लोगों का उपयोग करते हैं। इससे कलीसिया के काम और परमेश्वर के चढ़ावों, दोनों का नुकसान होता है। यह नकली अगुआओं द्वारा लाई गई आपदा है।
—वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (10)
नकली अगुआ अक्सर आध्यात्मिक होने का दिखावा करते हैं, लोगों को गुमराह करने और भटकाने के लिए कुछ सत्याभासी भ्रांतियाँ बोलते हैं। यद्यपि ऊपर से लग सकता है कि इन भ्रांतियों में कोई समस्या नहीं है लेकिन इनका लोगों के जीवन प्रवेश पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है, ये लोगों को परेशान और गुमराह कर सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चलने में बाधा डालती हैं। इन छद्म-आध्यात्मिक शब्दों के कारण कुछ लोगों में परमेश्वर के वचनों के प्रति संदेह और प्रतिरोध पैदा होता है, उनमें धारणाएँ पैदा होती हैं, यहाँ तक कि ये परमेश्वर के बारे में गलतफहमियाँ और परमेश्वर से सतर्क रहने का भाव भी पैदा करती हैं, और फिर वे परमेश्वर से दूर चले जाते हैं। नकली अगुआओं की छद्म-आध्यात्मिक बातों का लोगों पर यही प्रभाव पड़ता है। जब किसी कलीसिया के सदस्य किसी नकली अगुआ द्वारा गुमराह और प्रभावित किए जा रहे होते हैं, तो वह कलीसिया एक धर्म बन जाती है, ठीक ईसाई या कैथोलिक धर्म की तरह, जिसमें लोग केवल मनुष्य की बातों और शिक्षाओं का पालन करते हैं। वे सब पौलुस की शिक्षाओं की आराधना करने लगते हैं, परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण करने के बजाय प्रभु यीशु के वचनों के स्थान पर पौलुस की बातों का उपयोग करने की हद तक चले जाते हैं। परिणामस्वरूप, वे सभी पाखंडी फरीसी और मसीह-विरोधी बन जाते हैं। इस प्रकार, वे परमेश्वर द्वारा शापित और निंदित होते हैं। पौलुस की तरह, नकली अगुआ खुद को ऊंचा उठाकर अपनी ही गवाही देते हैं, वे लोगों को गुमराह और परेशान करते हैं। वे उन्हें भटकाकर धार्मिक अनुष्ठानों में उलझा देते हैं और जिस तरह से ये लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं वह धार्मिक लोगों के समान ही हो जाता है जिससे परमेश्वर में उनकी आस्था के सही पथ पर उनके प्रवेश में देरी होती है। नकली अगुआ लोगों को निरंतर गुमराह और बाधित करते हैं और वे लोग तब ढेरों छद्म-आध्यात्मिक सिद्धांत और कथन पैदा कर देते हैं। ये सिद्धांत, कहावतें और प्रथाएं सत्य के बिल्कुल विपरीत होती हैं और इनका इससे कोई लेना-देना नहीं होता। इतने पर भी, नकली अगुए लोगों को गुमराह करते और भटकाते हुए भी इन चीजों को सकारात्मक चीजों की तरह, सत्य की तरह ग्रहण करते हैं। वे लोग भ्रमवश इन बातों को सत्य मान लेते हैं, सोचते हैं कि जब तक वे अपने हृदय में इन चीजों पर विश्वास करते रहेंगे और उन्हें स्पष्टता से बोल सकेंगे और जब तक इन चीजों से सभी लोग सहमत रहेंगे तब उन्होंने सत्य को पा लिया होगा। इन विचारों और दृष्टिकोणों से भ्रमित होकर, लोग न तो सत्य समझ पाते हैं और न ही वे परमेश्वर के वचनों का अभ्यास या अनुभव करने में समर्थ हो पाते हैं, सत्य वास्तविकता में प्रवेश करना तो दूर की बात है। इसके विपरीत, वे परमेश्वर के वचनों से और भी दूर होकर सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने से और अधिक वंचित हो जाते हैं। कागज पर, नकली अगुआ जो कहते हैं और जो नारे लगाते हैं, उनमें कुछ भी गलत नहीं है, वे सब बातें सही होती हैं। फिर उन्हें कुछ भी हासिल क्यों नहीं होता? उसकी वजह यह है कि नकली अगुआ जो समझते और जानते हैं वह बहुत उथला होता है। वह सब धर्म-सिद्धांत होता है, जिसका परमेश्वर के वचनों में सत्य वास्तविकता से, परमेश्वर की अपेक्षाओं या उसके इरादों से कोई लेना-देना नहीं होता। सच तो यह है कि नकली अगुआ जिन सिद्धांतों का प्रचार करते हैं, वे सत्य वास्तविकता से बहुत दूर होते हैं—अगर सटीक तौर पर कहा जाए तो, उनका सत्य से कोई वास्ता नहीं होता और न ही परमेश्वर के वचनों से कोई लेना-देना होता है। तो जब नकली अगुआ अक्सर इन वचनों और धर्म-सिद्धांतों का बखान करते हैं, तो उनका संबंध किन चीजों से होता है? वे हमेशा सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने में असमर्थ क्यों होते हैं? यह सीधे तौर पर नकली अगुआओं की काबिलियत से जुड़ा होता है। यह पूरी तरह से प्रमाणित है कि नकली अगुआओं में काबिलियत की कमी होती है और वे सत्य समझने की क्षमता नहीं रखते। चाहे वे कितने भी वर्षों से परमेश्वर में विश्वास रखते हों, वे सत्य को नहीं समझेंगे और उनका जीवन प्रवेश नहीं होगा और यह भी कहा जा सकता है कि चाहे वे कितने भी वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास रखें, उनके लिए सत्य वास्तविकता में प्रवेश करना आसान नहीं होगा। यदि एक नकली अगुआ को बर्खास्त नहीं किया जाता और उसे पद पर बने रहने दिया जाता है, तो किस प्रकार के परिणाम सामने आएंगे? उनकी अगुआई और अधिक लोगों को धार्मिक अनुष्ठानों और विनियमों की ओर, वचनों और धर्म-सिद्धांतों की ओर, अस्पष्ट धारणाओं और कल्पनाओं की ओर आकर्षित करेगी। मसीह-विरोधियों के विपरीत, नकली अगुआ लोगों को अपने सामने या शैतान के सामने आने के लिए अगुआई नहीं करते, लेकिन यदि वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को उसके वचनों के सत्य वास्तविकता में न ले जा पाएँ, तो क्या परमेश्वर के चुने हुए लोग उसका उद्धार प्राप्त करने में सक्षम होंगे? क्या वे परमेश्वर द्वारा पूर्ण किए जा सकेंगे? बिल्कुल नहीं। यदि परमेश्वर के चुने हुए लोग सत्य वास्तविकता में प्रवेश न कर सकें, तो क्या वे अभी भी शैतान की सत्ता के अधीन नहीं जी रहे हैं? क्या वे अभी भी शैतान की सत्ता के अधीन रहने वाले पतित नहीं हैं? क्या इसका मतलब यह नहीं है कि वे नकली अगुआओं के हाथों बर्बाद हो जाएँगे? इसीलिए नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों के काम के परिणाम मूलतः एक जैसे होते हैं। इनमें से कोई भी परमेश्वर के चुने हुए लोगों को न तो सत्य समझा सकता है, न वास्तविकता में प्रवेश कराकर उनका उद्धार कर सकता है। वे दोनों ही परमेश्वर के चुने हुए लोगों को हानि पहुँचाते हैं और तबाह कर देते हैं। दोनों के परिणाम बिल्कुल एक जैसे हैं।
—वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (2)