v. पवित्र आत्मा के कार्य और बुरी आत्माओं के कार्य में भेद कैसे करें
अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन
पवित्र आत्मा मनुष्य में कैसे कार्य करता है? शैतान मनुष्य में कैसे कार्य करता है? दुष्ट आत्माएं मनुष्य में कैसे कार्य करती हैं? इसके प्रकटीकरण क्या हैं? जब तुम्हारे साथ कुछ घटित होता है, क्या यह पवित्र आत्मा की ओर से आता है और तुम्हें उसके प्रति समर्पण करना चाहिए या ठुकरा देना चाहिए? लोगों के वास्तविक अभ्यास में मनुष्य की इच्छा से बहुत कुछ उत्पन्न होता है फिर भी लोगों को हमेशा लगता है कि यह आत्मा की ओर से आता है। कुछ चीज़ें दुष्ट आत्माओं की ओर से आती हैं, परंतु फिर भी लोग सोचते हैं कि यह पवित्र आत्मा से आई हैं और कभी-कभी पवित्र आत्मा भीतर से लोगों का मार्गदर्शन करता है, फिर भी लोग डर जाते हैं कि ऐसा मार्गदर्शन शैतान की ओर से आता है और इसलिए समर्पण करने का साहस नहीं करते, जबकि वास्तविकता में वह मार्गदर्शन पवित्र आत्मा का प्रबोधन होता है। इस प्रकार, इनमें भेद किये बिना, व्यावहारिक अनुभव में इसका अनुभव करने का कोई तरीक़ा नहीं है; भेद किए बिना जीवन प्राप्त करने का कोई तरीक़ा नहीं है। पवित्र आत्मा कैसे कार्य करता है? दुष्ट आत्माएं कैसे कार्य करती हैं? मनुष्य की इच्छा से क्या आता है? और पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन और उसके प्रबोधन से क्या पैदा होता है? यदि तुम मनुष्य के भीतर पवित्र आत्मा के कार्य के स्वरूपों को समझ लेते हो, तब तुम अपने दिन-प्रतिदिन के जीवन और अपने व्यावहारिक अनुभवों में अपना ज्ञान बढ़ा पाओगे और अंतर कर पाओगे; तुम परमेश्वर को जान पाओगे, तुम शैतान को समझ और पहचान पाने में समर्थ होगे; तुम अपने समर्पण या अनुसरण को लेकर उलझन में नहीं रहोगे, और तुम ऐसे व्यक्ति बनोगे जिसके विचार स्पष्ट हैं और जो पवित्र आत्मा के कार्य के प्रति समर्पण करता है।
पवित्र आत्मा का कार्य सक्रिय मार्गदर्शन और सकारात्मक प्रबोधन है। यह लोगों को नकारात्मक नहीं बनने देता। यह उनको सांत्वना देता है, उन्हें विश्वास और संकल्प देता है और परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाने का अनुसरण करने योग्य बनाता है। जब पवित्र आत्मा कार्य करता है, तो लोग सक्रिय रूप से प्रवेश कर पाते हैं; वो निष्क्रिय या बाध्य नहीं होते, बल्कि अपनी पहल पर काम करते हैं। जब पवित्र आत्मा कार्य करता है, तो लोग प्रसन्न और सहर्ष प्रस्तुत होते हैं, समर्पण करने को तैयार होते हैं और स्वयं को विनम्र रखने में प्रसन्न होते हैं। यद्यपि वे भीतर से दुखी और दुर्बल होते हैं, उनमें सहयोग करने का संकल्प होता है; वे ख़ुशी-ख़ुशी दुःख सह लेते हैं, वे समर्पण करने में सक्षम होते हैं और मानवीय इच्छा से कलंकित नहीं होते हैं, मनुष्य की सोच से कलंकित नहीं होते हैं और निश्चित रूप से वे मनुष्य की आकांक्षाओं और प्रेरणाओं से कलंकित नहीं होते हैं। जब लोग पवित्र आत्मा के कार्य का अनुभव करते हैं, तो भीतर से वे विशेष रूप से पवित्र हो जाते हैं। जो पवित्र आत्मा के कार्य के अधीन हैं, वे परमेश्वर के प्रेम और अपने भाइयों और बहनों के प्रेम को जीते हैं; वे ऐसी चीज़ों से आनंदित होते हैं, जो परमेश्वर को आनंदित करती हैं और उन चीज़ों से घृणा करते हैं, जिनसे परमेश्वर घृणा करता है। जो पवित्र आत्मा के कार्य द्वारा स्पर्श किए जाते हैं, वे ऐसे लोग हैं जिनमें सामान्य मानवता होती है, वे निरंतर सत्य का अनुसरण करते हैं और मानवता के अधीन होते हैं। जब पवित्र आत्मा लोगों के भीतर कार्य करता है, उनकी स्थिति और भी बेहतर हो जाती है और उनकी मानवता और अधिक सामान्य हो जाती है और यद्यपि उनका कुछ सहयोग मूर्खतापूर्ण हो सकता है, परंतु फिर भी उनकी प्रेरणाएं सही होती हैं, उनका प्रवेश सकारात्मक होता है, वे रुकावट बनने का प्रयास नहीं करते और उनमें दुर्भाव नहीं होता। पवित्र आत्मा का कार्य सामान्य और व्यावहारिक होता है, पवित्र आत्मा मनुष्य के भीतर मनुष्य के सामान्य जीवन के नियमों के अनुसार कार्य करता है और वह सामान्य लोगों के वास्तविक अनुसरण के अनुसार लोगों में प्रबोधन और मार्गदर्शन को कार्यान्वित करता है। जब पवित्र आत्मा लोगों में कार्य करता है, तो वह सामान्य लोगों की आवश्यकता के अनुसार उनका मार्गदर्शन करता और उन्हें प्रबुद्ध करता है। वह उनकी आवश्यकताओं के अनुसार उनकी ज़रूरतें पूरी करता है और वह सकारात्मक रूप से उनकी कमियों और अभावों के आधार पर उनका मार्गदर्शन करता है और उन्हें प्रबुद्ध करता है। पवित्र आत्मा का कार्य वास्तविक जीवन में लोगों को प्रबुद्ध करने और उनका मार्गदर्शन करने का है; अगर वे अपने वास्तविक जीवन में परमेश्वर के वचनों का अनुभव करते हैं, तभी वे पवित्र आत्मा का कार्य देख सकते हैं। यदि अपने दिन-प्रतिदिन के जीवन में लोग सकारात्मक अवस्था में हों और उनका जीवन सामान्य आध्यात्मिक हो, तो वे पवित्र आत्मा के कार्य के अधीन होते हैं। ऐसी स्थिति में, जब वे परमेश्वर के वचनों को खाते और पीते हैं, तो उनमें विश्वास आता है; जब वे प्रार्थना करते हैं, तो वे प्रेरित होते हैं, जब उनके साथ कुछ घटित होता है, तो वे नकारात्मक नहीं होते; और घटित होती हुई चीज़ों से सबक़ लेने में समर्थ होते हैं, जो परमेश्वर चाहता है कि वो सीखें। वे नकारात्मक या कमज़ोर नहीं होते और यद्यपि उनके जीवन में वास्तविक कठिनाइयाँ होती हैं, वे परमेश्वर की सभी व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने के लिए तैयार रहते हैं।
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शैतान की ओर से कौन-सा कार्य आता है? शैतान से आने वाले काम में, लोगों के भीतर के दृश्य अस्पष्ट होते हैं; लोगों में सामान्य मानवता नहीं होती है, उनके कार्यों के पीछे की प्रेरणाएं गलत होती हैं, और यद्यपि वे परमेश्वर से प्रेम करना चाहते हैं, फिर भी उनके भीतर सदैव आरोप-प्रत्यारोप चलते रहते हैं और ये दोषारोपण और विचार उनके मन में निरंतर अशांति का कारण बनते हैं, उनके जीवन के विकास को सीमित कर देते हैं और सामान्य स्थिति में परमेश्वर के समक्ष आने से रोक देते हैं। कहने का अर्थ है कि जैसे ही लोगों में शैतान का कार्य आरंभ होता है, तो उनके हृदय परमेश्वर के समक्ष शांत नहीं रह सकते। ऐसे लोगों को पता नहीं होता कि वे स्वयं के साथ क्या करें—जब वे लोगों को इकट्ठा होते देखते हैं, वे भाग जाना चाहते हैं और जब दूसरे प्रार्थना करते हैं तो वे अपनी आँखें बंद नहीं रख पाते। दुष्ट आत्माओं का कार्य मनुष्य और परमेश्वर के बीच का सामान्य संबंध बर्बाद कर देता है और लोगों के पिछले दर्शनों या उनके जीवन प्रवेश के पिछले मार्ग को उलट देता है; अपने हृदयों में वे कभी परमेश्वर के क़रीब नहीं आ सकते, ऐसी बातें हमेशा होती रहती हैं, जो उन्हें अशांत करती हैं और उन्हें बेबस कर देती हैं। उनके हृदय शांति प्राप्त नहीं कर पाते और उनमें परमेश्वर से प्रेम करने की शक्ति नहीं बचती, और उनकी आत्माएं पतन की ओर जाने लगती हैं। शैतान के कार्य के प्रकटीकरण ऐसे हैं। शैतान के कार्य के प्रकटीकरण हैं : अपने स्थान पर डटे रह पाने और गवाही दे पाने में असमर्थ होना, यह तुम्हें ऐसा व्यक्ति बना देता है जो परमेश्वर के समक्ष दोषी है और जो परमेश्वर के प्रति निष्ठा नहीं रखता। जब शैतान परेशान करता है, तुम अपने भीतर परमेश्वर के प्रति प्रेम और वफादारी खो देते हो, तुम्हारा परमेश्वर के साथ सामान्य संबंध खत्म हो जाता है, तुम सत्य या स्वयं के सुधार का अनुसरण नहीं करते, तुम पीछे हटने लगते हो और नकारात्मक बन जाते हो, तुम स्वयं को आसक्त कर लेते हो, तुम पाप के फैलाव को खुली छूट दे देते हो और पाप से घृणा नहीं करते; इससे बढ़कर, शैतान का हस्तक्षेप तुम्हें स्वच्छंद बना देता है, इसकी वजह से तुम्हारे भीतर से परमेश्वर का स्पर्श हट जाता है और तुम्हें परमेश्वर के बारे में शिकायत करने और उसका विरोध करने को प्रेरित करता है, जिससे तुम परमेश्वर पर सवाल उठाते हो; तुम्हारे द्वारा परमेश्वर को त्याग देने का खतरा भी होता है। यह सब शैतान की ओर से आता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पवित्र आत्मा का कार्य और शैतान का कार्य
मनुष्य में पवित्र आत्मा का कार्य विशेष रूप से सामान्य है; मनुष्य इसको महसूस करने के असमर्थ है और यह स्वयं मनुष्य द्वारा ही आता प्रतीत होता है—परंतु वास्तव में यह पवित्र आत्मा का कार्य होता है। दिन-प्रतिदिन के जीवन में पवित्र आत्मा प्रत्येक में बड़े और छोटे रूप में कार्य करता है और यह इस कार्य की सीमा है, जो बदलती रहती है। कुछ लोगों की काबिलियत अच्छी होती है और वे बातों को जल्दी समझ लेते हैं और उनमें पवित्र आत्मा का प्रबोधन विशेष रूप से अधिक होता है। इस बीच, कुछ लोगों की काबिलियतकम होती है और उन्हें बातों को समझने में अधिक समय लगता है, परंतु पवित्र आत्मा उन्हें भीतर से स्पर्श करता है और वे भी परमेश्वर के प्रति निष्ठा को प्राप्त कर पाते हैं—पवित्र आत्मा उन सबमें कार्य करता है, जो परमेश्वर का अनुसरण करते हैं। जब दिन-प्रतिदिन के जीवन में लोग परमेश्वर का विरोध नहीं करते या परमेश्वर के ख़िलाफ विद्रोह नहीं करते, ऐसे कार्य नहीं करते, जो परमेश्वर के प्रबंधन में गड़बड़ी करें और परमेश्वर के कार्य में विघ्न नहीं डालते, तो उनमें से प्रत्येक में परमेश्वर का आत्मा अधिक या कम सीमा तक काम करता है; वह उन्हें स्पर्श करता है, प्रबुद्ध करता है, उन्हें विश्वास प्रदान करता है, सामर्थ्य देता है और सक्रिय रूप से प्रवेश करने के लिए बढ़ाता है, आलसी नहीं बनने देता या देह के आनंद लेने का लालच नहीं करने देता, सत्य के अभ्यास को तैयार करता है और परमेश्वर के वचनों की चाहत रखने वाला बनाता है। यह सब ऐसा कार्य है, जो पवित्र आत्मा की ओर से आता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पवित्र आत्मा का कार्य और शैतान का कार्य
पवित्र आत्मा के समस्त कार्य सामान्य और वास्तविक हैं। जब तुम परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हो और प्रार्थना करते हो, तो भीतर से तुम प्रकाशमान और दृढ़ होते हो, बाहरी संसार तुम्हें बाधित नहीं कर सकता; अंदर से तुम परमेश्वर से प्रेम करने के इच्छुक होते हो, सकारात्मक चीजों से जुड़ने के इच्छुक होते हो, और तुम इस बुरे संसार से घृणा करते हो। यह परमेश्वर के भीतर रहना है। यह परम आनंद का अनुभव लेना नहीं है, जैसा कि लोग कहते हैं—ऐसी बात व्यावहारिक नहीं है। आज, हर चीज वास्तविकता से आरंभ होनी चाहिए। परमेश्वर जो कुछ भी करता है, वह सब व्यावहारिक है, और अपने अनुभवों में तुम्हें परमेश्वर को वास्तव में जानने, और परमेश्वर के कार्य के पदचिह्नों और उस उपाय को खोजने पर ध्यान देना चाहिए, जिसके द्वारा पवित्र आत्मा लोगों को स्पर्श और प्रबुद्ध करता है। यदि तुम परमेश्वर के वचनों को खाते-पीते हो, और प्रार्थना करते हो, और अधिक वास्तविक तरीक़े से सहयोग करते हो, बीते हुए समय में जो कुछ अच्छा था उसे आत्मसात करते हो, और जो कुछ खराब था उसे पतरस की तरह अस्वीकार करते हुए, यदि तुम अपने कानों से सुनते हो और अपनी आँखों से देखते हो, और अपने मन में अकसर प्रार्थना और चिंतन करते हो, और परमेश्वर के कार्य में सहयोग करने के लिए वह सब-कुछ करते हो जो तुम कर सकते हो, तो परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हारा मार्गदर्शन करेगा।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, वास्तविकता को कैसे जानें
जब पवित्र आत्मा लोगों को प्रबुद्ध करने के लिए कार्य करता है, तो वह आम तौर पर उन्हें परमेश्वर के कार्य का, और उनकी सच्ची प्रविष्टि और सच्ची अवस्था का ज्ञान देता है। वह उन्हें परमेश्वर के अत्यावश्यक इरादों और उसकी मनुष्य से वर्तमान अपेक्षाओं के बारे में समझने देता है, ताकि उनके पास परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए सब कुछ बलि कर देने का संकल्प हो, ताकि वे परमेश्वर से अवश्य प्रेम करें भले ही वे उत्पीड़न और प्रतिकूल परिस्थितियों को भुगतें, ताकि वे परमेश्वर की गवाही दें भले ही इसका अर्थ अपना खून बहाना और अपना जीवन अर्पित करना हो; उन्हें कोई अफ़सोस नहीं होगा। यदि तेरा इस तरह का संकल्प है तो इसका अर्थ है कि तुझमें पवित्र आत्मा की हरकतें है, और पवित्र आत्मा का कार्य है—लेकिन जान ले कि तू हर गुजरते पल में इस तरह की हरकतों से संपन्न नहीं है। कभी-कभी बैठकों में जब तू प्रार्थना करता है और परमेश्वर के वचनों को खाता और पीता है, तो तू बेहद द्रवित और प्रेरित महसूस कर सकता है। जब अन्य लोग परमेश्वर के वचनों के अपने अनुभव और समझ पर कुछ संगति साझा करते हैं तो यह बहुत नया और ताजा महसूस होता है, और तेरा हृदय पूरी तरह से स्पष्ट और उज्ज्वल हो जाता है। यह सब पवित्र आत्मा का कार्य है। यदि तू कोई अगुवा है और पवित्र आत्मा तुझे असाधारण प्रबुद्धता और रोशनी देता है, तो जब तू काम करने के लिए कलीसिया में जाता है, वह उन समस्याओं को देखने देता है जो कलीसिया के भीतर मौज़ूद हैं, और जानने देता है कि उनका समाधान करने के लिए सत्य पर संगति को कैसे साझा करें, तुझे अविश्वसनीय रूप से नेक, जिम्मेदार और अपने कार्य में गंभीर बनाता है, तो यह सब पवित्र आत्मा का कार्य है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (1)
पवित्र आत्मा का कार्य जिस खास तरीके से लोगों की सबसे अधिक मदद करता है, वह है उन्हें प्रबुद्ध और रोशन करना, उन्हें सत्य और परमेश्वर की इच्छा समझने में मदद करना, परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार काम करने योग्य बनाना और सही रास्ते से न भटकने देना। लोगों को प्रबुद्ध करने के पीछे पवित्र आत्मा के कार्य का लक्ष्य क्या है? कभी इसका कार्य रास्ता दिखाना होता है; कभी यह तुम्हें याद दिलाता है, कभी इसके कारण तुममें विवेक आता है; तो कभी यह तुम्हें रोशन कर सत्य को समझने में मदद करता है, और तुम्हें अभ्यास का मार्ग देता है। जब तुम अपनी राह भटक जाते हो, तो वह तुम्हारा सहारा बनकर मदद करता है, तुम्हें सही राह पर ले जाता है और तुम्हारा मार्गदर्शन करता है। पवित्र आत्मा जिस रोशनी और ज्ञान से लोगों को प्रबुद्ध करता है, वो लोगों की अपनी-अपनी पृष्ठभूमि के कारण अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन वो सत्य का खंडन या विरोध कतई नहीं करते हैं। अगर हर किसी को इस तरह से अनुभव होने लगे कि उसमें सच्ची खोज और प्रार्थना है, वास्तविक समर्पण है, पवित्र आत्मा लगातार प्रबुद्ध कर उनका मार्गदर्शन कर रहा है, और अगर वे विचारों से तीव्र और सूक्ष्म हैं, और उन चीजों का अभ्यास करने और उनमें प्रवेश करने में सक्षम हैं जिन्हें पवित्र आत्मा प्रबुद्ध करता है, तो उनका आध्यात्मिक कद बहुत तेजी से बढ़ेगा। तब वे मौके का फायदा उठा चुके होंगे। पवित्र आत्मा के कार्य की एक विशेषता है कि यह बड़ी तेजी से होता है। यह पलक झपकते ही पूरा हो जाता है, यह बुरी आत्माओं के कार्य की तरह नहीं है जो हमेशा लोगों को इस तरह से काम करने के लिए उकसाता और मजबूर करता है कि वे किसी अन्य तरीके से कार्य न कर सकें। कभी-कभी पवित्र आत्मा लोगों को यह एहसास दिलाने का काम करता है कि वे खतरे की कगार पर हैं, इससे वे असहज और बहुत परेशान हो जाते हैं। ऐसा विशेष परिस्थितियों में होता है। आम तौर पर जब लोग परमेश्वर के निकट आते हैं, और सत्य की खोज करते हैं, या जब वे परमेश्वर के वचन पढ़ते हैं, तो पवित्र आत्मा उन्हें कोई एहसास या सूक्ष्म विचार या ख्याल देता है। या, वह तुम्हें कोई वाक्य या संदेश दे सकता है। मानो कि यह कोई आवाज हो, पर इसमें आवाज नहीं भी है; यह कुछ याद दिलाने जैसा है, और तुम इसका अर्थ समझ सकते हो। अगर तुम अपने समझे हुए उस अर्थ को ग्रहण करते जाते हो और उसे उचित शब्दों में व्यक्त करते हो, तो तुम्हें जरूर कुछ न कुछ हासिल होगा, और यह दूसरों को भी शिक्षित करेगा। अगर लोग हमेशा इसी तरह अनुभव करें, तो वे धीरे-धीरे अनेक सत्य समझने लगेंगे। अगर लोगों के पास हमेशा पवित्र आत्मा का कार्य रहता है, और हमेशा एक नई रोशनी उनकी अगुआई करती है, तो वे सच्चे मार्ग से कभी नहीं भटकेंगे। भले ही तुम्हारे साथ कभी कोई संगति न करता हो, कोई भी तुम्हें राह न दिखाता हो, और तुम्हारे पास कोई कार्य व्यवस्था न हो, अगर तुम पवित्र आत्मा की दिखाई दिशा में चलते हो, तो कभी नहीं भटकोगे।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, परमेश्वर पर विश्वास करने में सत्य प्राप्त करना सबसे महत्वपूर्ण है
जबकि पवित्र आत्मा कार्य करता है, तब भी लोगों में एक भ्रष्ट स्वभाव मौजूद रहता है; हालाँकि पवित्र आत्मा के कार्य के दौरान, लोगों के लिए अपने विद्रोह, प्रेरणाओं और मिलावटों की खोज करना और पहचानना आसान हो जाता है। केवल तभी लोगों को पछतावा महसूस होता है और वे प्रायश्चित करने को तैयार होते हैं। इस तरह, उनके विद्रोही और भ्रष्ट स्वभाव धीरे-धीरे परमेश्वर के कार्य के भीतर त्याग दिए जाते हैं। पवित्र आत्मा का कार्य विशेष रूप से सामान्य होता है; जब वह लोगों में कार्य करता है, तब भी उन्हें कठिनाइयां होती हैं, वे तब भी रोते हैं, तब भी दुःख उठाते हैं, तब भी वे कमज़ोर होते हैं और तब भी बहुत-सी ऐसी बातें होती हैं जो उनके लिए अस्पष्ट हों, फिर भी ऐसी स्थिति में वे स्वयं को पीछे हटने से रोक सकते हैं और परमेश्वर से प्रेम कर सकते हैं और यद्यपि वे रोते हैं और व्याकुल रहते हैं, फिर भी उनमें परमेश्वर की प्रशंसा करने का सामर्थ्य होता है; पवित्र आत्मा का कार्य विशेष रूप से सामान्य होता है और उसमें थोड़ा-सा भी अलौकिक नहीं होता। अधिकांश लोग सोचते हैं कि जैसे ही पवित्र आत्मा कार्य करना आरंभ करता है, वैसे ही लोगों की दशा बदल जाती है और जो चीजें उनके लिए ज़रूरी होती हैं, वे हटा ली जाती हैं। ऐसे विश्वास विकृत होते हैं। जब पवित्र आत्मा मनुष्य के भीतर कार्य करता है, तो मनुष्य की नकारात्मक चीजें उसमें बनी रहती हैं और उसका आध्यात्मिक कद वही रहता है, लेकिन वह पवित्र आत्मा की रोशनी और प्रबोधन प्राप्त कर लेता है और इसलिए उसकी दशा और अधिक सकारात्मक हो जाती है, उसके भीतर की स्थितियां सामान्य हो जाती हैं और वह शीघ्रता से बदल जाता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पवित्र आत्मा का कार्य और शैतान का कार्य
पवित्र आत्मा का कार्य लोगों को सकारात्मक विकास करने देता है, जबकि शैतान का कार्य है उन्हें नकारात्मक बनाता और पीछे धकेलता है, उनसे परमेश्वर के प्रति विद्रोह और प्रतिरोध कराता है, उसमें अपनी आस्था छोड़ने और अपना कर्तव्य निभाने में कमज़ोर बनने पर मजबूर करता है। वह सब कुछ जो पवित्र आत्मा के प्रबोधन से उपजता है, वह काफ़ी स्वाभाविक होता है; यह तुम पर थोपा नहीं जाता। यदि तुम इसका पालन करते हो, तो तुम्हें शांति मिलेगी; और यदि तुम ऐसा नहीं करते, फिर बाद में तुम्हें फटकारा जाएगा। पवित्र आत्मा के प्रबोधन के बाद तुम जो भी करते हो, उसमें कोई विघ्न या रोक नहीं होगी; तुम स्वतंत्र होगे, तुम्हारे कार्यों में अभ्यास का एक मार्ग होगा और तुम किन्हीं अंकुशों के अधीन नहीं होगे बल्कि परमेश्वर की इच्छा के अनुसार कार्य करने के योग्य होगे। शैतान का कार्य तुम्हें बहुत-से मामलों में परेशान करता है; यह तुम्हें प्रार्थना करने से विमुख करता है, परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने में बहुत आलसी बनाता है, कलीसिया का जीवन जीने से विमुख करता है, और यह आध्यात्मिक जीवन से दूर कर देता है। पवित्र आत्मा का कार्य तुम्हारे दैनिक जीवन में हस्तक्षेप नहीं करता और तुम्हारे सामान्य आध्यात्मिक जीवन में हस्तक्षेप नहीं करता। तुम बहुत-सी चीज़ों को उसी क्षण पहचानने में असमर्थ रहते हो, जब वे घटित होती हैं; फिर भी कुछ दिन बाद, तुम्हारा हृदय अधिक उज्ज्वल तथा मन अधिक स्पष्ट हो जाता है। तुम्हें आत्मा की चीजों के बारे में कुछ समझ आने लगती है और धीरे-धीरे तुम पहचान सकते हो कि कोई विचार परमेश्वर से आया है या शैतान की ओर से। कुछ बातें तुमसे परमेश्वर का विरोध करवाती हैं और परमेश्वर के ख़िलाफ विद्रोह करवाती हैं, या परमेश्वर के वचनों को कार्य में लाने से तुम्हें रोकती हैं; ये सभी बातें शैतान की ओर से आती हैं। कुछ बातें स्पष्ट नहीं होतीं और उस समय तुम नहीं बता सकते कि वे क्या हैं; बाद में, तुम उनके प्रकटीकरणों को देख पाते हो, तत्पश्चात विवेक का इस्तेमाल कर पाते हो। अगर तुम स्पष्ट रूप से बता सकते हो कि कौन-सी बातें शैतान की ओर से आती हैं और कौन-सी पवित्र आत्मा द्वारा निर्देशित होती हैं, तो तुम अपने अनुभवों में आसानी से नहीं भटकोगे।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पवित्र आत्मा का कार्य और शैतान का कार्य
परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने में, पवित्र आत्मा का कार्य कभी-कभार होता है, जबकि पवित्र आत्मा की उपस्थिति लगभग सतत रहती है। जब तक लोगों का विवेक और सोच सामान्य रहते हैं, और जब तक उनकी अवस्थाएँ सामान्य होती हैं, तब पवित्र आत्मा निश्चित रूप से उनके साथ होता है। जब लोगों का विवेक और सोच सामान्य नहीं होते, तो उनकी मानवता सामान्य नहीं होती। यदि इस पल पवित्र आत्मा का कार्य तुममें है, तो पवित्र आत्मा भी निश्चित रूप से तुम्हारे साथ होगा। किंतु यदि पवित्र आत्मा तुम्हारे साथ है, तो इसका यह अर्थ नहीं कि पवित्र आत्मा तुम्हारे भीतर निश्चित रूप से कार्य कर रहा है, क्योंकि पवित्र आत्मा विशेष समयों पर कार्य करता है। पवित्र आत्मा की उपस्थिति का होना केवल लोगों के सामान्य अस्तित्व को बनाए रख सकता है, किंतु पवित्र आत्मा केवल निश्चित समयों पर ही कार्य करता है। उदाहरण के लिए, यदि तुम कोई अगुआ या कार्यकर्ता हो, तो जब तुम कलीसिया को सिंचन और आपूर्ति प्रदान करते हो, तब पवित्र आत्मा तुम्हें कुछ वचनों से प्रबुद्ध करेगा, जो दूसरों के लिए शिक्षाप्रद होंगे और जो तुम्हारे भाइयों-बहनों की कुछ व्यावहारिक समस्याओं का समाधान कर सकते है—ऐसे समय पर पवित्र आत्मा कार्य कर रहा है। कभी-कभी जब तुम परमेश्वर के वचनों को खा-पी रहे होते हो, तो पवित्र आत्मा तुम्हें कुछ वचनों से प्रबुद्ध कर देता है, जो तुम्हारे अनुभवों के लिए विशेष रूप से प्रासंगिक होते हैं, जो तुम्हें अपनी खुद की अवस्थाओं का अधिक ज्ञान प्राप्त करने देते हैं; यह भी पवित्र आत्मा का कार्य है। कभी-कभी, जैसे मैं बोलता हूँ, तुम लोग सुनते हो, और मेरे वचनों से अपनी अवस्थाओं को मापने में सक्षम होते हो, और कभी-कभी तुम द्रवित या प्रेरित हो जाते हो; यह सब पवित्र आत्मा का कार्य है। कुछ लोग कहते हैं कि पवित्र आत्मा हर समय उनमें कार्य कर रहा है। यह असंभव है। यदि वे कहते कि पवित्र आत्मा हमेशा उनके साथ है, तो यह यथार्थपरक होता। यदि वे कहते कि उनकी सोच और उनका बोध हर समय सामान्य रहता है, तो यह भी यथार्थपरक होता और दिखाता कि पवित्र आत्मा उनके साथ है। यदि वे कहते हैं कि पवित्र आत्मा हमेशा उनके भीतर कार्य कर रहा है, कि वे हर पल परमेश्वर द्वारा प्रबुद्ध और पवित्र आत्मा द्वारा द्रवित किए जाते हैं, और हर समय नया ज्ञान प्राप्त करते हैं, तो यह किसी भी तरह से सामान्य नहीं है। यह पूर्णतः अलौकिक है! बिना किसी संदेह के, ऐसे लोग बुरी आत्माएँ हैं! यहाँ तक कि जब परमेश्वर का आत्मा देह में आता है, तब भी ऐसे समय होते हैं जब उसे भोजन करना चाहिए और आराम करना चाहिए—मनुष्यों की तो बात ही छोड़ दो। जो लोग बुरी आत्माओं से ग्रस्त हो गए हैं, वे देह की कमजोरी से रहित प्रतीत होते हैं। वे सब-कुछ त्यागने और छोड़ने में सक्षम होते हैं, वे भावनाओं से मुक्त होते हैं, यातना सहने में सक्षम होते हैं और जरा-सी भी थकान महसूस नहीं करते, मानो वे देहातीत हो चुके हों। क्या यह नितांत अलौकिक नहीं है? दुष्ट आत्माओं का कार्य अलौकिक है और कोई मनुष्य ऐसी चीजें प्राप्त नहीं कर सकता। जिन लोगों में विवेक की कमी होती है, वे जब ऐसे लोगों को देखते हैं, तो ईर्ष्या करते हैं : वे कहते हैं कि परमेश्वर पर उनका विश्वास बहुत मजबूत है, उनकी आस्था बहुत बड़ी है, और वे कमज़ोरी का मामूली-सा भी चिह्न प्रदर्शित नहीं करते! वास्तव में, ये सब दुष्ट आत्मा के कार्य की अभिव्यक्तियाँ है। क्योंकि सामान्य लोगों में अनिवार्य रूप से मानवीय कमजोरियाँ होती हैं; यह उन लोगों की सामान्य अवस्था है, जिनमें पवित्र आत्मा की उपस्थिति होती है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (4)
परमेश्वर सौम्य, कोमल, प्यारे और परवाह करने के तरीके से कार्य करता है, जो असाधारण रूप से नपा-तुला और उचित होता है। उसका तरीका तुम्हारे भीतर तीव्र भावनात्मक प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न नहीं करता, जैसे कि : “परमेश्वर मुझसे यह करा रहा है” या “परमेश्वर मुझसे वह करा रहा है।” परमेश्वर कभी तुम्हें एक किस्म गहन एहसास या ऐसी भावना नहीं देता जो तुम्हारा दिल सह नहीं सकता। क्या ऐसा नहीं है? यहाँ तक कि जब तुम परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के वचनों को स्वीकार करते हो, तब तुम कैसा महसूस करते हो? जब तुम परमेश्वर के अधिकार और सामर्थ्य को समझते हो, तब तुम कैसा महसूस करते हो? क्या तुम महसूस करते हो कि परमेश्वर दिव्य और अनुल्लंघनीय है? क्या उस समय तुम अपने और परमेश्वर के बीच दूरी महसूस करते हो? क्या तुम्हें महसूस होता है कि परमेश्वर कितना भयावह है? नहीं—बल्कि तुम परमेश्वर के प्रति भय महसूस करते हो। क्या लोग ये चीजें परमेश्वर के कार्य के कारण महसूस नहीं करते? यदि शैतान मनुष्य पर काम करता, तो क्या तब भी उनमें ये भावनाएँ होतीं? बिल्कुल नहीं। ...
मनुष्य पर शैतान के कार्य को क्या चिह्नित करता है? तुम लोगों को अपने खुद के अनुभवों के माध्यम से इसे जानने में समर्थ होना चाहिए—यह शैतान का आद्यप्ररूपीय लक्षण है, वह चीज जिसे वह सबसे ज्यादा करता है, वह चीज जिसे वह हर एक व्यक्ति के साथ करने की कोशिश करता है। शायद तुम लोग इस लक्षण को नहीं देख पाते, इसलिए तुम यह महसूस नहीं करते कि शैतान कितना भयावह और घृणित है। क्या कोई जानता है कि वह लक्षण क्या है? (वह मनुष्य को बहकाता, फुसलाता और ललचाता है।) यह सही है; ये विभिन्न तरीके हैं, जिनमें वह लक्षण प्रकट होता है। शैतान मनुष्य को गुमराह भी करता है, उस पर हमला भी करता है और आरोप भी लगाता है—ये सब अभिव्यक्तियाँ हैं। और कुछ? (वह झूठ बोलता है।) धोखा देना और झूठ बोलना शैतान को सबसे ज्यादा स्वाभाविक रूप से आते हैं। वह अक्सर ऐसा करता है। वह लोगों पर रौब जमाता, उन्हें उकसाता, चीजें करने पर मजबूर करता, उन्हें हुक्म देता और जबरन उनकी संपत्ति भी छीन लेता है। अब मैं तुम लोगों को एक ऐसी बात बताऊँगा, जो तुम्हारे रोंगटे खड़े कर देगी, लेकिन मैं ऐसा तुम लोगों को डराने के लिए नहीं कर रहा। परमेश्वर मनुष्य पर कार्य करता है और उसे अपने दृष्टिकोण और हृदय दोनों में सँजोता है। दूसरी ओर, शैतान मनुष्य को थोड़ा भी नहीं सँजोता है, और वह मनुष्य को हानि कैसे पहुँचाए इस बारे में सोचने में अपना सारा समय बिताता है। क्या ऐसा नहीं है? जब वह मनुष्य को हानि पहुँचाने के बारे में सोच रहा होता है, तो क्या उसकी मनःस्थिति अत्यावश्यकता की होती है? (हाँ।) तो जहाँ तक मनुष्य पर शैतान के कार्य का संबंध है, मेरे पास दो वाक्यांश हैं, जो शैतान की दुष्टता और दुर्भावना की व्याख्या अच्छी तरह से कर सकते हैं, जिससे सच में तुम लोग शैतान की घृणा को जान सकते हो : मनुष्य के प्रति अपने नजरिये में शैतान हमेशा हर मनुष्य पर इस सीमा तक बलपूर्वक कब्ज़ा करना और उस पर काबू करना चाहता है, जहाँ वह मनुष्य पर पूरा नियंत्रण हासिल कर ले और उसे कष्टप्रद तरीके से नुकसान पहुँचाए, ताकि वह अपना उद्देश्य और वहशी महत्वाकांक्षा पूरी कर सके। “बलपूर्वक कब्जा” करने का क्या अर्थ है? क्या यह तुम्हारी सहमति से होता है, या बिना तुम्हारी सहमति के? क्या यह तुम्हारी जानकारी से होता है, या बिना तुम्हारी जानकारी के? उत्तर है कि यह पूरी तरह से बिना तुम्हारी जानकारी के होता है! यह ऐसी स्थितियों में होता है, जब तुम अनजान रहते हो, संभवतः उसके तुमसे बिना कुछ कहे या तुम्हारे साथ बिना कुछ किए, बिना किसी प्रस्तावना के, बिना प्रसंग के—शैतान वहाँ होता है, तुम्हारे इर्द-गिर्द, तुम्हें घेरे हुए। वह तुम्हारा शोषण करने के लिए एक अवसर तलाशता है और फिर बलपूर्वक तुम पर कब्ज़ा कर लेता है, तुम पर काबू कर लेता है और तुम पर पूरा नियंत्रण प्राप्त करने और तुम्हें नुकसान पहुँचाने के अपने उद्देश्य को हासिल कर लेता है। मानव-जाति को परमेश्वर से छीनने की लड़ाई में शैतान का यह एक सबसे विशिष्ट इरादा और व्यवहार है।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IV
जब लोगों को परमेश्वर का ज्ञान होता है, तो वे परमेश्वर के लिए पीड़ित होने और जीने में प्रसन्न होते हैं, लेकिन शैतान अभी भी उनके अंदर की कमजोरियों को नियंत्रित करता है, शैतान अभी भी उन्हें पीड़ित करने में सक्षम है, दुष्ट आत्माएँ अभी भी उनके अंदर काम कर व्यवधान पैदा करने, उन्हें सम्मोहित करने, उन्हें विक्षिप्त और चिंतित करने और पूरी तरह से परेशान करने में सक्षम हैं। लोगों के विचारों और चेतना में ऐसी चीजें हैं, जो शैतान द्वारा नियंत्रित और प्रभावित की जा सकती हैं। इसलिए, कभी-कभी तुम बीमार या परेशान होते हो, कभी-कभी तुम्हें लगता है कि दुनिया उजाड़ हो गई है, या जीने का कोई मतलब नहीं है, और कभी-कभी तो मौत की भी कामना सकते हो और खुद को मारना चाहते हो। कहने का तात्पर्य यह है कि ये पीड़ाएँ शैतान द्वारा नियंत्रित की जाती हैं, और ये मनुष्य की घातक कमजोरी हैं। जो चीज शैतान द्वारा भ्रष्ट कर दी गई है और रौंद दी गई है, वह अभी भी शैतान द्वारा इस्तेमाल की जा सकती है; यह वह पेच है जिसे शैतान कसता है। ... जब दुष्ट आत्माएँ कार्य करती हैं, तो वे प्रत्येक कमी का फायदा उठाती हैं। वे तुम्हारे भीतर या तुम्हारे कान में बोल सकती हैं, या तुम्हारे मन को परेशान और तुम्हारे विचारों को अव्यवस्थित कर सकती हैं, तुम्हें पवित्र आत्मा के स्पर्श के प्रति सुन्न कर सकती हैं, तुम्हें उसे महसूस करने से रोक सकती हैं, और फिर दुष्ट आत्माएँ तुम्हारे परेशान करना शुरू कर देंगी, तुम्हारे विचारों को अराजकता में डाल देंगी और तुम अपनी सुध-बुध खो दोगे, यहाँ तक कि तुम्हारी आत्मा तुम्हारे शरीर से निकल जाएगी। यह वह कार्य है जो दुष्ट आत्माएँ लोगों में करती हैं, और अगर लोग उसकी असलियत न बता पाएँ, तो वे बहुत खतरे में होते हैं।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, परमेश्वर द्वारा जगत की पीड़ा का अनुभव करने का अर्थ
आज कुछ दुष्ट आत्माएँ हैं, जो मनुष्य को अलौकिक चीजों के माध्यम से गुमराह करती हैं; जो उनके द्वारा नक़ल किए जाने के अलावा और कुछ नहीं है, जो ऐसे कार्य के द्वारा मनुष्य को गुमराह करने के लिए की जाती है, जो वर्तमान में पवित्र आत्मा द्वारा नहीं किया जाता। कई लोग चमत्कार करते हैं, बीमारों को चंगा करते हैं और दुष्टात्माओं को निकालते हैं; वे बुरी आत्माओं के कार्य के अलावा और कुछ नहीं हैं, क्योंकि पवित्र आत्मा वर्तमान में ऐसा कार्य नहीं करता, और जिन्होंने उस समय के बाद से पवित्र आत्मा के कार्य की नकल की है, वे निस्संदेह बुरी आत्माएँ हैं। उस समय इस्राएल में किया गया समस्त कार्य अलौकिक प्रकृति का था, लेकिन पवित्र आत्मा अब इस तरीके से कार्य नहीं करता, और अब ऐसा हर कार्य शैतान द्वारा की गई नकल और उसका भेस है और उसके द्वारा की जाने वाली गड़बड़ी है। लेकिन तुम यह नहीं कह सकते कि जो कुछ भी अलौकिक है, वह बुरी आत्माओं से आता है—यह परमेश्वर के कार्य के युग पर निर्भर करता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारण का रहस्य (1)
परमेश्वर अपने कार्य को दोहराता नहीं है, वह ऐसा कार्य नहीं करता जो वास्तविक न हो, वह मनुष्य से अत्यधिक अपेक्षाएँ नहीं रखता, और वह ऐसा कार्य नहीं करता जो मनुष्यों की समझ से परे हो। वह जो भी कार्य करता है, वह सब मनुष्य की सामान्य समझ के दायरे के भीतर होता है, और सामान्य मानवता की समझ से परे नहीं होता, और उसका कार्य मनुष्य की सामान्य अपेक्षाओं के अनुसार किया जाता है। यदि यह पवित्र आत्मा का कार्य होता है, तो लोग हमेशा से अधिक सामान्य बन जाते हैं, और उनकी मानवता हमेशा से अधिक सामान्य बन जाती है। लोग अपने शैतानी स्वभाव का, और मनुष्य के सार का बढ़ता हुआ ज्ञान प्राप्त करते हैं, और वे सत्य के लिए हमेशा से अधिक ललक भी प्राप्त करते हैं। अर्थात्, मनुष्य का जीवन अधिकाधिक बढ़ता जाता है और मनुष्य का भ्रष्ट स्वभाव बदलाव में अधिकाधिक सक्षम हो जाता है—जिस सबका अर्थ है परमेश्वर का मनुष्य का जीवन बनना। यदि कोई मार्ग उन चीजों को प्रकट करने में असमर्थ है जो मनुष्य का सार हैं, मनुष्य के स्वभाव को बदलने में असमर्थ है, और, इसके अलावा, लोगों को परमेश्वर के सामने लाने में असमर्थ है या उन्हें परमेश्वर की सच्ची समझ प्रदान करने में असमर्थ है, और यहाँ तक कि उसकी मानवता के हमेशा से अधिक निम्न होने और उसकी भावना के हमेशा से अधिक असामान्य होने का कारण बनता है, तो यह मार्ग सच्चा मार्ग नहीं होना चाहिए, और यह दुष्टात्मा का कार्य या पुराना मार्ग हो सकता है। संक्षेप में, यह पवित्र आत्मा का वर्तमान कार्य नहीं हो सकता।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो परमेश्वर को और उसके कार्य को जानते हैं, केवल वे ही परमेश्वर को संतुष्ट कर सकते हैं
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जब पवित्र आत्मा मनुष्य पर कार्य करता है
परमेश्वर काम नहीं दोहराता