vi. दुष्ट आत्माओं का काम होने और दुष्ट आत्माओं के वशीभूत होने के बीच भेद कैसे करें

अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन

शैतान की ओर से कौन-सा कार्य आता है? शैतान से आने वाले काम में, लोगों के भीतर के दृश्य अस्पष्ट होते हैं; लोगों में सामान्य मानवता नहीं होती है, उनके कार्यों के पीछे की प्रेरणाएं गलत होती हैं, और यद्यपि वे परमेश्वर से प्रेम करना चाहते हैं, फिर भी उनके भीतर सदैव आरोप-प्रत्यारोप चलते रहते हैं और ये दोषारोपण और विचार उनके मन में निरंतर अशांति का कारण बनते हैं, उनके जीवन के विकास को सीमित कर देते हैं और सामान्य स्थिति में परमेश्वर के समक्ष आने से रोक देते हैं। कहने का अर्थ है कि जैसे ही लोगों में शैतान का कार्य आरंभ होता है, तो उनके हृदय परमेश्वर के समक्ष शांत नहीं रह सकते। ऐसे लोगों को पता नहीं होता कि वे स्वयं के साथ क्या करें—जब वे लोगों को इकट्ठा होते देखते हैं, वे भाग जाना चाहते हैं और जब दूसरे प्रार्थना करते हैं तो वे अपनी आँखें बंद नहीं रख पाते। दुष्ट आत्माओं का कार्य मनुष्य और परमेश्वर के बीच का सामान्य संबंध बर्बाद कर देता है और लोगों के पिछले दर्शनों या उनके जीवन प्रवेश के पिछले मार्ग को उलट देता है; अपने हृदयों में वे कभी परमेश्वर के क़रीब नहीं आ सकते, ऐसी बातें हमेशा होती रहती हैं, जो उन्हें अशांत करती हैं और उन्हें बेबस कर देती हैं। उनके हृदय शांति प्राप्त नहीं कर पाते और उनमें परमेश्वर से प्रेम करने की शक्ति नहीं बचती, और उनकी आत्माएं पतन की ओर जाने लगती हैं। शैतान के कार्य के प्रकटीकरण ऐसे हैं। शैतान के कार्य के प्रकटीकरण हैं : अपने स्थान पर डटे रह पाने और गवाही दे पाने में असमर्थ होना, यह तुम्हें ऐसा व्यक्ति बना देता है जो परमेश्वर के समक्ष दोषी है और जो परमेश्वर के प्रति निष्ठा नहीं रखता। जब शैतान परेशान करता है, तुम अपने भीतर परमेश्वर के प्रति प्रेम और वफादारी खो देते हो, तुम्हारा परमेश्वर के साथ सामान्य संबंध खत्म हो जाता है, तुम सत्य या स्वयं के सुधार का अनुसरण नहीं करते, तुम पीछे हटने लगते हो और नकारात्मक बन जाते हो, तुम स्वयं को आसक्त कर लेते हो, तुम पाप के फैलाव को खुली छूट दे देते हो और पाप से घृणा नहीं करते; इससे बढ़कर, शैतान का हस्तक्षेप तुम्हें स्वच्छंद बना देता है, इसकी वजह से तुम्हारे भीतर से परमेश्वर का स्पर्श हट जाता है और तुम्हें परमेश्वर के बारे में शिकायत करने और उसका विरोध करने को प्रेरित करता है, जिससे तुम परमेश्वर पर सवाल उठाते हो; तुम्हारे द्वारा परमेश्वर को त्याग देने का खतरा भी होता है। यह सब शैतान की ओर से आता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पवित्र आत्मा का कार्य और शैतान का कार्य

जब लोगों को परमेश्वर का ज्ञान होता है, तो वे परमेश्वर के लिए पीड़ित होने और जीने में प्रसन्न होते हैं, लेकिन शैतान अभी भी उनके अंदर की कमजोरियों को नियंत्रित करता है, शैतान अभी भी उन्हें पीड़ित करने में सक्षम है, दुष्ट आत्माएँ अभी भी उनके अंदर काम कर व्यवधान पैदा करने, उन्हें सम्मोहित करने, उन्हें विक्षिप्त और चिंतित करने और पूरी तरह से परेशान करने में सक्षम हैं। लोगों के विचारों और चेतना में ऐसी चीजें हैं, जो शैतान द्वारा नियंत्रित और प्रभावित की जा सकती हैं। इसलिए, कभी-कभी तुम बीमार या परेशान होते हो, कभी-कभी तुम्हें लगता है कि दुनिया उजाड़ हो गई है, या जीने का कोई मतलब नहीं है, और कभी-कभी तो मौत की भी कामना सकते हो और खुद को मारना चाहते हो। कहने का तात्पर्य यह है कि ये पीड़ाएँ शैतान द्वारा नियंत्रित की जाती हैं, और ये मनुष्य की घातक कमजोरी हैं। जो चीज शैतान द्वारा भ्रष्ट कर दी गई है और रौंद दी गई है, वह अभी भी शैतान द्वारा इस्तेमाल की जा सकती है; यह वह पेच है जिसे शैतान कसता है। ... जब दुष्ट आत्माएँ कार्य करती हैं, तो वे प्रत्येक कमी का फायदा उठाती हैं। वे तुम्हारे भीतर या तुम्हारे कान में बोल सकती हैं, या तुम्हारे मन को परेशान और तुम्हारे विचारों को अव्यवस्थित कर सकती हैं, तुम्हें पवित्र आत्मा के स्पर्श के प्रति सुन्न कर सकती हैं, तुम्हें उसे महसूस करने से रोक सकती हैं, और फिर दुष्ट आत्माएँ तुम्हारे परेशान करना शुरू कर देंगी, तुम्हारे विचारों को अराजकता में डाल देंगी और तुम अपनी सुध-बुध खो दोगे, यहाँ तक कि तुम्हारी आत्मा तुम्हारे शरीर से निकल जाएगी। यह वह कार्य है जो दुष्ट आत्माएँ लोगों में करती हैं, और अगर लोग उसकी असलियत न बता पाएँ, तो वे बहुत खतरे में होते हैं।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, परमेश्वर द्वारा जगत की पीड़ा का अनुभव करने का अर्थ

कुछ लोग कहते हैं कि पवित्र आत्मा हर समय उनमें कार्य कर रहा है। यह असंभव है। यदि वे कहते कि पवित्र आत्मा हमेशा उनके साथ है, तो यह यथार्थपरक होता। यदि वे कहते कि उनकी सोच और उनका बोध हर समय सामान्य रहता है, तो यह भी यथार्थपरक होता और दिखाता कि पवित्र आत्मा उनके साथ है। यदि वे कहते हैं कि पवित्र आत्मा हमेशा उनके भीतर कार्य कर रहा है, कि वे हर पल परमेश्वर द्वारा प्रबुद्ध और पवित्र आत्मा द्वारा द्रवित किए जाते हैं, और हर समय नया ज्ञान प्राप्त करते हैं, तो यह किसी भी तरह से सामान्य नहीं है। यह पूर्णतः अलौकिक है! बिना किसी संदेह के, ऐसे लोग बुरी आत्माएँ हैं! यहाँ तक कि जब परमेश्वर का आत्मा देह में आता है, तब भी ऐसे समय होते हैं जब उसे भोजन करना चाहिए और आराम करना चाहिए—मनुष्यों की तो बात ही छोड़ दो। जो लोग बुरी आत्माओं से ग्रस्त हो गए हैं, वे देह की कमजोरी से रहित प्रतीत होते हैं। वे सब-कुछ त्यागने और छोड़ने में सक्षम होते हैं, वे भावनाओं से मुक्त होते हैं, यातना सहने में सक्षम होते हैं और जरा-सी भी थकान महसूस नहीं करते, मानो वे देहातीत हो चुके हों। क्या यह नितांत अलौकिक नहीं है? दुष्ट आत्माओं का कार्य अलौकिक है और कोई मनुष्य ऐसी चीजें प्राप्त नहीं कर सकता। जिन लोगों में विवेक की कमी होती है, वे जब ऐसे लोगों को देखते हैं, तो ईर्ष्या करते हैं : वे कहते हैं कि परमेश्वर पर उनका विश्वास बहुत मजबूत है, उनकी आस्था बहुत बड़ी है, और वे कमज़ोरी का मामूली-सा भी चिह्न प्रदर्शित नहीं करते! वास्तव में, ये सब दुष्ट आत्मा के कार्य की अभिव्यक्तियाँ है। क्योंकि सामान्य लोगों में अनिवार्य रूप से मानवीय कमजोरियाँ होती हैं; यह उन लोगों की सामान्य अवस्था है, जिनमें पवित्र आत्मा की उपस्थिति होती है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (4)

यदि वर्तमान समय में ऐसा कोई व्यक्ति उभरे, जो चिह्न और चमत्कार प्रदर्शित करने, दुष्टात्माओं को निकालने, बीमारों को चंगा करने और कई चमत्कार दिखाने में समर्थ हो, और यदि वह व्यक्ति दावा करे कि वह यीशु है जो आ गया है, तो यह बुरी आत्माओं द्वारा उत्पन्न नकली व्यक्ति होगा, जो यीशु की नकल उतार रहा होगा। यह याद रखो! परमेश्वर वही कार्य नहीं दोहराता। कार्य का यीशु का चरण पहले ही पूरा हो चुका है, और परमेश्वर कार्य के उस चरण को पुनः कभी हाथ में नहीं लेगा। परमेश्वर का कार्य मनुष्य की धारणाओं के साथ मेल नहीं खाता; उदाहरण के लिए, पुराने नियम ने मसीहा के आगमन की भविष्यवाणी की, और इस भविष्यवाणी का परिणाम यीशु का आगमन था। चूँकि यह पहले ही घटित हो चुका है, इसलिए एक और मसीहा का पुनः आना ग़लत होगा। यीशु एक बार पहले ही आ चुका है, और यदि यीशु को इस समय फिर आना पड़ा, तो यह गलत होगा। प्रत्येक युग के लिए एक नाम है, और प्रत्येक नाम में उस युग का चरित्र-चित्रण होता है। मनुष्य की धारणाओं के अनुसार, परमेश्वर को सदैव चिह्न और चमत्कार दिखाने चाहिए, सदैव बीमारों को चंगा करना और दुष्टात्माओं को निकालना चाहिए, और सदैव ठीक यीशु के समान होना चाहिए। परंतु इस बार परमेश्वर इसके समान बिल्कुल नहीं है। यदि अंत के दिनों के दौरान, परमेश्वर अब भी चिह्नों और चमत्कारों को प्रदर्शित करे, और अब भी दुष्टात्माओं को निकाले और बीमारों को चंगा करे—यदि वह बिल्कुल यीशु की तरह करे—तो परमेश्वर वही कार्य दोहरा रहा होगा, और यीशु के कार्य का कोई महत्व या मूल्य नहीं रह जाएगा। इसलिए परमेश्वर प्रत्येक युग में कार्य का एक चरण पूरा करता है। ज्यों ही उसके कार्य का प्रत्येक चरण पूरा होता है, बुरी आत्माएँ शीघ्र ही उसकी नकल करने लगती हैं, और जब शैतान परमेश्वर के बिल्कुल पीछे-पीछे चलने लगता है, तब परमेश्वर तरीक़ा बदलकर भिन्न तरीक़ा अपना लेता है। ज्यों ही परमेश्वर ने अपने कार्य का एक चरण पूरा किया, बुरी आत्माएँ उसकी नकल कर लेती हैं। तुम लोगों को इस बारे में स्पष्ट होना चाहिए।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आज परमेश्वर के कार्य को जानना

कुछ ऐसे लोग हैं, जो दुष्टात्माओं से ग्रस्त हैं और ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाते रहते हैं, “मैं परमेश्वर हूँ!” लेकिन अंत में, उनका भेद खुल जाता है, क्योंकि वे गलत चीज़ का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे शैतान का प्रतिनिधित्व करते हैं, और पवित्र आत्मा उन पर कोई ध्यान नहीं देता। तुम अपने आपको कितना भी बड़ा ठहराओ या तुम कितना भी जोर से चिल्लाओ, तुम फिर भी एक सृजित प्राणी ही रहते हो और एक ऐसा प्राणी, जो शैतान से संबंधित है। मैं कभी नहीं चिल्लाता, “मैं परमेश्वर हूँ, मैं परमेश्वर का प्रिय पुत्र हूँ!” परंतु जो कार्य मैं करता हूँ, वह परमेश्वर का कार्य है। क्या मुझे चिल्लाने की आवश्यकता है? मुझे ऊँचा उठाए जाने की कोई आवश्यकता नहीं है। परमेश्वर अपना काम स्वयं करता है और वह नहीं चाहता कि मनुष्य उसे हैसियत या सम्मानजनक उपाधि प्रदान करे : उसका काम उसकी पहचान और हैसियत का प्रतिनिधित्व करता है। अपने बपतिस्मा से पहले क्या यीशु स्वयं परमेश्वर नहीं था? क्या वह परमेश्वर द्वारा धारित देह नहीं था? निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि केवल गवाही मिलने के पश्चात् ही वह परमेश्वर का इकलौता पुत्र बना। क्या उसके द्वारा काम शुरू करने से बहुत पहले ही यीशु नाम का कोई व्यक्ति नहीं था? तुम नए मार्ग लाने या पवित्रात्मा का प्रतिनिधित्व करने में असमर्थ हो। तुम पवित्र आत्मा के कार्य को या उसके द्वारा बोले जाने वाले वचनों को व्यक्त नहीं कर सकते। तुम स्वयं परमेश्वर का या पवित्रात्मा का कार्य करने में असमर्थ हो। परमेश्वर की बुद्धि, चमत्कार और अगाधता, और उसके स्वभाव की समग्रता, जिसके द्वारा परमेश्वर मनुष्य को ताड़ना देता है—इन सबको व्यक्त करना तुम्हारी क्षमता के बाहर है। इसलिए परमेश्वर होने का दावा करने की कोशिश करना व्यर्थ होगा; तुम्हारे पास सिर्फ़ नाम होगा और कोई सार नहीं होगा। स्वयं परमेश्वर आ गया है, किंतु कोई उसे नहीं पहचानता, फिर भी वह अपना काम जारी रखता है और ऐसा वह पवित्रात्मा के प्रतिनिधित्व में करता है। चाहे तुम उसे मनुष्य कहो या परमेश्वर, प्रभु कहो या मसीह, या उसे बहन कहो, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। परंतु जो कार्य वह करता है, वह पवित्रात्मा का है और वह स्वयं परमेश्वर के कार्य का प्रतिनिधित्व करता है। वह इस बात की परवाह नहीं करता कि मनुष्य उसे किस नाम से पुकारता है। क्या वह नाम उसके काम का निर्धारण कर सकता है? चाहे तुम उसे कुछ भी कहकर पुकारो, जहाँ तक परमेश्वर का संबंध है, वह परमेश्वर के आत्मा का देहधारी स्वरूप है; वह पवित्रात्मा का प्रतिनिधित्व करता है और उसके द्वारा अनुमोदित है। यदि तुम एक नए युग के लिए मार्ग नहीं बना सकते, या पुराने युग का समापन नहीं कर सकते, या एक नए युग का सूत्रपात या नया कार्य नहीं कर सकते, तो तुम्हें परमेश्वर नहीं कहा जा सकता!

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारण का रहस्य (1)

कुछ लोग होते हैं जो जब तक कोई मुद्दा नहीं उठता, बहुत सामान्य होते हैं, जो बहुत सामान्य रूप से बात करते और चर्चा करते हैं, जो सामान्य लगते हैं और जो कुछ भी बुरा नहीं करते हैं। लेकिन जब सभाओं में परमेश्वर के वचनों को पढ़ा जा रहा होता है, जब सत्य की संगति की जा रही होती है, तो वे अचानक असामान्य व्यवहार करने लगते हैं। कुछ सुनना सहन नहीं कर पाते, कुछ ऊंघने लगते हैं और कुछ बीमार पड़ जाते हैं, यह कहते हुए कि उन्हें बुरा लग रहा है और वे अब और नहीं सुनना चाहते। तब वे बिल्कुल अनजान होते हैं-यहां क्या कुछ चल रहा है? उन पर एक दुष्ट आत्मा चढ़ी होती है। तो फिर किसी दुष्ट आत्मा के अधीन होकर वे लोग ये शब्द क्यों बोलते रहते हैं “मैं इसे नहीं सुनना चाहता”? कभी-कभी लोग समझ नहीं पाते हैं कि यहां क्या हो रहा है, लेकिन एक दुष्ट आत्मा के लिए यह बिल्कुल स्पष्ट होता है। मसीह-विरोधियों में यही आत्मा होती है। तुम उनसे पूछो कि वे सत्य के प्रति इतने शत्रुतापूर्ण क्यों हैं, तो वे कहेंगे कि वे नहीं हैं, और वे दृढ़तापूर्वक इसे मानने से इनकार करेंगे। लेकिन अपने दिल में वे जानते हैं कि वे सत्य से प्रेम नहीं करते। जब वे परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ते, तब दूसरों से मिलने-जुलने में वे सामान्य लगते हैं। तुम्हें पता नहीं चलेगा कि उनके अंदर क्या चल रहा है। जब वे कोशिश करके परमेश्वर के वचन पढ़ते हैं, तो तुरंत उनके मुँह से ये शब्द निकलते हैं, “मैं इसे नहीं सुनना चाहता”; उनकी प्रकृति उजागर हो जाती है और वे जो हैं, यही हैं। क्या परमेश्वर के वचनों ने उन्हें उकसाया है, प्रकट किया है या वहां चोट पहुँचाई है, जहां दर्द होता है? ऐसा कुछ भी नहीं। दरअसल हुआ यह है कि जब बाकी सभी लोग परमेश्वर के वचन पढ़ रहे होते हैं, वे कहते हैं कि वे उसे नहीं सुनना चाहते। क्या वे दुष्ट नहीं हैं? दुष्ट होने का क्या अर्थ होता है? इसका अर्थ होता है बिना किसी स्पष्ट कारण और बिना जाने क्यों किसी चीज़ के प्रति और सकारात्मक चीज़ों के प्रति बहुत शत्रुतापूर्ण होना। वे कहते हैं, “जैसे ही मुझे परमेश्वर के वचन सुनाई पड़ते हैं, मैं उन्हें सुनना नहीं चाहता; जैसे ही मुझे परमेश्वर की गवाही सुनाई पड़ती है, मुझमें विरक्ति पैदा हो जाती है, मुझे नहीं पता क्यों। जब मैं किसी ऐसे व्यक्ति को देखता हूँ, जो सत्य का अनुसरण करता है या सत्य से प्रेम करता है, मैं उन्हें चुनौती देना चाहता हूँ, मैं हमेशा उन्हें डांटना चाहता हूँ या उनकी पीठ पीछे उन्हें नुकसान पहुँचाने वाला कोई काम करना चाहता हूँ, मैं उन्हें मार देना चाहता हूँ।” ऐसा कहना उनकी दुष्टता दर्शाता है। दरअसल, शुरुआत से ही मसीह-विरोधियों में कभी भी सामान्य व्यक्ति की आत्मा नहीं रही और उनमें कभी भी सामान्य मानवता नहीं रही–वास्तव में यही सब चल रहा है।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग एक)

भाई और बहन अपने भीतर विवेक विकसित करें और व्यावहारिक सबक सीखें, इसके लिए परमेश्वर ने उनके बीच किसी ऐसे व्यक्ति के रहने की व्यवस्था की, जो दानव के कब्जे में रहा हो। शुरुआत में इस व्यक्ति का बोलने और काम करने का तरीका सामान्य था, उसका विवेक भी सामान्य था; वह बिलकुल भी समस्यात्मक दिखाई नहीं देता था। लेकिन संपर्क की एक अवधि के बाद, भाइयों और बहनों को पता चला कि जो कुछ भी वह कहता है, वह असंगत लगता है—उसकी बातें बेमतलब थीं। बाद में कुछ “अलौकिक” चीज़ें हुईं : वह हमेशा भाई-बहनों को बताता कि उसने फलां-फलां चीज़ें देखी हैं, या कि परमेश्वर ने उसके सामने फलां-फलां बात का खुलासा किया है। उदाहरण के लिए, एक दिन परमेश्वर ने उसे बताया कि उसे भाप से पकी रोटियाँ बनानी हैं—उसे बनानी ही होंगी—और उसके अगले दिन ऐसा हुआ कि उसे बाहर जाना पड़ा, इसलिए वह रोटियाँ अपने साथ ले गया और उसे कोई और खाना बनाने की ज़रूरत नहीं पड़ी। अगले दिन परमेश्वर ने उसे सपने में बताया कि उसे दक्षिण की ओर जाना चाहिए; छह मील दूर कोई उसका इंतज़ार कर रहा है। वह देखने गया, और ठीक वहाँ यीशु का एक विश्वासी था, जो खो गया था; उसने इस विश्वासी के सामने अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य की गवाही दी और उसने उसे स्वीकार कर लिया। वह हमेशा प्रकाशन प्राप्त करता रहता था, उसे हमेशा एक वाणी सुनाई देती थी, हमेशा अलौकिक चीज़ें हो रही थीं। हर दिन जब यह बात आती कि क्या खाना है, कहाँ जाना है, क्या करना है, किसके साथ बातचीत करनी है, तो वह सामान्य मानव-जीवन के नियमों का पालन न करता, न ही वह आधार या सिद्धांत के रूप में परमेश्वर के वचनों की तलाश करता, और न ही सहभागिता करने के लिए वह लोगों को खोजता। इसके बजाय, वह हमेशा किसी आवाज़ या प्रकाशन या सपने का इंतजार करता। क्या यह व्यक्ति सामान्य था? (नहीं।) कुछ लोग उसकी असलियत जान पाए और उन्होंने कहा : “यह आदमी भले ही सड़क पर नंगा और मैला-कुचैला न दौड़ता हो, लेकिन ये एक बुरी आत्मा की अभिव्यक्तियाँ हैं।” धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से, भाई-बहनों को उसकी असलियत का पता लगना शुरू हो गया, और फिर वह दिन आया, जब उसकी समस्या फूट पड़ी और वह पागलों की तरह बातें करता हुआ नंगा और मैला-कुचैला सड़कों पर दौड़ने लगा। दानव प्रकट हो गया था; चीज़ें आखिरकार प्रकाश में आ गईं। तो क्या इस दौरान भाई-बहन उसकी असलियत देख पाये? क्या उन्हें यह अंतर्दृष्टि मिली कि बुरी आत्मा क्या होती है, बुरी आत्मा का क्या काम है, और लोगों में बुरी आत्माओं के काम की अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? (हाँ।) कुछ लोगों ने निश्चित रूप से अंतर्दृष्टि और विवेक प्राप्त किया। शायद कुछ लोग उसके झाँसे में आ गए, और वे केवल तभी उसकी असलियत देख पाए, जब उसका आवेग फूटा। लेकिन चाहे वे झाँसे में आ गए हों या उसकी असलियत देख पाने में सफल रहे हों, अगर परमेश्वर ने इस परिवेश की व्यवस्था न की होती, तो क्या लोगों को यह स्पष्ट हो पाता कि बुरी आत्मा का क्या काम है? (नहीं।) तो फिर परमेश्वर द्वारा इस परिवेश की व्यवस्था और ये चीज़ें किए जाने का क्या महत्व और उद्देश्य था? यह इसलिए था कि लोग इस प्रकार के व्यक्ति को पहचान पाएँ, व्यावहारिक विवेक विकसित कर पाएँ और एक सबक सीख पाएँ। अगर लोगों को सिर्फ यह बताया जाता कि बुरी आत्मा का क्या काम है, वैसे ही जैसे कोई शिक्षक बिना किसी वास्तविक प्रशिक्षण या अभ्यास के कोई सबक सिखाता है, तो लोग केवल सिद्धांत और शब्द प्राप्त करते। तुम केवल तभी यह स्पष्ट रूप से बता सकते हो कि बुरी आत्मा का काम क्या है और उसकी विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ क्या हैं, जब तुमने व्यक्तिगत रूप से इसे देखा हो—अपनी आँखों से देखा हो, अपने कानों से सुना हो। और फिर जब ऐसे लोग दोबारा तुम्हारे सामने आते हैं, तो तुम उन्हें पहचानने और अस्वीकार करने में सक्षम होगे; तुम ऐसे मामलों पर ठीक से ध्यान देने और उन्हें सँभाल पाने में सक्षम होगे।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद पंद्रह : वे परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते और वे मसीह के सार को नकारते हैं (भाग एक)

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